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लेखक- आर एस खरे

अगले दिन मैं ने दूसरी बैंच पर बैठने का प्रयत्न किया तो उस पर पहले से बैठते आ रहे छात्र ने यह कहते हुए उठा दिया था कि ‘अपनी सीट पर जा कर बैठो, दूसरे की सीट पर क्यों बैठ रहे हो?’

वापस अपनी सीट पर आ कर बैठ कर सोचने लगा था  कि जब जमना आ कर बगल में बैठेगा और छू लेगा तो घर जा कर फिर से नहाना पड़ेगा. फिर निश्चय कर लिया था कि उस से साफसाफ कह दूंगा कि ‘थोड़ी दूर सरक कर बैठना, नहीं तो  तुम से छू जाने पर हमें घर जा कर फिर से नहाना पड़ेगा, तुम्हारी जाति मेहतर जो  है.’

उस दिन जमना स्कूल आया ही नहीं. पूरे समय उसी का ध्यान आता रहा. आया क्यों नहीं. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया. कितनी भारी अनाज से भरी टोकरी सिर पर रखे घरघर घूम रहा था. शाम को जब राधा रोटी लेने आएगी, तब उस से पूछूंगा कि जमना आज  स्कूल क्यों नहीं आया.

इंटरवल में सभी छात्र कक्षा से बाहर निकल गए थे. पर मैं अकेला बैंच  पर बैठा रहा था. बिना जमना के बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा था.  स्कूल की छुट्टी होने पर रास्तेभर जमना के बारे में ही सोचता रहा था कि आज स्कूल क्यों नहीं आया. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया.

घर पहुंच कर बुझे मन से मां को बताया था कि आज जमना स्कूल नहीं  आया था. आप शाम को जमना की मां से पूछना कि आज जमना स्कूल क्यों नहीं आया था. मां ने जब आश्वस्त किया था, तब मन को थोड़ी राहत मिली थी. मैं शाम होने का बेसब्री से इंतजार करता रहा.

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