मराठी फिल्म समीक्षाः

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः पुष्करजोग,आनंदपंडित व मोहननाडर
निर्देषकः प्रियंकातंवर
कलाकारः पुष्करजोग,अमृता खानविलकर,सुआनली योंग,अर्चना मालुता पुरिया,वंदना गुप्ते,सोनाली खरे,संजय यादव व अन्य.
अवधिः एक घंटा 39 मिनट
ओटीटीप्लेटफार्म: अमैजान प्राइम वीडियो
भाषा : मराठी,लेकिन अंग्रेजी सबटाइटल के साथ
फिल्म‘‘वेल डन बेबी‘‘ आधुनिक युग में विदेश में रह रहे एक युवा आधुनिक भारतीय दंपति की यात्रा है,जो अपनी शादी के रिश्ते को सफल बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. हालात तलाक तक पहुॅच चुकी है.पति पत्नी एक साथ कौं सलिंग भी ले रहे हैं.मगर नियति वश पत्नी के गर्भवती होते ही सब कुछ बदल जाता है. फिर अपने आप में अनुभवों, संघर्षों और चुनौतियों की एक नई यात्रा शुरू होती है. फिर दोनो सही मायनो में रिश्ते की अहमियत को समझने के साथ पैरेटिंग की भी ट्रेनिंग लेकर सफल जीवन जीने की दिशा में अग्रसर होते हैं.दोनों की समझ में आता है कि वैवाहिक रिश्ते की मधुरता तभी तक कायम रहती है,जब तक पति पत्नी एक दूसरे की अच्छाई को देखते हुए एक दूसरे को समझने का प्रयास करते हैं.इतना ही नही फिल्म इस बात पर भी सवाल उठाती है कि बिना योजना के गर्भधारण करना क्या समस्याएं पैदा करता है?

कहानीः
फिल्म‘‘वेल डन बेबी’’की कहानी लंदन में रह रहे मराठी भाषी युवा दंपति आदित्य (पुष्कर जोग )और मीरा(अमृता खानविलकर)के  इर्दगिर्द  घूमती है.आदित्य मनोवैज्ञानिक डाक्टर है,जब कि मीरा विज्ञान में पीएचडी कर रही हैं.इनके साथ मीरा की माॅं निर्मला(वंदना गुप्ते )भी रहती हैं,जो कि आदित्य व मीरा के साथ गोंद की तरह चिपके रहते हुए इन की जिंदगी में दखल देती रहती हैं.इस वजह से भी आदित्य व मीरा के रिश्तों में कड़ुवाहट आती है.दोनो अपने रिष्ते को बचाने के लिए कौंसलर(संजय यादव) के पास जाते हैं,वहां भी निर्मला साथ मे रहती है.जबकि आदित्य व मीरा के बीच प्यार खत्म नही हुआ है.

इसी बीच एक दिन पता चलता है कि मीरा गर्भवती है.तब मीरा,आदित्य से कहती है कि उसके अंदर असुरक्षा की भावना बचपन से ही है.जब उस की उम्र महज चार साल की थी,तभी उसके पिता का देहांत हो गया था.उसकी मां ने उसे सिंगल मदर की तरह पाला है.पर वह अपने बच्चे को सिंगल मदर की तरह नहीं पाल सकती.आदित्य व मीरा इस बात पर सहमत हो जाते हैं कि मीरा गर्भपात करवाएगी.मीरा अस्पताल जाकर चेकअप भी करवा लेती है.मगर एक दिन जब मीरा व आदित्य साथ में होते ही उस वक्त एक दृष्य देखकर आदित्य पिता बनने का निर्णय लेते हुए मीरा से कह देता है कि उन्हे तलाक नही लेना है.मीरा भी सहमत हो जाती है.इस निर्णय से आदित्य के पिता(राहुल अवस्थी) और आदित्य की माॅं(राधिकाइंगले )के साथ निर्मला भी खुश होते हैं.उसके बाद कौंसलिंग के साथ ही पैरेंटिंग की ट्रेनिंग भी शुरू हो जाती है.इसी बीच ‘डिजाइनर बेबी‘की भी चर्चा होती है.अंततः मीरा एक बेटी को जन्म देती है.और इस बच्ची की वजह से टूटने के कगार पर पहुॅच चुकी शादी टूटने से न सिर्फ बचती है बल्कि दोनों को बहुत कुछ समझ में आता है.एक बात यह भी उभर कर आती है कि एक बच्चा,माता-पिता को जन्म देता है.

लेखन व निर्देषनः
कहानी,पटकथा व निर्देषन इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ियां हैं.सिनेमा का काम पहले लोगों का मनोरंजन करना है.मगर लेखक व निर्देषक ने इस फिल्म में हर दंपतिको यह शिक्षा देने का प्रयास किया है कि पत्नी के गर्भधारण करने पर पति व पत्नी को क्या करना चाहिए.एक औरत का बड़ी सहजता से गर्भपात करने का निर्णय लेने को भी सही नही ठहराया जा सकता.शायद फिल्मकार को बाद में अहसास हुआ होगा कि यह तो नारी शक्ति का अपमान है,तो कहानी में अजीबो गरीब बदलाव लाकर गर्भपात का निर्णय बदला गया.दूसरी बात मीरा की माॅं निर्मला यदि अपनी बेटी व दामाद के सुखमय जीवन के लिए योगदान देने का प्रयास कर रही है,तो इसमें वह गलत कैसे हो गयी? शायद लेखक व निर्देषक दोनो ही भटके हुए है.अथवा वह किसी एजेंडे के तहत इसे बना रहे थे,पर फिर भारतीय दर्शकों की पसंद नापसंद की बात ध्यान में आते ही पूरी तरह से भटक गए.किसी भी इंसान की जिंदगी में उसकी बचपन से युवा वस्था तक कदम कदम पर उसकी बेहतरी के लिए सलाह देने वाले माता पिता उसके युवा होते ही सलाह देने लायक नही रह जाते,यह सोच ही गलत है.फिल्म में काफी कुछ ऐसा है,जो कि मूल कथानक के साथ मे ल  नहीं  खाता.फिल्म की कमजोर कड़ियों में एडीटिंग,लाइटिंग व कैमरावर्क का भी समावेष है.

अभिनयः
जहां तक अभिनय का सवाल है तो आदित्य के किरदार में पुष्कर जोग ने शानदार अभिनय किया है.मीरा के किरदार में अमृृता खान विलकर ने अपने आपको एक उत्कृष्ट अदाकारा के रूप में पेश किया है.मीरा की कुंठाओं,उसकी दुविधाओं,उसके अंदर की असुरक्षा की भावनाकेसाथ जीवन में सब कुछ सामान्य हासिल करने की इच्छाओं को अपने उत्कृष्ट अभिनय से अमृता खान विल करने पर दे पर उकेरा है.अपनी बेटी मीरा के हित के बारे में ही सोचने वाली माॅं और एक ब्लाॅगर निर्मला के किरदार को वंदना गुप्ते ने अच्छे ढंग से साकार किया है.

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