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जरा सी बात : प्रथा अपनी ही बातों में क्यों उलझती गई – भाग 2

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पति का प्रस्ताव सुनते ही प्रथा के सीने में जलन होने लगी.
“भावेश तुम भी… जिस ने गलती की उसी का पक्ष ले रहे हो? एक तो तुम्हारी उस नकचढ़ी बहन ने मेरी इतनी कीमती साड़ी का सत्यानाश कर दिया ऊपर से तुम चाहते हो कि मैं नाराजगी जाहिर करने का अपना अधिकार भी खो दूं? गिर जाऊं उस के पैरों में? नहीं, मुझ से यह नहीं होगा. किसी सूरत नहीं,” प्रथा फुंफकारी.

“एक साड़ी ही तो थी न, जाने दो. मैं वैसी 5 नई ला दूंगा. तुम प्लीज उस से माफ़ी मांग लो,” भावेश ने फिर खुशामद की लेकिन प्रथा ने कोई जवाब नहीं दिया और पीठ फेर कर सो गई.

भावेश ने उसे मजबूत बांहों से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी तरफ फेरा. प्रथा को उस की यह हरकत बहुत ही नागवार लगी.
“एक थप्पड़ ही तो मारा था न… वह भी उस की गलती पर. यदि वह तुम्हारी बहन न हो कर मेरी बहन होती तब भी क्या ऐसा ही बवाल मचता? बात आईगई हो जाती. तुम बहनभाई कभी आपस में लड़े नहीं क्या? क्या तुम ने या तुम्हारे मांपापा ने आजतक कभी उस पर हाथ नहीं उठाया? फिर आज यह महाभारत क्यों छिड़ गई?” प्रथा ने उसका हाथ झटकते हुए कहा.
भावेश ने बात आगे न बढ़ाना ही उचित समझा.

उस रात शायद घर का कोई भी सदस्य नहीं सोया होगा. सब अपनेअपने मन को मथ रहे थे. विचारों की झड़ी लगी थी. रजनी अपनी मां के आंचल को भिगो रही थी तो प्रथा तकिए को.

सुबह प्रथा ने अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए सब को चाय थमाई लेकिन आज इस चाय में किसी को कोई मिठास महसूस नहीं हुई. रजनी और सास ने तो कप को छुआ तक नहीं. बस, घूरती ही रही. हरकोई बातचीत शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहा था.

“भाई, तुम किसे ज्यादा प्यार करते हो? मुझे या अपनी बीवी को?” अचानक रजनी का अटपटा प्रश्न सुन कर भावेश चौंक गया. उस ने अपनी मां की तरफ देखा. मां ने कन्नी काट ली. पिता ने अपना सर अखबार में घुसा लिया. प्रथा की निगाहें भी भावेश के चेहरे पर टिक गईं.

“यह कैसा बेतुका प्रश्न है?” भावेश ने धर्मसंकट से बचना चाहा लेकिन यह इतना आसान कहां था.
“अटपटाचटपटा मैं नहीं जानती… आप तो जवाब दो कि यदि आप को बहन और बीवी में से एक को चुनना पड़े तो आप किसे चुनेंगे?” रजनी ने उसे रणछोड़ नहीं बनने दिया.

भावेश ने देखा कि प्रथा बिना उस के जवाब की प्रतीक्षा किए ही बाथरूम में घुस गई. उस ने राहत की सांस ली. वह रजनी की बगल वाली कुरसी पर आ कर बैठ गया. भावेश ने स्नेह से बहन के गले में अपने हाथ डाल दिए. धीरे से गुनगुनाया,“फूलों का तारों का… सबका कहना है… एक हजारों में… मेरी बहना है… “ दृश्य देख कर मां मुसकराई. पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. रजनी को अपने प्रश्न का जवाब मिल गया था.

“भाई, यदि आप मुझे सचमुच प्यार करते हो तो भाभी को तलाक दे दो,” रजनी ने भाई के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे.

बहन की बात सुनते ही भावेश को सांप सूंघ गया. उस ने रजनी का मुंह अपने हाथों में ले लिया.
“यह क्या कह रही हो तुम? जरा सी बात पर इतना बड़ा फैसला? तलाक का मतलब जानती हो न? एक बार फिर से सोच कर देखो. मेरे खयाल से प्रथा की गलती इतनी बड़ी तो नहीं थी जितनी बड़ी तुम सजा तय कर रही हो,” भावेश ने रजनी को समझाने की कोशिश की.

अपनी बात के समर्थन में उस ने मांपापा की तरफ देखा लेकिन मां ने अनसुना कर दिया और पापा तो पहले से ही अखबार में घुसे हुए थे. भावेश निराश हो गया.

“जरा सी बात? क्या बहन के स्वाभिमान पर चोट भाई के लिए जरा सी बात हो सकती है? हम बहनें इसी दिन के लिए राखियां बांधती हैं क्या?” रजनी ने गुस्से से कहा.

“रजनी ठीक ही कहती है. वह 2 साल की ब्याही लड़की तुम्हें अपनी सगी बहन से ज्यादा प्यारी हो गई? आज उस ने रजनी से माफी मांगने से मना किया है कल को सासससुर की इज्जत को भी फूंक मार देगी,” भाईबहन की बहस को नतीजे पर पहुंचाने की मंशा से मां बोलीं.

“मनरेगा में बरसात से पहले ही नदीनालों पर बांध बनवाए जा रहे हैं ताकि तबाही रोने से रोकी जा सके. सरकार का यह फैसला प्रशंसनीय है,” पापा ने अखबार की खबर पढ़ कर सुनाई. भावेश समझ गया कि इन का पलड़ा भी बेटी की तरफ ही झुका हुआ है.

कहां तो भावेश सोच रहा था कि इस बार बहन के प्यार को रिश्तों के पलड़े पर रख कर मकान पर उस के हिस्से वाले आधे भाग को भी अपने नाम करवा लेगा लेकिन यहां तो खुद उस का प्यार ही पलड़े पर रखा जा रहा है. प्रथा का थप्पड़ उस के मनसूबों की लिखावट पर पानी फेर रहा है. वैभव ने प्रथा को शीशे में उतारना तय कर लिया. वह इस जरा सी बात के लिए अपना इतना बड़ा नुकसान नहीं कर सकता. और वैसे भी यदि वह नुकसान में होगा तो प्रथा भी कहां फायदे में रहेगी?

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रजनी दिन भर अपने कमरे में पड़ी रही. सब ने कोशिश कर देख ली लेकिन वह तो प्रथा को तलाक देने की बात पर अड़ ही गई. हालांकि सब को उस की यह जिद बचकानी ही लग रही थी लेकिन मन में कहीं न कहीं यह भय भी सिर उठा रहा था कि इस बार की जीत कहीं प्रथा के सिर पर सींग न उगा दे. कहीं ऐसा न हो कि वह छोटेबड़े का लिहाज ही बिसरा दे. जिस पर चाहे हाथ उठाने या सामने बोलने लगे.

 

गायत्री प्रजापति पर कस गया ईडी का शिकंजा 

कभी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे दलित नेता गायत्री प्रजापति की फर्श से अर्श तक पहुंचने और फिर अर्श से फर्श पर आ गिरने की कहानी काफी दिलचस्प है.ब्रश-पेंट का डब्बा हाथ में उठाये गली-गली काम ढूंढने वाला एक दलित युवक देखते ही देखते कैसे एक बड़े राज्य का खनन मंत्री बन गया? सुबह शाम दो निवाला रोटी को तरसने वाला उसका परिवार कैसे अरबों-करोड़ों की संपत्ति का मालिक हो गया? ये बातें अचंभित करने वाली तो हैं ही, यह बताने के लिए काफी हैं कि देश की राजनीति में भ्रष्टाचार और लूट का खेल किस चरम बिंदु को छू रहा है.

दलित तबके को देश की राजनीति में भागीदारी करने का मौक़ा आज भी कम ही मिलता है, मगर अफ़सोस, कि जब मिलता है तो वह समाज में अपनी बिरादरी के अगुआ बन कर उन्हें जिल्लत और गरीबी की जिन्दगी से उबारने की बजाय वे राजनीति पर कब्ज़ा जमाय सवर्णों की चरणवंदना और चाटुकारिता करके अपनी और अपने परिवार की तिजोरियां भरने में जुट जाते हैं.गायत्री प्रजापति तो दो कदम और आगे निकले हुए नेता हैं, जिन्होंने ना केवल गरीबों के पैसे लूट कर अपनी तिजोरियों में भरे, बल्कि औरत को अपनी दासी समझने वाले सवर्णों की आदतें भी अंगीकार करते हुए अपनी ही जाति की महिलाओं की इज्जत तार-तार करते रहे.गायत्री प्रजापति पर साईकिल चोरी से लेकर सामूहिक बलात्कार में शामिल होने तक के मुक़दमे दर्ज हैं.उनकी रासलीलाओं की कहानियां अमेठी की जनता चटखारे ले-लेकर सुनाती है.

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गायत्री प्रजापति का राजनितिक और आपराधिक इतिहास खंगालने से पहले बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की लखनऊ यूनिट के जॉइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश्वर सिंह के नेतृत्व में गायत्री प्रजापति की करोड़ों रूपए मूल्य की चल-अचल संपत्तियां जब्त की गयी हैं और इस मामले में आरोपपत्र अदालत में दाखिल हो चुका है.जब्त की गई अचल संपत्तियों का वर्तमान बाजार मूल्य 55 करोड़ रुपये है.गायत्री के परिवारीजन के 32 बैंक खाते व 17 संपत्तियां अटैच की गई हैं, जिनकी कीमत करीब 11.70 करोड़ रुपये है.कुछ बेनामी संपत्तियां भी अटैच की गई हैं.इसमें सात बैंक खाते व 17 अचल संपत्तियां शामिल हैं.इनकी कुल कीमत 2.77 करोड़ रुपये है.वहीं, गायत्री की कंपनियों के 12 बैंक खाते व 26 अचल संपत्तियां अटैच की गई हैं, जनकी कीमत 22.47 करोड़ रुपये है.जिन कंपनियों की संपत्तियां अटैच की गई हैं, उनमें एमजीए कालोनाइजर्स, एमजीए हास्पिटैलिटी सॢवसेज, एमएसए इंफ्रावेंचर, एमजीएम एग्रोटेक, कान्हा बिल्डवेल, दया बिल्डर्स, एक्सेल बिल्डटेक, लाइफक्योर मेडिकल एंड रिसर्च सेंटर प्राइवेट लिमिटेड व गुरुनानक कोल्ड स्टोरेज शामिल है.प्रवर्तन निदेशालय की जांच में गायत्री प्रजापति और उनके परिवार को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं.

जॉइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश्वर सिंह

जॉइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश्वर सिंह कहते हैं – गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी जो वर्ष 2012 तक सिलाई कढ़ाई का काम करके मात्र 10-15 हजार रुपये महीना कमाती थी, उसने 2013 में महाराष्ट्र के लोनावला में एक आलीशान बंगला खरीदा.पढ़ाई कर रहीं प्रजापति की दो बेटियां अचानक प्रॉपर्टी डीलिंग का बड़ा धंधा करने लगीं.साल 2013 से 2017 के बीच प्रजापति की पत्नी और दोनों बेटियों के खाते में देखते ही देखते छह करोड़ 60 लाख रुपये जमा हो गए।’

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गौरतलब है कि पिछले साल 30 दिसंबर को प्रवर्तन निदेशालय ने लखनऊ और अमेठी में गायत्री प्रजापति के घर, दफ्तर के साथ ही कानपुर में उसके चार्टर्ड अकाउंटेंट के घर पर छापेमारी कर काफी दस्तावेज जब्त किये थे.इस छापेमारी के दौरान लखनऊ, कानपुर, अमेठी समेत कई शहरों में करीब 100 कीमती सम्पत्तियों के दस्तावेज मिले थे.इन संपत्तियों में लोनावला के 5 रॉ हाउस और मुंबई के 4 फ्लैट भी शामिल हैं.इतना ही नहीं दफ्तर से 11.50 लाख रुपये के पुराने नोट और 4.5 लाख के स्टांप पेपर भी मिले थे.इस छापेमारी के बाद ही प्रवर्तन निदेशालय ने गायत्री प्रजापति को 18 फरवरी 2021 से कस्टडी रिमांड पर लेकर पूछताछ शुरू की थी.

ईडी के जॉइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश्वर सिंह कहते हैं, ‘हमारी जांच में सामने आया है कि गायत्री ने तमाम शेल कंपनियों के जरिए अपनी कंपनियों में करोड़ों रुपयों का निवेश कराया और फिर उस रकम के जरिए बड़ी बड़ी अचल संपत्तियां खरीदी गईं.गायत्री व उनके परिवारीजन ने आय से कई गुना अधिक कीमत की संपत्तियां खरीदी हैं.हमारी जांच अभी जारी है.जल्द गायत्री की मुंबई, लखनऊ समेत अन्य शहरों में काली कमाई से जुटाई गई संपत्तियों को अटैच किया जाएगा.हमने गायत्री के खिलाफ कोर्ट में प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत चार्जशीट दाखिल कर दी है, जिसमें उसकी अकूत संपत्तियों का काला चिट्ठा खुलकर सामने आया है.फिलहाल गायत्री प्रजापति की 36.94 करोड़ों की चल-अचल संपत्ति को हमने अटैच किया है.शैल कंपनी के 57 खातों में कुछ करोड़ हैं.इसके अलावा गायत्री की 60 संपत्तियों को जब्त किया गया, जिसकी कीमत 33.54 करोड़ रुपए है.इन संपत्तियों की कीमत मौजूदा समय में 55 करोड़ रूपए आंकी गयी है।’

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फ़र्ज़ी दस्तावेज़ों पर सम्पत्तियों की खरीद 

प्रवर्तन निदेशालय की जांच में पता चला है कि गायत्री की सम्पत्तियों के भुगतान का काफी विवरण फर्जी है, बैंकिंग चैनलों से ऐसा कोई भुगतान नहीं किया गया था.वहीं उनकी बेटियां जो अभी भी पढ़ रही हैं और उनका कोई कारोबार नहीं है, उनके बैंक एकाउंट्स में भी करोड़ों रूपए जमा हैं.सिलाई-कढ़ाई करने वाली उनकी हाउस वाइफ की इनकम टैक्स रिटर्न के पेपर कहते हैं कि उन्होंने करोड़ों रूपए अदा किये हैं.गायत्री के मंत्री बनने के तुरंत बाद उनके स्वयं और परिवार के सदस्यों और उनकी कंपनियों के बैंक खातों में भी करोड़ों रूपए आने शुरू हो गए.वर्ष 2013 से 2016 के बीच उनके परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में कुल 6.60 करोड़ रुपए कैश जमा कराए गए.उनके दोनों बेटों और बहुओं ने भी अपनी अच्छी-खासी अघोषित आय घोषित की थी.मार्च 2017 में सामूहिक बलात्कार के केस में गायत्री के जेल जाने के बाद भी उनकी पत्नी और बेटियों के सभी बैंक खाते संचालित होते रहे.यही नहीं गायत्री प्रजापति ने अपने परिजनों के अलावा नौकरों के नाम पर भी कई बेनामी सम्पत्तियाँ खरीदी, जिनका भुगतान कैश में किया गया.गायत्री प्रजापति के ड्राइवर द्वारा पावर ऑफ अटॉर्नी का उपयोग करके अधिकांश संपत्ति खरीदी गई थी.गायत्री प्रजापति के निर्देश पर उसके इनकम टैक्स रिटर्न भी दाखिल किए गए।

बेटे को ट्रांसफर किए शेयर
इस पूरी जांच को संचालित करने वाले जॉइंट डायरेक्टर डॉ. राजेश्वर सिंह बताते हैं, ‘वर्ष 2013 में मंत्री बनने के बाद गायत्री प्रजापति ने अपनी कंपनी एमजीए कॉलोनाइजर्स में अपने शेयर अपने बेटे अनुराग को हस्तांतरित कर दिए और खुद इस्तीफा दे दिया.यह एक बहाना था और कंपनी पर वास्तविक नियंत्रण गायत्री द्वारा बरकरार रहा.मंत्री बनने के तुरंत बाद उनका बेटा कई कंपनियों में निदेशक बन गया, और उसने कई संपत्तियां खरीदीं.मार्च-2014 में अनुराग द्वारा पांच नई कंपनियां भी बनाई गईं और विभिन्न शेल कंपनियों से बिना किसी व्यापारिक संबंध या समझौते के बहुत बड़ी धनराशि प्राप्त की.ऐसी शेल कंपनियों द्वारा लगाए गए धन को संबंधित संस्थाओं और उनके बेटों के व्यक्तिगत खातों के बीच घुमाया गया और अंत में संपत्तियों की खरीद और आगे के निवेश के लिए इस्तेमाल किया गया।

बाप की तरह बेटे पर भी है रेप का आरोप
गायत्री प्रजापति के दो बेटे हैं और दो बेटियां.उसके दो बेटों के नाम 20 से ज्यादा कंपनियां हैं, जिसमें वे अरबों रुपए के मालिक हैं.दोनों बेटों की पढ़ाई अमेठी में हुई है.दोनों ने बीए किया है.बड़ा बेटा अनुराग पिता के साथ ही कमीशन एजेंट के तौर पर काम करता था.अनुराग पर अमेठी की रहने वाली एक लड़की ने 2014 में रेप का आरोप लगाया था.उसके ख‍िलाफ कार्रवाई करने की कई स‍िफारिशें की गईं लेकिन गायत्री की हनक के चलते पुलिस ने एफआईआर तक दर्ज नहीं की.बताया जाता है क‍ि बाद में परिवार पर दबाव बनाकर लड़की और उसके परिवार को शांत कराया गया।

दस साल में आम से ख़ास हो गए प्रजापति 

उत्तर प्रदेश की राजनीति का दलित नेता गायत्री प्रजापति एक ऐसे निर्धन परिवार से था, जहाँ दो वक़्त की रोटी जुटाना भी उसके पिता को मुश्किल लगता था.अमेठी के एक दूरदराज के गाँव परसावा में सुकई राम कुम्हार के घर जन्मे गायत्री ने अपने पूरे बचपन और किशोरावस्था में घोर गरीबी को देखा भी है और जिया भी है.उनके पिता सुकई राम मिट्टी के बर्तन बना कर किसी तरह अपने नौ बच्चों का लालन-पालन करते थे.परिवार का अधिकाँश वक़्त फांको में गुज़रता था.ऐसी निर्धनता के बीच गायत्री प्रजापति ने जैसे-तैसे प्राइमरी की शिक्षा गांव के स्कूल में हासिल की और इंटर मीडिएट की परीक्षा राजघराने के अमेठी में बने इंटर कॉलेज से दी.इसके बाद बीए की पढ़ाई उन्होंने कांग्रेस नेता डॉ. संजय सिंह के पिता के नाम पर स्थापित डिग्री कॉलेज से पूरी की.

किशोरावस्था से ही गायत्री पढ़ाई के साथ-साथ बिल्डिंगों की पेंटिंग का काम भी करने लगे ताकि फीस के रूपए जुटाए जा सकें.ये अस्सी के दशक की बात है.इसी बीच उनको हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, कोरवा में 1985 से 1990 तक पेंटिंग का लंबा काम मिल गया.बिल्डिंग पेंटिंग के साथ-साथ प्रजापति ने अमेठी के एक दबंग लेखपाल अशोक तिवारी के साथ दोस्ती गाँठ ली.अशोक और गायत्री ने मिलकर प्रॉपर्टी डीलिंग का काम भी शुरू कर दिया.अशोक से दोस्ती घनी हुई तो गायत्री का प्रॉपर्टी का कारोबार भी परवान चढ़ने लगा और दोनों ने मिलकर सरकारी दस्तावेज़ों में हेरफेर के ज़रिये कई सरकारी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर लिया.अशोक तिवारी आज भी प्रजापति का करीबी है और सामूहिक बलात्कार केस में सहआरोपी है.

इसी दौरान एक मामूली पेंटर मगर बातचीत में माहिर प्रजापति की राजनितिक महत्वकांक्षाएं उबाल मारने लगीं.1993 में पहली बार बाल्टी चुनाव चिन्ह पर वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अमेठी सीट से चुनावी रण में कूद पड़ा.इस चुनाव में गायत्री को मात्र 578 मत हासिल हुए, मगर हौसला ठंडा नहीं पड़ा.1996 तक गायत्री नगर पंचायत अमेठी व नवोदय विद्यालय में रंगाई-पुताई का काम करते रहे।
अशोक तिवारी से मिलने के बाद गायत्री का प्रॉपर्टी का धंधा चमक रहा था कि इसी बीच लखनऊ में शहीद पथ के निकट गायत्री ने 250 बीघे जमीन का सौदा अमरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सिंह और विकास वर्मा के सहयोग से रायबरेली की एक पार्टी के साथ डील कर डाली.इसी डीलिंग के दौरान लखनऊ में गायत्री की मुलाकात प्रजापति समाज के अध्यक्ष दयाशंकर प्रजापति से हुई, जिन्होंने बैक डोर से गायत्री प्रजापति को मुलायमसिंह यादव के परिवार तक पहुंचा दिया.1994 में प्रजापति ने सपा का दामन थाम लिया और उसकी निष्ठा को देखते हुए उसे युवजन सभा के प्रदेश सचिव का पद दिया गया.

1996 में पहली बार गायत्री समाजवादी पार्टी से टिकट पाने में सफल हो गए.सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले गायत्री को तब 27234 मत मिले.धीरे-धीरे गायत्री ने समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायमसिंह यादव के काफी ख़ास हो गए.यादव की चरण वन्दना करना, उनके आगमन पर भीड़ जुटाना, खाने पीने का बंदोबस्त करना गायत्री ने अपने ऊपर ओढ़ लिया.मुलायमसिंह भी गायत्री की सेवाओं से प्रसन्न रहने लगे.2012 के विधानसभा चुनाव मेंगायत्री को फिर टिकट मिला और इस बार वह अमेठी सीट से पूर्व मंत्री अमीता सिंह को हराकर विधायक बन गए.जहां पहले उन्हें सिंचाई और बाद में कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए खनन और काफी विवादों के बाद परिवहन मंत्री बनाया गया.मुलायम के बेटे अखिलेश यादव के सरकार में भी गायत्री प्रजापति का काफी दबदबा रहा.मात्र दस साल में देखते ही देखते गायत्री प्रजापति लखपति से करोड़पति और अरबपति बनते चले गए.लेकिन सत्ता, ग्लैमर और हनक के साथ उनका दामन अपराध के अनगिनत दागों से भर गया.आज प्रजापति मनी लॉन्ड्रिंग, आय से अधिक संपत्ति और सामूहिक बलात्कार जैसे संगीन मामलों के आरोपी हैं.

 

फिल्म ‘‘आंटी सुधा आंटी राधा “को मिले इतने स्टार

फिल्मसमीक्षाः

रेटिंग: तीनस्टार

निर्माता: अनुपमा मंडलोई
निर्देशक:तनूजा चंद्रा
कलाकार:सुधा गर्ग,राधारानी शर्मा
अवधि: अड़तालिस मिनट
ओटीटीप्लेटफार्मः सिनेमा प्रिन्यो रडाॅटकाम

अमूमन डाक्यूमेंट्री फिल्म को नीर समाना जाता है.लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस दिशा  में काफी बदलाव आ गया है.अब फिल्मकार डाक्यूमेंट्री  फिल्मों को इस तरह रोचक तरीके से पेश करने लगे हैं कि दर्शक उनके साथ बंधा रहता है.ऐसी ही एक दो बुजुर्ग महिलाओं(एक की उम्र 95 वर्ष और दूसरी की 86 वर्षहै ) की जिंदगी ओैर उनके बीच के अटूट बंधन को दर्शाने वाली डाक्यूमेंट्री लेकर फिल्मकार तनूजा चंद्रा आयी है,जो कि इनदिनों ओटीटी प्लेटफार्म ‘सिनेमा प्रिन्योर’पर देखी जा सकती है.‘‘तमन्ना’’,‘दिल तो पागल है’ और ‘जख्म’ फिल्मों का लेखन करने के बाद तनूजा चंद्रा ‘दुश्मन’,संघर्ष’,‘यह जिंदगी का सफर’,‘सिलवट’ व ‘करीब करीब सिंगल’जैसी नौ फिल्मों का निर्देशन कर चुकी हैं.

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कहानीः
डाक्यमेंट्री की शुरुआत उत्तरप्रदेश के लाहरा नामक खूबसूरत गाॅंव से होती हैं.जहां 95 वर्षीय राधा अपनी छोटी 86 वर्षीय बहन सुधा के साथ रहती हैं.दोनों वाॅकर लेकर चलती हैं.घर के सामने बड़ा सा बगीचा है,जहां मोहम्मददीन और अलमहर काम करते हैं.घर में खाना बनाने के लिए अलग से महिला आती है.यह दोनों बहने एक दूसरे के बिना नहीं रह सकती,जब कि दोनों विपरीत स्वभाव की हैं.यह दोनों बुजुर्ग बहने डाक्यूमेंट्री की निर्देशक तनूजा चंद्रा की बुआ है. इनके माध्यम से कई भावानाओ और मीठी यादों को ताजा किया गया है.यह महिलाएं लगभग 12 साल से लाहरा में रह रही हैं, और वह बार बार तनूजा चंद्रा से कह रही थी कि शहर को छोड़कर गांव की स्वच्छ हवा में आकर शान की जिंदगी जियो.

यह डाक्यूमेंट्री इन महिलाओं के जीवन की एक झलक है. इसकी शुरूआत गर्मी के दिनों में सुबह साढ़े पाॅंच बजे बेड टी से होती है.फिर सुधा,राधा के लिए अखबार की कुछ सनसनी खेज खबरें पढ़ती है.आपस में चर्चा करती है कि कौन सी सब्जियां खरीदी जानी हैं और बगीचे में क्या उगाया जाना है.बहनों के बीच प्यार, साथ ही महिलाओं और उनके कर्मचारियों के बीच आपसी संबंध, दृढ़ता से उभरते हैं.
जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है,पता चलता है कि यह हंसमुख वृद्ध महिलाएं ठीक-ठाक प्रबंधन कर रही हैं.दोनों रात में बिस्तर साझा करती हैं,पर छोटी-मोटी दलीलें करती रहती हैं.ज्यादातर खाना पकाने की गुणवत्ता का लेकर.पर दोनों कबूल करती हैं कि ‘‘हम एक दूसरे के बिना नहीं कर सकती.‘‘
बीच में कुछ मार्मिक क्षण भी आते हैं, जब दोनों अपने दिवंगत पतियों और स्वास्थ्य समस्याओं की चर्चा करती हैं.सुधा अचानक मुस्कुराते हुए मृत्यु की इच्छा के बारे में कहती है,कि दिल का दौरा पड़ने से मौत आ जाए.

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इनके आसपास कोई बच्चे या पति नहीं हैं.बल्किविभिन्न धर्मों के घरेलू श्रमिकों का एक छोटा समूह ही इनका परिवार है.दोनों को सरकारी पेंशन मिल रही है.भूमि के छोटे भूखंडों को श्रमिकों में विभाजित किया  गया है.जो भूखंड जिसे दिया गया है,उससे होने वाली पैदावार का उस श्रमिक का परिवार उपयोग करता है.यहां त्यौहारों को एक साथ मनाया जाता है.

निर्देशनः
मानवीय भावनाओ को खूबसूरती से परदे पर पेश करने में माहिर तनू जा चंद्रा ने इस डाक्यूमेंट्री में दो बुजुर्ग महिलाओं की सोच,उनके अकेलेपन,उनके बीच के अटूटबंधन के साथ ही इस बात को भी रेखांकित किया है कि इंसान चाहे तो जांत पांत के परे भी अपना एक परिवार खड़ा कर सकता है,जो कि उनके हर सुख दुख में साथ देने को तत्पर हो.

निर्देशक ने सुबह सुबह वातावरण में कोयल की मीठी कूक, चिड़ियो की चहचहाहट के साथ गौरैया व मोर आदि को कैमरे में कैद कर गांव के माहौल को पूरी जीवंतताप्रदान की है.

इंडियन आइडल 12: कोरोना पॉजिटीव पवनदीप राजन ने बंद कमरे में गाया खूबसूरत गाना, जज हुए दीवाने

इंडियन आइडल 12 के मोस्ट टैलेंटेड कंटेस्टेंट में पवनदीप राजन का नाम सबसे पहले आता है. इन दिनों पवनदीप राजन कोविड पॉजिटीव हैं. बीते दिनों आनंद जी जब शो पर गेस्ट बनकर आएं तो पवनदीप बंद कमरे के अंदर से ही ‘साथी रे तेरे बिना भी किया जीना गाना गया’  के बाद ‘ और इस दिल में क्या रखा है’ जिसे सुनकर सभी लोग खुशी से झूम उठें.

जैसे ही पवनदीप ने अपन गाने को खत्म किया सभी जजों ने और कंटेस्टेंट ने उठकर उन्हें स्टैंडिंग ओवेशन दिया. जिसके बाद वह भी काफी ज्यादा इमोशनल नजर आ रहे थें. वैसे तो पवनदीप के परफॉर्मेंस से सभी लोग खुश नजर आ रहे थें लेकिन अरुणिता कांजीलाल के चेहरे पर एक अलग मुस्कान देख गया , वह पवनदीप के इस परफॉर्मेंस से काफी ज्यादा उत्साहित नजर आ रही थीं.

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बंद कमरे से पवनदीप ने मौसम ही बहल दिया था. सभी लोग काफी उसकी तारीफ करते नहीं थक रहे थें. शो में लोगों ने पवनदीप के लिए जमकर तालियां बजाई.

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वैसे तो पवनदीप हमेशा से अच्छा गाते नजर आ रहे हैं. हमेशा से उनके गाने कि सराहना जज और गेस्ट बनकर आएं सेलिब्रिटी करते नजर आते हैं.

 

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अभी से पवनदीप के फैंस कयास लगाने शुरू कर दिए हैं कि इस साल इंडियन आइडल 12 की ट्रॉफी पवनदीप के हाथ ही लगेगी. इस बात से कही न कही उनकी साथी कंटेस्टेंट अरुणिता भी काफी ज्यादा खुश हैं. वह भी अपने साथी का साथ देना चाहती है. अरुणिता को भी कुछ फैंस विजेता के तौर पर देखना चाहते हैं लेकिन देखना ये है कि आखिर इस साल का विनर कौन बनेगा.

संपादकीय

दिल्ली के पास बसा गुडग़ांव देश का सबसे अमीर इलाका है. यहां जाओ तो ऊंचेऊंचे शीशों से चमचमाते भवन हैं जिन में बड़ी गाडिय़ों से आते लोग हैं. जो 100 रुपए की बोतल का पानी पीते हैं  और एक खाने पर 1000 रुपए खर्चते हैं. करोड़ों से कम के मकानों में ये लोग नहीं रहते. इन में कुछ मालिक, कुछ मैनेजर कुछ एक कई किस्म के लोग कनसलटैंट हैं. इन पर पैसा बरसता है, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री इन्हें दिखा कर फूले नहीं समाते. हम अमेरिका, चीन से कोई कम थोड़े हैं.

इसी गुडग़ांव के अप्रैल के पहले सप्ताह में एक गांव के पास बसी झुग्गियों की बस्ती में आग लग गई. कुछ ही देर में 700 घर जल गए. 1000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए. उन के कपड़े जल गए. घर का खाने का सामान जल गया. बर्तन जल गए. जो रुपयापैसा रखा था वह जल गया. उन के सर्टीफिकेट, आधारकार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड जल गए.

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सवाल है कि उस शहर में जहां 30-30 मंजिले भवन हैं जो संगमरमर से चमचमा रहे हैं वहीं मजदूरों के लिए मैले से, बदबूदार ही सही, मधुमक्खियों के छत्तों की तरह भिनभिनाते ही सभी. पर पक्के मकान क्यों नहीं बन सकते. देश की सरकारें मजदूरों के लिए हैं या मालिकों के लिए? मालिकों को, अमीरों को 5000 गर्ज 10000 गज, 20000 गज के प्लाट दिए जा रहे हैं, मजदूरों को बसाने के लिए 20 गज के प्लाट या बने मकान भी दे नहीं सकतीं सरकारें. ऐसी सरकार किस काम की.

राम मंदिर के नाम पर हो हल्ला मचाया जा रहा है. अरबों रुपया जमा करा जा रहा है. मजदूरों के लिए क्यों नहीं? प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री हाईवे की बाते करते हैं जिन पर 50 लाख की गाडिय़ां दौड़ती हैं पर मजदूरों के मकानों की नहीं. हर शहर में कच्ची बस्तियां ही बस्तियां दिखती हैं. गांवों में 2000 साल पुरानी तकनीक के बने मकानों के नीचे बचे लोग दिखते हैं. एक फूस के छप्पर और उस पर तनी फटी हुई तिरपाल के नीचे घरौदें बसे होते हैं.

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देश के पास इतनी सीमेंट, ईट, लोहा है कि दुनिया की सब से ऊंची मूॢत ऐसे नेता की बनवाई जा सके जिस की पार्टी उस के मरने के 60 साल बाद बदलवा दी गई पर उन लोगों के लिए 200 फुट के मकान के लिए सामान नहीं जो 60 साल से इंतजार कर रहे हैं और कांवड भी होते हैं, विधर्मी का सिर भी फोड़ते है कि भगवान खुश हो जाए.

हर देश का फर्ज है कि अपने सब से गरीब का भी खयाल रखे. हरेक को बराबर का सा मिले, यह तो शायद नहीं हो सकता पर हरेक को पक्की छत तो मिले ताकि बारिश, गरमी, रात और आग से तो बच सके. ये सरकारें कैसे चौड़ी सडक़ों को बनवा डालने के इश्तेहार सारे देश में लगवा सकती हैं जबकि आज मजदूर चाहे गांव का हो या शहर का पक्के मकान, पानी और सीवर से जुड़े शौचालय का हकदार नहीं है. यह कमजोरी उन अरब भर मजदूरों की है कि उन्होंने अपना आज और अपने बच्चों का कल ऐसे लोगों के हाथ गिरवी रख दिया है जो कभी संसद में, कभी विधानसभा में, कभी मंदिर में बैठ कर बादे करते हैं पर भलाई हजम कर के डकार भी नहीं लेते.

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आम मजदूर तो जल रहा है, कभी आग में, कभी बेकारी में, कभी भूख में और कभी पुलिस के डंडों की मार से.

NSA के दुरुपयोग को लेकर सवालों में UP सरकार, हाईकोर्ट ने 120 में 94 केस किए रद्द

एक बार फिर यूपी सरकार NSA के दुरुपयोग को लेकर सवालों के घेरे में है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को झटका दिया है. योगी सरकार की तरफ से दर्ज कराए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत 120 मामलों में से 94 मामलों को कोर्ट ने रद्द कर दिया है. कोर्ट ने 120 मामलों की सुनवाई में यह फैसला दिया है.

दरअसल यूपी में जनवरी 2018 से लेकर दिसबंर 2020 तक एनएसए के तहत 120 मामले दर्ज कराए गए थे. जिनमें से 94 मामलें रद्द कर दिए गए. रद्द किए गए 94 मामलों में से 32 मामले डीएम की तरफ से दर्ज कराए गए थे. बता दें कि, इन मामलों में कोर्ट ने कैद किए गए लोगों को भी छोड़ने के आदेश दिए हैं.

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने कोर्ट में दर्ज रासुका के मामलों का अध्ययन किया. जिसमें सभी मामलों में एक खास पैटर्न नजर आया है.

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गौहत्या के आरोप सबसे ऊपर
जिन मामलों में रासुका लगाया गया है उनमें गौहत्या के मामले सबसे ज्यादा हैं. कुल 41 मामले ऐसे हैं जिनमें गौहत्या का आरोप लगाया गया है, ये हाईकोर्ट पहुंचे कुल मामलों के एक तिहाई के बराबर हैं. इन सभी मामलों में जिन्हें आरोपी बनाया गया है वो अल्पसंख्यक समुदाय के हैं. इन पर गौहत्या के लिए एफआईआर दर्ज की गई और इन्हें जिलाधिकारी के आदेश पर हिरासत में लिया गया.

बता दें कि, इनमें से 30 मामलों में हाई कोर्ट ने यूपी प्रशासन को तगड़ी फटकार लगाते हुए आदेश को रद्द कर दिया और याची को फौरन रिहा करने के आदेश दिए. बाकी बचे 11 मामले में से भी सिर्फ एक मामला ऐसा था जिसमें हिरासत बरकरार रह सकी. उसमें भी लोवर कोर्ट और बाद में हाईकोर्ट ने यह कह कर जमानत दे दी कि आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखने का कोई आधार नहीं है.

इस पड़ताल में कुछ मुख्य बातें जो सामने आई हैं वो कुछ इस तरह है:-
– 11 मामलों में, अदालत ने आदेश पारित करते हुए डीएम द्वारा “दिमाग का सही इस्तेमाल नहीं करने” का हवाला दिया है.

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– 13 मामलों में, अदालत ने कहा कि हिरासत में लिए गए शख्स को एनएसए को चुनौती देने के लिए सही ढंग से प्रतिनिधित्व करने का अवसर से वंचित किया गया था.

– सात केस में, अदालत ने कहा कि ये मामले “कानून और व्यवस्था” के दायरे में आते हैं और एनएसए लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं है.

– 6 मामलों में कोर्ट ने पाया कि हिरासत में लिए गए आरोपी की कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

कॉपी-पेस्ट की कहानी
इन सभी एफआईआर को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों इन्हें कट-पेस्ट किया गया हो. करीब 9 मामलों में, एफआईआर के आधार पर एनएसए लगाया गया था जिसमें दावा किया गया था कि गो हत्या को लेकर अज्ञात मुखबिर की खबर के आधार पर पुलिस ने कार्रवाई की थी.13 मामले उन एफआईआर के आधार पर थे, जिनमें दावा किया गया था कि गो हत्या कथित तौर पर “खुले कृषि क्षेत्र” या एक जंगल में हुआ था. 9 मामलों में, डीएम ने एफआईआर पर भरोसा करते हुए कहा कि कत्ल कथित तौर पर एक निजी आवास की चार दीवारी के अंदर हुआ था और पांच मामले में, डीएम ने एफआईआर पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि एक दुकान के बाहर कथित रूप से गो हत्या हुई थी.

इन सभी में एक बात और गौर करने वाली थी जिसमें एफआईआर में लिखी गई बात ही नहीं, यहां तक कि एनएसए लगाने के आदेशों में डीएम द्वारा बताए गए आधार भी करीब-करीब एक जैसे हैं.

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इन मामलों में गो हत्या से जुड़े सात मामलें में आरोप लगाते हुए, एनएसए आदेश में लिखा है कि “भय और आतंक के माहौल ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया है”. साथ ही छह मामले ऐसे है जिनमें NSA के आदेशों में छह समान बातों का इस्तेमाल किया गया: कुछ “अज्ञात व्यक्ति” मौके से भाग गए; घटना के कुछ मिनट बाद, पुलिस कर्मियों पर “हमला” किया गया; पुलिस पार्टी पर हमले के कारण, “लोगों ने भागना शुरू कर दिया और स्थिति तनावपूर्ण हो गई”; लोग “सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए दौड़ने लगे”; “माहौल के कारण, लोग अपने रोज मर्रा के काम में शामिल नहीं हो रहे हैं”; आरोपी के कार्य के कारण, “क्षेत्र की शांति और कानून और व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब हो गई थी”.

क्या कहती है यूपी सरकार ?
इस पूरे मामले पर यूपी सरकार से भी सवाल किया गया है. इस खबर को लेखर विस्तृत सवाल उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव आर.के. तिवारी को भेजे गए. इनमें पूछा गया है कि जिलाधिकारियों द्वारा जारी किए गए आदेशों को हाईकोर्ट में रद्द किए जाने के बाद क्या कुछ सुधार किया गया है? मुख्य सचिव से यह भी पूछा गया है कि, कोर्ट के आदेश से यह नहीं लगता कि जिलाधिकारियों के रासुका लगाने के अधिकारों पर सख्त नजर रखी जाए? उनसे मामलों में सरकार द्वारा दोबारा अपील किए जाने के बारे में भी पूछा गया है. इन सभी सवालों का अखबार को कोई जवाब नहीं मिला है.

किस स्थिति में सरकार लगा सकती है ये कानून?
इस कानून राष्‍ट्रीय सुरक्षा को रासुका भी कहा जाता है, राष्‍ट्रीय सुरक्षा में बाधा डालने वालों लोगों पर नकेल कसने के लिए बनाया गया है. सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति प्रदान करने से संबंधित ये कानून है. अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सही तरीके से चलाने में उसके सामने बाधा उत्पन्‍न हो रही है तो वह उसे सरकार एनएसए कानून के तहत गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है. इसके अलावा किसी समय सरकार को ये लगता है कि कोई व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करवा सकती हैं.

2018 से देश भर कितने लोगों पर लगा ये कानून?
वर्ष 2018 में, देश भर में रासुका के तहत 697 लोगों को हिरासत में लिया गया जिसमें से 406 को समीक्षा बोर्डों द्वारा रिहा किया गया जबकि 291 हिरासत में हैं. मध्य प्रदेश में, वर्ष 2017 और वर्ष 2018 में एनएसए के तहत 795 लोगों को हिरासत में लिया गया था. समीक्षा बोर्डों द्वारा 466 लोगों को रिहा किया गया जबकि 329 हिरासत में हैं.

जीवन में सकारात्मकता लाएं

व्यक्ति के भीतर जब नकारात्मकता होती है तब तनाव, अवसाद, निराशा जैसी कई समस्याएं जन्म लेनी शुरू हो जाती हैं. ऐसे में जानें कैसे इन से बचें और जीवन को सकारात्मक बनाएं. मानव ने आज नकारात्मक विचार तथा भावनाओं को सहज सामान्य मान लिया है जैसे अब तक तनाव, चिंता, अवसाद, निराशा को सामान्य मानते आए हैं. चूंकि संसार में हर व्यक्ति के मन में कुछ न कुछ नकारात्मक चलता ही रहता है, इसलिए इसे सामान्य मान लिया जाता है. मजे की बात तो यह है कि इस के बावजूद कोई यह मानने को तैयार नहीं कि उस के विचार, भावनाएं नकारात्मक हैं.

क्यों आते हैं नकारात्मक विचार : कहा जाता है जैसी संगत वैसी रंगत. संग का रंग चढ़ता ही है. कोई नकारात्मक घटना या किसी नकारात्मक व्यक्ति को देखने, सुनने से मन में उलटी विचारधारा का प्रवाह शुरू हो जाता है. आप के किसी मित्र को अगर नींद में दिल का दौरा पड़ जाए और उस की मृत्यु हो जाए तो आप की छाती में थोड़ा सा दर्द होने पर ही अंदर नकारात्मक विचार उठने लगते हैं. किसी निकट संबंधी के जीवन में गंभीर परिस्थितियां आती हैं, तो मन में संशय पैदा होने लगता है कि कहीं मेरे जीवन में भी यही न हो जाए. आज संसार में हर ओर नकारात्मक ऊर्जा उफान पर है. उसी के फलस्वरूप मनुष्य प्रभावित हो कर नकारात्मक विचारों में जकड़ता चला जा रहा है. कैसे निकाल पाएंगे नकारात्मक विचार

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: नकारात्मक विचारों के साथ कुछ भावनाएं भी नकारात्मक होती हैं, जैसे गुस्सा, निराशा, हताशा आदि. ये भी मन में एक बार हावी हो गईं, तो इन्हें भी निकालना बड़ा मुश्किल होता है. जैसेजैसे विचारों को दबाते जाते हैं वैसेवैसे वे और ज्यादा घेरने लगते हैं. सो, उस के बदले उन विचारों को भूल कर सकारात्मक विचारों को मन में आने दें. जिस प्रकार उजाला होता जाता है तो अंधेरा अपनेआप दूर होता जाता है, उसी प्रकार सकारात्मक विचार आने से नकारात्मक विचार दूर होने लगते हैं. सकारात्मक विचारों का विकास करने के लिए जीवन में ज्ञान और सू झबू झ को अपनाना चाहिए.

इस में आध्यात्मिक पठन काफी मदद करता है. नकारात्मक सोच को सकारात्मकता में बदलना सीखें : नलिनी की गाड़ी का ऐक्सिडैंट हो गया. कूल्हे की हड्डी टूट गई. एकडेढ़ महीने के लिए बैड रैस्ट करना आवश्यक था. मिजाजपुरसी के लिए आए लोग जब दुख प्रकट करते हुए कहते, ‘‘अब एकडेढ़ महीना बिस्तर पर ही रहना पड़ेगा, कितना कष्ट होगा न?’’ तो वह कहती, ‘‘कोई बात नहीं, मेरे पास इतनी किताबें हैं कि उन को पढ़ने का वक्त ही नहीं मिलता था. अब बड़े चैन से सभी पढ़ डालूंगी. अपनी पसंद के पुराने गीत, गजलें सुनूंगी. वरना सारा दिन तो घरऔफिस की आपाधापी में ही बीत जाता है.’’ इन बातों से भी फायदा होगा :सकारात्मक सोच के लिए सकारात्मक माहौल बनाना भी जरूरी है. अपने कमरे, घर को साफ और व्यवस्थित रखें. टेबल पर धूल से भरी फाइलों का ढेर, इधरउधर बिखरी पुस्तकें, कपड़े मन को हताश कर देते हैं. कमरे के रंग भी सोच पर प्रभाव डालते हैं.

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सफेद रंग पवित्रता तथा आध्यात्मिकता की भावनाएं पैदा करता है. भूरा रंग शीतलता, लालपीला रंग मन में उत्साह, उमंग और शक्ति का संचार करते हैं. काला रंग हताशा और सुस्ती पैदा करता है. लैवंडर, गुलाबी, नीला, हरा ये सभी रंग मूड को अच्छा बनाने में मदद करते हैं. घर में हलका सा संगीत, मधुर पुराने गीत बजते रहें, तो मन में उमंग, उत्साह बना रहता है, आशा का संचार होता है.

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मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी समय निकालें : पूरे दिन में अगर एक घंटा अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए निकालेंगे तो मन सकारात्मक ऊर्जा से प्रफुल्लित रहेगा. जहां तक संभव हो, सवेरेसवेरे घर के साफसुथरे व शांत कमरे में बैठ कर कुछ देर ध्यान करें. अपने जीवन के उद्देश्य के प्रति सोचें. नएनए संकल्प को रचें और उन पर चिंतन करें. इस से जीवन में ठहराव की जगह गतिशीलता आएगी. साथ ही, उत्साह व उल्लास भी बना रहेगा. नकारात्मकता मंद पड़ जाएगी और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता रहेगा.

आत्मसम्मान : भाग 1

बहूबेटे के पास रामकिशोरजी पत्नी कमला के साथ मौंट्रियल चले तो गए, लेकिन उन की दिनचर्या व बहू के रूखे व्यवहार से वे बहुत आहत हुए. किसी तरह दिन काटते रहे. लेकिन अचानक हुई घटना ने उन्हें पूरी तरह  झक झोर कर रख दिया…

5 बजे से ही बर्फ पड़नी शुरू हो गई थी. मौसम विभाग ने आज कम से कम 20 सैंटीमीटर बर्फ पड़ने का पूर्वानुमान लगाया था. मैं सोचने लगा कि साल का आखिरी दिन है, शाम के 3 बजे से ही लोग औफिसों से अपने घर चले गए होंगे, क्योंकि आज की शाम 7 बजे से ही घरघर में नए साल की पार्टियां होंगी. रैस्टोरैंट व होटलों में तो नए साल के स्वागत में खूब पार्टियां होती ही हैं. विकास भी औफिस से 4 बजे आ गया था.

वह मौंट्रियल में किसी बैंक में काम करता था. वह अपनी नौकरी के बारे में मु झ से अधिक बात नहीं करता था. नौकरी उस की अच्छी ही होगी, क्योंकि वह खूब सूटबूट पहन कर काम पर जाता है और उस ने कार भी अच्छी खरीदी हुई है. घर भी काफी बड़ा है.

मौंट्रियल शहर से 15 किलोमीटर दूर ‘डोलार्ड’ नाम के नगर में विकास का तीनमंजिला घर है. ऊपरी मंजिल पर सोने के 3 कमरे हैं. विकास और रमा के कमरे में तो बाथरूम भी है. एक कमरा 8 साल की नंदिनी का है और दूसरा 3 साल के विमल का. विमल घर पर ही रहता है, उस ने स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया है. विमल के जन्म पर ही विकास ने हमें जिद कर के यह कह कर भारत से बुला लिया था कि बच्चों को पालने में परेशानी होती है.

नंदिनी के होने पर रमा को कुछ महीने काम से छुट्टी मिल गई थी, परंतु उस के बाद उन दोनों को काफी परेशानी हो गई थी. वे नंदिनी को सुबह क्रैच में छोड़ जाते थे और शाम को लौटते वक्त ले आते थे, पर क्रैच चलाने वाली उस औरत को वे हर सप्ताह तकरीबन उतने ही पैसे दे देते थे जितनी रमा की तनख्वाह थी. फिर भी कम से कम रमा की नौकरी तो बरकरार रहती थी. नौकरी छोड़ कर यदि रमा घर बैठे नंदिनी की देखभाल करती तो बाद में उसे नौकरी कहां मिल सकती थी.

नंदिनी को क्रैच में छोड़ने पर सब से बड़ी समस्या यह थी कि नंदिनी आएदिन बीमार रहती थी. वहां इतने बच्चों के कारण उसे आएदिन खांसीजुकाम और बुखार रहता था. उस की बीमारी और कभीकभी अपनी बीमारी का बहाना बना कर रमा को आएदिन छुट्टी लेनी पड़ती थी. कनाडा में नौकरी करने वाले घर पर छोटे बच्चों की बीमारी की समस्या को खास महत्त्व नहीं देते.

विकास हमारी अकेली संतान है. उस के बाद घर में कोई संतान नहीं जन्मी, इसलिए जब नंदिनी का जन्म हुआ तो हम दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. अपनी पोती को देखने हम यहां आ गए और 4-5 महीने मौंट्रियल में रह कर वापस भारत लौट गए थे, पर यहां आ कर मौंट्रियल से बाहर कहीं गए ही नहीं. इच्छा तो घूमनेफिरने की थी भी, परंतु छोटे बच्चे के साथ घूमनाफिरना कहां आसान होता है और शायद उस समय विकास भी काम की तरफ से काफी तनाव से गुजर रहा था. विकास तो शायद हम दोनों को घुमाने ले भी जाता, परंतु रमा को हमें इधरउधर घुमाने में खास दिलचस्पी न थी.

विकास के साथ रमा को देखने जब हम सब लोग पहली बार करोलबाग, उस के मातापिता के घर गए थे तब की रमा और आज की रमा में जमीनआसमान का फर्क है. तब वह मूक बनी सिमटी सी याचना कर रही थी, ‘मु झे अपने चरणों में स्थान दे दो’ और अब हम दोनों उस के घर में आए थे, जिस की सही मानो में वही मालकिन थी. वह कितनी बदलीबदली नजर आई. हमारा बेटा तो उस के हाथों की कठपुतली ही था. वक्त के साथ इंसान भी कितनी जल्दी बदल जाता है.

विकास के घर की पहली मंजिल पर एक रसोई और एक ड्राइंगरूम है. काश, इस मंजिल पर एक बैडरूम भी होता, जिस में हम रह सकते, क्योंकि इस उम्र में सीढि़यां चढ़नाउतरना काफी मुश्किल होता है. अब 2 साल से हम विकास के घर के तहखाने में ही रह रहे हैं, जहां 2 कमरे और एक बाथरूम है. शायद विकास ने इन्हें हमारे लिए ही सोच कर बनवाया होगा. नंदिनी के होने पर जब पहली बार हम आए थे तब तहखाने में न तो कमरे थे, न बाथरूम. विमल के होने पर जब हम आए थे तब हम भारत से ही बोरियाबिस्तर बांध कर आए थे. उस समय विकास ने अपने घर के तहखाने में 2 कमरे और बाथरूम बनवा लिए थे.

 

आत्मसम्मान : भाग 3

‘‘सुन लेंगे, मेरी बला से. मैं कोई उन से डरती हूं. मैं भारत में रहने वाली बहू नहीं जो सास की गुलामी करूं. यह मेरा घर है, यहां मेरा हुक्म चलेगा. इस घर में वही होगा जो मैं चाहूंगी.’’

रमा की आवाज हम दोनों को साफसाफ सुनाई दे रही थी. तभी जोर से दरवाजा बंद होने की आवाज आई. वे लोग घर से चले गए थे. अवश्य ही रमा की बक झक कुछ देर तक तो विकास को सुननी पड़ी होगी. मालूम नहीं विकास को तब कैसा महसूस होता है जब रमा हमारे बारे में बेकार की बातें करने लगती है. चाहे हमारे सामने वह चुप रहता है, परंतु उसे सम झाने की कोशिश अवश्य करता होगा. आखिर उस की रगों में हमारा ही खून है, खून अवश्य ही रंग लाता होगा या फिर अपने घर की सुखशांति बनाए रखने के लिए खून के घूंट पी कर चुप रहता है.

मैं ने सोचा शायद बाहर अभी भी बर्फ पड़ रही है, मैं ने खिड़की के परदे से बाहर  झांकने की कोशिश की, पर बर्फ के कारण खिड़की के शीशे अपारदर्शी हो गए थे, इसलिए कुछ दिखाई न दिया. नववर्ष की पूर्व संध्या होने के कारण सड़कों पर ट्रैफिक भी काफी होगा. रात को नशे की अवस्था में विकास सब के साथ कार ड्राइव कर के आएगा, यह सोच कर मेरा मन कांप उठा.

कमला को हलकी सी नींद लग गई थी. 10 बज गए थे.

‘‘अगर तुम्हें नींद आ रही है तो सोने चलते हैं,’’ मैं ने कमला से कहा.

‘‘नहीं, सोएंगे तो 12 बजे के बाद ही. पता नहीं, नए साल की पूर्वसंध्या पर मैं आप के साथ होऊंगी भी कि नहीं,’’ कमला बोली.

‘‘अच्छा बोलो, कमला. तुम्हें कुछ हो गया तो मैं कैसे जीऊंगा. तुम्हारे अलावा दुनिया में मेरा असली मानो में है ही कौन,’’ कहते हुए मेरे आंसू टपकने लगे जोकि कमला से छिपे नहीं रहे, पर कमला ने मेरा मन रखने को यह भी नहीं कहा कि हमें किस चीज की कमी है. हमारे बेटेबहू तो हैं ही.

लगभग 11 बजे अचानक कमला को घबराहट हुई. उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, बोलने में भी उसे परेशानी हो रही थी. मैं ने तुरंत एंबुलैंस के लिए फोन किया. मौसम की खराबी के कारण एंबुलैंस को आने में कम से कम 10-15 मिनट तो लग ही जाएंगे, यही सोच कर मैं ने टैलीफोन के पास ही रखे एक कागज पर विकास के लिखे नंबर पर फोन किया, पर वहां घंटी बजती रही, किसी ने फोन नहीं उठाया. शायद पार्टी के शोरगुल की वजह से किसी ने सुना नहीं था. मैं रिसीवर रख कर कमला की ओर भागा. वह होश में नहीं थी, परंतु उस की सांस चल रही थी.

कुछ ही मिनटों बाद एंबुलैंस वालों ने दरवाजे की घंटी बजाई. कमला को ले कर हम लगभग 11 बजे अस्पताल पहुंचे.

इमरजैंसी के रिसैप्शन काउंटर पर बैठे क्लर्क ने ‘हैपी न्यू ईयर’ कह कर हमारा स्वागत किया. वे लोग कमला को अंदर ले गए. मैं बाहर बैठा रहा. मैं जल्दी में वह कागज भी अपने साथ लाना भूल गया जिस में विकास ने फोन नंबर लिखा था. तब मु झे अपनी याददाश्त पर बहुत  झुं झलाहट हुई, क्योंकि अगर नंबर होता तो मैं विकास को फोन कर के बुला लेता.

अचानक याद आया कि अस्पताल के पड़ोस में ही विकास के एक मित्र रहते हैं, क्यों न उन्हें कमला की बीमारी के बारे में खबर कर दूं, ताकि यदि उन्हें पता हो कि विकास आज किस के यहां पार्टी में गया है तो वे विकास को बता सकें, पर वे तो शायद खुद भी नया साल मनाने कहीं बाहर गए होंगे, यह सोच कर मैं ठिठक गया.

डेढ़ बजे कमला का डाक्टर भारी कदमों से इमरजैंसी वार्ड से बाहर निकल कर मेरी ओर आया. मु झे मालूम था कि वह मु झ से क्या कहने जा रहा है, ‘‘आई एम वैरी सौरी, रामकिशोरजी. कमलाजी अब इस दुनिया में नहीं हैं. मरते समय वे बिलकुल शांत थीं. हमारे वार्ड में आने के लिए कुछ मिनट बाद ही उन का देहांत हो गया था.’’

और यह कह कर डाक्टर वहां से चला गया. मैं वहीं बैंच पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद एक नर्स आई और बोली, ‘‘आप यहां खामोश बैठ कर क्या करेंगे. अस्पताल की कार आप को आप के घर छोड़ आएगी. अब आप को घर जा कर आराम करना चाहिए.’’

थोड़ी देर बाद नर्स मेरा हाथ पकड़ कर मु झे कार तक ले गई. घर पहुंचतेपहुंचते 3 बज गए थे. मैं लिविंग कम ड्राइंगरूम में ही बैठा रहा. मेरी सम झ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. शरीर में जैसे जान ही न थी. अचानक मु झे विकास को फोन करने का खयाल आया. मैं उठा और फोन मिलाया. कुछ देर तक घंटी बजती रही. इतनी रात गए फोन की घंटी सुन कर शायद उन्हें अच्छा न लगा, सो उन्होंने बताया कि विकास उन की पार्टी से आधा घंटा पहले निकल चुका था. मैं ने सोचा, अब तो विकास और रमा आने वाले ही होंगे.

थोड़ी ही देर में विकास और रमा बच्चों के साथ आ गए. रमा विमल को गोदी में ले कर ऊपर बैडरूम में चली गई और नंदिनी उस के पीछे थी. विकास के मुंह से आती शराब की बू कुछ ही देर में घर में फैल गई. वह अलमारी में अपना कोट रख कर लिविंगरूम में आया और बोला, ‘‘डैडी, बहुत रात हो गई है. आप भी जा कर सो जाओ. मम्मी से ही कुछ सीखो, जो समय पर सो जाती हैं.’’ और विकास मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही सीटी बजाता ऊपर अपने बैडरूम में चला गया. उसे मैं उस की मां के निधन की सूचना भी नहीं दे पाया. पार्टी के जश्न के कारण या शराब के नशे में वह यह भी भूल गया था कि जब वह पार्टी में जा रहा था तब उस की मां बीमार थी.

मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. मैं सोचने लगा, ‘काश, मैं भी विकास की मां की तरह लंबी नींद सो जाऊं और कभी न उठूं. यह तो अच्छा था कि कमला को आखिरी दिन तक मेरा साथ मिला था, पर जाने से पहले उस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि मैं उस के बेटेबहू के साथ अपने जीवन के बाकी दिन किस तरह आत्मसम्मान के साथ बिता सकूंगा.

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