20 वर्षों बाद अफगानिस्तान में तालिबान ने फिर से सत्ता पर कब्जा जमाया है. यह वही धार्मिक सत्ता है, जिस ने अतीत में कई यातनाओं के कुचक्र चलाए हैं. जिसे याद करते हुए सिरहन दौड़ने लगती है. लेकिन इस सब से भारत खुद क्या सीख सकता है, उस के लिए अफगानिस्तान में घटी यह घटना क्यों माने रखती है, जानें इस रिपोर्ट में. इस 15 अगस्त, एक तरफ भारत देश ने अपनी आजादी के 75 साल पूरे होने का जश्न मनाया तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की जनता ने अपनी बचीखुची आजादी को तालिबानियों के हाथों गंवाया. अफगानिस्तान, एक ऐसा मुल्क जो आज पूरे विश्व के चिंतन का केंद्र बना हुआ है.

वहां की जनता अब तालिबानियों के हाथों ऐसे मुहाने पर खड़ी है जिस की नियति भविष्य के गहरे अंधेरे की तरफ ले कर जाती है. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबानियों का पूरा नियंत्रण हो जाने के बाद वहां के हालात पूरी तरह बदल गए. जाहिर है, 20 साल पहले की ही तरह अब वहां धर्म पर आधारित सत्ता होगी. जिस की चर्चा भारत समेत पूरी दुनिया में हो रही है और होनी भी चाहिए. इतिहास में शायद ही किसी मुल्क के पन्ने इतने अजीबोगरीब तरीके से पलटे हों जैसे अफगानिस्तान की पथरीली और पहाड़ी जमीन के पलटे हैं. कभी शानदार स्वर्णिम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे इस देश ने 1990 के बाद तालिबानी शासन को देखा था, उस के जख्म को झेला था, जहां पुरुषों के लिए दाढ़ी और महिलाओं के लिए पूरे शरीर को ढकने वाले बुर्के का इस्तेमाल जरूरी कर दिया गया.

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