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Crime Story : देवर-भाभी का खूनी प्यार

सौजन्या-सत्यकथा

पहली अप्रैल, 2021 को सुबह के करीब पौने 8 बज रहे थे. राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ थाने  के थानाप्रभारी विनोद सांखला को फोन पर सूचना मिली कि जखराना बसस्टैंड के पास एक बाइक और स्कौर्पियो गाड़ी की भिड़ंत हो गई है.

सूचना मिलते ही विनोद सांखला पुलिस टीम ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर काफी भीड़ जमा थी. पुलिस को देखते ही भीड़ थोड़ा हट गई. पुलिस ने देखा कि वहां एक व्यक्ति की दबीकुचली लाश सड़क पर पड़ी थी. थोड़ी दूरी पर मृतक की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी.

घटनास्थल पर प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि नीमराना की तरफ से स्कौर्पियो गाड़ी आई थी. स्कौर्पियो में सवार लोगों ने जानबूझ कर मोटरसाइकिल को टक्कर मारी थी. बाइक सवार स्कौर्पियो की टक्कर से उछल कर दूर जा गिरा. तब स्कौर्पियो यूटर्न ले कर आई और बाइक से गिरे युवक को कुचल कर चली गई.

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गाड़ी के टायर युवक के सिर से गुजरे तो सिर का कचूमर निकल गया. जब स्कौर्पियो सवार निश्चिंत हो गए कि बाइक सवार की मौत हो गई है, तब वे वापस उसी रोड से भाग गए.वहां मौजूद लोगों ने थानाप्रभारी विनोद सांखला को बताया कि यह दुर्घटना नहीं बल्कि हत्या है. स्कौर्पियो में सवार अज्ञात लोगों ने बाइक सवार को जानबूझ कर टक्कर मार कर हत्या की है.

थानाप्रभारी ने घटना की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी. खबर पा कर बहरोड़ के सीओ और एसडीएम घटनास्थल पर आ गए. बाइक सवार युवक की पहचान कृष्णकुमार यादव निवासी भुंगारका, महेंद्रगढ़, हरियाणा के रूप में हुई.

कृष्णकुमार यादव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय जखराना में अपर डिविजन क्लर्क के पद पर कार्यरत था. कृष्णकुमार के एक्सीडेंट होने की खबर पा कर विद्यालय के प्रधानाचार्य ने बताया कि कृष्णकुमार यादव अपने पिताजी की औन ड्यूटी मृत्यु होने पर उन की जगह मृतक आश्रित कोटे से नौकरी पर लगा था.

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कृष्णकुमार अपने मांबाप का इकलौता बेटा था. वह अपने गांव भुंगारका से रोजाना बाइक द्वारा ड्यूटी आताजाता था. सीओ देशराज गुर्जर ने भी घटनास्थल का मुआयना किया और उपस्थित लोगों से जानकारी ली. जानकारी में यही सामने आया कि कृष्णकुमार की हत्या की गई है.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज निकाले. फुटेज से पता चला कि प्रत्यक्षदर्शियों ने जो बातें बताई थीं, वह सच थीं. हत्यारे कृष्णकुमार की हत्या को दुर्घटना दिखाना चाह रहे थे. मगर लोगों ने यह सब अपनी आंखों से देखा था.

मृतक के परिजनों को भी हत्या की खबर दे दी गई. खबर मिलते ही मृतक के घर वाले एवं रिश्तेदार घटनास्थल पर आ गए. उन से भी पुलिस ने पूछताछ की और शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने शव का पोस्टमार्टम कराने के बाद वह परिजनों को सौंप दिया. मृतक के परिजनों की तरफ से कृष्णकुमार की हत्या का मामला बहरोड़ थाने में दर्ज करा दिया गया.

थानाप्रभारी विनोद सांखला, एसआई सुरेंद्र सिंह और अन्य पुलिसकर्मियों की टीम ने सीसीटीवी फुटेज और स्कौर्पियो गाड़ी के नंबरों के आधार पर जांच शुरू की. पुलिस ने स्कौर्पियो गाड़ी का नंबर दे कर सभी थानों से इस नंबर की गाड़ी की जानकारी देने को कहा.

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तभी जयपुर पुलिस ने सूचना दी कि इस नंबर की स्कौर्पियो गाड़ी पावटा जयपुर में खड़ी है. पुलिस टीम ने पावटा पहुंच कर वहां से स्कौर्पियो गाड़ी सहित 2 युवकों अशोक और पवन मेघवाल को भी हिरासत में ले लिया. गाड़ी के मालिक अजीत निवासी भुंगारका सहित कुछ और संदिग्ध युवकों को भी पुलिस ने पूछताछ के लिए उठा लिया.

थाने में इन सभी से पूछताछ की. अशोक व पवन मेघवाल एक ही रट लगाए थे कि उन की कृष्णकुमार से कोई दुश्मनी नहीं थी. अचानक वह गाड़ी से टकरा गया था. बाइक के एक्सीडेंट के बाद हड़बड़ाहट में गाड़ी घुमाई तो कृष्णकुमार पर गाड़ी चढ़ गई.

उन्होंने बताया कि उन्हें इस बात का डर लग रहा था कि लोग उन्हें पकड़ कर मार न डालें, इस डर के कारण वे गाड़ी भगा ले गए. मगर आरोपियों की यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. भुंगारका निवासी अजीत ने पुलिस को बताया कि उस ने अपनी स्कौर्पियो गाड़ी एक लाख 80 हजार रुपए में सन्नी यादव को बेच दी. सन्नी ने अशोक के नाम पर यह गाड़ी खरीदी थी.

अजीत ने पुलिस को सन्नी का नाम बताया. तब तक पुलिस को लग रहा था कि अजीत का इस मामले से कोई संबंध नहीं है. अशोक और पवन मेघवाल 4 दिन तक पुलिस को एक ही कहानी बताते रहे कि अचानक बाइक से गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया था. पुलिस को भी लगने लगा था कि मामला कहीं दुर्घटना का ही तो नहीं है. मगर सीसीटीवी फुटेज में जो एक्सीडेंट का दृश्य था, वह बता रहा था कि कृष्णकुमार की साजिश के तहत हत्या की गई थी. हत्या को उन्होंने साजिश के तहत दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की थी.

तब पुलिस अधिकारियों ने अपना पुलिसिया रूप दिखाया. बस फिर क्या था. पुलिस का असली रूप देख कर वे टूट गए और स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जानबूझ कर कृष्णकुमार यादव की हत्या की थी, फिर उन्होंने हत्या की कहानी बता दी.

हरियाणा के नांगल चौधरी इलाके के भुंगारका गांव में कृष्णकुमार यादव अपनी पत्नी कुसुमलता (35 वर्ष) के साथ रहता था. कृष्णकुमार की 4 बहनें हैं, जिन की शादी हो चुकी थी. वे सब अपनी ससुराल में हैं. पिता की औनड्यूटी मृत्यु होने के बाद आश्रित कोटे के तहत कृष्णकुमार की क्लर्क पद पर सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई थी. वह अपने मातापिता का इकलौता बेटा था.

कृष्णकुमार के पड़ोस में उस के चाचा मुकेश यादव रहते थे. उन का बड़ा बेटा सन्नी 10वीं कक्षा में फेल हो गया तो उस ने स्कूल छोड़ दिया. वह कोई कामधंधा नहीं करता था. कृष्णकुमार के परिवार के ठाठबाट देखता तो उसे जलन होती थी. क्योंकि कृष्णकुमार के पास करोड़ों रुपए की संपत्ति थी.

कृष्णकुमार के नाम करीब 50 बीघा जमीन थी. जोधपुर, राजस्थान के फलोदी में 17 बीघा जमीन, बहरोड़ में 2 कामर्शियल प्लौट, भुंगारका गांव में 32 बीघा जमीन व आलीशान मकान था. यह सब कृष्णकुमार के नाम था. सन्नी ने योजना बनाई कि अगर कुसुमलता को वह प्यार के जाल में फंसा क र कृष्णकुमार को रास्ते से हटा दे तो वह कुसुमलता से विवाह कर के उस की करोड़ों की प्रौपर्टी का मालिक बन सकता है.

आज से करीब 3 साल पहले सन्नी ने कुसुमलता पर डोरे डालने शुरू किए. कुसुमलता रिश्ते में उस की भाभी लगती थी. सन्नी से कुसुमलता उम्र में 10 साल बड़ी थी. मगर वह जायदाद हड़प कर करोड़पति बनने के चक्कर में अपने से 10 साल बड़ी भाभी के आसपास दुम हिलाने लगा. कृष्णकुमार ड्यूटी पर चला जाता तो कुसुमलता घर में अकेली रह जाती थी. कृष्णकुमार की गैरमौजूदगी में सन्नी उस की बीवी के पास चला आता था. सन्नी कुसुमलता के चाचा ससुर का बेटा था.

वह भाभी से हंसीमजाक करतेकरते उसे बांहों में भर कर बिस्तर तक ले आया. कुसुमलता भी जवान देवर की बांहों में खेलने लगी. वह सन्नी की दीवानी हो गई. सन्नी की मजबूत बांहों में कुसुमलता को जो शारीरिक सुख का चस्का लगा, वह दोनों को पतन के रास्ते पर ले जा रहा था.

सन्नी ने कुसुमलता को अपने रंग में ऐसा रंगा कि वह उस के लिए पति के प्राण तक लेने पर आमादा हो गई. आज से करीब डेढ़ साल पहले सन्नी ने कुसुमलता से कहा, ‘‘कुसुम, तुम रात में कृष्णकुमार को बिजली के करंट का झटका दे कर मार डालो. इस के बाद हम दोनों के बीच कोई तीसरा नहीं होगा. पति की जगह तुम्हारी नौकरी भी लग जाएगी. फिर मैं तुम से विवाह कर लूंगा और फिर हम मौज की जिंदगी जिएंगे.’’

‘‘ठीक है सन्नी, मैं पति को रास्ते से हटाने का इंतजाम करती हूं.’’ कुसुमलता ने हंसते हुए कहा. वह देवर के प्यार में पति की हत्या करने करने का मौका तलाशने लगी. एक दिन कृष्णकुमार रात में गहरी नींद में था. तब कुसुमलता ने उसे बिजली का करंट दिया. करंट का कृष्णकुमार को झटका लगा तो वह जाग गया. तब बीवी ने कूलर में करंट आने का बहाना बना दिया. कृष्णकुमार को करंट का झटका लगा जरूर था, मगर वह मरा नहीं.

यह सुन कर सन्नी बोला, ‘‘कुसुम, जल्द से जल्द कृष्ण का खात्मा करना होगा.’’  ‘‘तुम ही यह काम किसी से करा दो. मैं तुम्हारे साथ हूं मेरी जान.’’ कुसुमलता बोली.कुसुमलता और सन्नी जल्द से जल्द कृष्णकुमार को रास्ते से हटाना चाहते थे. कृष्ण के ड्यूटी जाने के बाद वाट्सऐप कालिंग पर दोनों बातचीत करते थे. सन्नी ने अपने छोटे भाई की शादी कर दी थी. खुद शादी नहीं की थी. उस का मकसद तो करोड़ों की मालकिन कुसुमलता से शादी करना था. सन्नी भाभी से शादी कर के वह जल्द से जल्द करोड़पति बनना चाहता था.

एक दिन सन्नी और कुसुमलता के संबंधों की जानकारी किसी ने कृष्णकुमार को दे दी. बीवी और चचेरे भाई के संबंधों की बात सुन कर कृष्णकुमार को बहुत गुस्सा आया. उस ने अपनी बीवी से इस बारे में बात की तो वह त्रियाचरित्र दिखाने लगी. आंसू बहाने लगी. मगर कृष्णकुमार के मन में संदेह पैदा हुआ तो वह उन दोनों पर निगाह रखने लगा.

इस के बाद कुसुमलता ने सन्नी को सचेत कर दिया. दोनों छिप कर मिलने लगे. मगर उन्हें हर समय इसी बात का डर लगा रहता कि कृष्णकुमार को कोई बता न दे. कृष्णकुमार ने सन्नी से भी कह दिया था कि वह उस के घर न आए. यह बात कृष्ण, कुसुम और सन्नी के अलावा कोई नहीं जानता था. किसी को पता नहीं था कि कृष्ण अपनी बीवी और सन्नी पर शक करता है.

ऐसे में कुसुमलता और सन्नी ने उसे एक्सीडेंट में मारने की योजना बनाई ताकि उन पर कोई शक भी न करे और राह का कांटा भी निकल जाए. सन्नी ने इस काम में कुछ खर्चा होने की बात कही तो कुसुमलता ने खुद के नाम की 4 लाख रुपए की एफडी मार्च 2021 के दूसरे हफ्ते में तुड़वा दी. 4 लाख रुपए कुसुम ने सन्नी को दे दिए.

सन्नी ने योजनानुसार 18 मार्च, 2021 को भुंगारका के अजीत से एक लाख 80 हजार रुपए में एक स्कौर्पियो गाड़ी एग्रीमेंट के तहत अशोक कुमार के नाम से खरीदी. अशोक को उस ने 2 छोटे मोबाइल व सिम दिए. इन्हीं सिम व मोबाइल के जरिए अशोक की बात सन्नी से होती थी. कृष्णकुमार को मारने के लिए सन्नी ने अशोक को डेढ़ लाख रुपए भी दे दिए.

उसी स्कौर्पियो गाड़ी से अशोक ने सन्नी के कहने पर कृष्णकुमार का एक्सीडेंट करने की कई बार कोशिश की मगर वह सफल नहीं हुआ. तब 26 मार्च, 2021 को राहुल अपने दोस्त पवन मेघवाल को भुंगारका के हरीश होटल पर ले आया. यहां अशोक से पवन की जानपहचान कराई.

रात में तीनों शराब पी कर खाना खा कर होटल पर रुके और सुबह चले गए. 30 मार्च, 2021 को अशोक ने पवन से कहा कि मुझे स्कौर्पियो से एक आदमी का एक्सीडेंट करना है. तुम मेर साथ गाड़ी में रहोगे तो मैं तुम्हें 40 हजार रुपए दूंगा.

पवन की अशोक से नई दोस्ती हुई थी और वैसे भी पवन को सिर्फ गाड़ी में बैठे रहने के 40 हजार रुपए मिल रहे थे, इसलिए 40 हजार रुपए के लालच में पवन ने हां कर दी. 31 मार्च, 2021 को अशोक और पवन मेघवाल स्कौर्पियो गाड़ी ले कर जखराना आए लेकिन उस दिन कृष्णकुमार ड्यूटी पर नहीं गया.अशोक रोजाना की बात सन्नी को बता देता था. सन्नी अपनी प्रेमिका भाभी कुसुमलता को सारी बात बता देता था. पहली अप्रैल 2021 को सुबह साढ़े 7 बजे कृष्णकुमार अपने गांव भुंगारका से ड्यूटी पर जखराना निकला. यह जानकारी कुसुमलता ने अपने देवर प्रेमी सन्नी को दी. सन्नी ने अशोक को यह सूचना दे दी. अशोक कुमार गाड़ी में पवन को ले कर जखराना बसस्टैंड पहुंच गया. जैसे ही कृष्णकुमार मोटरसाइकिल से जखराना बसस्टैंड से स्कूल की ओर जाने लगा, तभी अशोक ने स्कौर्पियो से कृष्णकुमार को सीधी टक्कर मार दी. टक्कर लगते ही कृष्णकुमार उछल कर दूर जा गिरा.

इस के बाद अशोक ने गाड़ी को यूटर्न लिया और कृष्णकुमार के ऊपर एक बार चढ़ा दी, जिस के बाद उस की मौके पर ही मौत हो गई. इस के बाद सूचना पा कर बहरोड़ पुलिस आई. प्रत्यक्षदर्शियों ने इसे हत्या बताया. तब पुलिस ने जांच कर हत्या के इस राज से परदा हटाया.

अशोक कुमार और पवन मेघवाल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड में शामिल रहे सन्नी और उस की प्रेमिका कुसुमलता को भी गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने भी कृष्णकुमार की हत्या में शामिल होने का अपराध स्वीकार कर लिया.

पूछताछ के बाद कुसुमलता, सन्नी यादव, अशोक यादव और पवन मेघवाल को बहरोड़ कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Shakti Astitva Ke Ehsaas Ki ने पूरे किए 5 साल, सेट पर ऐसे मनाया गया जश्न

कलर्स टीवी के सुपरहिट शो ‘शक्ति अस्तित्व के एहसास की’ को बीते रविवार को 5 साल पूरे हो गए हैं. इस खास मौके पर इस सीरियल में काम करने वाले सभी कलाकार काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे थें. उन्होंने इस सीरियल को आगे बढ़ाने के लिए काफी ज्यादा मेहनत किया है.

इस खास मौके पर सभी कलाकारों ने मिलकर सेट पर खूब जश्न मनाया है. जिसकी तस्वीर लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है और इस सीरियल को देखने वाले फैंस इसे काफी ज्यादा पसंद भी कर रहे हैं.

इस सीरियल की लीड एक्ट्रेस रुबीना दिलैक ने लिखा है कि मेहनत के 5 साल आपके प्यार और भरोसे के लिए धन्यवाद. वहीं रुबीना दिलैक कि ऑनस्क्रिन सास काम्या पंजाबी ने जमकर सेट पर धमाल मचाया है. जिसे देखकर फैंस भी खुसी से झूम उठे हैं.

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बता दें कि काम्या पंजाबी इस सीरियल में प्रीतो का किरदार निभाती हैं. उन्होंने अपने ऑनस्क्रीन पति सुरेश बेरी के साथ जमकर फोटो क्लिक करवाई है. जिसे देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इन लोगों ने सेट पर कितना मस्ती किया होगा.

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काम्या पंजाबी ने अपने सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करते हुए लिखा है कि सम भाग जाता है चीजे बदल जाती हैं लेकिन एक ही चीज नहीं बदलती हैं वह है प्रीतो और हरक की जोड़ी .

कुछ वक्त पहले इस सीरियल में नए चेहरे कि एंट्री हुई है रुबीना दिलैक एक बार फिर सौम्या के रूप में वापसी करेंगी. बता दें कि इस सीरियल ने रुबीना दिलैक को बहुत ज्यादा लोकप्रियता दिलाई है. इसके साथ ही प्रीतो के एक्टिंग को भी लोग खूब पसंद करते हैं.

बिग बॉस विनर शिल्पा शिंदे कि आर्थिक हालत हुई खराब, शेयर किया यह वीडियो

बिग बॉस 11 कि विनर रह चुकी शिल्पा शिंदे सोशल मीडिया पर आए दिन छाई रहती हैंं. कुछ दिनों पहले शिल्पा शिंदे भाभी जी घर पर हैं को लेकर चर्चा में बनी हुईं थी . इस सीरियल में लोगों ने उन्हें खूब सारा प्यार दिया था.

बता दें कि शिल्पा शिंदे ने हाल ही में एक वीडियो शेयर किया हुआ है जिसमें वह कंस्ट्रक्शन करती हुईं नजर आ रही हैं. वीडियो को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा है कि लॉकडाउन में काम गया तो सोचा इसी फिल्ड में काम कर लूं.

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अब यह वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. फैंस इसे खूब लाइक दे रहे हैं और ढ़ेर सारा प्यार भी दे रहे हैं. जिसमें कुछ फैंस ने कमेंट करके मजे भी लिए हैं. इस वीडियो को फैंस शेयर भी कर रहे हैं.  शिल्पा ने ये भी लिखा है कि अगर किसी के पास काम नहीं है तो वह भी इस फिल्म में आकर काम कर सकता है.

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अब इस वीडियो को देखकर पता करना बहुत मुश्किल हो रहा है कि क्या वाइक में शिल्पा शिंदे कंस्ट्रकशन फिल्ड में काम कर रही हैं या यह वीडियो उन्होंने फैंस के मजे लेने के लिए बनाया है. हालांकि कुछ लोग शिल्पा शिंदे से यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि आपके इतने बुरे दिन  आ गए कि अब आप इन सभी कामों को करने लगी हैं.

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जिस पर अभी तक शिल्पा ने कोई जवाब नहीं दिया है. तो वहीं कुछ लोग कमेंट में शिल्पा शिंदे से उनका नंबर भी मांग रहे हैं.

2000 से अधिक बच्चे  चिन्हित मिलेगा मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना का लाभ

लखनऊ. कोरोना काल में निराश्रित बच्चों के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बड़ा कदम उठाते हुए मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की शुरुवात की है. महामारी से प्रभावित इन पात्र बच्चों की देखभाल, भरण पोषण, शिक्षा और आर्थिक सहायता की जिम्मा अब योगी सरकार उठाएगी. उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ महामारी के समय एक ओर प्रदेशवासियों को कोरोना के प्रकोप से बचा रहे हैं तो दूसरी कठिन समय में अपनों के दूर चले जाने से मायूस बच्चों के लिए भी संवेदनशील हैं. कई बार सीएम योगी आदित्यनाथ का वात्सल्य रूप सभी को देखने को मिला है. ऐसे में योगी सरकार द्वारा इस बड़ी योजना की शुरुवात किए जाने से सीधे तौर पर प्रदेश के जरूरतमंद प्रभावित बच्चों को राहत मिलेगी.

बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने बताया कि सीएम योगी आदित्यनाथ शुरू से ही बच्चों के लिए बेहद संवेदनशील रहे हैं. ऐसे में प्रदेश के प्रभावित बच्चों के लिए बड़ी योजना की शुरुआत कर सीएम आदित्यनाथ बच्चों के लिए नाथ बन गए हैं. उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऐसे लगभग 2000 बच्चों को अब तक चिन्हित किया जा चुका है अब इन सभी बच्चों में योजना के अनुसार पात्र बच्चों को चयनित कर योगी सरकार सीधा लाभ देगी.

मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना की होगी मॉनिटरिंग

डॉ विशेष गुप्ता ने बताया कि प्रदेश में पात्र बच्चों को लाभ मिल सके इसके लिए प्रदेश में इस योजना की मॉनिटरिंग का कार्य भी किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जनपद स्तर पर जिला प्रोबेशन अधिकारी के नियंत्रण में बनी समितियां जैसे बाल कल्याण समिति, जिला बाल संरक्षण इकाई और ग्रामीण इलाकों में निगरानी समितियां इसकी मॉनिटरिंग करेंगी. इसके साथ ही प्रत्येक जनपद स्तर पर जिला अधिकारी और प्रदेश स्तर पर बाल संरक्षण आयोग भी इसकी निगरानी करेंगे.

प्रदेश में युद्धस्तर पर किया जा रहा योजना पर काम

महिला कल्याण विभाग के निदेशक मनोज कुमार राय ने बताया कि महिला कल्याण विभाग ने प्रदेश के सभी जनपदों के डीएम को ऐसे सभी बच्चों की सूची तैयार कर भेजने के आदेश दिए हैं. जिससे ऐसे सभी बच्चों के संबंध में सूचनायें संबंधित विभागों, जिला प्रशासन को पूर्व से प्राप्त सूचनाओं, चाइल्ड लाइन, विशेष किशोर पुलिस इकाई, गैर सरकारी संगठनों, ब्लाॅक तथा ग्राम बाल संरक्षण समितियों, कोविड रोकथाम के लिए विभिन्न स्तरों पर गठित निगरानी समितियों और अन्य बाल संरक्षण हितधारकों के सहयोग व समन्वय किया जा रहा है.

डरने की नहीं है बात योगी जी हैं साथ

योजना के जरिए उन बच्चों को लाभ मिलेगा जिन्होंने अपने माता पिता या दोनो में. से एक कमाऊ सदस्य को एक मार्च 2020 के बाद महामारी के दौरान को दिया है. माता पिता किसी एक को मौत के बाद दिसरे की वार्षिक आय दो लाख से कम है तो उसको योजना का लाभ मिलेगा. इसके साथ ही 10 साल से कम आयु के निराश्रित बच्चों की देखभाल प्रदेश व केंद्र सरकार के मथुरा, लखनऊ, प्रयागराज, आगरा, रामपुर के बालगृहों में की जाएगी. इसके साथ ही अवयस्क बच्चियों की देखभाल और पढ़ाई के लिए कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में रखा जाएगा. 18 अटल आवासीय विद्यालयों में भी उनकी देखभाल की जाएगी.

मेरी शादी होने वाली है मैं अपने मंगेतर से मिलने जाती हूं तो वह कभी मेरी तारीफ नहीं करता ?

सवाल 

मैं 26 वर्षीय युवती हूं, जल्दी ही मेरी शादी होने वाली है. मैं और मेरा मंगेतर अकसर मिलतेजुलते हैं. मैं जब भी उस से मिलने जाती हूं, अपनी तरफ से काफी बनसंवर कर जाती हूं. चाहती हूं कि वह मेरी तारीफ करे कि मैं कैसी लग रही हूं. लेकिन जब मैं पूछती हूं तो ही बताता है, खुद अपनेआप तारीफ नहीं करता. मु झे यह अच्छा नहीं लगता. कैसे पता करूं कि वह मेरी ड्रैसिंग सैंस के बारे में क्या महसूस कर रहा है?

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जवाब 

सब का अपनाअपना स्वभाव होता है. हो सकता है अभी आप का मंगेतर आप से ज्यादा खुला न हो. या हो सकता है आप के मंगेतर को पता ही न हो कि लड़कियों को खुश कैसे किया जाता है. या यह भी हो सकता है वह इन सब बातों को महत्त्व ही न देता हो. हमारी राय यह है कि आप खुद ही अपने पार्टनर से पूछें कि ‘क्या मेरे पास एक अच्छा ड्रैसिंग सैंस है. आप को पता होना चाहिए कि वह आप के ड्रैसिंग सैंस के बारे में क्या महसूस करता है. हो सकता है कि आप का अपना स्टाइलिंग सैंस हो, लेकिन अगर आप को पार्टनर का आइडिया अच्छा लगे, तो आप को उस पर ध्यान देना चाहिए. इस के अलावा, कभीकभी अपने पार्टनर को इंप्रैस करने के लिए आप खुद को उस की पसंद के अनुसार ड्रैसअप करें. इस से रिश्ते को स्पाइसअप करने में मदद मिलती है. लड़कों के लिए अपने पार्टनर से इमोशनल बौंडिंग के साथसाथ फिजिकल अपीयरैंस भी काफी माने रखता है.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

विश्वास का मोल : आशीष को अपने पैदा होने पर क्यों पछतावा हो रहा था– भाग 1

लेखिका-रेणु दीप

जैसे ही बड़े भैया का फोन आया कि फौरन दिल्ली जाना है, आशीष, मेरे भांजे, को किसी ने जहर खिला दिया है और उस की हालत गंभीर है, मेरे तो हाथपैर ठंडे हो गए. बारबार बस यही खयाल आया कि हो न हो चिन्मयानंद ने ही यह कांड किया होगा, नहीं तो सीधेसादे आशीष के पीछे कोई क्यों पड़ेगा? क्यों कोई उसे जहर खिलाएगा?

जब से चिन्मयानंद ने मेरी भांजी  झरना से शादी कर मेरी बहन के घर अपना अड्डा जमाया तभी से मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त था और आखिरकार मेरी आशंका सच साबित हुई.

हम सभी  झरना की शादी इस पाखंडी चिन्मयानंद से होने के खिलाफ थे.  झरना की मां यानी मेरी बड़ी बहन हमारे परिवार तथा परिचितों में ‘दिल्ली वाली’ के नाम से जानी जाती हैं. यह सब उन्हीं की करनी थी. उन्हें शुरू से साधुसंतों पर अटूट विश्वास था. आएदिन उन के घर न जाने कहांकहां के साधुसंतों का जमावड़ा रहता. जब से उन के यहां बद्रीनाथ के बाबा के आशीर्वाद से आशीष और  झरना का जन्म हुआ तब से वे साधुसंन्यासियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थीं. जब भी उन के घर जाओ, उन के मुंह से किसी न किसी आदर्श साधुसंत के गुणगान सुनने को मिलते.

मु झे उन की इस आदत से बहुत दुख होता और मैं उन्हें इस के लिए खरीखोटी सुनाती. लेकिन मेरा सारा कहनासुनना वे एक तरल मुसकराहट से पी जातीं और बहुत ही धैर्य व तसल्ली से सम झातीं, ‘देख लल्ली, तू ठहरी आजकल की पढ़ीलिखी छोरी. तु झे इन साधुसंतों के चमत्कारों का क्या ज्ञान. तू तो सदा खुशहाल रही है. मेरे जैसे दुखों की तो तु झ पर परछाईं भी नहीं पड़ी है. सो, तु झे इन साधुसंतों की शरण में जाने की क्या जरूरत? देख लल्ली, मैं कभी न चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी दुख या निराशा की बदली तेरे आंगन में छाए, लेकिन फिर भी मैं तु झ से कहे देती हूं कि कभी किसी तरह के दुख या विपरीत परिस्थितियों से तेरा सामना हो तो सीधे मेरे पास चली आना. इतने गुणी और चमत्कारी साधुमहात्माओं से मेरी पहचान है कि सारे कष्टों की बदली को वे अपने एक इशारे से हटा सकते हैं.

‘दिल्ली वाली कभी बड़े बोल नहीं बोलती लेकिन तू ही बता, साधुसंतों की बदौलत आज मु झे किस बात की कमी है? धनदौलत और औलद, सब से तो मेरा घरआंगन लबालब है.’

दीदी की यह गर्वोक्ति सुन कर मैं ने मन ही मन प्रकृति से यही मांगा कि मेरी बहन की खुशहाली को कभी किसी की नजर न लगे. हमेशा उन के घरचौबारे में खुशहाली रहे.

औलाद के अलावा उन को किसी चीज की कमी नहीं रही थी जिंदगी में. शादी से पहले से दीदी डीलडौल में कुछ ज्यादा ही इक्कीस थीं लेकिन भीमकाय काया के बावजूद अपने अच्छे कर्मों की बदौलत उन की शादी अच्छे मालदार घराने में बहुत ही छरहरे, सुदर्शन युवक से हुई.

जीजाजी दिल के इतने अच्छे कि दीदी के मुंह से कोईर् बात निकलती नहीं कि जीजाजी  झट उसे पूरा कर देते. जिंदगी में उन्हें बस एक कमी थी कि शादी के 15 वर्षों बाद तक उन के आंगन में कोई किलकारी नहीं गूंजी थी. जीजाजी को बच्चे न होने का कोई गम न था.

वे तो हमेशा दीदी से कहते, ‘अरे, अपना कोई बच्चा नहीं है तो अच्छा है न, तू मु झे कितना लाड़ लड़ाती है. अपने बीच बच्चे होते तो वह लाड़ बंट न जाता भला.’ लेकिन दीदी बच्चे के बिना जिंदगी कलपकलप कर गुजारतीं. वे तमाम मंदिरों, गुरुद्वारों, मजारों आदि पर बच्चा होने की मनौतियां मांग आई थीं. दिनभर साधुमहात्माओं के ठिकानों पर पड़ी रहतीं और उन के बताए व्रत, उपवास आदि पूरी निष्ठा से करतीं.

उसी दौरान दिल्ली में बद्रीबाबा नाम के एक साधु की बहुत धूम मची थी. दीदी उन के भक्तिभाव तथा चुंबकीय व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित थीं. उन्होंने दीदी को एक अनुष्ठान करने के लिए कहा था. उन के कहे अनुसार लगातार 51 सोमवारों को यज्ञ करते ही दीदी गर्भवती हो गई थीं और नियत वक्त पर उन के यहां चांद सा सुंदर बेटा हुआ. बेटे के जन्म के बाद एक बेटी पाने को दीदी ने स्वामीजी द्वारा बताया अनुष्ठान दोबारा किया और फिर गर्भधारण करने पर नियत वक्त पर उन्होंने बहुत सुंदर कन्या को जन्म दिया. जैसेजैसे समय बीतता गया, साधुमहात्माओं में ‘दिल्ली वाली’ की निष्ठा बढ़ती ही गई.

अब तो पिछले कुछ सालों से उन के घर में बाकायदा चिन्मयानंद नाम के एक स्वामी ने घुसपैठ कर ली थी. वह स्वामी खुद को दिल्ली वाली का पिछले जन्म का बेटा बताता था. दीदी के घर में उसे दीदी और जीजाजी का अत्यधिक लाड़ मिलता. घर में उसे वे सारे अधिकार मिले थे जो उन के बेटे आशीष को थे. आशीष तो यहां तक कहने लगा था कि मां, उस से ज्यादा स्वामी चिन्मयानंद को चाहने लगी हैं. कभीकभी तो चिन्मयानंद को ले कर वह मां से  झगड़ बैठता और मां से चिन्मयानंद का पक्ष लेने की बाबत उन से हफ्तों रूठा रहता.

सरल स्वभाव के जीजाजी वही करते जो दीदी कहतीं. उन्होंने जिंदगी में कभी दीदी का सही या गलत किसी बात का विरोध नहीं किया. दीदी की खुशी में ही उन की खुशी थी. सो, उन्होंने चिन्मयानंद को बेटे की तरह रखा.

चिन्मयानंद भी पूरे अधिकारभाव से परिवार में रहता. उस ने सारे परिवार को अपने सम्मोहक व्यक्तित्व के वश में कर रखा था.

चिन्मयानंद ने घर वालों को बताया था कि उस के असली मांबाप तो काशी में रहते हैं. उस के कई भाईबहन हुए, लेकिन सब बचपन में ही चल बसे. एक वही कुछ ज्यादा दिनों तक जिंदा रहा. सो

10-11 वर्ष का होते ही मातापिता ने उसे उसी साधु के सुपुर्द कर दिया जिस के आशीर्वाद से उस का जन्म हुआ था. वह साधु उसे अपने अन्य शागिर्दों की टोली के साथ हिमालय की तराइयों में ले गया था.

उस का बचपन स्वामीजी के साथ हिमालय की तराइयों में ही बीता. थोड़ा बड़ा होने पर उस ने स्वामीजी से दीक्षा ली थी.

चिन्मयानंद का स्वर बहुत ही मधुर था. स्वामीजी के ठिकाने पर कीर्तन का दायित्व उसी के कंधों पर था. जब भी वह अपने मधुर स्वरों में कोई भजन छेड़ता, कीर्तन में श्रद्धालुओं की संख्या दोगुनी हो जाती.

एक दिन किसी प्रसिद्ध संगीत कंपनी के मालिक ने जब चिन्मयानंद का एक भजन सुना तो उस ने उस की गायन क्षमता से प्रभावित हो कर उस के भजनों के 2-3 कैसेट निकलवा दिए.

इधर यहां आने के कुछ ही दिनों बाद चिन्मयानंद ने इस घर से रिश्ता जोड़ने का पुख्ता इंतजाम कर लिया था. दीदी की एकलौती बेटी  झरना उस पर री झ कर उस के प्रेमपाश में जकड़ गई थी और उस की मंशा उस से विवाह करने की थी.

जमाना बदल गया- भाग 3 : आकांक्षा को अपने नाम से क्यों परेशानी थी

मैं ने कहा, “मुझे छत पर जाने नहीं देते. सब लोग कपड़े छत पर सुखाते हैं और मुझे कहते हैं कि अपने देवर को दे दो वह सूखा देगा. मम्मी बताओ तो अंडरगारमैंट्स अपने जवान देवर को कैसे देती फैलाने?” मेरे सासससुर कहते हैं कि अब तेरा घर यही है. अब तू पीहर नहीं जाएगी. बहुत रह लिया पीहर में.”

मेरी मम्मी सुन कर बहुत रोईं.मेरे मम्मीपापा मुझे जान से भी ज्यादा चाहते थे. पापा तो मुझे आकांक्षा भी नहीं बुलाते आकांक्षाजी कहते थे. उन्होंने हमेशा मुझे प्रेम, प्यार और इज्जत से रखा.

जब मैं पीहर आती तो मेरे ससुरजी मेरे पर्स की तलाशी लेते और कहते कि हमारे घर से क्या ले जा रही हो? उन के घर में कुछ भी नहीं था जो मैं साथ ले जाती. और ले भी क्यों जाती क्योंकि पीहर में कोई कमी नहीं थी.

एक दिन तो मुझे बहुत तेज गुस्सा आया. जैसे ही उन्होंने कहा कि पर्स दो तो मैं ने कह दिया, “पापाजी, आप तो बहू से घूंघट करवाते हो. फिर आप कैसे बहू के पर्स को खोल कर देख सकते हो? हमें अपने पर्स में सैनिटरी पैड्स भी रखना पड़ता है… हम आप को दिखाएं?”

सास अनपढ़ थीं. उन को कुछ समझ में नहीं आता. वह भी ससुर से उलटा चुगली करती थीं. ससुरजी हमेशा लड़ने को तैयार रहते थे. इस बीच ऐसा हुआ कि मेरे दूर के मामाजी, जो जयपुर में ही रहते थे, मेरे ससुरजी उन की औफिस में पहुंच गए.

उन से बोले,”आप की भांजी देवरों के अंडरवियर नहीं धोती.” मामाजी भौंचक्के रह गए. मामाजी ने सिर्फ इतना कहा, “साहब, छोटी बात को बड़ा मत कीजिए? अभी तो वह 20 साल की ही है. घर में लाड़प्यार से पलीबङी बच्ची है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.”

शाम को मामाजी घर आए. उन्होंने पूछा,”बिटिया आकांक्षा कैसी है?” “बहुत बढ़िया,”मम्मी बोलीं. पापा से पूछा. उन का भी यही जवाब था. तब वे बोले, “मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा? मैं तो जब आप से पूछता हूं कि आकांक्षा कैसी है सब बढ़िया कहते हो. आज आकांक्षा के ससुरजी मेरे औफिस आए. वे जो भी वह कह रहे थे बहुत हास्यास्पद था. आप क्यों छिपा रहे हो?”

अब फटने की बारी पापा की थी,”मैं ने तो पहले ही कहा था ये लोग बेकार आदमी हैं. आप की बहन मानी नहीं और अपनी जिद पर अड़ी रही. आज मेरी लड़की तकलीफ में है. अब हम क्या कर सकते हैं? “20 साल की लड़की 12 लोगों का खाना बनाती है और उस से उम्मीद की जाती है कि पूरे घर की साफसफाई, झाड़ूपोंछा वही लगाए, पूरे घर वालों के कपड़े धोए, देवरों को पढ़ाए.

“ससुर अफसर तो थे साथ में पत्नी के नाम से इंश्योरैंस का काम भी करते थे. पत्नी तो पढ़ीलिखी नहीं थी अतः उस का काम भी आकांक्षा से कराना चाहते हैं. इस के अलावा उस को कालेज भी जाना पङता है अपनी पढ़ाई पूरी करने.”

मेरी मम्मी परेशान होतीं और कहतीं, “मैं बात करूं?” पापा कहते, “ऐसे तो संबंध बिगड़ जाएगा. हर बात की तुम्हें जल्दी पड़ी रहती है. शादी की भी जल्दी थी अब बात करने की भी जल्दी है.” और लोगों ने भी मम्मी को समझाया कि जल्दबाजी मत करो. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.

सब से बड़ी बात तो सासससुर को छोड़ो, मेरा पति सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी कंपनी में नौकरी कर ली. इतने में मैं प्रैगनैंट हो गई. मेरी तबीयत खराब रहने लगी. ऊपर से पढ़ाई और काम करना बहुत मुश्किल हो गया. पीहर वालों की प्रेरणा से किसी प्रकार से मैं ने परीक्षा की तैयारी की. पूरा समय था जब मैं ने ऐग्जाम दिया.

बहुत मुश्किल से गरमी के दिनों में भी ऐग्जाम देने जाती थी. खैर परीक्षा खत्म होने के हफ्ते दिन बाद बेटा पैदा हुआ. उस के पहले मेरे सास ही नहीं पति और देवर भी कहते थे कि हमारे घर में लड़की होने का रिवाज नहीं है. हमारे घर तो लड़के ही होते हैं. लड़कियां चाहिए भी नहीं.

इन बातों को सुन कर मुझे बहुत घबराहट होती थी. मैं मम्मी से कहती,”मम्मी, यदि लड़की हो जाए तो ये लोग लड़ाई करेंगे?” मम्मी परेशान हो जातीं. मुझे पीहर आने नहीं दे रहे थे पर मैं जिद कर के आ गई थी.

बेटा हुआ तो उन्हें सूचित किया. 5 मिनट के लिए सासूमां आईं.इस के पहले मम्मी ने मेरी जन्मपत्री पंडितजी को दिखाए. उन्होंने बहुत सारे उपचार बताए. मम्मी ने सब पर खर्चा किया. पर उस से कुछ नहीं हुआ. कोई और आया नहीं. ना कोई खर्चा किया, ना कोई फंक्शन. मम्मीपापा ने ही सारे खर्चे उठाए. मुझे विदा करते समय भी मम्मी ने बहुत कुछ दिया.

मम्मी नौकरी करती थीं, बावजूद छुट्टी ले कर सबकुछ करना पड़ा, जिस का मुझे बहुत दुख हुआ. ससुराल वाले आ कर मुझे ले कर गए. बच्चा रोता तो उस को ले कर पति मुझे खड़े रहने को बोलते. ठंड में मैं बिना कपड़े के ही खड़ी रहती. इन परिस्थितियों में राजीव का ट्रांसफर छोटे गांव में हो गया. वे मुझे वहां ले कर गए.

यह ट्रांसफर राजीव ने जानबूझ कर कराया था ताकि मैं दूरदर्शन और आकाशवाणी में ना जा सकूं. वहां रोज मुझ से लड़ाई करते. सुबह ठंड के दिनों में 4 बजे उठ कर नहाने को कहते. ‘आज चौथ का व्रत है,’ ‘आज पूर्णमासी है,’ ‘आज एकादशी है…’ रोज कुछ ना कुछ होता और मुझे व्रत रखने को मजबूर करते.

मुझे बहुत ऐसिडिटी होती थी. डाक्टर ने मुझे खाली पेट रहने को मना किया. पर मैं क्या कर सकती थी. “हमारे यहां तो सारी औरतें रखती हैं. तुम कोई अनोखी हो क्या? तुम्हें अपने पढ़ाई का घमंड है.” मैं जब भी अपनी मम्मी को चिट्ठी  लिखती, तो राजीव कहते कि मैं पोस्ट कर दूंगा. मुझे लगता वह कर देंगे, मगर मम्मी ने मुझे बताया कि उन के पास कोई चिट्ठी ही नहीं आई.

मम्मी कोई चिट्ठी भेजतीं तो औफिस के पते पर पोस्ट करने को कहा जाता. मैं ने कहा कि घर के पते पर मंगाओ तो राजीव कहते कि यहां पर ठीक से पोस्टमैन नहीं आता. मम्मी की पत्रों को भी मुझे नहीं दिया जाता. मेरी पत्रों को भी ऐसा संदूक में बंद कर के ताला लगा जाते. इस का तो मुझे पता ही नहीं था.

जब पति पीटे तो क्या करें पत्नी

मध्यवर्गीय परिवार की रेखा और यतिन ने अपने परिवारों की मरजी के खिलाफ प्रेमविवाह किया था. शादी की शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा, लेकिन कुछ समय बाद रेखा के प्रति यतिन का व्यवहार बदलने लगा. वह आएदिन छोटीछोटी बातों को ले कर रेखा पर गुस्सा करने लगा और एक दिन ऐसा आया जब उस ने रेखा पर हाथ उठा दिया. पहली बार हाथ क्या उठाया, यह रोज का नियम बन गया. हालांकि यतिन किसी गलत संगत में नहीं था. खानेपीने का शौकीन यतिन अकसर रेखा के बनाए खाने में कोई न कोई कमी निकाल कर उसे पीटता था.

धीरेधीरे 15 वर्ष गुजर गए. रेखा 3 बच्चों की मां बन गई. बच्चे बड़े हो गए लेकिन यतिन के व्यवहार में बदलाव न आया. वह बच्चों के सामने भी रेखा को पीटता था. वहीं, वह कई बार अपनी गलती के लिए माफी भी मांग लेता था. रेखा चुपचाप पति की मार खा लेती. उन का बड़ा बेटा जब 14 साल का हुआ तो उस ने पिता के इस व्यवहार पर आपत्ति जताते हुए मां को ये सब और न सहने की सलाह दी. रेखा भी पति की रोजरोज की मार से अब तंग आ चुकी थी. एक दिन रेखा का बेटा अपनी मां को महिला आयोग में अपने पिता की शिकायत दर्ज करवाने ले गया. आयोग ने रेखा की परेशानी को ध्यान से सुना और यतिन को बुला कर दोनों को समझाने का प्रयास किया.

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स्थिति यहां तक हो गई थी कि दोनों एक ही छत के नीचे रह कर एकदूसरे के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे थे. कड़वाहट बढ़ती जा रही थी. कुछ दिनों के बाद रेखा ने घर छोड़ने का फैसला किया. वह बच्चों को ले कर किराए के एक मकान में अलग रहने लगी. अब आएदिन दोनों महिला आयोग में जा कर आमनेसामने खड़े होते थे. दोनों के बीच कहासुनी होती, आरोपप्रत्यारोप होते. बात बनने के बजाय बिगड़ती जा रही थी. यतिन ने घर के मामले को पुलिस में ले जाने को अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लिया. उसे इस बात को ले कर बच्चों से भी घृणा होने लगी. उसे लगा कि रेखा ने उस के बच्चों को उस के खिलाफ भड़का दिया है.

रेखा घर चलाने के लिए पति से हर माह खर्च देने की मांग कर रही थी. उधर, यतिन खर्च देने को तैयार नहीं था. इस सब के बीच दोनों की रिश्तेदारों व आसपड़ोस में कई लोग ऐसे भी थे जो स्थिति का लुत्फ उठा रहे थे. कुछ महीनों बाद जब यतिन से बच्चों की दूरी नहीं झेली गई तो आखिरकार वह पत्नी और बच्चों को मना कर घर वापस ले आया. इधर रेखा को भी इस दौरान यह समझ आ गया था कि उस के लिए बच्चों को अकेले पालना आसान काम नहीं था. इस तरह एक बिगड़ता हुआ घरौंदा फिर से बस गया. हालांकि इस तरह के हर मामलों में बिगड़ी हुई बात हमेशा बन ही जाए, ऐसा हमेशा संभव नहीं होता. अकसर पतिपत्नी के बीच की बात जब चारदीवारी से निकलती है तो रिश्तों में तल्खियां बढ़ जाती हैं और बनने की संभावना वाला रिश्ता भी टूट जाता है.

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हम इस बात की पैरवी बिलकुल नहीं कर रहे हैं कि महिलाओं को चुपचाप घरेलू हिंसा का शिकार होते रहना चाहिए या खुद पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठानी चाहिए बल्कि आशय यह है कि जिन रिश्तों में कुछ गर्माहट हो और उन के बचने की थोड़ीबहुत भी उम्मीद हो तो उन्हें टूटने से बचा लेना ही समझदारी है. रिश्तों के टूटने का दंश किसी एक को नहीं बल्कि कई लोगों को जीवनभर झेलना पड़ता है. ऐसे भी अनेक मामले हैं जिन में मामूली बात पर परिवार टूट जाते हैं. पत्नी आवेश में आ कर घरेलू हिंसा कानून का फायदा उठाना चाहती है.

महिलाओं को उन के कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की बात की जाती है तो उन अधिकारों के गलत इस्तेमाल न करने की नसीहत भी देनी जरूरी है.

पतिपत्नी में हिंसा

घरेलू हिंसा पूरे विश्व में व्याप्त है. जहां तक हमारे देश का सवाल है तो यहां महिलाओं के विरुद्ध होने वाले सभी तरह के अपराधों में लगभग 50 प्रतिशत घर के अंदर ही किए जाते हैं. पति व पत्नी के बीच झगड़े हर घर में होते हैं और पति गुस्से में आ कर कभीकभार पत्नी पर हाथ भी उठा देता है. लेकिन जब पति छोटीछोटी बात को ले कर हर रोज पत्नी को पीटना शुरू कर देता है तब समस्या खड़ी हो जाती है. अधिकतर पति द्वारा पत्नी को पीटने की नौबत तब आती है जब पति शराबी, नशेड़ी, व्यभिचारी अथवा जुआरी होता है. वैसे, हमारे समाज में पत्नी के साथ मारपीट करना अधिकतर पुरुष अपना अधिकार समझते हैं.

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सवाल यह है कि पत्नी आखिर किस हद तक पति की मार को बर्दाश्त करे. यदि पति हर रोज शराब के नशे में पत्नी को पीटता है और इस हद तक पीटता है कि चोट के निशान लंबे समय तक उस के शरीर पर बने रहते हैं तो यह समस्या काफी गंभीर है. इसे लंबे समय तक चुपचाप सहना पत्नी को मानसिक रूप से अस्थिर बना सकता है. ऐसी स्थिति में पत्नी पहले अपने रिश्तेदारों और फिर आसपड़ोस के लोगों की मदद ले सकती है, ताकि घर की बात घर में ही सुलझ जाए. यदि लंबे समय तक हालत जस की तस रहती है तो पति को सबक सिखाना जरूरी होता है.

वहीं, कई परिवारों में पत्नियां, पति के एक थप्पड़ को भी अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना लेती हैं और घरेलू हिंसा कानून को वे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकतीं. ऐसे में महज एक छोटी सी बात पर परिवार के बिखरने की आशंका बन जाती है. यदि पति पत्नी को पीटता है तो सब से पहले अपने स्तर पर उसे प्यार से समझाने की कोशिश करे. इस के बाद घर के बड़ों को इस से अवगत करवाए. अंत में ही कानून का सहारा ले. किसी के बहकावे में आ कर कोई फैसला न लें बल्कि परिस्थितियों का आकलन स्वयं कर के समस्या के निबटारे का रास्ता खोजे.

गलती किस की

जिन महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून की जानकारी है वे यह बात भी अच्छी तरह जानती हैं कि आयोग या पुलिस में पति के खिलाफ शिकायत करने का अर्थ तुरंत कार्यवाही होना है. ऐसे में वे आवेश में आ कर यह भी नहीं देखतीं कि गलती वास्तव

में पति की थी या उन की. कई पत्नियां ऐसी भी होती हैं जो अपनी गलती को कभी स्वीकार नहीं करना चाहतीं. वे झगड़े के लिए हमेशा पति को दोषी ठहराती हैं. उदाहरण के लिए यदि पत्नी को पति पर किसी और स्त्री के साथ अवैध संबंध रखने का शक है और पति निर्दोष है, लेकिन पत्नी इस बात को ले कर बारबार पति को आरोपित करती रहती है और पति गुस्से में आ कर पत्नी पर हाथ उठा देता है. ऐसे में पत्नी को सिर्फ यह ही दिखाई देता है कि पति ने उस पर हाथ उठाया. वह अपनी गलती स्वीकार नहीं करती. ऐसे में आननफानन वह घर छोड़ देती है अथवा पति के खिलाफ पुलिस में चली जाती है.

इस का नतीजा रिश्ता टूट जाने के रूप में सामने आ सकता है. और एक बार कोई रिश्ता टूट जाता है तो उसे जोड़ना बेहद मुश्किल होता है. यदि वह रिश्ता जैसेतैसे जुड़ भी जाता है तो उस में कसक की गांठ हमेशा के लिए पड़ जाती है.

एक छत के नीचे कानूनी लड़ाई

जब पतिपत्नी के बीच मारपीट का मामला पुलिस में चला जाता है और दोनों एक ही छत के नीचे रह रहे होते हैं तो ऐसे में दोनों के लिए ही स्थिति बेहद खराब हो जाती है. घर में दोनों अंजान लोगों की तरह रहते हैं. बच्चों में बंटवारा हो जाता है. बच्चे हर समय मां के आसपास रहते हैं. पिता उन से बात करने से पहले कई बार सोचता है. वैसे एक छत के नीचे रहते हुए एकदूसरे के खिलाफ लड़ना आसान नहीं होता. हर समय तनातनी रहती है. पति को घर से बाहर जा कर भोजन करना पड़ता है. हालांकि ऐसी स्थिति लंबे समय तक नहीं चलती. या तो दोनों में सुलह हो जाती है या दोनों हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं.

विवेक से लें फैसला

जहां पत्नियां लंबे समय तक पति की मार को परिवार की भलाई के लिए चुपचाप सहती रहती हैं वहां इस के विपरीत ऐसा भी देखने को मिलता है कि जरा सी बात को ले कर कई महिलाएं बिना सोचेविचारे मामला घर में सुलझाने के बजाय पुलिस में चली जाती हैं. आमतौर पर पति जब गुस्से में होते हैं तो पत्नी पर हाथ उठाते हैं, वहीं अधिकतर महिलाएं गुस्से में रोने लगती हैं.

घरेलू हिंसा अधिनियम बेशक घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के लिए रामबाण है. लेकिन कई बार रोष में आ कर महिलाएं उस बात को ले कर भी कानून का सहारा लेने पर आतुर हो जाती हैं जो आपस में बातचीत से सुलझाई जा सकती थी. कई पति स्वभाव से गुस्सैल होते हैं जिन्हें पत्नी पर हाथ उठाने के बाद अपनी गलती का एहसास होता है. इसे पत्नियां अपने आत्मसम्मान का प्रश्न बना कर बिना सोचेविचारे पति के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा देती हैं. कोर्टकचहरी के चक्कर काटने पड़ते हैं. बच्चे मांबाप के झगड़े के बीच पिसते हैं. पैसा, शक्ति व समय की बरबादी होती है. जल्दबाजी में लिया गया फैसला जीवन भर पश्चात्ताप देता है. कई बार किसी के बहकावे में आ कर भी महिलाएं ऐसे कदम उठा लेती हैं जिस का एहसास उन्हें बाद में होता है, इसलिए कोई भी फैसला लेने से पहले स्वयं गहन सोचविचार करें.

दिल्ली महिला आयोग का कहना है कि महिला आयोग में अधिकतर निम्न व निम्नमध्य वर्गीय परिवारों के मामले आते हैं. इन में ज्यादातर मामलों में औरत घर से बाहर तब आती है जब हालात उस के बस से बाहर हो जाते हैं और उस के बर्दाश्त करने की क्षमता जवाब दे जाती है. वरना जब तक सहन किया जाता है वह सहती है.

आयोग में जाने पर भी महिलाओं का तात्पर्य परिवार तोड़ना नहीं होता बल्कि यहां भी वे इस उम्मीद के साथ आती हैं कि किसी तीसरे की डांट या सलाह से उन का पति सुधर जाए और एक बार फिर सबकुछ सामान्य हो जाए.

जहां तक पतियों का सवाल है तो अधिकतर वे लोग ही पत्नी को पीटते हैं जो अशिक्षित होते हैं. वैसे नोकझोंक हर पतिपत्नी में होती है लेकिन अधिकतर पढ़ेलिखे पतिपत्नियों के बीच मारपीट की नौबत नहीं आती. ऐसा इसलिए क्योंकि उन के पास अलगअलग हो कर रहने के साधन मुहैया होते हैं. जबकि निम्न या निम्नमध्य वर्गीय परिवार की एक औरत आर्थिक रूप से पति पर ही निर्भर रहती है.

आयोग में इस तरह के मामले आते हैं तो वह दोनों पक्षों को बुला कर काउंसलिंग करता है. 60-70 प्रतिशत मामलों में परिवार दोबारा बस जाते हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाता है. थोड़े ही ऐसे मामले होते हैं जिन में पति चाहता है कि पत्नी से पिंड छूटे अथवा वे इसे अपने आत्मसम्मान का प्रश्न भी बना लेते हैं.

दरअसल, जहां विश्वास खत्म हो जाता है या पतिपत्नी के बीच मानसिक रूप से आपसी समझ पैदा नहीं हो पाती वहां रिश्ते टूटने से बच नहीं पाते, हालांकि उस स्थिति में भी गुंजाइश रहती है कि वे समस्या से सकारात्मक रूप से निबटें, अपने मन को, विचारों को सकारात्मक रूप दें और समझौता कर लें ताकि पारिवारिक जीवन व रिश्ता कायम रहे.

क्या है घरेलू हिंसा

घरेलू हिंसा में घर के एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य के साथ कोई ऐसा व्यवहार किया जाए जिस से पीडि़त सदस्य के स्वास्थ्य या जीवन को कोई खतरा पैदा हो जाए. साथ ही किसी को मानसिक, आर्थिक या लैंगिक रूप से प्रभावित करना भी घरेलू हिंसा के अन्य प्रकार हैं. आमतौर पर हमारे यहां ससुराल में बहुओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है. दहेज को ले कर बहू को ससुराल वालों द्वारा परेशान किया जाता है, मारापीटा जाता है, यहां तक कि कभीकभी तो उसे जान से मार दिया जाता है. पति द्वारा भी पत्नियां घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं. आमतौर पर पति द्वारा पत्नियों को पीटने के मामले सामने आते हैं.

क्या कहता है घरेलू हिंसा अधिनियम

घरेलू हिंसा अधिनियम (प्रिवैंशन औफ डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट 2005) 2005 में बना और इसे 2006 में लागू किया गया. यह कानून ऐसी महिलाओं के लिए है जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी किस्म की हिंसा से पीडि़त हैं. इस में अपशब्द कहे जाने, किसी प्रकार की रोकटोक करने और मारपीट करना आदि प्रताड़ना के प्रकार शामिल हैं. इस अधिनियम के अंतर्गत प्रताडि़त महिला किसी भी वयस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उस के विरुद्ध प्रकरण दर्ज करवा सकती है. मामला दर्ज होने के बाद पुलिस तुरंत कार्यवाही करती है.

विश्वास का मोल

लेखिका-रेणु दीप

इन 8 आधारों पर तलाक ले सकती है मुसलिम महिला

मुसलिम औरत को अग्रलिखित आधारों पर तलाक पाने का अधिकार मुसलिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 के तहत हासिल है.

1.पति की अनुपस्थिति :

यदि पति 4 साल तक अनुपस्थित रहता है तो ऐसी परिस्थिति में एक मुसलिम महिला अपने विवाह को विघटन करने के लिए न्यायालय में आवेदन दे कर डिक्री ले सकती है. यह डिक्री इस के पारित होने के 6 महीने के भीतर प्रभावी होती है. यदि  6 महीने के भीतर पति वापस लौट आता है तो डिक्री को वापस रद्द करना होता है.

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2. भरणपोषण करने में पति असफल हो :

यदि पति 2 साल तक पत्नी के भरणपोषण के संबंध में उपेक्षा करे या असफल रहे तो भी मुसलिम विधि के अंतर्गत स्त्री विवाह विच्छेद की डिक्री की हकदार हो जाती है. पति वाद का केवल इस आधार पर प्रतिवाद नहीं कर सकता कि वह अपनी निर्धनता, अस्वस्थता, बेरोजगारी या कारावास या अन्य किसी आधार पर उस का भरणपोषण नहीं कर सका. मुसलिम विधि में एक पति को अपनी पत्नी का भरणपोषण करने का परम कर्तव्य सौंपा गया है. यदि वह कर्तव्य को भलीभांति पूरा नहीं करता है तो पत्नी को यह अधिकार है कि वह उस से तलाक मांग ले.

3. पति जेल में हो :

यदि पति को 7 साल तक का कारावास दे दिया जाता है. दंडादेश अंतिम हो गया है तथा इस दंडादेश के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई अपील नहीं की जा सकती है तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी न्यायालय से तलाक की डिक्री मांग सकती है.

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4. दांपत्य दायित्व के पालन में असफल : 

यदि बिना उचित कारण के पति ने 3 साल तक दांपत्य दायित्व का पालन नहीं किया है तो पत्नी विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने की हकदार है.

5. पति की नपुंसकता :

यदि पति विवाह के समय नपुंसक था और अब भी है तो पत्नी विवाह विच्छेद की न्यायिक डिक्री प्राप्त करने की हकदार है. डिक्री पारित करने से पूर्व न्यायालय पति के आवेदन पर उस से अपेक्षा करते हुए यह आदेश पारित करेगा कि ऐसे आदेश पाने के एक साल के अंदर वह न्यायालय को इस बारे में आश्वस्त कर दे कि वह नपुंसक नहीं रह गया है. यदि वैसा कर दे तो डिक्री प्रभावी नहीं की जाएगी. नपुंसकता के अंतर्गत पूर्ण और संबंधित नपुंसक दोनों को लिया जाता है. पूर्ण नपुंसक व्यक्ति प्रत्येक स्त्री के प्रति नपुंसक होता है और संबंधित नपुंसक किसी निर्धारित स्त्री के प्रति नपुंसक होता है. यदि पति अपनी पत्नी के प्रति नपुंसक है, उस के साथ सहवास नहीं कर पाता है तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी द्वारा तलाक मांगा जा सकता है और इस आधार पर न्यायालय डिक्री पारित कर सकता है.

6. पति का पागलपन :

पति यदि पागल हो गया है या फिर कुष्ठ रोग या किसी ऐसे रोग से पीडि़त है जिस का संक्रमण एक से दूसरे में फैलता है, जैसे एचआईवी या एड्स, तो ऐसी स्थिति में महिला न्यायालय में तलाक की डिक्री मांग सकती है.

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7. पत्नी द्वारा विवाह अस्वीकृत करना :

यदि पत्नी का विवाह उस की नाबालिग अवस्था में उस के मातापिता की सहमति से कर दिया गया था तो 18 साल के पहले वह अपने विवाह को अस्वीकार करवा सकती है तथा न्यायालय में इस आधार पर डिक्री मांग सकती है कि उस का विवाह उस की सहमति से नहीं हुआ है.

8. पति की निदर्यता :

अधिनियम की धारा 2(8) के अनुसार पति द्वारा निर्दयता या क्रूरता करने पर भी पत्नी द्वारा न्यायालय से तलाक की डिक्री मांगी जा सकती है. पति अपनी पत्नी के साथ मारपीट करता है, अनैतिक औरतों के साथ संबंध रखता है, तवायफ के कोठे पर जाता है, दहेज की मांग करता है, पत्नी के मातापिता को गाली देता है तो ऐसी परिस्थिति में पत्नी तलाक मांग सकती है. न्यायालय को इस आधार पर डिक्री प्रदान करनी होगी.

इस लिहाज से मुसलिम औरतों को कानून और कुरान दोनों के जरिए बहुत से अधिकार मिले हुए हैं जिन के जरिए वे गुलामी, हिंसा, प्रताड़ना और धोखाधड़ी से बच सकती हैं.

हिंदू महिलाओं की स्थिति चिंताजनक…

वहीं हिंदू धर्म पर नजर डाली जाए तो वहां विवाह कोई कौंट्रैक्ट नहीं, बल्कि एक संस्कार है. वहां विवाह को 7 जन्मों का रिश्ता बताया जाता है. घर से बेटी ससुराल के लिए विदा होती है तो उस से यह कहा जाता है कि अब ससुराल ही तुम्हारा अपना घर है. अब उस घर से तुम्हारी अर्थी ही उठेगी. यानी हिंदू औरत को हर जुल्म, प्रताड़ना, हिंसा और गालीगलौज  झेलते हुए अपनी ससुराल में ही रहने को बाध्य किया गया है.

पति कितना ही क्रूर हो, बाहरी औरतों के साथ शारीरिक संबंध रखता हो, शराबी हो, पत्नी को पीटता हो, नपुंसक हो, नालायक हो, पत्नीबच्चों के भरणपोषण का जिम्मा ना उठाता हो, फिर भी हिंदू धर्म में औरत को कहा जाता है, ‘पति परमेश्वर है.’ कहना गलत न होगा कि हिंदू समाज अपनी औरतों के प्रति ज्यादा कट्टर है और वहां गैरबराबरी का बोलबाला है.

जबकि मुसलिम समाज ने अपनी औरतों को जुल्म बरदाश्त न करने और बराबरी का दर्जा पाने का हक 1939 में ही दिला दिया था. यह और बात है कि गरीबी, आर्थिक रूप से दूसरे पर निर्भरता, शिक्षा की कमी और मौलानाओं की बदनीयती ने औरतों के हक की बहुतेरी बातें उन तक पहुंचने नहीं दीं. मगर पढ़ीलिखी मुसलिम औरतें काफी हद तक अपने अधिकारों से वाकिफ हैं.

केरल हाईकोर्ट ने भी शरिया कानून के तहत निकाह समाप्त करने के लिए मुसलिम महिलाओं को मिले अधिकारों पर बड़ी टिप्पणी करते हुए उन के द्वारा तलाक लेने के तरीकों, जिन में तलाक ए ताफवीज, खुला, मुबारत और फस्ख शामिल हैं, का उल्लेख किया और कहा, ‘शरियत कानून के प्रावधान-2 में तलाक के जिन तरीकों का जिक्र है वे सभी अब मुसलिम महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं. इसलिए हम मानते हैं कि के सी मोइन मामले में घोषित कानून सही कानून नहीं है.

उल्लेखनीय है कि लगभग सभी प्राचीन राष्ट्रों में विवाह विच्छेद दांपत्य अधिकारों का स्वाभाविक परिणाम सम झा जाता है. रोमवासियोंयहूदियोंइजरायली आदि सभी लोगों में विवाह विच्छेद किसी न किसी रूप में प्रचलित रहा है. इसलाम के आने के पहले तक पति को विवाह विच्छेद के असीमित अधिकार प्राप्त थे. मुसलिम विधि में तलाक को स्थान दिया गया है परंतु स्थान देने के साथ ही तलाक को घृणित भी माना गया है. मोहम्मद साहब का कथन है कि जो मनमानी रीति से पत्नी को अस्वीकार करता हैवह खुदा के श्राप का पात्र हो

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