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Romantic Story in Hindi – अधिकार – भाग 2 : कुशल का मन क्यों कड़वाहट से भर गया था?

‘‘फिर जब बच्ची का जन्म हुआ तो मेरे ही मांबाप उसे अनाथालय में छोड़ गए. वे मुझे यही बताते रहे कि मृतबच्चा पैदा हुआ था.’’

‘‘उस के बाद क्या हुआ?’’ मैं ने धीरे से पूछा.

‘‘उस के बाद क्या होता. मेरी बसीबसाई गृहस्थी उजड़ गई. खाली हाथ रह गई. पति और बच्ची की कोई भी निशानी नहीं रही मेरे पास.’’

‘‘लेकिन आप के मांबाप ने ऐसा क्यों किया?’’ मैं पूछे बिना रह न सका.

‘‘डाक्टर साहब, एक बच्ची की मां की दूसरी शादी कैसे होती. इसलिए उन्होंने शायद यही उचित समझा,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी. ‘‘तो क्या आप ने शादी की?’’

‘‘नहीं, बहुत चाहा कि अतीत को काट कर फेंक दूं. परंतु ऐसा नहीं हुआ. अतीत कोई वस्त्र तो नहीं है न, जिसे आप जब चाहें बदल लें,’’ अपने आंसू पोंछ वह बोली, ‘‘अभी कुछ दिनों पहले मेरी मां भी चल बसी. पर मरतमरते मुझ पर एक एहसान कर गई. मुझे बताया कि मेरी बेटी जिंदा है. तब मैं ने सोचा कि मांबेटी साथसाथ रहेंगी तो जीना आसान हो जाएगा. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह भी नहीं बची.’’

मेरा मन भर आया था. मैं हमेशा अपनी मां के स्वार्थ को नियति मान कर उस से समझौता करता रहा. मैं सोचने लगा, क्या मेरी मां अकेले रह मुझे पाल नहीं सकती थी? जो औरत मेरे सामने बैठी थी उसे मैं नहीं जानता था, मगर यह सत्य था कि वह जो भी थी, कम से कम रिश्तों के प्रति ईमानदार तो थी. मेरी मां की तरह स्वार्थी और कठोर नहीं थी.

मैं ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी बहुत मासूम थी, बहुत ही प्यारी.’’

‘‘वह कैसी बातें करती थी?’’

‘‘अभी बहुत छोटी थी न, 3 साल का बच्चा भला कैसी बातें कर सकता है.’’

‘‘मरने से पहले क्या वह बहुत तड़पी थी? क्या उसे बहुत तकलीफ हुई थी?’’

‘‘नहीं, तड़पी तो नहीं थी लेकिन बहुत कमजोर हो गई थी. हमेशा मेरे गले से ही लिपटी रही थी,’’ कहते हुए मैं ने हाथ उठा कर उस का कंधा थपथपा दिया, ‘‘आप जब चाहें, मेरे पास चली आएं. मुन्नी के बारे में मुझे जो भी याद होगा, बताता रहूंगा.’’

बाद में पता चला कि वह बैंक में कार्यरत है. हर शाम वह सागरतट पर मेरे पास आ जाती. अपनी बच्ची का पूरा ब्योरा मुझ से लेती और रोती हुई लौट जाती. वह नईनई कोचीन आई थी, किसी से भी तो उस की जानपहचान न थी.

उस की बातें दिवंगत पति और अनदेखी बच्ची के दायरे से बाहर कभी जाती ही नहीं थीं. मैं चुपचाप उस के अतीत में जीता रहता. कभीकभी विषय बदलने की कोशिश भी करता कि इतने तनाव से कहीं उस की मानसिक हालत ही न बिगड़ जाए.

एक शाम जब मैं घर आया तो ताऊजी को बाहर इंतजार करते पाया. मैं उन की आवभगत में लग गया. मगर मेरे सारे स्नेह को एक तरफ झटक वे नाराजगी से बोले, ‘‘आशा को कब से जानते हो? जानते हो, वह विधवा है? क्या रिश्ता बांधना चाहते हो उस से?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं. वह दुखी है. अकसर मेरे पास चली आती है.’’

‘‘अच्छा. क्या तुम उस का इलाज करते हो? देखो कुशल, मैं नहीं चाहता, तुम उस से मेलजोल बढ़ाओ. उस की दिमागी हालत खराब रही है. उस ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला है.’’

‘‘उसे पागल बनाने में उस के मांबाप का भी दोष है. क्यों उस की बच्ची को यहां फेंक गए?’’ मैं ने आशा की सुरक्षा में होंठ खोले, मगर ताऊजी ने फिर चुप करा दिया, ‘‘मांबाप सदा संतान का भला सोचते हैं. सत्येन को जो ठीक लगा, उस ने किया. अब कृपया तुम उस का साथ छोड़ दो.’’

यह सुन कर मैं स्तब्ध रह गया कि आशा, ताऊजी के मित्र सत्येन की पुत्री है. वे एक दिन रह कर चले गए, मगर मेरा पूरा अस्तित्व एक प्रश्नचिह्न के घेरे में कैद कर गए, मैं सोचने लगा, क्या आशा से मिल कर मैं कोई अपराध कर रहा हूं? ताऊजी को इस मेलजोल से क्या आपत्ति है?

रात की ड्यूटी थी. सो, 2 दिनों से मैं तट पर नहीं जा पाया था. रात के 11 बजे थे, तभी अचानक आशा को अपने सामने पाया. उस के कपड़े भीगे थे और उन पर रेत चमक रही थी. जाहिर था, अब तक वह अकेली सागरतट पर बैठी रही होगी.

फटीफटी आंखों से उस ने मुझे देखा तो मैं ने साधिकार उस का हाथ पकड़ लिया. फिर अपने कमरे में ला कर उसे कुरसी पर बिठाया.

उस के पैरों के पास साड़ी को रक्तरंजित पाया. झट से उस का पैर साफ कर के मैं ने पट्टी बांधी.

‘‘मैं आप को बहुत तकलीफ देती हूं न. अब कभी आप के पास नहीं आऊंगी,’’ उस की बात सुन मैं चौंक उठा.

वह आगे बोली, ‘‘जो मर गए वे तो छूट गए, पर मैं ही दलदल में फंसी रह गई. मेरा ही दोष था जो आप के पास आती रही. सच, आप को ले कर मैं ने कभी वैसा नहीं सोचा, जैसा आप के ताऊजी ने सोचा. मैं तो अपनी मरी हुई बच्ची के  लिए आती रही, क्योंकि आखिरी समय आप ही उस के पास थे. मैं मुन्नी की कसम खाती हूं, मेरे मन में आप के लिए…’’

‘‘बस, आशा,’’ मैं ने उसे चुप करा दिया. फिर धीरे से उस का कंधा थपथपाया, ‘‘ताऊजी की ओर से मैं तुम से क्षमा मांगता हूं. तुम जब भी चाहे, मेरे पास चली आना.’’

थोड़ी देर बाद जब वह जाने लगी तो मैं ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया. मैं ने उसे इतनी रात गए जाने नहीं दिया था, सुबह होने तक रोक लिया था. टिटनैस का टीका लगा कर वहीं अपने बिस्तर पर सुला दिया था और खुद पूरी रात बरामदे में बिताई थी. सुबह राउंड से वापस आया तो पाया, मेरा शौल वहीं छोड़ वह जा चुकी थी.

उस के बाद वह मुझ से मिलने नहीं आई. उस के घर का मुझे पता नहीं था और बैंक फोन करता तो वह बात करने से ही इनकार कर देती.

एक सुबह 10 बजे उस के बैंक चला गया. मुझे देखते ही वह भीतर चली गई. उस के पीछे जा कर तमाशा नहीं बनना था, सो हार कर वापस चला आया. परंतु असंतुलित मन ने उस दिन मेरा साथ न दिया, मोटरसाइकिल को बीच सड़क में ला पटका.

ऐक्सिडैंट की बात सुन ताऊजी भागे चले आए. थोड़ी देर बाद मैं ने कहा, ‘‘ताऊजी, आशा को सूचित कर दीजिए. मैं उस से मिलना चाहता हूं.’’

क्षणभर को ताऊजी चौंक गए थे, फिर बोले, ‘‘क्या, बहुत तकलीफ है?’’

जी चाह रहा था, ताऊजी से झगड़ा करूं, मगर लिहाज का मारा मैं चुप था. बारबार मन में आता कि ताऊजी से पूछूं कि उन्होंने आशा का अपमान

क्यों किया था? क्यों मुझे इस आग में ढकेल दिया?

ताऊजी मेरे जख्मी शरीर को सहलाते हुए बोले, ‘‘कुशल, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा.’’

अचानक मैं ने दृढ़ स्वर में कहा, ‘‘मैं आशा से मिलना चाहता हूं.’’

‘‘लेकिन उस से तो तुम्हारा कोई रिश्ता ही नहीं है. तुम्हीं ने तो कहा था.’’

Romantic Story in Hindi – कशमकश – भाग 4 : मानव वसुधा को इग्नोर क्यों कर रहा था

मानव ने वसुधा को फोन करवा के बुलाया. वसुधा मानो आने के लिए तैयार ही थी. ‘‘आओ वसुधा, मैं ने तुम्हारे और अपने रिश्ते के बारे में, भविष्य के बारे में बहुतकुछ सोचा. ईमानदारी से कहूं तो मैं आज तक एक पल के लिए भी तुम्हें भुला नहीं पाया हूं और आज जब तुम मुझे इस हाल में अपनाने को तैयार हो, तो मैं इस मौके को खोना नहीं चाहूंगा, करीब पा कर फिर मैं तुम्हें दूर नहीं कर पाऊंगा.’’

वसुधा को विश्वास ही नहीं हुआ, उसे मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी. ‘‘मैं जानती थी मेरे प्यार में ताकत है, सचाई है. मैं कल ही वकील से…’’

‘‘नहीं वसुधा, अदालत के चक्कर, वकीलों की झंझट, उस से होने वाली रुसवाई और बदनामी की आग में मैं तुम्हें झुलसने नहीं दूंगा. मैं ने कुछ और ही सोचा है. वह तभी हो पाएगा जब तुम्हें साथ देना गवारा हो, तुम्हें सही लगे तो ठीक है वरना मेरी तरफ से तुम आज भी आजाद हो.’’

‘‘क्या सोचा है तुम ने, मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूं.’’

‘‘खून, कत्ल…’’

‘‘खून…आनंद का?’’ वसुधा सकते में आ गई.

‘‘हां वसुधा, और कोई रास्ता भी तो नहीं है. तुम सोच कर जवाब देना, कोई जबरदस्ती नहीं है. मेरे आदमी यह काम बखूबी कर देंगे, किसी पर शक नहीं जाएगा, न तुम पर न मुझ पर. कल भारतीय राजदूतावास में एक कार्यक्रम है जिस में भारत से कई व्यवसायी शिरकत कर रहे हैं, और दल को लीड करने वाला कोई और नहीं, तुम्हारा पति है, तुम्हारे बच्चे करण का पिता. वही आनंद, जिस के साथ तुम ने शादी का बंधन बांधा था और जिसे तुम अब तोड़ने जा रही हो. मैं चाहता हूं कल ही तुम्हारा पति तुम्हारा एक्स पति हो जाए. बस, तुम करीब एक लाख डौलर का इंतजाम कर दो.’’

वसुधा को शांत देख मानव ने आखिरी दाव फेंका, ‘‘आज अगर मैं अंधा न होता तो बढ़ कर तुम्हारे करीब आ जाता, अक्षम हूं, असहाय हूं वरना आनंद को खत्म करने के लिए मेरे दो बाजू ही काफी थे. आनंद को राह से हटा कर हम एक नई जिंदगी शुरू कर देते जहां सिर्फ हम होते, सिर्फ मैं और तुम.’’

‘हम नई जिंदगी जरूर जिएंगे,’ वसुधा ने मन ही मन यह सोच कर निर्णय लेते हुए कहा, ‘‘मैं कुछ न कुछ जरूर करूंगी.’’

अगले रोज आनंद को आते देख, खुशी और परेशानी के मिलेजुले भाव वसुधा के चेहरे पर आजा रहे थे, ‘‘यों अचानक. मुझे इत्तला तो दी होती.’’ वसुधा ने पूछा तो आनंद ने बेफिक्री से जवाब दिया, ‘‘मिलने का मजा तो तब ही हो जब मुलाकात अचानक हो. दरअसल, यहां एक औफिस का काम निकल आया, मैं ने सोचा, क्यों न एक टिकट में 2 काम किए जाएं. कहां है हमारा चश्मेबद्दूर. करण कुमार?’’ आनंद ने इधरउधर नजरें दौड़ाते हुए पूछा.

‘‘होस्टल में, उसे छुट्टी दिलाना यहां बहुत मुश्किल है.’’

‘‘कोई बात नहीं. हम सिंगापुर घूमेंगे. यह देखो क्रूज का टिकट. यहां से मलयेशिया, इंडोनेशिया…तब तक वीकैंड आ चुका होगा. तब हम अपने जिगर के टुकड़े के पास होंगे.

‘‘वैसे, करण कैसा है? उम्मीद है वो नर्वस नहीं होगा. हमेशा की तरह खुश. हर हाल में मस्त,’’ आनंद की आंखें नम थीं.

‘‘तुम थक गए होगे, थोड़ा आराम कर लो,’’ वसुधा ने सुनीअनसुनी करते हुए कहा, कमरे में सामान रखते हुए वसुधा मानो मुद्दे की बात करने को बेताब थी, ‘‘मेरे अकाउंट में एक लाख डौलर ट्रांसफर कर दो. कुछ फीस वगैरह देनी है.’’

‘‘जरा मैसेज पढ़ लिया करो मैडम. आप के अकाउंट में कल ही 2 लाख डौलर डाले हैं. वैसे, फीस, होस्टल चार्जेज सब मैं औनलाइन दे चुका हूं. अब एक लाख डौलर से किसी की जान लेने का इरादा है क्या?’’ आनंद एक पल के लिए रुका, फिर हौले से बोला, ‘‘जानती हो, दौलत के बारे में मेरी क्या सोच है? लोगों की दौलत आतीजाती रहती है, मगर मैं ने जो दौलत कमाई है वो मेरे पास से कभी नहीं जाएगी. उसे मुझ से कोई छीन नहीं सकता.’’

‘‘ऐसा कौन सा इन्वैस्टमैंट कर दिया तुम ने जिस पर तुम्हें इतना ऐतबार है?’’

‘‘तुम, वसुधा तुम, मेरी जिंदगी की सब से बड़ी दौलत, सब से बड़ा इन्वैस्टमैंट तुम हो, जो आज भी मेरी है, कल भी रहेगी और मरते दम तक मेरी ही रहेगी.’’ वसुधा को काटो तो खून नहीं.

‘‘बस, अब एक ही चाहत है हमारा करण जल्द ही अपनी आंखों से यह दुनिया देखे. अंधेरों से निकल कर उजाले में आए?’’ आनंद ने कहना जारी रखा.

वसुधा ने अपने आंचल के छोर से आनंद की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछा और मन ही मन कहा, ‘तुम मुझे कमजोर नहीं कर सकते.’

‘‘मानव, तुम जानते हो मैं मौके की तलाश में हूं. आज जब आनंद कौन्फ्रैंस में जाएगा तो मैं पैसे निकाल लूंगी. तुम मुझे बारबार फोन मत करो.’’ वसुधा मानव से फोन पर बात कर रही थी और जल्द से जल्द बात पूरी करना चाह रही थी.

Romantic Story in Hindi : एक बार तो पूछा होता

‘‘कहीं तुम्हें दमा का रोग तो नहीं हो गया?’’ मैं ने भी प्रत्युत्तर में प्रश्न दाग दिया.

मेरा मजाक उस के गले में फांस जैसा अटक जाएगा, मुझे नहीं पता था.

‘‘तुम्हें लग रहा है कि मैं तमाशा कर रही हूं, मैं अपने मन की बात समझाना चाह रही हूं और तुम समझ रहे हो…’’

सीमा का स्वर रुंध जाएगा मुझे पता नहीं था. सहसा मुझे रुकना पड़ा. हंसती खेलती सीमा इतनी परेशान भी हो सकती है मैं ने कभी सोचा भी नहीं था.

सीमा मेरे पापा के दोस्त की बेटी है और मेरे बचपन की साथी है. हम ने साथसाथ अपनी पढ़ाई पूरी की और जीवन के कई उतारचढ़ाव भी साथसाथ पार किए हैं. ऐसा क्या हो गया उस के साथ. हो सकता है उस के पापा ने कुछ कहा हो, लेकिन पापा के साथ पूरी उम्र दम नहीं घुटा तो अब क्यों दम घुटने लगा.

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2 दिन बाद मैं फिर सीमा से मिला तो क्षमायाचना कर कुछ जानने का प्रयास किया.

‘‘ऐसा क्या है, सीमा…मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं. अब क्या मुझे भी रुलाओगी तुम?’’

‘‘मेरी वजह से तुम क्यों रोओगे?’’

तनिक रुकना पड़ा मुझे. सवाल गंभीर और जायज भी था. भला मैं क्यों रोऊंगा? मेरा क्या रिश्ता है सीमा से? सीमा की मां का एक्सीडेंट, उन का देर तक अस्पताल में इलाज और फिर उन की मौत, सीमा का अकेलापन, सीमा के पापा का पुनर्विवाह और फिर उन का भी अलगाव. कोई नाता नहीं है मेरा सीमा से, फिर भी कुछ तो है जो मुझे सीमा से बांधता है.

‘‘तुम मेरे कौन हो, राघव?’’

‘‘पता नहीं, तुम्हारे सवाल से तो मुझे दुविधा होने लगी है और विचार करना पड़ेगा कि मैं कौन हूं तुम्हारा.’’

तनिक क्रोध आ गया मुझे. यह सोच कर कि कौन है जो हमारे रिश्ते पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है?

‘‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं घूम गया. अच्छी बात है, नहीं मिलूंगा मैं तुम से. पता नहीं कैसे लोगों में उठतीबैठती हो आजकल, लगता है किसी मानसिक रोगी की संगत में हो जो खुद तो बीमार होगा ही तुम्हारा भी दिमाग खराब कर रहा है,’’ और इतना कह कर मैं ने हाथ में पकड़ी किताब पटक दी.

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‘‘यह लाया था तुम्हारे लिए. पढ़ लो और अपनी सोच को जरा स्वस्थ बनाओ.’’

मैं तैश में उठ कर चला तो आया पर पूरी रात सो नहीं सका. भैयाभाभी और पिताजी पर भी मेरी बेचैनी खुल गई. बातोंबातों में उन के होंठों से निकल गया, ‘‘सीमा के रिश्ते की बात चल रही थी, क्या हुआ उस का? उस दिन भाई साहब बात कर रहे थे कि जन्मपत्री मिल गई है. लड़के को लड़की भी पसंद है. दोनों अच्छी कंपनी में काम करते हैं, क्या हुआ बात आगे बढ़ी कि नहीं…’’

‘‘मुझे तो पता नहीं कि सीमा के रिश्ते की बात चल रही है?’’

‘‘क्या सीमा ने भी नहीं बताया? भाई साहब तो बहुत उतावले हैं इस रिश्ते को ले कर कि लड़का उसी के साथ काम करता है. मनीष नाम है उस का, जाति भी एक है.’’

‘‘अरे, भाभी, आप को इतना सब पता है और मुझे इस का क ख ग भी पता नहीं,’’ इतना कह कर मैं भाभी का चेहरा देखने लगा और भौचक्का सा अपने कमरे में चला आया. पता नहीं चला कब भाभी भी मेरे पीछे कमरे में चली आईं.

‘‘राघव, क्या सचमुच तुम कुछ नहीं जानते?’’

‘‘हां, भाभी, बिलकुल सच कह रहा हूं कि मैं कुछ भी नहीं जानता.’’

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‘‘क्यों, सीमा ने नहीं बताया. तुम से तो उस की अच्छी दोस्ती है. जराजरा सी बात भी एकदूसरे के साथ तुम बांटते हो.’’

‘‘भाभी, यही तो मैं भी सोच रहा हूं मगर यह सच है. आजकल सीमा परेशान बहुत है. पिछले 3-4 दिनों में हम जब भी मिले हैं बस, हम में झगड़ा ही हुआ है. मैं पूछता हूं तो कुछ बताती भी नहीं है. हो सकता है वह लड़का मनीष ही उसे परेशान कर रहा हो…उस ने कहा भी था कुछ…’’

सहसा याद आया मुझे. दम घुटने जैसा कुछ कहा था. उसी बात पर तो झगड़ा हुआ था. सब समझ आने लगा मुझे. हो सकता है वह लड़का सीमा को पसंद न हो. वह सीमा की हर सांस पर पहरा लगा रहा हो. बचपन से जानता हूं न सीमा को, जरा सा भी तनाव हो तो उस की सांस ही रुकने लगती है.

‘‘तुम से कुछ पूछना चाहती हूं, राघव,’’ भाभी बड़ी बहन का रूप ले कर बोलीं, ‘‘सीमा तुम्हारी अच्छी दोस्त है या उस से ज्यादा भी है कुछ?’’

‘‘अच्छी मित्र है, यह कैसी बातें कर रही हैं आप? कल सीमा भी पूछ रही थी कि मैं उस का क्या लगता हूं… जैसे वह जानती नहीं कि मैं उस का क्या हूं.’’

‘‘तुम तो पढ़ेलिखे हो न,’’ भाभी बोलीं, ‘‘एमबीए हो, बहुत बड़ी कंपनी में काम करते हो. सब को समझा कर चलते हो, क्या मुझे समझा सकते हो कि तुम सीमा के क्या हो?’’

‘‘हम दोनों बचपन के साथी हैं. बहुत कुछ साथसाथ सहा भी है…’’

भाभी बात को बीच में काट कर बोलीं, ‘‘अच्छा बताओ, क्या 2 पल भी बिना सीमा को सोचे कभी रहे हो?’’

‘‘न, नहीं रहा.’’

‘‘तो क्या उस के बिना पूरा जीवन जी लोगे? उस की शादी कहीं और हो गई तो…’’

‘‘भाभी, मैं सीमा को किसी धर्मसंकट में नहीं डालना चाहता था इसीलिए ऐसा सपना ही नहीं देखा. उस का सुख ही मेंरे लिए सबकुछ है. वह जहां रहे सुखी रहे, बस.’’

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‘‘तुम ने उस से पूछा, वह मनीष को पसंद करती है? नहीं न, तुम्हें कुछ पता ही नहीं है. जिस के साथ उस के पिता ने जन्मकुंडली मिलाई है क्या उस के साथ उस के विचार भी मिलते हैं. नहीं जानते न तुम…तुम उस का सुखदुख जानते ही नहीं तो उसे सुखी रखने की कल्पना भी कैसे कर सकते हो. एक बार तो उस से खुल कर बात कर लो. बहुत देर न हो जाए, मुन्ना.’’

भाभी का हाथ मेरे सिर पर आया तो लगा एक ममतामई सुरक्षा कवच उभर आया मन के आसपास. क्या भाभी मेरा मन पहचानती हैं. लगा चेतना पर से कुछ हट सा रहा है.

‘‘ज्यादा से ज्यादा सीमा ना कर देगी,’’ भाभी बोलीं, ‘‘कोई बात नहीं, हम बुरा नहीं मानेंगे. कम से कम दिल की बात कहो तो सही. तुम डरते हो तो मैं अपनी तरफ से बात छेड़ं ू.’’

‘‘मुझे डर है राघव कहीं ऐसा न हो कि वह इतनी दूर चली जाए कि तुम उसे देख भी न पाओ. सवाल अनपढ़ या पढ़ेलिखे होने का नहीं है, कुछ सवाल इतने भी आसान नहीं होते जितना तुम सोचते हो. क्योंकि बड़ेबड़े पढ़ेलिखे भी अकसर कुछ प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाते. सीमा को तो अनपढ़ कह दिया, तुम्हीं कौन से पढ़ेलिखे हो, जरा समझाओ मुझे.’’

किंकर्तव्यविमूढ़ मैं भाभी को देखता रहा. मेरा मन भर आया. अपने भाव छिपाने चाहे लेकिन प्रयास असफल रहा. भाभी से क्या छिपाऊं. शायद भाभी मुझ से ज्यादा मुझे जानती हैं और सीमा को भी.

‘‘मुन्ना, तुम आज ही सीमा से बात करो. मैं शाम तक का समय तुम्हें देती हूं, वरना कल सुबह मैं सीमा से बात करने चली जाऊंगी. अरे, जाति नहीं मिलती न सही, दिल तो मिलता है. वह ब्राह्मण है हम ठाकुर हैं, इस से क्या फर्क पड़ता है? जब उसे साथ ही लेना है तो उस के  लायक बनने की जरूरत ही क्या है?

‘‘जिंदगी इतनी सस्ती नहीं होती बच्चे कि तुम इसे यों ही गंवा दो और इतनी छोटी भी नहीं कि सोचो बस, खत्म हुई ही समझो. पलपल भारी पड़ता है जब कुछ हाथ से निकल जाए. मुन्ना, तुम मेरी बात सुन रहे हो न.’’

मैं भाभी की गोद में समा कर रो पड़ा. पिछले 10 सालों में मां बन कर भाभी ने कई बार दुलारा है. जब भाभी इस घर में आई थीं तब मैं 16-17 साल का था. डरता भी था, पता नहीं कैसी लड़की घर में आएगी, घर को घर ही रहने देगी या श्मशान बना देगी. और अब सोचता हूं कि मेरी यह नन्ही सी मां न होती तो मैं क्या करता.

‘‘तुम बडे़ कब होगे, राघव?’’ चीखी थीं भाभी.

‘‘मुझे बड़े होने की जरूरत ही नहीं है, आप हैं न. अगर आप को लगता है बात करनी चाहिए तो आप बात कर लीजिए, मुझ में हिम्मत नहीं है. उन की ‘न’ उन की ‘हां’ आप ही पूछ कर बता दें. डरता हूं, कहीं दोस्ती का यह रिश्ता हाथ से ही न फिसल जाए.’’

‘‘इस रिश्ते को तो यों भी तुम्हारे हाथ से फिसलना ही है. जितनी पीड़ा तुम्हें सीमा की वजह से होती है वह तब तक कोई अर्थ रखती है जब तक उस की शादी नहीं हो जाती. उस के बाद यह पीड़ा तुम्हारे लिए अभिशाप बन जाएगी और सीमा के लिए भी. राघव, तुम एक बार तो सीमा से खुद बात कर लो. अपने मन की कहो तो सही.’’

‘‘भाभी, आप सोचिए तो, उस के पापा नहीं मानेंगे तो क्या सीमा उन के खिलाफ जाएगी? नहीं जाएगी. इसलिए कि अपने पापा का कहना वह मर कर भी निभाएगी. मेरे प्रति अगर उस के मन में कुछ है भी तो उसे हवा देने की क्या जरूरत?’’

‘‘क्या सीमा यह सबकुछ सह लेगी? इतना आसान होगा नहीं, जितना तुम मान बैठे हो.’’

भाभी गुस्से से मेरे हाथ झटक कर चली गईं और सामने चुपचाप कुरसी पर बैठे अपने भाई पर मेरी नजर पड़ी, जो न जाने कब से हमारी बातें सुन रहे थे.

‘‘क्या लड़के हो तुम? भाभी का पल्ला पकड़ कर रो तो सकते हो पर सीमा का हाथ पकड़ एक जरा सा सवाल नहीं पूछ सकते. आदमी बनो राघव, हिम्मत करो बच्चे, चलो, उठो, नहाधो कर नाश्ता करो और निकलो घर से. आज इतवार है और सीमा भी घर पर ही होगी. हाथ पकड़ कर सीमा को घर ले आओगे तो भी हमें मंजूर है.’’

भैयाभाभी के शब्दों का आधार मेरे लिए एक बड़ा प्रोत्साहन था, लेकिन एक पतली सी रेखा संकोच और डर की मैं पार नहीं कर पा रहा था. किसी तरह सीमा के घर पहुंचा. बाहर ही उस के पापा मिल गए. पता चला सीमा की तबीयत अच्छी नहीं है.

‘‘कभी ऐसा नहीं हुआ उसे. कहती है सांस ही नहीं आती. रात भर फैमिली डाक्टर पास बैठे रहे. क्या करूं मैं, अच्छीभली थी, पता नहीं क्या होता जा रहा है इसे.’’

‘‘अंकल, आप को पता तो है कि घबराहट में सीमा को दम घुटने जैसा अनुभव होता है. उस दिन मुझ से बात करनी भी चाही थी पर मैं ने ही मजाक में टाल दिया था.’’

‘‘तो तुम उस से पूछो, बात करो.’’

मैं सीमा के पास चला आया और उस की हालत देख घबरा गया. 3-3 तकिए पीठ के पीछे रखे वह किसी तरह शरीर को सीधा रख सांस खींचने का प्रयास कर रही थी. एकएक सांस को तरसता इनसान कैसा दयनीय लगता है, मैं ने पहली बार जाना था. आंखें बाहर को फट रही थीं मानो अभी पथरा जाएंगी.

उस की यह हालत देख कर मैं रो पड़ा था. सच ही कहा था भाभी ने कि मेरा सीमा के प्रति स्नेह और ममता इतनी भी सतही नहीं जिसे नकारा जा सके. दोनों हाथ बढ़ा कर किसी तरह हांफते शरीर को सहारा देना चाहा. क्या करूं मैं जो सीमा को जरा सा आराम दे पाऊं. माथा सहला कर पसीना पोंछा. ऐसा लग रहा था मानो अभी सीमा के प्राणपखेरू उड़ जाएंगे. दम घुट जो रहा था.

‘‘सीमा, सीमा क्या हो रहा है तुम्हें, बात करो न मुझ से.’’

दोनों हाथों में उस का चेहरा ले कर सामने किया. आत्मग्लानि से मेरा ही दम घुटने लगा था. उस दिन सीमा कुछ बताना चाह रही थी तो क्यों नहीं सुना मैं ने. अचानक ही भीतर आते पापा की आवाज सुनाई दी.

‘‘सीमा, देखो, तुम से मिलने मनीष आया है.’’

पापा के स्वर में उत्साह था. शायद भावी पति को देख सीमा को चैन आएगा.

एक नौजवान पास चला आया और उस का अधिकारपूर्ण व्यवहार ऐसा मानो बरसों पुराना नाता हो. मेरे मन में एक विचित्र भाव जाग उठा, जैसे मैं सीमा के आसपास कोई अवांछित प्राणी था.

‘‘क्या बात है, सीमा?’’ कल अच्छीभली तो थीं तुम. अचानक ऐसा कैसे हो गया?’’

सवाल पर सवाल, उत्तर न मिलने पर भी एक और सवाल.

‘‘कल शाम तुम्हारा इंतजार करता रहा. नहीं आना था तो एक फोन तो कर देतीं. दीदी और जीजाजी तुम्हारी वजह से नाराज हो गए हैं. उन्हें फोन कर के ‘सौरी’ बोल देना. जीजाजी को कह कर न आने वालों से बहुत चिढ़ है.’’

मुझे मनीष एक संवेदनहीन इनसान लगा. सीमा पर पड़ती उस की नजरों में अधिकार- भावना अधिक थी और चिंता कम. यह इनसान सीमा से प्यार ही कहां कर पाएगा जिसे उस की तकलीफ पर जरा भी चिंता नहीं हो रही. सीमा रो पड़ी थी और अगले पल उस का समूचा अस्तित्व मेरी बांहों में आ समाया और मेरी छाती में चेहरा छिपा कर वह चीखचीख कर रोने लगी.

सीमा के पापा अवाक्थे. मनीष की पीड़ा को मैं नकार नहीं सकता…जिस की होने वाली बीवी उसी की ही नजरों के सामने किसी और की बांहों में समा जाए.

कुछ प्रश्न और कुछ उत्तर शायद इसी एक पल का इंतजार कर रहे थे. सीमा ने पीड़ा की स्थिति में अपना समूल मुझे सौंप दिया था और मेरे शरीर पर उस के हाथों की पकड़ इतनी मजबूत थी कि मेरे लिए विश्वास करना मुश्किल था. स्पर्श की भाषा कभीकभी इतनी प्रभावी होती है कि शब्दों का अर्थ ही गौण हो जाता है.

मेरे हाथों में क्या था, मैं नहीं जानता. लेकिन कुछ ऐसा अवश्य था जिस ने सीमा की उखड़ी सांसों को आसान बना दिया था. मेरे दोनों हाथों को कस कर पकड़ना उस का एक उत्तर था जिस की मुझे भी उम्मीद थी.

मुझे पता ही नहीं चला कब मनीष और पापा कमरे से बाहर चले गए. गले में ढेर सारा आवेग पीते हुए मैं ने सीमा के बालों में उंगलियां डाल सहला दिया. देर तक सीमा मेरी छाती में समाई रही. सांस पूरी तरह सामान्य हो गई थी, जिस पर मैं भी हैरान था और सीमा के पापा भी.

‘‘तुम ने पूछा था न, मैं तुम्हारा कौन हूं? कल तक पता नहीं था. आज बता सकता हूं.’’

चुप थी सीमा, और उस के पापा भी चुप थे. मुझे वे प्रकृति के आगे नतमस्तक से लगे. सीमा की सांसें अगर मेरी नजदीकियों की मोहताज थीं तो इस सच से वे आंखें कैसे मोड़ लेते.

‘‘मुझे बताया क्यों नहीं तुम दोनों ने? बचपन से साथसाथ हो और एकदूसरे पर इतना अधिकार है तो…’’

‘‘अंकल, मुझे भी पता नहीं था. आज ही जान पाया,’’ और इसी के साथ मेरा गला रुंध गया था.

मुझे अच्छी तरह याद है जब सीमा की मां की मौत के कुछ साल बाद उस के पापा ने अपनी बहन के दबाव में आ कर पुनर्विवाह कर लिया था तब वह कितने परेशान थे. सीमा और उस की नई मां के बीच तालमेल नहीं बैठा पा रहे थे. तब अकसर मेरे सामने रो दिया करते थे.

‘‘अपनी जाति अपनी ही जाति होती है. यह औरत हमारी जाति की नहीं है, इसीलिए हम में घुलमिल नहीं पाती.’’

‘‘अंकल, आप अपनी जाति से बाहर भी तो जाना नहीं चाहते थे न. और मैं भी नहीं चाहता था मेरी वजह से सीमा आप से दूर हो जाए. क्योंकि आप ने सीमा के लिए अपने सारे सुख भुला दिए थे.’’

‘‘तो क्या उस का बदला मैं सीमा के जीवन में जहर घोल कर  लूंगा. मैं उस का बाप हूं. जो मैं ने किया वह कोई एहसान नहीं था. कैसे नादान हो, तुम दोनों.’’

सीमा को गले लगा कर अंकल रो पड़े थे. हम तीनों ही अंधेरे में थे. कहीं कोई परदा नहीं था फिर भी एक काल्पनिक आवरण खुद पर डाले बस, जिए जा रहे थे हम.

डरने लगा हूं अब वह पल सोच कर, जब सीमा सदासदा के लिए जीवन से चली जाती. तब शायद यही सोचसोच कर जीवन नरक बन जाता कि एक बार मैं ने बात तो की होती, एक बार तो पूछा होता, एक बार तो पूछा होता.

Romantic Story in Hindi : अधिकार

मार्शल  आर्ट एक्सपर्ट चिता यज्ञनेश शेट्टी का नया अवतार

दक्षिणभारत के सुपरहिट स्टार पुनीत राजकुमार, रेमोडीसूजा और विजय सेतु पति व चीता यज्ञनेश शेट्टी ने फिल्म“दरेज ऑफ अर्जुन”का पोस्टर किया जारी

बौलीवुड के सर्वाधिक चर्चित मार्शल आर्ट एक्सपर्ट तथा बौलीवुड के पचास से अधिक ए ग्रेड स्टार कलाकारों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग  दे चुके ‘चीता’के नाम से मशहूर चीता यज्ञनेश शेट्टी इन दिनों तीन भाषाओं में बन रही फिल्म ‘‘द रेज ऑफ अर्जुन‘‘ में एक्शन कोरियोग्राफी करने में व्यस्त हैं.इतना ही नही ज्ञानेश  शेट्टी,वोदिक फिल्म्स व एज प्रोडक्शन के साथ मिलकर इस फिल्म को प्रस्तुत भी कर रहे है.इस फिल्म का पहला लुक और तीनों भाषाओं  की फिल्मों का अलग अलग पोस्टर भी जारी किया गया ,जो कि वायरल हो चुका है.

इस पोस्टर को दक्षिण भारत के सुपर हिट स्टार पुनीत राजकुमार ने कन्नड़ भाषा में,रेमोडिसूजा ने हिंदी व तामिल भाषा में विजय सेतु पति द्वारा जारी किया गया. मुंबई के नजदीक वसई (पूर्व) के वी-२ स्टूडियो में शूटिंग के पहले दिन तेलुगु भाषा में बनने वाली का पोस्टर विजय सेतु पति ने अनूप सागर, अमरजीत शेट्टी,चीता यज्ञनेश शेट्टी, फिल्म के हीरो सुशांत पुजारी,निर्देशक किशोर बॉयजोन व यूनिट के अन्य लोगों की मोजूदगी में जारी किया.

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फिल्म ‘‘द रेज आफ अर्जुन’’ हिंदी, तेलगू और कन्नड़ में बन रही है.इसके निर्माता किरण शेट्टी दुबई,आशिका सुवर्णा,विनोद कुमार और शिवराज आर एम हैं.कहानी और पटकथा लेखक एम चंद्रमौली और सुजय एस कामथ,संवाद लेखक के जी एफ फेम एम चंद्रमौली तथा फिल्म की मुख्य नायिका हर्षिका पुनचा हैं.

फिल्म‘दरे ज आफ अर्जन’’की चर्चा करते हुए चीता यज्ञनेश शेट्टी ने कहा,‘‘यह नृत्य पर आधारित एक्शन फिल्म है.इसकी एक्शन कोरियोग्राफी मैने की है जबकि एक्षन निर्देशन अंदलिबपठान कर रहे हैं.इस फिल्म के एक्शन में मार्शल  आर्ट ही ज्यादा नजर आएगा. हम इस फिल्म को इसी वर्ष सिनेमाघरो में प्रदर्शित करेंगें. द्वारा एक्शन निर्देशनहै.

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यह फिल्म इसी साल रिलीज होगी।‘‘
फिल्म ‘‘द रेजऑफअर्जुन‘‘ के कैमरा मैन दिलीप कुमार एम.एस.,संगीतकार सचिन बसरूर ,सह-निर्देशन रघु अथर्वा और सुजय एस कामथका,एक्शन डायरेक्टर अंदलिब पठानका,नृत्य निर्देशक दीक्षित कुमार, प्रशांतशिंदे, अमितरोकड़े,अभय जनबंधु,कार्यकारी निर्माता मुरली फिक्सर्ट, डेंसन पिंटो और प्रथी कभांडी है.

राज कुंद्रा मामले पर कंगना रनौत का बयान, कहा- इसलिए फिल्म इंडस्ट्री को गटर कहती हूं

बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा शिल्पा शेट्टी क पति राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस ने पोर्न फिल्म बनाने और एप पर अपलोड करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया है. राज के गिरफ्तारी के बाद सभी लोग हैरान हैं, ऐसे में लगातार सोशल मीडिया पर शिल्पा शेट्टी और उनके पति को लोग ट्रोल कर रहे हैं.

जिसके बाद बॉलीवुड की जानी मानी अदाकारा कंगना रनौत ने इस पर अपना पक्ष रखते हुए बयान दिया है कि इसलिए वह फिल्म इंडस्ट्री को गटर कहती हैं. कंगना ने अपने इंस्टाग्राम पर लिखा है कि इसलिए मैं बॉलीवुड को गटर कहती हूं हर चमकती हुई चीज सोना नहीं होती है.

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आगे कंगना ने लिखा है कि मैं अपने नए प्रोडक्शन टीकु वेड्स  शेरू के जरिए इस इंडस्ट्री के नंगेपन को उजागर करने जा रही हूं.

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वहीं राज कुंद्रा को 23 जुलाई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. राज कुंद्रा को सोमवार के रात गिरफ्तार किया गया और इस मामले की जांच मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नागराले ने की थी,

जांच में राज कुंद्रा का मामला पूरी तरह से खुलकर सामने आ गया है, जिसमें पता चला है कि राज कुंद्रा इस मामले में अच्छे से शामिल थें, उनके साथ उनके सहयोगी उमेश कामंत भी साथ में थें, राज कुंद्रा का प्रोडक्शन हाउस भी घेेरे में आ गया है.

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अब देखना यह है कि पूरा मामला सामने आने के बाद से राज कुंद्रा और उनकी पत्नी शिल्पा शेट्टी इस पर अपनी सफाई में क्या कहेंगी.

हालांकि फैंस को राज कुंद्रा के असलियत से झटका भी लगा है कि कही न कही राज कुंद्रा कि इमेज इंडस्ट्री में काफी ज्यादा अच्छी थी.

Family Story in Hindi : दर्द का रिश्ता – भाग 2

लेखिका-लता अग्रवाल

रोमी झट उठ कर बाम की शीशी ले आई.‘‘लाइए मैं लगा दूं.“ और रोमी कुंवर प्रताप के सिर पर बाम लगा रही थी. वह कभी उस के हाथ को पकड़ कर कहता, ‘जरा जोर से…हां, हां…यहां…और जोर से. अपनत्व में पगी रोमी बेचारी कुंवर प्रताप के मन में बसे भावों को समझ नहीं पाई. वह तो जब कुंवर प्रताप का हाथ उस के हाथों को पार करता उस के कंधे और फिर नीचे को आने लगा तो उसे कुछ संदेह हुआ.

रोमी संभलती, तब तक कुंवर प्रताप उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. रोमी बहुत चीखीचिल्लाई, कितनी गुहार लगाई- ‘मां जी बचाइए, छोड़ दो प्रताप भैया, मैं तुम्हारे भाई की अमानत हूं. रिश्तों की दुहाई दी, मगर उस की सारी कोशिश नाकामयाब रही. कुंवर प्रताप पर हवस का नशा चढ़ चुका था. रोमी की चीखपुकार रात के अंधेरे में कोठी की दीवारों से ही थपेड़े खा कर गुम होती जा रही थी. मां जी सुन रही थी मगर बेबस थी. आखिर ठाकुर की ऐयाशी के छींटों ने उस के दामन को दागदार कर ही दिया. रोमी ने बहुत बचने की कोशिश की. मगर कहां वह हट्टाकट्टा ठाकुर, कहां वह नाजुक सी रोमी. मुकाबला करती भी तो कैसे, कब तक?

रोमी जैसेतैसे खुद को समेटे सासुमां के सीने पर जा गिरी. “मां जी, देखिए न क्या हुआ मेरे साथ. मैं यह सब सोच कर तो नहीं आई थी यहां. बताइए न मां जी, मैं कहां गलत थी? मां बोलिए न.” ठकुराइन आंखों से अपनी वेदना जताने के और कर भी क्या सकती थी. मन ही मन सोच रही थी कि आज तो वह बेबस है मगर तब…?

जब वह बोल और चलफिर सकती थी… उस की आंखों के सामने ठाकुर ने जाने कितनी अबलाओं को अपने बिस्तर की सलवटों में रौंदा. क्या कर पाई थी वह, कुछ भी तो नहीं. हम ठकुराइनों की हुकूमत तो बस अपने नौकरोंचाकरों तक ही रहती है. पति के आगे तो हमारा अपना कुछ भी निजत्व नहीं. आज शायद उसी खामोशी की सजा पा रही है वह. चाह कर भी अपनी बहू की अस्मत न बचा सकी. उस की पीड़ा देखिए कि वह प्यार से उस के सिर पर

हाथ भी न रख सकी.

रोमी कहे जा रही थी- ‘‘मां, मैं तो जमाने की बुरी नजरों से बचने के लिए आप की शरण में आई थी. मुझे क्या पता था यहां उलटे मुझे…यह सब… क्या हो गया मां?”ठकुराइन जो खुद ही एक जिंदा लाश की तरह मात्र थी, भला क्या मदद कर सकती थी उस की.

रोमी रातभर रोती रही. उसे रणवीर बहुत याद आ रहा था. कहां वह नारी के प्रति सुलझी दृष्टि रखने वाला, कहां कुंवर प्रताप… आश्चर्य, यह उसी का भाई है? सच कहा था रणवीर ने कि कुंवर प्रताप में ठाकुरों वाली बुद्धि है. मगर मुझे ही शिकार होना था…रोमी बेसब्री से सुबह होने का इंतजार कर रही थी कि ठाकुर साहब के आते ही उन से फरियाद करेगी. वे ही दुरुस्त करेंगे इस की अक्ल. अपने स्वर्गीय बेटे की धरोहर के साथ ऐसा अनाचार. वे जरूर सजा देंगे उसे. ठाकुर के आते ही रोमी ने रोरो कर सारी व्यथा बयान कर दी. ठाकुर ने सुनते ही कुंवर प्रताप पर

दहाड़ना शुरू कर दिया. क्याक्या न कहा, सिर्फ हाथ उठाना भर रह गया था. रोमी तो डर गई थी कहीं बात खतरनाक मोड़ न अख्तियार कर ले. वे रोमी को देख बोले जा रहे थे- ‘‘बेटी, क्या करूं इस नामुराद का. अब तू ही कह, इस बुढापे में एक यही तो आसरा है हमारा, घर से निकाल भी नहीं सकता उसे.’’ नारीमन भावुक होता है. फिर, बाप जैसे रिश्ते पर तो संशय का प्रश्न ही नहीं उठता. आखिर उस से पावन रिश्ता और कौन सा है. रोमी का निश्च्छल मन सोच भी नहीं पाया कि ये सब ठाकुर साहब के घड़ियाली आंसू हैं. उसे कहीं से कुछ अप्रत्याशित न लगा. बल्कि वह तो डर गई कि कहीं ऐसा न हो ठाकुर साहब गुस्से में कोई कठोर कदम उठा बैठें और लोग कहें ऐसी बहू आई कि एक बेटे को खा गई चैन न आया तो दूसरे बेटे को भी छीन

लिया. वह बेचारी तो उलटे खुद को नीलू का गुनहगार समझ रही थी. नीलू के मन में अपने लिए कोई मैल पैदा न हो, सो उस से भी अपनी सफाई पेश की. तब नीलू ने आंखों में आंसू भर इतना ही कहा- ‘‘मैं जानती हूं जीजी, आप निर्दोष हैं.”

रोमी आवाक नीलू को देखती रही. इस घटना को तकदीर का लेखा मान भीतर ही भीतर घुल रही थी रोमी. एक ही छत के नीचे अपनी अस्मत के लुटेरे के साथ रहना कितना त्रासद था उस के लिए. वह निर्णय नहीं ले पा रही थी कि क्या करे…यहां रहना उचित होगा या नहीं. असमंजस में थी. मन तो किया था उसी पल यह घर छोड़ दूं मगर रणवीर के मातापिता क्या सोचेंगे… बेटा तो गया बहू भी उन्हें छोड़ गई… जो हुआ उस में भला उन का क्या दोष?

अनचाही दिशा में ही सही, वक्त का दरिया अपनी गति से बह रहा था. सप्ताह भी न बीता था कि एक दिन रात में सासुमां की तबीयत ज्यादा खराब होने पर रोमी ने सोचा ठाकुर साहब को बुला लाऊं. जैसे ही वह उन के कमरे के करीब पहुंची, उसे कुछ खुसुरफुसुर की आवाजें सुनाई दीं. उस ने घड़ी देखी, रात के सवा दो बज रहे हैं. इस वक्त… बाबूजी किस से बात कर रहे हैं…कौन हो सकता है उन के कमरे में…? कौन है इतनी रात गए…बाबूजी किस से बातें कर रहे हैं? यह सब सोच रोमी दरवाजे से झांकने लगी, देखा, अंदर कुंवर प्रताप और बाबूजी में बातें चल रही थीं. एक पल को रोमी ने सोचा, लौट जाए, वैसे भी कुंवर प्रताप को देखते ही उस का खून खौल जाता है. मगर जैसे ही वह जाने को हुई, उस के कानों में आवाज टकराई- ‘‘क्या करता साली, मानती ही नहीं थी. बड़ी सावित्री बन रही थी. तुम्हारे भाई की ब्याहता हूं, छोड़ दो मुझे…’’

एक पल को रोमी पत्थर हो गई मानो कोई भारी चीज उस के सिर पर दे मारी गई है. यह तो उस के बारे में चर्चा हो रही है.शायद, बाबूजी कुंवर प्रताप को डांट रहे हैं, यह सोच उस का मन जानने को इच्छुक हुआ.

Satyakatha : एक नेता की प्रेम कहानी

‘अब मैं और सहन नहीं कर सकती. मैं ने अपनी तरफ से सब कुछ किया लेकिन उमंग का गुस्सा
बहुत ज्यादा है. मुझे डर लगता है कि उमंग मुझे अपनी लाइफ में जगह नहीं देना चाहते… उन की किसी भी चीज को टच करो तो उन्हें बुरा लगता है. इस बार भी मैं खुद भोपाल आई, जबकि वह नहीं चाहते थे कि मैं यहां आऊं. मैं कभी तुम्हारे जीवन का हिस्सा नहीं बन पाई. आर्यन सौरी, मैं तुम्हारी लाइफ के लिए कुछ नहीं कर पाई. मैं जो कुछ भी कर रही हूं अपनी मरजी से कर रही हूं, इस में किसी की कोई गलती नहीं है.
‘उमंग, आप के साथ मैं ने सोचा था कि लाइफ सेट हो जाएगी. आई लव यू. मैं ने बहुत कोशिश की एडजस्ट करने की, पर आप ने मुझे अपनी लाइफ में जगह नहीं दी. सौरी.’

यह लाइनें हैं उस पत्र की, जो सोनिया भारद्वाज ने एक पूर्वमंत्री के बंगले में आत्महत्या करने से पहले लिखा था. 37 वर्षीय सोनिया भारद्वाज की जिंदगी कई मायनों में आम औरतों से काफी अलग थी. बहुत कुछ होते हुए भी उस के पास कुछ नहीं था. वह निहायत खूबसूरत थी और उम्र उस पर हावी नहीं हो पाई थी. कोई भी उसे देख कर यह नहीं मान सकता था कि वह 19 साल के एक बेटे की मां भी है.

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औरत अगर खूबसूरत होने के साथसाथ विकट की महत्त्वाकांक्षी भी हो तो जिंदगी की बुलंदियां छूने से उसे कोई रोक नहीं सकता. लेकिन अगर वह अपनी शर्तों पर मंजिल और मुकाम हासिल करने की कोशिश करती है तो अकसर उस का अंजाम वही होता है जो सोनिया का हुआ.बीती 16 मई की रात सोनिया ने आत्महत्या कर ली. भोपाल के पौश इलाके शाहपुरा के बी सेक्टर के बंगला नंबर 238 में फांसी के फंदे पर झूलने और सुसाइड नोट लिखने से पहले उस ने और क्याक्या सोचा होगा, यह तो कोई नहीं बता सकता. लेकिन अपने सुसाइड नोट में उस ने जो लिखा, उस से काफी हद तक यह समझ तो आता है कि वह अपने तीसरे प्रेमी और मंगेतर पूर्वमंत्री उमंग सिंघार की तरफ से भी नाउम्मीद हो चुकी थी.

सोनिया जिंदगी भर प्यार और सहारे के लिए भटकती सी रही. हरियाणा के अंबाला के बलदेव नगर इलाके के सेठी एनक्लेव की रहने वाली सोनिया ने आखिरकार भोपाल आ कर पूर्व मंत्री उमंग सिंघार के बंगले पर ही खुदकुशी क्यों की. इस सवाल के जबाब में सामने आई है 2 अधेड़ों की अनूठी लव स्टोरी. जिसे शुरू हुए अभी बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ था.हालांकि 2 साल एकदूसरे को समझने के लिए कम नहीं होते, पर ऐसा लगता है कि उमंग और सोनिया दोनों ही एकदूसरे को समझ नहीं पाए थे. अगर वह समझ गए थे तो काफी दूर चलने के बाद वह कदम वापस नहीं खींच पा रहे थे.

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सोनिया की पहली शादी कम उम्र में अंबाला के ही संजीव कुमार से हो गई थी. शादी के बाद कुछ दिन ठीकठाक गुजरे. इस दौरान उस ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आर्यन रखा. 19 साल का हो चला आर्यन इन दिनों शिमला के एक इंस्टीट्यूट से होटल मैनेजमेंट का डिप्लोमा कर रहा है.आर्यन के जन्म के बाद संजीव और सोनिया में खटपट होने लगी, जिस का दोष सोनिया के सिर ही मढ़ा गया. जिस का नतीजा अलगाव की शक्ल में सामने आया. कुछ समय तनहा गुजारने के बाद सोनिया ने एक बंगाली युवक से दूसरी शादी कर ली. लेकिन उस का दूसरा पति भी उसे जल्द छोड़ कर भाग खड़ा हुआ.

फिर जरूरत हुई सहारे की

अब सोनिया के सामने सब से बड़ी चुनौती आर्यन की परवरिश की थी, जिस के लिए उस ने एक नामी कौस्मेटिक कंपनी में नौकरी कर ली. थोड़ा पैसा आया और जिंदगी पटरी पर आने लगी तो सोनिया को फिर एक सहारे की जरूरत महसूस हुई. यह सहारा उसे दिखा और मिला भी 47 वर्षीय उमंग सिंघार में, जिन से उस की जानपहचान एक मैट्रीमोनियल पोर्टल के जरिए हुई थी. उमंग सिंघार की गिनती मध्य प्रदेश के दबंग जमीनी और कद्दावर नेताओं में होती है. वह निमाड़ इलाके की गंधवानी सीट से तीसरी बार विधायक हैं और कमलनाथ मंत्रिमंडल में वन मंत्री भी रह चुके हैं.

उमंग की बुआ जमुना देवी अपने दौर की तेजतर्रार आदिवासी नेता थीं. उन की मौत के बाद उमंग को उन की जगह मिल गई. निमाड़ इलाके में जमुना देवी के बाद उमंग कांग्रेस के प्रमुख आदिवासी चेहरा हो गए, जिन के राहुल गांधी से अच्छे संबंध हैं. कहा यह भी जाता है कि वह उन गिनेचुने नेताओं में से एक हैं, जिन की पहुंच सीधे राहुल गांधी तक है.विरासत में मिली राजनीति को उमंग ने पूरी ईमानदारी और मेहनत से संभाला और पार्टी आलाकमान को कभी निराश नहीं किया. झारखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें वहां की जिम्मेदारी भी दी थी, जिस पर वह खरे उतरे थे.

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वहां उन्होंने आदिवासी इलाकों में ताबड़तोड़ दौरे किए थे, नतीजतन कांग्रेस और जेएएम का गठबंधन भाजपा से सत्ता छीनने में सफल हो गया था. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी एक अंतरंग इंटरव्यू के दौरान, जो रांची में उन के घर पर लिया गया था, इस प्रतिनिधि से उमंग की भूमिका की तारीफ की थी.
उमंग सिंघार भी आदिवासियों को हिंदू नहीं मानते और आदिवासी इलाकों में हिंदूवादी संगठनों की गतिविधियों का अकसर विरोध करते रहते हैं. पिछले साल तो उन्होंने इन इलाकों में रामलीला किए जाने का भी विरोध किया था.

राजनीतिक जीवन में सफल रहे उमंग की व्यक्तिगत जिंदगी बहुत ज्यादा सुखी और स्थाई नहीं रही. सोनिया की तरह उन की भी 2 शादियां पहले टूट चुकी हैं. पहली पत्नी से तो उन्हें 2 बच्चे भी हैं. यानी सोनिया से शादी हो पाती तो यह उन की भी तीसरी शादी होती.बहरहाल, दोनों की जानपहचान जल्द ही मेलमुलाकातों में बदल गई और दोनों अकसर मिलने भी लगे. दिल्ली, अंबाला और भोपाल में इन दोनों ने काफी वक्त साथ गुजारा और दिलचस्प बात यह कि किसी को इस की भनक भी नहीं लगी. और जब लगी तो खासा बवंडर मच गया.

आत्महत्या करने से पहले सोनिया ने अपने सुसाइड नोट में उमंग की तरफ इशारा करते हुए जो लिखा, वह ऊपर बताया जा चुका है.कोरोना की दूसरी लहर के कहर और लौकडाउन के चलते भोपाल भी सन्नाटे और दहशत में डूबा था. लोग अपने घरों में कैद थे. जैसे ही उमंग के बंगले पर एक युवती के आत्महत्या करने की खबर आम हुई तो इस की हलचल सियासी हलकों में भी हुई.पुलिस की जांच में उजागर हुआ कि सोनिया भोपाल करीब 25 दिन पहले आई थी और तब से यहीं रह रही थी. एक तरह से दोनों लिवइन रिलेशनशिप में थे. हादसे के 3 दिन पहले ही दोनों के बीच कहासुनी भी हुई थी. इस के तुरंत बाद उमंग अपने विधानसभा क्षेत्र गंधवानी चले गए थे.

नौकर के बयान पर मामला दर्ज

बंगले पर ड्यूटी बजा रहे उमंग के नौकर गणेश और उस की पत्नी गायत्री ने अपने बयान में इन दोनों के बीच होने बाली कलह की पुष्टि की. 17 मई, 2021 की सुबह जब गायत्री उमंग के औफिस, जो सोनिया के कमरे में तब्दील हो गया था, पहुंची तो वह अंदर से बंद था. सोनिया चूंकि पहले भी 2 बार इस बंगले में आ चुकी थी, इसलिए दोनों उस की वक्त पर उठने और कसरत करने की आदत से वाकिफ हो गए थे.
गायत्री ने यह बात गणेश को बताई और गणेश ने मोबाइल पर उमंग को बताई तो उमंग ने अपने नजदीकियों को बंगले पर देखने जाने को कहा. उमंग के परिचितों ने जैसेतैसे जब कमरा खोला तो वह यह देख कर सन्न रह गए कि सोनिया ग्रिल पर लटकी है और उस के गले में फांसी का फंदा कसा हुआ है.
तुरंत ही इस की खबर उन्होंने उमंग और फिर पुलिस को दी. घबराए उमंग बिना देर किए भोपाल रवाना हो लिए. अब तक मध्य प्रदेश में अटकलों और अफवाहों का बाजार गरमा चुका था और पुलिस बंगले को घेर चुकी थी.

शुरुआती जांच और पूछताछ के बाद सोनिया की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. उस की मौत की खबर अंबाला में रह रही उस की मां कुंती, बेटे आर्यन और भांजे दीपांशु को भी दी गई . दीपांशु ने पुलिस को बताया कि पिछली रात को ही सोनिया ने घर वालों से वीडियो काल के जरिए बात की थी, लेकिन तब वह खुश दिख रही थी. ये लोग भी भोपाल के लिए चल दिए.

उमंग ने दिया सधा हुआ बयान

अब हर किसी को उमंग की प्रतिक्रिया का इंतजार था, जिन्होंने भोपाल आ कर बेहद सधे ढंग से कहा कि सोनिया उन की अच्छी मित्र थी. उस के यूं आत्महत्या करने से मैं हैरान हूं. हम दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे.सोनिया के अंतिम संस्कार के वक्त वह उस की मां के गले से लिपट कर रोए तो बहुत कुछ स्पष्ट हो गया कि अब इस हाईप्रोफाइल मामले में कुछ खास नहीं बचा है सिवाय कानूनी खानापूर्ति करने के. क्योंकि सोनिया के परिजन उमंग को उस की आत्महत्या का जिम्मेदार नहीं मान रहे थे.
इधर फुरती दिखाते हुए पुलिस ने उमंग के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर लिया था, जिस का आधार सोनिया के सुसाइड नोट और नौकरों के बयानों को बनाया गया था.

आर्यन के बयान से मिला नेताजी को लाभ

अब आर्यन का बयान अहम हो चला था उस ने कहा, ‘‘मेरी मां की पिछली रात ही नानी से बात हुई थी. बातचीत के दौरान उन्होंने खुशीखुशी बात की थी. अगर वह मानसिक तनाव में होतीं तो नानी को जरूर बतातीं और न भी बतातीं तो बातचीत से उन की तकलीफ उजागर जरूर होती. अगले महीने उमंग सिंघार मां से शादी करने बाले थे. हमें पिछले साल दिसंबर में इन के संबंधों के बारे में पता चला था. उमंग सिंघार पर हमें कोई शक नहीं है ऐसा कोई सबूत भी नहीं है.’’

आर्यन का यह बयान उमंग की कई दुश्वारियां दूर करने वाला था, लिहाजा उन्होंने सरकार पर चढ़ाई करते कहा कि सरकार इस मामले पर राजनीति कर रही है. मैं पुलिस को अपना बयान दे चुका हूं.
सोनिया से मेरी बात 15 मई को हुई थी, तब तक वह ठीक थीं और उस ने खाना भी खाया था. मैं पुलिस को सहयोग कर रहा हूं. गिरफ्तारी से बचने के लिए वह आला पुलिस अफसरों से भी मिले और दूसरे राजनैतिक हथकंडे भी इस्तेमाल किए.

इसी दौरान सोनिया के भांजे दीपांशु ने भी यह उजागर किया कि उस की मौसी सोनिया डिप्रेशन की मरीज थीं और इस की गोलियां भी खा रहीं थीं. दीपांशु की इस बात से उमंग का कानूनी पक्ष तो मजबूत हुआ, लेकिन वह पूरी तरह बेगुनाह हैं यह नहीं कहा जा सकता.मुमकिन है कि वह सोनिया से ऊब गए हों या फिर उस की उन्हीं बेजा हरकतों से आजिज आने लगे हों, जिन के चलते उस के दोनों पतियों ने उसे छोड़ दिया था. ऐसे में उन्हें अपनी प्रेमिका को सहारा देना चाहिए था, जो अगर चाहती तो उन्हें बदनाम भी कर सकती थी और सुसाइड नोट में सीधे भी उन्हें दोषी ठहरा सकती थी. लेकिन उस ने ऐसा कुछ किया नहीं.

हालांकि सोनिया जैसी औरतें बहुत मूडी और जिद्दी होती हैं क्योंकि वे अपनी शर्तों पर जीने में यकीन करती हैं. लेकिन आत्महत्या कर लेने का उन का फैसला कतई समझदारी या बुद्धिमानी का नहीं माना जा सकता. सफल और सुखी जिंदगी के लिए हर किसी को कई समझौते करने पड़ते हैं, यह बहुत ज्यादा हर्ज की बात भी नहीं.अगर सोनिया थोड़ा सब्र रखती तो मनचाही जिंदगी जी भी सकती थी. लेकिन डिप्रेशन उसे ले डूबा, जिस की सजा अगर कोई भुगतेगा तो वह उस का लाडला आर्यन होगा, जिसे कभी पिता का सुख मिला ही नहीं.

फंस गए कमलनाथ

इस मामले पर राजनीति उम्मीद के मुताबिक नहीं हुई, क्योंकि बात धीरेधीरे साफ हो गई थी. कुछ छोटे भाजपा नेताओं जैसे रंजना बघेल ने जरूर उमंग सिंघार और कांग्रेस को घेरने की कोशिश की, लेकिन भाजपा आलाकमान ने ज्यादा दिलचस्पी इस में नहीं दिखाई. कांग्रेसी इस पर एकजुट दिखे खासतौर से कमलनाथ खेमा.इस की अपनी वजहें भी हैं. उमंग घोषित तौर पर कमलनाथ के साथ हैं और दिग्विजय सिंह के धुर विरोधी हैं. पिछले साल जब ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने 22 विधायकों सहित भाजपा में चले गए थे, जिस से कांग्रेस सरकार गिर गई थी. तब उमंग के भी सिंधिया के साथ जाने की अफवाह उड़ी थी, क्योंकि दिग्विजय विरोधी होने के चलते वह सिंधिया के भी काफी नजदीक हैं.

लेकिन उन्होंने एक ईमानदार और वफादार कांग्रेसी होने का परिचय दिया. सोनिया का मामला ठंडा पड़ता जा रहा था कि तभी कमलनाथ ने बयान दे डाला कि उन के पास भी एक पेनड्राइव प्रदेश के चर्चित हनीट्रैप कांड की है.दरअसल, अगस्त 2019 में इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर हरभजन सिंह को ब्लैकमेल करने के आरोप में पुलिस ने 5 महिलाओं को गिरफ्तार किया था. इंदौर क्राइम ब्रांच ने इन के पास से पेनड्राइव और हार्ड डिस्क भी बरामद की थी, जिन में प्रदेश के कई अधिकारीयों और बड़े नेताओं की रंगीनियां कैद हैं. लेकिन यह सब कथित रूप से है क्योंकि मामले पर लीपापोती हो रही है.

वे अधिकारी और बड़े भाजपा नेता कौन हैं, इस का अंदाजा ही आम लोग लगाया करते हैं क्योंकि सच अब सरकारी एजेंसियों के पास है. उमंग सिंघार को गिरफ्तारी से बचाने की गरज से कमलनाथ ने पेनड्राइव अपने पास होने का बयान दिया तो भाजपा नेताओं और इस मामले की जांच कर रही एसआईटी ने उन पर चढ़ाई कर दी. क्योंकि साक्ष्य छिपाना भी अपराध होता है. गौरतलब है कि हनीट्रैप कांड के समय कमलनाथ सूबे के मुख्यमंत्री थे.

इस नाते पेनड्राइव का उन के पास होना हैरानी की बात नहीं. 2 जून, 2021 को बुलावे के बाद भी वह एसआईटी के सामने नहीं आए और दिल्ली चले गए. फिर बाद में अपने बयान से यह कहते हुए मुकर गए कि यह कई पत्रकारों के पास है, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा. अब आगे जो भी हो, लेकिन इस से उमंग सिंघार का राजनैतिक कद और महत्त्व तो उजागर होता ही है.

Family Story in Hindi : हुनर – आरती के जीवन में किसका साथ मिलने के बाद बदलाव आया

लेखिका-डा. उर्मिला सिन्हा

आरती ने पलट कर अपनी बड़ीछोटी बहनों की ओर देखा. किसी बात पर दोनों खिलखिला उठी थीं. बेमौसम बरसात की तरह यों उन का ठहाका लगाना आरती को कहीं भीतर तक छेद गया.

“सोच क्या रही है, तू भी सुन ले हमारी योजना और इस में शामिल हो जा…” बड़ी फुसफुसाई.

“कैसी योजना?”

“है कुछ…” छोटी फुसफुसाई.

आरती की निगाहें बरबस ओसारे पर बिछी तख्त पर जा टिकीं. दुग्ध धवल चादर बिछी हुई है, भ्रम हुआ; जैसे अम्मां उस पर बैठी उसे बुला रही हैं, “आ बिटिया, बैठ मेरे पास…”

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“क्या है अम्मां…?”

“तू इतनी गुमसुम क्यों रहती है री, देख तो तेरी बड़ीछोटी बहनें कैसे सारा दिन चहकती रहती हैं…”

आरती हौले से मुसकरा देती. फिर तो अम्मां ऊंचनीच समझाती जातीं और वह “हां ..हूं” में जवाब देते जाती.

बड़ी बहन बाबूजी की लाड़ली थी, तो छोटी अम्मां की. आरती का व्यक्तित्व उन दोनों बहनों के शोखी तले दब सा गया था. वह चाह कर भी बड़ीछोटी की तरह न तो इठला पाती थी, न अपनी उचितअनुचित फरमाइशों से घर वालों को परेशान कर सकती थी.

वह अपने मनोभावों को चित्रों द्वारा प्रकट करने लगी. हाथों में तूलिका पकड़ वह अपने चित्रों के संसार में खो जाती… जहां न अम्मां का लाड़… न बाबूजी का संरक्षण… न बहनों का बेतुका प्रदर्शन… न भाई की जल्दीबाजी… रंगोंलकीरों में उस का पूरा संसार सन्निहित था. जो मिल जाता पहन लेती, चौके में जो पकता खा लेती. न तो कभी ठेले के पास खड़े हो कर किसी ने उसे चाट खाते देखा और न वह कभी छुपछुप कर सहेलियों के संग सिनेमा देखने ग‌ई.

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बड़ीछोटी बेटियों की ऊंटपटांग हरकतों से अम्मां झल्ला पड़तीं, “आखिर आरती भी हमारी ही बेटी है. हमें जरा सा भी परेशान नहीं करती और तुम दोनों जब देखो कोई न कोई उत्पात मचाती रहती हो…”

“भोंदू है आरती, सिर्फ लकीरें खींच कर कोई काबिल नहीं बनता…” बड़ी अपमान से तिलमिला उठती..

“अम्मां, तुम भी किस का उदाहरण दे कर हमें छोटा बताती हो, उस घरघुस्सी की…” छोटी भला कब पीछे रहने वाली थी.

“वह भोंदू, मूर्ख है और तुम लोग…” अम्मां देर तक भुनभुनाती रहतीं, जिस का परिणाम आरती को भुगतना पड़ता… पता नहीं, कब बड़ीछोटी आंखों से इशारा करतीं, एकदूसरे के कानों में कुछ फुसकती और दूसरे दिन आरती के चित्रों का सत्यानाश हो गया रहता. फटे कागज के बिखरे टूकड़े, लुढ़का रंगों का प्याला… ब्रश की ऐसी हालत कर दी गई होती कि वह दोबारा किसी काम का न रहे.

बिलखती आरती अम्मां से फरियाद करती,”अम्मां, अम्मां, देखो मेरी पेंटिंग की हालत… मैं ने कितनी मेहनत से बनाई थी…”

“फिर से बना लेना. हाथ का हुनर भला कौन छीन सकता है…” अम्मां आरती को दिलासा दे कर अपनी बड़ीछोटी बेटियों पर बरस पड़तीं.”यह कौन सा बहादुरी का काम किया तुम लोगों ने आरती को दुख पहुंचा कर,”अम्मां देर तक भुनभुनाती रहतीं और बड़ीछोटी बेहयाई से कंधे उचकाती आरती को परेशान करने के लिए न‌ई खोज में डूब जातीं.

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वहीं दोनों आज आरती को किस योजना में शामिल होने का न्योता दे रही हैं, इसे आरती का निश्छल हृदय खूब समझता है.अम्मां की तेरहवीं हुए अभी 2 दिन भी नहीं बीते, नातेरिश्तेदार‌ एक‌एक कर चले गए, सिर्फ बच गए हैं हम पांचों भाईबहन.

“भाभी मैं कल जाऊंगी,” आरती ने रोटी खाते हुए कहा.”दोचार दिन और रुक जाती…””नहीं भाभी, वहां बच्चे अकेले हैं. आनाजाना लगा ही रहेगा…”जिस घर में उस का जन्म हुआ, पलीबढ़ी, जवान हुई, सपनों ने उड़ान भरी, वहां से निकल जाना ही उचित है. पता नहीं, बहनें कौन से कुचक्र में भागीदार बनने पर मजबूर करें.

वह थकीहारी अपने आशियाने लौटी, तो पति सुदर्शन और दोनों प्यारे बच्चे उस का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे.”सब कुशलमंगल तो है न. नहाधो कर फ्रेश हो जाओ. मैं ने डिनर तैयार कर लिया है.” पति का स्नेह, बच्चों का “मम्मा, मम्मा” करते लिपटना… वह सारी कड़वाहटें भूल ग‌ई. “यह तुम्हारे लिए…” “क्या है लिफाफे में…”

“स्वतंत्रता दिवस पर बनाई गई तुम्हारी पेंटिंग, पोस्टर को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ है… बुलाहट है लालकिले पर दिल्ली पुरस्कार के लिए… वही निमंत्रणपत्र है…” “मम्मा, हम भी चलेंगे लालकिला देखने…” बच्चे मचल उठे.

“अरे, हम सभी चलेंगे. चलने की तैयारी करो…” पति के उल्लासमय आह्वान पर आरती का दग्ध हृदय खुशियों से भर उठा. जिस हुनर को मायके में हंसी का पात्र बनाया गया, वही पुरुषार्थी पति का सहयोग पा कर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पहचान बना रहा है.

“मां, यह तुम्हारा आशीर्वाद है शायद… और बहनों की कुटिलता, जिस ने मुझे कभी भी कमजोर पड़ने नहीं दिया, अपने मार्ग से हटा न सका, जिस की वजह से मेरा जुनून मेरी ताकत बना…” आरती का भावुक होना स्वाभाविक ही था. आरती का मन पाखी पुरानी यादों में खो गया….

खामोश… काम से काम रखने वाली आरती को अपने सहकर्मी के विनम्र सुलझे हुए साहसी स्वभाव ने आकर्षित कर लिया… अनाथ यश का प्रस्ताव, “मुझ से विवाह करोगी…”

“मां से बात करनी पड़ेगी,” कहते हुए आरती ने नजरें झुका लीं. उस ने डरतेडरते मां से बात की, “मां, यश आप से मिलना चाहता है… मेरा सहकर्मी है.” “किसलिए, “अनुभवी मां की आंखें चौड़ी हो गईं.

यश की सज्जनता को देख परिवार प्रभावित हुआ, किंतु विजातीय विवाह की अनुमति नहीं, “लोग क्या कहेंगे… “बहनों ने घर सिर पर उठा लिया, “विवाह में खर्च कौन करेगा… ”

इस बार आरती ने दिल से काम लिया… कोर्ट में विवाह कर दूल्हे के संग मां का आशीर्वाद लेने पहुंची… तब सब ने मुंह मोड़ लिया… किंतु मां के मुख से निकला, “सदा सुहागन रहो… ”

बचपन से ही आरती को पेंटिंग, कढ़ाईसिलाई के अलावा रचनात्मक कार्यों में अभिरुचि थी…पति का साथ पा कर उस ने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू किया… उस की खूबसूरत डिजाइन के परिधानों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया… मांग बढ़ने लगी…

इसी बीच वह 2 बच्चों की मां बनी… ससुराल में कोई था नहीं… और मायके से कोई उम्मीद नहीं… इधर, बुटीक का काम चल निकला… नौकरी पहले ही छोड़ चुकी थी वह… अब पति ने भी अपना पूरा समय बुटीक को देना शुरू किया.

एक कमरे के व्यवसाय से प्रारंभ बुटीक का कारोबार आज शहर के बीच में है. आज उस की आमदनी हजारों में है. चार कारीगर रखे हुए हैं…जब भी मां की याद आती, आरती उन से मिल आती… रुपएपैसे से मदद करती.मां को अपने पास ला कर सेवासुश्रूषा करती… मां के दिल से यही दुआ निकलती, “तुम्हें दुनियाजहां की सारी खुशियां मिले…”

उसे भाईभाभी से कोई शिकायत नहीं थी… किंतु बहनों को अपनी कामयाबी की भनक तक नहीं लगने दी. आरती को उन के खुराफाती दिमाग और कुटिल चालों की छाया तक अपने संसार पर गवारा नहीं था.उसी धैर्य और हुनर का परिणाम है… आज उसे पुरस्कृत किया जा रहा है…उस ने मन ही मन… मृत मां को धन्यवाद दिया…सुखसंतोष से वह पुलकित हो उठी.

Family Story in Hindi : दर्द का रिश्ता – भाग 1

लेखिका-लता अग्रवाल

लंदन से इंडिया की ओर आने वाला विमान, विमानतल पर उतरने को तैयार था. विमान परिचारिका घोषणा कर रही थी-

‘‘कृपया, यात्रीगण अपनी पेटी बांध लें…” अचानक रोमी की तंद्रा भंग हुई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. उस ने एक नजर गोद में सो रही नन्हीं बेटी परी की ओर देखा…मासूम कितनी बेखबर है जिंदगी में हुए हादसों से, नहीं जानती नियति ने उस से जीवन की धूप से बचाने वाला

वह छायादार दरख़्त छीन लिया है. हाय, नन्हीं सी मेरी बच्ची कैसे जान पाएगी पिता का साया क्या होता है. इस दुधमुंही बच्ची पर भी तरस नहीं खाया प्रकृति ने.

कितनी खुशी से उस ने रणवीर के साथ अपने जीवन की शुरुआत की थी. रणवीर भी एक अच्छे और समझदार पति साबित हुए. उसे याद आ रहा है वह वक्त जब रणवीर के साथ उस का ब्याह तय हुआ था. कितना डर गई थी वह. एक तो रईस ठाकुरों के खानदान से…उस पर विदेश में…विदेश का न जाने कितना रंग चढ़ा होगा उन पर… शराब के नशे में झूमते रणवीर का चेहरा डरा देता था उसे. आसपास मंडराती तितलियों की कल्पनामात्र से कांप जाती थी वह. राजस्थान के एक छोटे से गांव जड़ावता की रहने वाली मध्यवर्गीय परिवार की ग्रेजूएट पास रोमी

कैसे निर्वाह कर पाएगी.

मगर उस की खुशी का ठिकाना न रहा जब उस की वे सारी कल्पनाएं थोथी साबित हुईं. रणवीर उस की कल्पनाओं से कहीं बेहतर साबित हुए. उन्होंने न केवल ऊंची पढ़ाई हासिल की थी बल्कि उन के व्यवहार में भी वे ऊंचाइयां थीं. रणवीर हमेशा ध्यान रखते कि कहीं रोमी को अकेलापन महसूस न हो. लंदन जाते ही उन्होंने वहां के अच्छे भारतीय परिवारों से उस की जानपहचान करा दी थी जिन्होंने पराई जमीन पर अपनेपन का एहसास दिया रोमी को.

फिर परिवार में बेटी परी का आना जश्न था उन की जिंदगी में. कितनी धूमधाम से पार्टी दी थी रणवीर ने. सभी मिलनेजुलने वालों ने ढेर शुभकामनाओं से नवाजा था उसे. मगर किसी की मंगलकामना काम न आई.

परी 10 माह की भी नहीं हुई थी कि ऑफिस से लौटते हुए रणवीर की कार सड़क हादसे की शिकार हो गई. हादसा इतना भयानक था कि रोमी की जिंदगी के सारे रंग छीन ले गया और एक कभी न खत्म होने वाला इंतजार दे गया मां-बेटी को.

बेटा सात समंदर पार ही सही, उस की सलामती तसल्ली देती थी एक मां के दिल को. मगर इस हादसे ने ठकुराइन को जिंदा लाश बना दिया. उस की सारी ताकत मानो बेटे के साथ चली गई. वह अपनी बोलने की शक्ति खो बैठी. बस, बिस्तर पर पड़ीपड़ी आंखों से आंसू बहाती रहती. रणवीर के दोस्तों ने अंतिम संस्कार तो वहीं कर दिया मगर ठाकुर साहब का कहना था कि बाकी कर्मकांड विधिविधान से हों ताकि बेटे की आत्मा को सुकून मिले. आज रोमी इसी क्रिया को संपन्न करने हेतु भारत आई है.

विमान हवाई अड्डे के जैसेजैसे करीब आता जा रहा था, रोमी खुद को संभाल नहीं पा रही थी. कैसे जाएगी वह परिवार वालों के सामने. स्वयं को अपराधिनी महसूस कर रही थी वह. कभी सोलह श्रृंगार कर इसी हवाई अड्डे से अपना नया संसार रचने चली थी, आज अपना सारा सुहाग उस धरती पर लुटा कर तमाम उदासियों को अपने दामन में समेटे लौट रही है. खैर, विमान अड्डे पर रुका, परिवार वाले बेसब्री से रोमी का इंतजार कर रहे थे.

रोमी एक हाथ में नन्हीं बेटी को संभाले, दूसरे में रणवीर का अस्थिकलश थामे विमान से बाहर उतरी. जन्मदात्री के आंसू न रुकते थे. कैसे ढाढस बंधाए अपनी बेटी को शब्द और हिम्मत दोनों ही हार रहे थे. पलकों पर बैठाए रखने वाले पापा का बुरा हाल था. कैसे उन की मासूम बच्ची सात समंदर पार अकेली इतने बड़े संकट को झेल पाई. धिक्कार है पिता हो कर भी वे दुख की इस घड़ी में बेटी के साथ नहीं थे.

हवाई अड्डे से बाहर आते ही रोमी को मां-पापा दिखाई दिए. रणवीर के छोटे भाई कुंवर प्रताप ने दौड़ कर उस के हाथ से अस्थिकलश ले लिया तो रोमी के भाई ने नन्हीं परी को. रोमी दौड़ कर मां-पापा के सीने से लिपट गई.

आखिर इतने दिनों चट्टान बनी रोमी मातापिता के प्यार की आंच पा मोम की तरह पिघलती चली गई. आज अपनों को देख उस के दिल का सारा गुबार आंसू की धारा में बहने लगा.

‘‘मां.’’

‘‘हाय, मेरी बच्ची. कैसे इतनी दूर, अकेली, इतना बड़ा दुख सहती रही. हे प्रकृति, मेरी फूल सी बच्ची पर जरा भी रहम न किया. अरे, इस नन्हीं बच्ची ने क्या बिगाड़ा था किसी का जो होते ही सिर से बाप का साया तक छीन लिया.’’

उजड़ी मांग और जिंदगी के सारे रंग खो चुकी रोमी ससुराल पहुंची, तो सासुमां को निष्प्राण देख उस का जी भर आया. हवेली में रणवीर का क्रियाकर्म पूरे विधान से किया गया. ठकुराइन बिस्तर पर पड़ेपड़े कभी बहू की उजड़ी मांग को देखती तो कभी नन्हीं पोती को. बस, बहते आंसू ही उस की व्यथा कह पाते, और कर भी क्या सकती थी वह. अपने और परी के प्रति घर वालों का स्नेह देख रोमी को तसल्ली थी कि वह अपनी जमीन पर अपनों के बीच

लौट आई. अब भला विदेश जा कर वह क्या करेगी. वहां रणवीर के संग बीते पलों के और क्या रखा है? वे यादें तो उस के जीवन का अटूट हिस्सा हैं वह कहीं भी रहे, उस के साथ रहनी ही हैं. यहां रह कर वह रणवीर के परिवार का हिस्सा बनी रहेगी. बेटी को भी स्नेह की छांव मिलेगी. ठाकुरों की ठकुराई भले ही चली गई हो मगर आज भी रणवीर का परिवार गांव का ठाकुर कहलाता है. बड़े घर के नाम से सभी सम्मान करते हैं उस परिवार का. कम से कम एक सुरक्षा का हाथ तो उस के सिर पर रहेगा, उसे और क्या चाहिए. सोचा वह लिख देगी अपने मित्रों को कि उस की प्रौपर्टी सेल कर दें, अब वह लंदन नहीं आएगी.

अपनी ओर से रोमी पूरी कोशिश करती परिवार में घुलनेमिलने की. कुंवर प्रताप के बेटे को भी परी बहुत भाती. दोनों बच्चों के अबोध प्यार को देख रोमी को सुकून था. यह रिश्ता यों ही बना रहे, आखिर यही तो चाहती है वह. नीलू भी उस का बहुत मान करती. हर बात में जीजी ऐसा, जीजी वैसा… सवा महीना होते ही रोमी के मायके से दहलीज छुड़ाने की रस्म पूरी कराने उस के पिताजी आ पहुंचे. रोमी 8 दिन मायके में रह कर फिर ससुराल लौट आई. विदेश में रह कर भी वह नहीं भूली थी कि अब ससुराल ही उस का घर है, उस की निष्ठा अब उस घर के प्रति है. आखिर यही संस्कार तो पाए थे उस ने कि ससुराल ही लड़की का अपना घर होता है. देहरी छुड़ा कर लौटी रोमी ने महसूस किया कि घर के माहौल में कुछ परिवर्तन हुआ है. जाने क्यों अब उसे आसपास की हवा उतनी साफ नजर नहीं आ रही थी. कहीं कुछ घुटाघुटा सा लगता था. हवाओं में उलझे जाल नजर आते, कभी लगता वह जाल उसे ही उलझाने के लिए तैयार किया गया है तो वहीं दीवारों में कहीं कुछ दरार सी लगती, लगता कहीं कुछ है जो उस के खिलाफ पक रहा है.

ठाकुर साहब अब अकसर उस के सामने आने से कतराते. उन की बातों में अब वह अपनेपन का एहसास न होता. और कुंवर प्रताप… उस से तो उस की बातें वैसे भी कम ही हो पाती थीं. एक तो शादी के 15 दिन बाद ही लंदन के लिए रवाना हो गई थी. दूसरे, रणवीर के मुंह से सुन चुकी थी कि कुंवर प्रताप पर ठाकुरों वाला पूरा असर है. खैर, वक्त से बफादारी की उम्मीद तो वैसे भी नहीं थी. फिर भी मन को समझा रही थी कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.

एक शाम अचानक ठाकुर साहब बोले- ‘‘बेटा नीलू, मुझे तेरे मायके में कुछ काम है, कल तक लौट आऊंगा. चाह रहा था तू भी चल देती अपने मां-बापू से मिल लेती.’’नीलू, आखिर भोली, ठाकुरों की चाल भला क्या समझती. मां-बाप के स्नेह की डोर वैसे भी बड़ी रेशमी होती है.  नीलू मायके का लोभ संवरण न कर सकी. झट रोमी से बोली- ‘‘जीजी, सालभर हो गया मां-पापा से मिले, आप कहें तो मैं हो आऊं?’’

‘‘हां, हां, क्यों नहीं. एक दिन की ही तो बात है, मैं मैनेज कर लूंगी.’’ हमारे पुरुषप्रधान समाज ने यों ही नारी को छली कह बदनाम कर रखा है, जबकि एक पहलू यह भी है पुरुषों की कुटिलता की थाह के लिए पानी भी उतना ही दुर्लभ है.

रात रसोई के काम से निबट कर रोमी सासुमां के कमरे में परी के साथ लेटी थी कि कुंवर प्रताप के कराहने की आवाज सुनाई दी- ‘‘ओह, मर गया… मां लगता है अब नहीं बचूंगा…मेरा सिर जोरों से दर्द कर रहा है, कुछ मिल जाता लगाने को.’’

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