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समाज और धर्म: सोशल फैब्रिक तोड़ता धार्मिक कट्टरवाद

20 वर्षों बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने फिर से सत्ता पर कब्जा जमाया है. यह वही धार्मिक सत्ता है, जिस ने अतीत में कई यातनाओं के कुचक्र चलाए हैं. जिसे याद करते हुए सिरहन दौड़ने लगती है. लेकिन इस सब से भारत खुद क्या सीख सकता है, उस के लिए अफगानिस्तान में घटी यह घटना क्यों माने रखती है, जानें इस रिपोर्ट में. इस 15 अगस्त, एक तरफ भारत देश ने अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मनाया तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की जनता ने अपनी बचीखुची आजादी को तालिबानियों के हाथों गंवाया. अफगानिस्तान, एक ऐसा मुल्क जो आज पूरे विश्व के चिंतन का केंद्र बना हुआ है.

वहां की जनता अब तालिबानियों के हाथों ऐसे मुहाने पर खड़ी है जिस की नियति भविष्य के गहरे अंधेरे की तरफ ले कर जाती है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबानियों का पूरा नियंत्रण हो जाने के बाद वहां के हालात पूरी तरह बदल गए. जाहिर है, 20 साल पहले की ही तरह अब वहां धर्म पर आधारित सत्ता होगी. जिस की चर्चा भारत समेत पूरी दुनिया में हो रही है और होनी भी चाहिए. इतिहास में शायद ही किसी मुल्क के पन्ने इतने अजीबोगरीब तरीके से पलटे हों जैसे अफगानिस्तान की पथरीली और पहाड़ी जमीन के पलटे हैं. कभी शानदार स्वर्णिम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे इस देश ने 1990 के बाद तालिबानी शासन को देखा था, उस के जख्म को झेला था, जहां पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाले बुर्के का इस्तेमाल जरूरी कर दिया गया.

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जहां टैलीविजन, संगीत, सिनेमा और कला पर पाबंदी लगा दी गई, दूसरे धर्म के अनुयायियों और नास्तिकों को बर्बर तरीके से मारा गया और 10 साल से अधिक उम्र की लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी. छोटीछोटी बातों पर महिलाओं पर कोड़े बरसाए गए, उन्हें पुरुषों के स्लेव के तौर पर सम झा गया और उन पर कई प्रतिबंध थोपे गए. हम किस रास्ते किंतु सोचने वाली बात यह है कि आज अफगानिस्तान के धार्मिक कट्टरवाद का विरोध हम सभी कर तो रहे हैं पर क्या इस के साथ भारत देश को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना देखने वालों की कट्टरता का भी विरोध कर पा रहे हैं? जाहिर है, नहीं. आइए, इसे सम झते हैं. 28 सितंबर, 2015, दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा के दादरी इलाके के बिसाहड़ा गांव में, 52 वर्षीय मजदूर मोहम्मद अखलाक की एक उग्र सांप्रदायिक भीड़ ने घर से खींच पीटपीट कर हत्या कर दी थी. भीड़ ने उस के बेटे दानिश को भी नहीं बख्शा. उसे भी बुरी तरह घायल कर दिया. मसला धार्मिक कट्टरवाद का था जिसे योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया. हत्या से कुछ समय पहले पूरे गांव में एक अफवाह तेजी से फैलाई गई. आरोप लगा कि अखलाक के घर में गौमांस है. फिर इसी शक पर मंदिर के लाउडस्पीकर से भीड़ जुटाई गई. इस स्पीकर के पीछे से आने वाली आवाज सांप्रदायिक गर्जना से भरी थी. वहां इकट्ठा हुए लोग गुस्से से लबालब थे.

यह भीड़ अखलाक के घर कूच करती हुई किचन में रखे बरतन, फ्रिज को चैक करने लगी. अचानक आवाज आई, ‘गौमांस….गौमांस’ और इन 2 शब्दों के साथ अखलाक का जीवन ऐसे खो गया मानो उस का कोई वजूद था ही नहीं. बहस होती है, यह मीट किस का है? फोरैंसिक जांच होती है. पहले बकरे और फिर बीफ के लब्बोलुआब में आदमी का जीवन धता हो जाता है. कुछ आरोपी पकड़े जाते हैं. फिर जमानत में छूटने पर उन के स्वागत में जयकारे लगाए जाते हैं. हत्या के एक आरोपी, जिस की मौत बीमारी के चलते जेल में होती है, उस के शरीर पर तिरंगा लपेट कर घर लाया जाता है और भाजपा के तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा उस के अंतिम संस्कार में शरीक हो उसे अंतिम विदाई ऐसे देते हैं मानो वह दंगाई आरोपी नहीं बल्कि सीमा पर शहीद हुआ जवान हो. मसलन यह हत्या देश के लिए सिग्नल थी कि अब धर्म की सत्ता हावी हो रही है. अखलाक का यह मामला मोदीकाल के धार्मिक कट्टरवाद की शुरुआत भर थी, जिस के बाद सिलसिला चला तो रुकने का नाम ही नहीं लिया. ऐसे ही राजस्थान के अलवर से 55 वर्षीय पहलू खान हो या अफराजुल हो, उत्तर प्रदेश के हापुड़ से कासिम हो या इंस्पैक्टर सुबोध कुमार सिंह हो, ईद पर ट्रेन से घर जा रहा युवक जुनैद हो या फिर झारखंड के सरायकेला-खरसांवा जिले से तबरेज अंसारी हो,

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धर्म के आधार पर लिंचिंग और सत्ताधारी पार्टी का आरोपियों के पक्ष में खड़ा होना सामान्य होता चला गया. वहीं, दलितपिछड़ों पर जाति के आधार पर प्रताड़ना बढ़ी है. 11 जुलाई, 2016 को गुजरात के ऊना जिले के मोटा समाधियाला गांव में 7 दलित युवक प्राकृतिक मृत्यु से मरी हुई गायों की खाल उतार रहे थे. यह इन दलितों का पैतृक व्यवसाय था और उन के जीवनयापन का एकमात्र सहारा. लेकिन कथित हिंदू कट्टरवादी गौरक्षकों ने इन निर्दोष दलितों को लोहे की रौड से पीटा और उन के हाथ बांध कर उन पर कोड़े बरसाए. इस से पहले उसी वर्ष जनवरी में हैदराबाद सैंट्रल यूनिवर्सिटी के होस्टल में एक रिसर्च स्कौलर रोहित वैमुला ने आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी, आरएसएस के स्थानीय नेताओं और प्रशासन द्वारा की गई जातीय प्रताड़ना के चलते आत्महत्या कर ली थी,

जिस के बाद देशभर में छात्र आंदोलन शुरू हो गए थे. इंडिया स्पैंड के अनुसार, 2015 से 2018 के बीच भारत में गौरक्षा के नाम पर हिंदू कट्टरवादियों द्वारा हिंसा की 117 घटनाएं अंजाम दी गईं. ‘द क्विंट’ की खबर के अनुसार, इस दौरान पूरे भारत में लिंचिंग में 88 लोग मारे गए. वहीं 2010 से 2017 तक कुल 124 हत्याएं गौरक्षा के नाम पर की गईं. इन में से 97 फीसदी घटनाएं मोदीकाल में घटित हुईं. वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा प्रकाशित भारत में वार्षिक अपराध 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के खिलाफ अपराध में 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में क्रमश: 7 फीसदी और 26 फीसदी से अधिक की वृद्धि देखी गई. हालिया वाकए हैरान करते हैं बीते दिनों के वाकए इस बात की पुष्टि करने के लिए अनुकूल हैं जब एक रिकशाचालक अख्तर अहमद को तालिबानी सरीखे कट्टर हिंदूवादी संगठन द्वारा सिर्फ इसलिए पीटा गया कि वह उस महिला का रिश्तेदार था जिस का मामूली झगड़ा उस की पड़ोस में रहने वाली एक हिंदू महिला से चल रहा था.

सरेराह पुलिस के सामने पीटते हुए पीडि़त व्यक्ति से जबरन ‘जय श्री राम’ के नारे लगवाए गए. सत्ता की शह पाए आरोपी जैसे पकड़े गए वैसे ही उन्हें जमानत दे दी गई. यह बात ज्यादा दिन पहले की नहीं है जब दिल्ली के जंतरमंतर जैसी महत्त्वपूर्ण जगह पर इसी प्रकार के तालिबानी सरीखे तत्त्वों द्वारा सांप्रदायिक नारे लगाए गए. नारे ऐसे कि सुनते न बने, ‘हिंदुस्तान में रहना होगा, जय श्री राम कहना होगा,’ ‘जब *** काटे जाएंगे, तब रामराम चिल्लाएंगे.’ क्या यह तालिबानी संस्कृति से मेल नहीं खाता? जहां देश के किसानों को शर्तों के साथ प्रदर्शन करने की अनुमति मिली, वहां भाजपा और आरएसएस समर्थक सैकड़ों दंगाई बिना परमिशन के उस स्थल में घुसते हैं जहां चौबीसों घंटे पुलिस की तैनाती होती है. ऐसे ही द्वारका हज हाउस वाला छोटा सा मसला था जिसे बेमतलब सांप्रदायिक रंग दे कर लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिशें की गईं. महिलाएं कितनी आजाद तालिबानी नियमकानूनों,

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जिसे शरीयत पर आधारित कहा जा रहा है, पर यहां बैठ कर हम चिंता जरूर जता सकते हैं कि किस प्रकार बर्बर तरीके से वहां महिलाओं पर शोषण किया जाएगा, उन्हें पढ़ने, बाहर निकलने और मरजी का करने से रोका जाएगा, पर भारत में आज क्या हो रहा है? क्या सरकार में बैठे नेताओं द्वारा धर्म के नाम पर महिलाओं को ‘सलीके’ से रहने की नसीहतें नहीं दी जा रही हैं? क्या ऐसे कानून नहीं बनाए जा रहे जो महिलाओं के पैरों में जंजीर बनने का काम करेंगे? हिंदू धर्म से संबंधित ग्रंथों और कहानीकथाओं में कई जगह कहा गया कि महिला को स्वतंत्र नहीं होना चाहिए. मनुस्मृति को पौराणिक ब्राह्मणी संविधान माना गया, जिसे हिंदू कट्टरवादी फौलो करते हैं. उस में बारबार दोहराया गया कि, ‘महिला स्वतंत्रता के योग्य नहीं है.’ मनुस्मृति के अनुसार, ‘‘स्त्री को बचपन में पिता, युवावस्था में पति और जब उस का पति मर जाए तो पुत्र के नियंत्रण में रहना चाहिए. यहीं नहीं, मनुस्मृति में स्त्रियों को सीधा आदेश है कि पति चाहे जैसा भी हो, पत्नी को उस की देवता की तरह पूजा करनी चाहिए.

क्या ऐसा तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस में नहीं कहा गया कि ‘ढोल चमार पशु शूद्र नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी.’ क्या इसी सोच का नतीजा नहीं कि आज देश में महिलाएं प्रताडि़त की जा रही हैं. पिछले साल सितंबर महीने में हाथरस में जातीय घमंड के चलते ऊंची जाति के दबंगों द्वारा एक दलित युवती के साथ गैंगरेप कर उस की लाश खेत में फेंक दी गई. हद तब हो गई जब पुलिस आरोपियों को बचाने और सुबूत मिटाने के लिए लड़की की लाश को आधी रात में जबरन जलाती है. जहां बात पीडि़ता पक्ष के साथ खड़े होने की थी वहां देश के हिंदू कट्टरपंथी आरोपियों के पक्ष में खड़े पाए जाते हैं और अंत तक आरोपियों को बचाने में जुटे रहते हैं. पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने की जगह प्रशासन द्वारा उलटा उसी पर दबाव बनाया जाता है. इसी प्रकार कठुआ में एक 8 साल की बच्ची का मंदिर के प्रांगण में सबक सिखाने के उद्देश्य से गैंगरैप किया जाता है. पुलिस आरोपियों को पकड़ने की जगह उन के साथ मिल जाती है.

उस लड़की के समर्थन में खड़े होने की जगह आरोपियों के समर्थन में हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा रैली निकाली जाती है. ऐसे ही इसी महीने की शुरुआती घटना है. राजधानी दिल्ली में एक 9 साल की बच्ची के साथ श्मशान घाट के पुजारी समेत 4 लोगों ने बलात्कार और हत्या कर शव को जबरन जला दिया. वहीं जुलाई में उत्तर प्रदेश के देवरिया में नेहा नाम की 16 वर्षीय लड़की को उस के परिवारजन ने सिर्फ इसलिए पीटपीट कर मार डाला कि वह जींसटौप पहनती थी, जिसे ले कर घर में उस के चाचा खासा नाराज चल रहे थे. ऐसे कई मामले हैं जहां छुटभैया से ले कर बड़े ओहदेदार नेता धर्म आधारित ऐसी टिप्पणियां खुल कर करते पाए गए हैं जो संवैधानिक लिहाज से कतई बरदाश्त नहीं की जा सकतीं. कोई नेता महिला के जींस पहनने को संस्कृति और सभ्यता के खिलाफ बता रहा है, कोई उन्हें घर की दहलीज न लांघने की हिदायत दे रहा है, कोई फोन न इस्तेमाल करने की बात कह रहा है. वहीं, कट्टरवादी दलों और प्रशासन द्वारा ऐसे घटक बनाए जा रहे हैं जो प्रेमी जोड़ों को परेशान करने के उद्देश्य से हैं.

इसी प्रकार देश में महिलाओं के जीवनसाथी चुनने की आजादी को ‘लव जिहाद’ जैसे कानून के माध्यम से प्रभावित किया जा रहा है. यह जितना मुसलिमों के खिलाफ बड़े प्रोपगंडा का हिस्सा है उस से अधिक महिलाओं को पुरुष नियंत्रण में रखने की साजिश है. नतीजतन, वर्ष 2020 में नैशनल क्राइम रजिस्टर ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2019 में प्रतिदिन बलात्कार के औसतन 87 मामले दर्ज हुए और सालभर के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,05,861 मामले दर्ज हुए जो 2018 की तुलना में 7 प्रतिशत अधिक थे. आज तालिबान को सभी गरिया रहे हैं क्योंकि वह हमारे सामने धार्मिक कट्टरता का सर्वोच्च उदाहरण बन कर सामने आया है. लेकिन ऐसे कई छोटेबड़े तालिबान अलगअलग धर्मों, देशों में कहीं कट्टर नाजी समर्थक, कहीं कट्टर इसलाम समर्थक तो कहीं कट्टर हिंदू समर्थक की शक्ल में सामने हैं. वे समयसमय पर अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देते रहते हैं, जिस से समाज का तानाबाना टूटता है और अजीब सी स्थिति पैदा होती है जो राष्ट्र के पहिए को बाधा पहुंचाती है.

देश का टूटता सोशल फैब्रिक आज अधिकतर हिंदुओं में डर बैठाया गया है कि ‘वे अगर जागे नहीं तो मुसलिमों का राज इस देश पर हो जाएगा,’ और मुसलिम डरे हैं कि ‘देश में उन्हें दोयम बना दिया जाएगा.’ सरकार द्वारा बनाए गए कानून धार्मिक टकरावों को जन्म दे रहे हैं, फिर चाहे वे सीएए-एनआरसी हो, धारा 370 हटाना हो या धर्मांतरण व लव जिहाद आदि हों. इस से आपसी अविश्वास बेहद बढ़ा है. एकदूसरे के प्रति शक की गुंजाइश बढ़ी है खासकर इस के लपेटे में युवा तबका अधिक है. सीएमआईई के डाटा के अनुसार, देश में काफी समय से रिकौर्ड बेरोजगारी है. देश की अर्थव्यवस्था धूल खा रही है. युवाओं के पास काम नहीं है. ऐसे में ‘राममंदिर’, लव जिहाद, धर्मांतरण, गौरक्षा जैसे धार्मिक मुद्दे उछाल कर बड़े प्यार से युवाओं का ध्यान भटकाया जा रहा है. गौरतलब है कि चुनाव के समय भाजपा का धार्मिक मुद्दों से मतों को लेने का अधिक से अधिक प्रयास रहता है और अधिकतर भाजपा समर्थक वोटर इन्हीं मुद्दों को देखते हुए उसे वोट करते हैं.

इस कारण आज हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. आज भारत देश लोकतंत्र के मामले में पहले से 2 पायदान नीचे गिर कर 53वें स्थान पर पहुंच गया है. पत्रकारिता में हमारी गिनती तानाशाह देशों के दर्जे में आ रही है. मानव अधिकारों के लिहाज से हम सिकुड़ते जा रहे हैं. महिलाओं के लिए भारत सब से खतरनाक देश के तौर पर उभरा है. युवाओं में आत्महत्या की दर बढ़ रही है. ऐसे में अफगानिस्तान के मौजूदा हाल को देख कर भारत को सबक लेना चाहिए, वहां धर्म पर बनी 20 साल पुरानी सत्ता से सम झना चाहिए कि इस कट्टरता के बढ़ने से देश का सोशल फैब्रिक लगातार टूट रहा है. यह वह फैब्रिक है जो लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत बनाता है. लेकिन धर्म के फुजूल मुद्दों में उल झे रहने से लोग आपस में बंटेबंटे रहते हैं, हर समय तनाव और डर का माहौल बना रहता है और आपसी अविश्वास बढ़ता है जिस के दूरगामी परिणाम अफगानिस्तान की शक्ल में भुगतने पड़ जाते हैं.

तीज 2022: 5 Recipe- त्यौहरों पर बनाएं ये खास हलवे और खीर

खीर व हलवा ऐसे मिष्ठान हैं जो हर खास मौके पर और तीजत्योहारों में बनाए जाते हैं. बच्चों से बड़ों तक सभी के लिए सुपाच्य, नरम, पौष्टिक, सेहत से भरपूर ये हर दिल अजीज होते हैं. मिष्ठानों में विविधता ला कर इन की पौष्टिकता बढ़ाई जा सकती है. पौष्टिकता के साथसाथ भिन्नभिन्न सामग्री का समायोजन इन के स्वाद को दोगुना कर देता है.

1 चावल व ओट्स खीर

सामग्री

1 लिटर दूध, 1 कटोरी ओट्स, 1 मुट्ठी चावल, 3-4 हरी इलायची, 10-12 काजू, 1 बड़ा चम्मच कटा बादाम, 2 बड़े चम्मच चीनी, गुलाबजल 2 बूंद.

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विधि

इलायची डाल कर दूध को उबालें व भीगे चावल डाल कर, लगातार चलाते हुए दूध आधा होने तक पकाएं.

ओट्स डाल कर चलाते हुए दूध गाढ़ा करें, भीगे पिसे काजू डालें व चीनी डाल कर मिलाएं.

बारीक कटे बादाम डाल कर मिलाएं. गुलाबजल छिड़कें. फिर गरमागरम परोसें.

2 सूजी व न्यूट्रीला हलवा

सामग्री 

1 कटोरी सूजी, 1/2 कटोरी सोया चूरा, 11/4 कटोरी चीनी, 3-4 हरी इलायची, 1 बड़ा चम्मच किशमिश, 1/2 बड़ा चम्मच मिसरी, 1/2 बड़ा चम्मच नारियल बुरादा, 2 बड़े चम्मच देशी घी.

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विधि

सोया चूरे को पानी में भिगोएं.

घी गरम करें व इलायची डाल कर सूजी भूनें, तीनगुना पानी डालें.

चीनी, सोया चूरा व किशमिश डाल कर लगातार चलाते हुए पौष्टिक हलवा तैयार करें.

हलवे पर नारियल बुरादा व मिसरी डाल कर परोसें.

3 सेब का हलवा

सामग्री

1 किलो सेब, 2 बड़े चम्मच चीनी, चुटकीभर पिसा जायफल, 2 बड़े चम्मच दूध पाउडर, 1 बड़ा चम्मच कटे बादाम, 2 बड़े चम्मच पिसा बादाम, 2 बड़े चम्मच देशी घी, 1/2 नीबू का रस.

विधि

सेब धो कर छील कर कसें.

घी गरम करें व कसा सेब डाल कर नमी सूख जाने तक भूनें.

फिर चीनी, दूध पाउडर, पिसा बादाम डाल कर भूनें.

जायफल, बादाम व नीबू का रस डाल कर, मिला कर परोसें.

4 आलू का हलवा

सामग्री 

800 ग्राम आलू,

3 बड़े चम्मच गुड़,

11/2 बड़े चम्मच देशी घी,

1 बड़ा चम्मच खरबूजे के बीज,

1 बड़ा चम्मच ब्राउन शुगर,

3-4 हरी इलायची,

2 बड़े चम्मच दूध.

विधि

आलुओं को उबाल कर छीलें व मसल लें.

देशी घी गरम करें. इलायची डालें. तुरंत आलू डाल कर भूनें.

आलू गुलाबी होने पर गुड़, ब्राउन शुगर व दूध डाल कर भूनें.

फिर खरबूजे के बीज मिलाएं व गरमागरम परोसें.

5 कच्चे पपीते व म्यूसिली की खीर

सामग्री

11/2 कप कसा पपीता,

1 लिटर दूध,

1 कप म्यूसिली,

1/2 कप चीनी,

5-6 कटे बादाम,

5-6 कटे काजू,

3-4 हरी इलायची.

विधि

इलायची डाल कर दूध उबालें, कसा पपीता डाल कर उबालें.

जब पपीता गल जाए व दूध गाढ़ा हो जाए तब म्यूसिली डाल कर पकाएं व गाढ़ा करें,

कटे मेवे व चीनी डाल कर मिलाएं. खीर तैयार है.

Udaariyaan के फतेह और जैस्मिन का पहला म्यूजिक वीडियो, #jasfa के फैंस हुए खुश

सीरियल उड़ारिया में तेजो और फतेह की जोड़ी को काफी ज्यादा पसंद किया जाता है, लोग इन्हें साथ में देखना पसंद करते हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो शादी के बाद भी जैस्मिन अपनी बहन की शादीशुदा जिंदगी को खुश नहीं देख पा रही है.

जैस्मिन और फतेह का प्यार सर चढ़कर बोल रहा है, कुछ फैंस ऐसे भी हैं जो जैस्मिन और फतेह को साथ में देखना चाहते हैं.ऐसे फैंस के लिए एक खुशखबरी है, जैस्मिन और फतेह का एक नया म्यूजिक वीडियो आ रहा है जिसमें वह दोनों रोमांस करते नजर आएंगे.

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इस गाने को धीर कौर ने गाया है औऱ लिरिक्स विवेक ने लिखे हैं. लड्या ना कर गाने का शानदार पोस्टर सोशल मीडिया पर  आ गया है, जिसे फैंस खूब सारा प्यार दे रहे हैं. इसमें जैस्मिन और फतेह एक दूसरे के साथ शानदार लग रहे हैं.

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वहीं अगर सीरियल की कहानी के बारे में बात करें तो अब तक आपने देखा होगा कि जैस्मिन फतेह को पाने के लिए हर कोशिश करती नजर आ रही है. फतेह भी जैस्मिन के खातिर अपने परिवार वालों से दूर जाकर रह रहा है. जिससे पूरे घर का माहौल खराब हो चला है.

वहीं दूसरी ओर फतेह की मां तेजो के आगे हाथ जोड़कर यह कह रही है कि तुम ही हमारे परिवार को टूटने से बचा सकती हो अगर तुम चाहोगी तो फतेह घर वापस आ जाएगा. ऐसे में तेजो फतेह को तलाक देने के लिए तैयार हो जाती है. अब देखना यह है कि आगे सीरियल में क्या सच में तेजो और फतेह हमेशा के लिए अलग हो जाएंगे.

 

टीवी शो ‘जोधा अकबर’ फेम मनीषा यादव का निधन, सलीमा बेगम की रोल से हुईं थी मशहूर

टीवी इंडस्ट्री से एक और दुख वाली खबर आ रही है, सीरियल जोधा अकबर में नजर आने वाली सलीमा बेगम का 29 साल की उम्र में निधन  हो गया है. अदाकारा मनीषा यादव सलीमा बेगम के किरदार में नजर आती थी.

सलीमा बेगम के किरदार को लोग देखना खूब पसंद करते थें, हालांकि अभी तक उनके डेथ के रिजन का पता नहीं चल पाया है. वहीं कुछ सूत्रों से खबर मिल रही है कि उनका डेथ ब्रेन हेमरेज की वजह से हुआ है.

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बता दें कि कुछ वक्त पहले ही अदाकारा ने अपने बेटे का पहला जन्मदिन मनाया था. जिसकी फोटो उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर शेयर किया था. फोटो शेयर करते हुए उन्होंने लिखा था कि पहला जन्मदिन मुबारक हो तुम्हें बेटे. तुम मुश्किल वक्त में मेेरे जीवन में रौशनी बनकर आए हो, तुम्हारे होने से मैं खुद को भाग्यशाली महसूस करती हूं.

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मनीषा की मौत की खबर एक्ट्रेस परिधि शर्मा के इंस्टा स्टोरी के जरिए मिला है, उन्होंने तस्वीर शेयर करते हुए लिखा कि ये दिल तोड़ देने वाला है, ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दें.

आगे परिधि ने बताया कि शो खत्म हो जाने के बाद उनके टच में नहीं थीं, हालांकि ग्रुप  के जरिए उन्हें इस बात की जानकारी मिली, एक्ट्रेस की मौत की खबर से बाकी साथी कलाकार भी दुखी है. अचानक उनका यूं चले जाना लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि ये सब क्यों हुआ.

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बताया जा रहा है कि मनीषा यादव की उम्र अभी सिर्फ 29 साल थी, इतने कम उम्र में ये सब कुछ होना लोगों को सदमा सा लग रहा है.

 

अर्थव्यवस्था राष्ट्रीय संपत्तियों की सेल का बाजार

निजी व्यवस्था में पूंजीपति कमा रहे हैं और जनता भूखी मर रही है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 22 अगस्त को राष्ट्रीय मौद्रीकरण पाइपलाइन लौंच कर दी है. ध्यान रहे कि यह राष्ट्रीय स्तर पर गैस, तेल या पानी ले जाने के लिए बिछाई जाने वाली कोई पाइपलाइन नहीं है, बल्कि देश में पहले से मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर के दोहन से सरकार के लिए धन और निजी क्षेत्र के लिए विशाल मुनाफा कमाने का इंतजाम करने वाली ‘पाइपलाइन’ है, जिसे वह बेहिचक नया इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने में लगा सकता है. इस पाइपलाइन के जरिए जो कभी टैक्स ….. के पैसे से खड़ी की गई थी. मोदी सरकार ने सरकारी संपत्तियों, जो कमी टैक्स पेपर के पैसे से खड़ी की गई थीं, को निजी हाथों में दे कर करीब 6 लाख करोड़ रुपए जुटाने का लक्ष्य रखा है. यानी, सरकार ने घर बेच कर घी पीने की अपनी नीति पर कुछ कदम और आगे बढ़ा दिए हैं.

सपना दिखातीं निर्मला सरकारी परिसंपत्तियों को 4 साल के लिए निजी हाथों में दे कर उस से 6 लाख करोड़ रुपए जुटाने की बात की जा रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को यकीन है कि सरकार को 6 लाख करोड़ रुपए देने के बावजूद निजी क्षेत्र इस नायाब पाइपलाइन से कमाया गया मुनाफा देश में इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में लगाएगा. वित्त मंत्री का कहना है, ‘‘इस में जमीन का कोई लफड़ा नहीं है. ये ब्राउनफील्ड प्रोजैक्ट है जिस में निवेश किया जा चुका है, जहां पूरी संपत्ति बनाई जा चुकी है जो या तो बेकार पड़ी है या उस का पूरा मौद्रीकरण नहीं हुआ या कम उपयोग हो रहा है. इसलिए इस में निजी भागीदारी ला कर इस का बेहतर मौद्रीकरण और इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में भावी निवेश सुनिश्चित करने में सरकार सक्षम होगी.’’ यह पाइपलाइन वित्त वर्ष 2021-22 से ले कर 2024-25 तक, यानी वर्तमान सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के एक साल बाद तक की सीमित अवधि के लिए है.

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रहने के इन राष्ट्रीय परिसंपत्तियों या एसेट्स पर स्वामित्व सरकार का ही रहेगा. सरकार बीच की 4 साल की अवधि में इन एसेट्स से आय और मुनाफा हासिल करने का अधिकार निजी क्षेत्र को देगी. गौरतलब है कि मोदी सरकार ने अपने करीबी उद्योगपतियों के हाथों पहले ही कई सरकारी परिसंपत्तियां गिरवी रखी हुई हैं, मगर इस का फायदा क्या हुआ, सरकारी खजाने में कितनी बढ़ोत्तरी हुई, सरकार ने कितना मुनाफा कमाया, इस की जानकारी सरकार ने कभी नहीं दी. हां, इस निजीकरण का नुकसान आम जनता को जरूर उठाना पड़ रहा है. उदाहरण के तौर पर लालकिले को ही लें. सरकार के तर्कहीन तर्क मौनिटाइजेशन की शुरुआत लालकिला को निजी हाथों में दे कर हुई थी. इस गौरवशाली राष्ट्रीय धरोहर पर जहां खुद प्रधानमंत्री आजादी का झंडा फहराते हैं, को सरकार ने डालमिया ग्रुप को सौंप दिया. 2017 में मोदी सरकार के पर्यटन मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्त्व विभाग के साथ मिल कर एक योजना शुरू की जिस का नाम था ‘एडौप्ट ए हैरिटेज – अपनी धरोहर अपनी पहचान’ यानी निजी क्षेत्र की कंपनियां देश की किसी धरोहर को गोद लें. इस के तहत कंपनियों को इन धरोहरों की सफाई, सार्वजनिक सुविधाएं देने, वाईफाई की व्यवस्था करने और इसे गंदा होने से बचाने की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा गया था.

डालमिया ने लालकिला ले लिया. इस के एवज में उन्होंने सरकार को क्या दिया, यह गुप्त है, मगर जनता की जेब वे खूब लूट रहे हैं. भारतीय पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत जब लालकिला था, तो आम जनता को यहां 10 रुपए के टिकट पर घूमने व अपने इतिहास से रूबरू होने का मौका मिलता था, अब यहां आने वाले पर्यटकों को 70 से 100 रुपया खर्च करना पड़ता है. निजीकरण का यही सच है. जनता इस ऐतिहासिक धरोहर पर बारबार जा भी नहीं सकती. मोदी सरकार तर्क देती है कि मौनिटाइजेशन के तहत जो सरकारी एसेट्स निजी हाथों में दिए जा रहे हैं, वे केवल उस के संचालन के उद्देश्य से दिए जा रहे हैं, जबकि इन का मालिकाना हक सरकार के पास होगा और सरकार ही इस पर निगरानी व नियंत्रण रखेगी. सवाल यह है कि यह तो हर व्यवसाय के साथ होता है. रिटायर मालिक नहीं बनता पर फिर भी दुकान और मकान पर कब्जा तो उसी का होता है.

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खाली कराना क्यों सरकार के बस में कभी नहीं. आखिर सरकार जनता से वोट क्यों लेती है? जनता सरकार इसलिए चुनती है कि उस का जीवन बदलेगा, सुविधाएं बढ़ेंगी, जीवनस्तर सुधरेगा, जनता अपना पेट काटकाट कर टैक्स भरती है कि उस पैसे से सरकार उस के और देश के विकास के लिए कुछ करेगी, पर सरकार तो कुछ करना ही नहीं चाहती है. वह अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है, टैक्स बढ़ा रही है, महंगाई बढ़ा रही है, रोजगार खत्म कर रही है और सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप कर जनता की मुसीबतों में इजाफा कर रही है. यह एक खुला सच है कि निजी कंपनियां केवल अपने मुनाफे के लिए कार्य करती हैं और उन की कोई जिम्मेदारी समाज के प्रति नहीं होती. सरकार अगर आधारभूत सुविधाओं, जैसे रेल और सड़क को निजी हाथों में देती है तो इस पर चलने के लिए निजी कंपनियां गरीब जनता से मनमाना पैसा वसूल करेंगी.

जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के प्राइवेटाइजेशन के बाद हो रहा है. बिजली के प्राइवेटाइजेशन से बिजली महंगी हो गई है. लगभग हर क्षेत्र में निजी कंपनियों की मोनोपौली होगी. कोरोना महामारी से पहले भी आम आदमी के स्वास्थ्य के मुद्दे पर सरकारें सो रही थीं और कोरोना की भीषण त्रासदी के दौरान भी उन में चेतना नहीं आई. जिस समय अस्पताल बनाने चाहिए थे, दवाइयां खरीदनी चाहिए थीं, उस समय वे मंदिर बना रहे थे, राफेल खरीद रहे थे, चुनाव लड़ रहे थे और कुंभ में नहाने के लिए लोगों को खुला आमंत्रण भेज रहे थे. नतीजा, केंद्र और कुछ हद तक राज्य सरकारों की आपराधिक लापरवाही की कीमत देश को लाखों मौतों से चुकानी पड़ी. बिना औक्सीजन के लोग तड़पतड़प कर मरते रहे. जब वैंटिलेटर, औक्सीजन लोगों को सुरक्षित करने के लिए खरीदे जाने थे. तब सरकार चुनाव और नेता खरीद रही थी, परिणाम की भयावहता को हम सब ने देखा और भोगा.

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देश में अगर स्वास्थ्य सेवाएं सुदृढ़ होतीं और ‘राइट टू हैल्थ’ (सब के लिए स्वास्थ्य का अधिकार) कानून होता, तो कोरोना ने जितनी तबाही मचाई और जितनी मौतें हुईं उन्हें रोका या कम किया जा सकता था. लेकिन इसे विडंबना कहेंगे कि सरकार के लिए स्वास्थ्य कोई मुद्दा है ही नहीं. पूंजीपतियों की दोस्त, जनता की दुश्मन सरकार अगर चाहती तो कोई भी सरकारी उपक्रम कभी न बिकता. मगर मोदी सरकार पूरी तरह अपने चंद चहेते उद्योगपतियों के हाथों का खिलौना बन चुकी है. दशकों से बनाई गई अमूल्य सार्वजनिक संपत्तियां कुछ चुने हुए लोगों को सौंपने के लिए सारा खेल हो रहा है. सरकार लोगों की मेहनत और जनता की पूंजी से बनी अरबों रुपए मूल्य की संपत्ति अपने अरबपति दोस्तों को दे रही है. हो यह रहा है कि जब किसी कंपनी को निजी हाथों में गिरवी रखना या बेचना होता है तो यह दिखाया जाता है कि फलां कंपनी का हाल बहुत बुरा है और सरकार अगर इसे प्राइवेट कंपनी को देती है तो वह इसे ठीक ही नहीं करेगी, बल्कि इस से मुनाफा कमा कर सरकार को भी देगी. प्राइवेट कंपनियों ने पार्टी को चंदा ही इसलिए दिया होता है कि उन की लार पहले से उस जनता की कंपनी पर टपक रही होती है. ऐसे में पहले कंपनी या सरकारी उपक्रम को धीरेधीरे बरबादी की कगार पर पहुंचाया जाता है, फिर उसे निजी हाथों को बेच दिया जाता है.

बीएसएनएल के मामले में यही हुआ. 19 अक्तूबर, 2002 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने लखनऊ से बीएसएनएल मोबाइल सेवा की शुरुआत की थी. जल्दी ही बीएसएनएल इतनी पौपुलर हुई कि इस का सिम पाने के लिए लोग दोदो, चारचार किलोमीटर लंबी लाइनों में खड़े दिखते थे. यह वह वक्त था जब निजी औपरेटरों ने बीएसएनएल के लौंच के महीनों पहले मोबाइल सेवाएं शुरू कर दी थीं, लेकिन बीएसएनएल की सेवाएं इतनी लोकप्रिय हुईं कि बीएसएनएल के ‘सेलवन’ ब्रैंड की मांग जबरदस्त तरीके से बढ़ गई. लौच के कुछ महीनों के बाद ही बीएसएनएल देश की नंबर वन मोबाइल सेवा बन गई. बीएसएनल पर निजी कंपनियों की लार टपकने लगी और फिर सरकार ने कंपनी को खोखला करना शुरू कर दिया. पहले जहां बीएसएनएल बोर्ड के पास कोई भी निर्णय लेने के पूरे अधिकार थे, वे अधिकार उस से छीन लिए गए. टैंडर कैंसिल होने लगे. अक्तूबर 2002 में बीएसएनएल मोबाइल सेवा के लौंच होने के मात्र डेढ़दो सालों में भारत की नंबर वन मोबाइल सेवा बनने वाली बीएसएनएल पर 20 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज चढ़ गया. बीएसएनएल बरबाद नहीं थी.

उस को बेचने के लिए सरकार द्वारा उसे बरबाद किया गया. याद करिए वह दौर जब डोकोमो, यूनिनार, एयरसेल जैसे भांतिभांति के सिम मार्केट में आए थे. वर्ष 2017 में जब सब 4जी लूट रहे थे, तो बीएसएनल को नीलामी में उतरने ही नहीं दिया गया. सरकार ने 11 करोड़ कस्टमर वाले बीएसएनएल के हाथपैर बांध दिए. आश्चर्य की बात कि जब दुनिया 5जी स्पैक्ट्रम की ओर बढ़ रही थी, बीएसएनएल के पास 4जी स्पैक्ट्रम नहीं था. बीएसएनएल मैनेजमैंट ने इस बारे में सरकार का ध्यान खींचने के लिए 17 पत्र लिखे, लेकिन चीजें नहीं बदलीं. समस्याओं से घिरा मोदीराज सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने और उस की फाइनैंसिंग की चुनौती से निबटने की गजब की जुगत निकाली है-प्राइवेटाइजेशन. असफल नोटबंदी, जीएसटी, इन्सौल्वैन्सी एंड बैंकरप्सी कोड 2016, बेतहाशा कौर्पोरेट एनपी, के कारण बैंक का दिवालिया होना, बैंक में करप्शन और फिर कौर्पोरेट टैक्स में छूट के माध्यम से पूरे देश की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है. मोदी सरकार अपनी अदूरदर्शी और अपरिपक्व आर्थिक नीतियों के कारण गंभीर आर्थिक समस्याओं में फंस चुकी है. भारत का जीडीपी ग्रोथ 2016 से लगातार नीचे गिरते हुए 2020 में माइनस -23.4 फीसदी हो गया था और अब इस की तुलना में 2021 का जीडीपी -7.3 फीसदी है जो पिछले 40 सालों में सब से बुरी स्थिति है.

मगर एक सच यह भी है कि जब देश की आर्थिक स्थिति इस दयनीय हालत में है, सरकार के बेहद खास करीबी गौतम अडानी की संपत्ति 600 फीसदी बढ़ी है तो मुकेश अंबानी की संपत्ति 50 फीसदी बढ़ी जो विश्व के 8वें सब से अमीर व्यक्ति हैं. मोदी सरकार की नैशनल मौनिटाइजेशन पाइपलाइन पर बहस और विवाद शुरू हो चुका है. सरकार देश के 25 हवाई अड्डे, 26,700 किलोमीटर राजमार्ग, 6 गीगावाट क्षमता के पनबिजली और सौर बिजली संयंत्र, कोयला खदान की 160 परियोजनाएं, 8,154 किलोमीटर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन, 2.86 लाख किलोमीटर टैलीकौम फाइबर, 14,917 टैलीकौम टावर, 210 लाख मीट्रिक टन क्षमता के तमाम गोदाम, 400 रेलवे स्टेशन और अन्य कई सरकारी संपत्तियां एवं जमीनें बेचने का अपना फैसला संसद में सुना चुकी है.

गौरतलब है कि मोदी सरकार जो कुछ भी बेचने या गिरवी रखने जा रही है वह सबकुछ पिछले 70 सालों में जनता के पैसे से बना है. खासकर एयरपोर्ट, नैशनल हाईवे, गैस पाइपलाइन, टैलीकौम फाइबर और गोदाम मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में बने थे. मगर मोदी सरकार अपने खर्च को जुटाने के लिए देश की इन तमाम संपत्तियों को बेचने पर उतारू है, जिस के चलते अब सड़क और रेल पर चलने के लिए देश की जनता को 3-4 गुना कीमत चुकानी पड़ेगी, बेरोजगारी और महंगाई की मार अलग. और अगर यही सिलसिला चलता रहा तो इस सरकार में सांस लेने पर भी टैक्स लगने लगेगा.

एक जहां प्यार भरा

एक जहां प्यार भरा : भाग 2

वह चौंक पड़ी, ‘‘तुझे चाइनीज लड़के से प्यार हो गया? जानती भी है कितनी मुश्किलें आएंगी? इंडियन लड़की और चाइनीज लड़का. पता है न उन का कल्चर कितना अलग होता है? रहने का तरीका, खानापीना, वेशभूषा सबकुछ अलग है.’’

‘‘तो क्या हुआ? मैं उन का कल्चर अडौप्ट कर लूंगी.’’

‘‘और तुम्हारे बच्चे? वे क्या कहलाएंगे इंडियन या चाइनीज?’’

‘‘वे इंसान कहलाएंगे और हम उन्हें इंडियन कल्चर के साथसाथ चाइनीज कल्चर भी सिखाएंगे.’’

मेरा विश्वास देख कर मेरी सहेली भी मुसकरा पड़ी और बोली, ‘‘यदि ऐसा है तो एक बार उस से दिल की बात कह कर देख.’’

मुझे सहेली की बात उचित लगी. अगले ही दिन मैं ने इत्सिंग को एक मैसेज भेजा जिस का मजमून कुछ इस प्रकार था, (हमारी बातचीत हमेशा इंग्लिश में होती है पर मैं यहां हिंदी में अनुवाद कर के बता रही हूं).

‘‘इत्सिंग क्यों न हम एक ऐसा प्यारा सा घर बनाएं जिस में खेलने वाले बच्चे थोड़े इंडियन हों तो थोड़े चाइनीज.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप रिद्धिमा? यह घर कहां होगा इंडिया में या चाइना में?’’

इत्सिंग ने भोलेपन से पूछा तो मैं हंस पड़ी, ‘‘घर कहीं भी हो पर होगा हम दोनों का. बच्चे भी हम दोनों के ही होंगे. हम उन्हें दोनों कल्चर सिखाएंगे. कितना अच्छा लगेगा न इत्सिंग?’’

मेरी बात सुन कर वह शायद थोड़ा अचकचा गया था. उसे बात समझ में आ गई थी पर फिर भी क्लीयर करना चाहता था, ‘‘मतलब क्या है तुम्हारा? आई मीन क्या सचमुच?’’

‘‘हां इत्सिंग सचमुच मैं तुम से प्यार करने लगी हूं. आई लव यू.’’

‘‘पर यह कैसे हो सकता है?’’ उसे विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘क्यों नहीं हो सकता?’’

‘‘आई मीन मुझे बहुत से लोग पसंद करते हैं, कई दोस्त हैं मेरे. लड़कियां भी हैं जो मुझ से बातें करती हैं. पर किसी ने आज तक मुझे आई लव यू तो नहीं कहा था, क्या तुम वाकई… आर यू श्योर?’’

‘‘यस इत्सिंग 100 परसैंट श्योर. आई

लव यू.’’

‘‘ओके… थोड़ा समय दो मुझे रिद्धिमा.’’

‘‘ठीक है कल तक का समय ले लो. अब हम परसों बात करेंगे,’’ कह कर मैं औफलाइन हो गई.

मुझे यह तो अंदाजा था कि वह मेरे प्रस्ताव पर सहज नहीं रह पाएगा, पर जिस तरह उस ने बात की थी कि उस की बहुत सी लड़कियों से भी दोस्ती है स्वाभाविक था कि मैं भी थोड़ी घबरा रही थी. मुझे डर लग रहा था कि कहीं वह इस प्रस्ताव को अस्वीकार न कर दे. सारी रात मैं सो न सकी. अजीबअजीब खयाल आ रहे थे. आंखें बंद करती तो इत्सिंग का चेहरा सामने आ जाता. किसी तरह रात गुजरी. अब पूरा दिन गुजरना था, क्योंकि मैं ने इत्सिंग से कहा था कि मैं परसों बात करूंगी. इसलिए मैं जानबूझ कर देर से जागी और नहाधो कर पढ़ने बैठी ही थी कि सुबहसुबह अपने व्हाट्सऐप पर इत्सिंग का मैसेज देख कर मैं चौंक गई.

धड़कते दिल के साथ मैं ने मैसेज पढ़ा. लिखा था, ‘‘डियर रिद्धिमा, कल पूरी रात मैं तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम्हारा प्रस्ताव भी मेरे दिलोदिमाग में था. काफी सोचने के बाद मैं ने फैसला लिया है कि हम चीन में अपना घर बनाएंगे पर एक घर इंडिया में भी होगा, जहां गरमी की छुट््टियों में बच्चे नानानानी के साथ अपना वक्त बिताया करेंगे.’’

‘‘तो इन बातों का सीधासीधा मतलब भी बता दीजिए,’’ मैं ने शरारत से पूछा तो अगले ही पल इत्सिंग ने बोल्ड फौंट में आई लव यू टू डियर लिख कर भेजा, साथ में एक बड़ा सा दिल भी. मैं खुशी से झूम उठी. वह जिंदगी का सब से खूबसूरत पल था. अब तो मेरी जिंदगी का गुलशन प्यार की खुशबू से महक उठा था. हम व्हाट्सऐप पर चैटिंग के साथ फोन पर भी बातें करने लगे थे.

3-4 महीनों के बाद एक दिन मैं ने इत्सिंग से फिर से अपने दिल की बात की, ‘‘यार जब हम प्यार करते ही हैं तो क्यों न शादी भी कर लें?’’

‘‘शादी?’’

‘‘हां शादी.’’

‘‘तुम्हें अजीब नहीं लग रहा?’’

‘‘पर क्यों? शादी करनी तो है ही न इत्सिंग या फिर तुम केवल टाइम पास कर रहे हो?’’ मैं ने उसे डराया और वह सच में डर भी गया.

वह हकलाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा नहीं है रिद्धिमा. शादी तो करनी ही है पर क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह फैसला बहुत जल्दी हो जाएगा? कम से कम शादी से पहले एक बार हमें मिल तो लेना ही चाहिए,’’ कह कर वह हंस पड़ा.

इत्सिंग का जवाब सुन कर मैं भी अपनी हंसी नहीं रोक पाई.

अब हमें मिलने का दिन और जगह तय करनी थी. यह 2010 की बात थी.

शंघाई वर्ल्ड ऐक्सपो होने वाला था. आयोजन से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में इंडियन पैविलियन की तरफ से वालंटियर्स के चयन के लिए इंटरव्यू लिए जा रहे थे. मैं ने जरा सी भी देर नहीं की. इंटरव्यू दिया और मुझे चुन लिया गया.

इस तरह शंघाई के उस वर्ल्ड ऐक्सपो में हम पहली दफा एकदूसरे से मिले. वैसे तो हम ने एकदूसरे की कई तसवीरें देखी थीं पर आमनेसामने देखने की बात ही अलग होती है. एकदूसरे से मिलने की बाद हमारे दिल में जो एहसास उठा उसे बयां करना भी कठिन था, पर एक बात तो तय थी कि अब हम पहले से भी ज्यादा श्योर थे कि हमें शादी करनी ही है.

ऐक्सपो खत्म होने पर मैं ने इत्सिंग से

कहा, ‘‘एक बार मेरे घर चलो. मेरे मम्मीपापा

से मिलो और उन्हें इस शादी के लिए तैयार करो. उन के आगे साबित करो कि तुम मेरे लिए परफैक्ट रहोगे.’’

इत्सिंग ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रख दिया. हम एकदूसरे के आगोश में खो गए. 2 दिन बाद ही इत्सिंग मेरे साथ दिल्ली एयरपोर्ट पर था. मैं उसे रास्तेभर समझाती आई थी कि उसे क्या बोलना है और कैसे बोलना है, किस तरह मम्मीपापा को इंप्रैस करना है. मैं ने उसे समझाया, था, ‘‘हमारे यहां बड़ों को गले नहीं लगाते, बल्कि पैर छू कर उन का आशीर्वाद लेते हैं, हाथ जोड़ते हैं.’’

मैं ने उसे सबकुछ कर के दिखाया. मगर एयरपोर्ट पर मम्मीपापा को देखते ही इत्सिंग सब भूल गया और हंसते हुए उन के गले लग गया. मम्मीपापा ने भी उसे बेटे की तरह सीने से लगा लिया. मेरी फैमिली ने इत्सिंग को अपनाने में देर नहीं लगाई मगर उस के मम्मीपापा को जब यह बात पता चली और इत्सिंग ने मुझे उन से मिलवाया तो उन का रिएक्शन बहुत अलग था.

मिड-डे मील

देश की गरीबी के आंकड़े अकसर छिपाए जाते हैं. लेकिन जरा खबरों की परतें उधेड़ें, तो सच सामने आ जाता है. मिडडे मील स्कीम का नाम प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण करते समय यह साफ किया गया है कि लगभग 12 करोड़ बच्चों को खाना स्कूल में दिया जाएगा ताकि इस बहाने वे स्कूल तो आ जाएं. खाना उन की सेहत के लिए नहीं, बल्कि लालच के तौर पर उपलब्ध कराया जाता है. इस में कक्षा 8 तक के बच्चे शामिल हैं.

इन बच्चों के मातापिता की गरीबी इस बात से स्पष्ट है कि वे अपने छोटे बच्चों को वह खाना भी नहीं खिला सकते जो स्कूलों में भिखारियों की तरह परोसा जाता है. इस खाने को बनाने और वितरण में जो धांधलियां होती हैं उन की बात छोड़ भी दें तो भी यह साफ है कि 70 वर्षों के कांग्रेसी राज और 7 वर्षों के भाजपाई राज में इन गरीबों की गिनती लगातार बढ़ रही है, घट नहीं रही. जबकि, जन्मदर तेजी से घट रही है.

इन बच्चों को प्रतिबच्चा केवल 100 से 150 ग्राम अनाज पका कर दिया जाता है. इस खाने को बनाने व पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. यह स्कीम साबित करती है कि देश में आम जनता की कितनी बुरी हालत है. हर साल 16,000 करोड़ रुपए खर्च कर के इन बच्चों को सिर्फ स्कूली दिनों में जिंदा रखना होता है. मिडडे मील योजना असल में देश की सरकारों के मुंह पर लगाया गया खुद का तमाचा है. यह योजना दर्शाती है कि हजारों प्रबंध और नीतियां कितनी व्यर्थ की हैं कि बच्चों को अच्छा घर, दवाएं, साफसुथरा माहौल, कपड़े, मनोरंजन तो मिलना तो छोड़ दें, उन्हें आज खाने के लाले भी हैं. देश की पूजापाठी सरकार,  बड़ी पुलिस, सेना, अफसरों और सरकारी कर्मचारियों की फौज किस काम की जब मांबाप पेट भरने लायक पैसा तक न कमा सकें.

इस में गलती सरकारी नीतियों की है कि सरकार लोगों को आत्मनिर्भर नहीं बना पा रही,  उन्हें भूखा रख रही है. इस के बावजूद, वह विश्वगुरु, विश्वनेता होने का स्वांग रच रही है.

एक जहां प्यार भरा : भाग 1

कहते हैं कि इंसान को जब किसी से प्यार होता है तो जिंदगी बदल जाती है. खयालों का मौसम आबाद हो जाता है और दिल का साम्राज्य कोई लुटेरा लूट ले जाता है. प्यार के रेशमी धागों में जकड़ा इंसान कुछ भी करने की हालत में नहीं होता सिवाए अपने दिलबर की यादों में गुम रहने के.

कुछ ऐसा ही होने लगा था. हालांकि मैं सिर्फ अपने एहसासों के बारे में जानती थी. इत्सिंग क्या सोचता है, इस बारे में मुझे जानकारी नहीं थी. इत्सिंग से परिचय हुए ज्यादा दिन भी तो नहीं हुए थे. 3 माह कोई लंबा वक्त नहीं होता.

मैं कैसे भूल सकती हूं 2009 के उस दिसंबर महीने को जब दिल्ली की ठंड ने मुझे रजाई में दुबके रहने को विवश किया हुआ था. बिस्तर पर ही कभी रजाई के अंदर तो कभी बाहर अपने लैपटौप पर चैटिंग और ब्राउजिंग करना मेरा मनपसंद काम था. हाल ही में मैं ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से चाइनीज लैंग्वेज में ग्रैजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की थी.

आप सोचेंगे मैं ने चाइनीज भाषा ही क्यों चुनी? दरअसल, यह दुनिया की सब से कठिन भाषा मानी जाती है और इसी वजह से यह पिक्टोग्राफिक भाषा मुझे काफी इंटरैस्टिंग लगी, इसलिए मैं ने इसे चुना. अब मैं कुछ चीनी लोगों से बातचीत कर इस भाषा में महारत हासिल करना चाहती थी ताकि मुझे इस के आधार पर कोई अच्छी नौकरी मिल सके. मैं ने इंटरनैट पर लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया तो मेरे आगे इत्सिंग का प्रोफाइल खुला. वह बीजिंग की किसी माइन कंपनी में जौब करता था. खाली समय में इंटरनैट सर्फिंग किया करता.

मैं ने उस के बारे में पढ़ना शुरू किया तो कई इंटरैस्टिंग बातें पता चलीं. वह काफी शर्मीला इंसान था. उसे लौंग ड्राइव पर जाना और पेड़पौधों से बातें करना पसंद था. उस की हौबी पेंटिंग और सर्फिंग थी. वह जिंदगी में कुछ ऐसा करना चाहता था जो दुनिया में हमेशा के लिए रह जाए. यह सब पढ़ कर मुझ में उस से बात करने की इच्छा जगी. वैसे भी मुझे चाइनीज लैंग्वेज के अभ्यास के लिए उस की जरूरत थी.

काफी सोचविचार कर मैं ने उस से बातचीत की शुरुआत करते हुए लिखा, ‘‘हैलो इत्सिंग.’’ हैलो का जवाब हैलो में दे कर वह गायब हो गया. मुझे कुछ अजीब लगा, लेकिन मैं ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और फिर से लिखा, ‘‘कैन आई टौक टु यू?’’

उस का एक शब्द का जवाब आया, ‘‘यस.’’‘‘आई लाइक्ड योर प्रोफाइल,’’ कह कर मैं ने बात आगे बढ़ाई.‘‘थैंक्स,’’ कह कर वह फिर खामोश हो गया. उस ने मुझ से मेरा परिचय भी नहीं पूछा. फिर भी मैं ने उसे अपना नाम बताते हुए लिखा, ‘‘माई सैल्फ रिद्धिमा फ्रौम दिल्ली. आई हैव डन माई ग्रैजुएशन इन चाइनीज लैंग्वेज. आई नीड

योर हैल्प टू इंप्रूव इट. विल यू प्लीज टीच मी चाइनीज लैंग्वेज?’’ इस का जवाब भी इत्सिंग ने बहुत संक्षेप में दिया, ‘‘ओके बट व्हाई मी? यू कैन टौक टु एनी अदर पीपल औलसो.’’ ‘‘बिकौज आई लाइक योर थिंकिंग. यू आर वैरी डिफरैंट. प्लीज हैल्प मी.’’

‘‘ओके,’’ कह कर वह खामोश हो गया पर मैं ने हिम्मत नहीं हारी. उस से बातें करना जारी रखा. धीरेधीरे वह भी मुझ से बातें करने लगा. शुरुआत में काफी दिन हम चाइनीज लैंग्वेज में नहीं, बल्कि इंग्लिश में ही चैटिंग करते रहे. बाद में उस ने मुझे चाइनीज सिखानी भी शुरू की. पहले हम ईमेल के द्वारा संवाद स्थापित करते थे, फिर व्हाट्सऐप आ गया था सो हम उस पर चैटिंग करने लगे.

व्हाट्सऐप पर बातें करतेकरते हम एकदूसरे के बारे में काफी कुछ जाननेसमझने लगे. मुझे इत्सिंग का सीधासाधा स्वभाव और ईमानदार रवैया बहुत पसंद आ रहा था. उस की सोच बिलकुल मेरे जैसी थी. वह भी अन्याय बरदाश्त नहीं कर सकता था. शोशेबाजी से दूर रहता और महिलाओं का सम्मान करता. उसे भी मेरी तरह फ्लर्टिंग और बटरिंग पसंद नहीं थी.

हमें बातें करतेकरते 3-4 महीने से ज्यादा समय गुजर चुका था. इतने कम समय में ही मुझे उस की आदत सी हो गई थी. वह मेरी भाषा नहीं जानता था पर मुझे बहुत अच्छी तरह समझने लगा था. उस की बातों से लगता जैसे वह भी मुझे पसंद करता है. मैं इस बारे में अभी पूरी तरह से श्योर नहीं थी पर मेरा दिल उसे अपनाने की वकालत कर चुका था. मैं उसे के खयालों में खोई रहने लगी थी. मैं समझ नहीं पा रही थी कि उस से अपनी फीलिंग्स शेयर करूं या नहीं.

एक दिन मेरी सहेली मिलने आई. उस वक्त मैं इत्सिंग के बारे में ही सोच रही थी. सहेली के पूछने पर मैं ने उसे सबकुछ सचसच बता दिया.

 

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