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GHKKPM: विराट खुद को मानेगा सई का दोषी, पुलकित उठाएगा पाखी के चरित्र पर सवाल

स्टार प्लस के सुपरहिट सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में ‘ इऩ दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. सई के एक्सीडेंट के बाद से विराट पूरी तरह से टूट गया है. अपनी गलती को जानने के बाद विराट पूरी तरह से सई को बचाने कि कोशिश कर रहा है.

सीरियल में अब तक आपने देखा कि विराट को जैसे ही सई के एक्सीडेंट के बारे में पता चलता है वह तुरंत अपना आपा खो बैठता है. सई कि इस हालत कि जिम्मेदार विराट खुद को बताता है. दुख कि इस घड़ी में विराट पत्रलेखा से प्रार्थना करने को कहता है. तभी विराट और पाखी को एक साथ देखकर सम्राट को मिर्ची लग जाती है.

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वहीं दूसरी तरफ दिखाया जाता है कि पुलकित सई की ऑपरेशन की तैयारी शुरू कर देता है, इसी दौरान डॉक्टर सई को ऑपरेशन रूम में लेकर जाते हैं.

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पुलकित का गुस्सा विराट और पाखी पर निकलेगा , पुलकित कहेगा कि सई की यह हालत विराट और पाखी की वजह से हुआ है, इसी दौरान पुलकित पाखी के चरित्र पर सवाल उठाएगा. पुलकित कहेगा कि ऐसा क्या है कि शादी के बाद भी विराट और पाखी अपनी दोस्ती निभा रहे हैं.

पुलकित के इस बात को सुनने के बाद से पाखी को गुस्सा आएगा और वह कहेगी कि पुलकित अपनी जुबान संभालकर बात करो. जैसे ही डॉक्टर कहेंगे कि खून का इंतजाम करो तभी सम्राट चुपके से गायब हो जाएगा और सई के लिए खून का इंतजाम हो जाएगा.

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विराट सम्राट कि मदद से पुलकित को ब्लड का किट दे देगा, जिसके बाद सई का ऑपरेशन सफलता पूर्वक हो जाएगा.

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि होश आने के बाद विराट और सई एक-दूसरे से क्या बात करेंगे.

 

YRKKH: Kartik-Naira के बेटे kairav का रोल कर सकते हैं ये हैंडसम टीवी एक्टर

स्टार प्लस का सुपर हिट सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है को लेकर कई सारी खबरें आ रही हैं,  खबर है कि जल्द ही इस सीरियल में कई सारे किरदार बदलने वाले हैं, शो के निर्माता इस सीरियल की कहानी में कुछ बदलाव लाने वाले हैं.

जिसके बाद से मोहसिन खान और शिवांगी जोशी का पत्ता साफ हो जाएगा इस कहानी से, इन दोनों कलाकारों की जगह नए कलाकारों की एंट्री होने वाली है. सोशल मीडिया पर लगातार यह खबर वायरल हो रही है कि हर्षद चोपड़ा इस शो में लीड रोल अदा करने वाले हैं,

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दावा किया जा रहा है कि हर्षद चोपड़ा नायरा और कार्तिक के बेटे कायरव के किरदार में नजर आने वाले हैं, इसी बीच फैंस लगातार सोशल मीडिया पर ट्विट करके यह जानकारी दे रहे है कि वह जल्द ही हर्षद को कायरव के किरदार में देखना  चाह रहे हैं.

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वहीं मोहसिन खान सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है से काफी लंबे वक्त से जुड़े हुए हैं, कुछ दिनों पहले लोगों ने उनसे पूछा था कि वह क्या वाकई में इस शो को छोड़ने वाले हैं. तब उन्होंने कहा था कि मेकर्स दर्शकों के लिए खास तरह का सरप्राइज तैयार रखे हुए हैं.

आगे मोहसिन  खान ने कहा कि मेकर्स जो भी फैसला लेंगे उनके भलाई के लिए लेंगे.

लखीमपुर खीरी : लोकतंत्र के सुलगते सवाल

छत्तीसगढ़ में लखीमपुर-खीरी कांड की प्रतिक्रिया जैसे अपेक्षित थी वैसी रही.किसान आनंद कंवर के मुताबिक जैसा हत्या कांड हमने लखीमपुर खीरी में देखा है वह दहशत पैदा करता है और भाजपा नेताओं के प्रति मन में घृणा. किसान जागेश्वर गठिया के मुताबिक उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कि जिस तरह उच्चतम न्यायालय में खबर ली गई है उसे देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. दरअसल लखीमपुर खीरी में घटित घटना मानो एक संहार, नरसंहार के रूप में याद की जाएगी . क्योंकि इस घटनाक्रम के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ और सरकार का रवैया अपेक्षाकृत‌ लोकतंत्र के, एक तानाशाही पूर्ण रूप में उभर कर सामने आया है. यही कारण है कि देश के उच्चतम न्यायालय ने दोषी केंद्रीय मंत्री के पुत्र के संदर्भ में तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सवाल किए हैं .

दरअसल,जब भारतीय जनता पार्टी एक राजनीतिक दल के रूप में बमुश्किल सत्ता हासिल करती है तब वह भूल जाती है कि विपक्ष में रहते समय उसे सत्ता पक्ष ने किस तरह का व्यवहार किया था. और अब उसका दायित्व है कि वह विपक्ष को हालाकान परेशान ना करें और अपना फर्ज निभाने दे. लोकतंत्र में विपक्ष ही लोगों के पीरा और समस्याओं को आवाज देता है यह काम आज अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नमक दे कर रहे हैं ऐसे में प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी से माहौल और भी बिगड़ा है और सत्ता के प्रति आम जनमानस में आक्रोश पैदा हुआ है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष एक सिक्के के दो पहलू हैं. कभी कोई एक पार्टी राज करती है तो कभी कोई दूसरी पार्टी. ऐसे में आज योगी आदित्यनाथ की सरकार किसी राजशाही सत्ता की तरह व्यवहार कर रही है जो शर्मनाक है.

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ऐसे में यह तथ्य सामने है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत बनाने के लिए बेहतर माहौल देने का दायित्व सत्ता पक्ष का ही तो है. मगर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जिस तरह किसानों के साथ आतातायी घटनाक्रम घटित हुआ है और देश भर में जिसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई है उसे सरकार द्वारा अनदेखा करते हुए आखिरकार देश की सुप्रीम कोर्ट ने देखा और स्वयं मामले का संज्ञान लेते हुए एक्शन मोड में आ गई है. यह सब घटनाक्रम बता रहा है कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जिस तरीके से घटना हुई इसके पश्चात देशभर में प्रतिक्रिया का दौर शुरू हुआ कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मोर्चा संभाला और उनसे भी आगे आकर के उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ योगी सरकार ने मामले को कमतर बताते हुए नेताओं को पीड़ितों से मिलने से रोकने की कवायद शुरू कर दी. यही नहीं कुतर्क दिया जाने लगा कि राजनीति मत करिए! यह सब कम से कम लोकतांत्रिक देश में तो दुर्भाग्य जनक ही कहा जा सकता है.

अगर आपके साथ ऐसा हो तो, फिर

भारतीय जनता पार्टी आदर्श की बड़ी बातें करती है, आदर्शों का गुणगान करती है सदैव अंतिम पंक्ति के आदमी की बात कहती है अब लाख टके का सवाल है कि क्या सत्ता में बैठे आज के भाजपा के नेता अपने साथ ऐसा व्यवहार अपेक्षित कर सकते हैं. लखीमपुर खीरी में पीड़ित जन परिवार से मिलने पहुंची प्रियंका गांधी और विपक्ष के नेताओं से जैसे आचरण उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कुतर्क देते हुए कहा और किया गया वह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं माना जा सकता.

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अब जैसे ही देश की उच्चतम न्यायालय ने मामला अपने हाथ में लिया उत्तर प्रदेश सरकार के सुर बदल गए और बंद दरवाजे बंदिशों के साथ खोल दिए है. किसान मजदूर नेता संपूरन कुलदीप के मुताबिक केंद्र सरकार की नीतियों के कारण किसानों की हालत बदतर होने की स्थिति में है आने वाले समय में किसानों के अत्याचार के कारण भाजपा को सबक सिखाया जाएगा कि वह कभी उठ नहीं पाएगी.

भारत भूमि युगे युगे: महानता और नग्नता

महानता और नग्नता 75 वर्षीय हृदयनारायण दीक्षित अपने दौर के औसत पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं. राजनीति में आ कर अधिकतम उपलब्धि की शक्ल में उत्तर प्रदेश विधानसभा का पद उन्हें मिल चुका है. उन्नाव जिले के बांगरमऊ कसबे में वे जरूरत से ज्यादा बहक कर बोल गए कि अगर कम कपड़े पहनने से कोई महान बनता होता तो राखी सावंत गांधीजी से ज्यादा महान होतीं. गांधी किस तरह भगवा खेमे के मैंबर्स के दिलोदिमाग में कुंठा और गठान बन कर विराजे हैं, यह इस मांसाहारी वक्तव्य से सम?ा जा सकता है.

इस बयान या बकवास, कुछ भी कह लें, पर उन की हैसियत और उम्मीद के मुताबिक बवाल मचा क्योंकि महानता और नग्नता में इतना अंतरंग और नजदीकी संबंध अभी तक कोई प्रबुद्ध जन स्थापित नहीं कर पाया था. कुछ लोग तो भड़के ही, लेकिन राखी सावंत ने अपने मिजाज के मुताबिक हृदयनारायण को बख्शा नहीं, जिस के कहे का सार यह था कि ‘ग्रैंड पा कुछ तो शर्म करो.’ वादा तेरा वादा अरविंद केजरीवाल और दूसरे नेताओं में बड़ा फर्क यह है कि उन्होंने जो कहा वह दिल्ली में कर के दिखाया भी. अब वे चुनावी राज्यों में भी कुछ कर दिखाना चाहते हैं. पंजाब के बदलते घटनाक्रम के बाद वादों की बौछार उन्होंने उत्तराखंड और गोवा में की, मसलन इतने यूनिट बिजली फ्री दूंगा और इतने लाख लोगों को रोजगार दूंगा. चाइनीज आइटमों की तरह ऐसे वादों की कोई गारंटीवारंटी नहीं होती लेकिन जाने क्यों लोग उन की बातों को पूरी तरह खारिज नहीं कर पाते. खासतौर से युवा जो उन की कार्यशैली और दिल्ली सरकार के रियलिटी वाले विज्ञापनों को देख कर सोचता है कि ‘कसमेंवादे प्यारवफा…’ वाले गाने की तरह वोट भी तो मिथ्या ही है,

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इसलिए क्यों न एक बार आम आदमी पार्टी यानी आप को भी आजमा लिया जाए, शायद नौकरी मिल जाए. अरविंद के थोकबंद वादों से परेशान भाजपा और कांग्रेस को नए वादों का आविष्कार करना पड़ेगा. हंगामा है क्यों बरपा तकरीबन एक हजार दिन सुस्ताने के बाद फायर ब्रैंड नेत्री उमा भारती एकाएक ही इतनी सक्रिय हो उठी हैं कि लोग उन्हें ले कर फिर गफलत से घिरने लगे हैं. साध्वी ने भोपाल में बड़े तल्ख लहजे में कहा कि अगर मध्य प्रदेश में शराबबंदी नहीं हुई तो वे 15 जनवरी से प्रदेशव्यापी आंदोलन करेंगी. इस बयान से सम?ाने वाले खासतौर से बेवड़े यही सम?ो कि जब से गुजरात में भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया है तब से भाजपा के पार्षद और सरपंच भी बिना पिए ही यह सोचते बहकने लगे हैं कि मुमकिन है ब्रह्मा ने उन की कुंडली में भी लार्ज साइज का राजयोग लिख छोड़ा हो,

जो कभी भी फलीभूत हो सकता है, फिर उमा तो इस पद के लिए डिजर्व करती हैं. पर न जाने क्यों मय की तरफ उन का ध्यान अपने मुख्यमंत्री रहते नहीं गया था. इस धौंस पर असद मुल्तानी का एक शेर मौजूं है- ‘शराब बंद हो, साकी के बस की बात नहीं, तमाम शहर हैं, दोचार दस की बात नहीं.’ यूट्यूबर गडकरी नागपुर की सड़कों पर कहीं भी चले जाएं, 60 पार का रिकशेवाला भी आधे फख्र और आधी ईर्ष्या से यह कहते मिल जाएगा कि ‘हम ने देखा है नितिन गडकरी को, वे खटारा वैस्पा स्कूटर पर घूमते फिरते थे पर अब उन के ठाट निराले हैं. उन के पास 6 कारें हैं और 6 तरह के ही उन के कारोबार हैं.’

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कभी मामूली खातेपीते मराठी ब्राह्मण परिवार के नितिन अब कम से कम 50 करोड़ रुपए की जायदाद के मालिक हैं. उन के पास 29 एकड़ बेशकीमती जमीन भी है. इतना सबकुछ होने के बाद भी बकौल गडकरी उन्हें 4 लाख रुपए महीने यूट्यूब से भी मिलते हैं क्योंकि उन के अपलोड किए गए वीडियो लाखों लोग देखते हैं. यह सुन कर तरस उन लोगों पर आता है जो यूट्यूब से कमाई के चक्कर में रोज तरहतरह के वीडियो बना बना कर लोड किया करते हैं लेकिन अधिकांश को देखने वालों की तादाद 100 पार भी नहीं जाती.

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी

हेल्दी माइंड का फार्मूला न्यूरोबिक कसरत

आज जिस तरह की भागमभाग संस्कृति वाली जीवनशैली विकसित हो रही है उस से मानव मशीन की तरह काम करने लगा है. प्रकृति से नाता टूटता जा रहा है. प्रकृति से दूर रहने का खमियाजा भी लोग भुगत रहे हैं. शारीरिक रुग्णता आज आम बात हो गई है. इस का प्रभाव मानसिक विकास को अवरुद्ध करता है. इस से दिमागी शक्ति कमजोर होती है. इस कमजोर हुई दिमागी शक्ति को फिर से प्राप्त करने के लिए की जाने वाली कसरत का नाम है- न्यूरोबिक ऐक्सरसाइज.

जानेमाने न्यूरोबायोलौजिस्ट डा. लौरेंस केट्ज और डा. मेनिंग रुबिन ने मस्तिष्क के लिए ‘न्यूरोबिक’ नामक दिमागी ऐक्सरसाइज का नया तरीका ईजाद किया है. इन दोनों न्यूरोबायोलौजिस्टों ने मिल कर ‘कीप योर ब्रेन अलाइव’ नामक पुस्तक भी लिखी है. डा. लौरेंस तथा डा. रुबिन द्वारा ईजाद की गई न्यूरोबिक पद्धति दिमाग के लिए फायदेमंद है. इस पर अमल कर के दिमाग के तमाम ‘न्यूरल लिंक्स’ को ऐक्टिव बनाया जाता है.

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दिमागी निष्क्रियता के कारण

रुटीन जिंदगी :

आमतौर पर अधिकतर लोग एक ही तरह की जीवनशैली को जीवन जीने की राह बना लेते हैं. उन का ढर्रा एक ही होता है. मसलन, सुबह 8.30 बजे तक औफिस जाने के लिए तैयार हो जाना, 9 बजे घर से निकल जाना, वही रास्ते, वही पगडंडियां होते हुए बस या स्कूटर पर सवार हो कर 10 बजे तक किसी तरह औफिस पहुंच जाना. औफिस में वही रुटीन वर्क. शाम को 6 बजे औफिस से निकलना. घर जाने के लिए वही रास्ता, उसी फल वाले से फल खरीदना, सब्जी वाले से सब्जी, उसी ठिकाने पर ब्रैड, बटर और बिस्कुट खरीदते हुए घर पहुंच जाना.

ठीक 7.30 बजे जब घर की घंटी बजती है तो पत्नी समझ जाती है कि ‘वे’ आ गए हैं और बच्चे रोज की तरह दौड़ कर दरवाजा खोल कर पापा का स्वागत करते हुए टौफी की फरमाइश करते हैं. पापा हमेशा की तरह घर में पहुंचते ही मुंहहाथ धोते हैं, तब तक पत्नी चाय बनाती है फिर टीवी का कोई प्रोग्राम देखते हुए चाय की चुस्कियां लेना और घर की समस्याओं से रूबरू होना प्रतिदिन के रुटीन में शामिल है. फिर पत्नी खाना बनाने में लग जाती है. पति महोदय बच्चों से स्कूल के रुटीन होमवर्क पर चर्चा करते हैं. हमेशा की तरह कोई टीवी सीरियल देखते हुए भोजन किया जाता है. उस के बाद बच्चे अपने कमरे की ओर और दंपती अपने बैडरूम की ओर. ताकि अगले रोज के रुटीन की फिर शुरुआत हो. इसी बंधीबंधाई रुटीन जिंदगी से दिमाग निष्क्रिय सा हो जाता है. वह तमाम गतिविधियों को परवर्ती क्रिया की तरह अंजाम देता है.

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सामाजिक दूरी :

यह भी देखा गया है कि बहुत से लोग अपने रुटीन से बंधी जीवनशैली के चलते समाज से भी दूर होते जाते हैं. औफिस में तो रोज वही सहयोगी मिलेंगे परंतु बाहर निकलने पर आप नए लोगों से परिचय करेंगे या पुराने दोस्तों से भूलीबिसरी यादों को सुनसुना कर दिमागी थकान को समाप्त कर सकते हैं. समय नहीं होने का बहाना तो ठीक है परंतु दिमागी निष्क्रियता को खत्म करने में सामाजिक मेलजोल बहुत ही महत्त्व रखता है. एक ही व्यक्ति से रोज मिलने पर वही रुटीन की बातें की जाती हैं परंतु नए लोगों से मिल कर थकान कम की जा सकती है.

खतरनाक है रुटीन लाइफ :

मैडिकल विशेषज्ञों ने मनुष्य की इस रुटीन लाइफ पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. विशेषज्ञों का कहना है कि तयशुदा जीवनचर्या आप के मस्तिष्क को निष्क्रिय बना देती है. यदि आप अपने मस्तिष्क न्यूरल लिंक्स (तंत्रिका कोशिका) का अधिकतम इस्तेमाल नहीं करते हैं और उसे सक्रिय नहीं बनाए रहते, तो ये न्यूरल लिंक्स आप के मस्तिष्क में मृत हो जाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि न्यूरल लिंक्स के खत्म होने का मतलब है कि आप की याददाश्त का अचानक खत्म होते जाना और आप की क्रिएटिविटी या रचनाशीलता का धीरेधीरे खत्म होते जाना.

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हमारा दिमाग अद्भुत शक्तियों का खजाना है. इस की काबिलीयत की कोई सीमा नहीं है. डा. रुबिन के अनुसार, ‘‘मुझे याद है कि मेरे डाक्टर पिता आज से 50 वर्ष पूर्व सिर्फ सूंघ कर बीमारी का पता लगा लेते थे. यह कोई अनोखी बात भी नहीं है. उन का मानना है कि मछली बाजार में कई लोग सिर्फ सूंघ कर ताजा या बासी मछली का पता लगा लेते हैं. हम में से कई लोग ऐसे हैं जो सिर्फ सूंघ कर या छू कर सब्जी, ब्रैड या अन्य चीजों की ताजगी का अंदाजा लगा लेते हैं. हमारी ज्ञानेंद्रियों में बड़ी ताकत है. तभी तो अचार को देख कर ही मुंह में पानी आ जाता है. हम घर बैठे कुल्लूमनाली की ठंड या जैसलमेर की रेतीली आंधी का अनुभव कर सकते हैं.’’

क्या है न्यूरोबिक्स कसरत :

‘पेट स्कैन’ द्वारा आप न्यूरोबिक्स कसरत की अहमियत को जान सकते हैं. मिसाल के तौर पर यदि आप किसी अजनबी से मिलते हैं तो पेट स्कैन यह दर्शाएगा कि दिमाग का कुछ खास क्षेत्र अधिक ऐक्टिव हो जाता है लेकिन इसी व्यक्ति से दूसरी बार मुलाकात करने पर दिमाग के उस क्षेत्र में सक्रियता कम दिखाई देती है. पेट स्कैन बदलाव को प्रकाश के जरिए दर्शाता है. पहली बार पेट स्कैन में तेज प्रकाश होता है तो दूसरी बार यह धुंधला हो जाता है. पेट स्कैन में दूसरी बार धुंधले प्रकाश का मतलब है कि आप के दिमाग का न्यूरौन पहली बार उस अजनबी को पहचानने के लिए ऐक्टिव यानी सक्रिय हो चुका है. लिहाजा, दूसरी बार उस में एक्टिवेट या सक्रिय होने की जरूरत नहीं रह जाती है.

न्यूरोबिक्स कसरत का मकसद यह है कि दिमाग के अपने संदेशवाहक रास्ते ज्यादा से ज्यादा सक्रिय हों और नए रास्तों का विकास हो ताकि ब्रेन सर्किटों की कार्यक्षमता बनी रहे. न्यूरोबिक्स कसरत न केवल नामों को याद रखने की क्षमता विकसित करती है, बल्कि यह हमारे मस्तिष्क को कुछ नई बातों को जाननापहचानना सिखाती है. हम कई बार किसी व्यक्ति से दूसरी बार मिलने पर मात्र उस के पसीने की गंध, उस के द्वारा इस्तेमाल किए गए परफ्यूम की गंध से ही उसे पहचान लेते हैं.

जब आप का दिमाग किसी को पहचानने या जानने के लिए कार्य करता है तब दिमाग में ‘न्यूरोट्रोफिन’ नामक ब्रेन विटामिन का संचार होता है. यह दिमाग का भोजन होता है जो डैंड्राइट्स को चलायमान करने में सहायता करता है. डैंड्राइट्स यानी मस्तिष्क के संदेशवाहक न्यूरोरौंस आखिर में कई शाखाओं में बंटे होते हैं जो एक जालनुमा रचना बनाते हैं. डैंड्राइट्स के स्वस्थ रहने से ही मस्तिष्क को क्लियर संदेश मिलते हैं.

बढ़ती उम्र के साथसाथ तथा लंबे समय तक तनावग्रस्त रहने से डैंड्राइट्स कमजोर हो जाते हैं. मस्तिष्क का

भोजन यानी न्यूरोट्रौफिन मस्तिष्क के हिप्पोकैंपस नामक क्षेत्र के लिए बहुत कारगर साबित होता है. मस्तिष्क का यह हिस्सा ध्वनि, स्वाद, गंध, स्पर्श और दृश्य पर आधारित याददाश्तों को लंबे समय तक बनाए रखता है.

न्यूरोबिक की कार्यप्रणाली :

न्यूरोबिक दरअसल आप के मस्तिष्क के भोजन न्यूरोट्रौफिन को मस्तिष्क के सभी हिस्सों में पहुंचाने के लिए नर्व सैल्स की सहायता से नए ब्रेन सर्किट का निर्माण करती है. व्यवहार में थोड़ाबहुत परिवर्तन करते रहने से इस में सक्रियता आती है. जैसे आप आमतौर पर पैन से लिखते हैं तो किसी दिन पैंसिल से लिखिए और इसी प्रकार आप अपनी आदतों में परिवर्तन लाइए. इस से आप के मस्तिष्क में स्पर्श पर आधारित सक्रियता में थोड़ा बदलाव होगा.

कहने का तात्पर्य यह है कि ब्रेन सर्किट नए तंतुओं को अपने क्रियाकलाप में शामिल कर लेंगे और इस प्रकार आप अपनी रुटीन आदतों में थोड़ा बदलाव कर के मस्तिष्क की सक्रियता को बढ़ा सकते हैं

न्यूरोबिक कसरत के कुछ महत्त्वपूर्ण नुसखे

–       कभीकभार अंधे या गूंगे बन कर अन्य सैंस के सहारे अपना कार्य करने की कोशिश करें.

–       अपने वस्त्रों को चुनते समय या दरवाजा खोलते समय आंखें बंद कर लें और स्पर्श के आधार पर यह कार्य करने की चेष्टा करें.

–       बाथरूम में नहाते समय आंखें बंद कर के साबुन, शैंपू आदि का इस्तेमाल करें.

–       अपने परिवार के सदस्यों के साथ कभीकभी आंखों व हाथों के इशारों के सहारे बातचीत करें.

–       दो इंद्रियों का एकसाथ इस्तेमाल मसलन, सुगंधित मोमबत्ती को जला कर उस की खुशबू का आनंद लेते हुए पसंदीदा गीतसंगीत का लुत्फ उठाएं.

–       शौक एवं आदतों में बदलाव लाएं जिस से कि जीवन की एकरसता टूटे.

–       कोई असामान्य कार्य करें जिस में प्रेम, क्रोध, आनंद, भावुकता जैसी भावनाओं को अलग ढंग से प्रकट करने की कोशिश हो.

–       कभीकभार पसंदीदा चीज को छोड़ कर नापसंद चीजों को भी आजमाएं.

–       कभी वीकऐंड में पहाड़ों की सैर करें

–       अपने बच्चे को दफ्तर में ले जाएं.

–       शतरंज के बदले बैडमिंटन खेलें.

–       किसी अजनबी से अर्थपूर्ण बातें करें.

–       औफिस जाने से पूर्व पत्नी से आलिंगनबद्ध हो कर मिलें.

अपनी रुटीन लाइफ में यों लाएं बदलाव

–       कभीकभार अपने दफ्तर जाने का रास्ता पूरी तरह बदलें.

–       कपड़े पहनने या बाल संवारने की स्टाइल बदलें.

–       घर या कार्यालय का फर्नीचर रिअरेंज करें.

–       यदि घड़ी बाएं हाथ में पहनते हों तो दाएं हाथ में पहनें.

इन चीजों से बचें

–       मस्तिष्क पर अत्यधिक या बहुत कम जोर देने से.

–       शरीर में कैल्शियम, मैग्नीशियम और सोडियम पोटैशियम क्लोराइड के स्तर में असंतुलन होने से.

–       मस्तिष्क में औक्सीजन की आपूर्ति के कम होने से.

–       मस्तिष्क में दोषपूर्ण जानकारियों के एकत्रीकरण से.

–       असंतुलित एवं आवश्यकता से कम भोजन करने से.

–       ड्रग्स लेने से.

–       हाई ऐंड लो ब्लडप्रैशर तथा शुगर से.

–       थकावट व मानसिक तनाव स

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी : भाग 1

लेखिका- दीपान्विता राय बनर्जी

फौरीतौर पर देखा जाए तो मुझ जैसी स्टाइलिश लड़की के लिए वह बंदा इतना भी दिलचस्प नहीं था कि मैं खयालों के दीए गढूं और उन्हें अपने दिल में जलाए फिरूं. मगर जिंदगी बड़ी दिलचस्प चीज है. हम एक पल जिसे झुठलाते हैं, उसे ही दूसरे पल कबूलते हैं.

2 साल पहले की बात है मेरे पापा होमियोपैथी की प्रैक्टिस करते थे. अब तो उन की सेहत साथ नहीं देती, मगर एक समय था जब शहर में उन का बड़ा नाम था. रोज मरीज की लाइन लगी रहती थी. उस दिन मरीजों की कतार में एक दुबलापतला, लंबे कद वाला गेहूंए रंग का 26 वर्ष का लड़का बैठा था. हमारे 2 मंजिल के मकान के ऊपरी हिस्से में हमारा निवास था और नीचे पापा का क्लीनिक.

मैं उन दिनों एमबीए कर रही थी. उस दिन मुझे कालेज के लिए निकलना था. मैं ऊपर से नीचे आई. उसे मरीजों की लाइन में बैठा देखा. खैर, मैं अंदर पापा से कुछ कहने चली गई.

अभी मैं पापा से बात कर ही रही थी कि ये जनाब अंदर आए. पापा ने उसे कुछ ज्यादा ही इज्जत से बिठाया और मुझे रोक लिया. ‘‘देविका, ये विहाग हैं. हमारे यहां के नए स्टेशन मास्टर. पहली पोस्टिंग है. घरपरिवार से दूर हैं. अकेले हैं. तुम इन का साथ देना.’’

‘‘जी पापा.’’

‘‘तुम तो ट्रेन से कालेज जाती हो, इन से मिल कर मंथली पास बनवा लेना. मेरी इन से बात हो गई है.’’

‘‘जी पापा.’’

इस बीच उस ने अपनी बड़ीबड़ी आंखें मेरे चेहरे पर गड़ा दीं. उस की आंखों में एक अजीब सी खुमारी थी और होंठों पर लरजती सी मुसकान. मेरी सारी स्मार्टनैस गायब हो गई, ‘‘जी, जी’’ करती मैं बुत सी बनी रह गई.

अचानक बंदे ने पापा की ओर देख कर कहा, ‘‘सर कई दिनों से मुझे सर्दी है, रात को बंद नाक के मारे सो नहीं पाता. काफी कफ जमा है सीने में. हमेशा घरघर की आवाजें आती हैं.’’

मेरे पापा को शायद यह उम्मीद नहीं थी कि एक 23 साल की सुंदर, आकर्षक लड़की के सामने वह सर्दी और सीने में जमे कफ की बात करेगा. उन्हें आशा थी कि अपनी बीमारी की बात करने पापा ने जैसे ही दवा लिखने के लिए पैन उठाया मैं चुपचाप वहां से निकल आई. मेरे मन की तितलियों के पंख उस की सर्दी में लिपपुत कर औंधे मुंह गिर पड़े थे.

हां, मगर न, न कर के भी एक बात स्वीकार करती हूं. मैं उसे जबजब सोचती, होंठों पर खुद ही मुसकान आ जाती डायरी में कुछ लिखने की कोशिश करती, लेकिन, उफ, उस का चेहरा याद आते ही सर्दी की याद आ जाती. उस की घनी मूंछों की जब भी याद आती बंद नाक भी साथ सामने आ जाता. उस के शर्ट के जरा से खुले हुए बटन के नीचे से झांकता घना रेशमी जंगल मेरे दिल को ज्यों धड़काने को होता सीने में जमा उस का कफ मेरे इरादों को तहसनहस कर देता. मैं डायरी के हर पन्ने पर तारीख लिखती, आड़ीतिरछी रेखाएं बना कर डायरी बंद कर देतीं. रेखाएं थीं बेजुबान, वरना न जाने क्याक्या कह देती मेरे बारे में.

मेरे मन में उस की चाह ऐसी थी जैसे कोई पपीहा सूने और घने वन की किसी डाली

की एक अकेली सी फुनगी पर बैठ राग अलाप कर उड़ जाता हो और पीछे रह जाती हो बीहड़ की निस्तब्धता.

दिन बीते, मैं ने उसे भुलाने की कोशिश की. वैसे उस का आना भी अब काफी कम हो गया था. शायद उस की तबीयत अब ठीक थी.

मेरी शादी की बात अब जोर पकड़ने वाली थी, क्योंकि मुंबई से मुझे जौब औफर था. 30 साल की मेरी दीदी जिन्हें शादी से परहेज था, मां की मृत्यु के बाद हमारी मां बनी रहती और हमारे साथ रह कर ही नौकरी करती थी, मेरे मन की टोह लेने में लगी थी.

आखिर न, न करते मेरे चेहरे के भाव ने बड़ी रुखाई से बिना मेरी राय की परवाह किए मेरे दिल को साझा करने की गुस्ताखी कर ही डाली. दीदी ने मेरे मन की बात पापा तक पहुंचा दी थी.

अब विहाग की उपस्थिति सीधे हमारे डाइनिंग में दर्ज होने लगी. पापा की यही मर्जी थी. हर बार वह आता, मुसकरा कर बात करता और खापी कर चला जाता.

दिन निकल रहे थे, मेरे मुंबई जाने का दिन नजदीक आ रहा था, लेकिन इस शर्मीले मगर नीरस युवक से हम दिल की बात नहीं कह पाए. अंतत: पापा को कमर कसनी पड़ी और उन्होंने सीधे ही उस से मेरी शादी की बात पूछ ली.

मेरे खयाल से अन्य कोई भी युवक होता तो इतनी बार हमारे साथ डाइनिंग साझा करने के बाद मना करने में ठिठक जाता, कुछ सोचता और बाद में जवाब देने की बात कह कर महीनों टालता. हम इंतजार करते और वह मुंह छिपाने की कोशिश करता. मगर यह था ही अलग. कहा न, बंदे ने दिलचस्पी जगा दी थी.

खाना खा कर जाते वक्त पापा ने ज्यों ही पूछा तुरंत उस ने जवाब दे दिया. वह यहां शादी नहीं कर सकता था. वह ऐसी जगह शादी नहीं करेगा जहां उस का ससुराल नजदीक हो, ससुराल वालों के अत्यधिक संपर्क में रहना पसंद नहीं था उसे.

मैं डायरी को अपने कमरे के सब से ऊपरी ताक पर सीलन के हवाले कर मुंबई रवाना हो गई.

सालभर बाद मैं घर वापस आई. कुछ वजहों ने बहाने दिए और मेरी खामोश डायरी फिर ताक से उतर कर बोल पड़ी.

विहाग इस मध्यम आकार के शहर में स्टेशन मास्टर था. उस के मातापिता उज्जैन में रहते थे.

2 बहनें थीं जिन की शादी हो गई थी. ये छोटे थे और आत्मनिर्भर भी. 26 वर्षीय विहाग जब स्टेशन मास्टर के रूप में पदस्थापित हो कर आया तो उस ने इस छोटे से स्टेशन के सामने बने छोटेछोटे लेकिन सामान्य सुविधा युक्त एक कमरे, एक हौल वाले क्वार्टरों में से एक के लिए आवेदन दिया. क्वार्टर तो नहीं मिल पाया मगर वह शादीशुदा नहीं था तो एक सहकर्मी के सा िकिराये का मकान साझा कर रहने लगा.

यह साल 2013 था और नए नियुक्त इन लड़कों की तनख्वाह कुल मिला कर 25 हजार के आसपास थी. स्टेशन मास्टर की ड्यूटी अगर छोटे या मध्यम आकार के स्टेशन में होती तो स्टाफ की कमी की वजह से उन्हें 12 घंटे की ड्यूटी अकसर ही करनी पड़ती है. नाइट ड्यूटी तो आए दिन की आम बात थी. स्टाफ की कमी के कारण सप्ताह की एक छुट्टी भी मुश्किल थी. बारिश का मौसम हो, हाड़ कंपाती ठंड की रात बिना नागा ड्यूटी पर हाजिर होना ही पड़ता. छुट्टी की गुंजाइश तभी थी जब इंसान बीमार पड़ कर बिस्तर पकड़ ले.

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी : भाग 2

लेखिका- दीपान्विता राय बनर्जी

ऐसी जद्दोजहद वाली ड्यूटी में स्टेशन से निवास स्थान की दूरी भी अच्छीखासी परेशानी बन गई थी विहाग के लिए. बारिश और जाड़े की रात बाइक से भीगभीग कर ड्यूटी जाने के कारण छोटी सी सर्दी भी दमा बन जाती थी. वापस आ कर खाना बनाओ, घर के काम भी संभालो और परिवार वाले उस के पास आने के लिए उसे अपना एक अकेले का मकान लेने को उतावला करें, सो अलग निबटो. खैर, विहाग की परेशानी किसी तरह बड़े साहब तक पहुंचाई गई और काफी लिखापढ़ी के बाद उस के नाम पर क्वार्टर आवंटित हुआ. विहाग झट से क्वार्टर देखने निकल पड़ा.

मध्यम आकार का चिरपरिचित रेलवे क्वार्टर. क्वार्टर के सामने बगीचा बनाने लायक अच्छीखासी जमीन थी, लेकिन यह बिन फेंसिंग बाउंड्री वाल के पास उगे झाड़झंखाड़ तथा चूहों के बिल से पटी पड़ी थी.

आगे बढ़ते, आसपास झांकते हुए विहाग 4 ऊंची सीढि़यों से चढ़ते हुए बरामदे में पहुंचते ही बड़ीबड़ी म??????यह क्वार्टर सही मायनों में रहने लायक बनाने के लिए उस की भी हालत इन चूसे हुए कीड़ों सी हो जाएगी. व्यवस्था का मकड़जाल तो बल्कि उस से भी ज्यादा निर्मम है. खैर विहाग टोह लेता आगे बढ़ा और लकड़ी के खड़खड़ाते घुन लगे दरवाजे खोल अंदर गया. यह क्वार्टर करीबकरीब 2 साल से इस्तेमाल में नहीं था. विहाग से पहले इस स्टेशन में एक बुजुर्ग स्टेशन मास्टर बहाल थे, जो अपने घर से आ कर ड्यूटी बजाते. उन के रिटायरमैंट के बाद विहाग की नई पोस्टिंग थी. सो अब तक इस क्वार्टर को कोई पूछने वाला नहीं था.

कमरे में चारों ओर प्लास्टर उखड़ा पड़ा था, खिड़कीदरवाजे, टूटेफूटे नल, बदहाल साफसफाई के सैकड़ों काम अलग मुंह चिढ़ा रहे थे. विहाग ने उज्जैन वाले घर में खुद अपनी पसंद का बाथरूम बनवाया था, एकएक सैटिंग आधुनिक. उस ने बाथरूम का दरवाजा धकेला. दरकी हुई जमीन पर सूखी हुई काई का डेरा. पानी रखने का सीमेंटेड टैंक भी क्रैक. आंगन में दरारें आ चकी थीं और टैंक में भी कई क्रैक थे. घर में मुंह धोने को एक बेसिन तक नहीं. उज्जैन के अपने चुस्तदुरुस्त घर में रहने के आदी विहाग के लिए यहां रहना नामुमकिन था. उस ने ठान लिया कि शिफ्ट करने से पहले वह इस क्वार्टर को अपने मनमुताबिक ढालेगा. इसे आधुनिक सुविधासंपन्न करेगा, मगर कैसे? एक सुविधा संपन्न क्वार्टर के लिए इस समय खर्च तो 40 से 50 हजार का बैठता ही है. आए कहां से?

सरकार को अर्जी लगाने से ले कर उस के बनने में कम से कम 6 महीने तो आराम से लगेंगे तब भी इस से यह क्वार्टर नियमानुसार इतना ही सुधरेगा जैसे कि कोई नाकभौं सिकोड़ कर किसी नामुराद सी जगह में प्रवेश करता है और काम निबटा कर निकलते ही एक भरपूर सांस लेता है. यह विहाग का घर होगा या यह वह घर हो पाएगा जहां विहाग के छोटेछोटे सपने अंगड़ाइयां ले कर आएंगे?

अपनी नई सी गृहस्थी के फूलों वाले झूले पर अनुराग के मोती जड़ेंगे? सोच कर ही विहाग का मन उचट गया.वह सपनों की दुनिया में खो नहीं जाता, हां, सपनों को हकीकत में बदलने के लिए वास्तव के धरातल पर कुछ ठोस कदम रखना जरूर जानता है.

तो वे कदम क्या हों जो उस की जायज मुरादों में जान फूंक दें? इस के पिताजी कुछ अलग किस्म के हैं, शायद एहसान जताने वाले कहना भी बहुत गलत नहीं होगा, विहाग उन की मदद किसी भी हाल में नहीं लेगा. रह गई बात उस की तो 25 हजार सैलरी में अभी उस के पास इतने तो हैं नहीं कि वह इस क्वार्टर को इस लायक बना ले कि शादी के बाद बीबी और उस के घरवालों के सामने वह सर उठा कर यह साबित कर दे कि स्टेशन मास्टर की नौकरी कोई ऐरेगैरे की नौकरी नहीं.

घूमफिर कर बात वही इंजीनियरिंग विभाग में अर्जी देने की आती है. विहाग अगले दिन सुबह 6 से दोपहर 2 बजे की ड्यूटी पूरी कर सिविल इंजीनियरिंग सैक्शन में अर्जी ले कर पहुंचा. उम्मीद थी अपना परिचय देने पर यहां के कर्मचारी द्वारा तवज्जो से बात की जाएगी. लेकिन विहाग द्वारा अपना परिचय दिए जाने के बाद भी वे जिस तल्लीनता से फाइल में मुंह घुसाए मिले उस से विहाग को अंदाजा हो गया कि इन बाबुओं की जेबों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति बड़ी तेज है और इस आकर्षण से जरूरत के मारे आगंतुकों की जेबों का बच पाना टेढ़ी खीर है.

विहाग को यहां कई टेबल पर प्रवचन मिले तो कुछ टेबल पर प्रौपर चैनल से गुजर कर काम निकालने में लगने वाले समय की भयावहता का अंदाजा. इस तरह इस विभाग में 2 घंटे भटक कर भी नतीजा नहीं निकला. अब विहाग के पास नया काम था ‘‘मिशन क्वार्टर नंबर 5/2 बी’’.चुपचाप रहने वाले लड़के की अब दिनचर्या बदल गई. ड्यूटी के बाद लोगों से वह मेलजोल बढ़ाता, संपर्क सूत्र ढूंढ़ता, जानकारी जुटाता, अपील करता और उदास होता रहता.सर्दीजुकाम तो जबतब होता रहता है उसे, लेकिन अब उस का हमारे यहां आना नहीं के बराबर था.

घर से उसे उस के पिताजी का फोन आया था. उन्होंने एक लड़की देखी थी जो विहाग केलिए माकूल यानी योग्य थी. विहाग को जल्द हां कहना था. हां कहने का कोई दूसरा विकल्प नहीं था, यह हां तो विवाह में वर के उपस्थित रहने की रजामंदी भर ही थी वरना विवाह तय ही था.सरकारी नौकरी, पद नाम स्टेशन मास्टर. उस के पापा के अनुसार ग्रैजुएट लड़की से विवाह के लिए यह रुतबा सही था. बाकी विहाग जाने.

विहाग के लिए अपने पापा से बात करना जरूरी था. उस ने किया भी, ‘‘मुझे शादी करने में कोई आपत्ति नहीं, बल्कि मैं तो करना ही चाहता हूं, रोजरोज खाना बना कर ड्यूटी जाना अब दूभर हो चुका है. लेकिन ब्याह कर लाऊंगा तो रखूंगा कहां उसे? क्वार्टर मेरे खुद के पैर रखने की हालत में नहीं है.’’

हमेशा से अपने होने का अर्थ ढूंढ़ती रही नारी

लेखिका-डा. अनीता सहगल वसुंधरा

भारत की नारियों ने हमेशा अपने होने का अर्थ ढूंढ़ना चाहा है, पर इस पुरुष समाज ने उसे अपनी इच्छाओं के नीचे दबा कर रखा. आखिर एक नारी भी अपने मन में सपने संजोती है, उन्हें पूरा करना चाहती है, किसी का हक नहीं बनता कि उस के सपनों को दबाए. किस रूप में साधना करूं तुम्हारी, हर रूप में श्रद्धेय लगती हो, नींव बन कर सहती हो सबकुछ, पर आधार पुरुष को दे जाती हो, हर पल बन कर परछाई नर की, तुम अस्तित्व अपना खो देती हो, हर मन में, हर पल में, खुद को त्याग कर, तुम खुद को जला जाती हो. ‘भारत की नारी’ नाम सुनते ही हमारे सामने प्रेम, करुणा, दया, त्याग और सेवासमर्पण की मूर्ति अंकित हो जाती है. हम सम?ाते हैं कि नारी के व्यक्तित्व में कोमलता और सुंदरता का संगम होता है, वह तर्क नहीं भावना से जीती है, इसलिए उस में प्रेम, करुणा, त्याग आदि के गुण अधिक होते हैं और इन सब की सहायता से वह अपना तथा अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाती है.

किंतु महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की घटनाएं स्त्री जीवन के उस मरूस्थल को प्रतिबिंबित करती हैं जो सदियों से घटती रही हैं और हमारा यह सोचना कि नारी न तो परेशान होती है और न ही हार मानती है, उसे कचोटता रहता है जो एक प्रतिकार के रूप में उस के मन से बाहर नहीं आ पाता, क्योंकि यह कहीं न कहीं नारी के उस रूप, जिसे हम ममता, प्यार, वात्सल्य से परिपूर्ण पाते हैं, के रास्ते की रुकावट बन जाता है. महिला अपनी आंखों में ढेर सारे सपने बुनती है, जो पूरी तरह मृगमरीचिका की तरह होते हैं. वहां पहुंचने की उस की मेहनत उसे अंत में भी प्यासे रह जाने की तड़प दे जाती है और भविष्य से जुड़े उस के तमाम सपने उस की योग्यता की अनदेखी कर उसे एक नारी होने का एहसास दिलाते हैं. उस की आत्मनिर्भरता तो छोडि़ए, वह अपने होने का ही अर्थ आज तक नहीं ढूंढ़ पाई है. इस तलाश में वह पूरी जिंदगी भागती रहती है कभी किसी के लिए, कभी किसी के लिए, क्योंकि लगता है कि नारी का जन्म ही खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए होता है. भारतीय नारी का चरित्र त्यागमयी अधिक हो गया है, जो कभी भी किसी बात के लिए शिकायत नहीं करती है. इस के विपरीत, उन्नत देशों की नारियां प्रगति की दौड़ में पुरुषों से मुकाबला करने लगी हैं. वे पुरुषों के समान व्यवसाय और धनप्राप्ति में शामिल हैं. अनेक नारियां माता बनने का विचार ही मन में नहीं लातीं, क्योंकि वे खुद के लिए जीना चाह रही हैं. विदेशी नारियां शराब, जुआ, सिगरेट पीना भी बुरा नहीं मानती हैं. आज आधुनिक समय में भारतीय नारियों में बदलाव आया है. सैकड़ों वर्षों तक घरगृहस्थी रचातेरचाते उसे अनुभव होने लगा है कि उस का काम बरतनचौके तक ही नहीं है. बदलते वातावरण में भारतीय नारी को समाज में खुलने का अवसर मिला है तो वे खुद के लिए जीना चाहती हैं.

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स्वतंत्रता आंदोलन में सरोजिनी नायडू, सत्यवती, कमला नेहरू जैसी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. परिणामस्वरूप स्त्रियों में पढ़नेलिखने और कुछ कर गुजरने की आकांक्षा जागृत हुई. लेकिन पुरुषों के ताकतवर समाज में महिलाओं की ये कोमल भावनाएं दबा दी जाती हैं. एक महिला अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहती है, संपूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती है. इस के लिए वर्तमान समाजव्यवस्था में अनेक सम?ाते उसे करने पड़ते हैं. पुरुषों के समाज में आज भी महिलाएं अकेली ही हैं. समानता और सम्मान की तमाम राजनीतिक घोषणाओं के बावजूद वे समाज के दूसरे दर्जे की नागरिक हैं. भारत में नारियों को प्रेम, बलिदान तथा विनम्रता के प्रतीक के रूप में सराहा तो गया है पर अफसोस यह है कि महिलाओं, जिन्होंने अपने परिवार तथा समाज के विकास के लिए स्वयं को मिटा दिया, को इतने वर्षों बाद भी सामाजिक व्यवस्था में उचित स्थान नहीं मिल पाया है. पुरुष के तथाकथित पौरुषत्व एवं उद्धत अहंकार ने नारी का शोषण किया है. नारी के संबंध में आज बहुत ऊंची तथा बढ़बढ़ कर बातें की जाती हैं. उन्हें जननी, बहन का दर्जा दे कर आदर्श नारी कहा जाता है. उन के उन्नयन हेतु अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं पर समाज में उन का स्थान आज भी असमान है.

आज जबकि 21वीं सदी का पदार्पण हो चुका है, वर्तमान कुछ नारियां विकास के ऊंचे शिखर को छू रही हैं. शिक्षा, कंप्यूटर, नारी सुलभ क्षेत्र- चिकित्सा, सेवा के क्षेत्र, इंजीनियरिंग, वाणिज्य, तकनीकी, पुलिस, विमान चालन जैसे क्षेत्र भी अब उस से अछूते नहीं रहे, फिर भी उसे पुरुषों के मुकाबले उतना योग्य व बुद्धिमान नहीं सम?ा जाता है. जो स्वतंत्रता जिंदगी के हर क्षेत्र में, हर काम में, हर निर्णय आदि में पुरुषों को है, वह स्त्रियों को नहीं है. उन्हें आज भी इस स्वतंत्र भारत व अन्य विकासशील देशों में शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक अत्याचार, अनाचार व अन्य प्रकार की यातनाओं का शिकार होना पड़ता है. आज भी परिवार में कन्या को अपने भाई के मुकाबले अधिक गृहकार्य, जैसे पानी लाना, चौकाबरतन, ?ाड़ूपोंछा आदि करना पड़ता है. आज भी लाखों की संख्या में बालिकाएं नौकरानी के रूप में घरेलू कार्यों को संपन्न करती हैं जबकि उन की आयु पढ़ने व विद्यालय जाने की होती है. कहा जाता है कि नारी जन्म से ही सम्मान एवं अधिकारों की दृष्टि से स्वतंत्र है.

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लेकिन, इस बात में कितना खोखलापन नजर आता है कि जीवन के हर मोड़ पर कन्या, जो आगे चल कर महिला का रूप धारण करती है, को घोर उल्लंघनीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इतना सबकुछ होते हुए भी अगर उन की जिम्मेदारियों की तरफ नजर घुमाएं तो हम देखते हैं कि गांव से ले कर शहर तक, गरीब से ले कर अमीर तक, हर वर्ग में वास्तव में आज नारी की भूमिका दोहरी हो गई है. उसे घर और बाहर दोदो मोरचों पर अपने परिवार की जीविका के लिए काम करना पड़ रहा है. घर की सारी जिम्मेदारियों और बाहर के कार्य इन दोनों में वह जबरदस्त संतुलन बनाए हुए है.

इतनी मेहनत करने के बाद भी उसे पगपग पर पुरुष समाज की ईर्ष्या, घृणा, हिंसा और वासना से भी लड़ना पड़ता है. यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि यह पुरुषों की दुनिया है. हमारी संसद तथा विधानसभाओं में, समाचार जगत तथा सार्वजनिक मंचों पर मात्र पुरुषों के दृष्टिकोण को स्थान मिलता है. विशेषरूप से शहरी शिक्षित पुरुषों को बालिकाओं व महिलाओं की समस्याओं के बारे में कभीकभार ही गंभीर चिंतन हुआ होगा. नारी की आज की यह हालत गांवों के साथसाथ शहरों की नारी के लिए एक अति गंभीर समस्या के रूप में सामने आ चुकी है. उस के इस हालत का जिम्मेदार कौन है, किस का नाम लिया जाए?

धूमावती- भाग 5 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

“मैं किसी के नजर में आने न दूंगी, लेकिन यह चिट्ठी तुम्हारी जबान की निशानी है. मुझे इसे संभालना ही पड़ेगा, बच्चा तुम्हारी जिद पर ला रही हूं, तो तुम्हारी ‘हां’ मेरे पास होनी चाहिए प्रभास. “मुझे माफ करना,अपनी और बच्चे की सुरक्षा के लिए यह है.”

“यह प्रेम था? हेमा ऐसे ही नाकाबिल रिश्ते के लायक थी. छी:…” तरुण बोल कर चिट्ठी एक किनारे फेंक चुपचाप पलंग पर बैठ गया. मेघना के अंदर धुआं भरता जा रहा था. सालों से धोखे का खेल… और वह घर और बच्चियों में खुद को होम कर चुकी. प्रभास कितना बुरा बरताव करता रहा उस के साथ, और वह खुद को दिलासा देती रही कि पति काम के बोझ से परेशान है.

तरुण ने चुप्पी तोड़ी, “बेटी का नाम ‘तमन्ना’ यानी प्रभास की तमन्ना. मैं और अच्छा इनसान नहीं बन सकता. मैं बच्ची को देखते ही हेमा की बेवफाई ही याद करूंगा. कैसे पालूंगा दीदी इस बच्ची को? इस धोखे की निशानी को… बच्ची मेरे साथ खुश नहीं रह पाएगी दीदी.

तरुण अचानक फूटफूट कर रो पड़ा. मेघना ने उस के सिर पर हाथ रखा और कहा, “तुम चिंता न करो तरुण. प्रभास कल ही कह रहा था कि वह बेटी को तुम से ले लेगा, और मुझे तुम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखने देगा. “अगर बच्ची यहां रही, तो मुझे देखभाल के लिए आना ही पड़ेगा, और प्रभास मुझे रोकेगा.

“अच्छा है कि मैं ही बच्ची को ले जाऊं. मेरी ममता भेद नहीं करेगी. मुझे तो प्रभास के बुरे स्वभाव की आदत ऐसे भी पड़ ही चुकी थी, सीने पर एक पत्थर और सही. “मैं बच्ची को ले जाती हूं, प्रभास की हकीकत को उसे बताने की जरूरत नहीं. उस की सजा यही है कि वह खुशफहमी में ही जिए. वक्त उसे क्या सजा देना चाहता है, मैं देखना चाहती हूं.”

तरुण ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. मेघना बच्ची को डाक्टर से दिखाते हुए घर ले आई. प्रभास खुश था कि उस की बच्ची उसे मिल गई, और अब मेघना का तरुण के साथ उठनाबैठना भी बंद होगा. एकाध महीने बीतते ही तरुण के मेघना के पास फोन आने लगे. दोनों बेटे ओज और ओम अपनी बहन के बिना अब एक पल भी नहीं रहना चाहते. दीवाने हुए जा रहे हैं कि बहन को जल्दी मंगाओ.

बारबार तरुण का फोन करना इस बात की गारंटी थी कि दोनों बच्चे अपनी फूल सी प्यारी बहन के बिना कोहराम मचाए हैं. बाध्य हो कर मेघना को प्रभास से बात करनी पड़ी कि वे अपनी बेटी वापस चाहते हैं. प्रभास गुस्से से आगबबूला हो गया.

“मैं अब इसे बोर्डिंग भेज दूंगा, लेकिन नालायक तरुण को कभी मेरी बच्ची मतलब हेमा की बच्ची नहीं दूंगा.” मेघना का सब्र अब टूट रहा था. वह चीख पड़ी “धोखा दे कर सिर ऊंचा कर के बात मत करो प्रभास… तुम किस हक से मुझे धोखा दे सकते थे, जबकि अकेले सारा कुछ संभालती आई हूं अब तक. क्या तुम्हारे बूढ़े मांबाप, क्या तुम्हारे रिश्तेदार और क्या तुम्हारी बच्चियां. कभी तुम ने कोई जिम्मेदारी ली? शर्म नहीं आती अपने कलिग से बच्चे पैदा किए, और अब बच्चे जब अपनी बहन को चाहते हैं, तुम उन्हें छीन कर बोर्डिंग में भेजना चाहते हो.

ऐसा भी नहीं है कि तुम ने बच्ची को बहुत चाहा हो, तुम तो बस अधिकार जमाना जानते हो. हेमा तुम्हें क्या समझती थी, अब भी चिट्ठी में लिखा है. और तुम ने भी हेमा के शरीर और खूबसूरती को चाहा था, तभी उस की खूबसूरती को अपने शरीर के साथ मिलाना चाहते थे. तुम समझ भी सकोगे कभी कि तुम्हारी हरकतों का मुझ पर क्या असर हुआ है? धुआं भरा है मेरे अंदर… और उस धुएं में ऐसी आग है कि तुम पलपल जलोगे, लेकिन आसपास किसी को खबर नहीं होगी.” “बकवास छोड़ो, चिठ्ठी के लिखे से कुछ भी प्रमाण नहीं होता… और बच्ची को मैं बोर्डिंग ही भेजूंगा.”

मेघना क्रोध और निराशा से भरी कुछ देर प्रभास को देखती रही, फिर बोली, “तुम तरुण और उस के बेटों के प्रति बदले की भावना से ग्रस्त हो… और इस का प्रतिकार मैं करूंगी जरूर.” प्रभास  ने आगंतुक को आंखें फाड़फाड़ कर देखा, लेकिन फिर भी उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उस के घर बैंक के जोनल औफिस के हेड आए हुए थे. पास ही तरुण और उस के दो बेटे बैठे थे, और बड़े बेटे ओज की गोद में तमन्ना थी. मेघना ने प्रभास के आते ही मुसकरा कर कहा, “तमन्ना के नाम बदलने की हम ने एक छोटी सी व्यवस्था रखी है. तुम्हारे सर का आना कैसा लगा प्रभास? तरुण अपनी बेटी को लेने आए हैं.”

उसी वक्त प्रभास को कुछ कहने का मौका दिए बगैर उस के बौस ने कहा, “क्यों प्रभास सुना है कि तुम तरुण की बेटी को जबरदस्ती बोर्डिंग भेजना चाहते हो? उन से उन की बच्ची छीन कर अपने पास रखे हो?” “सर, ये मेरी, मेरी भी बेटी है,” तरुण हकला गया, तुरंत सर ने कहा, “क्या ये बच्ची तरुण की नहीं है? अगर यह बच्ची उस की नहीं है तो तुम्हें सब के सामने बैंक में कहना होगा कि तुम ने अपनी पत्नी और हेमा के पति को धोखा दे कर नाजायज संबंध बनाए. छल करने के एवज में मैं तुम्हारा सीआर खराब कर दूंगा… तुम्हें मेघना को दुख भरपाई के लिए एक बड़ी रकम भी  देनी होगी.”

“नहीं… नहीं सर, ये बच्ची मेरी नहीं, तरुण की है.” “अच्छा…? फिर तुम उसे बोर्डिंग किस अधिकार से भेज रहे थे? आगे से खुद को बच्ची के परिवार से दूर रखो, वरना चैन से नहीं रह पाओगे. मैं तुम्हारी हरकतों की ऊपर तक खबर करूंगा. मेरे पास पूरा प्रमाण है. तुम्हारे बैंक के कुछ कर्मचारी भी औफिस में तुम्हारी हरकतों के बारे में बताने को तैयार हैं. तुम कितने निर्दय हो, जो बच्ची तुम्हें जानती तक नहीं, उसे तुम उन लोगों से छीन रहे हो, जो उस पर जान लुटाते हैं. देखो, बच्ची तरुणजी की गोद में कैसे लपक कर चली जाती है.”

मेघना ने हेड सर से कहा, “सर, हम इस बच्ची का नाम ‘अनाया’ रखना चाहते हैं. आप इस बच्ची को नए नाम के साथ आशीष दे दीजिए.” हेड ने उसे अपनी गोद में लेते हुए ‘अनाया’ नाम से आशीष दिया और सब लोगों ने मुंह मीठा किया. मेघना ने पूरी वीडियोग्राफी कर ली थी. तरुण बच्ची को गोद में लेते हुए बेटों के साथ चलने को तैयार हुआ, तो हेड सर का आभार मानते हुए प्रभास से कहा, ” प्रभासजी, मेघना मेरी दीदी है, अपने छोटे भाई के पास आने को मना न करना.”

“फालतू बहनापा का दिखावा मत करो. मुझे सब पता है,” प्रभास ने चिढ़ कर कहा. मेघना ने प्रभास की ओर घृणा और व्यंग्य से देखते हुए कहा, “आप के लिए औरत हमेशा एक देह ही रहेगी, उस से ज्यादा आप की नजर में आना मुश्किल है. लेकिन दुनिया के बाकी लोग आप जैसे बिलकुल भी नहीं हैं. छोटी तो फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने मुंबई के कालेज होस्टल में चली ही गई है. मैं बड़ी बेटी के पास चली जाऊंगी. मेरा होम डेकोर आर्ट औनलाइन बिजनेस अब जोर पकड़ ही रहा है, मैं बंगलोर अपनी बड़ी के पास जा कर इसी में व्यस्त हो जाऊंगी.”

हेड ने जातेजाते कहा, “अब भी सुधर जाओ प्रभास, वरना पछताओगे.” सब के चले जाने के बाद प्रभास मेघना के पास आया और बोला, ” मेघना, तुम कहीं मत जाओ, आगे से तुम्हें कभी तकलीफ नहीं दूंगा. मैं दूसरे रिश्ते में रह कर देख चुका हूं, मैं अब तुम्हारे साथ एक शांति की जिंदगी चाहता हूं, एक मौका दो, शिकायत नहीं होगी.” मेघना अंदर से बिलकुल भी गदगद नही हुई. वह बोली,

“प्रभास,मैं रह भी जाऊं तो पहले जैसा प्यार और समर्पण की उम्मीद मुझ से मत करना. मैं जानती हूं कि तुम्हारा शरीर अब वैसा नहीं रहा कि तुम अकेले मौज कर सको. लेकिन, जान लो, मैं एक धुएं भरे रिश्ते में हूं, और इस की घुटन मेरे अंदर हमेशा बनी रहेगी. ऐसे भी मेरी तुम्हारे साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं है, जो पति के लिए प्यार होता है न, वो तो अब खत्म ही हो गया है मुझ में. रहने को कहते हो तो रह जाऊंगी, लेकिन तुम्हारे व्यवहार पर मेरी पूरी नजर रहेगी, और  तुम्हारे जोनल हेड सर की बात सुन चुके न… ये सर मेरे गांव से हैं, मेरे घरपरिवार के लोगों की वे बहुत इज्जत करते हैं. और इज्जत वैसे कमाई जाती है, भीख में नहीं मिलती, तुम्हें बता दूं.”

प्रभास और मेघना साथ रहे, लेकिन अब प्रभास की डोर मेघना के हाथों में थी, एक सच्चे ईमानदार शक्तिशाली व्यक्तित्व के हाथों में, जो खुद धूमावती थी, अपने अंदर ढेरों दुख के धुएं लिए, लेकिन सचाई की रोशनी बिखेरती हुई.

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