लेखिका-लता अग्रवाल
लेखिका-लता अग्रवाल
रियलिटी शो के मेकर्स अपने शो को बेहतर बनाने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते हैं. हाल ही में विशाल आदित्या सिंह की खिंचाई रोहित शेट्टी शो में करते हुए मधुरिमा तुली के साथ बिग बॉस में हुई लड़ाई का जिक्र किया.
इतना ही नहीं इस शो में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि कैसे मधुरिमा ने विशाल पर फ्राइंग पैन से अटैक किया गया था, हालांकि ये सब माजाक मस्ती में किया गया था लेकिन कलर्स टीवी पर इसे बार-बार दिखाया गया.
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जो सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहा है, फैंस भी इस लड़ाई के खूब मजे ले रहे हैं. जिसके बाद क्या था मधुरिमा तुली का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ा और कलर्स टीवी वाले ने इसे रिपीट करके खूब चलाया है.
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मधुरिमा ने अपने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर करते हुए हाथ जोड़कर कहा है कि डियर कलर्स चैनल मैंने आपके साथ बहुत सार शोज किए हैं. लेकिन इस बार जो मेरा खतरों के खिलाड़ी में बिग बॉस के पुरानी बातों को लेकर मजाक बनाया जा रहा है वह मुझस बर्दाश्त नहीं हो रहा है. इसलिए मैं इस वीडियो को बनान पर मजबूर हुई.
आगे मधुरिमा ने कहा अपने टीआरपी क लिए आप बार- बार एक ही बात का जिक्र कर रहे हो इससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन एक बार आप दूसरों की फैमली के बारे में तो सोचो उनपर क्या फर्क पड़ रहा है.
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मेरे परिवार वाले आपके इस हरकत से कितने ज्यादा डिप्रेेंस है इसका अंदाजा भी आपको नहीं है. मुझे ऐसा लग रहा है कि आप जानबुझकर ऐसा कर रहे है ताकि मैं तो बहुत ज्यादा कमजोर हूं मेरी फॉनफॉलोविंग इतनी ज्यादा नहीं है और मैं आपकी इस हरकत स चुप रह जाऊंगी.
अब देखना यह है कि आगे कलर्स टीवी वाले इस पर क्या एक्शन लेते हैं.
प्रशांत को जब अपने मित्र आशीष की बेटी सुधा के साथ हुए हादसे के बारे में पता चला तो एकाएक उसे अपनी भाभी की याद आ गई. जिस तरह शहर में ठीकठाक नौकरी करने वाले मित्र के दामाद ने सुधा को छोड़ दिया था, उसी तरह डिप्टी कलेक्टर बनने के बाद प्रशांत के ताऊ के बेटे ईश्वर ने भी अपनी पत्नी को छोड़ दिया था. अंतर सिर्फ इतना था कि ईश्वर ने विदाई के तुरंत बाद पत्नी को छोड़ा था, जबकि सुधा को एक बच्चा होने के बाद छोड़ा गया था.
आशीष के दामाद ने उन की भोलीभाली बेटी सुधा को बहलाफुसला कर उस से तलाक के कागजों पर दस्तखत भी करा लिए थे. सुधा के साथ जो हुआ था, वह दुखी करने और चिंता में डालने वाला था, लेकिन इस में राहत देने वाली बात यह थी कि सुधा की सास ने उस का पक्ष ले कर अदालत में बेटे के खिलाफ गुजारेभत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था.
अदालत में तारीख पर तारीख पड़ रही थी. हर तारीख पर उस का बेटा आता, लेकिन वह मां से मुंह छिपाता फिरता. कोर्टरूम में वह अपने वकील के पीछे खड़ा होता था.
लगातार तारीखें पड़ते रहने से न्याय मिलने में देर हो रही थी. एक तारीख पर पुकार होने पर सुधा की सास सीधे कानून के कठघरे में जा कर खड़ी हो गई. दोनों ओर के वकील कुछ कहतेसुनते उस के पहले ही उस ने कहा, ‘‘हुजूर, आदेश दें, मैं कुछ कहूं, इस मामले में मैं कुछ कहना चाहती हूं.’’
अचानक घटी इस घटना से न्याय की कुरसी पर बैठे न्यायाधीश ने कठघरे में खड़ी औरत को चश्मे से ऊपर से ताकते हुए पूछा, ‘‘आप कौन?’’
वकील की आड़ में मुंह छिपाए खडे़ बेटे की ओर इशारा कर के सुधा की सास ने कहा, ‘‘हुजूर मैं इस कुपुत्र की मां हूं.’’
‘‘ठीक है, समय आने पर आप को अपनी बात कहने का मौका दिया जाएगा. तब आप को जो कहना हो, कहिएगा.’’ जज ने कहा.
‘‘हुजूर, मुझे जो कहना है, वह मैं आज ही कहूंगी, आप की अदालत में यह क्या हो रहा है.’’ बहू की ओर इशारा करते हुए उस ने कहा, ‘‘आप इस की ओर देखिए, डेढ़ साल हो गए. इस गरीब बेसहारा औरत को आप की ड्योढ़ी के धक्के खाते हुए. यह अपने मासूम बच्चे को ले कर आप की ड्योढ़ी पर न्याय की आस लिए आती है और निराश हो कर लौट जाती है. दूसरों की छोडि़ए साहब, आप तो न्याय की कुरसी पर बैठे हैं, आप को भी इस निरीह औरत पर दया नहीं आती.’’
न्याय देने वाले न्यायाधीश, अदालत में मौजूद कर्मचारी, वकील और वहां खडे़ अन्य लोग अवाक सुधा की सास का मुंह ताकते रह गए. लेकिन सुधा की सास को जो कहना था. उस ने कह दिया था.
उस ने आगे कहा, ‘‘हुजूर, इस कुपुत्र ने मेरे खून का अपमान किया है. इस के इस कृत्य से मैं बहुत शर्मिंदा हूं. हुजूर, अगर मैं ने कुछ गलत कह दिया हो तो गंवार समझ कर माफ कर दीजिएगा. मूर्ख औरत हूं, पर इतना निवेदन जरूर करूंगी कि इस गरीब औरत पर दया कीजिए और जल्दी से इसे न्याय दे दीजिए, वरना कानून और न्याय से मेरा भरोसा उठ जाएगा.’’
सुधा की सास को गौर से ताकते हुए जज साहब ने कहा, ‘‘आप तो इस लड़के की मां हैं, फिर भी बेटे का पक्ष लेने के बजाए बहू का पक्ष ले रही हैं. आप क्या चाहती हैं इसे गुजारे के लिए कितनी रकम देना उचित होगा?’’
‘‘इस लड़की की उम्र मात्र 24 साल है. इस का बेटा ठीक से पढ़लिख कर जब तक नौकरी करने लायक न हो जाए, तब तक के लिए इस के खर्चे की व्यवस्था करा दीजिए.’’
जज साहब कोई निर्णय लेते. लड़के के वकील ने एक बार फिर तारीख लेने की कोशिश की. पर जज ने उसी दिन सुनवाई पूरी कर फैसले की तारीख दे दी. कोर्ट का फैसला आता, उस के पहले ही आशीष सुधा की सास को समझाबुझा कर विदा कराने के लिए उस की ससुराल जा पहुंचा. मदद के लिए वह अपने मित्र प्रशांत को भी साथ ले गया था कि शायद उसी के कहने से सुधा की सास मान जाए.
उन के घर पहुंचने पर सुधा की सास ने उन का हालचाल पूछ कर कहा, ‘‘आप लोग किसलिए आए हैं, मुझे यह पूछने की जरूरत नहीं है. क्योंकि मुझे पता है कि आप लोग सुधा को ले जाने आए हैं. मुझे इस बात का अफसोस है कि मेरे समधी और समधिन को मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. शायद इसीलिए बिटिया को ले जाने के लिए दोनों इतना परेशान हैं.’’
‘‘ऐसी बात नहीं हैं समधिन जी. आप के उपकार के बोझ से मैं और ज्यादा नहीं दबना चाहता. आप ने जो भलमनसाहत दिखाई है वह एक मिसाल है. इस के लिए मैं आप का एहसान कभी नहीं भूल पाऊंगा.’’ आशीष ने कहा.
सुधा की सास कुछ कहती. उस के पहले ही प्रशांत ने कहा, ‘‘दरअसल यह नहीं चाहते कि इन की वजह से मांबेटे में दुश्मनी हो. इन की बेटी ने तलाक के कागजों पर दस्तखत कर दिए हैं. उस हिसाब से देखा जाए तो अब उसे यहां रहने का कोई हक नहीं है. सुधा इन की एकलौती बेटी है.’’
‘‘मैं सब समझती हूं. मेरे पास जो जमीन है उस में से आधी जमीन मैं सुधा के नाम कर दूंगी. जब तक मैं जिंदा हूं, अपने उस नालायक आवारा बेटे को इस घर में कदम नहीं रखने दूंगी. सुधा अगर आप लोगों के साथ जाना चाहती है तो मैं मना भी नहीं करूंगी.’’ इस के बाद उस ने सुधा की ओर मुंह कर के कहा, ‘‘बताओ सुधा, तुम क्या चाहती हो.’’
‘‘चाचाजी, आप ही बताइए, मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली अपनी इन सास को छोड़ कर मैं आप लोगों के साथ कैसे चल सकती हूं.’’ सुधा ने कहा.
सुधा के इस जवाब से प्रशांत और आशीष असमंजस में पड़ गए. प्रशांत ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली सास को छोड़ कर अपने साथ चलने के लिए कैसे कह सकता हूं.’’
‘‘तो फिर आप मेरी मम्मी को समझा दीजिएगा.’’ आंसू पोंछते हुए सुधा ने कहा.
‘‘ऐसी बात है तो अब हम चलेंगे. जब कभी हमारी जरूरत पड़े, आप हमें याद कर लीजिएगा. हम हाजिर हो जाएंगे.’’ कह कर प्रशांत उठने लगे तो सुधा की सास ने कहा, ‘‘हम आप को भूले ही कब थे, जो याद करेंगे. कितने दिनों बाद तो आप मिले हैं. अब ऐसे ही कैसे चले जाएंगे. मैं तो कब से आप की राह देख रही थी कि आप मिले तो सामने बैठा कर खिलाऊं. लेकिन मौका ही नहीं मिला. आज मौका मिला है. तो उसे कैसे हाथ से जाने दूंगी.’’
‘‘आप कह क्या रही हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है?’’ हैरानी से प्रशांत ने कहा.
‘‘भई, आप साहब बन गए, आंखों पर चश्मा लग गया. लेकिन चश्मे के पार चेहरा नहीं पढ़ पाए. जरा गौर से मेरी ओर देखो, कुछ पहचान में आ रहा है?’’
प्रशांत के असमंजस को परख कर सुधा की सास ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप तो ज्ञानू बनना चाहते थे. मुझ से अपने बडे़ होने तक राह देखने को भी कहा था. लेकिन ऐसा भुलाया कि कभी याद ही नहीं आई.’’
अचानक प्रशांत की आंखों के सामने 35-36 साल पहले की रूपमती भाभी का चेहरा नाचने लगा. उस के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘भाभी आप…?’’
‘‘आखिर पहचान ही लिया अपनी भाभी को.’’
गहरे विस्मय से प्रशांत अपनी रूपमती भाभी को ताकता रहा. सुधा का रक्षाकवच बनने की उन की हिम्मत अब प्रशांत की समझ में आ गई थी. उन का मन उस नारी का चरणरज लेने को हुआ. उन की आंखें भर आईं.
रूपमती यानी सुधा की सास ने कहा, ‘‘देवरजी, तुम कितने दिनों बाद मिले. तुम्हारा नाम तो सुनती रही, पर वह तुम्हीं हो, यह विश्वास नहीं कर पाई आज आंखों से देखा, तो विश्वास हुआ. प्यासी, आतुर नजरों से तुम्हारी राह देखती रही. तुम्हारे छोड़ कर जाने के बरसों बाद यह घर मिला. जीवन में शायद पति का सुख नहीं लिखा था. इसलिए 2 बेटे पैदा होने के बाद आठवें साल वह हमें छोड़ कर चले गए.
‘‘बेटों को पालपोस कर बड़ा किया. शादीब्याह किया. इस घर को घर बनाया, लेकिन छोटा बेटा कुपुत्र निकला. शायद उसे पालते समय संस्कार देने में कमी रह गई. भगवान से यही विनती है कि मेरे ऊपर जो बीती, वह किसी और पर न बीते. इसीलिए सुधा को ले कर परेशान हूं.’’
प्रशांत अपलक उम्र के ढलान पर पहुंच चुकी रूपमती को ताकता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. रूपमती भाभी के अतीत की पूरी कहानी उस की आंखों के सामने नाचने लगी.
बचपन में प्रशांत की बड़ी लालसा थी कि उस की भी एक भाभी होती तो कितना अच्छा होता. लेकिन उस का ऐसा दुर्भाग्य था कि उस का अपना कोई सगा बड़ा भाई नहीं था. गांव और परिवार में तमाम भाभियां थीं, लेकिन वे सिर्फ कहने भर को थीं.
संयोग से दिल्ली में रहने वाले प्रशांत के ताऊ यानी बड़े पिताजी के बेटे ईश्वर प्रसाद की पत्नी को विदा कराने का संदेश आया. ताऊजी ही नहीं, ताईजी की भी मौत हो चुकी थी. इसलिए अब वह जिम्मेदारी प्रशांत के पिताजी की थी. मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घर वालों से रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. फिर भी प्रशांत के पिता को अपना फर्ज तो अदा करना ही था.
ईश्वर प्रसाद प्रशांत के ताऊ का एकलौता बेटा था. उस की शादी ताऊजी ने गांव में तब कर दी थी. जब वह दसवीं में पढ़ता था. तब गांव में बच्चों की शादी लगभग इसी उम्र में हो जाती थी. उस की शादी उस के पिता ने अपने ननिहाली गांव में तभी तय कर दी थी, जब वह गर्भ में था.
देवनाथ के ताऊजी को अपनी नानी से बड़ा लगाव था, इसीलिए मौका मिलते ही वह नानी के यहां भाग जाते थे. ऐसे में ही उन की दोस्ती वहां ईश्वर के ससुर से हो गई थी.
अपनी इसी दोस्ती को बनाए रखने के लिए उन्होंने ईश्वर के ससुर से कहा था कि अगर उन्हें बेटा होता है तो वह उस की शादी उन के यहां पैदा होने वाली बेटी से कर लेंगे.
उन्होंने जब यह बात कही थी, उस समय दोनों लोगों की पत्नियां गर्भवती थीं. संयोग से ताऊजी के यहां ईश्वर पैदा हुआ तो दोस्त के यहां बेटी, जिस का नाम उन्होंने रूपमती रखा था.
प्रशांत के ताऊ ने वचन दे रखा था, इसलिए ईश्वर के लाख मना करने पर उन्होंने उस का विवाह रूपमती से उस समय कर दिया, जब वह 10वीं में पढ़ रहा था. उस समय ईश्वर की उम्र कम थी और उस की पत्नी भी छोटी थी. इसलिए विदाई नहीं हुई थी. ईश्वर की शादी हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि उस के ससुर चल बसे थे. इस के बाद जब भी विदाई की बात चलती, ईश्वर पढ़ाई की बात कर के मना कर देता. वह पढ़ने में काफी तेज था. उस का संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक नौकरी में चयन हो गया और वह डिप्टी कलेक्टर बन गया. ईश्वर ट्रेनिंग कर रहा था तभी उस के पिता का देहांत हो गया था.
संयोग देखो, उन्हें मरे महीना भी नहीं बीता था कि ईश्वर की मां भी चल बसीं. मांबाप के गुजर जाने के बाद एक बहन बची थी, उस की शादी हो चुकी थी. इसलिए अब उस की सारी जिम्मेदारी प्रशांत के पिता पर आ गई थी.
लेकिन मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घरपरिवार से नाता लगभग खत्म सा कर लिया था. आनेजाने की कौन कहे, कभी कोई चिट्ठीपत्री भी नहीं आती थी. उन दिनों शहरों में भी कम ही लोगों के यहां फोन होते थे. अपना फर्ज निभाने के लिए प्रशांत के पिता ने विदाई की तारीख तय कर के बहन से ईश्वर को संदेश भिजवा दिया था.
जब इस बात की जानकारी प्रशांत को हुई तो वह खुशी से फूला नहीं समाया. विदाई से पहले ईश्वर की बहन को दुलहन के स्वागत के लिए बुला लिया गया था. जिस दिन दुलहन को आना था, सुबह से ही घर में तैयारियां चल रही थीं.
प्रशांत के पिता सुबह 11 बजे वाली टे्रन से दुलहन को ले कर आने वाले थे. रेलवे स्टेशन प्रशांत के घर से 6-7 किलोमीटर दूर था. उन दिनों बैलगाड़ी के अलावा कोई दूसरा साधन नहीं होता था. इसलिए प्रशांत बहन के साथ 2 बैलगाडि़यां ले कर समय से स्टेशन पर पहुंच गया था.
ट्रेन के आतेआते सूरज सिर पर आ गया था. ट्रेन आई तो पहले प्रशांत के पिता सामान के साथ उतरे. उन के पीछे रेशमी साड़ी में लिपटी, पूरा मुंह ढापे मजबूत कदकाठी वाली ईश्वर की पत्नी यानी प्रशांत की भाभी छम्म से उतरीं. दुलहन के उतरते ही बहन ने उस की बांह थाम ली.
दुलहन के साथ जो सामान था, देवनाथ के साथ आए लोगों ने उठा लिया. बैलगाड़ी स्टेशन के बाहर पेड़ के नीचे खड़ी थी. एक बैलगाड़ी पर सामान रख दिया गया. दूसरी बैलगाड़ी पर दुलहन को बैठाया गया. बैलगाड़ी पर धूप से बचने के लिए चादर तान दी गई थी.
दुलहन को बैलगाड़ी पर बैठा कर बहन ने प्रशांत की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह आप का एकलौता देवर और मैं आप की एकलौती ननद.’’
मेहंदी लगे चूडि़यों से भरे गोरेगोरे हाथ ऊपर उठे और कोमल अंगुलियों ने घूंघट का किनारा थाम लिया. पट खुला तो प्रशांत का छोटा सा हृदय आह्लादित हो उठा. क्योंकि उस की भाभी सौंदर्य का भंडार थी.
कजरारी आंखों वाला उस का चंदन के रंग जैसा गोलमटोल मुखड़ा असली सोने जैसा लग रहा था. उस ने दशहरे के मेले में होने वाली रामलीला में उस तरह की औरतें देखी थीं. उस की भाभी तो उन औरतों से भी ज्यादा सुंदर थी.
प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.
इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.
उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’
इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’
दुर्भाग्य के भंवरजाल में फंसी नवोदा के लिए ज्ञानू का यह कथन डूबते को तिनके का सहारा की तरह था. उस ने ज्ञानू से शादी कर ली थी. प्रशांत का भी मन ज्ञानू बनने का हो रहा था. लेकिन अभी वह छोटा था. उस की उम्र महज 13 साल थी. दुलहन को घर में बैठा कर पिया का इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया.
अगले दिन इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. ईश्वर भैया शाम की गाड़ी से आ गए. लेकिन आते ही उन्होंने फरमान सुना दिया कि वह इस दुलहन को नहीं रखेंगे. लोगों ने समझायाबुझाया पर वह किसी की नहीं माने.
पति का फरमान सुन कर भाभी रोने लगीं. सुबह भाभी का चेहरा उतरा हुआ था. आंखें इस तरह लाल और सूजी थीं, जैसे वह रात भर रोई थीं. प्रशांत ने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. रूपमती की चुप्पी पर प्रशांत ने अगला सवाल किया, ‘‘भाभी, दिल्ली से भैया आप के लिए क्या लाए हैं?’’
‘‘मौत.’’ रूपमती ने प्रशांत को संक्षिप्त सा जवाब दिया.
भाभी के इस जवाब पर प्रशांत को गहरा आघात लगा. उस ने कहा, ‘‘लगता है भाभी आप रात में बहुत रोई हैं. क्या हुआ है, कुछ बताओ तो सही.’’
‘‘भैया, अभी यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. दूसरे के दुख में आप क्यों दुखी हो रहे हैं. मेरे भाग्य में जो है वही होगा.’’ कह कर भाभी फफक कर रो पड़ी. दिल का बोझ थोड़ा हलका हुआ तो आंचल से मुंह पोंछ कर बोली, ‘‘आप के भैया बहुत बड़े अधिकारी हैं. मैं उन के काबिल नहीं हूं. उन्हें खूब पढ़ीलिखी पत्नी चाहिए. इसीलिए वह मुझे साथ रखने को तैयार नहीं हैं.’’
रूपमती के साथ जो हुआ था. वह ठीक नहीं हुआ था. लेकिन प्रशांत कुछ नहीं कर सकता था. उसी दिन ईश्वर चला गया. जाने से पहले उस ने प्रशांत के पिता से कहा, ‘‘काका, मुझे यह औरत नहीं चाहिए. इस देहाती गंवार औरत को मैं अपने साथ हरगिज नहीं रख सकता.’’
ईश्वर के जाने के बाद रूपमती ननद के गले लग कर रोते हुए कहने लगी, ‘‘अगर इस आदमी को ऐसा ही करना था तो मुझे विदा ही क्यों कराया गया. विदा करा कर मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की गई. अब कौन मुझे कुंवारी मानेगा. मैं न इधर की रही न उधर की.’’
अब सवाल था रूपमती को मायके पहुंचाने का. मामला तलाक का था. इसलिए घर का कोई बड़ा रूपमती को मायके ले जाने के लिए राजी नहीं था. जब कोई बड़ाबुजुर्ग रूपमती को ले जाने के लिए राजी नहीं हुआ तो उसे मायके ले जाने की जिम्मेदारी प्रशांत की आ गई.
रेलवे स्टेशन से रूपमती का घर ज्यादा दूर नहीं था. कोई संदेश मिला होता तो शायद स्टेशन पर कोई लेने आ जाता. प्रशांत और रूपमती पैदल ही घर की ओर चल पडे़. सामान स्टेशन पर ही एक परिचित की दुकान पर रख दिया गया था.
राह चलते हुए अपनी व्यथा व्यक्त करने की खातिर गांव के ज्ञानेश उर्फ ज्ञानू के बारे में बता कर प्रशांत ने कहा, ‘‘आज मुझे अपने देर से पैदा होने पर अफसोस हो रहा है भाभी. अगर मैं 8-10 साल पहले पैदा हुआ होता तो…’’
दुख की उस घड़ी में भी रूपमती के चेहरे पर मुसकान आ गई. मासूम देवर के कंधे पर हाथ रख कर उस ने कहा, ‘‘तो फिर मैं तुम्हारे बड़े होने की राह देखूं?’’
प्रशांत झेंप गया. गांव आया, फिर घर. गौने गई लड़की के चौथे दिन मायके आने पर उसे देखने के लिए आसपड़ोस की औरतें इकट्ठा हो गईं. उस समय दिल पर पत्थर रख कर रूपमती मुसकराती रही. उस के इस भोलेभाले देवर को ताना न सुनना पड़े, इस के लिए उस ने किसी से कुछ नहीं बताया.
प्रशांत उसी दिन शाम की गाड़ी से लौट आया. रूपमती गांव के बाहर तक उसे छोड़ने आई. विदा करते समय उस ने कहा, ‘‘इस जन्म में फिर कभी मुलाकात हो, तो देवरजी पहचान जरूर लेना. इन चार दिनों में तुम ने जो दिया,’’ प्रशांत का हाथ पकड़ कर सीने पर रख कर कहा, ‘‘इस में समाया रहेगा.’’
इतना कहते हुए रूपमती की आंखों में जो आंसू आए थे, देवनाथ उन्हें आज तक नहीं भूल सका था. इस के बाद से देवनाथ को हमेशा लगता रहा कि जिंदगी में कहीं कुछ छूटा हुआ है, जो तमाम तलाशने पर भी नहीं मिल रहा है.
धीरेधीरे यह प्रसंग मन के किसी कोने में दबता गया और इस के मुख्य पात्रों की स्मृति धुंधली होती गई. इस की मुख्य वजह यह थी कि दोनों ओर से संबंध लगभग खत्म हो गए थे. बदल रही जीवन की घटनाओं के बीच यह दु:सह याद उस ने अंतरात्मा के किसी कोने में डाल दी थी.
प्रशांत को सोच में डूबा देख कर रूपमती ने कहा, ‘‘आप बड़े तो हो गए, पर किया गया वादा भूल गए, निभा नहीं पाए.’’
‘‘भाभी, आप ने भी तो मेरी राह कहां देखी.’’
‘‘देखी देवरजी, बिलकुल देखी. बहुत दिनों तक देखी. आप का इंतजार आज तक करती रही. राह आंख से नहीं, दिल से देखी जाती है देवरजी.’’
प्रशांत आगे कुछ कहता, उस के पहले ही रूपमती ने उठते हुए बहुओं से कहा, ‘‘सुधा बेटा, तुम्हारे यह चाचाजी, मेरे सगे देवर हैं, तुम इन के पास बैठो. इन के लिए आज मैं खुद खाना बनाऊंगी और सामने बैठ कर खिलाऊंगी. बरसों की अधूरी साध आज पूरी करूंगी.’’
लेखक–संजय कुमार सिंह
हर आदमी के सपने में एक लड़की होती है. कमोबेश खूबसूरत लड़की. वह उस की सघन कल्पना के बीच हमेशा चलतीफिरती है. हंसतीबोलती है.
नीना के प्रति मेरा आकर्षण चुंबक की तरह मुझे खींच रहा था. एक रोज मैं ने हंस कर सीधेसीधे उस से कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं.”
वह ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तुम बडे़ नादान हो रविजी. महानगर में प्यार मत करो, लुट जाओेगे.”
‘‘मतलब…?‘‘ मैं चौंका.
‘‘अरे मिलोजुलो, दोस्ती रखो… हो गया,‘‘ उस ने अंदर की पछाड़ खाती लहरों को भुला कर कहा, ‘‘प्यार और शादी, इस पचड़े के बारे में सोचो भी नहीं,‘‘ एक झटके में उस ने भावनाओं के सुंदर गुलाब की पंखुड़ियों को नोंच कर फुटपाथ पर फेंक दिया. लोग कुचलते हुए चले गए. मुझे अपना अक्स अब मुंह चिढ़ाने लगा, ‘यह लड़की भी क्या चीज है.’
उस ने फिर कहीं दूर भटकते हुए कहा, ‘‘इस शहर में रहो, पर सपने मत देखो. छोटे लोगों के सपने यों ही जल जाते हैं. जिंदगी में सिर्फ राख और धुआं बचते हैं. सच तो यह है कि प्यार यहां जांघों के बीच से फिसल जाता है.”
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‘‘कितना बेहूदा खयाल है नीना…”
‘‘किस का?”
‘‘तुम्हारा..” मैं ने तल्ख हो कर कहा, ‘‘और किस का?”
“यह मेरा खयाल है?” वह हैरान सी हुई, ‘‘तुम यही समझे…?”
“तो मेरा है?”
‘‘ओह…” उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘फिर भी मैं कह सकती हूं कि तुम कितने अच्छे हो… काश, मैं तुम्हें समझा पाती.”
‘‘नहीं ही समझाओ, तो अच्छा,” मैं ने उस से विदा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझ गया…‘‘ रास्तेभर तरहतरह के खयाल आते रहे. आखिरकार मैं ने तय किया कि सपने कितने भी हसीन हों, अगर आप बेदखल हो गए हों, तो उन हसरतों के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए.
मैं नीना की जिंदगी से बाद में कट गया.
मैं नीना को एक बस में मिला था. वह भी वहीं से चढ़ी थी, जहां से मैं चढ़ा था और वहीं उतरी भी.
कुछ दिन में हैलोहाय से बात आगे बढ़ गई. वह एक औफिस में असिस्टैंट की नौकरी कर रही थी. बैठनाउठना हो गया. वह बिंदास थी, पर बेहद प्रैक्टिकल. कुछ जुगाड़ू भी थी. मेरे छोटेमोटे काम फोन पर ही करा दिए.
उस दिन फैक्टरी से देर से निकला तो जैक्सन रोड की ओर निकल गया. दिल यों भी दुखी था. फैक्टरी में एक दुर्घटना हो गई थी. बारबार दिमाग में उस लड़के का घायल चेहरा आ रहा था. मैं एक मसाज पार्लर के पास रुक गया. यह पुराना शहर था अपनी स्मृति में, इतिहास को समेटे हुए. मैं ने घड़ी देखी. 7 बज रहे थे. मैं थकान दूर करने के लिए वहां घुस गया. अभी मैं जायजा ले ही रहा था कि मेरी नजर नीना पर पड़ी, ‘‘तुम यहां…?”
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“हां, मैं इसी पार्लर में काम करती हूं.”
“पर, तुम ने तो बताया था,” मैं ने आश्चर्य से भर कर कहा, “तुम किसी औफिस में काम करती हो…‘‘
“हां करती थी.‘‘
“फिर?‘‘
“सब यहीं पूछ लोगे?‘‘ वह दूसरे ग्राहक की ओर बढ़ गई. नशे से लुढ़कते थुलथुले लोगों के बीच से वह उन्हें गरम बदन का अहसास दे रही थी. मुझे गहरा अफसोस हुआ.
मैं सिर्फ हैड मसाज ले कर वापस आ गया. रास्ते में मैं ने फ्राई चिकन और रोटी ले ली थी. कमरे में पहुंच कर मैं सोना चाह रहा था, ताकि सीने पर जमा सांसों का बोझ हलका हो जाए. अभी खाने का एक गस्सा तोड़ा ही था कि मोहन वर्मा आ गया.
‘‘आओजी,” मैं ने बड़े अपनेपन से कहा, ‘‘बड़े मौके से आए हो तुम.”
‘‘क्या है?” मोहन ने मुसकराते हुए पूछा.
मोहन एक दवा दुकान पर सेल्समैन था. पूरा कंजूस और मजबूर आदमी. अकसर उसे घर से फोन आता था, जिस में पैसे की मांग होती थी. इस कबूतरखाने में इसी तरह के लोग किराएदार थे, जो दूर कहीं गांवघर में अपने परिवार को छोड़ कर अपना सलीब उठाए चले आए थे. अलबत्ता, नीचे वाले कमरे में कुछ परिवार वाले लोग भी थे, लेकिन वे भी अच्छी आय वाले नहीं थे, अपनी रीना, नीना के साथ किसी तरह रह रहे थे…
“मैं ने थाली उस की ओर खिसकाई,” बिना चूंचूं किए वह खाने लगा.
मोहन बोला, “यार रवि, तुम्हीं ठीक हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें नोचते नहीं. मैं तो सोचता हूं कि मेरी जिंदगी इसी तरह खत्म हो जाएगी… कि मैं वापस भी नहीं जा सकूंगा गांव… पहले यह सोच कर आया था कि 2-4 साल कमा कर लौट जाऊंगा… मगर 10 साल होने को हैं. मैं यहीं हूं…”
‘‘सुनो मोहन, मुझे फोन इसलिए नहीं आते हैं कि मेरे घर में लोग नहीं हैं… बल्कि उन्हें पता ही नहीं है कि मैं कहां हूं… इस दुनिया में हूं भी कि नहीं… यह अच्छा है… आज जिस लड़के का एक्सीडेंट हुआ, अगर मेरी तरह होता तो किस्सा खत्म था, पर अब जाने क्या गुजर रही होगी उस के घर वालों पर…”
‘‘ एक बात बोलूं?”
‘‘ बोलो.”
‘‘ तुम शादी कर लो.”
‘‘किस से?”
‘‘अरे, मिल जाएगी…”
‘‘मिली थी…” मैं ने कहा.
‘‘फिर क्या हुआ?
‘‘टूट गया.”
रात काफी हो गई थी. मोहन उठ कर चला गया.
सवेरे मेरी नींद देर से खुली, मगर फैक्टरी मैं समय से पहुंच गया. मुझे वहीं पता चला कि रात अस्पताल में उस ने तकरीबन 3 बजे दम तोड़ दिया. मैनेजर ने एक मुआवजे का चेक दिखा कर सहानुभूति बटोरने के बाद फैक्टरी में चालाकी से छुट्टी कर दी.
मैं वापस लौटने ही वाला था कि नीना का फोन आया. चौरंगी बाजार में एक जगह वह मेरा इंतजार कर रही थी.
‘‘क्या बात है?” मैं ने पूछा
‘‘कुछ नहीं,” वह हंसी.
‘‘बुलाया क्यों?”
‘‘गुस्से में हो?”
‘‘किस बात के लिए?”
‘‘अरे बोलो भी.”
‘‘बोलूं?”
‘‘हां.”
‘‘झूठ क्यों बोली?”
‘‘क्या झूठ ?”
‘‘कि औफिस में…”
‘‘नहीं, सच कहा था.”
‘‘तो वहीं रहती.”
‘‘बौस देह मांग रहा था,” उस ने साफसाफ कहा.
‘‘क्या…?” मैं अवाक रह गया.
काफी देर बाद मैं ने कहा, ‘‘चलो, मुझे माफ कर दो. गलतफहमी हुई.”
‘‘गलतफहमी में तो तुम अभी भी हो….”
‘‘मतलब…?” मैं इस बार चौंका, ‘‘कैसे?‘‘
‘‘फिर कभी,” नीना ने हंस कर कहा.
उस दिन नीना के प्रति यह गलतफहमी रह जाती, अगर मैं उस के साथ जिद कर के उस के घर नहीं गया होता.
मेरे घर की तरह दड़बेनुमा मकान था. एक बिल्डिंग में 30-40 परिवार होंगे. सचमुच कभीकभी जिंदगी भी क्या खूब मजाक करती है. वह 2 बूढ़ों को पालते हुए खुद बूढ़ी हो रही थी. उस की मां की आंखों में एक चमक उठी. कुछ अपना रोना रोया, कुछ नीना का.
मेरा भी कोई अपना कहने वाला नहीं था. भाई कब का न जाने कहां छोड़ गया था. मांबाप गुजर चुके थे. चाचाताऊ थे, पर कभी साल दो साल में कोई खबर मिलती.
उस दिन नीना का हाथ अपने हाथ में ले कर मैं ने कहा, ‘‘मुझे अब कोई गलतफहमी नहीं है. तुम्हें हो, तो कह सकती हो.‘‘
‘‘मुझे है,‘‘ उस ने हंस कर कहा, ‘‘पर, कहूंगी नहीं.‘‘
एक खूबसूरत रंग फिजां में फैल कर बिखर गया. उस दिन उस के छोटे बिस्तर पर जो अपनापन मिला, मां की गोद के बाद कभी नहीं मिला था. 2 महीने बाद दोनों ने शादी कर ली, बस 10 जने थे. न घोड़ी, न बरात, पर मुझे और नीना को लग रहा था कि सारी दुनिया जीत ली.
अगली सुबह मैं अपने साथ खाने का डब्बा ले गया था. इस से बढ़ कर दहेज होता है क्या?
लेखक-डा. प्रदीप कुमार बिसेन
भारत में 45 फीसदी धान सिंचित क्षेत्र में उगाया जाता है. जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा मुहैया है, वहां पर धान की रोपाई की जाती है. रोपाई के लिए धान की पौध अच्छी और स्वस्थ होनी चाहिए, इस से भरपूर पैदावार मिल सके. धान की पौध तैयार करने के लिए उपजाऊ, अच्छे जल निकास व सिंचाई स्रोत के पास वाले खेत का चयन करना चाहिए. अच्छी फसल लेने के लिए दोमट या मटियार मिट्टी सही होती है. इन में पानी को रोकने की ताकत ज्यादा होती है.
अलगअलग विधियां धान की पौध को तैयार करने के लिए अलगअलग क्षेत्रों में अलगअलग तरीके अपनाए जाते हैं, जो इस तरह हैं :
सामान्य विधि. संकर धानों की पौध तैयार करने की विधि. चावल सघनीकरण प्रणाली द्वारा पौध तैयार करने की विधि. मैट टाइप तैयार करने की विधि. बासमती धान की पौध तैयार करने की विधि.
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सामान्य विधि से पौध तैयार करना धान की पौध तैयार करने के लिए बीज का शोधन जरूर करना चाहिए. इस से बीज जनित व मृदा जनित रोगों से पौध को बचाया जा सकता है. जिन क्षेत्रों में जीवाणु, झुलसा या जीवाणुधारी रोग की समस्या हो, तो वहां पर 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लांटोमाइसीन को मिला कर पानी में रातभर भिगो देना चाहिए.
दूसरे दिन पानी में से खाली बीजों को छान कर निकाल देना चाहिए और भरे हुए बीजों को छाया में सुखा कर नर्सरी में डालना चाहिए. यदि क्षेत्रों में झुलसा की समस्या नहीं है, तो 25 किलोग्राम बीज को रातभर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन निकाल कर जब फालतू पानी बीज में से निकल जाए, तब 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बंडाजिम को 8-10 लिटर पानी में घोल कर बीज में मिला देना चाहिए. इस के बाद छाया में अंकुरित होने पर नर्सरी में डालना चाहिए.
नए कवकनाशी जैसे ट्राइसाईक्लोजाल एक ग्राम प्रति किलोग्राम बीज को भी बीज शोधन के इस्तेमाल में लाया जा सकता है. जैविक जैसे कि ट्राइकोडर्मा (4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से भी शोधन किया जा सकता है. एक एकड़ क्षेत्रफल की रोपाई के लिए महीन धान का 12 किलोग्राम, मध्यम धान का 14 किलोग्राम और मोटे धान का 16 किलोग्राम प्रति एकड़ बीज पौध तैयार करने के लिए ठीक होता है. ऊसर भूमि में यह मात्रा क्रमश: 15 किलोग्राम, 17.5 किलोग्राम और 20 किलोग्राम प्रति एकड़ होना चाहिए.
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एक एकड़ की पौध से तकरीबन 6 हेक्टेयर की रोपाई हो जाती है. समय से नर्सरी डालनी चाहिए और पौध में 43 किलोग्राम डीएपी और 70 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. म्यूरेट औफपोटाश का प्रयोग पौध में खेत में लगाने से एक दिन पहले कर देना चाहिए, जिस से यह समस्या नहीं आएगी. बीज की बोआई के बाद 10 से 14 दिन बाद एक सुरक्षात्मक छिड़काव रोगों व कीटों के नियंत्रण के लिए करना चाहिए. अगर पौध में खैरा रोग का प्रकोप दिखे, तो चिलेटेड जिंक का 1.5 ग्राम-2 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.
सफेदा रोग की रोकथाम के लिए 1.6 किलोग्राम फेरस सल्फेट को 8 किलोग्राम यूरिया 400 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से पौध स्वस्थ हो जाती है. धान की पौध में झोंका रोग के नियंत्रण के लिए 200 ग्राम कार्बंडाजिम 50 फीसदी को प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए. पौध में लगने वाले कीटों को रोकने के लिए क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी का 600 मिलीलिटर प्रति एकड़ की दर से उपयोग करना चाहिए. पौध में पानी का तापक्रम बढ़ने पर उसे निकाल कर पानी देना तय करना चाहिए.
संकर धानों की पौध तैयार करना 6 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से पौध तैयार करें. शुद्ध बीजों को 24 घंटे पानी में भिगो देना चाहिए. इस के बाद पानी निकाल कर कार्बंडाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए. शोधित बीजों को फैला कर पक्के फर्श पर रख देना चाहिए और जूट के गीले बोरे से ढक देना चाहिए व उचित नमी बनाने के लिए बोरे पर 2-3 बार पानी का छिड़काव करना चाहिए. 2 दिनों के बाद बीज अच्छी तरह से नर्सरी में डालने लायक हो जाता है.
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एक एकड़ क्षेत्रफल में संकर धान रोपने के लिए 280-320 वर्गमीटर क्षेत्र की नर्सरी काफी होती है, जो सामान्य धान के लिए भी वांछित है. संकर धान के बीज की मात्रा कम होने के बावजूद भी नर्सरी के लिए क्षेत्रफल घटाना सही नहीं है. इस के कारण नर्सरी में पौध विरले होते हुए भी अच्छी वृद्धि होती है. नर्सरी की बोआई से पहले 43 किलोग्राम, डीएपी, 70 किलोग्राम यूरिया व 33 किलोग्राम एमओपी प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए. 33 किलोग्राम एमओपी को एक दिन पहले अच्छी तरह से मिट्टी में मिला देना चाहिए.
पौध में अगर जस्ता अथवा लोहा की कमी दिखाई दे, तो 5 ग्राम जिंक सल्फेट प्रति लिटर पानी या 2 ग्राम फेरस सल्फेट प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव कर के मिट्टी में उचित नमी बनाए रखनी चाहिए. चावल सघनीकरण प्रणाली द्वारा पौध तैयार करना चावल सघनीकरण प्रणाली में 2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बीज की जरूरत पड़ती है.
इस विधि में नर्सरी तैयार करने के लिए 2 भाग मिट्टी व एक भाग गोबर की खाद मिला कर मिश्रण तैयार किया जाता है. एक मीटर चौड़ाई की पौलीथिन शीट या जूट वांछित लंबाई में खेत में बिछा कर उस के ऊपर बालू या रेत की परत लगाते हैं. इस के बाद 5-6 सैंटीमीटर ऊंची मिट्टी और गोबर की खाद के मिश्रण को फैला देते हैं. इस मिश्रण पर पूर्व धान के अंकुरित बीजों को इस तरह से बिखेरते हैं कि बीजों की आपस में दूरी लगभग 1 सैंटीमीटर पर बनी रहे. इस के बाद मिट्टी की हलकी परत और पुआल या अन्य उपलब्ध आवरण से ढकने के बाद हलकी पानी का छींटा दिया जाता है,
जिस से नमी बनी रहे. 4 दिन के बाद पुआल या आवरण को हटा दिया जाता है और शाम को पानी का छिड़काव किया जाता है. इस विधि में 40 वर्गमीटर की नर्सरी से एक एकड़ की रोपाई की जा सकती है. इस में पौध 10-12 दिन बाद बलिष्ठ होती है व एक पौध प्रति हिल मिट्टी सहित 25×25 सैंटीमीटर की दूरी पर मुख्य खेत में रोपी जाती है. मैट टाइप पौध तैयार करने की विधि मैट टाइप पौध तैयार करने में 20 किलोग्राम प्रति एकड़ धान के बीज की जरूरत होती है. धान के बीज को 24 घंटे पानी में भिगोने के बाद छाया में जूट के बोरे से ढक कर रख देना चाहिए, जिस से अच्छी तरह अंकुरण हो जाए.
इस विधि में खेत की मिट्टी की 5-6 सैंटीमीटर ऊपरी सतह को ले कर अच्छी तरह से बारीक कर के छान लेना चाहिए. जिस खेत में नर्सरी डालनी है, उस में अच्छे से लेव लगा कर पाटा कर देना चाहिए. इस के बाद खेत से पानी को निकाल दें और 1-2 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए. इस से सतह पर पतली परत बन जाएगी. अब इस खेत में एक मीटर चौड़ाई के मुताबिक लंबाई की लकड़ी की पट्टियां लगा कर मिट्टी की 2-3 सैंटीमीटर ऊंची मेंड़ बना कर छनी हुई मिट्टी को एक सैंटीमीटर ऊंचाई तक बिछा कर समतल कर देते हैं. इस के बाद इस के ऊपर अंकुरित बीज 800 से 1000 ग्राम प्रति मीटर की दर से छिड़क देना चाहिए.
इस के ऊपर छनी हुई मिट्टी को इस तरह से डालें कि बीज पूरी तरह से ढक जाए और पुआल से ढक देना चाहिए. 4-5 दिन तक पानी का छिड़काव करना चाहिए और किसी तरह के उर्वरक का इस्तेमाल नहीं करते हैं. इस में पौध रोपाई करने के लिए 15 दिन में तैयार हो जाती है. बासमती धान की पौध तैयार करने की विधि बासमती धान के बीज की मात्रा 10-12 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से पौध तैयार करने के लिए काफी है. 2 ग्राम कार्बंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद बोना चाहिए.
280 वर्गमीटर क्षेत्रफल में उगाई पौध से एक एकड़ की रोपाई की जा सकती है. बीज की बोआई का उचित समय जल्दी पकने वाली प्रजाति के लिए जून का दूसरा पखवारा व देर से पकने वाली के लिए मध्य जून होता है. पौधशाला में अच्छी सड़ी हुई खाद (गोबर या कंपोस्ट खाद) मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए व खेत में पानी भर कर अच्छी तरह से पाटा लगा देना चाहिए. जहां पौध तैयार करनी है, वहां पर खेत को छोटेछोटे व थोड़ी ऊंची उठी हुई क्यारियों में बांट लेना चाहिए.
बीज की बोआई से पहले 100 ग्राम यूरिया और 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 10 वर्गमीटर की दर से अच्छी तरह से खेत में मिला देना चाहिए. खेत में ज्यादा समय तक पानी रुकने नहीं देना चाहिए. जरूरत के मुताबिक निराई, सिंचाई, कीट व रोग और खरपतवार की रोकथाम का उचित इंतजाम करना चाहिए. स्थानीय हालत जैसे क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी, सिंचाई के साधन, जलभराव व बोआई और रोपाई की अनुकूलता के अनुसार ही धान की संस्तुत प्रजातियों का चयन करना चाहिए. शुद्ध, प्रमाणित व शोधित बीज बोने से पैदावार अच्छी होगी और गुणवत्ता वाला धान भी मिलेगा.
समयसमय पर कीट, रोग व खरपतवार का नियंत्रण करने से धान की स्वस्थ पौध तैयार होगी और किसान को उचित लाभ भी मिलेगा. ‘स्वस्थ पौध, स्वस्थ फसल, स्वस्थ पैदावार, स्वस्थ उत्पाद, यही हैं चार सोपान.’ ठ्ठ चौड़ी व 8 मीटर लंबी क्यारियां बना लेते हैं और प्रति क्यारी (10 वर्गमीटर) में 225 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 50 ग्राम जिंक सल्फेट मिलाते हैं. ऐसे करें अंकुरित बीज : नर्सरी डालने से पहले स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 फीसदी+ट्रेट्रासाईक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10 फीसदी की 4 ग्राम मात्रा 100 लिटर पानी में मिला कर बीज को घोल में रातभर भिगो दें. दूसरे दिन बीज को छान कर उपचारित करें.
बीज को गीले बोरे में लपेट कर ठंडे कमरे में रखें. समयसमय पर इस बोरे पर पानी का छींटा देते रहें. तकरीबन 36-48 घंटे बाद बोरे को खोलें. बीज अंकुरित हो कर नर्सरी डालने के लिए तैयार हो जाते हैं. पहले से बनी क्यारियों में शाम को पानी भर कर अंकुरित बीज की बोआई करें. अगर गरम मौसम हो, तो दूसरे दिन सुबह पानी निकाल दें और जरूरत के मुताबिक सिंचाई करते रहें. 21-25 दिन में रोपने लायक नर्सरी तैयार हो जाती है.
अगर आप चटनी बना रहे हैं तो कौन सी चटनी में क्या डालना है, जिससे चटनी का स्वाद दोगुना हो जाये. आइये जानें..
1. अगर आप धनिये की चटनी बना रही हैं तो, उसमें दही या नीबू का रस और मूंगफली के दाने या काजू का पेस्ट जरूर डालें इससे चटनी ज्यादा अच्छी बनेगी.
2. अगर आप पुदीने की चटनी बना रही हैं तो, उसमें आमचूर पाउडर या कच्ची कैरी के टुकड़े और गुड़ जरूर डालें. इससे पुदीने की चटनी का स्वाद लाजवाब आयेगा.
3. अगर आप टमाटर की चटनी बना रही हैं तो, उसमे लहसुन की कलियां जरूर डालें इससे स्वाद बेहतरीन आयेगा.
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4. अगर आप प्याज की चटनी बना रही हैं तो, थोड़ा हरा प्याज की पत्तियां भी डालें तो स्वाद अच्छा आयेगा.
5. फ्रेश नारियल की चटनी बना रही हैं तो, उसमें भुनी चने की दाल और मूंगफली और करी पत्ता डालें और लहसुन भी डालें स्वाद अलग ही आयेगा.
6. अगर आप चटनी सूखी बना रही हैं तो, सूखा नारियल कददुकसा किया हुआ और मूंगफली के दाने, जीरा पाउडर लहसुन और नमक लालमिर्ची, खड़ा धनिया अवश्य डालें. इससे बहुत ही बढ़िया स्वाद आता है.
7. दही की चटनी बना रही हैं तो, पिसा हुआ मूंगफली का चूरा डालें कालीमिर्च नमक चाट मसाला डालकर मूंगफली की चटनी बना सकती हैं.
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सूप बनाने जा रही हैं तो कुछ टिप्स अपनाकर उसे आप गाढा बना सकती हैं:
सूप का स्वाद बढ़ाने के लिए उसमें काली मिर्च, काला नमक, हींग और ऊपर से फ्रेश क्रीम और टोस्ट के टुकडे डाल सकते हैं:
1. कार्नफ्लोर पानी मिलाकर डाल सकते हैं.
2. चावल का माड़ निकालकर डाल सकते हैं. इससे भी गाढापन आता है.
3. आलू को उबालकर बिल्कुल बारीक पीसकर डाल सकते हैं.
4. मैदा को इतना भूनें की वह रंग न बदले. भूनते समय जरा सा सूप में डाल सकते हैं.
5. आटा भूनकर और पानी मिलाकर डाल सकते हैं.
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6. सूप बनने के बाद क्रीम मिला सकते हैं इससे भी गाढापन आयेगा.
7. अरारोट पानी में घोल कर मिला सकते हैं इससे भी सूप में गाढापन आयेगा.
8. पत्तागोभी का बिल्कुल बारीक पेस्ट बनाकर डाल सकते हैं.
9. खसखस का पेस्ट भी सूप में मिला सकते हैं इससे गाढापन आता है.
सवाल
मेरे पति 42 साल के हैं. उन का ब्लड प्रैशर पिछले 1 साल से थोड़ा बढ़ा हुआ है. पर वे डाक्टर की बताई हुई दवा लेने के बजाय योग, नैचुरोपैथी और दूसरी चीजों को आजमाने में लगे हैं. क्या उन का दवा न लेना ठीक है? यह भी बताएं कि क्या घर में साधारण नमक इस्तेमाल करने के बजाय सेंधा नमक प्रयोग करना बेहतर होगा?
जवाब
आप ने यह स्पष्ट नहीं किया कि आप के पति का ब्लड प्रैशर कितना बढ़ा हुआ है. यदि डाक्टर ने उन्हें दवा लेने को कहा है तो इस के माने हैं कि उन्हें दवा की जरूरत होगी ही. ऐसे में दवा न ले कर वे अपने स्वास्थ्य और अपने परिवार की खुशियों से अनावश्यक ही खेल रहे हैं. यह ठीक नहीं. उन्हें दवा लेने के लिए राजी करें ताकि बढ़े हुए ब्लड प्रैशर के कारण कोई स्थाई नुकसान न हो.
साथ ही, उन्हें प्रेरित करें कि वे ब्लड प्रैशर घटाने में प्रभावी जीवनशैली परिवर्तन भी अमल में लाएं. वजन बढ़ा हुआ है तो उसे घटाएं. नित्य सैर के लिए जाएं. कामकाज का प्रैशर घटाने का प्रयत्न करें. आहार में फास्ट फूड और प्रोसैस्ड फूड से परहेज कर प्राकृतिक भोजन पर अधिक से अधिक जोर दें.
जहां तक सेंधा नमक की बात है, यह एक भ्रांति है कि वह आम नमक से बेहतर है. असल में सेंधा नमक और आम नमक दोनों में ही सोडियम क्लोराइड होता है. फर्क सिर्फ यह है कि सेंधा नमक समुद्र के खारे पानी से नहीं बनाया जाता, बल्कि उस की खानें और शिलाएं होती हैं, जिन से उसे खोद कर निकाला जाता है. ये खानें और शिलाएं कुछ खास भोगौलिक क्षेत्रों में कुदरतन पाई जाती हैं.
‘‘मैं सब समझती हूं. मेरे पास जो जमीन है उस में से आधी जमीन मैं सुधा के नाम कर दूंगी. जब तक मैं जिंदा हूं, अपने उस नालायक आवारा बेटे को इस घर में कदम नहीं रखने दूंगी. सुधा अगर आप लोगों के साथ जाना चाहती है तो मैं मना भी नहीं करूंगी.’’ इस के बाद उस ने सुधा की ओर मुंह कर के कहा, ‘‘बताओ सुधा, तुम क्या चाहती हो.’’
‘‘चाचाजी, आप ही बताइए, मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली अपनी इन सास को छोड़ कर मैं आप लोगों के साथ कैसे चल सकती हूं.’’ सुधा ने कहा.
सुधा के इस जवाब से प्रशांत और आशीष असमंजस में पड़ गए. प्रशांत ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘मां से भी ज्यादा प्यार करने वाली सास को छोड़ कर अपने साथ चलने के लिए कैसे कह सकता हूं.’’
‘‘तो फिर आप मेरी मम्मी को समझा दीजिएगा.’’ आंसू पोंछते हुए सुधा ने कहा.
‘‘ऐसी बात है तो अब हम चलेंगे. जब कभी हमारी जरूरत पड़े, आप हमें याद कर लीजिएगा. हम हाजिर हो जाएंगे.’’ कह कर प्रशांत उठने लगे तो सुधा की सास ने कहा, ‘‘हम आप को भूले ही कब थे, जो याद करेंगे. कितने दिनों बाद तो आप मिले हैं. अब ऐसे ही कैसे चले जाएंगे. मैं तो कब से आप की राह देख रही थी कि आप मिले तो सामने बैठा कर खिलाऊं. लेकिन मौका ही नहीं मिला. आज मौका मिला है. तो उसे कैसे हाथ से जाने दूंगी.’’
‘‘आप कह क्या रही हैं. मेरी समझ में नहीं आ रहा है?’’ हैरानी से प्रशांत ने कहा.
‘‘भई, आप साहब बन गए, आंखों पर चश्मा लग गया. लेकिन चश्मे के पार चेहरा नहीं पढ़ पाए. जरा गौर से मेरी ओर देखो, कुछ पहचान में आ रहा है?’’
प्रशांत के असमंजस को परख कर सुधा की सास ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप तो ज्ञानू बनना चाहते थे. मुझ से अपने बडे़ होने तक राह देखने को भी कहा था. लेकिन ऐसा भुलाया कि कभी याद ही नहीं आई.’’
अचानक प्रशांत की आंखों के सामने 35-36 साल पहले की रूपमती भाभी का चेहरा नाचने लगा. उस के मुंह से एकदम से निकला, ‘‘भाभी आप…?’’
‘‘आखिर पहचान ही लिया अपनी भाभी को.’’
गहरे विस्मय से प्रशांत अपनी रूपमती भाभी को ताकता रहा. सुधा का रक्षाकवच बनने की उन की हिम्मत अब प्रशांत की समझ में आ गई थी. उन का मन उस नारी का चरणरज लेने को हुआ. उन की आंखें भर आईं.
रूपमती यानी सुधा की सास ने कहा, ‘‘देवरजी, तुम कितने दिनों बाद मिले. तुम्हारा नाम तो सुनती रही, पर वह तुम्हीं हो, यह विश्वास नहीं कर पाई आज आंखों से देखा, तो विश्वास हुआ. प्यासी, आतुर नजरों से तुम्हारी राह देखती रही. तुम्हारे छोड़ कर जाने के बरसों बाद यह घर मिला. जीवन में शायद पति का सुख नहीं लिखा था. इसलिए 2 बेटे पैदा होने के बाद आठवें साल वह हमें छोड़ कर चले गए.
‘‘बेटों को पालपोस कर बड़ा किया. शादीब्याह किया. इस घर को घर बनाया, लेकिन छोटा बेटा कुपुत्र निकला. शायद उसे पालते समय संस्कार देने में कमी रह गई. भगवान से यही विनती है कि मेरे ऊपर जो बीती, वह किसी और पर न बीते. इसीलिए सुधा को ले कर परेशान हूं.’’
प्रशांत अपलक उम्र के ढलान पर पहुंच चुकी रूपमती को ताकता रहा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे. रूपमती भाभी के अतीत की पूरी कहानी उस की आंखों के सामने नाचने लगी.
बचपन में प्रशांत की बड़ी लालसा थी कि उस की भी एक भाभी होती तो कितना अच्छा होता. लेकिन उस का ऐसा दुर्भाग्य था कि उस का अपना कोई सगा बड़ा भाई नहीं था. गांव और परिवार में तमाम भाभियां थीं, लेकिन वे सिर्फ कहने भर को थीं.
संयोग से दिल्ली में रहने वाले प्रशांत के ताऊ यानी बड़े पिताजी के बेटे ईश्वर प्रसाद की पत्नी को विदा कराने का संदेश आया. ताऊजी ही नहीं, ताईजी की भी मौत हो चुकी थी. इसलिए अब वह जिम्मेदारी प्रशांत के पिताजी की थी. मांबाप की मौत के बाद ईश्वर ने घर वालों से रिश्ता लगभग तोड़ सा लिया था. फिर भी प्रशांत के पिता को अपना फर्ज तो अदा करना ही था.
ईश्वर प्रसाद प्रशांत के ताऊ का एकलौता बेटा था. उस की शादी ताऊजी ने गांव में तब कर दी थी. जब वह दसवीं में पढ़ता था. तब गांव में बच्चों की शादी लगभग इसी उम्र में हो जाती थी. उस की शादी उस के पिता ने अपने ननिहाली गांव में तभी तय कर दी थी, जब वह गर्भ में था.
देवनाथ के ताऊजी को अपनी नानी से बड़ा लगाव था, इसीलिए मौका मिलते ही वह नानी के यहां भाग जाते थे. ऐसे में ही उन की दोस्ती वहां ईश्वर के ससुर से हो गई थी.
अपनी इसी दोस्ती को बनाए रखने के लिए उन्होंने ईश्वर के ससुर से कहा था कि अगर उन्हें बेटा होता है तो वह उस की शादी उन के यहां पैदा होने वाली बेटी से कर लेंगे.
उन्होंने जब यह बात कही थी, उस समय दोनों लोगों की पत्नियां गर्भवती थीं. संयोग से ताऊजी के यहां ईश्वर पैदा हुआ तो दोस्त के यहां बेटी, जिस का नाम उन्होंने रूपमती रखा था.
प्रशांत के ताऊ ने वचन दे रखा था, इसलिए ईश्वर के लाख मना करने पर उन्होंने उस का विवाह रूपमती से उस समय कर दिया, जब वह 10वीं में पढ़ रहा था. उस समय ईश्वर की उम्र कम थी और उस की पत्नी भी छोटी थी. इसलिए विदाई नहीं हुई थी. ईश्वर की शादी हुए सप्ताह भी नहीं बीता था कि उस के ससुर चल बसे थे. इस के बाद जब भी विदाई की बात चलती, ईश्वर पढ़ाई की बात कर के मना कर देता. वह पढ़ने में काफी तेज था. उस का संघ लोक सेवा आयोग द्वारा प्रशासनिक नौकरी में चयन हो गया और वह डिप्टी कलेक्टर बन गया. ईश्वर ट्रेनिंग कर रहा था तभी उस के पिता का देहांत हो गया था.
संयोग देखो, उन्हें मरे महीना भी नहीं बीता था कि ईश्वर की मां भी चल बसीं. मांबाप के गुजर जाने के बाद एक बहन बची थी, उस की शादी हो चुकी थी. इसलिए अब उस की सारी जिम्मेदारी प्रशांत के पिता पर आ गई थी.
इस तरह एकदूसरे का खयाल रखतेरखते दोनों ठीक हो गए. अब एक अलग तरह का बंधन दोनों एकदूसरे के लिए महसूस करने लगे थे.
एक दिन शाम में अखिलेश ने सरला से कहा,” मेरी सारी संपत्ति दोनों लड़कों के नाम की हुई है. यह मकान भी बड़े बेटे के नाम है. मैं चाहता हूं कि हम दोनों कहीं दूर जा कर एक नई जिंदगी की शुरुआत करें. क्या तुम इस के लिए तैयार हो?”
“हां ठीक है. इस में समस्या क्या है? हम सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर चलते हैं. बस रहने और खाने का प्रबंध हो जाए फिर हमें किस चीज की जरूरत? दोनों आराम से एक छोटा सा घर ले कर रह लेंगे. वैसे भी मेरे पहले पति ने मेरे लिए बैंक में थोड़ीबहुत रकम रख छोड़ी है. जरूरत पड़ी तो उस का भी उपयोग कर लेंगे.”
सरला की बात सुन कर अखिलेश की आंखें भीग गईं. एक तरफ बच्चे जिस महिला को दौलत का लालची बता रहे थे वही इस गृहस्थी में अपनी सारी जमापूंजी लगाने को तैयार थी. अखिलेश को यही सुनने की इच्छा थी.
उस ने सरला को गले से लगा लिया और बोला,” ऐसा कुछ नहीं है सरला. सारी संपत्ति अभी भी मेरे ही नाम है. मैं तो तुम्हारा रिएक्शन देख कर तुम्हें
परखना चाहता था. तुम से अच्छी पत्नी मुझे मिल ही नहीं सकती. वैसे कहीं दूर जाने का प्लान अच्छा है. यह घर बेच कर किसी खूबसूरत जगह घर लिया जा सकता है. ” “सच, मैं भी सब से दूर कहीं चली जाना चाहती हूं,”सरला ने कहा.
अगले ही दिन अखिलेश ने घर बेचने के कागज तैयार करा लिए. काफी समय से उस का एक दोस्त घर खरीदने की कोशिश में था. अखिलेश ने बात कर अपना घर उसे बेच दिया और मिलने वाली रकम से देहरादून के पास एक छोटा सा खूबसूरत मकान खरीद लिया.
उस ने अपना नया पता किसी को भी नहीं दिया था. फोन भी स्विच औफ कर दिया. अपना बैंकबैलेंस भी उस ने दूसरे बैंक में ट्रांसफर करा लिया और पूर्व पत्नी के गहने भी लौकर में रखवा दिए. सरला ने भी अपने घर में किसी को नया पता नहीं बताया.
सारे हमदर्द रिश्तेदारों से दूर दोनों ने अपना एक प्यारा सा आशियाना बना लिया था. यहां वे अपनी जिंदगी दूसरों की हर तरह की दखलंदाजी से दूर शांतिपूर्वक एकदूसरे के साथ बिताना चाहते थे.