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लेखिका -डा. के रानी

डिंपी राहुल के साथ बहुत खुश थी।अब सुधा भी अपनी नाराजगी भूल कर उन की खुशियों में शामिल हो गई लेकिन रमा को यह बात बहुत अखर गई थी कि डिंपी ने अपनी बिरादरी से बाहर जा कर जनजाति समाज से ताल्लुक रखने वाले राहुल से शादी की थी. उसे अपने खानदान पर बहुत गुरूर था।

डिंपी ने राहुल को अपना कर उस के खानदान के मान को ठेस पहुंचाई थी जब कभी रमा इस बारे में सोचती तो उसे मन ही मन बहुत परेशानी होती.

डिंपी की शादी को पूरे 3 बरस हो गए थे। आज भी घर पर रमा से मिलने जो भी रिश्तेदार आता वह किसी न किसी बहाने उस का जिक्र जरूर छेड़ देता.

दोपहर में रमा के मामा आए थे। उन्होंने भी परेश और डिंपी को ले कर रमा को काफी कुछ कहा. वह चुपचाप रही. कुछ बोल कर वह अपनी खीज मामा के सामने नहीं उतारना चाहती थी लेकिन जब भी वह मायके जाती इस बात का जिक्र परेश भैया और सुधा भाभी से जरूर कर देती। रमा की जलीकटी बातें वे एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते.

मामाजी के जाने के बाद रमा के दिमाग में बहुत देर तक मायके की घटनाएं चलचित्र की तरह घूमती रहीं और काफी समय तक वहां भटकने के बाद वह वर्तमान में लौट आई थी।

अमन उसे आवाज दे रहे थे,"कहां हो रमा? याद है, आज एक शादी के रिसेप्शन पर जाना है."

"मुझे याद है लेकिन अभी तो उस में बहुत समय है," कह कर रमा उठी और शादी में जाने की तैयारी करने लगी।

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