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Hindi Story : विरोधाभास – सबीर अहमद के चरित्र की क्या थी असलियत

Hindi Story : मुजफ्फरपुर आए 2-3 दिन हो चुके थे. अभी मैं दफ्तर के लोगों को जानने, समझने, स्थानीय राजनीति की समीक्षा करने में ही लगा हुआ था. मेरा विभाग गुटबंदी का शिकार था. यूनियन 3 खेमों में बंटी थी और हर खेमा अपनी प्रमुखता और दूसरे की लघुता प्रमाणित करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ता था. 3 गेंदों को एकसाथ हवा में उछालने वाला जादूगर बिस्मार्क मुझे रहरह कर याद आता था.

अचानक, ‘क्या मैं अंदर आ सकता हूं,’ का स्वर मेरे कानों में पड़ा. मैं काफी देर से फाइलों में उलझा हुआ था. इस स्वर में निहित विनम्रता तथा संगीतमय खनक ने मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लिया. मैं ने गरदन ऊपर उठाई और चेहरे पर थोड़ी सी मुसकान ला कर कहा, ‘‘हांहां, आइए.’’

‘‘नमस्कार, सर. आप कैसे हैं?’’ आगंतुक सबीर अहमद ने बुलबुल की तरह चहकते हुए कहा.

मैं ने हाथ के संकेत से उसे बैठने का इशारा कर दिया था. वह शायद संकेतों की भाषा में माहिर था. मुसकराते हुए मेरे सामने रखी कुरसियों में से एक पर बैठ गया.

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं, मि. अहमद?’’ मैं ने पूछा.

‘‘सर, पहली बात तो यह कि आप मुझे ‘मि. अहमद’ न कहें. यह बेहद औपचारिक लगता है. मेरी इल्तिजा है, मेरा अनुरोध है कि आप मुझे सबीर ही कहें. आप से हर मामले में छोटा हूं, उम्र में, नौकरी में, पद में, प्रतिष्ठा में…’’

‘‘बसबस, आगे कुछ मत कहिए, सबीर साहब. तारीफ जब सीमा लांघने लगती है तो उस में चापलूसी की बू आ जाती है, जो कहने और सुनने वाले, यानी दोनों के लिए नुकसानदेह होती है,’’ मैं ने प्यार से मुसकराते हुए कहा तो सबीर ने बड़ी अदा से सिर झुका कर आंखें बंद कर हथेलियों को माथे से सटाया.

मैं ने कहा, ‘‘और दूसरी बात क्या है?’’

‘‘सर, दूसरी बात यह है कि आप बड़े चिंतित लग रहे हैं, पर ऊपर से सामान्य दिख रहे हैं. कृपया इसे चापलूसी न समझें. अगर आप मुझे अपने छोटे भाई की जगह दें तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

पता नहीं क्यों, सबीर के स्वर में मुझे सचाई की झलक महसूस हुई और मैं ने घंटी बजा कर चपरासी को बुला कर कहा, ‘‘2 कौफी…’’

चपरासी के जाने के बाद मैं ने गहरी सांस ली. अंदर की सारी परेशानी मानो थोड़ी देर के लिए बाहर निकल गई.

‘‘मैं गुडि़या और डौली के दाखिले को ले कर बहुत परेशान हूं. महिला कालेज में कई बार जा चुका हूं, पर रिसैप्शनिस्ट हर बार एक ही जवाब देती है कि सीट नहीं है. बेचारी लड़कियां नाउम्मीद सी हो गई हैं,’’ मैं ने कहा.

‘‘सर, आप बेफिक्र रहें, समझ लें कि यह काम हो गया. मैं वाइस चांसलर को जानता हूं. उन से कह कर यह काम करा लूंगा. बस, इस नाचीज को 24 घंटे की मुहलत दे दें और दोनों बेटियों के कागजात भी मुझे दे दें,’’ उस ने इतमीनान से कहा.

‘‘शुक्रिया, दोस्त. अगर यह काम हो गया तो मैं चैन की सांस ले सकूंगा,’’ मैं ने कहा.

तभी कौफी आ गई और सबीर मुझे कौफी पर कई शेर सुनाता चला गया. उस की आवाज तो दिलकश थी ही, शेरों का चयन भी उम्दा था. मैं ने उस की खूब तारीफ की. थोड़ी देर बाद मुसकराता हुआ वह कागजात ले कर चला गया.

अगले दिन वह दोपहर के भोजन के समय मेरे घर पर आ गया. मुझे देखते ही बोला, ‘‘सर, दाखिला हो गया. यह रही रसीद और ये रहे बाकी पैसे.’’

डौली और गुडि़या, जो बेमन से खाना सजा रही थीं, यह बात सुनते ही उछल पड़ीं.

‘‘यह तुम्हारे सबीर चाचा हैं. इन्होंने ही इस काम को करवाया,’’ मैं ने बेटियों से कहा तो दोनों ने उन्हें धन्यवाद दिया. पत्नी ने अपनी खुशी का इजहार, ‘सबीर भाईसाहब, खाना खा कर ही जाइएगा,’ कह कर किया.

सबीर ने पहले तो इनकार किया, पर मां, बेटियां उस पर इतनी मेहरबान थीं कि बिना खिलाए जाने ही नहीं दिया.

2 दिनों बाद रविवार था. मैं बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था. अचानक सबीर को जीप से उतरते देखा. ‘यह तो मोटरसाइकिल सवार है, जीप से कैसे?’ मैं अभी सोच ही रहा था कि ड्राइवर ने पीछे से 2 गैस सिलिंडर उतारे और सबीर के निर्देश पर भीतर ले आया.

उसी समय मेरी पत्नी भी बाहर आ गई. गैस सिलिंडर देख कर वह बहुत प्रसन्न हुई. शायद मैं ने उसे बहुत कम मौकों पर इतना पुलकित देखा था. वह खिलखिलाती हुई बोली, ‘‘वाह, भाईसाहब, वाह, स्टोव से पीछा छुड़ाने का लाखलाख शुक्रिया.’’

सबीर नए दूल्हे की तरह शरमाता हुआ बोला, ‘‘इस में शुक्रिया काहे का, मालूम होता तो यह काम पहले ही हो जाता.’’

‘‘पर तुम्हें गैस के लिए किस ने और कब कहा?’’ मैं ने परेशान होते हुए पूछा.

‘‘मैं ने कहा था जब उस दिन आप स्नानघर में घुसे हुए थे. इन्होंने पूछा, ‘और कोई सेवा?’ और मैं ने अपना दुखड़ा सुना दिया,’’ जवाब पत्नी ने दिया

‘‘पर यह सब करनेकराने की क्या जरूरत थी, 2-4 माह स्टोव पर ही…’’ मैं ने पत्नी पर नाराजगी उतारते हुए कहा, ‘‘तुम यूनियन वालों को नहीं जानतीं, वे लोग हंगामा खड़ा कर देंगे कि क्षेत्रीय प्रबंधक स्टाफ को अपना घरेलू नौकर समझते हैं. बनीबनाई इज्जत धूल में मिल जाएगी.’’

‘‘सर, मैं ने आप से प्रार्थना की थी कि मुझे अपना छोटा भाई समझें. क्या भाभीजी का छोटामोटा काम आप के भाई नहीं करते? क्या घर वाले एकदूसरे पर एहसान करते हैं?’’ उस ने दुखी स्वर में कहा.

‘‘माफ करना, भई, मेरा इरादा तुम्हें दुख पहुंचाना नहीं था, पर…’’ कहतेकहते मैं रुक गया. मुझे शब्द ही नहीं मिल रहे थे.

‘‘परवर कुछ नहीं, सर, डीएम का पीए मेरा भाई है, उसी से कह कर महीनों का काम कुछ दिनों में करवा लिया, वरना गैस एजेंसी वाले तो ऐसा चक्कर डालते हैं कि कभीकभी 2 साल भी लग जाते हैं. मैं आखिर किस मर्ज की दवा हूं…’’

मेरा परिवार सबीर पर फिदा था. पत्नी तो उसे घर का सदस्य ही समझती थी. चंद दिनों में उस ने राशनकार्ड भी बनवा दिया. घर की हर जरूरत, हर समस्या वह ‘भाभीजी’ यानी मेरी श्रीमती की इच्छानुसार पूरी करवाता.

सबीर की निकटता ने मुझे यूनियन के झगड़ों से भी मुक्त कर दिया था. वह सभी गुटों का काम करता, करवाता. सब के बच्चों के दाखिले और शादीब्याह वगैरा में मदद करता. वह सब की आंखों का तारा, हरदिल अजीज सबीर भाई था.

वह औफिस के काम में भी बहुत चुस्त था. जो सूचना चाहिए, सबीर अहमद मिनटों में दे देता. औफिस के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तो वह जान ही था. अकसर मैं सोचता, ‘प्रकृति ने इस आदमी में एकसाथ इतने गुणों को भर दिया है कि सामने वाला न चाहते हुए भी खुद को इस पर निर्भर मानता है.’

वह मोतिहारी में क्षेत्राधिकारी था. मुजफ्फरपुर से मोतिहारी की दूरी 80-85 किलोमीटर है, पर उस के लिए यह सामान्य सी बात थी.

मैं अभी मोतिहारी गया भी नहीं था, सारे क्षेत्राधिकारी महीने में 1-2 बार मुख्यालय आते और आवश्यक जानकारी दे जाते.

एक दिन सबीर ने प्रार्थनापत्र देते हुए कहा, ‘‘सर, मैं ने मोतिहारी में किराए का मकान ले लिया है, गांव से पत्नी और बच्चों को ले आया हूं. सरकारी नियमों के अनुसार, मकान में दफ्तर रखने पर किराया मिल जाता है, आप निरीक्षण कर लेते और ओसीआर यानी औफिस कम रैजीडैंस प्रमाणपत्र दे देते तो मुझे प्रतिमाह 15 सौ रुपए मिल जाते.’’

‘‘ठीक है, पता मेरे ड्राइवर को बता दो. मैं अगले सप्ताह मोतिहारी कार्यालय का निरीक्षण करने आऊंगा तो यह कार्य भी कर दूंगा.’’

‘‘शुक्रिया, सर,’’ कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ. थोड़ी देर बाद उस की मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने की आवाज आई, जो धीरेधीरे दूर होती चली गई.

मैं ने पान की पीक थूकने के लिए खिड़की का परदा उठाया. आसमान पर हलकेहलके बादल तैर रहे थे, धूप की चमक फीकी हो रही थी, जो कि वर्षा आने का संकेत था. मौसम तेजी से बदल रहा था, जो कि स्वास्थ्य के लिए बुरा था.

मोतिहारी में सबीर का मकान ढूंढ़ना नहीं पड़ा. चांदमारी महल्ले के मोड़ पर ही सबीर मुझे पान की एक दुकान पर मिल गया. फिर अपने मकान पर ले गया. बाहर नेमप्लेट पर लिखा था, ‘सबीर अहमद, फील्ड औफिसर, इफको.’

वह मुझे बैठक में ले गया. कमरे को दफ्तर कहना ज्यादा श्रेष्ठ था. एक बड़ी सी मेज व 6 कुरसियां लगी थीं. मेज पर मेरे विभाग का कैलेंडर रखा था, डायरी थी, फाइलें थीं और कागज आदि थे. दीवार पर विभागीय मोनोग्राम लटका हुआ था. एक कोने में सोफासैट था, हम उस पर बैठ गए.

थोड़ी देर बाद 8-9 वर्ष की प्यारी सी गुडि़या कौफी ले कर आई. उस ने सलीके से ‘नमस्ते, अंकल,’ कहा और ट्रे मेज पर रख कर बाहर चली गई. सबीर ने हंस कर कहा, ‘‘बड़ी शरमीली बिटिया है.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, बड़ी प्यारी बिटिया है.’’

इस पर हम दोनों हंस पड़े.

सबीर फाइलें लाता रहा, मुझे दिखाता रहा और अपने बारे में भी बताता रहा. उस ने कहा कि एक कमरे में उस की गर्भवती बहन रह रही है, जो प्रसव के लिए आई है, दूसरे में उस का परिवार है. बैठक को औफिस बना लिया है. एक स्टोर, रसोई और भोजनकक्ष है.

कुछ देर बाद वह भीतर गया और जल्दी ही लौट कर बोला, ‘‘सर, खाना तैयार है, अम्मी बुला रही हैं.’’

निरीक्षण के दौरान उस के घर खाना खाना मेरे अुनसार गलत कार्य था. मैं ने मना कर दिया, मगर उस के पैने तर्कों के आगे मेरे सिद्धांत फीके लग रहे थे. वह मां की ममता का वास्ता दे रहा था, ‘‘अम्मी बहुत दुखी हो जाएंगी. वे कह रही हैं कि हम मुसलमान हैं, इसलिए हमारे घर का खाना…’’

अंत में मुझे भोजन के लिए उठना ही पड़ा. पता नहीं मन की किस भावना ने मुझे खाने से ज्यादा उस की भावना के प्रति नतमस्तक कर दिया. रसोई सामने थी. एक बूढ़ी, विधवा औरत वहां मौजूद थी. मैं ने ‘प्रणाम, माताजी,’ कहा तो उन्होंने ‘जीते रहो, भैया,’ कह कर ममता का सागर उड़ेल दिया. खाना शाकाहारी व बेहद स्वादिष्ठ था. 2 स्त्रियां दूसरे कमरे में दिखीं, मगर मैं ने सोचा ‘परदे की वजह से शायद वे सामने नहीं आईं.’

चलते समय वह बच्ची फिर आई और ‘नमस्ते, अंकलजी, फिर कभी आएइगा,’ कह कर अपने नन्हे हाथों से बायबाय कर गई.

मैं संतुष्ट था, उस का मकान वास्तव में 15 सौ रुपए के लायक था, उस में दफ्तर मौजूद था ही, परिवार भी रहता था. मैं ने तुरंत ही ओसीआर रिपोर्ट पटना भेज दी. कुछ दिनों बाद उस की स्वीकृति भी आ गई और सबीर को हर माह 15 सौ रुपए मिलने लगे.

लगभग 4-5 महीने बाद मेरे बड़े भाई की लड़की की शादी मोतिहारी में होनी तय हुई. लड़का तो दिल्ली में नौकरी करता था. पर उस के मातापिता मोतिहारी में ही रहते थे. भैया को केवल उन का नाम और चांदमारी महल्ला ही पता था. अचानक बादलों में जैसे बिजली कौंध गई, सबीर का खयाल आते ही मैं स्फूर्ति से भर उठा.

ड्राइवर ने मोतिहारी में सबीर के मकान के आगे गाड़ी रोकी. मैं अभी गाड़ी से उतर भी नहीं पाया था कि सबीर की नन्ही सी प्यारी सी, बिटिया ने ‘नमस्ते, अंकल,’ कहा.

मैं ने बिस्कुट का पैकेट बच्ची को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘बेटा, पापा घर पर हैं?’’

‘‘जी हां.’’ थोड़ी देर में एक सज्जन अंदर से आए. लंबा कद और आंखों पर चश्मा. मैं ने पूछा, ‘‘सबीर घर पर हैं क्या?’’

वे हैरानी से बोेले, ‘‘कौन सबीर?’’

मैं ने प्रत्युत्तर में पूरी दास्तान सुनाते हुए कहा, ‘‘आप सबीर को नहीं जानते?’’

‘‘अच्छाअच्छा, सबीर साहब, देखिए, उस दिन एक रोज के लिए यह घर उन्होंने एक हजार रुपए किराए पर लिया था. मेरी ‘नेमप्लेट’ उतारी गई और उन की पहचान टांगी गई और नौकरानी ने मां बन कर खाना खिलाया. मेरी बेटी ने उन की बेटी की भूमिका निभाई. बस, खेल खत्म पैसा हजम.’’

मैं ने वितृष्णा से कहा, ‘‘शर्म आनी चाहिए.’’

वे छूटते ही बोले, ‘‘किसे? मुझे या सबीर साहब को? अरे साहब, यह सब इस बिहार में दाल में नमक के बराबर भी नहीं, समुद्र में एक चम्मच चीनी मिलाने जैसा है. यहां आएदिन घोटाले हो रहे हैं, मंत्री अरबों लूट रहे हैं तो सरकारी कर्मचारी हरिश्चंद्र क्यों बने रहें?’’

मैं वापस चल पड़ा. नुक्कड़ पर पान वाले से आ कर पता पूछा. आज उस से अंतिम फैसला करना है. मैं गुस्से से उबल रहा था. मेरा विश्वास, मेरी ईमानदारी को सबीर ने दांव पर लगा दिया था.

पान वाले ने उस का नाम सुनते ही कहा, ‘‘हां साहब, जानते हैं हम. उन्हें हम ही क्या, इस शहर का हर पान वाला एक उम्दा इंसान समझता है. बड़े रईस आदमी हैं, मोतिहारी के चांदमारी में भी एक मकान है, चकिया में स्वयं रहते हैं. पीपराकोड़ी में उन का विशाल फार्महाउस है, वहां मेरा भाई दरबान है, हुजूर.’’

‘स्वयं चकिया में, फार्महाउस पीपराकोठी में और पता चांदमारी का. वाह रे सबीर, क्या गुल खिलाया है तुम ने,’ मैं ने मन ही मन भन्नाते हुए कहा. मूड खराब हो चुका था. सो, लौट जाने का निर्णय किया.

अचानक मैं ने ड्राइवर से पीपराकोठी फार्महाउस चलने को कहा. ज्यादा परेशानी नहीं हुई. मुख्य सड़क से 14-15 किलोमीटर अंदर झखराग्राम में उस का फार्महाउस मिल गया. दरबान को उस के भाई का हवाला दिया तो उस ने विशाल फाटक खोल दिया. अंदर किले सा दृश्य था. चमचमाती सड़क और सुंदर सा गैस्टहाउस. गैस्टहाउस के पीछे एक विशाल गोदाम और वहां खड़े दर्जनों ट्रक. मैं ने वहां खड़े एक व्यक्ति से कहा, ‘‘मैं सीबीआई इंस्पैक्टर राणा हूं.’’

फार्महाउस में इफको खाद में नदी की बारीक रेत मिलामिला कर 1 टन खाद को 3 टन बनाया जा रहा था और करोड़ों रुपए गैरमामूली तौर पर कमाए जा रहे थे. पूछताछ से ज्ञात हुआ कि इस काले व्यापार में मंत्री महोदय भी बराबर के हिस्सेदार हैं. मैं सबीर के चरित्र के इस विरोधाभास पर हतप्रभ था.

Love Story : प्यार था या कुछ और – क्यों शंकर और प्रमिला की नौकरी छूट गई?

Love Story : प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.
प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.
लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोङा था.

Religion : स्टूडैंट्स पर गिद्ध दृष्टि

Religion : ऋषिकेश में एक स्कूल के प्रबंधकों द्वारा कुछ माह पहले लड़कियों को तिलक लगा कर स्कूल आने पर प्रतिबंध लगाए जाने पर कट्टरपंथी, अनुमान के अनुसार, हल्ला मचा रहे हैं. ये वही कट्टरपंथी हैं जो मुसलिम लड़कियों के हिजाब पहन कर स्कूल आने पर प्रतिबंध की मांग करते हुए अपने दोगलेपन पर कतई शर्मिंदा नहीं होते. तिलक, क्रौस, हिजाब, सिर पर चुन्नी, स्कल कैप असल में स्कूलों में ही नहीं, हर पब्लिक प्लेस में फ्रांस की तरह बैन होनी चाहिए. धर्म ने अपने भक्तों से सदियों से कहा है कि अपनी पहचान न केवल बना कर रखो, उसे पब्लिक में जाहिर भी करो. ऐसा इसलिए कि उन पर हमले हों और वे फिर उसी धर्म की शरण में आएं जिस ने ऐसे विभाजनकारी आदेश जारी किए थे. समाज में बंटवारों से धर्म को बड़ा लाभ होता है क्योंकि मार खाए भक्त या मरने वाले दूसरे धर्म के भक्त दोनों पिटने या पीटने के बाद धर्म की दुकान में शरण के लिए अवश्य जाते हैं. अपना धर्म अपनी जेब में रहना चाहिए. अगर अंधविश्वासी ही हैं तो उस का सार्वजनिक प्रदर्शन तो न करें.

धर्म एक मानसिक बीमारी है जिस के वायरस को मंदिर, मसजिद, चर्च, गुरुद्वारे रातदिन अपने भक्तों में फैलाते हैं और फिर इलाज के लिए कोई प्रवचन के लिए बुलाता है, कोई अरदास के लिए तो कोई दुआ पढ़ने के लिए. एक बात सब में सामान्य है कि सब अपने गढ़े सर्वशक्तिमान चमत्कारी भगवान के इकलौते एजेंट होने के बावजूद भक्तों से पैसा भी देने को कहते हैं और शरीर से कुकर्म करने को भी कहते हैं. यह ब्रेन वाशिंग बचपन से ही चालू हो जाती है क्योंकि धर्म के दुकानदार अच्छी तरह समझते हैं कि वयस्क होने के बाद लोगों को बहकाना आसान नहीं है. भारत में 800 साल मुसलमानों का राज रहा पर अविभाजित भारत में आज भी 12 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं क्योंकि जो बचपन से हिंदू धर्म के रस में डूबा रहा उसे बदलना आसान नहीं था. स्कूलों को हर धर्म अपनी पहली ट्रेनिंग यूनिट मानता है. इसीलिए हर धर्म ने धड़ाधड़ स्कूल अपनी धार्मिक दुकान के साथ खोले हैं.

हर धर्मस्थल के आसपास एक स्कूल दिख जाएगा जहां अगली पीढ़ी के पुजारी भी तैयार होते हैं और मरनेमारने के लिए सैनिक व भक्त भी. स्कूलों का पहला उद्देश्य धर्म की सेवा करना होता है, ज्ञान व हुनर पा कर जीवन को सुखद बनाना नहीं. यह तो पिछले 300 सालों में कुछ बिगडै़ल विचारकों की देन है कि उन्होंने विज्ञान, तकनीक, विचारों की विभिन्नता, फिलौसफी, इतिहास, चिकित्सा के क्षेत्रों की पढ़ाई शुरू की. अब धर्म के दुकानदार फिर लग गए हैं कि स्कूलों में ही खुली हवा को बंद कर दिया जाए. वे इस में सफल हो भी रहे हैं.

Congress : शासन, समाज और सत्ताधारी

Congress : क्या कांग्रेस मुक्त भारत का भारतीय जनता पार्टी का सपना पूरा हो सकता है? संभव नहीं है लेकिन ‘एक देश एक चुनाव’ के सहारे भाजपा लंबी योजना पर काम जरूर कर रही है. कांग्रेस और भाजपा में यह खास फर्क है कि कांग्रेसी आज की समस्याओं को दूर करने की सोचते हैं जबकि भाजपाई आज समस्याएं पैदा करते हैं ताकि उस के दलदल में 10-15 साल बाद कमल के फूल खिलें.कांग्रेस ने इंडिया ब्लौक बना कर भारतीय जनता पार्टी को मई-जून 2024 के चुनावों में धीमा तो कर दिया पर बाद में हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव जीत कर भाजपा ने न केवल अपनी खोई जमीन कुछ पा ली, बल्कि उस ने इंडिया गठबंधन को तोड़ भी डाला है.कांग्रेस आज फिर अकेली रह गई है? क्या यह अकेला चना दांत तोड़ सकेगा? क्या भाजपा ऐसी पार्टी है जिसे कंट्रोल में रखना जरूरी है? क्या कांग्रेस भाजपा से किसी भी तरह से बेहतर है? इस तरह के सवालों से मतदाता अगले साल के कुछ विधानसभाओं के चुनावों में रूबरू होंगे.यह सच है कि चुनाव से नेता बदलते हैं, प्रशासन नहीं. सभी पार्टियों की शासन व्यवस्था अब लगभग एक जैसी है. सभी पार्टियां अमीरों को संरक्षण देती हैं, गरीबों को लूटती हैं. सभी पार्टियों का कर ढांचा एक सा है. सभी पार्टियों की पुलिस एक सी ब्लडी है. सभी पार्टियां वादे करती हैं, ऐसे वादे भी जो पूरे नहीं किए जा सकते.फिर कांग्रेस की सरकार या कांग्रेस मुक्त सरकार का फर्क क्या है? फर्क यह है कि कौन सी पार्टी सिर्फ शासन चलाने के लिए आती है और कौन सी शासन के साथ समाज को भी चलाने को आती है.

आज अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार शासन के साथ समाज चलाने को तैयार बैठी है. वह गोरों का राज वापस लाना चाहती. ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे का असली मतलब ‘मेक अमेरिका व्हाइट ग्रेट अगेन’ है. वह कालों, ब्राउन, पीलों, मुसलिमों, हिंदुओं को रहने तो देना चाहती है लेकिन दूसरी श्रेणी के लोगों की तरह. वहां अब एक पैरेलल सरकार, जो ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का संक्षिप्त नाम है ‘मागा’ बन कर खड़ी हो गई है.ठीक उसी तरह भारत में हिंदुत्ववादी भगवा गमछाधारियों की फौज खड़ी है जो भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर चल रही है या भारतीय जनता पार्टी को अपने इशारों पर चला रही है. कांग्रेस और अन्य दल इन के रास्ते में अड़चन हैं. जो पार्टियां भाजपा के साथ हैं उन्हें एहसास है कि उन्हें ये भगवाधारी किसी भी दिन हड़प सकते हैं.जो अमेरिका और भारत में हो रहा है, वह अब बंगलादेश में भी हो रहा है.

ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान में हो चुका है. कट्टरवादियों की भीड़ का शासन एक नई पद्धति है जो कम्युनिस्टों और नाजियों से प्रेरित है. यह अब दुनिया के बहुत से देशों में पनप रही है. अमेरिका की डैमोक्रेटिक पार्टी, यूरोपीय देशों की सत्ताधारी पार्टियां आज भयभीत हैं.ये सब कट्टरवादी पार्टियां वर्षों की प्लानिंग के बाद निकली हैं. पहले कुछ विचारकों ने बीज बोए, फिर दूसरी पीढ़ी ने छोटे पेड़ों को सींचा, अब तीसरी पीढ़ी के आने पर जहरीले फल देने वाले ये कांटेदार पेड़ सारी जगह फैल रहे हैं. कुछ देशों में इन पर कंट्रोल किया जा रहा है पर इन के फूल इतने आकर्षक हैं कि लोग इन की ओर आकर्षित होते हैं और फिर मदमस्त हो जाते हैं.कांग्रेस मुक्त नारा इसीलिए गढ़ा गया था कि इन की सोच को समाप्त कर दो हिटलर के यहूदियों के बारे में फाइनल सौल्यूशन के कदम की तरह. इस का अंत क्या होगा, इस की चिंता इन कट्टरधारियों के सिरमौर को नहीं होती.

भारत में इसी कट्टर सोच के कारण 2000 साल शकों, हूणों, मुगलों, अफगानों, अंगरेजों, फ्रांसीसियों ने राज किया. कट्टरों को इस की चिंता नहीं क्योंकि समाज पर उन का नियंत्रण लगातार बना रहा.अब ये सरकार और परिवार दोनों पर नियंत्रण चाहते हैं. जनता को इस योजना की समझ आएगी, यह मुश्किल है क्योंकि संवाद के माध्यमों पर इन कट्टरपंथियों का हर देश में पूरा कब्जा है. भारत समेत इन सब देशों की पीडि़त जनता इसे अपना प्रारब्ध मान कर सहन करेगी, चुपचाप.

Romantic Story : फोम का गद्दा – शौकीन मिजाज वाणी को आखिर कैसा पति मिला

Romantic Story : वाणी बहुत उत्साहित थी. विवाह के 2 महीने बाद ही उस का यह पहला जन्मदिन था. अनुज से प्रेमविवाह के बाद वह जीवन में हर तरह से सुखी व संतुष्ट थी जबकि वाणी उत्तर भारतीय ब्राह्मण परिवार से थी जबकि अनुज मारवाड़ी परिवार से था. दोनों एक कौमन फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में मिले थे. सालभर की दोस्ती के बाद दोनों परिवारों की सहर्ष सहमति के बाद दोनों 2 महीने पहले ही विवाहबंधन में बंध गए थे. अनुज मुंबई में विवाह से पहले फ्रैंड्स के साथ फ्लैट शेयर करता था. विवाह के बाद अब मुलुंड में उस ने फ्लैट ले लिया था.

आज वाणी अपने बर्थडे के बारे में ही सोच रही थी कि अच्छा है, परसों बर्थडे का दिन इतवार है, पूरा दिन खूब ऐंजौय करेंगे. उसे विवाह से पहले का अपना पिछला बर्थडे भी याद आ गया. पिछले बर्थडे पर जब वाणी ने अनुज को डिनर करवाया तो वह मन ही मन अच्छे गिफ्ट की उम्मीद कर रही थी. आखिरकार अनुज की नईनई गर्लफ्रैंड थी. पर अनुज ने जब उसे जेब से एक फूल निकाल कर दिया तो उस का मन बुझ गया था. मन में आया था, कंजूस, मारवाड़ी.

वाणी का उतरा चेहरा देख अनुज ने पूछा था, ‘क्या हुआ? तुम्हें फूल पसंद नहीं है?’ वाणी ने मन में कुछ नहीं रखा था, साफसाफ बोली थी, ‘बस, फूल. मुझे लग रहा था तुम मेरे लिए कुछ स्पैशल लाओगे, हमारी नईनई दोस्ती है.’

‘अरे, तभी तो. अभी दोस्ती ही तो है. मैं ने सोचा अभी तुम्हारे लिए कुछ स्पैशल ले लूं और थोड़े दिनों बाद किसी भी कारण से यह दोस्ती न रहे, तो?’

वाणी चौंकी थी, ‘मतलब तुम्हारा गिफ्ट बेकार चला जाएगा, फिर?’

‘हां, भई, मारवाड़ी हूं. ऐसे ही फ्यूचर पक्का हुए बिना गिफ्ट में पैसे थोड़े ही लुटाऊंगा. मैं ने तो आज तक किसी लड़की को गिफ्ट नहीं दिया.’

‘ओह, मेरा मारवाड़ी बौयफ्रैंड, दिल का कितना साफ है,’ उस समय तो यही सोचा था वाणी ने और आज वह उस की पत्नी है. अब देखना है क्या गिफ्ट देगा वह बर्थडे पर. वाणी को इतवार का इंतजार था.

इतवार की सुबह वाणी को बांहों में भर किस करते हुए अनुज ने उसे बर्थडे विश किया. वाणी बहुत अच्छे मूड में थी. वह अनुज की बांहों में सिमटती हुई बोली, ‘‘अनुज, मैं बहुत खुश हूं, विवाह के बाद मेरा पहला बर्थडे है.’’

‘‘हां, डियर, मैं भी बहुत खुश हूं. रुको, तुम्हारा गिफ्ट लाया,’’ अनुज अलमारी की तरफ बढ़ते हुए बोला, ‘‘आंखें बंद रखना, जब कहूंगा तभी खोलना.’’

आंखें बंद कर मन ही मन वाणी कल्पनाओं में खो गई. काश, डायमंड रिंग हो, गोल्ड चेन, स्टाइलिश ब्रेसलैट, कोई मौडर्न ड्रैस या लेटैस्ट घड़ी या मोबाइल? यही सब अपनी पसंद तो है, वह अनुज को बताती रहती है. मन ही मन खूबसूरत कल्पनाओं में डूबी वाणी को हाथ पर किसी पेपर का एहसास हुआ. अनुज ने कहा, ‘‘खोलो आंखें, तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट.’’

वाणी जैसे आसमान से जमीन पर गिरी. एक पेपर उलटापुलटा देखा. अनुज ने गर्वित स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारे नाम से एफडी करवा दी है, डार्लिंग. यही गिफ्ट है तुम्हारा.’’

वाणी के तनबदन में आग लग गई, ‘‘यह मेरा बर्थडे गिफ्ट है, रियली?’’

‘‘हां, डार्लिंग, पर मेरा रिटर्न गिफ्ट?’’ कहता हुआ शरारत से अनुज मुसकराया, तो वाणी ने कहा, ‘‘अभी नहीं, पर सच में यही गिफ्ट है मेरा?’’

‘‘हां, चलो, अब तैयार हो जाओ, नाश्ता बाहर ही करेंगे, मूवी देख कर लौटेंगे,’’ कहता हुआ अनुज एक बार और वाणी के गाल पर किस करता हुआ फ्रैश होने चला गया.

गुस्से के मारे वाणी के आंसू बह चले. पेपर फेंक दिया. बाथरूम में शावर की बौछार में आंसू बहते रहे, इतना कंजूस. क्या करूंगी इस के साथ. मुझे तो हर चीज का शौक है. अब लाइफ कैसे ऐंजौय करूंगी. यह तो एफडी और शेयर के अलावा कुछ सोच ही नहीं सकता. सिर्फ इस के प्यार में कब तक हर खुशी ढूंढ़ती रहूंगी. अरे, कौन पति बर्थडे गिफ्ट में एफडी पकड़ाता है. पर हां, उस के बर्थडे पर खुश तो हो रहा है. पर ऐसे तो नहीं चलेगा न. प्यार तो बहुत करता है और गिफ्ट की बात पर गुस्सा दिखाऊंगी तो लालची, छोटी सोच की लगूंगी, नहीं. इस मारवाड़ी लोहे को सिर्फ प्यार से ही फोम का गद्दा बनाना पड़ेगा. शावर की बौछार से रोतेरोते हंस पड़ी वाणी. थोड़ी देर पहले की सारी चिढ़, गुस्सा हवा हो चुका था.

वह स्वभाव से बहुत शांत और खुशमिजाज थी. मन ही मन बहुत कुछ सोच चुकी थी. गिफ्ट जैसी चीज पर थोड़ी ही मन में कटुता रखेगी. पर हां, इस का इलाज उस ने सोच लिया था, इसलिए अब वह खुश थी.

दोनों ने बाहर जा कर रैस्टोरैंट में साउथ इंडियन नाश्ता किया. वाणी को यहां आना अच्छा लगता था. अनुज को याद था, यह देख कर वाणी खुश हुई. वाणी के मायके और ससुराल से सब ने बर्थडे विश किया था. सब के गिफ्ट के बारे में पूछने पर उस का दिल बुझ गया था. पर्सनल कह कर बात हंसी में टाल दी थी. फिर दोनों ने मूवी देखी. थोड़ा घूमफिर कर दोनों वापस आ गए.

दिन बहुत अच्छा रहा था, पर कोई भी गिफ्ट न पाने की कसक थी वाणी के मन में. फिर समय के साथसाथ वाणी ने स्पष्टतया महसूस कर लिया था कि अनुज के प्यार में कमी नहीं है, पर जहां पैसे की बात आती है, वह बहुत सोचता है. एक भी पैसा कहीं फालतू खर्च हो जाता तो सारा दिन कलपता और कहीं दो पैसे बच जाते तो बच्चों की तरह खुश हो जाता है.

उस की हर बात में नफानुकसान की बात होती. कई बार वाणी मन ही मन बुरी तरह चिढ़ जाती, पर वह अपने बर्थडे पर सोच ही चुकी थी कि कैसे अनुज के साथ घरगृहस्थी चलानी है कि झगड़े भी न हों और उस का मन भी दुखी न हो.

अपने बर्थडे के दिन से ही उस के मन में एक डायमंड रिंग लेने की इच्छा थी. आसपास की नई बनी सहेलियों से अंदाजा ले कर पास ही स्थित मौल के एक ज्वैलरी शोरूम में गई और एक नाजुक सी, सुंदर रिंग खरीद कर खुद ही खुश हो गई. उस के पास क्रैडिट कार्ड था ही.

क्रैडिट कार्ड का मैसेज सीधा अनुज के पास पहुंचा तो कार्ड पर्स में डालने से पहले ही अनुज का फोन आ गया, ‘अरे, क्या खरीदा?’ वह इस बात से बहुत चिढ़ती थी कि अनुज ने सब जगह अपना ही नंबर दिया हुआ था. वह जब भी कहीं शौपिंग करती, पेमैंट करते ही अनुज का फोन आ जाता कि क्या ले लिया? अब भी अनुज ने पूछा, ‘‘अरे, ज्वैलरी शौप पर क्या कर रही हो?’’

‘‘वही डियर, जो सब करते हैं.’’

‘‘अरे, जल्दी बताओ, क्या ले लिया?’’

‘‘डायमंड रिंग.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘घर आओ तो बताऊंगी.’’

शाम को अनुज ने घर में घुसते ही पहला सवाल किया, ‘‘अरे, रिंग कैसे खरीद ली? मुझे बताया भी नहीं?’’

‘‘सांस तो ले लो, डियर, खरीदनी तो बर्थडे पर ही थी पर तुम ने एफडी ले ली,’’ अनुज के गले में बांहें डाल दी वाणी ने, ‘‘सब सहेलियां बारबार पूछ रही थीं कि क्या लिया, क्या लिया, तुम्हारी इज्जत भी तो रखनी थी.’’

वाणी की नईनई सहेलियों या किसी और परिचित के सामने अपनी अच्छी इमेज बनाने का बहुत शौक था अनुज को. उस की कोई तारीफ करता था तो वह और उत्साहित हो जाता था. यह जानती थी वाणी, इसलिए उस ने दांव आजमाया था. ठंडा पड़ गया अनुज, ‘‘हां, ठीक है ले ली. अच्छा, अब दिखाओ तो.’’ उंगली में पहनी हुई अंगूठी सामने दिखाती हुई वाणी का चमकता चेहरा देख अनुज भी मुसकरा कर बोला, ‘‘बहुत सुंदर है.’’

वाणी हंसी, ‘‘यह भी अच्छा इन्वैस्टमैंट है, डियर, खुशी का, प्यार का.’’ अनुज भी हंस पड़ा तो वाणी ने चैन की सांस ली.

वाणी को अनुज से कोई और शिकायत नहीं थी सिवा इस के कि रुपएपैसे के मामले में वह बड़ा हिसाबकिताब रखता था. अब वाणी को भी अच्छी तरह से समझ आ गया था कि ऐसे जीवनसाथी के साथ कैसे खुश रहना है. वह कई तरीके आजमाती, सब में लगभग सफल ही रहती. अनुज को प्यारभरे पलों में अपने दिल की बातें भी कहती रहती, ‘‘अनुज, मुझे वह चीज अच्छी लगती है जो मुझे आज खुशी देती है. 50 साल बाद मुझे कोई बचत खुशी देगी, उस इंतजार में मैं अपनी यह उम्र, ये शौक, ये खुशियों के दिन तो खराब नहीं करूंगी न.’’

वाणी अब यह उम्मीद नहीं करती थी कि अनुज सरप्राइज में उसे कोई गिफ्ट या कुछ भी और ला देगा. उस जैसे कंजूस पति के साथ कैसे निभाना है, यह वह जान ही चुकी थी.

एक बार दोनों में अकारण ही बहस हो गई. अनुज गुस्से में जोरजोर से बोलने लगा, वाणी को भी गुस्सा आया था पर वह चिल्लाई नहीं. गुस्से में चुपचाप बैठी रही. अनुज गुस्से में ही औफिस का बैग उठा कर निकलने लगा तो वाणी ने संयत स्वर में कहा, ‘‘घर की दूसरी चाबी ले कर जाना.’’

चलता हुआ ठिठक गया अनुज, गुर्राया, ‘‘क्यों?’’

‘‘मुझे बाहर जाना है.’’

‘‘कहां?’’

‘‘मैं ने सोच लिया है जबजब तुम बेवजह, गुस्सा कर ऐसे जाओगे उसी दिन जी भर कर शौपिंग कर के आऊंगी. अपना मूड मैं शौपिंग कर के ठीक करूंगी.’’ अनुज के गुस्से की तो सारी हवा निकल गई. बैग टेबल पर रखा और वाणी के कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया, मुसकरा दिया, ‘‘ठीक है, अच्छा, सौरी.’’

वाणी भी जोर से हंस पड़ी. मन में सोचा, चलो, यह पैंतरा भी काम आया. मतलब अब हमारा झगड़ा कभी नहीं होगा. वह बोली, ‘‘सचमुच, जब भी तुम गुस्सा होंगे, मैं शौपिंग पर चली जाऊंगी.’’

‘‘ऐसा जुल्म मत करना, मेरी जान, खर्च करने में बंदा बहुत कमजोर दिल का है, जानती हो न.’’

‘‘जानती हूं, तभी तो कहा है.’’ उस के बाद हंसतेमुसकराते अनुज औफिस चल दिया. वाणी अकेले में भी बहुत हंसी, यह तो अच्छा इलाज है इस का. पैसे खर्च करने के नाम से तो इस का सारा गुस्सा हवा हो जाता है.

एक दिन फिर बातोंबातों में वाणी ने कहा, ‘‘अनुज, पता है पत्नियों के रहनसहन, उन की लाइफस्टाइल से उन के पतियों का स्टैंडर्ड पता चलता है?’’

‘‘हां, यह तो है.’’

‘‘इसलिए मैं अच्छा पहनती, खातीपीती हूं, मेरे पति का इतना अच्छा काम है, मैं क्यों मन मार कर रहूं. मैं अच्छी तरह रहूंगी तो आसपास पड़ोसियों और मेरी सहेलियों को भी तुम्हारे पद, आय का अंदाजा मिलेगा. वैसे, मुझे दिखावा पसंद नहीं है, फिर भी तुम्हारी इज्जत रखना, तुम्हारी तारीफ सुनना अच्छा लगता है मुझे,’’ कहतेकहते वाणी अनुज की प्रेममयी बातें, उस का खुशमिजाज स्वभाव, पूरी तरह से अनुज प्रभावित था वाणी से. वाणी के स्वभाव की सरलता उसे अच्छी लगती.

वाणी भी खुश थी पर अनुज को बदलना भी इतना आसान नहीं था. उसे अपने ऊपर बहुत संयम रखना पड़ता. एक शर्ट लेने के लिए भी, एक जगह पसंद आने पर भी अनुज कई ब्रैंडेड शोरूम में भटकता कि सेल, डिस्काउंट कहां ज्यादा है. मौल में उस के पीछे इधरउधर भटकती हुई वाणी चिढ़ जाती, पर चुप रहती. उस की एक शर्ट की शौपिंग में भी वह थकहार जाती. वह अनुज के साथ होने पर अपनी शौपिंग बहुत ही कम करती. बाद में अकेली या किसी फ्रैंड के साथ आती. जो मन होता, खरीदती और अनुज की कंजूसी से भरे सवालों के जवाब प्यारभरी होशियारी से बखूबी देती.

अनुज कुछ कह न पाता. अनुज का बर्थडे आया, तो अपने जोड़े हुए पैसों से वह अनुज के लिए एक शर्ट और परफ्यूम ले आई. अनुज को परफ्यूम्स बहुत पसंद थे. पर अच्छे परफ्यूम्स बहुत महंगे होते हैं, इसलिए अपने लिए खरीदता ही नहीं था. कभी एक लिया था तो उसे भी बहुत कंजूसी से खास मौके पर ही लगाता था. वाणी को इस बात पर बहुत हंसी आती थी.

एक बार अनुज को चिढ़ाया भी था, ‘अपने इस परफ्यूम को बैंक के लौकर में क्यों नहीं रखते?’ अनुज इस मजाक पर बहुत हंसा था. अनुज वाणी के लिए गिफ्ट्स देख कर बहुत खुश हुआ. वाणी को अच्छे डिनर के लिए ले गया.

नया विवाह, रोमांस, उत्साह, प्यारभरी तकरार का एक साल हुआ तो मैरिज एनिवर्सिरी का पहला सैलिबे्रशन भी वाणी ने खूब उत्साह से प्लान किया. अब वह कुछ चीजों में अनुज से सलाह भी नहीं लेती थी. अपने लिए एक सुंदर साड़ी और अनुज के लिए एक घड़ी ले कर आई जिसे देख कर वह बहुत खुश हुआ. कीमत सुन कर मुंह तो उतरा क्योंकि सरप्राइज के लिए वाणी कार्ड का इस्तेमाल नहीं करती थी, नकद दे कर खरीदती थी. इसलिए अनुज को पहले से कोई अंदाजा नहीं हो पाता था, पर औफिस से आते ही वाणी को बांहों में भर लिया, ‘‘वाणी, पता है सब को घड़ी इतनी पसंद आई कि पूछो मत.’’

वाणी मुसकराई, ‘‘गिफ्ट्स अच्छे लगते हैं न, डियर?’’

‘‘हां,’’ कहता हुआ अनुज हंस दिया.

फिर आया विवाह के बाद वाणी का दूसरा बर्थडे. इस बार कोई उम्मीद, कल्पना नहीं थी वाणी के मन में, हमेशा की तरह उस ने सोच रखा था कि वह खुद ही कुछ ले लेगी अपने लिए. इस बार भी उसे सैल्फ सर्विस करनी पड़ेगी. वह मन ही मन इस बात पर हंसती रहती थी कि कंजूस पति के साथ उसे ‘सैल्फ सर्विस’ ही करनी पड़ती है. बर्थडे वाले दिन वाणी सुबह सो कर उठी तो अनुज ने उसे विश किया. फिर आंखें बंद करने के लिए कहा. वाणी ने इस बार फिर आंखें बंद कीं. इस बार कल्पना में एफडी, शेयर मार्केट का इन्वैस्टमैंट या कोई हैल्थ पौलिसी या कोई इंश्योरैंस लगता है.

‘‘अब आंखें खोलो,’’ अनुज के कहने पर वाणी ने आंखें खोली तो उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ, सामने बैड पर एक खूबसूरत साड़ी और एक ब्रेसलैट रखा था. वह ‘थैंक्यू, यह तुम ही हो न,’ कह कर हंसती हुई अनुज से लिपट गई, उसे जोर से बांहों में भर लिया.

‘‘चलो, अब मेरा रिटर्न गिफ्ट?’’ शरारत से अनुज ने उसे देखा तो उस की बातों का मतलब समझती हुई वाणी का चेहरा गुलाबी हो गया. वह उस के सीने में छिपती चली गई. वह हैरान थी. मारवाड़ी लोहा प्यार से एक साल में ही फोम का गद्दा जो बन चुका था.

Hindi Story Telling : मातहत – क्या नेहा को मिल पाया रमेश से छुटकारा

Hindi Story Telling : मां की खराब सेहत ने नेहा को अत्यधिक चिंता में डाल दिया. डाक्टर ने आवश्यक परीक्षण के लिए शाम को बुलाया था. छोटी बहन कनिका को आज ही दिल्ली लौटना था. वे साशा के साथ बैठ कर सभी आवश्यक कार्यक्रमों की रूपरेखा तय कर रही थीं.

तभी रमेश का फोन आया, ‘‘मैडम, मैं आप की गाड़ी सागर ले जाऊं? आप तो अभी यहीं हैं.’’

‘‘हां, मैं यहीं हूं. लेकिन मेरी मां बहुत बीमार हैं. गाड़ी तुम्हें कैसे दे सकती हूं? मुझे जरूरत है,’’ नेहा बोली.

‘‘लेकिन मुझे दोस्त की शादी में सागर जाना है. बताया तो था आप को.’’

‘‘बताया था, लेकिन मैं ने गाड़ी सागर ले जाने की अनुमति तो नहीं दी थी… यह कहा था कि यदि मुझे ज्यादा दिन रुकना पड़ा तो तुम गाड़ी वापस बालाघाट ले जाना. बहरहाल मैं अधिक दिन नहीं रुक रही हूं.’’

‘‘लेकिन मैं ने आप के कारण सागर के टिकट कैंसिल करा दिए. अब क्या करूं?’’

‘‘रमेश मैं ने साफ कहा था कि मां के पास ज्यादा दिन रुकने की स्थिति में गाड़ी वापस भेज दूंगी. लेकिन गाड़ी सागर ले जाने की बात तो नहीं हुई थी… वैसे भी उधर की सड़क कितनी खराब है, तुम्हें मालूम है… मैं गाड़ी नहीं दे सकती. मां को चैकअप के लिए ले जाने के अलावा और बीसियों काम हैं,’’ नेहा का मूड बिगड़ गया.

नेहा को दफ्तर में ही मां की बीमारी की सूचना मिली थी और वे बलराज से बात कर ही रही थीं कि रमेश ने सुन लिया और झट से बोल पड़ा, ‘‘मैडम, मैं आप को छुट्टी की दरख्वास्त देने आया था. सागर जाना है दोस्त की शादी में. अब आप कार से भोपाल जा रही हैं तो मैं भी साथ चलूं? अकेला ही हूं. बीवीबच्चे अंकल के घर में ही हैं अभी… उन्हें वापस भी लाना है.’’

नेहा ने स्वीकृति दे दी यह सोच कर कि वह उन का मातहत है. साथ ले जाने में क्या बुराई है? वैसे भी वे अकेली जाएंगी कार में. बच्चों को साथ नहीं ले जाया जा सकता. उन की पढ़ाई का नुकसान होगा और फिर क्या पता वहां कितने दिन रुकना पड़े.

नागपुर पहुंचने पर रमेश ने कहा, ‘‘मैडम, कुछ देर के लिए मेरे घर चलिए न. मम्मीपापा से मिल लूंगा… आप भी थोड़ा आराम कर लेंगी.’’

‘‘आराम नहीं… वैसे मिलने चलना है तो चलो… रुकेंगे नहीं,’’

नेहा ने कार रुकवा कर थोड़ी मिठाई खरीद ली. आखिर वे बौस हैं. खाली हाथ उस के घर जाते क्या अच्छा लगेगा?

घर के लोग बैठक में जमा हो कर बातचीत में व्यस्त हो गए थे. रमेश ने किसी से नेहा का परिचय नहीं कराया. जाने उन लोगों ने क्या समझा हो. मिठाई का डब्बा उन्होंने एक बच्चे के हाथ में पकड़ा दिया. चाय आने पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक लेने से मना कर दिया. फिर वे रास्ते भर अपने विचारों में खोई रहीं.

‘सारे भाईबहन अपने जीवन में व्यवस्थित हैं, पर पिता की मृत्यु के बाद से मां ही अव्यवस्थित हो गई हैं. वे किसी एक जगह जम कर नहीं रहतीं. जहां भी रहती हैं, बच्चे उन की सुविधाओं का पूरा ध्यान रखते हैं. उन के कमरे में ही टीवी, टैलीफोन, म्यूजिक सिस्टम और लिखनेपढ़ने का सारा इंतजाम रहता है. वे खूब लिखती हैं- अंगरेजी, हिंदी, बंगला तीनों भाषाओं में.

जो वैविध्यपूर्ण जीवन उन्होंने अपने ब्रिगेडियर पिता और कर्नल पति के सान्निध्य में जिया, उस के अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दिनों की स्मृतियों और घटनाओं को शब्दों में पिरोती रहती हैं. पर कभी कुछ छपवाया नहीं आज तक. घर में किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया.

वे कितना मधुर गाती हैं इस उम्र में भी. चर्चा, परिचर्चाएं उन्हें अपार सुख देती हैं, पर आजकल किस के पास फुरसत है इतनी कि बैठ कर उन्हें सुनें? शायद भीतर का अकेलापन अब निगल रहा है उन्हें. भौतिक सुविधाएं आत्मिक प्रसन्नता तो नहीं दे सकतीं न? ऐसे में उन्हें कुछ हो गया तो?’ सोच नेहा घबरा उठी थीं.’

भोपाल पहुंचने पर रमेश को उस के अंकल के यहां छोड़ने शाहपुरा जाना पड़ा. रात हो चुकी थी. उस ने कार से सामान उतारते हुए चाय के लिए रुकने का आग्रह किया था पर नेहा टाल गई. दरवाजा खुलते ही उस की पत्नी, आंटीअंकल सब बाहर आ गए. रमेश ने तब भी उन से किसी का परिचय नहीं करवाया. पत्नी से भी नहीं. बहुत अजीब लगा था उन्हें.

तब उन्होंने खुद ही संकेत करते हुए पूछ लिया था, ‘‘ये तुम्हारी…’’

‘‘पत्नी है दिशा,’’ लेकिन नेहा का परिचय पत्नी को देने की आवश्यकता नहीं समझी उस ने. उसे छोड़ने के बाद वे मां के घर चली आईं और अब वह गाड़ी मांग रहा था ताकि पत्नी व बच्चों के साथ शान से दोस्त की शादी में जा सके.

कितना खुदगर्ज है यह आदमी? नेहा का मन खिन्न हो गया. रमेश दफ्तर में कभी उन्हें अभिवादन नहीं करता. वह सोचता है कि यह नौकरी कर के वह एहसान कर रहा है… वह तो क्लास वन के लायक है… इतनी काबिलीयत है उस में. दिन ही खराब थे वरना आईएएस की लिखित परीक्षा में तो निकल गया था, मौखिकी में ही रह गया… फिर भी अपनेआप को आईएएस औफिसर से कम नहीं समझता.

नेहा को महसूस हुआ कि अपने मातहत पुरुषों से कभी निजी या घरपरिवार की परिस्थितियों पर चर्चा नहीं करनी चाहिए. वैसे भी महिला बौस को वे अमूमन गंभीरता से नहीं लेते. उन के अधीन काम करना वे अपनी तौहीन समझते हैं. लाख महिला सशक्तीकरण की बातें की जाएं, विश्व महिला दिवस मनाया जाए, नारी स्वतंत्रता के नारे लगाए जाएं, पुरुष आसानी से स्त्री की सत्ता थोड़े ही स्वीकार कर लेगा.

साशा ने नेहा को गंभीर देख कर टोका, ‘‘छोडि़ए भी, नाहक क्यों मूड बिगाड़ती हैं अपना? कनिका दीदी नहा कर आती ही होंगी. खाने की मेज पर चलें? उन्हें शताब्दी से निकलना है. अभी 12 बजे हैं.’’

नेहा ने घड़ी पर निगाह डाली. शताब्दी ऐक्सप्रैस दोपहर 2 बजे निकलती है. कितनी तेजी से बीत रहा है समय. पंख लगा कर उड़ रहा हो मानो…अभी तो मिल कर जी तक नहीं भरा और बिछुड़ना होगा… उन्होंने ठंडी सांस ली. अगले ही क्षण टैलीफोन की घंटी बज उठी.

‘‘मैडम, कब निकलना है वापस बालाघाट? मुझे रिंग कर दीजिएगा,’’ रमेश कह रहा था.

नेहा बुरी तरह खीज उठीं. बोलीं, ‘‘देखो रमेश तुम्हारी छुट्टी सिर्फ आज तक है. कल रविवार है. तुम सोमवार को जौइन कर लेना. मेरा अभी कुछ तय नहीं वापस जाने का.’’

‘‘लेकिन मैं तो आया ही इसलिए हूं कि आप के साथ लौट जाऊंगा कार से. आप ही की वजह से मैं ने वापसी के भी टिकट कैंसिल करा दिए हैं.’’

‘‘रमेश, मैं अपनी बीमार मां को देखने आई हूं यहां, कोई पिकनिक मनाने नहीं. अपनी सहूलत से वापस जाऊंगी,’’ कह कर उन्होंने फोन काट दिया.

‘यह आदमी तो पीछे ही पड़ गया. उस के बात करने का अंदाज तो देखो… कहता है, आप की वजह से टिकट कैंसिल कराए. टिकट कराए कब थे? झूठ की भी हद होती है,’ सोच नेहा भीतर ही भीतर उबल पड़ीं.’’

‘‘दीदी, अपने मातहतों को ज्यादा मुंह लगाना अच्छा नहीं होता. उसे आप का तनिक भी लिहाज नहीं. वह तो ऐसे बात कर रहा है जैसे आप उस की बौस नहीं, वह आप का बौस हो… ऐसे ढीठ आदमी को सपरिवार साथ ले कर वापस जाएंगी आप?’’

साशा के इस कथन से नेहा क्षुब्ध हो उठीं. बोलीं, ‘‘अब क्या करूं? वह रईसी तो बहुत झाड़ता है. कह रहा था कि उस के अंकल तो हैलीकौप्टर खरीदना चाहते हैं पर सरकार अनुमति नहीं दे रही है… दोस्त को ठाट दिखाने और झूठी शान बघारने के लिए मेरी गाड़ी से सपत्नीक शादी में सागर जाना चाहता था. शायद पत्नी पर रोब गांठने के लिए कह दिया हो कार से लौटेंगे… अब कार्यक्रम गड़बड़ाने से खीज रहा… जब मैं ने कह दिया कि तुम जौइन कर लेना, तो इस का मतलब है मैं उस के साथ वापस नहीं जाऊंगी. फिर भी फोन करने का दुस्साहस किया. ढिठाई की हद है.’’

‘‘आप नाहक कार से आईं,’’ कनिका ने खाने की मेज पर नजर डालते हुए कहा.

‘‘अरे, कर्नल साहब घर में होते तो ट्रेन से ही आना पड़ता. वे तो 10 दिनों के लिए हैदराबाद में हैं इसलिए मैं ने सोचा…’’

सहसा मां की उपस्थिति से सब का ध्यान उन पर केंद्रित हो गया. साशा ने उन्हें आहिस्ता से कुरसी पर बैठाया, खाने की मेज पर मां का सान्निध्य कितना सुखद लगता है… पर ऐसा संयोग अब कम ही होता है. शादी के बाद सब बेटियां एकत्र नहीं हो पातीं. मां अब ज्यादा चलतीफिरती नहीं. वे जल्दी ही थक जाती हैं. अब तो बीमारी के कारण वे आग्रहपूर्वक अपने हाथों से बना कर कुछ नहीं खिला पातीं.

नेहा स्टेशन पर कनिका को विदा कर लौटीं तो मन बहुत उदास हो गया. शाम को साशा के साथ मां को डाक्टर को दिखाने ले गईं तो वहां भीड़ थी. एक बार फिर प्रतीक्षा के क्षणों में चर्चा के दौरान रमेश छाया रहा.

घर लौटने पर साशा ने उखड़े स्वरों में कहा, ‘‘मैं तो तंग आ गई इस रमेश पुराण से.

दीदी, आप उस के साथ हरगिज नहीं लौटेंगी. उसे मोबाइल पर स्पष्ट शब्दों में कह दीजिए… वह कोई उम्मीद न करे.’’

‘‘लेकिन साशा, वह दफ्तर में कहता फिरेगा… मैडम ने धोखा दिया.’’

‘‘तो कहता फिरे.’’

‘‘इस बार चली जाती हूं. आइंदा उसे कभी साथ ले कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘बरदाश्त कर लेंगी उस के कुनबे को पूरे 12 घंटे?’’

‘‘हां, यह बात तो है. मन मार कर चुपचाप बैठे रहना होगा.’’

‘‘तो फिर उसे मना कर दीजिए,’’ कह साशा ने उन्हें मोबाइल फोन थमा दिया.

‘‘लेकिन साशा, मैं तो कह ही चुकी हूं कि मेरे वापस जाने का अभी तय नहीं… तुम सोमवार को जौइन कर लेना,’’ नेहा बोलीं.

‘‘तो एक बार और कह दीजिए. वह बेवकूफ है,’’ साशा बेहद गुस्से में थी.

तभी अचानक मां की आवाज सुनाई दी.

‘‘अच्छा, थोड़ी देर बाद कह दूंगी, कह कर नेहा मां के पास चली गईं.’’

मां बहुत उदास थीं. उन के आग्रह पर वे 2 दिन और रुक गईं. तय किया कि रात को सफर शुरू करेंगी. बलराज खापी कर दिन भर सो लेगा ताकि रात को परेशानी न हो.

मां की तीमारदारी से संबंधित सारी हिदायतें शीतल और साशा को देने के बाद नेहा कुछ निश्चिंत थीं. अब सूटकेस में अपना सामान रख रही थीं, तभी कौलबैल बजी. द्वार पर रमेश खड़ा था.

‘‘सोचा, फोन कर के आप को परेशान करना ठीक नहीं, इसलिए घर चला आया पूछने. कब निकलना है? मैं भी रुक गया हूं. सोचा, अर्जित अवकाश ले लूंगा. दरअसल, दिशा भी यही चाहती है कि आप के साथ ही लौटें,’’

वह बोला.

‘‘उफ,’’ कह नेहा ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

Online Hindi Story : मिलीभगत – आखिर उमाकांतजी के साथ क्या हुआ?

Online Hindi Story : प्रिया ने अपना 10वां जन्मदिन ससुराल में मनाया. उस की सास शारदा और जेठानी सीमा ने मिल कर स्वादिष्ठ भोजन तैयार किया था. प्रिया का पति आरक्षित पद पर लगा था और अच्छी कमाई कर रहा था.

खाने में प्रिया के भैयाभाभी ही शामिल हो पाए. उस के पापा की तबीयत ठीक न होने के कारण मां भी नहीं आ पाई थी.

सीमा का छोटा भाई रवि इत्तफाक से लंच के समय आ गया था. उस ने भी सब के साथ भोजन किया.

खाना खाने के बाद सब से पहले प्रिया के ससुर उमाकांतजी सर्दी की धूप का आनंद लेने पास के बाग में चले गए.

रवि कई सालों से बेकार था, इधरउधर घूमता रहता था. उन के जाने के चंद मिनटों बाद रवि विदा हो गया. उस के जाने के करीब 15 मिनट बाद प्रिया ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. प्रिया को घर के अपने रिश्तेदारों द्वारा चोरी करने का अंदेशा था.

‘‘मेरा 20 हजार रुपए का मोबाइल चोरी चला गया है,’’ गुस्से और घबराहट के कारण प्रिया ने लगभग चिल्लाते हुए सब को चौंका दिया था. उसे जेठानी और जेठ पर शक था.

‘‘तुम ने कहीं इधरउधर रख दिया होगा. चोरी जाने की बात मुंह से मत निकालो,’’  उस के पति नीरज ने उसे समझाया. उसे भी अपने बड़े भाई से कोई खास प्रेम न था क्योंकि सब का बचपन अभावों में गुजरा था.

‘‘मैं ने आप के फोन से अपने फोन का नंबर मिलाया है. मेरे फोन की घंटी बज ही नहीं रही है. उस का सिम कार्ड निकाल लिया गया है और यह काम कोई चोर ही करेगा न.’’

‘‘हो सकता है फोन की बैट्री खत्म हो गई हो.’’

‘‘मैं ने सुबह ही उसे फुल चार्ज किया था. फोन चोरी किया गया है और मैं इस मामले में चुप नहीं बैठूंगी. पुलिस में रिपोर्ट करने से भी मैं हिचकिचाने वाली नहीं.’’

प्रिया ने यह धमकी अपनी जेठानी सीमा की तरफ क्रोधित नजरों से देखते हुए दी थी. इस कारण सीमा का पारा फौरन चढऩा शुरू हो गया.

‘‘तुम किसी पर चोर होने का शक कर रही हो, प्रिया?’’ बड़ी कठिनाई से अपने गुस्से को नियंत्रित रखते हुए सीमा ने अपनी देवरानी से सवाल किया.

‘‘जिन पर मुझे शक नहीं है वो हैं मेरे भैयाभाभी, मम्मीपापा और नीरज. ये लोग मेरा फोन नहीं चुराएंगे.’’

‘‘यानी कि तुम्हारी नजरों में मेरे पति और मैं चोर हो सकते हैं?’’

‘‘रवि भी आया था यहां.’’

‘‘मेरे भाई को या हमें चोर कहा तो अच्छा नहीं होगा, प्रिया,’’ सीमा का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा.

‘‘चोर का पता पुलिस लगा ही लेगी, भाभी. मुझे इस मामले में आप से कोई बहस नहीं करनी है. वैसे, तुम्हें या भैया को भी मैं चोर नहीं मान रही हूं.

‘‘चोरी मेरे भाई ने भी नहीं की है.’’

‘‘फिर कहां है मेरा मोबाइल?’’ प्रिया के इस चुभते सवाल का सीमा फौरन कोई जवाब नहीं दे पाई थी.

प्रिया के भैया प्रमोद और भाभी वंदना साफ नाराज और परेशान नजर आ रहे थे. पर उन्होंने खामोश रहना ही बेहतर समझा. प्रमोद और वंदना भी साधारण हैसियत के ही थे पर प्रिया अब पति की मोटी वेतनवाली जौब के कारण खुश थी.

दिखावे के लिए नीरज ने प्रिया को डांटना शुरू कर दिया, ‘‘जब संभाल कर नहीं रख सकती हो, तो तुम्हें इतना महंगा मोबाइल खरीदना ही नहीं चाहिए था. हर चीज तुम्हें महंगी और अव्वल दर्जे की चाहिए, पर देखभाल करने के नाम पर तुम बहुत ही लापरवाह हो.’’

‘‘जिन पर विश्वास हो उन्हें चीजें चुराने से कैसे रोका जा सकता है. हां, आगे देखती हूं कि कोई बाहर का आदमी मेरी किसी चीज को कैसे छूता है.’’ प्रिया अपने पति से उलझने को भी तैयार हो गई.

‘‘नीरज, इसे फालतू बोलने से रोको. रवि ईमानदार लडक़ा है. प्रिया का उसे चोर समझना मुझे पसंद नहीं आ रहा है. उस की नौकरी नहीं लगी, तो मतलब यह तो नहीं कि वह चोर है,” नवीन ने अपने छोटे भाई को गंभीर लहजे में हिदायत दी.

इस बार वंदना ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘हम तो अभी यहीं हैं. आप लोग हमारी तलाशी ले लीजिए. बाद में कोई हमें शक के दायरे में घसीटे, यह हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘जिस की तलाशी होनी चाहिए थी, वह तो जा चुका है,’’ प्रिया की इस बात ने सारे मामले में आग में घी डालने जैसा काम किया था.

सीमा भडक़ कर बोली, ‘‘मुझे तो इस मामले में तुम ननद-भाभी की मिलीभगत साफ नजर आ रही है. मोबाइल के चोरी होने का झूठा इलजाम मेरे भाई पर लगा कर तुम लोग यह लड़ाईझगड़ा क्यों कर रहे हो, मुझे पता है.’’

‘‘क्या कहना चाह रही हैं आप?’’ वंदना सीमा से उलझने को तैयार हो गई.

‘‘जैसे तुम लड़झगड़ कर अपनी ससुराल से अलग हुई थी, वही काम अब प्रिया करे, यही चाहती हो तुम.’’

‘‘आप बिलकुल बेसिरपैर का इलजाम मुझ पर लगा रही हैं. जरा सोचसमझ कर बोलिए, नहीं तो हम इस घर में फिर कभी कदम नहीं रखेंगे.’’

शारदा ने किसी अन्य के बोलने से पहले ही ऊंची आवाज में सब से शांत होने की प्रार्थना की, पर उन की बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया.

सिवा प्रमोद के हर व्यक्ति इस झगड़े में भागीदारी कर रहा था. शिकायत, नाराजगी, गुस्से व नफरत के भावों ने कमरे का माहौल बेहद दूषित कर दिया था. किसी को फ्रिक नहीं थी कि उस वक्त कड़वी, तीखी व जहरीली जबान से वे जो जख्म दूसरों के दिलों पर लगा रहे थे, वह शायद कभी न भरे.

अपनी देवरानी और उस की भाभी से उलझते हुए अचानक सीमा अपने माथे पर हाथ मारते हुए दुखी लहजे में बोली, ‘‘पता नहीं किस मनहूस घड़ी में इस घर का रिश्ता तुम्हारे घर से जुड़ा था. तुम्हारे आने से घर की सुखशांति हमेशा के लिए नष्ट हो गई है.’’

प्रिया से पहले उस के भाई प्रमोद ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की, ‘‘इतने ही दुखी हो अगर आप सब मेरी बहन से, तो अलग कर दीजिए उसे घर से. जो अच्छा घर मिला है वह नवीन की वजह से ही है.’’

‘यही तो प्रिया चाहती है,’’ सीमा चुभते लहजे में बोली, ‘‘अपनी पगार के घमंड के कारण इस ने कभी इस घर को अपना घर नहीं समझा. कभी बड़ों की इज्जत नहीं की. यह तो सोच कर ही आई थी कि जल्दी से जल्दी अलग हो जाएगी.’’

‘‘भाभी, सचाई तो यह है कि मैं आप को पहले दिन से ही कभी फूटी आंख नहीं भाई. मुझ से जलती रही हैं आप,’’ प्रिया की आंखों से नफरत के भाव झलके.

प्रमोद ने खड़े हो कर ऊंची आवाज में शारदा से कहा, ‘‘आंटी, आज यह बिलकुल साफ हो गया है कि आप की दोनों बहुएं साथसाथ कभी सुखशांति से नहीं रह पाएंगी. मेरी सलाह है कि आप प्रिया और नीरज को घर से अलग कर दें.’’

‘‘तुम्हारे कहने से दे दी हम ने इन्हें अलग होने की इजाजत,’’ पार्क से लौटे उमाकांत की गंभीर आवाज ने कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति को चौंका कर चुप कर दिया था.

उमाकांतजी के पूछने पर प्रिया ने अपने कीमती मोबाइल के चोरी हो जाने की बात उन्हें बता दी. उमाकांत भी बेचारे से थे. उन्हें छोटी सी पैंशन मिलती थी.

‘‘तुम ने रवि पर शक क्यों किया? क्या उस ने पहले कभी हमारे घर से कुछ चुराया है?’’ उमाकांतजी ने सवाल किया.

“रवि के अलावा और कौन चोर हो सकता है?” प्रिया दब कर चुप नहीं रही और अपना शक उन्हें बता दिया. कमाऊ पति की पत्नी का गरूर तो आ ही जाता था. जितनी आमदनी नवीन की थी, घर में किसी की नहीं थी.

‘‘नीरज, क्या इस बात को मुद्दा बना कर तुम घर से अलग होना चाहते हो?’’ उमाकांतजी ने अपने छोटे बेटे से सीधेसीधे यह सवाल पूछ लिया.

नीरज ने झिझकते हुए जवाब दिया, ‘‘पापा, रोजरोज के झगड़ों की जड़ काटने का हमें यह ही तरीका समझ आता है.’’

‘‘इस कारण तुम्हारी मां और मुझे जो दुख होगा, उस पर गौर किया है तुम ने?’’

‘‘पापा, ये लोग आसपास ही तो रहेंगे.’’

‘‘पर दिलों के बीच दूरियां तो बढ़ ही जाएंगी. दोनों भाई साथ रह कर तो एकदूसरे के काम आते ही रहोगे. कभी झगड़ा होगा, तो कभी प्यार से हंसनेबोलने के मौके भी तो मिलेंगे. तुम दोनों नौकरी करते हो. कल को तुम्हारे बच्चों की देखभाल सीमा से बेहतर कौन करेगा? तुम दोनों के कारण यह घर आर्थिक रूप से ज्यादा मजबूत हो सकता है. मेरी समझ से तुम्हारा घर से अलग होना ठीक नहीं है,’’ उन्होंने अपने छोटे बेटे को गंभीर लहजे में साथ रहने के फायदे गिनाए.

नीरज के बजाय उस के साले ने जवाब दिया, ‘‘अंकल, आप की सब बातें ठीक हैं पर सचाई तो यह है कि हर इंसान अपनीअपनी झंझटों में उलझा हुआ है. किसी दूसरे का किसी दूसरे से उस का खून का रिश्ता भी हो सकता है. भला करने का न उस के पास समय है, न इच्छाशक्ति. इस मामले में नीरज मुझ से बात करता रहा है. मेरी मानें तो आप बड़े भाई भाभी को घर से अलग हो ही जाने दें. इसी में सब की भलाई है.’’

‘‘तुम क्या कहते हो, नवीन?’’ उमाकांतजी ने बड़े बेटे से पूछा.

‘‘किसी की बातों में आ कर नीरज को घर नहीं छोडऩा चाहिए,” नवीन ने भाईपना जताते हुए अपनी राय बता दी.’’

‘‘तुम्हारी राय क्या है?’’ वे अपनी पत्नी की तरफ घूमे.

‘‘अगर ये दोनों बहुए प्रेम से मिलजुल कर नहीं रह सकती हैं, तो बड़ी बहू को जाने दो,’’ शारदा का गला भर आया.

कुछ देर सोचविचार करने के बाद उमाकांतजी ने अपना फैसला सुना दिया, ‘‘मेरी समझ से प्रिया अलग होने का पक्का मन बना चुकी है. किसी को जबरदस्ती रोकना रातदिन के क्लेश को निमंत्रण देना होगा. ठीक है प्रिया, तुम दोनों अलग हो सकते हो.’’

वे थकेहारे अंदाज में उठ कर जाने लगे तो नवीन ने परेशान से लहजे में कहा, ‘‘पापा, नया फ्लैट किराए पर लेने के लिए मुझे रुपयों की जरूरत पड़ेगी.’’

‘‘मेरे पास तो बैंक में कुछ है नहीं. और यह बात तुम सब को मालूम भी है. यह मकान भी नीरज की बदौलत है. हम लोग तो पहले कच्चे मकानों में रहते थे.’’

‘‘लेकिन अंकल, यह तो सोचिए कि नवीन नया मकान किराए पर कैसे लेगा,’’ प्रमोद ने उत्तेजित हो कर पूछा.

‘‘यह सब सोचना मेरी समस्या नहीं है,” उमाकांतजी ने रुखाई से जवाब दिया.

सीमा और नवीन को अब आफत नजर आने लगी. नीरज ने कई कंपीटिशनों में आरक्षण का फायदा ले कर ऊपरी कमाई वाली नौकरी पा ली थी. उधर, सीमा को सदा लगता था कि वह जेठानी है और प्रिया या नीरज के एहसानों को मानने को वह तैयार न थी.

उसे समझ आ रहा था कि प्रिया ने यह नाटक खेला है पर वह कर क्या सकती थी. उस ने अपने पुराने मोबाइल से रवि को सारी बात बताई तो रवि को समझ आया कि वह तो मोहरा था. उस ने कहा, ‘‘दीदी, आप 4 दिन का समय मांग लो, फिर मैं देखता हूं क्या कर सकता हूं.’’

रवि कोई गुंडा-चोर तो नहीं था पर उस के दोस्तों में से कुछ शातिर थे. उस ने उन के साथ मिल कर एक प्लान बनाया.

2 दिनों बाद सुबहसुबह दरवाजे पर 5-7 पुलिसमेन खड़े थे. एक ने कहा, ‘‘नीरज कौन है, उसे बुलाओ.”

नवीन बाहर आया और बोला, “इंस्पैक्टर साहब, बात क्या है?”

इंस्पैक्टर अकड़ कर बोला, ‘‘तू कौन?’’

नवीन ने कहा, ‘‘मैं नीरज का बड़ा भाई हूं.’’

इंस्पैक्टर घुडक़ा, ‘‘तो फिर नीरज को भेज न. उस के खिलाफ वारंट है.’’

वारंट का नाम सुनते ही सब के चेहरे पर हवाइयां उडऩे लगीं. नीरज की ऊपर की कमाई थी, यह सब को मालूम था. किस ने शिकायत की होगी, यह पता नहीं चल सकता.

नीरज निकल कर आया. इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘तो तुम हो नीरज. बच्चू चलो अब थाने, आगे की बात वहीं होगी.’’

इतने में नवीन बोल पड़ा, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप कुछ देर तो रुकिए. इसे कपड़े बदलने दें. नाश्ता कर ले, आप सब लोग भी नाश्ता तो कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हमारा फर्ज तो यही है कि मुजरिम को देखते ही गिरफ्तार कर लें पर तुम कहते हो तो नाश्ता करने देते हैं.’’

सब के लिए नाश्ता बनने लगा. 5 लोग पुलिस वाले थे.

इतने में रवि भागता हुआ आया, पूछा, ‘‘क्या हुआ, आप लोग कौन हैं?’’

इंस्पैक्टर रुखार्ई से बोला, “अबे तू कौन. क्यों कानूनी काम में दखल दे रहा है?”

नवीन ने साले को सारी बात बताई. वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं अभी आया.’’ और वह बाहर जा कर बात करने लगा.

फिर अंदर आ कर इंस्पैक्टर से बोला, ‘‘आप रामकुमार यादव, एसआई हैं न.’’

इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘हां, तो?’’

रवि ने फोन इंस्पैक्टर को देते हुए कहा, ‘‘प्लीज बात कर लें.’’

इंस्पैक्टर ने बात शुरू की, फिर वह खड़ा हो कर बात करने लगा. ‘‘जी, जनाब, जी नहीं. जी हां, हमें क्या मालूम था कि अपने लोग हैं. ठीक है जनाब.”

फोन लौटाते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रिया कौन है?’’ प्रिया पीछे खड़ी थी. उसे अंदाजा नहीं था कि नीरज की ही मुसीबत आ जाएगी.

‘‘जी, मैं,’’ हकलाती हुई वह बोली.

‘‘तुम्हारा मोबाइल चोरी हुआ है न.’’

‘‘जी हां, 2 दिनों से नहीं मिल रहा. नीरज और प्रिया दोनों एकसाथ बोले.’’

‘‘तो ठीक है, मुझे तलाशी लेने दो. वह भी ऊपर की कमाई का रहा होगा न. तुम दोनों का कमरा कौन सा है?’’

अब तो प्रिया रोने लगी दहाड़े मारमार कर. कभी इस भगवान को याद करती, कभी उस अल्लाह को. उसे यही सिखाया गया था कि पूजा करने से आफत खत्म हो जाती है.

इंस्पैक्टर आराम से परोसे परांठे खाने लगा था. बाकी 4 भी यही कर रहे थे.

थूक अटक कर फिर प्रिया बोली, ‘‘मेरा मोबाइल चोरी नहीं हुआ है.’’ सोफे के नीचे से निकाल कर उस ने दिखाया.

इंस्पैक्टर ने बिना देखे कहा, ‘‘लो भई, हमारा नाश्ता हो गया, तुम्हारा मोबाइल  मिल गया. दहिया साहब की रवि से जानपहचान की वजह से यह मामला भी रफादफा कर देंगे.”

अब नीरज फट पड़ा, ‘‘तुम भी अजीब औरत हो. किसी पर इलजाम लगा कर इतनी साजिश कैसे कर सकती हो. जाओ, रवि से माफी मांगो.’’ नीरज के गुस्से को भांप कर प्रिया फौरन उठी और अपनी जेठानी और रवि से माफी मांगने के लिए उन के कमरे की तरफ  बढ़ गई.

प्रमोद के इशारे पर वंदना भी प्रिया के पीछेपीछे ड्राइंगरूम से अंदर की ओर चली गई. उन के बाहर जाते ही माहौल बदल गया. उमाकांतजी ने अपने दोनों हाथ हवा में विजयी अंदाज में उठाए और प्रसन्न स्वर में कहा, “हमारी योजना सफल हो गई.” प्रमोद अपनी बहन से बोला, “छोटी भाभी की अलग होने की जिद अब ख़त्म हो जाएगी. लेकिन हां, हमआप सभी को इस बात का बहुत ध्यान रखना होगा कि प्रिया या अन्य किसी बाहरी व्यक्ति को हमारी मिलीभगत का पता न चले. मेरा दांव काम आया, यह बड़ी बात है.

उमाकांतजी ने उठ कर प्रमोद को गले से लगाया और आभार प्रकट किया, “बेटा, तुम बहुत समझदार इंसान हो. तुम साथ न देते तो हमारा संयुक्त परिवार टूट जाता. वक्त के साथ रिश्तों में बदलाव आता है. मुझे यकीन है कि आने वाले समय में प्रिया भी हम सब के साथ प्यार व अपनेपन की मजबूत डोर से बंध जाएगी. तुम उस की बिलकुल फ़िक्र मत करना. वह और उस का हित इस घर में पूरी तरह सुरक्षित है.”

उमाकांत और शारदा से आशीर्वाद लेने के बाद प्रमोद नवीन और नीरज से गले मिला. सभी के दिलों में ख़ुशी, संतोष और सुरक्षा को दर्शाने वाली मुसकान उन सभी के होंठों पर नाच रही थी.

Emotional Story : अंधेरे की छाया – किसने महेंद्र व प्रमिला की मदद की?

Emotional Story : महेंद्र सिंह ने अपनी पत्नी प्रमिला के कमरे में झांक कर देखा. अंदर पासपड़ोस की 5-6 महिलाएं बैठी थीं. वे न केवल प्रमिला का हालचाल पूछने आई थीं बल्कि उस से इसलिए भी बतिया रही थीं कि उस की दिलजोई होती रहे. जब से प्रमिला फालिज की शिकार हुई थी, महल्ले के जानपहचान वालों ने अपना यह रोज का क्रम बना लिया था कि 2-4 की टोलियों में सुबह से शाम तक उस का मन बहलाने के लिए उस के पास मौजूद रहते थे. पुरुष नीचे बैठक में महेंद्र सिंह के पास बैठ जाते थे औैर औरतें ऊपर प्रमिला के कमरे में फर्श पर बिछी दरी पर विराजमान रहती थीं.

वे लोग प्रमिला एवं महेंद्र की प्रत्येक छोटीबड़ी जरूरतों का ध्यान रखते थे. महेंद्र को पिछले 3-4 महीनों के दौरान उसे कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ा था. आसपास मौजूद लोग मुंह से निकलने से पहले ही उस की जरूरत का एहसास कर लेते थे और तुरंत इस तरह उस की पूर्ति करते थे मानो वे उस घर के ही लोग हों. उस समय भी 2 औरतें प्रमिला की सेवाटहल में लगी थीं. एक स्टोव पर पानी गरम कर रही थी ताकि उसे रबर की थैली में भर कर प्रमिला के सुन्न अंगों का सेंक किया जा सके. दूसरी औरत प्रमिला के सुन्न हुए अंगों की मालिश कर रही थी ताकि पुट्ठों की अकड़न व पीड़ा कम हो. कमरे में झांकने से पहले महेंद्र सिंह ने सुना था कि प्रमिला वहां बैठी महिलाओं से कह रही थी, ‘‘तुम देखना, मेरा गौरव मेरी बीमारी का पत्र मिलते ही दौड़ादौड़ा चला आएगा. लाठी मारे से पानी जुदा थोड़े ही होता है. मां का दर्द उसे नहीं आएगा तो किस को आएगा? मेरी यह दशा देख कर वह मुझे पीठ पर उठाएउठाए फिरेगा. तुरंत मुझे दिल्ली ले जाएगा और बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा.’’ महेंद्र के कमरे में घुसते ही वहां मौन छा गया था. कोई महिला दबी जबान से बोली थी, ‘‘चलो, खिसको यहां से निठल्लियो, मुंशीजी चाची से कुछ जरूरी बातें करने आए हैं.’’ देखतेदेखते वहां बैठी स्त्रियां उठ कर कमरे के दूसरे दरवाजे से निकल गईं. महेंद्र्र ऐेनक ठीक करता हुआ प्रमिला के पलंग के समीप पहुंचा. उस ने बिस्तर पर लेटी हुई प्रमिला को ध्यान से देखा.

शरीर के पूरे बाएं भाग पर पक्षाघात का असर हुआ था. मुंह पर भी हलका सा टेढ़ापन आ गया था और बोलने में जीभ लड़खड़ाने लगी थी. महेंद्र प्रमिला से आंखें चार होते ही जबरदस्ती मुसकराया था और पूछा था, ‘‘नए इंजेक्शनों से कोई फर्क पड़ा?’’ ‘‘हां जी, दर्द बहुत कम हो गया है,’’ प्रमिला ने लड़खड़ाती आवाज में जवाब दिया था और बाएं हाथ को थोड़ा उठा कर बताया था, ‘‘यह देखो, अब तो मैं हाथ को थोड़ा हरकत दे सकती हूं. पहले तो दर्द के मारे जोर ही नहीं दे पाती थी.’’ ‘‘और टांग?’’ ‘‘यह तो बिलकुल पथरा गई है. जाने कब तक मैं यों ही अपंगों की तरह पलंग पर पड़ी रहूंगी.’’ ‘‘बीमारी आती हाथी की चाल से है औैर जाती चींटी की चाल से है. देखो, 3 महीने के इलाज से कितना मामूली अंतर आया है, लेकिन अब मैं तुम्हारा और इलाज नहीं करा सकता. सारा पैसा खत्म हो चुका है. तमाम जेवर भी ठिकाने लग गए हैं. बस, 50 रुपए और तुम्हारे 6 तोले के कंगन और चूडि़यां बची हैं.’’ ‘‘हां,’’ प्रमिला ने लंबी सांस ली, ‘‘तुम तो पहले ही बहुत सारा रुपया गौरव और उस के बच्चों के लिए यह घर बनाने में लगा चुके थे. पर वे नहीं आए. अब मेरी बीमारी की सुन कर तो आएंगे. फिर मेरा गौरव रुपयों का ढेर…’’ ‘‘नहीं, मैं और इंतजार नहीं कर सकता,’’ महेंद्र बाहर जाते हुए बोला, ‘‘तुम इंतजार कर लो अपने बेटे का. मैं डा. बिहारी के पास जा रहा हूं, कंपाउंडर की नौकरी के लिए…’’ ‘‘तुम करोगे वही जो तुम्हारे मन में होगा,’’ प्रमिला चिढ़ कर बोली, ‘‘आने दो गौरव को, एक मिनट में छुड़वा देगा वह तुम्हारी नौकरी.’’ ‘‘आने तो दें,’’ महेंद्र बाहर निकल कर जोर से बोला, ‘‘लो, सलमा बाजी और उन की बहुएं आ गई हैं तुम्हारी सेवा को.’’ ‘‘हांहां तुम जाओ, मेरी सेवा करने वाले बहुत हैं यहां. पूरा महल्ला क्या, पूरा कसबा मेरा परिवार है. अच्छी थी तो मैं इन सब के घरों पर जा कर सिलाईकढ़ाई सिखाती थी. कितना आनंद आता था दूसरों की सेवा में. ऐसा सुख तो अपनी संतान की सेवा में भी नहीं मिलता था.’’ ‘‘हां, प्रमिला भाभी,’’ सलमा ने अपनी दोनों बहुओं के साथ कमरे में आ कर आदाब किया और प्रमिला की बात के जवाब में बोली, ‘‘तुम से ज्यादा मुंशीजी को मजा आता था दूसरों की खिदमत में.

अपनी दवाओं की दुकान लुटा दी दीनदुखियों की सेवा में. डाक्टरों का धंधा चौपट कर रखा था इन्होंने. कहते थे गौरव हजारों रुपया महीना कमाता है, अब मुझे दुकान की क्या जरूरत है. बस, गरीबों की खिदमत के लिए ही खोल रखी है. वरना घर बैठ कर आराम करने के दिन हैं.’’ ‘‘ठीक कहती हो, बाजी,’’ प्रमिला का कलेजा फटने लगा, ‘‘क्या दिन थे वे भी. कैसा सुखी परिवार था हमारा.’’ कभी महेंद्र और प्रमिला का परिवार बहुत सुखी था. दुख तो जैसे उन लोगों ने देखा ही नहीं था. जहां आज शानदार गौरव निवास खड़ा है वहां कभी 2 कमरों का एक कच्चापक्का घर था. महेंद्र का परिवार छोटा सा था. पतिपत्नी और इकलौता बेटा गौरव. महेंद्र की स्टेशन रोड पर दवाओं की दुकान थी, जिस से अच्छी आय थी. उसी आय से उन्होंने गौरव को उच्च शिक्षादीक्षा दिला कर इस योग्य बनाया था कि आज वह दिल्ली में मुख्य इंजीनियर है. अशोक विहार में उस की लाखों की कोठी है. वह देश का हाकी का जानामाना खिलाड़ी भी तो था. बड़ेबडे़ लोगों तक उस की पहुंच थी और आएदिन देश की विख्यात पत्रपत्रिकाओं में उस के चर्चे होते रहते थे. गौरव ने दिल्ली में नौकरी मिलने के साथ ही अपनी एक प्रशंसक शीला से शादी कर ली थी. महेंद्र व प्रमिला ने सहर्ष खुद दिल्ली जा कर अपने हाथों से यह कार्य संपन्न किया था. शीला न केवल बहुत सुंदर थी बल्कि बहुत धनवान एवं कुलीन घराने से थी. बस, यहीं वे चूक गए. चूंकि शादी गौरव एवं शीला की सहमति से हुई थी, इसलिए वे महेंद्र और प्रमिला को अपनी हर बात से अलग रखने लगे. यहां तक कि शीला शादी के बाद सिर्फ एक बार अपनी ससुराल नसीराबाद आई थी.

फिर वह उन्हें गंवार और उन के घर को जानवरों के रहने का तबेला कह कर दिल्ली चली गई थी. पिछले 15 वर्षों में उस ने कभी पलट कर नहीं झांका था. महेंद्र और प्रमिला पहले तो खुद भी ख्ंिचेखिंचे रहे थे, लेकिन जब उन के पोता और पोती शिखा औैर सुदीप हो गए तो वे खुद को न रोक सके. किसी न किसी बहाने वे बहूबेटे के पास दिल्ली पहुंच जाते. गौरव और शीला उन का स्वागत करते, उन्हें पूरा मानसम्मान देते. लेकिन 2-4 दिन बाद वे अपने बड़प्पन के अधिकारों का प्रयोग शुरू कर देते, उन के निजी जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर देते. वे उन्हें अपने फैसले मानने और उन की इच्छानुसार चलने पर विवश करते. यहीं बात बिगड़ जाती. संबंध बोझ लगने लगते और छोटीछोटी बातों को ले कर कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि महेंद्र और प्रमिला को वहां से भागना पड़ जाता. प्रमिला और महेंद्र आखिरी बार शीला के पिता की मृत्यु पर दिल्ली गए थे. तब शिखा और सुदीप क्रमश: 10 और 8 वर्ष के हो चुके थे.

उन के मन में हर बात को जानने और समझने की जिज्ञासा थी. उन्होंने दादादादी से बारबार आग्रह किया था कि वे उन्हें अपने कसबे ले जाएं ताकि वे वहां का जीवन व रहनसहन देख सकें. गौरव के दिल में मांबाप के लिए बहुत प्यार व आदर था. उस ने घर ठीक कराने के लिए शीला से छिपा कर मां को 10 हजार रुपए दे दिए ताकि शीला को बच्चों को ले कर वहां जाने में कोई आपत्ति न हो. परंतु प्रमिला की असावधानी से बात खुल गई. सासबहू में महाभारत छिड़ गया और एकदूसरे की शक्ल न देखने की सौगंध खा ली गई. परंतु नसीराबाद पहुंचते ही प्रमिला का क्रोध शांत हो गया. वह पोतापोती और गौरव को नसीराबाद लाने के लिए मकान बनवाने लगी. गृहप्रवेश के दिन वे नहीं आए तो प्रमिला को ऐसा दुख पहुंचा कि वह पक्षाघात का शिकार हो गईर् औैर अब प्रमिला को चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा दीख रहा था.

महेंद्र डा. बिहारी के यहां से लौटा तो अंधेरा हो चुका था. पर घर का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया. प्रमिला का कमरा अड़ोसपड़ोस के लोगों से भरा हुआ था. प्रमिला अपने पलंग पर रखी नोटों की गड्डियां उठाउठा कर एक अजनबी आदमी पर फेंकती हुई चीख रही थी, ‘‘ले जाओ इन को मेरे पास से और उस से कहना, न मुझे इन की जरूरत है, न उस की.’’ आदमी नोट उठा कर बौखलाया हुआ बाहर आ गया था. उसे भीतर खड़े लोगों ने जबरदस्ती बाहर धकेल दिया था. कमरे से कईकई तरह की आवाजें आ रही थीं. ‘‘जाओ, भाई साहब, जाओ. देखते नहीं यह कितनी बीमार हैं.’’ ‘‘रक्तचाप बढ़ गया तो फिर कोई नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी. जल्दी निकालो इन्हें यहां से.’’ और 2 लड़के उस आदमी को बाजुओं से पकड़ कर जबरदस्ती बाहर ले गए. वह अजनबी महेंद्र से टकरताटकराता बचा था. महेंद्र ने भी गुस्से में पूछा था, ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं गौरव का निजी सहायक हूं, जगदीश. साहब ने ये 50 हजार रुपए भेजे हैं और यह पत्र.’’ महेंद्र ने नोटोें को तो नहीं छुआ, लेकिन जगदीश के हाथ से पत्र ले लिया. पत्र को पहले ही खोला जा चुका था और शायद पढ़ा भी जा चुका था. महेंद्र ने तत्काल फटे लिफाफे से पत्र निकाल कर खोला. पत्र गौरव ने लिखा था: पूज्य पिताजी एवं माताजी, सादर प्रणाम, आप का पत्र मिला. माताजी के बारे में पढ़ कर बहुत दुख हुआ. मन तो करता है कि उड़ कर आ जाऊं, मगर मजबूरी है. शीला और बच्चे इसलिए नहीं आ सकते, क्योंकि वे परीक्षा की तैयारी में लगे हैं. मैं एशियाड के कारण इतना व्यस्त हूं कि दम लेने की भी फुरसत नहीं है. बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर ये चंद पंक्तियां लिख रहा हूं. मैं समय मिलते ही आऊंगा. फिलहाल अपने सहायक को 50 हजार रुपए दे कर भेज रहा हूं ताकि मां का उचित इलाज हो सके. आप ने लिखा है कि आप ने हर तरफ से पैसा समेट कर नए मकान के निर्माण में लगा दिया है, जो बचा मां की बीमारी खा गईर्.

यह आप ने ठीक नहीं किया. बेकार मकान बनवाया, हम लोगों के लिए वह किसी काम का नहीं है. हम कभी नसीराबाद आ कर नहीं बसेंगे. मां की बीमारी पर भी व्यर्थ खर्च किया. पक्षाघात के रोग का कोई इलाज नहीं है. मैं ने कईर् विशेषज्ञ डाक्टरों से पूछा है. उन सब का यही कहना है मां को अधिकाधिक आराम दें. यही इलाज है इस रोग का. मां को दिल्ली लाने की भूल तो कभी न करें. यात्रा उन के लिए बहुत कष्टदायक होगी. रक्तचाप बढ़ गया तो दूसरा आक्रमण जानलेवा सिद्ध होगा. एक्यूपंक्चर विधि से भी इस रोग में कोई लाभ नहीं होता. सब धोखा है… महेंद्र इस से आगे न पढ़ सका. उस का मन हुआ कि उस पत्र को लाने वाले के मुंह पर दे मारे. लेकिन उस में उस का क्या दोष था. उस ने बड़ी कठिनाई से अपने को संभाला और जगदीश को पत्र लौटाते हुए कहा, ‘‘आप उस से जा कर वही कहिए जो उसे जन्म देने वाली ने कहा है. मेरी तरफ से इतना और जोड़ दीजिए कि हम तो उस के लिए मरे हुए ही थे, आज से वह हमारे लिए मर गया.

काश, वह पैदा होते ही मर जाता.’’ जगदीश सिर झुका कर चला गया. महेंद्र प्रमिला के कमरे में घुसा. उस ने देखा कि वहां सब लोग मुसकरा रहे थे. प्रमिला की आंखें भीग रही थीं, लेकिन उस के होंठ बहुत दिनों के बाद हंसना चाह रहे थे. महेंद्र ने प्रमिला के पास जाते हुए कहा, ‘‘तुम ने बिलकुल ठीक किया, पम्मी.’’ तभी बिजली चली गई. कमरे में अंधेरा छा गया. प्रमिला ने देखा कि अंधेरे में खड़े लोगों की परछाइयां उस के समीप आती जा रही हैं. कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, कोई मोमबत्ती जलाओ.’’ ‘‘नहीं, कमरे में अंधेरा रहने दो,’’ प्रमिला तत्काल चीख उठी, ‘‘यह अंधेरा मुझे अच्छा लग रहा है. कहते हैं कि अंधेरे में साया भी साथ छोड़ देता है. मगर मेरे चारों तरफ फैले अंधेरे में तो साए ही साए हैं. मैं हाथ बढ़ा कर इन सायों का सहारा ले सकती हूं,’’ प्रमिला ने पास खड़े लोगों को छूना शुरू किया, ‘‘अब मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता, अंधेरे में भी कुछ साए हैं जो धोखा नहीं हैं, ये साए नहीं हैं बल्कि मेरे अपने हैं, मेरे असली संबंधी, मेरा सहारा…यह तुम हो न जी?’’ ‘‘हां, पम्मी, यह मैं हूं,’’ महेंद्र ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘तुम्हारे अंधेरों का भी साथी, तुम्हारा साया.’’ ‘‘तुम नौकरी करना डा. बिहारी की. रोगियों की सेवा करना. अपनी संतान से भी ज्यादा सुख मिलता है परोपकार में. मुझे संभालने वाले यहां मेरे अपने बहुत हैं. मैं निचली मंजिल पर सिलाई स्कूल खोल लूंगी, मेरे कंगन औैर चूडि़यां बेच कर सिलाई की कुछ मशीनें ले आना औैर पहियों वाली एक कुरसी ला देना.’’ ‘‘पम्मी.’’ ‘‘हां जी, मेरा एक हाथ तो चलता है. ऊपर की मंजिल किराए पर उठा देना. वह पैसा भी मैं अपने इन परिवार वालों की भलाई पर खर्च करना चाहती हूं. हमारे मरने के बाद हमारा जो कुछ है, इन्हें ही तो मिलेगा.’’ एकाएक बिजली आ गई. कमरे में उजाला फैल गया. सब के साथ महेंद्र ने देखा था कि प्रमिला अपने एक हाथ पर जोर लगा कर उठ बैठी थी. इस से पहले वह सहारा देने पर ही बैठ पाती थी. महेंद्र ने खुशी से छलकती आवाज में कहा, ‘‘पम्पी, तुम तो बिना सहारे के उठ बैठी हो.’’ ‘‘हां, इनसान को झूठे सहारे ही बेसहारा करते हैं.

मैं इस आशा में पड़ी रही कि कोई आएगा, मुझे अपनी पीठ पर उठा कर ले जाएगा औैर दुनिया के बड़े से बड़े डाक्टर से मेरा इलाज कराएगा. मेरा यह झूठा सहारा खत्म हो चुका है. मुझे सच्चा सहारा मिल चुका है…अपनी हिम्मत का सहारा. फिर मुझे किस बात की कमी है? मेरा इतना बड़ा परिवार जो खड़ा है यहां, जो जरा से पुकारने पर दौड़ कर मेरे चारों ओर इकट्ठा हो जाता है.’’ यह सुन कर महेंद्र की छलछलाई आंखें बरस पड़ीं. उसे रोता देख कर वहां खड़े लोगों की आंखें भी गीली होने लगीं. महेंद्र आंसुओं को पोंछते हुए सोच रहा था, ‘ये कैसे दुख हैं, जो बूंद बन कर मन की सीप में टपकते हैं और प्यार व त्याग की गरमी पा कर खुशी के मोती बन जाते हैं.

Hindi Kahani : मेरा बच्चा मेरा प्यार – मिस्टर ऐंड मिसेज कोहली को कैसे हुआ एहसास

Hindi Kahani : ‘‘बच्चे का रक्त दूषित है,’’ वरिष्ठ बाल विशेषज्ञ डा. वंदना सरीन ने लैबोरेटरी से आई ब्लड सैंपल की रिपोर्ट पढ़ने के बाद कहा. एमबीबीएस कर रहे अनेक प्रशिक्षु छात्रछात्राएं उत्सुकता से मैडम की बात सुन रहे थे. जिस नवजात शिशु की ब्लड रिपोर्ट थी वह एक छोटे से पालने के समान इन्क्यूबेटर में लिटाया गया था. उस के मुंह में पतली नलकी डाली गई थी जो सीधे आमाशय में जाती थी. बच्चा कमजोरी के चलते खुराक लेने में अक्षम था. हर डेढ़ घंटे के बाद ग्लूकोस मिला घोल स्वचालित सिस्टम से थोड़ाथोड़ा उस के पेट में चला जाता था. इन्क्यूबेटर में औक्सीजन का नियंत्रित प्रवाह था. फेफड़े कमजोर होने से सांस न ले सकने वाला शिशु सहजता से सांस ले सकता था.

बड़े औद्योगिक घराने के ट्रस्ट द्वारा संचालित यह अस्पताल बहुत बड़ा था. इस में जच्चाबच्चा विभाग भी काफी बड़ा था. आयु अवस्था के आधार पर 3 बड़ेबड़े हौल में बच्चों के लिए 3 अलगअलग नर्सरियां बनी थीं. इन तीनों नर्सरियों में 2-4 दिन से कुछ महीनों के बच्चों को हौल में छोटेछोटे थड़ेनुमा सीमेंट के बने चबूतरों पर टिके अत्याधुनिक इन्क्यूबेटरों में फूलों के समान रखा जाता था. तीनों नर्सरियों में कई नर्सें तैनात थीं. उन की प्रमुख मिसेज मार्था थीं जो एंग्लोइंडियन थीं. बरसों पहले उस के पति की मृत्यु हो गई थी. वह निसंतान थी. अपनी मातृत्वहीनता का सदुपयोग वह बड़ेबड़े हौल में कतार में रखे इनक्यूबेटरों में लेटे दर्जनों बच्चों की देखभाल में करती थी. कई बार सारीसारी रात वह किसी बच्चे की सेवाटहल में उस के सिरहाने खड़ी रह कर गुजार देती थी. उस को अस्पताल में कई बार जनूनी नर्स भी कहा जाता था.

मिसेज मार्था के स्नेहभरे हाथों में कुछ खास था. अनेक बच्चे, जिन की जीने की आशा नहीं होती थी, उस के छूते ही सहजता से सांस लेने लगते या खुराक लेने लगते थे. अनेक लावारिस बच्चे, जिन को पुलिस विभाग या समाजसेवी संगठन अस्पताल में छोड़ जाते थे, मिसेज मार्था के हाथों नया जीवन पा जाते थे. मिसेज मार्था कई बार किसी लावारिस बच्चे को अपना वारिस बनाने के लिए गोद लेने का इरादा बना चुकी थी. मगर इस से पहले कोई निसंतान दंपती आ कर उस अनाथ या लावारिस को अपना लेता था. मिसेज मार्था स्नेहपूर्वक उस बच्चे को आशीष दे, सौंप देती. वरिष्ठ बाल विशेषज्ञ डा. वंदना सरीन दिन में 3 बार नर्सरी सैक्शन का राउंड लगाती थीं. उन को मिसेज मार्था के समान नवशिशु और आंगनवाटिका में खिले फूलों से बहुत प्यार था. दोनों की हर संभव कोशिश यही होती कि न तो वाटिका में कोई फूल मुरझाने पाए और न ही नर्सरी में कोई शिशु. डा. वंदना सरीन धीमी गति से चलती एकएक इन्क्यूबेटर के समीप रुकतीं, ऊपर के शीशे से झांकती. रुई के सफेद फाओं के समान सफेद कपड़े में लिपटे नवजात शिशु, नरमनरम गद्दे पर लेटे थे. कई सो रहे थे, कई जाग रहे थे. कई धीमेधीमे हाथपैर चला रहे थे.

‘‘यह बच्चा इतने संतुलित ढंग से पांव चला रहा है जैसे साइकिल चला रहा है,’’ एक प्रशिक्षु छात्रा ने हंसते हुए कहा. ‘‘हर बच्चा जन्म लेते ही शारीरिक क्रियाएं करने लगता है,’’ मैडम वंदना ने उसे बताया, ‘‘शिशु की प्रथम पाठशाला मां का गर्भ होती है.’’ राउंड लेती हुई मैडम वंदना उस बच्चे के इन्क्यूबेटर के पास पहुंचीं जिस की ब्लड सैंपल रिपोर्ट लैब से आज प्राप्त हुई थी.

‘‘बच्चे को पीलिया हो गया है,’’ वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था ने चिंतातुर स्वर में कहा.

‘‘बच्चे का रक्त बदलना पड़ेगा,’’ मैडम वंदना ने कहा.

‘‘मैडम, यह दूषित रक्त क्या होता है?’’ एक दूसरी प्रशिक्षु छात्रा ने सवाल किया. ‘‘रक्त या खून के 3 ग्रुप होते हैं. ए, बी और एच. 1940 में रक्त संबंधी बीमारियों में एक नया फैक्टर सामने आया. इस को आरएच फैक्टर कहा जाता है.’’ सभी इंटर्न्स और अन्य नर्सें मैडम डा. वंदना सरीन का कथन ध्यान से सुन रहे थे. ‘‘किसी का रक्त चाहे वह स्त्री का हो या पुरुष का या तो आरएच पौजिटिव होता है या आरएच नैगेटिव.’’

‘‘मगर मैडम, इस से दूषित रक्त कैसे बनता है?’’ ‘‘फर्ज करो. एक स्त्री है, उस का रक्त आरएच पौजिटिव है. उस का विवाह ऐसे पुरुष से होता है जिस का रक्त आरएच नैगेटिव है. ऐसी स्त्री को गर्भ ठहरता है तब संयोग से जो भ्रूण मां के गर्भ में है उस का रक्त आरएच नैगेटिव है यानी पिता के फैक्टर का है. ‘‘तब मां का रक्त गर्भ में पनप रहे भू्रण की रक्त नलिकाओं में आ कर उस के नए रक्त, जो उस के पिता के फैक्टर का है, से टकराता है. और तब भ्रूण का शरीर विपरीत फैक्टर के रक्त को वापस कर देता है. मगर अल्पमात्रा में कुछ विपरीत फैक्टर का रक्त शिशु के रक्त में मिल जाता है.’’ ‘‘मैडम, आप का मतलब है जब विपरीत फैक्टर का रक्त मिल जाता है तब उस को दूषित रक्त कहा जाता है?’’ सभी इंटर्न्स ने कहा.

‘‘बिलकुल, यही मतलब है.’’

‘‘इस का इलाज क्या है?’’

‘‘ट्रांसफ्यूजन सिस्टम द्वारा शरीर से सारा रक्त निकाल कर नया रक्त शरीर में डाला जाता है.’’

‘‘पूरी प्रक्रिया का रक्त कब बदला जाएगा?’’

‘‘सारे काम में मात्र 10 मिनट लगेंगे.’’ ब्लडबैंक से नया रक्त आ गया था. उस को आवश्यक तापमान पर गरम करने के लिए थर्मोस्टेट हीटर पर रखा गया. बच्चे की एक हथेली की नस को सुन्न कर धीमेधीमे बच्चे का रक्त रक्तनलिकाओं से बाहर निकाला गया. फिर उतनी ही मात्रा में नया रक्त प्रविष्ट कराया गया. मात्र 10 मिनट में सब संपन्न हो गया. सांस रोके हुए सब यह क्रिया देख रहे थे. रक्त बदलते ही नवशिशु का चेहरा दमकने लगा. वह टांगें चलाने लगा. सब इंटर्न्स खासकर वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था का उदास चेहरा खिल उठा. शिशु नर्सरी के बाहर उदास बैठे बच्चे के मातापिता मिस्टर ऐंड मिसेज कोहली के चेहरों पर चिंता की लकीरें थीं. ‘अभी मौजमेला करेंगे, बच्चा ठहर कर पैदा करेंगे,’ इस मानसिकता के चलते दोनों ने बच्चा पैदा करने की सही उम्र निकाल दी थी. मिस्टर कोहली की उम्र अब 40 साल थी. मिसेज कोहली 35 साल की थीं. पहला बच्चा लापरवाही के चलते जाता रहा था.

प्रौढ़ावस्था में उन को अपनी क्षणभंगुर मौजमस्ती की निरर्थकता का आभास हुआ था. बच्चा गोद भी लिया जा सकता था. परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया था क्योंकि उन्हें अपना रक्त चाहिए था. उन दोनों के मन में कई तरह के सवाल घूम रहे थे. एक पल उन्हें लगा कि पता नहीं उन का बच्चा बचेगा कि नहीं, उन का वंश चलेगा या नहीं? उन्हें आज अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि काश, उन्होंने अपनी मौजमस्ती पर काबू किया होता और सही उम्र में बच्चे की प्लानिंग की होती. हर काम की एक सही उम्र होती है. इसी बीच शिशु नर्सरी का दरवाजा खुला. वरिष्ठ नर्स मिसेज मार्था ने बाहर कदम रखा और कहा, ‘‘बधाई हो मिस्टर कोहली ऐंड मिसेज कोहली. आप का बच्चा बिलकुल ठीक है. कल अपना बच्चा घर ले जाना.’’

दोनों पतिपत्नी ने उठ कर उन का अभिवादन किया. वरिष्ठ नर्स ने उन को अंदर जाने का इशारा किया. पति ने पत्नी की आंखों में झांका, पत्नी ने पति की आंखों में. दोनों की आंखों में एकदूसरे के प्रति प्यार के आंसू थे. दोनों ने बच्चे के साथसाथ एकदूसरे को पा लिया था.

Best Short Story : मैं नहीं हारी – मीनाक्षी को क्यों हुआ मर्द की कमी का एहसास

Best Short Story : ‘’छोड़ दीजिए मुझे,‘‘ आखिर मीनाक्षी गिड़गिड़ाती हुई बोली.

‘‘छोड़ दूंगा, जरूर छोड़ दूंगा,’’ उस मोटे पिलपिले खूंख्वार चेहरे वाले व्यक्ति ने कहा, ‘‘मेरा काम हो जाए फिर छोड़ दूंगा.’’

वह व्यक्ति मीनाक्षी को कार में बैठा कर ले जा रहा था जब वह सहेली के यहां से रात 11 बजे पार्टी से निबट कर अकेली अपने घर जाने के लिए सुनसान सड़क पर औटो की प्रतीक्षा कर रही थी तभी काले शीशे वाली एक कार न जाने कब उस के पास आ कर खड़ी हो गई. वह संभले तब तक कार का दरवाजा खुला और उसे खींच कर कार में बैठा लिया गया. कार अपनी गति से दौड़ रही थी. यह सब अचानक उस के साथ हुआ. जब वह सहेली के यहां से निकली थी, तो उस ने अपने पति धर्मेंद्र को फोन किया था, ‘‘मैं निकल रही हूं,‘‘ तब धर्मेंद्र ने कहा था, ‘‘मैं आ रहा हूं तुम्हें लेने. तुम वहीं रुकना.’’

उस ने इनकार करते हुए कहा था, ‘‘नहीं धर्मेंद्र, मत आना लेने. मैं आ जाऊंगी. औरत को भी खुद पर निर्भर रहने दो. मैं औटो कर के आ जाऊंगी.‘‘

सच, अकेली औरत का रात को घर से बाहर निकलना खतरे को न्योता देना था. इस संदर्भ में कई बार वह धर्मेंद्र को कहती थी कि औरत को अकेली रहने दो. मगर आज उस के जोश की हवा निकल गई थी. उस को किडनैप कर लिया गया था. वह व्यक्ति उस के साथ क्या करेगा? वह उस व्यक्ति से गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे छोड़ दीजिए, मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.’’

‘‘मैं तुम्हें छोड़ दूंगा. यह बताओ तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘मीनाक्षी.’’

‘‘पति का नाम?’’

‘‘धर्मेंद्र.’’

‘‘क्या करता है, वह?’’

‘‘नगर निगम में लेखाधिकारी हैं.’’

‘‘उस सुनसान सड़क पर क्या कर रही थी?’’

‘‘सहेली के यहां पार्टी में गई थी. औटो का इंतजार कर रही थी.’’

‘‘झूठ बोल रही है, एक सभ्य औरत रात को अकेली नहीं घूमती. यदि घूमती भी है तो साथ में कोई पुरुष होता है. यह क्यों नहीं कहती कि ग्राहक ढूंढ़ रही थी. निश्चित ही तू वेश्यावृत्ति करती है.’’

‘‘नहींनहीं… मैं वेश्यावृत्ति नहीं करती. मैं सभ्य घराने की महिला हूं.’’

‘‘बकवास बंद कर, यदि सभ्य घराने की होती तो रात को अकेली यों सड़क पर न घूमती. तुझ जैसी सभ्य घराने की औरतें पैसों के लिए आजकल चुपचाप वेश्यावृत्ति करती हैं,’’ उस व्यक्ति ने यह कह कर उसे वेश्या घोषित कर दिया.

वह पछता रही थी कि अकेली रात को क्यों बाहर निकली. फिर भी साहस कर के वह बोली, ‘‘अब आप को कैसे समझाऊं?’’

‘‘मुझे समझाने की कोई जरूरत नहीं. मैं तुझ जैसी औरतों को अच्छी तरह जानता हूं. तुम अपने पति को धोखा दे कर धंधा करती हो. पति को कह दिया, सहेली के यहां जा रही हूं. आज मैं तुम्हारा ग्राहक हूं, समझी,’’ कह कर उस ने कस कर मीनाक्षी का हाथ पकड़ लिया.

अब इस के चंगुल से वह कैसे निकले. कैसे कार से बाहर निकले. उस के भीतर द्वंद्व चलने लगा. इस समय उस के पांव पूरी तरह खुले थे. बस, पांवों का ही इस्तेमाल कर सकती है. उस ने चौराहे के पहले स्पीडब्रेकर को देख उस की जांघों के बीच जम कर लात दे मारी. खिड़की से टकरा कर उस का हाथ छूट गया. तत्काल उस ने दरवाजा खोला और कूद पड़ी.

जिस सड़क पर वह गिरी वहां 3-4 लोग खड़े थे. इस तरह फिल्मी दृश्य देख कर वे हतप्रभ रह गए. वे दौड़ कर उस के पास आए. उसे चोट तो जरूर लगी, मगर वह सुरक्षित थी. उन में से एक व्यक्ति बोला, ‘‘उस कार वाले ने गिराया.’’

‘‘नहीं,’’ वह हांफती हुई बोली.

‘‘क्या खुद गिरी?’’ दूसरे व्यक्ति ने पूछा.

‘‘हां,’’ कह कर उस ने केवल सिर हिलाया.

‘‘मगर क्यों गिरी?’’ तीसरे ने पूछा.

‘‘उस व्यक्ति ने मेरा किडनैप किया था.’’

‘‘कहां से किया?’’ चौथे व्यक्ति ने पूछा.

‘‘आजाद चौक से,’’ उस ने उत्तर दे कर सड़क की तरफ उस ओर देखा कि कहीं कार पलट कर तो नहीं आ रही है. उसे तसल्ली हो गई कि कार चली गई है तब उस ने राहत की सांस ली.

‘‘मगर उस व्यक्ति ने तुम्हारा किडनैप क्यों किया?’’ पहले व्यक्ति ने उस की तरफ शरारत भरी नजरों से देखा. उस की आंखों में वासना झलक रही थी.

‘‘उस्ताद, यह भी कोई पूछने की बात है कि इस परी का किडनैप क्यों किया होगा.’’

दूसरा व्यक्ति लार टपकाते हुए बोला, ‘‘भला हो, उस कार वाले का, जो इसे यहां पटक गया.’’

सड़क पर सन्नाटा था. इक्कादुक्का दौड़ते वाहन सड़क पर पसरे सन्नाटे को तोड़ रहे थे. उस ने देखा कि वह उन चारों के बीच घिर गई है, ‘इन की नीयत भी ठीक नहीं लगती. यदि इन्होंने भी वही हरकत की तो…’ सोच कर वह सिहर उठी.

‘‘कहां रहती हो?’’ तीसरे व्यक्ति ने पूछा.

‘‘अरे बेवकूफ, कार वाले ने हमारे लिए फेंका है और तू पूछ रहा है कहां रहती हो,’’ चौथे ने तीसरे को डांटते हुए कहा, ‘‘अरे, यह तो हम चारों की द्रौपदी है. चलो, ले चलो.‘‘

वह समझ गई, उन की नीयत में खोट है. एक गुंडे से उस ने पिंड छुड़ाया. अब 4 गुंडों के बीच फंस गई है. यहां से निकलना मुश्किल है. वह एक औरत है. उसे यहां भी बहादुरी दिखानी है. उसे इस जगह अब झांसी की रानी बनना है. इन गुंडों को सबक सिखाना है. वे चारों गुंडे उसे देख कर लार टपका रहे थे. ‘मीनाक्षी असली परीक्षा की घड़ी तो अब है. यदि इन से बच गई तो समझ लो जीत गई. गुंडों से लड़ना पड़ेगा. इन्होंने औरत को अबला समझ रखा है. बन जा सबला.’ वे चारों गुंडे कुछ करें इस के पहले ही वह बोली, ‘‘खबरदार, जो मुझे हाथ लगाया?’’

‘‘हम तुझे हाथ कहां लगाएंगे? हम तो 4 पांडव हैं. तू तो खुद हमें समर्पण करेगी?‘‘

वह व्यक्ति आगे बढ़ा तो वह पीछे हटी. और उस ने रास्ते की धूल उठा कर उस की आंखों में फेंकी और भाग ली. वे चारों उस के पीछेपीछे थे. वह हांफती हुई दौड़ रही थी. उस में गजब की ताकत आ गई थी. अगर आदमी में हौसला है तो सबकुछ पा सकता है. मीनाक्षी ने देखा, सामने से एक औटो आ रहा है. उसे हाथ से रोकती हुई बोली, ‘‘भैया, रुको.’’

औटो वाला जब तक रुके तब तक वे बहुत पास आ चुके थे. मगर तब तक वह भी औटो में बैठ चुकी थी. औटो वाले ने भी मौके की नजाकत देखते हुए तेज रफ्तार से औटो बढ़ा दिया. एक मिनट यदि औटो लेट हो जाता तो वे गुंडे उसे पकड़ चुके होते. वे थोड़ी देर तक औटो के साथ दौड़ते रहे, मगर थक कर चूर हो गए. अब औटो उन की पहुंच से दूर हो चुका था. उस ने राहत की सांस ली. औटो वाला बोला, ‘‘किधर जाना है?’’

‘‘आजाद चौक तक, बहुतबहुत धन्यवाद भैया, आप ने मेरी जान बचा ली.’’

‘‘लेकिन वे लोग कौन थे?‘‘

‘‘मुझे नहीं मालूम कौन लोग थे वे सब,’’ घबराती हुई मीनाक्षी कहतकहते चुप हो गई. उस ने सोचा औटो वाला कहीं और न ले जाए. आगे मीनाक्षी असलियत बता कर अपने को गिराना नहीं चाहती थी. औटो सड़क पर दौड़ रहा था. अब उन के बीच सन्नाटा पसरा हुआ था. वह उस की हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी. उस के भीतर एक दहशत भी थी. औटो में अकेली बैठी है. एकएक मिनट एकएक घंटे के बराबर लग रहा था. चेहरे पर भय की रेखाएं थीं. मगर, वह उसे बाहर ला कर अपने को कमजोर नहीं दिखाना चाहती थी. अंतत: उस का बंगला आ गया. उस ने औटो रुकवाया. ड्राइवर से किराया पूछा.

’’50 रुपए,’’ ड्राइवर के कहने के साथ ही उस ने पर्स में से 50 का नोट निकाल कर दे दिया. फिर उसे धन्यवाद दिया और भाग कर भीतर पहुंच गई.

धर्मेंद्र बोले, ‘‘बहुत देर कर दी, मीनाक्षी?’’

‘‘हां, धर्मेंद्र आज गुंडों के बीच मैं बुरी तरह से फंस गई थी, मगर उन का सामना किया, लेकिन मैं हारी नहीं,’’ यह कहते समय उस के चेहरे पर संतोष के भाव थे.

धर्मेंद्र घबरा गए और बिना रुके एकदम बोल पड़े, ‘‘झूठ बोल रही हो, तुम. गुंडों से क्या मुकाबला करोगी, इतनी ताकत है एक औरत में.’’

‘‘ताकत थी तभी तो सामना किया,’’ कह कर उस ने संक्षिप्त में सारी कहानी धर्मेंद्र को सुना दी. धर्मेंद्र आश्वस्त हो गए और उसे अपनी बांहों में भर लिया.

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