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कोरोना की दूसरी लहर और फुस्स होता टीकाकरण अभियान

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने तो दिल्ली स्थित एम्स में जाकर कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन की दूसरी डोज़ भी ले ली है, फोटो भी सोशल मीडिया पर शेयर कर ली, वहीँ देश के अधिकाँश हिस्सों में अभी लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ भी नहीं मिल पायी है. ये भी देखा जा रहा है कि टीके के प्रति जहाँ एक ओर लोगों के मन में विश्वास पैदा नहीं हो रहा है, वहीँ टीके की दोनों डोज़ लेने के बाद भी कई लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं. ये स्थिति जहाँ चिंता बढ़ाने वाली है, वहीँ यह टीके के प्रति अविश्वास उत्पन्न करने वाली भी है. वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार ने उम्मीद जगाई थी कि जितने ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगेगी, कोरोना के नए मामले उतने की कम देखने को मिलेंगे, लेकिन हो इससे उल्टा रहा है. जैसे-जैसे वैक्सीन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, उससे दोगुनी रफ़्तार से कोरोना अपने पैर पसार रहा है.

पिछले साल मार्च में कर्फ्यू और लॉकडाउन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताली-थाली पीटने और घरों में दिए जला कर प्रकाशोत्सव मनाने जैसे उपक्रम करवा कर कोरोना को भगाने की कोशिश में सड़कों पर लोगों का जमावड़ा लगवा दिया था, अबकी साल नाइट कर्फ्यू की जगह ‘कोरोना कर्फ्यू’ शब्द का इस्तेमाल करने और 11 अप्रैल को ज्योतिबा फुले की जन्मजयंति एवं 14 अप्रैल को बाबा भीमराव आंबेडकर जन्मजयंति को ‘टीका उत्सव’ के रूप में मनाने का ऐलान किया है. भारत की मासूम और नासमझ जनता ‘उत्सवों’ का क्या मतलब समझती है और किस प्रकार मिलजुल कर और इकट्ठी हो कर मनाती है,

कोरोनाकाल में इसके अनेक नज़ारे देखने के बाद भी चुनावी राज्यों में लगातार बड़ी-बड़ी रैलियां करवा रहे प्रधानमन्त्री द्वारा कोरोना को भगाने के लिए ‘टीका उत्सव’ मनाने का ऐलान करने से ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण इस देश के लिए और क्या हो सकता है?

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देश में स्वास्थ सेवाओं को युद्ध स्तर पर दुरुस्त करने की बजाय चुनावी राज्यों में रैलियों-उत्सवों में बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना करने वाली जनता के जबरदस्त जमावड़े को देख कर देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चेहरे खिल उठते हैं. बीमारी और मौत का आह्वान करती भीड़ को देख कर वह मुस्कुराते हैं. हाथ हिला-हिला कर उसका स्वागत करते हैं. आश्चर्य !

बीते एक साल में केंद्र और राज्य की सरकारें ना तो अस्पतालों में पर्याप्त ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था कर पाईं हैं और ना ही बीमारों के उपचार के लिए अस्पतालों को पर्याप्त बेड उपलब्ध हो सके हैं. वेंटिलेटर्स की संख्या लगभग सभी अस्पतालों में इतनी कम है कि महामारी के भीषण रूप इख्तियार कर लेने की स्थिति में मरीजों को बचा पाना डॉक्टरों के लिए लगभग नामुमकिन सा है. बीते एक साल में कोरोना से संक्रमित होने वाले तीन चौथाई लोग होम आइसोलेशन में रह कर ठीक हुए हैं, क्योंकि वहां उनकी देखभाल करने वाले उनके अपने परिजन थे, जिन्होंने बिना भय के अपने मरीज को नियमित रूप से गर्म पानी, भंपारा और बुखार-खांसी की दवाएं देकर बीमारी से उबार लिया, जबकि अस्पतालों में भर्ती ज़्यादातर कोरोना मरीज मौत का शिकार हुए हैं, क्योंकि वहां उनके पास जाने में मेडिकल स्टाफ को डर लगता था, ऐसे में उपचार तो क्या ही हुआ होगा.

अधिकाँश अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ के पास अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त पीपीई किट यानी पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स जिसमें मास्क, ग्लोव्स, गाउन, एप्रन, फेस प्रोटेक्टर, फेस शील्ड, स्पेशल हेलमेट, रेस्पिरेटर्स, आई प्रोटेक्टर, गोगल्स, हेड कवर, शू कवर, रबर बूट्स शामिल होते हैं, नहीं थे, लिहाजा उन्होंने अपनी जान पर रिस्क नहीं लिया.

हैरानी की बात है कि कोरोना काल का एक साल बीत जाने पर भी यह कमी अस्पतालों में बनी हुई है. बीते साल मेडिकल स्टाफ के जिन लोगों ने इन बातों की शिकायत सोशल मीडिया के माध्यम से की, उन्होंने अपनी नौकरियां गवां दीं. अस्पतालों की अव्यवस्था और कमियों को दूर करने की बजाय प्रधानमन्त्री लोगों से तालियां बजवाते रहे. किसी अस्पताल ने कोरोना मरीजों के परिजनों को उनसे मिलने या देखने की अनुमति नहीं दी, मृत्यु हो जाने पर लाश को पॉलिथीन में पैक कर सीधे शमशान भेज दिया गया, इसलिए उपचार की तमाम सच्चाइयां अस्पतालों की चारदीवारी में ही दफन हो कर रह गयीं.

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बेकाबू होती कोरोना की रफ़्तार

बीते एक साल से लोगों को कोरोना की वैक्सीन का इंतज़ार था. इस दौरान भारत में करीब बीस दवा कम्पनियाँ कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रही हैं, जिसमें सबसे अव्वल रहा अदार पूनावाला का पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया. कोरोना काल से पहले तक अदार पूनावाला का नाम आम जनता नहीं जानती थी, मगर कोरोना ने उन्हें नाम और दाम दोनों दिया. यहाँ तक कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उनके मुरीद होकर सीरम इंस्टिट्यूट उनसे मिलने पहुंचे. सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर कोरोना के खात्मे के लिए कोवीशील्ड नाम की वैक्सीन बनायी है. जबकि इसी के समानांतर हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन का निर्माण किया है. बायोटेक के एमडी डॉ. कृष्णा एल्ला हैं. इस समय भारत में यही दोनों वैक्सीन लग रही हैं. इस साल जनवरी में टीकाकरण अभियान शुरू होने पर दोनों ही कंपनियों ने भरोसा दिलाया था कि उनके द्वारा निर्मित वैक्सीन लेने के बाद कोरोना की रोकथाम प्रभावशाली तरीके से होगी. मगर अब इन वैक्सीनों पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
देश में अब तक सात करोड़ से अधिक टीके लगाए जा चुके हैं और इसके बावजूद संक्रमण की रफ्तार बेकाबू होती जा रही है. खासकर महाराष्‍ट्र, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे राज्‍यों में हालात लगातार चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं. कई लोगों को दोबारा संक्रमण हो रहा है तो कहीं वैक्‍सीनेशन के बाद भी संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के 40 डॉक्टर्स कोरोना का शिकार हो गए हैं, जबकि उन्हें वैक्सीन की दोनों डोज़ेस मिल चुकी हैं, वहीँ दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भी 37 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, जिनमें से पांच अस्पताल में ही भर्ती हैं. अन्य डॉक्टरों को होम आइसोलेशन में रखा गया हैं. जानकारी के अनुसार इनमें से ज्यादातर डॉक्टर वे हैं जो कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे थे और जिनको वैक्सीन लग चुकी थी. इन ख़बरों के चलते देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में उछाल के बीच वैक्‍सीन को लेकर अब कई तरह के सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडेय अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि वैक्‍सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी उन्हें कोरोना हो गया. वैक्‍सीन की पहली डोज उन्‍होंने 5 फरवरी और दूसरी डोज 5 मार्च को ली थी. अधिकारी ने कोरोना वैक्सीन लेते हुए अपनी फोटो भी पोस्ट की थी.पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडे के साथ उनकी पत्‍नी और एक सुरक्षाकर्मी भी संक्रमित हुए हैं. उनके सुरक्षाकर्मी ने भी वैक्‍सीन की दो डोज ली थी, जबकि पत्‍नी ने अभी एक डोज ली है. उनके बेटे को तीन दिन पहले संक्रमण हुआ था. इसके बाद एक बार फिर सवाल पैदा हुआ कि आखिर वैक्‍सीन की दो डोज लेने के बाद भी संक्रमण क्‍यों हो रहा, जबकि वैक्‍सीन निर्माताओं ने दावा किया था कि दो डोज लेने के बाद संक्रमण से बचाव के लिए शरीर में प्रभावी इम्‍युनिटी विकसित हो जाती है.

मामला सँभालने की कोशिश  

इस बारे में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने एक रिपोर्ट जारी कर मामले को सँभालने की कुछ कोशिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुन: संक्रमण के मामले बहुत कम हैं, और इस संबंध में वायरस के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम को समझने की आवश्‍यकता है.

गौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्‍या लगभग 4.5 फीसदी है. इनमें पहली और दूसरी बार हुए संक्रमण में वायरस के जीनोम का अध्‍ययन नहीं किया गया है. पुन: संक्रमण की यह दर अंतरराष्‍ट्रीय अध्‍ययनों में बताई गई 1 फीसदी रि-इंफेक्‍शन के दर से कहीं अधिक है. संभव यह भी है कि कोविड-19 का दोबारा संक्रमण वायरस के अलग वैरिएंट्स की वजह से हो. अब तक के वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि यह वायरस लगातार अपना जीनोम बदल रहा है. भारत में भी कोरोना वायरस के कई वैरिएंट्स सामने आए हैं. लेकिन इन पर समुचित अध्ययन अभी तक नहीं हो पाया है.

दिल्ली एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी मानते हैं कि कई लोगों को वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद भी कोरोना हो रहा है? मगर इस पर उनका कहना है कि वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी जो लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, उन पर इस वायरस का असर कम दिखेगा और वो गंभीर रूप से बीमार नहीं होंगे. उनमें हल्के लक्षण हो सकते हैं. उन्हें आईसीयू की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके अलावा ऐसे लोगों की मौत होने की संभावना भी कम है.

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कितनी कारगर है वैक्सीन

संक्रमण से बचाव में वैक्‍सीन के प्रभावी होने के संबंध में वैक्‍सीन निर्माताओं के दावों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि अमूमन सभी वैक्‍सीन निर्माताओं ने अपनी वैक्‍सीन को संक्रमण से बचाव में 70-80 फीसदी कारगर बताया है.

अब यदि वैक्‍सीन को 70 फीसदी ही कारगर माना जाए तो इसका अर्थ यह हुआ कि 30 प्रतिशत लोगों में संक्रमण का जोखिम वैक्सीन लेने के बाद भी बना रहता है. यानी 10 में से 3 लोगों के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बना रहता है. उन्‍हें संक्रमण हो भी सकता है और नहीं भी. इसलिए यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है कि किसे संक्रमण हो सकता है और किसे नहीं. भारत में इस वक्‍त जो दो वैक्‍सीन – कोवैक्‍सीन और कोविशील्‍ड लगाई जा रही है, उसके निर्माताओं का कहना है कि यह संक्रमण से गंभीर स्थिति पैदा होने और मौतों को रोकने में 100 फीसदी तक कारगर है.

वैक्‍सीन निर्माता कंपनियों के इस दावे का सीधा अर्थ यह है कि अगर किसी ने कोविड-19 की वैक्‍सीन लगवाई है और निर्धारित समय के भीतर उसका दूसरा डोज ले लिया है, तो उसमें संक्रमण के कारण गंभीर स्थिति पैदा नहीं होगी और इस वजह से उसकी जान नहीं जाएगी. कंपनियों का कहना है कि उनके दावे वैज्ञानिक रिसर्च पर आधारित हैं और इस तरह विज्ञान के नजरिये से देखें तो वैक्‍सीन संक्रमण के कारण गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य संकट पैदा होने की स्थिति से बचाता है और मौतों को भी रोकता है. साथ ही यह एक बड़ी आबादी, तकरीबन 70 फीसदी लोगों को संक्रमण की चपेट में आने से बचाता भी है.

किस तरह काम करती है वैक्‍सीन  

इस बारे में डॉक्टर्स का कहना है कि वैक्‍सीन की दो डोज लेना जरूरी है. कोवैक्‍सीन का दूसरा डोज जहां 28 से 42 दिनों के भीतर लिया जा सकता है, वहीं कोविशील्‍ड का दूसरा डोज 42 से 56 दिनों के बाद लिया जा सकता है. विशेषज्ञ कहते हैं – यूं तो वैक्‍सीन का असर पहले डोज के बाद ही शुरू हो जाता है, लेकिन वायरस से लड़ने में यह प्रभावी नहीं होता और इसलिए दूसरा डोज लेने की सलाह दी जाती है. दूसरा डोज लगवाने के 14 दिनों बाद वैक्‍सीन वायरस से लड़ने में प्रभावी हो जाती है. मगर सवाल यह है कि जिस रफ़्तार और जिस टूटी-फूटी व्यवस्था के साथ वैक्सीनेशन का कार्यक्रम चल रहा है, वह इतने बड़े देश में पांच साल में भी पूरा नहीं होगा.

टीकाकरण अभियान लक्ष्य से बहुत पीछे

गौरतलब है कि देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत जनवरी मध्य में हो गयी थी मगर 135 करोड़ की आबादी वाले देश में अभी तक सिर्फ सात करोड़ के करीब लोगों का ही टीकाकरण हो पाया है. टीकाकरण की शुरुआत के वक़्त जो लक्ष्य रखा गया था उसके मुताबिक अब तक 10 -15 करोड़ लोगों को टीके लग जाने चाहिए थे. यह ठीक है कि जब से 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीका लगवाने की हरी झंडी मिली है तब से टीकाकरण की रफ्तार कुछ बढ़ी है, लेकिन यह अब भी लक्ष्य से बहुत पीछे है. आखिर प्रतिदिन 50 लाख लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य जो केंद्र और राज्यों की सरकारों ने रखा था, क्यों नहीं हासिल हो पा रहा है? जवाब है – देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, स्टाफ की बेतरह कमी, अस्पतालों की कमी, जागरूकता की कमी और टीके के प्रति लोगों के दिलों में अविश्वास.

केंद्र और राज्य सरकारों को यह देखना चाहिए कि यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए और पात्र लोग टीका लगवाने में तत्परता का परिचय दें.

खराब हो रहे हैं टीके

गाज़ियाबाद जिला अस्पताल की वरिष्ठ अधिकारी डॉक्टर ऋतु वर्मा कहती हैं कि टीके की बोतल खुलने के चार घंटे बाद वह बेकार हो जाती हैं. यदि इस बीच पर्याप्त संख्या में लोग टीकाकरण के लिए नहीं पहुंचते हैं तो टीके का नुकसान होता है. वहीँ कोवैक्सीन की डोज़ देने के लिए कम से कम दस लोगों के समूह का इंतज़ार करना होता है.

कोरोना वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार पर गृह मामलों की संसदीय समिति ने भी जताई चिंता जताते हुए कहा है कि ऐसे तो टीकाकरण पूरा होने में कई साल लग जाएंगे. राज्यसभा में पेश गृह मंत्रालय की अनुदान की मांग संबंधी रिपोर्ट पर समिति ने यह भी चिंता जताई है कि काफी संख्या में लोगों को टीके की दूसरी खुराक नहीं लग पा रही है. समिति कोविड -19 के वर्तमान टीकाकरण प्रक्रिया पर गौर कर रही है. कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति का कहना है कि अभी तक भारतीय आबादी के एक फीसदी से भी कम लोगों का टीकाकरण हुआ है और इस दर से पूरी आबादी के टीकाकरण में कई साल लग जाएंगे.

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यह समझना कठिन है कि जब टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में कठिनाई आ रही है, तब फिर सभी आयु वर्ग के लोगों को टीका लगवाने की सुविधा देने से क्यों बचा जा रहा है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि टीकों के खराब होने का एक कारण वांछित संख्या में लोगों का टीकाकरण केंद्रों में न पहुंचना है. यदि पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध हैं तो फिर घर-घर टीके लगाने का भी कोई अभियान शुरू करने पर विचार किया जाना चाहिए. कम से कम यह तो होना ही चाहिए कि जो लोग अपने काम-धंधे के सिलसिले में घरों से बाहर निकलते हैं और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाते हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर टीका लगे, भले ही उनकी उम्र 45 वर्ष से कम क्यों न हो. ऐसे उपाय इसलिए आवश्यक हो गए हैं, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि अब अपेक्षाकृत कम आयु वाले लोग भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं. अब जब कोरोना संक्रमण के खतरे ने फिर से सिर उठा लिया है, तब फिर पात्र होते हुए भी टीका लगवाने में देरी करने का कोई औचित्य नहीं. वहीँ जो लोग किसी न किसी कारण टीका लगवाने से बच रहे हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि हाल-फिलहाल कोविड महामारी से छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा और वह अभी भी घातक बनी हुई है, ऐसे में टीका लगवा लेना ही बेहतर है क्योंकि इससे कुछ बचाव तो होगा. इस सम्बन्ध में सरकार को जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिए, मगर वह तो राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त है. जहां बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही हैं. भारी भीड़ इकट्ठा करके कोरोना को न्योता दिया जा रहा है.

पूनावाला ने माँगा सरकार से पैसा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2021-22 में 35 हजार करोड़ रुपए कोरोना वैक्सीनेशन के लिए रखे थे. उन्होंने कहा था कि यह नई आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना का एक हिस्सा होगा और  जरूरत पड़ी तो और भी पैसा खर्च किया जाएगा. इससे साफ है कि भारत सरकार कोरोना वैक्सीनेशन पर पैसा तो खर्च करने को तैयार है, मगर वैक्सीन कंपनियां जो अभी नो प्रॉफिट नो लॉस पर वैक्सीन दे रही हैं, वो अब इस ‘आपदा में अवसर’ ढूंढ कर कुछ कमाना भी चाहती हैं. जैसा कि सीरम इंस्टिट्यूट के मालिक अदार पूनावाला ने साफ़ भी कर दिया है.

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दुनिया की सबसे बड़ी वैक्‍सीन निर्माता कंपनी कहलाने वाली सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया इस समय अपने देश में आपूर्ति को पूरा करने की जरूरत एवं अपने अंतरराष्‍ट्रीय समझौते के बीच फंसी हुई है. सीरम के सीईओ अदान पूनावाला कहते हैं कि एस्‍ट्राजेनेका ने वैक्‍सीन की आपूर्ति में देरी होने के चलते कंपनी को कानूनी नोटिस भेजा है. इसलिए कोवीशील्‍ड का उत्‍पादन दोगुना करने के लिए हम भारत सरकार से ग्रांट के रूप में मदद चाहते हैं. अदार पूनावाला ने कोविड-19 वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए करीब 3,000 करोड़ रुपये की मांग सरकार से की है.

पूनावाला का कहना है कि हमने पहले ही हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं. हमें अपनी क्षमता निर्माण के लिए अन्य नए तरीके तलाशने होंगे. हमें मोटे तौर पर 3,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, जो एक छोटा आंकड़ा नहीं है. कंपनी प्रति दिन 20 लाख खुराक का उत्पादन कर रही है. हमने अकेले भारत में 10 करोड़ से अधिक खुराक दी हैं और अन्य देशों को लगभग छह करोड़ खुराक का निर्यात किया जा चुका है. हम वैक्सीन पर कोई बड़ा मुनाफ़ा नहीं कमा रहे हैं. दुनिया में कोई भी दूसरी वैक्सीन कंपनी इतनी घटी कीमतों पर टीके उपलब्ध नहीं करा रही है. सीरम इंस्टीट्यूट अन्य के मुकाबले भारत की अस्थाई जरूरतों को प्राथमिकता दे रहा है. कंपनी वर्तमान में छह से सात करोड़ टीके प्रति माह उत्पादन कर रही है. उम्मीद है कि कोविशील्ड वैक्सीन की उत्पादन क्षमता हम जून से प्रति माह 11 करोड़ तक बढ़ा देंगे मगर इसके लिए हमें सरकार से मदद चाहिए.

अब सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार अदार पूनावाला की तीन हज़ार करोड़ रूपए की मांग पूरी कर पाएगी. फिर देश की अन्य कंपनियां जो वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं क्या वे भी सरकार से ऐसी ही मदद नहीं चाहेंगी?

कोरोना की तेज़ रफ़्तार और वैक्सीन पर राजनीति

कोरोना की बढ़ती रफ्तार के बीच वैक्सीन को लेकर राजनीति भी जारी है. दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड जैसे राज्यों ने वैक्सीन की कमी का हल्ला मचा रखा है. वहीँ कई शहरों में वैक्सीनेशन सेंटर ठप हो गए हैं. संक्रमण के दूसरी लहर के चपेट में महाराष्ट्र बिलबिला रहा है मगर यहाँ के वैक्सीनेशन सेंटरों को बंद किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यहां कोविड-19 वैक्सीन की पर्याप्त खुराकें मौजूद नहीं है. यहाँ हर रोज आने वाले नए मामलों का आंकड़ा 50 हजार से अधिक है. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है, ‘महाराष्ट्र की आधी जनसंख्या के बराबर गुजरात है. गुजरात को अब तक 1 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी गई है, जबकि हमें केवल 1.04 लाख वैक्सीन की खुराक दी गई. राज्य में केवल तीन दिन के लिए 14 लाख वैक्सीन बचे हैं. वैक्सीन की कमी के कारण कई वैक्सीनेशन सेंटर बंद करने पड़ रहे हैं. केंद्र सरकार से आग्रह है कि जल्द से जल्द वैक्सीन के 40 लाख डोज उपलब्ध कराएं.’

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से बचाव के लिए संघर्ष कर रहे देश के कई राज्यों में कोविड-19 वैक्सीन की कमी रिपोर्ट की जा रही है. यहां तक कि कई राज्यों में आधे से अधिक वैक्सीनेशन सेंटरों को बंद कर दिया गया है. देेश के संक्रमित राज्यों में महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में वैक्सीन के स्टॉक में आई कमी को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री लगातार केंद्र सरकार के संपर्क में हैं.

हालांकि देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन व सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने महाराष्ट्र सरकार की वैक्सीन की कमी के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य अपनी कमियों को छिपाने के लिए दहशत का माहौल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. वैक्सीन की कमी और 18 साल से अधिक उम्र के सभी युवाओं को टीका लगाने की मांग संबंधी बयान इसी सिलसिले दिए जा रहे हैं.

दिल्ली के स्वास्थ मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी कह दिया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अब जो वैक्सीन का स्टॉक है, वह केवल अगले 4-5 दिनों तक का ही है. उन्होंने और वैक्सीन की मांग केंद्र से की है. झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने राज्य में कोविड-19 वैक्सीन की कमी की बात कही है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘अगले एक-दो दिनों के लिए हमारे पास वैक्सीन का स्टॉक है. हमने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से वैक्सीन की मांग की है और उम्मीद है कि वे इसे पूरा करेंगे.’

तेलंगाना में भी कोविड-19 वैक्सीन का काफी कम स्टॉक बचा है. राज्य स्वास्थ्य मंत्री ई. राजेंद्र के अनुसार केंद्र से कोरोना वैक्सीन की अतिरिक्त डोज की मांग की गई है. वहीं आंध्र प्रदेश ने केंद्र सरकार से वैक्सीन के एक करोड़ डोज की मांग की है.

ओडिशा सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर वैक्सीन के लिए अपनी मांग रखी है. राज्य सरकार के अनुसार, उनके पास केवल तीन दिन का स्टॉक है. ओडिशा ने केंद्र से कहा है कि राज्य को 15 से 20 लाख कोविशील्ड की डोज उपलब्ध कराई जाए. ओडिशा का कहना है कि राज्य में आधे वैक्सीनेशन सेंटर बंद हो चुके हैं.

विपक्षी पार्टियां और खासकर कांग्रेस वैक्सीन को लेकर सरकार को घेरे हुए हैं. उनका आरोप है कि वैक्सीनेशन ड्राइव को लेकर सही ढंग से तैयारी नहीं की गयी है. वैक्सीनेशन सेंटर्स ठीक तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. नागरिक जागरूक नहीं है, वहीँ जगह जगह से टीके की कमी या इनके खराब होने की ख़बरों ने स्थिति को और घातक बना दिया है.

सरकार ने रोका वैक्सीन का निर्यात

देश में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के चलते विपक्ष के हमले और किरकिरी से बचने के लिए भारत सरकार से फिलहाल दूसरे देशों को सप्लाई होने वाली कोरोना वैक्सीन पर ब्रेक लगा दिया है. विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक भारत की तरफ से ग्रांट के तौर पर अंतिम सप्लाई 2 अप्रैल को 2 लाख कोरोना वैक्सीन की सप्लाई बांग्लादेश को की गई है, जबकि कमर्शियल तौर पर अंतिम सप्लाई 29 मार्च को 25 हज़ार वैक्सीन की फिलिस्तीन को की गई है. जबकी 29 मार्च को ही यमन को कोवैक्स यानी गावी अलायंस के तहत 3.60 लाख कोरोना वैक्सीन भेजी गई हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत से करीब 100 मिलियन कोरोना वैक्सीन की मांग अन्य देशों ने की है. ऐसे देशों की संख्या 50 से भी अधिक है जो भारत से कोरोना वैक्सीन चाहते हैं. ब्राजील से 20 मिलियन की मांग है जबकि अर्जेंटीना भी 20 मिलियन वैक्सीन डोज भारत से चाहता है. भारत से अब तक कुल करीब 65 मिलियन वैक्सीन दूसरे देशों को सप्लाई की गई है. इसमें करीब 11 मिलियन ग्रांट के तौर पर, 38 मिलियन कॉमर्शियल तौर पर और लगभग 18 मिलियन कोवैक्स के तहत भारत ने आपूर्ति की है. भारत अब तक 84 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति कर चुका है.

वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद ही अब दूसरे देशों को कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति कर पाएगा. हाल के दिनों में भारत में कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ी है वैसी स्थिति में दूसरे देशों को कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति कराना भारत के लिए फिलहाल मुश्किल है. हालांकि इस फैसले की समीक्षा अगले कुछ दिनों में होगी.

फिल्म ‘‘वेल डन बेबी‘‘ को मिले इतने स्टार

मराठी फिल्म समीक्षाः

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः पुष्करजोग,आनंदपंडित व मोहननाडर
निर्देषकः प्रियंकातंवर
कलाकारः पुष्करजोग,अमृता खानविलकर,सुआनली योंग,अर्चना मालुता पुरिया,वंदना गुप्ते,सोनाली खरे,संजय यादव व अन्य.
अवधिः एक घंटा 39 मिनट
ओटीटीप्लेटफार्म: अमैजान प्राइम वीडियो
भाषा : मराठी,लेकिन अंग्रेजी सबटाइटल के साथ
फिल्म‘‘वेल डन बेबी‘‘ आधुनिक युग में विदेश में रह रहे एक युवा आधुनिक भारतीय दंपति की यात्रा है,जो अपनी शादी के रिश्ते को सफल बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालात तलाक तक पहुॅच चुकी है.पति पत्नी एक साथ कौं सलिंग भी ले रहे हैं.मगर नियति वश पत्नी के गर्भवती होते ही सब कुछ बदल जाता है. फिर अपने आप में अनुभवों, संघर्षों और चुनौतियों की एक नई यात्रा शुरू होती है. फिर दोनो सही मायनो में रिश्ते की अहमियत को समझने के साथ पैरेटिंग की भी ट्रेनिंग लेकर सफल जीवन जीने की दिशा में अग्रसर होते हैं.दोनों की समझ में आता है कि वैवाहिक रिश्ते की मधुरता तभी तक कायम रहती है,जब तक पति पत्नी एक दूसरे की अच्छाई को देखते हुए एक दूसरे को समझने का प्रयास करते हैं.इतना ही नही फिल्म इस बात पर भी सवाल उठाती है कि बिना योजना के गर्भधारण करना क्या समस्याएं पैदा करता है?

कहानीः
फिल्म‘‘वेल डन बेबी’’की कहानी लंदन में रह रहे मराठी भाषी युवा दंपति आदित्य (पुष्कर जोग )और मीरा(अमृता खानविलकर)के  इर्दगिर्द  घूमती है.आदित्य मनोवैज्ञानिक डाक्टर है,जब कि मीरा विज्ञान में पीएचडी कर रही हैं.इनके साथ मीरा की माॅं निर्मला(वंदना गुप्ते )भी रहती हैं,जो कि आदित्य व मीरा के साथ गोंद की तरह चिपके रहते हुए इन की जिंदगी में दखल देती रहती हैं.इस वजह से भी आदित्य व मीरा के रिश्तों में कड़ुवाहट आती है.दोनो अपने रिष्ते को बचाने के लिए कौंसलर(संजय यादव) के पास जाते हैं,वहां भी निर्मला साथ मे रहती है.जबकि आदित्य व मीरा के बीच प्यार खत्म नही हुआ है.

इसी बीच एक दिन पता चलता है कि मीरा गर्भवती है.तब मीरा,आदित्य से कहती है कि उसके अंदर असुरक्षा की भावना बचपन से ही है.जब उस की उम्र महज चार साल की थी,तभी उसके पिता का देहांत हो गया था.उसकी मां ने उसे सिंगल मदर की तरह पाला है.पर वह अपने बच्चे को सिंगल मदर की तरह नहीं पाल सकती.आदित्य व मीरा इस बात पर सहमत हो जाते हैं कि मीरा गर्भपात करवाएगी.मीरा अस्पताल जाकर चेकअप भी करवा लेती है.मगर एक दिन जब मीरा व आदित्य साथ में होते ही उस वक्त एक दृष्य देखकर आदित्य पिता बनने का निर्णय लेते हुए मीरा से कह देता है कि उन्हे तलाक नही लेना है.मीरा भी सहमत हो जाती है.इस निर्णय से आदित्य के पिता(राहुल अवस्थी) और आदित्य की माॅं(राधिकाइंगले )के साथ निर्मला भी खुश होते हैं.उसके बाद कौंसलिंग के साथ ही पैरेंटिंग की ट्रेनिंग भी शुरू हो जाती है.इसी बीच ‘डिजाइनर बेबी‘की भी चर्चा होती है.अंततः मीरा एक बेटी को जन्म देती है.और इस बच्ची की वजह से टूटने के कगार पर पहुॅच चुकी शादी टूटने से न सिर्फ बचती है बल्कि दोनों को बहुत कुछ समझ में आता है.एक बात यह भी उभर कर आती है कि एक बच्चा,माता-पिता को जन्म देता है.

लेखन व निर्देषनः
कहानी,पटकथा व निर्देषन इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ियां हैं.सिनेमा का काम पहले लोगों का मनोरंजन करना है.मगर लेखक व निर्देषक ने इस फिल्म में हर दंपतिको यह शिक्षा देने का प्रयास किया है कि पत्नी के गर्भधारण करने पर पति व पत्नी को क्या करना चाहिए.एक औरत का बड़ी सहजता से गर्भपात करने का निर्णय लेने को भी सही नही ठहराया जा सकता.शायद फिल्मकार को बाद में अहसास हुआ होगा कि यह तो नारी शक्ति का अपमान है,तो कहानी में अजीबो गरीब बदलाव लाकर गर्भपात का निर्णय बदला गया.दूसरी बात मीरा की माॅं निर्मला यदि अपनी बेटी व दामाद के सुखमय जीवन के लिए योगदान देने का प्रयास कर रही है,तो इसमें वह गलत कैसे हो गयी? शायद लेखक व निर्देषक दोनो ही भटके हुए है.अथवा वह किसी एजेंडे के तहत इसे बना रहे थे,पर फिर भारतीय दर्शकों की पसंद नापसंद की बात ध्यान में आते ही पूरी तरह से भटक गए.किसी भी इंसान की जिंदगी में उसकी बचपन से युवा वस्था तक कदम कदम पर उसकी बेहतरी के लिए सलाह देने वाले माता पिता उसके युवा होते ही सलाह देने लायक नही रह जाते,यह सोच ही गलत है.फिल्म में काफी कुछ ऐसा है,जो कि मूल कथानक के साथ मे ल  नहीं  खाता.फिल्म की कमजोर कड़ियों में एडीटिंग,लाइटिंग व कैमरावर्क का भी समावेष है.

अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो आदित्य के किरदार में पुष्कर जोग ने शानदार अभिनय किया है.मीरा के किरदार में अमृृता खान विलकर ने अपने आपको एक उत्कृष्ट अदाकारा के रूप में पेश किया है.मीरा की कुंठाओं,उसकी दुविधाओं,उसके अंदर की असुरक्षा की भावनाकेसाथ जीवन में सब कुछ सामान्य हासिल करने की इच्छाओं को अपने उत्कृष्ट अभिनय से अमृता खान विल करने पर दे पर उकेरा है.अपनी बेटी मीरा के हित के बारे में ही सोचने वाली माॅं और एक ब्लाॅगर निर्मला के किरदार को वंदना गुप्ते ने अच्छे ढंग से साकार किया है.

बिग बॉस फेम अरमान कोहली के भाई का निधन, पढ़ें खबर

बॉलीवुड के गलियारे से एक और दुखद खबर आई है. जिसे जानकर आप एकबार फिर उदास हो जाएंगे. बॉलीवुड के जाने माने निर्देशक राजकुमार कोहली के बेटे राजनीश कोहली का निधन हो गया है, राजनीश कोहली के भाई अरमान कोहली है.

बता दें कि अरमान कोहली बिग बॉस के साथ-साथ कई फिल्मों में नजर आ चुके हैं. इसके साथ ही वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ विवाद को लेकर खासा चर्चा में बने हुए थे. राजनीश कोहली काफी ज्यादा चर्चा में नहीं रहते थें. लेकिन उनके जाने का गम उनक भाई अरमान कोहली को बेहद ज्यादा वह उन्होंने सोशल मीडिया पर इस बात की जानकारी दी है कि उनके भाई अब इस दुनिया में नही रहें.

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राजनीश कोहली काफी लंबे समय से बीमार रह रहे थे, वह कुछ वक्त से व्हील चेयर पर भी थे. लगातार उनका इलाज चल रहा था लेकिन इसके बावजूद भी वह ठीक नहीं हो सके और इस दुनिया को अलविदा कह दिया. राजनीश कोहली के जाने का गम अरमान कोहली के साथ- साथ उनके करीबी रिश्तेदारों को भी है. जिन्होंने उनके साथ वक्त बिताया था.

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बता दें कि फिल्म प्रेम रत्न धन पायो में अरमान कोहली के किरदार को फैंस ने खूब पसंद किया था. सभी ने राजनीश कोहली को श्रद्धाजली दी है. उनका पूरा परिवार अभी भी शोक में डूबा हुआ है.

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हमेश लाइमलाइट से दूर रहने वाले रजनीश कोहली आज इस दुनिया को अलविदा कह कर हमेशा के लिए जा चुके हैं. यह सदमा उनके परिवार वालों के लिए काफी ज्यादा गहरा है. इसलिए उन्हें इससे उभरने में थोड़ा वक्त लगेगा.

इंस्टा पर हुए 4 मिलियन फॉलोअर्स तो Shivangi Joshi ने आधी रात को दिया फैंस को सरप्राइज

टीवी एक्ट्रेस शिवांगी जोशी की फैन फॉलोविंग दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है. ये रिश्ता क्या कहलाता है कि एक्ट्रेस आए दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. शायद यही वजह है कि शिवांगी जोशी की लोकप्रियता दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है.

हील ही में इस्टाग्राम पर शिवांगी जोशी के 4 मिलियन फॉलोअर्स पूरे हुए हैं. इस खुशी में एक्ट्रेस ने देर रात अपने फैंस के बीच केक काटकर सेलिब्रेट किया है.शिवांगी ने आधी रात को लाइव आकर अपने फैंस को चौका दिया. बल्कि अपने फैंस के साथ मिलकर केक भी काटा.

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इससे पहले भी शिंवागी कई बार अपने फैंस के बीच में लाइव आ चुकी हैं. जहां वह अपने बारे में और अपने कुछ स्पेशल चीजों के बारे में चर्चा करती नजर आती हैं, शिवांगी का अंदाज बाकी सभी एक्ट्रेसों से बिल्कुल भी अलग है. उनकी चुलबुली आदत की वजह से फैंस उन्हें ज्यादा प्यार देते हैं.

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शिंवागी जोशी फिलहाल सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में कैमियो कि रोल अदा कर रही हैं. वह सीरत की किरदार में नजर आ रही हैं. इसमें शिवांगी जोशी के लुक को लोग खूब ज्यादा पसंद करते हैं. उन्हें प्यार भी खूब करते हैं.

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शिंवागी के फिलहाल अपने सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में फोक्स कर रही हैं. अभी बाकी किसी और नए प्रोजेक्ट्स पर काम नहीं कर रही हैं. जिससे शिवांगी को लोग खूब ज्यादा पसंद भी करते हैं.

 

दुग्ध ज्वर: दुधारु पशुओं की एक जटिल समस्या

लेखक-डा. सुमित महाजन

दुग्ध ज्वर दुधारु पशुओं की एक जटिल समस्या दुग्ध ज्वर गोपशुओं में होने वाला एक उपापचयी रोग है, जो मादा पशुओं में प्रसव के 3 दिन के अंदर कभी भी हो सकता है. इस रोग में खून में कैल्शियम की मात्रा कम हो जाती है. शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है और मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिस के चलते पशु लेट जाता है और बाद में उस की मौत हो जाती?है. यह बीमारी ज्यादा दूध देने वाली गायों में होती है. विशेष रूप से उन में, जो अपने दुग्ध उत्पादन की उच्चतम सीमा पर पहुंच चुकी होती हैं. सामान्यतया तीसरे, चौथे और 5वें ब्यांत में इस बीमारी के होने की संभावना ज्यादा रहती है. इस बीमारी पर मौसम का भी असर देखा गया है और यह जाड़े के दिनों में ज्यादा होती है.

वजह शरीर द्रव्य में कैल्शियम आयन का कम होना इस बीमारी का मुख्य कारण है. वहीं शरीर में कैल्शियम की मात्रा कम होने के कई कारण हैं जैसे :

* प्रसव के बाद जो पहला गाढ़ा पीला दूध होता है, उस में कैल्शियम की मात्रा बहुत ज्यादा (खून में कैल्शियम की मात्रा की तुलना में 12-13 गुना) होती है. दूध निकालने के बाद पशु के शरीर में कैल्शियम की मात्रा एकदम से कम हो जाती?है.

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* बच्चा देने के समय आंत से कैल्शियम का अवशोषण भी कम हो जाता है, जिस से शरीर द्रव्य में कैल्शियम की मात्रा कम हो जाती है.

* कभीकभी इस बीमारी में कैल्शियम के साथसाथ मैग्नीशियम की भी कमी हो जाती है, जिस से पशु लकवाग्रस्त सा हो जाता है और लेट जाता है.

* कभीकभी कैल्शियम और मैग्नीशियम के साथ खून में फास्फोरस की मात्रा भी कम हो जाती?है, जिस से रोग अधिक जटिल हो जाता है. लक्षण इस बीमारी में उत्पन्न लक्षणों को 3 अवस्थाओं में बांटा जा सकता है. पहली अवस्था इस अवस्था में बीमारी के शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं, जिस में पशु को बहुत उत्तेजना होती है. पिछले पैरों की मांसपेशियों में झटके आते हैं.

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पशु खाने के प्रति अनिच्छा जाहिर करता है और चलनाफिरना नहीं चाहता है. जीभ बाहर निकल आती है और वह दांतों को आपस में रगड़ता है. पिछले पैर सख्त हो जाते हैं और पशु जमीन पर गिर जाता है. दूसरी अवस्था बीमारी की इस अवस्था में पशु सीधा बैठ जाता है, आराम करता है और सुस्त हो जाता है. वह अपना सिर बगल में पीछे की तरफ मोड़ लेता है.

अति उत्तेजना खत्म हो जाती है. पशु खड़े होने में अक्षम हो जाता है व उस का शरीर ठंडा पड़ने लगता है. शरीर का तापमान सामान्य से कम हो जाता है, नथुना सूख जाता है, आंख की शलेष्मिका भी सूख जाती है और पुतली चौड़ी हो जाती है. पशु अपनी आंख नहीं झपका पाता है. तीसरी अवस्था? यह पशु के लेटने की अवस्था है. इस अवस्था में पशु बैठने में भी अक्षमता प्रदर्शित करता है और वह लेट जाता है. शरीर का तापमान और कम हो जाता है. नाड़ी का प्रवाह पता नहीं चलता.

लेटने की वजह से पशु के पेट में गैस भर जाती है और अफारा हो सकता है. पेशाब कम या बंद हो सकता है. इस हालत में पशु को अगर तुरंत इलाज उपलब्ध नहीं कराया गया, तो उस की मौत भी हो सकती है. उपचार बीमार पशु को जितना जल्दी हो सके, उतना जल्दी इलाज उपलब्ध कराना चाहिए. रोग की पहली अवस्था में ही, पशु के लेटने के पहले उपचार कराना जरूरी है. इलाज में देरी होने पर उस की मौत भी हो सकती है. इस बीमारी के इलाज के लिए पशु के नस में कैल्शियमयुक्त लवण दिया जाता है. नस में इंजैक्शन देने से उस का असर तुरंत होता है और पशु जल्दी ही ठीक हो जाता है.

कैल्शियम लगने के तुरंत बाद पशु ठीक होने के लक्षण दिखाने लगता है, जैसे सिर उठा कर बैठना, गोबर करना, पशु की आंखें खुल जाती हैं और कई बार पशु तुरंत खड़ा भी हो जाता है. कभीकभी इस रोग में कैल्शियम के साथसाथ मैग्नीशियम और फास्फोरस की भी कमी पाई जाती है. अगर कैल्शियम देने से जानवर खड़ा न हो तो उस को कैल्शियम के साथसाथ मैग्नीशियम और फास्फोरस का इंजैक्शन भी देना चाहिए. इन सब दवाओं के अलावा जब जानवर खड़ा हो जाए तो उसे हिमालयन बत्तीसा 20 ग्राम दिन में 2 बार 3 दिन तक खिलाना चाहिए.

पशुपालक यह ध्यान रखें कि कैल्शियम चढ़ाते समय पशु की धड़कन बढ़ सकती?है और उस की मौत हो सकती है, इसलिए कैल्शियम को धीरेधीरे चढ़ाना चाहिए. यह बीमारी ज्यादातर सर्दियों में होती है. उस समय यह ध्यान रखें कि कैल्शियम को शरीर के तापमान के बराबर गरम कर के ही नस में दें, क्योंकि ठंडा कैल्शियम नस में देने से जानवर की मौत हो सकती है. बचाव व रोकथाम दुग्ध ज्वर से बचाव किसानों के लिए आर्थिक रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है.

पशु को दुग्ध ज्वर से बचाने के लिए उन का उचित भोजनचारा प्रबंधन जरूरी है.

* पशु जब दूध नहीं दे रहा हो, तो उस समय उस को ज्यादा कैल्शियमयुक्त चारा जैसे अल्फाअल्फा घास नहीं देनी चाहिए.

* मादा पशु को बच्चा देने से 2 हफ्ते पहले बहुत ज्यादा कैल्शियम नहीं देना चाहिए.

* जिन पशुओं में दुग्ध ज्वर होने की संभावना ज्यादा हो, उन्हें ब्यांने के तुरंत बाद कैल्शियम जैल देना चाहिए.

* पशुपालक ध्यान दें कि बच्चा देने के बाद पशु का सारा खीस (पहला दूध) एकसाथ निकालने के बजाय दिन में 2 से 3 बार में निकालना चाहिए.

दुल्हन बनने से पहले : भाग 1

ढोलक की थाप पर बन्नाबन्नी गाती सहेलियों और पड़ोस की भाभियों का स्वर छोटे से घर को खूब गुलजार कर रहा था. रत्ना हलदी से रंगी पीली साड़ी में लिपटी बैठी अपनी सहेलियों के मधुर संगीत का आनंद ले रही थी. बन्नाबन्नी के संगीत का यह सिलसिला 2 घंटे से लगातार चल रहा था.

बीचबीच में सहेलियों और भाभियों के बीच रसिक कटाक्ष, हासपरिहास और चुहलबाजी के साथ स्वांग भी चलने लगता तो अम्मा आ कर टोक जातीं, ‘‘अरी लड़कियो, तुम लोग बन्नाबन्नी गातेगाते यह ‘सोहर’ के सासबहू के झगड़े क्यों अलापने लगीं?’’

थोड़ीबहुत सफाई दे कर वे फिर बन्नाबन्नी गाने लगतीं. अम्मा रत्ना को उन के बीच से उठा कर ‘कोहबर’ में ले गईं. बाहर बरामदे में उठते संगीत का स्वर कोहबर में बैठी रत्ना को अंदर तक गुदगुदा गया :

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‘‘मेरी रुनकझुनक लाड़ो खेले गुडि़या

बाबा ऐसा वर खोजो

बीए पास किया हो,

बीए पास किया हो.

विलायत जाने वाला हो,

विलायत जाने वाला…’’

उस का वर भी तो विलायत में रहने वाला है. जी चाहा कि वह भी सहेलियों के बीच जा बैठे.

उस का भावी पति अमेरिका में इंजीनियर है. यह सोचसोच कर ही जबतब रत्ना का मन खुशी से भर उठता था. कोहबर में बैठेबठे वह कुछ देर के लिए विदेशी पति से मिलने वाली सुखसुविधाओं की कल्पना में खो गई. वह बारबार सोच रही थी कि वह कैसे अपने खूबसूरत पति के साथ अमेरिका घूमेगी, सुखसमृद्धि से सुसंपन्न बंगले में रहेगी और अपनी मोटरगाड़ी में घूमेगी. वहां हर प्रकार के सुख के साधन कदमकदम पर बिछे होंगे.

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एकाएक उसे अपने मातापिता की उस प्रसन्नता की भी याद आई जो उसे सुखी देख कर उन्हें प्राप्त होगी. उस प्रसन्नता के आगे तो उसे अपने सुख के सपने बड़े सतही और ओछे नजर आने लगे.

वह सोचने लगी, ‘अम्मा और पिताजी बेटियों से उबर जाएंगे. दीदी की शादी से ही उन की आधी कमर टूट गई थी. घर के खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी थी. कई तरह के कर्जे भरतेभरते दोनों तनमन से रिक्त हो गए थे. रत्ना के नाम से जमा रकम भी बहुत कम थी. उस में वे हाथ भी नहीं लगाते कि कब देखते ही देखते रत्ना भी ब्याहयोग्य हो जाएगी और वे कहीं के नहीं रहेंगे.’

लेकिन रत्ना की शादी के लिए उन्हें कोई कर्ज नहीं लेना पड़ा. आनंद के परिवार वालों ने दहेज के लिए सख्त मना कर दिया था. अमेरिका में उसे किसी बात की कमी न थी.

रत्ना ने कोहबर की दीवारों पर नजर दौड़ा कर देखा, जगहजगह से प्लास्टर उखड़ा था. छत की सफेदी पपड़ी बनबन कर कई जगह से झड़ गई थी. दीदी की शादी के बाद घर में सफेदी तो दूर, मरम्मत जैसे जरूरी काम तक नहीं हो पाए थे. भंडारघर की चौखट दीवार छोड़ने लगी थी. रसोई के फर्श में जगहजगह गड्ढे बन गए थे. छत की मुंडेर कई जगह से टूट कर गिरने लगी थी.

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कोहबर में बैठी रत्ना सोचने लगी, ‘अम्मापिताजी के दुख के दिन समाप्त होने वाले हैं. अब तो पिताजी के सिर्फ 40-50 हजार रुपए ही खर्च होंगे. बाकी जो 40-50 हजार रुपए और बचेंगे उन से वे पूरे घर की मरम्मत करा सकेंगे. अब पैसा जोड़ना ही किस के लिए है? मुन्ना की पढ़ाई का खर्च तो वे अपने वेतन से ही चला लेंगे.

‘जब सारी दीवार के उधड़े प्लास्टर की मरम्मत हो जाएगी और ऊपर से पुताई भी, तो दीवार कितनी सुंदर लगेगी. फर्श के भी सारे गड्ढे भर कर चिकने हो जाएंगे. मां को घर में पोंछा लगाने में आसानी होगी. फर्श की दरारों में फंसे गेहूं के दाने, बाल के गुच्छे, आलपीन वगैरह चाकू से कुरेदकुरेद कर नहीं निकालने पड़ेंगे…’

यही सब सोचसोच कर रत्ना पुलकित हो रही थी.

रत्ना के भावी पति का नाम आनंद था. आनंद के प्रति कृतज्ञता ने रत्ना के रोमरोम में प्यार और समर्पण भर दिया. बिना भांवर फिरे ही रत्ना आनंद की हो गई.

तभी बाहर के शोरगुल से उस के विचारों को झटका लगा और वह खयालों के आसमान से उतर कर वास्तविकता के धरातल पर आ गई.

‘‘कोई आया है.’’

‘‘बड़ी मौसी आई हैं.’’

‘‘दीदी आई हैं.’’

इन सम्मिलित शोरशराबे से रत्ना समझ गई कि पटना वाली मौसी आई हैं.

बहुत हंसोड़, खूब गप्पी और एकदम मुंहफट, घर अब शादी के घर जैसा लगेगा. कभी हलवाइयों के पास जा कर वे जल्दी करने का शोर मचाएंगी, घीतेल बरबाद नहीं करने की चेतावनी देंगी, तो कभी भंडार से सामान भिजवाने की गुहार लगाएंगी. इसी बीच ढोलक के पास बैठ कर बूआ लोगों को दोचार गाली भी गाती जाएंगी.

मां को धीरे से कभी किसी से सचेत कर जाएंगी तो कभी कुछ सलाह दे जाएंगी. दहेज का सामान देखने बैठेंगी तो छूटाबढ़ा कुछ याद भी दिला देंगी. बुलंद आवाज से खूब रौनक लगाएंगी. यह सब सोचतेसोचते रत्ना का धैर्य जाता रहा. वह जल्दीजल्दी कोहबर की लोकरीति खत्म कर बाहर आ गई.

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रत्ना ने देखा कि मौसी का सामान अंदर रखा जा चुका था. मौसी भी अंदर आ तो गई थीं पर यह क्या? कैसा सपाट चेहरा लिए खड़ी हैं? शादी के घर में आने की जैसे कोई ललक ही न हो. कहां तो बिना वजह इस उम्र में भी चहकती रहती हैं और कहां चहकने के माहौल में जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो.

मां ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है दीदी, क्या बहुत थक गई हो?’’

‘‘हूं, पहले पानी पिलाओ. फिर इन गानेबजाने वालियों को विदा करो तो बताऊं क्या बात है?’’ मौसी ने समय नष्ट किए बिना ही इतना कुछ कह दिया.

 

दुलहन बनने से पहले

दुल्हन बनने से पहले : भाग 3

‘‘लेकिन 3-4 माह बाद ही आनंद ने अपनी बीवी को पत्र लिखा कि ‘मुझे बारबार बुलवाने के लिए पत्र लिख कर तंग मत करो. मैं तुम्हें अंधेरे में रख कर परेशान नहीं करूंगा. मैं तुम्हें अमेरिका नहीं बुला सकता क्योंकि यहां मेरी पत्नी है जो 3 साल से मेरा साथ अच्छी तरह निभा रही है.

‘‘‘मेरे मांबाप को एक हिंदुस्तानी बहू की जरूरत थी, सो तुम से शादी कर मैं ने उन्हें बहू दे दी. मेरा काम खत्म हुआ. अब तुम उन की बहू बन कर उन्हें खुश रखो. वे भी तुम्हें प्यार से रखेंगे. मैं भी हिंदुस्तान आने पर जहां तक संभव होगा, तुम्हें प्यार और सम्मान दूंगा लेकिन अमेरिका आने की जिद मत करना. वह मेरे लिए संभव नहीं होगा.’

‘‘इस के बाद विष्णुजी के भैयाभाभी बेटी को हमेशा के लिए ससुराल से लिवा लाए. तलाक का नोटिस भिजवा दिया. हालांकि आनंद के मातापिता ने बहुत दबाव डाला कि बहू को छोड़ दें. वे कह रहे थे, ‘इसी की सहायता से हम लोग आनंद को हिंदुस्तान लाने में सफल होंगे. आनंद हम लोगों को बहुत प्यार करता है. देरसवेर उसे अमेरिकी बीवी को ही छोड़ना पड़ेगा.’ लेकिन विष्णुदेव के भैयाभाभी नहीं माने और समधी को इस धोखे के लिए खरीखोटी सुनाईं. तलाक भी जल्दी ही मिल गया. लेकिन जरा उन लोगों की धृष्टता तो देखो, इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी हिंदुस्तानी बहू लाने का चाव गया नहीं है. फिर लड़के को देखो, वह कैसे दोबारा फिर सेहरा बांधने को तैयार हो गया.’’

किसी दूसरे के घर की यह घटना होती तो मौसी बड़ी रसिकता से आनंद के परिवार के साथसाथ उस से जुड़ने वाले बेबस परिवार को भी अपने परिहास की परिधि में लपेटने से नहीं चूकतीं. पर यहां मामला अपनी सगी बहन का था और इस संकट में उन का अवलंबन भी वही थीं. इसलिए वे पूरी संजीदगी के साथ स्थिति को विस्फोटक होने से बचाए हुए थीं.

‘‘मौसी, लड़के की अक्ल पर क्या परदा पड़ा है जो वह मांबाप के इस बेहूदा खेल में दोबारा शामिल हो रहा है?’’ अभी तक रत्ना जिसे मन ही मन महान समझ रही थी, उस के प्रति उस का तनमन वितृष्णा और घृणा से भर उठा.

‘‘अरी बेटी, अनदेखे लड़की वालों के घर से उसे क्या सहानुभूति होगी? हिंदुस्तान आने पर मांबाप फिर हिंदुस्तानी बहू की रट लगा देते होंगे, अपने अकेलेपन की दुहाई देते होंगे. रातदिन के अनुरोध को टालना उस के बस की बात नहीं रहती होगी.’’

‘‘सुना है, अभी भी वह मांबाप का बड़ा आदर करता है और उन से डरता भी है. अमेरिका जा कर वह जरा भी नहीं बदला है. बस, अमेरिका वाली ही उस के दिल का रोग हो गई है, जो सुना है कि हिंदुस्तान नहीं आना चाहती. हिंदुस्तान में मांबाप के साथ शांति से एकदो महीने गुजर जाएं और मौजमस्ती के लिए एक पत्नी भी मिल जाए, इस से बढि़या क्या होगा. शायद इसीलिए वह दोबारा शादी करने के लिए राजी हो गया होगा.’’

सबकुछ सुन कर रत्ना के मातापिता मोहन व सुमित्रा तो वहीं तख्त पर निढाल से पड़ गए. सुमित्रा की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. रत्ना के पास भी अब उपयुक्त शब्द नहीं थे जो वह मां को चुप कराती. उस के तो हृदय में स्वयं एक मर्मांतक शूल सा उठ रहा था. सारे रिश्तेदार चुपचाप अपनेअपने कमरों में जा कर तय करने लगे कि जल्द से जल्द किस गाड़ी से वापस लौटा जाए? किसी ने भी मोहन और सुमित्रा पर आर्थिक और मानसिक बोझ बढ़ाना उचित नहीं समझा.

 

रत्ना के ताऊजी ने पुलिस कार्यवाही करने की सलाह दी. लेकिन मोहनजी ने भीगे और टूटे स्वर में कहा, ‘‘अब यह सब करने से हमें क्या फायदा होगा? उलटे मुझे ही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट होगा. उत्साह का काम होता तो शरीर भी सहर्ष साथ देता और पैसे की भी चिंता नहीं होती.’’

अपने मनोभावों को पूरी तरह व्यक्त करने की शक्ति भी मोहनजी में नहीं रह गई थी. इसलिए यही तय किया गया कि बरातियों को अपमानित कर के ही उसे दंडित किया जाए.

किया भी यही गया. बराती संख्या में बहुत कम थे. स्वागत तो दूर, उन्हें बैठने तक को नहीं कहा गया. चारों तरफ से व्यंग्यबाण बरसाए जा रहे थे. आनंद के पिता हर तरह से सफाई देने की कोशिश में थे, किंतु कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था. बरात में आए एकदो बुजुर्गों ने भी सुलह करने का परामर्श देना चाहा तो कन्या पक्ष वालों ने उन्हें भी बुरी तरह से लताड़ा.

रिश्तेदारों की निगाहों से बच कर रत्ना चुपचाप अकेली कोहबर में आ गई. बाहर उठता शोर रत्ना के कानों में सांपबिच्छू के दंश सा कष्ट दे रहा था. हालात ने उसे आशक्त, असमर्थ और जड़ बना दिया था. कांपते हाथों से धीरेधीरे वह विवाह के लिए पहनी जाने वाली पीली साड़ी उतारने लगी. दो चुन्नट खोलतेखोलते जैसे शक्ति क्षीण होने लगी. पास पड़ी पीढ़ी पर निढाल सी बैठ गई. रत्ना की सूनी निगाहें दीवार ताकने लगीं, ‘अब इन दीवारों पर प्लास्टर नहीं होगा, पुताई…’ आगे सोचने की भी सामर्थ्य जवाब दे गई और वह जोरजोर से हिचकियां भरने लगी.

दुल्हन बनने से पहले : भाग 2

मां ने जैसे अनिष्ट को भांप लिया हो, फिर भी साहस कर आशंकित हो कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, दीदी? गानाबजाना क्यों बंद करा दूं? यह तो गलत होगा. जल्दी कहो, दीदी, क्या बात है?’’

‘‘बैठो सुमित्रा, बताती हूं. अब समय बहुत कम है, इसलिए तुरंत निर्णय ले लो. हिम्मत से काम लो और अपनी रत्ना को बचा लो,’’ मौसी ने बैठेबैठे ही मां की दोनों हथेलियां अपनी मुट्ठी में दबा लीं.

‘‘जल्दी बताओ दीदी, कहना क्या चाहती हो?’’ घबराहट में जैसे मां के शब्द ही सूख गए. चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे दिल का दौरा पड़ गया हो. मौसी भी घबरा गईं लेकिन समय की कमी देखते हुए उन्हें बात जल्दी से जल्दी कहनी थी वरना कोई और बुरा हादसा हो जाता. अभी तो ये अपनी बात कह कर सुमित्रा को संभाल भी लेंगी और जो सदमा देने जा रही थीं, उसे साथ रह कर बांट भी लेंगी.

‘‘सुनो सुमित्रा, जिस आनंद को तुम रत्ना का पल्लू से बांध रही हो वह पहले से ही शादीशुदा है.’’

सुमित्रा की भौंहें तन गईं, ‘‘क्या कह रही हो, दीदी? जिस ने यह शादी तय कराई है वह क्या इस बात को छिपा कर रखेगा?’’

‘‘हां सुमित्रा, शांत हो जाओ और धीरज धरो, या तो उस ने बात छिपाई होगी या लड़के वालों ने उस से बात छिपाई होगी. मैं तो कल ही आ जाती, लेकिन इस बात की सचाई का पता लगाने के लिए कल आरा चली गई थी. वहां मुझे दिनभर रुकना पड़ा, नहीं तो कल पहुंच जाती तो बात संभालने के लिए तुम लोगों को भी समय मिल जाता. खैर, अभी भी बिगड़ा कुछ नहीं है. किसी तरह समय रहते सबकुछ तय कर ही लेना है.’’

रत्ना के पैर थरथराने लगे. लगा कि वह गिर पड़ेगी. मौसी ने इशारे से रत्ना को पास बुलाया और हाथ पकड़ कर बगल में बिठा लिया.

‘‘दुखी मत हो बेटी, संयोग अच्छा है. समय रहते सचाई का पता चल गया और तुम्हारी जिंदगी बरबाद होने से बच गई.’’

मौसी के दिलासा दिलाने के बावजूद रत्ना को आंसू रोकना मुिश्कल हो रहा था.

रत्ना के पिता ने अधीर हो कर पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आनंद शादीशुदा है?’’

समय की कमी देखते हुए मौसी ने जल्दीजल्दी बताया, ‘‘पटना में रत्ना के मौसा के दफ्तर में विष्णुदेवजी काम करते हैं. मैं यहां आने से ठीक एक दिन पहले उन के घर गई थी. उन्हें मैं ने बताया कि मैं अपनी बहन की लड़की की शादी में गया जा रही हूं. फिर उन्हें मैं ने बातोंबातों में आनंद के परिवार के बारे में भी बताया. बीच में ही उन की पत्नी उठ कर अंदर चली गईं. आईं तो एक एलबम लेती आईं. उस में एक जोड़े का फोटो लगा था, दिखा कर बोलीं, ‘यही आनंद तो नहीं है?’ फोटो देख कर मैं तो जैसे आकाश से गिर पड़ी. वह उसी आनंद का फोटो था. तुम ने मुझे देखने के लिए जो भेजी थी, वैसी आनंद की एक और फोटो उस एलबम में लगी थी. फिर जब सारे परिवार की बात चली तो शक की बिलकुल गुंजाइश ही नहीं रह गई, क्योंकि तुम ने तो सब विस्तार से लिख ही भेजा था.’’

 

रत्ना की मां आगे सुनने का धैर्य नहीं जुटा पाईं. वे अपनी बहन की हथेली पकड़ेपकड़े ही रोने लगीं, ‘‘हाय, अब क्या होगा? बरात लौटाने से तो पूरी बिरादरी में ही नाक कट जाएगी.’’

अब तक रत्ना भी जी कड़ा कर संयत हो गई थी. दुख और क्षोभ की जगह क्रोध और आवेश ने ले ली थी, ‘‘नाक क्यों कटेगी मां? नाक कटाने वाला काम हम लोगों ने किया है या उन्होंने?’’ रत्ना के पिता ने सांस भर कर कहा, ‘‘ये सारे इंतजाम व्यर्थ हो गए. अब तक का सारा खर्च पानी में…’’ बीच में ही उन का भी गला भरभराने लगा तो वे भी चुप हो गए.

इस समय पूरे घर का संबल जैसे रत्ना की बड़ी मौसी ही हो गईं, ‘‘क्यों दिल छोटा कर रहे हो तुम लोग? समय रहते बच्ची की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. क्या इस से बढ़ कर खर्च का अफसोस है? यह सोचो कि अगर शादी हो जाती तो रत्ना कहीं की न रहती. तुम लोग धीरज से काम लो, मैं सब संभाल लूंगी. अभी कुछ बिगड़ा भी नहीं है, और समय भी है. मैं जा कर सब से पहले शामियाने वाले और सजावट वालों को विदा करती हूं. फिर इन लड़कियों और पड़ोसिनों को संभाल लूंगी. जो सामान बना नहीं है वह सब वापस हो जाएगा और जो पक गया है उसे हलवाइयों से कह कर होटलों में खपाने का इंतजाम करवाती हूं.’’

 

फिर तो मौसी ने सबकुछ बड़ी तत्परता से संभाल लिया. मांपिताजी और रत्ना तीनों को तो जैसे काठ मार गया हो. हमेशा चहकने वाला मुन्ना भी वहीं चुपचाप मां के पास बैठ गया. बाकी सगेसंबंधी समय की नाजुकता समझते हुए चुपचाप इधरउधर कमरों में खिसक लिए. सब तरफ धीमेधीमे खुसुरफुसुर में बात जानने की उत्सुकता थी पर स्थिति की नाजुकता को देखते हुए मुंह खोल कर कोई कुछ पूछ नहीं रहा था. सभी शांति से मौसी के आने के इंतजार में थे.

एकडेढ़ घंटे में सब मामला सुलझा कर, एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को हर अलगअलग विभाग को निबटाने की जिम्मेदारी दे कर, मौसी अंदर आईं. अब इस थकान में उन्हें एक कप चाय की जरूरत महसूस हुई. महाराजिन से सब के लिए चाय भिजवाने का आदेश जारी करते हुए मां से बोलीं, ‘‘सुमित्रा, तुम जरा भी निराश मत हो. मैं रत्ना के लिए बढि़या से बढि़या लड़का ला कर खड़ा कर दूंगी. और वह भी जल्दी ही. जिस आनंद की तुम ने इतनी तारीफ लिख कर भेजी थी, वह दोदो शादियां रचाए बैठा है. विष्णुदेव के बड़े भैया की आरा में फोटोग्राफी की बहुत बड़ी दुकान है. उन्हीं की लड़की से शादी हुई थी उस धोखेबाज आनंद की. विष्णुजी के भैया ने खूब धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी. लड़की भी बेहद खुश थी. एक हफ्ते ससुराल रह कर आई तो आनंद की खूब तारीफ की. आनंद 15 दिन रह कर अमेरिका चला गया. बहुत दिन तक आनंद के मातापिता कहते रहे कि बहू का वीजा बना नहीं है, बन जाएगा तो चली जाएगी. वैसे बहू को वे लोग भी प्यार से ही रखते थे.

 

संपादकीय

कोविड-19 जाने का नाम नहीं ले रहा है और अब अलगअलग रूपों में सामने आ रहा है. वैक्सीन बनाने वालों का दावा है कि अब तक कोविड-19 वायरस के जितने म्यटैंट सामने आए हैं वैक्सीन सबको निपट सकती है पर वास्तव में क्या होगा यह तो कुछ समय बाद ही पता चल पाएगा. इतना जरूर है कि चाहे दुनिया भर में लोगों ने कोविड-19 के अब झेल लेने की तैयारी करनी शुरू की है और पूरे लौकडाउनों की बात बंद हो गई है.

हमारे प्रधानमंत्री तो एक तरफ मास्क और 2 गज की दूरी के उपदेश देते रहे हैं और दूसरी तरफ तमिलनाडू, केरल, पश्चिमी बंगाल व असम के चुनावों में सभाओं में गाल से गाल मिला कर बिना मास्क पहने लोगों की भी़ देख कर गदगद भी होते रहे हैं. यह मानना पड़ेगा कि कोविड-19 की माहमारी उन जगहों पर बुरी तरह नहीं फैली जहां चुनाव हो रहे हैं. उस भीड़ में लोग इतने सक्षम थे कि वे कोरोना का कहर झेल सकते थे.

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कोविड 19 की लड़ाई लंबी चलेगी. अब देशों ने एक अंतराष्ट्रीय समझौते पर बात करने की शुरूआत कर दी है जिस में एक संधि के अनुसार सभी देशों के लिए महामारियों से निपटने के एक से नियम अपनाने का बाध्य होना पड़े. कोई देश अपने आॢथक कारणों से छूट दें और कोई निकम्मी नौकरशाही के कारण कोरोना को फैलने दे अब नहीं चलेगा क्योंकि कोरोना वायरस कोई सीमा नहीं जानता.

नक्शों पर खींची रेखाएं असल में अब बेकार साबित हो रही हैं. चीन से शुरू हुआ कोविड इटली पहुंचा और फिर कोई देश नहीं बचा जहां यह पहुंचा नहीं हो. यह वह दवा है जो सीमाएं नहीं जानती. ग्लोबल काॄमग की तरह कोविड सब को बिमार कर सकती है, सब जगह बिमार कर सकती है

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भारत में हम ने अपनी सरकार के निक्मेपन के कारण कोविड का ज्यादा नुकसान सहा है. 24 मार्च 2019 को हुए अचानक लौकडाउन के समय नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों में इस कुलक्षेत्र के युद्ध में विजय पाने का वायदा किया था. अब एक साल हो गया कोविड का असर भी है और लौकडाउन का भी. करोड़ों लोग हैं, बेकारी बढ़ रही है. अर्थव्यवस्था चकनाचूर है. मोदी जी जहां जाते है वहां दंगे हो जाते हैं चाहे दिल्ली हो, ढाका हो या औद्योगिक क्षेत्र.

भारतीय जनता पार्टी का लक्ष्य चुनाव जीतना रह गया है, कोरोना से लडऩा नहीं. अप्रैल के 5 विधानसभा चुनावों में उस की आंख केवल सब पर टिकी रही, कोरोना पर नहीं. लोग बिमार पड़ रहे हैं और मर रहे हैं या उन के उद्योग व्यापार मर रहे हैं तो सरकार को वह ङ्क्षचता नहीं है जो दुनिया के दूसरी सरकारों की है. सारी सरकारों ने भारी आॢथक सहायता दी है पर भारत सरकार नियमों के कठोर बनाने और नए कानून बनाने में लगी रही जिन से विवाद पैदा हुए, दुनिया विवादों के हल करने की संधि में लगी है, भारत सरकार को दिल्ली पर कब्जा करने के कानून बनाने की.

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विश्व स्वस्थ्य संगठन ऐसी संधि पर काम कर रहा है कि इस तरह की माहमारी की जानकारी सबको देना हर देश के लिए अनिवार्य हो और वह कुछ भी छिपा न सके. अपनी वैक्सीन या उपचार का लाभ चाहे वह ले ले पर उसे दुनिया भर में उपलब्ध कराने का उत्तरदायित्व हर देश का हो. हर देश में महामारी से निपटने के नियम एक से हो. महामारी से लडऩे में देश आपसी दुश्मनी को आड़े न आने दें, ये संधि की कुछ बातें हो सकती है. ग्लोबल वाॄमग के कारण और महामारियां आ सकती हैं, इस बात का ध्यान रख जाना चाहिए. अब युद्ध देश का देश से नहीं होगा, दुनिया के देशों का अन्य ताकतों से होगा चाहे वे प्राकृतिक हो या मैन मेड.

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