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Online Hindi Story : बेटा इंजीनियर न बन संयासी बन गया

Online Hindi Story : अर्पिता अपने पति मलय का सामान सहेज रही थी. उसे उस के कागजों के बीच एक फोटो मिली जिस में एक दंपती और 2 लड़के थे. अर्पिता ने ध्यान से देखा तो छोटे बच्चे का चेहरा मलय जैसा लग रहा था. उस ने औफिस से लौटने पर मलय से उस फोटो के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि फोटो में उस के माता, पिता, बड़े भाई और वह स्वयं है. अर्पिता ने कहा, ‘‘अरे, तुम्हारा भाई भी है, पर तुम तो अपने चाचा के साथ रहते थे न, तो इन सब का क्या हुआ?’’

पहले तो वह टालमटोल करता रहा पर जब अर्पिता रूठ कर बैठ गई तो नईनवेली पत्नी से वह उस रहस्य को ज्यादा देर छिपा न सका.

उस ने बताया, ‘‘यथार्थ घर का बड़ा बेटा था. वह परिवार में सब की आशाओं का केंद्र था. परिवार के गर्व का कारण था. होता भी क्यों न, मम्मा हों या पापा या छोटा भाई, उसे सब की चिंता रहती थी. वह मुसकरा देता, बस. कम बोलना उस की प्रकृति थी. पता ही नहीं चलता कि उस के मन में क्या चल रहा है, वह क्या सोच रहा है. पर उसे सब पता रहता था कि क्या समस्या है, किस को उस की आवश्यकता है. मम्मा के तो हृदय का टुकड़ा था वह. आज के युग में बच्चे जरा सा अपने पैरों पर खड़े हो ते ही अपना संसार रच लेते हैं और उस में विस्मृत हो जाते हैं, लेकिन यथार्थ के लिए दूसरों का दुख सदा निज आकांक्षाओं पर भारी था.

‘‘जब वह 4 वर्ष की इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर घर लौट रहा था तो मेरी मां सुनीता की प्रसन्नता का ठिकाना न था. उन का बेटा घर आ रहा था, सोने पर सुहागा यह कि वह इंजीनियर बन कर आ रहा था. सुनीता ने मेरे पिता तपन से कहा, ‘सुनिए, यथार्थ को नौकरी मिलते ही हम उस की शादी की बात करेंगे.’

‘‘तपन ने हंसते हुए कहा, ‘खयालीपुलाव पकाने में तुम्हारा जवाब नहीं. अभी तो यथार्थ को सिर्फ इंजीनियरिंग की डिगरी मिली है. पहले उसे नौकरी तो मिलने दो.’

‘‘अभी तो वे न जाने किनकिन सतरंगी सपनों की गलियों में भटकतीं कि तपन ने आ कर कहा, ‘सुनीता, ट्रेन का समय तो निकल गया, यथार्थ आया नहीं?’

‘‘तपन ने कहा, ‘मैं पहले ही पूछ चुका हूं, अब तो गाड़ी को आए भी एक घंटा हो गया है.’ फिर चिंतातुर हो कर वे बोले, ‘यथार्थ का मोबाइल स्विचऔफ आ रहा है.’

‘‘सुनीता ने घबरा कर कहा, ‘पर कल तो उस ने कहा था कि रात को चल कर सुबह पहुंच जाऊंगा. भोपाल फोन करिए. मालूम पड़े कि वह चला भी कि नहीं. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया, मेरा बच्चा.’

‘‘तपन ने कहा, ‘मैं सब मालूम कर चुका हूं, वह कल रात में वहां से चल दिया था.’

‘‘फिर सुनीता का श्वेत पड़ता चेहरा देख कर कुछ सुनीता और कुछ स्वयं को समझाते हुए वे बोले, ‘अरे, जानती तो हो उसे अपना ध्यान कहां रहता है, मोबाइल चार्ज नहीं किया होगा और दिल्ली का ट्रैफिक तो ऐसे ही है, फंस गया होगा कहीं जाम में.’

‘‘दोनों मन ही मन मना रहे थे कि यही सच हो. पर घड़ी की निरंतर आगे बढ़ती निष्ठुर सुइयां उन की सोच को झुठलाने को ठाने बैठी थीं. समय के साथसाथ उन की आशा को अनहोनी की आकांक्षा के काले बादल ढंकते चले जा रहे थे. पलपल कर के घंटे और दिन बीत गए. हर जगह पता किया, यथार्थ के जानने वालों को फोन किया पर कहीं से कोई सुराग नहीं मिल रहा था. किसी अनहोनी का भय सुरसा सा मुंह फैलाता जा रहा था.

‘‘यथार्थ के घर न आने का समाचार जानने वालों में आग के समान फैल गया और लोग आग में हाथ सेंकने से बाज न आए. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कहता, किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा. आजकल तो यह आम बात है. उसी में किसी प्रतिद्वंद्वी ने ठिकाने लगा दिया होगा. कोई कहता लूटपाट का चक्कर होगा.

‘‘2 दिन बीत जाने के बाद सभी ने यही राय दी कि पुलिस की सहायता ली जाए. तपन ने वह भी किया पर कोई पता न चला. बीतते दिनों के साथ उन की आशा की किरण धूमिल पड़ने लगी थी.

‘‘एक दिन तपन को कूरियर से एक पत्र मिला. उस में लिखा था, ‘आप का बेटा जीवित है.’ उन के हृदय में आशा की बुझती लौ को मानो तेल मिल गया. उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रकृति को धन्यवाद दिया और सुनीता को यह समाचार दिया. उन्होंने भी तुरंत ही प्रकृति को धन्यवाद दिया. लेकिन शायद धन्यवाद देने में दोनों ने कुछ जल्दबाजी दिखा दी थी. आगे के समाचार ने उन्हें यथार्थ के जीवित होने की पुष्टि तो की पर आगे जो लिखा था वह कोई कम बड़ा आघात न था. उस में लिखा था कि उन का बेटा योगी आश्रम में है और उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘सुनीता बोलीं, ‘यह किसी ने झूठ लिखा है. अरे, मेरे यथार्थ ने मुझ से फोन पर बात कर के आने को कहा था और अचानक उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली? यह नहीं हो सकता. उस का दीक्षा लेने का मन होता तो कभी तो हम से जिक्र करता. वह तो हम से अपने मन की हर बात कहता है.’

‘‘‘अब तो सच वहां जा कर ही मालूम होग, सुनीता,’ तपन ने चिंतातुर वाणी में कहा.

‘‘आश्रम के द्वार पर ही सुनीता, तपन और उन के साथ आए यथार्थ के मामा राजन और तपन के अभिन्न मित्र विकास को रोक दिया गया. तपन ने वह पत्र दिखाया जिस में लिखा था कि उन के हृदय के टुकड़े ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘वहां स्वामीजी के कुछ शिष्य थे. उन्होंने उन के आने का उद्देश्य पूछा. सुनीता ने कहा, ‘हम अपने बेटे को लेने आए हैं.’

‘‘इस पर वहां का मुख्य कार्यकर्ता अखिलानंद बोला, ‘पर उन्होंने दीक्षा ले ली है. अब वे आप के बेटे नहीं हैं, बल्कि यहां के दीक्षित प्रशिक्षु हैं. कुछ समय बाद वे संत की उपाधि पा जाएंगे.’

‘‘यह सुन कर सुनीता व्यग्र हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे कैसे आप मेरे बेटे को मुझ से छीन सकते हैं? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि वह मेरा बेटा नहीं है?’

‘‘तपन ने कहा, ‘वह एक पढ़ालिखा इंजीनियर है. अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी कोई आयु है दीक्षा लेने की?’

‘‘इस पर विकास ने कहा, ‘अरे तपन, इन लोगों से बहस करने से क्या लाभ, पहले यथार्थ से मिलो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’

‘‘‘आप उन से नहीं मिल सकते,’ अखिलानंद ने कहा.

‘‘‘अरे, मेरा बेटा है और हम ही नहीं मिल सकते, आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले?’

‘‘तभी अखिलानंद के एक साथी ने आ कर उस के कान में कुछ कहा. फिर अखिलानंद ने तपन से कहा, ‘आप लोग खुश हो जाएं स्वामीजी ने आज्ञा दी है कि आप लोगों को विश्वानंदजी से मिलवा दिया जाए.’

‘‘‘ये विश्वानंद कौन हैं, हम उन से मिलना नहीं चाहते. हमें, बस, अपने बेटे से मिलना है.’

‘‘‘जी, आप के जो बेटे थे उन का ही सांसारिक नाम त्याग कर नया नाम विश्वानंद रखा गया है.’

‘‘सुनीता को यह स्वीकार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘आप के कहने से उस का नाम बदल जाएगा क्या? उस का नाम कानूनीरूप से यथार्थ है और वही रहेगा.’

‘‘तपन ने बात को विराम देते हुए कहा, ‘चलिए, पहले आप हमें उस से मिलवाइए.’

‘‘आखिलानंद और उस का वह साथी उन्हें आश्रम के पिछवाड़े एक गर्भकक्ष में ले गए जहां अंधकार पांव पसारे था. बस, एक रोशनदान से प्रकाश की रश्मियां घुसपैठ करने को प्रयासरत थीं वरना दिन या रात का निर्णय कठिन हो जाता.

‘‘अखिलानंद ने आवाज दी, ‘विश्वानंद, देखो कुछ लोग तुम से मिलना चाहते हैं.’

‘‘बैठे हुए व्यक्ति को देख कर आगंतुक कुछ क्षण तो हतप्रभ रह गए. कहां जींस पहने, बालों में जेल लगाए सुंदरस्मार्ट यथार्थ और कहां बाल मुंडाए गेरुए वस्त्र पहने यह युवक. पर मां की दृष्टि तो सात परदों में भी अपने बेटे को पहचान लेती है. उस ने यथार्थ को देख कर कहा, ‘बेटा, इन लोगों ने तुम्हारा यह क्या हाल किया है?’

‘‘‘आप कौन?’ यथार्थ ने सुनीता को देख कर कहा.

‘‘सुनीता को लगा मानो किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो. उस ने कहा, ‘मैं तेरी मम्मा, बेटू.’

‘‘‘मेरी कोई मां नहीं,’ यथार्थ ने कहा. उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह आंखें नीची कर के बात कर रहा था.

‘‘तपन ने कहा, ‘बेटा, तुझे क्या हो गया है. मैं तेरा पापा, ये मम्मा, जरा होश में तो आ.’

‘‘पर यथार्थ ने उन की ओर दृष्टि नहीं उठाई. वह नीची दृष्टि किए हुए एक ही बात कह रहा था, ‘मैं किसी को नहीं जानता, मेरी कोई मां नहीं, कोई पिता नहीं.’

‘‘सुनीता ने उस का हाथ थामा तो उस ने झटक दिया और बोला, ‘मैं एक संत हूं. मैं सांसारिक लोगों से नहीं मिलता. मुझ से दूर रहें.’

‘‘‘बेटा, मैं तेरी मां हूं. इन लोगों ने तुझे बहका दिया है.’

‘‘इस पर वह खोईखोई वाणी में बोला, ‘मेरी मांपिता सब ऊपर वाला है. इस नश्वर संसार में मेरा कोई नहीं.’

‘‘सुनीता रो पड़ीं. वे तपन से बोलीं, ‘देखो, मेरे बेटे को क्या हो गया है. यह मुझे ही नहीं पहचान रहा है. जरूर इस पर किसी ने कोई जादूटोना कर दिया है.’ वे यथार्थ को हिलाने लगीं, अखिलानंद ने उन्हें रोक दिया, ‘आप इन्हें छू नहीं सकतीं. ये पवित्र आत्मा हो गए हैं.’

‘‘सुनीता बिगड़ गईं, ‘मैं, जिस ने उसे जन्म दिया है उस की मां, उसे छू नहीं सकती?’ उन्होंने यथार्थ से कहा, ‘बोल बेटा, बता दे इन्हें कि मैं तेरी मां हूं.’ पर वे लोग उन्हें और तपन वगैरा को जबरदस्ती बाहर ले आए और बोले, ‘बस, इस से ज्यादा आप उन से नहीं मिल सकते.’

‘‘विवशता में उन्हें वहां से आना पड़ा पर अपना बेटा कैसे खो सकते थे वे. दूसरे दिन अपने साथ 15-20 लोगों को ले कर वे फिर आश्रम गए. पर इस बार उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया गया. तपन के साथ यथार्थ के मित्र शिशिर और पवन भी थे. वे दोनों गुस्से में आ गए. उन्होंने जबरदस्ती अंदर जाने का प्रयास किया. उधर, स्वामीजी के शिष्यों का समूह बाहर आ गया. वे लोग इन्हें रोकने लगे जिस में आपस में हाथापाई की स्थिति आ गई. इसी हाथापाई में पवन को चोट लग गई और खून बहने लगा.

‘‘जब इन लोगों का अंदर जाने का प्रयास असफल हो गया, तो ये लोग वहीं धरना दे कर बैठ गए. और नारे लगाने लगे, ‘मेरा बेटा वापस दो, स्वामी जी हायहाय, धर्म के नाम पर धांधली नहीं चलेगी’ आदि.

‘‘इन के चारों ओर लोगों की भीड़ लग गई. जब आश्रम वालों ने देखा कि ये नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.

‘‘पुलिस ने स्वामीजी की शिकायत पर धरने वालों को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने आश्रम के विरुद्ध शिकायत की. इस पर पुलिस ने पूछताछ की. पर जब यथार्थ से पुलिस ने पूछा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अपनी इच्छा से आया है.

‘‘पुलिस इंस्पैक्टर ने तपन से कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और यदि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’

‘‘‘पर आश्रम वालों ने उस का ब्रेनवाश किया है, उसे बहका कर फंसाया है.’

‘‘‘जी, मैं सब समझ रहा हूं पर इस का कोई साक्ष्य नहीं है.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर आप हमें अपने ढंग से अपने बेटे को वापस लेने दीजिए.’

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘देखिए तपनजी, मैं आप को अपने हाथ में कानून नहीं लेने दे सकता.’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘यह कैसी बात है कि आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को बरगलाया है, वे गलत हैं और हम सही, फिर भी हमें ही रोक रहे हैं?’

‘‘‘देखिए, मन से हम आप के साथ हैं पर हम विवश हैं. कानून की सीमा के बाहर कुछ भी करना या करने देना हमारे लिए संभव नहीं. आप जो भी करें, कानून के अनुसार करें. कृपया आप लोग चले जाएं वरना हमें आप को जबरदस्ती हटाना पड़ेगा.’

‘‘तपन के साथ आए उन के मित्र ने उन्हें समझाया, ‘देखो, अगर पुलिस के चक्कर में पड़ गए तो हम दूसरी झंझटों में उलझ जाएंगे और यथार्थ को वापस कभी नहीं ला पाएंगे. इस से तो अच्छा है कि कुछ उपाय सोचो उसे वापस लाने का.’

‘‘‘‘पर मेरे बच्चे को हुआ क्या है? चलो, किसी झाड़फूंक वाले का पता करें,’ सुनीता ने कहा.

‘‘राजन ने कहा, ‘दीदी, टोटका नहीं, इन्होंने कोई नशा दिया है और इस का ब्रेनवाश किया है. देखा नहीं, उस की आंखें कैसी लाललाल थीं और वह अपनी सुध में नहीं लग रहा था.’

‘‘‘पर मेरे बच्चे ने इन का क्या बिगाड़ा था?’

‘‘‘कुछ नहीं, इन्हें अपना प्रचारप्रसार करने के लिए मेधावी और आकर्षक व्यक्तित्व के युवा चाहिए. ये इसी तरह मेधावी मगर सीधेसाधे बच्चों को फंसाते हैं.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर हम इन की चाल कामयाब नहीं होने देंगे. हम अपने बच्चे को लिए बिना वापस नहीं जाएंगे.’

‘‘तपन और सुनीता ने बहुत हाथपैर मारे, धरतीआकाश एक कर दिया पर वे दोबारा अपने बेटे की एक झलक भी नहीं पा सके. पता नहीं उसे उन लोगों ने कहां भेज दिया.

‘‘तपन ने पुलिस से संपर्क किया पर पुलिस ने भी पल्ला झाड़ दिया. वे एसपी तक के पास गए पर उन्होंने भी कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और जब वह कह रहा है कि वह अपनी इच्छा से वहां रहना चाहता है तो हम उस में क्या कर सकते हैं?’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘पर उन लोगों ने उसे कोई नशा दिया है, उस पर जादूटोना किया है. वरना जिस लड़के ने एक दिन पहले मुझ से कहा कि वह घर आ रहा है, अचानक आश्रम कैसे पहुंच गया?’

‘‘‘और तो और, उन लोगों ने उसे एक तहखाने में बंद कर रखा है यदि वह अपने मन से गया है तो उसे बंद तहखाने में किसी कैदी की तरह रखने की आवश्यकता क्या है?’ तपन ने कहा.

‘‘‘देखिए, आप की बात ठीक है पर जब हमारे इंस्पैक्टर गए थे तो आप का बेटा आश्रम में ही था. और उस ने स्वयं उन से कहा कि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रहना चाहता है,’ एसपी ने कहा, ‘और बिना किसी साक्ष्य के हम क्या कर सकते हैं?’

‘‘सुनीता बोलीं, ‘आप टैस्ट करवाइए. वे मेरे बेटे को कोई नशा अवश्य देते हैं क्योंकि जब वह हम से मिला तो उस ने एक बार भी मेरी ओर नहीं देखा और अनायास ही उस की दृष्टि मुझ से मिली तो उस ने तुरंत हटा ली. पर मैं ने उस क्षणांश में ही देख लिया कि उस की आंखें लाल थीं और चढ़ी हुई थीं. वह सामान्य तो बिलकुल नहीं था.’

‘‘पर पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में या संभवतया किसी दबाव में सहायता करने से मना कर दिया.

‘‘तपन को याद आया प्रभास. उस ने सोचा कि अभी तक उस ने क्यों नहीं सोचा प्रभास के बारे में. वह तो जनादेश चैनल में प्रोड्यूसर है. वह उस की सहायता कर सकता है. मीडिया साक्ष्य एकत्र करने में लग गई. पर प्रहरी इतने दृढ़ थे कि उन के दुर्ग में सेंध लगाना सरल न था. मीडिया ने साक्ष्य प्राप्त भी किए कि आश्रम में अफीम आती है. उस का अभियान धीरेधीरे सफलता के सोपान चढ़ रहा था कि अचानक एक दिन प्रभास के औफिस पर हमला हो गया और कई बहुमूल्य कैमरे आदि नष्ट कर दिए गए. फिर पता नहीं क्या हुआ कि प्रभास ने उस केस में धीरेधीरे रुचि लेनी बंद कर दी. एक दिन तपन ने उस से पूछा तो उलटे वह उन्हीं को समझाने लगा, ‘मेरी मानो तो तुम उसे भूल जाओ, जब तुम्हारा बेटा ही संन्यास लेना चाहता है तो क्या कर सकते हो, शायद प्रकृति यही चाहती है.’

‘‘सब ओर से हार कर तपन फिर स्वामीजी की शरण में गए उन से अपने बेटे की भीख मांगने. स्वामीजी ने मिलने से मना कर दिया. सब ओर से निराश हो कर तपन वापस लौटने को उठ खड़े हुए. तभी अखिलानंदजी से उन के साथी ने आ कर धीरे से कुछ कहा. अखिलानंद ने कहा, ‘आप खुश हो जाएं कि स्वामीजी को बेटे के प्रति आप की व्याकुलता देख कर दया आ गई.’

‘‘‘तो क्या वे यथार्थ को हमारे पास वापस भेज देंगे?’ तपन ने अधीर होते हुए पूछा.

‘‘‘नहीं, विश्वानंद तो हमारे आश्रम का अभिन्न अंग हैं. उन के प्रभावी व्यक्तित्व, ओजपूर्ण वाणी, और हिंदी व अंगरेजी दोनों में ही समानरूप से भाषण देने की क्षमता ने तो हम भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ा दी है. वे तो हमारे लिए अनमोल हीरा हैं,’ अखिलानंद ने यथार्थ को दीक्षा देने का रहस्य उजागर किया. तपन की आशा की किरण फिर धूमिल होने लगी.

‘‘कुछ क्षण ठहर कर अखिलानंद बोले, ‘हां, यदि आप चाहें तो एक तरीका है अपने बेटे के पास रहने का?’

‘‘‘वह क्या?’ तपन ने कुछ न समझते हुए पूछा.

‘‘‘आप भी हमारे आश्रम में सेवा करें. दीक्षा ले कर अपनी संपत्ति आश्रम को दान कर दें. भगवत भजन करें. आराम से रहें और भक्तों के हृदय पर राज करें,’ अखिलानंद ने तपन के सामने प्रस्ताव रखा.

‘‘इस में दोनों का हित निहित था. सो, दोनों इस संधि प्रस्ताव से सहमत हो गए.

‘‘तपन का छोटा बेटा मलय, जो पायलट का प्रशिक्षण ले रहा था, इस सब से सहमत नहीं था. सो, उस ने अपने चाचा के साथ रहने का निर्णय ले लिया.’’

मलय के मुख से इस संधि प्रस्ताव के बारे में सुन कर अर्पिता हतप्रभ थी. 

Hindi Kahani : देह – क्या बुधिया की जिंदगी में सिर्फ उस का जिस्म ही था

Hindi Kahani : चारपाई पर लेटी हुई बुधिया साफसाफ देख रही थी कि सूरज अब ऊंघने लगा था और दिन की लालिमा मानो रात की कालिमा में तेजी से समाती जा रही थी. देखते ही देखते अंधेरा घिरने लगा था… बुधिया के आसपास और उस के अंदर भी. लगा जैसे वह कालिमा उस की जिंदगी का एक हिस्सा बन गई है…

एक ऐसा हिस्सा, जिस से चाह कर भी वह अलग नहीं हो सकती. मन किसी व्याकुल पक्षी की तरह तड़प रहा था. अंदर की घुटन और चुभन ने बुधिया को हिला कर रख दिया. समय के क्रूर पंजों में फंसीउलझी बुधिया का मन हाहाकार कर उठा है.

तभी ‘ठक’ की आवाज ने बुधिया को चौंका दिया. उस के तनमन में एक सिहरन सी दौड़ गई. पीछे मुड़ कर देखा तो दीवार का पलस्तर टूट कर नीचे बिखरा पड़ा था. मां की तसवीर भी खूंटी के साथ ही गिरी पड़ी थी जो मलबे के ढेर में दबे किसी निरीह इनसान की तरह ही लग रही थी. बुधिया को पुराने दिन याद हो आए, जब वह मां की आंखों में वही निरीहता देखा करती थी.

शाम को बापू जब दारू के नशे में धुत्त घर पहुंचता था तो मां की छोटी सी गलती पर भी बरस पड़ता था और पीटतेपीटते बेदम कर देता था.

एक बार जवान होती बुधिया के सामने उस के जालिम बाप ने उस की मां को ऐसा पीटा था कि वह घंटों बेहोश पड़ी रही थी. बुधिया डरीसहमी सी एक कोने में खड़ी रही थी. उस का मन भीतर ही भीतर कराह उठा था.

बुधिया को याद है, उस दिन उस की मां खेत पर गई हुई थी… धान की कटाई में. तभी ‘धड़ाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला था और उस का दारूखोर बाप अंदर दाखिल हुआ था. आते ही उस ने अपनी सिंदूरी आंखें बुधिया के ऊपर ऐसे गड़ा दी थीं मानो वह उस की बेटी नहीं महज एक देह हो. ‘बापू…’ बस इतना ही निकल पाया था बुधिया की जबान से.

‘आ… हां… सुन… बुधिया…’ बापू जैसे आपे से बाहर हो कर बोले थे, ‘यह दारू की बोतल रख दे…’ ‘जी अच्छा…’ किसी मशीन की तरह बुधिया ने सिर हिलाया था और दारू की बोतल अपने बापू के हाथ से ले कर कोने में रख आई थी. उस की आंखों में डर की रेखाएं खिंच आई थीं.

तभी बापू की आवाज किसी हथौड़े की तरह सीधे उसे आ कर लगी थी, ‘बुधिया… वहां खड़ीखड़ी क्या देख रही है… यहां आ कर बैठ… मेरे पास… आ… आ…’ बुधिया को तो जैसे काटो तो खून नहीं. उस की सांसें तेजतेज चलने लगी थीं, धौंकनी की तरह. उस का मन तो किया था कि दरवाजे से बाहर भाग जाए, लेकिन हिम्मत नहीं हुई थी. उसी पल बापू की गरजदार आवाज गूंजी थी, ‘बुधिया…’

न चाहते हुए भी बुधिया उस तरफ बढ़ चली थी, जहां उस का बाप खटिया पर पसरा हुआ था. उस ने झट से बुधिया का हाथ पकड़ा और अपनी ओर ऐसे खींच लिया था जैसे वह उस की जोरू हो.

‘बापू…’ बुधिया के गले से एक घुटीघुटी सी चीख निकली थी, ‘यह क्या कर रहे हो बापू…’ ‘चुप…’ बुधिया का बापू जोर से गरजा और एक झन्नाटेदार थप्पड़ उस के दाएं गाल पर दे मारा था.

बुधिया छटपटा कर रह गई थी. उस में अब विरोध करने की जरा भी ताकत नहीं बची थी. फिर भी वह बहेलिए के जाल में फंसे परिंदे की तरह छूटने की नाकाम कोशिश करती रही थी. थकहार कर उस ने हथियार डाल दिए थे. उस भूखे भेडि़ए के आगे वह चीखती रही, चिल्लाती रही, मगर यह सिलसिला थमा नहीं, चलता रहा था लगातार…

बुधिया ने मां को इस बाबत कई बार बताना चाहा था, मगर बापू की सुलगती सिंदूरी आंखें उस के तनमन में झुरझुरी सी भर देती थीं और उस पर खौफ पसरता चला जाता था, वह भीतर ही भीतर घुटघुट कर जी रही थी. फिर एक दिन बापू की मार से बेदम हो कर बुधिया की मां ने बिस्तर पकड़ लिया था. महीनों बिस्तर पर पड़ी तड़़पती रही थी वह. और उस दिन जबरदस्त उस के पेट में तेज दर्द उठा. तब बुधिया दौड़ पड़ी थी मंगरू चाचा के घर. मंगरू चाचा को झाड़फूंक में महारत हासिल थी.

बुधिया से आने की वजह जान कर मंगरू ने पूछा था, ‘तेरे बापू कहां हैं?’ ‘पता नहीं चाचा,’ इतना ही कह पाई थी बुधिया.

‘ठीक है, तुम चलो. मैं आ रहा हूं,’ मंगरू ने कहा तो बुधिया उलटे पैर अपने झोंपड़े में वापस चली आई थी. थोड़ी ही देर में मंगरू भी आ गया था. उस ने आते ही झाड़फूंक का काम शुरू कर दिया था, लेकिन बुधिया की मां की तबीयत में कोई सुधार आने के बजाय दर्द बढ़ता गया था.

मंगरू अपना काम कर के चला गया और जातेजाते कह गया, ‘बुधिया, मंत्र का असर जैसे ही शुरू होगा, तुम्हारी मां का दर्द भी कम हो जाएगा… तू चिंता मत कर…’

बुधिया को लगा जैसे मंगरू चाचा ठीक ही कह रहा है. वह घंटों इंतजार करती रही लेकिन न तो मंत्र का असर शुरू हुआ और न ही उस की मां के दर्द में कमी आई. देखते ही देखते बुधिया की मां का सारा शरीर बर्फ की तरह ठंडा पड़ गया.

आंखें पथराई सी बुधिया को ही देख रही थीं, मानो कुछ कहना चाह रही हों. तब बुधिया फूटफूट कर रोने लगी थी. उस के बापू देर रात घर तो आए, लेकिन नशे में चूर. अगली सुबह किसी तरह कफनदफन का इंतजाम हुआ था.

बुधिया की यादों का तार टूट कर दोबारा आज से जुड़ गया. बापू की ज्यादतियों की वजह से बुधिया की जिंदगी तबाह हो गई. पता नहीं, वह कितनी बार मरती है, फिर जीती है… सैकड़ों बार मर चुकी है वह. फिर भी जिंदा है… महज एक लाश बन कर.

बापू के प्रति बुधिया का मन विद्रोह कर उठता है, लेकिन वह खुद को दबाती आ रही है. मगर आज बुधिया ने मन ही मन एक फैसला कर लिया. यहां से दूर भाग जाएगी वह… बहुत दूर… जहां बापू की नजर उस तक कभी नहीं पहुंच पाएगी.

अगले दिन बुधिया मास्टरनी के यहां गई कि वह अपने ऊपर हुई ज्यादतियों की सारी कहानी उन्हें बता देगी. मास्टरनी का नाम कलावती था, मगर सारा गांव उन्हें मास्टरनी के नाम से ही जानता है. कलावती गांव के ही प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती हैं. बुधिया को भी उन्होंने ही पढ़ाया था. यह बात और है कि बुधिया 2 जमात से ज्यादा पढ़ नहीं पाई थी.

‘‘क्या बात है बुधिया? कुछ बोलो तो सही… जब से तुम आई हो, तब से रोए जा रही हो. आखिर बात क्या हो गई?’’ मास्टरनी ने पूछा तो बुधिया का गला भर आया. उस के मुंह से निकला, ‘मास्टरनीजी.’’

‘‘हां… हां… बताओ बुधिया… मैं वादा करती हूं, तुम्हारी मदद करूंगी,’’ मास्टरनी ने कहा तो बुधिया ने बताया, ‘‘मास्टरनीजी… उस ने हम को खराब किया… हमारे साथ गंदा… काम…’’ सुन कर मास्टरनी की भौंहें तन गईं. वे बुधिया की बात बीच में ही काट कर बोलीं, ‘‘किस ने किया तुम्हारे साथ गलत काम?’’ ‘‘बापू ने…’’ और बुधिया सबकुछ सिलसिलेवार बताती चली गई.

मास्टरनी कलावती की आंखें फटी की फटी रह गईं और चेहरे पर हैरानी की लकीरें गहराती गईं. फिर वे बोलीं, ‘‘तुम्हारा बाप इनसान है या जानवर… उसे तो चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए. उस ने अपनी बेटी को खराब किया. ‘‘खैर, तू चिंता मत कर बुधिया. तू आज शाम की गाड़ी से मेरे साथ शहर चल. वहां मेरी बेटी और दामाद रहते हैं. तू वहीं रह कर उन के काम करना, बच्चे संभालना. तुम्हें भरपेट खाना और कपड़ा मिलता रहेगा. वहां तू पूरी तरह महफूज रहेगी.’’

बुधिया का सिर मास्टरनी के प्रति इज्जत से झुक गया. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरते ही बुधिया को लगा जैसे वह किसी नई दुनिया में आ गई हो. सबकुछ अलग और शानदार था.

बुधिया बस में बैठ कर गगनचुंबी इमारतों को ऐसे देख रही थी मानो कोई अजूबा हो. तभी मास्टरनीजी ने एक बड़ी इमारत की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘देख बुधिया… यहां औरतमर्द सब एकसाथ कंधे से कंधा मिला कर काम करते हैं.’’

‘‘सच…’’ बुधिया को जैसे हैरानी हुई. उस का अल्हड़ व गंवई मन पता नहीं क्याक्या कयास लगाता रहा. बस एक झटके से रुकी तो मास्टरनी के साथ वह वहीं उतर पड़ी.

चंद कदमों का फासला तय करने के बाद वे दोनों एक बड़ी व खूबसूरत कोठी के सामने पहुंचीं. फिर एक बड़े से फाटक के अंदर बुधिया मास्टरनीजी के साथ ही दाखिल हो गई. बुधिया की आंखें अंदर की सजावट देख कर फटी की फटी रह गईं.

मास्टरनीजी ने एक मौडर्न औरत से बुधिया का परिचय कराया और कुछ जरूरी हिदायतें दे कर शाम की गाड़ी से ही वे गांव वापस लौट गईं. शहर की आबोहवा में बुधिया खुद को महफूज समझने लगी. कोठी के चारों तरफ खड़ी कंक्रीट की मजबूत दीवारें और लोहे की सलाखें उसे अपनी हिफाजत के प्रति आश्वस्त करती थीं.

बेफिक्री के आलम से गुजरता बुधिया का भरम रेत के घरौंदे की तरह भरभरा कर तब टूटा जब उसे उस दिन कोठी के मालिक हरिशंकर बाबू ने मौका देख कर अपने कमरे में बुलाया और देखते ही देखते भेडि़या बन गया. बुधिया को अपना दारूबाज बाप याद हो आया.

नशे में चूर… सिंदूरी आंखें और उन में कुलबुलाते वासना के कीड़े. कहां बचा पाई बुधिया उस दिन भी खुद को हरिशंकर बाबू के आगोश से. कंक्रीट की दीवारें और लोहे की मजबूत सलाखों को अपना सुरक्षा घेरा मान बैठी बुधिया को अब वह छलावे की तरह लगने लगा और फिर एक रात उस ने देखा कि नितिन और श्वेता अपने कमरे में अमरबेल की तरह एकदूसरे से लिपटे बेजा हरकतें कर रहे थे. टैलीविजन पर किसी गंदी फिल्म के बेहूदा सीन चल रहे थे. ‘‘ये दोनों सगे भाईबहन हैं या…’’ बुदबुदाते हुए बुधिया अपने कमरे में चली आई.

सुबह हरिशंकर बाबू की पत्नी अपनी बड़ी बेटी को समझा रही थीं, ‘‘देख… कालेज जाते वक्त सावधान रहा कर. दिल्ली में हर दिन लड़कियों के साथ छेड़छाड़ व बलात्कार की वारदातें बढ़ रही हैं. तू जबजब बाहर निकलती है तो मेरा मन घबराता रहता है. पता नहीं, क्या हो गया है इस शहर को.’’ बुधिया छोटी मालकिन की बातों पर मन ही मन हंस पड़ी. उसे सारे रिश्तेनाते बेमानी लगने लगे. वह जिस घर को, जिस शहर को अपने लिए महफूज समझ रही थी, वही उसे महफूज नहीं लग रहा था. बुधिया के सामने एक अबूझ सवाल तलवार की तरह लटकता सा लगता था कि क्या औरत का मतलब देह है, सिर्फ देह?

Hindi Story : स्पर्म डोनर – आखिर क्यों शादी से दूर भागती थी वान्या ?

Hindi Story : वान्या फोन रखते ही एक अजीब सी घुटन से भर गई थी. क्या करे वह इस रिश्ते का? क्यों ऐसा कोई कानून
नहीं है कि बच्चे अपने मातापिता को भी तलाक दे सकें… वह जिंदगी में जितना आगे बढ़ना चाहती थी उतना ही उस के पापा अनिकेत उसे कीचड़ में घसीट लेते थे.

बहुत देर तक वह यों ही गुमसुम सी बैठी रही. तभी उस की मम्मी मनीषा ने आ कर कमरे की लाइट जलाई और बोली,”क्या हुआ वानु, इतनी परेशान क्यों हो?”

वान्या आंखों में आंसू भरते हुए बोली,”आज फिर आप के पति के कारण मैं मुसीबत में पड़ गई हूं।”

मनीषा हंसते हुए बोली,”मेरे पति या तुम्हारे पापा…”

वान्या गुस्से में बोली,”आप तो बड़े मजे से उन से अलग हो गई हैं मगर क्या कोई अदालत है जहां पर मैं उन से तलाक ले सकूं?”

मनीषा बोली,”आखिर क्या किया है अनिकेत ने?”

वान्या बोली,”मेरे ओहदे के नाम पर कहीं पर दलाली कर रहे हैं। कहते फिर रहे है कि मैं वान्या मैडम का पापा हूं और इसलिए उन्हें पता है कि कौन सी कंपनी को टैंडर मिलेगा…”

मनीषा कुछ सोचते हुए बोली,”यह तो अनिकेत की पुरानी आदत है। उस ने हमेशा रिश्तों को अपने फायदे के लिए ही इस्तेमाल किया है। 56 साल की उम्र में भी उस की आदत में सुधार नहीं हुआ है।”

वान्या बालों का जुड़ा लपेटते हुए बोली,”जब भी फोन करते हैं हमेशा ऐसा दिखाते हैं जैसे मैं ने उन के साथ कुछ गलत किया हो।”

मनीषा बोली,”दिल पर क्यों लेती हो बेटा?”

वान्या बोली,”मैं दिल पर कैसे न लूं मम्मी। वे कभी भी मेरे लिए नहीं थे मगर जब मैं अपने पैरों पर खड़ी हो गई हूं तो अपने पिता होने का फर्ज मुझे क्यों याद करवा रहे हैं…”

वान्या 27 वर्ष की खूबसूरत लड़की थी. जब वान्या 12 साल की थी तब से उस के मम्मीपापा अलग रहते हैं. कारण था वान्या के पापा अनिकेत का न तो किसी नौकरी पर टिक पाना और अपनी पत्नी मनीषा के पैसों पर ही महिलाओं के साथ ऐयाशी करना.

वान्या को जब कुछकुछ समझ आई थी तब से उस ने अपनी मम्मी मनीषा को अनिकेत की हरकतों के कारण
परेशान ही देखा था. मनीषा को लगता था कि वान्या को मांबाप दोनों की प्यार की जरूरत है इसलिए वह
रिश्ते में बंधी रही थी.

वान्या की पैरेंटटीचर मीटिंग हो या उस की कोई परीक्षा, अनिकेत कहीं भी नहीं था. एक दिन तो हद ही हो
गई थी जब अनिकेत ने वान्या की फीस ही नहीं भरी थी जिस के कारण वान्या को वार्षिक परीक्षा में नहीं
बैठने दे रहे थे.

वान्या को आज भी याद है उस की मम्मी मनीषा ने कैसेकैसे इंतजाम कर के उस की फीस भर दी थी. अनिकेत ने पूछने पर फिर से एक सफेद झूठ बोल दिया था कि वह पैसे उस ने अपने दोस्त के इलाज में लगा दिए थे.

वान्या ने ही उस घटना के बाद अपनी मम्मी को कहा था कि मुझे पापा के साथ नही रहना है। मगर मनीषा न जाने फिर भी क्यों उस शादी को तोड़ नहीं पा रही थी. मगर जब अनिकेत धोखाधड़ी के कारण जेल चला गया और यह भी पता चला कि वह किसी और औरत के साथ रह रहा था तो मनीषा ने हिम्मत जुटा कर अलग होने का फैसला कर लिया था.

जिंदगी में अचानक आए इस मोड़ पर जहां मनीषा ने अपनेआप को संभाल लिया था वहीं वान्या को कड़वाहट से भर दिया था. वान्या को न पहनने का शौक था और न ही ओढ़ने का, सारा दिन जोगिन सा वेश धरे वान्या घूमती रहती थी. मगर वान्या की आंखों में गजब का आकर्षण था और वह बेहद खूबसूरत भी थी।

वहीं मनीषा ने अपनी जिंदगी को जीना नहीं छोड़ा। अपने बालों से ले कर त्वचा तक की संचित राशि को वह बहुत संभाल कर रखती थी. इसलिए देखने वालों को वान्या और मनीषा मांबेटी कम बहनें अधिक लगती थीं. वान्या जहां इतनी छोटी सी उम्र में गंभीरता का आवरण ओढ़े रखती थी, वहीं मनीषा ने खिलखिलाना नहीं छोड़ा था.

वान्या अगले दिन जब औफिस पहुंची तो ऐसा लगा जैसे पूरा स्टाफ उसे देख कर मन ही मन हंस रहे हों. जैसे ही वान्या ने अपना पर्स रख कर अपना सिस्टम औन किया, तभी बाहर से चपरासी आ कर बोला,”मैडम साहबजी आए हैं…”

वान्या इस से पहले कुछ कहती, खींसे निपोरता हुआ अनिकेत अंदर आ गया और आते ही बोला,”वानु, अफसर बिटिया से मिलने के लिए तो अपौइंटमैंट लेना होता है। सुबह से चाय भी नसीब नहीं हुई मगर इस से किसी को को क्या फर्क पड़ता है। वह तो तेरा नसीब अच्छा है जो तुझे सरकारी नौकरी में इतना अच्छा ओहदा मिल गया है।”

वान्या रूखे स्वर में बोली,”पापा, इस में नसीब का नहीं मेरी और मम्मी की मेहनत का नतीजा है।”

अनिकेत बेशर्मी से बोला,”और मेरा योगदान…वह तो तेरी मम्मी ने मेरी एक छोटी सी गलती पर मुझे अपनी जिंदगी से बाहर कर दिया था। तुझे क्या पता कितना मुश्किल है अपने बच्चे के बिना रहना।”

वान्या खुद को संभालते हुए बोली,”पापा, आप मेरा नाम ले कर अपनी प्रौपर्टी का बिजनैस मत कीजिए। एक आदमी मेरे नाम का इस्तेमाल कर के लोगों को उल्लू बना रहा है।”

अनिकेत बोला,”तुम ने विश्वास कर लिया…बस इतना ही जानती है तू मुझे?”

वान्या बोली,”अच्छे से जानती हूं मैं आप को इसलिए बोल रही हूं।”

अनिकेत बिना कुछ बोले बाहर निकल गया. वान्या को अच्छे से पता था कि अनिकेत हर जगह सहानुभूति
बटोरता फिरता है. उसे रहरह कर अपनी मां के कमजोर वजूद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों नहीं वह कानूनी रूप से अलग हो जाती हैं. क्यों आज भी वे इस रिश्ते की लाश को ढो रही थीं?

जब रात को वान्या घर पहुंची तो मम्मी इंतजार ही कर रही थी. खुश होते हुए बोली,”तुम्हारी बुआ ने तेरे लिए बहुत अच्छा रिश्ता भेजा है।”

वान्या बोली,”एक रिश्ते का हश्र देख चुकी हूं, दोबारा हिम्मत नही है यह सब झेलने की…”

मनीषा बोली,”अरे… सब मर्द एक जैसे नहीं होते और फिर तेरी बुआ बोल रही हैं कि वे सब संभाल लेंगी।
किसी को पता नहीं लगने देंगी कि तेरे पापा हमारे साथ नहीं रहते हैं।”

वान्या बोली,”मम्मी, इस में गलत क्या है, बल्कि मुझे तो आप पर गुस्सा है कि आप ने अब तक उन से तलाक
क्यों नही लिया है…”

मनीषा वान्या की चिरौरी करते हुए बोली,”वानु, तू कुछ नहीं समझती, लड़का भी तेरी तरह क्लासवन औफिसर है और बहुत अच्छे परिवार का है। आज लोग रिश्ते भी बता रहे हैं और सब से बड़ी बात उन्हें कोई दहेज नहीं चाहिए।”

वान्या को अच्छे से पता था कि यह पहला रिश्ता है जिन्हें दहेज नहीं चाहिए और वह बनती हुई बात बिगाड़ना नही चाहती थी. रविवार को आरव और उस के परिवार का आना तय था. वान्या ने पहली बार अपनी मम्मी को इतना खुश देखा था. मनीषा बारबार कह रही थी कि वान्या अगर तेरी खुशी के लिए, तेरे अच्छे भविष्य के लिए मुझे थोड़ा समझौता भी करना पड़ेगा तो कोई बात नहीं। इस से पहले वान्या कुछ कहती या समझती, अनिकेत अपनी अटैची लिए पिंकी बुआ के साथ दरवाजे पर
खडा था. पिंकी बुआ वान्या को गले लगाते हुए बोली,”देख तेरी शादी के साथसाथ मेरे भाई का वनवास भी समाप्त हो जाएगा।”

वान्या बिना कुछ बोले दफ्तर चली गई थी. वहां जा कर उस ने अपनी मम्मी को फोन लगाया,”यह क्या ड्रामा है मम्मी, आप ने कैसे पापा को घर के अंदर घुसा लिया है?”

मनीषा बोली,”बेटा यह सब तेरी भलाई के लिए है। आज भी लोग टूटे हुए घर से रिश्ता नहीं करना चाहते हैं।” वान्या ने बिना कुछ कहे फोन रख दिया था. मन ही मन वह सोच रही थी कि झूठ की नींव पर वह कैसे एक प्यारभरे रिश्ते की शुरुआत कर सकती है.

रविवार की सुबह से ही घर में गहमागहमी का माहौल था. मनीषा और पिंकी ने मिल कर पूरे घर की काया पलट कर दी थी. घर के हर कोने को देख कर ऐसा लग रहा था मानो अनिकेत इसी घर में रचाबसा हुआ हो. पिंकी बुआ अपनी समझदारी की दाद देते हुए बोलीं,”मैं ने उन्हें कानोंकान खबर नहीं होने दी कि लडकी के मम्मीपापा अलग रहते हैं।”

शाम को आरव और उस का परिवार नियत समय पर आ गया था. अनिकेत ने आरव के परिवार के सामने ऐसी कमान संभाली कि ऐसा लग रहा था मानो वान्या की कामयाबी में सब से बड़ा हाथ अनिकेत का ही हो.

आरव के मम्मीपापा बोले,”हमें ऐसे ही संस्कारी परिवार और पढ़ीलिखी लड़की की जरूरत थी। आरव को भी वान्या पसंद थी मगर वान्या क्या वह वास्तव में यह चाहती थी? जब वान्या और आरव बाहर गए तो आरव बोला,”वान्या, तुम्हारे पापा तो सुपर हीरो हैं।”

वान्या कुछ नहीं बोली और उस ने बात बदल दी थी. वान्या और आरव जब वापस आए तो दोनों के चेहरे
खुशी से चमक रहे थे. उसी दिन अंगूठी की तारीख निश्चित हो गई थी.

अनिकेत ने बड़े आराम से घर पर कब्जा जमा लिया था. वान्या चाह कर भी कुछ नही कर पा रही थी क्योंकि
बारबार उस की मम्मी उसे रोक देती थी. रिंग सिरेमनी भी हो गई थी. वान्या का ससुराल वाले बहुत खुश थे, अनिकेत ने दिल खोल कर खर्च किया था.

मनीषा जबतब वान्या को बोलती, “देखा, अगर पापा न होते तो मैं कहां से यह सब कर पाती।”

मगर एक दिन सुबहसुबह कुछ लोग अनिकेत को ढूंढ़ते हुए आ गए थे. पता चला कि वान्या की अंगूठी की सारी टीमटाम के लिए अनिकेत ने उधारी पर पैसे लिए थे. वे लेनदार ढूंढ़ते हुए वहां धमक गए थे.

मनीषा ने हर बार की तरह आंसू बहाने शुरू कर दिए थे. वान्या ने बेरुखी से मनीषा की तरफ देखा, उन लोगों का बकाया पैसा चुकाया और अनिकेत से कहा,”पापा, कब तक आप ऐसे ही मुझे शर्मिंदा करते रहोगे?”

अनिकेत बेशर्मी से बोला,”बेटी की शादी में तो राजा लोग भी उधार लेते हैं और फिर मैं तो एक आम आदमी
हूं।”

वान्या ने गुस्से में अपने पापा की तरफ देखा और बिना कुछ कहे तीर की तरह निकल गई. मनीषा पीछे पीछे नाश्ते की प्लेट ले कर दौड़ी मगर तब तक वान्या की गाड़ी आंखों से ओझल हो गई थी.

अनिकेत बोला,”ऐसे कैसे इस राजरानी का निबाह ससुराल में होगा… तुम्हारे बस का कुछ नही है. औरतों के अंदर सहनशीलता भी होनी चाहिए.”

मनीषा सिसकते हुए बोली,”क्यों किया तुम ने ऐसे… इतनी मुश्किल से मैं ने वान्या को शादी के लिए तैयार किया था.”

अनिकेत गुस्से में बोला,”अरे तो मैं बात कर तो रहा था मगर उसे किस ने कह दिया था झांसी की रानी बनने
को। मैं ने उसे थोड़े ही कहा था कि मेरे पैसे चुकाए।”

वान्या का औफिस जा कर भी सिर चकरा रहा था. बारबार उसे लग रहा था कि वह आरव के साथ गलत कर रही है.

दोपहर को लंचटाइम में वह आधी दिन की छुट्टी ले कर आरव से मिलने चली गई. आरव किसी मीटिंग में व्यस्त था, उस ने वान्या को कहा,”तुम सीधे घर पहुंचो, एकसाथ दोपहर का खाना खाएंगे। वान्या को बिना किसी पूर्व सूचना के आरव के घर जाने में थोड़ी झिझक महसूस हो रही थी. मगर आरव बोला,”मम्मी को बता दिया है मैं ने।”

जब वान्या आरव के घर पहुंची तो आरव की मम्मी रसोई में भिंडी की सब्जी काट रही थी. महाराज ने राजमा और कोफ्ते पहले ही बना रखे थे.

वान्या सीधे रसोई में ही आ गई थी और बोली,”आंटी लाइए, सब्जी मैं काट देती हूं,” आरव की मम्मी इस से पहले कुछ बोलती वान्या ने फुरती से सब्जी काट दी थी. वान्या जिस फुरती से काम कर रही थी, उसी फुरती से अपने जीवन की कहानी सुना रही थी.
जब सलाद भी कट गया था तो आरव की मम्मी धीरे से बोली,”बेटा, लेकिन तुम्हारा कन्यादान कौन करेगा, अगर तुम अपने पापा को शादी में सम्मिलित नहीं करना चाहती हो?”

वान्या ने बालों को जुड़े में लपेटते हुए कहा,”आंटी, मैं झूठ की नींव पर नए रिश्ते की शुरुआत नहीं कर सकती
हूं। मेरे पापा के बारे में जो कुछ मैं ने बताया सब सच है। मेरी जिंदगी में उन का रोल बस एक स्पर्म डोनर का ही है। वे इस शादी के बहाने दोबारा मेरी मम्मी की जिंदगी में सेंध लगा रहे हैं।मुझे मालूम है कि मेरी शादी के कारण
ही मम्मी उन्हें सह रही हैं। अगर आप को सब सही लगे तो आप बता दीजिए, नहीं तो कोई नहीं…” जैसे ही वान्या पीछे मुड़ी, आरव रसोई के दरवाजे पर ही खङा था.

आरव बोला,”अरे खाना तो खा लो…”

वान्या बोली,”पहले आंटी से सारी बात समझ लेना फिर खाऊंगी कभी…”

आरव की मम्मी मन ही मन सोच रही थी कि क्या यह घर इतनी तेजस्वी लड़की को स्वीकार कर पाएगा?
क्या यह परिवार स्पर्म डोनर की बेटी को अपनी बहू स्वीकार कर पाएगा?

Best Hindi Story : दो पाटों के बीच – दीपा के साथ औफिस में क्या हुआ?

Best Hindi Story : मैं लगभग दौड़तीभागती सड़क पार कर औफिस में दाखिल हुई और आधे खुले लिफ्ट के दरवाजे से अंदर घुस कर 5वें नंबर बटन को दबाया. लिफ्ट में और कोई नहीं था. नीचे की मंजिल से 5वीं मंजिल तक लिफ्ट में जाते समय मैं अकेले में खूब रोई.

औफिस के बाथरूम और कभीकभी लिफ्ट के अकेलेपन में ही मैं ने रोने की जगह को खोजा है. इस के अलावा रोने के लिए मुझे एकांत समय और जगह नहीं मिलता.

5वीं मंजिल पर पहुंच कर देखा तो औफिस के लोग काम में लगे हुए थे. मेरे ऊपर की अधिकारी कल्पना मैम ने मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखा और कहने लगीं ,“हमेशा की तरह लेट?”

“सौरी कल्पना मैम,” बोल कर मैं अपनी जगह पर जा कर पर्स को रख तुरंत बाथरूम गई ताकि और थोड़ी देर रो कर चेहरे को पोंछ सकूं.

सुबह उठते समय ही मीनू का शरीर गरम था. मीनू ने अपनी 2 साल की उम्र में सिर्फ 2 ही जगह देखी हैं. एक घर, दूसरी बच्चों के डौक्टर सीतारामन का क्लीनिक. क्लीनिक के हरे पेंट हुए दरवाजे को वह पहचानती है. उस के पास जाते ही मीनू जो रोना शुरू करती तो पूरे 1 घंटे तक डाक्टर का इंतजार करते समय वह लगातार रोती रहती है.

डाक्टर जब उसे जांचते तो हाथों से उछलती और जोरजोर से रोती और वापस बाहर आने के बाद ही चुप होती.

डाक्टर ने बताया था कि बच्ची को थोड़ा सा प्राइमेरी कौंप्लैक्स है. इसलिए महीने में 1-2 बार उसे खांसी, जुखाम या बुखार आ जाता है.

आज भी मैं औटो पकङ कर डाक्टर के पास जा कर कर आई और सासूमां को मीनू को देने वाली दवाओं के बारे में बताया. फिर जल्दी से बाथरूम में घुस कर 2 मग पानी डाल, साड़ी पहन, चेहरे पर क्रीम लगा और जल्दीजल्दी नाश्ता निबटा कर रवाना होते समय एक नजर बच्ची को देखा.

तेज बुखार में बच्ची का चेहरा लाल था. मुझे साड़ी पहनते देख वह फिर से रोना शुरू कर दी. उस के हिसाब से मम्मी नाइटी पहने रहेगी तो घर में रहेगी, साड़ी पहनेगी तो बाहर जाएगी.

“मम्मी मत जाओ,” कह कर वह मेरे पैरों में लिपट गई. उसे किसी तरह मना कर औफिस जाने के लिए बस पकड़ी.

“क्यों, बच्ची की तबीयत ठीक नहीं है क्या?” ऐना बोली.\

लंच के समय में घर फोन कर बच्ची के बारे में पूछा तो बोला अभी कुछ ठीक है. थोङी तसल्ली के साथ मैं ने खाना शुरू किया.

“ऐना, रोजाना औफिस जाने के लिए साड़ी पहनते समय जब ‘मत जाओ मम्मी’ कह कर मीनू रोती है तो उस की वह आवाज मेरे कानों में हमेशा आती रहती है.”

“दीपा, तुम्हारे पति तो अच्छी नौकरी में हैं. अब तुम चुपचाप घर में रहो. तुम को शांति नहीं है. बच्ची परेशान होती है. तुम्हारा पति इस के लिए राजी नहीं होगा क्या?” ऐना के आवाज में सच और स्नेह का भाव था.

“वह आदमी नाटककार है ऐना. नौकरी छोड़ने की बात करना शुरू करो तो बस यही कहता है कि तुम्हारा फैसला है तुम कुछ भी करो, मैं इस के बीच में नहीं आऊंगा. तुम्हें खुश रहना चाहिए बस. मैं इस सौफ्टवेयर कंपनी में हूं. कब नौकरी चली जाएगी नहीं कह सकते. बाजार ठीकठाक रहा तो सब ठीक, मंदी में कंपनी में कब तालाबंदी हो जाए कह नहीं सकते. तुम्हारी सैलरी से थोड़ी राहत मिलती है.”

“इस बार किसी से भी सलाह मत लो, अभी 2 दिन में बोनस मिलेगा. चुपचाप रुपयों को ले कर तुरंत इस्तीफा दे दो?” ऐना बोली.

मैं ने अपने कंप्यूटर पर ऐक्सैल शीट में जो भी रिकौर्ड भरना था भरा. सीधे व आड़े दोनों तरफ से टोटल सब सही है या नहीं मैं ने मिलान किया. फिर रिपोर्ट पर लेटर तैयार किया. सैक्शन चीफ कल्पना को और एक कल्पना के उच्च अधिकारी को एक प्रति भेज दिया.

इस बार मैं बिना रोए, बिना जल्दबाजी किए कार्यालय से बाहर आ गई. मुझे मेरा फैसला ठीक लगा.

घर आ कर देखा मीनू सो रही थी. सुबह जो पहना था वही कपड़े मीनू ने पहने थे.

‘बच्ची की तबीयत ठीक नहीं तो क्या उस के कपड़े भी नहीं बदलने चाहिए?’ मन ही मन सासूमां पर गुस्सा होते हुए भी मैं उन से बोली “बच्ची ने आप को परेशान तो नहीं किया अम्मां?”

वे बोलीं, “पहले ही से तेरी बेटी बदमाशियों की पुतली है. तबीयत ठीक न हो तो पूछो नहीं?”

मैं उन की बातों पर ध्यान न दे कर मीनू के पीठ को सहलाने लगी.

जब मैं छोटी थी तब मेरी अम्मां मेरे और मेरे छोटे भाई के साथ कितनी देर रहती थीं? हमारी अम्मां को साहित्य से बहुत प्रेम था.

हम कहते,”अम्मां बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है. डर लग रहा है.”

वे कहतीं कि वीर रस के कई कवि हैं उन की कविताएं बोलो जबकि दूसरे बच्चों के मांएं हनुमानजी को याद करने को कहतीं.

मेरी मां झांसी की रानी और मीरा की मिलीजुली अवतार थीं. वे अंधविश्वासी भी नहीं थीं. मेरा भाई रोता तो मेरी मां सीता बन जातीं और कहतीं कि चलो हम लवकुश बन कर राम से लड़ाई करें.

चांदनी रात में छत पर हमारी मम्मी मीठा चावल बना अपने हाथों से हम दोनों बच्चों को बिना चम्मच के खिलातीं जिस में केशर, इलायची और घी की वह खुशबू अभी तक ऐसा लगता है जैसे हाथों में आ रही हो.

जब कभी भी कहीं कोई उत्सव होता तो हमारी मम्मी हम दोनों बच्चों को रिकशा में साथ ले जातीं. हम दोनों भाईबहन उस रिकशे में एक सीट के लिए लङ बैठते थे.

हमेशा अम्मां हम दोनों को तेल से मालिश कर के नहलातीं. रात के समय चांदनी में हम अड़ोसपड़ोस के बच्चों के साथ मिल कर बरामदे में लुकाछिपी खेलते.

सोते समय नींद नहीं आ रही कह कर हम रोते तो वे हमें लोरी सुनातीं और तरहतरह के लोकगीत सुना कर सुला देतीं.

‘जब मेरी अम्मां हमारे साथ इस तरह रहीं तो रहीं तो क्या मुझे मीनू के साथ ऐसे नहीं रहना चाहिए क्या?’ यह सोच कर मैं एक योजना के साथ उठी. बच्ची को खाना खिलाने के लिए जगाया.

“मीनू, मम्मी अब औफिस नहीं जाएगी?” मैं धीरे से बोली.

“अब मम्मी तुम हमेशा ही नाइटी पहनोगी?” मीनू तुतला कर बोली.

अगले ही दिन औफिस जाते ही इस्तीफा तैयार कर के ऐना को दिखाया.

“आज तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी हुई लड़की जैसे रौनक दिख रही है,” ऐना बोली.

“अभी मत दे. बोनस का चेक दे दें तब देना. इस्तीफा दे दोगी तो फिर बोनस नहीं देंगे. जोजो लेना है सब को वसूल कर के फिर दे देना इस पत्र को डियर,” वह बोली.

दोपहर को 3 बजे कल्पना मैम मुझे एक अलग कमरे में ले कर गईं और बोलीं,”यह कंपनी तुम्हारी योग्यता का सम्मान करती है. इस कठिन समय में तुम्हारा योगदान बहुत ही सराहनीय रहा. सब को ठीक से समझ कर उन लोगों की योग्यता के अनुसार कंपनी ने तुम्हें भी प्रोमोशन दिया है. यह लो प्रोमोशन लेटर.”

उस लेटर को देख मैं ने एक बार फिर पढ़ा. ऐसा ही 2 प्रोमोशन और हो जाएं तो बस फिर वह भी कल्पना जैसे हो सकती है, सैक्शन की हैड.

डाक्टर ने बताया था,”मीनू को जो प्राइमेरी कौंप्लैक्स है उस के लिए 9 महीने लगातार दवा देने से वह ठीक हो जाएगी.”

मैं सोचने लगी,’3 महीने हो गए. 6 महीने ही तो बचे हैं. अगले साल स्कूल में भरती करने तक थोड़ी परेशानी सह ले तो सब ठीक हो जाएगा. अब तो सैलरी भी बढ़ गई है. सासूमां की मदद के लिए एक कामवाली को रख दें तो सब ठीक हो जाएगा. मेरे पति जो कहते हैं कि सौफ्टवेयर कंपनी का भविष्य का कुछ पता नहीं, तो फायदा इसी में है कि अभी कमाएं तो ही कल मीनू के भविष्य के लिए अच्छे दिन होंगे…’

मैं अचानक से वर्तमान में लौटी और बोली,”धन्यवाद कल्पना मैम. मैं ने इस की कल्पना नहीं की थी.”

वे बोलीं,”दीपा, कल तुम ने जो बढ़िया रिपोर्ट तैयार किया उसे और विस्तृत करना होगा. आज ही बौस को भेजना है. हो जाएगा?”

“हां ठीक है कल्पना मैम,” मैं बोली.

मैं ने घर पर फोन कर दिया कि लेट हो जाऊंगी. जो इस्तीफा मैं ने लिखा था उसे टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाल आई थी.

लेखक- एस. भाग्यम शर्मा

Love Story : एहसास – क्या दोबारा एक हो पाए राघव और जूही?

Love Story : आज सुबह सुबह औफिस जाते हुए जैसे ही राघव की नजर कैलेंडर पर पड़ी, तो आज की तारीख देख कर एक बार उस के मन में जैसे कुछ छन्न से टूट गया. आज 9 जनवरी थी औैर आज ही उस की दुनिया पूरे 1 साल के अकेलेपन की बरसी मना रही थी.

जूही को उस के जीवन से गुजरे आज पूरा 1 साल हो गया था. जूही उस की पत्नी… हां, आज भी तो यह सामाजिक रिश्ता कायम था. कानून और समाज की नजर में जूही और राघव आज भी शादी के बंधन में बंधे थे. लेकिन सिर्फ नाम के लिए ही यह रह गया था. जूही को उस की जिंदगी से गए लंबा अरसा हो गया था. खुद को इस विवाहरूपी बंधन से आजाद करने की कोशिश न तो जूही ने की थी और न ही राघव ही इस मैटर को आगे बढ़ा पाया था.

दिमाग में उमड़ते इन पुराने दिनों के चक्रवात ने अनायास ही राघव के जिस्म को अपने शिकंजे में जकड़ लिया. राघव ने अपना लैपटौप बैग और मोबाइल उठा कर कमरे की मेज पर रखा और फिर अपनी नौकरानी शांति को 1 कप कौफी बनाने की हिदायत देता हुआ अपनी अलमारी की ओर बढ़ चला. वह जानता था कि अब उस का मन उस सुविधायुक्त कमरे में नहीं लगेगा. उस ने अलमारी खोलते हुए उस नीले कवर वाले लिफाफे को बाहर निकाला. कवर पर आज भी खूबसूरत लफ्जों में ‘राघव’ लिख हुआ था. वही कर्विंग लैटर्स वाली लिखावट जो जूही की खास पहचान है

‘‘राघव, इन खाली पन्नों पर आज अपने उन जज्बातों को उकेर कर जा रही हूं, जिन्हें शब्द देने से न जाने क्यों मेरे हाथ कांपते रहते थे. आज जब यह चिट्ठी तुम्हें मिलेगी, मैं तुम्हारी इस दुनियावी आडंबरों से भरे जीवन से बहुत दूर जा चुकी हूंगी. लेकिन चलने से पहले तुम से चंद बातें कर लेना जरूरी है. जानते हो कल रात मझे फिर वही सपना आया. तुम मुझे अपने दफ्तर की किसी पार्टी में ले गए हो. सपने में जानेपहचाने लोग हैं. परस्पर अभिवादन और बातचीत हो रही है कि अचानक सब के चेहरों पर देखते ही देखते एक भयानक हंसी आ जाती है.

‘‘उन सभी की वह भयानक हंसी किसी राक्षसी अट्टाहास में बदल जाती है. धीरेधीरे वे सभी भयानक अंदाज में हंसने और चिल्लाने लगते हैं और तब एक और भयानक बात होती है. उन खतरनाक आवाजों और हंसी के भीतर घृणा में लिपटा तुम्हारा डरावना चेहरा नजर आने लगता है. तुम्हारे सिर पर 2 सींग उग जाते हैं. जैसे तुम तुम न हो कर कोई भयावह यमदूत हो. मानों बड़ेबड़े दांतों वाले असंख्य यमदूत… डर के मारे मेरी आंखें खुल गईं. जनवरी की उस सर्द रात में भी मैं पसीने से तरबतर थी. मैं जब अपने सपने का जिक्र करती तो तुम उसे मेरे दिमाग में पनप रही कुंठा की संज्ञा दे देते. विडंबना यह है कि मेरी तमाम कुंठाओं के जनक तुम ही तो हो.

‘‘मुड़ कर देखने पर लगता है कि मामूली सी ही तो बात थी. मेरे शरीर पर काबिज वह  कुछ ऐक्स्ट्रा वजन ही तो था. लेकिन तुम्हारे उस यमदूत रूप के जड़ में मेरा यह बढ़ा हुआ वजन ही तो था. लेकिन क्या यह बात वाकई इतनी मामूली सी थी? तुम ने ‘आइसबर्ग’ देखा है? उस का केवल थोड़ा सा हिस्सा पानी की सतह के ऊपर दिखता है. यदि कोई अनाड़ी देखे तो लगेगा जैसे छोटा सा बर्फ का टुकड़ा पानी की सतह पर तैर रहा है. पर ‘आइसबर्ग’ का असली आकार तो पानी की सतह के नीचे तैर रहा होता है, जिस से टकरा कर बड़ेबडे जहाज डूब जाते हैं. जो बात ऊपर से मामूली दिखती है उस की जड़ में कुछ और ही छिपा होता है. बड़ा और भयावह.’’

आंखों में पनप रही उस नमकीन  झील को काबू में करते हुए राघव सोचने लगा कि सच, वह कितना गुस्सैल हो गया था. बातबात पर चिढ़ना और जूही पर अपना सारा गुस्सा उतारना उस का रोज का रूटीन बन गया था. शुरुआत में ऐसा नहीं था. जूही और उस का वैवाहिक जीवन खुशहाल था. लेकिन धीरेधीरे काम के भार और सहकर्मियों के साथ व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के चलते वह इतना परेशान हो गया था कि अपनी सारी फ्रस्ट्रेशन वह अब जूही पर उतारने लगा था.

राघव खत का बचा हिस्सा पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. लेकिन वह जानता था कि जूही के उन सिसकते लफ्जों की मार सहना ही उस की सजा है, इसीलिए उस ने आगे पढ़ना शुरू किया.

‘‘8 महीने पहले करवाए ब्लड टैस्ट में ही तो पता चला है कि मु झे हाइपोथायराइडिज्म है. इस में न चाहते हुए भी वज़न का बढ़ना तो लाजिम है न? क्या इस में मेरा अपना कोई कसूर है?’’

खत में जूही ने आगे लिखा था, ‘‘भद्दी, बदसूरत कहीं की. तुम गुस्से से पागल हो कर चीख रहे होते. शायद मैं तुम्हें शुरू से ही भद्दी लगती थी, बदसूरत लगती थी. मेरा मोटापा तो एक बहाना था. शायद यही वजह रही होगी कि तुम्हें मेरी हमेशा हंसने और खिलखिलाने की मामूली सी आदत भी असहनीय लगती थी.जब हम किसी से चिढ़ने लगते हैं, नफरत करने लगते हैं तब उस की हर आदत हमें बुरी लगती है.

‘‘यदि तुम्हे मु झ से प्यार होता तो शायद तुम मेरे मोटापे को नजरअंदाज कर देते. लेकिन तुम अकसर किसी न किसी बात पर अपने विश बुझे बाणों से मुझे बेधते रहते. सचाई तो यह है कि शादी के बाद से अब तक तुम ने अपनी एक भी आदत सिगरेट पीना, शराब पीना, रात में देर तक कमरे की बत्ती जला कर काम करते रहना नहीं बदली. केवल मैं ही बदलती रही. तुम्हारी हर पसंदनापसंद के लिए. तुम्हारी हर खुशी के लिए. जो तुम खाना चाहते थे, घर में केवल वही चीजें बनती थीं. जो तुम्हें अच्छा लगे, मुझे वही करना था. जो तुम्हें पसंद हो, मुझे वही कहनासुनना था. जैसे मैं मैं नहीं रह गई थी केवल तुम्हारा विस्तार भर थी.’’

राघव के दिलोदिमाग में जैसे किसी ने ढेरों कांटे चुभो दिए थे. लेकिन वह उस पीड़ा को भोगना चाहता था. वह आज जूही को उस के वजूद को फिर से महसूस करना चाहता था.

अब वह खत का आगे का हिस्सा पढ़ने लगा- ‘‘खाना मैं बनाती थी, कपड़ेलत्ते मैं धोती थी, बरतन मैं साफ करती थी,  झाड़ूपोंछा मैं लगाती थी. तुम रोज औफिस से आ कर ‘आज बहुत थक गया हूं’ कहते और टांगें फैला कर बिस्तर पर लेट अपना पसंदीदा टीवी प्रोग्राम चला लेते. एक गिलास पानी भी तुम खुद उठ कर नहीं ले सकते थे. फिर भी थकते सिर्फ तुम थे. शिकायत सिर्फ तुम कर सकते थे. उलाहने सिर्फ तुम दे सकते थे. बुरी सिर्फ मैं थी.

‘‘कमियां सिर्फ मुझ में थीं. दूध के धुले, अच्छाई के पुतले सिर्फ तुम थे. मैं ने तुम से कुछ ज्यादा तो नहीं चाहा था. एक पत्नी अपने पति से जो चाहती है, मैं भी केवल उतना भर ही चाहती थी. काश, तुम भी मुझे थोड़ा प्यार दे पाते, घर के कामों में मेरा थोड़ा हाथ बंटाते, अपनी किसी प्यारी अदा से मेरा मन मोह ले जाते. असल में तुम ने मुझ से कभी प्यार किया ही नहीं. मैं केवल घर का काम करने वाली मशीन थी, घर की नौकरानी थी जिसे रात में भी तुम्हारी खुशी के लिए बिस्तर पर रौंदा जाता था.

‘‘बिस्तर और रसोई के गणित से परे भी स्त्री होती है, यह बात तुम्हारी समझ से बाहर थी. लेकिन इस सब के बावजूद मेरे हाल ही में बढ़ गए वजन से इतनी परेशानियों के बाद भी मेरे चेहरे पर हमेशा खेलती मुसकान से तुम्हें चिढ़ थी. पर उस बेवजह के तनाव का क्या… उन यातना भरे भारी दिनों का क्या… उन परेशान रातों का क्या जो मैं ने तुम्हारे साथ किसी सजायाफ्ता मुजरिम की तरह गुजारी हैं? तुम चाहते थे कि मैं अपनी बिगड़ रही फिगर पर शर्मिंदा रहूं. क्यों? क्या शरीर के भूगोल में जरा सा भी फेरबदल हो जाना कोई अपराध है, जो तुम मुझे सजा देने पर तुले रहे?

‘‘राघव, तुम जानते हो तुम्हारे चेहरे पर भी एक मस्सा उगा हुआ है. मैं ने तो कभी इस बात पर एतराज नहीं जताया कि वहां वह मस्सा क्यों है? मैं ने तो कभी यह नहीं कहा कि उस मस्से की वजह से तुम बदसूरत लगते हो. असल में तुम्हारे लिए मेरा मोटापा मुझे नीचा दिखाने का बहाना भर था. अब जबकि मेरा थायराइड काबू में है और अब मैं पहले से काफी बेहतर भी दिखने लगी हूं तो अब तुम्हें मुझ से कोई लेनादेना नहीं है. तुम ने एक बार भी नहीं कहा कि मैं अब तुम्हें कैसी लगती हूं. जानते हो राघव, घृणा का बरगद जब फैलने लगता है, तो उस की जड़ें संबंधों की मिट्टी में बहुत गहरे तक अपने पांव पसार लेती हैं. पता नहीं मैं इतने साल तुम्हारे साथ कैसे रह गई. अपना मन मार कर, अपना वजूद मिटा कर.

‘‘पर अब बहुत हो गया. मुझे तुम्हारे हाथों पिटना मंजूर नहीं. मेरे वजूद को हर कदम पर इस तरह और जलील होना मंजूर नहीं. तुम एक बीमार मानसिक अवस्था में हो और मु झे अब इस रुग्ण मानसिक अवस्था का हिस्सा और नहीं बनना. हमारे पास जीने के लिए एक ही जीवन होता है और मुझे अब यों घुटघुट कर और नहीं जीना. आज मैं स्वयं को तुम से मुक्त करती हूं. हां, एक बात और मुझे अपने चेहरे पर हमेशा खेलती हुई यह मुसकान बेहद अच्छी लगती थी और वे सभी लोग अच्छे लगते थे, जो मेरे बढ़े हुए वजन के बावजूद मु झे चाहते थे, मु झ से प्यार करते थे.  प्यार, जो तुम मझे कभी नहीं दे सके.

-जूही.’’

अपने हाथ में सिहरते हुए उस खत को राघव बहुत देर तक योंही थामे रहा. इस 1 साल ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया. पत्नी केवल शोपीस नहीं होती. वह जीवन का अभिन्न अंग होती है. इस 1 साल में शालिनी डिसूजा, वह विदेशी कैथी जो इंटर्न बन कर आई थीं आदि ने उस पर डोरे डालने चाहे थे.

कुछ रात भर साथ भी रहीं पर वह किसी को न मन दे सका न शरीर. बिस्तर पर पहुंचतेही वह ठंडा पड़ जाता. रात को साथ खाना खातेखाते जब किसी का फोन आ जाता, तो वे लड़कियां उकता जातीं जबकि जूही ने रात को बिस्तर पर न कोईर् मांग की न उस के फोनों से शिकायतें कीं.

पिछले 1 साल भर से उस ने बहुत बार यह सोचा था कि वह जूही को फोन करेगा, उस से अपनी ज्यादतियों के लिए माफी मांगेगा, लेकिन अब और इंतजार नहीं.

आज वह उसे बताना चाहता है कि उसे अपनी सभी गलतियों का एहसास है औैर हां,एक बात और भी तो बतानी है कि उसे जूही की मुसकान से प्यार है और जूही के हाइपोथायराइडिज्म से उसे कोई शिकायत नहीं है. वह जैसी भी है उस की अपनी है. वही उस की है.

लेखिका : सोनाली बोस

Romantic Story : बस एक सनम चाहिए – तनु का क्या रिश्ता था गैर मर्द से?

Romantic Story : ‘‘सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’ एफएम पर बजते ‘आशिकी’ फिल्म के इस गाने ने मुझे बरबस ही तनु की याद दिला दी. वह जब भी किसी नए रिश्ते में पड़ती थी, तो यह गाना गुनगुनाती थी.मनचली… तितली… फुलझड़ी… और भी न जाने किनकिन नामों से बुलाया करते थे लोग उसे…मगर वह तो जैसे चिकना घड़ा थी. किसी भी कमैंट का कोई असर नहीं पड़ता था उस पर. अपनी शर्तों पर, अपने मनमुताबिक जीने वाली तनु लोगों को रहस्यमयी लगती थी. मगर मैं जानती थी कि वह एक खुली किताब की तरह है. बस उसे पढ़ने और समझने के लिए थोड़े धीरज की जरूरत है.

वह कहते हैं न कि अच्छे दोस्त और अच्छी किताबें जरा देर से समझ में आते हैं…तनु के बारे में भी यही कहा जा सकता है कि वह जरा देर से समझ आती है. तनु मेरी बचपन की सहेली थी. स्कूल से ले कर कालेज और उस के बाद उस के जौब करने तक… मैं उस के हर राज की हमराज थी. पता नहीं कितनी चाहतें, कितने अरमान भरे थे उस के दिल के छोटे से आसमान में कि हर बार अपनी ही उड़ान से ऊपर उड़ने की ख्वाहिशें पलती रहती थीं उस के भीतर. वह जिस मुकाम को हासिल कर लेती थी वह तुच्छ हो जाता था उस के लिए. कभीकभी तो मैं भी नहीं समझ पाती थी कि आखिर यह लड़की क्या पाना चाहती है. इस की मंजिल आखिर कहां है?

8वीं क्लास में जब पहली बार उस ने मुझे बताया कि उसे हमारे क्लासमेट रवि से प्यार हो गया है तो मेरी समझ ही नहीं आया था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं. तनु ने बताया कि रवि के साथ बातें करना, खेलना, मस्ती करना उसे बहुत भाता है. तब तो हम शायद प्यार के माने भी ठीक ढंग से नहीं जानते थे. फिर भी न जाने किस तलाश में वह पागल लड़की उस अनजान रास्ते पर आगे बढ़ती ही जा रही थी.

एक दिन रवि का लिखा एक लव लैटर उस ने मुझे दिखाया तो मैं डर गई. बोली, ‘‘फाड़ कर फेंक दे इसे…कहीं सर के हाथ लग गया तो तुम दोनों की खैर नहीं,’’ मैं ने उसे समझाते हुए उस की सहेली होने का अपना फर्ज निभाया.

‘‘अरे, कुछ नहीं यार… लाइफ में एक जिगरी यार तो होना ही चाहिए न. बस एक सनम चाहिए. आशिकी के लिए…’’ उस ने गुनगुनाते हुए कहा. ‘‘तो क्या मैं तुम्हारी जिगरी नहीं?’’ मैं ने तुनक कर पूछा.

‘‘तुम समझी नहीं. जिगरी यार से मेरा मतलब एक ऐसे दोस्त से है जो मुझे बहुत प्यार करे. सिर्फ प्यार… तुम तो सहेली हो. यार नहीं…’’ तनु ने मुझ नासमझ को समझाया. फिर एक दिन तैश में आते हुए बोली, ‘‘आई हेट रवि.’’

मैं ने कारण पूछा तो उस ने बताया कि आज सुबह गेम्स पीरियड में बैडमिंटन कोर्ट में रवि ने उसे किस करने की कोशिश की. मैं ने कहा, ‘‘तुम ही तो प्यार करने वाला जिगरी यार चाहती

थी न?’’ सुनते ही बिफर गई तनु. बोली, ‘‘हां, चाहती थी प्यार करने वाला. मगर तभी जब उस में मेरी मरजी शामिल हो. बिना मेरी सहमती के कोई मुझे छू नहीं सकता.’’ कहते हुए उस ने रवि के लिखे सारे लव लैटर्स फाड़ कर डस्टबिन के हवाले कर दिए और लापरवाही से हाथ झटक लिए.

‘‘उम्र मात्र 14 वर्ष और ये तेवर?’’ मैं डर गई थी. 9वीं क्लास में हम दोनों ने कोऐजुकेशन छोड़ कर गर्ल्स स्कूल में ऐडमिशन ले लिया. स्कूल हमारे घर से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए हम सब सहेलियां साइकिल से स्कूल जाती थीं. 10वीं कक्षा तक आतेआते एक दिन उस ने मुझ से कहा, ‘‘स्कूल जाते समय रास्ते में अकसर एक लड़का हमें क्रौस करता है और वह मुझे बहुत अच्छा लगता है. लगता है मुझे फिर से प्यार हो गया…’’

मैं ने उसे एक बार फिर आग से न खेलने की सलाह दी. मगर वह अपने दिल के सिवा कहां किसी और की सुनती थी जो मेरी सुनती. अब तो स्कूल आतेजाते अनायास ही मेरा ध्यान भी उस लड़के की तरफ जाने लगा. मैं ने नोटिस किया कि आमनेसामने क्रौस करते समय तनु उस लड़के की तरफ भरपूर निगाहों से देखती है. वह लड़का भी प्यार भरी नजरें उस पर डालता है. स्कूल के मेन गेट में घुसने से पहले एक आखिरी बार तनु पीछे मुड़ कर देखती थी और फिर वह लड़का वहां से चला जाता था.

साल भर तक तो उन का यह आंखों वाला प्यार चला और फिर धीरेधीरे दोनों में प्रेम पत्रों का आदानप्रदान होने लगा. 1-2 बार छोटेमोटे गिफ्ट भी दिए थे दोनों ने एकदूसरे को. कई बार स्कूल के बाद कुछ देर रुक कर दोनों बातें भी कर लेते थे. तनु पहले की तरह ही मुझे अपने सारे राज बताती थी. अब तक हम दोनों 12वीं क्लास में आ गए थे. मैं ने एक दिन तनु से चुटकी ली, ‘‘कब तक चलेगा तुम्हारा यह प्यार?’’

तनु मुसकरा कर बोली, ‘‘जब तक प्यार सिर्फ प्यार रहेगा. जिस दिन इस की निगाहें मेरे शरीर को टटोलने लगेंगी, वही हमारे रिश्ते का आखिरी दिन होगा.’’ ‘‘अरे यार, आशिकों का क्या है? रिकशों की तरह होते हैं. एक बुलाओ तो कई आ जाते हैं,’’ तनु ने बेहद लापरवाही से कहा.

मैं उस की बोल्डनैस देख कर हैरान थी. मैं ने पूछा, ‘‘तनु, तुम्हें ये सब करते हुए डर नहीं लगता?’’ ‘‘इस में डरने की क्या बात है? अगर ऐसा कर के मेरा मन खुश रहता है तो मुझे खुश होने का पूरा हक है. और हां, ये लड़के लोग भी कहां डरते हैं? फिर मैं क्यों डरूं? क्या लड़की हूं सिर्फ इसलिए?’’ तनु थोड़ा सा गरमा गई. मेरे पास उस के तर्कों के जवाब नहीं थे.

उस दिन हमारी स्कूल की फेयरवैल पार्टी थी. हम सब को स्कूल के नियमानुसार साड़ी पहन कर आना था. तनु लाल बौर्डर की औफ व्हाइट साड़ी में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. हम लोग हमेशा की तरह साइकिलों पर नहीं, बल्कि टैक्सी से स्कूल गए थे. शाम को घर लौटते समय तनु ने मेरे कान में कहा, ‘‘मैं ने आज अपना रिश्ता खत्म कर लिया.’’ ‘‘मगर तुम तो हर वक्त मेरे साथ ही थी. फिर कब, कहां और कैसे उस से मिली? कब तुम ने ये सब किया?’’ मैं ने आश्चर्य के साथ प्रश्नों की झड़ी लगा दी.

‘‘शांतशांतशांत…जरा धीरे बोलो.’’ तनु ने मुझे चुप रहने का इशारा किया और फिर बताने लगी, ‘‘टैक्सी से उतर के जब तुम सब स्कूल के अंदर जाने लगी थीं उसी वक्त मेरी साड़ी चप्पल में अटक गई थी, याद करो…’’ ‘‘हांहां… तुम पीछे रह गई थी,’’ मैं ने याद करते हुए कहा.

‘‘जनाब वहीं खड़े थे. टैक्सी की आड़ में, पहले तो मुझे जी भर के निहारा, फिर हाथ थामा और बिना मेरी इजाजत की परवाह किए मुझे बांहों में भर लिया. किस करने ही वाला था कि मैं ने कस कर एक लगा दिया. पांचों उंगलियां छप गई होंगी गाल पर…’’ तनु ने फुफकारते हुए कहा. ‘‘अब तुम ओवर रिएक्ट कर रही हो.. अरे, इतना तो हक बनता है उस का…’’ मैं ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. मेरे शरीर पर सिर्फ मेरा अधिकार है,’’ तनु अब भी गुस्से में थी. उस के बाद परीक्षा. फिर छुट्टियां और रिजल्ट के बाद नया कालेज. वह स्कूल वाला लड़का कुछ दिन तो कालेज के रास्ते में दिखाई दिया मगर तनु ने कोई रिस्पौंस नहीं दिया तो उस ने भी अपना रास्ता बदल लिया.

पता नहीं कैसी जनूनी थी तनु. उसे प्यार तो चाहिए मगर उस में वासना का तनिक भी समावेश नहीं होना चाहिए. कालेज के 3 साल के सफर में उस ने 3 दोस्त बनाए. हर साल एक नया दोस्त. मैं कई बार उसे समझाया करती थी कि किसी एक को ले कर सीरियस क्यों नहीं हो जाती? क्यों फूलों पर तितली की तरह मंडराती हो? ‘‘फूलों पर मंडराना क्या सिर्फ भौंरो का ही अधिकार है? तितलियों को भी उतना ही हक है अपनी पसंद के फूल का रस पीने का…’’ तनु ताव में आ जाती.

तनु में एक खास बात थी कि वह किसी रिश्ते में तब तक ही रहती थी जब तक सामने वाला अपनी मर्यादा में रहता. जहां उस ने अपनी सीमा लांघी, वहीं वह तनु की नजरों से उतर जाता. तनु उस से किनारा करने में जरा भी वक्त नहीं लगाती. वह अकसर मुझ से कहती थी, ‘‘अपनी मरजी से चाहे मैं अपना सब कुछ किसी को सौंप दूं, मगर मैं अपनी मरजी के खिलाफ किसी को अपना हाथ भी नहीं पकड़ने दूंगी.’’ ‘‘कालेज के बाद जौब भी लग गई. तनु अब तो अपनेआप को ले कर सीरियस हो जाओ. कोई अच्छा सा लड़का देखो और सैटल हो जाओ,’’ मैं ने एक दिन उस से कहा जब उस ने मुझे बताया कि आजकल उस का अपने बौस के साथ सीन चल रहा है.

‘‘मेरी भोली दोस्त तुम नहीं जानती इन लड़कों को. उंगली पकड़ाओ तो कलाई पकड़ने लगते हैं. जरा सा गले लगाओ तो सीधे बिस्तर तक घुसने की कोशिश करते हैं. जिस दिन मुझे ऐसा लड़का मिलेगा जो मेरी हां के बावजूद खुद पर कंट्रोल रखेगा, उसी दिन मैं शादी के बारे में सोचूंगी,’’ तनु ने कहा. ‘‘तो फिर रहना जिंदगी भर कुंआरी ही. ऐसा लड़का इस दुनिया में तो मिलने से रहा.’’

इस के बाद कुछ ही महीनों में मेरी शादी हो गई. तनु ने भी जयपुर की अपनी पुरानी जौब छोड़ कर मुंबई की कंपनी जौइन कर ली. कुछ समय तो हम एकदूसरे के संपर्क में रहे फिर धीरेधीरे मैं अपनी गृहस्थी और बच्चे में बिजी होती चली गई और तनु दिल के किसी कोने में एक याद सी बन कर रह गई. आज इस गाने ने बरबस ही तनु की याद दिला दी. उस से बात करने को मन तड़पने लगा. ‘पता नहीं उसे सनम मिला या नहीं…’ सोचते

हुए मैं ने पुरानी फोन डायरी से उस का नंबर देख कर डायल किया, लेकिन फोन स्विच औफ आ रहा था. ‘क्या करूं? कहां ढूंढ़ूं तनु को इतनी बड़ी दुनिया में,’ सोचतेसोचते अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल गई और मैं ने तुरंत लैपटौप पर फेस बुक लौग इन किया. सर्च में ‘तनु’ लिखते ही अनगिनत तनु नाम की आईडी नजर आने लगीं. उन्हीं में एक जानीपहचानी शक्ल नजर आई. आईडी खंगाली तो मेरी ही तनु निकली. मैं ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज दी.

2 दिन तक कोई रिस्पौंस नहीं आया, मगर तीसरे दिन इनबौक्स में उस का मैसेज देखते ही मैं झूम उठी. उस ने अपना मोबाइल नंबर लिख कर रात 8 बजे से पहले बात करने को कहा था. लगभग 7 बजे मैं ने फोन किया. वह भी शायद मेरे ही फोन का इंतजार कर रही थी. फोन उठाते ही अपनी चिरपरिचित शैली में चहक कर बोली, ‘‘हाय फ्रैंडी, कैसी हो? आज अचानक मेरी याद कैसे आ गई? बच्चे और जीजाजी से फुरसत मिल गई क्या?’’

‘‘अरे बाप रे, एकसाथ इतने सवाल? जरा सांस तो ले ले,’’ मैं ने हंसते हुए कहा. फिर उसे उस गाने की याद दिलाई जिसे वह अकसर गुनगुनाया करती थी. सुन कर तनु जोर से खिलखिला उठी. कहने लगी, ‘‘क्या करूं यार, मैं शायद ऐसी ही हूं… बिना आशिकी के रह ही नहीं सकती.’’

‘‘क्या अब तक आशिक ही बदल रही है? तेरे मनमुताबिक कोई परमानैंट साथी नहीं मिला क्या?’’ मैं ने आश्चर्य से पूछा. ‘‘अरे, तुझे बताया नहीं क्या कभी? मैं ने राजीव से शादी कर ली थी,’’ तनु ने नए राज का खुलासा किया.

‘‘हम मिले ही कब थे जो तुम मुझे बताती? पर मैं बहुत खुश हूं. आखिर मेरी मेनका को विश्वामित्र मिल ही गया,’’ मैं ने अपनी खुशी जाहिर की. ‘‘हां यार. 2 साल तक हम दोनों का रिश्ता रहा. मैं ने उसे अपनी कसौटी पर खूब परखा. इस के लिए मैं ने अपनी सीमाएं लांघ कर उसे फुसलाने की बहुत कोशिश की, मगर वह नहीं फिसला. एक बार तो मुझे शक भी हुआ था कि यह पुरुष है भी या नहीं. कोई लड़की इतनी लिफ्ट दे रही है और ये महाशय ब्रह्मचारी बने बैठे हैं.’’ तनु के शब्दों की गाड़ी चल पड़ी थी. मेरी भी दिलचस्पी अब उस की बातों में बढ़ने लगी थी.

‘‘अच्छा, फिर आगे क्या हुआ?’’ मैं ने पूछा. ‘‘लगता है राजीव आ गया. बाकी बातें कल करेंगे,’’ कह कर तनु ने मुझ अचंभित छोड़ कर फोन काट दिया.

दूसरे दिन शाम 7 बजे तनु का फोन आया. उस ने कल के लिए सौरी बोला और कहा, ‘‘फोन काटने के लिए सौरी. मगर हम दोनों ने डिसाइड कर रखा है कि घर आने के बाद अपना सारा समय सिर्फ एकदूसरे को ही देंगे.’’ ‘‘यह तो बहुत प्यारी बौंडिंग है तुम दोनों के बीच. खैर सौरीवौरी छोड़, तू तो आगे की स्टोरी बता,’’ मैं ने उसे याद दिलाया.

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए तनु कहने लगी, ‘‘राजीव यों तो मुझ से बहुत प्यार जताता था, मगर जब भी मैं उसे लिफ्ट देती थी वह मुझ से कहता था कि दोस्ती तो ठीक है, मगर वह बिना शादी के जिस्मानी संबंध के पक्ष में नहीं है. वह ऐसे संबंध को अपनी होने वाली पत्नी के साथ विश्वासघात समझता है,’’ तनु ने कहा. ‘‘वैरी गुड. तुम्हें ऐसे ही साथी की तलाश थी,’’ मैं ने खुश होते हुए कहा.

‘‘हां, और फिर हम ने शादी कर ली.’’ ‘‘यानी हैप्पी ऐंडिंग,’’ मैं उस के लिए खुश हो गई.

‘‘नहीं, असली कहानी तो उस के बाद शुरू हुई,’’ तनु थोड़ी झिझकी. ‘‘अब क्या हुआ. क्या राजीव सचमुच पुरुष नहीं था?’’ मेरा मन घबरा उठा.

‘‘वह पक्का पुरुष ही था,’’ तनु ने कहा. ‘‘वह कैसे?’’ मैं ने आशंकित हो कर पूछा.

‘‘हुआ यों कि शादी के साल भर बाद ही मुझे बेचैनी होने लगी. आदतन मेरा मन किसी के प्यार के लिए तड़पने लगा. विवेक जो मेरे विभाग में नया आया था, मेरा मन उस की तरफ खिंचने लगा. उस का केयरिंग नेचर मुझे लुभाने लगा. यह बात भला एक पति और वह भी राजीव जैसे पुरुष को कैसे सहन हो सकती थी,’’ तनु बोली. ‘‘मगर क्यों? क्या राजीव के प्यार में कोई कमी थी?’’ मैं ने आशंकित हो कर पूछा.

‘‘अरे यार समझा कर, जब हम दोस्त को पति बना लेते हैं तो एक अच्छा दोस्त खो देते हैं. बहुत सी बातें ऐसी भी होती हैं जो हम पति से नहीं बल्कि एक दोस्त से ही कह सकते हैं. मेरे साथ भी यही हुआ. पता नहीं ये लड़के लोग शादी करने के बाद इतने पजैसिव क्यों हो जाते हैं,’’ तनु धीरेधीरे खुल रही थी. ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ’’ मैं ने आदतन जिज्ञासा से पूछा.

‘‘होना क्या था, हमारे बीच दूरियां बढ़ने लगीं. विवेक का जिक्र आते ही जैसे राजीव के चेहरे की रौनक गायब हो जाती थी. उसे मेरा विवेक से मिलना, हंसना, बोलना जरा भी पसंद नहीं था. शादी के बाद गैरमर्द से दोस्ती रखना उस के हिसाब से चरित्रहीनता थी, मगर मैं भी अपने दिल के हाथों मजबूर थी. मैं बिना प्यार के रह ही नहीं सकती.’’ तनु ने कहा. ‘‘फिर?’’

‘‘फिर क्या? एक दिन मैं ने राजीव का हाथ अपने हाथ में ले कर उस से पूछा कि दिल पर हाथ रख कर बताओ कि जब हम दोस्त थे तब वह मेरे चरित्र के बारे में क्या सोचता था? उस ने कहा कि उस ने मुझ जैसे मजबूत इरादों वाली लड़की नहीं देखी और वह मेरी इसी खूबी पर मरमिटा था. बस फिर क्या था. मैं ने उसे समझाया कि शादी से पहले जब मैं इतने लड़कों के साथ दोस्ती कर के भी वर्जिन रही तो अब वह कैसे सोच सकता है कि मेरी दोस्ती में पवित्र भावना नहीं होगी.’’ ‘‘फिर क्या कहा राजीव ने?’’ मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी.

‘‘मैं ने उसे यकीन दिलाया कि जिस वक्त मेरे किसी दोस्त का हाथ मेरे कंधे से नीचे सरकने लगेगा मैं उसी क्षण हाथ झटक दूंगी. मेरे तन और मन पर सिर्फ और सिर्फ उसी का हक है. बस मेरे खुश होने की शर्त शायद यही है कि एक जिगरी दोस्त मेरी जिंदगी में होना ही चाहिए,’’ तनु ने अपनी बात पूरी की. ‘‘फिर?’’

‘‘बस, बात राजीव की समझ में आ गई कि मैं दोस्त के बिना खुश नहीं रह सकती और अगर मैं खुश नहीं रहूंगी तो उसे खुश कैसे रखूंगी,’’ तनु आगे बोली. ‘‘अच्छा.’’ सुन कर मैं उछल पड़ी.

‘‘इस के बाद उस ने मुझे विवेक से दोस्ती रखने से नहीं रोका और मैं ने भी उस से वादा किया कि जब वह मेरे साथ होगा तब मेरे वक्त पर सिर्फ उसी का अधिकार होगा,’’ तनु ने अपनी बात खत्म की. हम ने आगे भी टच में रहने का वादा

करते हुए फोन पर विदा ली. तनु का फोन तो कट गया, मगर मैं अभी भी मोबाइल को कान पर लगाए सोच रही थी कि कितनी साहसी है तनु. सच ही तो कहती है कि कम से कम एक आशिक तो हमारी जिंदगी में ऐसा होना ही चाहिए जो हमें सिर्फ प्यार करे. हमारी हर बुराई के साथ हमें स्वीकार करे. जिस से हम अपनी सारी अच्छीबुरी बातें शेयर कर सकें. पति से

जुड़े राज भी. जिसे हम खुल कर अपनी कमियां बता सकें. हम औरतें जिंदगी भर अपने पति में एक दोस्त ढूंढ़ती रहती हैं, मगर पति पति ही रहता है. वह दोस्त नहीं बन सकता.’’

Society : शिक्षा में धर्म का संक्रमण खतरनाक

Society : सरकार की धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने और विज्ञान को पीछे धकेलने की नीति देश के भविष्य के लिए हानिकारक हो सकती है. इसलिए शिक्षा नीतियों में संतुलन और आधुनिकीकरण की आवश्यकता है, ताकि हम एक प्रगतिशील समाज की ओर बढ़ सकें.

आधुनिक शिक्षा और धर्म का कोई तालमेल नहीं. सभी धर्मों के अपने शिक्षण संस्थान हैं जिन का नियंत्रण पूरी तरह धार्मिक व्यवस्था के हाथों में है. भारत का संविधान सभी धर्मों को अपनेअपने हिसाब से अपनी धार्मिक शिक्षाओं के प्रसारप्रचार की आजादी देता है. गुरुकुल और मदरसों में धर्म की शिक्षा दी जाती है. इन धार्मिक संस्थानों में क्या पढ़ाया जाए, यह धार्मिक व्यवस्था तय करती है. इस में सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता. यहां धार्मिक ग्रंथों को रटवाया जाता है. धार्मिक संस्कार सिखाए जाते हैं जब कि इन का संबंध मनुष्य की जिंदगी से नहीं होता.

धर्मग्रंथों की शिक्षाएं समाज के किसी काम की नहीं होती लेकिन इस से मुल्लाओं और पुरोहितों की फौज जरूर खड़ी हो जाती है. धार्मिक शिक्षण संस्थानों से पढ़ कर निकले स्नातक धार्मिक व्यवस्था में रोजगार पा लेते हैं. मदरसे से मौलवी बन कर निकले व्यक्ति को किसी मसजिद में या मदरसे में जौब मिल जाती है. गुरुकुल से पुरोहित की शिक्षा हासिल करने वाले को भी किसी न किसी धार्मिक अड्डे पर रोजगार मिल जाता है लेकिन दोनों जगह सैलरी बहुत कम होती है जिस से खर्चे पूरे नहीं होते.

आजकल के मुल्ला, पादरी और पुरोहितों की सोच भले ही उन के धर्म जितनी पुरानी हो पर लाइफस्टाइल बिलकुल मौडर्न होता है. हाथ में एंड्रौयड फोन और घर में आधुनिक सुविधाएं सभी को चाहिए लेकिन धार्मिक संस्थानों की जौब से मौडर्न लाइफस्टाइल को मेंटेन करना मुश्किल होता है. इस का समाधान यह है कि पुरोहितों को स्कूलकालेजों में भी जौब मिल जाए. लेकिन यह होगा कैसे? स्कूलकालेजों की व्यवस्था बिलकुल अगल होती है. स्कूलकालेजों में वो विषय पढ़ाए जाते हैं जिन का संबंध रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा होता है.

यहां धार्मिक शिक्षा का कोई काम नहीं. लेकिन आधुनिक शिक्षण संस्थान या तो निजी हैं या सरकार के नियंत्रण में हैं. प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में क्या पढ़ाना है, यह सरकार तय करती है और जो सरकार धर्म के नाम पर ही सत्ता में आई हो उस के लिए तो शिक्षा को बदलना ही सब से जरूरी काम है.

शिक्षा में धर्म और शिक्षण संस्थाओं में पुरोहितों को फिट करने से ही भविष्य की पीढ़ियों में धार्मिक कट्टरता भरी जा सकती है. दुनियाभर की कट्टरपंथी सरकारों के लिए शिक्षा का धार्मिकीकरण करना पहला काम होता है और जब शिक्षा पूरी तरह धर्म के रंग में रंग जाए तो शिक्षण संस्थानों में पुरोहितों को फिट करना अगला कदम होता है.

राष्ट्रवाद और हिंदू गौरव के पुनरुत्थान के नाम पर सत्ता में आई बीजेपी के कोर एजेंडे में शिक्षा का भगवाकरण शामिल है. बीजेपी की सरकार ने 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही शिक्षा को निशाना बनाना शुरू कर दिया. सिलेबस बदले गए. इतिहास बदला गया. विज्ञान की दुर्गति की गई और अब स्कूलों में भगवदगीता पढ़ाई जा रही है.

हाल ही में गुजरात सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है जिस के अनुसार कक्षा 6 से 12वीं तक के सिलेबस में भगवदगीता को शामिल किया गया है. गुजरात के शिक्षा मंत्री प्रफुल्ल पंसेरिया ने कहा कि “पूरे विश्व में गीता की विचारधारा है. गीता एक पथ है. हम ने इस संकल्प को सदन में रखा और सभी ने समर्थन किया. यह बिना विरोध के पास हो गया. स्कूल स्टूडैंट्स को भगवदगीता पढ़ाने का मकसद उन्हें भारत की समृद्ध और विविधताभरी संस्कृति, नौलेज सिस्टम और परंपराओं से रूबरू कराना, उन से जोड़ना है और उन में गर्व की भावना भरना है.”

खुमैनी और जियाउल हक ने सत्ता में आते ही सब से पहले स्कूली शिक्षा को नष्ट किया था. सिलेबस में कुरान को जबरन घुसेड़ा गया. इसलामिक शिक्षा को पाठ्यक्रमों में ठूंसा गया. आधुनिक शिक्षा में मजहब की घुसपैठ का परिणाम यह हुआ कि धीरेधीरे इसलामिक शिक्षा ने आधुनिक शिक्षा को हड़प लिया.

दक्षिणपंथियों के लिए इस के दो फायदे हुए. एक तो शिक्षा से पैदा होने वाली वैज्ञानिक चेतना नष्ट हो गई, दूसरा यह कि शिक्षण संस्थानों में मौलवियों के दाखिल होने के रास्ते खुल गए. बेरोजगार या कम सैलरी में गुजारा करने वाले मौलवियों को सरकारी नौकरियां मिलने लगीं और इन मौलवियों ने स्कूलकालेजों में घुस कर मुल्क की भावी नस्लों में धार्मिक कट्टरता का जहर भर दिया.

दक्षिणपंथी, चाहे वो खुमैनी हों, ट्रंप हों, जियाउल हक हों या फिर नरेंद्र मोदी सभी की सोच एकजैसी होती है. शिक्षा से सभी को डर लगता है. इन सब के लिए धर्म की आड़ में वैज्ञानिक चेतना का गला घोंटना जरूरी हो जाता है. दुनियाभर के दक्षिणपंथियों के लिए शिक्षा को भ्रष्ट करना पहली प्राथमिकता होती है ताकि वे समाज को अपनी मानसिकता के सांचे में ढाल सकें.

सत्ता और धर्म का गठजोड़ लोकतंत्र के लिए खतरा

लोकतंत्र का मतलब होता है जनता के लिए, जनता द्वारा संचालित होने वाली व्यवस्था. जिस में न्याय के पैमाने पर सभी नागरिक समान हों और इस व्यवस्था में सभी के अधिकार बराबर हों. यह तभी संभव है जब इस व्यवस्था में धर्म का हस्तक्षेप न हो. एक लोकतांत्रिक देश में कई धर्म के लोग समानता और न्याय हासिल कर सकते हैं लेकिन धर्म में लोकतंत्र के लिए कोई स्थान नहीं होता.

धर्म लोकतंत्र का दुश्मन होता है. धर्म में समानता और न्याय सब के लिए बराबर नहीं. हिंदू धर्म वर्णव्यवस्था पर आधारित है. इस में शूद्र और स्त्री के अधिकार द्विजों और मर्दों के बराबर नहीं हैं. इसलाम में औरतों के अधिकार मर्दों से कमतर हैं तो गैरमुसलिमों के अधिकार मुसलमानों के बराबर नहीं हैं. ईसाई धर्म की भी यही स्थिति है. यदि किसी लोकतांत्रिक देश में इन में से कोई भी धर्म इतना ताकतवर हो कि वह सत्ता के नीतिनिर्धारण में हस्तक्षेप करने लगे तो उस देश का लोकतंत्र ही संकट में पड़ सकता है.

किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र में सत्ता और धर्म एकसाथ नहीं हो सकते. इतिहास में, सत्ता में धर्म के संक्रमण को रोकने के लिए बड़ी क्रांतियां हुई हैं.

मध्यकाल के यूरोप में धर्म और सत्ता के बीच गठजोड़ था. चर्च इतना शक्तिशाली था कि सत्ता के नियम और सत्ता द्वारा जनता के लिए बनाए जाने वाले नियमों पर सीधी निगरानी रखता था.

16वीं और 17वीं शताब्दियों में पुनर्जागरण आंदोलनों ने चर्च की शक्ति को कमजोर किया जिस से सत्ता पर चर्च का नियंत्रण भी कमजोर हुआ. 1789 में फ्रांसीसी क्रांति ने धर्म और सत्ता के बीच के संबंध को पूरी तरह से बदल दिया. फ्रांसीसी क्रांति के बाद फ्रांस में धर्म को सत्ता से पूरी तरह अलग कर दिया गया. फ्रांसीसी क्रांति का असर पूरे यूरोप में हुआ और सत्ता से धर्म को पूरी तरह बेदखल कर दिया गया. 1787 में अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन में ही धर्म और सत्ता के बीच के संबंध को खत्म कर दिया गया.

धर्म का सत्ता से बेदखल होने का परिणाम यह हुआ कि राज्य की नीतियों पर धर्म का कंट्रोल खत्म हुआ. इस से राज्यों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा व्यवस्था में बड़ी क्रांति आई. धर्म से मुक्त होते ही शिक्षा में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का समावेश होने लगा जिस से यूरोप में वैज्ञानिक चेतना के नए दौर की शुरुआत हुई और यूरोप ज्ञान, विज्ञान, तकनीक व डैमोक्रेसी के क्षेत्र में पूरी दुनिया का नेतृत्व करने लगा.

1950 में भारतीय संविधान ने भी धर्म और सत्ता के बीच के संबंध को परिभाषित किया. संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में धर्म और राज्य के बीच के संबंध को नियंत्रित रखने का प्रावधान किया गया है ताकि सत्ता के मामलों में धर्म की भूमिका खत्म हो.

इतिहास में ऐसा देखा गया है कि जो भी लोग राष्ट्रवाद और धर्म का सहारा ले कर सत्ता पर काबिज होते हैं वे सब से पहले शिक्षा को बरबाद करते हैं. शिक्षा में धर्म के संक्रमण से भविष्य की पीढ़ियां धार्मिक कट्टरता का शिकार होती हैं और इस तरह लोकतंत्र बरबाद हो जाता है. इतिहास में पाकिस्तान और ईरान को हम ने इसी तरह कट्टरपंथ का शिकार होते देखा और अब भारत और अमेरिका भी इसी रास्ते पर चल निकले हैं.

अमेरिकी शिक्षा में धर्म की घुसपैठ

डोनाल्ड ट्रंप अपने चुनावप्रचार के दौरान हाथ में बाइबिल लिए अमेरिकी गौरव की बातें करते नजर आए. वे राष्ट्रवाद और धर्म का सहारा ले कर ही सत्ता में आए हैं और सत्ता में आते ही शिक्षा में धर्म को घुसाने के प्रयास करने लगे हैं.

अमेरिका के टेक्सास में टेक्सास राज्य शिक्षा बोर्ड ने इसी मार्च में ब्लूबोनेट पाठ्यक्रम के तहत टेक्सास के सरकारी स्कूलों में ईसाई धर्म की शिक्षाओं को पढ़ाए जाने का प्रस्ताव पास किया है. टेक्सास राज्य शिक्षा बोर्ड ने किंडरगार्डन से 5वीं कक्षा तक के विद्यार्थियों के लिए एक विवादास्पद, बाइबिल आधारित पाठ्यक्रम को मंजूरी दे दी है. टेक्सास के स्कूलों को ‘ब्लूबोनेट’ पाठ्यक्रम के तहत बाइबिल पढ़ानी होगी. हालांकि यह अनिवार्य नहीं है लेकिन ऐसा करने पर उन्हें बाइबिल खरीदने के लिए प्रति छात्र 40 डौलर की दर से वित्तीय प्रोत्साहन राशि मिलेगी. इस नए पाठ्यक्रम को अगस्त 2025 से टेक्सास में लागू किया जाएगा.

टेक्सास अमेरिकीन फैडरेशन औफ टीचर्स ने इस पाठ्यक्रम का विरोध किया और एक लिखित बयान में कहा, “नए पाठ्यक्रम के नाम पर स्कूलों में जो किताबें भेजी जा रही हैं उन में बाइबिल की अनावश्यक मात्रा है. सरकार का यह कदम न केवल चर्च और राज्य को आपस में मिलाता है बल्कि यह हमारी कक्षा की शैक्षणिक स्वतंत्रता का और हमारे शिक्षण पेशे की पवित्रता का उल्लंघन भी है.”

इसी प्रकार के प्रयास अमेरिका के सभी रिपब्लिकन प्रभुत्व वाले राज्यों में भी किए जा रहे हैं. टेक्सास की तर्ज पर ही लुइसियाना में भी वहां के सभी राजकीय विद्यालयों में बाइबिल को प्रदर्शित करने का प्रस्ताव पारित किया गया है लेकिन लुइसियाना के अभिभावक समूह सरकार के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में पहुंच गए और कोर्ट ने फिलहाल इस पर रोक लगा दी है.

हाल ही में ओक्लाहोमा के प्रमुख शिक्षा अधिकारी रयान वाल्टर्स ने घोषणा की कि सरकारी हाईस्कूलों के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा प्रकाशित बाइबिल की 500 प्रतियां खरीदी गई हैं. रयान वाल्टर्स बाइबिल को राष्ट्र का ‘आधारभूत दस्तावेज’ मानते हैं, कहते हैं, “बाइबिल हमारी सभ्यता का एक आधारभूत दस्तावेज है, इसलिए छात्रों को इसे अच्छी तरह से समझना चाहिए ताकि वे सुशिक्षित नागरिक बन सकें.”

रयान वाल्टर्स ने स्कूलों को आदेश दिया कि वे 5वीं से 12वीं कक्षा के छात्रों को बाइबिल की शिक्षा देने की व्यवस्था करें लेकिन ओक्लाहामा के अभिभावक संगठनों ने सरकार की इस योजना के खिलाफ ओक्लाहोमा सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया जिस से लुइसियाना में शिक्षा में धर्म के संक्रमण पर फिलहाल रोक लग गई है.

मुल्लाओं की क्रांति में बरबाद हुआ ईरान

ईरान का उदाहरण हमारे सामने है. आज से 90 साल पहले यानी 1936 का ईरान आज के ईरान से अलग था. आज ईरान में शरिया कानून लागू है, महिलाएं आजादी के लिए तड़प रही हैं. हिजाब न पहनने पर औरतों को पुलिस उठा ले जाती है. हिजाब के खिलाफ लड़कियां सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गई हैं लेकिन 90 साल पहले ईरान ऐसा नहीं था. तब ईरान में पहलवी वंश के रेजा शाह का शासन था. रेजा शाह ने शिक्षा में सुधार किया. उन्होंने ईरान में पश्चिमी देशों की शिक्षा नीति अपनाई और शिक्षा में वैज्ञानिक चेतना को महत्त्व दिया.

रेजा शाह को हिजाब और बुर्का पसंद नहीं था. शाह ने हिजाब पर बैन लगा दिया. महिलाओं की आजादी के रास्ते में यह कदम बहुत क्रांतिकारी साबित हुआ. ईरान बदल गया. औरतें यूनिवर्सिटीज में पहुंचने लगीं. नौकरियों में औरतों की भागीदारी हुई और जल्द ही ईरानी समाज पश्चिमी दुनिया की बराबरी में खड़ा हो गया. औरतों की यह आजादी अयातुल्लाह खुमैनी जैसे मुल्लाओं को हजम नहीं हुई. उन्होंने रेजा शाह के खिलाफ मोरचा खोल दिया.

ईरानी जनता के सामने खुमैनी ने रेजा पहलवी को अमेरिका के हाथों की ‘कठपुतली’ साबित करने का प्रोपगंडा किया और एक दशक के प्रोपगंडे का असर यह हुआ कि साल 1978 तक ईरानी जनता रेजा शाह को अमेरिका का पिट्ठू समझने लगी. रेजा पहलवी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे. इन प्रदर्शनों का नेतृत्व मौलवियों ने संभाल लिया. जनवरी 1979 आतेआते ईरान में गृहयुद्ध के हालात बन गए और फरवरी 1979 में खुमैनी ने अपनी सरकार बनाने का ऐलान कर दिया. इस तरह अयातल्लाह खुमैनी ईरान के सब से ताकतवर नेता बन गए.

इस इसलामिक क्रांति से पहले ईरान में पश्चिमी देशों जितना ही खुलापन था. महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी थी. औरतें नौकरियों में थीं. मर्दों से कंधा मिला कर चल सकती थीं लेकिन मुल्ला क्रांति ने ईरान की महिलाओं को कैद कर दिया.

खुमैनी के हाथों में सत्ता आते ही नए संविधान पर काम शुरू हो गया. नया संविधान इसलाम और शरिया पर आधारित था. सत्ता में आते ही खुमैनी ने सब से पहले शिक्षा पर धावा बोला. इतिहास की किताबें बदल दी गईं. इसलामिक शिक्षा को पाठ्यक्रमों में फिट किया गया. शिक्षण संस्थानों में मुल्लाओं की भरती होने लगी और महिलाओं को यूनिवर्सिटीज से दूर कर दिया गया. औरतों की आजादी छीन ली गई. हिजाब पहनना जरूरी हो गया. 1995 में ऐसा कानून बनाया गया जिस के तहत 60 साल तक की औरतों को बिना हिजाब के घर से निकलने पर जेल में डालने का प्रावधान है. हिजाब न पहनने पर 74 कोड़े मारने से ले कर 16 साल की जेल तक की सजा हो सकती है.

ईरान की मुल्ला क्रांति के 45 साल बाद ईरान में अब अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी के उत्तराधिकारी अली खामेनाई सत्ता में हैं. ईरान में सख्त शरिया कानून लागू हैं. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. ईरान में महिलाएं अपने बाल काट रही हैं. सुरक्षाबलों के सामने अपने हिजाब उड़ा रही हैं और उन्हें गिरफ्तार करने की चुनौती दे रही हैं. सरकार के खिलाफ नारेबाजी हो रही है. शहर के शहर जल रहे हैं. सरकार प्रदर्शनकारियों को दबाने के लिए लाठीचार्ज कर रही है.
ईरान में ‘एंटी हिजाब’ मूवमैंट तेज हो गया है. महिलाएं अपनी छीनी गई आजादी मांग रही हैं. पुरुष भी उन का साथ दे रहे हैं. अफसोस यह है कि मुल्लाओं के प्रोपगंडे को समझने में जनता को चार दशक लग गए.

जियाउल हक ने कैसे बरबाद किया पाकिस्तान?

5 जुलाई, 1978 को पाकिस्तान में भी एक मुल्ला क्रांति हुई थी जब जनरल जियाउल हक ने जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का तख्तापलट कर खुद सत्ता हथिया ली थी. जियाउल हक ने भी खुमैनी का अनुसरण किया और जनता को धर्म की अफीम का ओवरडोज देना शुरू कर दिया.

सत्ता में आते ही जियाउल हक ने सब से पहले शिक्षा का इसलामीकरण करना शुरू किया. मदरसे के ग्रेजुएट लोगों को स्कूलों में नौकरी दी गई ताकि बच्चों को इसलाम पढ़ाया जा सके. उलेमाओं को यूनिवर्सिटीज में भेजा गया. सिलेबस में बदलाव किए गए. नया इतिहास पढ़ाया जाने लगा जिस में मुहम्मद बिन कासिम और मुहम्मद गजनवी को पाकिस्तान का नायक घोषित किया गया.

पाक की अदालतें शरिया कानून से चलने लगीं. जिलाउल हक ने पाकिस्तान में सब से विवादित ‘हुदूद’ अध्यादेश को लागू किया, जिस का सब से बड़ा खमियाजा औरतों ने भुगता. हुदूद कानून के तहत दुष्कर्म के बदले दुष्कर्म की सजा दी जाती. अगर किसी की बहन का दुष्कर्म होता तो फरियादी भी आरोपी की बहन से दुष्कर्म कर सकता था. अहमदिया को गैरमुसलिम घोषित कर दिया गया. उन के मसजिद में जाने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी. जियाउल हक के शासन के दौरान बेटियों के नाम पैगंबर मुहम्मद के परिवार की औरतों के नाम पर नहीं रख सकते थे. जियाउल हक ने ब्लासफेमी कानून को सख्त कर दिया और मौलवियों को खुली छूट दे दी. मौलवी इतने ताकतवर हो गए कि अल्पसंख्यकों का जीना मुश्किल हो गया. ब्लासफेमी की आड़ में किसी को भी मौत की सजा दिलवाना आम बात हो गई.

जियाउल हक का मानना था कि पश्चिम का सारा विज्ञान कुरान और हदीसों से निकला है. जनरल जियाउल हक ने इसलामिक साइंस से दुनिया को बदलने के नाम पर पाकिस्तान की जनता के टैक्स के रुपयों से दो बड़ी अंतर्राष्ट्रीय कौन्फ्रैंस करवाईं. इन कौन्फ्रैंसों का मकसद था कुरान और हदीसों में छिपी हुई साइंस को निचोड़ कर बाहर निकालना. दोनों कौन्फ्रैंसों में पाकिस्तान और दूसरे मुसलिम देशों से मुसलिम वैज्ञानिकों को बुलाया गया. ये तथाकथित वैज्ञानिक अंदर से मुल्ला ही थे.

काहिरा की अल अजहर यूनिवर्सिटी के मोहम्मद मुतलिब ने साबित किया कि आइंस्टीन की थियरी औफ रिलेटिविटी बकवास है, असल में तो पृथ्वी अपने भ्रमण पथ पर इसलिए ठीकठीक घूम रही क्योंकि पहाड़ों ने पृथ्वी के सीने पर पैर जमा कर उस का संतुलन बना रखा है.

डिफैंस साइंस एंड टैक्नोलौजी संस्था के डाक्टर सफदरजंग राजपूत ने बड़े अनुसंधान के बाद साबित किया कि मांस से बने इंसान के साथसाथ आग से बने जिन्न भी हमारे आजूबाजू रहते हैं मगर उन से धुआं इसलिए नहीं निकलता क्योंकि उन का जिस्म मीथेन गैस से बना है.

पाकिस्तान एटौमिक एनर्जी कमीशन के एक वैज्ञानिक बशीरूद्दीन महमूद के पेपर का निचोड़ यह था कि जिन्न आग से बने हैं अगर उन्हें किसी तरह काबू कर लिया जाए तो उन की एनर्जी से भारी मात्रा में बिजली पैदा की जा सकती है.

जवाहरलाल नेहरू का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वर्ष 1938 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की एक बैठक में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “विज्ञान जीवन की वास्तविक प्रकृति है. केवल विज्ञान की सहायता से ही भूख, गरीबी, निरक्षरता, अंधविश्वास, खतरनाक रीतिरिवाजों, दकियानूसी परंपराओं, बरबाद हो रहे हमारे विशाल संसाधनों और भूखे मगर संपन्न विरासत वाले लोगों की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है. आज की स्थिति से अधिक संपन्न भविष्य उन लोगों का होगा जो विज्ञान के साथ अपने संबंध को मजबूत करेंगे. भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए विज्ञान ही एकमात्र कुंजी है.”

जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि हमारी गरीबी और गुलामी के मूल कारणों में अंधविश्वास, धार्मिक रूढ़िवादिता और तर्कहीनता पर आधारित हमारी परंपराएं शामिल थीं, इसलिए उन्होंने 1958 में देश की संसद में विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति को प्रस्तुत करते समय वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आधार बनाया.

‘डिस्कवरी औफ इंडिया’ में जवाहरलाल नेहरू लिखते हैं, ‘आज के समय में दुनिया के लिए विज्ञान को प्रयोग में लाना अनिवार्य है लेकिन एक चीज विज्ञान के प्रयोग में लाने से भी ज्यादा जरूरी है और वह है वैज्ञानिक विधि जो कि बेहद जरूरी है. इस से वैज्ञानिक दृष्टिकोण पनपता है, यानी, सत्य की खोज और नया ज्ञान, बिना जांचेपरखे किसी भी चीज को न मानने की हिम्मत, नए प्रमाणों के आधार पर पुराने नतीजों में बदलाव करने की क्षमता, पहले से सोच लिए गए सिद्धांत के बजाय प्रमाणित तथ्यों पर भरोसा करना, मस्तिष्क को एक अनुशासित दिशा में मोड़ना आदि सब नितांत आवश्यक हैं.

‘केवल इसलिए नहीं कि इस से विज्ञान का इस्तेमाल होने लगेगा बल्कि स्वयं के जीवन के लिए और इस की बेशुमार उलझनों को सुलझाने के लिए भी यह जरूरी है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानव को वह मार्ग दिखाता है जिस पर उसे अपनी जीवनयात्रा करनी चाहिए. यह दृष्टिकोण एक ऐसे व्यक्ति के लिए हैं जो बंधनमुक्त है, स्वतंत्र है.’

जवाहरलाल नेहरू की शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य भारत के भविष्य को वैज्ञानिक दृष्टिकोण देना था जिस से भविष्य का भारत एक विकसित राष्ट्र बन सके क्योंकि विकास का मार्ग तार्किकता से ही आरंभ होता है. आज भारत में बीजेपी की धुर दक्षिणपंथी सरकार सत्ता में है, जो नेहरूजी की इस व्यावहारिक और तार्किक सोच के उलट काम करती है.

बीजेपी को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नफरत है. यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक स्थिति है. भारतीय समाज में वैज्ञानिक चेतना की रहीसही कसर भी बाकी न रहे, इस के लिए बीजेपी सरकार शिक्षा को अपनी विचारधारा के अनुरूप ढालने में लिप्त है.

जेएनयू जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों को बरबाद किया जा रहा है. इतिहास की किताबें बदली जा रही हैं. विज्ञान की किताबों में कहानियां फिट की जा रही हैं. चार्ल्स डार्विन जैसे वैज्ञानिकों को पाठ्यक्रम से हटाया जा रहा है. जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रमोट करने के लिए बने रिसर्च इंस्टिट्यूट में विज्ञान का मजाक उड़ाया जा रहा है.

अभी हाल ही में दिल्ली के इंडियन इंस्टिट्यूट औफ साइंस एंड टैक्नोलौजी ने सरकारी पैसों से एक ऐसे वर्कशौप का आयोजन किया जिस में 200 वैज्ञानिकों ने पंचगव के इंसानी फायदे पर रिसर्च के लिए अलग से गौविज्ञान विश्वविद्यालय बनाए जाने का प्रस्ताव पेश दिया. इस वर्कशौप में उत्तराखंड के वेटरिनरी प्रोफैसर आर एस चौहान ने 4 गायों पर रिसर्च कर के साबित किया कि गाय के पेशाब से कैंसर का इलाज संभव है.

राजस्थान के शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी ने कहा कि गाय अकेला ऐसा पशु है जो औक्सीजन अंदर ले जाता है और औक्सीजन ही बाहर निकालता है. भारत में साइंस की ऐसी दुर्गति को देख कर जियाउल हक की याद आ जाती है.

Indian Economy : भारत में बढ़ती कंगाली, 100 करोड़ लोग खर्च करने लायक भी नहीं कमा पा रहे

Indian Economy : क्या सचमुच में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा बढ़ रही है और गरीबी भी इतनी बढ़ रही है कि लोग खर्च करने लायक पैसा भी नहीं कमा पा रहे. इस सवाल का जबाब देना कोई मुश्किल बात नहीं कि हां ऐसा हो रहा है. कौन है इस का जिम्मेदार? सरकार या उस के साथ वे लोग भी जिन की खर्च करने की आदतें बदल रही हैं.

कहने को ही सही भारत मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला देश रह गया है नहीं तो आमतौर पर ऐसा पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में होता है कि अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होता जाए. ऐसा नहीं हो रहा यह कहने की कोई वजह नहीं लेकिन बहुत तेजी से ऐसा हो रहा है यह कहने की बहुत सी वजहें हैं. देशविदेश की कई एजेंसियां पिछले 5 साल से सर्वेक्षणों और आंकड़ों के जरिए यह कहती रही हैं कि भारत में सब कुछ ठीकठाक नहीं है. लेकिन उन की बात वेबसाइट्स में घुट कर रह जाती है या कभीकभार अखबार में छोटी सी जगह में छप कर रह जाती है, जिसे 5 फीसदी पाठक भी नहीं पढ़ते क्योंकि हर किसी या सभी की दिलचस्पी की खबर नहीं होती.

लोगों की दिलचस्पी कुंभ जैसे धार्मिक इवेंट में ज्यादा रहती है जिस में 66 करोड़ लोगों के डुबकी लगाने की बात उन्हें आश्वस्त करती है कि अभी भी लोगों के पास इतना पैसा है कि वे कुछ हजार रुपए खर्च कर मोक्ष का टिकट खरीद रहे हैं. इन 66 करोड़ में से कितनों ने प्रयागराज आनेजाने कर्ज लिया, जमापूंजी ठिकाने लगाई या उधार लिया यह आंकड़ा कोई सरकार या एजेंसी नहीं बताती, पर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग सभी ने ऐसा किसी न किसी रूप में किया होगा.

कुछ एजेंसियों के आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि कोई 60 करोड़ लोगों ने सेविंग्स ठिकाने लगाईं या फिर उधार या कर्ज लिया होगा लेकिन आर्थिक मोक्ष मिला चंद पूंजीपतियों पंडों और कथित तौर पर उन नाववालों को जिन्होंने कथित तौर पर ही 45 दिन में करोड़ों पीट डाले.

क्या कहते हैं आंकड़े

शिवरात्रि पर जब करोड़ों लोग गंगा जी सपड रहे थे तब एक चिंतनीय खबर सामने आई थी जिस के मुताबिक देश के 100 करोड़ लोग अपनी मर्जी से खर्च करने की हैसियत नहीं रखते. ब्लूम वैंचर्स की इंडस वैली एनुअल रिपोर्ट 2025 के मुताबिक अमीर लोग और अमीर हो रहे हैं लेकिन उन की तादाद नहीं बढ़ रही है बल्कि उन के पास और पैसा बढ़ रहा है. यानी देश में नए अमीर लोग पैदा नहीं हो रहे हैं.

कुंभ की चकाचौंध न भी होती तो भी इस रिपोर्ट से किसी को कोई सरोकार नहीं होता. खासतौर से उन सरकारों और मीडिया मठों को तो बिलकुल नहीं जो अपना कामधाम छोड़ डुबकी लगाने वालों की मुंडियां गिन रहे थे.

इस रिपोर्ट को गहराई से समझने से पहले एक पुराने लतीफे के जरिए और बेहतर व आसान तरीके से समझा जा सकता है जिस में एक खब्त सनकी आदमी एक कुएं के किनारे खड़ा चिल्ला सा रहा था बीसबीस… तभी एक राहगीर वहां से गुजरा और हैरानी से पूछने लगा भाई ये बीसबीस क्या है. उस सनकी ने कोई जवाब देने के बजाय राहगीर को उठाया और कुएं में फेंक दिया और फिर चिल्लाने लगा इक्कीसइक्कीस….

कुम्भ में भी यही हुआ था. अगर रिपोर्ट को सच मानें तो 66 करोड़ लोगों के पास पैसा कहां से आया और उन में उन 100 करोड़ ( 70 फीसदी के लगभग) में से कितने रहे होंगे जिन के पास अपनी मर्जी से खर्च करने पैसा ही नहीं. इस वर्ग की औसत कमाई 85 हजार सालाना है जबकि 30 करोड़ लोगों ( लगभग 20 फीसदी ) जिन्हें रिपोर्ट उभरता उपभोक्ता बताती है कि प्रति व्यक्ति आय ढाई लाख रुपए है.

उच्च वर्ग में 14 करोड़ लोग ( लगभग 10 फीसदी ) हैं जिन की औसत आय 13 लाख रुपए सालाना है. अर्थशास्त्र से हटते जमीनी तौर पर देखा जाए तो लोग मर्जी से डुबकी लगाने नहीं गए थे बल्कि उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार ने उन्हें उकसाया था कि यही मौका है जो एक जिंदगी में एक बार ही आता है.

140 साल बाद हम में से कोई नहीं रहेगा इसलिए अभी पुण्य बटोर लो. यह ब्राह्मण बनिया गठजोड़ का आधुनिक संस्करण था जो लोगों को धर्म और तीर्थ यात्राओं के बाबत डराता और उकसाता है. जिस से लोग गांठ का पैसा खर्च करें जो कि दो चार के पास ही होता है बाकी 96 – 98 तो सूद पर पैसे लेंगे ही या जमीनजायदाद, सोनागहने गिरवी रखेंगे और उन में से भी आधे से ज्यादा उसे उठा नहीं पाएंगे.

तो देश में पिछले 10 सालों से हो यही रहा है कि गरीब और गरीब होता जा रहा है. कुंभ न भी होता तो इस हालत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि अर्थव्यवस्था अघोषित तौर पर पूंजीवादी हो गई है. कुंभ के नजरिए से ही इसे जस्टिफाई करें तो जिस पानी में मोक्ष की मंशा से श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई उस पानी का इस्तेमाल पीने में नहीं किया.

जाहिर है पानी गंदा था. बकौल कांग्रेसी दिग्गज पानी क्या था कीचड़ थी. अब थी तो थी फिर आप क्यों सपरिवार कीचड़ में लौटने गए थे इस सवाल का जवाब दिग्विजय सिंह और 66 करोड़ लोग शायद ही दे पाएं. सभी ने ब्रांडेड बोतल बंद पानी पिया और अरबों रुपए प्यास बुझाने खर्चे. अगर अर्थव्यवस्था वाकई मिश्रित होती तो पानी का पैसा पानी के कारोबारियों के पास नहीं जाता.

बदलती आदतें

यही हाल खानेपीने का आइटमों का कुंभ में भी था और गांवदेहातों में भी इफरात से है कि लोग पैक्ड आइटमों पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं. जिस से ज्यादा से ज्यादा पैसा पैक्ड फूड बनाने वाली कंपनियों की तिजोरी में जा रहा है. लोकल बजरंगी टाइप हलवाई गायब होते जा रहे हैं.

इन कंपनियों ने कितनों का रोजगार खाया है इस का भी आंकड़ा किसी के पास नहीं. इस तस्वीर को ब्लूम वैंचर्स की स्टडी इन शब्दों में बयां करती है, कि लोगों की बचत तेजी से घट रही है और कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है इस वजह से बाजार का तरीका बदल गया है और कंपनियां अब सस्ते सामानों की जगह प्रीमियम प्रोडक्ट्स पर फोकस कर रही हैं.

फूड आइटम चूंकि छोटी चीज है इसलिए रिपोर्ट रियल स्टेट का उदाहरण देते कहती है कि 5 साल पहले रियलस्टेट की कुल बिक्री में अफौर्डेबल हाउसिंग की हिस्सेदारी 40 फीसदी थी जो अब घट कर महज 18 फीसदी रह गई है और हकीकत इंडस वैली रिपोर्ट के इस दावे से समझी जा सकती है कि देश के शीर्ष 10 फीसदी लोग लगभग 58 फीसदी कमाई को नियंत्रित करते हैं, जबकि नीचे के 50 फीसदी लोगों की कमाई का हिस्सा 22 फीसदी से घट कर 15 फीसदी रह गया है.

रिपोर्ट में कई बैंकों का हवाला देते हुए बताया गया है कि लोग लिया हुआ कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं. जिस से एनपीए यानी नौन परफार्मिंग एसैट्स बढ़ता जा रहा है. दिसंबर 2024 तक यह 50 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया था जो अब तक का सब से ज्यादा है.

आमदनी ही नहीं तो बचत कैसे हो

पिछले साल जुलाई में इस सब को ले कर संसद में भी खासा हंगामा मचा था जिस पर सरकार मुंह छिपाती दिखी थी. विपक्ष के इन आरोपों का उस के पास कोई जवाब नहीं था कि पांचवी बड़ी इकोनमी का दम भरती रहने वाली सरकार प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा क्यों छिपाती है.

भारत में प्रति व्यक्ति आय महज 2.28 लाख रुपए है और वह 200 देशों की लिस्ट में 124 वे नंबर पर है. फिर यह इकौनमी किस को पैसे दे रही है. जाहिर है चंद उद्योगपतियों को जिन के नाम अब देश के बच्चों को भी रट गए हैं.

मुद्दा या परेशानी आम लोगों की बचत और खर्च है कि यहांकहां जा रहे हैं. एक साल पहले ही खुद रिजर्व बैंक ने बताया था कि देश में शुद्ध घरेलू बचत 47 साल के निचले स्तर पर है. इसे ऐसे समझें, किसी परिवार के कुल धन और निवेश में से उस का कर्ज और उधारी अगर घटा दी जाए तो उसे शुद्ध घरेलू बचत माना जाता है.

हालात कितने विस्फोटक हो चले हैं इसे बढ़ते कर्ज से समझा जा सकता है कि जैसेजैसे लोग कर्ज लेते जा रहे हैं वैसेवैसे उन की बचत कम होती जा रही है. आम लोगों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उधारी और कर्ज चुकाने में जा रहा है. लोग कर्ज लेते ही क्यों हैं यह सवाल लगभग बचकाना है जिस का जबाब हर कोई यही देगा कि अपनी जरूरतें पूरी करने. इस से यह तो साबित होता है कि लोगों की कमाई अब इतनी नहीं रह गई है कि उस से वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकें.

अर्थशास्त्र के इस चक्रव्यूह में अगर 100 करोड़ लोग फंस गए हैं तो इस का 100 फीसदी जिम्मेदार सरकारी नीतियों को ठहराना थोड़ा सा तो गलत है. हालांकि उस की मौजूदा इकौनमी का कोई डिजाइन ही नहीं. वह नौनमार्गेज लोन यानी बिना गारंटी वाले लोन इफरात से बांट रही है इस से गरीबी बजाय कम होने के और बढ़ रही है.

हालांकि इस के पीछे लोगों की खर्च करने की आदतें भी कम जिम्मेदार नहीं. लोग शादीब्याह पर बिना सोचेसमझे पैसा फूंक रहे हैं वह भी दिखावे के लिए. इन में अधिकतर वही लोग हैं जिन्हें जाति के हिसाब से पिछड़ा और दलित कहा जाता है.

इसी तबके के लोगों ने कुंभ की डुबकी पर भी हजारों रुपए पानी में बहाए. इन में से भी अधिकांश वही हैं जिन्हें सरकार मुफ्त का राशन मुहैया करा रही है और कई योजनाओं के तहत नगद भी दे रही है.

इस में औरतों पर सरकारों की मेहरबानी किसी सबूत की मोहताज नहीं. ब्रांडेड खरीददारी का आदी होता जा रहा यह वर्ग अपना और सरकारी खैरात का पैसा कैसे पूंजीपतियों की तिजोरी में डाल रहा है इसे लोकल हलवाई और पैक्ड फूड के उपर बताए छोटे पर अहम उदाहरण से सरलता से समझा जा सकता है.

गरीब कमजोर को पैसा मिले यह हर्ज की बात नहीं हर्ज की बात है यह न सोचा जाना कि क्या इस से वाकई यह तबका आर्थिक रूप से मजबूत हो रहा है. इस की निगरानी और मौनिटरिंग के लिए सरकारों के पास कोई योजना ही नहीं है.

Hindi Kavita : बड़ी हो कर क्या बनेगी

Hindi Kavita : जब मैं छोटी थी
बहुत हंसती थी
खिलखिलाती थी
इठलाती थी
मां के आंचल से बंधी
मेरी वह छोटी सी दुनिया
आज की ग्लोबल दुनिया से
बिलकुल अलग थी

वहां केवल खुशियां थीं
उम्मीदें थीं
हंसीठिठोली के साथ
कुछ डांट और फटकार भी थी
ममता में सराबोर
मां के धीमे तमाचे
मुझे सही और गलत का एहसास करा देते थे
मेरी निर्बाध उद्दंडता पर लगाम लगा देते थे

जब मैं बड़ी हुई
मेरी सोचसमझ और सपने भी बड़े हुए
साथ ही,
मेरे लिए
मेरी मां की चिंताएं भी बड़ी हो गईं
मां का आंचल छूटा
और मेरे लिए
खींची गई अनगिनत रेखाएं
मेरे सामने खड़ी हो गईं
ये अनगिनत रेखाएं अदृश्य थीं
लेकिन,
थीं बहुत कठोर

जल्द ही,
इन रेखाओं के साथ
मैं ने एडजस्ट करना सीख लिया
वैसे ही जैसे
बचपन में
मां के आंचल के साथ
मैं एडजस्ट हो गई थी

इन अनगिनत रेखाओं के साथ
अनगिनत चिंताएं भी थीं
जो अब मेरी मां से ज्यादा
मुझे सता रही थीं
फिर जल्द ही
इन चिंताओं के साथ
मैं ने एडजस्ट करना सीख लिया

मैं चाहती थी
मैं भी डाक्टर बनूं
मुफ्त में सब का इलाज करूं
मैं भी ड्राइवर बनूं
देश की सैर करूं
मैं भी पायलट बनूं
दुनिया को ऊंचाइयों से देखूं
मैं भी कल्पना और सुनीता बनूं
अंतरिक्ष की सैर करूं
लेकिन, जल्द ही
मुझे पता चला कि मुझे क्या बनना है?

मेरी शादी तय कर दी गई
मैं डाक्टर नहीं दुलहन बन गई
पायलट की जगह
किसी की पत्नी बना दी गई
वक्त ने मुझे
बहुतकुछ बना दिया

किसी की भाभी बनी
किसी की बहू
किसी की देवरानी बनी
तो किसी की जेठानी
तरक्की हुई तो जल्द ही
मां भी बन गई

अब मेरी गोद में मेरी एक बेटी है
जो धीरेधीरे बड़ी हो रही है
अभी वह छोटी है
बहुत हंसती है
खिलखिलाती है
इठलाती भी है
मेरे आंचल से बंधी
मेरी बेटी की यह छोटी सी दुनिया
आज की ग्लोबल दुनिया से
बिलकुल अलग है
यहां केवल खुशियां हैं
उम्मीदें हैं
हंसीठिठोली के साथ
कुछ डांट और फटकार भी है
उस की पीठ पर पड़ने वाले
ममता में सराबोर
मेरे धीमे तमाचे
उसे सही और गलत का एहसास करा देते हैं
और उस की निर्बाध उद्दंडता पर लगाम लगा देते हैं

अब वह बड़ी हो रही है
उस की सोचसमझ, सपने भी बड़े हो रहे हैं
साथ ही,
उस के लिए
मेरी चिंताएं भी बड़ी हो रही हैं
सोचती हूं,
जब मेरा आंचल छूटेगा
और अनगिनत अदृश्य कठोर रेखाएं
उस के सामने खड़ी होंगी
तब वह
क्या बन पाएगी?

लेखक : शकील प्रेम

Online Hindi Story : दिल वालों का दर्द – मनोज का क्या था अंतिम फैसला

Online Hindi Story : उस दिन मनोज फटी आंखों से उसे एकटक देखता रह गया. उस के होंठ खुले के खुले रह गए. इस से पहले उस ने ऐसा हसीन चेहरा कभी नहीं देखा था. मनोज ने डाक्टर की डिगरी हासिल कर के न तो किसी अस्पताल में नौकरी करनी चाही और न ही प्राइवेट प्रैक्टिस की ओर ध्यान दिया, क्योंकि पढ़ाई और डाक्टरी के पेशे से उस का मन भर गया था.

किसी के कहने पर मनोज एक फैक्टरी में मुलाजिम हो गया. वहां के दूसरे लोग मिलनसार थे. औरतें और लड़कियां भी लगन से काम करती थीं. कइयों ने मनोज के साथ निकट संबंध बनाने चाहे, पर उन्हें निराशा ही मिली. वजह, मनोज शादी, प्यारमुहब्बत वगैरह से हमेशा भागता रहा और उस की उम्र बढ़ती गई. उसी फैक्टरी में एक कुंआरी अफसर मिस सैलिना विलियम भी थीं, जिन्होंने कह रखा था कि मनोज के लिए उन के घर के दरवाजे हमेशा खुले रहेंगे. शराब पीना उन की सब से बड़ी कमजोरी थी, जो मनोज को नापसंद था.

दूसरी मारिया थीं, जो मनोज को अकसर होटल ले जातीं. वहीं खानापीना होता, खूब बातें भी होतीं. वे शादीशुदा थीं या नहीं, उन का घर कहां था, न मनोज ने जानने की कोशिश की और न ही उन्होंने बताया. इसी तरह दिन गुजरतेगुजरते 15 साल का समय निकल गया. न मनोज ने शादी करने के लिए सोचा और न इश्कमुहब्बत करने के लिए आगे बढ़ा. यारदोस्तों ने उसे चेताया, ‘कब तक कुंआरा बैठा रहेगा. किसी को तो बुढ़ापे का सहारा बना ले, वरना दुनिया में आ कर ऐसी जिंदगी से क्या मिलेगा…’

दोस्तों की बातों का मनोज पर गहरा असर पड़ा. उस ने आननफानन एक दैनिक अखबार व विदेशी पत्रिका में अपनी शादी का इश्तिहार निकलवा दिया. यह भी लिखवा दिया कि फोन पर रात 10 बजे के बाद ही बात करें या अपना पूरा पता लिख कर ब्योरा भेजें. 4 दिन के बाद रात के 10 बजे से

2 बजे तक लगातार फोन आने शुरू हुए, तो फोन की घंटी ने मनोज का सोना मुश्किल कर दिया. पहला फोन इंगलैंड के बर्मिंघम शहर से एक औरत का आया, ‘मैं हिंदुस्तानी हो कर भी विदेशी बन गई हूं. मेरा हाथ पकड़ोगे, तो सारी दौलत तुम्हारी होगी. तुम्हें खाना खिला कर खुश रखूंगी. मैं होटल चलाती हूं.

‘मैं विदेश में ब्याही गई केवल नाम के लिए. चंद सालों में मेरा मर्द चल बसा और सारी दौलत छोड़ गया. सदमा पहुंचा, फिर शादी नहीं की. अब मन हुआ, तो तुम्हारा इश्तिहार पसंद आया.’ ‘‘मैं विचार करूंगा,’’ मनोज ने कहा.

दूसरा फोन मनोज की फैक्टरी की अफसर मिस सैलिना विलियम का था, ‘अजी, मैं तो कब से रट लगाए हुए हूं, तुम ने हां नहीं की और अब अखबार में शादी का इश्तिहार दे डाला. मेरी 42 की उम्र कोई ज्यादा तो नहीं. मेरे साथ इतनी बेरुखी मत दिखाओ. तुम अपनी मस्त नजरों से एक बार देख लोगे, तो मैं शराब पीना छोड़ दूंगी.’ ‘‘ऐसा करना तुम्हारे लिए नामुमकिन है.’’

‘मुझ से स्टांप पेपर पर लिखा लो.’ ‘‘सोचने के लिए कुछ समय तो दो,’’ मनोज ने कहा.

4 दिन बाद निलंजना का फोन आया, ‘मेरी उम्र 40 साल है. मेरी लंबाई 5 फुट, 7 इंच है. मैं ने कंप्यूटर का डिप्लोमा कोर्स किया है.’ ‘‘आप ने इतने साल तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘मुझे पढ़ाई के आगे कुछ नहीं सूझा. जब फुरसत मिली, तो लड़के पसंद नहीं आए. अब आप से मन लग जाएगा…’ ‘‘ठीक है. मैं आप से बाद में बात करूंगा.’’

आगरा से यामिनी ने फोन किया, ‘मैं आटोरिकशा चलाती हूं. मैं हर तरह के आदमी से वाकिफ हो चुकी हूं, इसीलिए सोचा कि अब शादी कर लूं. आप का इश्तिहार पसंद आया.’ ‘‘कभी मिलने का मौका मिला, तो सोचूंगा.’’

‘मेरा पता नोट कर लीजिए.’ ‘‘ठीक है.’’

मुमताज का फोन रात 3 बजे आया. वह कुछकुछ कहती रही. मनोज नींद में था, सो टाल गया. बाद में उस की एक लंबी चिट्ठी मिली. उस ने गुस्से में लिखा था, ‘मेरी फरियाद नहीं सुनी गई. कब तक ऐसा करोगे? मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी. मैं ख्वाबों में आ कर तुम्हें जगा दूंगी. इस तरह सजा दूंगी. ‘मैं पढ़ीलिखी हूं. यह तो तुम पर मेरा मन आ गया, इसलिए शादी को तैयार हो गई, वरना कितने लड़के मुझे पाने के लिए मेरे घर के चक्कर लगाते रहे. मैं ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. मेरी फोटो चिट्ठी के साथ है. उम्र में तुम से थोड़ी कम हूं, दिल की हसरतें पूरी करने में एकदम ऐक्सपर्ट हूं.’

नूरजहां ने तो हद पार कर दी, जब सिसकती हुई रात के 1 बजे बहुत सारी बातें करने के बाद वह बोली, ‘अब तो यह हालत है कि कोई मेरे दरवाजे पर दस्तक देने नहीं आता. कभी लोगों की लाइन लगी रहती थी. अब तो कभी खटका हुआ, तो पता चलता है कि हवा का झोंका था. ‘जिंदगी का एक वह दौर था कि लोग हर सूरत में ब्याहने चले आते. जितनी मांग की जाए, उन के लिए कम थी और एक आज मायूसी का दिन है. खामोशी का ऐसा दौर चल पड़ा, जो सन्नाटा बन कर खाए जाता है. हर समय की कीमत होती है.’

‘‘क्या आप तवायफ हैं?’’ ‘अजी, यों कहिए मशहूर नर्तकी. मेरा मुजरा सुनने के लिए दूरदूर से लोग आते हैं और पैसे लुटा जाते हैं.’

‘‘तो आप कोठे वाली हैं?’’ ‘अब वह जमाना नहीं रहा. पुलिस वालों ने सब बंद करा दिया. तुम से मिलने कब आऊं मैं?’

‘‘थोड़ा सोचने का वक्त दो.’’ फूलमती तो घर पर ही मिलने चली आई. मैं फैक्टरी में था. वह लौट गई, फिर रात को फोन किया, ‘मैं पीसीओ बूथ से बोल रही हूं. मैं फूलमती हूं. बड़े खानदान वाले लोग नीची जाति वालों को फूटी आंखों देखना पसंद नहीं करते, जैसे हम लोग उन के द्वारा बेइज्जत होने के लिए पैदा हुए हैं.

‘सब के सामने हमें छू कर उन का धर्म खराब होता है, लेकिन जब रात को दिल की प्यास बुझाने के लिए वे हमारे जिस्म को छूते हैं, तब उन का धर्म, जाति खराब नहीं होती… एक दिन एक हताश सरदारनी का फोन आया, ‘मैं जालंधर से मोहिनी कौर बोल रही हूं. शादी के एक साल बाद मेरा तलाक हो गया. मुझे वह सरदार पसंद नहीं आया. मैं ने ही उसे तलाक दे दिया.

‘वह ऐयाश था. ट्रक चलाता था और लड़कियों का सौदा करता था. फिर मैं ने शादी नहीं की. उम्र ढलने लगी और 40 से ऊपर हो चली, तो दिल में तूफान उठने लगा. बेकरारी और बेसब्री बढ़ने लगी. तुम्हारे जैसा कुंआरा मर्द पा कर मैं निहाल हो जाऊंगी.’

‘‘तुम्हें पंजाब में ही रिश्ता ढूंढ़ना चाहिए.’’ ‘अजी, यही करना होता, तो तुम से इतने किलोमीटर दूर से क्यों बातें करती?’

‘‘थोड़ा सब्र करो, मैं खुद फोन करूंगा.’’ ‘अजी, मेरा फोन नंबर तो लो, तभी तो फोन करोगे.’

‘‘बता दो,’’ मनोज बोला. एक दिन फोन आया, ‘मैं पौप सिंगर विशाखा हूं. मेरा चेहरा ताजगी का एहसास कराता है. कभी किशोरों के दिल की धड़कन रही, अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लगने लगी हूं, मैं ने इसलिए गायकी छोड़ दी और आरामतलब हो गई. इस की भी एक बड़ी वजह थी. मेरे गले की आवाज गायब हो गई. इलाज कराने पर भी फायदा न हुआ. तुम अगर साथी बना लोगे, तो मेरा गला ठीक हो जाएगा. मेरी उम्र 40 साल है.’

‘‘तुम्हारा मामला गंभीर है, फिर भी मैं सोचूंगा.’’ ‘कब उम्मीद करूं?’

‘‘बहुत जल्दी.’’ एक फोन वहीदा खान का आया. वह लाहौर से बोली, ‘मेरे पास काफी पैसा है, लेकिन मुझे यहां पर कोई पसंद नहीं आया. मैं चाहती हूं कि आप हमारा धर्म अपना लें और यहां आ जाएं, तो मेरा सारा कारोबार आप का हो जाएगा.

‘मैं रईस नवाब की एकलौती बेटी हूं. न मेरे अब्बा जिंदा बचे हैं और न अम्मी. मेरी उम्र 40 साल है.’ ‘‘आप के देश में आना मुमकिन नहीं होगा.’’

‘क्यों? जब आप को शादी में सबकुछ मिलने वाला हो, तो मना नहीं करना चाहिए.’ ‘‘क्योंकि मुझे अपना देश पसंद है.’’

इस के बाद मुंबई से अंजलि का फोन आया. वह बोली, ‘मैं इलैक्ट्रिकल इंजीनियर हूं और एमबीए भी कर रही हूं. मेरी उम्र 35 साल है. मैं ने अभी तक शादी नहीं की. पर अब शादी करने की दिली ख्वाहिश है. ‘इस उम्र में भी मुझे लौन टैनिस और गोल्फ खेलने का शौक है. आप अपने बारे में बताइए?’

‘‘मैं रमी का खिलाड़ी हूं और बैडमिंटन खेलने का शौक रखता हूं.’’ ‘मैं भी वही सीख लूंगी. एक दिन आप मिलिए. बहुत सी बातें होंगी. मुझे भरोसा है कि हम दोनों एकदूसरे को जरूर पसंद करेंगे. मुझे आप की उम्र पर शक है. आप 40 साल से ज्यादा के हो ही नहीं सकते.’

‘‘आप ने ऐसा अंदाजा कैसे लगा लिया?’’ ‘आप के बोलने के ढंग से.’

‘‘अगर मैं आप को सर्टिफिकेट दिखा दूं, तो यकीन करेंगी?’’ ‘नहीं.’

‘‘क्यों?’’ ‘वह भी बनवा लिया होगा. जो लोग 45 से ऊपर हो चुके हों, वे ऐसा इश्तिहार नहीं निकलवाते. या तो आप ने औरतों का दिल आजमाने के लिए इश्तिहार दिया है या फिर कोई खूबसूरत औरत आप के दिमाग में बसी होगी, जिसे अपनी ओर खींचने के लिए ऐसा किया.’

मनोज ठहाका मार कर हंस पड़ा. वह भी फोन पर जोर से हंस पड़ी और बोली, ‘लगता है, मैं ने आप की चोरी पकड़ ली है.’ मनोज ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘आप की उम्र कुछ भी हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता. क्या आप मुझ से हैंगिंग गार्डन में आ कर मिलना चाहेंगे?’ ‘‘वहां आने के लिए मुझे एक महीने पहले ट्रेन या हवाईजहाज से रिजर्वेशन कराना पड़ेगा.’’

‘तारीख बता दीजिए, मैं यहीं से आप का टिकट करा कर पोस्ट कर दूंगी. मेरे जानने वाले रेलवे और एयरपोर्ट में हैं.’ ‘‘आप जिद करती हैं, तो अगले हफ्ते की किसी भी तारीख पर बुला लें. मुझे देखते ही आप को निराश होना पड़ेगा,’’ कह कर मनोज फिर हंस पड़ा.

‘मैं बाद में फोन करूंगी.’ ‘‘गुडबाय.’’

‘बाय.’ मनोज की फैक्टरी की मुलाजिम मारिया बहुत खूबसूरत थी, जो अकसर मनोज को अपने साथ होटल ले जाती थी. उसे खिलातीपिलाती और चहकते हुए हंसतीमसखरी करती. उस ने कभी अपने बारे में नहीं बताया कि वह कहां रहती है. शादीशुदा है या कुंआरी या फिर तलाकशुदा.

मनोज ने ज्यादा जानने में दिलचस्पी नहीं ली. उस की उम्र ज्यादा नहीं थी. मनोज के इश्तिहार पर उस की नजर नहीं पड़ी, लेकिन उसे किसी ने शादी करने की इच्छा बता दी. बहुत दिनों बाद मारिया मनोज को होटल में ले गई और बोली, ‘‘क्या तुम शादी करना चाहते हो?’’

‘‘क्यों? अभी तो सोचा नहीं.’’ ‘‘झूठ बोलते हो. तुम ने अखबार में इश्तिहार दिया है.’’

मनोज की चोरी पकड़ी जा चुकी थी. उस ने कहा, ‘‘मेरी उम्र बढ़ने लगी थी. एकाएक मन में आया कि शायद कोई पसंद कर ले. अखबार में यों ही इश्तिहार दे दिया. तमाम दिलवालियों से फोन पर बात हुई और चिट्ठियां भी आईं.’’ ‘‘तो किसे पसंद किया?’’

‘‘किसी को नहीं.’’ ‘‘क्यों?’’

‘‘तुम्हें बताने लगूंगा, तो समय कम पड़ जाएगा. इसे अभी राज रहने दो.’’ ‘‘नहीं बताओगे, तो मैं तुम्हारे साथ उठनाबैठना बंद कर दूंगी. तुम मुझे अपना जीवनसाथी बना लो, दोनों को शांति मिलेगी.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो मारिया.’’ ‘‘मुझे भी उस लिस्ट में रख लो. मैं ने अभी तक किसी से रिश्ता नहीं जोड़ा. मैं अकेली रहती हूं.’’

‘‘मैं ने तो समझा था कि तुम शादीशुदा हो.’’ ‘‘नहीं. मेरा भी ध्यान रखना.’’

मारिया की उम्र 35 साल से कुछ ज्यादा थी. मनोज को डाक से अंजलि का लिफाफा मिला. उस के अंदर एक चिट्ठी, मिलने की जगह और लखनऊ से मुंबई तक हवाईजहाज का रिजर्वेशन टिकट था. ताज होटल के कमरा नंबर 210 में ठहरने व खानेपीने का इंतजाम भी उसी की ओर से किया गया था.

अंजलि ने अपना कोई फोटो भी नहीं भेजा, जिसे मुंबई पहुंच कर वह पहचान लेता. एयरपोर्ट से ताज होटल तक के लिए जो कार भेजी जाने वाली थी, उस का नंबर भी लिखा था. कहां खड़ी मिलेगी, वह भी जगह बताई गई थी. जब मनोज मुंबई पहुंचा, तो उसे उस जगह पहुंचा दिया गया. वह बेसब्री से अंजलि का इंतजार करने लगा, जिस ने इस तरह न्योता भेजा था.

मिलने पर अंजलि ने खुद अपना परिचय दिया. उसे देखने पर मनोज को ऐसा लगा, मानो कोई हुस्न की परी सामने खड़ी हो. वह कुछ देर तक उसे देखता रह गया. अंजलि मुसकराते हुए बोली, ‘‘मेरा अंदाजा सही निकला कि आप 30-40 से ऊपर नहीं हो सकते. आप का इश्तिहार महज एक ढकोसला था, जो औरतों को लुभाने का न्योता था.’’

मनोज को उस की बातों पर हंसी आ गई. उस ने शायद उस के झूठ को पकड़ लिया था. ‘‘क्या आप ने सचमुच अभी तक शादी नहीं की?’’

‘‘मेरी झूठ बोलने की आदत नहीं है. मैं शादी करना ही नहीं चाहता था. मुझे मस्तमौला रहना पसंद है.’’ ‘‘अब कैसे रास्ते पर आ गए?’’

‘‘यह भी एक इत्तिफाक समझिए. लोगों ने मजबूर किया, तो सोचा कि देखूं किस तरह की औरतें मुझे पसंद करेंगी, इसलिए इश्तिहार दे दिया.’’ ‘‘क्या अभी भी शादी करने का कोई इरादा नहीं है?’’

‘‘ऐसा कुछ होता, तो यहां तक दौड़ लगाने की जरूरत नहीं थी. आप अपना परिचय देना चाहेंगी?’’ ‘‘मैं ने अपने मांबाप को कभी नहीं देखा. मैं अनाथालय में पलीबढ़ी हूं. एक शख्स ने खुश हो कर मुझे गोद ले लिया. मैं अनाथालय छोड़ कर उन के साथ रहने लगी. मुझे शादी करने के लिए मजबूर नहीं किया गया. वह मेरी पसंदनापसंद पर छोड़ दिया गया.

‘‘उस शख्स के कोई औलाद न थी. उस ने शादी नहीं की, लेकिन एक बेटी पालने का शौक था, इसलिए मुझे ले आया. मैं ने भी उसे एक बेटी की तरह पूरी मदद देते हुए खुश रखा. ‘‘मैं ने शादी का जिक्र किया, तो वह खुश भी हुआ और उदास भी. खुश इसलिए कि उसे कन्यादान करने का मौका मिलेगा, दुखी इसलिए कि सालों का साथ एक ही पल में छूट जाएगा.’’

‘‘तो क्या सोचा है आप ने?’’ ‘‘मैं इतना जानती हूं कि सात फेरे लेने के बाद पतिपत्नी का हर सुखदुख समझा जाता है. लंबी जिंदगी कैदी के पैर से बंधी हुई वह बेड़ी है, जिस का वजन बदन से ज्यादा होता है. बंधनों के बोझ से शरीर की मुक्ति ज्यादा बड़ा वरदान है. मैं आप को इतना प्यार दूंगी, जो कभी नहीं मिलेगा.’’

उन दोनों में काफी देर तक इधरउधर की बातें हुईं. उस ने इजाजत मांगी और चली गई. अगले दिन वह मनोज से फिर मिली. उस के चेहरे की ताजगी सुबह घास पर गिरी ओस की तरह लग रही थी. उस की नजरों में ऐसी शोखी थी,

जो उस के पढ़ेलिखे होने की सूचना दे रही थी. अंजलि को कोई काम था. उस ने जल्दी जाने की इजाजत मांगी. मनोज उसे जाते हुए देखता रहा, जब तक कि वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

शाम का धुंधलका गहराने लगा था. मनोज बोझिल पलकों और भारी कदमों से उठा और लौटने के लिए एयरपोर्ट की ओर चल दिया. जिंदगी में किसी न किसी से एक बार प्यार जरूर होता है, चाहे वह

लंबा चले या पलों में सिकुड़ जाए, लेकिन पहला प्यार एक ऐसा एहसास है, जिसे कभी भूला नहीं जा सकता. उस की यादें मन को तरोताजा जरूर बना देती हैं.

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