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आजादी के बाद गांधीजी कुछ साल और जीते तो आज का भारत कैसा होता ?

गांधी जी की दिली ख्वाहिश थी कि वह सवा सौ साल तक जीयें.एक ऐसे दौर में जब पुरुषों की औसत आयु महज 40 साल थी,यह काफी बड़ी महत्वाकांक्षा समझी जा सकती थी.लेकिन इसे शेखचिल्ली की चाहत तो कतई नहीं कहा जा सकता था ; क्योंकि अस्वाभाविक मौत मरने के बाद भी वह औसत से लगभग दो गुना जीये. जनवरी 1948 में जब उनकी हत्या हुई वह 78 साल 3 महीने के थे.इसलिए अगर वह स्वाभाविक मौत करते तो यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वह कम से कम 10 साल तो और जीते ही.क्योंकि जब उनकी हत्या हुई उन दिनों वह भावनात्मक रूप से जरूर काफी आहत थे,इस कारण कमजोर भी काफी दिखते थे,लेकिन उन दिनों भी वह 5-5 दिनों का उपवास कर लेते थे,हर दिन 10-10 लोगों को चिट्ठियां लिखवा लेते थे.दिन में दर्जनों लोगों से बातें करते थे (शाम-सुबह की अपनी नियमित प्रार्थनाओं के बावजूद). इस सबसे पता चलता है कि गांधी उन दिनों शारीरिक और मानसिक, दोनों ही तरह से पूर्ण स्वस्थ थे.

लेकिन अगर एक मिनट को मान लें कि गांधी अपनी इच्छानुसार 125 साल तक जीते तो वह आजाद भारत में करीब 47 साल तक रहते.इस तरह वह नेहरू से लेकर नरसिंह राव तक की सरकारें देखते.वह आजाद भारत के 7 प्रधानमंत्रियों को देखते. मगर ऐसा हो न सका.आजाद भारत में वह 47 साल क्या 47 महीने भी न जी सके.वह आजाद भारत में महज 168 दिन तक ही जिंदा रहे. सवाल है अगर 47 साल न सही,आजाद भारत में गांधी महज 10 साल और जीते तो क्या आज का हिन्दुस्तान ऐसा ही होता जैसा की यह है ? न …बिलकुल ऐसा नहीं होता. सवाल है तब आज का भारत कैसा होता ? यानी वह मौजूदा हिन्दुस्तान से कैसे और कितना भिन्न होता ? इस अनुमान को अगर महज दो शब्दों में कहें तो तब आज का भारत ज्यादा और वास्तविक लोकतंत्र होता.तब हम सम्पन्न इतने भले न हुए होते लेकिन हमारी नागरिक चेतना बहुत सम्पन्न होती. अगर गांधीजी महज 1957-58 तक ही जी जाते तो आज जो तमाम समस्याएं भारत के लिए नासूर बनी हुई हैं, तब शायद इनमें से कई या कोई भी नहीं होती.

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आजादी के सात दशकों बाद भारत आज जिन समस्याओं से घिरा है वे हैं-गरीबी, भ्रष्टाचार, उजड़ते गांव,कश्मीर और ढीठ पाकिस्तान. गांधीजी ने अगस्त 1947 में ही घोषणा कर दी थी कि वह लाहौर जायेंगे, रावलपिंडी जायेंगे. क्योंकि 1946 में ही बंगाल, बिहार, पंजाब और सिंध भयानक साम्प्रदायिक हिंसा में डूब गए थे. इस कारण उनका जनवरी 1946 से लेकर जनवरी 1948 तक का ज्यादातर समय इस आग को बुझाने में ही खर्च हुआ. कभी नोआखाली, कभी कलकत्ता, कभी भागलपुर और कभी दिल्ली में वह साम्प्रदायिक आग ही बुझाते रहे.इसके अगले पड़ाव अमृतसर, लाहौर और रावलपिंडी थे.लेकिन दिल्ली ने उन्हें आगे नहीं जाने दिया.

गांधीजी सितम्बर 1947 में ही लाहौर जाना चाहते थे.लेकिन पहले बंगाल और बाद में दिल्ली की आग बुझाते हुए 1947 का पूरा साल गुजर गया. इसलिए उन्होंने 16 जनवरी 1948 के बाद पाकिस्तान जाना तय किया था.उन्होंने इस सम्बन्ध में जिन्ना को खत भी लिख दिया था और जिन्ना उनका इंतजार भी कर रहे थे.सवाल है उनके पाकिस्तान जाने से होता क्या ? ..और यह भी कि गांधीजी आखिर पाकिस्तान जाना ही क्यों चाहते थे ? दरअसल वह नहीं चाहते थे कि लोगों का इस किस्म से विस्थापन हो जिस तरह से भारत और पाकिस्तान से हो रहा था. गांधीजी भारत आये लाखों हिन्दुओं को अपने साथ लेकर पाकिस्तान जाना चाहते थे और उधर से वापसी में अपने साथ उन लाखों मुसलामानों को लेकर आना चाहते थे,जो हिंदुस्तान छोड़कर गए थे.वह इन अपनी अपनी जगह से उजड़े लोगों को फिर से उनकी जमीन में ही बसाना चाहते थे.उनके घर, उनकी जायदाद, वापस दिलवाना चाहते थे.

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पता नहीं यह होता या नहीं होता,लेकिन गांधी जी जिस तरह हर असंभव को संभव कर डालते थे,उससे अगर मान लें कि ऐसा हो जाता तो यह दुनिया के विस्थापन इतिहास की एक नई घटना होती. यह असंभव इसलिए नहीं था क्योंकि हम तमाम ऐतिहासिक बयानों और दस्तावेजों में देख सकते हैं कि गांधीजी का पाकिस्तान में सम्मान था.उन्होंने भारत से पाकिस्तान के हिस्से के 55 करोड़ रूपये दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया था.खुद की जिंदगी को दांव में लगाकर पाकिस्तान को यह रकम दिलवाई थी.इसलिए भी न केवल पाकिस्तान में बल्कि पूरी इस्लामिक दुनिया में गांधीजी का कद बहुत बड़ा हो गया था.इस कद की पृष्ठभूमि में लगता है पाकिस्तान उनकी बात मान लेता.अगर शरणार्थियों की अपने-अपने देश वापसी हो जाती तो बंटवारा लगभग बेमतलब हो जाता.क्योंकि तब दोनों ही देशों में दोनों समुदाय के लोग होते.तब पाकिस्तान आज की तरह न तो कट्टर इस्लामिक देश बनता और न ही भारत में हिंदुओं के ध्रुवीकरण की कोशिश होती.

यह असंभव इसलिए नहीं लगता क्योंकि आखिरकार उन्होंने इस असम्भव से लगने वाले फार्मूले को नोआखाली में प्रयोग किया था.वहां मुसलमानों ने तमाम हिन्दुओं के जलाए गए मकान और पूजास्थल अपने हाथों से बनाये थे,इसी तरह हिन्दुओं ने भी तमाम मस्जिदों को अपने श्रम और पैसे से बनवाया था. इसलिए अगर गांधीजी आजादी के कुछ सालों बाद तक जिंदा रहते तो भारत-पाकिस्तान दो दुश्मन देशों के रूप में उभर ही नहीं सकते थे. उनके रहते पाकिस्तान और भारत दो देश होते हुए भी एक ढीले ढाले संघ में बदल जाते और वह दोनों देशों में बारी बारी से रहते.क्योंकि उन्होंने कभी भी भारत को अपना और पाकिस्तान को पराया देश नहीं माना था. वह हमेशा दोनों देशों को अपनी दो आंखों जैसा समझते थे.

अगर गांधीजी 1957-58 तक भी जिंदा रहते तो गांवों की वह दुर्दशा नहीं होती जो आज दिख रही है. गांधीजी का समूचा आर्थिक दर्शन गांवों को आत्मनिर्भर ईकाई के रूप में विकसित करना था,जबकि आजादी के बाद जो योजना आयोग बना वह महानगरीय ढांचे वाले औद्योगिक विकास के सपने को समर्पित था. वास्तव में यह नेहरू जी के सपनों के भारत की रूपरेखा को मूर्त रूप देने के लिए था.जाहिर है उसमें नगर केन्द्रित यूरोपीय मॉडल को ज्यादा तरजीह दी गयी थी. लेकिन जिद्दी बुड्ढा गांधी जिंदा होता तो गांवों से इस तरह अनाथों वाला सलूक नहीं होने पाता. तब हमारा औद्योगिक सपना कुटीर और हाथ उद्योग से खाद पानी हासिल करता. नतीजे में आज खुशहाल गांवों वाला भारत होता.इस तरह अगर आजादी के बाद एक दशक तक गांधी जीते तो यह संभव था कि आज देश में उतने करोड़पति नहीं होते जितने हैं. लेकिन तब निश्चित रूप से देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले इतने लोग भी नहीं होते जितने आज हैं. भारत में अमीरी और गरीबी में इतना अंतर नहीं होता.

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आजाद भारत में कम से कम 10 साल गांधी और रहते तो हम नैतिक रूप से एक मजबूत समाज होते. भ्रष्टाचार को तब हम बेशर्म होकर गले नहीं लगा रहे होते जैसा कि इन दिनों कर रहे हैं. ऐसा इसलिए होता क्योंकि तब सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की इतनी खातिर नहीं हुई होती.गांधीजी ने भारत के आजाद होने के बाद कांग्रेस के भंग किये जाने की वकालत की थी,यह बात तो बहुत लोग जानते हैं.लेकिन शायद बहुत लोग उनके यह कहने की पृष्ठभूमि न जानते हों. दरअसल इसकी तात्कालिक वजह यह थी कि उन्हें तमिलनाडु के एक व्यक्ति कोंडी वेंकटप्पैय्या ने पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि वहां कांग्रेस का स्थानीय विधायक न्याय के साथ बेईमानी कर रहा है और इससे कमाई कर रहा है.

इस सूचना से गांधीजी के कान खड़े हुए थे और उन्होंने तुरंत सरदार पटेल तथा नेहरू को बकायदा बुलाकर कांग्रेस को भंग किये जाने का मशवरा दिया था, जो सरदार पटेल को बुरा भी लगा था.लेकिन अगर गांधीजी जिंदा रहते तो कांग्रेस को भंग होना ही पड़ता क्योंकि कोई और नहीं करता तो वह खुद ही इसकी सार्वजनिक घोषणा कर देते.ऐसे में नेहरू पटेल जैसे नेता उनके साथ आ जाते और मोरारजी देसाई व श्यामाप्रसाद मुखर्जी जैसे कांग्रेसी दूसरा खेमा बना लेते.इससे कांग्रेस इतनी मजबूत नहीं रह पाती कि आजादी के बाद कई दशकों तक लगातार शासन में रहती याकि देश में इमरजेंसी लगा सकती. सिर्फ देश के स्तर पर ही नहीं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गांधीजी के जिंदा होने से बहुत फर्क पड़ता.सन 1950-51 में कोरिया को जिस तरह अमरीका की दादागीरी झेलनी पडी,वैसा नहीं होता.हैरी एस ट्रूमैन गांधीजी की इज्जत करते थे,गांधीजी उन्हें पत्र लिखते और कोरिया को युद्ध की विभीषिका नहीं झेलनी पड़ती. गांधीजी के जिंदा रहने से यूरोपीय युवा विश्वयुद्ध के बाद साठ के दशक में उतने अवसाद से नहीं गुजरते जितने अवसाद से वे गुजरे. क्योंकि तब नैतिकता, अहिंसा और शान्ति की जिंदा मिसाल के रूप में दुनिया में गांधी मौजूद होते. …और सबसे बड़ी बात यह होती कि हम आत्मविश्वास से भरे भारतीय होते जिसके कारण हमारा नागरिक बोध, हमारी नागरिक चेतना और हमारी नागरिक आजादी बहुत मजबूत होती.

श्रीदेवी की फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से है प्रेरित सीरियल ‘‘तेरा मेरा साथ रहे’’का प्रोमो

हमारे देश में सिनेमा जगत हो या टीवी जगत.हर किसी को मौलिकता की बजाय नकल करने में और फिर उसका ढिंढोरा पीटने में कुछ ज्यादा ही मजा आता है.अब 16 अगस्त से ‘‘स्टार भारत’’पर हर सोवार से शुक्रवार रात साढ़े आठ बजे एक नए सीरियल ‘‘तेरा मेरा साथ रहे’’का प्रसारण शुरू होने वाला है.जिसके लिए चैनल की तरफ से धुंआधर प्रचार किया जा रहा है.इसका प्रोमो दर्शक काफी पसंद कर रहे हैं.यह सीरियल गोपिका (जिया माणिक )की कहानी है.जहाँ  वह अपनी  जीवन  यात्रा के माध्यम से अपने गुरु को किस तरह से ढूंढती है.यही बात प्रोमो से उजागर होती है.

मगर सीरियल‘‘तेरा मेरा साथ रहे’’ का प्रोमो तैयार करने में इसके निर्माताओं ने मौलिक काम नहीं किया,बल्कि सीरियल का प्रोमो और पोस्टर दिवंगत आइकॉनिक बौलीवुड सुपर स्टार श्रीदेवी और उनकी सफलतम फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से प्रेरणा लेकर या यों

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कहें कि नकल कर  के ही बनाया गया है.सीरियल का प्रोमो अपनी नाटकीयता के आधार पर दर्शकों को कई संकेत भी देता है.फिल्म‘‘इंग्लिश विंग्लिश ’में श्रीदेवी द्वारा निभाया गया किरदार शशि गोडबोले अपने परिवार के समर्थन के बिना विदेश में खुद का अस्तित्व स्थापित करते हुए खुद को साबित करती हैं.
सीरियल ‘‘तेरा मेरा साथ रहे’’ में गोपिका(जिया माणिक )की भी यात्रा लगभग फिल्म‘इंग्लिश विंग्लिश’की शशिगोडबोले’की ही तरह नजर आने वाली है.लेकिन उनकी इस यात्रा में उनके साथ उनकी गुरु यानी उनकी होने वाली सास मिथिला(रूपल पटेल )भी जुड़ी हैं.

जब श्री देवी द्वारा अभिनीत फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश‘ से प्रेरित प्रोमो को लेकर रूपल पटेल से बात की गयी,तो रूपल पटेल ने कहा- ‘‘बात नकल की नही है.देखिए,कोई भी शख्स इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि श्रीदेवी भारतीय सिनेमा की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में से एक थीं.

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उनकी कुछ फिल्में हम सभी कलाकारों को प्रेरित करती हैं और अच्छे विचार,उसके पीछे की अच्छी सोच के साथ ही उससे जुड़े विश्वास से सही प्रेरणा लेने में कोई बुराई नहीं है. हमारे सीरियल‘तेरा मेरा साथ रहे’ का प्रोमो बताता है कि अंग्रेजी सिर्फ एक भाषा है न कि किसी की बुद्धिमत्ता या क्षमता नापने का कोई पैमाना.यह प्रोमो सभी के चेहरे पर न सिर्फ मुस्कान लाता ,बल्कि उन मानवीय भावनाओं को सामने लाता है,

जिनसे हर भारतीय अपनी पहचान बना सकता है और इंसान के दिमाग में कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़ देता है.एक बहुत अच्छा विचार है कि भाषा और मानसिकता एक बाधा हो सकती है, लेकिन यह सब कुछ नहीं है.‘‘

Barrister Babu : बोंदिता को किडनैप करेगा अनिरुद्ध, हवेली में होगा हंगामा

कलर्स टीवी के जाने माने सीरियल बैरिस्टर बाबू में इन दिनों नया मोड़ आ गया है, जबसे लोगों को बोंदिता कि सच्चाई का पता चला है.  बोंदिता ने अनिरुद्ध की जिंदगी में दूबारा कदम रखा है कुछ न कुछ अनहोनी हो रही है.

अभी तक के एपिसोड में आपने देखा होगा कि पंचायत में बोंदिता इस बात को मान लेती है कि वह एक जासूस है. जिसके बाद पंचायत यह सजा सुनाता है कि बोंदिता को संन्यास लेकर काशी जाना होगा. बोंदिता जाने के लिए जैसे ही घर से बाहर निकलती है लोग उसके ऊपर कांच के टुकड़े फेंकने शुरू कर देते हैं.

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बोंदिता का दर्द देखकर अनिरुद्ध को रहा नहीं जाता है, वह उसकी मदद करने की कोशिश करता है. वहीं बोंदिता को बचाने के चक्कर में अनिरुद्ध के हाथ में घाव लग जाता है. जिसके बाद से अनिरुद्ध बोंदिता को इन सभी चीजों से बचाने के लिए एक प्लानिंग करता है.

वहीं तभी अनिरुद्ध को पता चलता है कि राय ठाकुर बोंदिता का मुंह बंद करना चाहता है इसलिए ये सब प्लान कर रहा है. राय ठाकुर अपनी नौकरानी को आदेश देगा कि वह बोंदिता का जबान जला दे.

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अनिरुद्ध ठाकुर की चोरी पकड़ लेगा और बिहारी के साथ मिलकर एक प्लान बनाएगा कि  बोंदिता के खीर में नशे की गोली डाल दें, जिसके बाद बोंदिता को वह किडनैप करके लेकर भाग जाएगा.

जैसे ही अनिरुद्ध रास्ते में बोंदिता के बारे में सोचते हुए उसे बंधे हुए दुुप्पटे से हटाने की कोशिश करेगा, जैसे ही वह दुपट्टा हटाएगा उसे सदमा लगेगा. अब आगे कि कहानी में देखेंगे कि  आखिर अनिरुद्ध के साथ क्या होगा.

Sasural Simar ka 2 : गगन को मारने की धमकी देंगी माता जी , जानें क्या होगा सिमर का रिएक्शन

कलर्स टीवी के जाने माने सीरियल ससुराल सिमर का 2 में अब एक और नया ड्रामा देखने को मिल रहा है जिससे सिमर की मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है. जिसमें उसे अपने पति आरव का साथ मिलता है.

दरअसल, सिमर का भाई गगन और सिमर की ननद आदिति एक दूसरे को पसंद करते हैं, ऐसे में गगन सिमर को लेकर भाग जाता है. जिसके बाद जब पूरे घर में आदिति मिलती नहीं हैं तो माता जी को शक गगन पर जाता है.

माता जी सिमर के सामने कहती हैं कि अगर गगन सामने मिल गया तो उसे जान से मार देंगी, ऐसे में सिमर अपने भाई को लेकर काफी ज्यादा डर जाती है. वहीं दूसरी तरफ पति आरव कहता है कि गगन को कुछ नहीं होने देगा, ये उसका वादा है.

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जिसके बाद आरव और सिमर गगन और आदिति के तलाश में निकल जाते हैं, तो माता जी यामिनी देवी से मिलने पहुंच जाती हैं. वहीं पहुंचकर माता जी यामिनी देवी को दूर से ही सलाह देती हैं. तभी माता जी को पता चलता है कि गगन और आदिति किसी मंदिर में शादी करने वाले हैं.

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माता जी का आदमी उन्हें मंदिर में देख लेता है और इसकी जानकारी माता जी को दे देता है. जैसे ही इस बात की जानकारी माता जी को लगती है उनका खून खौलने लगता है. वह परेशान हो जाती है कि और आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि माता की गजेंद्र को फरमान सुनाएंगी कि वह उन्हें जहां भी देखा है वहीं खत्म कर दें.

वहीं आरव और सिमर दोनों की तलाश में निकल चुके हैं , जहां रास्ते में वह तेज बारिश में फंस जाएंगे, और उन्हें अपनी रात एक झोपड़ी में बितानी पड़ेगी.

अब देखना यह है कि कैसे सिमर अपने भाई की जान बचाएंगी.

तो ये है शर्मीलेपन का रहस्य

बाडाइन कौलेज या विशिष्ट भारतीय उच्चारण में ‘बाउडिन कालेज’ का हो सकता है, बहुत से भारतीयों ने नाम न सुना हो.क्योंकि शायद अमेरिका के इस विशिष्ट कौलेज में आज तक एक भी भारतीय पढ़ने नहीं गया. बहरहाल यह अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रांत [ब्रंसविक,मेन में] में स्थित एक निजी उदार कला महाविद्यालय है. इस मायने में यह दुनिया भर में विशिष्ट कौलेज माना जाता है ; क्योंकि इसमें कला, विज्ञान और मानविकी जैसे विषयों को एक साथ पढ़ाया जाता है. सबसे ख़ास बात यह कि 1794 से मौजूद और 2017 में अमेरिका के 1201 निजी आर्ट्स कोलेजों में, अव्वल रहने वाले इस कौलेज में बेहद अलग किस्म के अनुसंधान होते हैं. कुछ सालों पहले इसी कालेज ने अपने लंबे और बेहद खास अनुसंधान से यह उजागर किया है कि आखिर शर्मोहया का विज्ञान और मनोविज्ञान क्या होता है.

दरअसल शर्मीलेपन की बुनियाद अपरिचितों से भी झिझकने और किसी भी किस्म की उपस्थिति से छिपने या बचने की कोशिश में परिलक्षित होती है.वैज्ञानिकों के मुताबिक शर्मीलेपन के रहस्य का बीज यही है.शर्मीलेपन लोग भीड़ में दूसरों से अलग दिखते हैं.

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  • उन्हें किसी से भी आंखे मिलाने में दिक्कत होती है.
  • उनके कंधे झुके हुए होते हैं.
  • उनका पूरा शरीर सिकुड़ा-सिकुड़ा सा होता है.
  • वे बैठने के लिए पीछे की कुर्सी या कोई अँधेरा कोना तलाशते हैं.
  • वे आपकी कोई भी बात मान सकते हैं ताकि बहस से बचा जा सके.
  • शर्मीले लोगों को पहचानना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं होता.

वास्तव में शर्मीलापन एक ऐसी अवस्था है जो देखने वाले के लिए तो कष्टदायी होती ही है,इसका अनुभव और भी ज्यादा कष्टदायी होता है. इससे भी बढ़कर उत्तरजीविता की दृष्टि से इसका स्पष्टीकरण बमुश्किल ही संभव है. कुल मिलाकर शर्मीले लोग या शर्मीलापन आपको यह सोचने को प्रेरित करता है कि भूल जाइये कि ‘मैं हूं भी’ बनिस्बत इसके कि वह यह जतायें कि ‘मैं हूं न’. द पेंग्विन डिक्शनरी ऑफ़ साइकोलौजी के मुताबिक ‘शर्मीलापन, दूसरों की उपस्थिति में असहज महसूस करना है जो तीव्र स्व-बोध से पैदा होता है.’ ऐसा सकारात्मक एवं नकारात्मक स्व-बोध के एक साथ पैदा होने से होता है.

कुछ वैज्ञानिक भले ही इसे सामान्य मानें परंतु अपने इस व्यवहार के प्रति बेहद चिंतित लोग इसके कारण परेशान ही रहते हैं. यह शोधकर्ताओं हेतु इस परिघटना की पड़ताल के पीछे एक कारण भी बनता है. सवाल है-

  • कई बहुत छोटे बच्चों में से आगे चलकर कौन शर्मीला बनेगा और कौन नहीं,आखिर इसका निर्धारण कैसे किया जा सकता है?
  • इस समस्या यानी शर्मीलेपन से मुक्ति पाने का आखिर विकल्प क्या है ?
  • वैसे क्या शर्मीलापन वास्तव में कोई समस्या है, जिस पर माथापच्ची की जाए?
  • …और यह भी कि क्या बहिर्मुखी लोगों के मुकाबले ये शर्मीले अंतमुर्खियों को क्या इसका कुछ लाभ भी मिलता है ?

इन तमाम सवालों के जवाब बाउडिन कालेज के शोध वैज्ञानिकों ने खोजे हैं. उनके निष्कर्ष सबसे पहले तो यह बात कहते हैं कि यह समझ लेना बेहतर होगा कि शर्मीलापन मात्र साधारण अंतर्मुखी होना नहीं है, जैसे कि छुट्टी से पहले की शाम-रात को पार्टीबाजी करने के बजाए कोई छात्र घर पर रहकर पढ़ना चाहता है. अगर ऐसा है तो जरूरी नहीं कि उसे शर्मीला माना जाए. मगर हां, यदि वह अजनबियों के साथ होने की संभावना से ही तनावग्रस्त हो जाता है और पार्टी में नहीं जाता है तो यह सामान्य से अधिक है. ऐसा मानना है हार्वर्ड विश्वविद्यालय के जेरोग कागान का.

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शर्मीलेपन को लेकर बाउडिन शोध के निष्कर्ष कुछ इस प्रकार हैं-

  • लगभग सभी शर्मीले अंतर्मुखी होते हैं परंतु जरूरी नहीं कि सभी अंतर्मुखी शर्मीले भी हों. इस सबके बावजूद शर्मीलों की संख्या कम नहीं है.
  • दुनिया के लगभग 30 प्रतिशत लोग शर्मीले हैं या इनमें किसी स्तर का शर्मीलापन होता है.
  • शोध के मुताबिक़ चूंकि अधिकतर लोग अपनी इस अवस्था में स्पष्ट नहीं होते हैं इसलिए वह खुद को शर्मीला मानने को राजी नहीं होते हैं.इसे यूँ भी कह सकते हैं कि शायद उन्हें पता ही नहीं होता है.सवाल है क्या ऐसे बच्चों के माँ-बाप को उन पर इससे छुटकारा पाने का दबाव डालना चाहिए ?
  • बाउडिन शोध के मुखिया पुरमान के मुताबिक शर्मीले बच्चे अपनी भावनाओं को अंतःकरण में समेटे रहते हैं, जिससे उनके आगे चलकर अवसाद एवं चिंता से ग्रस्त होने के आसार बढ़ जाते हैं.
  • यही नहीं, शर्मीले बच्चों को तरह तरह के सामाजिक भय (फोबिया) से पीड़ित होने की आशंका अधिक होती है.

एक और शोध अध्ययन के मुताबिक गैरशर्मीले एचआईवी पाजिटिव लोग विषाणु भार के बावजूद शर्मीलों के मुकाबले आठ गुना अधिक जीए. इस अध्ययन यानी यूसीएलए की डॉ. पैली रैगीना की माता-पिता को सलाह है कि वह बच्चों के चिंतातुर होने को बुरा बताने से गुरेज करें. क्योंकि अभी तक शर्मीलेपन के शोध के जो निष्कर्ष सामने आये हैं उसके मुताबिक, शर्मीलापन और कुछ नहीं सिर्फ एक मानवीय फर्क है.यह एक ऐसी भिन्नता है जो अलग प्रकार की समृद्धि का द्योतक हो सकता है.

एक बड़े काम की बात

महावीर, बुद्ध, नानक, कबीर, अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला तथा टी एस इलियट सभी बचपन में असाधारण रूप से खुद तक सीमित रहते थे या शर्मीले थे.यदि वह ऐसे नहीं होते तो शायद आज वह, वह नहीं होते जिनके रूप में वह आज जाने जाते हैं.

Manohar Kahaniya : प्रेमी की जलसमाधि

लेखक- श मो. आसिफ ‘कमल’ एडवोकेट 

9 जून, 2021 की बात है. उत्तर प्रदेश के चंदौसी शहर का रहने वाला इस्तफर खान अपने मोहल्ले के कुछ लोगों को साथ ले कर शहर की कोतवाली पहुंचा. उस ने कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा से मुलाकात कर बताया, ‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान पिछले महीने की 19 तारीख से गायब है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है.’’ ‘‘क्या..? वह 19 मई से गायब है और पुलिस के पास 20 दिन बाद आए हो? इतने दिनों तक कहां थे?’’ कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने हैरानी से पूछा.

‘‘साहब, हम सब घर वाले अपने स्तर से उसे तलाश कर रहे थे. हम ने उसे सभी जगह पर ढूंढा मगर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा है.’’ कहते हुए इस्तफर की आंखों में आंसू छलक आए. ‘‘कितनी उम्र है तुम्हारे बेटे की और वह क्या करता है? वह गायब कैसे हुआ? सब विस्तार से बताओ.’’ कोतवाल ने कहा.

‘‘साहब, मेरा बेटा फहीम खान शादीश्ुदा है, उस के 2 बच्चे भी हैं. वह मकानों और कोठियों में रंगाईपुताई का काम ठेके पर लेता है. दूसरे शहरों में भी उस का ठेका चलता रहता है. 19 मई, 2021 को वह काम के सिलसिले में अलीगढ़ गया था. वह जब कभी बाहर जाता था तो अपनी बीवी और घर वालों से फोन पर बात करता रहता था. लेकिन उस के जाने के एकदो दिनों तक फोन नहीं आया तो हम ने उस का नंबर मिलाया. उस का फोन बंद आ रहा था. तब से आज तक उस का फोन बंद ही आ रहा है.

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‘‘इस से हम लोगों की चिंता बढ़ गई. अलीगढ़ में उस का काम कहां चल रहा था, यह तो हमें पता नहीं. फिर भी हम ने अपने स्तर से उसे सभी जगह ढूंढा. जब कहीं नहीं मिला तो हुजूर हम आप के पास आए हैं. आप उस का पता लगा दीजिए.’’ रोआंसे हो कर हाथ जोड़ते हुए इस्तफर गिड़गिड़ाया. ‘‘देखिए, आप ने थाने आने में बहुत देर कर दी. फिर भी हम उस के बारे में पता लगाने की कोशिश करेंगे. आप बेटे का एक फोटो और तहरीर लिख कर दे दीजिए. चिंता मत करो, पुलिस जल्द ही उस की खोजबीन
कर लेगी.’’

इस के बाद इस्तफर ने लिख कर लाई हुई तहरीर और बेटे का फोटो कोतवाल साहब को दे दिया. इस के आधार पर फहीम खान की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी.

गुमशुदगी दर्ज होने के बाद कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने जांच चौकी इंचार्ज एसआई उमेंद्र मलिक को सौंप दी. वह अपनी टीम के साथ गुमशुदा फहीम की तलाश में जुट गए. पुलिस ने फहीम खान का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया. उस के फोन की अंतिम लोकेशन अलीगढ़ की मिली. जिस इलाके की लोकेशन मिली थी, पुलिस टीम ने अलीगढ़ पहुंच कर उस इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. कोतवाल देवेंद्र कुमार शर्मा ने फहीम के बारे में जांच कराई तो पता चला कि वह आशिकमिजाज व्यक्ति था. तब उन्होंने इसी दिशा में जांच करने के निर्देश एसआई उमेंद्र मलिक को दिए.

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शाहिदा से चल रहा था चक्कर

इंसपेक्टर की लाइन पर काम करते हुए चौकी इंचार्ज उमेंद्र मलिक ने जांच शुरू की. चौकी इंचार्ज को जानकारी मिली कि फहीम का रामपुर जिले के पटवाई गांव की शाहिदा के साथ चक्कर चल रहा था.
फहीम की शाहिदा से मुलाकात उस की एक परिचित अफसाना ने कराई थी. अफसाना अलीगढ़ के फिरदौस नगर की रहने वाली थी और उस का निकाह सलीम उर्फ शंभू से हुआ था. सलीम फिरदौस नगर में ही अफसाना के साथ किराए पर रहता था. वह फहीम के घर भी आतीजाती थी. यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम एक बार फिर अलीगढ़ पहुंची और सलीम व उस की पत्नी अफसाना को पूछताछ के लिए चंदौसी ले आई.

पुलिस ने उन दोनों से फहीम के बारे में पूछा तो वे अनभिज्ञता जताने लगे कि सलीम को जानते ही नहीं हैं, लेकिन जब उन से सख्ती की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि फहीम इस वक्त दुनिया में नहीं है. हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश हरदुआगंज की नहर में फेंक दी थी. हत्या की खबर सुनते ही पुलिस भी चौंक गई. पुलिस को फहीम की लाश बरामद करनी थी इसलिए उन दोनों को साथ ले कर हरदुआगंज में नहर के ऊपर बने पुल पर पहुंची. वहीं से उन्होंने उस की लाश नहर में फेंकी थी.

पुलिस ने गोताखोरों की मदद से जाल डलवा कर वहां लाश की खोजबीन कराई, लेकिन सफलता नहीं मिली. तब पुलिस ने उस क्षेत्र के थानों में संपर्क कर किसी पुरुष की लावारिस लाश बरामद करने के बारे में पूछा. तब वहां के थानाप्रभारी ने बताया कि 28 मई को नहर के किनारे से 2 लाशें बरामद हुई थीं, जिन का अंतिम संस्कार भी कर दिया था. दोनों के कपड़े पुलिस के पास सुरक्षित रखे थे. पुलिस ने वे कपड़े फहीम खान के घर वालों को दिखाए. इतने दिनों में कपड़ों की हालत भी खराब हो चुकी थी, लेकिन फहीम खान की पत्नी ने पेंट पहचान ली. क्योंकि उस ने पति फहीम की टाइट पेंट उधेड़ कर ढीली की थी.

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इस के बाद पुलिस ने अफसाना की निशानदेही पर हत्या में शामिल उस की सहेली शाहिदा और उस के भाई जीशान को भी गिरफ्तार कर लिया. इन चारों से पूछताछ करने के बाद फहीम की हत्या के पीछे की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी— उत्तर प्रदेश के सुप्रसिद्ध जनपद पीतल नगरी मुरादाबाद से सटा जिला संभल है. चांदी के वर्क बनाने के आवा, मेंथा, तंबाकू और आलू की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही सींग व हड्डी से कंघी, बटन व अन्य शोपीस के कारोबार से संभल की पहचान भी दूरदूर तक हो गई है.

संभल से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर एक शहर जैसा तहसील मुख्यालय चंदौसी है. चंदौसी के सीकरी गेट मोहल्ले में स्थित पुलिस चौकी के बगल में ही इस्तफर खान का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे थे. तसव्वुर खान, फहीम खान और वसीम खान का विवाह हो चुका था. जबकि चौथा बेटा सलीम खान अविवाहित था. बेटों के अलावा इस्तफर की 4 बेटियां भी थीं, जिस में से एक की मृत्यु हो चुकी थी. फहीम खान रंगाईपुताई का ठेकेदार था.

मजार पर हुई थी मुलाकात

फहीम का अलीगढ़ में भी ठेके का काम चल रहा था. वहीं पर उस की एक दिन क्वारसी क्षेत्र के फिरदौस नगर के रहने वाले सलीम उर्फ शंभू से मुलाकात हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई. इस के बाद सलीम और उस की पत्नी अफसाना का फहीम के घर आनाजाना शुरू हो गया. एक तरह से दोनों के पारिवारिक संबंध हो गए थे. धार्मिक विचारों का फहीम बदायूं में स्थित नामी मजार पर जाता रहता था. इन्हें छोटे सरकार और बड़े सरकार के नाम से जाना जाता है. एक बार अफसाना भी उस के साथ थी. मजार पर अफसाना की सहेली शाहिदा भी मिल गई. शाहिदा अफसाना की सहेली थी, जो रामपुर जिले के गांव हाजीनगर में रहती थी.

यह साल 2013 की बात है. शाहिदा की मां भी बदायूं शरीफ में अकसर आती थीं और कईकई दिन वहां रुकती थीं. इन के 3 बेटे और 3 ही बेटियां हैं. रजिया, नाजिया व शाहिदा तथा भाई जीशान भी मां के साथ बदायूं आताजाता रहता था. शाहिदा अफसाना की सहेली बन गई थी. फहीम पहली मुलाकात में ही शाहिदा को अपने दिल में बसा चुका था. बाद में इन दोनों की फोन पर बातें होने लगीं. इन के बीच हुई दोस्ती प्यार में बदल चुकी थी. फहीम शाहिदा के ऊपर खूब पैसे खर्च करता था. क्योंकि उस समय तक वह अविवाहित था.

मिलते रहे छिपछिप कर

दोनों ही जिंदगी साथ गुजारने और भविष्य के सुनहरे सपनों का तानाबाना बुनते रहते. एक दिन फहीम खान की बांहों में समाई शाहिदा ने कहा कि हम कब तक ऐसे छिपछिप कर मिलते रहेंगे, जल्दी शादी करो और मुझे अपने घर ले चलो. इस पर फहीम ने कहा, ‘‘अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा. मैं ने सऊदी अरब जाने की योजना बना ली है और वहां नौकरी मिल गई है. वहां से खूब सारा पैसा कमा कर लाऊंगा, फिर दोनों अपने अलग घर में आराम से जिंदगी गुजारेंगे.’’ उसी दौरान फहीम सऊदी अरब चला गया. वह कई साल बाद वहां से लौटा तो काफी उपहार अपनी प्रेमिका शाहिदा को भी ला कर दिए.

एक दिन प्रेमीप्रेमिका दोनों अपने भविष्य का तानाबाना बुन रहे थे तभी शाहिदा के मोबाइल की घंटी बजी. फोन फहीम खान ने रिसीव किया. काल करने वाले की बात फहीम के कानों में जैसे जहर घोल गई. वह बोला, ‘‘कैसी हो मेरी जान? मैं ने कल भी काल की थी, लेकिन रिसीव नहीं की. कोई परेशानी हो तो बताओ, गुलाम तुरंत हाजिर होगा.’’फहीम कुछ देर तक चुपचाप उस की बातें सुनता रहा. फिर फोन करने वाले को उस ने गालियां दीं तो उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

इस के बाद तो फहीम को गुस्सा आ गया. वह सोचने लगा कि कौन है, जो उस की प्रेमिका से इस तरह बात कर रहा था. कहीं ऐसा तो नहीं कि शाहिदा का ही प्रेमी हो.फहीम ने इस बारे में शाहिदा से पूछताछ की तो उलटे शाहिदा फहीम से लड़ने के लिए तैयार हो गई. दोनों ओर से बात बढ़ गई तभी शाहिदा अपना आपा खो बैठी और फहीम खान पर हाथ उठा दिया, जिस से नाराज हो कर फहीम ने भी शाहिदा की जम कर पिटाई कर डाली.

अब फहीम ने तय कर लिया कि वह यह पता लगा कर रहेगा कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है या नहीं. कुछ दिनों में फहीम ने जानकारी निकाल ली कि शाहिदा का किसी से चक्कर चल रहा है. प्रेमिका शाहिदा किसी और युवक से प्रेम करने लगी है. शाहिदा की इस बेवफाई से फहीम खान को गहरा आघात लगा. इसी बात से दोनों के बीच ऐसी दरार पड़ी कि संबंधविच्छेद हो गए.

फहीम खान खोयाखोया सा रहने लगा. उस के दिल टूटने का एहसास परिजनों को हुआ तो उन्होंने फहीम खान का विवाह बरेली शहर में कर दिया. यह बात करीब 4 साल पहले की है. अब उस के 2 बच्चे भी हैं.
उधर शाहिदा से उस के दूसरे प्रेमी ने कई साल रिलेशनशिप रखी. दोनों छिपछिप कर मिलते रहे, लेकिन अंत शाहिदा के अनुमान के विपरीत निकला. दूसरे प्रेमी ने उस से शादी से साफ इनकार कर दिया. इस से शाहिदा के दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगे.

रोरो कर शाहिदा का जीवन गुजरने लगा. परिजनों से भी उस का हाल देखा नहीं जाता था. शाहिदा ने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन परिजनों की कड़ी निगरानी के कारण सफल न हो सकी.
शाहिदा को अपने पहले प्रेमी फहीम खान की याद सताने लगी, लेकिन फहीम खान का मोबाइल नंबर उस के पास नहीं था. शाहिदा ने अपनी सहेली अफसाना से फहीम खान का मोबाइल नंबर लिया. शाहिदा से संबंध टूटने के बाद फहीम खान ने अपना नंबर बदल लिया था. उस का अफसाना से फोन से बातचीत व मेलजोल बरकरार था. अफसाना से फहीम का फोन नंबर ले कर एक दिन शाहिदा ने फहीम खान को फोन किया और मिलने की गुजारिश की. फहीम ने सोचा कि पुरानी घटना के जख्म माफी तलाफी से धुल जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि बाद में उन दोनों के बीच तल्खी और बढ़ गई.

और ज्यादा खराब हो गए संबंध

फहीम खान उस के फोन करने से और भी ज्यादा आक्रामक हो गया. दोनों में फोन पर जम कर नोकझोंक होती रहती. यह बात शाहिदा के भाई जीशान को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा कि फहीम की वजह से ही उस की बहन दुखी है. लिहाजा उस ने अफसाना से बात कर के फहीम खान को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. योजना के तहत अफसाना से फोन करा कर फहीम खान को 19 मई, 2021 को अलीगढ़ बुला लिया. उसी रात उसे खाने में नशीला पदार्थ खिलाया.

बेहोश हो जाने पर अफसाना व उस के पति सलीम उर्फ शंभू तथा जीशान और उस की बहन शाहिदा ने फहीम को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. वे उसे हरदुआगंज क्षेत्र में स्थित नहर के बरेठा पुल पर ले गए और उस के शरीर से भारी पत्थर बांध कर नहर में जिंदा ही फेंक दिया. पानी में डूब जाने से फहीम की मौत हो गई. चारों अभियुक्तों के गिरफ्तार हो जाने के बाद एसपी चक्रेश मिश्रा ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर इस मामले का खुलासा किया.

इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी शाहिदा, उस के भाई जीशान, सहेली अफसाना और उस के पति सलीम उर्फ शंभू को गिरफ्तार कर 23 जून, 2021 को न्यायालय के समक्ष पेश किया. वहां से उन्हें जेल भेज दिया गया

Family Story in Hindi : जिंदगी की उजली भोर – भाग 3

‘‘एमबीए के बाद मुझे अहमदाबाद में अच्छी नौकरी मिल गई. अकसर गांव चला जाता. एक बार मैं ने रोशनी में बड़ा फर्क देखा, वह खूब हंसती, मुसकराती, गुनगुनाती, जैसे घर में रौनक उतर आई. पापा भी खूब खुश दिखते. फिर मैं 3-4 माह गांव न जा सका. फिर तुम से शादी तय हो गई. मैं शादी के लिए गांव गया. पर बहुत सन्नाटा था. बस, पापा और बाबू ही घर पर थे. पापा बेहद मायूस टूटेबिखरे से थे. घर में रोशनी नहीं थी. दिनभर पापा चुपचुप रहे. रात जब मेरे पास बैठे तो उदासी से बोले, ‘रोशनी चली गई. मैं ने ही उसे जाने दिया. वह और उस का सहपाठी अजहर बहुत पहले से एकदूसरे को चाहते थे. पर अजहर के मांबाप उस से शादी करने के लिए नहीं माने. वह नाराज हो कर बाहर चला गया. आखिर मांबाप इकलौते बेटे की जुदाई सहतेसहते थक गए. उसे वापस बुलाया और रोशनी से शादी पर राजी हो गए. अजहर आ कर मुझ से मिला, सारी बात बताई. मैं रोशनी की खुशी चाहता था. सारी जिंदगी उसे बांध कर रखने का कोई फायदा न था.

‘‘‘मुझे पता था कि उस ने अकेलेपन और एक सहारा पाने की मजबूरी में मुझ से शादी की थी. मुझ से शादी के बाद भी वह बुझीबुझी ही रहती थी. बस, जब अजहर ने उसे आने के बारे में बताया तब ही उस के चेहरे पर हंसी खिल उठी. फिर मेरी व उस की उम्र में फर्क भी मुझे ये फैसला करने पर मजबूर कर रहा था. मैं ने उसे अजहर के साथ जाने दिया. बस, एक दुख है, उस की कोख में मेरा अंश पल रहा था. मैं ने उस से वादा किया, बच्चा होने के बाद मैं तलाक दे दूंगा. फिर वह अजहर से शादी कर ले. उसे यह यकीन दिलाया कि बच्चे की पूरी जिम्मेदारी मैं उठाऊंगा. अब बेटा, यह जिम्मेदारी मैं तुम्हें सौंपता हूं कि रोशनी की शादी के पहले तुम उस से बच्चा ले लेना और उस की परवरिश तुम ही करना.  यह मेरी ख्वाहिश और इल्तजा है.’

‘‘रूना, मैं ने उन्हें वचन दिया था कि यह जिम्मेदारी मैं जरूर पूरी करूंगा. अभी तक अजहर ने रोशनी को अलग फ्लैट में बड़ौदा में रखा है. वहीं उस ने बच्ची को जन्म दिया. पापा ने तलाक दे दिया. बस, वह बच्ची के जरा बड़े होने का इंतजार कर रही है ताकि वह बच्ची को हमें सौंप कर अजहर से शादी कर के नई जिंदगी शुरू कर सके. मैं बच्ची के सिलसिले में ही रोशनी से मिलने जाता था. उस की जरूरत का सामान दिला देता था. अजहर ने अपने घर में रोशनी की शादी और बच्ची के बारे में नहीं बताया है. जब हम इस बच्ची को ले आएंगे तो वे दोनों नवसारी जा कर शादी के बंधन में बंध जाएंगे.’’

यह सब सुन कर वह खुशी से भर उठी और इतना समझदार और जिम्मेदार पति पा कर उसे बहुत गर्व हुआ. उसे याद आया, सीमा ने उसे बताया था कि बड़ौदा मौल में समीर एक खूबसूरत औरत के साथ था. तो वह औरत रोशनी थी. अच्छा हुआ, उस ने इस बात को ले कर कोई बवाल नहीं मचाया. समीर ने रूना का हाथ थाम कर प्यार से कहा, ‘‘रूना, मेरी इच्छा है कि हम रोशनी की बच्ची को अपने पास ला कर अपनी बेटी बना कर रखेंगे, इस में तुम्हारी इजाजत की जरूरत है.’’ समीर ने बड़ी उम्मीदभरी नजरों से रूना को देखा, रूना ने मुसकरा कर कहा, ‘‘मां खोने का दुख मैं उठा चुकी हूं. मैं बच्ची को ला कर बहुत प्यार दूंगी, अपनी बेटी बना कर रखूंगी. मैं बहुत खुशनसीब हूं कि मुझे आप जैसा शौहर मिला. आप एक बेमिसाल बेटे, एक चाहने वाले शौहर और एक जिम्मेदार भाई हैं. हम कल ही जा कर बच्ची को ले आएंगे. मैं उस का नाम ‘सवेरा’ रखूंगी क्योंकि वह हमारी जिंदगी में एक उजली भोर की तरह आई है.’’

समीर ने खुश हो कर रूना का माथा चूम लिया. उसे सुकून महसूस हुआ कि उस ने पापा से किया वादा पूरा किया. समीर और रूना के चेहरे आने वाली खुशी के खयाल से दमक रहे थे.

मैं अपनी टीचर के प्रति आकर्षित हूं, पर वे उम्र में मुझ से काफी बड़ी हैं, मैं क्या करूं ?

सवाल
मेरी उम्र 18 साल है, मैं अपनी टीचर के प्रति आकर्षित हूं. मैं जानता हूं कि वे उम्र में मुझ से काफी बड़ी हैं. मगर मैं क्या करूं? कितनी भी कोशिश कर लूं, उन्हें एक पल को भी भूल नहीं पाता.

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जवाब
इस उम्र में टीचर्स या सीनियर्स के प्रति आकर्षित होना सामान्य बात है. मगर आप दोनों के बीच उम्र का फासला काफी ज्यादा है, इसलिए उन्हें भूल जाएं. शिक्षक और छात्र के रिश्ते की मर्यादा को मान देते हुए उन्हें सिर्फ एक गुरु की नजरों से देखें. अपना मन दूसरे रचनात्मक कामों में लगाएं. पढ़ाई में मेहनत कर अच्छे नंबर लाएं और उन की नजरों में ऊपर उठें. उन की नजरों में खुद को तलाशना छोड़ दें क्योंकि इस से आप को कुछ हासिल नहीं होने वाला. वे उम्र में बड़ी हैं और संभवतया शादीशुदा भी होंगी.

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आप अभी पढ़ाईलिखाई में मन लगाएंगे तो ही ऊंचे ओहदे पर पहुंचेंगे और भविष्य सुखमय बीतेगा. फिर कोई भी सुंदर लड़की आप की हमसफर बनने को तैयार हो जाएगी.

पाकिस्तानी औरतें

कट्टरपंथियों की एक विशेष कला है कि वे हर सवाल उठाने वाले के बारे में खोज कर कुछ बकने लगते हैं या किसी और मुद्दे की, कहीं और की बात करने लगते हैं. पाकिस्तान में ‘औरत मार्च’ का आयोजन किया गया जिस में सैकड़ों औरतों ने अपने हकों की मांग करते हुए देश के कई  शहरों  में जुलूस निकाले. फैसलाबाद में इस पर बैन लगा दिया गया जिस पर दुनियाभर के मानवीय अधिकार गुटों ने आपत्ति की.

पाकिस्तान में औरतों की आजादी न के बराबर है. वहां धर्म का हवाला दे कर बारबार कहा जाता है कि वे सिर्फ मर्दों की खिदमत करें, उन से मार खाएं, उन के बच्चे पालें और अगर मार डाली जाएं तो चुपचाप दफन हो जाएं. कुछ पढ़ीलिखी औरतों को यह सब स्वीकार नहीं है और वे औरतों को मर्दों की तरह की बराबरी दिलाना चाहती हैं.

समस्या वही है जो भारत में है. भारत की तरह वहां भी कट्टरपंथी एकदम कूद पड़े कि एक तरफ कोविड फैल रहा है और ये औरतें मार्च निकालना चाहती हैं. कुछ को कश्मीर याद आ गया. कुछ धर्म का फायदा समझाने लगे. कुछ भारत को दोष देने में लग गए.

जब औरतों ने पुलिस से इस मार्च की इजाजत चाही तो, जैसा भारत में होता है,  इजाजत नहीं दी गई. शासन को लगा कि ये औरतें सारे सामाजिक ढांचे को बिगाड़ देंगी जिस में मर्द को मुफ्त की गुलाम मिलती हैं. पुलिस ने मार्च निकालने पर उतारू छात्राओं को धमकियां देनी शुरू कर दीं और उन्हें गिरफ्तार करने का अपना अधिकार जता दिया. एक इस्लामी गुट के बयान का हवाला दे दिया जिस में धमकी दी गई थी कि अगर ‘औरत मार्च’ फैसलाबाद में निकाला गया तो इस के बहुत बुरे नतीजे सामने आएंगे.

पुलिस कमिश्नर साहब औरतों के डैलीगेशन को समझाते रहे कि पाकिस्तान में तो औरतें आजाद हैं, फिर मार्च की क्या जरूरत. उन्हें या तो पता नहीं या जान कर अनजान बन रहे थे कि 4 वर्षों पहले अमेरिका तक में ऐसा मार्च निकालने की जरूरत पड़ी क्योंकि वहां भी औरतें बेहद घुटन महसूस करती हैं. कट्टर पाकिस्तान भारत और बंगलादेश की तो बात ही क्या है?

हां, इतना अवश्य संतोष है कि पाकिस्तान की औरतों ने मार्च निकालने का मन बनाया. पाकिस्तान की हुकूमत को उन से डर भी लगा. यह भी एक उपलब्धि है जो कम नहीं है.

Family Story in Hindi – नो प्रौब्लम

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