लेखिका-डा. अनीता सहगल वसुंधरा

भारत की नारियों ने हमेशा अपने होने का अर्थ ढूंढ़ना चाहा है, पर इस पुरुष समाज ने उसे अपनी इच्छाओं के नीचे दबा कर रखा. आखिर एक नारी भी अपने मन में सपने संजोती है, उन्हें पूरा करना चाहती है, किसी का हक नहीं बनता कि उस के सपनों को दबाए. किस रूप में साधना करूं तुम्हारी, हर रूप में श्रद्धेय लगती हो, नींव बन कर सहती हो सबकुछ, पर आधार पुरुष को दे जाती हो, हर पल बन कर परछाई नर की, तुम अस्तित्व अपना खो देती हो, हर मन में, हर पल में, खुद को त्याग कर, तुम खुद को जला जाती हो. ‘भारत की नारी’ नाम सुनते ही हमारे सामने प्रेम, करुणा, दया, त्याग और सेवासमर्पण की मूर्ति अंकित हो जाती है. हम सम?ाते हैं कि नारी के व्यक्तित्व में कोमलता और सुंदरता का संगम होता है, वह तर्क नहीं भावना से जीती है, इसलिए उस में प्रेम, करुणा, त्याग आदि के गुण अधिक होते हैं और इन सब की सहायता से वह अपना तथा अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाती है.

किंतु महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की घटनाएं स्त्री जीवन के उस मरूस्थल को प्रतिबिंबित करती हैं जो सदियों से घटती रही हैं और हमारा यह सोचना कि नारी न तो परेशान होती है और न ही हार मानती है, उसे कचोटता रहता है जो एक प्रतिकार के रूप में उस के मन से बाहर नहीं आ पाता, क्योंकि यह कहीं न कहीं नारी के उस रूप, जिसे हम ममता, प्यार, वात्सल्य से परिपूर्ण पाते हैं, के रास्ते की रुकावट बन जाता है. महिला अपनी आंखों में ढेर सारे सपने बुनती है, जो पूरी तरह मृगमरीचिका की तरह होते हैं. वहां पहुंचने की उस की मेहनत उसे अंत में भी प्यासे रह जाने की तड़प दे जाती है और भविष्य से जुड़े उस के तमाम सपने उस की योग्यता की अनदेखी कर उसे एक नारी होने का एहसास दिलाते हैं. उस की आत्मनिर्भरता तो छोडि़ए, वह अपने होने का ही अर्थ आज तक नहीं ढूंढ़ पाई है. इस तलाश में वह पूरी जिंदगी भागती रहती है कभी किसी के लिए, कभी किसी के लिए, क्योंकि लगता है कि नारी का जन्म ही खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए होता है. भारतीय नारी का चरित्र त्यागमयी अधिक हो गया है, जो कभी भी किसी बात के लिए शिकायत नहीं करती है. इस के विपरीत, उन्नत देशों की नारियां प्रगति की दौड़ में पुरुषों से मुकाबला करने लगी हैं. वे पुरुषों के समान व्यवसाय और धनप्राप्ति में शामिल हैं. अनेक नारियां माता बनने का विचार ही मन में नहीं लातीं, क्योंकि वे खुद के लिए जीना चाह रही हैं. विदेशी नारियां शराब, जुआ, सिगरेट पीना भी बुरा नहीं मानती हैं. आज आधुनिक समय में भारतीय नारियों में बदलाव आया है. सैकड़ों वर्षों तक घरगृहस्थी रचातेरचाते उसे अनुभव होने लगा है कि उस का काम बरतनचौके तक ही नहीं है. बदलते वातावरण में भारतीय नारी को समाज में खुलने का अवसर मिला है तो वे खुद के लिए जीना चाहती हैं.

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