मुंबई में रहने वाली 52 वर्षीय सुधा को कोविड हो गया, क्योंकि वे काम करने लोकल ट्रेन से दूसरी जगह जाती थी.  एक दिन उसे बुखार आया, तो दवा खा ली और खुद को क्वारंटाइन कर लिया, लेकिन अगले ही दिन 26 साल के भाई दिनेश को बुखार आ गया. भाई कहीं आताजाता नहीं था. उस का काम लौकडाउन की वजह से छूट  गया था. इसलिए भाई के फीवर आते ही सब का आरटीपीसीआर टैस्ट करवाया गया. सभी कोविड पौजिटिव निकलने के बाद उन के  फ्लैट को बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने सील कर दिया.

2 दिन बाद  भाई की तबीयत अचानक बिगड़ी. उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगी.  सुधा ने एंबुलैंस बुलाने की कोशिश की, कई जगह फोन किए, लेकिन कोई भी अस्पताल ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ.  तकरीबन एक घंटे बाद एक एंबुलैंस आई, जिस में भाई को सुधा खुद अस्पताल ले गई. वहां बैड बड़ी मुश्किल से मिला. 2 दिन बाद ही भाई की मौत कार्डिएक अरेस्ट से हो गई. इस दौरान उस के पिता और मां को भी कोविड ने घेर लिया.  आसपास के लोगों ने बेटे का अंतिम संस्कार करवाया.

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पिता को बेटे की मृत्यु का पता चलते ही हार्टअटैक आ गया. उन्हें भी अस्पताल ले जाया गया, पर उन्हें डाक्टर ने मृत घोषित कर दिया.  एक परिवार के 2 व्यक्ति एक दिन में गुजर गए. मां और बेटी अभी ठीक हैं, लेकिन रोरो कर उन का बुरा हाल हो रहा है. दोनों को कमजोरी बहुत है.  दरअसल, कमाने वाले व्यक्ति के गुजर जाने से पूरा परिवार मुश्किल में पड़ जाता है. इस परिवार ने पिता और बेटे को खोया है.  ऐसा ही कुछ कांदिवली की रहने वाली प्रीति के साथ हुआ. वे रोती हुई कहती हैं कि उन की 53 वर्षीय बहन, बेटा और गर्भवती बहू को कोविड हुआ. बेटा और बहू कुछ ठीक हुए नहीं कि बहन की हालत बिगड़ने लगी.

उन्हें नजदीक के अस्पताल में ले जाया गया. अस्पताल में बेटे को मां के लिए बैड बड़ी मुश्किल से मिला, लेकिन औक्सीजन का इंतजाम करतेकरते मां चल बसी. 2 दिन में बहन ने दम तोड़ दिया.  प्रीति ने इस तरह अपनी बहन और एक बेटे ने कमाऊ मां को खोया है. ऐसे न जाने कितने ही परिवार, घर बरबाद हो गए और बच्चे अनाथ हो गए.  असल में मुंबई जैसे शहर में इन सभी को बीएमसी के दफ्तर में डैथ सर्टिफिकेट, प्रौपर्टी का नाम अपने नाम करवाने के लिए न जाने कितने चक्कर लगाने पड़ेंगे.

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ये किसी को पता नहीं, क्योंकि सरकारी कार्यालयों में कोई काम समय से नहीं होता. हर कोई उस व्यक्ति को एक टेबल से दूसरे टेबल पर भेजता रहता है, दिन के अंत होने तक कोई भी काम का अंजाम व्यक्ति को नहीं मिल पाता. कार्यालयों में घूमने का सिलसिला कब तक जारी रहेगा, यह भी सम झ से परे है.  अब जब कोविड की दूसरी, तीसरी, चौथी न जाने कितनी लहरें आएंगी और हर लहर अपने साथ न जाने कितनों को बहा ले जाएगी, कितने लोग इस लौकडाउन यानी भुखमरी से मरेंगे, उन का हिसाब सरकार तो क्या कोई भी रखने में असमर्थ होगा. शायद इसलिए सरकार मैडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर, टीकाकरण, औक्सीजन आदि के बारे में न सोच कर ‘मेक इन इंडिया’  की धुन में है.

अच्छा ट्रीटमैंट मिल जाता तो बच जाता राहुल वोहरा   35 वर्षीय ऐक्टर और यूट्यूबर राहुल वोहरा की 9 मई को कोरोना की वजह से दिल्ली के अस्पताल में मौत हो गई. राहुल वोहरा ने अंतिम सांस लेने से एक दिन पहले यानी 8 मई को फेसबुक पर लिखा था कि अगर उन्हें अच्छा ट्रीटमैंट मिल जाता, तो वे बच जाते. उन का यह दर्दभरा मैसेज उन की मौत के बाद काफी वायरल हो रहा है.

राहुल वोहरा की पत्नी ज्योति तिवारी ने इलाज में लापरवाही को उस की मौत का जिम्मेदार ठहराया है. ज्योति ने अस्पताल से राहुल का आखिरी वीडियो शेयर किया है, जिस में वे औक्सीजन के बिना हांफते हुए दिख रहे हैं और बता रहे हैं कि कैसे डाक्टर उन्हें खाली औक्सीजन मास्क पहना कर चले गए और कोई उन की पुकार सुनने वाला भी नहीं. मास्क में बारबार पानी आ जाता है. नर्स वगैरह को बुलाने पर वह 2 मिनट की बात कह कर डेढ़दो घंटे में आते हैं.

राहुल का राजीव गांधी सुपर स्पैशलिटी अस्पताल, ताहिरपुर, दिल्ली में इलाज चल रहा था. राहुल और ज्योति की शादी 6 महीने पहले दिसंबर 2020 में हुई थी. ज्योति ने इंस्टाग्राम पर एक नोट शेयर किया, जिस में उन्होंने लिखा कि राहुल बहुत सारे सपने अधूरे छोड़ कर चले गए. उन्हें इंडस्ट्री में अच्छा काम करना था. खुद को साबित करना था, पर वह सबकुछ अधूरा रह जाएगा. इस हत्या के जिम्मेदार वे लोग हैं, जिन्होंने मेरे राहुल को तड़पते हुए देखा और हमें उन की  झूठी अपडेट देते रहे.

 

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