बहुत से दफ्तरों में ऐसा माहौल देखने को मिल जाता है जहां बौस के आने से पहले उसे बुराभला कहा जाता है और सामने उस की चापलूसी में कहीं भी कोई कसर नहीं छोड़ी जाती. कर्मचारी उन्हें खुश करने के तरीके ढूंढ़ते हैं. लेकिन ज्यों ही बौस की पीठ दिखी, कर्मचारी अपने चेहरों की आकृतियां व हावभाव जल्दी से बदल लेते हैं, पीछे से गाली देते हैं, अभद्र शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.

ऐसी स्थिति में कई प्रश्न और समस्याएं सहकर्मियों व सहायकों के समक्ष दुविधाजनक स्थिति उत्पन्न कर देती हैं. जब ऐसे लोग बौस के केबिन के बाहर भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने समकक्ष या सहकर्मियों के साथ भद्र व्यवहार व स्वस्थ आचरण नहीं करते, तब समस्या आती है कि उस परिस्थिति से कैसे निबटा जाए, क्या बौस को सही बात बता कर स्थिति स्पष्ट कर दी जाए और शिकायतकर्ता या चुगलीकर्ता का खिताब ले लिया जाए या बाहर ही विवेक व धैर्य से कुछ हद तक कमान संभाल ली जाए.

ये भी पढ़ें- सिंगल पेरैंट: अभिशाप या वरदान

ऐसी परिस्थिति के लिए क्या बौस ही जिम्मेदार है? नहीं. दोष आपसी समझ, सामंजस्यता, विवेक व सौहार्दपूर्ण, समायोजिक व्यवहार में कमी का है. हम अपनी गलतियों को स्वीकार न कर उन्हें दूसरों पर लाद देने का प्रयास करते हैं, अपने को दोषी जानना और समझना ही नहीं चाहते. सत्य यह है कि हम दूसरों पर दोष मढ़ कर खुद को पाकसाफ मानते हैं.

सहकर्मी, सहायक, कर्मचारी व अधीनस्थ कितनी ही चालाकी, कामचोरी करें, बौस को उन्हें दिनभर पर्याप्त काम कर के देना ही होता है. झल्लाहट, खुन्नस या बड़बड़ाहट जारी रखने से काम अच्छा और सही व समय पर कभी नहीं हो पाता. स्वच्छ व स्वस्थ नजरिया अपनाते हुए प्रत्येक का कर्तव्य बनता है कि जिस उद्देश्य के लिए उसे रखा गया है उसे वह पूरा करता रहे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...