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Social Story: अनजान मंजिल के नए रास्ते

लेखिका-Er. Asha Sharma

‘‘सुबहउठते ही सब से पहले हाथों में अपने करम की लकीरों के दर्शन करने चाहिए.’’  मां की यह बात मंजूड़ी के दिमाग में ऐसी फिट बैठी हुई है कि हर सुबह नींद खुलने के साथ ही उस के दोनों हाथ मसल कर अपनेआप ही आंखों के सामने आ जाते हैं. यह अलग बात है कि मंजूड़ी को इन में आज तक किसी देव के दर्शन नहीं हुए. अपने करम की लकीरों से सदा ही शिकायत रही है उसे. और हो भी क्यों नहीं… दिन उगने के साथ ही उसे रोजमर्रा की छोटीछोटी जरूरतों के लिए भी जूझना पड़ता है… समस्या एक हो तो गिनाए भी… यहां तो अंबार लगा है…

उठते ही सब से पहले समस्या आती है फारिग होने की… बस्ती की बाकी लड़कियों के साथ उसे भी किसी की पी कर खाली की गई ठंडे की बोतल ले कर मुंह अंधेरे ही निकलना पड़ता है… अगर किसी दिन जरा भी आलस कर गई तो दिन भर की छुट्टी… अंधेरा होने तक पेट दबाते ही रहो…

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इस के बाद बारी आती है नहानेधोने की… तो रोज न सही लेकिन कभीकभी तो नहानाधोना भी पड़ता ही है… यूं तो सड़क के किनारे बिछी मोटी पाइपलाइन से जगहजगह रिसता पानी इस काम को आसान बना देता है. जब वह छोटी थी तो मां के कमठाणे पर जाने के बाद कितनी ही

देर तक इस पानी से खेलती रहती थी. लेकिन एक दिन… जब वह नहा रही थी तब मुकेसिया उसे घूरने लगा था… पहली बार मां ने बांह

पकड़ के उसे कहा था ‘‘ओट में नहाया कर…’’ उस दिन के बाद वह ओट  में ही नहाती है. जी हां! ओट…

मां ने लकड़ी की चार डंडियां रोप कर… पुराने टाट और अपनी धोती बांध कर नहाने के लिए ओट तो बना रखी थी लेकिन वहां नहाना भी कहां आसान था… एक बड़ी परात में छोटा सा पाटा रख कर उस पर किसी तरह बैठ कर नहाओ अखरता तो बहुत है लेकिन क्या करें…

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मां कहती है, ‘‘विधाता के लिखे करम तो भोगने ही पड़ेंगे.’’

पीने के लिए पानी का जुगाड़ करना भी एक बड़ी समस्या है. मैल से चिक्कट हुए कुछ प्लास्टिक के खाली कनस्तर झुग्गी के बाहर पड़े हैं. टूटी हुई पाइपलाइन से लोटालोटा भर के इन में दिन भर के लिए पीने का पानी भरना है… मां ने तो यह काम उसी के जिम्मे डाल रखा है… खुद तो बापड़ी दिन उगे उठने के साथ ही चूल्हे में सिर दे देती है… न दे तो करे भी क्या… 5 औलादें और 2 खुद… 7 मिनखों के लिए टिक्कड़ सेकतेसेकते ही सूरज सिर पर आ जाता है…

8 बजतेबजते तो दोनों धणीलुगाई अपने टिफिन ले कर काम पर चले जाते हैं… जो दिन ढले आते हैं तो थक के एकदम चूर… बाप तो एकआध पौव्वा चढ़ा कर अपनी थकान उतारने का झूठा बिलम करता है लेकिन मां बेचारी क्या करे… सूखे होंठों की पापड़ी को गीली जीभ फिरा कर नरम करती है और फिर से चूल्हे में सिर दे देती है… ईटों की तगारी सिर पर ढोतेढोते खोपड़ी के बाल घिस गए बेचारी के…

‘‘अरे मंजूड़ी, सूरज सिर पर नाचण लाग रियो है… इब तो उठ जा मरजाणी… बेगी सी मैडमजी को काम सलटा के आज्या… मैं और तेरो बापू जा रिया हां… और सुण, मुकेसिया नै ज्यादा मुंह मत लगाया कर… छुट्टा सांड हो रखा है आजकल…’’ मां ने जूट सिली पानी की बोतल प्लास्टिक की थैली में रखते हुए कहा तो मंजूड़ी ने अपनी खाट छोड़ी और अंगड़ाई लेने लगी. झुग्गी में पड़ेपड़े ही बाहर देखा. रामूड़ा अपनी खाट पर नहीं दिखा. उस का प्लाटिक का थैला भी अपनी ठौर नहीं था.

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‘बेचारा रामूड़ा, मुंह अंधेरे ही कांच प्लास्टिक की खाली बोतलें चुगने निकल जाता है… न जाए तो क्या करे… यहां भी तो चुगने वालों में होड़ लगी रहती है… जो सोए… सो खोए… कुछ कचरा बीन लाएगा तो 10-20 रुपल्ली हाथ में आ जाएगी… रुपए मुट्ठी में दबा के कैसा धन्ना सेठ समझने लगता है खुद को…’ सोच कर मंजूड़ी मुसकरा दी.

16 साल की मंजूड़ी भले ही झुग्गी में रहती है… बेशक उस की जिंदगी में सौ अभाव हैं… लेकिन आंखों में सपने तो आम लड़कियों की तरह ही हैं न… बारबार खुद को दर्पण में देखना… तरहतरह से बाल काढ़ना… सस्ती ही सही लेकिन नाखूनों पर पालिश की परत चढ़ाना… लिपस्टिक न सही… 2-5 रुपए की संतरे वाली कुल्फी से ही अपने होंठों को रंग कर खुद पर इतराना… ये सब भला किसी विशेष सामाजिक स्तर की लड़कियों के लिए आरक्षित थोड़े ही हैं… मंजूड़ी को भी सपने देखने का उतना ही अधिकार है जितना किसी भी सामान्य किशोरी को… उस का मन भी बारिश में भीगभीग कर गीत गाने को होता है… जैसे फिल्मों में हीरोइन गाती है… सफेद झीनी साड़ी पहने के… उसे भी सर्दी में चाय के साथ गरमगरम समोसे और गरमी में ठंडीठंडी कुल्फी आइसक्रीम खाने को दिल करता है…

अरे हां, चाय और आइसक्रीम से याद आया. अभी पिछले सप्ताह की ही तो बात है. ननिहाल से बिरजू मामा आए थे. मां ने छोटी बहन नानकी को 10 का नोट दे कर दूध लाने भेजा था. दूध वाली थड़ी पर एक बच्चा अपनी मां के साथ आइसक्रीम ले कर खा रहा था. नानकी का भी दिल मचल गया. उस ने उस 10 रुपए की कुल्फी खरीद ली और मजे से चुस्की मारने लगी. उधर चाय का पानी दूध के इंतजार में उबल रहा था और उधर ननकी का कोई अतापता ही नहीं… मां ने बापू को देखने भेजा तो पीछेपीछे मंजूड़ी भी आ गई. बापू ने नानकी को कुल्फी चूसते देखा तो ताव खौल गया… रोज कुआं खोद कर पानी पीने वाले के लिए 10 के नोट की कीमत क्या होती है यह सिर्फ वही समझ सकता है…

तमतमाए बापू ने मां की गाली के साथ एक जोरदार डूक नानकी की पीठ पर धर दिया. कुल्फी छूट कर मिट्टी में गिर गई. नानकी ने पलट कर देखा तो डर का एक साया उस की आंखों में उतर आया लेकिन अगले ही पल उसे कुल्फी का ध्यान आया. उस ने कुल्फी को उठाया… अपनी फ्रौक से पोंछी और फिर से उसे चूसनेचाटने लगी.. ‘‘बेचारी नानकी…’’ मंजूड़ी को उस पर दया आ गई. उस ने बहन के बालों में हाथ फेरा और झुग्गी से बाहर आ गई.

बस्ती में कुछ चूल्हे अभी भी सुलग रहे हैं. दीनू काका कीकर की छांव में बैठे बीड़ी फूंक रहे हैं… सरबती ताई खाट पर पड़ी खांस रही है… बिमली का छोरा झुग्गी के बाहर रखी 2 ईंटों पर अपना सुबह का पहला काम निपटा रहा है… 2 पिल्ले उस के निबटने के इंतजार में आसपास मंडरा रहे हैं… एक तरफ 3-4 बच्चे धींगामस्ती कर रहे हैं. मुकेस अपनी औटो साफ कर रहा है… उस के एफएम पर तेज गाने बज रहे हैं. मुकेस ने उस की तरफ देखा और मुसकरा कर अपनी बाईं आंख दबा दी. मंजूड़ी सकपका कर झुग्गी के भीतर आ गई.

‘‘छुट्टा सांड कहीं का, मां कहती है मुकेसिये को मुंह मत लगाना… ससुरा ये तो अंगअंग लग चुका…’’ मंजूड़ी बुदबुदाई और फिर से खाट पर पसर गई. हाथ छाती पर चला गया. 10-10 के कुछ नोट अभी भी चोली में दबे पड़े हैं.

3 साल पहले की ही बात है. मंजूड़ी मैडमजी के घर साफसफाई कर के आई ही थी. तावड़े ने भी आज धार ही रखी थी लाय बरसाने की. मंजूड़ी अपनी लूगड़ी को पानी में निचोड़ कर लाई और गीली को ही ओढ़ कर खाट पर पसर गई थी. थोड़ी देर में लूगड़ी का पानी सूख गया. वह फिर से बाहर निकली उसे भिगोने के लिए. तभी मुकेस सामने आ गया.

‘‘क्या बात है! बहुत गरमी चढ़ी है क्या?’’ मुकेस बोला.

‘‘गरमी कहां? मैं तो ठंड से कांप रही हूं.’’ मंजूड़ी ने तमक कर कहा.

‘‘अरे ठंड तो तुझे मैं बताता हूं… मेरे साथ आ…’’ मुकेस उस का हाथ पकड़ कर अपनी झुग्गी में ले गया. झुग्गी सचमुच ठंडी टीप हो रही थी. कूलर जो लगा था… मगर बिजली? मंजूड़ी ने देखा कि उस ने बिजली के खंभे पर अंकुड़ा डाल रखा है. मुकेस ने मंजूड़ी को खाट पर लिटा दिया और खुद भी बगल में सो गया. मुकेस उस पर छाने की कोशिश करने लगा. मंजूड़ी ने विरोध किया लेकिन उस का विरोध थोथा साबित हुआ और मुकेस ने उसे परोट ही लिया. जैसे कभीकभी बापू उस की मां को परोट लेता है… अब एक झुग्गी में इतने मिनख साथ सोएंगे तो फिर परदा कहां रहेगा.

मंजूड़ी की आंखें मूंदने लगी थी. जब आंख खुली तो मुकेस पैंट पहन रहा था. उस ने भी अपने कपड़े ठीक किए और खाट से नीचे उतर गई.

‘‘जब कभी गरमी ज्यादा लगे तो कूलर की हवा खाने आ आना…’’ कहते हुए मुकेस ने

10-10 के 3-4 नोट उस की मुट्ठी में ठूंस दिए थे. वही नोट आज भी उस की चोली में कड़कड़ा रहे हैं.

‘‘आज तुम सब को कुल्फी खिलाऊंगी.’’ नोट सहेजती मंजूड़ी भाईबहनों को जगाने लगी.

मंजूड़ी को आज मैडमजी के घर जाने में देर हो गई. वह फटाफट उन के काम निपटाने लगी. तभी मैडमजी कालेज के लिए तैयार हो कर कमरे से बाहर निकली. और दिन तो वह उन को रात के बासी गाउन में ही देखती है. लेकिन आज…

काली सलवार और लाल कुरता… मैचिंग चप्पल… कंधे पर झूलता पर्स और हाथ में पकड़ा मोबाइल… कानों में लटके झुमके अलग से लकदक कर रहे थे… मंजूड़ी देखती ही रह गई. आंखों में ‘‘काश’’ वाली एक चमक सी उभरी और फिर धीरेधीरे मंद पड़ती गई.

‘‘आज बहुत देर कर दी मंजू. मैं तो निकल रही हूं… तू भी फटाफट काम निबटा दे… साहब को भी जाना है…’’ कहती हुई मैडमजी ने कार की चाबी उठाई और बाहर निकल गई. मंजूड़ी अपने काम में लग गई लेकिन आंखों के सामने अभी भी हीरोइन सी सजीधजी मैडमजी ही घूम रही थीं.

3-4 दिन बाद जब मंजूड़ी सफाई करने मैडमजी के कमरे में गई तो देखा कि ड्रैसिंग टेबल पर उन के वही झुमके रखे थे. उस ने उन्हें उठाया और अपने कानों से लगा कर देखा… फिर गरदन इधरउधर घुमाई… खुद ही खुद पर मुग्ध हो गई… कुछ देर यों ही खुद को निहारती रही… तभी शीशे में साहबजी की छवि देख कर वह अचकचा गई और झुमके वापस रख दिए.

‘‘तुझे पसंद है क्या?’’ साहब ने प्रेम से पूछा. मंजूड़ी ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘ये ले, पहन ले… विनी के पास तो ऐसे बहुत से हैं.’’ साहबजी उस के बहुत पास आ गए थे. इतने पास कि पंखे की हवा से उन के शरीर पर छिड़का हुआ पाउडर उड़ कर मंजूड़ी की कुर्ती पर बिखरने लगा. साहबजी ने वे झुमके जबरदस्ती उस के हाथों में थमा दिए. इसी बहाने उस के हाथों को ऊपर तक और फिर कुछ नीचे भी… गले और छाती तक… मसल दिया था साहब ने… एक बार तो मंजूड़ी अचकचा गई लेकिन फिर उस ने झुमके ले लिए. झुमकों की ये कीमत ज्यादा नहीं लगी उसे.

एक मूक समझौता हो गया… साहबजी… मुकेस… और मंजूड़ी… सब एकदूसरे की जरूरतें पूरी करने लगे. आजकल मंजूड़ी काफी खुश नजर आती है. दिन भर गुनगुनाती रहती है. और तो और विनी मैडम के घर भी जानबूझ कर देरी से जाने लगी है. बस, उस का घर में घुसना और विनी का निकलना… लगभग साथसाथ ही होता है… कभीकभी मुकेस की झुग्गी में ठंडी हवा खाने भी चली जाती है.

‘‘आज ये कुल्फी किस ने खाई रे?’’ मां ने झुग्गी के बाहर से चूसी हुई कुल्फी की डंडियां उठाते हुए पूछा.

‘‘मंजूड़ी लाई थी…’’ नानकी ने पोल खोल दी तो मां ने मंजूड़ी को सवालिया निगाहों से घूरा.

‘‘आज रास्ते में 20 का नोट पड़ा मिला था… उसी से खरीद…’’ मंजूड़ी साफ झूठ बोल गई लेकिन मन ही मन डर भी गई थी कि कहीं मां यह झूठ पकड़ न ले… मंजूड़ी अतिरिक्त सतर्क हो गई.

‘‘मंजूड़ी यह नई फैसन की लाल चोली कहां से आई तेरे पास? एक दिन मां ने कड़कते हुए पूछा था.’’

‘‘इन मांओं के पास भी जाने कैसी चील की सी नजर होती है… कुछ भी नहीं छिपता इन से…’’ मंजूड़ी अपनी लूगड़ी में ब्रा को छिपाने की कोशिश करने लगी.

‘‘अरे बता तो… किस ने दी है?’’ मां ने उस की लूगड़ी परे फेंक दी. मंजूड़ी चुप.

‘‘मां हूं तेरी… बरस खाए हैं मैं ने… तेरी वाली उमर भोग चुकी हूं… देख छोरी, सहीसही बता… किस रास्ते जा रही है तू…’’ मां ने उस के कंधे झिंझोड़ दिए. मंजूड़ी पूरी हिल गई… नहीं हिली तो सिर्फ उस की जुबान.

‘‘देख मंजूड़ी, हम ठहरी लुगाई जात… मरद का मैल भी हमें ही ढोना पड़ता है… मुकेसिए और तेरे साहबजी जैसे लोगों के चक्कर में मत आ जाना… और ये प्रेमप्यार का तो सोचना भी मत… यह सब हमारे भाग में नहीं लिखा होता…’’ मां थोड़ी नरम पड़ी तो मंजूड़ी का भी हौंसला बढ़ा.

‘‘तू तो मेरी वाली उमर भोग चुकी है न मां, जानती ही होगी कि अच्छा खानेपीने, पहननेओढ़ने और सैरसपाटे की कितनी हूंस उठती है मन में… अब न तो मेरा बाप कोई धन्ना सेठ है जो मेरी सारी इच्छाएं पूरी कर देगा और न ही हमारी इतनी औकात है कि हम पढ़लिख कर विनी मैडम जैसे कमाएं और उड़ाएं… ज्यादा क्या होगा… 2-4 घर और पकड़ लूंगी… लेकिन उतने भर से क्या हो जाएगा… तो ञ्चया मार लें अपने मन को? यों ही रोतेबिसूरते निकाल में अपनी उमर? तूने तो बरस खाए हैं न… तू ही कोई इज्जत वाला रास्ता बता जिस से मेरे सपने पूरे हो सकें.’’ मंजूड़ी जैसेजैसे बोल रही थी वैसेवैसे मां के माथे पर लकीरें बढ़ती जा रही थी.

‘‘अरे करमजली, किस रास्ते पर चल पड़ी है तू… ये मरद जात बड़ी काइयां होती हैं… तू इन के लिए बिस्तर की चादर सी है… नई बिछाते ही पुरानी को उतार फेंकेंगे… कल को कहीं कोई रोगमरज लग गया तो दवादारू तो छोड़… देखने तक भी नहीं आएंगे ये… अरे हमारे पास चरित्तर के अलावा और है ही क्या…’’ मां उस के सिर में ठोला दे कर फुंफकारी. मंजूड़ी सर झुकाए खड़ी रही. मां उसे इसी हालत में छोड़ कर काम पर निकल गई.

4 दिन हो गए. मंजूड़ी काम पर नहीं गई. मुकेस भी कई बार उस के आसपास मंडराया लेकिन

उस ने उस की तरफ देखा तक नहीं… नानकी 2 दिन से कुल्फी के लिए रिरिया रही है. रामूड़े की जांघ उस के नेकर में से झांकने लगी है… खुद उस की आंखों के सामने विनी मैडमजी जैसे झुमके… बिंदी और क्रीम पाउडर घूम रहे हैं. मंजूड़ी चरित्र और इज्जत की परिभाषा में उलझती ही जा रही है.

‘‘इज्जत… इज्जत… इज्जत, चाटूं क्या इस थोथे चरित्तर को… क्या हो जाता है इज्जत को जब मुंह अंधेरे मोट्यारों के सामने नाड़ा खोल कर बैठना पड़ता है… कहां छिप जाता है चरित्तर जब खुले में आंख मींच के नहाना पड़ता है… कहां चली जाती है लाजशरम जब रात में मांबापू के बीच में सांस दबा के सोने का नाटक करना पड़ता है…’’ मंजूड़ी खुद को मथने लगी. विचारों के दही में से निष्कर्ष का मक्खन अलग होने लगा.

‘‘अगर कभी साहबजी ने मेरे साथ जबरदस्ती की होती तो? तो क्या होता… मैं अपनी इज्जत की खातिर दूसरा घर देखती… लेकिन एक बार तो लुट ही गई होती न… तो फिर? क्या हर बार लुटने के बाद घर बदलती? लेकिन कब तक? और तब न इज्जत बचती और न ही हाथ में दो रुपल्ली आती… तो फिर अब जब यह सब मेरी मर्जी से हो रहा है तो इस में क्या गलत है? क्या चरित्तर की ठेकेदारी सिर्फ हम लुगाइयों की है… साहबजी या मुकेसिये पर तो कोई उंगली नहीं उठाएगा… जब वो मेरे जरिए अपना मलब साध रहे हैं तो फिर मैं ही क्यों इज्जत की टोकरी ढोती फिरूं… मैं भी क्यों नहीं उन के जरिए अपना मतलब साधूं… कोई न कोई बीच का रास्ता जरूर होगा…’’ रात भर विचारती मंजूड़ी के मन की गुत्थी सुबह होने तक लगभग सुलझ ही आई थी.

आज मां के जागने से पहले ही मंजूड़ी उठ गई… सुबह का काम निबटाया… हाथमुंह धोया… अपने कपड़े ठीक किए… काम पर निकल पड़ी… रास्ते में दवाई की दुकान पर ठिठकी… आसपास देखा… घोड़े की फोटो वाला पैकेट खरीद कर चोली में ठूंस लिया… सधे हुए कदमों से चल दी मंजूड़ी… अनजान मंजिल के नए रास्तों पर…

 

दलित पिछड़ा राजनीति: घट रही हैं आपसी दूरियां

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव की तैयारियों में जुटने लगी हैं, बंद कमरों में गुप्त मीटिंगें हो रही हैं, कुछ के आंतरिक कलह खुल कर सामने भी आने लगे हैं. इस बीच जमीन पर जनता क्या सोच रही है, उस का क्या मूड है, जानने के लिए पढ़ें यह ग्राउंड रिपोर्ट. देहाती कहावत है कि हांडी के चावल पके हैं या कच्चे हैं, यह देखने के लिए पूरी हांडी के चावल निकालने की जरूरत नहीं होती, केवल चावल का एक दाना ही पूरी हांडी के चावल का हाल बता देता है.

गांव में दलितपिछड़ा राजनीति में जो बर्फ 1990 से 2010 तक जमी थी वह 10 सालों में कितनी पिघल गई है, इस को सम झने के लिए जब नंदौली गांव के लोगों से बात की गई तो सम झ आया कि दलितपिछड़ों में अब पहले जैसी दूरी नहीं रह गई है. दलितपिछड़ों में घटती दूरी के परिणामस्वरूप 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में नए समीकरण बनने की उम्मीद दिख रही है. यही वजह है कि बसपा से टूटने वाले विधायकों की पहली पसंद सपा बन गई है.

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उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मोहनलालगंज इलाके का एक गांव है नंदौली. यह जिले का सीमावर्ती गांव है. इस गांव के बाद ही रायबरेली का जिला शुरू हो जाता है. दलित और पिछड़ा समाज के जमीनी सच को सम झने के लिए नंदौली गांव को बातचीत के लिए इस कारण चुना क्योंकि यह राजधानी से मात्र 50 किलोमीटर की दूरी पर ही बसा है. यह लखनऊ-रायबरेली मुख्यमार्ग से 6 किलोमीटर अंदर है. इस गांव में दलित, पिछड़ा, मुसलिम और सवर्ण आबादी है. दलित आबादी सब से ज्यादा है. यहां बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और भाजपा का प्रभाव रहता है.

गांव की आबादी करीब 2,000 लोगों की है. 1,450 यहां वोटर हैं. सवर्णों में ठाकुर बिरादरी है. दलितों में पासी, चमार और अन्य जातियां हैं. इसी तरह पिछड़ों में अन्य पिछड़ा वर्ग की गड़रिया जाति है. इस के अलावा मुसलिम हैं. इस गांव में पिछड़ी आबादी तो कम है लेकिन पहले कांग्रेस, बाद में बसपा का समर्थन करने वाले दलित भी बिना किसी भेदभाव के सपा के साथ खड़े होते रहे हैं. दलित और पिछड़ों मे आपसी दूरियां कम होती रही हैं. गांव के पंचायत चुनाव से ले कर विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में इस बात को कसौटी पर कस कर देखा जा सकता है. पंचायत चुनावों में यहां 1990 में शीतला बक्श सिंह, 1995 में राम बहादुर रावत, 1999 में जगन्नाथ, 2005 में चंदा देवी, 2010 में रीना सिंह, 2015 में अमृत लाल और 2019 में रीना सिंह प्रधान चुनी गई थीं.

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नंदौली गांव के पंचायत चुनावों से ले कर मोहनलालगंज विधानसभा चुनाव तक एकजैसे नतीजे ही दिखे हैं. इस से यह भी पता चलता है कि गांव के लोग सामाजिक समरसता की सोच रखते हैं. किसी भी तरह के भुलावे या नेता की हवा में आ कर वोट नहीं देते हैं. गांव पूरी तरह से खेती पर निर्भर है. गरीब गांव है. कुछ घरों को छोड़ दें, तो कच्चे मकान अधिक हैं. आर्थिक हालत सभी की करीबकरीब एकजैसी ही है. किसानी केवल पेट पालनेभर की है. राजधानी के करीब होने के बाद भी गांव में केवल एक ही सरकारी नौकर है. वह भी केवल स्कूल मास्टर. पहले इस गांव में 3 सरकारी शिक्षक और 3 लोग रेलवे में सरकारी नौकरी करते थे. सरकारी योजना का लाभ पा कर दलितों के कुछ घरों में पक्की छत पड़ गई है.

यहां के रहने वाले लोग राजनीतिक रूप से काफी सम झदार हैं. गांव के पंचायत चुनावों में ही नहीं, विधानसभा और लोकसभा चुनाव में भी ग्रामीणों की रुचि रहती है. 1990 के करीब इस गांव में पक्की सड़क का निर्माण हुआ. इस के बाद ही बिजली आई. गांव में सड़क और बिजली आने के बाद भी बहुत विकास नहीं हो पाया है. सरकारी स्कूल कक्षा 8 तक है. गांव में शिक्षा का स्तर काफी कम है. रोजगार नहीं है. गांव के युवाओं में नशे की लत भी उन के पिछड़ेपन का बड़ा कारण है. इस के साथ ही, कई युवा ऐसे भी हैं जो जागरूक हैं. वे राजनीतिक रूप से प्रगतिशील सोच रखते हैं. युवावर्ग में सपा नेता अखिलेश यादव के प्रति लगाव है. पिछड़े ही नहीं बल्कि अगड़े, मुसलिम और दलितवर्ग के लोग भी उन को बेहतर नेता मानते हैं. पहले यहां के लोग कांग्रेस, मायावती और भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेई के प्रति रुचि रखते थे.

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2017 के बाद कुछ युवाओं में योगी आदित्यनाथ के प्रति लगाव बढ़ा पर गांव में खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले छुट्टा जानवरों के कारण योगी से इन की नाराजगी बढ़ गई. गांव के लोगों का मानना है कि योगी की यह सोच किसानों को सब से अधिक नुकसान पहुंचा रही है. इस सोच के कारण ही पंचायत चुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. कोरोना के समय जिस तरह के गांव के लोगों को अस्पताल दर अस्पताल भटकना पड़ा, वह दर्द कम नहीं हो रहा है. रोजीरोजगार चाहते हैं युवा सब से बड़ी बात यह है कि यहां के वोटर बहुत सम झदारी के साथ समय को देखते हुए बसपा, सपा और भाजपा के बीच वोटिंग करते रहते हैं. इन का झुकाव हमेशा ही बसपा और सपा के प्रति रहा है. दलितपिछड़ा राजनीति को सम झने के लिए गांव के युवाओं से बात की तो उन के विचार निकल कर सामने आए.

अस्फान खान नंदौली गांव के रहने वाले हैं. खेती करते हैं. उन का कहना है, ‘‘हम अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं. आगे बढ़ाना चाहते हैं. हम ने हमेशा अच्छी राजनीतिक सोच को बढ़ावा दिया है. जिस दल ने अच्छा काम किया उस के साथ रहे. बसपा और फिर सपा के नेताओं ने हमारे गांव में अच्छा काम किया. हम उन के साथ हैं. हम लोग कभी भी जाति व धर्म के बहकावे में नहीं आते हैं.’’ दलित जाति के राजेश कुमार रावत शिक्षित बेरोजगार हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के विकास में सपा का विशेष योगदान रहा है. क्षेत्र के विधायक समाजवादी पार्टी के अंबरीश पुष्कर हैं. वे हम लोगों के हर सुखदुख में खड़े रहते हैं. हम दलित और पिछड़ा वर्ग का कोई भेदभाव नहीं करते. जो हमारे गांव के विकास की सोच रखता है, पंचायत चुनाव से ले कर विधानसभा व लोकसभा तक हम उसी को वोट देते हैं. अखिलेश की सरकार ने युवाओं को लैपटौप दे कर उन की सोच को बदलने का काम किया था.

लोगों में यह भावना बनी थी कि उन को रोजगार मिलना चाहिए. बच्चों में पढ़ने की भावना जाग्रत हुई थी.’’ ओबीसी जाति के रामसेवक पाल पढ़ेलिखे बेरोजगार हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमारा गांव बेहद गरीब है. यहां रोजीरोजगार नहीं है. पशुपालन और खेती पर हम लोग निर्भर रहे हैं. जिस तरह से महंगाई बढ़ रही है, हमें खेती में लागत भी नहीं मिल रही. सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था. अब किसान निधि दे कर पुराने वादे को भूल गई है. किसान को निधि नहीं, अपनी फसल का अच्छा मूल्य चाहिए. किसान तभी संपन्न होगा जब खेती मजबूत होगी. खेती छोड़ कर न किसान मजबूत होगा और न ही उस का विकास होगा.’’ जातीय भेदभाव नहीं नंदौली गांव में रहने वाले शिक्षक व समाजसेवी इंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, ‘‘गरीबी में जीवन जीने के बाद भी हमारे गांव के लोगों की सोच किसी भी तरह के जातीय भेदभाव वाली नहीं रही है. यही कारण है कि हर जाति के लोग अपनी सोच व पहचान के साथ रहते हैं.

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दलित, सवर्ण और पिछड़ा किसी के बीच कोई जातीय वैमनस्यता नहीं है. राजनीतिक कारणों से जब कभी कोई इस तरह का काम करना भी चाहता है तो गांव के लोग उस को नकार देते हैं. कभी उस को समर्थन नहीं देते. हम गांव वाले सरकार के कामकाज का सही आकलन करते हैं. यहां के विधायक हमेशा सपा-बसपा से ही जीतते रहे हैं. ऐसे में गांव के लोग दलों से कम नेता से अधिक जुड़ते रहे हैं. केवल चुनावी भाषण से गांव के लोगों को बहकाया नहीं जा सकता.’’ गांव में ठाकुर जाति के आशीष सिंह खेती और रोजगार से जुड़े हैं. वे कहते हैं, ‘‘हमारे गांव के लोग जागरूक हैं. पीढि़यों से इस गांव में दलित, पिछड़ा और मुसलिम साथसाथ रहते आ रहे हैं. कभी कोई जाति या धार्मिक झगड़ा नहीं हुआ.

राजनीतिक रूप से अलगअलग दलों के साथ भले रहे हों पर वोट के समय कोई ऐसा विवाद कभी नहीं हुआ. सभी जाति और धर्म के लोग आपसी सम झदारी से रहते हैं. कभी कोई भेदभाव या छुआछूत नहीं रहा है. खेती के कानून को ले कर क्या अच्छा है, क्या बुरा है, हम गांव के लोग उस पर भी नजर रखे हैं.’’ मिलजुल कर लड़ते हैं गरीबी से नंदौली गांव में भले ही संपन्नता न दिखती हो पर यहां के रहने वाले आपस में मिलजुल कर एकदूसरे की मदद करते हैं. गरीब से गरीब की मदद गांव के ही दूसरे लोग करने को तैयार रहते हैं. गांव के रहने वाले सत्तन गौतम कहते हैं, ‘‘चुनाव के समय थोड़ी दूरी भले ही दिख जाए पर चुनाव खत्म होते ही आपसी मेलजोल बन जाता है. इस वजह से कभी कोई परेशानी आती है तो सब एकजुट हो जाते हैं. दलित और पिछड़ों में भेदभाव नहीं है. राजनीतिक रूप से हम उसी को वोट देते हैं जो गांव के दुख व मुसीबत में साथ खड़ा हो.’’ युवा मनोज गोस्वामी कहते हैं, ‘‘सरकार को बेरोजगारी दूर करने के लिए काम करना चाहिए. गांव के गरीब लोग अपना जीवनयापन कर सकें,

इस के लिए महंगाई कम हो. खेती में प्रयोग होने वाले सामान बीज, खाद, डीजल और दवाएं सस्ती हों, हम ऐसी सरकार चाहते हैं. थाने और तहसील में जल्द न्याय मिल सके, ऐसी व्यवस्था हो. नेता वही है जो हमारा फोन हमारी जरूरत के समय उठा ले और हमारी मदद कर सके. हम ऐसे नेता को ही वोट देते हैं.’’ महत्त्वपूर्ण है इलाका उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मोहनलालगंज इलाके का अपना महत्त्व है. महत्त्व इस कारण से है कि मोहनलालगंज विधानसभा की सीट भी है और लोकसभा की भी. इस का राजनीतिक महत्त्व इस कारण और भी बढ़ जाता है कि यह सुरक्षित सीट है. यहां से निकले राजनीतिक निहितार्थ पूरे प्रदेश और देश तक में अपना प्रभाव दिखाते हैं. मोहनलालगंज विधानसभा और लोकसभा सीट के परिणाम देखें तो साफ लगता है कि पहले यहां कांग्रेस का प्रभाव दिख रहा था.

1990 के बाद कांग्रेस का जनाधार खत्म होने के बाद यहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव दिखने लगा. विधानसभा और लोकसभा दोनों चुनावों में यह साफ होता गया. विधानसभा चुनावों को देखें तो 1993 में संत बक्श रावत समाजवादी पार्टी से विधायक थे. इस के बाद 1996 में बसपा से आर के चौधरी विधायक चुने गए. आर के चौधरी दलितवर्ग से हैं. उन का अपना जनाधार था जिस की वजह से 2002 और 2007 में वे निर्दलीय चुनाव जीते. 2012 में यह सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई. इस साल चंद्रा रावत विधायक बनीं. 2017 में जब पूरे प्रदेश में भाजपा की सुनामी चल रही थी तो भी भाजपा यहां से हार गई और सपा के अंबरीश सिंह पुष्कर यहां से विधायक चुने गए. इसी तरह लोकसभा चुनावों में देखें तो 1991 में जब राममंदिर का आंदोलन चरम पर था तब यहां भारतीय जनता पार्टी के छोटे लाल सांसद चुने गए. उस के बाद 1996 में भाजपा की पूर्णिमा वर्मा चुनाव जीतीं.

उस के बाद के चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी का कब्जा हो गया. 1998 और 1999 में सपा के टिकट से रीना चौधरी सांसद रहीं. सपा से ही 2004 में जयप्रकाश रावत और 2009 में सुशीला सरोज सांसद चुनी गईं. 2014 में यह सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई. कौशल किशोर सांसद बने. इस के बाद 2019 के चुनाव में भी कौशल किशोर ही सांसद बने. लोकसभा के चुनाव में भले ही भाजपा यहां यदाकदा चुनाव जीतती रही पर विधानसभा के चुनाव में भाजपा यहां अपना विधायक नहीं जिता पाई. वजह यह थी कि विधानसभा के चुनावों में यहां भाजपा से अधिक जनता का भरोसा सपा-बसपा पर रहा. यहां बसपा का वोटर सपा के साथ भी आसानी से घुलमिल जाता है.

विकल्प के रूप में यहां का वोटर सपा-बसपा के बीच रहता है. अगर पंचायत चुनावों को देखें तो गांवों के लोग भी सपा-बसपा में आतेजाते रहते हैं. साल 2000 के पहले इस क्षेत्र में बसपा का प्रभाव था पर इस के बाद यहां सपा का प्रभाव बढ़ने लगा. 2016 के पंचायत चुनावों में सपा की विजयलक्ष्मी यहां ब्लौक प्रमुख थीं. बसपा से सपा में आ रहे नेता बसपा के कई विधायक चोरीछिपे समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से मिल रहे हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि बसपा के वोटरों को इस बात का अंदेशा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती और भाजपा के बीच छिपा हुआ तालमेल चल रहा है. बसपा को वोट देने का मतलब भाजपा की मदद करना है. भाजपा से गांवगांव के लोग नाराज हैं.

पंचायत चुनाव में भाजपा की करारी हार से यह साबित हो चुका है. भाजपा भले ही लीपापोती करने की कोशिश करे पर जनता को बहका नहीं सकती है. जनता का यही रुख देख कर बसपा के विधायक अब सपा की तरफ आना चाहते हैं. असल में अगर योगी और मायावती के मुकाबले अखिलेश यादव की तुलना की जाए तो उन को इन नेताओं से अधिक मिलनसार व सम झदार माना जाता है. वे अपने दल की ही नहीं, जनता की बात को भी सुनते हैं. विधायक ऐसे नेता को ही चाहते हैं जो उन की बात को सुन कर फैसला ले. अखिलेश के रूप में समाजवादी पार्टी के पास बसपा और भाजपा दोनों में से अधिक प्रभावशाली नेता है. वे केवल उत्तर प्रदेश स्तर पर ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी रचनात्मक सोच रखते हैं. पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता बनर्जी को सब से पहले समर्थन देने वाले नेताओं में अखिलेश यादव का नाम सब से पहले रहा है. अखिलेश की दूसरी बड़ी खूबी यह रही है कि वे विरोधियों को भी सम्मान देते रहे हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर भाजपा के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करने का प्रयास किया था. इसी तरह से 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा की प्रमुख विरोधी मायावती के साथ गठजोड़ किया.

जिस मायावती और मुलायम सिंह यादव के बीच छत्तीस का आंकड़ा था उन्हीं से अखिलेश ने सहज भाव से गठजोड़ किया. इस का लाभ भी लोकसभा चुनाव में मायावती को हुआ. बसपा को लोकसभा में 10 सीटें मिल गईं. सपा के खाते में 5 सीटें गई थीं. इस के बाद भी मायावती ने सपा से अपना गठजोड़ खत्म कर दिया. 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सब से मजबूत विपक्ष के रूप में अखिलेश यादव ही सब से आगे हैं. ऐसे में बसपा के विधायकों को लगता है कि सपा ही उन के लिए सब से मुफीद पार्टी होगी. बसपा के एक विधायक नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘

‘मायावती की सौदेबाजी हमेशा पार्टी के हित में नहीं रही है. कांशीराम के समय जो दूरियां दलितपिछड़ों में थीं, अब वे नहीं रह गई हैं. जमीनी स्तर पर तमाम हालात पहले जैसे नहीं हैं. पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को यह सम झ आ गया है कि भाजपा मायावती के साथ मिल कर सौदेबाजी कर के उन के वोट ले लेती है. जब भाजपा अपने दल के दलित और पिछड़ों को कुछ नहीं दे रही तो बाहरी नेताओं को क्या देगी? ‘‘भाजपा ने राजभर, अपना दल जैसे दलों का प्रयोग वोट लेने के लिए किया, पर जैसे ही वोट मिल गए और सरकार बन गई तो सत्ता की भागीदारी में कोई हिस्सा दलितपिछड़ों को नहीं दिया. ऐसे में जब मायावती भाजपा के साथ सौदेबाजी करती दिख रही हैं तो बसपा के विधायकों को भी पूरा हक है कि वे अपनी मरजी से समाज के हित वाले फैसले लें.’’

मेरी बहन की शादी को 14 साल हो चुके हैं, उस की अपने पति से कभी नहीं बनी, कृपया बताएं मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 38 वर्षीया महिला पति और बच्चों के साथ भोपाल में रहती हूं. मेरी एक बहन 35 वर्ष की है. वह अपने पति और 2 बच्चों के साथ इंदौर में रहती है. उस की अपने पति से कभी नहीं बनी. उस के पति हम से बात करना तक पसंद नहीं करते. उस की शादी को 14 साल हो चुके हैं और इन 14 सालों में मानो मजबूरी में ही उस ने अपनी गृहस्थी चलाई है. लेकिन, अब वह तंग आ चुकी है. कुछ दिनों पहले उस ने नींद की गोलियां खा कर आत्महत्या करने की कोशिश की. मैं अपनी बहन की यह हालत नहीं देख पा रही.

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जवाब

गृहस्थी पतिपत्नी के आपसी मेल और सामंजस्य से चलती है, लेकिन कभीकभी पतिपत्नी की गाड़ी पटरी पर नहीं बैठती है और दोनों यों ही उसे घसीटते जाते हैं. यदि इस दौरान बच्चे भी आ जाएं तो उन का भविष्य सोचते हुए न साथ रहते बनता है, न अलग रहते बनता है.

आप की बहन और जीजा की भी यही स्थिति है. पतिपत्नी की लड़ाई में पति तो लड़झगड़ कर बाहर निकल जाता है लेकिन पत्नी यदि हाउसवाइफ है तो घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल करते हुए, कुढ़ते हुए फ्रस्ट्रेशन का शिकार हो जाती है. अपनी बहन को समझाएं कि अब बच्चे बड़े हो रहे हैं. वे थोड़ा घर से बाहर निकले. कुछ अपनी तरफ ध्यान दे, अड़ोसपड़ोस से मेलजोल बढ़ाए. दोस्तों से मिले, किटी पार्टी जौइन करे. और पति के व्यवहार को नजरअंदाज करे.

आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं. पति से तलाक लेना भी आसान नहीं. बच्चों की पढ़ाई, उन के खर्चे, उन का भविष्य सब पहले देखना है. उसे अपने पति पर कम और बच्चों पर ज्यादा ध्यान देने की सलाह दीजिए. वक्त के साथसाथ स्थिति बदल भी जाती है. शायद आप की बहन का बदला हुआ रवैया उस के पति को बदल दे.

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Romantic Story: अलौकिक प्रेम – सुषमा ने गौरव से दूरी क्यों बना ली

लेखिका-Usha Sharma

कुछ दिनों से सुषमा के मन में उथलपुथल मची हुई थी. अपने आत्मीय से नाता तोड़ लेना उस के अंतर्मन को छलनी कर गया था. उस के बाद उस ने मौन धारण कर लिया था. हालांकि वह जानती थी यह मौन बहुत घातक होगा उस के लिए, लेकिन वह गहरे अवसाद में घिर गई थी. उस के डाक्टर ने कह दिया था जब तक वह नहीं चाहेगी वे उसे ठीक नहीं कर पाएंगे. सुषमा को देख कर लगता था वह ठीक होना ही नहीं चाहती है. उस का मन आज बेहद उदास था. उस की आंखों से नींद गायब थी. अचानक जाने क्या हुआ उस ने अपने 4 साल से बंद याहू मेल को खोला.

एक के बाद एक मेल वह पढ़ती गई, तो उस की यादों की परतें खुलती गईं. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कल की बात हो जब उस ने सोशल नैटवर्किंग जौइन किया था. उस वक्त बड़ा उत्साह था उस में. रोज नएनए चेहरे जुड़ते. उन से बातें होतीं फिर वह उन्हें बाहर कर देती. लेकिन कुछ दिनों से एक चेहरा ऐसा था जो अकसर उस के साथ चैट पर होता. पहला परिचय ही काफी दमदार था उस का. ‘‘हे, आई एम डाक्टर गौरव. 28 इयर्स ओल्ड, जानवरों का डाक्टर हूं. 2 बार आईएएस का प्री और मेन निकाला है, लेकिन इंटरव्यू में रह गया. पर अभी हारा नहीं हूं. पीसीएस बन कर रहूंगा. फिलहाल एक कोचिंग सैंटर में आईएएस की कोचिंग में पढ़ाता हूं और जल्दी ही अपना कोचिंग सैंटर खोलने वाला हूं.’’

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अवाक सी रह गई थी सुषमा. उस ने बस यह लिखा, ‘‘आई एम सुषमा.’’

‘‘बड़ा खूबसूरत है आप का नाम. आप जानती हैं सुषमा का क्या मीनिंग होता है?’’

‘‘मालूम है मीनिंग. आप को बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘हाहाहा, बड़ी खतरनाक हैं आप. आई लाइक इट. वैसे क्या पसंद है आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना और आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना मुझे भी बहुत पसंद है. नहीं पढ़ूंगा तो 2 वक्त की रोटी नहीं मिलेगी. कोचिंग सैंटर में स्टूडैंट बहुत दिमाग खाते हैं. उन्हें समझाने के लिए खुद भी बहुत पढ़ना पड़ता है, यार.’’

‘‘हे, यार किसे कहा?’’

‘‘तुम्हें और किसे.’’

‘‘तुम नहीं आप कहिए मिस्टर गौरव.’’

‘‘ओके झांसी की रानी, इतना गुस्सा.’’

मन ही मन हंस पड़ी थी सुषमा. उस के बाद कुछ दिनों तक वह व्यस्त रही. फिर एक दिन जैसे ही औनलाइन हुई, उधर से मैसेज मिला, ‘‘हे, गौरव हियर, हाऊ आर यू?’’

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‘‘आप को और कुछ काम नहीं है क्या? वहीं खाते, पीते और सोते हैं क्या आप?’’

‘‘हाहाहा, सारा काम नैट से ही होता है मेरा और आप ने कितना इंतजार करवाया. कहां थीं आप इतने दिन?’’

‘‘आप से मतलब और भी काम हैं हमारे.’’

‘‘ओकेओके झांसी की रानी. कोई बात नहीं, लेकिन कभीकभार आ जाया कीजिए. आप से 2 बातें कर के मन को सुकून मिलता है.’’ जाने क्यों आज सुषमा ने उस की बातों में संजीदगी महसूस की.

‘‘गौरव, क्या हुआ है. आज आप कुछ उदास हैं?’’

‘‘हां सुषमा, कुछ दिनों से घर में टैंशन चल रही है.’’

‘‘ओह किस बात पर?’’

‘‘घर के लोग चाहते हैं कि मैं कोई जौब कर लूं या अपना क्लिनिक खोल लूं. जबकि मेरा सपना है प्रशासनिक अधिकारी बनने का. रोजरोज इस बात पर घर में कलह होता है. समझ में नहीं आता कि हम क्या करें?’’

‘‘इतना परेशान मत होइए आप. सब ठीक हो जाएगा. खुद पर भरोसा रखिए. आप का सपना जरूर पूरा होगा.’’

‘‘सुषमा, आप की इन बातों से हमें बहुत बल मिलता है. आप हमारी अच्छी दोस्त बनोगी? हम बुरे इंसान नहीं हैं.’’

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‘‘हम दोस्त तो हैं गौरव. यह अच्छा और बुरा क्या होता है?’’

‘‘हाहाहा, कैसे समझाऊं आप को. अच्छा, एक छोटा सा फेवर चाहिए मुझे.’’

‘‘क्या?’’

‘‘डरो नहीं आप, जान नहीं मांग रहे हैं हम आप से.’’

‘‘फिर भी बताओ क्या चाहिए आप को मुझ से?’’

‘‘बस इतना कि आप हमारी बात सुन लिया कीजिए. बड़े अकेले हैं हम. घर में मौमडैड हैं जिन्हें सिर्फ पैसा चाहिए. जबकि घर में पैसे की कमी नहीं है. बड़ा भाई अपनी पसंद से शादी कर के हैदराबाद में सैटल्ड है. उस का घर आना वर्जित कर दिया गया है. किसी को फुरसत नहीं है मेरी बात सुनने की.’’ ‘‘ठीक है गौरव, लेकिन दोस्ती में कभी मर्यादा तोड़ने की कोशिश मत करना.’’ ‘‘ओके, कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा आप को. अब तो तुम कह सकता हूं न?’’

‘‘तुम भी न गौरव, ठीक है कह सकते हो.’’ उस दिन से दोस्ती और गहरी होने लगी थी. जब भी वक्त मिलता सुषमा औनलाइन आती और गौरव से ढेरों बातें करती. हफ्ते में 1 दिन संडे को वे जरूर बात करते. गौरव बड़ा होनहार था. पढ़नेपढ़ाने वाला. उस की बातों में हमेशा शालीनता बनी रहती. और अब वह उसे सुषमा नहीं सु कह कर बुलाने लगा था. कहता था, ‘‘बड़ा लंबा नाम है, मैं तो सु कहूंगा तुम्हें.’’ ‘‘ओके गौरव.’’

एक दिन सुषमा ने कहा, ‘‘गौरव, तुम मेरे बारे में क्या जानते हो?’’

‘‘तुम ने कभी बताया ही नहीं.’’

‘‘और तुम ने पूछा भी नहीं.’’ ‘‘हां नहीं पूछा क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो और दोस्ती किसी बात की मुहताज नहीं होती. सच कुछ भी हो दोस्ती हमेशा बनी रहेगी.’’ नाज हो आया था सुषमा को गौरव की दोस्ती पर. लेकिन आज वह यह सोच कर आई थी कि गौरव को अपने जीवन का हर सच बता देगी.

‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु.’’

‘‘गौरव…’’

‘‘बोलो न सु, किस बात से परेशान हो आज? जो मन में हो कह दो.’’

‘‘सच जान कर दोस्ती तो नहीं तोड़ोगे?’’

‘‘हाहाहा, मैं प्राण जाए पर वचन न जाए वाला आदमी हूं, अब बताओ.’’

‘‘गौरव, आई एम मैरिड.’’

‘‘हाहाहा, बस इतनी सी बात. मैरिड होना कोई पाप नहीं है. सु, जब तुम मेरी दोस्त बनी थीं तब तुम भी कुछ नहीं जानती थीं मेरे बारे में. आज तुम्हारा मान और बढ़ गया है मेरी नजरों में.’’ सच में आज सुषमा को भी अभिमान हो आया था खुद पर. अब गौरव उस का सब से अच्छा दोस्त था. हफ्ते में 1 दिन वे चैट पर मिलते और उस दिन गौरव के पास बातों का खजाना होता. गौरव का जन्मदिन आने वाले था. सुषमा ने अपने हाथ से उस के लिए कार्ड डिजाइन किया और 19 जुलाई को रात 12 बजे उसे कार्ड मेल किया. गौरव उस वक्त औनलाइन था. बहुत खुश हुआ और अचानक बोला, ‘‘सु, एक बात बोलूं?’’

‘‘नहीं, मत बोलो गौरव.’’

‘‘हाहाहा, अरे मुझे कहनी है यार.’’

‘‘तो कहो न, मुझ से पूछा क्यों? मेरे मना करने से क्या नहीं कहोगे?’’

‘‘सु, मुझे आज एक गिफ्ट चाहिए तुम से.’’

‘‘क्या गिफ्ट गौरव? पहले कहते तो भेज देती तुम्हें.’’

‘‘अरे वह गिफ्ट नहीं.’’

‘‘साफसाफ बोलो गौरव, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सु, हमारी दोस्ती को पूरा 1 साल हो चुका है. तुम्हारी आवाज नहीं सुनी अब तक. प्लीज, आज अपनी आवाज सुना दो मुझे.’’

‘‘ठीक है गौरव, अपना नंबर दो. कल शाम को काल करूंगी तुम्हें.’’

‘‘थैंक्स सु. कल मैं शाम होने का इंतजार करूंगा.’’ बड़े असमंजस में थी सुषमा कि काल करे या नहीं. गौरव इंतजार करता होगा. अंत में मन की जीत हुई. शाम को उस ने गौरव को काल किया तो वह बहुत खुश हुआ. ‘‘सु, तुम ने आज मुझे जिंदगी का सब से बड़ा गिफ्ट दिया है. तुम्हारी आवाज को मैं ने अपने मनमस्तिष्क में सहेज लिया है.’’

‘‘गौरव, क्या बोलते रहते हो तुम?’’

‘‘सच कह रहा हूं, सु.’’

उस दिन के बाद उन की फोन पर भी बातें होने लगीं. एक दिन शाम को 8 बजे गौरव का फोन आया, ‘‘सु, सुनो न.’’

‘‘हां गौरव, क्या हुआ? ये तुम्हारी आवाज क्यों लड़खड़ा रही है?’’

‘‘सु. मैं शराब पी रहा हूं अपने दोस्तों के साथ.’’

‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो क्या? घर जाओ अपने.’’ ‘‘ओके. अब कल सुबह बात करना मुझ से,’’ फिर फोन काट दिया था. वह जानती थी कि सुबह तक गौरव का गुस्सा शांत हो जाएगा और वह खुद ही अपने घर चला जाएगा. और ऐसा ही हुआ.

उन की दोस्ती को पूरे 2 साल होने वाले थे. दोनों को एकदूसरे का इंतजार रहता.

एक दिन गौरव ने कहा, ‘‘सु, एक बात कहूं?’’

‘‘नहीं गौरव.’’

‘‘मुझे कहनी है, सु.’’

‘‘फिर पूछते क्यों हो?’’

‘‘ऐसे ही. अच्छा लगता है जब तुम मना करती हो और मैं फिर भी पूछता हूं.’’

‘‘पूछो क्या पूछना है?’’

‘‘सु, इन दिनों मैं तुम्हारे बारे में बहुत सोचने लगा हूं. हैरान हूं इस बात से कि मुझे क्या हो रहा है?’’ ‘‘कुछ नहीं हुआ है गौरव, हम बहुत बातें करते हैं न, इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है.’’

‘‘नहीं सु, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘कह दो, मना करने पर भी कहोगे ही न?’’

‘‘सु.’’

‘‘हां गौरव बोलो.’’

‘‘मुझे प्यार हो गया है.’’

‘‘बधाई हो गौरव. कौन है वह?’’

‘‘सु, तुम नाराज हो जाओगी.’’

‘‘ओके मत बताओ, मैं जा रही हूं.’’

‘‘सु रुको न, मुझे तुम से प्यार हो गया है. जानता हूं तुम बुरा मान जाओगी, लेकिन एक बात बताओ क्या तुम मुझे रोक सकती हो प्यार करने से? नहीं न? मेरा मन है तुम मत करना मुझ से प्यार.’’ ‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो. तुम जानते हो मेरी सीमाओं को. तुम्हें यह सोचना भी नहीं चाहिए था. यह तो पाप है गौरव.’’ ‘‘मेरा प्यार पाप नहीं है, सु. मैं ने कभी तुम्हें गलत नजर से नहीं देखा है. यह प्यार पवित्र व निस्वार्थ है. सु, तुम से नहीं कहूंगा अपना प्यार स्वीकार करने को.’’

‘‘गौरव, प्लीज मुझे कमजोर मत बनाओ.’’

‘‘सु, तुम कमजोर नहीं हो. तुम्हारा गौरव तुम्हें कभी कमजोर नहीं बनने देगा.’’ एक लंबी चुप्पी के बाद सुषमा ने बात वहीं खत्म कर दी और इस के बाद कई दिनों तक उस ने गौरव से बात नहीं की. लेकिन कब तक? मन ही मन तो वह भी गौरव से प्यार करने लगी थी. एक दिन उस ने खुद गौरव को फोन किया, ‘‘गौरव कैसे हो?’’

‘‘जिंदा हूं सु. मरूंगा नहीं इतनी जल्दी.’’

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

‘‘हाहाहा सु, मुझे विश्वास था कि तुम लौट आओगी मेरे पास.’’ ‘‘हां गौरव लौट आई हूं अपनी सीमाएं तोड़ कर, लेकिन कभी गलत काम न हो हम से.’’ ‘‘मुझ पर यकीन रखो मैं तुम्हें कभी शर्मिंदा नहीं होने दूंगा.’’ प्रेम की मौन स्वीकृति पर दोनों बहुत खुश थे. एक दिन बातों ही बातों में सुषमा ने पूछ लिया, ‘‘गौरव, तुम्हारी लाइफ में कोई और भी है क्या?’’ ‘‘अब सिर्फ तुम हो सु. मैडिकल कालेज, हैदराबाद में थी एक लड़की. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैं दिल्ली वापस आ गया तो उस के मांबाप ने उस की शादी कर दी.’’ उस दिन बात यहीं खत्म हो गई. एक दिन गौरव बड़ा परेशान था.

‘‘क्या हुआ गौरव?’’ सुषमा ने पूछा.

‘‘सु, घर वाले शादी की जिद कर रहे हैं. आज शाम को लड़की देखने जाना है.’’

‘‘अरे तो जाओ न गौरव, इस में परेशान होने की क्या बात है?’’

‘‘मेरे घर वालों को दहेज चाहिए सु और इस के लिए वे कोई भी लड़की मेरे पल्ले बांध देंगे.’’ ‘‘तुम जाओ तो सही फिर बताना कैसी है लड़की?’’

‘‘तुम कह रही हो तो जाता हूं.’’ शाम को गौरव का गुस्से से भरा फोन आया, ‘‘तुम ने ही जिद की वरना मैं नहीं जाता. लड़की कंपनी सेक्रेटरी है. खुद को जाने क्या समझ रही थी. मना कर आया हूं मैं.’’

‘‘शांत हो जाओ गौरव, कोई और अच्छी लड़की मिल जाएगी.’’ गौरव के घर वाले शादी के लिए जोर डाल रहे थे. सुषमा जानती थी गौरव की परेशानी को, लेकिन चुप रही. एक दिन वह बोली, ‘‘गौरव, सुनो न.’’

‘‘हां कहो, सु.’’

‘‘राधा और किशन का प्रेम कैसा था?’’

‘‘सु, वह अलौकिक प्रेम था. राधाकिशन का दैहिक नहीं आत्मिक मिलन हुआ था.’’ ‘‘गौरव, मुझे राधाकिशन का प्रेम आकर्षित करता है.’’

‘‘तो आज से तुम मेरी राधा हुईं, सु.’’

सुषमा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु, क्या मैं ने कुछ गलत कहा? तुम चुप क्यों हो गई हो?’’

सुषमा चुप ही रही. 19 जुलाई आने वाली थी. वह इस बार भी गौरव को कुछ खास तोहफा देना चाहती थी. उस ने राधाकिशन का एक कार्ड बनाया और गौरव को अपनी शुभकामनाएं दीं. अपने नाम की जगह उस ने लिखा राधागौरव. कार्ड देख कर पागल हो गया गौरव. बहुत खुश था वह इसलिए फोन पर रोता रहा फिर बोला, ‘‘राधे, आज तुम ने मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर मुझे सब से अनमोल गिफ्ट दिया है. अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. यह किशन सिर्फ तुम्हारा है.’’ गौरव के लिए लड़की पसंद कर ली गई थी. जैसेजैसे गौरव की शादी का दिन पास आ रहा था, सुषमा बहुत परेशान रहने लगी थी. उसे डर था उन का रिश्ता कहीं गौरव की नई जिंदगी में दुख न घोल दे.

‘‘गौरव, शादी के बाद तुम मुझ से बात मत करना,’’ एक दिन वह बोली.

‘‘क्यों नहीं करूंगा सु, तुम से बात नहीं हुई तो मैं मर जाऊंगा.’’ नहीं गौरव, ऐसा मत कहो. तुम अपनी पत्नी को बहुत प्यार देना. कभी कोई दुख न देना. तुम चिंता मत करो सु, तुम्हारा गौरव कभी तुम्हें शर्मिंदा नहीं करेगा. गौरव की शादी हो गई. गौरव के घर वालों को खूब सारा दहेज और गौरव को एक अच्छी पत्नी मिल गई. गौरव ने अपनी पत्नी को सुषमा के बारे में सब कुछ बता दिया, तो वह इस बात से खफा रहने लगी. जब भी गौरव चैट पर होता, वह गुस्सा हो जाती. गौरव ने सुषमा को सब बताया. सुषमा का मन बड़ा दुखी हुआ. अब वह खुद भी गौरव से कटने लगी.

‘‘सु, क्या हो गया है तुम्हें, मुझ से बात क्यों नहीं करती हो?’’ एक दिन गौरव बोला.

‘‘गौरव, मैं व्यस्त थी.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हारी आवाज से मैं समझता हूं.’’ गौरव की जिंदगी में खुशियां लाने के लिए सुषमा ने मन ही मन एक फैसला कर लिया. उस ने गौरव को एक मेल किया और कहा, ‘‘गौरव वक्त आ गया है हमारे अलग होने का. किशन भी तो गए थे राधा से दूर, लेकिन उन का प्रेम जन्मजन्मांतर के लिए अमर हो गया. आज यह राधा भी दूर जाने का फैसला कर बैठी है. कोई सवाल मत करना तुम, तुम्हें कसम है मेरे प्यार की. और हां, काल मत करना. मैं ने अपना नंबर बदल दिया है. आज से ये मेल भी बंद हो जाएगी. अब तुम्हें अपनी पत्नी के साथ अपना घरसंसार बसाना है.

-तुम्हारी राधा.’’

मन पर पत्थर रख कर सुषमा ने गौरव से बना ली थीं. आज 3 साल बाद याहू मेल को खोला तो देखा, गौरव ने हर हफ्ते उसे मेल किया था.

‘‘सु, मैं बाप बनने वाला हूं, तुम खुश हो न?’’ ‘‘सु, मैं ने राजस्थान पीसीएस क्लियर कर लिया है. मेरी आंखों से तुम ने जो सपना देखा था वह पूरा हो गया, सु.’’ ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं सु, मेरा बेटा हुआ है. मैं ने उस का नाम मोहित रखा है. तुम्हें पसंद था न मोहित नाम?’’

सु…ये..सु वो.. इन 3 सालों में जाने कितने मेल किए थे गौरव ने. सुषमा यह देख कर हैरान रह गई. 2 दिन पहले का मेल था, ‘‘सु, याद है तुम ने कहा था कि जब तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी हो जाएंगी, तुम मेरे साथ ताजमहल देखने जाओगी. मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं.’’ होंठों पर मीठी सी मुसकराहट आ गई सुषमा के आंखों के आगे. कौंध गया 30 साल बाद का वह दृश्य. वह जर्जर बूढ़ी काया वाली हो गई है और गौरव का हाथ थामे ताजमहल के सामने खड़ी है. और, गौरव सु, ‘देखो ये है ताजमहल. प्रेम की अनमोल धरोहर, प्रेम की शाश्वत तसवीर,’ कह रहा है. वह मजबूती से गौरव का हाथ थामे अलौकिक प्रेम को आत्मसात होते देख रही है.

Family Story in Hindi – दरबदर – भाग 3 : 4 शादियां करने के बाद भी क्यों अकेले रह गए मास्साब

तीसरी बीवी आयरीन निसंतान थी. खर्चीले इलाज से पता चला कि प्रजनन करने वाली गर्भाशय कि एक नली बंद है. मास्साब ने तीनों बीवियों की कमाई और जमा पूंजी से शहर से दूर 10 एकड़ जमीन खरीद कर सीनियर सैकंडरी स्कूल की तामीर का काम शुरू कर दिया. उन का लाखों का अलगअलग बैंकों में बैंकबैलेंस, शेयर, सोने की गिन्नियां लौकर्स में महफूज थीं.

सईद मास्साब का रिटायरमैंट भी गुपचुप तरीके से हो गया. खानदान में कैजुअल्टी हो गई है, हमारा जश्न मनाना इंसानियत के खिलाफ है,’ कह कर मास्साब ने बड़ी खूबसूरती से रिटायरमैंट के फंड्स का बंटवारा रोकने की सोचीसमझी प्लानिंग के तहत सारे मंसूबे हल कर दिए. तीनों बीवियों, बच्चों को अपनी बीमा पौलिसीज और जमा धनराशि से दूर रखने के लिए अपनी जायदाद का किसी को वारिस नहीं बनवाया. हां, छोटे भाई के नाम वसीयत कर के अपनी पूरी जायदाद का मालिकाना हक उसे दे दिया.

सईद मास्साब की तमाम मसरूफियतें धीरेधीरे कम होने लगीं. महफिल, मजलिसों, जलसों में कभीकभी ही बुलाया जाने लगा. कहां चौबीस घंटों में सिर्फ 6 घंटे नींद के लिए होते थे, कहां अब पूरा दिन ही नींद के लिए मिल गया. पहली बीवी भी एक साल बाद रिटायर्ड हो कर घर पर रहने लगी. हमेशा बोलते रहने की उन की आदत सईद मास्साब को घर पर टिकने न देती. बाकी तीनों बीवियां नौकरी की वजह से शाम को ही खाली रहती थीं.

एक शाम में तीनों के पास जाना अब उन के लिए संभव नहीं होता, तो उन्होंने दिन बांट लिए. सईद मास्साब ने इतनी चालाकी से चारों बीवियों के लिए टाइम बांटा था कि किसी को भी शक नहीं हुआ. लेकिन रिटायरमैंट के बाद हर बीवी यह उम्मीद करने लगी कि अब तो वे रिटायर्ड हो गए हैं, अब उन्हें पूरे वक्त उन के पास रहना चाहिए. अगर वे अभी भी अपना पूरा वक्त उसे नहीं देते हैं तो   दिन के बाकी के वक्त में वे रहते कहां हैं?

खोजबीन और जासूसी शुरू हुई तो सालों तक छिपाया गया सईद मास्साब का झूठ नमक के ढेर की तरह भरभरा कर गिर गया. सईद मास्साब बेनकाब. चारों बीवियों के पैरोंतले से जमीन खिसक गई. सारी पिछली बातें, खर्च की रकम का हिसाब लगातेलगाते चारों कमाऊ बीवियों ने उन पर उन्हें कंगाल कर के खुद ऐश करने की तोहमत लगा दी. सईद मास्साब का जीना हराम हो गया. अखबारों और मीडिया ने प्याज के छिलकों की तरह उन के दबेछिपे किरदार की एकएक परत उतार कर रख दी. रुसवाइयों की आंधी सईद मास्साब के बुढ़ापे के दिनों को दागदार कर गई.

उस दिन जोरदार बिजली कड़क रही थी. मूसलाधार बारिश हो रही थी कि अचानक सईद मास्साब के पेट में तेज दर्द उठा. चारों बीवियों में से किसी ने भी सईद मास्साब को अपने पास पनाह नहीं दी. डाक्टर ने चैक किया, अंतडि़यों का कैंसर. मास्साब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. औपरेशन होना था. प्राइवेट अस्पताल में अकेले बैड पर लेटे सईद मास्साब मौत और जिंदगी से जूझते रहे थे. दूर तक फैली खामोशी. नर्स वक्त पर दवाइंजैक्शन लगा जाती. पूरा दिन अपनों से घिरे रहने वाले मास्साब अकेलेपन का अवसाद झेल रहे थे.

तीनों बीवियों ने अपनेअपने ढंग से उन पर अपनी जिंदगी बरबाद करने की तोहमत लगा कर उन से किनारा कर लिया.

पूरे 2 महीने सईद मास्साब जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे. भाई ने खिदमत की. तबीयत कुछ संभली तो लोकलाज के लिए रफीका मैडम न चाहते हुए भी उन्हें अपने घर ले गईं. दवा, परहेजी खानापीना और कीमोथेरैपी के लिए खर्च होने वाली मोटी रकम को ले कर रफीका मैडम हमेशा ताने देतीं, ‘अपनी कमाई तो तीनतीन बीवियों पर लुटा दी. अब जब कंगाल हो गए तो मुझे लूटने आए हैं. शादी तो कर ली मुझ से, मगर मां के खिताब से हमेशा महरूम रखा.

‘तीनतीन बार एबौर्शन करवा दिया मेरा. फिर मैं क्यों करूं खिदमत आप की? वैसे भी, मैं 8 घंटे कालेज में रहती हूं. नर्स रख भी ली तो मैं पराई औरत के भरोसे घर नहीं छोड़ सकती. सरपरस्ती तो मिली नहीं आप की, जो थोड़ाबहुत सरमाया जरूरत के लिए रखा है, वह भी चोरी चला जाएगा. बेहतर होगा आप अपनी दूसरी बीवियों के पास चले जाएं. आखिर उन का भी तो कोईर् फर्ज बनता है शौहर के लिए.

दूसरी बीवी जुलेखा के पास पहुंचे तो वह उन्हें देख कर नाकमुंह सिकोड़ने लगी. वह रिटायरमैंट के पैसों और अपने दिए गए पैसों का हिसाब मांगते हुए उन का खाना खराब करती रही. सईद मास्साब तीसरी बीवी के पास जा नहीं सकते थे क्योंकि तीसरी बीवी आयरीन ने सईद मास्साब की तीनतीन बीवियों की खबर मिलते ही संबंधविच्छेद कर लिया था और खुला (मुसलिम औरत के द्वारा खुद पति से मांगी गई तलाक) के लिए नोटिस भेज दिया था. वह सईद मास्साब से आधी उम्र की थी, साथ ही, अपने अब्बू की जायदाद की अकेली वारिस थी. सईद मास्साब ने उसे मां बनने से महरूम रखा था. इसलिए वह सईद मास्साब से तलाक ले कर दूसरे निकाह के मंसूबे बनाने लगी.

सईद मास्साब की पहली बीवी को जब उन के तीन और निकाह किए जाने की खबर मिली तो सदमा बरदाश्त नहीं कर पाई. रात को बिस्तर पर सोई, तो फिर उठ न सकी.

सईद मास्साब के लिए बीवियों ने तो दरवाजे बंद कर लिए. छोटा भाई, जो उन का स्कूल चला रहा था, उन्हें अपने घर ले आया. बरामदे में लोहे का पलंग डाल कर लिटा दिया. प्लास्टिक के स्टूल पर दवाइयां रख दीं. उस की बीवी भी नौकरीपेशा थी. सुबह के नाश्ते के साथ दवाइयां ले कर सईद मास्साब दिनभर अकेले बिस्तर पर दर्द सहते हुए पड़े रहते. हर 5वें मिनट पर 2 सिम वाले मोबाइल पर कौल रिसीव करने वाले सईद मास्साब कैंसर की बीमारी के साथसाथ डिप्रैशन का शिकार होने लगे.

सिर के बाल झड़ने लगे. कीमोथेरैपी भी वक्त पर नहीं होती थी. पेट में तेज दर्द रहता था. अब खाना भी नहीं पचता था. मोती जैसे चमकते दांत एकएक कर के गिरने लगे थे. चेहरा बेनूर, बेरौनक हो गया था. लाखों के बैंकबैलेंस और तमाम दूसरी जायदाद के मालिक सईद मास्साब पूरी जिंदगी में अपना सच्चा हमदर्द नहीं खरीद सके. डाक्टर तो हर बार कहते, ‘बस, 2-4 महीने के मेहमान हैं. लेकिन पता नहीं कौन सी डोर थी जो सईद मास्साब को सांसों के साथ बांधे हुए थी.

हालांकि छोटे भाई ने गिरती हालत को देख कर उन के लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया था, फिर भी लंबे समय तक लेटे रहने की वजह से बैडसोर हो गए. तीमारदारी की लापरवाही से बैडसोर के जख्मों में कीड़े बिलबिलाने लगे. कीड़ों को देख कर नर्स ने उन की खिदमत करने से साफ मना कर दिया और काम छोड़ कर चली गई. मास्साब पूरी रात दर्द से चीखते. छोटा भाई अपने परिवार के साथ एसी की ठंडी हवा में सुख की नींद सोता, लेकिन मास्साब पंखे की गरम, लपटभरी हवा में जानलेवा दर्द सहते खुले सहन में पड़े रहते.

शहर के नामी सईद मास्साब गुमनामी की अंधेरी गली के बाश्ंिदे हो गए. पीठ के जख्म और पेट की अंतडि़़यों का दर्द उन के इर्दगिर्द आहों, कराहों और आंसुओं का सैलाब उठाता रहता. बहुत मजबूर और कमजोर सईद मास्साब टौयलेट के लिए भी नहीं उठ पाते थे. अब उन के पलंग के इर्दगिर्द मक्खियों के झुंड भिनभिनाने लगे थे.

उन की दूसरी बीवी जुलेखा कभीकभी देखने आती तो दूर से ही मुंह पर दुपट्टा लपेटे दूर कुरसी डाल कर कुछ देर बैठती, फिर बिना कुछ कहेसुने चुपचाप उठ कर चली जाती.

सईद मास्साब का लंबाचौड़ा जिस्म सूख कर लकड़ी जैसा होता चला जा रहा था. आलमारी में पड़े उन के ढेर सारे ईनाम, उन के  कीमती कपड़े, सबकुछ जहां के तहां पड़े उन के आलीशान दिनों के साक्षी बन कर उन की विवशता की खिल्ली उड़ाते.

सईद मास्साब ने 2 बीवियों के साथसाथ भाई के लिए भी अपने पैसों से मकान बनवा दिया था. भाई के लिए ली गई गाड़ी, लौकर में सोने की गिन्नियां, बीघों में फैला स्कूल सब मास्साब की बेबसी पर ठहाका मार कर हंसते. बुरे वक्त में अपनों की बेरुखी रिश्तों के सीने पर खुदगरजी मूसल ले कर चढ़ जाती. मौकापरस्ती रिश्तों के मुंह पर कालिख मल देती.

वक्त और हालात की झुलसा देने वाली गरमी राहतों की यादों के मुंह में अंगारे ठूंसने लगती. मास्साब की कराहें उन के बीते दिनों के कहकहों पर संगीनें तानने लगतीं. मास्साब के बैडसोर के कीड़े उन के हाथों की सदाकत की रेखाओं को कुतरकुतर कर मिटाने लगे थे. अड़ोसपड़ोस की नींद मास्साब की दर्दनाक चीखों से उचटने लगी थीं. एक दिन महल्ले के माईक पर आवाज गूंजी, ‘सईद मास्साब दुनिया छोड़ गए हैं.’

कफन तैयार, डोला तैयार…बेजान जिस्म को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए महल्ले वाले, दोस्त, रिश्तेदार तो थे पर वे नहीं थे जिन के साथ सईद मास्साब ने अपनी जिंदगी के एकएक लमहे को बांटा था. इसलाम में एक से ज्यादा शादियों की छूट ने इंसानी जिंदगियों को हवस की कठपुतलियां बना कर रख दिया. सही गलत के बीच झूलती कई जिंदगियां… दरबदर फिरती जिंदगियां.

 

 

मिथुन चक्रवर्ती कर रहे हैं राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘बैडब्वाॅय ’’में कैमियो

‘‘घायल’’,‘‘दामिनी’’,‘‘बरसात’’,‘‘चाइनागेट’’,‘‘खाकी’’, ‘‘हल्लाबोल’’सहित कई सफलतम फिल्मों के लेखक व निर्देषक राजकुमार संतोषी इन दिनों अपनी फिल्म ‘‘बैडब्वाॅयज’’की शूटिंग में व्यस्त है.फिल्म‘बैंडब्वायज’’की कहानी से प्रभावित होकर 360 से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके तथा सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके दिग्गज अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती भी इस फिल्म में कैमियो कर रहे हैं.

राजकुमार संतोषी इन दिनों अपनी फिल्म‘‘बैडब्वाॅय’’के लिए नमाशी चक्रवर्ती और अमरीन कुरैशी के साथ हैदराबाद के रामोजी फिल्म सिटी स्टूडियो में एक खूबसूरत रोमांटिक गाना ‘‘जनाब-ए-अली‘‘ फिल्माने में व्यस्त हैं.जिसका नृत्य निर्देशन पियूष भगतऔर शाजिया सामजी कर रही हैं.इसी गाने में ओजीडिस्कोकिंग और ग्रैंडमास्टर मिथुन चक्रवर्ती ने मुख्य कलाकारों के साथ मिलकर एक छोटा सा कैमियो कर रहे हैं.मिथुनदा ऐस म्यूजिक कंपोज हिमेश रेशमिया के म्यूजिक की धुन पर आएंगे नजर.
निर्देशक राजकुमार संतोषी कहते हैं-‘‘कोविड ने रिलीज के शेड्यूल में गड़बड़ी की है, हालांकि हम जल्द से जल्द फिल्म को रिलीज करने की उम्मीद करते हैं.मिथुनदा एक लेजेंड हैं, गाने में मिथुनदा के होने से ना केवल अतिरिक्त तड़का आएगा बल्कि लोगो मैं फिल्म ‘बैड बॉय‘ को लेकर और भी जोश बढ़ जाएगा.’

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फिल्म के मुख्य अभिनेता नमाशी चक्रवर्ती कहते हैं, ‘‘आज मैंने अपने आदर्श के साथ न केवल ऑन-स्क्रीन, बल्कि ऑफ-स्क्रीन भी काम किया  है.360 फिल्मों और तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के अनुभव के साथ अब तक के सबसे महान अभिनेता ने मुझे और मेरी पहली फिल्म को आशीर्वाद दिया.उनके साथ एक ही फ्रेम में रहने के लिए, मैं बहुत ही ज्यादा आभारी हूँ.‘‘

फिल्म की मुख्य अदाकारा अमरीन कुरैशी ने कहा, ‘‘मैं दिग्गजों के साथ काम करके बहुत खुश हूं, मेरे डेब्यू प्रोजेक्ट में, मिथुन अंकल डांस के प्रतीक हैंऔर वह मेरे सबसे पसंदीदा रहे हैं. यह वास्तव में संजोने का एक क्षण है कि मेरी फिल्म में मुझे ऐसा करने का अवसर मिला है, जिसमे मुझे मिथुनसर के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिल रहा है. ”

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निर्माता साजिद कुरैशी कहते हैं, ‘‘हर दिन, हम फिल्म की रिलीज के करीब पहुंच रहे हैं.यह गाना हमारे लिए बहुत खास है.इस गाने में मिथुन दा का होना एक आदर्श है.यह आधुनिक और पुराने विश्व आकर्षण का एक आदर्श मिश्रण है.‘‘

Taarak Mehta Ka Ooltah Chasma एक्ट्रेस आराधना शर्मा हुई कास्टिंग काउच की शिकार , बताई आप बीती

सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा में दीप्ती की किरदार निभा चुकी एक्ट्रेस आराधना शर्मा के जीवन में एक समय ऐसा आया था, जब उन्हें कास्टिंग काउच का शिकार होना पड़ा था. एक इंटरव्यू के दौरान आराधना शर्मा ने इस बात का खुलासा किया है.

उन्होंने बताया कि उस डायरेक्टर ने मुझे गलत तरीके से छुने कि कोशिश किया था. जिससे मैं कमरे में घबरा गई थी, और डरकर बाहर आ गई थी. इसके साथ ही आराधना ने अपने स्ट्रगल के दिन के काफी सारी परेशानियों को याद किया. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जब वह पुणे में पढ़ाई कर रही थी, उस वक्त किसी ने उन्हें लव सीन का रोल ऑफर किया औऱ फिर मौके का फायदा उठाने कि कोशिश किया, जिस वक्त आराधना ने हिम्मत से काम लिया औऱ खुद को वहां से बाहर किया.

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उन्होंने बताया कि वह कुछ दिनों तक इस बात को अपने अंदर ही दबाए रखी, और उसके बाद उन्होंने बहुत हिम्मत होने के बाद इस बात को शेयर किया. तारक मेहता सीरियल के अलावा आराधना और भी कई सारे सीरियल्स में काम कर चुकी हैं, जहां उनके काम की खूब तारीफ की जाती है. आराधना के चाहने वालों की कमी नहीं है.

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इससे पहले वह सीरियल अलादिन में सुल्ताना तमन्ना के रोल में नजर आ चुकी है. जहां फैंस ने इन्हें खूब सारा प्यार दिया था.

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आराधना का शुरुआती कैरियर काफी ज्यादा स्ट्रग्ल से भरा हुआ था, जिसमें उन्होंने कई तरह कि परेशानियों का सामना किया है. खैर इन दिनों आराधना अपने कैरियर पर अच्छे जगह पहुंच गई हैं.

Indian Idol 12 Finale: 12 घंटे तक लगातार चलेगा शो, मेकर्स रचेंगे इतिहास

जल्द ही सोनी टीवी का रियलिटी शो इंडियन आइडल 12 का फिनाले होने वाला है, जिसकी तैयारी मेकर्स जोर-शोर से अभी से करने लगे हैं. मेकर्स इस फिनाले को यादगार बनाने वाले हैं. कुछ समय पहले ही इसका एलान किया गया है कि इस शो का फिनाले 15 अगस्त को होने वाला है.

इसी बीच एक खास खबर ये आ रही है कि इसका फिनाले 12 घंटे तक ऑएयर रहेगा. इंडियन आइडल 12 के फिनाले में सभी मशहूर हस्तियां जो इस शो का हिस्सा रही हैं परफॉर्म करने वाली हैं. इंडियन आइडल के एक्स विनर भी इस महफिल में आकर अपने सुर से चार चांद लगाने वाले हैं.

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इसके लिए अभी से तैयारी चल रही है. इतना ही नहीं बॉलीवुड के जाने माने सिंगर भी इस शो का हिस्सा बनेंगे. शो कि क्रिएटिव टीम इसे सुपर हिट बनाने के लिए अभी से जुट गई है.

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फैंस इस शो को देखने के लिए काफी ज्यादा बेताब नजर आ रहे हैं. ये बात भी सच है कि इस बार शो कि टीआरपी सभी को हिलाकर रख दिया है. फैंस ने इस शो को खूब ज्यादा प्यार दिया है.

हालांकि इसके अलावा इस शो का नाम कई बार विवादों में भी आ चुका है. जिससे यह शो सोशल मीडिया पर खूब ट्रोल हुआ है. पवनदीप , अरुणिता और दानिश को लेकर भी इस शो में खूब हंगामा हुआ है. अब फैंस को ये लगता है कि पवनदीप औऱ अरुणिता एक दूसरे को पसंद करते हैं.

हालांकि अभी तक यह कहीं फाइनल नहीं हुआ है. देखना यह है कि इस शो में आगे क्या होता है. कौन बनेगा इस शो का विनर इसका इंतजार हर किसी को हैं.

Romantic Story : लाइफ पार्टनर- अवनि अभिजीत को स्वीकार कर पाई

लेखकप्रेमलता यादू

अवनि की शादी को लगभग चार महीने बीत चुके थे, परंतु अवनि अब तक अभिजीत को ना मन से और ना ही‌ तन‌ से‌ स्वीकार कर पाई थी. अभिजीत ने भी इतने दिनों में ना कभी पति होने का अधिकार जताया और ना ही अवनि को पाने की चेष्टा की. दोंनो एक ही छत में ऐसे रहते जैसे रूम पार्टनर .

अवनि की परवरिश मुंबई जैसे महानगर में खुले माहौल में हुई थी.वह स्वतंत्र उन्मुक्त मार्डन विचारों वाली आज की वर्किंग वुमन (working woman) थी. वो चाहती थी कि उसकी शादी उस लड़के से हो जिससे वो प्यार करे.अवनि शादी से पहले प्यार के बंधन में बंधना चाहती थी और फिर उसके बाद शादी के बंधन में, लेकिन ऐसा हो ना सका.

अवनि जिसके संग प्यार के बंधन में बंधी और जिस पर उसने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, वो अमोल उसका लाइफ पार्टनर ना बन सका लेकिन अवनि को इस बात का ग़म ना था.उसे इस बात की फ़िक्र थी कि अब वो अमोल के संग अपना संबंध बिंदास ना रख पाएगी.वो चाहती थी कि अमोल के संग उसका शारीरिक संबंध शादी के बाद भी ऐसा ही बना रहे.इसके लिए अमोल भी तैयार था.

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अवनि अब तक भूली‌ नही ‌अमोल से उसकी वो पहली मुलाकात.दोनों ऑफिस कैंटीन में मिले थे.अमोल को देखते ही अवनि की आंखों में चमक आ गई थी.उसके बिखरे बाल, ब्लू जींस और उस पर व्हाईट शर्ट में अमोल किसी हीरो से कम नहीं लग रहा था.उसके बात करने का अंदाज ऐसा था कि अवनि उसे अपलक निहारती रह गई थी. उसे love at first sight वाली बात सच लगने लगी. सुरभि ने दोनों का परिचय करवाया था.

अवनि और अमोल ऑफिस के सिलसिले में एक दूसरे से मिलते थे.धीरे धीरे दोनों में दोस्ती हो गई और कब दोस्ती प्यार में बदल गई पता ही नही चला.प्यार का खुमार दोनों में ऐसा ‌चढ़ा की सारी मर्यादाएं लांघ दी गई.

अमोल  इस बात से खुश था की अवनि जैसी खुबसूरत लड़की उसके मुठ्ठी में है‌ और अवनि को भी इस खेल में मज़ा आ रहा  था.मस्ती में चूर अविन यह भूल ग‌ई कि उसे पिछले महीने पिरियड नहीं आया है जब उसे होश आया तो उसके होश उड़ गए.वो ऑफिस से फौरन लेडी डॉक्टर के पास ग‌ई. उसका शक सही निकला,वो प्रेग्नेंट थी.

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अवनि ने हास्पिटल से अमोल को फोन किया पर अमोल का फोन मूव्ड आउट आफ कवरेज एरिया बता रहा था.अवनि घर आ गई.वो सारी रात बेचैन रही. सुबह ऑफिस पहुंचते ही वो अमोल के सेक्शन में ग‌ई जहां सुरभि ने उसे बताया कि अमोल तो कल‌ ही अपने गांव के लिए निकल गया.उसकी पत्नी का डीलीवरी होने वाला है,यह सुनते ही अवनि के चेहरे का रंग उड़ गया.अमोल ने उसे कभी बताया नहीं कि वो शादीशुदा है. इस बीच अवनि के आई – बाबा ने अभिजीत से अवनि की शादी तय कर दी.अवनि यह शादी नहीं करना चाहती थी.

पंद्रह दिनों बाद अमोल के लौटते ही अवनि उसे सारी बातें बताती हुई बोली-“अमोल मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती तुम अपने बीबी,बच्चे को छोड़ मेरे पास आ जाओ हम साथ रहेंगे ”

अमोल इसके लिए तैयार नही हुआ और अवनि को पुचकारते हुए बोला-“अवनि तुम  एबार्शन करा लो और जहां तुम्हारे आई बाबा चाहते हैं वहां तुम शादी कर लो और बाद में तुम कुछ ऐसा करना कि कुछ महीनों में वो तुम्हें  तलाक दे दे और फिर हमारा संबध यूं ही बना रहेगा”.

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अवनि मान गई और उसने अभिजीत से शादी कर ली.शादी के बाद जब अभिजीत ने सुहाग सेज पर अवनि के होंठों पर अपने प्यार का मुहर लगाना‌ चाहा तो अवनि ने उसी रात अपना मंतव्य साफ कर दिया कि जब ‌तक वो अभिजीत को दिल से स्वीकार नही कर लेती, उसके लिए उसे शरीर से स्वीकार कर पाना संभव नही होगा.उस दिन से अभिजीत ने अविन‌ को कभी छूने का प्रयास नही किया.केवल दूर से उसे देखता.ऐसा नही था की अभिजीत देखने में बुरा था.अवनि जितनी खूबसूरत ‌थी.अभिजीत उतना ही सुडौल और आकर्षक व्यक्तित्व का था.

अभिजीत वैसे तो माहराष्ट्र के जलगांव जिले का रहने वाला था,लेकिन अपनी नौकरी के चलते नासिक में रह रहा था.शादी के ‌बाद अवनि को भी अपना ट्रांसफर नासिक के ब्रान्च ऑफिस में परिवार वालों और अमोल  के कहने पर करवाना पड़ा.अमोल ने वादा किया था कि वो नासिक आता रहेगा.अवनि के नासिक‌ पहुंचने की दूसरी सुबह,अभिजीत ने चाय‌ बनाने से पहले अवनि से कहा-” मैं चाय बनाने जा रहा हूं क्या तुम चाय पीना पसंद करोगी .

अवनि ने बेरुखी से जवाब दिया-“तुम्हें तकल्लुफ करने की कोई जरुरत नहीं.मैं अपना ध्यान स्वयं रख सकती हूं.मुझे क्या खाना‌ है,पीना है ,ये मैं खुद देख लुंगी”.

अवनि के ऐसा कहने पर अभिजीत वहां से बिना कुछ कहे चला गया.दोनों एक ही छत में ‌रहते हुए एक दूसरे से अलग ‌अपनी‌ अपनी‌ दुनिया में मस्त थे.

शहर और ऑफिस दोनों ही न‌ए होने की वजह से अवनि ‌अब तक ज्यादा किसी से घुलमिल नहीं पाई थी.ऑफिस का काम और ऑफिस के लोगों को समझने में अभी उसे  थोड़ा वक्त चाहिए था.अभिजीत और अवनि दोनों ही सुबह अपने अपने ऑफिस के लिए निकल जाते और देर रात घर लौटते.सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना दोनों अपने ऑफिस कैंटीन में खा लेते.केवल रात का खाना ही घर पर बनता.दोंनो में से जो पहले घर पहुंचता खाना बनाने की जिम्मेदारी उसकी होती.ऑफिस से आने के बाद अवनि अपना ज्यादातर समय मोबाइल पर देती या फिर अपनी क्लोज  फ्रैंड सुरभि को,जो उसकी हमराज भी थी और अभिजीत को अवनि का room partner संबोधित किया करती थी. अभिजीत अक्सर न्यूज या फिर  एक्शन-थ्रिलर फिल्में देखते हुए बिताता.

अवनि और अभिजीत दोनों मनमौजी की तरह अपनी जिंदगी अपने-अपने ढंग से जी रहे थे, तभी अचानक एक दिन अवनि का पैर बाथरूम में फिसल गया और उसके पैर में मोच आ गई. दर्द इतना था ‌कि अवनि के लिए हिलना डुलना मुश्किल हो गया. डॉक्टर ने अवनि को पेन किलर और कुछ दवाईयां दी साथ में पैर पर मालिस करने के लिए लोशन भी, साथ ही यह हिदायत भी दी कि वो दो चार दिन घर पर ही रहे और ज्यादा चलने फिरने से बचे.

अवनि को इस हाल में देख अभिजीत ने भी अवनि के साथ अपने ‌ऑफिस से एक हफ्ते की छुट्टी ले ली और पूरे दिन अवनि की देखभाल करने लगा.उसकी हर जरूरतों का पूरा ध्यान रखता.अवनि के मना करने के बावजूद दिन में दो बार उसके पैरों की मालिश करता.अभिजीत जब उसे छूता ‌अवनि को अमोल के संग बिताए अपने अंतरंग पलों की याद ताज़ा हो जाती और वो रोमांचित हो उठती.अभिजीत भी तड़प उठता लेकिन फिर संयम रखते हुए अवनि से दूर हो जाता.अभिजीत सारा दिन अवनि को खुश रखने का प्रयास करता उसे हंसाता उसका दिल बहलाता.

इन चार दिनों में अवनि ने यह महसूस किया की अभिजीत देखने में जितना सुंदर है उससे कहीं ज्यादा खुबसूरत उसका दिल है.वो अमोल से ज्यादा उसका ख्याल रखता है. अभिजीत ने अपने सभी जरूरी काम स्थगित कर दिए थे.इस वक्त अवनि ही अभिजीत की प्रथमिकता थी. इन्हीं सब के बीच ना जाने कब अवनि के मन में अभिजीत के लिए प्रेम का पुष्प पुलकित होने लगा पर इस बात ‌से अभिजीत बेखबर था.

अवनि अब ठीक हो चुकी थी.एक हफ्ते गुजरने को थे.अवनि अपने दिल की बात  कहना चाहती थी, लेकिन कह‌ नही पा रही थी.अवनि चाहती थी अभिजीत उसके करीब आए उसे छूएं लेकिन अभिजीत भूले से भी उसे हाथ नहीं लगाता बस ललचाई आंखों से उसकी ओर देखता.एक सुबह मौका पा अवनि, अभिजीत से बोली-“मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूं”

” हां कहो,क्या कहना है ?”अभिजीत न्यूज पेपर पर आंखें गढ़ाए अवनि की ओर देखे बगैर ही बोला.

अवनि गुस्से में अभिजीत के हाथों से न्यूज पेपर छीन उसके दोनों बाजुओं को पकड़ अपने होंठ उसके होंठों के एकदम करीब ले जा कर जहां दोनों को एक-दूसरे की गर्म सांसें महसूस होने लगी अवनि बोली-“मैं तुमसे प्यार करने लगी हूं मुझे तुम से प्यार हो गया है”.

यह सुनते ही अभिजीत ने अवनि को अपनी बाहों में भर लिया और बोला-“तुम मुझे अब प्यार करने लगी हो,मैं तुम्हें उस दिन से प्यार करता हूं जिस दिन से तुम मेरी जिंदगी में आई हो और तब से तुम्हें पाने के लिए बेताब हूं. तभी अचानक अवनि का मोबाइल बजा.फोन पर सुरभि थी.हाल चाल पूछने के बाद सुरभि ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा-“and what about your room partner”

यह सुनते ही अवनि गम्भीर स्वर में बोली- “No सुरभि he is not my room partner.now he is my life partner”.

ऐसा कह अवनि अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर सब कुछ भूल अभिजीत की बाहों में समा गई.

 

मेरी क्लास टीचर मुझे मां समान प्यार करती हैं, मैं उन के साथ अलग तरह का जुड़ाव महसूस करता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 16 वर्षीय किशोर 11वीं कक्षा का छात्र हूं. मेरी मां नहीं हैं. मेरी क्लास टीचर मुझे मां समान प्यार करती हैं पर वे कुछ दिन से मुझ से बात नहीं कर रही हैं. मैं उन के साथ एक अलग तरह का जुड़ाव महसूस करता हूं. मैं क्या करूं?

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जवाब

आप की टीचर आप को मां समान प्यार करती हैं यह तो अच्छी बात है, लेकिन आप उन के साथ एक अलग तरह का जुड़ाव महसूस करते हैं इस का अर्थ समझ से परे है. भई, जब आप की मां नहीं हैं और टीचर आप से मां समान प्यार करती हैं तो आप को भी बेटे की तरह रहना चाहिए और उन से उसी तरह प्यार रखते हुए इस रिश्ते को निभाना चाहिए. रही टीचर के कुछ दिन से आप से बात न करने की बात, तो खुद ही सोचिए अगर आप की मां ऐसा करतीं तो आप क्या करते?

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बहरहाल, खुद सोचिए कहीं कोई गलती या गलत बात तो आप से नहीं निकल गई जिस वजह से वे नाराज हैं. बस, उस गलती को सुधारिए और आगे ऐसा न करने का आश्वासन उन्हें दीजिए, वे अवश्य मान जाएंगी. हां, अगर उन के साथ अलग तरह के जुड़ाव वाली बात से आप का इशारा ‘क्रश’ की ओर है तो संभल जाइए, टीचर का स्टूडैंट से गरिमामय रिश्ता होता है, उसे ससम्मान निभाइए. ऐसा भी हो सकता है आप के इस बिहेव से वे नाराज हों, तो खुद को भी सुधारिए.

 

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