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हैप्पी एंडिंग : भाग 1

लेखिका- अनामिका अनूप तिवारी

आज10 वर्ष के बाद फिर उसी गली में खड़ी थी. इन्हीं संकरी पगडंडियों के किनारे बनी इस बड़ी हवेली में गुजरा मेरा बचपन, इस हवेली की छत पर पनपा मेरा पहला प्यार… जिस का एहसास मेरे मन को भिगो रहा था. एक बार फिर खुली मेरी यादों की परतें, जिन की बंद तहों पर सिलवटें पड़ी हुई थीं, गलियों से निकलते हुए मेरी नजर चौराहे पर बने गांधी पार्क पर पड़ी, छोटेछोटे बच्चों की खिलखिलाहट से पार्क गुंजायमान हुआ था, पार्क के बाहर अनगिनत फूड स्टौल लगे हुए थे जिन पर महिलाएं खानेपीने के साथ गौसिप में खोई थीं… सुखद एहसास हुआ… चलो, आज की घरेलू औरतें चाहरदीवारी से कुछ समय अपने लिए निकाल रही हैं, मैं ने तो मां, चाचियों को दादी के बनाए नियम के अनुसार ही जीते देखा है, पूरा दिन घर के काम और रसोई से थोड़ी फुर्सत मिलती तो दादी बडि़यां, चिप्स और पापड़ बनाने में लगा देतीं.

चाचियां भुनभुनाती हुई मां के पीछे लगी रहतीं, किसी के अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी, कि कुछ समय आराम करने के लिए मांग सके. दादी के तानाशाही रवैये से सभी त्रस्त थे लेकिन ज्यादातर उन की शिकार मैं और मां बनते थे. पूरे खानदान में मेरे रूपसौंदर्य की चर्चा होती तो वहीं दादी को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती, मेरे स्कूल आनेजाने के लिए भाई को साथ लगा दिया जो कालेज जाने तक साए की तरह साथ लगा रहता.

10 बेटों के बीच मैं एक एकलौती बेटी थी. सभी का भरपूर प्यार मिला लेकिन साथ कई बंदिशें भी, पिताजी अपने 5 भाइयों के साथ बिजनैस संभालने में व्यस्त रहते और भाइयों को मेरी निगरानी में लगा रखा था जो अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते थे.

परीक्षा खत्म होने के साथसाथ गर्मियोें की छुट्टियों में कुछ दिन आजादी के मिलते थे जब मां अपने मायके और मैं और भाई मामा के घर खुद के बनाए नियम में जीते थे. मैं बहुत खुश थी, मामा के घर जाना है लेकिन अगली सुबह ही दादी ने घर में एक नया फरमान जारी किया… ‘‘रीवा कहीं नहीं जाएगी… लड़की जवान हो रही है. ऐसे में तो अपने सगों पर भरोसा नहीं तो मैं कैसे जाने दूं उसे तेरी ससुराल, कुछ ऊंचनीच हो गई तो सारी उम्र सिर फोड़ते रहोगे. तुम्हारी घरवाली जाना चाहे तो जा सकती है बस रीवा नहीं जाएंगी. पिताजी हमेशा की तरह सिर झुकाए हां में हां मिलाए जा रहे थे.’’

मेरी आंखों से गंगाजमुना की धार बह चली थी. पता नहीं उन दिनों इतना रोना क्यों आता था अब तो बड़ी से बड़ी बात हो जाए आंखें सूखी रहती हैं. खूब रोनाधोना मचाया लेकिन कुछ काम नहीं आया. मुझ पर लगी इस बंदिश ने मां का मायका भी छुड़ा दिया. मां की तकलीफ देख कर दिल से आह निकली ‘‘काश… मैं लड़की नहीं होती’’ उस दिन पहली बार लड़की होने पर दु:ख हुआ था.

छत की मुंडेर पर बैठी चाची के रेडियो से गाने सुन रही थी, रफी के हिट्स चल रहे थे… दर्द भरे गानों में खुद को फिट कर दुखी होने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. तभी पीछे की छत से आवाज आई ‘‘गाना अच्छा है.’’ पीछे मुड़ कर देखा एक हैंडसम लड़का मेरी तरफ देख कर मुसकरा रहा था… ‘‘पर ये हैं कौन?’’ खुद से सवाल किया.

‘‘हाय… मैं सुमित, यह मेरी बूआ का घर है… आप का नाम?’’ अच्छा… तो ये बीना आंटी का भतीजा है.‘‘मेरा नाम जानने की कोशिश न ही करो यही तुम्हारे लिए बेहतर होगा’’ कहते हुए मैं अपने कमरे में चली आई. मैं वहां से चली तो आई पर न जाने कैसा एहसास साथ ले आई थी. 17 की हो गई थी और आज तक कभी किसी भी लड़के ने मुझ से बात करना तो दूर… नजर उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं की थी और इस का पूरा श्रेय मेरे आदरणीय भाइयों को जाता है.

और उस दिन पहली बार किसी लड़के ने मुझ से मुसकरा कर मेरा नाम पूछा था… जैसे मेरे अंदर प्रेम की सुप्तावस्था को थपकी दे कर उठा रहा हो, मैं उस के उठने के एहसास से ही भयभीत हो गई थी, क्योंकि मैं जानती थी कि यह एहसास एक बार जग गया तो मेरे साथ मेरी मां भी कभी न शांत होने वाले तूफान में फंस जाएंगी, जिस से निकलने की कोशिश मात्र से ही मेरे अस्तित्व की धज्जियां उड़ जाएंगी.

अगले दिन दिमाग के लाख मना करने के बाद भी दिल ने अपनी बात मुझ से मनवा ली और मैं फिर छत की मुंडेर के उस कोने में खड़ी हो गई. वह सामने ही खड़ा था लैमन यलो कलर की शर्ट के साथ ब्लू जींस में. बहुत हैंडसम दिख रहा था, बीना आंटी भी साथ में थी. उन्हें देख कर मैं ने अपने कदम पीछे करना चाहे तब तक बीना आंटी ने मुझे देख लिया था. ‘‘रीवा, इस बार अपने मामा के घर नहीं गई.’’ ‘‘नहीं, आंटी… मां की तबीयत ठीक नहीं है इसलिए दादी ने मना कर दिया.’’

‘‘ओह, काफी दिनों से सुरेखा भाभी से मिली नहीं, समय मिलते ही आऊंगी उन से मिलने.’’ ‘‘जी… आंटी.’’ ‘‘अरे हां… इस से मिलो, मेरा भतीजा सुमित… कल ही मद्रास से आया, वहां मैडिकल कालेज में पढ़ता है. 10 दिन की छुट्टियों में इस को बूआ की याद आ गई,’’ हंसते हुए बीना आंटी ने कहा. ‘‘बूआ, अच्छा हुआ मैं इस बार यहां आ गया यह तो पता चला आप के शहर में कितनी खूबसूरती छिपी है,’’ सुमित की आंखें मेरे चेहरे पर टिकी थीं.

मैं गुलाबी हो रही थी… शर्म से, प्रेम से, आनंद से. मैं ही जानती हूं उस पल मैं वहां कैसे खड़ी थी. आंटी के जाते ही आंधी की तरह भागती हुई अपने कमरे में पहुंच गई, सुमित की आंखें जाने क्याक्या बयां कर गई थीं, उस की आंखों का स्थायित्व मुझे एक अदृश्य डोर में बांध रहा था… मैं बंधती जा रही थी… दिल के साथ अब दिमाग भी विद्रोही हो गया था… क्या इसे ही पहला प्यार कहते हैं, यह कैसा अनुभव है, दिल का चैन खत्म हो चुका था, अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी, भूखप्यास सब खत्म… घर वालों को लगता मैं मामाजी के घर न जाने के कारण ऐसे गुमसुम सी, बेचैन हो कर छत के चक्कर लगाती हूं और उन का यह सोचना मेरे लिए अच्छा था, मुझ पर नजर थोड़ी कम रखी जाती.

 

Top 10 Best Parenting Tips in Hindi : टॉप 10 बेस्ट पेरेंटिंग कहानियां हिंदी में

Parenting Story in Hindi : इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आएं हैं सरिता की 10 Best Romantic Story in Hindi 2021. इस कहानियों में मां बाप के प्यार और बच्चों की कई कहानियां हैं, जिसमें हम बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर आपका बच्चा भी गलत रास्ते पर जानें लगता हैं तो उसे कैसे संभाला जा सकता है. तो पढ़िए सरिता कि  Top 10 Best Parenting Story in Hindi

  1. मां- बाप से बेरुखी, आखिर क्यों

पता नहीं क्या हो गया है आजकल के बच्चों को, मांबाप की इज्जत करना तो जैसे वे भूल ही गए हैं. हर समय फोन पर, फेसबुक पर लगे रहना, दोस्तों को ही सबकुछ समझना, उन से ही हर बात शेयर करना, कुछ भी पूछो तो पहले तो जवाब ही नहीं देते और अगर दिया भी तो सिर्फ हां या ना में, और अगर कुछ और ज्यादा पूछ लिया तो जवाब मिलता है, ‘आप को क्या मतलब’, ‘जब आप को कुछ पता नहीं तो बोलते ही क्यों हो,’ बातबात पर चीखनाचिल्लाना, गुस्सा करना, गलत भाषा का प्रयोग करना उन के व्यवहार में शामिल हो गया है. रिश्तों का सम्मान और मानमर्यादा जैसे शब्द तो मानो उन की डिक्शनरी में हैं ही नहीं. हाल ही में अमेरिका में हुई एक रिसर्च में भी पाया गया कि पिछले 30-40 वर्षों की अपेक्षा आज के बच्चे अधिक उपद्रवी हो गए हैं.

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2. मां-बाप की डांट से खुदकुशी क्यों

कई लड़का इम्तिहान में कम अंक लाने की वजह से पिता से डांट खाने के बाद किसी पुल से नदी में छलांग लगा रहा है. किसी लड़के की मोटरसाइकिल या स्मार्ट फोन की फरमाइश पूरी करने से पिता ने मना कर दिया तो वह सल्फास की गोली खाने में जरा भी देरी नहीं करता है. लड़की के चक्कर में पड़ कर पढ़ाई पर ध्यान नहीं देने के लिए जब मांबाप किसी बच्चे को फटकार लगाते हैं तो कोई अपार्टमैंट की छत से कूद कर जान देता है तो कोई ट्रेन के आगे कूद कर. मांबाप की डांट से आहत या नाराज हो कर और बातबेबात खुदकुशी करने की वारदातें तेजी से बढ़ रही हैं.

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3. बेहतर भविष्य के लिए जिंदगी खोते बच्चे

घर में घुसे बाजार और इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने छोटे परिवारों को ऐसे बड़े घरों के सपने दिखाए हैं जिन में सुखसुविधाओं के सभी संसाधन भरे हों. फिर अब तो घर से ले कर मोबाइल फोन तक लोन पर मिलने लगे हैं. ईएमआई ने हर घर में सेंध लगा दी है. कर्ज लेना अब गरीब होने की निशानी नहीं रह गया है, बल्कि स्टेटस सिंबल है कि फलां दंपती अपने 3+1 बीएचके फ्लैट के लिए 50 हजार रुपए की ईएमआई भर रहा है.

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4. बच्चे अलग सोएं या मां बाप के साथ

बच्चों में शुरू से ही अलग सोने की आदत डालनी चाहिए. इस से कई लाभ होते हैं. बच्चे के अलग सोने से मां का स्वास्थ्य ठीक रहता है. मां आराम से सो लेती है. बच्चा भी पूरे बिस्तर पर करवट ले कर सो सकता है. अत: दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है. आए दिन डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता. इस के विपरीत बच्चे के मां के साथ सोने से मां को बराबर यह चिंता बनी रहती है कि कहीं बच्चे का हाथ या पैर उस के शरीर के नीचे न दब जाए.

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5. हिंसक बच्चों को चाहिए मनोवैज्ञानिक सलाह, वरना हो सकता है नुकसानन

बच्चों में पनपती हिंसात्मक प्रवृत्ति के लिए जिम्मेदार कौन है? यह पूछे जाने पर जितेंद्र नागपाल का कहना है, ‘‘हिंसा के लिए तीन-चौथाई दोषी मैं उनके माता-पिता और पारिवारिक माहौल को मानता हूं. बाकी 25 प्रतिशत फिल्में,टेलीविजन और आपका आतंकवादी माहौल जिम्मेदार है.

‘‘सब से बड़ी बात है कि अभिभावक अपने बच्चों की हिंसात्मक प्रवृत्ति को छिपाते हैं या अपने स्तर पर ही समझा-बुझा कर मामला रफादफा करना चाहते हैं. वह यह मानने को कतई तैयार नहीं होते कि उन का बच्चा किसी मानसिक रोग से पीडि़त है और उसे मनोचिकित्सक की सलाह की जरूरत है, जबकि बच्चों में पनपती इस हिंसा को रोकने के लिए उन्हें मनोचिकित्सा की जरूरत होती है. दंड देना या जलील करना उन्हें और ज्यादा आक्रामक बना जाता है.

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6. बिगड़ैल बच्चों पर लगाम लगाना जरूरी

रिसर्च के मुताबिक, छोटे बच्चे जो बादशाही जीवन व्यतीत करने लगते हैं, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16 फीसदी कम जोखिम उठाते हैं. ऐसे बच्चे न कोई प्रतियोगिता करना चाहते हैं, न उन्हें अपनी तुलना करना पसंद है. ऐसे बच्चों को बस जो मुंह से निकला वह हाथ पर होना चाहिए. ऐसे बच्चे पूरी तरह से अपने पेरैंट्स पर ही निर्भर व हावी हो जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्वार्थी होते चले जाते हैं.  बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं, उसे आप जिस सांचे में ढालेंगे वैसा ही उसे रूप व आकार मिलेगा. बचपन में आप अगर बच्चे को स्पैशल फील कराएंगे तो वह जीवनभर बादशाही जीवन जीने की सोचेगा. छोटा बच्चा होने तक तो आप उस की हर डिमांड पूरी करने को तैयार हो उठेंगे लेकिन उस के बड़े होने पर आप को कभी न कभी अपनी आज की गलती का एहसास जरूर होगा. इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप बचपन से ही बच्चे को ज्यादा छूट न दें. ऐसा भी नहीं कि उस के साथ आप सख्ती बरतनी शुरू कर दें.

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7. मासूम बच्चों पर पड़ता पारिवारिक झगड़ों का असर

मनोविज्ञानी अजय मिश्रा कहते हैं कि परिवार और मातापिता के झगड़ों के बीच बच्चे पिसते ही नहीं, बल्कि घुटते भी रहते हैं. हजारों ऐसे मामले अदालतों में चल रहे हैं और बच्चे सहमे और घुटते रहते हैं. एक वाकेआ के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि रांची के एक पतिपत्नी की लड़ाई का मामला उन के पास आया था. घर वाले दोनों के झगड़े से तंग आ कर दोनों को काउंसलिंग के लिए मेरे पास लाए थे. उन के 2 बच्चे भी उन के साथ आए थे.

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8. जी हां…बच्चे भी करते हैं मां-बाप पर अत्याचार

बच्चे को यह नुस्खा बड़ा कारगर लगा. डांटने का सारा सिलसिला खत्म और मौजमस्ती करने की पूरी छूट. अगर कोई डांटे तो 911 पर कॉल कर पुलिस को बुला लो. किसी बच्चे को माता-पिता अथवा टीचर द्वारा थप्पड़ मारने पर उन को जेल हो जाना यहां के लोगों के लिए आम बात है, लेकिन हमारे जैसे भारतीय परिवारों के लिए मुसीबत का वारंट.न

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9. सिंगल चाइल्ड : अकेलेपन और असामाजिकता के शिकार बच्चे

7 साल का आर्यन घर का इकलौता बच्चा है. वह न नहीं सुन सकता. उस की हर जरूरत, हर जिद पूरी करने के लिए मातापिता दोनों में होड़ सी लगी रहती है. उसे आदत ही हो गई है कि हर बात उस की मरजी के मुताबिक हो. हालात ये हैं कि घर का इकलौता दुलारा इस उम्र में भी मातापिता की मरजी के मुताबिक नहीं, बल्कि मातापिता उस की इच्छा के अनुसार काम करने लगे हैं. कई बार ऐसा भी देखने में आता है कि हद से ज्यादा लाड़प्यार और अटैंशन के साथ पले इकलौते बच्चों में कई तरह की समस्याएं जन्म लेने लगती हैं. ‘एक ही बच्चा है’ यह सोच कर पेरैंट्स उस की हर मांग पूरी करते हैं. लेकिन यह आदत आगे चल कर न केवल अभिभावकों के लिए असहनीय हो जाती है बल्कि बच्चे के पूरे व्यक्तित्व को भी प्रभावित करती है.

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10. अब नहीं मिलते हिटलर पापा

घर का स्वामी जो पैसा कमा कर लाता है और जो घर को चलाता है उस को ले कर सब के अंदर एक डर सा बना रहता. पितारूपी इंसान कहीं नाराज न हो जाए, इस डर से कोई खुल कर हंसखेल नहीं सकता था. अपने मन की बात नहीं कह सकता था, कोई इच्छा प्रकट नहीं कर सकता था, घर के किसी मामले में अपनी राय नहीं रख सकता था. मां भी किसी चीज की जरूरत होने पर दबीसहमी जबान में पिताजी को बताती थी. अधिकतर इच्छाएं तो उस के होंठों पर आने से पहले ही दम तोड़ देती थीं. पिताजी की हिटलरशाही के आगे पूरा घर सहमा रहता था. जो पिताजी ने कह दिया, वह बस पत्थर की लकीर हो गई. पिताजी ने कह दिया कि लड़के को डाक्टर बनाना है तो फिर भले लड़के का पूरा इंट्रैस्ट संगीत में क्यों न हो, उसे डाक्टरी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में पूरी जान लगानी पड़ती थी.

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सीएम योगी का मनरेगा कर्मियों को बड़ा तोहफा

लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मनरेगा कर्मियों को दशहरा और दीपावली के पहले बड़ा तोहफा दिया है. उन्होंने मनरेगा कर्मियों के मानदेय वृद्धि की इसी माह से देने की घोषणा की है.

उन्होंने मनरेगा कर्मियों के लिए उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन की तरह एचआर पालिसी एक माह के अंदर लाने की घोषणा की है, जिसमें आकष्मिक अवकाश 24 दिन और चिकित्सा अवकाश 12 दिन मिलेगा. यह बातें उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी सम्मेलन के दौरान कहीं.

कार्यक्रम का आयोजन डिफेंस एक्सपो मैदान वृंदावन लखनऊ में किया गया था. सीएम योगी ने मनरेगा कर्मियों के जॉब चार्ट में ग्राम्य विकास विभाग के कई अन्य कार्यों को भी जोड़ने का ऐलान किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि रोजगार सेवक की सेवा समाप्ति के पूर्व उपायुक्त मनरेगा की सहमति आवश्यक होगी. यानि कोई जबरदस्ती नहीं हटा पाएगा.

उन्होंने कहा कि ग्राम रोजगार सेवक यदि नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान के निकटतम संबंधी या परिवारीजन हैं, तो उन्हें निकटतम रिक्त ग्राम पंचायत में तैनात किया जाएगा. उनकी सेवाएं समाप्त नहीं होंगी. इसी तरह उन्होंने महिला ग्राम रोजगार सेविका के विवाह के बाद उन्हें नए जिले में तैनात किया जाएगा. इसके अलावा सभी महिला संविदा कार्मिकों 180 दिन का मातृत्व अवकाश लागू कर दिया गया है.

सीएम योगी ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले राज्य स्तर पर अपर आयुक्त मनरेगा योगेश कुमार आदि, विकास खंड के अधिकारियों, कई मनरेगा कर्मियों को प्रशस्ति पत्र देकर पुरस्कृत भी किया. इस दौरान ग्राम्य विकास एवं समग्र ग्राम विकास विभाग के मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह मोती सिंह और राज्य मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ल ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया.

इन मनरेगा कर्मियों का बढ़ा मानदेय

सीएम योगी ने मनरेगा कर्मियों को अब ग्राम रोजगार सेवकों को 10 हजार, तकनीकी सहायकों को 15,656, कंप्यूटर आपरेटरों को 15,156, अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी को 34,140, लेखा सहायक को 15,156, आपरेशन सहायक को 18,320, हेल्पलाइन एक्जीक्यूटिव को 18,320, चतुर्थ श्रेणी कर्मी को नौ हजार, ब्लॉक सोशल आडिट कोआर्डिनेटर को 14,100, डिस्ट्रिक्ट सोशल आडिट कोआर्डिनेटर को 19 हजार नौ सौ रुपए का मानदेय अक्तूबर माह से देने की घोषणा की है.

भ्रष्टाचार संज्ञान में आए, तो करें कठोरता पूर्वक कार्यवाही: सीएम योगी

उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार का यह संकल्प है कि भ्रष्टाचार मुक्त पूणर्त: पारदर्शी ढंग से लाभार्थियों को योजनाओं का लाभ उपलब्ध कराया जाए और जहां कहीं भी भ्रष्टाचार के प्रकरण संज्ञान में आएं, उसमें कठोरता पूर्वक कार्यवाही भी की जाए. उन्होंने कहा कि विभाग को इस वर्ष कम से कम 20 लाख परिवारों को सौ दिन का रोजगार देते हुए 13 हजार करोड़ का कार्य कराना चाहिए. महिला मेटों का समयबद्ध ढंग से प्रशिक्षण होने पर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली महिलाओं के स्वावलंबन में बड़ी भूमिका हो सकती है.

225 करोड़ रुपए स्वीकृत कर दिया ग्राम रोजगार सेवकों को मानदेय

उन्होंने कहा कि मुझे याद है, जब ग्राम रोजगार सेवकों को कई-कई वर्षों से मानदेय का भुगतान नहीं हो पाता था. यह बात अकसर हमारे सामने आती थी. हमने कहा कि यह सभी लोग शासन से अल्प मानदेय पाते हैं और इसे भी हम कई-कई वर्षों तक न दें, तो अन्याय है. तत्काल हमने शासन से 225 करोड़ रुपए स्वीकृत किए और विभाग ने समयबद्ध ढंग से पहुंचाने का कार्य किया. इसी प्रकार से अप्रैल 2020 में मनरेगा संविदा कर्मियों का भुगतान राज्य स्तरीय केंद्रीयकृत पूल के माध्यम से जो पहले नहीं हो पाता था, उसे अब सीधे उनके खाते में भेजने की व्यवस्था कर दी गई है.

गुरमीत चौधरी ने देबीना से रचाई तीसरी बार बंगाली रस्म से शादी, फोटोज हुई वायरल

गुरमीत और देबीना इससे पहले भी कई बार अपनी शादी को लेकर चर्चा में आ चुके हैं और एक बार फिर से गुरमीत और देबीना शादी को लेकर सुर्खियां में छाएं हुए हैं. हाल ही में गुरमीत और देबीना ने अपनी शादी की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कि है जिसे देखकर खुलासा हुआ है कि उन्होंने तीसरी बार शादी रचाई है.

देबीना ने फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि फाइनली शादी की अलग-अलग रस्मों को निभाते हुए, इसके अलावा देबीना शादी की अलग- अलग तस्वीर शेयर करती दिख रही हैं जिसमें देबीना गुरमीत को कुछ खिलाते हुए नजर आ रही हैं.

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जिसमें दोनों काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं, बता दें कि देबीना और गुरमीत साल 2006 में भागकर शादी कर लिए थें, जिस वक्त देबीना के परिवार वाले इस शादी को मानने को तैयार नहीं थें, जिसके बाद से देबीना को गुरमीत पर पूरा विश्वास था, कि वह एक न एक दिन कुछ अच्छा जरुर करेगा.

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गुरमीत ने एक इंटरव्यू में बात करते हुए बताया था, कि तब मेरे पास कुछ नहीं था, उस वक्त सिर्फ मेरे पास देबीना का भरोसा और सपोर्ट था कि आज मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गया हूं, ऐसे ही हम दोनों का साथ बना रहे.

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गुरमीत और देबीना रामायण जैसे सीरियल में साथ में काम किया है और नच बलिए में भी साथ नजर आ चुके हैं, जहां लोगों ने इन्हें खूब सारा प्यार दिया था. गुरमीत ने एक रिपोर्ट मे बताया था कि वह दोनों साथिया फिल्म जैसे स्टाइल में भागकर शादी किए थें.

तारक मेहता की टीम ने दी ‘नट्टू काका’ को श्रद्धांजलि, निधन से दुखी है पूरी टीम

टीवी जगत का मशहूर शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा के  फेमस किरदार नट्टू काका हमेशा -हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. नट्टू काका के जाने का गम इंडस्ट्री के लोगों के साथ- साथ उनके फैंस को भी है जो हर रोज इस शो को देखते थें.

तारक मेहता की पूरी टीम नट्टू काका के अचानक चले जाने से काफी ज्यादा दुखी है, नट्टू काका या for him नि धनश्याम नायक के निधन के बाद से टीम ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक वीडियो शेयर किया है, शो के प्रोड्यूसर आसित कुमार मोदी ने वीडियो शेयर करते हुए कहा है कि भगवान से मेरी यही प्रार्थना है कि नट्टू काका ऐसे ही हमें हंसाते रहे , आज वह  जहां भी है लेकिन हमारे साथ हमेशा रहेंगे.

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बता दें कि 3 अक्टूबर के दिन धनश्याम नायक का कैंसर से निधन हो गया है, शो में वह जेठालाला के दुकान पर काम करते थें, और उनका साथ बाधा देता था, इनके जानें से पूरी टीम काफी ज्यादा दुखी है.

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नट्टू काका के आखिरी दिनों की बहुत सारी चौकाने वाली बात सामने आई है, जिसे जानकर आप भी  हैरान हो जाएंगे, वह पिछले 2,3 महीने से काफी ज्यादा दर्द में थें, ना तो कुछ खा पा रहे थें और ना ही ठीक से पानी पी रहे थे. जिससे उन्हें काफी ज्यादा तकलीफ हो रही थी. आगे टीम के लोगों ने बताया कि आज वो जहां भी होंगे काफी अच्छे से होंगे, हमारी भगवान से प्रार्थना है कि वह दूसरी दुनिया में भी काफी ज्यादा खुश होंगे.

हम सबकी यहीं प्रार्थना है कि वह जहां भी रहें भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी : भाग 5

‘‘पता नहीं, फोन उठते ही तो काट दिया.’’

विहाग ने नंबर देखा, रेवती या होने वाले ससुराल से था. विहाग इस वक्त शायद वहां फोन करना नहीं चाहता था. उस ने मुझ से ही धीरेधीरे बात करना जारी रखा. ‘‘एक बड़ी समस्या है. मुझे रेलवे क्वार्टर तो मिला है लेकिन रिपेयर करवाने की बड़ी समस्या आ गई है और अब तो गुंडों का भी कब्जा हो गया है, मेरे साथ बदसुलूकी भी की उन्होंने अब.’’

‘‘ओह, क्या तुम मुझे अपना क्वार्टर नंबर बता पाओगे? मैं कुछ कोशिश कर सकती हूं.’’

‘‘अच्छा? क्वार्टर रिपेयर का बहुत सा काम पड़ा है, अब मेरी तनख्वाह इतनी भी नहीं कि

मन पसंद रिपेयर करवा सकूं. बाहर किराए पर मकान लूं तो बारबार घर बदलने की उठापटक.

इसी वजह पीडब्लूआई के इंजीनियर के पास

गया था, लेकिन उस ने पहले तो अपनी बेटी मालिनी को मेरे सिर मढ़ने की कई तिकड़मे की, और बाद में क्वार्टर में गुंडे बिठा दिए. इधर

नौकरी की परेशानियां और अब तक रहने का सही इंतजाम नहीं.’’

मैं ने जरा टोह ली तो मालिनी से ही ब्याह… ‘‘मेरे इतना भर कहने से ही वह परेशान सा इधरउधर देखता बात घुमाने की कोशिश सी

करने लगा कि अचानक जैसे उस का मेरी कही बात पर ध्यान गया हो. चौंक कर पूछा, ‘‘तुम कुछ कर पाओगी?’’

मैं समझ गई महाशय बड़े मासूम से टैक्निकल हैं, इन का रोमांस जीने की जुगत से शुरू हो कर इसी में खत्म हो जाता है. अगर मैं उस की जिंदगी में आ पाई तो तेलनून में ही फूलों की खुशबू पैदा कर दूंगी.

मन की प्रसन्नता को छिपाते हुए और विहाग की सकारात्मकता को भांपते हुए मैं ने

कहा, ‘‘यह मेरे लिए आसान है, तुम मुझ पर

छोड़ दो.’’

‘‘क्या तुम्हारी कोई जानपहचान है? गुंडों को हटाना क्या आसान होगा?’’

‘‘तुम एक बार चाबी दे दो न, कोशिश

तो करूं.’’

‘‘समझा, लेकिन यह सरकारी काम है. विभाग से ही होना चाहिए थे, लेकिन फाइल तो कतार में लगी है, सब की अपनीअपनी भूख.’’

‘‘फाइलें कतार में पड़ी रहें तो क्या हम भी ऐसे ही पड़े रहें. इतनी बंदिशों में रहोगे तो समस्या से मुक्ति कैसे मिलेगी? थोड़ा और प्रैक्टिकल सोचो विहाग, बल्कि सोचना ही काफी नहीं जब तक किसी समस्या का समाधान हमें न मिले प्रयास करते ही रहना चाहिए.’’

पहली बार विहाग को दो कदम आगे सोचने वाला मिला था. अमूमन आम भारतीय पुरुषवादी सोच इस ओर घूम जाती है कि लड़की शादी से पहले इतनी तेज है तो शादी के बाद जरूर पति को गुलाम बना कर छोड़ेगी, विपरीत इस के विहाग काफी प्रसन्न था कि यह लड़की जिम्मेदारी उठाने में निसंकोच है. यह मिशन सिर्फ क्वार्टर का ही तो नहीं था, मिशन जीवन को एक सशक्त आधार देने के लिए ठोस संबल के चुनाव का भी था.

यद्यपि विहाग का मुझ पर इस काम को पूरा कर लेने के संबंध में विश्वास कम ही था, लेकिन अभी उस के पास सिवा इस के कोई चारा भी नहीं था कि वह इस मामले में मुझे अपना प्रयास कर लेने दे.

घर जा कर मैं ने अपने कालेज के दोस्त का नंबर ढूंढ़ा, जो रेलवे पुलिस बल में अधिकारी था. अच्छी बात थी कि इसी शहर में उस की पोस्टिंग थी. मैं ने अपनी परेशानी बताई तो वह गुंडों को क्वार्टर से हटवाने में मेरी मदद करने को राजी तो हो गया लेकिन बात यह थी कि इस समय वह स्वयं कुछ व्यस्त और परेशान चल रहा था.

दरअसल उस की दूसरे राज्य में शादी तय हो गई थी, और उसे बारातियों के लिए ट्रेन में कोच बुक करना था, जिस में कुछ कानूनी बातें आड़े आ रही थी. मैं इन दोनों कामों के बीच सेतु बन गई और विहाग की मदद से उस दोस्त का काम और दोस्त की मदद से विहाग का काम करवा दिया. दोनों बेहद खुश हुए और विहाग के दिल में मेरे लिए एक अलग जगह बन गई.

सरकारी महकमे में बात पहुंचते ही सिविल विभाग से कुछ कर्मचारी मुयाएने को पहुंचे, फाइल निकाली गई और हफ्ते 10 दिन में रिपेयरिंग के लिए सैंक्शन भी आ पहुंचा. मोटे तौर पर रेलवे

की ओर से जो मरम्मत का काम हुआ उस से

कुछ हद तक घर रहने लायक बना ही, मैं भी अपने औफिस से छुट्टी ले कर और अपने पैसे की चिंता न कर घर के सौंदर्यीकरण पर जो दिल से लगी रही, इस से सरकारी क्वार्टर अब वाकई सपनों से सींचा स्वप्न महल बन गया था. बीचबीच में जब भी विहाग क्वार्टर आता मैं उस से उस की पसंद पूछना न भूलती, इस से विहाग को बड़ी तसल्ली होती.

मरम्मत के लिए साजोसामान से ले कर घर की फिटिंग और मिस्त्रियों से काम निकालने की कला तक में मैं ने जो छाप छोड़ी विहाग कायल हुए बिना नहीं रह सका.

बीती रात विहाग के पिताजी ने फोन किया था. कहा, ‘‘क्या बात है शादी से पहले तुम्हारे साथ कौन सी लड़की थी? रेवती को तुम ने फोन किया था, बाद में उस ने जब फोन किया तो किसी लड़की ने फोन उठाया?’’‘‘यह खबर इतनी बड़ी थी कि आप तक पहुंच गई.’’

‘‘तुम असली बात बताओ न. शादी से पहले किसी होने वाली पत्नी को यह अच्छा लगेगा क्या?’’

‘‘बुरा लगने से पहले उसे पता तो होना चाहिए कि बुरा लगने वाली बात थी भी या नहीं. ठीक है, जैसे उसे बिना जाने ही बुरा लगा और आप के पास मेरी स्थिति समझे बिना ही शिकायत चली गई, वैसे ही मैं भी बिना कुछ बताए इस रिश्ते में आगे न बढ़ पाने की अपनी असमर्थता जता रहा हूं, बता दीजिएगा.’’

विहाग के पापा तो चीख ही पड़े, अंदाजा ही नहीं था कि विहाग की इतनी हिम्मत हो जाएगी.

‘‘क्या बोल रहे हो, कुछ होश है.’’

विहाग को थोड़ी देर के लिए खुद पर आश्चर्य हुआ, कहीं इस हौंसले के पीछे मेरे प्यार की महीन सी अनुभूति तो नहीं थी. उसी रौ में कहा उस ने, ‘‘शादी में कोई समझौता नहीं पापा,यह आपसी समझ और पसंद की बात है, मुझे तब तो कोई लड़की नहीं मिली थी, जब उस ने फोन किया था, लेकिन अब बहुत ही हुनरमंद, जिम्मेदार, समझदार और खयाल रखने वाली लड़की मिल गई है और नि:संदेह मैं उसी से शादी करने वाला हूं.’’

‘‘इतनी हिम्मत मत दिखाओ, मैं बात कर चुका हूं.’’

‘‘आप मना कर दीजिए पापा, शादी सिर्फ आप की बात रखने के लिए नहीं करूंगा. बिना जाने ही जो शक कर ले उस के साथ आगे नहीं बढ़ूंगा. मेरे हिसाब से बीबी देविका जैसी होनी चाहिए, पति के हर काम में मददगार, जिम्मेदारी उठाने में समर्थ. शांत और सहज.’’

‘‘लड़की कहां की है?’’

‘‘इसी शहर की.’’

‘‘कहता था आसपास ससुराल पसंद नहीं.’’

‘‘जब लड़की भा गई तो ससुराल कहीं भी हो. फिर गैरजिम्मेदार लड़कियों का मायका नजदीक हो तो रिश्ते दरकने लगते हैं, देविका ऐसी नहीं है, उसे रिश्तों की समझ और परख दोनों हैं.’’

पापा ने फोन रख दिया था, यानी विहाग स्वतंत्र था.

और अंतत: मेरी संवाद कला ने वह समां बांध दिया कि विहाग के घरवालों का आशीष भी शहनाई के सुर में सरगम सा शामिल हो गया.

विवाह बाद नातेरिश्तेदारों के चले जाने से पसरी रिक्तता में चांदनी रात की स्वप्निल दूधिया रोशनी में आंगन वाले झूले पर बैठे हम दोनों एकदूसरे को अपलक देख रहे थे.

विहाग की आवाज शहद थी, कहा, ‘‘देविका.’’

चितवन की चपलता ने मेरा भी मधुकलश खोल दिया था, ‘‘हूं, कहो.’’

‘‘सर्दी लग जाएगी, बाहर ठंड बढ़ रही है और कल बिस्तर की चादर वगैरह धो लेना, नएपन की खुशबू से मुझे एलर्जी हो जाती है.’’

मुझे हंसी आ गई, मैं ने क्या उम्मीद की थी और यह विहाग. मैं ने उस का माथा

चूमते हुए कहा, ‘‘जरूर, मगर आज की रात कितनी खास है. क्या तुम मुझे और कुछ नहीं कहोगे.’’

विहाग को अपनी रूखी सी बात पर अफसोस हुआ, तृष्णा जड़ी दो स्वप्निल आंखों ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चलोचलो, अंदर, यहां सर्दी लग जाएगी. अंदर जा कर सिर्फ कहूंगा ही नहीं…’’

ये बंदा बड़ा प्रैक्टिकल सा रोमांटिक है. थोड़ा बच्चा भी. सम्मोहित सी मैं मुसकरा कर उस के साथ चल पड़ी.

जल संरक्षण कृषि उत्पादन के लिए आज की जरूरत- भाग 1

लेखक-पल्लवी यादव, डा. ओम प्रकाश, डा. ब्रह्म प्रकाश एवं डा. कामिनी सिंह

जल कुदरत का मानव जाति को दिया गया अनमोल खजाना है. कृषि जल संरक्षण से मतलब ऐसी कृषि तकनीक से है, जिस में उपलब्ध जल की मात्रा का कृषि में समुचित उपयोग हो, उपयोग से अधिक फसल उत्पादन मिले, कृषि में जरूरत के अनुसार उस का उपयोग हो, बरबादी कम से कम हो, मिट्टी का क्षरण रोकने, कम से कम मात्रा में सिंचाई का जल उपयोग, उचित तौरतरीके और किफायती दर से खेती में उपयोग किया जाना ही कृषि जल संरक्षण या एकीकृत जल प्रबंधन कहा जाता है. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की कुल ग्रामीण आबादी की लगभग आधे से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है. यह खेती पूरी तरीके से कुदरत पर आधारित है. सारे पानी की मात्रा का लगभग 70 फीसदी खेती के कामों में सिंचाई के रूप में प्रयोग होता है. खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादन और उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण और कृषि आधारित उपक्रमों में इस्तेमाल जैसे विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पानी का उपयोग विभिन्न माध्यमों और रूपों में किया जाता है.

आजकल खेती के पानी के इस्तेमाल का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि आज इस्तेमाल करने के तौरतरीकों में बहुत ज्यादा बदलाव होने के कारण उपलब्ध पानी का संतुलन बिगड़ चुका है. इन बदलाव के चलते जल आपूर्ति भी प्रभावित होने के संकेत मिल रहे हैं, जो भविष्य में सभी जीवधारियों के लिए अत्यंत कष्टकारी साबित होंगे, इसलिए जल संरक्षण टिकाऊ कृषि उत्पादन के लिए आज के समय की पहली जरूरत है. कृषि में जल संरक्षण का मतलब खेती के कामों में इस्तेमाल में लाया जाने वाला पानी सिंचाई जल के नाम से जाना जाता है. खेती में जल संरक्षण का मतलब है कि पानी का संरक्षण और इकट्ठा करना, ताकि इसे जरूरत के हिसाब से विभिन्न फसलों की सिंचाई के काम में लाया जा सके. कृषि जल में उपलब्ध पानी की मात्रा का सही इस्तेमाल करना, ज्यादा से ज्यादा फसल उत्पादन लेना, खेती में जरूरत के हिसाब से पानी का इस्तेमाल करना, पानी की बरबादी को रोकना, पानी का कम से कम इस्तेमाल करना, सही तरीके से वैज्ञानिक विधियों और किफायती दर से खेती में पानी का इस्तेमाल करना ही कृषि जल संरक्षण या एकीकृत जल प्रबंधन कहलाता है.

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कृषि में जल संरक्षण की जरूरत क्यों?

* कृषि जल की बरबादी को रोकने.

* खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित रखने.

* फसलों में पानी की जरूरत और संतुलन बनाए रखने.

* कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाने हेतु.

* कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने.

* पर्यावरण संरक्षण. कृषि में जल संरक्षण के लाभ कृषि में जल संरक्षण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में अनेकों लाभ हैं, जिस में कुछ खास निम्नलिखित हैं :

* सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है.

* भूक्षरण को रोकने में सहायक है.

* प्राकृतिक संसाधनों (पानी, मजदूरी और ऊर्जा) की भी बचत होती है.

* यह जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से बचाने में सहायक है.

* फसल अवशेषों का मिट्टी में नमी होने पर सड़ना आसान हो जाता है, जिस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की उत्पादन करने की शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है.

* मृदा नमी के संरक्षण से फसल द्वारा रासायनिक उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ती है और फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलती है.

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* सस्य क्रियाओं को करने में आसानी रहती है.

* भूमि के जल स्तर की बढ़ोतरी में भी मददगार है.

* इस से लाभदायक जीवजंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. कृषि जल संरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक कृषि जल संरक्षण में कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं :

* मिट्टी संबंधी कारक.

* किस्मों के आनुवांशिकीय कारक.

* वातावरणीय/जलवायु संबंधी कारक.

* खेती आधारित सस्य घटक संबंधी कारक.

* असंतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रसायनों के इस्तेमाल संबंधी कारक. कृषि जल के प्रमुख स्रोत

* बरसात के पानी को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जैसे जमीन की सतह पर बहता बरसाती पानी, मकानों की छत से गिरता बारिश का पानी और कुदरती स्रोतों से प्राप्त व बहता पानी.

* जमीन से प्राप्त भूजल.

* कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाबों में इकट्ठा पानी.

* नहरों और जलाशयों से प्राप्त पानी. ऐसे करें फसलों में एकीकृत जल प्रबंधन विभिन्न फसलों को पैदा करने में कृषि जल संरक्षण के लिए मुख्य वैज्ञानिक सिफारिशों और तकनीकियों को अपना कर पानी का सही प्रबंधन किया जा सकता है. मुख्य फसलों में कृषि जल संरक्षण के तरीकों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :

धान की फसल में कृषि जल प्रबंधन के उपाय

* श्री (सिस्टम औफ राइस इंटेन्सिफिकस) तकनीक अपना कर धान की खेती करने से तकरीबन 30 से 50 फीसदी सिंचाई के पानी की बचत के साथ कृषि जल संरक्षण भी होता है.

* धान की खेती श्री तकनीक द्वारा करने से जल उपयोग क्षमता, मृदा की पैदावार बढ़ने के साथ फसल उगाने की लागत में भी कमी आती है.

* धान को एरोबिक विधि से उगाने पर अन्य कुदरती प्राकृतिक संसाधनों (पानी, मजदूरी और ऊर्जा) की भी बचत होती है.

* धान को एरोबिक विधि से उगाने पर बालियां निकलते समय 1.0 से 3.0 सैंटीमीटर तक पानी की सतह तक होने पर भी फसल में बालियां निकल आती हैं.

* फसल की सिंचाई गीली और सूखी पद्धति के आधार पर करने से सिंचाई जल की बहुत बचत होती है. * कम समय में फसल पकने और पानी की अधिक मात्रा के उपयोग के कारण साठी धान की खेती करने से बचना चाहिए. (शेष अगले अंक में…)

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी : भाग 4

‘‘सर, मैं वापस जा कर अपने पापा से बात करता हूं, उन्होंने एक जगह मेरी बात पक्की कर दी है, उन लोगों से भी बात करनी पड़ेगी. तब तक क्या मैं अपनी फाइल आप को दे जाऊं?’’ ‘‘सीधी सी बात है, आप पापा से बात कर लें, और तब तक अपना कागज मेरे दफ्तर में फाइल की लाइन में लगा दें, जब इस शादी को हां हो जाए तो मुझे बता दीजिएगा, कोई कमी नहीं रहेगी, इतना कह सकता हूं.’’

सरकारी नियम कुछ भी हो, कुछ बातें विहाग के अख्तियार में तो नहीं थीं. विहाग ने वापसी की. अब भी वह समझदार नहीं हुआ था, लेकिन समझ ही गया था. हफ्तेभर की नाइट ड्यूटी और कई दफा दिन की खलल वाली नींद के बाद वह एक मजदूर को ले कर क्वार्टर पर पहुंचा. इरादा था मजदूर के संग मिल कर क्वार्टर को घर बनाने की दिशा में कुछ कदम बढ़ाना, मसलन काइयों और झड़े प्लास्टर के साथ मकड़जाल की सफाई. यानी अपने खुद के ठिकाने की तरफ एक कदम.

बरामदे में पहुंचते ही चौंकने की बारी थी, अंदर कोलाहल सा था, दरवाजा अधखुला. बैडरूम से ठहाकों और अश्लील गालीगलौज की आवाजें आ रही थीं. जुए की बाजी बिछाए 30 के आसपास के 4 पुरुष और 2 बार गर्ल की वेशभूषा में इन चारों के साथ चिपकी बैठी शातिराना मुसकान बिखेर रही 20-22 साल की लड़कियां.

विहाग के तनबदन में आग लग गई, परेशान हो कर पूछा, ‘‘भाई लोग आप सब यहां कैसे?’’ तुरंत बात खींच ली हो जैसे, उन में से एक आदमी ने छूटते ही कहा, ‘‘बाबू चाबी सिर्फ आप के पास ही नहीं थी, एक चाबी अभी भी सरकारी दराज में थी,’’ सभी भौंड़े तरीके से हंसने लगे. ‘‘क्या मतलब?’’विहाग क्रोधित भी था और भौंचक भी. तुरंत एक कारिंदे ने कहा, ‘‘ए लिली, जा बाबू को मतलब समझा.’’

उन की तरफ के सारे लोग बेहूदगी से हंस पड़े और 2 लड़कियां फुर्ती से आ कर विहाग से लिपट गईं. तुरंत उन में से किसी ने छोटा सा कैमरा निकाल लड़कियों के साथ विहाग की तसवीरें लेने की कोशिश की. विहाग ने बिना वक्त गंवाए उस के हाथ से कैमरा झपट कर जमीन पर दे पटका. चारों तैश में आ गए. मिल कर उन्होंने विहाग को उठा लिया और बरामदे से नीचे घास की तीखी झाडि़यों में फेंक दिया. विहाग सा सख्त जान अब कमजोर पड़ने लगा था. बाकायदा आंसू आ गए थे उस की आंखों में. उठ कर सामने अपने स्टेशन के प्लेटफौर्म के एक किनारे लगे पेड़ के नीचे बेंच पर बैठ गया. थोड़ी देर आंखें बंद किए बैठा रहा, अंदरूनी कोलाहल ने उस की विचारने की शक्ति छीन ली थी.

अचानक आंखें खुली तो सामने मुझे बैठ उसे अपलक निहारता देख वह दंग रह गया, ‘‘सोचा भी नहीं था न. मुंबई वाली नौकरी छोड़ अब पापा के पास ही आ गई हूं. दीदी के औफिस से उसे जापान भेजा गया है, लगभग 3 साल उसे वहां रहना है. पापा अकेले न पड़ें इसलिए मैं वापस आई. 4 स्टेशन बाद एक जगह नौकरी करती हूं. अभी ही ट्रेन से उतर कर तुम्हें यों बेहाल बैठा देख…’’

विहाग मेरे सानिध्य में जाने कैसे अपनी तकलीफ और चिंताएं भूलने सा लगा. कहीं सच के संदूक में अगर वह ताकझांक कर लेता तो अपने मन को वह पहले ही जान पाता. ‘‘क्या हुआ? क्यों उदास से अमावस के चांद बने बैठे हो?’’ विहाग असमंजस में था. एक ओर सुंदर शालीन उस के सामने देविका यानी मैं और मेरा प्रफुल्लित करने वाला सरल सानिध्य, तो दूसरी ओर जिंदगी की कशमकश. इतने दिनों बाद मुझे देख कर विहाग को अच्छा ही नहीं, बल्कि काफी सुकून सा महसूस हुआ लेकिन तब भी विहाग तो विहाग ही था.

मुझ पर सामान्य सी नजर डालते हुए वह उठ खड़ा हुआ और जाने की रुत में खड़ाखड़ा पूछा, ‘‘और कैसी हो? शादी नहीं की अब तक?’’ ‘‘नहीं, अरे कहां चले?’’ ‘‘चलूंगा देविका आता हूं.’’ सचमुच यह आदमी, मैं भी भुनभुनाती हुई उठ खड़ी हुई. किराए के कमरे में वापस आ कर वह सूनी आंखों से सूने छत की ओर

ताकता बिस्तर पर पड़ा रहा बेचैन. अचानक उस ने अपनी जरूरी नंबरों की डायरी निकाली, रोज के कुछेक संपर्क नंबर ही उस के हैंडसेट में रहते थे, जिस संपर्क की उसे तलाश थी उसे उस के बाबूजी ने तब दिया था जब उन्होंने उस की क्वार्टर की समस्या से पल्ला झाड़ कर उसे‘‘ससुराल वालों से बुझ लाइयो’’ के अंदाज में टरकाया था. धकधकाती सी छाती लिए उस ने फोन मिला लिया, तैयारी यह थी कि फोन पर जो भी मिलेगा उसे उस के मंगेतर रेवती से बात करवाने की अपील करेगा.

रिंग जाती रही, किसी ने उठाया नहीं. हार कर विहाग ने अपना सोचा हुआ त्याग दिया. दूसरे दिन जब वह स्टेशन में ड्यूटी पर था टिकट काउंटर पर मैं पहुंची. विहाग को ड्यूटी पर देख पहले तो मैं बड़ी खुश हुई, पल में ही विहाग की मेरे प्रति विरक्ति की बात सोच उदास भी हो गई.

‘‘अभी तक मंथली पास नहीं बनवाया? रोजरोज किराया भरती हो?’’ मदद की इच्छा मन में दबाए विहाग ने अपना काम निबटाते हुए कहा. ‘‘इसी महीने से आनाजाना कर रही हूं न,’’ विहाग की मेरे प्रति रुचि देख मुझे बड़ी तसल्ली हुई.‘‘ये फार्म ले जाओ, वापसी में मेरी ड्यूटी तो खत्म हो जाएगी, तुम मेरा घर आ कर फार्म देना चाहो तो दे सकती हो, मेरे घर वैसे तुम्हारे घर से नजदीक ही पड़ेगा. मेरा फोन नंबर ले लो.’’

ढेर सारी कोयल की कूंकें मेरे सीने की अनजानी कंदराओं में चहचहा उठीं. बड़ी सी उम्मीद भरी मुसकान लिए मैं ने कहा, ‘‘नजदीक न भी होता तब भी देने आ जाती.’’ उस ने मेरी ओर एक नजर देख, बिना किसी प्रतिक्रिया के अपना काम देखने लगा. बुझी सी मैं फिर भी उस के चेहरे पर एक रोशनी देख रही थी. शाम 6 बजे तक मैं विहाग के कमरे में थी. कुछ देर पहले ही विहाग भी औफिस से लौटा था और सांझ वाली रसोई में अपनी चाय बना रहा था. इसी बीच मैं आ पहुंची और उस के बैडरूम में रखी कुरसी पर अपना आसन जमा लिया. चाय बनाते हुए ही वह रसोई से ही बात भी करने लगा और मुझे कमरे में ही बैठने को कहा. बात मसलन ऐसी हो रही थी कि यहां 5 कमरे हैं, जिन में 2-2 लोग कमरे साझा कर के रहते हैं. विहाग के कमरे का किराया कुछ ज्यादा है मगर अकेले रहने की सहूलियत पाने के लिए इतना सा ज्यादा देना वह पसंद करता है. पर अभी भी समस्या साझा रसोई की है ही, इतने लोगों के बीच 2 ही रसोई अनगिनत समझौतों की मुश्किलें पैदा करती है.

विहाग 2 कप चाय और प्लेट में नाश्ता रख जब तक रसोई से कमरे में मेरे पास आता कमरे में रखा विहाग का फोन बजा. स्क्रीन पर नंबर था, नाम नहीं. मैं ने फोन उठा कर ‘हैलो’ कहा ही था कि फोन कट गया.‘‘कौन था?’’

 

सेहत बिगाड़ भी सकती है एक्सरसाइज, जानें कैसे

स्वास्थ्य की दृष्टि से कसरत के कई फायदे हैं. लेकिन आजकल हम ऐसी जीवनशैली जी रहे हैं, जिस में कसरत के लिए समय नहीं होता है. कई सालों तक एक ही तरीके से जीवन व्यतीत करना कई तरह की गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है. इन में शारीरिक स्थितियों के साथसाथ मानसिक स्थिति भी शामिल है.

हमारे शरीर को रोज थोड़ी मात्रा में शारीरिक सक्रियता की जरूरत होती है, भले ही वह किसी भी रूप में क्यों न हो. इस से हमारे शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है और हमारी समग्र उत्पादकता में भी इजाफा होता है. कसरत के जहां कई सकारात्मक पहलू हैं, वहीं कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं, जिन की तरफ कम ही लोगों का ध्यान जाता है. मसलन, अत्यधिक कसरत प्रजनन स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव भी डाल सकती है.

ऐक्सरसाइज के सकारात्मक पहलू

हृदय की स्थिति में सुधार:

हमारे हृदय की हालत सीधे तौर पर इस बात से जुड़ी होती है कि हम शारीरिक रूप से कितना काम करते हैं. जो लोग प्रतिदिन शारीरिक रूप से ज्यादा ऐक्टिव नहीं रहते हैं, हार्ट से जुड़ी सब से ज्यादा बीमारियां भी उन्हीं को होती हैं.

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अच्छी नींद आना:

कई स्टडीज से यह साबित हो चुका है कि जो लोग नियमित ऐक्सरसाइज करते हैं, उन्हें रात को नींद भी अच्छी आती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कसरत करने की वजह से हमारे शरीर की सर्केडियन रिद्म मजबूत होती है, जो दिन में आप को सक्रिय बनाए रखने में मदद करती है. इस की वजह से रात में अच्छी नींद आती है.

शारीरिक ऊर्जा में बढ़ोतरी:

हम में से कई लोगों के मन में ऐक्सरसाइज को ले कर कई तरह की गलतफहमियां होती हैं जैसेकि ऐक्सरसाइज हमारे शरीर की सारी ऊर्जा सोख लेती है और फिर आप पूरा दिन कुछ नहीं कर पाते हैं. मगर असल में होता इस का बिलकुल उलटा है. इस की वजह से आप दिन भर सक्रिय रहते हैं, क्योंकि कसरत करने के दौरान हमारे शरीर से कुछ खास तरह के हारमोंस रिलीज होते हैं, जो हमें दिन भर ऐक्टिव बनाए रखने में मदद करते हैं.

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आत्मविश्वास को बढ़ावा:

नियमित रूप से कसरत कर के आप अपने शरीर को उस परफैक्ट शेप में ला सकते हैं, जो आप चाहते हैं. इस से आप के आत्मविश्वास में भी बढ़ोतरी होती है. शरीर की उत्तम बनावट और सकारात्मक सोच की वजह से आप अपने घर और दफ्तर में भी पहले से ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं.

ज्यादा एक्सरसाइज के नकारात्मक पहलू

नियमित कसरत करने के कई सारे फायदे हैं, इसलिए फिजिकल ऐक्टिविटी को नजरअंदाज करने का तो मतलब ही नहीं बनता, लेकिन इस से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य भी हैं, जिन की पुष्टि हो चुकी है और जिन से यह पता चलता है कि अत्यधिक कसरत करने का शरीर पर नकारात्मक असर भी पड़ सकता है:

– महिलाओं में एक खास तरह की स्थिति पैदा हो जाती है, जिसे रजोरोध कहते हैं. यह स्थिति तब पैदा हो जाती है, जब एक सामान्य महिला को लगातार 3 महीनों से ज्यादा वक्त तक सही तरीके से माहवारी नहीं हो पाती है. कई महिलाओं में यह स्थिति इस वजह से पैदा होती है, क्योंकि वे शरीर को नियमित रूप से ऊर्जा प्रदान करने के लिए जरूरी कैलोरीज प्रदान करने वाली चीजों का सेवन किए बिना ही जिम में नियमित रूप से किसी खास तरह की ऐक्सरसाइज के 3-4 सैशन करती हैं.

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– शरीर में कैलोरी की कमी का सीधा असर न केवल उर्वरता पर पड़ता है, बल्कि महिलाओं की यौन इच्छा पर भी इस का प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा मोटापा भी इस में एक अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि ज्यादातर मोटी महिलाएं वजन घटाने के लिए कई बार काफी कठिन कसरतें भी करती हैं, जिस का उन की उर्वरता पर नकारात्मक असर पड़ता है.

– मोटापे के चलते शरीर में ऐस्ट्रोजन हारमोन का प्रोडक्शन भी बढ़ जाता है, जो डिंब उत्सर्जन और माहवारी को प्रभावित करता है और उस के चलते बांझपन का खतरा बढ़ जाता है. कुछ मामलों में यंग महिलाएं भी इस स्तर तक वर्कआउट करती हैं कि उस के चलते ऐस्ट्रोजन का स्तर का ऐसे मुकाम तक पहुंच जाता है, जो उन के माहवारी चक्र में बाधा डालता है. अगर ऐस्ट्रोजन के स्तर में ज्यादा बदलाव आया हो, तो फिर गर्भधारण करने में भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

– हम सभी इस बात से वाकिफ हैं और खासतौर से महिलाएं कि ज्यादातर गर्भनिरोधक दवाइयों में ऐस्ट्रोजन का स्तर ज्यादा होता है. इसीलिए उन का सेवन करने के बाद महिलाएं खुद को गर्भवती होने से रोक पाती हैं. अत्यधिक कसरत के दौरान भी ऐस्ट्रोजन का स्तर बढ़ता है. इसलिए अगर कोई महिला गर्भधारण करना चाहती है, तो फिर उसे हैवी ऐक्सरसाइज से बचना चाहिए. सामान्य दिनचर्या का ही पालन करना चाहिए.

– पुरुषों में हैवी ट्रेनिंग सैशन के कारण शरीर में शुक्राणुओं की संख्या में कमी आ सकती है, जो सीधे तौर पर उन की उर्वरता से जुड़े होते हैं. हम में से कई ऐसे लोग हैं, जो अपनी बौडी को मैंटेन करने के लिए लंबे समय से कठिन ट्रेनिंग सैशन फौलो करते हैं.

– अगर आप अत्यधिक थका देने वाली और कठिन ट्रेनिंग से गुजरते हैं, तो फिर इस बात की संभावना ज्यादा है कि आप के शरीर में उन लोगों के मुकाबले शुक्राणुओं की संख्या में ज्यादा कमी हो, जो सामान्य ट्रेनिंग सैशन फौलो करते हैं.

– लंबे समय तक थका देने वाली कठिन ऐक्सरसाइज करने से न केवल शुक्राणुओं की संख्या में कमी आ सकती है, बल्कि रीप्रोडक्शन की क्षमता में भी कमी आ सकती है. साथ ही हैवी रिजिस्टैंस ट्रेनिंग आप को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान भी पहुंचा सकती है, क्योंकि इस से शरीर में टेस्टोस्टेरौन का उत्पादन बढ़ता है, जो पुरुषों में उर्वर क्षमता को बढ़ाने के काम आने वाले अन्य हारमोंस पर प्रतिकूल असर डालता है और इस के चलते आप की फीमेल पार्टनर को गर्भधारण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.

नियमित ऐक्सरसाइज करने के साथसाथ पर्याप्त डाइट भी जरूरी है, क्योंकि आप के शरीर को नियमित रूप से कैलोरीज और पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है. खासतौर पर तब जब आप ऐक्सरसाइज के दौरान अपनी काफी ऊर्जा खो देते हैं. जहां पुरुषों को समयसमय पर अपने स्पर्म काउंट को चैक करते रहना चाहिए, वहीं महिलाओं को अपनी गर्भधारण क्षमता की जांच करवाते रहना चाहिए. इस से आप को समस्या से उबरने और सामान्य जीवन जीने में मदद मिलेगी.

– डा. सागारिका अग्रवाल, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल्स

Crime Story : वासना की आग

सौजन्या- सत्यकथा

‘‘तुम्हारी बात तो कोई नहीं है, क्योंकि तुम तो कभी मेरा कहना मानती ही नहीं हो. पर कम से कम बेटियों का तो खयाल रखो. तुम्हारी आदतों का उन पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. उन के बारे में तो सोचो.’’ राम सजीवन ने अपनी पत्नी फूलमती को समझाते हुए कहा. ‘‘हमें पता है कि हमें अपनी बेटियों को कैसे रखना है. हम कोई नासमझ नहीं हैं, जो अच्छीबुरी बात न समझें. लेकिन तुम्हें तो केवल दूसरों की बातें सुन कर हमारे ऊपर आरोप लगाने में ही मजा आता है.’’ पत्नी फूलमती ने झल्लाते हुए पति की बातों का जबाव दिया.

‘‘दूसरे की बातों में क्यों आऊंगा मैं? क्या मुझे दिखाई नहीं दे रहा कि तुम क्या करती हो. तुम्हारी बातें पूरे मोहल्ले में किसी से भी छिपी हुई नहीं हैं.’’ कहते हुए राम सजीवन घर से बाहर जाने लगा. ‘‘दरअसल, अब तुम शक्कीमिजाज के हो गए हो. हमारे पास जो भी खड़ा हो जाए. जो भी हमारे काम आ जाए. हमारे दुखदर्द में शामिल हो जाए, उसे देख कर तुम केवल यही सोचते हो कि उस के हमारे साथ संबंध बन गए हैं.’’ फूलमती बोली. ‘‘हम शक नहीं कर रहे बल्कि हकीकत है. हमें अब तुम्हारी चिंता नहीं है क्योंकि तुम मनमानी करोगी. हम तो बस बेटियों को ले कर परेशान हो रहे हैं. एक बार वे अपने घर चली जाएं. बस, उस के बाद तो हम तुम्हें कभी देखेंगे भी नहीं.’’ राम सजीवन ने कहा.

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पत्नी की गलत आदतों की वजह से राम सजीवन मानसिक रूप से परेशान रहने लगा था. उस के एक बेटा और 3 बेटियां थीं. वह अपने तीनों जवान बच्चों को भी अच्छी सीख देता रहता था. जब उसे लगा कि पत्नी पर उस के कहने का कोई असर नहीं हो रहा है तो उस ने खुद को परिवार से दूर करना शुरू किया. वह स्वभाव से एकाकी रहने लगा.

38 साल की फूलमती ने 20-22 साल के कई लड़कों के साथ दोस्ती कर ली थी. वह उन लड़कों को अपने घर पर बुलाती रहती थी. यह बात मोहल्ले वालों से भला कैसे छिपी रह सकती थी. जिस से पूरे मोहल्ले में फूलमती के ही चर्चे होते रहते थे. राम सजीवन को लगता था कि पत्नी की बुरी हरकतों का प्रभाव उस की जवान हो रही बेटियों पर पड़ेगा. इस कारण वह पत्नी को लड़कों की संगत से दूर रहने को कहता था. पति की बात को मानने के बजाय फूलमती उस से झगड़ने लगती थी. इस कारण पति और पत्नी अलगअलग रहने लगे.

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राम सजीवन अपने घर से दूर अपने प्लौट पर बने मकान में रहने लगा था. जबकि फूलमती लखनऊ के ही थाना गोसाईंगंज स्थित बखारी गांव के मजरा रानीखेड़ा में एक बेटे रवि कुमार और तीनों बेटियों के साथ रह रही थी. पति के अलग रहने से फूलमती को और भी आजादी मिल गई थी. क्योंकि अब उसे कोई रोकनेटोकने वाला नहीं था. अलग मकान पर रहने के बाद भी राम सजीवन पत्नी को अकसर समझाता रहता था, जिस की वजह से दोनों में झगड़ा भी हो जाता था.

11 मई, 2021 की बात है. लखनऊ शहर के थाना गोसाईंगंज स्थित बखारी गांव के मजरा रानी खेड़ा के रहने वाले रवि कुमार ने पुलिस को सूचना दी कि उस के पिता 40 साल के राम सजीवन की हत्या किसी ने गांव के बाहर कर दी गई है. उस के पिता अपने घर से दूर प्लौट पर रहते थे.सूचना पा कर थानाप्रभारी अमरनाथवर्मा पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस का चेहरा ईंट से कुचला हुआ था. खून सनी ईंट भी वहीं पड़ी थी. मृतक के घर के लोग वहां मौजूद थे. उन से प्रारंभिक पूछताछ के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने जांच शुरू कर दी.

राम सजीवन दलित था. गांव में उस की किसी से ऐसी कोई दुश्मनी नहीं थी जिस की वजह से हत्या की जा सके. ऐसे में पुलिस को हत्या की वजह समझ नहीं आ रही थी. लखनऊ के पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर के निर्देश पर डीसीपी (दक्षिण) डा. ख्याती गर्ग, अपर पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) पूर्णेंदु सिंह और एसीपी स्वाति चौधरी के निर्देशन में गोसाईंगंज के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अमरनाथ वर्मा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई.

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टीम में इंसपेक्टर डा. रामफल प्रजापति, एसआई फिरोज आलम सिद्दीकी, दीपक कुमार पांडेय, महिला एसआई नीरू यादव, कांस्टेबल गिरजेश यादव, रमापति पांडेय, अकबर, कुलदीप, सगीर अहमद, किशन जायसवाल, जितेंद्र भाटी को शामिल किया गया. थाना पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच की टीम को भी केस की जांच में लगा दिया गया. इस टीम में इंसपेक्टर तेज बहादुर सिंह, एसआई संतोष कुमार सिंह, दिलीप मिश्रा, प्रमोद कुमार सिंह कांस्टेबल विनय यादव, वीर सिंह, अजय तेवतिया, राजीव कुमार और अभिषेक कुमार शामिल थे.

राम सजीवन की हत्या की वजह जानने के लिए जब पुलिस ने उस की पत्नी फूलमती से पूछा तो वह बोली, ‘‘उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. हमारे साथ भी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं था. बस वह नाराज हो कर गांव के बाहर वाले मकान में रहते थे.’’ फूलमती के पति की हत्या हुई थी. इस कारण वह परेशान थी. इस वजह से पुलिस बहुत दबाव डाल कर उस से पूछताछ नहीं कर पा रही थी. फूलमती हर बार बयान बदल रही थी. एक बार उस ने कहा, ‘‘वह खराब संगत में रहता था. इस कारण कुछ नशेड़ी लोगों से उस की दोस्ती हो गई थी. हो सकता है कि उन लोगों में से किसी ने नशे में हत्या की हो.’’

पुलिस को भी राम सजीवन का शव जिस हालत में मिला था, उसे देख कर ऐसा ही लग रहा था जैसे किसी ने मारने के बाद भी अपना गुस्सा निकालने के लिए ईंट से हमला कर के मुंह को कुचल दिया हो. जिस से उस की पहचान न हो सके. पर यह मसला पहचान छिपाने का नहीं दुश्मनी का लग रहा था. पुलिस ने गांव के लोगों से भी पूछताछ शुरू की तो पता चला कि राम सजीवन और उस की पत्नी के झगड़े की वजह पत्नी का कुछ अलग लोगों से संबंध था. 4 बच्चों की मां होने के बाद भी फूलमती दूसरे लोगों से हंसीमजाक करने में आगे रहती थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस ने फूलमती से फिर से पूछताछ शुरू की. बारबार बयान बदलने से पुलिस को भी यह विश्वास होने लगा कि हत्या की जानकारी फूलमती को जरूर होगी. पुलिस के साथ पूछताछ और सवालों में वह फंस गई. थानाप्रभारी ने पूछा, ‘‘तुम्हें यह तो पता है कि किस ने मारा है. भले ही तुम उस में शामिल न रही हो. अगर तुम सच बता दोगी तो तुम्हें कुछ नहीं होगा. जिस ने यह हत्या की है, उसी को सजा मिलेगी.’’ पुलिस से यह भरोसा पा कर फूलमती ने कहा, ‘‘गांव बखारी के ही रहने वाले कल्याण ने यह किया है. राम सजीवन उसे हमारे घर आता देख कर गुस्सा होता था. यह बात उस से सहन नहीं हुई तो उस ने राम सजीवन की हत्या कर दी.’’

अब पुलिस टीम ने बिना समय गंवाए कल्याण को पकड़ लिया. कल्याण ने खुद को फंसता देख पूरी कहानी बता दी. कल्याण ने बताया, ‘‘राम सजीवन को मेरा फूलमती से मिलनाजुलना अच्छा नहीं लगता था. इस बात से वह फूलमती से नाराज रहता था. फूलमती भी पति की रोजरोज की कलह से परेशान हो गई थी. उसी के कहने पर राम सजीवन को रास्ते से हटाया. ‘‘फूलमती के दबाव डालने के बाद मैं ने उसे रास्ते से हटाने की योजना बनाई. मैं अकेले यह काम करने की हालत में नहीं था. इसलिए मैं ने अपने साथी सतीश से बात की. सतीश आपराधिक प्रवृत्ति का था. वह सुरियामऊ गांव का रहने वाला था.

‘‘हम लोगों ने अपने 2 और साथी सूरज और नीरज को भी शामिल किया. इस के बाद 11 मई की रात को राम सजीवन के घर में घुस कर हम चारों ने उस की हत्या कर दी.’’कल्याण ने बताया, ‘‘राम सजीवन की हत्या करने के बाद उस के शव को घर से 100 मीटर दूर गांव से बाहर वाली सड़क पर डाल दिया. इस की जानकारी फृलमती को दी तो उस ने अपने मन की भड़ास और गुस्सा निकालने के लिए ईंट से मृत पति के चेहरे पर कई वार किए. मुंह को बुरी तरह से कुचल दिया.’’

कल्याण से मिली जानकारी के आधार पर गोसाईंगंज पुलिस ने सब से पहले फूलमती को पकड़ा उस के बाद रानीखेड़ा के रहने वाले 20 साल के सूरज, सुरियामऊ के रहने वाले 22 साल के सतीश, इसी गांव के 19 साल के नीरज को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने आरोपियों के पास से खून लगे कपड़े भी बरामद किए.

पुलिस ने राम सजीवन हत्याकांड में 5 अभियुक्तों राम सजीवन की पत्नी फूलमती, कल्याण, सतीश, सूरज और नीरज के खिलाफ धारा 302, 147, 149 और 201 आईपीसी के साथ 3 (2) (5) एससीएसटी ऐक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया.गोसाईंगंज थाना पुलिस और क्राइम टीम ने राम सजीवन की निर्मम हत्या करने वाले सभी आरोपियों को गिरफ्तारकर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

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