निजीकरण के बाद हर देश में कोई सूरज चमकने लगेगा यह भूल जाइए. निकम्मी सरकारी कंपनियों के बेचने से सरकार को चाहे जमीन और नाम का पैसा मिल जाए, आम आदमी अब इंस्पेक्टरों और कंपनी मैनेजरों की घौंस की जगह प्राइवेट कंपनियों की घौंस को सहेगी. एचडीएफसी बैंक जानामाना है. बढ़चढ़ कर विज्ञापन करते हैं, आटो लोन भरमार कर देते हैं पर असल में ग्राहकों को चूना लगाने से नहीं बाज आते.

एक मामले में वे एक जीसीएस कंपनी ही डिवाइस को बैंक लोन के साथ बेचारे जाते पकड़े गए हैं. जो भी लोन लेने आता उसे कहते कि बैंक का नियम है कि जीपीएस डिवाइस लगाओ ताकि बैंक जब चाह आप की कार को ट्रेस कर सके ग्राहक बेचारा समझ नहीं पाता और मजबूरत पैसे देता.

ये भी पढें- विदेशी पर निर्भरता

रिजर्व बैंक औफ इंडिया को पता चल गया तो उस ने पूछताछ की. तब बैंक बारबार कहता रहा कि वे लिख कर जवाब नहीं देंगे, खुद आ कर जवाब देंगे. उन्होंने सारा दोष कुछ मैनेजरों पर डाल दिया और उन्हें निकाल दिया गया. दर्शाया यह गया है कि कुछ अफसर ही चूना लगा रहे थे और बैंक का  इस से कुछ लेना देना नहीं था. वैसे रिजर्व बैंक दूध का घुला हो, ऐसी बात नहीं. वहां भी जम कर बेइमानी होती हो तो पता नहीं चलेगा क्योंकि वे तो अपनी कोई बात बाहर निकलने ही नहीं देते. समाचारपत्र उन में हक से छानबीन नहीं कर सकते.

एचडीएफसी बैंक हाल में अपनी डिजिटल सेवाओं के बारबार फेल होने पर भी खबरों में आया है. इन की वैबसाइटें बहुत उलझी होती है और आम आदमी को समझने में देर लगती है. फेसटूफेस बहुत मामलों में बात हो ही नहीं सकती जबकि अपनी गलती को पर्दा डालने के लिए वे रिजर्व बैंक इन पर्सन यानी खुद मेज के सामने बैठ कर बात करने की प्रार्थना कर रहे थे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...