देश की गरीबी के आंकड़े अकसर छिपाए जाते हैं. लेकिन जरा खबरों की परतें उधेड़ें, तो सच सामने आ जाता है. मिडडे मील स्कीम का नाम प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण करते समय यह साफ किया गया है कि लगभग 12 करोड़ बच्चों को खाना स्कूल में दिया जाएगा ताकि इस बहाने वे स्कूल तो आ जाएं. खाना उन की सेहत के लिए नहीं, बल्कि लालच के तौर पर उपलब्ध कराया जाता है. इस में कक्षा 8 तक के बच्चे शामिल हैं.

इन बच्चों के मातापिता की गरीबी इस बात से स्पष्ट है कि वे अपने छोटे बच्चों को वह खाना भी नहीं खिला सकते जो स्कूलों में भिखारियों की तरह परोसा जाता है. इस खाने को बनाने और वितरण में जो धांधलियां होती हैं उन की बात छोड़ भी दें तो भी यह साफ है कि 70 वर्षों के कांग्रेसी राज और 7 वर्षों के भाजपाई राज में इन गरीबों की गिनती लगातार बढ़ रही है, घट नहीं रही. जबकि, जन्मदर तेजी से घट रही है.

इन बच्चों को प्रतिबच्चा केवल 100 से 150 ग्राम अनाज पका कर दिया जाता है. इस खाने को बनाने व पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है. यह स्कीम साबित करती है कि देश में आम जनता की कितनी बुरी हालत है. हर साल 16,000 करोड़ रुपए खर्च कर के इन बच्चों को सिर्फ स्कूली दिनों में जिंदा रखना होता है. मिडडे मील योजना असल में देश की सरकारों के मुंह पर लगाया गया खुद का तमाचा है. यह योजना दर्शाती है कि हजारों प्रबंध और नीतियां कितनी व्यर्थ की हैं कि बच्चों को अच्छा घर, दवाएं, साफसुथरा माहौल, कपड़े, मनोरंजन तो मिलना तो छोड़ दें, उन्हें आज खाने के लाले भी हैं. देश की पूजापाठी सरकार,  बड़ी पुलिस, सेना, अफसरों और सरकारी कर्मचारियों की फौज किस काम की जब मांबाप पेट भरने लायक पैसा तक न कमा सकें.

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