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एक पखवाड़े से द्रोपा अपनी बेटी अवनी के साथ मायके में रह रही है. अवनी को नानी का घर बहुत पसंद है. अवनी ने मां द्रोपा से प्रौमिस लिया था, ‘मम्मा, गरमी की छुट्टियों में हम नानी के घर जरूर जाएंगे.’

‘तुम तो हर गरमी में वहां जाती हो, अब की कोई खास बात है?’ द्रोपा के यह पूछने पर अवनी बोली थी, ‘हां, नानू ने दीवार वाला बड़ा टीवी लिया है. बड़े टीवी में प्रोग्राम देखने का मजा कुछ और है.’

द्रोपा इतने दिन वहां रुकना नहीं चाहती. वहां से उस का औफिस काफी दूर पड़ता. आनेजाने में 2 घंटे बरबाद होते. परंतु बच्चे की जिद के आगे वह क्या कह सकती है? यहां आने के बाद बेटी की हर जिद नानीनानू पूरी करते हैं. यहां टीवी सारा दिन चलता है और अवनी उस से चिपकी रहती है.

आज संडे है. अवनी अपने नानानानी के साथ हौल में टीवी देख रही है. द्रोपा रसोई में रोटियां सेंक रही है. हौल से आती तीनों की आवाजें उस के कानों में पड़ रही हैं. जानती है, कोई डांस प्रोग्राम टीवी पर चल रहा होगा. अवनी को डांस का बड़ा शौक है. हूबहू नकल करती है चाहे कोई भी डांसर हो या डांस हो. उस के लिए कोई भी पोज मुश्किल नहीं है. जैसे ही डांस शुरू होता है उस का भी डांस शुरू हो जाता है. उस का डांस देख कर नानीनानू उत्साह बढ़ाते हैं, ‘‘शाबाश बेटा, एकदम सही पोज लिया है. यह तो पक्की नृत्यांगना है. माधुरी-रेखा तो इस के आगे पानी भरती हैं…’’

द्रोपा सबकुछ सुन रही है. मां ने कई बार उसे कहा भी है, ‘इसे किसी अच्छी एकैडमी में डाल दे. अभी से सीखना शुरू करेगी तो दोचार साल में स्टेज परफौर्मैंस देने लगेगी. फिर टीवी प्रोग्राम में भी सलैक्शन आसानी से हो जाएगा.’

अवनी के नाना तो एक ही राग अलापते हैं, ‘‘शहर में कितने नामीगिरामी कोरियोग्राफर हैं. किसी एक को चुन ले. उसी की शागिर्दी में यह सब सीख जाएगी.’’ यह सुन कर अवनी उत्साहित होती है. अकसर पूछती है, ‘‘मम्मी, डांस स्कूल में कब एडमिशन कराओगी? मु?ो तो डांस सीखना है और मैं जरूर सीखूंगी. नानू, आप मम्मी को सम?ाते क्यों नहीं? मेरी तो कितनी सारी सहेलियां राजीव सर से डांस सीखती हैं. मु?ो भी राजीव सर से डांस सीखना है.’’

बेटी की बात सुन कर द्रोपा कोई जवाब नहीं देती. लगता है वह कुछ सुन ही नहीं रही, सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकलता जा रहा है.

एकदो बार उस ने मांपापा को फुसफुसाते सुना है, ‘यह द्रोपा को क्या हो गया है, हमारा बारबार डांस सिखाने के लिए स्कूल में भेजने के लिए कहना इसे बुरा लगता है. ठीक है भई, बेटी उस की है जो चाहे करे.’ परंतु द्रोपा के पिता जीवालाल मन ही मन पत्नी से कहते हैं, ‘नहीं रश्मि, तुम कुछ नहीं सम?ागी, छोड़ो सब.

‘चुपचाप तो वह शुरू से ही रहती थी परंतु पिछले 2-3 महीने से यों गुमसुम रहना अब सब को अखरता है. औफिस में सभी उस के स्वभाव पर टोकते हैं. कई बार उस के देवर और पति भी कह देते हैं, ‘तुम्हें देख कर लगता है जैसे तुम्हें चुपचाप काम करने के लिए बनाया गया है. न बोलना, न बतियाना और न किसी से कोई सवाल पूछना.’

औफिस में उस की दोस्ती सिर्फ शिप्रा से है. बस, उसी से बातें कर लेती है. गरमी की छुट्टियां खत्म होने वाली हैं. पति अनूप 2-4 दिनों में उसे और अवनी को ले जाएंगे. द्रोपा के लिए तो जैसा मायका वैसा ससुराल. पर जब से अवनी को पता लगा है कि पापा ने नई गाड़ी ली है, खूब खुश है.

‘‘हम तो अपनी नई गाड़ी में दादी के घर जाएंगे.’’ सारा दिन उस के लिए डांस या नई गाड़ी के अलावा कोई बात करने को विषय ही नहीं है. और द्रोपा सारा दिन बोर होती है, खासकर, जिस दिन छुट्टी हो.

रोटियां सेंक कर वह बालकनी में आ खड़ी हुई. दीवार पर उस के बचपन की एक फोटो लगी है जिस में वह कत्थक की ड्रैस में डांस कर रही है. तसवीर देखते ही यादों के पन्ने पलट गए. अपनी बेटी की तरह द्रोपा को भी डांस का बहुत शौक था. तब वह सिर्फ 6 वर्ष की थी. घर के सामने एक डांस स्कूल था जो आज भी है. यह बात दूसरी है कि वह एक बहुत बड़ी एकैडमी में बदल गया है. प्रसिद्ध कोरियोग्राफर आज इस के डायरैक्टर हैं. यहां रोज बड़ीबड़ी गाडि़यों से सजीधजी लड़कियां उतरती हैं. उन के साथ उन की आया या मांएं होती हैं.

इसी स्कूल में 25 साल पहले भारती मैडम होती थीं. द्रोपा उन्हीं से डांस सीखती थी. फीस थी सिर्फ सौ रुपए. एक रोज भारती मैडम ने द्रोपा की मां को बुलाया और कहा था, ‘मैडम आप की बेटी बड़ी टैलेंटेड है. इसे एक अच्छे कोरियोग्राफर की एकैडमी में एडमिशन दिला दीजिए. इस क्षेत्र में यह बहुत आगे जा सकती है. सिविल लाइंस में प्रदीप नाम के एक कोरियोग्राफर की एकैडमी है. यह उस एकैडमी के लिए सही रहेगी. हां, उन की फीस कुछ ज्यादा है.’

‘कितनी फीस होगी?’ ‘2 हजार रुपए महीना.’ ‘2 हजार…?’ रश्मि के लिए 2 हजार रुपए हर महीने देना असंभव था. पास खड़ी द्रोपा ने मां के चेहरे के आतेजाते भाव देखे. भारती मैडम से 3 साल कत्थक सीखा और स्टेज शो में कितने ही इनाम पाए, याद नहीं. हां, मां का उस दिन का चेहरा आज तक याद है.

मां के चेहरे को देख कर वह सम?ा गई. यह सपना देखना भी गलत है. परंतु सपने तो सपने हैं, उन्हें देखने से कोई नहीं रोक सकता. क्योंकि एक आस होती है, शायद कि कभी पूरे भी हो जाएं.

घर आ कर मां ने मौका देख पापा से बात की थी. सुनते ही पापा क्रोध में चिल्लाए थे, ‘रश्मि, तुम्हारा तो दिमाग खराब है. 2 हजार रुपए. मैं इतने पैसे कहां से लाऊंगा, कभी सोचा भी है. अरे, इस फ्लैट की मासिक किस्त 7 हजार रुपए है, विजय की पढ़ाई के लिए बैंक से लोन लिया है, 4 हजार रुपए महीना उस का कटता है. ये दोनों लोन की किस्तें तो सैलरी हाथ में आने से पहले ही कट जाती हैं. पिछले महीने फ्रिज खरीदा, उस की भी किस्त 5 सौ रुपए है. अभी जो बोनस मिला था, उसे चुपचाप रख दिया कि जब दुकानों पर सेल लगेगी तो अपने लिए एक स्वैटर और बच्चों के लिए गरम कपड़े खरीदूंगा.

‘रसोई में मिक्सी नहीं है, तुम कई बार कह चुकी हो, घर में मेहमान आते हैं तो पड़ोसियों से मिक्सी मांग कर लाती हो. सब की रसोई में नएनए गैजेट्स हैं. उन की कमी के बारे में तुम ने कई बार कहा है. इन सब के लिए पैसा कहां से लाऊं? जबकि तनख्वाह सिर्फ 25 हजार रुपए है. जोड़तोड़ कर हमारी रोटी का इंतजाम होता है और तुम कहती हो, बेटी को डांस सिखाने के लिए 2 हजार रुपए फूंक दूं. परे मारो इस शौक को. देखो, सीधेसीधे इसे पढ़ने दो. इस के दिमाग में डांस सीखने का फुतूर मत डालो.’

परदे के पीछे खड़ी द्रोपा चुपचाप सबकुछ सुन रही थी. पापा का क्रोध कम नहीं हुआ था. ‘याद है, 10 साल से हम दिल्ली से बाहर घूमने कहीं नहीं गए. फिर इतनी महंगाई… लगता है घर का खर्च और किस्तों में सारा जीवन यों ही निकल जाएगा.’

पापा की आवाज भर्रा रही थी. परदे के पीछे खड़ी द्रोपा को यह सब सुन कर अच्छा नहीं लगा था. वह छोटी थी, परंतु सब सम?ाती थी. वह पापा को परेशान देख नहीं सकती. उस ने कस कर आंखें बंद कर ली थीं. मन कड़ा कर के निश्चय किया कि अब कभी डांस सीखने की जिद नहीं करेगी. लेकिन कोई यह तो बताए इन किस्तों में सपनों के लिए कोई किस्त क्यों शामिल नहीं है? उन को पूरा करने का जिम्मा किस का है. पता नहीं क्यों जी चाहा कि सामने टेबल पर रखा कांच का गिलास उठा कर किसी कोने में जोर से मारे. शायद सपने टूटने का दर्द थोड़ा कम हो जाए. सपने तो टूट ही गए, दर्द भी हौलेहौले चला जाएगा.

द्रोपा चुप और शांत रहने लगी थी. यह बात कोई नहीं जानता था सिवा पापा के. वही एक थे जो उस के चुप रहने का कारण जानते थे. जीवन जीने के लिए साधन जुटाने की इस होड़ में उस के सपनों को किस ने सेंध लगाई है. यह अपराधभाव जीवालाल के अंदर था लेकिन मजबूर थे कि जीविका पहले है, सपने बाद में आते हैं.

द्रोपा ने बीए, एमए किया और एक नौकरी पा ली. वह संतुष्ट थी. औफिस में काम करते हुए एक कलीग से दोस्ती हो गई. पहले थोड़ा घूमनाफिरना और फिर प्यारइकरार. कुछ दिनों बाद दोनों के परिवारों को पता चला और फिर बातचीत हुई. दोनों परिवारों को शादी से कोई गुरेज न था.

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