महानता और नग्नता 75 वर्षीय हृदयनारायण दीक्षित अपने दौर के औसत पत्रकार और साहित्यकार रहे हैं. राजनीति में आ कर अधिकतम उपलब्धि की शक्ल में उत्तर प्रदेश विधानसभा का पद उन्हें मिल चुका है. उन्नाव जिले के बांगरमऊ कसबे में वे जरूरत से ज्यादा बहक कर बोल गए कि अगर कम कपड़े पहनने से कोई महान बनता होता तो राखी सावंत गांधीजी से ज्यादा महान होतीं. गांधी किस तरह भगवा खेमे के मैंबर्स के दिलोदिमाग में कुंठा और गठान बन कर विराजे हैं, यह इस मांसाहारी वक्तव्य से सम?ा जा सकता है.

इस बयान या बकवास, कुछ भी कह लें, पर उन की हैसियत और उम्मीद के मुताबिक बवाल मचा क्योंकि महानता और नग्नता में इतना अंतरंग और नजदीकी संबंध अभी तक कोई प्रबुद्ध जन स्थापित नहीं कर पाया था. कुछ लोग तो भड़के ही, लेकिन राखी सावंत ने अपने मिजाज के मुताबिक हृदयनारायण को बख्शा नहीं, जिस के कहे का सार यह था कि ‘ग्रैंड पा कुछ तो शर्म करो.’ वादा तेरा वादा अरविंद केजरीवाल और दूसरे नेताओं में बड़ा फर्क यह है कि उन्होंने जो कहा वह दिल्ली में कर के दिखाया भी. अब वे चुनावी राज्यों में भी कुछ कर दिखाना चाहते हैं. पंजाब के बदलते घटनाक्रम के बाद वादों की बौछार उन्होंने उत्तराखंड और गोवा में की, मसलन इतने यूनिट बिजली फ्री दूंगा और इतने लाख लोगों को रोजगार दूंगा. चाइनीज आइटमों की तरह ऐसे वादों की कोई गारंटीवारंटी नहीं होती लेकिन जाने क्यों लोग उन की बातों को पूरी तरह खारिज नहीं कर पाते. खासतौर से युवा जो उन की कार्यशैली और दिल्ली सरकार के रियलिटी वाले विज्ञापनों को देख कर सोचता है कि ‘कसमेंवादे प्यारवफा...’ वाले गाने की तरह वोट भी तो मिथ्या ही है,

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