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Hindi Kahani : हिमशिला – मां चुपचाप उसकी ओर क्यों देख रही थी?

Hindi Kahani : उस ने टैक्सी में बैठते हुए मेरे हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच भींचते हुए कहा, ‘‘अच्छा, जल्दी ही फिर मिलेंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘जरूर मिलेंगे,’’ और दूर जाती टैक्सी को देखती रही. उस की हथेलियों की गरमाहट देर तक मेरे हाथों को सहलाती रही. अचानक वातावरण में गहरे काले बादल छा गए. ये न जाने कब बरस पड़ें? बादलों के बरसने और मन के फटने में क्या देर लगती है? न जाने कब की जमी बर्फ पिघलने लगी और मैं, हिमशिला से साधारण मानवी बन गई, मुझे पता ही नहीं चला. मेरे मन में कब का विलुप्त हो गया प्रेम का उष्ण सोता उमड़ पड़ा, उफन पड़ा.

मेरी उस से पहली पहचान एक सैमिनार के दौरान हुई थी. मुख पर गंभीरता का मुखौटा लगाए मैं अपने में ही सिकुड़ीसिमटी एक कोने में बैठी थी कि ‘हैलो, मुझे प्रेम कहते हैं,’ कहते हुए उस का मेरी ओर एक हाथ बढ़ा था. मैं ने कुछकुछ रोष से भरी दृष्टि उस पर उठाई थी, ‘नमस्ते.’ उस के निश्छल, मुसकराते चेहरे में न जाने कैसी कशिश थी जो मेरे बाहरी कठोर आवरण को तोड़ अंतर्मन को भेद रही थी. मैं उस के साथ रुखाई से पेश न आ सकी. फिर धीरेधीरे 3 दिन उस के बिंदास स्वभाव के साथ कब और कैसे गुजर गए, मालूम नहीं. मैं उस की हर अदा पर मंत्रमुग्ध सी हो गई थी. सारे दिनों के साथ के बाद अंत में अब आज विदाई का दिन था. मन में कहींकहीं गहरे उदासी के बादल छा गए थे. उस ने मेरे चेहरे पर नजरें गड़ाए हुए मोहक अंदाज में कहा, ‘अच्छा, जल्दी ही फिर मिलेंगे.’

उस के हाथों की उष्णता अब भी मेरे तनबदन को सहला रही थी. मुझे आश्चर्य हो रहा था कि क्या मैं वही वंदना हूं, जिसे मित्रमंडली ने ‘हिमशिला’ की उपाधि दे रखी थी? सही ही तो दी थी उन्होंने मुझे यह उपाधि. जब कभी अकेले में कोई नाजुक क्षण आ जाता, मैं बर्फ सी ठंडी पड़ जाती थी, मुझ पर कच्छप का खोल चढ़ जाता था. पर क्या मैं सदा से ही ऐसी थी? अचानक ही बादलों में बिजली कड़की. मैं वंदना, भोलीभाली, बिंदास, जिस के ठहाकों से सारी कक्षा गूंज उठती थी, मित्र कहते छततोड़, दीवारफोड़ अट्टहास, को बिजली की कड़क ने तेजतेज कदम उठाने को मजबूर कर दिया. तेज कदमों से सड़क मापती घर तक पहुंची. हांफते, थके हुए से चेहरे पर भी प्रसन्नता की लाली थी. दरवाजा मां ने ही खोला, ‘‘आ गई बेटी. जा, जल्दी कपड़े बदल डाल. देख तो किस कदर भीग गई.’’

‘‘अच्छा मां,’’ कह कर मैं कपड़े बदलने अंदर चली गई.

मेरे हाथ सब्जी काट रहे थे पर चारों ओर उसी के शब्द गूंज रहे थे, ‘बधाई, वंदनाजी. आप के भाषण ने मुझे मुग्ध कर लिया. मन ने चाहा कि गले लगा लूं आप को, पर मर्यादा के चलते मन मसोस कर रह जाना पड़ा.’ उस के गले लगा लूं के उस भाव ने मेरे होंठों पर सलज्ज मुसकान सी ला दी. मां चौके में खड़ी कब से मुझे देख रही थीं, पता नहीं. पर उन की अनुभवी आंखों ने शायद ताड़ लिया था कि कहीं कुछ ऐसा घटा है जिस ने उन की बेटी को इतना कोमल, इतना मसृण बना डाला है.

‘‘बीनू, कौन है वह?’’

मैं भावलोक से हड़बड़ा कर कटु यथार्थ पर आ गई,  ‘‘कौन मां? कोई भी तो नहीं है?’’

‘‘बेटी, मुझ से मत छिपा. तेरे होंठों की मुसकान, तेरी खोईखोई नजर, तेरा अनमनापन बता रहा है कि आज जरूर कोई विशेष बात हुई है. बेटी, मां से भी बात छिपाएगी?’’

मैं ने झुंझला कर कहा, ‘‘क्या मां, कोई बात हो तो बताऊं न. और यह भी क्या उम्र है प्रेमव्रेम के चक्कर में पड़ने की.’’ मां चुपचाप मेरी ओर निहार कर चली गईं. उन की अनुभवी आंखें सब ताड़ गई थीं. मैं दाल धोतेधोते विगत में डूब गई थी. कालेज से आई ही थी कि मां का आदेश मिला, ‘जल्दी से तैयार हो जाओ. लड़के वाले तुम्हें देखने आ रहे हैं.’

‘मां, इस में तैयार होने की क्या बात है? देखने आ रहे हैं तो आने दो. मैं जैसी हूं वैसी ही ठीक हूं. गायबैल भी क्या तैयार होते हैं अपने खरीदारों के लिए?’

पिताजी ने कहा, ‘देख लिया अपनी लाड़ली को? कहा करता था कालेज में मत पढ़ाओ, पर सुनता कौन है. लो, और पढ़ाओ कालेज में.’

मैं ने तैश में आ कर कहा, ‘पिताजी, पढ़ाई की बात बीच में कहां से आ गई?’

मां ने डपटते हुए कहा, ‘चुप रह, बड़ों से जबान लड़ाती है. एक तो प्रकृति ने रूप में कंजूसी की है, दूसरे तू खुद को रानी विक्टोरिया समझती है? जा, जैसा कहा है वैसा कर.’ इस से पहले मेरे रूपरंग पर किसी ने इस तरह कटु इंगित नहीं किया था. मां के बोलों से मैं आहत हो उन की ओर देखती रह गई. क्या ये मेरी वही मां हैं जो कभी लोगों के बीच बड़े गर्व से कहा करती थीं, ‘मैं तो लड़केलड़की में कोई फर्क ही नहीं मानती. बेटी के सुनहले भविष्य की चिंता करते हुए मैं तो उसे पढ़ने का पूरा मौका दूंगी. जब तक लड़कियां पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाएंगी, समाज से दहेज की बुराई नहीं जाने की.’

आज वही मां मेरे रूपरंग पर व्यग्ंय कर रही हैं, इसलिए कि मेरा रंग दबा हुआ सांवला है, मेरे बदन के कटावों में तीक्ष्णता नहीं है, मुझे रंगरोगन का मुलम्मा चढ़ाना नहीं आता, आज के चमकदमक के बाजार में इस अनाकर्षक चेहरे की कीमत लगाने वाला कोई नहीं. आज मैं एक बिकाऊ वस्तु हूं. ऐसी बिकाऊ वस्तु जिसे दुकानदार कीमत दे कर बेचता है, फिर भी खरीदार खरीदने को तैयार नहीं. ये सब सोचतेसोचते मेरी आंखों में आंसू भर आए थे. मैं ने अपनेआप को संयत करते हुए हाथमुंह धोया, 2 चोटियां बनाईं, साड़ी बदली और नुमाइश के लिए  खड़ी हो गई. दर्शकों के चेहरे, मुझे देख, बिचक गए.

औपचारिकतावश उन्होंने पूछा, ‘बेटी, क्या करती हो?’

‘जी, मैं बीए फाइनल में हूं.’

मुझे ऊपर से नीचे तक भेदती हुई उन की नजरें मेरे जिस्म के आरपार होती रहीं, मेरे अंदर क्रोध का गुबार…सब को सहन करती हुई मैं वहां चुपचाप सौम्यता की मूर्ति बनी बैठी थी. एकएक पल एकएक युग सा बीत रहा था. मैं मन ही मन सोच रही थी कि ऐसा अंधड़ उठे…ऐसा अधंड़ उठे कि सबकुछ अपने साथ बहा ले जाए. कुछ बाकी न रहे. अंत में मां के संकेत ने मेरी यातना की घडि़यों का अंत किया और मैं चुपचाप अंदर चली गई.

‘रुक्मिणी, उन की 2 लाख रुपए नकद की मांग है. क्या करें, अपना ही सोना खोटा है. सिक्का चलाने के लिए उपाय तो करना ही पड़ेगा न. पर मैं इतने रुपए लाऊं कहां से? भविष्य निधि से निकालने पर भी तो उन की मांग पूरी नहीं कर सकता.’ मां ने लंबी सांस भरते हुए कहा, ‘जाने भी दो जी, बीनू के बापू. यही एक लड़का तो नहीं है. अपनी बेटी के लिए कोई और जोड़ीदार मिल जाएगा.’ फिर तो उस जोड़ीदार की खोज में आएदिन नुमाइश लगती और इस भद्दे, बदसूरत चेहरे पर नापसंदगी के लेबल एक के बाद एक चस्पां कर दिए जाते रहे. लड़के वालों की मांग पूरी करने की सामर्थ्य मेरे पिताजी में न थी.

देखते ही देखते मैं ने बीए प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर लिया और मां के सामने एमए करने की इच्छा जाहिर की. पिताजी तो आपे से बाहर हो उठे. दोनों हाथ जोड़ कर बोले, ‘अब बस कर, बीए पढ़ कर तो यह हाल है कि कोई वर नहीं फंसता, एमए कर के तो हमारे सिर पर बैठ जाएगी.’ मेरी आंखों में आंसू झिलमिला उठे. मां ने मेरी बिगड़ी बात संवारी,‘बच्ची का मन है तो आगे पढ़ने दीजिए न. घर बैठ कर भी क्या करेगी?’ रोज ही एक न एक आशा का दीप झिलमिलाता पर जल्दी ही बुझ जाता. मां की उम्मीद चकनाचूर हो जाती. आखिर हैं तो मातापिता न, उम्मीद का दामन कैसे छोड़ सकते थे.

मैं ने अब इस आघात को भी जीवन की एक नित्यक्रिया के रूप में स्वीकार कर लिया था. पर इस संघर्ष ने मुझे कहीं भीतर तक तोड़मरोड़ दिया था. मेरी वह खिलखिलाहट, वे छतफोड़, दीवार तोड़ ठहाके धीरेधीरे बीते युग की बात हो गए थे. मेरे विवाह की चिंता में घुलते पिताजी को रोगों ने धरदबोचा था. नियम से चलने वाले मेरे पिताजी मधुमेह के रोगी बन गए थे, पर मेरे हाथ में कुछ भी न था. मैं अपनी आंखों के सामने असहाय सी, निरुपाय सी उन्हें घुलते देखती रहती थी. अपनी लगन व मेहनत से की पढ़ाई से मैं एमए प्रथम वर्ष में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हो गई. फाइनल में पहुंची कि एक दिन ट्रक दुर्घटना में पिताजी के दोनों पैर चले गए. मां तो जैसे प्रस्तर शिला सी हो गईं. घर की दोहरी जिम्मेदारी मुझ पर थी. मैं पिताजी का बेटा भी थी और बेटी भी. मैं ने ट्यूशनों की संख्या बढ़ा ली. पिताजी को दिलासा दिया कि जयपुरी कृत्रिम पैरों से वे जल्द ही अपने पैरों पर चलने में समर्थ हो सकेंगे. सब ठीक हो जाएगा. एमए उत्तीर्ण करते ही मुझे कालेज में नौकरी मिल गई.

धीरेधीरे जिंदगी ढर्रे पर आने लगी थी. मेरे तनाव कम होने लगे थे. कभी किसी ने मुझ से मित्रता करनी चाही तो ‘भाई’ या ‘दादा’ के मुखौटे में उसे रख कर अपनेआप को सुरक्षित महसूस करती. किसी की सहलाती हुई दृष्टि में भी मुझे खोट नजर आने लगता. एक षड्यंत्र की बू सी आने लगती. लगता, मुझ भद्दी, काली लड़की में किसी को भला क्या दिलचस्पी हो सकती है?

और उस पर मांपिताजी की नैतिकता के मूल्य. कभी किसी सहकर्मी को साथ ले आती तो पिताजी की आंखों में शक झलमला उठता और मां स्वागत करते हुए भी उपदेश देने से नहीं चूकतीं कि बेटा, बीनू के साथ काम करते हो? बहुत अच्छा. पर बेटा, हम जिस परिवार में, जिस समाज में रहते हैं, उस के नियम मानने पड़ते हैं. हां, मैं जानती हूं बेटा, तुम्हारे मन में खोट नहीं पर देखो न, हम तो पहले ही बेटी की कमाई पर हैं, फिर दुनिया वाले ताने देते हैं कि रोज एक नया छोकरा आता है. बीनू की मां, बीनू से धंधा करवाती हो क्या?

मां के उपदेश ने धीरेधीरे मुझे कालेज में भी अकेला कर दिया. खासकर पुरुष सहकर्मी जब भी देखते, उन के मुख पर विद्रूपभरी मुसकान छा जाती. मुझे मां पर खीझ होने लगती थी. यह नैतिकता, ये मूल्य मुझ पर ही क्यों आरोपित किए जा रहे हैं? मैं लोगों की परवा क्यों करूं? क्या वे आते हैं बेवक्त मेरी सहयता के लिए? बेटी की कमाई का ताना देने वालों ने कितनी थैलियों के मुंह खोल दिए हैं मेरे सामने? एक अकेले पुरुष को तो समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ता? ये दोहरे मापदंड क्यों?

कई बार मन विद्रोह कर उठता था. इन मूल्यों का भार मुझ से नहीं उठाया जाता. सब तोड़ दूं, झटक दूं, तहसनहस कर दूं, पर मांपिताजी के चेहरों को देख मन मसोस कर रह जाती. वंदनाजी, आप हमेशा इतने तनाव में क्यों रहती हैं? मैं जानता हूं, इस कठोर चेहरे के पीछे स्नेहिल एक दिल छिपा हुआ है. उसे बाहर लाइए जो सब को स्नेहिल कर दे. ‘वंदनाजी नहीं, बीनू’ मेरे मुंह से सहसा निकल गया. प्रेम शायद मेरे दिल की बात समझ गया था.

‘बीनू, इस बार दिल्ली आओ तो अपने कार्यक्रम में 4 दिन बढ़ा कर आना. वे 4 दिन मैं तुम्हारा अपहरण करने वाला हूं.’ प्रेम की ये रसीली बातें मेरे कानों में गूंज उठतीं और मैं अब तक की तिक्तता को भूल सी जाती. मेरे अंतर की स्रोतस्विनी का प्रवाह उमड़ पड़ने को व्याकुल हो उठा है. उसे अब अपना लक्ष्य चाहिए ‘प्रेम का सागर.’ नहींनहीं, अब वह किसी वर्जना, किसी मूल्य के फेर में नहीं अटकने वाली. वह तो उन्मुक्त पक्षी के समान अपने नीड़ की ओर उड़ना चाहती है. कोई तो है इस कालेभद्दे चेहरे की छिपी आर्द्रता को अनुभूत करने वाला. आज बादल भी तो कितनी जोर से बरस रहे हैं. बरसो…बरसो…बरसो न मेरे प्रेमघन…मेरा पोरपोर भीग जाए ऐसा रस बरसो न मेरे प्रेमघन.

Best Hindi Story : विश्वास – राजीव ने अंजू से क्यों की पैसों की डिमांड?

Best Hindi Story : उस शाम पहली बार राजीव के घर वालों से मिल कर अंजू को अच्छा लगा. उस के छोटे भाई रवि और उस की पत्नी सविता ने अंजू को बहुत मानसम्मान दिया था. उन की मां ने दसियों बार उस के सिर पर हाथ रख कर उसे सदा सुखी और खुश रहने का आशीर्वाद दिया होगा. वह राजीव के घर मुश्किल से आधा घंटा रुकी थी. इतने कम समय में ही इन सब ने उस का दिल जीत लिया था.

राजीव के घर वालों से विदा ले कर वे दोनों पास के एक सुंदर से पार्क में कुछ देर घूमने चले आए. अंजू का हाथ पकड़ कर घूमते हुए राजीव अचानक मुसकराया और उत्साहित स्वर में बोला, ‘‘इनसान की जिंदगी में बुरा वक्त आता है और अच्छा भी. 2 साल पहले जब मेरा तलाक हुआ था तब मैं दोबारा शादी करने का जिक्र सुनते ही बुरी तरह बिदक जाता था लेकिन आज मैं तुम्हें जल्दी से जल्दी अपना हमसफर बनाना चाहता हूं. तुम्हें मेरे घर वाले कैसे लगे?’’

‘‘बहुत मिलनसार और खुश- मिजाज,’’ अंजू ने सचाई बता दी. ‘‘क्या तुम उन सब के साथ निभा लोगी?’’ राजीव भावुक हो उठा.

‘‘बड़े मजे से. तुम ने उन्हें यह बता दिया है कि हम शादी करने जा रहे हैं?’’ ‘‘अभी नहीं.’’

‘‘लेकिन तुम्हारे घर वालों ने तो मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे मैं तुम्हारे लिए बहुत खास अहमियत रखती हूं.’’ ‘‘तब उन तीनों ने मेरी आंखों में तुम्हारे लिए बसे प्रेम के भावों को पढ़ लिया होगा,’’ राजीव ने झुक कर अंजू के हाथ को चूमा तो वह एकदम से शरमा गई थी.

कुछ देर चुप रहने के बाद अंजू ने पूछा, ‘‘हम शादी कब करें?’’ ‘‘क्या…अब मुझ से दूर नहीं रहा जाता?’’ राजीव ने उसे छेड़ा.

‘‘नहीं,’’ अंजू ने जवाब दे कर शर्माते हुए अपना चेहरा हथेलियों के पीछे छिपा लिया. ‘‘मेरा दिल भी तुम्हें जी भर कर प्यार करने को तड़प रहा है, जानेमन. कुछ दिन बाद मां, रवि और सविता महीने भर के लिए मामाजी के पास छुट्टियां मनाने कानपुर जा रहे हैं. उन के लौटते ही हम अपनी शादी की तारीख तय कर लेंगे,’’ राजीव का यह जवाब सुन कर अंजू खुश हो गई थी.

पार्क के खुशनुमा माहौल में राजीव देर तक अपनी प्यार भरी बातों से अंजू के मन को गुदगुदाता रहा. करीब 3 साल पहले विधवा हुई अंजू को इस पल उस के साथ अपना भविष्य बहुत सुखद और सुरक्षित लग रहा था. राजीव अंजू को उस के फ्लैट तक छोड़ने आया था. अंजू की मां आरती उसे देख कर खिल उठीं.

‘‘अब तुम खाना खा कर ही जाना. तुम्हारे मनपसंद आलू के परांठे बनाने में मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी,’’ उन्होंने अपने भावी दामाद को जबरदस्ती रोक लिया था. उस रात पलंग पर लेट कर अंजू देर तक राजीव और अपने बारे में सोचती रही.

सिर्फ 2 महीने पहले चार्टर्ड बस का इंतजार करते हुए दोनों के बीच औपचारिक बातचीत शुरू हुई और बस आने से पहले दोनों ने एकदूसरे को अपनाअपना परिचय दे दिया था. उन के बीच होने वाला शुरूशुरू का हलकाफुलका वार्त्तालाप जल्दी ही अच्छी दोस्ती में बदल गया. वे दोनों नियमित रूप से एक ही बस से आफिस आनेजाने लगे थे.

राजीव की आंखों में अपने प्रति चाहत के बढ़ते भावों को देखना अंजू को अच्छा लगा था. अपने अकेलेपन से तंग आ चुके उस के दिल को जीतने में राजीव को ज्यादा समय नहीं लगा. ‘‘रोजरोज उम्र बढ़ती जाती है और अगले महीने मैं 33 साल का हो जाऊंगा. अगर मैं ने अभी अपना घर नहीं बसाया तो देर ज्यादा हो जाएगी. बड़ी उम्र के मातापिता न स्वस्थ संतान पैदा कर पाते हैं और न ही उन्हें अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पूरा समय मिल पाता है,’’ राजीव के मुंह से एक दिन निकले इन शब्दों को सुन कर अंजू के मन ने यह अंदाजा लगाया कि वह उस के साथ शादी कर के घर बसाने में दिलचस्पी रखता था.

उस दिन के बाद से अंजू ने राजीव को अपने दिल के निकट आने के ज्यादा अवसर देने शुरू कर दिए. वह उस के साथ रेस्तरां में चायकौफी पीने चली जाती. फिर उस ने फिल्म देख कर या खरीदारी करने के बाद उस के साथ डिनर करने का निमंत्रण स्वीकार करना भी शुरू कर दिया था. उस शाम पहली बार उस के घर वालों से मिल कर अंजू के मन ने बहुत राहत और खुशी महसूस की थी. शादी हो जाने के बाद उन सीधेसादे, खुश- मिजाज लोगों के साथ निभाना जरा भी मुश्किल नहीं होगा, इस निष्कर्ष पर पहुंच वह उस रात राजीव के साथ अपनी शादी के रंगीन सपने देखती काफी देर से सोई थी.

अगले दिन रविवार को राजीव ने पहले उसे बढि़या होटल में लंच कराया और फिर खुशखबरी सुनाई, ‘‘कल मैं एक फ्लैट बुक कराने जा रहा हूं, शादी के बाद हम बहुत जल्दी अपने फ्लैट में रहने चले जाएंगे.’’

‘‘यह तो बढि़या खबर है. कितने कमरों वाला फ्लैट ले रहे हो?’’ अंजू खुश हो गई थी. ‘‘3 कमरों का. अभी मैं 5 लाख रुपए पेशगी बतौर जमा करा दूंगा लेकिन बाद में उस की किस्तें हम दोनों को मिल कर देनी पड़ेंगी, माई डियर.’’

‘‘नो प्रौब्लम, सर, मुझ से अभी कोई हेल्प चाहिए हो तो बताओ.’’ ‘‘नहीं, डियर, अपने सारे शेयर आदि बेच कर मैं ने 5 लाख की रकम जमा कर ली है. मेरे पास अब कुछ नहीं बचा है. जब फ्लैट को सजानेसंवारने का समय आएगा तब तुम खर्च करना. अच्छा, इसी वक्त सोच कर बताओ कि अपने बेडरूम में कौन सा रंग कराना पसंद करोगी?’’

‘‘हलका आसमानी रंग मुझे अच्छा लगता है.’’ ‘‘गुलाबी नहीं?’’

‘‘नहीं, और ड्राइंग रूम में 3 दीवारें तो एक रंग की और चौथी अलग रंग की रखेंगे.’’ ‘‘ओके, मैं किसी दिन तुम्हें वह फ्लैट दिखाने ले चलूंगा जो बिल्डर ने खरीदारों को दिखाने के लिए तैयार कर रखा है.’’

‘‘फ्लैट देख लेने के बाद उसे सजाने की बातें करने में ज्यादा मजा आएगा.’’ ‘‘मैं और ज्यादा अमीर होता तो तुम्हें घुमाने के लिए कार भी खरीद लेता.’’

‘‘अरे, कार भी आ जाएगी. आखिर यह दुलहन भी तो कुछ दहेज में लाएगी,’’ अंजू की इस बात पर दोनों खूब हंसे और उन के बीच अपने भावी घर को ले कर देर तक चर्चा चलती रही थी. अगले शुक्रवार को रवि, सविता और मां महीने भर के लिए राजीव के मामा के यहां कानपुर चले गए. अंजू को छेड़ने के लिए राजीव को नया मसाला मिल गया था.

‘‘मौजमस्ती करने का ऐसा बढि़या मौका फिर शायद न मिले, स्वीटहार्ट. तुम्हें मंजूर हो तो खाली घर में शादी से पहले हनीमून मना लेते हैं,’’ उसे घर चलने की दावत देते हुए राजीव की आंखें नशीली हो उठी थीं. ‘‘शटअप,’’ अंजू ने शरमाते हुए उसे प्यार भरे अंदाज में डांट दिया.

‘‘मान भी जाओ न, जानेमन,’’ राजीव उत्तेजित अंदाज में उस के हाथ को बारबार चूमने लगा. ‘‘तुम जोर दोगे तो मैं मान ही जाऊंगी पर हनीमून का मजा खराब हो जाएगा. थोड़ा सब्र और कर लो, डार्लिंग.’’

अंजू के समझाने पर राजीव सब्र तो कर लेता पर अगली मुलाकात में वह फिर उसे छेड़ने से नहीं चूकता. वह उसे कैसेकैसे प्यार करेगा, राजीव के मुंह से इस का विवरण सुन अंजू का तनबदन अजीब सी नशीली गुदगुदी से भर जाता. राजीव की ये रसीली बातें उस की रातों को उत्तेजना भरी बेचैनी से भर जातीं. अपने अच्छे व्यवहार और दिलकश बातों से राजीव ने उसे अपने प्यार में पागल सा बना दिया था. वह अपने को अब बदकिस्मत विधवा नहीं बल्कि संसार की सब से खूबसूरत स्त्री मानने लगी थी. राजीव से मिलने वाली प्रशंसा व प्यार ने उस का कद अपनी ही नजरों में बहुत ऊंचा कर दिया था.

‘‘भाई, मां की जान बचाने के लिए उन के दिल का आपरेशन फौरन करना होगा,’’ रवि ने रविवार की रात को जब यह खबर राजीव को फोन पर दी तो उस समय वह अंजू के साथ उसी के घर में डिनर कर रहा था.

मां के आपरेशन की खबर सुन कर राजीव एकदम से सुस्त पड़ गया. फिर जब उस की आंखों से अचानक आंसू बहने लगे तो अंजू व आरती बहुत ज्यादा परेशान और दुखी हो उठीं. ‘‘मुझे जल्दी कानपुर जाना होगा अंजू, पर मेरे पास इस वक्त 2 लाख का इंतजाम नहीं है. सुबह बिल्डर से पेशगी दिए गए 5 लाख रुपए वापस लेने की कोशिश करता हूं. वह नहीं माना तो मां ने तुम्हारे लिए जो जेवर रखे हुए हैं उन्हें किसी के पास गिरवी…’’

‘‘बेकार की बात मत करो. मुझे पराया क्यों समझ रहे हो?’’ अंजू ने हाथ से उस का मुंह बंद कर आगे नहीं बोलने दिया. ‘‘क्या तुम मुझे इतनी बड़ी रकम उधार दोगी?’’ राजीव विस्मय से भर उठा.

‘‘क्या तुम्हारा मुझ से झगड़ा करने का दिल कर रहा है?’’ ‘‘नहीं, लेकिन…’’

‘‘फिर बेकार के सवाल पूछ कर मेरा दिल मत दुखाओ. मैं तुम्हें 2 लाख रुपए दे दूंगी. जब मैं तुम्हारी हो गई हूं तो क्या मेरा सबकुछ तुम्हारा नहीं हो गया?’’ अंजू की इस दलील को सुन राजीव ने उसे प्यार से गले लगाया और उस की आंखों से अब ‘धन्यवाद’ दर्शाने वाले आंसू बह निकले.

अपने प्रेमी के आंसू पोंछती अंजू खुद भी आंसू बहाए जा रही थी. लेकिन उस रात अंजू की आंखों से नींद गायब हो गई. उस ने राजीव को 2 लाख रुपए देने का वादा तो कर लिया था लेकिन अब उस के मन में परेशानी और चिंता पैदा करने वाले कई सवाल घूम रहे थे:

‘राजीव से अभी मेरी शादी नहीं हुई है. क्या उस पर विश्वास कर के उसे इतनी बड़ी रकम देना ठीक रहेगा?’ इस सवाल का जवाब ‘हां’ में देने से उस का मन कतरा रहा था. ‘राजीव के साथ मैं घर बसाने के सपने देख रही हूं. उस के प्यार ने मेरी रेगिस्तान जैसी जिंदगी में खुशियों के अनगिनत फूल खिलाए हैं. क्या उस पर विश्वास कर के उसे 2 लाख रुपए दे दूं?’ इस सवाल का जवाब ‘न’ में देते हुए उस का मन अजीब सी उदासी और अपराधबोध से भी भर उठता.

देर रात तक करवटें बदलने के बावजूद वह किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकी थी. अगले दिन आफिस में 11 बजे के करीब उस के पास राजीव का फोन आया:

‘‘रुपयों का इंतजाम कब तक हो जाएगा, अंजू? मैं जल्दी से जल्दी कानपुर पहुंचना चाहता हूं,’’ राजीव की आवाज में चिंता के भाव साफ झलक रहे थे. ‘‘मैं लंच के बाद बैंक जाऊंगी. फिर वहां से तुम्हें फोन करूंगी,’’ चाह कर भी अंजू अपनी आवाज में किसी तरह का उत्साह पैदा नहीं कर सकी थी.

‘‘प्लीज, अगर काम जल्दी हो जाए तो अच्छा रहेगा.’’ ‘‘मैं देखती हूं,’’ ऐसा जवाब देते हुए उस का मन कर रहा था कि वह रुपए देने के अपने वादे से मुकर जाए.

लंच के बाद वह बैंक गई थी. 2 लाख रुपए अपने अकाउंट में जमा करने में उसे ज्यादा परेशानी नहीं हुई. सिर्फ एक एफ.डी. उसे तुड़वानी पड़ी थी लेकिन उस का मन अभी भी उलझन का शिकार बना हुआ था. तभी उस ने राजीव को फोन नहीं किया.

शाम को जब राजीव का फोन आया तो उस ने झूठ बोल दिया, ‘‘अभी 1-2 दिन का वक्त लग जाएगा, राजीव.’’ ‘‘डाक्टर बहुत जल्दी आपरेशन करवाने पर जोर दे रहे हैं. तुम बैंक के मैनेजर से मिली थीं?’’

‘‘मां को किस अस्पताल में भरती कराया है?’’ अंजू ने उस के सवाल का जवाब न दे कर विषय बदल दिया. ‘‘दिल के आपरेशन के मामले में शहर के सब से नामी अस्पताल में,’’ राजीव ने अस्पताल का नाम बता दिया.

अपनी मां से जुड़ी बहुत सी बातें करते हुए राजीव काफी भावुक हो गया था. अंजू ने साफ महसूस किया कि इस वक्त राजीव की बातें उस के मन को खास प्रभावित करने में सफल नहीं हो रही थीं. उसे साथ ही साथ यह भी याद आ रहा था कि पिछले दिन मां के प्रति चिंतित राजीव के आंसू पोंछते हुए उस ने खुद भी आंसू बहाए थे.

अगली सुबह 11 बजे के करीब राजीव ने अंजू से फोन पर बात करनी चाही तो उस का फोन स्विच औफ मिला. परेशान हो कर वह लंच के समय उस के फ्लैट पर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लटकता मिला. ‘अंजू शायद रुपए नहीं देना चाहती है,’ यह खयाल अचानक उस के मन में पैदा हुआ और उस का पूरा शरीर अजीब से डर व घबराहट का शिकार बन गया. रुपयों का इंतजाम करने की नए सिरे से पैदा हुई चिंता ने उस के हाथपैर फुला दिए थे.

उस ने अपने दोस्तों व रिश्तेदारों के पास फोन करना शुरू किया. सिर्फ एक दोस्त ने 10-15 हजार की रकम फौरन देने का वादा किया. बाकी सब ने अपनी असमर्थता जताई या थोड़े दिन बाद कुछ रुपए का इंतजाम करने की बात कही. वह फ्लैट की बुकिंग के लिए दी गई पेशगी रकम वापस लेने के लिए बिल्डर से मिलने गया पर वह कुछ दिन के लिए मुंबई गया हुआ था.

शाम होने तक राजीव को एहसास हो गया कि वह 2-3 दिन में भी 2 लाख की रकम जमा नहीं कर पाएगा. हर तरफ से निराश हो चुका उस का मन अंजू को धोखेबाज बताते हुए उस के प्रति गहरी शिकायत और नाराजगी से भरता चला गया था. तभी उस के पास कानपुर से रवि का फोन आया. उस ने राजीव को प्रसन्न स्वर में बताया, ‘‘भाई, रुपए पहुंच गए हैं. अंजूजी का यह एहसान हम कभी नहीं चुका पाएंगे.’’

‘‘अंजू, कानपुर कब पहुंचीं?’’ अपनी हैरानी को काबू में रखते हुए राजीव ने सवाल किया. ‘‘शाम को आ गई थीं. मैं उन्हें एअरपोर्ट से ले आया था.’’

‘‘रुपए जमा हो गए हैं?’’ ‘‘वह ड्राफ्ट लाई हैं. उसे कल जमा करवा देंगे. अब मां का आपरेशन हो सकेगा और वह जल्दी ठीक हो जाएंगी. तुम कब आ रहे हो?’’

‘‘मैं रात की गाड़ी पकड़ता हूं.’’ ‘‘ठीक है.’’

‘‘अंजू कहां हैं?’’ ‘‘मामाजी के साथ घर गई हैं.’’

‘‘कल मिलते हैं,’’ ऐसा कह कर राजीव ने फोन काट दिया था. उस ने अंजू से बात करने की कोशिश की पर उस का फोन अभी भी बंद था. फिर वह स्टेशन पहुंचने की तैयारी में लग गया.

उसे बिना कुछ बताए अंजू 2 लाख का ड्राफ्ट ले कर अकेली कानपुर क्यों चली गई? इस सवाल का कोई माकूल जवाब वह नहीं ढूंढ़ पा रहा था. उस का दिल अंजू के प्रति आभार तो महसूस कर रहा था पर मन का एक हिस्सा उस के इस कदम का कारण न समझ पाने से बेचैन और परेशान भी था.

अगले दिन अंजू से उस की मुलाकात मामाजी के घर में हुई. जब आसपास कोई नहीं था तब राजीव ने उस से आहत भाव से पूछ ही लिया, ‘‘मुझ पर क्यों विश्वास नहीं कर सकीं तुम, अंजू? तुम्हें ऐसा क्यों लगा कि मैं मां की बीमारी के बारे में झूठ भी बोल सकता हूं? रुपए तुम ने मेरे हाथों इसीलिए नहीं भिजवाए हैं न?’’ अंजू उस का हाथ पकड़ कर भावुक स्वर में बोली, ‘‘राजीव, तुम मुझ विधवा के मनोभावों को सहानुभूति के साथ समझने की कोशिश करना, प्लीज. तुम्हारे लिए यह समझना कठिन नहीं होना चाहिए कि मेरे मन में सुरक्षा और शांति का एहसास मेरी जमापूंजी के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है.

‘‘तुम्हारे प्यार में पागल मेरा दिल तुम्हें 2 लाख रुपए देने से बिलकुल नहीं हिचकिचाया था लेकिन मेरा हिसाबी- किताबी मन तुम पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं करना चाहता था. ‘‘मैं ने दोनों की सुनी और रुपए ले कर खुद यहां चली आई. मेरे ऐसा करने से तुम्हें जरूर तकलीफ हो रही होगी…तुम्हारे दिल को यों चोट पहुंचाने के लिए मैं माफी मांग रही…’’

‘‘नहीं, माफी तो मुझे मांगनी चाहिए. तुम्हारे मन में चली उथलपुथल को मैं अब समझ सकता हूं. तुम ने जो किया उस से तुम्हारी मानसिक परिपक्वता और समझदारी झलकती है. अपनी गांठ का पैसा ही कठिन समय में काम आता है. हमारे जैसे सीमित आय वालों को ऊपरी चमकदमक वाली दिखावे की चीजों पर खर्च करने से बचना चाहिए, ये बातें मेरी समझ में आ रही हैं.’’ ‘‘अपने अहं को बीच में ला कर मेरा तुम से नाराज होना बिलकुल गलत है. तुम तो मेरे लिए दोस्तों व रिश्तेदारों से ज्यादा विश्वसनीय साबित हुई हो. मां के इलाज में मदद करने के लिए थैंक यू वेरी मच,’’ राजीव ने उस का हाथ पकड़ कर प्यार से चूम लिया.

एकदूसरे की आंखों में अपने लिए नजर आ रहे प्यार व चाहत के भावों को देख कर उन दोनों के दिलों में आपसी विश्वास की जड़ों को बहुत गहरी मजबूती मिल गई थी.

Emotional Story : नेकी वाला पेड़ – क्यों उसकी 30 वर्ष की पुरानी यादें ताजा हो गई ?

Emotional Story : टन, टन, टन… बड़ी बेसब्री से दरवाजे की घंटी बज रही थी. गरमी की दोपहर और लौकडाउन के दिनों में ये थोड़ा असामान्य लग रहा था. जैसे कोई मुसीबत के समय या फिर आप को सावधान करने के लिए बजाता हो, ठीक वैसी ही घंटी बज रही थी. हम सभी चौंक उठे और दरवाजे की ओर लपके.

मैं लगभग दौड़ते हुए दरवाजे की ओर बढ़ी. एक आदमी मास्क पहने दिखाई दिया. मैं ने दरवाजे से ही पूछा, ‘‘क्या बात है?‘‘

वह जल्दी से हड़बड़ाहट में बोला, ‘‘मैडम, आप का पेड़ गिर गया.‘‘

‘‘क्या…‘‘ हम सभी जल्दी से आंगन वाले गेट की ओर बढ़े. वहां का दृश्य देखते ही हम सभी हैरान रह गए.

‘‘अरे, ये कब…? कैसे हुआ…?‘‘

पेड़ बिलकुल सड़क के बीचोंबीच गिरा पड़ा था. कुछ सूखी हुई कमजोर डालियां इधरउधर टूट कर बिखरी हुई थीं. पेड़ के नीचे मैं ने कुछ छोटे गमले क्यारी के किनारेकिनारे लगा रखे थे, वे उस के तने के नीचे दबे पड़े थे. पेड़ पर बंधी टीवी केबल की तारें भी पेड़ के साथ ही टूट कर लटक गई थीं. घर के सामने रहने वाले पड़ोसियों की कारें बिलकुल सुरक्षित थीं. पेड़ ने उन्हें एक खरोंच भी नहीं पहुंचाई  थी.

गरमी की दोपहर में उस समय कोई सड़क पर भी नहीं था. मैं ने मन ही मन उस सूखे हुए नेक पेड़ को निहारा. उसे देख कर मुझे ३० वर्ष पुरानी सारी यादें ताजा हो आईं.

हम कुछ समय पहले ही इस घर में रहने को आए थे. हमारी एक पड़ोसन ने लगभग ३० वर्ष पहले एक छोटा सा पौधा लगाते हुए मुझ से कहा था, ‘सारी गली में ऐसे ही पेड़ हैं. सोचा, एक आप के यहां भी लगा देती हूं. अच्छे लगेंगे सभी एकजैसे पेड़.‘

पेड़पौधे मुझे खुद भी बहुत प्रिय थे, तो मैं ने उन का शुक्रिया अदा किया.

पेड़ धीरेधीरे बड़ा होने लगा. कमाल का पेड़ था. हमेशा हराभरा रहता. छोटे सफेद फूल खिलते, जिन की तेज गंध कुछ अजीब सी लगती थी. गरमी के दिनों में लंबीपतली फलियों से छोटे हलके उड़ने वाले बीज सब को बहुत परेशान करते. सब के घरों में बिन बुलाए घुस जाते और उड़ते रहते. पर ये पेड़ सदा हराभरा रहता तो ये सब थोड़े दिन चलने वाली परेशानियां कुछ खास मायने नहीं रखती थीं.

मैं ने पता किया कि आखिर इस पौधे का नाम क्या है? पूछने पर वनस्पति शास्त्र के एक प्राध्यापक ने बताया कि इस का नाम ‘सप्तपर्णी‘ है. एक ही गुच्छे में एकसाथ सात पत्तियां होने के कारण इस का ये नाम पड़ा.

मुझे उस पेड़ का नाम ‘सप्तपर्णी‘ बेहद प्यारा लगा. साथ ही, तेज गंध वाले फूलों की वजह से आम भाषा में इसे लोग ‘लहसुनिया‘ भी कहते हैं. सचमुच पेड़ों और फूलों के नाम उन की खूबसूरती को और बढ़ा देते हैं. उन के नाम लेते ही हमें वो दिखाई पड़ने लगते हैं, साथ ही हम उन की खुशबू को भी महसूस करने लगते हैं. मन को कितनी प्रसन्नता दे जाते हैं.

ये धराशायी हुआ ‘सप्तपर्णी‘ भी कुछ ऐसा ही था. तेज गरमी में जब भी डाक या कोरियर वाला आता तो उन्हें अकसर मैं इस पेड़ के नीचे खड़ा पाती. फल या सब्जी बेचने वालेे भी इसी पेड़ की छाया में खड़े दिखते. कोई अपनी कार धूप से बचाने के लिए पेड़ के ठीक नीचे खड़ी कर देता, तो कभी कोई मेहनतकश कुछ देर इस पेड़ के नीचे खड़े हो कर सुस्ता लेता. कुछ सुंदर पंछियों ने अपने घोंसले बना कर पेड़ की रौनक और बढ़ा दी थी. वे पेड़ से बातें करते नजर आते थे. टीवी केबल वाले इस की डालियों में अपने तार बांध कर चले जाते. कभीकभी बच्चों की पतंगें इस में अटक जातीं तो लगता जैसे ये भी बच्चों के साथ पतंगबाजी का मजा ले रहा हो.

दीवाली के दिनों में मैं इस के तने के नीचे भी दीपक जलाती. मुझे बड़ा सुकून मिलता. बच्चों ने इस के नीचे खड़े हो कर जो तसवीरें खिंचवाई थीं, वे कितनी सुंदर हैं. जब भी मैं कहीं से घर लौटती तो रिकशे वाले से बोलती, ‘भइया, वहां उस पेड़ के पास वाले घर पर रोक देना. लगता, जैसे ये पेड़ मेरा पता बन गया था. बरसात में जब बूंदें इस के पत्तों पर गिरतीं तो वो आवाज मुझे बेहद प्यारी लगती. ओले गिरे या सर्दी का पाला, ये क्यारी के किनारे रखे छोटे पौधों की ढाल बन कर सब झेलता रहता.

30 वर्ष की कितनी यादें इस पेड़ से जुड़ी थीं. कितनी सारी घटनाओं का साक्षी ये पेड़ हमारे साथ था भी तो इतने वर्षों से… दिनरात, हर मौसम में तटस्थता से खड़ा.

पता नहीं, कितने लोगों को सुकून भरी छाया देने वाले इस पेड़ को पिछले २ वर्ष से क्या हुआ कि ये दिन पर दिन सूखता चला गया. पहले कुछ दिनों में जब इस की टहनियां सूखने लगीं, तो मैं ने कुछ मोटी, मजबूत डालियों को देखा. उस पर अभी भी पत्ते हरे थे.

मैं थोड़ी आश्वस्त हो गई कि अभी सब ठीक है, परंतु कुछ ही समय में वे पत्ते भी मुरझाने लगे. मुझे अब चिंता होने लगी. सोचा, बारिश आने पर पेड़ फिर ठीक हो जाएगा, पर सावनभादों सब बीत गए, वो सूखा ही बना रहा. अंदर ही अंदर से वो कमजोर होने लगा. कभी आंधी आती तो उसे और झकझोर जाती. मैं भाग कर सारे खिड़कीदरवाजे बंद करती, पर बाहर खड़े उस सूखे पेड़ की चिंता मुझे लगी रहती.

पेड़ अब पूरा सूख गया था. संबंधित विभाग को भी इस की जानकारी दे दी गई थी.

जब इस के पुनः हरे होने की उम्मीद बिलकुल टूट गई, तो मैं ने एक फूलों की बेल इस के साथ लगा दी. बेल दिन ब दिन बढ़ती गई. माली ने बेल को पेड़ के तने और टहनियों पर लपेट दिया. अब बेल पर सुर्ख लाल फूल खिलने लगे.

यह देख मुझे अच्छा लगा कि इस उपाय से पेड़ पर कुछ बहार तो नजर आ रही है… पंछी भी वापस आने लगे थे, पर घोसलें नहीं बना रहे थे. कुछ देर ठहरते, पेड़ से बात करते और वापस उड़ जाते. अब बेल भी घनी होने लगी थी. उस की छाया पेड़ जितनी घनी तो नहीं थी, पर कुछ राहत तो मिल ही जाती थी. पेड़ सूख जरूर गया था, पर अभी भी कितने नेक काम कर रहा था.

टीवी केबल के तार अभी भी उस के सूखे तने से बंधे थे. सुर्ख फूलों की बेल को उस के सूखे तने ने सहारा दे रखा था. बेल को सहारा मिला तो उस की छाया में क्यारी के छोटे पौधे सहारा पा कर सुरक्षित थे. पेड़ सूख कर भी कितनी भलाई के काम कर रहा था. इसीलिए मैं इसे नेकी वाला पेड़ कहती. मैं ने इस पेड़ को पलपल बढ़ते हुए देखा था. इस से लगाव होना बहुत स्वाभाविक था.

परंतु आज इसे यों धरती पर चित्त पड़े देख कर मेरा मन बहुत उदास हो गया. लगा, जैसे आज सारी नेकी धराशायी हो कर जमीन पर पड़ी हो. पेड़ के साथ सुर्ख लाल फूलों वाली बेल भी दबी हुई पड़ी थी. उस के नीचे छोटे पौधे वाले गमले तो दिखाई ही नहीं दे रहे थे. मुझे और भी ज्यादा दुख हो रहा था.

घंटी बजाने वाले ने बताया कि अचानक ही ये पेड़ गिर पड़ा. कुछ देर बाद केबल वाले आ गए. वे तारें ठीक करने लगे. पेड़ की सूखी टहनियों को काटकाट कर तार निकाल रहे थे.

यह मुझ से देखा नहीं जा रहा था. मैं घर के अंदर आ गई, परंतु मन बैचेन हो रहा था. सोच रही थी, जंगलों में भी तो कितने सूखे पेड़ ऐसे गिरे रहते हैं. मन तो तब भी दुखता है, परंतु जो लगातार आप के साथ हो वो आप के जीवन का हिस्सा बन जाता है.

याद आ रहा था, जब गली की जमीन को पक्की सड़क में तबदील किया जा रहा था, तो मैं खड़ी हुई पेड़ के आसपास की जगह को वैसा ही बनाए रखने के लिए बोल रही थी. लगा, इसे भी सांस लेने के लिए कुछ जगह तो चाहिए. क्यों हम पेड़ों को सीमेंट के पिंजड़ों में कैद करना चाहते हैं. हमें जीवनदान देने वाले पेड़ों को क्या हम इतनी जमीन भी नहीं दे सकते? हमारे धर्मपुराणों में पेड़ लगाने और उन का पूजन करने की कितनी कथाएं हैं. बड़ेबुजुर्गों ने भी पेड़ लगाने के महत्व को समझाया है.

बचपन में मैं अकसर अपनी दादी से कहती कि ये आम का पेड़, जो आप ने लगाया है, इस के आम आप को तो खाने को मिलेंगे नहीं.

यह सुन कर दादी हंस कर कहतीं कि ये तो मैं तुम सब बच्चों के लिए लगा रही हूं. उस समय मुझे ये बात समझ में नहीं आती थी, पर अब स्वार्थ से ऊपर उठ कर हमारे पूर्वजों की परमार्थ भावना समझ आती हैं. क्यों न हम भी कुछ ऐसी ही भावनाएं अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में दे जाएं.

मैं ने पेड़ के आसपास काफी बड़ी क्यारी बनवा दी थी. दीवाली के दिनों में उस पर भी नया लाल रंग किया जाता तो पेड़ और भी खिल जाता.

पर आज मन व्यथित हो रहा था. पुनः बाहर गई. कुछ देर में ही संबंधित विभाग के कर्मचारी भी आ गए. वे सब काम में जुट गए. सभी छोटीबड़ी सूखी हुई सारी टहनियां एक ओर पड़ी हुई थीं. मैं ने पास से देखा, पेड़ का पूरा तना उखड़ चुका था. वे उस के तने को एक मोटी रस्सी से खींच कर ले जा रहे थे.

आश्चर्य तो तब हुआ, जब क्यारी के किनारे रखे सारे छोटे गमले सुरक्षित थे. एक भी गमला नहीं टूटा था. जातेजाते भी नेकी करना नहीं भूला था ‘सप्तपर्णी‘. लगा, सच में नेकी कभी धराशायी हो कर जमीन पर नहीं गिर सकती.

मैं उदास खड़ी उन्हें उस यादों के दरख्त को लेे जाते हुए देख रही थी. मेरी आंखों में आंसू थे.

पेड़ का पूरा तना और डालियां वे लेे जा चुके थे, पर उस की गहरी जड़ें अभी भी वहीं, उसी जगह हैं. मुझे पूरा यकीन है कि किसी सावन में उस की जड़ें फिर से फूटेंगी, फिर वापस आएगा ‘सप्तपर्णी‘.

Illegal Migrants : प्रवासी भारतीयों के मामले में प्रधानमंत्री मोदी खामोश क्यों हैं?

Illegal migrants : ट्रंप प्रशासन ने 205 ‘अवैध भारतीय प्रवासियों’ को भारत वापस भेजा है. आरोप हैं कि उन्हें अपराधियों की तरह जंजीरों में बांध कर सेना विमान से वापस भेजा गया. मामला गंभीर और राष्ट्रीय शर्म का रहा मगर प्रधानमंत्री मोदी ने चुप्पी साधी रखी.

भारत ही क्या सारी दुनिया में यह गवाही है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गहरे संबंध हैं. टीवी ख़बरों में तो यह खूब प्रचारित किया जाता है कि उन के बीच ऐसे संबंध हैं कि डोनाल्ड ट्रंप नरेंद्र मोदी का कहना मानते हैं.

नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ते रहे हैं बहुत कुछ वैसी ही शैली ट्रंप ने भी अपनाई. इस से यह संदेश और भी मजबूत हो गया कि दोनों ही नेताओं में बड़ी अच्छी ट्यूनिंग है, एकदूसरे को समझते हैं मगर जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही भारत के प्रति कड़ा रुख अपनाया है वह बताता है कि दोनों के ही संबंध कितने छत्तीसी हैं.

दरअसल, अमेरिका में अवैध प्रवासियों का निर्वासन एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर सामने है. इस लेख में, हम इस मुद्दे का विस्तृत विश्लेषण करेंगे और इस के पीछे के कारणों और परिणामों को समझने का प्रयास करेंगे.

अमेरिका में अवैध प्रवासियों की संख्या लंबे समय से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रही है. अनुमानों के अनुसार, अमेरिका में लगभग 11 मिलियन अवैध प्रवासी रहते हैं, जिन में से अधिकांश मैक्सिको और अन्य लैटिन अमेरिकी देशों से आए हैं. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद, अमेरिकी सरकार ने अवैध प्रवासियों के प्रति सख्त नीति अपनाई है. ट्रंप प्रशासन ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिन में सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए डेटाबेस का उपयोग करना और अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए अधिक अधिकारियों को नियुक्त करना शामिल है.

अब 205 भारतीय नागरिकों को ले कर सी-17 विमान सैन एंटोनियो, टैक्सास भारत आ गया है. जिस से देश में सकते के हालात हैं. हर बात में प्रतिक्रिया देने वाले नरेंद्र मोदी एवं विदेश मंत्री जयशंकर तो मानो खामोश हैं.

दरअसल, अमेरिकी सरकार की इस कार्रवाई का परिणाम यह होगा कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे. लेकिन इस कार्रवाई का विरोध भी हो रहा है, खास कर उन लोगों द्वारा जो अवैध प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करते हैं, उन का तर्क है कि अवैध प्रवासी भी मानव हैं और उन्हें भी सम्मान और अधिकार मिलने चाहिए.

अमेरिकी सरकार की अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने की कार्रवाई एक जटिल मुद्दा है, जिस में कई पक्ष और विपक्ष हैं. जबकि यह कार्रवाई अवैध प्रवास को रोकने के लिए एक कदम हो सकती है, लेकिन इस का परिणाम यह भी हो सकता है कि अवैध प्रवासी अपने देश वापस जाएंगे और उन के अधिकारों का उल्लंघन होगा.

भारत की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर मिलीजुली बनी हुई है. एक ओर, भारत सरकार ने अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर अमेरिकी सरकार के साथ सहयोग करने की बात कही है. दूसरी ओर, विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की आलोचना की है, यह कह कर कि यह कदम अवैध प्रवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है.

इस मुद्दे पर आम लोगों की प्रतिक्रिया भी मिलीजुली है. कुछ लोगों का मानना है कि अवैध प्रवासी भारत की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा हैं, जबकि अन्य लोगों का मानना है कि उन्हें मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए और उन्हें वापस भेजने से पहले उन के मामलों की समीक्षा की जानी चाहिए.

ऐसा लगता है, इस मामले में अमेरिका चीन के रास्ते पर चल रहा है. दोनों देशों की आव्रजन नीतियां और उन के कार्यान्वयन में काफी अंतर है. अमेरिका में, राष्ट्रपति ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए सख्त नीतियों का प्रस्ताव किया है, जबकि चीन में आव्रजन नीतियां अधिक सख्त और प्रतिबंधात्मक हैं. चीन में अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने के लिए “विशेष कानून” और नियम हैं.

हालांकि अमेरिका और चीन की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियां भी अलगअलग हैं, जो उन की आव्रजन नीतियों को प्रभावित करती हैं. मगर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अमेरिका लोकतंत्र का हिमायती है मानवाधिकार का प्रहरी माना जाता है. और वह ऐसा कदम उठाएगा यह कोई सोच भी नहीं सकता था.

मगर अब शीघ्र ऐसे मामलों में सरकार को कई कदम उठाने चाहिए. सब से पहले, उन्हें अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत करनी चाहिए और अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर एक समझौता करना चाहिए जो भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा करें.

इस के अलावा, भारत सरकार को अवैध प्रवासियों के परिवारों को सहायता प्रदान करनी चाहिए जो भारत में रहते हैं. सरकार को उन्हें आर्थिक सहायता, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करनी चाहिए.

सरकार को अवैध प्रवास को रोकने के लिए भी कदम उठाने चाहिए. उन्हें सीमा सुरक्षा को मजबूत करना चाहिए और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए तकनीकी उपायों का उपयोग करना चाहिए.

यही नहीं सरकार को अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाना चाहिए. उन्हें लोगों को अवैध प्रवास के खतरों और इस के परिणामों के बारे में बताना चाहिए. इन कदमों से सरकार अवैध प्रवासियों के मुद्दे का समाधान कर सकती है और भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा कर सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संबंधों में पिछले कुछ समय में काफी उतारचढ़ाव देखा गया है.

उल्लेखनीय है कि ट्रंप प्रशासन ने यूएसएआईडी को बंद करने की घोषणा की थी, जिस से भारत को मिलने वाली वित्तीय सहायता पर असर पड़ सकता था. लेकिन भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति के कारण, इस का प्रभाव न्यूनतम रहा.

कुल मिला कर, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के संबंधों में उतारचढ़ाव विचित्र रहे हैं, जहां नरेंद्र मोदी अपने संबंधों को कुछ ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर दिखाते हैं, वहीँ आज हकीकत आईना दिखा रही है.

Fraud : आरूषि निशंक के बहाने फिल्मी दुनिया में ठगी की कहानी

Fraud : आज कल ठगी की खूब घटनाएं देखने को मिल रही हैं. इस के लिए ठग अलगअलग तरह की तरकीबें आजमा रहे हैं. आम लोग तो इस का शिकार हैं ही ख़ास लोग भी इस से बच नहीं पाए हैं.

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की पुत्री आरुषि निशंक के साथ एक बड़ा धोखाधड़ी का मामला सामने आया है. मुंबई के दो फिल्म निर्माताओं, वरुण प्रमोद कुमार बागला और मानसी वरुण बागला ने आरुषि को एक फिल्म में प्रमुख भूमिका देने और फिल्म के निर्माण में निवेश करने के नाम पर 4 करोड़ रुपए ठग लिए.

आरुषि ने कोतवाली पुलिस थाने में दर्ज कराई अपनी शिकायत में बताया कि फिल्म निर्माताओं ने उन्हें अपनी एक हिंदी फिल्म में एक प्रमुख भूमिका देने की पेशकश की और फिल्म से होने वाली आय से मोटा हिस्सा देने का वायदा कर उन्हें फिल्म के निर्माण में 5 करोड़ रुपए का निवेश करने का लालच दिया.

आरुषि ने बताया कि उन पर भरोसा कर के उन्होंने अपनी फर्म ‘हिमश्री फिल्म्स’ के जरिए आरोपियों को 2 करोड़ रुपए दे दिए. बाद में उन्होंने थोड़ाथोड़ा कर के फिल्म निर्माताओं को और धन दिया और इस प्रकार उन्होंने उन्हें कुल चार करोड़ रुपए दे दिए.

आरुषि ने बताया, बाद में आरोपियों ने उन्हें सूचित किया कि फिल्म में उन की जगह किसी और अभिनेत्री को ले लिया गया है और इस की शूटिंग पूरी हो चुकी है. अपने साथ ठगी का अहसास होने पर आरुषि ने निर्माताओं से उन का धन लौटाने को कहा लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार करते हुए उन्हें धमकी भी दी.

मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी के मुताबिक इस संबंध में दर्ज शिकायत के आधार पर आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता के तहत धन वसूली, ठगी, धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश और धमकी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. उन्होंने बताया कि मामले की विवेचना शुरू कर दी गई है. फिल्मी दुनिया में कई चर्चित ठगी के मामले सामने आए हैं. यहां कुछ घटनाएं प्रस्तुत हैं:

प्रीति जिंटा का ठगी का मामला : प्रीति जिंटा ने अपने एक पूर्व मित्र पर ठगी का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि उन के मित्र ने उन्हें 2 करोड़ रुपये का चूना लगाया था.

शिल्पा शेट्टी का ठगी का मामला : शिल्पा शेट्टी ने अपने एक पूर्व मैनेजर पर ठगी का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि उन के मैनेजर ने उन्हें 1 करोड़ रुपये का चूना लगाया था.

सोनू सूद का ठगी का मामला : सोनू सूद ने अपने एक पूर्व बिजनैस पार्टनर पर ठगी का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि उन के बिजनैस पार्टनर ने उन्हें 5 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

राखी सावंत का ठगी का मामला : राखी सावंत ने अपने एक पूर्व प्रेमी पर ठगी का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि उन के प्रेमी ने उन्हें 1 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

कंगना रनौत का ठगी का मामला : कंगना रनौत ने अपने एक पूर्व मैनेजर पर ठगी का आरोप लगाया था. कहा था कि उन के मैनेजर ने उन्हें 2 करोड़ रुपए का चूना लगाया था.

इन मामलों से यह पता चलता है कि फिल्मी दुनिया में ठगी के मामले बहुत आम हैं. दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे प्रसिद्ध अभिनेताओं के बारे में ठगी की घटनाओं की जानकारी नहीं मिलती है. हालांकि, उस समय की कुछ चर्चित फिल्म अभिनेत्रियों के साथ ठगी की घटनाएं हुईं थीं.

उस समय की कुछ चर्चित फिल्म अभिनेत्रियों में से एक मीना कुमारी थीं. उन्हें एक बार एक ठग ने 50,000 रुपए का चूना लगाया था. यह घटना 1950 के दशक में हुई थी.

एक अन्य उदाहरण में अभिनेत्री नरगिस का नाम आता है. उन्हें एक बार एक ठग ने 1 लाख रुपए का चूना लगाया था. यह घटना 1940 के दशक में हुई थी.

इन घटनाओं से यह पता चलता है कि उस समय की फिल्म अभिनेत्रियों को भी ठगी का अकसर सामना करना पड़ता था.

Social Taboo : इसलिए अलग नहीं होते नास्तिकों के श्मशान घाट

Social Taboo : कहने वाले गलत नहीं कहते कि मौत का खौफ आदमी को चैन और सुकून से जीने भी नहीं देता. कैसेकैसे होते हैं ये डर और कौन इन्हें फैलाता है यह जानतेसमझते हुए भी लोग खामोश रहते हैं क्योंकि वे आस्तिक होते हैं लेकिन नास्तिकों को ये डर नहीं सताते जिन के लिए अलग से श्मशान घाट होने लगें तो एक बड़े बदलाव की उम्मीद की जा सकती है.

मृत्यु जीवन का सुखद समापन है या नहीं इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें हैं लेकिन मौत का खौफ सिर्फ उन लोगों के सर ज्यादा चढ़ कर बोलता है जो धार्मिक और पूजापाठी हैं. एक नास्तिक के लिए यह सामान्य और जीवन की अंतिम घटना है जिस के बाद कुछ बाकी नहीं रह जाता. आस्तिकों के लिए मौजूदा जिंदगी तो कठोर होती ही है साथ ही मौत के बाद की जिंदगी का खौफ उन्हें चैन से मरने भी नहीं देता. कई बार तो यह इतना ज्यादा होता है कि लोगों को मनोचिक्त्सक की शरण लेना पड़ती है. मौत के डर को मनोविज्ञान की भाषा में थानाटोफोबिया कहते हैं.

बहुत बारीकी से देखें तो इस मृत्युचिंता या डर की जड़ में सिर्फ और सिर्फ धर्म है. जिस ने मौत को ले कर इतने खौफनाक और डरावने किस्सेकहानियां गढ़ रखे हैं कि खासे आदमी का जीना दुश्वार हो जाता है. दुनिया का ऐसा कोई धर्म नहीं है जो मौत का डर दिखा कर पैसे न ऐंठता हो. हिंदू धर्म सहित सभी धर्म मोक्ष की बात प्रमुखता से करते हैं तो उन का इकलौता मकसद मौत पर भी दुकान चलाना ही होता है. महाकुंभ की भगदड़ में जो लोग मारे गए वे भी मोक्ष के लालच में प्रयागराज गए थे जिसे ले कर तरहतरह की बातें खासतौर से धर्म गुरुओं के बीच ज्यादा हुईं.

भय बिन होत न प्रीत

लाइफ आफ्टर डेथ हमेशा से ही मनोविज्ञानियों और दर्शनशास्त्रियों के लिए जिज्ञासा का विषय रहा है. हालांकि ये लोग किसी आधिकारिक या प्रमाणिक निष्कर्ष पर कभी नहीं पहुंच पाए. लेकिन धर्माचार्यों ने कूद कर बता दिया कि आदमी के बहुत से जन्म और योनियां होती हैं जो बहुत तकलीफदेह होती हैं. गरुड़ पुराण में मौत के बाद की जिंदगी का इतना भयावह चित्रण है जिस के श्रवण मात्र से अच्छेअच्छों की रूह कांप उठती है, मसलन मौत के बाद आत्मा को इतने और उतने नरकों से हो कर गुजरना पड़ता है, उन्हें अपनों कर्मों के मुताबिक फल मिलता है, उन्हें तेल के खोलते कड़ाहों में डाला जाता है, हाथी के पैरों के नीचे कुचला जाता है, सांपों से या मलमूत्र से भरे हुए कुए में डाल दिया जाता है और उन के अंगों को लोहे के सरियों से दागा जाता है वगैरह वगैरह .

इस डर से बचने का उपाय भी धर्म बताता है, वह है ब्राह्मण को दानदक्षिणा देते रहना. इस से भी पेट नहीं भरता तो श्राद्ध भी उपलब्ध है जो सालाना किश्त है जिंदगी के बाद की भी. श्मशान किसी की भी जिंदगी का आखिरी पड़ाव होता है पंडेपुजारियों की दुकान वहां भी चालू रहती है. हैरानी की बात यह है कि आमतौर पर ये लोग शव दहन के समय श्मशान में मौजूद नहीं रहते क्योंकि वह अपवित्र स्थान माना जाता है. लेकिन दूसरे दिन ही से इन का मीटर घूमने लगता है जो तीसरे, दसवें और तेरहवें दिन से शुरू हो कर मृतक के वारिसों की जिंदगी तक चलता रहता है और 2 – 3 पीढ़ियां यह धर्म टैक्स भरती रहती हैं. लेकिन उस शख्स को न के बराबर पैसा वह भी एक बार ही मिलता है जो श्मशान में शव का निबटान करता है. यह राशि दो से पांच हजार के बीच होती है. इन लोगों को डोम या फिर चंडाल भी कहा जाता है जो वर्ण व्यवस्था के लिहाज से शुद्र होते हैं.

बदहाल हैं डोम

शव दहन में अहम रोल निभाने वाले इन डोमों का समाज में कोई सम्मान नहीं होता उलटे चांडाल शब्द बतौर गाली इस्तेमाल किया जाता है. लकड़ी ढोने से ले कर शव के पूरी तरह राख होने तक की जिम्मेदारी इसी उपेक्षित की होती है. एक बार लोग परिजन को जला कर जाते हैं तो फिर कभी डोम की तरफ मुड़ कर भी नहीं देखते. तय है इसलिए कि मोक्ष दिलाने या परलोक में सुख सुविधाएं मुहैया कराने के कौपी राईट इस के पास नहीं होते. जो ब्राह्मण शव को छूता तक नहीं उसे जिंदगी भर दानदक्षिणा से नवाजा जाता है. उन का आदर सत्कार किया जाता है, पांवछुए जाते हैं. यह सब महज इसलिए कि वह जाति से ब्राह्मण है और शरीर से आत्मा के फुर्र होने तक जो आज तक किसी ने नहीं देखी की मुक्ति मोक्ष का ठेकेदार होता है. डोम लोगों का रहनसहन और जीवन स्तर बहुत ही दयनीय होता है. दिल्ली के झंडेवालान स्थित श्मशान घाट में जब दिल्ली प्रैस के संवाददाता रोहित सिंह ने वहां शव निबटान करने वाले मुखिया प्रमोद शर्मा से बात की तो उन्होंने खुद को अचारद बताया. उन की बातों से साफ लगा कि शव दाह करने वालों की अपनी अलग परेशानियां हैं. उन्हें बहुत ज्यादा पैसा नहीं मिलता है न तो सरकार को इन की बदहाली से कोई सरोकार होता है और न ही कोई समाजसेवी संगठन कुछ करता है.

वहां लगी रेट लिस्ट के मुताबिक पूरे दाह कर्म के 900 रूपए ही उन्हें मिलते हैं. लकड़ी का पैसा नगर निगम के खाते में चला जाता है. उन के अधीन काम करने वालों को कितना पैसा मिलता होगा इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि बस गुजारा करने लायक. डोम जाति के लोग जिस माहौल में जिंदगी बसर करते हैं उस का भी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह कतई सहूलियत वाला नहीं होता. जिस श्मशान में लोग शाम ढलने के बाद जाने से भी डरते हैं उस में इन्हें पूरी जिंदगी बिताने का श्राप या भार कुछ भी कहलें ढोना पड़ता है और एवज में इन्हें मृतक के परिजन थैंक्स तक नहीं बोलते क्योंकि ये ब्राह्मण नहीं शूद्र हैं.

बकौल प्रमोद शर्मा कुछ दिन पहले एक हिंदूवादी संगठन के लोग शमसान में रेट लिस्ट टांग गए हैं मानों हम कोई जबरिया वसूली करते हों. शमसान में आमतौर पर कोई धार्मिक कर्मकांड ऐसा नहीं होता जिस में पंडे की उपस्थिति अनिवार्य हो. मृतक के परिजन खुद अगरबत्ती और दिए जला कर शव पर फूलमालाएं और दूसरी पूजन सामग्री चढ़ा देते हैं. उन के साथ आए बुजुर्ग या अनुभवी परिजन क्रियाकर्म के दिशानिर्देश देते रहते हैं. शव दहन के वक्त कोई खास मंत्र नहीं पढ़ा जाता कभीकभार परिजनों के आग्रह पर प्रमोद खुद मंत्रोच्चार कर देते हैं, उन के पास एक किताब भी है जिस में अंतिम संस्कार के तौरतरीके लिखे हुए हैं.

आस्तिक बनाम नास्तिक

धर्म मृत्यु को भी संस्कार इसलिए मानता है ताकि इस के बाद के जीवन की कपोल कल्पनाओं की अहमियत खत्म न हो. अगर आदमी का सब कुछ उस के जलने के साथ खत्म हुआ मान लिया जाए तो धर्म के शोरूम के 80 फीसदी शटर खुदबखुद गिर जाएंगे. क्योंकि लोगों का भरोसा मोक्ष, मुक्ति स्वर्ग, नरक से उठ जाएगा फिर कोई भला क्यों दानदक्षिणा देगा.
लेकिन उन लोगों का क्या जो नास्तिक हैं और किसी भगवान, पूर्व और पुनर्जन्म सहित दैवीय साहित्य पर भरोसा नहीं करते? इस बाबत धर्म खामोश नहीं है वह यह एलान कर देता है कि ऐसे पापियों को तो कुम्भीपाक जैसे दर्जनों नर्कों से हो कर गुजरना पड़ेगा और उन्हें तरहतरह की घोर यंत्रणाए भुगतना पड़ेंगी.

दिक्कत तो यह है कि नास्तिक इन भभकियों से डरते नहीं क्योंकि वे मृत्यु को सहजता से स्वीकार कर चुके होते हैं. और वक्त रहते उस की तैयारियां भी शुरू कर देते हैं. वे मोक्ष मुक्ति के डर से धार्मिक पाखंडों में नहीं पड़ते बल्कि अपने काम में लगे रहते हैं. मौत का ख्याल उन्हें अवसाद में नहीं ले जाता बल्कि एक रोमांच से भर देता है.

जिंदगी के आखिरी दिनों में आस्तिक श्मशान की कल्पना मात्र से कांप उठते हैं. उन के जेहन में बारबार काले भैंसे पर सवार हाथ में फरसा लिए अट्टहास करता कालाकलूटा यमदूत घूम रहा होता है. वे बारबार भगवान से उन पापों की माफी मांग रहे होते हैं जो दरअसल में उन्हें कभी किए ही नहीं होते और अगर किए भी होते हैं तो उन के कोई माने नहीं होते. क्योंकि पाप क्या और पुण्य क्या यह तो धर्म ने तय कर रखा होता है. जिस का निचोड़ यह होता है कि पूजापाठ और दानदक्षिणा के अलावा सब कुछ पाप है.

वे बारबार गंगाजल हलक के नीचे उतार रहे होते हैं, महामृत्युंजय सहित न जाने कितने मंत्रों का जाप कर रहे होते हैं. इन ढकोसलों में उन के परिजन और रिश्तेदार भी प्रमुखता से शामिल रहते हैं. यह कोई प्रार्थना या पश्चाताप नहीं बल्कि वह डर है जो धर्म ने सदियों से दिमाग में ठूंस रखा है और यह सिलसिला अनवरत चलता रहता है. ऐसा और भी बहुत कुछ है जो उन्हें मौत के पहले ही मार देता है.

उलट इस के नास्तिक इन चक्करों में नहीं पड़ता. वह बेखौफ हो कर जिंदगी की आखिरी घड़ी का इंतजार करते कुछ न कुछ कर रहा होता है. अशक्त अगर हो तो पठनचिंतन करता रहता है. उसे इस बात की चिंता या डर नहीं रहता कि मौत के बाद क्या होगा और न ही इस बात की फ़िक्र होती है कि अंतिम यात्रा में कितने लोग शामिल होंगे और उस से भी बड़ा तनाव यह उसे नहीं होता कि मौत के बाद परिजन तेरहवी करेंगे या नहीं, गंगाजली खोलेंगे या नहीं, मृत्युभोज में पकवान बनवाएंगे या नहीं और मुक्ति के ठेकेदार ब्राह्मण समुदाय का भोज कराएंगे या नहीं.
लेकिन एक नास्तिक की इकलौती चिंता यह होती है कि उसे वहीँ जलाया या दफनाया जाएगा जहां धार्मिक और आस्तिक जलाए दफनाए जाते हैं क्योंकि भारत में नास्तिकों के लिए अलग से कहीं श्मशान घाट नहीं हैं. क्या नास्तिकों के लिए अलग से श्मशान घाट होना चाहिए इस सवाल का जवाब देना कठिन है क्योंकि इस बात से किसी लाश को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उस के साथ क्या किया जा रहा है. आप उसे जंगल में फेक दो पानी में बहा दो खेत या घर में गाड़ लो लाश कोई एतराज नहीं जता सकती.

हाल नास्तिक देशों के

नास्तिकों के लिए अलग शव निबटान की व्यवस्था होनी चाहिए क्योंकि वे जिंदगीभर बहुसंख्यक आस्तिकों द्वारा तिरस्कृत किए जाते हैं. उन का हर स्तर पर बहिष्कार कर उन्हें अपमानित किया जाता है. वे अनास्थावादी और अनीश्वरवादी होते हैं इसलिए भी उन के अलग श्मशान घाट होने चाहिए. जानकर हैरानी होती है कि कई देशों में नास्तिकों के लिए अलग से शव निबटान की व्यवस्था होने लगी है. जहां कोई धरमकरम ढोंगपाखंड नहीं होते.

इस का सब से बेहतर उदाहरण चीन है जो नास्तिकों का घोषित देश हो चला है. वहां 90 फीसदी से भी ज्यादा लोग नास्तिक हैं. जिन के लिए अलग से श्मशान घाट हैं जो सरकारी नियंत्रण में रहते हैं. यही हाल स्वीडन का भी है वहां भी नास्तिकों की तादाद चीन जितनी ही है जिन के लिए अलग से श्मशान घाट हैं. जरमनी की लगभग आधी आबादी नास्तिक है उन के लिए भी अलग शमसान घाट हैं. रूस, फ्रांस और जापान में भी नास्तिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है इन देशों में भी नास्तिकों की भावनाओं का सम्मान होने लगा है उन के लिए तेजी से अलग श्मशान घाट बन रहे हैं.

सब से बड़ी झंझट और विरोधाभास अमेरिका में देखने में आ रही है. वहां भी नास्तिकों की तादाद बढ़ रही है लेकिन उन के लिए अभी अलग से श्मशान घाट नहीं हैं. हालांकि वहां धर्म निरपेक्ष अंतिम संस्कार की सुविधा दी जाने लगी है और गैर धार्मिक श्मशान भी यदाकदा दिखने लगे हैं लेकिन अब शायद नहीं दिखेंगे क्योंकि वहां डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति हैं जो चर्चों और पादरियों के इशारे पर नाचते हैं. ये लोग कभी नहीं चाहेंगे कि ज्यादा लोग नास्तिक बनें क्योंकि वे इन की दुकान के लिए खतरा साबित होंगे.

अमेरिका की तरह ब्रिटेन के धर्म गुरु भी हैरान परेशान हैं वजह वहां भी तेजी से गैर धार्मिक या वैकल्पिक शव दहन का क्रेज बढ़ रहा है. एक ताज़ी रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के लोग गैर पारम्परिक तौरतरीके शव दहन के छोड़ रहे हैं. ये लोग मृत्यु को एक उत्सव के रूप में मनाने लगे हैं जिस में नाच गाना संगीत वगैरह होता है. मानतावादी शव दाह दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहा है, इस सोच के लोग भी मानते हैं कि स्वर्ग नरक मोक्ष मुक्ति बकवास बातें हैं. जिंदगी एक बार मिलती है इसलिए जी भर के बिना किसी खौफ के जीना चाहिए और अंतिम क्रिया कर्म भी पाखंड रहित होना चाहिए इन के समारोहों में मृतक की विरासत का जिक्र होता है.

नास्तिकों से डरते हैं शास्त्रधारी

अमेरिका और यूरोप के लोग धार्मिक बंदिशों से आजिज आने लगे हैं जिस का विरोध वे गैर धार्मिक और वैकल्पिक अंत्येष्टि के जरिए प्रदर्शित भी करने लगे हैं. वुड लेंड दफन पद्धति भी वहां तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इस की लागत भी कम आती है और यह पर्यावरण के अनुकूल भी है. गैर धार्मिक शव निबटान के नएनए तरीके सामने आ रहे हैं जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को चैन से मरने का संदेश देते हैं.

यह बेहद सुखद बदलाव है जिस की कोई आहट भारत में नहीं सुनाई दे रही क्योंकि यहां राम राज्य चल रहा है. इसलिए नास्तिकों की मजबूरी हो चली है कि वे आस्तिकों के श्मशान घाट का ही इस्तेमाल करें. जो मरने के बाद भी उन के साथ ज्यादती और अपमान है जबकि संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि मृतक का सम्मानपूर्वक दाह संस्कार भी एक अधिकार है जिन नास्तिकों को पापी करार दिया जाता है उन की अनदेखी की जा कर उस का प्रचार भी किया जाता है. उन्हें जानबूझ कर श्मशान घाट इस्तेमाल करने दिए जाते हैं जिस से नास्तिकता का रायता श्मशान घाट में ही बह कर सूख जाए.

चूंकि यह अधिकार कोई मांगता नहीं इसलिए मिलता भी नहीं. धर्म के ठेकेदार कभी नहीं चाहेंगे कि नास्तिकों के अलग श्मशान घाट हों क्योंकि उन के होने से फटका इन के धंधे पर पड़ेगा और मुमिकन है लोगों की दिलचस्पी इन में बढ़े और वे भी गैर धार्मिक संस्कार प्राथमिकता में रखने लगें. एक सर्वे के मुताबिक भारत में अभी 6 फीसदी लोग नास्तिक हैं लेकिन उन का शव निबटान धार्मिक श्मशान घाटों में ही होता है.

नास्तिकों के अलग श्मशान घाट बनने से नास्तिकता और आस्तिकता के बीच झूल रहे लोगों को नास्तिक श्मशान घाट आकर्षित ही करेंगे जो धर्म के कारोबारियों के बरदाश्त के बाहर की बात होगी. क्योंकि वहां कपाल क्रिया नहीं होगी, शव के मुंह में तुलसी के पत्ते और घी का लौटा नहीं डाला जाएगा, फूल मालाएं नहीं होंगी और सब से बड़ा बदलाव यह दिखेगा कि राम नाम सत्य है का नारा नहीं होगा. शव दहन के बाद न तीसरा चौथा होगा न गंगाजली खुलेगी न मृत्यु भोज होगा और न ही सालाना श्राद्ध वगैरह होंगे, सो उन का न होना ही पंडों के हक में है जो बिना श्मशान घाट जाए माल पुए पूरी खीर का और तरहतरह के दान का मजा लूट रहे हैं.

Online Hindi Story : प्यार के काबिल – जूही और मुकुल को परिवार से क्या सीख मिली

Online Hindi Story : मुकुल और जूही दोनों सावित्री कालोनी में रहते थे. उन के घर एकदूसरे से सटे हुए थे. दोनों ही हमउम्र थे और साथसाथ खेलकूद कर बड़े हुए थे.

दोनों के परिवार भी संपन्न, आधुनिक और स्वच्छंद विचारों के थे, इसलिए उन के परिवार वालों ने कभी भी उन के मिलनेजुलने और खेलनेकूदने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया था. इस प्रकार मुकुल और जूही साथसाथ पढ़तेलिखते, खेलतेकूदते अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर गए थे.

इधर कुछ दिनों से मुकुल अजीब सी परेशानी महसूस कर रहा था. कई दिन से उसे ऐसा एहसास हो रहा था कि उस की नजरें अनायास ही जूही के विकसित होते शरीर के उभारों की तरफ उठ जाती हैं, चाहे वह अपनेआप को लाख रोके. बैडमिंटन खेलते समय तो उस के वक्षों के उभार को देख कर उस का ध्यान ही भंग हो जाता है. वह अपनेआप को कितना भी नियंत्रित क्यों न करे, लेकिन जूही के शरीर के उभार उसे सहज ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

जूही को भी यह एहसास हो गया था कि मुकुल की निगाहें बारबार उस के शरीर का अवलोकन करती हैं. कभीकभी तो उसे यह सब अच्छा लगता, लेकिन कभीकभी काफी बुरा लगता था.

यह सहज आकर्षण धीरेधीरे न जाने कब प्यार में बदल गया, इस का पता न तो मुकुल और जूही को चला और न ही उन के परिवार वालों को.

लेकिन यह बात निश्चित थी कि मुकुल को जूही अब कहीं अधिक खूबसूरत, आकर्षक और लाजवाब लगने लगी थी. दूसरी तरफ जूही को भी मुकुल अधिक स्मार्ट, होशियार और अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में किसी फिल्म के नायकनायिका की छवि देखते थे. बात यहां तक पहुंच गई कि

इस वर्ष वैलेंटाइन डे पर दोनों ने एकदूसरे को न सिर्फ ग्रीटिंग कार्ड दिए, बल्कि दोनों के बीच प्रेमभरे एसएमएस का भी आदानप्रदान हुआ.

इस के बाद तो एकदूसरे के प्रति उन की झिझक खुलने लगी. वे दोनों प्रेम का इजहार तो करने ही लगे साथ ही फिल्मी स्टाइल में एकदूसरे से प्रेमभरी नोकझोंक भी करने लगे. हालत यह हो गई कि पढ़ते समय भी दोनों एकदूसरे के खयालों में ही डूबे रहते. अब किताबों के पन्नों पर भी उन्हें एकदूसरे की तसवीर नजर आ रही थी.

इस के चलते उन की पढ़ाई पर असर पड़ना स्वाभाविक था. इंटर पास करतेकरते उन के आकर्षण और प्रेम की डोर तो मजबूत हो गई, लेकिन पढ़ाई का ग्राफ काफी नीचे गिर गया, जिस का असर उन के परीक्षाफल में नजर आया. नंबर कम आने पर दोनों के परिवार वाले चिंतित तो थे, लेकिन वे नंबर कम आने का असली कारण नहीं खोज पा रहे थे.

इंटर पास कर के मुकुल और जूही ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो उन के प्रेम को और विस्तार मिला. अब उन्हें मिलनेजुलने के लिए कोई जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी. कालेज की लाइब्रेरी, कैंटीन और पार्क गपशप और उन के प्रेम इजहार के लिए उमदा स्थान थे.

इस प्रकार मुकुल और जूही का प्रेम परवान चढ़ता ही जा रहा था. किताबों में पढ़ कर और फिल्में देख कर वे प्रेम का इजहार करने के कई नायाब तरीके सीख गए थे.

इस बार वैलेंटाइन डे के अवसर पर मुकुल ने सोचा कि वह एक नए अंदाज में जूही से अपने प्रेम का इजहार करेगा. यह नया अंदाज उस ने एक पत्रिका में तो पढ़ा ही था, फिल्म में भी देखा था. उस ने पढ़ा था कि इस कलात्मक अंदाज से प्रेमिका काफी प्रभावित होती है और फिर वह अपने प्रेमी के खयालों में ही डूबी रहती है. इस कलात्मक अंदाज को उस ने इस वैलेंटाइन डे पर आजमाने का निश्चय किया. उस ने शीशे के सामने खड़े हो कर उस का खूब अभ्यास भी किया.

सुबहसुबह का समय था. मौसम भी अच्छा था. मुकुल का मन रोमानी था. उस ने हाथ में लिए गुलाब के खिले फूल को निहारा और फिर उसे अपने होंठों पर रख कर चूम लिया. अब उस से रहा न गया. उस ने अपने मोबाइल से जूही को छत पर आने के लिए एसएमएस किया.

जूही तो जैसे तैयार ही बैठी थी. मैसेज पाते ही वह चहकती हुई छत की तरफ दौड़ी. वह प्रेम की उमंग और तरंग में डूबी हुई थी और वैसे भी प्रेम कभी छिपाए नहीं छिपता.

जूही को इस प्रकार छत की ओर दौड़ते देख उस की मम्मी का मन शंका से भर उठा. वे सोचने लगीं, ‘इतनी सुबह जूही को छत पर क्या काम पड़ गया? अभी तो धूप भी अच्छी तरह से नहीं खिली.’ उन की शंका ने उन के मन में खलबली मचा दी. वे यह देखने के लिए कि जूही इतनी सुबह छत पर क्या करने गई है, उस के पीछेपीछे चुपके से छत पर पहुंच गईं.

वहां का दृश्य देख कर जूही की मम्मी हतप्रभ रह गईं. जूही के सामने मुकुल घुटने टेके गुलाब का फूल लिए प्रणय निवेदन की मुद्रा में था. वह बड़े ही प्रेम से बोला, ‘‘जूही डार्लिंग, आई लव यू.’’

जूही ने भी उस के द्वारा दिए गए गुलाब के फूल को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मुकुल, आई लव यू टू.’’

यह दृश्य देख कर जूही की मम्मी के पैरों तले जमीन खिसक गई, लेकिन छत पर कोई तमाशा न हो, इसलिए वे चुपचाप दबे कदमों से नीचे आ गईं. अब वे बहुत परेशान थीं.

थोड़ी देर बाद जूही भी उमंगतरंग में डूबी हुई, प्रेमरस में सराबोर गाना गुनगुनाती हुई नीचे आ गई. इस समय वह इतनी खुश थी, मानो सारा जहां उस के कदमों में आ गया हो. इस समय उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था.

उस की मम्मी को भी समझ नहीं आ रहा था कि वे उस के साथ कैसे पेश आएं? उन के मन में आ रहा था कि जूही के गाल पर थप्पड़ मारतेमारते उन्हें लाल कर दें. दूसरे ही पल उन के मन में आया कि नहीं,  इस मामले में उन्हें समझदारी से काम लेना चाहिए. उन्होंने शाम को जूही के पापा से ही बात कर के किसी निर्णय पर पहुंचने की सोची. उधर, आज दिनभर जूही अपने मोबाइल पर लव सौंग सुनती रही.

शाम को जब जूही की मम्मी ने जूही के पापा को सुबह की पूरी घटना बताई, तो वे भी सन्न रह गए. फिर भी उन्होंने धैर्य से काम लेते हुए कहा, ‘‘निशा, तुम चिंता मत करो. जूही युवावस्था से गुजर रही है और यह युवावस्था का सहज आकर्षण है. क्या हम ने भी ऐसा ही नहीं किया था?’’

‘‘राजेंद्र, तुम्हें तो हर वक्त मजाक ही सूझता है. यह जरूरी तो नहीं कि जो हम करें वही हमारी संतानें भी करें.’’

‘‘निशा, मेरे कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि बच्चों के भविष्य को ध्यान में रख कर कोई कदम ही न उठाया जाए. मैं आज ही मुकुल के पापा से बात करता हूं. बच्चों को समझाने से ही कोई हल निकलेगा.’’

जूही के पापा ने मुकुल के पापा से मिलने का समय लिया और फिर उन से मिलने उन के घर गए. फिर दोनों ने सौहार्दपूर्ण वातावरण में मुकुल और

जूही के प्रेम व्यवहार और उन के भविष्य पर चर्चा की, जिस से वे दोनों कहीं गलत रास्ते पर न चल पड़ें. दोनों ने बातों ही बातों में मुकुल और जूही को सही मार्ग पर आगे बढ़ाने की योजना और नीति बना ली थी.

तब एक दिन मुकुल के पापा ने सही अवसर पा कर मुकुल को अपने पास बुलाया और उस से इस प्रकार बातें शुरू कीं जैसे उन्हें उस के और जूही के बीच पनप रहे प्रेम संबंधों के बारे में कुछ पता ही न हो.

उन्होंने बड़े प्यार से मुकुल से पूछा, ‘‘बेटा मुकुल, आजकल तुम खोएखोए से रहते हो. इस बार तुम्हारे नंबर भी तुम्हारी योग्यता और क्षमता के अनुरूप नहीं आए. आखिर क्या समस्या है बेटा?‘‘

मुकुल के पास इस प्रश्न का कोई सटीक उत्तर नहीं था. कभी वह प्रश्नपत्रों के कठिन होने को दोष देता, तो कभी आंसर शीट के चैक होने में हुई लापरवाही को दोष देता.

‘‘बेटा मुकुल, मुझे तो ऐसा लग रहा है कि तुम अपना ध्यान पढ़ाई में सही से लगा नहीं पा रहे हो. कोई इश्कविश्क का मामला तो नहीं है?’’

यह सुनते ही मुकुल को करंट सा लगा. उस के मुंह से तुरंत निकला, ‘‘नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘बेटा, यह उम्र ही ऐसी होती है. यदि ऐसा है भी तो कोई बुरी बात नहीं. मुझे अपना दोस्त समझ कर तुम अपनी भावनाओं को मुझ से शेयर कर सकते हो. एक पिता कभी अपने बेटे को गलत सलाह नहीं देगा, विश्वास करो.’’

लेकिन मुकुल अब भी कुछ बताने से झिझक रहा था. उस के पापा उस के चेहरे को देख कर समझ गए कि उस के मन में कुछ है, जिसे वह बताने से झिझक रहा है. तब उन्होंने उस से कहा, ‘‘मुकुल, कुछ भी बताने से झिझको मत. तुम्हारे सपनों को पूरा करने में सब से बड़ा मददगार मैं ही हो सकता हूं. बताओ बेटा, क्या बात है?’’

अपने पापा को एक दोस्त की तरह बातें करते देख मुकुल की झिझक खुलने लगी. तब उस ने भी जूही के साथ चल रही अपनी प्रेम कहानी को सहज रूप से स्वीकार कर लिया.

इस पर उस के पापा ने कहा, ‘‘मुकुल, तुम एक समझदार बेटे हो जो तुम ने सचाई स्वीकार की. मुझे जूही से तुम्हारी

दोस्ती पर किसी भी तरह से कोई भी एतराज नहीं. बस, मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूं कि यदि तुम जूही को पाना चाहते हो तो पहले उस के लायक तो बनो.

‘‘तुम जूही को तभी पा सकते हो, जब अपने कैरियर को संवार लो और कोई अच्छी नौकरी व पद प्राप्त कर लो. बेटा, यदि तुम अपना और जूही का जीवन सुखमय बनाना चाहते हो, तो तुम्हें अपना कैरियर संवारना ही होगा अन्यथा जूही के पेरैंट्स भी तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे. इस दुनिया में असफल आदमी का साथ कोई नहीं देता.’’

यह सुन कर मुकुल ने भावावेश में कहा, ‘‘पापा, हम एकदूसरे से सच्चा प्यार करते हैं. कभी हम एकदूसरे से जुदा नहीं हो सकते.’’

‘‘बेटा, तुम दोनों को जुदा कौन कर रहा है? मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि यदि तुम जूही से जुदा नहीं होना चाहते तो उस के लिए कुछ बन कर दिखाओ. अन्यथा कितने ही सच्चे प्रेम की दुहाई देने वाले रिश्ते हों, अनमेल होने पर टूट और बिखर जाते हैं. यदि तुम ऐसा नहीं चाहते तो जूही की जिंदगी में खुशबू महकाने के लिए तुम्हें कुछ बन कर दिखाना ही होगा.’’

‘‘पापा, आप की बात मुझे समझ आ गई है. हम जिस चीज को चाहते हैं, उस के लिए हमें उस के लायक बनना ही पड़ता है. नहीं तो वह चीज हमारे हाथ से निकल जाती है.

‘‘अभी तक मैं अपना बेशकीमती समय यों ही गाने सुनने और फिल्में देखने में गवां रहा था. अब मैं अपना पूरा समय अपना कैरियर संवारने में लगाऊंगा. मुझे अपने प्यार के काबिल बनना है.’’

‘‘शाबाश बेटा, अपने इस जज्बे को कायम रखो. अपनी पढ़ाई में पूरा मन लगाओ. अपना कैरियर संवारो. मात्र सपने देखने से कुछ नहीं होता, उन्हें हकीकत में बदलने के लिए प्रयास और परिश्रम करना ही पड़ता है. जूही को पाना चाहते हो तो जूही के काबिल बनो.’’

‘‘पापा, आप ने मेरी आंखें खोल दी हैं. मैं आप से वादा करता हूं कि मैं ऐसा ही करूंगा.’’

‘‘ठीक है बेटा, तुम्हें मेरी सलाह समझ में आ गई. मैं एक दोस्त और मार्गदर्शक के रूप मे तुम्हारे साथ हूं.’’

इसी प्रकार की बातें जूही के पेरैंट्स ने जूही को भी समझाईं. इस का असर जल्दी ही देखने को मिला. मुकुल और जूही एकदूसरे को पाने के लिए अपनाअपना कैरियर संवारने में लग गए. अब वे दोनों अपनी पढ़ाई ध्यान लगा कर करने लगे थे.

जूही और मुकुल के पेरैंट्स भी यह देख कर काफी खुश थे कि उन के बच्चे सही राह पर चल पड़े हैं और अपनाअपना भविष्य उज्ज्वल बनाने में लगे हैं.

Hindi Story Telling : किरचें – सुमन ने अपनी मां के मोबाइल में ऐसा क्या देख लिया

Hindi Story Telling : ट्यूशनके लिए देर हो रही है… यह नेहा की बच्ची अभी तक नहीं आई. फोन करना ही पड़ेगा,’ मन ही मन बड़बड़ाती सुमन फोन की तरफ बढ़ी. ‘‘इस के भी अलग ही नखरे हैं… जब देखो जनाब का मुंह फूला रहता है,’’ सुमन ने डैड पड़े फोन को गुस्से में पटका.

अपनी सहेली को फोन करने के लिए सुमन ने मम्मी का मोबाइल उठाया तो उस में एक बिना पढ़ा मैसेज देख कर उत्सुकता से पढ़ लिया. किसी अनजान नंबर से आए इस मैसेज में एक रोमांटिक शायरी लिखी थी. आ गया होगा किसी का गलती से. दिमाग को झटकते हुए उस ने नेहा को फोन लगाया तो पता चला कि उस की तबीयत खराब है. आज नहीं आ रही. इस सारे घटनाक्रम में ट्यूशन जाने का टाइम निकल गया तो सुमन मन मार कर अपनी किताबें खोल कर बैठ गई. मगर मन बारबार उस अनजान नंबर से आए रोमांटिक मैसेज की तरफ जा रहा था. ‘कहीं सचमुच ही तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो मम्मी को इस तरह के संदेश भेज रहा है,’ सोच सुमन ने फिर से मम्मी का मोबाइल उठा लिया. 1 नहीं, इस नंबर से तो कई मैसेज आए थे.

तभी बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई तो सुमन ने घबरा कर मम्मी का मोबाइल यथास्थान रख दिया और किताब खोल कर पढ़ने का ड्रामा करने लगी. जैसे ही मम्मी रसोई में घुसीं सुमन ने तुरंत मोबाइल से वह अनजान नंबर अपनी कौपी में नोट कर लिया. अगले दिन नेहा के मोबाइल पर वह नंबर डाल कर देखा तो किसी डाक्टर राकेश का नंबर था. कौन है डाक्टर राकेश? मम्मी से इस का क्या रिश्ता है? उस ने अपने दिमाग के सारे घोड़े दौड़ा लिए, मगर कोई सूत्र हाथ नहीं लगा.

15 वर्षीय सुमन की मम्मी सुधा एक सिंगल पेरैंट हैं. उस के पापा एक जांबाज और ईमानदार पुलिस अधिकारी थे. खनन और ड्रग माफिया दोनों उन के दुश्मन बने हुए थे. अवैध खनन रोकने के विरोध में एक दिन कुछ बदमाशों ने उन की सरकारी जीप पर ट्रक चढ़ा दिया. जख्मी हालत में अस्पताल ले जाते समय उन की रास्ते में ही मौत हो गई. सुधा ने स्नातक तक की पढ़ाई की थी, इसलिए उन्हें सरकारी नियमानुसार पुलिस विभाग में अनुकंपा के आधार पर लिपिक की नौकरी मिल गई. मांबेटी की आर्थिक समस्या तो दूर हो गई, मगर सुधा के औफिस जाने के बाद सुमन जब स्कूल से घर लौटती तो मां के औफिस से वापस आने तक अकेली रहती. उस की सुरक्षा की चिंता सुधा को औफिस में भी सताती रहती. कुछ समय तक तो सुमन की दादी उस के साथ रही थीं. फिर एक दिन वे भी इस दुनिया से चल दीं. मांबेटी फिर से अकेली हो गईं. बहुत सोचविचार कर सुधा ने अपने घर की ऊपरी मंजिल पर बना कमरा डाक्टर रानू को किराए पर दे दिया. उस की ड्यूटी अकसर नाइट में होती थी. रानू सुधा को दीदी कहती थी और बड़ी बहन सा मान भी देती थी. अब सुधा सुमन की तरफ से बेफिक्र हो कर अपनी नौकरी कर रही थीं. सुमन पढ़ाई में काफी होशियार थी. उस के पापा उसे इंजीनियर बनाना चाहते थे. वह भी उन का सपना पूरा करना चाहती थी, इसलिए स्कूल के बाद शाम को अपनी सहेली नेहा के साथ प्रीइंजीनियरिंग प्रतियोगी परीक्षा की ट्यूशन ले रही थी.

अगले दिन सुबहसुबह ज्यों ही मम्मी के मोबाइल में एसएमएस अलर्ट बजा, स्कूल जाती सुमन का ध्यान अनायास पहले मोबाइल पर और फिर मम्मी के चेहरे की तरफ चला गया. मम्मी को मुसकराते देख उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई. ‘‘सुमन, स्कूल की बस मिस हो जाएगी,’’ मम्मी ने चेताया तो चेतनाशून्य सी सुमन मेन गेट की तरफ बढ़ गई.

शाम को सुधा के घर लौटते ही सुमन ने सब से पहले उन का मोबाइल मांगा. आज फिर

3 रोमांटिक शायरी वाले संदेश… ओहो, आज तो व्हाट्सऐप पर मिस्ड कौल भी. ‘कोई मैसेज तो नहीं है व्हाट्सऐप पर… हुंह डिलीट कर दिया होगा,’ सोच सुमन ने नफरत से मोबाइल एक ओर फेंक दिया. सुधा औफिस से लौटते समय उस के मनपसंद समोसे ले कर आई थीं. ओवन में गरम कर के चाय के साथ लाईं तो सुमन ने भूख नहीं है कह खाने से मना कर दिया. सुधा को थोड़ा अटपटा तो लगा, मगर टीनऐज मूड समझते हुए इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया.

कुछ दिनों से सुधा को महसूस हो रहा था कि सुमन उन से खिंचीखिंची सी रह रही है. न उन से बात करती है, न ही किसी चीज की फरमाइश. कुछ पूछो तो ठीक से जवाब भी नहीं देती. कभीकभी तो सुधा को झिड़क भी देती. क्या हो गया है इस लड़की को? शायद पढ़ाई और प्रीइंजीनियरिंग कंपीटिशन का प्रैशर है. सुधा हर तरह से अपनेआप को समझाने का प्रयास करतीं और अधिक से अधिक उस के नजदीक रहने की कोशिश करतीं, मगर जितना वे पास आतीं उतना ही सुमन को अपने से दूर पातीं.

सुधा का माथा तो तब ठनका जब पीटीएम में सुमन की क्लास टीचर ने उन से अकेले में पूछा कि क्या सुमन को कोई मानसिक परेशानी है? किसी लड़केवड़के का कोई चक्कर तो नहीं? आजकल क्लास में पढ़ाई पर बिलकुल ध्यान नहीं देती. बस खोईखोई सी रहती है. जरा सा डांटते ही आंखों में आंसू भर लाती है. साथ ही नसीहत भी दे डाली कि देखिए सुमन के लिए मां और बाप दोनों आप ही हैं. उसे बेहतर परवरिश दीजिए… उसे समय दीजिए… कहीं ऐसा न हो कि वह किसी गलत राह पर चल पड़े और हाथ से निकल जाए.

‘सुमन से बात करनी ही पड़ेगी,’ सोच अपनेआप को शर्मिंदा सा महसूस करती हुई सुधा स्कूल से सीधे औफिस चली गईं. अचानक दोपहर 3 बजे रानू का फोन आया. घबराई हुई आवाज में बोली, ‘‘दीदी आप तुरंत घर आ जाइए.’’ ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘बस आप आ जाइए,’’ कह कर उस ने फोन काट दिया. औफिस से तुरंत परमिशन ले कर सुधा टैक्सी पकड़ घर पहुंच गईं. सामने का दृश्य देख कर उन के होश उड़ गए. सुमन अर्धचेतना अवस्था में बिस्तर पर पड़ी थी. डाक्टर उस के सिरहाने बैठी थी.

‘‘क्या हुआ इसे?’’ सुधा दौड़ कर सुमन के पास पहुंचीं. ‘‘इस ने नींद की गोलियों की ओवरडोज ले ली… वह तो शुक्र है कि मैं फ्रिज से सब्जी लेने नीचे आ गई और इसे इस हालत में देख लिया वरना पता नहीं क्या होता… मैं ने इसे दवा दे कर उलटी करवा दी है. अभी बेहोश है. मगर खतरे से बाहर है,’’ रानू ने सारी बात एक ही सांस में कह डाली.

‘‘मगर इस ने ऐसा कदम क्यों उठाया?’’ दोनों के दिमाग में यही उथलपुथल चल रही थी. तभी सुमन नीम बेहोशी की हालत में बड़बड़ाई, ‘‘मां, प्लीज मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ… पहले पापा, फिर दादी मां और अब तुम भी चली जाओगी तो मैं कहां जाऊंगी…’’

‘‘नहीं मेरी बच्ची… मम्मी तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी… तुम्हीं तो मेरी दुनिया हो,’’ सुधा जैसे अपनेआप को दिलासा दे रही थीं. इसी बीच सुमन को होश आ गया.

‘‘सुमन, यह क्या किया बिटिया तू ने? एक बार भी नहीं सोचा कि तेरे बाद तेरी मां का क्या होगा,’’ सुधा ने उस का सिर प्यार से सहलाते हुए भरे गले से कहा. ‘‘आप ने भी तो नहीं सोचा कि आप की बेटी का क्या होगा…’’ बात अधूरी छोड़ कर सुमन ने नफरत से मुंह फेर लिया.

‘‘मैं ने क्या गलत किया?’’ सुमन ने कोई जवाब नहीं दिया.

रानू ने कहा, ‘‘सुमन तुम एक बहादुर मां की बहादुर बेटी हो, तुम्हें ऐसी कायरता वाली हरकत नहीं करनी चाहिए थी.’’ ‘‘बहादुर या चरित्रहीन?’’ सुमन बिफर पड़ी.

‘‘चरित्रहीन?’’ सुधा और रानू दोनों को जैसे एकसाथ किसी बिच्छू ने काट लिया हो. ‘‘हांहां चरित्रहीन… क्या आप बताएंगी कि कौन है यह डाक्टर राकेश जो आप को रोमांटिक संदेश भेजता है?’’ सुमन ने जलती निगाहों से सुधा से प्रश्न किया.

‘‘डाक्टर राकेश?’’ सुधा और रानू दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया बस खामोशी से जमीन की तरफ देखने लगीं.

‘‘देखा, कोई जवाब नहीं है न इन के पास,’’ सुमन ने फिर जहर उगला. ‘‘दीदी, आप नीचे जाइए. 3 कप कौफी बना कर लाइए. तब तक हम दोनों बैस्ट फ्रैंड्स बातें करते हैं,’’ रानू ने संयत स्वर में कहा.

रानू ने सुमन का हाथ अपने हाथ में लिया और कहने लगी, ‘‘सुमन, तुम बहुत बड़ी

गलतफहमी का शिकार हो गई हो. इस में सुधा दीदी का कोई दोष नहीं है. चरित्रहीन तुम्हारी मां नहीं, बल्कि डाक्टर राकेश है और उस से तुम्हारी मम्मी का नहीं बल्कि मेरा रिश्ता है. वह मेरा मंगेतर था, मगर मैं ने उस के चरित्र के बारे में कई लोगों से उलटासीधा सुन रखा था. बस अपना शक दूर करने के लिए मैं ने सुधा दीदी का सहारा लिया. उन के मोबाइल से राकेश को कुछ मैसेज भेजे. 3-4 मैसेज के बाद ही जैसाकि हमें शक था उस के रिप्लाई आने लगे. मैं ने जानबूझ कर बात को थोड़ा और आगे बढ़ाया तो उस के चरित्र का कच्चापन सामने आ गया. सचाई सामने आते ही मैं ने अपनी सगाई तोड़ ली. ‘‘सगाई टूटने के बाद तो राकेश और भी गिर गया. उस ने मुझ से तो अपना संबंध खत्म कर लिया, मगर तुम्हारी मम्मी के मोबाइल पर आने वाले उस के संदेश अब रोमांटिक से अश्लील होने लगे. बस 1-2 दिन में हम तुम्हारी मां की इस सिम को बदल कर नई सिम लेने वाले थे ताकि इस राकेश का सारा किस्सा ही खत्म हो जाए, मगर इस से पहले ही तुम ने यह नादानी भरी हरकत कर डाली. पगली एक बार अपनी मां से न सही, मुझ से ही अपने दिल की बात शेयर कर ली होती.’’

‘‘मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. मैं जानती हूं आप मम्मी का दोष अपने सिर ले रही हैं. मगर मम्मी का उस से कोई रिश्ता नहीं है तो वे उस के संदेश पढ़ कर मुसकराती क्यों थीं?’’ सुमन को अब भी रानू की बात पर यकीन नहीं हो रहा था. ‘‘वह इसलिए पगली कि जो रोमांटिक मैसेज मैं राकेश को भेजती थी वही मैसेज फौरवर्ड कर के वह तुम्हारी मम्मी वाले मोबाइल पर भेज देता था और दीदी की हंसी छूट जाती थी.’’

तभी सुधा कौफी ले आईं. सुमन उठने की स्थिति में नहीं थी. उस ने बैड पर लेटेलेटे ही अपनी बांहें मां की तरफ फैला दीं. सुधा ने उसे कस कर गले से लगा लिया. मांबेटी के साथसाथ डाक्टर रानू की भी आंखें भर आईं. आंसुओं में सारी गलतफहमी बह गई. मन में चुभी संदेश और अविश्वास की किरचें भी अब निकल चुकी थीं.

Best Hindi Story : छंट गया कुहरा – क्या माधुरी तोड़ पाई वो मोहपाश

Best Hindi Story : विक्रांत को स्कूटर से अंतिम बार जाते हुए देखने के लिए माधुरी बालकनी में जा कर खड़ी हो गई. विक्रांत के आंखों से ओझल होते ही उसे लगा जैसे सिर से बोझ उतर गया हो. अब न किसी के आने का इंतजार रहेगा, न दिल की धड़कनें बढ़ेंगी और न ही उस के न आने से बेचैनी और मायूसी उस के मन को घरेगी. यह सोच कर वह बहुत ही सुकून महसूस कर रही थी.

जब किसी के चेहरे से मुखौटा उतर कर वास्तविक चेहरे से सामना होता है तो जितनी शिद्दत से हम उसे चाहते हैं उसी अनुपात में उस से नफरत भी हो जाती है, एक ही क्षण में दिल की भावनाएं उस के लिए बदल जाती हैं. ऐसा ही माधुरी के साथ हुआ था.

माधुरी के विवाह को 5 साल हो गए थे. विवाह के बाद दिल्ली की पढ़ीलिखी, आधुनिक विचारों वाले परिवार में पलीबढ़ी माधुरी को उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर में रहने से और अपने पति मनोहर के अंतर्मुखी स्वभाव के कारण बहुत ऊब और अकेलापन लगने लगा था.

विक्रांत मनोहर के औफिस में ही काम करना था. अविवाहित होने के कारण अकसर वह मनोहर के साथ औफिस से उस के घर आ जाता था. माधुरी को भी उस का आना अच्छा लगता था. फिर वह अकसर खाना खा कर ही जाता था. खातेखाते वह खाने की बहुत तारीफ करता, जबकि अपने पति के मुंह से ऐसे बोल सुनने को माधुरी तरस जाती थी.

उस के आते ही घर में रौनक सी हो जाती थी. माधुरी उस से किताबों, कहानियों, फिल्मों, सामाजिक गतिविधियों पर बात कर के बहुत संतुष्टि अनुभव करती थी. धीरेधीरे वह उस की ओर खिंचती चली गई. जिस दिन वह नहीं आता तो उसे कुछ कमी सी लगती, मन उदास हो जाता.

धीरेधीरे माधुरी को एहसास होने लगा कि इस तरह उस का विक्रांत की ओर आकर्षित होना मनोहर के प्रति अन्याय होगा, यह सोच कर वह मन से बेचैन रहने लगी. उसे लगने लगा कि जैसे वह कोई अपराध कर रही है, विवाहोपरांत किसी भी परपुरुष से एक सीमा तक ही अपनी चाहत रखना उचित है, उस के बाद तो वह शादीशुदा जिंदगी के लिए बरबादी का द्वार खोल देती है.

सबकुछ समझते हुए भी पता नहीं क्यों वह अपनेआप को उस से मिले बिना रोक नहीं पाती थी. जादू सा कर दिया था जैसे उस ने उस पर. अब तो यह हालत थी कि जिस दिन वह नहीं आता था तो वह अपने पति से उस के न आने का कारण पूछने लगी थी.

एक साथ काम करते हुए मनोहर को आभास होने लगा था कि विक्रांत कुछ रहस्यमय है. औफिस में 1-2 और लोगों से भी उस ने पारिवारिक संबंध बना रखे थे, जिन के घर भी अकसर वह जाया करता था.

धीरेधीरे मनोहर को भी माधुरी का विक्रांत के प्रति पागलपन अखरने लगा था. उस ने माधुरी को कई बार समझाया कि उस का विक्रांत के प्रति इतना आकर्षण ठीक नहीं है. वह अकेला है, पता नहीं क्यों विवाह नहीं करता. उसे तो अपना समय काटना है. लेकिन उस की समझ में नहीं आया और दिनप्रतिदिन उस का आकर्षण बढ़ता ही गया. उस की प्रशंसा भरी बातों में वह उलझती ही जा रही थी. एक तरफ अपराधभावना तो दूसरी ओर उसे न छोड़ने की विवशता. दोनों ने उसे मानसिक रोगी बना दिया था.

मनोहर जानता था कि माधुरी उस के लिए समर्पित है. विक्रांत ने ही अपनी बातों के जाल से उसे सम्मोहित कर रखा है और उस दिन को कोसता रहता था जब वह पहली बार उसे अपने घर लाया था. हर तरह से समझा कर वह थक गया.

धीरेधीरे माधुरी को विक्रांत से रिश्ता रखना तनाव अधिक खुशी कम देने लगा था. जिस रिश्ते का भविष्य सुरक्षित न हो, उस का यह परिणाम होना स्वाभाविक है, लेकिन वह उस से रिश्ता तोड़ने में अपने को असमर्थ पाती थी. ऊहापोह में 3 साल बीत गए. इस बीच वह एक चांद सी बेटी की मां भी बन गई थी.

अचानक एक दिन माधुरी के साथ ऐसी घटना घटी जिस ने उस के पूरे वजूद को ही हिला कर रख दिया. मनोहर के औफिस जाते ही विक्रांत औफिस में ही काम करने वाले रमनजी की बेटी नेहा, उम्र यही कोई 20 वर्ष होगी को उस के घर ले कर आया. पूर्व परिचित थी और अकसर वह माधुरी के घर आती रहती थी.

विक्रांत का भी उस परिवार से घनिष्ठ संबंध था. विक्रांत आते ही बिना किसी भूमिका के बोला, ‘‘इस का गर्भपात करवाना है. इस के साथ बलात्कार हुआ है…’’

1 मिनट को माधुरी को लगा जैसे कमरे की दीवारें उस की आंखों के सामने घूम रही हैं. जब उस ने इस बात की पुष्टि की तब जा कर माधुरी को विश्वास हुआ. इस से पहले तो उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विक्रांत जो कह रहा है वह सच है.

डाक्टर मित्र ने कहा, ‘‘10 दिन भी देर हो जाती तो गर्भपात नहीं हो सकता था… पर एक बार के बलात्कार से कोई लड़की गर्भवती नहीं होती, ये सब फिल्मों में ही होता है… इस के जरूर किसी से शारीरिक संबंध हैं.’’

यह सुन माधुरी का माथा ठनका कि अरे, जिस तरह विक्रांत को उस के चेहरे के हावभाव से नेहा के लिए परेशान देख रही हूं. वह सामान्य नहीं है. मैं तो सोच रही थी कि कितना भला है जो एक लड़की की मदद कर रहा है, पर अब डाक्टर के कहने पर मुझे कुछ शक हो रहा है कि यह क्यों नेहा को ले कर इतना परेशान है… तो क्या… उस ने मुझे अपनी परेशानी से मुक्ति पाने के लिए मुहरा बनाया है… उसे पता है कि मेरी एक डाक्टर फ्रैंड भी है… और यह भी जानता है कि मैं उस की मदद के लिए हमेशा तत्पर हूं. वह मन ही मन बुदबुदाई और फिर गौर से नेहा और विक्रांत का चेहरा पढ़ने लगी.

गर्भपात होते ही विक्रांत का तना चेहरा कितना रिलैक्स लग रहा था. उस के बाद वह माधुरी को साधिकार यह कह कर गायब हो गया था कि वह उसे उस के घर पहुंचा दे और किसी को कुछ न बताए. माधुरी का शक यकीन में बदल गया था.माधुरी ने अपनी डाक्टर फ्रैंड की मदद से नेहा से हकीकत उगलवाने की ठान ली.

डाक्टर ने कड़े शब्दों में पूछा, ‘‘सच बता कि यह किस का बच्चा था?’’

उस ने पहले तो कुछ नहीं बताया. बस यह कहती रही कि कालेज के रास्ते में किसी ने उस के साथ बलात्कार किया था. लेकिन जब माधुरी ने उस से कहा कि सच बोलेगी तो वह उस की मदद करेगी नहीं तो उस की मां को सब बता देगी, तब वह धीरेधीरे कुछ रुकरुक कर बोली, ‘‘यह बच्चा विक्रांत अंकल का था. मैं उन की बातों से प्रभावित हो कर उन्हें चाहने लगी थी. उन्होंने मुझ से विवाह का वादा कर के मुझे समर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया,’’ और वह रोने लगी.

‘‘उफ, अंकल के रिश्ते को ही विक्रांत ने दागदार कर दिया. कितना विश्वासघात किया उस ने उस परिवार के साथ, जिस ने उस पर विश्वास कर के अपने घर में प्रवेश करने की अनुमति दी. जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया,’’ माधुरी यह अप्रत्याशित बात सुन कर बिलकुल सकते की हालत में थी. उस के दिमाग में विचारों का तूफान उठ रहा था. उस का मन विक्रांत के प्रति घृणा से भर उठा.

माधुरी का उतरा चेहरा देख कर उस की डाक्टर फ्रैंड थोड़ा मुसकराई और फिर बोली, ‘‘तू तो ऐसे परेशान है जैसे तेरे साथ ही कुछ गलत हुआ है?’’

‘‘तू सही सोच रही है…मेरा भी मानसिक बलात्कार उस ने किया है. अब मेरी आंखें खुल चुकी हैं. इतना गिरा हुआ इंसान कोई हो सकता है, मैं सोच भी नहीं सकती. मैं ने अपने जीवन के 3 साल उस के जाल में फंस कर बरबाद कर दिए.’’ माधुरी ने उसे भारी मन से बताया.

प्रतिक्रियास्वरूप उसे मुसकराते देख कर उसे अचंभा हुआ और फिर प्रश्नवाचक नजरों से उस की ओर देखने लगी तो वह बोली, ‘‘मैं सारी कहानी कल ही तुम तीनों के हावभाव देख कर समझ गई थी. आखिर इस लाइन में अनुभव भी कोई चीज है. तुझे पता है मेरे पति नील मनोवैज्ञानिक हैं. उन से मुझे बहुत जानकारी मिली है. ऐसे लोग बिल्ली की तरह रास्ता देख लेते हैं और वहीं शिकार के लिए मंडराते रहते हैं, शारीरिक शोषण के लिए कुंआरी लड़कियों को विवाह का झांसा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं…विवाहित से ऐसी आशा करना खतरनाक होता है, इसलिए उन्हें मानसिक रूप से सम्मोहित कर के अपने टाइम पास का अड्डा बना लेते हैं…

‘‘उन्हें पता होता है कि स्त्रियां अपनी प्रशंसा की भूखी होती हैं, इसलिए इस अस्त्र का सहारा लेते हैं. ऐसे रिश्ते दलदल के समान होते हैं. जिस से अगर कोई समय रहते नहीं ऊबरे तो धंसता ही चला जाता है. शुक्र है जल्दी सचाई सामने आ गई, वरना….’’ माधुरी अवाक उस की बातें सुनती रही और उस की बात पूरी होने से पहले ही उस के गले से लिपट कर रोने लगी.

माधुरी ने थोड़ा संयत हो कर अपनी आवाज को नम्र कर के नेहा से पूछा, ‘‘जब इतना कुछ हो गया है तो तुम्हारा विवाह उस से करवा देते हैं. तुम्हारी मां से बात करती हूं.’’

‘‘नहीं…मैं उन से नफरत करती हूं, उन्होंने नाटक कर के मुझे फंसाया है. उन के और लड़कियों से भी संबंध हैं…उन्होंने मुझे खुद बताया है, प्लीज आप किसी को मत बताइएगा. उन्होंने कहा है कि यदि मैं किसी को बताऊंगी तो वे मेरे फोटो दिखा कर मुझे बदनाम कर देंगे,’’ और उस ने रोते हुए हाथ जोड़ दिए.

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहोगी वैसा ही होगा,’’ माधुरी ने उसे सांत्वना दी.

अस्पताल से माधुरी नेहा को अपने घर ले आई, उस के आराम का पूरा ध्यान रखा. फिर उसे समझाते हुए बोली, ‘‘तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है, मैं हूं न. तुम्हें अपनी मां को सबकुछ बता देना चाहिए ताकि उस का तुम्हारे घर आना बंद हो जाए. नहीं तो वह हमेशा तुम्हें ब्लैममेल करता रहेगा. वह तुम्हारे फोटो दिखाएगा तो उस का भी तो नाम आएगा. फिर उस की नौकरी चली जाएगी, इसलिए वह कदापि ऐसा कदम नहीं उठा सकता. सिर्फ अपना उल्लू सीधा करने के लिए तुम्हें धमका रहा है. तुम अपनी मां से बात नहीं कर सकती तो मैं करती हूं.’’ माधुरी से अधिक उस की पीड़ा को और कौन समझ सकता था.

माधुरी की बात सुन कर नेहा को बहुत हिम्मत मिली. वह उस से लिपट कर देर तक रोती रही.

माधुरी ने नेहा की मां को फोन कर के अपने घर बुलाया और फिर सारी बात बता दी. पूरी बात सुन कर उस की मां की क्या हालत हुई यह तो भुक्तभोगी ही समझ सकता है. माधुरी के समझाने पर उन्होंने नेहा को कुछ नहीं कहा पर उन को क्या पता कि जब वह खुद ही उस की बातों के जाल में फंस गई तो नेहा की क्या बात…

वे रोते हुए बोलीं, ‘‘आप प्लीज किसी को मत बताइएगा, नहीं तो इस से शादी कौन करेगा? आप का एहसान मैं जिंदगीभर नहीं भूलूंगी.

अब मेरे घर के दरवाजे उस के लिए हमेशा के लिए बंद.’’

माधुरी ने उन्हें आश्वस्त कर के बिदा किया. उन के जाने के बाद वह पलंग पर लेट कर फूटफूट कर बच्चों की तरह रोने लगी. पूरे दिन का गुबार आंसुओं में बह गया. अब वह बहुत हलका महसूस करने लगी. उसे लगा कि उस के जीवन पर छाया कुहरा छंट गया है, सूर्य की किरणें उस के लिए नया सबेरा ले कर आई हैं.

अब माधुरी शाम को अपने पति मनोहर के आने का बेसब्री से इंतजार करने लगी.

पति के आते ही उस ने सारी बात बताते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, मैं भटक गई थी.’’

‘‘तुम्हारी इस में कोई गलती नहीं. मैं जानता था देरसबेर तुम्हारी आंखें जरूर खुलेंगी. देखो विवाह को एक समझौता समझ कर चलने में ही भलाई है. हर चीज चाही हुई किसी को नहीं मिलती. मुझे भी तो तुम्हारी यह मोटी नाक नहीं अच्छी लगती तो क्या मैं सुंदर नाक वाली ढूंढ़ूं…’’

अभी उस की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वह खिलखिला कर हंस पड़ी. फिर पति के गले से लिपट कर खुद को बहुत सुरक्षित महसूस कर रही थी.

अगले दिन विक्रांत मनोहर के साथ आया. माधुरी उस के सामने नहीं आई तो वह सारी स्थिति समझ थोड़ी देर बाद लौट गया.

Romantic Story : कैनवास – सुलिवान मैडम का कैसा व्यक्तित्व था

Romantic Story : ‘‘अलका, आज नो स्कूल डे की मौज ले,’’ शमीका मोबाइल पर खुशी जाहिर कर रही थी.

‘‘मतलब क्या है तेरा?’’ मैं असमंजस में थी.

‘‘अरे सुन, आज सुबहसुबह राजन सर की हार्टअटैक से मौत हो गई. सो, आज छुट्टी है स्कूल की,’’ शमीका ने खुशी जाहिर की.

‘‘यह ठीक है कि राजन सर को हम पसंद नहीं करते, मगर इस पर खुश होना ठीक नहीं शमीका. यह गलत है. एक तो वे नौजवान थे और उन की फैमिली भी थी. प्लीज, ऐसा मत बोल,’’ मैं ने शमीका को समझने की कोशिश की.

‘‘हेलो यार, छोटीछोटी गलतियों पर सारे लड़कों के सामने हम लड़कियों को ‘डम्ब’ और ‘डंकी’ कहते थे, तब,’’ शमीका बड़बड़ाती रही अपनी रौ में. मैं ने फोन काट दिया.

ठीक है हमारे इंग्लिश टीचर राजन सर थोड़ा ज्यादा ही रूड थे और खासकर लड़कियों को अकसर नीचा दिखाते थे, मगर इस का मतलब यह तो नहीं कि उन की एकाएक डैथ हो जाए और हम खुश हों. उन के बारे में सुन कर दिल भारी हो गया. अभी कुछ दिनों पहले ही तो उन्होंने अपनी लाड़ली बेटी रिम्पी का पहला बर्थडे मनाया था और उस की फोटो अपने फेसबुक प्रोफाइल में डाली थी. उस बच्ची के लिए मैं उदास थी.

मेरा इंग्लिश मीडियम स्कूल एक को-एड स्कूल था और मेरे क्लास के सारे साथी 11-13 उम्र वर्ग से थे जब सारे लड़केलड़कियों के तनमन में अजीब सी सनसनाहट शुरू हो जाती है और एकदूसरे के लिए अजीब अजीब खयाल उठना शुरू हो जाता है.

जब लड़कों में ईगो बढ़ने लगता है और उन की सोच में ऐंठन आने लगती है. वहीं लड़कियां आईने के सामने ज्यादा समय अपने को सजानेसंवारने में लगाती हैं. यहां तक कि  स्कूल यूनिफौर्म में भी अपने को घुमाफिरा कर चोरीचोरी ये समझने की कोशिश करती हैं कि क्लास के लड़के उन के लुक्स और उभरते शरीर को देख कर नर्वस होते हैं या नहीं. लड़के और लड़कियों के बीच एकदूसरे से बेहतर साबित करने का मौन कंपीटिशन चलता रहता है. प्रौब्लम यह भी है कि जबतब किसी का भी किसी पर क्रश हो जाता है.

खैर, 2 दिनों तक स्कूल बंद रहने के बाद फिर सोमवार को स्कूल खुला. हिंदी और मैथ के पीरियड्स के बाद थर्ड पीरियड इंग्लिश का था और हम निश्चिंत थे कि यह पीरियड औफ ही रहेगा तो हम शोरगुल मचाने लगे थे. जब हमारा उत्पात और शोर चरम पर था तो एकाएक शांति छा गई.

एक बहुत ही सुंदर और सौम्य लेडी, जो उन दिनों अपनी उम्र के तीसरे दशक के आसपास थी, अपनी हाई हील की खटखट की आवाज करती हुई क्लास में पधारीं. उन के बदन के ज्वारभाटा, लहराते हुए लंबे व खुले बाल और काजल खींची हिरणी सी आखें उन के चारों तरफ एक आभा फैला रही थीं. बड़े सलीके से पहनी हुई उन की सुनहरी बूटीदार मैरून साड़ी, पूरे शबाब के साथ उभरे सीने पर रखा हुआ, मोतियों का नैकलैस, डीप रैड लिपस्टिक और डस्की त्वचा एक अजीब सी मादकता पैदा कर रही थी.

हां, यही वे मिसेज अम्बर सुलिवान थीं जो हमारे दिवंगत राजन सर की जगह हमें इंग्लिश पढ़ाने के लिए नियुक्त की गई थीं.

मिसेज सुलिवान के रूप और पर्सनैलिटी का जादू मेरे ऊपर तुरंत चढ़ गया. मैं उन्हें देखती ही रही और मन ही मन अपनी जवानी के दिनों में वैसी ही बनने की ठान ली. मैं ने चोर निगाहों से क्लास के सब से मवाली लड़कों- रोहन, अदीब और पीयूष की तरफ देखा. वे सब भी बिलकुल डंब हो गए थे. उन की हालत देख कर मैं मन ही मन इतनी खुश हुई कि पूछो मत.

मैडम की पर्सनैलिटी से वे क्लीनबोल्ड हो कर भीगी बिल्ली बन गए थे. एक और जोर का बिजली का झटका तब लगा जब उन्होंने अपनी गजब की सुरीली आवाज में हम लोगों को विश किया. वैसे ही अपने मादक रूपरंग से वे किसी को भी मार सकती थीं, ऊपर से ऐसी जलतरंग सी आवाज. क्लास के हम सारे 40 लड़के व लड़कियां तत्काल ही मिसेज सुलिवान के प्यार में डूब गए.

इस के बाद उन्होंने अपने बारे में थोड़ी सी जानकारी दी और फिर ‘द फाउंटेन’ कविता को इतने रसीले अंदाज में पढ़ाया कि सारे शब्द भाव बन कर हमारे दिल में उतर गए. नोट लेने की जरूरत ही नहीं पड़ी. पूरे समय तक क्लास में पिनड्रौप साइलैंस बना रहा और हम पीरियड खत्म होने की घंटी बजने के साथ ही होश में आए.

जब मिसेज सुलिवान क्लास छोड़ कर जाने लगीं तो 80 आंखें उन की अदाओं पर चिपकी हुई थीं. वाह, कुदरत ने भी क्या करिश्मा किया है. रूप और गुणों से मैडम को बेइंतहा लैस किया है.

फोर्थ पीरियड अब फिजिकल ट्रेनिंग का था. जैसे ही पीटी टीचर की विस्सल बजी, हम सब तरतीब से लाइन में खड़े हो गए. हमारे पीटी टीचर मिस्टर असलम एकदम रफटफ लंबेतगड़े और बिलकुल गुलाबी रंगत के थे. उन्हें भी हम खूब पसंद करते थे मगर उस की एक दूसरी वजह थी. उन्हें इंग्लिश में बोलना निहायत पसंद था और उन की बेधड़क इंग्लिश भी ऐसी थी कि बड़ेबड़े अंग्रेजीदां लोगों को भी अपनी भाषा बोली रिसेट करने की जरूरत पड़ जाए.

एक दिन उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘यू नो, आई हैव टू डौटर्स एंड बोथ आर गर्ल्स. आई डोंट हैव अ सन.’’ (तुम्हें पता है मेरी दो जुड़वां बेटियां हैं और दोनों लड़कियां हैं. मेरा कोई लड़का नहीं है). उन की बात खत्म होते ही हंसी का फौआरा छूट गया. हमारी हंसी रुके ही न.

असलम सर बेचारे अपना मासूम सा चेहरा लिए यह समझने की कोशिश में थे कि उन्होंने ऐसी कौन सी बात कह दी कि बच्चों को इतना आनंद आ गया. मगर कुछ भी हो, न उन की स्पोकन इंग्लिश छूटी और न ही उन के आत्मविश्वास में कमी आई. हम लोगों ने भी कभी उन को चिढ़ाया नहीं, उन से लगाव जो था.

इसी तरह एक बार टीचर्स डे के अवसर पर प्रार्थना सभा में ही उन्होंने अपनी भारी आवाज में ऐलान किया-‘‘ब्रिंग योर पेरैंट्स टुमारो, एस्पेशली योर फादर्स एंड मदर्स.’’ (कल अपने पेरैंट्स को साथ लाना, खासतौर पर अपने माता और पिता को). अब पूरी असेंबली में हीही हुहु मच गई और प्रिंसिपल मैडम का चेहरा लाल हो गया. स्थिति संभालने के लिए सुलिवान मैडम आगे आईं और अपनी चुस्त इंग्लिश व मोहक मुसकान से सब को चुप कराया. असलम सर तब भी चौड़े हो कर हंस रहे थे.

मजे की बात यह हुई कि अब तक लगभग पूरे शहर को पता चल गया था कि असलम सर बुरी तरह सुलिवान मैडम पर फिदा हैं और सुलिवान मैडम के दिल में भी असलम सर के लिए कुछकुछ होता है. किसी भी बहाने से एकदूसरे के करीब बैठते हैं और तुर्रा तो यह कि असलम सर उन से इंग्लिश में ही बात करते हैं. हालांकि दोनों ही शादीशुदा थे और दोनों के बच्चे भी थे मगर दिल ने कब दुनियावी रोकटोक को माना है.

हुआ यह कि मैडम सुलिवान के 29वें बर्थडे के दिन असलम सर ने स्कूल के कौरिडोर के दूसरे छोर से ही ऊंची आवाज में मैडम को विश किया- ‘‘हैप्पी बर्थडे मैडम, मे गौड ब्लास्ट यू.’’ (हैप्पी बर्थ डे मैडम, ईश्वर आप को फाड़ें). जब सारे टीचर्स और स्टूडैंट्स इस पर खुल कर हंसने लगे, मैडम ने ?ोंपती हुई मुसकरा कर अपनी भारी पलकें ?ाका लीं. जाहिर है, असलम सर ने कभी ‘ब्लेस्स’ और ‘ब्लास्ट’ के अंतर पर ध्यान नही दिया.

हर एक बीते दिन के साथ ही हम सब बच्चे जवान हो रहे थे. मेरी कुछ सहेलियों ने तो ‘नारित्व’ का पहला पड़ाव भी छू लिया था और उन का चहकनामचलना भी एकाएक शांत हो गया था. अब उन की आंखें क्लास के लड़कों में कुछ और चीज की तलाश करने लगी थीं.

प्रकृति का अपना एक षड्यंत्र है. क्यूपिड का अदृश्य तीर तनमन में सुनामी लाता ही है. कितनी ही बार हम लोगों ने गौर किया है कि असलम सर की चोर निगाहें सुलिवान मैडम के स्तनों और साटन की साड़ी में लिपटी नितंबों पर अटकी हुई हैं. सही में असलम सर की इस बेबसी पर हमें दया आती थी.

उसी साल क्रिसमस डे के ठीक पहले सुलिवान मैडम ने सूचित किया कि वे अपने गृहनगर त्रिवेंद्रम लौट रही हैं क्योंकि उन्हें वहां के संत जोसफ कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल गई है. उन की इस छोटी सी सूचना ने हम लोगों को अंदर तक हिला दिया और असलम सर के तो दिल के हजार टुकड़े लखनऊ की सड़कों पर बिखर गए. सुलिवान मैडम ने अपने सौम्य व्यवहार और आकर्षक व्यक्तित्व से पूरे स्कूल के वातावरण में एक अजीब सी रौनक ला दी थी.

प्रिंसिपल से ले कर चपरासी तक उन के मुरीद हो चुके थे. इन कई महीनों की सर्विस में न तो उन्होंने कोई छुट्टी ली थी और न ही किसी से नाराज हुई थीं. खैर, जो होता है वह तो हो कर रहता है. वह दिन भी आ ही गया जब उन का फेयरवैल होना था.

असलम सर ने बड़ी मेहनत से अपने दिल में बसे समस्त आवेग और रचनात्मकता उड़ेल कर सुलिवान मैडम के लिए तैयार किया गया एक बड़ा सा ग्रीटिंग कार्ड और लालपीले गुलाबों से सजा एक गुलदस्ता ला कर उन्हें गिफ्ट किया. स्वाभाविक था कि सब में यह जिज्ञासा थी कि उस में उन्होंने कैसे अपने दिल की जबां को व्यक्त किया है.

हम सब ने उस कार्ड के अंदर ताकझांक की और पाया कि सुनहरे ग्लिटर से लिखा था, ‘‘मैरी क्रिसमस, डियर सुलिवान मैडम.’’ (क्रिसमस से विवाह करें, प्रिय सुलिवान मैडम). हम सब ने चुपचाप अपनी हंसी दबा ली.

असलम सर ने कभी ‘मेरी’ और ‘मैरी’ के बीच का अंतर न समझ था. सुलिवान मैडम ने बड़ी नजाकत के साथ कार्ड को स्वीकार किया, टैक्स्ट को पढ़ा और संयत ढंग से मुसकरा कर असलम सर को थैंक्स कहा.

फेयरवैल के बाद सुलिवान मैडम ने असलम सर को एक खाली क्लासरूम में एकांत में बुलाया और कार्ड के लेखन में हुई गलती को बड़े प्रेम से समझाया और हौले से उन के गाल पर एक चुंबन दे दिया. मैडम की तरफ से असलम सर के लिए यह एक छोटा सा गुडबाई रिटर्न गिफ्ट था. असलम सर की बड़ीबड़ी आंखों से सावन की धार बह निकली. क्यूपिड का खेल इसी तरह ओवर हो गया. हम में से कुछ शरारती बच्चे, जो खिड़की की ओट से इस छोटी सी घटना के रोमांटिक एंड का नजारा देख रहे थे, अपने आंसुओं को रोक नहीं पाए और दबे कदमों से वहां से भाग लिए.

आज जब मैं खुद अपना 29वां जन्मदिन मनाने की तैयारी कर रही हूं, एक सफल जर्नलिस्ट के रूप में शोहरत कमा चुकी हूं. मेरे मन के कैनवास पर असलम सर की स्पोकन इंग्लिश के साथसाथ सुलिवान मैडम के उज्ज्वल व्यक्तित्व की अमिट छाप, उन की हर अदा और पढ़ाने का अंदाज, उन का रोमांस और हर पल में उन की उपस्थिति मुझे प्रेरित कर रही है.

आज मैं जो कुछ भी हूं और आगे जीवन में जो कुछ भी हासिल करूंगी, उस में मेरी चहेती सुलिवान मैडम का योगदान और आशीर्वाद दोनों रहेंगे.

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