लेखक- रोहित
मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार ने नौकरी मांग रहे बेरोजगार युवाओं पर लाठीडंडे चला कर यह साबित कर दिया है कि वह इन मुद्दों पर संवेदनशील नहीं है. भारत देश में बात अगर लाठी और लाठीचार्ज के अंतर की हो तो लाठी हमारे सामाजिक परंपरा का हिस्सा रही है जबकि लाठीचार्ज राजनीतिक परंपरा. सरकारें आईं और गईं, लेकिन लाठी हर दौर की राजनीति का अंतिम सत्य रही. लाठी का जिस ने जितना प्रयोग किया, उतना उस ने पार पा लिया. न जाने कितनी ही आवाजें लाठी के लठेड़ों से निकलती चीख के साथ उठते ही अगले पल दब जाती हैं. यह लाठी ही है जो भूखे को भूखा रहना सिखाती है,
बेरोजगार को बेगारी सिखाती है और आमजन को महंगाई की मार झेलना. भूख, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, पानी इत्यादि जो भी मांग जनता की तरफ से उठती है, उसे यह सब छोड़ भेंट में तड़तड़ाती लाठी प्राप्त होती है. आजादी से पहले तो यह ‘उपहारस्वरूप’ अंगरेजों से मिलती थी, पर आजादी के बाद इस परंपरा को जस का तस बरकरार रखा गया. तभी नौकरी की मांग कर रहे युवाओं से ले कर कानून वापसी की मांग कर रहे किसानों पर यह लाठी बरस पड़ती है. वहीं, सरकारों की भी अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं, जिम्मेदारियां होती हैं जिन्हें वे निभाती चलती हैं. शायद तभी हताश जनता पर पड़ती लाठियां इन्हीं जिम्मेदारियों और मजबूरियों से कमाल का फ्यूजन क्रिएट कर जाती हैं, जिसे लोग तानाशाही कहते हैं. सरकार के ही पिछले 7 सालों के ‘रामराज्य’ रूपी शासन को देखें तो आमजनों की पीड़ा और लाठी के अनुभव गजब तालमेल से बैठते रहे हैं.
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जबजब बात मुद्दों पर आई, तबतब लपलपाती लाठी पीठ पर छप गई. मध्य प्रदेश में लाठीचार्ज ऐसे ही 18 अगस्त को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रोजगार की मांग कर रहे बेरोजगार युवाओं पर शिवराज सरकार ने जम कर लाठियां भांजीं. प्रदर्शनकारी प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आए युवाओं द्वारा भोपाल में ‘मूवमैंट अगेंस्ट अनएम्प्लौयमैंट’ के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे थे. सभी युवा अपनी जायज मांगों के साथ इकट्ठा हुए थे, जिस का सपना दिखा कर भाजपा जीती है. शिवराज सरकार पर युवाओं का आरोप था कि सरकार ने बीते 4 सालों में खाली पड़े पदों पर न तो भरतियां निकालीं, न ही कोई तय घोषणा की थी. बैकलाग पदों पर 17 सालों से प्रदेश में भरती नहीं की गई थी. बीते 4 सालों से प्रदेश में कोई भी बड़ी भरती नहीं निकली. इसे ले कर बेरोजगार युवा भोपाल में शांतिपूर्ण ढंग से रैली निकाल रहे थे.
विरोध प्रदर्शन में लाठीचार्ज का वाकेआ तब हुआ जब युवा नीलम पार्क से अपना आंदोलन आगे बढ़ा रहे थे. वहां पुलिस ने बल प्रयोग करते हुए युवाओं को दौड़ादौड़ा कर पीटा. इस से 25 से ज्यादा बेरोजगार युवा घायल हो गए. इन में 100 से अधिक युवाओं के ऊपर कई धाराओं 341, 149 एवं 353 के तहत मामले दर्ज किए गए. इन में वे लोग भी धरना दे रहे थे जो शिक्षक भरती परीक्षा पास कर चुके थे. पुलिस ने उन्हें भी बल प्रयोग कर हटा दिया. पीछे कुआं, आगे खाई युवाओं द्वारा सरकार को सौंपे ज्ञापन में कहा गया था कि ‘प्रदेश में सरकारी विभागों में भरती न होने पर लाखों शिक्षित युवा बेरोजगारी के चलते हताश हैं. इस से वे तनाव में आत्मघाती कदम भी उठा रहे हैं. बीते दिनों राजगढ़ के एक युवा ने सुसाइड नोट में प्रदेश के मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए सरकारी नौकरी नहीं मिलने का जिक्र कर आत्महत्या कर ली थी.
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ठीक इसी दिन एसएससी जीडी परीक्षा में उत्तीर्ण उम्मीदवारों ने नियुक्तिपत्र जारी करने की मांग करते हुए दिल्ली के जंतरमंतर पर प्रदर्शन किया था. उस दौरान पुलिस ने उन पर भी लाठीजार्च किया और कई लोगों को हिरासत में ले लिया. यह कोई इकलौता मामला नहीं. इसी साल जून माह में बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में कई बेरोजगार युवा नौकरी की मांग के लिए इकट्ठा हुए थे. वे सभी नीतीश सरकार से बिहार में रुकी भरतियों की बहाली की मांग कर रहे थे. रोजगार की मांग को ले कर युवाओं ने गांधी मैदान से विधानसभा तक का मार्च रखा हुआ था. प्रदर्शनकारी जैसे ही विधानसभा की तरफ कूच करने लगे, पुलिस के साथ उन की झड़प होनी शुरू हुई, जिस के बाद पुलिस ने लाठियां बरसानी शुरू कर दीं. युवाओं और पुलिस में यह टसल इतनी बढ़ गई कि पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर वाटर केनन और आंसू गैस के गोले भी छोड़े.
इसी प्रकार पिछले वर्ष सितंबर महीने में ‘राष्ट्रीय बेरोजगार दिवस’ के आह्वान पर इकट्ठा हुए युवाओं पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग किया गया. प्रदर्शन कर रहे युवाओं के समूह अलगअलग इलाकों से निकल कर सड़क पर आए थे और ‘संविदा नहीं, रोजगार चाहिए’ के नारे के साथ प्रदर्शन कर रहे थे. इस प्रदर्शन में अलगअलग युवा संगठनों के बैनर तले युवा एकजुट हुए. प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को महामारी का हवाला दे कर प्रदर्शन खत्म करने को कहा. जब प्रदर्शनकारी नहीं माने तो पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे युवाओं पर लाठीचार्ज शुरू कर दिया जिस से कई प्रदर्शनकारी गंभीर तौर पर घायल हुए. ऐसा ही हाल देहरादून से भी सामने आया था जहां बेरोजगारी से त्रस्त युवाओं का गुस्सा उत्तराखंड की भाजपा सरकार पर फूट पड़ा. ‘रोजगार दो या गद्दी छोड़ दो’ नारे के साथ प्रदेशभर से आए सैकड़ों बेरोजगारों ने सचिवालय कूच किया.
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बेरोजगार युवाओं के रेले को पुलिस ने ईसी रोड पर सैंट जोजेफ्स एकैडमी के बाहर रोक लिया. जहां पर रुक कर युवाओं ने सभा की. मौके पर किसी अधिकारी के न पहुंचने से हंगामे की स्थिति बनी तो पुलिस ने बेरोजगारों को गिरफ्तार कर लिया. जब युवाओं ने गिरफ्तारी का विरोध किया तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. इस से कई बेरोजगार युवा घायल हो गए. वहीं, उसी समय पिथौरागढ़ में भी बड़ी संख्या में बेरोजगार युवाओं ने रैली निकाल कर नौकरी देने की मांग की. ऐसे कई मामले हैं जहां युवाओं को रोजगार के बदले सरकार/प्रशासन की लाठियां खानी पड़ी हैं. युवाओं को रोजगार का सपना दिखाने वाली भाजपा सरकार ने आज देश के युवाओं को ऐसी हालत में ला कर छोड़ दिया है जहां से पार पाना मुश्किल हो चला है. 2014 में सत्ता में आने से पहले युवाओं को अच्छे दिनों के सपने दिखाए थे.
युवा बेहतर रोजगार और विकास के सपने संजोने लगे थे, पर युवाओं की उम्मीद वहीं टूट गई जब पकौड़े तलने को ही युवाओं के लिए रोजगार की श्रेणी में डाल दिया. आईएलओ के आंकड़ों के अनुसार, विश्व में औसत रोजगार दर 57 फीसदी है. जबकि, भारत की औसत रोजगार दर 47 फीसदी है. यहां तक कि हम से नीचे माने जाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान, श्रीलंका और बंगलादेश भी भारत से इस मामले में आगे हैं. पाकिस्तान और श्रीलंका की रोजगार दर कमश: 50 और 51 फीसदी है, जबकि बंगलादेश में रोजगार दर 57 फीसदी है. आज देश अभूतपूर्व बेरोजगारी देख रहा है. यही कारण है कि पिछले वर्ष 17 सितंबर को युवाओं ने प्रधानमंत्री के 70वें जन्मदिन को ‘बेरोजगार दिवस’ और ‘जुमला दिवस’ घोषित कर दिया था.
यह मामला अनोखा इसलिए भी था कि एक तरफ पूरे देश में भाजपा मोदी के जन्मदिन को साप्ताहिक दिवस के तौर पर मना रही थी और मोदी के लिए 70 किलो का लड्डू चढ़ाया जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर इस दिन को युवाओं द्वारा हैशटैग ‘राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस’ के तौर पर ट्रैंड किया जा रहा था. इसी प्रकरण में युवाओं ने देश की अलगअलग जगहों पर धरनेप्रदर्शन भी किए थे, जिन पर सरकार द्वारा लाठियां भी भांजी गई थीं. क्या कहते हैं आंकड़े सीएमआईई ने जनवरी 2019 में एक आंकड़ा जारी किया जिस के अनुसार नोटबंदी और जीएसटी के चलते 2018 में 110 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं, ये मोदी सरकार के ‘मास्टर स्ट्रोक’ थे जिन का क्या फायदा देश की जनता को हुआ, यह अभी तक सरकार बता नहीं पाई है.
हां, इन के नुकसान, आंकड़ों के रूप में आज सब के सामने हैं ही. सरकार की एनएसएसओ की लीक्ड रिपोर्ट के अनुसार, भारत की बेरोजगारी दर 2017-18 में 45 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी. सीएमआईई के अनुसार, 2020-21 में नौकरी या जौब मिलने में 98 लाख की गिरावट हुई है. इसी रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैलमई के महीने में 2.27 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. तब बेरोजगारी दर 12 प्रतिशत तक पहुंच गई. आज युवा सरकारी नौकरी के लिए लाठियां खाने को मजबूर हैं क्योंकि विगत 7 सालों में सरकार की पौलिसी सरकारी सैक्टर को खत्म करने की रही है. मोदी सरकार की मार सरकारी सैक्टर पर बेहद पड़ी है, सरकार ने कई सरकारी कंपनियां नीलामी पर लगा दी हैं या बेचने की पूरी योजना बना चुकी है.
सरकारी रोजगार के हालात बद से बदतर होते गए हैं क्योंकि जिन हाथों से सरकार कमाती थी, युवाओं को रोजगार देती थी उन्हीं हाथों को उस ने काट दिया है. यही कारण है कि एसएससी सीजीएल में 2013 में कुल 16,114 वेकैंसियां हुआ करती थीं जो साल 2020 में गिर कर 6 हजार रह गईं. यानी, साल 2020 की तुलना साल 2013 से करें तो लगभग 56 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है. इस के अलावा बैंकिंग क्षेत्र की बात करें तो साल 2013 में आईबीपीएस पीओ की 21,680 वेकैंसियां हुआ करती थीं जो साल 2020 में महज 1,167 रह गईं. तुलना करें तो इस में तकरीबन 95 फीसदी की भारी गिरावट हुई. रोजगार के मामले पहले ही डराने वाले थे. साल 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए सरकार ने लभगग डेढ़ लाख रेलवे में बंपर नौकरियां तो निकालीं, लेकिन आज 3 वर्षों बाद भी 2.4 करोड़ युवा अपने पहले एग्जाम के लिए तरस रहे हैं. इन्हीं सब कारणों के चलते कई युवा अपने जीवन में बेचैनी के शिकार हो रहे हैं.
राजनीतिक दलों द्वारा जनता को रि झाने के लिए दिए गए ‘अच्छे दिन’ के लौलीपौप बेरोजगार युवाओं पर भारी पड़ रहे हैं. शिक्षादीक्षा के बाद भी सरकारी नीतियों के कारण तेजी से खत्म हो रहे रोजगार, बेहतरीन शिक्षादीक्षा के बाद भी युवाओं को मौत की आगोश में धकेल रहे हैं. युवाओं की बेचैनी उत्तराखंड के रामगगर में पिछले महीने ही एक 24 वर्षीय युवक सोनू को बेरोजगारी के दानव से बचने के लिए फांसी का फंदा चूम कर अपनी जान गंवानी पड़ी. युवा बेरोजगारी से तंग था, इस का सुबूत यह रहा कि दुनिया छोड़ने से पहले उस ने अपनी उम्मीदों के चिराग बने शैक्षिक प्रमाणपत्रों को जला कर बेशर्मी की गर्त में जा चुके नीतिनियंताओं को बेरोजगार युवाओं की बेचैनी और बेबसी का संदेश देने की कोशिश भी की.
एनसीआरबी द्वारा 2020 की शुरुआत में जारी किए आंकड़ों के मुताबिक, बेकारी और बेरोजगारी से तंग आ कर खुदकुशी करने वालों की संख्या किसानों की आत्महत्या की तादाद से ज्यादा है. साल 2018 में कुल 12,936 युवाओं ने आत्महत्या की थी. यह किसानों की सालाना आत्महत्या से अधिक थी. आंकड़े के अनुसार, हर दिन औसतन 35 युवा बेरोजगारी के चलते आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं. यह आंकड़ा 2017 के मुकाबले बड़ा ही था. लेकिन सरकार इन मसलों को सम झने की जगह उलटा हक मांग रहे युवाओं पर ही लाठियां भांजने का काम कर रही है. देशवासियों पर महंगाई की मार तो है ही, ऊपर से युवाओं पर बेरोजगारी की भी. ये दोनों एकसाथ चलती हैं तो युवाओं की आत्महत्या जैसा कदम उठाने की संभावना बढ़ जाती है, खासतौर से तब जब सरकार समस्या के निबटान की जगह उन पर लाठी चलाने में विश्वास रखती हो.