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उस का हौसला : हर कोई सुधा की परवरिश पर दोष क्यों दे रहा था- भाग 4

लेखिका -डा. के रानी

डिंपी राहुल के साथ बहुत खुश थी।अब सुधा भी अपनी नाराजगी भूल कर उन की खुशियों में शामिल हो गई लेकिन रमा को यह बात बहुत अखर गई थी कि डिंपी ने अपनी बिरादरी से बाहर जा कर जनजाति समाज से ताल्लुक रखने वाले राहुल से शादी की थी. उसे अपने खानदान पर बहुत गुरूर था।

डिंपी ने राहुल को अपना कर उस के खानदान के मान को ठेस पहुंचाई थी जब कभी रमा इस बारे में सोचती तो उसे मन ही मन बहुत परेशानी होती.

डिंपी की शादी को पूरे 3 बरस हो गए थे। आज भी घर पर रमा से मिलने जो भी रिश्तेदार आता वह किसी न किसी बहाने उस का जिक्र जरूर छेड़ देता.

दोपहर में रमा के मामा आए थे। उन्होंने भी परेश और डिंपी को ले कर रमा को काफी कुछ कहा. वह चुपचाप रही. कुछ बोल कर वह अपनी खीज मामा के सामने नहीं उतारना चाहती थी लेकिन जब भी वह मायके जाती इस बात का जिक्र परेश भैया और सुधा भाभी से जरूर कर देती। रमा की जलीकटी बातें वे एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते.

मामाजी के जाने के बाद रमा के दिमाग में बहुत देर तक मायके की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमती रहीं और काफी समय तक वहां भटकने के बाद वह वर्तमान में लौट आई थी।

अमन उसे आवाज दे रहे थे,”कहां हो रमा? याद है, आज एक शादी के रिसेप्शन पर जाना है.”

“मुझे याद है लेकिन अभी तो उस में बहुत समय है,” कह कर रमा उठी और शादी में जाने की तैयारी करने लगी।

सारी पुरानी बातों को झटक कर वह तैयार होने में व्यस्त हो गई। रात के 8:00 बजे दोनों घर से निकले। संयोग से वैडिंग पौइंट में उन की मुलाकात सब से पहले परेश भैया और सुधा भाभी से हो गई।

रमा ने पूछा,”आप कब आईं भाभी?”

“बस अभी आई हूं। चलो, पहले दूल्हादुलहन को आशीर्वाद दे दें फिर आराम से बैठ कर बातें करेंगे,” कह कर सुधा और रमा स्टैज की ओर बढ गए.

ग्रुप फोटो के बाद वे नीचे आए और एक किनारे बैठ गए। तभी वहां पर डिंपी और राहुल भी आ गए. उन्हें देख कर रमा बुरी तरह चौंकी. दोनों ने बढ़ कर बुआ का अभिवादन किया। बदले में रमा ने सिर पर हाथ रख कर उन्हें शुभकामनाएं दीं.

“तुम कब आईं?”

“कल रात आई थी और कल सुबह वापस जाना है। मम्मीपापा के कहने पर हम यहां आ गए,” बुआ के तेवर देख कर डिंपी ने अपनी सफाई दी.

रमा के चेहरे को देख कर साफ झलक कहा था कि उसे डिंपी और राहुल का इस तरह आना अच्छा नहीं लगा था.

“भाभी आप ने बताया नहीं?”

“हम अभी तो मिले हैं रमा बात करने की फुरसत कहां लगी जो तुम्हें घर के बारे में कुछ बताती, ” सुधा ने कहा.

राहुल के आगे बढ़ते ही रमा बोली,”सच में भाभी आप का दिल बहुत बड़ा है.”

“बच्चों के लिए दिल बड़ा रखना पड़ता है रमा। उन की खुशी से बढ़ कर हमारे लिए और कोई खुशी नहीं है,” बातों का रूख अपनी ओर होता देख डिंपी ने वहां रुकना ठीक नहीं समझा और वह बुआ और मम्मी के बीच से हट कर दूसरी ओर बढ़ गई.

डिंपी को जाते देख कर परेश ने अंदाजा लगा लिया कि रमा जरूर उसे आज फिर कुछ न कुछ सुनाने से बाज नहीं आएगी। वे झट से रमा के पास पहुंच गए और बोले,”मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था रमा.”

“क्यों भैया?”

“मेरे साथ आओ. आज मैं तुम्हें एक बहुत खास व्यक्ति से मिलाना चाहता हूं.”

“किस से भैया?”

“तुम खुद ही देख लेना.”

परेश के आग्रह पर रमा उन के साथ चली गई। सुधा भी डिंपी के साथ आ गई। परेश ने रमा को दीपक के सामने खड़ा कर दिया।

“कैसी हो रमा?” दीपक ने पूछा.

बरसों बाद उसे अचानक यों अपने सामने देख कर रमा को अपनी आंखों में विश्वास नहीं हुआ.

“तुम अचानक यहां?”

“अपने औफिस के सहयोगी की बेटी की शादी में आया हूं। भाई साहब को देख कर मैं ने तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने तुम से ही मिला दिया.”

“तुम भाई साहब को कैसे जानते हो? मैं ने तो तुम्हें कभी उन से नहीं मिलाया…”

“जरूरत इंसान से सब कुछ करा लेती है रमा। बस यही समझ लो, “कह कर दीपक ने इस बात को यहीं पर खत्म कर दिया।

वे दोनों बातें करने लगे. पुरानी यादों को ताजा कर के दोनों ही भावुक हो गए थे.

दीपक और रमा दोनों ग्रैजुएशन में एकसाथ पढ़ते थे। रमा ब्राह्मण परिवार से और दीपक राजपूत खानदान से ताल्लुक रखते थे। दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करते थे।

दीपक ने उसे जताया भी था,’रमा, मुझे तुम बहुत पसंद हो.’

लेकिन रमा अपनी जबान से कभी उसे कह नहीं पाई कि वह भी उसे बहुत चाहती है। दीपक की दिली इच्छा थी कि वे दोनों अपनी जिंदगी एकसाथ बिताएं। उस ने रमा से बहुत आग्रह किया कि वह इस सचाई को स्वीकार कर ले लेकिन समाज के डर से रमा अपनी भावनाओं को कभी इजहार ही नहीं कर पाई।

दीपक ने उसे समझाया,’हम कुछ गलत नहीं कर रहे हैं रमा तुम चाहो तो हम एक नई जिंदगी का आगाज कर सकते हैं.’

‘तुम तो मेरी पारिवारिक परिस्थितियों को जानते हो। बाबूजी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे,’रमा हर बार एक ही बात दोहरा देती।

वह जानती थी कि बाबूजी के सामने उस की पसंद का कोई मोल नहीं होगा।

दीपक भी इतनी आसानी से हार मानने वाला ना था। रमा को पाने के लिए वह कुछ भी कर सकता था। बहुत सोचसमझ कर उस ने अपनी इच्छा परेश भाई साहब से साझा की थी।

परेश ने भी अपनी मजबूरी बता दी थी,’दीपक, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छे लड़के हो पर इस बारे में मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’

‘कोई तो रास्ता तो होगा।’

‘एक ही रास्ता है। यदि रमा बाबूजी के सामने अपनी पसंद का इजहार करे और अपने निर्णय पर अड़ी रहे तो हो सकता है बाबूजी मान जाएं।’

‘आप को लगता है कि रमा ऐसा करेगी?’

‘तुम उस से बात करके तो देखो। हो सकता है कि उस पर कुछ असर हो जाए,’परेश ने समझाया।

परेश दीपक की भावनाओं की बड़ी कद्र करते थे। उस ने समझदारी दिखाते हुए रमा से पहले उन्हें विश्वास में लिया था।

परेश के कहने पर दीपक ने अपनी भावनाओं का इजजहार रमा के सामने कर दिया था,’रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और पूरी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूं।’

‘ऐसा नहीं हो सकता दीपक। बाबूजी कभी नहीं मानेंगे.’

‘तुम एक बार कोशिश कर के तो देखो.’

‘मैं अपने बाबूजी को अच्छी तरह जानती हूं. वह बिरादरी से बाहर मेरी शादी के लिए कभी तैयार नहीं होंगे.’

‘रमा, मेरी खातिर एक बार फिर से सोच लो। यह हम दोनों की जिंदगी का सवाल है.’

‘दीपक, बाबूजी को बेटी से ज्यादा अपनी इज्जत प्यारी है। वह बेटी का दुख तो बरदाश्त कर सकते हैं पर इज्जत खोने का भय उन्हें जीने नहीं देगा.’

दीपक ने उसे बहुत समझाया लेकिन रमा परिवार के खिलाफ जा कर शादी के लिए तैयार नहीं हुई। दीपक ने यह बात परेश भाई को बता दी थी।

‘दीपक, मैं रमा का साथ जरूर देता यदि वह खुद अपना साथ देने के लिए तैयार हो जाती। मैं मजबूर हूं,’कह कर परेश ने दीपक को समझाया.

उस के बाद से वह शहर छोड़ कर ही चला गया। रमा के दिल में दीपक से बिछड़ने की बड़ी कसक थी पर वह किसी भी कीमत पर बगावत करने के लिए तैयार न थी।

बाबूजी ने अपनी बिरादरी में अच्छा लड़का देख कर अमन से उस की शादी करा दी थी। धीरेधीरे रमा के दिल से दीपक की यादें धूमिल सी हो गई थीं. आज वह सब फिर से ताजा हो गई। परेश भाई के आ जाने से वे दोनों अतीत से बाहर आ गए।

“दीपक, तुम ने अपनी घरगृहस्थी बसाई या नहीं?” परेश ने पूछा।

“गृहस्थी तो तब बसती जब आप मेरा साथ देते,” दीपक हंस कर बोला।

तभी किसी ने दीपक को आवाज लगाई और वह उन से विदा ले कर चला गया। दीपक की बात सुन कर रमा आसमान से जमीन पर गिर पड़ी। उस के चेहरे का रंग उड़ गया,’तो क्या, भाई साहब उस के बारे में सबकुछ जानते थे…’

रमा की हालत से परेश भी अनभिज्ञ ना थे। उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले,”जो कुछ तुम ने नहीं बताया मुझे वह सब दीपक ने बता दिया था। डिंपी में मुझे हमेशा तुम्हीं नजर आती रहीं रमा। बस, अंतर इतना था कि डिंपी में साहस के साथ बात मनवाने का हौसला था। उस ने बड़ी हिम्मत से सारी परिस्थिति का मुकाबला किया। आज हम सब खुश हैं। मुझे उस के निर्णय पर गर्व है। काश, तुम भी इतनी हिम्मत दिखा पाती…”

“भाई साहब, जो हो गया अब उस पर क्या पछताना… शायद वक्त को यही मंजूर था,”रमा सिर झुका कर बोली.

इस समय उस में इतना साहस ना था कि वह भाई साहब से गरदन उठा कर बात कर पाती। आज वह अपनेआप को डिंपी के सामने बहुत छोटा महसूस कर रही थी। किसी तरह रमा ने भाई के साथ खाना खाया और भाभी और डिंपी से मिले बगैर घर वापस लौट गई।

अमन महसूस कर रहे थे कि रमा आज बहुत चुपचुप सी है।

“क्या हुआ रमा?”

“कुछ नहीं.”

“लगता है, डिंपी के कारण तुम्हारा मूड खराब हो गया है,”अमन ने झिझकते हुए कहा।

उसे डर था कि कहीं डिंपी का नाम सुन कर रमा भड़क न जाए।

“नहीं ऐसी बात नहीं। उसे देख कर मुझे भी अच्छा लगा। अब सोचती हूं कि मेरी सोच कितनी संकुचित थी।”

“ऐसी बात सोच कर मन छोटा न करो।”

“इरादा पक्का हो तो इंसान एक दिन सब को मना ही लेता है। डिंपी ने यही सब तो किया. कितने लोग ऐसा कर पाते हैं,” कह कर रमा ने गहरी सांस ली।

परेश भैया के कहे हुए शब्द अभी तक उस के दिमाग में घूम रहे थे।
‘सच में भैया कितने महान हैं,’ वह बुदबुदाई।

आंसू की 2 बूंदें उस की आंखों के कोरों पर अटक गई, जिसे वह बड़ी सफाई से अमन से छिपाने की कोशिश करने लगी।

विश्वास का मोल : आशीष को अपने पैदा होने पर क्यों पछतावा हो रहा था – भाग 2

लेखिका-रेणु दीप

रूपलावण्य में अति सुंदर  झरना हिंदी साहित्य से एमए पास, खासी मेधावी लड़की थी. लेकिन जहां चिन्मयानंद की बात आती, हमें लगता कि उस के दिमाग के सारे कपाट बंद हो गए हों. मैं जब भी उस से मिलती, उसे सम झाती कि वह क्यों एक अनपढ़जाहिल युवक से शादी कर जिंदगी बरबाद करने पर तुली है. भजनों के 2-3 कैसेटों के अलावा जिंदगी में उस की कोई उपलब्धि नहीं थी. शिक्षा के नाम पर वह कोरा था. उस के कहे अनुसार स्वाध्याय से कुछ धार्मिक पुस्तकों का ज्ञान उस ने जरूर प्राप्त किया था पर उच्चशिक्षा प्राप्त  झरना कैसे एक अनपढ़ के साथ जिंदगी बिताएगी, यह मेरी सम झ के बाहर था.

मैं ने और मेरे भाइयों ने  झरना को हर संभव दलीलें दे कर सम झाने की कोशिशें की थीं कि चिन्मयानंद के साथ शादी कर वह सारी जिंदगी पछताएगी. लेकिन हमारी दलीलों का उस पर कोई असर नहीं होता. वह यही कहती कि चिन्मयानंद मृदुभाषी, सम झदार, सरल स्वभाव का कलाकार युवक है और अगर उस ने उस से शादी नहीं की तो वह किसी और युवक से शादी कर कभी खुश नहीं रह पाएगी.

दीदी अपनी बेटी के इस फैसले से बहुत खुश थीं. वे हम से यही कहतीं कि इतनी पढ़ीलिखी मेरी बेटी आदमी की सही कद्र जानती है. किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होता, बस, आदमी अच्छा होना चाहिए. मेरी  झरना ने न जाने कौन से ऐसे अच्छे कर्म किए होंगे जो उसे इतना गुणी, धर्म में आस्था रखने वाला पति मिला है.

जब हम उन से पूछते कि  झरना से शादी कर चिन्मयानंद बिना किसी नियमित आय के अपनी गृहस्थी कैसे चलाएगा तो उन का जवाब होता कि, ‘उसे कमाने की जरूरत ही क्या है? हमारी इतनी जमीनजायदाद और संपत्ति आशीष और  झरना की ही तो है. हमारा किराया ही इतना आता है कि बच्चों को कमाने की जरूरत ही नहीं. चिन्मयानंद और  झरना तो बस भजन में लगे रहें, उन का घर तो हम चलाते रहेंगे.’

जब मैं ने दीदी से चिन्मयानंद के उन के घर में आ कर रहने की कैफियत जाननी चाही तो उन्होंने बताया था, ‘देख, लल्ली, मैं कितनी खुशहाल हूं कि इस जन्म में तो एक बेटाबेटी पा कर मैं धन्य हुई ही हूं. न जाने किन अच्छे कर्मों से मु झे मेरे पिछले जन्म का बेटा भी मिल गया है.

‘कोई विश्वास नहीं करेगा लल्ली, लेकिन चिन्मयानंद जब पहली बार मेरे दरवाजे पर आया तो उसे देख कर मेरी आंखों से आंसुओं की  झड़ी इस कदर लगी कि क्या बताऊं. खुद उस की आंखों से भी खूब आंसू बहे. न जाने किन अच्छे कर्मों के प्रताप से वर्षों से बिछड़े हम मांबेटे दोबारा मिले. अब तू ही बता, अगर हम दोनों के बीच कोईर् रिश्ता नहीं होता तो क्यों हम दोनों की आंखें यों  झर झर बरसतीं?

‘मु झे देखते ही चिन्मयानंद के मुंह से शब्द निकले थे, ‘मां, तू मेरी पिछले जन्म की मां है. कितने दरवाजों पर ठोकरें खाने के बाद मु झे तुम से मिलने का मौका मिला है. अब इस जन्म में मु झे खुद से कभी दूर मत करना.’ इस लड़के को देखते ही मेरे मन में अथाह लाड़ का सागर हिलोरें मारने लगता है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि इस लड़के से मेरा जन्मजन्मांतर का रिश्ता है और इस जन्म में तो कोई मेरा व उस का रिश्ता नहीं तोड़ सकता.’

हम तीनों भाईबहन व हमारे मातापिता दीदी के घर चिन्मयानंद के अड्डा जमाने से बहुत ज्यादा परेशान हो गए थे और हमें डर लगता कि कहीं यह युवक कोई अपराधी न हो जो कभी भी घर के सदस्यों को कोई नुकसान पहुंचा कर फरार हो जाए. हम ने दीदी और जीजाजी को लाख सम झाने की कोशिशें की थीं कि यों किसी अनजान व्यक्ति को घर में आश्रय देना मुनासिब नहीं और वह कभी भी उन्हें किसी तरह का भारी नुकसान पहुंचा सकता है. हो सकता है चिन्मयानंद ने सम्मोहन विद्या का प्रयोग दीदी पर किया हो जिस से वे उस के मोहपाश में जकड़ गईं.

1-2 बार हम अपनी जानपहचान के एक बड़े पुलिस अधिकारी को भी दीदी के घर ले गए जिन्होंने चिन्मयानंद से बातें कीं. लेकिन वे भी उस से पीछा छुड़ाने में हमारी कोई मदद न कर सके. एक दिन हमारे सब से बड़े भाईर्साहब दादा किस्म के कुछ युवकों को ले कर दीदी के घर पहुंचे और उन्होंने चिन्मयानंद को घर से धक्के दे कर बाहर निकाल दिया था. लेकिन यह सब देख कर दीदी ने अपना सिर दीवार से मारमार कर बुरी तरह रोना शुरू कर दिया था, जिसे देख कर मजबूरन बड़े भाईसाहब को उन युवकों के साथ वापस लौटना पड़ा था.

दीदी के इस रवैए की वजह से चिन्मयानंद को उन के घर से किसी भी तरह निकाला नहीं जा सकता था और हम भाईबहन चिंतित होने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते थे. तभी चिन्मयानंद ने एक और गुल खिलाया. हमें सूचना मिली थी कि चिन्मयानंद और  झरना की शादी हो गई है.

दीदी के लगभग सभी रिश्तेदार चिन्मयानंद के खिलाफ थे. इसलिए इस शादी में दीदी ने अपने या जीजाजी के किसी भी संबंधी को यह दलील देते हुए नहीं बुलाया कि चिन्मयानंद को भीड़भाड़ बिलकुल पसंद नहीं है और वह सीधीसादी शादी चाहता है.

हमें तो विवाह की सूचना ही शादी के 2 दिनों बाद मिली. शादी की खबर मिलने पर हम भाईबहन सिर पीट कर रह गए थे. इस युवक का जो मुख्य उद्देश्य था, इस धर्मभीरु परिवार में पुख्ता घुसपैठ करना, सो वह पूरा कर चुका था. अब हम भी चुप बैठ गए थे. पर हम भाईबहन निरंतर इस आशंका से जू झते रहते कि न जाने कब वह घर उस अजनबी युवक के किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाए और आखिरकार हमारी आशंका निर्मूल नहीं निकली. उस की वजह से ही आज आशीष की जान खतरे में थी.

हम दिल्ली के लिए घर से निकलने ही वाले थे कि वहां से खबर आई कि आशीष अब नहीं रहा.

आशीष के मरने के बाद अब  झरना अपनी मां की अपार संपत्ति की अकेली वारिस होगी, जरूर चिन्मयानंद ने यही सोच कर आशीष की हत्या का मंसूबा बनाया होगा. हम घर वालों की इच्छा तो यही थी कि दिल्ली पहुंचते ही चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया जाए लेकिन हम सोच रहे थे कि क्या  झरना और दिल्ली वाली इस के लिए राजी भी होंगी?

लेकिन दिल्ली पहुंचने पर हमें कुछ दूसरा ही नजारा देखने को मिला. हमारे पहुंचने से पहले ही  झरना ने चिन्मयानंद को आशीष की हत्या के इलजाम में पुलिस के सुपुर्द कर दिया था और वह खुद आगे बढ़ कर पुलिस को बयान दे रही थी. हमें देखते ही वह कहने लगी, ‘‘मौसी, मैं बहुत शर्मिंदा हूं. मैं चिन्मयानंद के प्रेमाकर्षण में अंधी हो गई थी.

‘‘मु झे इस बात का तनिक भी एहसास नहीं था कि पिताजी की दौलत के लालच में चिन्मयानंद इतना अंधा हो जाएगा कि आशीष को रास्ते से हटा देगा. मैं तो उसे बहुत ही धार्मिक, सरल हृदय युवक सम झती थी. अब पाखंडी को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइए जिस से मेरे भाई की मौत का बदला लिया जा सके.’’

दूसरी ओर एकलौते बेटे की मौत के

गम में दीदी तो रोरो कर बेहाल हो गई थीं.

करवट-भाग 3 : किशोर ने स्कूल जाना क्यों छोड़ दिया

लेखकआर एस खरे

अगले दिन मैं ने दूसरी बैंच पर बैठने का प्रयत्न किया तो उस पर पहले से बैठते आ रहे छात्र ने यह कहते हुए उठा दिया था कि ‘अपनी सीट पर जा कर बैठो, दूसरे की सीट पर क्यों बैठ रहे हो?’

वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ कर सोचने लगा था  कि जब जमना आ कर बगल में बैठेगा और छू लेगा तो घर जा कर फिर से नहाना पड़ेगा. फिर निश्चय कर लिया था कि उस से साफसाफ कह दूंगा कि ‘थोड़ी दूर सरक कर बैठना, नहीं तो  तुम से छू जाने पर हमें घर जा कर फिर से नहाना पड़ेगा, तुम्हारी जाति मेहतर जो  है.’

उस दिन जमना स्कूल आया ही नहीं. पूरे समय उसी का ध्यान आता रहा. आया क्यों नहीं. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया. कितनी भारी अनाज से भरी टोकरी सिर पर रखे घरघर घूम रहा था. शाम को जब राधा रोटी लेने आएगी, तब उस से पूछूंगा कि जमना आज  स्कूल क्यों नहीं आया.

इंटरवल में सभी छात्र कक्षा से बाहर निकल गए थे. पर मैं अकेला बैंच  पर बैठा रहा था. बिना जमना के बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा था.  स्कूल की छुट्टी होने पर रास्तेभर जमना के बारे में ही सोचता रहा था कि आज स्कूल क्यों नहीं आया. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया.

घर पहुंच कर बुझे मन से मां को बताया था कि आज जमना स्कूल नहीं  आया था. आप शाम को जमना की मां से पूछना कि आज जमना स्कूल क्यों नहीं आया था. मां ने जब आश्वस्त किया था, तब मन को थोड़ी राहत मिली थी. मैं शाम होने का बेसब्री से इंतजार करता रहा.

शाम को राधा की आवाज सुनते ही मैं भी मां के साथ बाहर आ गया था. मां ने उस की टोकरी में रोटी डालते हुए पूछा था- ‘किशोर बता रहा था कि जमना आज स्कूल  नहीं गया. क्या हुआ उसे?’

कल दिनभर वजनी टोकरी सिर पर उठाए मेरे साथ घूमता रहा, तो गरदन की नस चढ़ गई थी. अब आराम है. कल से स्कूल जाएगा. कल जमना पूरे रास्तेभर किशोर की ही बातें करता रहा था. कह रहा था कि कक्षा के और बच्चे तो उस से दूरी बना कर  निकलते हैं, जैसे छू जाएगा तो उन का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा या पाप पड़ जाएगा. छोटेछोटे बच्चों के मन में न जाने किस ने हरिजनों के प्रति घृणा भर दी है.  जमना तो स्कूल ही छोड़ देता, यदि किशोर उस का साथी न होता. राधा के जाने के बाद मां काफी देर तक सोच में पड़ गईं थीं कि राधा जो आरोप दूसरे बच्चों के मांबाप पर लगा रही है, वह उस पर भी तो लागू होता है. उस ने भी तो किशोर को यही बताया है कि भंगी-मेहतर के छू जाने पर धर्म भ्रष्ट हो जाता है.

उस की तंद्रा तब टूटी थी जब अपनी संतुष्टि के लिए किशोर ने पूछा था, ‘मां, जमना को छूने से धर्म कैसे  भ्रष्ट हो जाता है.’

मां को तुरंत कोई जवाब नहीं सूझा था. फिर कुछ देर बाद बोली थीं- ‘ये लोग बहुत गंदा काम करते हैं, जैसे मैला उठाना, मरे जानवरों का चमड़ा उतारना, गटर साफ करना और ऐसे ही अनेक दुसरे काम.’

‘मां, अगर ये सब काम ये लोग बंद कर दें तो फिर इन्हें करेगा कौन? राधा कभी बीमार पड़ जाती है, और एक दिन नहीं आ पाती, तब शौचालय की कितनी दुर्गंध घरभर में फैल जाती है? आप राधा को डांट भी लगाती हैं कि जिस दिन न आ सको, तो किसी और को एवज में भेजा करो.’

मां फिर निरुत्तर हो गई थीं. सीधा उत्तर न देते हुए बोली थीं- ‘अब एकआध साल की और बात है, नगरपालिका सब के घरों में पक्के शौचालय बनवा रही है, तब मेहतरानी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.’

मेरी सभी शंकाओं का समाधान तो नहीं हो पाया था पर मैं सोचता रहा था कि मेहतर होने के कारण क्या जमना को भी बड़ा हो कर यह सब करना पड़ेगा?

अगले दिन जमना जब स्कूल आया तो रोज की तरह मुझ से सट कर बैठ गया. तब मैं ने थोड़ा सा खिसकते हुए कहा था- ‘तुम ने मुझे छू लिया, अब मुझे घर जा कर फिर से नहाना पड़ेगा और कपड़े भी धोने पड़ेंगे.’

जमना को पहले तो विश्वास नहीं हुआ था कि मैं सच बोल रहा हूं या मजाक कर रहा हूं पर जब इंटरवल में उस के लाए अमरूद मैं ने लेने से मना किया और कोशिश करने लगा कि उस की परछाई भी मेरी परछाई पर न पड़े, तब उसे विश्वास हो गया कि मैं भी दूसरे विद्यार्थियों के समान ही हूं जो उसे अछूत समझते हैं और उस की परछाई से भी बच कर रहना चाहते हैं.

जमना को मेरे इस व्यवहार से सदमा लगा था और वह एकदम से उदास हो गया था. हम दोनों की बोलचाल भी बंद हो गई थी. अगले दिन से जमना ने स्कूल आना बंद कर दिया था. जानकी मास्टर साब ने 2 दिनों बाद  मुझ से  पूछा था कि जमना क्यों नहीं आ रहा है, वह तो तुम्हारा पक्का साथी है. तुम्हें तो मालूम ही होगा.

मैं एकदम चुपचाप रह गया था और कोई जवाब नहीं दिया था.

चौथे दिन जमना अपने बापू के साथ स्कूल आया था. जानकी मास्साब  से काफी देर तक जमना के बापू बात करते रहे थे. जानकी मास्साब  उन्हें समझाते रहे थे. अंत में हार कर उन्होंने टी सी (स्थानांतरण प्रमाणपत्र) दे दी थी.

जमना मेरे व्यवहार से इतना क्षुब्ध था कि उस ने एक बार भी मेरी ओर नजर उठा कर नहीं देखा था. उस के चले जाने के बाद जानकी मास्टर साहब ने सभी बच्चों को जम कर डांटा था कि सब से होशियार छात्र के साथ हम लोगों ने अस्पृश्यता का व्यवहार किया और इस कारण उसे स्कूल छोड़ना पड़ा.

जमना के इस तरह चले जाने के बाद मैं स्कूल में उदास रहने लगा था. घर में भी अनमना सा रहता. मां ने जब एक दिन सिर पर हाथ फेरते हुए प्यार से कारण पूछा था, तब मैं फफक कर रो पड़ा था. और उन्हें पूरी बात बताई थी कि कैसे जमना मेरे व्यवहार से दुखी हो कर स्कूल छोड़ कर चला गया. उस दिन मां भी दुखी हुई थीं और फिर उन्होंने ताउम्र कभी  मुझ से छुआछूत की बात नहीं की.

शाम को राधा बाई से मां ने पूछा था- ‘जमना ने स्कूल से टीसी क्यों कटा  ली?’

तब राधा ने जो उत्तर दिया था उसे सुन कर मां भी एकबारगी बेचैन हो उठी थीं.

‘जिज्जी, जमना से उस की कक्षा के बच्चे अछूत का व्यवहार करते थे. शुरू में तो उसे बहुत बुरा लगता था पर  धीरेधीरे अभ्यस्त हो गया था. कहता था कि एक किशोर ही  है जो उस का पक्का दोस्त है. और सगे भाई जैसा व्यवहार करता है. पर अचानक किशोर भी वैसा ही व्यवहार करने लगा जैसे और बच्चे करते थे. उस दिन से उस के दिल को बड़ी चोट पहुंची और कहने लगा कि उस स्कूल में नहीं पढ़ना. कल हरिजन सेवक संघ के सचिव जी घर आए थे. जमना को देर तक समझाते रहे थे. कह रहे थे अच्छा पढ़लिख जाओगे तो ये लोग तुम्हारे आगेपीछे घूमेंगे, तब न कोई जाति पूछेगा और न कोई छुआछूत मानेगा. उन्होंने जमना को मिशन स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए राजी कर लिया है.’

इस तरह जमना से किशोर का अलगाव तो हो गया पर सालों तक उसे उस की याद सताती रही. जब तक राधा मैला उठाने आती रही तब तक जमना की पढ़ाई के बारे में खबरें मिलती रहीं. फिर नगर पालिका द्वारा चलाए गए अभियान में पक्के शौचालयों का निर्माण हो गया, तो राधाबाई का आना भी बंद हो गया.

जमना से अगली मुलाकात इस तरह होगी, सोचा भी नहीं था. हमारे हायर सैकंडरी स्कूल और मिशन हायर सैकेंडरी स्कूल का क्रिकेट मैच आयोजित था. उस समय हम 11वीं कक्षा में पहुंच चुके थे और अपनेअपने स्कूल की क्रिकेट टीम में शामिल थे. मिशन स्कूल की टीम जब मैदान पर उतरी तो उस  टीम का कप्तान जमना था. दोनों टीम के खिलाड़ी जब एकदूसरे से हाथ मिलाते आगे बढ़ रहे थे, तब मैं उत्सुक था कि कब जमना मेरे पास आए और मैं उस से दो बातें कर लूं. उस दुखद घटना के लिए मैं माफी भी मांगना चाहता था. पर मेरे सामने जब वह आया तो उस ने मेरे बढ़े हुए हाथ को अनदेखा करते हुए अपने दोनों हाथ जोड़े और बिना कुछ कहे वह अगले खिलाड़ी की ओर बढ़ गया.  मैं समझ गया कि जमना अभी तक मुझ से नाराज है और मुझे माफ नहीं किया है.

मैच समाप्त होने पर एक बार मैं उस के पास जा कर बोला- ‘जमना, मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’

हम दोनों भीड़ से हट कर कुछ दूर  आ गए थे.

मैं ने सीधेसीधे उस को पूरी सही बात बता दी थी कि कैसे मां के कहने  पर मैं ने तुम से दूरी बना ली थी, जिस का पश्चात्ताप मुझे और मां दोनों को आज तक है. उस घटना के लिए मैं शर्मिंदा हूं और माफी मांगता हूं.

जमना की आंखें डबडबा आई थें. सधे शब्दों में उस ने बहुत बड़ी बात कह दी थी- ‘किशोर, यह अपमानजनक व्यवहार सिर्फ हमारे और तुम्हारे बीच की  अकेली घटना नहीं है. हरिजन सेवक संघ के नारायण प्रसाद जी बताया करते हैं कि पूरे देश में हरिजनों के साथ छुआछूत का ऐसा ही व्यवहार होता है. अधिकांश देशवासियों के मस्तिष्क में जाति को ले कर जो जहरीली भावना भरी हुई है, उसे समाप्त होने में कई वर्ष लग जाएंगे. यह कैसी विडंबना है कि जब तक किसी की जाति का पता नहीं रहता, तब तक तो उस से सभी सामान्य व्यवहार करते हैं, पर जैसे ही उस की जाति का पता चलता है, तो अचानक से व्यवहार बदल जाता है. इस का क्या अर्थ लगाया जाए कि व्यक्ति तब तक अछूत नहीं जब तक कि उस की जाति न बताई जाए.

‘नारायण प्रसाद जी कहते हैं कि छुआछूत की भावना  को समाप्त  करने के लिए गांधीजी और डा. अम्बेडकर ने जो प्रयास किए हैं, उन के परिणाम कुछ दशकों बाद दिखाई देना शुरू होंगे, जब पुरानी पीढ़ी की जगह नई पीढी स्थान लेगी. उन का यह भी मानना है कि जब वंचित वर्ग के लोग अच्छा पढ़लिख कर ऊंचे पदों पर आसीन होंगे, तब अस्पृश्यता अपनेआप समाप्त हो जाएगी.’

जमना के चले जाने के बाद मेरे  मस्तिष्क में उस की कही गई बातें देर तक गूंजती रही थीं, ‘व्यक्ति नहीं, जाति अछूत होती है.’

जमना से अगली मुलाकात 25 वर्ष पश्चात तब हुई थी जब लोकसभा के निर्वाचन के समय वह हमारे जिले में केंद्रीय पर्यवेक्षक बन कर आया था. मैं वहां लोक निर्माण विभाग में कार्यपालन यंत्री के पद पर पदस्थ था. सर्किट हाउस की प्रोटोकाल व्यवस्था मेरी जिम्मेदारी थी. मुझे बताया गया था कि आंध्र कैडर के आईएएस अधिकारी जे प्रसाद लोकसभा चुनाव की समाप्ति तक उच्च विश्रामगृह में रहेंगे. नाम से मैं ने अनुमान लगाया था कि आने वाले पर्यवेक्षक अवश्य तेलुगूभाषी होंगे.

पर्यवेक्षक के कार से उतरने पर जब मैं ने उन का स्वागत किया, तब चौंक पड़ा था. अरे, ये तो जमना है. वह जमना प्रसाद की जगह जे प्रसाद लिखने लगा था. उस रात एकांत में साथ में डिनर करते हुए उस ने अपने अब तक के सफर की लंबी कहानी सुनाई थी. उस की पत्नी भी आईएएस अधिकारी थी. मैं ने पूछना चाहा था कि क्या वे भी उसी की जाति की हैं पर मैं कोशिश कर के भी पूछने का साहस न कर सका था.

निर्वाचन उपरांत जाते समय उस ने कहा था- ‘बिहारी, नारायण प्रसाद जी कहा करते थे कि छुआछूत  तब समाप्त हो जाएगी जब पुरानी पीढ़ी की जगह नई पीढ़ी आएगी. पर मेरा अनुभव कहता है कि यह इतना आसान नहीं है. इस की जड़ें बहुत गहरी हैं. इस के समूल नष्ट होने में कम से कम 2 पीढ़ियां और लग जाएंगी.’

मैं सोचने लगा था कि उस के कथन में कितनी सत्यता थी. नई पीढ़ी का होते हुए भी मेरे मन में पहला विचार यही क्यों आया था कि जमना की पत्नी किस जाति की है.

जाते समय जमना ने अपने हाथों में मेरा हाथ लेते हुए आत्मीयता भाव से  थपथपाया था और आग्रह किया था कि मैं समय निकाल कर कभी हैदराबाद आऊं ताकि दोनों एकांत में बैठ कर अपने मन की बातें कर, बचपन की यादें ताजा कर सकें. मैं भी भावुक हो उठा था और मेरी आंखें भर आई थीं. ऐसा लगा था कि वह संकीर्णताओं की दीवार को ढहा कर विजय के शिखर पर जा बैठा है.

‘जमना प्रसाद’’ के साथ जुड़ी सारी दुश्वारियों को ‘जे प्रसाद’ ने ज्ञान, तप के बूते पर दूर भगा दिया था. दरअसल, जिंदगी जब करवट बदलती है, तो ऐसा ही होता है.

संगीत वीडियो के बढ़ने चलन से खुश हैं अनीशा मधोक

केन्या में जन्मी और तीन वर्ष की उम्र से अभिनय व गायन करती आ रही अनीशा मधोक किसी परिचय की मोहताज नही है.वह अंग्रेजी,पंजाबी, हिंदी, स्पैनिश, उर्दू,फारशी के साथ ही थोड़ा बहुत हि ब्रू भाषा की भी जानकार हैं.वह बैलेट और कत्थक का फ्यूजन नृत्य अपनी एक अलग शैली में करती हैं.वह बहुत जल्द फिल्म ‘‘बुलीहाई‘‘ से हॉलीवुड में कदम रखने रही हैं.जबकि गायन में वह नौवें स्थान पर हैं.उन्होंने प्रतिष्ठित गायक जसबीर जस्सी के नए संगीत वीडियो ‘‘दिलमंगड़ी‘‘ के फारसी बिट्स के लिए अपनी आवाज दी है.‘‘यूट्यूब’’पर मौजूद ‘‘दिलमंगड़ी‘‘, एक पंजाबी ट्रैक है,

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जिसे गोवा में फिल्माया गया गया था.
संगीत वीडियो के चलन की चर्चा चलने पर अनीशा मधोक ने कहा-‘‘मुझे लगता है कि संगीत वीडियो का युग वापस आ गया है और मैं इसे लेकर बहुत उत्साहित हूं.मुझे  याद है कि मैं पांच साल की उम्र में एमटीवी पर गाने देखती थी , लेकिन मेरी किशोरावस्था के दौरान, आमतौर पर फिल्मी गाने ही चर्चा में बने रहते थे.और अब मैं बहुत खुश हूं कि उद्योग एक बार फिर से इतने सारे संगीत वीडियो बना रहा है.‘‘

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जसबीर जस्सी के साथ काम करना युवा अभिनेत्री अनीशा मधोक के लिए सम्मान की बात थी,जसबीर जस्सी के साथ काम करने से वह अपनी पुरानी यादों में भी खो गयी थीं.वह कहती हैं-‘‘मैं बहुत उत्साहित हूं कि मुझे प्रतिष्ठित गायक जसबीरजस्सी के साथ शुरुआत करने का मौका मिला,जिनके लिए मैं एक गायक और रैपर के रूप में मुझ पर विश्वास करने के लिए बहुत आभारी हूं. मुझे याद है कि उनका गीत ‘दिल ले गई कुड़ी‘ इतना लोकप्रिय था जब मैंने एक छोटी बच्ची थी.हर शादी में वह गाना बजता था, और संगीत वीडियो काफी प्रसिद्ध था.

मुझे  अपने नवीनतम संगीत वीडियो मेंप्रदर्शन करके अपने बचपन को फिर से जीने का मौका मिलता है.’’

Randeep Hooda को मायावती पर टिप्पणी करना पड़ा भारी, UN के ब्रांड एंबेसडर पद से हटाया गया

फिल्म राधे ओर मोस्ट वांटेड भाई में अपने शानदार किरदार को निभा चुके रणदीप हुड्डा अपने ही दिए गए बयान में फंस गए हैं. एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें रणदीप हुड्डा बहुजन समाजवादी पार्टी की प्रमुख मायावती पर वह तंज कसते नजर आ रहे हैं.

वीडियो सामने आने के बाद गुस्साए लोग उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं. वहीं कुछ लोगों का ये मानना है कि रणदीप हुड्डा को मायावती से माफी मांगनी चाहिए. इस बयान के आते ही यूएन ने रणदीप हुड्डा को ब्रांड एंबेसडर पद से हटा दिया है.

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फरवरी 2020 से रणदीप हुड्डा जंगली प्रवासी जानवरों के लिए ब्रांड एंबेसडर के तौर पर काम कर रहे थें. ऐेसे में यूएन ने रणदीप हुड्डा को जोरदार झटका दे दिया है. सीएमएस की ऑफिशियल बेवसाइट ने अपना बयान जारी किया है.

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इस बयान में कहा गया है कि सीएमएस सचिवालय को रणदीप हुड्डा कि कही गई बात आपत्तिजनक लग रही है. आगे उन्होंने कहा है कि अब रणदीप हुड्डा संयुक्त राष्ट्र को तौर पर काम नहीं कर सकेंगे. बता दे कि रणदीप हुड्डा का वायरल हो रहा वीडियो 9 साल पुराना है.

 

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इस वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि रमदीप हुड्डा मायावती पर कमेंट करते नजर आ रहे हैं. साल 2012 में एक इवेंट के दौरान रणदीप हुड्डा ने यह बात कही थी. यह वीडियो सिर्फ 43 सेकेंड का है अब इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है.

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हालांकि रणदीप हुड्डा का किसी तरह का कोई बयान सामने नहीं आया है. सभी लोग कयास लगा रहे हैं कि रणदीप हुड्डा इस पर अपनी क्या प्रतिक्रिया देंगे.

Hina Khan और Shaheer Sheikh के म्यूजिक वीडियो का टीजर रिलीज, फैंस ने दिया ढ़ेर सारा प्यार

पिता के मौत के बाद से अब हिना खआन की जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है. कुछ समय पहले ही हिना खान ने अपने अपकमिंग म्यूजिक वीडियो का टीजर शेयर किया था. जिसमें हिना खान के साथ उनके दोस्त शाहिर शेख नजर आ रहे थें.

इस वीडियो का टीजर शेयर करते हुए हिना खान ने लिखा था कि वह अपने फैंस को एक शानदार तोहफा देने वाली हैं. इससे कुछ समय पहले ही हिना खान को शाहिर शेख के साथ मस्ती करते कश्मीर में देखा गया था. तस्वीर देखने के बाद फैंस कयास लगा रहे थे कि हिना खान और शाहिर शेख साथ में काम करने वाले हैं.

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इस म्यूजिक वीडियो में दोनों को खूब सारा प्यार मिल रहा है. दोनों के फैंस ढ़ेर सारा प्यार देते हुए नजर आ रहे हैं. बता दें कुछ बीते महीने ही हिना खान के पिता का देहांत हो गया है. जिसके बाद से हिना खान काफी दिनों तक अपने फैंस के सामने नहीं आई थी लेकिन समय के साथ हिना धीरे- धीरे अपने जीवन में आगे बढ़ रही हैं.

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हिना खान अपने पापा के सबसे ज्यादा करीब थी, वह आए दिन सोशल मीडिया पर अपने पापा के साथ नए-नए वीडियोज शेयर करती रहती थी. लेकिन जिस दौरान हिना के पापा कि डेथ हुई वह उस समय अपने काम के सिलसिले में कश्मीर गई हुई थी. जहां उन्हें अपने पापा के मौत की खबर का पता लगा. जिसे जानकर वह काफी ज्यादा दिनों तक अफसोस करती रही कि आखिरी समय में वह अपने पापा के साथ क्यों नहीं थी.

राजनीति के केंद्र में अब ‘ममता फैक्टर’

पश्चिम बंगाल में भाजपा को मिली करारी हार ने मानो विपक्ष को संजीवनी ला कर दे दी हो. इस चुनाव ने यह दिखा दिया कि यदि सही रणनीति, कौशलता, सू झबू झ व कड़ी मेहनत से चुनाव लड़ा जाए तो भाजपा के धनबल, दमखम, मीडिया और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जैसी चालों को बुरी तरह मात दी जा सकती है. यही कारण है कि विपक्ष के पास अगले चुनावों में ममता फैक्टर ही सब से अधिक काम आने वाला है जिस की शुरुआत यूपी फतह से संभव है.

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों में एक समानता रही है कि दोनों ही जगह भाजपा और उस के हिंदुत्व के मुद्दे को जनता ने नकार दिया. भाजपा के आक्रामक प्रचार से दोनों प्रदेशों की जनता प्रभावित नहीं हुई. जनता को अब यह एहसास हो गया है कि भाजपा केवल प्रचार के सहारे चुनाव जीतती है. जनता ने अब विरोधी नेताओं पर भरोसा करना शुरू कर दिया है. बंगाल में ममता बनर्जी में उसे उम्मीद दिखी तो उत्तर प्रदेश में उसे अखिलेश यादव में उम्मीद दिख रही है.

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ममता फैक्टर से उत्तर प्रदेश के नेता सीख ले सकते हैं. अगर उत्तर प्रदेश के नेताओं ने बंगाल चुनावों से सीख ली, तो भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव जीतना मुश्किल होगा. भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने के लिए ममता फैक्टर एक उम्मीद बन कर उभरा है. भाजपा को अजेय मान कर सभी नेताओं ने अपने शस्त्र डाल दिए थे जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने न केवल भाजपा का मुकाबला किया बल्कि भाजपा की ‘चतुरर्णी सेना’ को धूल चटा दी. राजनीति के जानकार अब मंथन कर रहे हैं कि ममता बनर्जी में क्या खास बात थी कि जिस की वजह से भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा.

पश्चिम बंगाल में जीत के बाद ममता बनर्जी पर पूरे विपक्ष की निगाह है. विपक्ष उन टिप्स को जानना चाहता है जिन से ममता ने भाजपा को हराया. आंकड़ों के आधार पर देखें तो 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा और ममता बनर्जी के बीच मुकाबला बराबरी का था. इस का आकलन 2019 के लोकसभा चुनाव में दोनों ही को मिलने वाले वोट प्रतिशत से किया जा रहा था. लोकसभा चुनाव में टीएमसी यानी तृणमूल कांग्रेस को लोकसभा की 22 सीटें मिली थीं और 43.3 प्रतिशत वोट मिले थे. भाजपा को 18 सीटें और 40.7 प्रतिशत वोट मिले थे.

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लोकसभा के परिणाम के आधार पर यह आकलन किया गया था कि विधानसभा में टीएमसी को 164 और भाजपा को 121 सीटों पर बढ़त हासिल होगी. 2016 के विधानसभा चुनाव के आधार को देखें तो टीएमसी को 211 सीटें और 44.9 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि भाजपा को केवल 3 सीटें और 10.2 प्रतिशत वोट मिले थे. उस चुनाव में 32 सीटें और 26.1 प्रतिशत वोट लेफ्ट को मिले थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट को 6.3 प्रतिशत वोट ही हासिल हुए थे. 2016 से 2019 के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन काफी बेहतर था. भाजपा को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे, अमित शाह की आक्रामक चुनावप्रचार शैली, आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ताओं का मुकाबला ममता बनर्जी नहीं कर पाएंगी. भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल चुनाव जीतना बेहद खास था. ममता बनर्जी अकेली ऐसी नेता थीं जो भाजपा का मुखर विरोध कर रही थीं. पश्चिम बंगाल चुनाव में जीत से भाजपा की ताकत और आत्मविश्वास बढ़ जाता. पश्चिम बंगाल में जीत के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी.

एक तरह से पूरा मुकाबला खरगोश और कछुए की कहानी सा लग रहा था. अंत में जीत कछुए की ही हुई. विपक्षी एकजुटता जरूरी 2021 के विधानसभा चुनाव में पुराने आकलन फेल हो गए. ममता बनर्जी और टीएमसी को 213 सीटें और 47.9 प्रतिशत वोट मिले. यह प्रदर्शन 2016 और 2019 दोनों से बेहतर था. इस से साफ हो गया कि ममता बनर्जी पर 10 साल के सत्ताविरोधी मतों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. भाजपा को 77 सीटें और 38.1 प्रतिशत वोट मिले जो 2019 के आकलन के हिसाब से कम थे. टीएमसी और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले में कांग्रेस और वामदल कहीं नहीं थे. भाजपा ने जिन प्रदेशों में अच्छा प्रदर्शन किया वहां विपक्षी दलों से सीधा मुकाबला नहीं था. भाजपा कांग्रेस के अलावा सीधे मुकाबले में किसी भी दल से जीत नहीं पाती है.

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बिहार विधानसभा लोक जनशक्ति पार्टी और दूसरी छोटीछोटी पार्टियों के चुनाव मैदान में उतरने का लाभ भाजपा को हुआ और नुकसान राजद यानी राष्ट्रीय जनता दल को हुआ. बिहार में मुसलिम समाज एकजुट नहीं हो पाया था. ऐसे में भाजपा-जदयू गठबंधन को सरकार में वापस आने का मौका मिल गया था. ममता बनर्जी के मामले में अच्छी बात यह रही कि उन्होंने पूरी लड़ाई सीधी लड़ी. वोटों का बंटवारा नहीं हो सका. सांप्रदायिक धुव्रीकरण को रोकना भाजपा की जीत में धार्मिक धु्रवीकरण का सब से बड़ा हाथ होता है. पश्चिम बंगाल में भी भाजपा ने ममता बनर्जी पर यह आरोप लगाया कि वहां ‘जयश्री राम’ का नारा लगाना मना है. ममता बनर्जी को ‘जयश्री राम’ का नाम पसंद नहीं है.

भाजपा की योजना थी कि ममता बनर्जी को मुसलिमवादी नेता के रूप में प्रचारित किया जाए जिस से हिंदुओं का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में हो सके. पश्चिम बंगाल में जनता एकसाथ मिल कर काम करती रही है. ऐसे में वह हिंदूमुसलिम में बंट नहीं सकी. अगर भाजपा 50 से 60 प्रतिशत हिंदुओं को भी एकजुट कर लेती तो वह चुनाव जीत लेती. अगर भाजपा के खिलाफ चुनाव जीतना है तो वोट का धार्मिक धु्रवीकरण रोकना होगा. केवल मुसलिम वोट से चुनाव नहीं जीता जा सकता. ममता ने अपनी हर रैली में जनता को यह सम झाने का काम किया कि कुछ लोग बंगाल की जनता को हिंदूमुसलिम में बांटना चाहते हैं पर मैं आप का पूरा समर्थन चाहती हूं. ममता की इस तरह की पहल से वोटों के धार्मिक धु्रवीकरण के प्रभाव को रोकने में सफलता मिली जो उन की जीत का कारण बना.

अगर हिंदुओं का धार्मिक धु्रवीकरण हो गया होता और भाजपा को 5 से 10 प्रतिशत वोट ज्यादा मिल जाते और तब ममता बनर्जी हार सकती थीं. सीधी सरल छवि भाजपा का चुनावप्रचार आक्रामक था. बहुत सारे नेता व कार्यकर्ता अहं के साथ प्रचार कर रहे थे. अमित शाह ने ‘200 पार’ का नारा दिया तो नरेंद्र मोदी ने ‘2 मई दीदी गई’ का नारा दिया. भाजपा के नेताओं से बात करते समय साफ लगता था कि मतगणना की कोई जरूरत ही नहीं है. भाजपा चुनाव जीत गई है. भाजपा के घमंड के मुकाबले में ममता बनर्जी ने बहुत ही सम झदारी व सरलता से अपना चुनावप्रचार किया. वे केवल यही कहती रहीं कि पश्चिम बंगाल की जनता को बंटने नहीं देंगे. भाजपा के चुनावप्रचार में दर्जनों हैलिकौप्टर थे, तो ममता बनर्जी के पास एक हैलिकौप्टर था. भाजपा के पास स्टार प्रचारकों की लंबी लिस्ट थी तो ममता बनर्जी अकेला चेहरा थीं.

ममता बनर्जी सूती धोती और हवाई चप्पल में रहीं. यह उन का सदाबहार पहनावा है. वे हर रैली में मास्क का प्रयोग करती दिखती रहीं. भाजपा के नेताओं की बड़ीबड़ी रैलियां होती थीं. नेताओं के लकदक, चमकदार कपड़े होते थे. ऐसे मे जनता को ममता बनर्जी की सादगी और सरलता के साथ सीधी व सरल छवि ने ज्यादा प्रभावित किया. जनता को इस छवि के साथ जुड़ना पसंद आ रहा था. छवि का मुकाबला भी ममता फैक्टर की बड़ी जीत की वजह माना जा रहां है. जनता को दिखावे की जगह पर सरलता रास आती है. उत्तर प्रदेश की बारी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद दूसरा बड़ा चुनावी संग्राम 2022 में उत्तर प्रदेश में होना है. यह भाजपा के लिए सब से बड़ी उम्मीदों वाला प्रदेश है. यहां भाजपा की योगी सरकार सत्ता में है. उत्तर प्रदेश में 2002 के बाद सत्ता पक्ष को दोबारा जीत नहीं मिली है.

पश्चिम बंगाल चुनाव में जिस तरह से ममता बनर्जी ने भाजपा को हराया उस से उत्तर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का मनोबल बढ़ा है. अखिलेश यादव और ममता बनर्जी के बीच संबंध बहुत अच्छे हैं. अखिलेश यादव ने ममता के चुनावी प्रचार में हिस्सा लिया था. ऐसे में यह बात साफ है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में ममता बनर्जी का मार्गदर्शन जरूर मिलेगा. अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में भाजपा को करारी शिकस्त दी है. 3,050 जिला पंचायत सदस्य के पदों में से सब से अधिक पद समाजवादी पार्टी को मिले हैं. यहां भी भाजपा ने सब से ज्यादा चुनावी प्रचार किया पर उस का प्रचार काम नहीं आया. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि भाजपा की योगी सरकार का गांव के लोगों में जनाधार बढ़ नहीं पाया है.

गांव के लोग छुट्टा जानवरों, महंगाई, बेरोजगारी से तो परेशान थे ही, कोरोनाकाल में उत्तर प्रदेश की नाकामी ने जनता का सरकार से मोहभंग किया है. चुनावों पर पड़ेगा कोरोना अव्यवस्था का असर 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का सब से बड़ा वोटबैंक युवावर्ग था. कोरोना संकट के दौर में युवाओं को सब से बड़ी परेशानी झेलनी पड़ी. उन को अपने मरीजों की देखभाल करनी थी. इन युवाओं ने अपनी आंखों के सामने अपने परिजनों को तड़पते देखा है. वैंटिलेटर, औक्सीजन और अस्पताल की कमी से लोगों की मौत हुई. 4 सालों में प्रचार के बल पर सरकार की चमक दिखाई गई. जब कोरोना संकट में जनता मुश्किल में फंसी तो न अस्पताल मिले न शमशान में जगह खाली मिली.

कोरोनाकाल की अव्यवस्था अगले सभी चुनावों में बड़ी भूमिका अदा करेगी. सभी विधानसभा चुनावों में भाजपा के मुकाबले विपक्ष को संयुक्त हो कर लड़ना पड़ेगा. पश्चिम बंगाल के चुनाव से नेताओं ने यह सबक सीखा है. नेताओं को वोटों का धार्मिक विभाजन रोकना होगा. जनता के बीच सीधा और सरल संवाद स्थापित करना होगा. किसी भी प्रदेश में भाजपा के पास करने के लिए कोई नया काम नहीं है. अयोध्या का मंदिर मुद्दा अब खत्म हो चुका है. सभी राज्य सरकारों के चुनाव फरवरी 2022 तक होंगे. करीब 9 माह का समय है. इस दौर में कोरोना का प्रभाव खत्म होता नजर नहीं आ रहा है. पंचायत चुनावों के नतीजों से साफ है कि जनता भाजपा से नाराज है. खुद भाजपा के नेता गुटबाजी का शिकार हैं. ऐसे में भाजपा की राह आसान नहीं है.

तलाक हर औरत का अधिकार-भाग 1

केरल उच्च न्यायालय ने मुसलिम महिलाओं के तलाक पर जो ऐतिहासिक निर्णय दिया है उस से महिलाओं को तलाक लेने में होने वाली दिक्कतों से काफी राहत मिलेगी, इस में कोई दोराय नहीं है. केरल हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति ए मोहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति सी एस डियास की खंडपीठ ने इसी अदालत की एकल पीठ के 1972 के उस फैसले को पलट दिया है जिस ने न्यायिक प्रक्रिया के इतर अन्य तरीकों से तलाक लेने के मुसलिम महिलाओं के अधिकार पर पाबंदी लगा दी थी. पीठ ने रेखांकित किया कि मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथ कुरान में पुरुषों और महिलाओं दोनों को तलाक देने के समान अधिकार प्राप्त हैं.

केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने मुसलिम महिलाओं को अदालत से बाहर भी तलाक का अधिकार प्रदान करते हुए स्पष्ट किया है कि कुरान में पुरुषों और महिलाओं को तलाक देने के समान अधिकारों को मान्यता दी गई है. यह और बात है कि अधिकतर मुसलिम महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी कभी नहीं मिल पाती है. मौलानाओं और परिजनों द्वारा ये जानकारियां उन तक कभी पहुंचाई नहीं जाती हैं.

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लंबे समय से समाजसेवी कार्यों से जुड़ी और मुसलिम महिलाओं के हितों के लिए सड़क से अदालतों तक लड़ने वाली नाइश हसन कहती हैं, ‘‘केरल हाईकोर्ट का फैसला वाजिब है. मु झे आश्चर्य है कि हाईकोर्ट ने पहले इस पर रोक क्यों और कैसे लगाई, जबकि कुरान ने मुसलिम औरतों के लिए बहुत बेहतर इंतजाम किए हैं. मुसलिम औरतें, जो अपने मर्दों के जुल्मों की शिकार हैं, उन से कई तरह से तलाक ले सकती हैं. उन में ‘खुला’ सब से ज्यादा प्रचलित है. मैं ने खुद कई महिलाओं का ‘खुला’ करवाया है जिन में कश्मीर तक की महिलाएं शामिल हैं.

‘‘आखिर हम औरतें क्यों किसी के जुल्म बरदाश्त करें? हम जिंदगी के हर पायदान पर मर्दों से ज्यादा काम करती हैं. हम घर में भी काम करें, बाहर भी जा कर नौकरी करें, खाना भी बनाएं, बच्चे भी पैदा करें, सासससुर की सेवा भी करें और इस के बदले में हमें अगर गालियां और लातघूंसे मिलें तो ऐसे घर को तुरंत छोड़ देना ही ठीक है. औरतें अगर समाज में बदनामी के डर से ससुराल में जुल्म बरदाश्त करेंगी तो वे अपने लिए नरक और बीमारियां ही बटोरेंगी.’’

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हलाला जैसी बुराई की शिकार महिलाओं पर पीएचडी करने वाली देश की पहली महिला नाइश हसन कहती हैं, ‘‘मुसलिम निकाह एक कौंट्रैक्ट है, यानी 2 लोगों के बीच हुआ एक सम झौता है. इस में अगर एक पक्ष दूसरे के साथ विश्वासघात करे, हिंसा करे, मानसिक रूप से प्रताडि़त करे, ब्लैकमेल करे,  झूठ बोले या कोई भी ऐसा काम करे जो सम झौते की शर्तों के खिलाफ है तो दूसरे पक्ष को पूरा हक और पूरी आजादी है कि वह उस कौंट्रैक्ट को खत्म कर दे. ऐसी उम्दा व्यवस्था कुरान में खासतौर से महिलाओं के लिए है. मगर औरत को घर की नौकरानी, अपनी ऐयाशी का सामान और बच्चा जनने की मशीन सम झने वाला पुरुष समाज इन जानकारियों से मुसलिम समाज की औरतों को हमेशा दूर रखता रहा है. औरतों को चाहिए कि वे कुरान को सिर्फ पढ़ें ही नहीं, बल्कि उस के एकएक शब्द का मतलब भी सम झें.’’

उल्लेखनीय है कि केरल हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 1972 में एक फैसला देते हुए कहा था कि किसी भी परिस्थिति में कानूनी प्रक्रिया के बिना एक मुसलिम निकाह समाप्त नहीं हो सकता. इस तरह पीठ ने न्यायिक प्रक्रिया से अलग अन्य तरीकों से तलाक लेने के मुसलिम महिलाओं के अधिकार पर पाबंदी लगा दी थी. इस फैसले को रद्द करते हुए अब हाईकोर्ट ने अदालती प्रक्रिया से अलग तलाक देने के महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया है. केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है.

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पीठ ने कहा कि मुसलमानों की धार्मिक किताब कुरान पुरुषों और महिलाओं के तलाक देने के समान अधिकार को मान्यता देती है. मुसलिम महिलाओं की दुविधा, विशेषरूप से केरल राज्य में सम झी जा सकती है जो ‘के सी मोईन बनाम नफीसा और अन्य’ के मुकदमे में फैसले के बाद बीते 50 साल से उन्हें  झेलनी पड़ रही थी.

इस फैसले में मुसलिम विवाह अधिनियम 1939 समाप्त होने के मद्देनजर न्यायिक प्रक्रिया से अलग तलाक लेने के मुसलिम महिलाओं के अधिकार को नजरअंदाज कर दिया गया था जिस के कारण एक मुसलिम महिला अपने पति की तमाम ज्यादतियों व हिंसा के बावजूद उस के साथ रहने को मजबूर थी. जबकि मुसलिम डिजोल्यूशन मैरिज एक्ट 1939 बहुत लिबरल है और तमाम कट्टरता के बावजूद मुसलिमों ने इस को माना भी है. मुसलिम औरतों को इस एक्ट के तहत कई आधारों पर तलाक पाने का अधिकार है.

मुसलिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 किसी समय तक एक मुसलिम स्त्री को केवल 2 आधारों पर न्यायालय में तलाक मांगने का अधिकार था. पहला, पति की नपुंसकता और दूसरा, परपुरुष गमन का  झूठा आरोप (लिएन). लेकिन इस से मुसलिम महिलाओं से संबंधित बहुत सी विसंगतियां मुसलिम विवाह में जन्म लेने लगीं. ऐसी परिस्थितियों का उदय हुआ जिन के होने पर एक मुसलिम महिला तलाक मांग सकती थी, परंतु मजबूरी में तलाक नहीं मांग पा रही थी.

हनफी विधि में मुसलिम स्त्री को अपने विवाह को समाप्त करने का अधिकार नहीं था परंतु हनफी विधि में यह व्यवस्था है कि यदि हनफी विधि के पालन में कठिनाई हो रही है तो मालिकी, शाफई या हनबली विधि का प्रयोग किया जा सकता है. इसी को आधार बना कर इसलामिक शरीयत के दायरे में मुसलिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 पारित किया गया था जिस के चलते बहुत से ऐसे कारणों, जिन की वजह से स्त्री व पुरुष का साथ रहना मुमकिन नहीं हो पा रहा है, को आधार बना कर इस अधिनियम की धारा 2 के अंतर्गत मुसलिम स्त्री अदालत जा कर अपने निकाह को खत्म करने की डिक्री पारित करवा सकती है. इस से मुसलमान औरत पति और उस के संबंधियों के अत्याचारों का शिकार होने से बच जाती है.

बॉस को दुश्मन न समझें

बहुत से दफ्तरों में ऐसा माहौल देखने को मिल जाता है जहां बौस के आने से पहले उसे बुराभला कहा जाता है और सामने उस की चापलूसी में कहीं भी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती. कर्मचारी उन्हें खुश करने के तरीके ढूंढ़ते हैं. लेकिन ज्यों ही बौस की पीठ दिखी, कर्मचारी अपने चेहरों की आकृतियां व हावभाव जल्दी से बदल लेते हैं, पीछे से गाली देते हैं, अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.

ऐसी स्थिति में कई प्रश्न और समस्याएं सहकर्मियों व सहायकों के समक्ष दुविधाजनक स्थिति उत्पन्न कर देती हैं. जब ऐसे लोग बौस के केबिन के बाहर भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने समकक्ष या सहकर्मियों के साथ भद्र व्यवहार व स्वस्थ आचरण नहीं करते, तब समस्या आती है कि उस परिस्थिति से कैसे निबटा जाए, क्या बौस को सही बात बता कर स्थिति स्पष्ट कर दी जाए और शिकायतकर्ता या चुगलीकर्ता का खिताब ले लिया जाए या बाहर ही विवेक व धैर्य से कुछ हद तक कमान संभाल ली जाए.

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ऐसी परिस्थिति के लिए क्या बौस ही जिम्मेदार है? नहीं. दोष आपसी समझ, सामंजस्यता, विवेक व सौहार्दपूर्ण, समायोजिक व्यवहार में कमी का है. हम अपनी गलतियों को स्वीकार न कर उन्हें दूसरों पर लाद देने का प्रयास करते हैं, अपने को दोषी जानना और समझना ही नहीं चाहते. सत्य यह है कि हम दूसरों पर दोष मढ़ कर खुद को पाकसाफ मानते हैं.

सहकर्मी, सहायक, कर्मचारी व अधीनस्थ कितनी ही चालाकी, कामचोरी करें, बौस को उन्हें दिनभर पर्याप्त काम कर के देना ही होता है. झल्लाहट, खुन्नस या बड़बड़ाहट जारी रखने से काम अच्छा और सही व समय पर कभी नहीं हो पाता. स्वच्छ व स्वस्थ नजरिया अपनाते हुए प्रत्येक का कर्तव्य बनता है कि जिस उद्देश्य के लिए उसे रखा गया है उसे वह पूरा करता रहे.

सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन व परिणाम

कर्मचारी बौस की शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक सुरक्षा के लिए उतना ही जिम्मेदार है जितना कि बौस अपने कर्मचारियों के प्रति. नौकरी के बदले तनख्वाह तो मिल ही रही है. औफिस आनेजाने के लिए घड़ी पर नजरें गड़ाए रहना और कम से कम कार्य करने की कोशिश, काम को टालने का बहाना, अनर्गल प्रयास और गपशप आदि से अच्छा प्रदर्शन कतई नहीं मिल सकता. यह कंपनी के साथसाथ स्वयं कर्मचारी के खुद के हित में भी बिलकुल नहीं है.

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कई कर्मचारी आपस में ही एकदूसरे पर खुन्नस निकालते हैं. वे निठल्ले और निकम्मेपन से सुबह से शाम कर देते हैं. इतना ही नहीं, वे नए नियुक्त लोगों को भी भली प्रकार काम नहीं करने देते, अड़ंगे लगाते हैं कि कहीं उन के अच्छे प्रदर्शन से बौस प्रभावित न हो जाएं. कमैंट्स मारना, महिला व पुरुष कर्मियों के नएनए नामकरण कर उन्हीं नामों से पुकारना, ताने मारना, चुटकी लेना जैसे क्रियाकलापों को कुछ लोग मजाक या मनोरंजन का नाम दे कर कार्यालय में केवल टाइमपास ही करते हों तो सभी की कार्यशैली बुरी तरह प्रभावित होती है साथ ही लक्ष्य भी आधेअधूरे या कभी पूर्ण हो ही नहीं पाते, जो कि किसी भी संगठन के लिए अच्छा या लाभप्रद संकेत नहीं होता. ऐसी स्थिति में अकर्मण्य व तानाशाही प्रवृत्ति वाले कर्मियों से खुद ही विवेक, धैर्य व बुद्धिमत्ता से निबट लिया जाए तो बुरा नहीं है.

बौस की चापलूसी व अपनी अकर्मण्यता किसी का लाभ नहीं करती, नुकसान कहीं न कहीं सभी का होता है. जो लोग ऐसा करते हैं, मैनेजमैंट के साथ उन का खुद का भी स्थायी फायदा नहीं होता. खुद को कार्यालय में अधिक से अधिक व्यस्त रखें और कुछ लोग जो केवल सोचते ही नजर आते हैं, उन के भी विचार जाने जा सकते हैं. हो सकता है वे भी कीमती हों. तलाश जारी रखें, रुकें नहीं. सुनने की आदत डालें. सहकर्मियों या दूसरों के विचार सुनें. उन की रचनात्मकता से लाभ उठाया जा सकता है. सहकर्मी व अधीनस्थ भी एकदूसरे को भीतर की गड़बडि़यों व कमियों की जानकारी के साथ बेहतरी के सुझाव दे सकते हैं. कार्यालय की मामूली गतिविधियों के लिए अनावश्यक रूप से बौस के पास जाने का अवसर ही नहीं मिलेगा जब सबकुछ बाहर ही खुद के स्तर पर सुलट जाएगा.

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सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सर्वश्रेष्ठ परिणाम हासिल किए जा सकते हैं. मुख्य सीमाएं तय करें. केवल अपने व्यक्तिगत लक्ष्य पर ही ध्यान केंद्रित न करें. छुट्टी का इंतजार, अपनी टोपी दूसरे के सिर, काम को टालने का बहाना, खुद के ही फायदे के बारे में सोचना या औफिस को दिल बहलाने की जगह समझ लेना बिलकुल गलत है. मैं नहीं, बारबार ‘हम’ की आवाजें आएं. सौहार्द, प्रेम व आनंद की बहारें आएं. बौस के साथ नियमों व कार्य की पालना एवं हर एक की खुशी में ही लक्ष्य है.

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