Religion : ऋषिकेश में एक स्कूल के प्रबंधकों द्वारा कुछ माह पहले लड़कियों को तिलक लगा कर स्कूल आने पर प्रतिबंध लगाए जाने पर कट्टरपंथी, अनुमान के अनुसार, हल्ला मचा रहे हैं. ये वही कट्टरपंथी हैं जो मुसलिम लड़कियों के हिजाब पहन कर स्कूल आने पर प्रतिबंध की मांग करते हुए अपने दोगलेपन पर कतई शर्मिंदा नहीं होते. तिलक, क्रौस, हिजाब, सिर पर चुन्नी, स्कल कैप असल में स्कूलों में ही नहीं, हर पब्लिक प्लेस में फ्रांस की तरह बैन होनी चाहिए. धर्म ने अपने भक्तों से सदियों से कहा है कि अपनी पहचान न केवल बना कर रखो, उसे पब्लिक में जाहिर भी करो. ऐसा इसलिए कि उन पर हमले हों और वे फिर उसी धर्म की शरण में आएं जिस ने ऐसे विभाजनकारी आदेश जारी किए थे. समाज में बंटवारों से धर्म को बड़ा लाभ होता है क्योंकि मार खाए भक्त या मरने वाले दूसरे धर्म के भक्त दोनों पिटने या पीटने के बाद धर्म की दुकान में शरण के लिए अवश्य जाते हैं. अपना धर्म अपनी जेब में रहना चाहिए. अगर अंधविश्वासी ही हैं तो उस का सार्वजनिक प्रदर्शन तो न करें.
धर्म एक मानसिक बीमारी है जिस के वायरस को मंदिर, मसजिद, चर्च, गुरुद्वारे रातदिन अपने भक्तों में फैलाते हैं और फिर इलाज के लिए कोई प्रवचन के लिए बुलाता है, कोई अरदास के लिए तो कोई दुआ पढ़ने के लिए. एक बात सब में सामान्य है कि सब अपने गढ़े सर्वशक्तिमान चमत्कारी भगवान के इकलौते एजेंट होने के बावजूद भक्तों से पैसा भी देने को कहते हैं और शरीर से कुकर्म करने को भी कहते हैं. यह ब्रेन वाशिंग बचपन से ही चालू हो जाती है क्योंकि धर्म के दुकानदार अच्छी तरह समझते हैं कि वयस्क होने के बाद लोगों को बहकाना आसान नहीं है. भारत में 800 साल मुसलमानों का राज रहा पर अविभाजित भारत में आज भी 12 करोड़ से ज्यादा हिंदू हैं क्योंकि जो बचपन से हिंदू धर्म के रस में डूबा रहा उसे बदलना आसान नहीं था. स्कूलों को हर धर्म अपनी पहली ट्रेनिंग यूनिट मानता है. इसीलिए हर धर्म ने धड़ाधड़ स्कूल अपनी धार्मिक दुकान के साथ खोले हैं.
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