प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने तो दिल्ली स्थित एम्स में जाकर कोरोना से बचाव के लिए वैक्सीन की दूसरी डोज़ भी ले ली है, फोटो भी सोशल मीडिया पर शेयर कर ली, वहीँ देश के अधिकाँश हिस्सों में अभी लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ भी नहीं मिल पायी है. ये भी देखा जा रहा है कि टीके के प्रति जहाँ एक ओर लोगों के मन में विश्वास पैदा नहीं हो रहा है, वहीँ टीके की दोनों डोज़ लेने के बाद भी कई लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं. ये स्थिति जहाँ चिंता बढ़ाने वाली है, वहीँ यह टीके के प्रति अविश्वास उत्पन्न करने वाली भी है. वैक्सीन को लेकर केंद्र सरकार ने उम्मीद जगाई थी कि जितने ज़्यादा लोगों को वैक्सीन लगेगी, कोरोना के नए मामले उतने की कम देखने को मिलेंगे, लेकिन हो इससे उल्टा रहा है. जैसे-जैसे वैक्सीन देने की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है, उससे दोगुनी रफ़्तार से कोरोना अपने पैर पसार रहा है.

पिछले साल मार्च में कर्फ्यू और लॉकडाउन के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ताली-थाली पीटने और घरों में दिए जला कर प्रकाशोत्सव मनाने जैसे उपक्रम करवा कर कोरोना को भगाने की कोशिश में सड़कों पर लोगों का जमावड़ा लगवा दिया था, अबकी साल नाइट कर्फ्यू की जगह ‘कोरोना कर्फ्यू’ शब्द का इस्तेमाल करने और 11 अप्रैल को ज्योतिबा फुले की जन्मजयंति एवं 14 अप्रैल को बाबा भीमराव आंबेडकर जन्मजयंति को ‘टीका उत्सव’ के रूप में मनाने का ऐलान किया है. भारत की मासूम और नासमझ जनता ‘उत्सवों’ का क्या मतलब समझती है और किस प्रकार मिलजुल कर और इकट्ठी हो कर मनाती है,

कोरोनाकाल में इसके अनेक नज़ारे देखने के बाद भी चुनावी राज्यों में लगातार बड़ी-बड़ी रैलियां करवा रहे प्रधानमन्त्री द्वारा कोरोना को भगाने के लिए ‘टीका उत्सव’ मनाने का ऐलान करने से ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण इस देश के लिए और क्या हो सकता है?

corona-vacine-2

ये भी पढ़ें- कोरोनिल बेचने के लिए रामदेव ने फिर बोला झूठ

देश में स्वास्थ सेवाओं को युद्ध स्तर पर दुरुस्त करने की बजाय चुनावी राज्यों में रैलियों-उत्सवों में बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना करने वाली जनता के जबरदस्त जमावड़े को देख कर देश के प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के चेहरे खिल उठते हैं. बीमारी और मौत का आह्वान करती भीड़ को देख कर वह मुस्कुराते हैं. हाथ हिला-हिला कर उसका स्वागत करते हैं. आश्चर्य !

बीते एक साल में केंद्र और राज्य की सरकारें ना तो अस्पतालों में पर्याप्त ऑक्सीजन सिलिंडर की व्यवस्था कर पाईं हैं और ना ही बीमारों के उपचार के लिए अस्पतालों को पर्याप्त बेड उपलब्ध हो सके हैं. वेंटिलेटर्स की संख्या लगभग सभी अस्पतालों में इतनी कम है कि महामारी के भीषण रूप इख्तियार कर लेने की स्थिति में मरीजों को बचा पाना डॉक्टरों के लिए लगभग नामुमकिन सा है. बीते एक साल में कोरोना से संक्रमित होने वाले तीन चौथाई लोग होम आइसोलेशन में रह कर ठीक हुए हैं, क्योंकि वहां उनकी देखभाल करने वाले उनके अपने परिजन थे, जिन्होंने बिना भय के अपने मरीज को नियमित रूप से गर्म पानी, भंपारा और बुखार-खांसी की दवाएं देकर बीमारी से उबार लिया, जबकि अस्पतालों में भर्ती ज़्यादातर कोरोना मरीज मौत का शिकार हुए हैं, क्योंकि वहां उनके पास जाने में मेडिकल स्टाफ को डर लगता था, ऐसे में उपचार तो क्या ही हुआ होगा.

अधिकाँश अस्पतालों में मेडिकल स्टाफ के पास अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त पीपीई किट यानी पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट्स जिसमें मास्क, ग्लोव्स, गाउन, एप्रन, फेस प्रोटेक्टर, फेस शील्ड, स्पेशल हेलमेट, रेस्पिरेटर्स, आई प्रोटेक्टर, गोगल्स, हेड कवर, शू कवर, रबर बूट्स शामिल होते हैं, नहीं थे, लिहाजा उन्होंने अपनी जान पर रिस्क नहीं लिया.

हैरानी की बात है कि कोरोना काल का एक साल बीत जाने पर भी यह कमी अस्पतालों में बनी हुई है. बीते साल मेडिकल स्टाफ के जिन लोगों ने इन बातों की शिकायत सोशल मीडिया के माध्यम से की, उन्होंने अपनी नौकरियां गवां दीं. अस्पतालों की अव्यवस्था और कमियों को दूर करने की बजाय प्रधानमन्त्री लोगों से तालियां बजवाते रहे. किसी अस्पताल ने कोरोना मरीजों के परिजनों को उनसे मिलने या देखने की अनुमति नहीं दी, मृत्यु हो जाने पर लाश को पॉलिथीन में पैक कर सीधे शमशान भेज दिया गया, इसलिए उपचार की तमाम सच्चाइयां अस्पतालों की चारदीवारी में ही दफन हो कर रह गयीं.

ये भी पढ़ें- कोरोनिल से प्रभावित होगा टीकाकरण अभियान

बेकाबू होती कोरोना की रफ़्तार

बीते एक साल से लोगों को कोरोना की वैक्सीन का इंतज़ार था. इस दौरान भारत में करीब बीस दवा कम्पनियाँ कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रही हैं, जिसमें सबसे अव्वल रहा अदार पूनावाला का पुणे स्थित सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया. कोरोना काल से पहले तक अदार पूनावाला का नाम आम जनता नहीं जानती थी, मगर कोरोना ने उन्हें नाम और दाम दोनों दिया. यहाँ तक कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उनके मुरीद होकर सीरम इंस्टिट्यूट उनसे मिलने पहुंचे. सीरम इंस्टीट्यूट ने ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर कोरोना के खात्मे के लिए कोवीशील्ड नाम की वैक्सीन बनायी है. जबकि इसी के समानांतर हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक ने कोवैक्सिन का निर्माण किया है. बायोटेक के एमडी डॉ. कृष्णा एल्ला हैं. इस समय भारत में यही दोनों वैक्सीन लग रही हैं. इस साल जनवरी में टीकाकरण अभियान शुरू होने पर दोनों ही कंपनियों ने भरोसा दिलाया था कि उनके द्वारा निर्मित वैक्सीन लेने के बाद कोरोना की रोकथाम प्रभावशाली तरीके से होगी. मगर अब इन वैक्सीनों पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
देश में अब तक सात करोड़ से अधिक टीके लगाए जा चुके हैं और इसके बावजूद संक्रमण की रफ्तार बेकाबू होती जा रही है. खासकर महाराष्‍ट्र, छत्तीसगढ़ और पंजाब जैसे राज्‍यों में हालात लगातार चुनौतीपूर्ण बने हुए हैं. कई लोगों को दोबारा संक्रमण हो रहा है तो कहीं वैक्‍सीनेशन के बाद भी संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के 40 डॉक्टर्स कोरोना का शिकार हो गए हैं, जबकि उन्हें वैक्सीन की दोनों डोज़ेस मिल चुकी हैं, वहीँ दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भी 37 डॉक्टर कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं, जिनमें से पांच अस्पताल में ही भर्ती हैं. अन्य डॉक्टरों को होम आइसोलेशन में रखा गया हैं. जानकारी के अनुसार इनमें से ज्यादातर डॉक्टर वे हैं जो कोरोना मरीजों का इलाज कर रहे थे और जिनको वैक्सीन लग चुकी थी. इन ख़बरों के चलते देश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में उछाल के बीच वैक्‍सीन को लेकर अब कई तरह के सवाल लोगों के मन में उठ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडेय अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि वैक्‍सीन की दोनों डोज लेने के बाद भी उन्हें कोरोना हो गया. वैक्‍सीन की पहली डोज उन्‍होंने 5 फरवरी और दूसरी डोज 5 मार्च को ली थी. अधिकारी ने कोरोना वैक्सीन लेते हुए अपनी फोटो भी पोस्ट की थी.पुलिस महानिरीक्षक राजेश पांडे के साथ उनकी पत्‍नी और एक सुरक्षाकर्मी भी संक्रमित हुए हैं. उनके सुरक्षाकर्मी ने भी वैक्‍सीन की दो डोज ली थी, जबकि पत्‍नी ने अभी एक डोज ली है. उनके बेटे को तीन दिन पहले संक्रमण हुआ था. इसके बाद एक बार फिर सवाल पैदा हुआ कि आखिर वैक्‍सीन की दो डोज लेने के बाद भी संक्रमण क्‍यों हो रहा, जबकि वैक्‍सीन निर्माताओं ने दावा किया था कि दो डोज लेने के बाद संक्रमण से बचाव के लिए शरीर में प्रभावी इम्‍युनिटी विकसित हो जाती है.

मामला सँभालने की कोशिश  

इस बारे में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने एक रिपोर्ट जारी कर मामले को सँभालने की कुछ कोशिश की है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुन: संक्रमण के मामले बहुत कम हैं, और इस संबंध में वायरस के संपूर्ण जीनोम अनुक्रम को समझने की आवश्‍यकता है.

गौरतलब है कि भारत में कोरोना वायरस से दोबारा संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्‍या लगभग 4.5 फीसदी है. इनमें पहली और दूसरी बार हुए संक्रमण में वायरस के जीनोम का अध्‍ययन नहीं किया गया है. पुन: संक्रमण की यह दर अंतरराष्‍ट्रीय अध्‍ययनों में बताई गई 1 फीसदी रि-इंफेक्‍शन के दर से कहीं अधिक है. संभव यह भी है कि कोविड-19 का दोबारा संक्रमण वायरस के अलग वैरिएंट्स की वजह से हो. अब तक के वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह स्‍पष्‍ट हो चुका है कि यह वायरस लगातार अपना जीनोम बदल रहा है. भारत में भी कोरोना वायरस के कई वैरिएंट्स सामने आए हैं. लेकिन इन पर समुचित अध्ययन अभी तक नहीं हो पाया है.

दिल्ली एम्स के डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया भी मानते हैं कि कई लोगों को वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद भी कोरोना हो रहा है? मगर इस पर उनका कहना है कि वैक्सीन की दोनों डोज़ लेने के बाद भी जो लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं, उन पर इस वायरस का असर कम दिखेगा और वो गंभीर रूप से बीमार नहीं होंगे. उनमें हल्के लक्षण हो सकते हैं. उन्हें आईसीयू की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसके अलावा ऐसे लोगों की मौत होने की संभावना भी कम है.

ये भी पढ़ें-  कोरोनिल वर्सेस वैक्सीन

corona-vacine

कितनी कारगर है वैक्सीन

संक्रमण से बचाव में वैक्‍सीन के प्रभावी होने के संबंध में वैक्‍सीन निर्माताओं के दावों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि अमूमन सभी वैक्‍सीन निर्माताओं ने अपनी वैक्‍सीन को संक्रमण से बचाव में 70-80 फीसदी कारगर बताया है.

अब यदि वैक्‍सीन को 70 फीसदी ही कारगर माना जाए तो इसका अर्थ यह हुआ कि 30 प्रतिशत लोगों में संक्रमण का जोखिम वैक्सीन लेने के बाद भी बना रहता है. यानी 10 में से 3 लोगों के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बना रहता है. उन्‍हें संक्रमण हो भी सकता है और नहीं भी. इसलिए यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल है कि किसे संक्रमण हो सकता है और किसे नहीं. भारत में इस वक्‍त जो दो वैक्‍सीन – कोवैक्‍सीन और कोविशील्‍ड लगाई जा रही है, उसके निर्माताओं का कहना है कि यह संक्रमण से गंभीर स्थिति पैदा होने और मौतों को रोकने में 100 फीसदी तक कारगर है.

वैक्‍सीन निर्माता कंपनियों के इस दावे का सीधा अर्थ यह है कि अगर किसी ने कोविड-19 की वैक्‍सीन लगवाई है और निर्धारित समय के भीतर उसका दूसरा डोज ले लिया है, तो उसमें संक्रमण के कारण गंभीर स्थिति पैदा नहीं होगी और इस वजह से उसकी जान नहीं जाएगी. कंपनियों का कहना है कि उनके दावे वैज्ञानिक रिसर्च पर आधारित हैं और इस तरह विज्ञान के नजरिये से देखें तो वैक्‍सीन संक्रमण के कारण गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य संकट पैदा होने की स्थिति से बचाता है और मौतों को भी रोकता है. साथ ही यह एक बड़ी आबादी, तकरीबन 70 फीसदी लोगों को संक्रमण की चपेट में आने से बचाता भी है.

किस तरह काम करती है वैक्‍सीन  

इस बारे में डॉक्टर्स का कहना है कि वैक्‍सीन की दो डोज लेना जरूरी है. कोवैक्‍सीन का दूसरा डोज जहां 28 से 42 दिनों के भीतर लिया जा सकता है, वहीं कोविशील्‍ड का दूसरा डोज 42 से 56 दिनों के बाद लिया जा सकता है. विशेषज्ञ कहते हैं – यूं तो वैक्‍सीन का असर पहले डोज के बाद ही शुरू हो जाता है, लेकिन वायरस से लड़ने में यह प्रभावी नहीं होता और इसलिए दूसरा डोज लेने की सलाह दी जाती है. दूसरा डोज लगवाने के 14 दिनों बाद वैक्‍सीन वायरस से लड़ने में प्रभावी हो जाती है. मगर सवाल यह है कि जिस रफ़्तार और जिस टूटी-फूटी व्यवस्था के साथ वैक्सीनेशन का कार्यक्रम चल रहा है, वह इतने बड़े देश में पांच साल में भी पूरा नहीं होगा.

टीकाकरण अभियान लक्ष्य से बहुत पीछे

गौरतलब है कि देश में टीकाकरण अभियान की शुरुआत जनवरी मध्य में हो गयी थी मगर 135 करोड़ की आबादी वाले देश में अभी तक सिर्फ सात करोड़ के करीब लोगों का ही टीकाकरण हो पाया है. टीकाकरण की शुरुआत के वक़्त जो लक्ष्य रखा गया था उसके मुताबिक अब तक 10 -15 करोड़ लोगों को टीके लग जाने चाहिए थे. यह ठीक है कि जब से 45 वर्ष से ऊपर के लोगों को टीका लगवाने की हरी झंडी मिली है तब से टीकाकरण की रफ्तार कुछ बढ़ी है, लेकिन यह अब भी लक्ष्य से बहुत पीछे है. आखिर प्रतिदिन 50 लाख लोगों के टीकाकरण का लक्ष्य जो केंद्र और राज्यों की सरकारों ने रखा था, क्यों नहीं हासिल हो पा रहा है? जवाब है – देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, स्टाफ की बेतरह कमी, अस्पतालों की कमी, जागरूकता की कमी और टीके के प्रति लोगों के दिलों में अविश्वास.

केंद्र और राज्य सरकारों को यह देखना चाहिए कि यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए और पात्र लोग टीका लगवाने में तत्परता का परिचय दें.

खराब हो रहे हैं टीके

गाज़ियाबाद जिला अस्पताल की वरिष्ठ अधिकारी डॉक्टर ऋतु वर्मा कहती हैं कि टीके की बोतल खुलने के चार घंटे बाद वह बेकार हो जाती हैं. यदि इस बीच पर्याप्त संख्या में लोग टीकाकरण के लिए नहीं पहुंचते हैं तो टीके का नुकसान होता है. वहीँ कोवैक्सीन की डोज़ देने के लिए कम से कम दस लोगों के समूह का इंतज़ार करना होता है.

कोरोना वैक्सीनेशन की धीमी रफ्तार पर गृह मामलों की संसदीय समिति ने भी जताई चिंता जताते हुए कहा है कि ऐसे तो टीकाकरण पूरा होने में कई साल लग जाएंगे. राज्यसभा में पेश गृह मंत्रालय की अनुदान की मांग संबंधी रिपोर्ट पर समिति ने यह भी चिंता जताई है कि काफी संख्या में लोगों को टीके की दूसरी खुराक नहीं लग पा रही है. समिति कोविड -19 के वर्तमान टीकाकरण प्रक्रिया पर गौर कर रही है. कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति का कहना है कि अभी तक भारतीय आबादी के एक फीसदी से भी कम लोगों का टीकाकरण हुआ है और इस दर से पूरी आबादी के टीकाकरण में कई साल लग जाएंगे.

ये भी पढ़ें- जनता का दर्द नहीं सुनना चाहती सरकार

यह समझना कठिन है कि जब टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करने में कठिनाई आ रही है, तब फिर सभी आयु वर्ग के लोगों को टीका लगवाने की सुविधा देने से क्यों बचा जा रहा है? इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि टीकों के खराब होने का एक कारण वांछित संख्या में लोगों का टीकाकरण केंद्रों में न पहुंचना है. यदि पर्याप्त संख्या में टीके उपलब्ध हैं तो फिर घर-घर टीके लगाने का भी कोई अभियान शुरू करने पर विचार किया जाना चाहिए. कम से कम यह तो होना ही चाहिए कि जो लोग अपने काम-धंधे के सिलसिले में घरों से बाहर निकलते हैं और भीड़-भाड़ वाले इलाकों में जाते हैं, उन्हें प्राथमिकता के आधार पर टीका लगे, भले ही उनकी उम्र 45 वर्ष से कम क्यों न हो. ऐसे उपाय इसलिए आवश्यक हो गए हैं, क्योंकि यह देखने में आ रहा है कि अब अपेक्षाकृत कम आयु वाले लोग भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं. अब जब कोरोना संक्रमण के खतरे ने फिर से सिर उठा लिया है, तब फिर पात्र होते हुए भी टीका लगवाने में देरी करने का कोई औचित्य नहीं. वहीँ जो लोग किसी न किसी कारण टीका लगवाने से बच रहे हैं, उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि हाल-फिलहाल कोविड महामारी से छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा और वह अभी भी घातक बनी हुई है, ऐसे में टीका लगवा लेना ही बेहतर है क्योंकि इससे कुछ बचाव तो होगा. इस सम्बन्ध में सरकार को जागरूकता अभियान शुरू करना चाहिए, मगर वह तो राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त है. जहां बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही हैं. भारी भीड़ इकट्ठा करके कोरोना को न्योता दिया जा रहा है.

पूनावाला ने माँगा सरकार से पैसा

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने केंद्रीय बजट 2021-22 में 35 हजार करोड़ रुपए कोरोना वैक्सीनेशन के लिए रखे थे. उन्होंने कहा था कि यह नई आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना का एक हिस्सा होगा और  जरूरत पड़ी तो और भी पैसा खर्च किया जाएगा. इससे साफ है कि भारत सरकार कोरोना वैक्सीनेशन पर पैसा तो खर्च करने को तैयार है, मगर वैक्सीन कंपनियां जो अभी नो प्रॉफिट नो लॉस पर वैक्सीन दे रही हैं, वो अब इस ‘आपदा में अवसर’ ढूंढ कर कुछ कमाना भी चाहती हैं. जैसा कि सीरम इंस्टिट्यूट के मालिक अदार पूनावाला ने साफ़ भी कर दिया है.

ADAR_POONAWALA

दुनिया की सबसे बड़ी वैक्‍सीन निर्माता कंपनी कहलाने वाली सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया इस समय अपने देश में आपूर्ति को पूरा करने की जरूरत एवं अपने अंतरराष्‍ट्रीय समझौते के बीच फंसी हुई है. सीरम के सीईओ अदान पूनावाला कहते हैं कि एस्‍ट्राजेनेका ने वैक्‍सीन की आपूर्ति में देरी होने के चलते कंपनी को कानूनी नोटिस भेजा है. इसलिए कोवीशील्‍ड का उत्‍पादन दोगुना करने के लिए हम भारत सरकार से ग्रांट के रूप में मदद चाहते हैं. अदार पूनावाला ने कोविड-19 वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए करीब 3,000 करोड़ रुपये की मांग सरकार से की है.

पूनावाला का कहना है कि हमने पहले ही हजारों करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं. हमें अपनी क्षमता निर्माण के लिए अन्य नए तरीके तलाशने होंगे. हमें मोटे तौर पर 3,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, जो एक छोटा आंकड़ा नहीं है. कंपनी प्रति दिन 20 लाख खुराक का उत्पादन कर रही है. हमने अकेले भारत में 10 करोड़ से अधिक खुराक दी हैं और अन्य देशों को लगभग छह करोड़ खुराक का निर्यात किया जा चुका है. हम वैक्सीन पर कोई बड़ा मुनाफ़ा नहीं कमा रहे हैं. दुनिया में कोई भी दूसरी वैक्सीन कंपनी इतनी घटी कीमतों पर टीके उपलब्ध नहीं करा रही है. सीरम इंस्टीट्यूट अन्य के मुकाबले भारत की अस्थाई जरूरतों को प्राथमिकता दे रहा है. कंपनी वर्तमान में छह से सात करोड़ टीके प्रति माह उत्पादन कर रही है. उम्मीद है कि कोविशील्ड वैक्सीन की उत्पादन क्षमता हम जून से प्रति माह 11 करोड़ तक बढ़ा देंगे मगर इसके लिए हमें सरकार से मदद चाहिए.

अब सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार अदार पूनावाला की तीन हज़ार करोड़ रूपए की मांग पूरी कर पाएगी. फिर देश की अन्य कंपनियां जो वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं क्या वे भी सरकार से ऐसी ही मदद नहीं चाहेंगी?

कोरोना की तेज़ रफ़्तार और वैक्सीन पर राजनीति

कोरोना की बढ़ती रफ्तार के बीच वैक्सीन को लेकर राजनीति भी जारी है. दिल्ली, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड जैसे राज्यों ने वैक्सीन की कमी का हल्ला मचा रखा है. वहीँ कई शहरों में वैक्सीनेशन सेंटर ठप हो गए हैं. संक्रमण के दूसरी लहर के चपेट में महाराष्ट्र बिलबिला रहा है मगर यहाँ के वैक्सीनेशन सेंटरों को बंद किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि यहां कोविड-19 वैक्सीन की पर्याप्त खुराकें मौजूद नहीं है. यहाँ हर रोज आने वाले नए मामलों का आंकड़ा 50 हजार से अधिक है. महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है, ‘महाराष्ट्र की आधी जनसंख्या के बराबर गुजरात है. गुजरात को अब तक 1 करोड़ वैक्सीन की खुराक दी गई है, जबकि हमें केवल 1.04 लाख वैक्सीन की खुराक दी गई. राज्य में केवल तीन दिन के लिए 14 लाख वैक्सीन बचे हैं. वैक्सीन की कमी के कारण कई वैक्सीनेशन सेंटर बंद करने पड़ रहे हैं. केंद्र सरकार से आग्रह है कि जल्द से जल्द वैक्सीन के 40 लाख डोज उपलब्ध कराएं.’

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से बचाव के लिए संघर्ष कर रहे देश के कई राज्यों में कोविड-19 वैक्सीन की कमी रिपोर्ट की जा रही है. यहां तक कि कई राज्यों में आधे से अधिक वैक्सीनेशन सेंटरों को बंद कर दिया गया है. देेश के संक्रमित राज्यों में महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में वैक्सीन के स्टॉक में आई कमी को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री लगातार केंद्र सरकार के संपर्क में हैं.

हालांकि देश के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन व सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने महाराष्ट्र सरकार की वैक्सीन की कमी के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य अपनी कमियों को छिपाने के लिए दहशत का माहौल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. वैक्सीन की कमी और 18 साल से अधिक उम्र के सभी युवाओं को टीका लगाने की मांग संबंधी बयान इसी सिलसिले दिए जा रहे हैं.

दिल्ली के स्वास्थ मंत्री सत्येंद्र जैन ने भी कह दिया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अब जो वैक्सीन का स्टॉक है, वह केवल अगले 4-5 दिनों तक का ही है. उन्होंने और वैक्सीन की मांग केंद्र से की है. झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने राज्य में कोविड-19 वैक्सीन की कमी की बात कही है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, ‘अगले एक-दो दिनों के लिए हमारे पास वैक्सीन का स्टॉक है. हमने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से वैक्सीन की मांग की है और उम्मीद है कि वे इसे पूरा करेंगे.’

तेलंगाना में भी कोविड-19 वैक्सीन का काफी कम स्टॉक बचा है. राज्य स्वास्थ्य मंत्री ई. राजेंद्र के अनुसार केंद्र से कोरोना वैक्सीन की अतिरिक्त डोज की मांग की गई है. वहीं आंध्र प्रदेश ने केंद्र सरकार से वैक्सीन के एक करोड़ डोज की मांग की है.

ओडिशा सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर वैक्सीन के लिए अपनी मांग रखी है. राज्य सरकार के अनुसार, उनके पास केवल तीन दिन का स्टॉक है. ओडिशा ने केंद्र से कहा है कि राज्य को 15 से 20 लाख कोविशील्ड की डोज उपलब्ध कराई जाए. ओडिशा का कहना है कि राज्य में आधे वैक्सीनेशन सेंटर बंद हो चुके हैं.

विपक्षी पार्टियां और खासकर कांग्रेस वैक्सीन को लेकर सरकार को घेरे हुए हैं. उनका आरोप है कि वैक्सीनेशन ड्राइव को लेकर सही ढंग से तैयारी नहीं की गयी है. वैक्सीनेशन सेंटर्स ठीक तरीके से काम नहीं कर रहे हैं. नागरिक जागरूक नहीं है, वहीँ जगह जगह से टीके की कमी या इनके खराब होने की ख़बरों ने स्थिति को और घातक बना दिया है.

सरकार ने रोका वैक्सीन का निर्यात

देश में बढ़ते कोरोना वायरस के मामलों के चलते विपक्ष के हमले और किरकिरी से बचने के लिए भारत सरकार से फिलहाल दूसरे देशों को सप्लाई होने वाली कोरोना वैक्सीन पर ब्रेक लगा दिया है. विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक भारत की तरफ से ग्रांट के तौर पर अंतिम सप्लाई 2 अप्रैल को 2 लाख कोरोना वैक्सीन की सप्लाई बांग्लादेश को की गई है, जबकि कमर्शियल तौर पर अंतिम सप्लाई 29 मार्च को 25 हज़ार वैक्सीन की फिलिस्तीन को की गई है. जबकी 29 मार्च को ही यमन को कोवैक्स यानी गावी अलायंस के तहत 3.60 लाख कोरोना वैक्सीन भेजी गई हैं.

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत से करीब 100 मिलियन कोरोना वैक्सीन की मांग अन्य देशों ने की है. ऐसे देशों की संख्या 50 से भी अधिक है जो भारत से कोरोना वैक्सीन चाहते हैं. ब्राजील से 20 मिलियन की मांग है जबकि अर्जेंटीना भी 20 मिलियन वैक्सीन डोज भारत से चाहता है. भारत से अब तक कुल करीब 65 मिलियन वैक्सीन दूसरे देशों को सप्लाई की गई है. इसमें करीब 11 मिलियन ग्रांट के तौर पर, 38 मिलियन कॉमर्शियल तौर पर और लगभग 18 मिलियन कोवैक्स के तहत भारत ने आपूर्ति की है. भारत अब तक 84 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति कर चुका है.

वैक्सीन के निर्यात पर रोक लगाते हुए केंद्र सरकार का कहना है कि भारत अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद ही अब दूसरे देशों को कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति कर पाएगा. हाल के दिनों में भारत में कोरोना संक्रमण के मामलों की संख्या बढ़ी है वैसी स्थिति में दूसरे देशों को कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति कराना भारत के लिए फिलहाल मुश्किल है. हालांकि इस फैसले की समीक्षा अगले कुछ दिनों में होगी.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...