पश्चिमी बंगाल, तमिलनाडू, असमी, केरला व पौडुचेरी के चुनावों का फैसला चाहे जो भी हो, मोदीशाह सरकार ने यह जता दिया है कि 1947 के बाद जो आजादी हमें मिली थी, वह धीरेधीरे खत्म हो रही है और चुनावों के जरिए नई अपनी सरकारें बनाने की बात केवल हवाहवाई है जैसे कि भगवान ही हमें चलाता है, वही फसल पैदा करता है, वही कारखानों से सामान बनवाता है, वही सर्तशक्तिमानी. मोदीशाह और भगवान दोनों कहते हैं कि हमें पूजो, हमारी हां में हां मिलाओ वर्ना सरकार बनाना तो दूर तुम जीने लायक भी नहीं रहोगे.

देश का किसान नए कानूनों से परेशान है और देश पर धरनों पर बैठा है पर ये भगवान कहते हैं कि पुराणों में लिखा है कि तपस्या तो वर्षों करनी पड़ती है तब भगवान सुनते हैं. देश का मजदूर बेकारी से परेशान है. उसे कोरोना वायरस से डरा कर जब सैंकड़ों मील दूर चला कर घर भेजा गया तो रास्ते में डंडे पड़े, खाना नहीं मिला. पर चुनावों में मोदीशाह पैसा बरसा रहे हैं. उन का कहर तो दूसरी पाॢटयों पर टूट रहा है जैसा छोटे व्यापारियों, मजदूरों, घरवालियों (नोटबंदी और गैस के दाम बढ़ा कर) गिरता है.

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भारत जैसे विशाल देश में तरहतरह की पाॢटयां होनी चाहिए ताकि हर तरह के लोग अपनी बात कह सके और सरकारी फैसलों को अपने हिसाब करवाने की कोशिश कर सकें और भारतीय जनता पार्टी का सपना है कि देश में ऐसा राज हो जिस में केवल एक पार्टी हो, एक शासक हो, एक नेता हो, एक की सुनी जाए. एक ईश्वर है, उसी में आत्मा है का पाठ सुनने और सुनाने वाले अब एक का ही मंदिर चाहते हैं या एक ही ताकत को सारे मंदिरों का मालिक बना देना चाहते हैं.

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