प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने तो दिल्ली स्थित एम्स में जाकर कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन की दूसरी डोज़ भी ले ली है, फोटो भी सोशल मीडिया पर शेयर कर ली, वहीँ देश के अधिकाँश हिस्सों में अभी लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ भी नहीं मिल पायी है. ये भी देखा जा रहा है कि टीके के प्रति जहाँ एक ओर लोगों के मन में विश्वास पैदा नहीं हो रहा है, वहीँ टीके की दोनों डोज़ लेने के बाद भी कई लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं. ये स्थिति जहाँ चिंता बढ़ाने वाली है, वहीँ यह टीके के प्रति अविश्वास उत्पन्न करने वाली भी है. वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार ने उम्मीद जगाई थी कि जितने ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगेगी, कोरोना के नए मामले उतने की कम देखने को मिलेंगे, लेकिन हो इससे उल्टा रहा है. जैसे-जैसे वैक्सीन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, उससे दोगुनी रफ़्तार से कोरोना अपने पैर पसार रहा है.

पिछले साल मार्च में कर्फ्यू और लॉकडाउन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताली-थाली पीटने और घरों में दिए जला कर प्रकाशोत्सव मनाने जैसे उपक्रम करवा कर कोरोना को भगाने की कोशिश में सड़कों पर लोगों का जमावड़ा लगवा दिया था, अबकी साल नाइट कर्फ्यू की जगह 'कोरोना कर्फ्यू' शब्द का इस्तेमाल करने और 11 अप्रैल को ज्योतिबा फुले की जन्मजयंति एवं 14 अप्रैल को बाबा भीमराव आंबेडकर जन्मजयंति को 'टीका उत्सव' के रूप में मनाने का ऐलान किया है. भारत की मासूम और नासमझ जनता 'उत्सवों' का क्या मतलब समझती है और किस प्रकार मिलजुल कर और इकट्ठी हो कर मनाती है,

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