Download App

Crime Story : मिटा दिया साया

सौजन्या-सत्यकथा

रात लगभग 2 बजे सुनील कुमार के घर में कोहराम मच गया. बरामदे में सुनील कुमार की
लहूलुहान लाश पड़ी थी. लाश के पास में ही उस की पत्नी आशा देवी बैठी रो रही थी. शोर सुन कर आसपास के लोग भी आ गए. बेटे अनुज ने उसी समय थाना चित्राहाट में फोन कर घटना की जानकारी दी. यह घटना आगरा के चित्राहाट थाना क्षेत्र के नाहि का पुरा गांव में 25 मार्च, 2021 की रात को हुई थी.
सूचना मिलते ही थानाप्रभारी महेंद्र सिंह भदौरिया उसी समय टीम के साथ गांव में जा पहुंचे. उन्होंने अनुज से घटना के बारे में जानकारी ली. इस के बाद उन्होंने घटना की जानकारी एसपी (पूर्वी) अशोक वेंकट को दी. वह भी कुछ ही देर में घटनास्थल पर पहुंच गए.

पूछताछ में अनुज ने पुलिस को बताया कि रोजाना की तरह पिता रात को बरामदे में चारपाई पर सो रहे थे. जबकि परिवार के अन्य सदस्य ऊपरी मंजिल पर सोए हुए थे. रात लगभग 2 बजे पिता की चीख सुन कर आंखें खुल गईं. वह और मां दोनों बरामदे की ओर दौड़े. बरामदे में गांव का अनवर जो हमारे परिवार से रंजिश मानता है, पिता के सिर पर कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ प्रहार कर रहा था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: दूसरे पति की चाहत में

उन लोगों ने रोकने का प्रयास किया तो वह जान से मारने की धमकी देता हुआ भाग गया. सिर से निकले खून के छींटों से दीवार भी लाल हो गई थी. अचानक हुए हमले से पिता अपना बचाव नहीं कर सके और उन की मौत हो गई. घटनास्थल की काररवाई करने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.घर वालों के अनुसार 21 मार्च को खेत पर अनुज और अनवर के बेटे विजय के बीच विवाद हो गया था. अनवर ने अपने बेटे विजय का पक्ष लेते हुए अनुज के सिर में ईंट मार दी थी, जिस से सिर से खून बहने लगा. इतना ही नहीं अनवर ने धमकी दी, ‘‘मैं तेरा काल हूं, तेरी बलि चढ़ाऊंगा.’’

घर आ कर अनुज ने पिता सुनील कुमार को घटना की जानकारी दी. इस पर सुनील अपने घायल बेटे को ले कर अनवर के घर पहुंचा. शिकायत करने पर अनवर के घर वालों ने गालीगलौज करने के साथ ही पितापुत्र को जान से मारने की धमकी दी थी.इस के बाद थाना चित्राहाट में घटना की अनवर के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज करा दी थी. लेकिन बाद में गांव के लोगों ने बीच में पड़ कर सुलह करा दी थी. इस के बाद अनवर ने वारदात को अंजाम दे दिया.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पति की कातिल

पीडि़त घर वालों ने पुलिस को बताया कि यदि आरोपी अनवर जल्द गिरफ्तार नहीं किया गया तो अनुज के साथ भी अनहोनी हो सकती है. अनुज की तरफ से अनवर के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया.
44 वर्षीय सुनील कुमार पूर्व प्रधान रामप्रकाश का बेटा था. सुनील के परिवार में पत्नी आशा देवी के अलावा बेटा अनुज और 2 बेटियां थीं. परिवार ने अनवर की धमकी को हलके में लिया था.

मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपी अनवर की तलाश में जुट गई. आरोपी के घर पर दबिश दी गई, लेकिन वह नहीं मिला. फरार आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एसपी (पूर्वी) अशोक वेंकट ने पुलिस की टीम का गठन किया. पुलिस टीम में थानाप्रभारी (बाह) विनोद कुमार पवार, थानाप्रभारी (जैतपुर) योगेंद्र पाल सिंह, थानाप्रभारी (चित्राहाट) महेंद्र सिंह भदौरिया, सर्विलांस टीम के प्रभारी नरेंद्र कुमार व उन की टीम को शामिल किया गया.

पुलिस जहां अनवर की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी, वहीं वह घटना के संबंध में गहराई से जांचपड़ताल में जुटी थी. इस संबंध में पुलिस को गांव वालों ने बताया कि सुनील अय्याश किस्म का व्यक्ति था. गांव के अलावा आसपास के गांवों में कई महिलाओं से उस के अवैध संबंध थे. वह उन पर खूब पैसा खर्च करता था. इस के लिए वह पहले अपनी जायदाद बेच चुका था. हाल ही में उस ने बेटी की शादी के नाम पर कुछ जमीन का सौदा भी कर दिया था. इसी को ले कर घर में क्लेश हो रहा था. सुनील की बेटी व बेटा भी इस बात से नाराज थे.

ये भी पढ़ें- Manohar Kahaniya: ऑनलाइन चलता सेक्स रैकेट

पुलिस का मानना था कि बच्चों के बीच हुए विवाद के बाद जब दोनों पक्षों में सुलह हो गई थी तब अनवर ने सुनील की हत्या क्यों की? और वह भी अकेले. हत्या जैसी घटना को अकेले अनवर अंजाम नहीं दे सकता था. उस का कोई साथी भी इस में जरूर शामिल होगा. लेकिन मृतक के घर वालों से पूछताछ के साथ ही अनुज ने रिपोर्ट में भी केवल अनवर को ही नामजद किया था. इस बीच आरोपी अनवर की तलाश में जुटी पुलिस की टीमों के हाथ कई अहम सुराग लगे, जिस से वह पुलिस की पकड़ में आ गया. अनवर को पुलिस थाने ले लाई.

उस से कड़ाई से पूछताछ की गई. पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि सुनील की हत्या के बाद वह मौके पर पहुंचा था. मृतक का शव चारपाई से उस ने ही उतरवा कर जमीन पर रखवाया था. उस के बाद सुनील के घर वालों की कानाफूसी पर वह वहां से निकल गया था. मृतक की पत्नी से भी पुलिस को अहम सुराग मिले थे, जिस से इस हत्याकांड में बेटा व बेटी के लिप्त होने की बात सामने आई थी.
पुलिस ने सुनील की हत्या के आरोप में मृतक के बेटे अनुज, बेटी अल्पना के साथ ही अल्पना के प्रेमी संजेश तथा संजेश के दोस्त मदन यादव को 29 मार्च, 2021 को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने हत्या में शामिल आरोपियों की गिरफ्तारी से पहले उन के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाए और 30 मार्च को सुनील हत्याकांड का परदाफाश कर दिया. चारों आरोपियों ने हत्या में शामिल होने का जुर्म कबूल करते हुए हत्या में प्रयुक्त चारपाई का पाया, जिस से सुनील के सिर को कूंच कर हत्या की गई थी, को एक खेत से हत्यारोपियों की निशानदेही पर बरामद कर लिया. पुलिस पूछताछ में हत्यारोपियों ने सुनील कुमार की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी—

सुनील कुमार अपनी जायदाद बेचबेच कर अपने शौक पूरे कर रहा था. पिता की हरकतों से परिवार में क्लेश चल रहा था. हाल ही में सुनील ने अपनी 6 बीघा जमीन का 20 लाख रुपए में सौदा किया था. इस बात की जानकारी घर वालों को जैसे ही हुई, उन्होंने इस का कड़ा विरोध किया. ननिहाल वालों को भी इस संबंध में बताया, उन्होंने भी सुनील को समझाया लेकिन उन के समझाने का भी सुनील पर कोई असर नहीं हुआ.

इस पर बेटे अनुज और बेटी अल्पना को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी. यदि पिता संपत्ति बेचबेच कर इसी तरह बरबाद करते रहे तो परिवार के सामने भूखों मरने की नौबत आ जाएगी. तब दोनों भाईबहनों ने पिता सुनील का पुरजोर विरोध किया तो सुनील ने अनुज और अल्पना के साथ मारपीट कर दी.
संपत्ति के विवाद में आए दिन हो रहे गृह क्लेश के बीच 21 मार्च को गांव में बच्चों के विवाद में अनुज का अनवर से झगड़ा हो गया. इसी घटना को आधार बना कर अनुज और अल्पना ने अपने पिता सुनील की हत्या की योजना बना डाली.

अल्पना के पिछले 6 सालों से सूरजनगर गांव के संजेश से प्रेम संबंध थे. उधर सुनील अल्पना की शादी के लिए रिश्ता तलाश रहा था, जबकि अल्पना संजेश से प्यार करती थी और उसी से शादी करना चाहती थी.
अनुज और अल्पना ने प्रेमी संजेश के साथ पिता सुनील कुमार की हत्या की साजिश रची. अल्पना ने संजेश को बताया कि पिता को हम दोनों के प्रेम संबंधों का पता चल गया है और वह उस की शादी के लिए रिश्ता तलाश रहे हैं, साथ ही वह अपने शौक पूरा करने के लिए जमीन भी बेच रहे हैं. यदि उन्होंने इसी तरह सारी जमीन बेच दी तो हमारे लिए कुछ नहीं बचेगा. उन्होंने 20 लाख रुपए में जमीन बेचने का सौदा भी कर लिया है. यदि उन्हें जल्दी से रास्ते से नहीं हटाया गया तो हम लोगों को पछताना पड़ेगा.

सुनील ने कुछ दिन पहले अल्पना व अनुज के साथ मारपीट की थी. ये बात संजेश को बुरी लगी थी. तब प्रेमी संजेश ने अपनी प्रेमिका अल्पना की खातिर सुनील को ठिकाने लगाने के लिए अपने गांव के ही दोस्त मदन यादव को तैयार कर लिया. 25 मार्च, 2021 की रात को संजेश की फोन काल पर ही मदन यादव सुनील की हत्या करने के लिए वहां पहुंच गया. रात 2 बजे घर के बरामदे में सो रहे सुनील के सिर पर चारपाई के पाए से ताबड़तोड़ वार कर उस की हत्या कर दी. हत्या को अंजाम देने के बाद संजेश और मदन अपने घर चले गए. उन के जाने के बाद योजनानुसार अनुज ने शोर मचाया.

पुलिस जब चारों आरोपियों अनुज, अल्पना, संजेश और मदन यादव को गिरफ्तार कर न्यायालय ले जा रही थी, तो वे हंस रहे थे. पिता की हत्या के बाद बेटे अनुज और बेटी अल्पना के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी.

संपादकीय

मोदी सरकार का एक छिपा काम किसी तरह देश में फिर से पूरी तरह पौराणिक ऊंचनीच वाले समाज को बनाना है जिस में पैदा होते ही तय हो जाए कि कौन क्या बनेगा. रामायण और महाभारत में 2 राजसी घरों का झगड़ा ही सब से बड़ी बात है और पैदा होने के हक को देने या न देने पर इन पूजे जाने वाले भारीभरकम किताबों से निकलने वालों को पूजा भी जाता है और उन्हीं की तर्ज पर पैदा होने को ही ङ्क्षजदगी की जड़ माना जाता है.

हमारे संविधान ने चाहे सभी अमीरों और गरीबों के बच्चों को बराबर का माना हो पर असलीयत यही है कि रोजाना ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों की ही गारंटी है. अंबेडकर और मंडल की वजह से शड्यूल कास्टों और बैकवार्डों को जगह मिलने लगी पर यह समाज के कर्ताधर्ताओं को पसंद नहीं आई और उन्होंने रामायण और महाभारत के पन्नों से कुछ पात्रों निकालकर जनता को ऐसा बहकाया है कि आज सादे घर में पैदा हुआ सिर्फ मजदूर बन कर रह गया है. उसे ज्यादा से ज्यादा कुछ मिल सकता है तो वह ऊंचे घरों में पैदा हुए लोगों के घरों और धंधों में छोटे काम करना या उन की सुरक्षा करने का पुलिस और सेना में खूब भरतियां हुई हैं पर अफसरी गिनेचुनों को मिली है. आम घरों के पैदा हुए तो सलूट ही मारते हैं चाहे उन्हें चुप करने के लिए अफसरी का बिल्ला लगाने को दे दिया गया हो.

देश में बढ़ती बेरोजगारी एक पूरी साजिश है. सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन हो गया है इसलिए सरकार ने सरकारी कारखाने धड़ाधड़ बेचने शुरू कर दिए ताकि सादे घरों में पैदा हुए लोगों को ऊंची सरकारी नौकरियां देनी ही न पड़ें. पुलिस और सेना के अलावा कहीं और थोक में भरतियां हो ही नहीं रहीं. आधुनिक टैक्नोलौजी ने निजी कंपनियों को वह रास्ता दिखा दिया जिस में सादे घरों के लोगों का काम मशीनें कर सकती हैं और उन मशीनों को ऊंचे घरों में पैदा हुए एयरकंडीशंड कमरों में बंद दफ्तरों से चला सकते हैं.

आज हालात यह हो गए हैं कि किसानों की मौतों का मुआवजा एक अदद सरकारी नौकरी रह गई है. करनाल और लखीमपुर खीरी में राकेश टिकैत जैसे जुझारू नेता ने भी एकएक सरकारी नौकरी का वादा पाकर मौतों का समझौता कर लिया. बेकारी इतनी बड़ा दी गई है कि एक सरकारी नौकरी किसान की जान से ज्यादा कीमती हो गई है.

नौकरियों को खत्म करने में नोटबंदी, जीएसटी, कृषि कानूनों नागरिक कानूनों को जबरन साजिश की तौर पर लाया गया है. सरकार को पहले से पता था कि इनका क्या नुकसान होगा. इन से छोटे घरों से पनपते छोटेछोटे व्यापारी मारे जाएंगे यह एहसास सरकार को था और छोटे धंधे और छोटे व्यापार जो छोटे घरों के मेहनती युवा करने लगे थे, भारीभरकम टैक्सों, नियमों, नोटों की मिल लगें, बैंक अकाउंट रखने की जरूरत जिसे खोलना आसान नहीं है एक पूरी साजिश की तरह थोपा गया है ताकि देश की अस्सी फीसदी जनता गुलाब बनकर रह जाए. उन्हें बहलाने के लिए रामायण और महाभारत, जिसे पहले टीवी पर चल कर घरघर पहुंचा दिया गया था, से लिए पात्रों को दे दिया गया कि इन्हें बचाओ चाहे खुद मर जाओ.

आज देश बुरी तरह कराह रहा है पर हर गरीब इसे अपने पिछले जन्मों का फल मानता है क्योंकि गीता में यही कृष्ण कह गए हैं. हर गरीब सेवक, केवट या शबरी की तरह है, इससे ज्यादा नहीं बेरोजगार हैं तो क्या हुआ, देश के धर्म का डंका तो बज रहा है न.

दायम्मा

अक्टूबर महीने में जानें खेती से जुड़े काम

लेखक-बृहस्पति कुमार पांडेय

खेतीबारी के नजरिए से अक्तूबर का महीना बहुत ही खास होता है. इस महीने जहां खरीफ की ज्यादातर फसलों की कटाई और मड़ाई का काम जोरशोर से किया जाता है, वहीं रबी सीजन में ली जाने वाली फसलों की रोपाई और बोआई का काम भी तेजी पर होता है. किसान खेती, बागबानी, मछलीपालन, मधुमक्खीपालन, पशुपालन, मशरूम उत्पादन आदि से अच्छी पैदावार और लाभ लेने के लिए इन कामों को अक्तूबर महीने में समय से निबटाएं. अगर आप ने धान की फसल की कटाई कंबाइन से कराई है, तो पराली न जलाएं. इस से मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्त्व व लाभदायक कीट नष्ट हो जाते हैं. साथ ही, इस से मिट्टी की उर्वराशक्ति क्षीण होने लगती है. ऐसे में ली जाने वाली फसल का उत्पादन घट सकता है.

वहीं पराली प्रबंधन यानी फसल अवशेष प्रबंधन के लिए स्ट्रा चौपर, सुपर सीडर, स्ट्रा बेलर, स्ट्रा रीपर, रीपर कम बाइंडर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, कटर कम स्प्रैडर जैसे यंत्रों का इस्तेमाल किया जा सकता है. ध्यान रखें कि अक्तूबर महीने में फसल की कटाई के उपरांत ज्यादातर खेत खाली हो चुके होते हैं और किसान रबी सीजन में ली जाने वाली फसलों की बोआई की तैयारी कर रहे होते हैं. ऐसी अवस्था में मिट्टी में संतुलित उर्वरकों की मात्रा के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए खाली खेत से मिट्टी के नमूने ले कर मिट्टी जांच प्रयोगशाला में जरूर भेज दें. इस से मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, सल्फर, जिंक, लोहा, तांबा, मैंगनीज व दूसरे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की दी जाने वाली मात्रा का पता चल जाता है,

ये भी पढ़ें- जल संरक्षण कृषि उत्पादन के लिए आज की जरूरत- भाग 3

वहीं खरीफ फसलों की मड़ाई के बाद उचित भंडारण के लिए नई बोरियों का प्रयोग करें. अक्तूबर महीने में खेतीबारी से जुड़े यंत्रों का उपयोग ज्यादा होता है. ऐसे में प्रतिदिन काम शुरू करने से पहले व बाद में यंत्रों की साफसफाई कर लेनी चाहिए. जरूरत पड़ने पर पानी से भी सफाई करें. काम करने से पहले व बाद में यंत्रों के नटबोल्ट की जांच जरूर करें. नटबोल्ट तुरंत दुरुस्त कर दें. मशीन की बेयरिंग व अन्य घूमने वाले भागों में मोबिल औयल व ग्रीस जरूर डालें. समयसमय पर यंत्रों की सर्विस का काम जरूर कराएं. अक्तूबर महीने में धान की बालियों का रस चूसने वाले गंधीबग कीट के रस चूस लेने के कारण दाने नहीं बनते हैं, जिस से बालियां सफेद दिखाई देने लगती हैं. इस की रोकथाम के लिए ट्राइजोफास या मैथोमिल 1 लिटर मात्रा को 500-600 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से फूल आने के समय बुरकाव करें. इस महीने धान में भूरे फुदके का प्रकोप भी देखा गया है,

जिस में पौधे से रस चूस लेने के कारण पौधे सूख कर गिर जाते हैं और फसल ?ालस सी जाती है. ऐसे में इस की रोकथाम के लिए खेत से पानी निकाल दें व नीम औयल 2.5 लिटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. वहीं चूहों के नियंत्रण के लिए जिंक फास्फाइड से बने चारे अथवा एल्युमिनियम फास्फेट की गोली का प्रयोग करें. धान की कटाई से एक हफ्ते पहले खेत से पानी निकाल दें. जब पौधे पीले पड़ने लगें व बालियां तकरीबन पक जाएं, तो समय से फसल की कटाई कर लें. गेहूं की अगेती फसल लेने वाले किसान अक्तूबर महीने के अंतिम सप्ताह से बोआई शुरू कर सकते हैं. इस के लिए उपयुक्त किस्में एचयूडब्ल्यू-533, के-8027, के-9351, एचडी-2888, के-8962, के-9465 और के-1317 हैं. जौ की अगेती फसल लेने के लिए किसान 15 अक्तूबर के बाद से बोआई शुरू कर सकते हैं. इस के लिए उन्नत छिलके वाली प्रजातियों में ज्योति (के-572/10), आजाद (के-125), हरित (के-560), प्रीति, जाग्रति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जी-1 व 2 और 3, आरडी-2552 शामिल हैं,

ये भी पढ़ें- जल संरक्षण कृषि उत्पादन के लिए आज की जरूरत- भाग 2

जबकि छिलकारहित प्रजातियों में गीतांजली (के-1149), नरेंद्र जौ 5 और उपासना, इसी को हम एनडीवी 934 कहते हैं जैसी प्रजातियां शामिल हैं. माल्ट के लिए के-508, ऋतंभरा (के-551), रेखा और डीएल-88, बीसीयू-3, डीडब्ल्यूआर-2 आदि प्रजातियां उपयुक्त पाई गई हैं. शरदकालीन गन्ने की खेती के लिए अक्तूबर का महीना उपयुक्त होता है. शरदकालीन गन्ने के बीज के पिछले वर्ष शरद ऋतु में बोए गए गन्ने से बीज प्राप्त करें. शरदकालीन गन्ना बोआई में लाइनें 2 फुट दूर रखें. यदि लाइनों की दूरी 3 फुट रखते हैं, तो बीच में आलू की भी फसल ली जा सकती है. गन्ने को खेत में बोने से पहले थिरम व कार्बोक्सिन दोनों 37.5 फीसदी डब्ल्यूपी 250 ग्राम मात्रा सौ लिटर पानी में घोल कर उस से 25 क्विंटल गन्ने के टुकड़े उपचारित किए जा सकते हैं. जिन किसानों ने कपास की खेती की है, वह देशी कपास की चुनाई 8-10 दिन के अंतराल पर करते रहें. इस महीने अमेरिकन कपास भी चुनाई के लिए तैयार हो जाती है. चुने हुए कपास को सूखे गोदामों में रखें.

ये भी पढ़ें- जल संरक्षण कृषि उत्पादन के लिए आज की जरूरत- भाग 1

जो किसान शीतकालीन मक्का की खेती करना चाहते हैं, वे उपयुक्त सिंचाई वाली जगहों पर अक्तूबर महीने के आखिर तक बोआई जरूर कर लें. मक्के की संकर प्रजातियों के लिए प्रति हेक्टेयर 18-20 किलोग्राम व अन्य प्रजातियों के लिए 20-25 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. जो किसान चने की खेती करना चाहते हैं, वे चने की बोआई अक्तूबर महीने के दूसरे पखवारे से शुरू कर दें. चने की बोआई के लिए उन्नत प्रजातियों में पीडीजी-3 व 4, जीपीएफ-2, पीवीजी-1, जीएल-769, सी-235, एच-208, जी-24, हरियाणा चना 1 व 3, गौरव पूसा-256, राधे, के-850, पूसा-208, पूसा 547, ऊसर क्षेत्र में बोआई के लिए करनाल चना-1 शामिल हैं. इस के अलावा काबुली चना की एच-144, गोरा हिसारी, हरियाणा काबली-1, वीजी-1073, एल-771, एल-770, पूसा-1003, पूसा 5023, चमत्कार, शुभ्रा किस्मों की बीआई की जा सकती है.

इस के लिए एक हेक्टेयर खेत में 70 से 90 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. चने की फसल को उकठा रोग से बचाने के लिए ढाई किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिला कर कल्चर तैयार कर लें. इस तैयार कल्चर को एक हफ्ते पूर्व खेत में मिला दें. साथ ही, ट्राइकोडर्मा की 10 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज का उपचार करना चाहिए. फसल को बीमारयों से बचाने के लिए 1.7 ग्राम बाविस्टीन और 1.7 ग्राम थिरम प्रति किग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें. वहीं फसल को दीमक से बचाव के लिए ब्युवेरिया बैसियाना की ढाई किलोग्राम मात्रा को 50 किलोग्राम गोबर में मिला कर मिट्टी उपचारित करें. चने के बीजों को ढाई ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से राइजोबियम जैव खाद से उपचारित कर के ही बोएं. जिन किसानों ने अरहर की अगेती फसल ले रखी है, वे फसल को फली छेदक कीट से बचाने के लिए इंडोक्साकार्ब 14.8 ईसी 325 मिली. 500-600 लिटर पानी में मिला कर 15-20 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करें. अरहर में 70 फीसदी फलियां लगने पर स्पाइनोसेड 5 फीसदी एससी की 750 मिलीलिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल कर छिड़कें.

इस से फली छेदक कीट की रोकथाम हो सकेगी. मसूर की बोआई अक्तूबर महीने के आखिरी सप्ताह से नवंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक बो दें. इस की उन्नत किस्में एल-9-12, सपना, गरिमा, एलएल-699 व 147 हैं. इस के बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित कर के ही बोएं. जो किसान दाल वाली मटर की किस्मों की खेती करना चाहते हैं, वे अक्तूबर महीने के अंतिम सप्ताह से इस की बोआई शुरू कर दें. इस की उन्नत किस्मों में फील्ड पी-48, पीजी-3, अपर्णा, जयंती, उत्तरा व टाइप-163 रचना, पंत मटर-5, मालवीय मटर-2, मालवीय मटर-15, शिखा और सपना प्रमुख हैं. बीमारियों से बचाव के लिए बाविस्टीन से बीजोपचार करें और मटर राइजोबियम जैव खाद से उपचारित करें. अक्तूबर के आखिरी हफ्ते से नवंबर के पहले सप्ताह तक अलसी की बोआई का उचित समय होता है. इस फसल को चिकनी दोमट व अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में और धान की फसल के बाद उगाया जाता है. अलसी की गरिमा, श्वेता, शुभ्रा, लक्ष्मी-27, पद्मिनी, शेखर, शारदा, मऊ आजाद, गौरव, शिखा, रश्मि, पार्वती, रुचि, के-2, एलसी-2023 व एलसी-74 किस्मों की बोआई की जा सकती है.

इस के लिए 20 किलोग्राम बीज को 50 ग्राम थिरम व कार्बाक्सिन मिश्रण से उपचारित करें. मूंगफली की खेती करने वाले किसान फलियों की बढ़वार की अवस्था पर सिंचाई करें. इस से फसल की खुदाई भी आसान हो जाती है. इस के अलावा इस पर विशेष ध्यान दें कि मानसून खत्म होने के बाद चैंपा नाम का कीट मूंगफली के पौधों का रस चूसता है. इस की रोकथाम के लिए 1 लिटर फिब्रोनिल 25 प्रतिशत ईसी को 500-600 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें. अक्तूबर महीने का पहला पखवारा राई की बोआई के लिए सब से उपयुक्त माना जाता है. इस समय बोआई के लिए उन्नत प्रजातियों में वरुणा, नरेंद्र राई-8501, शिवानी, पूसा बोल्ड, कांति, पूसा महक, पूसा अग्रणी उपयुक्त होती हैं. अक्तूबर महीने में बोआई के लिए सरसों की पूसा तारक, पूसा विजय, पूसा सरसों 22, पूसा करिश्मा, पूसा बोल्ड, पूसा सरसों-27 उपयुक्त पाई गई हैं. प्याज की नर्सरी अक्तूबर महीने के दूसरे सप्ताह से नवंबर महीने के दूसरे हफ्ते के बीच डालें.

इस के लिए ऊंचा बैड बनाएं. इस की उन्नत किस्मों में भीमा सुपर, भीमा गहरा लाल, भीमा लाल, भीमा श्वेता, भीमा शुभ्रा, अलो ग्रनो, पूसा रैड, पूसा रतनार, पूसा ह्वाइट पलैट, पूसा ह्वाइट राऊड व पूसा माधवी शामिल हैं. टमाटर की खेती के लिए अक्तूबर महीने में नर्सरी डालें, जिस से उस के पौधों को नवंबर के दूसरे सप्ताह तक रोपा जा सके. इस की उन्नत किस्मों में नामधारी-4266, पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा-120, मारग्लोब, पंजाब छुआरा, सलैक्शन-120, पंत बहार, अर्का विकास, हिसार अरुणा (सलैक्शन-7), एमटीएच-6, एचएस-101, सीओ-3, सलेक्शन-152, पंजाब केसरी, पंत टी-1, अर्का सौरभ, एस-32, डीटी-10. संकर किस्में कर्नाटक हाईब्रिड, रश्मि, सोनाली, पूसा हाईब्रिड-1, पूसा हाईब्रिड-2, एआरटीएच-1 या 2 या वी 3, एचओई-606, एनए-601, बीएसएस-20, अविनाश-2, एमटीएच-6 शामिल हैं. अक्तूबर महीने में फूलगोभी की पूसा स्नोबाल-1, पूसा स्नोबाल-2, स्नोबाल-16 व पूसा स्नोबाल के-1 किस्में नर्सरी में बोई जा सकती हैं. इन किस्मों को नर्सरी में डाले जाने के 4 हफ्ते बाद खेत में रोपा जा सकता है.

गांठगोभी की रोपाई पूरे माह 30×20 सैंटीमीटर के अंतर पर करें और रोपाई के समय प्रति हेक्टेयर 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फेट व 50 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें. अक्तूबर का महीना पालक व मेथी की बोआई व सितंबर महीने में बोई गई फसल की कटाई के लिए सही होता है. पालक पूसा भारती, मेथी – पूसा अर्ली बंचिंग अच्छी होती है. सितंबर महीने में बोई फसल को बोआई के 30 दिन बाद काट सकते हैं. मूलीगाजर अक्तूबर महीने में बोई जा सकती है. मूली की ह्वाइट आइसकिल, रैपिड रैड ह्वाइट टिप्ड, स्कारलेट ग्लोब, पूसा हिमानी, गाजर की पूसा रुधिरा (लाल), पूसा वसुधा (संकर), पूसा असिता (काली) की बोआई करें. आलू की अगेती किस्मों में कुफरी अशोका, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर की बोआई 10 अक्तूबर तक और मध्य व पिछेती फसल के लिए कुफरी बादशाह, कुफरी सतलज, कुफरी पुखराज, कुफरी लालिमा की बोआई 15-25 अक्तूबर तक करें. लहसुन को अक्तूबर माह में लगाएं. इस की उन्नत किस्में भीमा ओंकार, भीमा पर्पल, यमुना सफेद (जी-1), एग्रीफाउंड ह्वाइट (जी-41), गोदावरी (सलैक्सन-2), टी-56-4, एग्रीफाउंड पार्वती (जी-313) हैं. सब्जी मटर की अगेती किस्मों के लिए प्रति हेक्टेयर 120-150 किग्रा.

बीज का प्रयोग करें. सब्जी मटर के लिए बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फेट व 40 किग्रा. पोटाश का प्रयोग करें. अक्तूबर महीने में पपीता की रोपाई करें और पहले रोपे गए पपीते को तना गलन रोग से बचाने के लिए मैंकोजेब 65 फीसदी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपीसी की 1.2 किलोग्राम मात्रा को 600 लिटर पानी में घोल कर 2 बार छिड़कें. आंवला में शूट गाल मेकर से ग्रस्त टहनियों को काट कर जला दें. केला प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया, 155 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 200 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रयोग कर भूमि में मिला दें. अक्तूबर महीने में लीची की मकड़ी यानी लीची माइट की रोकथाम के लिए समयसमय पर ग्रसित पत्तियों व टहनियों को काट कर जला देना चाहिए. नई कोंपलों के आने से पहले प्रोपारगाइट 57 प्रतिशत ईसी. की एक लिटर मात्रा को 500 लिटर पानी में घोल बना कर 7-10 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव लाभप्रद पाया गया है. केला पौधों के नीचे पुआल अथवा गन्ने की पत्ती की 8 सैंटीमीटर मोटी परत बिछा देनी चाहिए.

इस से सिंचाई की संख्या में 40 फीसदी की कमी हो जाती है, खरपतवार नहीं उगते और उपज व भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है. काजू के पौधों को प्रारंभिक अवस्था में अच्छा ढांचा देने की जरूरत होती है. उपयुक्त काटछांट के द्वारा पौधों को अच्छा ढांचा देने के तत्पश्चात फसल तुड़ाई के बाद सूखे, रोग व कीट से ग्रसित शाखाओं को कैंची से काटते रहें. अंगूर में मैंकोजेब 65 फीसदी व कार्बंडाजिम 12 फीसदी डब्ल्यूपीसी की 1.2 किलोग्राम मात्रा को 600 लिटर पानी में घोल कर एंथ्रेक्नोज की रोकथाम के लिए छिड़कें, वहीं फूलों की खेती के लिए यह महीना खास होता है. ग्लेडियोलस की पूसा शुभम, पूसा किरन, पूसा मनमोहक, पूसा विदुषी, पूसा सृजन व पूसा उन्नति किस्मों की बोआई करें. ग्लेडियोलस के लिए बीज दर 1.5 लाख कंद प्रति हेक्टेयर रखें. इस के कंदों को 2 ग्राम बाविस्टीन एक लिटर पानी की दर से घोल बना कर 10-15 मिनट तक डुबो कर उपचारित करने के बाद 20-30×20 सैंटीमीटर पर 8-10 सैंटीमीटर की गहराई में रोपाई करें. रोपाई से पहले क्यारियों में प्रति वर्गमीटर 5 ग्राम कार्बोफ्यूरान अवश्य मिलाएं. गुलाब के पौधों की कटाईछंटाई कर कटे भागों पर डाईथेन एम. 45 का 2 ग्राम प्रति लिटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें. पशुपालक अपने पशुओं को खुरपकामुंहपका रोग का टीका लगवाएं.

पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाएं. समयसमय पर गर्भ परीक्षण व बां?ापन की जांच कराते रहें. स्वच्छ दुग्ध उत्पादन के लिए पशुओं, स्वयं, वातावरण और बरतनों की स्वच्छता का खयाल रखें. मुरगीपालन से जुड़े लोग मुरगियों व चूजों के लिए पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था करें, संतुलित आहार निर्धारित मात्रा में दें. कृमिनाशक दवा पिलवाएं और बिछावन को नियमित रूप से पलटते रहें. पशुओं के लिए उत्तम हरे चारे के प्रबंध के लिए अक्तूबर महीने में जिन चारा फसलों की बोआई की जाती है, उस में रिजका घास प्रमुख मानी जाती है. रिजका की उन्नत किस्में लुसर्न-9, एलएल कंपोजिट-7 और लुसर्न-टी है. यह किस्म चारे की एक अहम दलहनी फसल है, जो जून माह तक हरा चारा देती है. इसे बरसीम की अपेक्षा सिंचाई की जरूरत कम होती है. इसे अक्तूबर से नवंबर माह के मध्य तक बोया जा सकता है. बरसीम की बोआई भी 15 अक्तूबर से शुरू कर दें.

बरसीम की बोआई के लिए प्रति हेक्टेयर 25-30 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. बोआई के पहले प्रति हेक्टेयर 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन व 80 किग्रा. फास्फेट का प्रयोग करें. किसान हरे चारे के लिए जई की बोआई अक्तूबर के पहले पखवारे से ले कर नवंबर महीने तक कर सकते हैं. उन्नत किस्मों में ओएल-9, कैंट व हरियाणा जई है. बीज बोते समय खेत में उपयुक्त नमी रहना जरूरी है. औषधीय फसल ईसबगोल की खेती करने वाले किसान 17 अक्तूबर से 7 नवंबर के बीच इसे बो सकते हैं. बोआई के पहले बीज उपचारित करना ना भूलें. इस के लिए 3 किग्रा. बीज को 9 ग्राम थिरम से उपचारित किया जाता है. ठ्ठ नोट- लेख में कीटनाशकों के नाम कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डा. प्रेम शंकर द्वारा सु?ाए गए हैं व कृषि यंत्रों के रखरखाव से जुड़ी जानकारी विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र, सुल्तानपुर के वैज्ञानिक कृषि अभियंत्रण इं. वरुण कुमार द्वारा सु?ाए गए हैं. बागबानी व सब्जियों की खेती से जुड़ी जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र, चंदौली के उद्यान विशेषज्ञ डा. दिनेश यादव द्वारा सु?ाए गए हैं.

Hypothyroidism: थायराइड से जुड़ी समस्याओं से ऐसे पाएं छुटकारा, इन 7 बातों का रखें ध्यान

पूरे शरीर के स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए थायराइड एक मुख्य जरीया है. छोटी सी थायराइड ग्रंथि आप के शरीर की ज्यादातर मैटाबोलिक क्रियाओं पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है. थायराइड में होने वाली किसी भी तरह की गड़बड़ी वजन में बढ़ोतरी, वजन में कमी और अन्य कई बीमारियों से ले कर थायराइड कैंसर तक का कारण बन सकती है.

थायराइड से जुड़ी सब से सामान्य समस्या थायराइड हारमोंस का असामान्य उत्पादन है. थायराइड हारमोंस की बहुत अधिक मात्रा हाइपरथायराइडिज्म के नाम से जानी जाती है. हारमोंस का पर्याप्त उत्पादन भी हाइपरथायराइडिज्म की स्थिति पैदा करता है. हालांकि इस का प्रभाव कष्टकारक और असुविधाजनक हो सकता है, लेकिन सही जांच और उपचार हो जाए तो थायराइड से जुड़ी ज्यादातर समस्याओं से आसानी से निबटा जा सकता है.

हाइपरथायराइड का सब से बड़ा कारण औटोइम्यून बीमारियां, गलत दवा लेना और लीथियम का उपयोग है. परिवार में थायराइड असंतुलन की समस्या किसी को रही हो, तो वह भी जोखिम का कारण बन सकती है. हाइपरथायराइडिज्म के बाद महिला की कामेच्छा में कमी, मासिकधर्म की असामान्यता और गर्भधारण में परेशानी जैसी समस्याएं हो सकती हैं. गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का विकास मां के थायराइड हारमोन से नियंत्रिण होता है और प्रसव के बाद भी विकास थायराइड से ही नियंत्रित होता है.

आयोडीन का महत्त्व

यह एक महत्त्वपूर्ण माइक्रोन्यूट्रिएंट है जो थायराइड हारमोन के निर्माण के लिए आवश्यक है. आयोडीन डैफिशिएंसी आयोडीन तत्त्व की कमी है. यह हमारी डाइट का एक आवश्यक पोषक तत्त्व है. आयोडीन की कमी से हाइपोथायराइडिज्म हो जाता है. अगर समय रहते इस का उपचार न कराया जाए तो गर्भधारण करने में समस्या आना, बांझपन, नवजात शिशु में तंत्रिका तंत्र से सबंधित गड़बडि़यां आदि होने का खतरा बढ़ जाता है.

यदि थायराइड सही ढंग से काम नहीं कर रहा है, तो यह महिला की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. हाइपरथायराइडिज्म महिलाओं में बांझपन और गर्भपात के अन्य कारणों के मुकाबले काफी सामान्य कारण होता है. जब थायराइड ग्रंथि से पर्याप्त मात्रा में हारमोंस नहीं निकलते हैं, तो ये अंडोत्सर्ग के दौरान अंडाशय से अंडाणुओं की निकासी को बाधित करते हैं और प्रजनन क्षमता को बिगाड़ देते हैं. यदि आप थकान या ऊर्जा में कमी महसूस कर रही हैं, आप के बाल और त्वचा सूखी व खुरदुरी हो गई है, ठंडे तापमान के प्रति आप संवेदनशील हैं और मासिकधर्म या तो अनियमित है या ज्यादा आ रहा है, तो ये हाइपरथायराइडिज्म के लक्षण हो सकते हैं.

फूले हुए टिशू, बेवजह वजन में बढ़ोतरी, अवसाद, मांसपेशियों में खिंचाव, मांसपेशियों में दर्द, दिल की धड़कन सामान्य से कम होना, बांझपन, कब्ज, मानसिक आलस्य, कंठ के नीचे स्थित थायराइड में सूजन और कामेच्छा में कमी इस के प्रभाव हो सकते हैं. गर्भावस्था के दौरान थायराइड संबंधी परेशानियां होना सामान्य बात है. 25% से ज्यादा महिलाओं में गर्भावस्था के छठे सप्ताह के दौरान हाइपरथायराइडिज्म हो जाता है. गर्भनाल और भ्रूण के विकास के लिए थायराइड हारमोंस का स्राव जरूरी है. गर्भावस्था के दौरान मां और भ्रूण की बढ़ी हुई मैटाबोलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्राव का स्तर 50% तक बढ़ना जरूरी है. जब मां का शरीर जरूरत के मुताबिक पर्याप्त हारमोंस का स्राव नहीं कर पाता है तो गर्भपात, समय पूर्व प्रसव, बच्चे का कम वजन और प्रसव के बाद की समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है.

लक्षण

कुछ महिलाओं में आयोडीन का स्तर कम होने पर भी कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. हाइपोथायराइडिज्म से ग्रस्त होने के निम्न लक्षण हैं:

  • थकान और उनींदापन.
  • मांसपेशियों की कमजोरी.
  • मासिकचक्र संबंधी गड़बडि़यां.
  • ध्यानकेंद्र में समस्या आना.
  • याददाश्त का कमजोर पड़ना.
  • आसामान्य रूप से वजन बढ़ना.
  • अवसाद.
  • बाल झड़ना.
  • त्वचा का ड्राई हो जाना.
  • हृदय की धड़कनें धीमी होना.

आयोडीन की कमी से बांझपन का खतरा

महिलाओं के शरीर में आयोडीन की कमी का उन के प्रजनन तंत्र की कार्यप्रणाली से सीधा संबंध है. हाइपोथायराइडिज्म बांझपन और गर्भपात का सब से प्रमुख कारण है. जब थायराइड ग्लैंड की कार्यप्रणाली धीमी पड़ जाती है तो वह पर्याप्त मात्रा में हारमोंस का उत्पादन नहीं कर पाती है, जिस से अंडाशयों से अंडों को रिलीज करने में बाधा आती है, जो बांझपन का कारण बन जाती है. जो महिलाएं हाइपोथायराइडिज्म का शिकार होती हैं उन में सैक्स में अरुचि, मासिकचक्र से संबंधित गड़बडि़यां और गर्भधारण करने में समस्या आना देखा जाता है. अगर हाइपोथायराइडिज्म से पीडि़त महिलाएं गर्भधारण कर भी लेती हैं तो भी गर्भ का विकास प्रभावित होता है.

हाइपोथायराइडिज्म की रोकथाम

धूम्रपान बंद करें:

धूम्रपान थायराइड को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. इस के साथ ही निकोटिन शरीर से आयोडीन को अवशोषित करता है, जिस से हारमोन का स्राव प्रभावित होता है. यह सब से सामान्य कारण है, जो बांझपन की समस्या पैदा करने में मदद करता है.

बोतलबंद पानी पीना:

इस पानी में मौजूद फ्लोराइड और परक्लोरेट वे तत्त्व हैं, जो हाइपोथायराइडिज्म को ट्रिगर करते हैं या थायराइड से संबंधित दूसरी समस्याओं का कारण बनते हैं.

सीमित मात्रा में करें आयोडीन का सेवन:

हमेशा ध्यान रखें कि आयोडीन का सेवन सीमित मात्रा में करना है. अधिक या कम मात्रा में आयोडीन का सेवन आयोडीन संबंधी गड़बडि़यों की आशंका बढ़ा देता है.

तनाव कम पालें:

नियमित व्यायाम करें. इस से आप को मानसिक शांति मिलेगी जो थायराइड को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

सोया उत्पादों का सेवन अधिक मात्रा में न करें:

इन का अत्यधिक मात्रा में प्रयोग हाइपोथायराइडिज्म, नोड्यूल्स को ट्रिगर या गंभीर कर सकते हैं. सोय सप्लिमैंट्स और पाउडर का सेवन कम मात्रा में करें. दिनभर में सोयाबीन की एक आइटम से अधिक न खाएं और वह भी थोड़ी मात्रा में.

नवजातों को सोया बेस्ड उत्पाद न दें:

जिन बच्चों को बहुत छोटी उम्र में सोयाबीन युक्त उत्पाद खिलाए जाते हैं उन में बड़ा हो कर थायराइड असंतुलन का खतरा बढ़ जाता है.

बांझपन का उपचार:

बांझपन को दूर करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में हाइपोथायराइडिज्म का उपचार एक महत्त्वपूर्ण भाग है. अगर हाइपोथायराइडिज्म का उपचार करने के बाद भी बांझपन की समस्या बरकरार रहती है तब बांझपन के लिए दूसरे उपचार की आवश्यकता पड़ती है.

गर्भवती महिलाओं को जितनी जल्दी हो सके, शरीर में थायराइड के आसामान्य स्तर की जांच करा लेनी चाहिए. अगर जांच में थायराइड से संबंधित गड़बडि़यों का पता चलता है तो सुरक्षित गर्भावस्था, प्रसव और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के लिए तुरंत उपचार कराएं.

– डा. अनुजा सिंह, आईवीएफ विशेषज्ञा, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, पटना   

धूमावती- भाग 4 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

प्रभास को संभालने के लिए मेघना की छोटी बेटी ही काफी थी. अभी 2 दिन उसे यहां बच्चों को संभालते हुए बीते ही थे कि अस्पताल से अचानक कुछ लोग आए. वे हेमा की मौत की खबर देने आए थे. यह सुन कर मेघना बुरी तरह चौंक गई. बच्चों को खबर से दूर रखना तो चाहती थी, लेकिन यह कब तक संभव था.

ओज वाकई बड़ा हो गया था. उस ने खबर सुनी और गजब का धीरज दिखाते हुए अपने दोनों भाईबहनों को पास ले कर चुप से बैठ गया. मेघना ने पुकारा, “ओज…” उस ने कहा, “आंटी, पापा तो ठीक हैं न… वे तो घर आ जाएंगे न.” मेघना को जाने क्यों ऐसा लगा, जैसे इन के लिए इन के पापा ही सबकुछ हैं.

कुछ दिन तक मेघना और रुक कर अभी घर से आनाजाना कर ही रही थी कि तरुण ठीक हो कर वापस आ गया. मेघना को प्रभास की चुप्पी अजीब लगती, लेकिन वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेती कि बैंक के कई स्टाफ चल बसे, प्रभास का मन उदास होगा.

इधर तरुण के मन में एक उथलपुथल थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि हेमा के जाने से वह दुखी था या दुखी नहीं था. वह खुद को बताना चाहता था कि हेमा के चले जाने से उसे बहुत दुखी होना चाहिए, क्योंकि वह उस की प्रेमिका और पत्नी दोनों थी. लेकिन उस के समझाए का उस के दिल पर असर ही नहीं हो रहा था.

वह पता नही क्यों हलका सा महसूस कर रहा था, क्योंकि आएदिन प्रभास के साथ हेमा की नाकाबिल ए बरदाश्त की हद तक अंतरंगता अब नहीं थी. घर की साफसफाई के बाद  सोफे पर तरुण के पसरने पर अब कोई चिकचिक नहीं थी. औफिस से आने के बाद किसी और के लिए चाय बना कर देने की जल्दी नहीं थी. बच्चों को मन के मुताबिक प्यार करते वक्त हेमा की छींटाकशी नहीं थी. यहां तक कि रात को सोने से पहले इच्छा के विरुद्ध हेमा के शरीर की सेवा, मसलन कभी पीठ दबाना, कभी पैर तो कभी सिर या फिर उस के शरीर की क्षुधा शांत करना, अब नहीं थी.

हेमा से न कभी उसे प्यार मिला, न सम्मान. एक गुलाम को इस के बाद आजादी की खुशी तो महसूस होनी ही चाहिए और इस प्राकृतिक संवेग को तरुण भी महसूस कर रहा था. बच्चे पापा के साथ पहले से ही इतने घुलेमिले थे कि उन्हें हेमा की कमी खास खली भी नहीं. इस बीच मेघना आती रही और बच्चों की परवरिश में तरुण की मदद करती रही. तरुण मेघना से बहुत प्रभावित था. यह वह स्त्री थी, जिसे तरुण सम्मान की नजर से देखने लगा था. मेघना उसे अपने छोटे भाई सी समझती और तरुण मेघना को दीदी कहने में अब एक अलग ही अपनापन महसूस करता.

इधर, प्रभास अब पहले से बेहतर था और उस की चिड़चिड़ाहट फिर से शुरू हो गई थी. हर बात में मेघना को कम आंकना, उपेक्षा करना और उस के प्रयासों को शक की नजर से तौलना. मेघना और तरुण को ले कर जब उस की छींटाकशी ज्यादा शुरू हो गई, तो मेघना ने कहा, “यह तो तुम्हारी बात पर ही मैं तरुण के घर जाने लगी हूं. छोटी बच्ची को इस से सहारा भी तो हुआ. अब जाती नहीं हूं तो फोन पर कभी कुछ बताया भी न करूं.”

“नहीं. अब उन से रिश्ता रखने की कोई जरूरत नहीं. खुद जिंदा बच गया तो बहुत खुश हो गया? अब मजे करे. और बच्चे भी खुद ही संभाले. मै छोटी बच्ची को अपने पास ला कर पालूंगा.” “अरे, यह क्या बोल रहे हैं आप? हेमा के चले जाने में तरुण का क्या दोष? और वह अपनी बच्ची भला क्यों देगा?” “तुम्हें बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है.”

अभी आज इन बातों के बीच उस का मन खिन्न हो गया, तो वह बालकनी में जा कर बैठी. तुरंत तरुण का फोन आ गया, “दीदी, छोटी बेटी तमन्ना की  तबियत खराब है, बुखार बढ़ा हुआ है. आज रहने दो, क्या कल सुबह आप आ जाओगी?” रात बीतते और प्रभास के बैंक जाते ही वह तुरंत तरुण के घर पहुंची.

“प्रभास ने कुछ कहा तो नहीं?” तरुण ने पूछा. “मैनेजर है न और बहुत दिन छुट्टी में भी था, इसलिए अभी कोरोना में भी उसे औफिस जाना पड़ रहा है.” तरुण ने कहा, ” दीदी, बाहर तो पूरा बंद है, बच्ची को डाक्टर से दिखाएं भी तो कैसे? एक काम करते हैं, तमन्ना के डाक्टरी फाइल में पुराना प्रिस्क्रिप्शन ढूंढ़ते हैं.”

मेघना को यह बात सही लगी. हेमा की अलमारी में तमन्ना की फाइल मिल गई. मेघना ने फाइल देखना शुरू किया और… यह एक चिट्ठी थी, जिसे पढ़ कर मेघना के पैरों तले जमीन खिसक गई. तरुण ने वह चिट्ठी ले ली. जब तक तरुण चिट्ठी पढ़ रहा था, मेघना ने फाइल के आगे के कागज पलटे. तुरंत ही उसे एक डाक्टरी कागज मिला, जो हेमा के अबार्शन का कागज था, और यह तमन्ना के जन्म के पहले का था.

तरुण भौंचक रह गया. वह कितना बड़ा मूर्ख है. उसे हेमा के धोखे का कुछ पता ही नहीं. मेघना तरुण को देख रही थी, लेकिन उस की खुद की हालत भी नाजुक थी. तरुण ने चिट्ठी को इस बार थोड़ा जोर से पढ़ा – ‘मेरी हेमा, मैं अपने दिल की बात कागज पर लिख रहा हूं, ताकि तुम पढ़ कर तुरंत फाड़ सको. मोबाइल का भरोसा नहीं, मोबाइल फार्मेट करने के बाद भी चैट रह जाते हैं.

‘मैं चाहता हूं, तुम से एक बच्चा. तुम्हारी खूबसूरती को मैं अपने अंश में देखना चाहता हूं, लेकिन तुम ने अबार्शन करवा लिया. तुम तरुण से डर गई? वह तो तुम्हारे लिए पागल है, पता चलने लायक उस के पास दिमाग भी है?

‘अब इस बार इस बच्चे को आने दो. ये मेरी तमन्ना है.’ नीचे हेमा ने लिखा था, “ये चिट्ठी तुम्हारे प्यार का प्रमाण है… और प्रभास, मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं. तुम ने आसानी से अपनी पत्नी को धोखा दिया, आज बच्चे के लिए जिस मुंह से बोल रहे हो, कल उस के लिए खर्चे देने पड़े तो मुकर जाओ तो मेरा क्या होगा.

धूमावती- भाग 3 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

अपने फ्लैट में वापस आने पर प्रभास को कुछ अजीब सा महसूस हुआ, वैसा जैसा उसे अच्छा नहीं लगता था. रात के 9 बज रहे थे. उस ने चौथी मंजिल के अपने फ्लैट के दरवाजे की चाबी घुमाई, और अंदर घुसते ही रोशनी के धमाके से उस का साबका हुआ.

मेघना आई हुई थी. 42 साल की मेघना वैसे तो हंसमुख, मिलनसार, जिम्मेदार और सीधीसादी है, लेकिन है वह गेहुंए रंग की 5″-2′ इंच की एकदम सामान्य चेहरे की स्त्री. प्रभास और मेघना की अरेंज मैरेज थी, और जातिबिरादरी नियमकानून ही इस शादी के पीछे का एकमात्र सच था. इन दोनों की 2 बेटियां थीं, एक बड़ी, जो अभी 12वीं में थी, छोटी 9वीं में. इन की शादी के आज 19 वर्ष हो रहे थे, और बेटियों के साथ गुवाहाटी से मुंबई मेघना का यह सरप्राइज विजिट इसी खुशी में था.

मेघना घर को साफसुथरा कर, डाइनिंग पर प्रभास की पसंद का डिश सजा कर बेटियों के साथ वह प्रभास को सजीधजी मिली. मेघना को लगा था, उस के इन प्रयासों का प्रभास पर अच्छा असर पड़ेगा, यद्यपि पिछले साल से प्रभास का व्यवहार मेघना के प्रति बहुत उचित नहीं लगता था मेघना को, पर  वह खुद को दिलासा देती कि भारतीय समाज में अमूमन पति का पत्नी के प्रति रूखा और उपेक्षित व्यवहार कोई नई बात तो है नहीं, नानी, दादी, मां, सास सब तो एक ही परंपरा की थाली में जिंदगी घिसती रही हैं. मेघना के लिए बदलाव क्यों होगा. पति भले ही 22वीं सदी के हों, सोच तो 16वीं सदी के भूसे से ही बनी है, जिसे तरहतरह के डिजिटल चमक से सजाया गया है.

“अचानक तुम लोग…?” मेघना मुझे इस तरह का सरप्राइज अच्छा नहीं लगता, बता कर आओ न…”आज इन की शादी की सालगिरह का 19वां वर्ष था. सुबह से उम्मीद लगाए बारबार वह प्रभास के संदेश के लिए फोन चेक कर रही थी. रात गहराने के बावजूद वह नाउम्मीद नहीं थी. लेकिन प्रभास के इस तरह रिएक्ट करने से उस की सारी उम्मीदें टूट कर गिर गईं. मेघना कभी भी रोती नहीं थी, खासकर प्रभास के सामने तो कभी नहीं. कभी भूले से दर्द ने आंसू का चेहरा लिया और प्रभास की नजर पड़ी तो एक जहर बुझा तीर उस के सीने के पार होता – “नाटक चालू.”

मेघना सामने से हट गई. प्रभास ने बड़ा बेजार सा मुंह बना लिया और बच्चों को ‘और पढ़ाई कैसी चल रही है’ के अलावा खास कुछ नहीं पूछा. ये लोग सप्ताहभर के लिए ही आए थे, लेकिन प्रभास के व्यवहार से मेघना और बच्चे बड़े क्षुब्ध हो गए.

मेघना को गुवाहाटी में अकेले गृहस्थी खींचने में हजार मुसीबतें थीं. दोनों बेटियों की जिम्मेदारी अकेले ही निर्वहन करती, प्रभास को कुछ पता नहीं चलता. प्रभास के रिश्तेदार हों या उस की मां की तबीयत हर काम मेघना बिना एक भी सवाल उठाए पूरा करती, बदले में प्रभास से प्रशंसा के मीठे बोल की भी उम्मीद नहीं रखती.

आज जब वे प्रभास के पास चले आए तो प्रभास को इतना बुरा लगा? मेघना से रहा नहीं गया और उस ने प्रभास से एक छोटा सा सवाल आखिर पूछ ही लिया, “दोनों लड़कियां 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं दे चुकी, अब और कितना गुवाहाटी में पड़े रहें. अब तो प्रतियोगी परीक्षाएं ये दोनों यहां से भी दे सकती हैं. 2-2 गृहस्थी का बोझ भी तो कम नहीं.”

प्रभास झल्ला पड़ा, “सालभर ही तो हुए हैं मुंबई आए हुए. तुम तो पीछे ही पड़ गई हो शिफ्ट होने के लिए.” “क्या कहते हैं? उस के पहले भी तो सालोंसाल बच्चों की पढ़ाई की खातिर कईकई जगह अकेले रही, इस के पहले भी 3 साल और अकेले ही रही गुआहाटी में, जब आप का तबादला दिल्ली हुआ था. अब तो बच्चे बाहर चले जाएंगे पढ़ने, फिर मैं वहां अकेली रहूं?”

“तब की तब देखी जाएगी… अभी से क्यों दिमाग खा रही हो?”प्रभास ने पल्ला छुड़ाया. 2 साल बीत गए. बड़ी इंजीनियरिंग पढ़ने बैंगलोर चली गई थी. छोटी 12वीं के बाद फैशन डिजाइन के कोर्स के लिए कंपटीटिव एग्जाम में बैठ रही थी. पहली कोरोना लहर के बाद अब कुछ लोग सांस ले रहे थे.

इस वक्त कुछ ऐसी हवा चली कि मेघना को खास न चाहते हुए भी मुंबई जाना पड़ा. दरअसल, प्रभास की आएदिन तबियत खराब रहने लगी थी, और एक समय ऐसा आया कि उस के लिए बिस्तर से उठना मुश्किल हो गया. मेघना और छोटी बेटी मुंबई पहुंचे, टेस्ट में उसे हेपेटाइटिस डिटेक्ट हुआ था. ऊंट पहाड़ के नीचे आने से कब तक बचता.

मेघना पूरे दिल से प्रभास की देखभाल कर रही थी. और तब अचानक देखते ही देखते कोरोना की दूसरी लहर ने अपना विकराल रूप दिखाया. औफिस बंद, रोज की जिंदगी ठप और साथ ही प्रभास और हेमा का मिलनाजुलना भी बंद. इस वक्त कोरोना से होने वाली मौतों की खबर दिनोंदिन तेज हो रही थी. और एक दिन अचानक प्रभास को खबर मिली कि हेमा और तरुण भी कोरोना की चपेट में आ गए हैं.

प्रभास तनाव और परेशानी में पहले से ही था,अब तो जैसे कुछ ज्यादा ही बीमार रहने लगा. आखिर उस की झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट ने मेघना को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि जरूर कोई और बात तो है. मेघना के पूछने पर  प्रभास ने कहा, “हमारे बैंक कर्मचारी तरुण और उस की पत्नी हेमा को कोरोना हो गया है, उन्हें आईसीयू में भरती किया गया है. उन के 10 और 7 साल के 2 बेटे हैं और डेढ़ साल की एक बेटी तमन्ना है.

“पता नहीं, दोनों छोटे बच्चे डेढ़ साल की बच्ची का क्या खयाल रखेंगे. मेघना, क्या तुम छोटी बच्ची को यहां ले आओगी?” मेघना यह जान कर निश्चित हुई कि उस का पति एक परिवार और बच्चों के बारे में चिंतित था. मेघना ने प्रभास को आश्वस्त किया और तरुण के घर का रुख किया. कोरोना का डर ऐसा था कि पास वाले फ्लैट से भी कोई झांकने नहीं आ रहा था. मेघना को पा कर बच्चों की जान में जान आई.

मिशन क्वार्टर नंबर 5/2बी : भाग 3

‘‘मुझे यह सब मत सुनाओ, मकान किराए पर ले लो, तुम्हारे दायित्व से निबट कर हम दोनों तुम्हारी दीदी का घर संभालने कनाडा जाएंगे. रिटायरमैंट के बाद अब तक कहीं गया नहीं, सालभर वहां रुक कर छोटी के पास कैलिफोर्निया, उज्जैन का घर किराए पर चढ़ा कर आ रहे हैं, तुम्हारे लिए कुछ हिस्सा रखा रहेगा. 2 साल बाद जब लौटना होगा तब किराया खाली कराएंगे. शादी तय करने का इतना बड़ा काम हम ने कर दिया अब खुद संभालो.’’

‘‘शादी तो मैं भी कर लेता, ठौरठिकाने की सोचते तो बात ज्यादा भली न होती.’’ मन में सोच कर ही रह गया कोफ्त से भराभरा विहाग. पिता ने सांत्वना के दो शब्द जोड़ते हुए कहा, ‘‘ज्यादा दिक्कत है तो लड़की के घर वालों से बात करो, मैं एक फोन नंबर दे दूंगा तुम्हें. हम ने बात पक्की कर ली है, इतना खयाल रखना.’’

फोन कट गया, विहाग भी समझ गया. बहस बेकार है, उस की मां भी जिंदगीभर ऐसे दबंग पति के आगे गरदन झुकाने के सिवा कुछ कर नहीं पाई. वह भी तो उसी खेत की मूली है. विहाग ने एक बार फिर अपनी तरफ से क्वार्टर पाने की मुहिम तेज करते हुए पीडब्लूआई के सीनियर सिविल इंजीनियर के आगे अर्जी ले कर हाजरी दी.

बहुत व्यस्त इंसान, एक तरफ सरकार के घर कोई काम होता दूसरी ओर उन के घर में कोई नया वैभवविलास जुड़ जाता. यों करतेकरते एक मंजिल मकान अंदरूनी ठाठ के साथ तीन मंजिला विशाल बंगला तो बन ही चुका था, शहर के अंदरबाहर कई मालिकाना हस्ताक्षर थे उन के नाम. यानी बीसियों जगह उन की संपत्ति बिखरी पड़ी थी, तो स्वाभाविक ही था ऐसा इंसान उन्हें संभालने में व्यस्त रहेगा ही हरदम. खातेपीते चर्बी का प्रोडक्शन हाउस था उन का शरीर.

विहाग को इंजीनियर साहब ने बड़़े गौर से परखा. अनुभवी आंखों से कुछ क्षण स्कैन होता रहा विहाग का सर्वांग चेहरे से ले कर चप्पल तक. लड़का उन के हिसाब से जरा कम समझदार है. बोले, ‘‘तुम मेरे घर आओ, यहां बात नहीं हो सकती.’’

दूसरे दिन शाम को विहाग ने अपनी ड्यूटी का समय किसी दूसरे से बदल कर, ज्यादा दुरुस्त हो कर इंजीनियर साहब से कहे जाने वाले वाक्यों के विन्यासों पर मन ही मन नजर फरमा कर दरख्वास्त के कागजों के साथ उन के घर पहुंचा.

इंजीनियर उसे अपने आधुनिक सुसज्जित ड्राईंगरूम के गद्देदार सोफे पर बिठा कर अंदर चले गए. विहाग साभार धन्यवाद करते हुए कागजात की फाइल ले कर बैठा सामने दीवार पर टंगी घड़ी की सुई गिनने लगा. कभी सायास, कभी अनायास.

घड़ी दो घड़ी का कांटा जब घंटा भरभर का होने लगा और इंतजार नामुमकिन सा हो कर विहाग को बेबस करने लगा तब अंदर से परदा हटा कर एक गोरी सुंदर बहुत ही ज्यादा गोलमटोल मलाई में चुपड़ी सी मालपूए की काया वाली लगभग 30 वर्षीया बाला का पदार्पण हुआ. हाथ में उस के बड़ा सा ट्रे था जिस में सजे थे मनलुभावन मिठाइयां, नमकीन और शर्बत. विहाग सारे माजरे को भांप अंदर ही अंदर पसीने से तरबतर होने लगा.

क्वार्टर रिपेयर की बात कब होगी, कब रिपेयर शुरू होगा, कब वह शिफ्ट होगा और यह सब पिता द्वारा दी गई वैवाहिक वचन के रस्म के साथ कैसे तालमेल में सही बैठेगा. इस बीच उस लड़की को फोन आया, उस ने ‘हां, हूं’ की और विहाग से लग कर बैठ गई. मनुहार के साथ उस की ओर मिठाईनमकीन की तश्तरियां एकएक कर आगे बढ़ाती रही.

इस कठपुतली नाच की डोर इंजीनियर साहब के उंगलियों में थी इस में अब विहाग कोे कोई शक नहीं था. वह सोफे के एक किनारे धंसा सा महसूस कर रहा था. जरा सी भी नानुकर से क्वार्टर का काम धरा रह जाएगा. इंजीनियर साहब न मुयायने के लिए कर्मचारी भेजेंगे, न रुपया सैंक्शन होगा, न मिस्त्री लगेंगे. फिर या तो अकेले खुद अपने हाथ से काई छीलो या फिर किराए के मकान में बीबी को ले कर बारबार उखड़ो और बसो. पौकेट पर वजन जो अलग आएगा उस का हिसाब तो कनाडा जाने वाले मांबाप को रखना नहीं है.

धर्मसंकट की घड़ी थी. बेमतलब बेवजह विहाग उस बाला से सवाल करता रहा ताकि अजीब सा लगने वाला यह वक्त कटे. आखिर इंजीनियर साहब आए. इस हाथ ले, उस हाथ दे वाली मुखमुद्रा बना कर सामने वाले सोफे पर धंस गए. बाला की ओर उन्होंने देखा नहीं कि वह उठ कर खड़ी हो गई और जिधर से आई थी उधर ही विलीन हो गई.

‘‘विहाग बाबू, इकलौती कन्या है, पढ़नेलिखने में मन नहीं था, मां इस की चल बसी थी, क्या कहें, सौतली मां से भी उसे सुख नहीं मिला, डिप्रैशन में रहती थी, ज्यादा ही खा पी गई.

लाडप्यार अब जो मैं ने दी तो घर का काम भी क्या करती, फिर मैं तो हीरे के सिंहासन में बिठा कर भेजूंगा उसे और आप जैसे हीरे के साथ रह कर बाकी तो सीख ही जाएगी. उम्र कुछ ज्यादा है, 30 की होने वाली है, लेकिन आप लोग इस जमाने के मौर्डन लड़के आप के लिए इन सब बातों का क्या मोल, तो मालिनी से आप की बात पक्की समझें?’’

‘‘सर मेरी अर्जी, वो क्वार्टर?’’ विहाग को बुक्का फाड़ कर रोने का मन हो रहा था, विहाग सा लड़का जिसे चाहिए एक आधुनिक सोच वाली धरती से जुड़ी लड़की, पढ़ीलिखी लेकिन गृहस्थी में रचीबसी बिलकुल तैयार गृहिणी. वह कल्पना के पंख से उड़े और जिंदगी को जोड़ने वाले तिनके दबा कर वापस आए, घर जोड़े, मन जोड़े, सप्रयास. यह मालपूए सी मालिनी जो हीरे के सिंहासन पर बैठ कर उस के घर (जो अब तक उखड़े प्लास्टर और काईयों का संगम ही था) आएगी और इस चर्बी के प्रोडक्शन हाउस के जरिए कठपुतली नाच नाचेगी. उस की बीबी बनेगी?

इंजीनियर ने दंभ से मुसकराते हुए कहा, ‘‘जिस घर में मेरी मालिनी जाएगी वह तुम्हारा जर्जर क्वार्टर नहीं होगा? तब तो मैं खुद उसे आलीशान घर दूंगा, जिस में तुम भी ऐश करोगे.’’ मुंह पर साफ कहने की आदत वाले विहाग की जबान ठिठक गई, गरम दिमाग विहाग को लगा कि एक चांटा रसीद दे उसे. जिस के लिए विलासिता के आगे मनुष्यता का पैमाना इतना छोटा है. लेकिन वक्त की कठिनाई उसे संयत रहने का हुनर सिखा रही थी.

 

अब तो जी लें : भाग 3

‘‘हां… हां…’’ सब सम्मिलित स्वर में बोले. ममता ने दोगने उत्साह से बोलना शुरू कर दिया, ‘‘जब गौरव के पापा के साथ मैं इंडिया से बाहर गई थी तो…’’‘‘पर हम तो तब गैस्ट हाउस में ठहरे थे, वहां कैसे सीखा?’’ अरुण ने आश्चर्यचकित हो ममता की बात बीच में ही काट दी.

‘‘आप के काम पर चले जाने के बाद मैं हर रोज गैस्ट हाउस की किचन में पहुंच जाती थी. भाषा तो नहीं जानती थी वहां की, लेकिन खाना बनते देखती रहती थी. फिर इस्तेमाल होने वाली चीजों के नाम इशारे से पूछती तो शेफ भी टूटीफूटी इंग्लिश में बता देते थे.’’

सभी ठहाका लगा कर हंसने लगे. शुभांगी तालियां बाते हुए बोली, ‘‘वाओ मम्मी, क्याक्या सीखा आप ने?’’

‘‘फ्रांस में रंगबिरंगे मैकरोने और जौ के आटे से बनने वाले क्रेप केक… लेबनान में सीखी पीटा ब्रैड बनाने की विधि और चने से बने फलाफल जो उस के अंदर भरे जाते हैं. मुझे बहुत तरह

की सौस और डिप बनानी भी आती हैं, जो आजकल बाजार में तरहतरह के नामों से खूब महंगी बिकती हैं.’’

‘‘दादी, क्या कह रही हो आप, मैं अपने फ्रैंड्स को बताऊंगा न ये बातें तो आप के हाथ की बनी चीजें खाने की जिद करने लगेंगे.’’ विदित के चेहरे पर आश्चर्य और उल्लास के भाव एकसाथ तैरने लगे.

‘‘तो आप ये डिशेस बना कर यूट्यूब पर डालो न. पापा बनाएंगे आप का वीडियो,’’ गौरव चहकते हुए बोला.

‘‘भई इस बहाने हमें भी रोजरोज अच्छा खाना मिला करेगा,’’ अरुण खिलखिला कर हंस दिया.

घर के सभी लोग उत्सव सरीखे वातावरण में भीग रहे थे. अगले दिन विदित दादाजी को

वीडियो बनाना और उसे यूट्यूब पर डालना सिखा रहा था. शुभांगी और ममता तरहतरह के व्यंजनों के विषय में चर्चा कर रहीं थीं. सब को प्रसन्नता पूर्वक अपने कार्यों में व्यस्त देख गौरव को अपने औफिस का काम निबटाने का अवसर मिल गया.

रविवार की शाम को वापसी के लिए रवाना होने से पहले शुभांगी ने 2 टिकट ममता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘मम्मी ये पापा और आप के लिए मौरीशस जाने की टिकट हैं. 15 दिन के लिए आप दोनों घूम कर आइए. ‘वीजा औन एराइवल’ की सुविधा है वहां. यानी मौरीशस पहुंच कर वीजा लेना है आप को. इस के लिए सिर्फ औनलाइन अप्लाई करना होगा. सारी उम्र आप बिजी रहे, कहीं गए भी तो औफिशियल टूर पर, बहुत लोगों के साथ. अब आप दोनों फ्री हैं तो एंजौय कीजिए एक मस्ती भरे ट्रिप में एकदूसरे की कंपनी को. हमें भी खुशी होगी.’’

‘‘अरे लोग क्या कहेंगे इस उम्र में हम ऐसे ट्रिप पर जाएंगे तो?’’ सकुचाते हुए ममता बोली.

शुभांगी ममता के पास जा उस के गले में अपनी बांहें डालती हुई स्नेह से बोली, ‘‘मेरी प्यारी मम्मी, आप और पापा अब तक जिम्मेदारियां निभाते रहे, जिंदगी को आप ने बिताया जरूर है, लेकिन जिया नहीं. कोई कुछ भी कहे उस की बात अनसुनी कर आप को एकदूसरे का हाथ थाम कहना चाहिए कि अब तो जी लें.’’

ममता गदगद हो उठी. इस से पहले कि वह कुछ कहती गौरव अपने बैग से एक कैमरा निकाल अरुण की ओर बढ़ाते हुए बोला, ‘‘पापा, आप के लिए हम ने यह कैमरा खरीदा है. मिररलैस होने के कारण यह हलका भी है और साइज में भी छोटा है, लेकिन पिक्स बहुत सुंदर आती हैं इस से. पापा, मुझे पता है कि आप को फोटोग्राफी का कितना शौक था. मेरे बचपन की कितनी तसवीरें खींची थी आप ने. फिर बिजी होने से या शायद अच्छे कैमरे के अभाव में आप ने इस शौक पर लगाम लगा दिया था, लेकिन आप इसे भूले नहीं थे. मुझे याद है कि जब 2 साल पहले चाचाजी का परिवार यहां घूमने आया था तो उन की कैमरे से खींची हुई तसवीरों को आप कितने ध्यान से देखते थे. आप की आंखों में एक ललक मुझे साफसाफ दिखाई दी थी उस समय. पापा, जिंदगी के उन पलों को अब कस कर पकड़ लीजिए, जो आप को हमेशा लुभाते रहे लेकिन हाथ नहीं आए. मौरीशस जा कर ढेर सारी फोटो खींचिएगा, बेहद सुंदर है मौरीशस.’’

ममता व अरुण की नम आंखों से आंसूओं की बूंदें टपकीं तो मन में पल रही गलतफहमियां उन की साथ ही बह गईं.

शुभांगी को कुछ दिनों बाद ममता का भेजा हुआ एक यूट्यूब लिंक मिला जिस में ममता ने ‘हमस’ नामक डिप को कई प्रकार से बनाना सिखाया था. हमस एक प्रकार की चटनी होती है, जो छोले से बनाई जाती है. ममता ने चुकंदर, शिमलामिर्च, गाजर व मटर का प्रयोग करते हुए चटनी के विभिन्न रूप प्रदर्शित किए थे. वीडियो में ममता ने यह भी बताया कि हमस न केवल खाने में स्वादिष्ठ होती है, वरन इस के नियमित सेवन से वजन पर भी नियंत्रण रखा जा सकता है. प्रोटीन व कैल्सियम से भरपूर यह डिश डायबिटीज के पेशेंट के लिए भी अच्छी होती है. इसे मिडल ईस्ट देशों में बहुत शौक से खाया जाता है.

शुभांगी ने वह लिंक अपनी सहेलियों के साथ शेयर किया. ममता को इतनी अच्छी रैसिपी बनाने के लिए बधाई देते हुए उस ने कहा कि सभी ने मुफ्त कंठ से उस के यूट्यूब चैनल की प्रशंसा की है. सखियां अगले व्यंजन की वीडियो आने की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहीं हैं.

मौरीशस से लौटने के बाद अरुण ने अपने खींचे हुए फोटो

व्हाट्सऐप पर भेजे. तसवीरें इतनी जीवंत थीं कि दर्शनीय स्थल आंखों के सामने होने का आभास दे रहीं थीं. अगले दिन ममता ने शुभांगी को फोन पर बताया कि उस का वीडियो देखने के बाद पड़ोस की कुछ महिलाओं ने उस से कुकरी क्लासेज लेने का अनुरोध किया है.

कुछ दिनों बाद गौरव का अरुण का भेजा हुआ एक मेल मिला, जिस में लिखा था कि हिंदी की एक सुप्रसिद्ध पत्रिका में अरुण का लिखा लेख प्रकाशित हुआ है. गौरव ने मेल पढ़ते ही पिता को फोन मिला लिया. अरुण ने बताया कि उसे हिंदी में लिखने की हमेशा से रुचि रही है. अपने कार्यालय की वार्षिक पत्रिका में उस से कहानी या लेख लिखने का अनुरोध किया जाता था, इस के अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष औफिस में मनाए जाने वाले हिंदी दिवस में भी वह प्रसन्नतापूर्वक भाग लेता था. अरुण द्वारा भेजे लेख की पीडीएफ फाइल डाउनलोड कर गौरव ने पढ़ा तो अभिभूत हो उठा. उस लेख में अरुण ने रिटायरमैंट फेज को जीवन का स्वर्णिम चरण बताया था और इस समय को बेहतर ढंग से जीने के तरीकों के विषय में लिखा था. लेख उस चर्चा पर आधारित था जो शुभांगी और वह समयसमय पर उन से करते रहते थे. लेख का शीर्षक था ‘अब तो जी लें.’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें