लेखक-संजय कुमार सिंह  

हर आदमी के सपने में एक लड़की होती है. कमोबेश खूबसूरत लड़की. वह उस की सघन कल्पना के बीच हमेशा चलतीफिरती है. हंसतीबोलती है.

नीना के प्रति मेरा आकर्षण चुंबक की तरह मुझे खींच रहा था. एक रोज मैं ने हंस कर सीधेसीधे उस से  कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता हूं."

वह ठहाका मार कर हंसी, ‘‘तुम बडे़ नादान हो रविजी. महानगर में प्यार मत करो, लुट जाओेगे."

‘‘मतलब...?‘‘ मैं चौंका.

‘‘अरे मिलोजुलो, दोस्ती रखो... हो गया,‘‘ उस ने अंदर की पछाड़ खाती लहरों को भुला कर कहा, ‘‘प्यार और शादी, इस पचड़े के बारे में सोचो भी नहीं,‘‘ एक झटके में उस ने भावनाओं के सुंदर गुलाब की पंखुड़ियों को नोंच कर फुटपाथ पर फेंक दिया. लोग कुचलते हुए चले गए. मुझे अपना अक्स अब मुंह चिढ़ाने लगा, ‘यह लड़की भी क्या चीज है.’

उस ने फिर कहीं दूर भटकते हुए कहा, ‘‘इस शहर में रहो, पर सपने मत देखो. छोटे लोगों के सपने यों ही जल जाते हैं. जिंदगी में सिर्फ राख और धुआं बचते हैं. सच तो यह है कि प्यार यहां जांघों के बीच से फिसल जाता है."

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‘‘कितना बेहूदा खयाल है नीना..."

‘‘किस का?"

‘‘तुम्हारा.." मैं ने तल्ख हो कर कहा, ‘‘और किस का?"

"यह मेरा खयाल है?" वह हैरान सी हुई, ‘‘तुम यही समझे...?"

"तो मेरा है?"

‘‘ओह..." उस ने दुखी हो कर कहा, ‘‘फिर भी मैं कह सकती हूं कि तुम कितने अच्छे हो... काश, मैं तुम्हें समझा पाती."

‘‘नहीं ही समझाओ, तो अच्छा," मैं ने उस से विदा लेते हुए कहा, ‘‘मैं समझ गया...‘‘ रास्तेभर तरहतरह के खयाल आते रहे. आखिरकार मैं ने तय किया कि सपने कितने भी हसीन हों, अगर आप बेदखल हो गए हों, तो उन हसरतों के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए.

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