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हमेशा से अपने होने का अर्थ ढूंढ़ती रही नारी

लेखिका-डा. अनीता सहगल वसुंधरा

भारत की नारियों ने हमेशा अपने होने का अर्थ ढूंढ़ना चाहा है, पर इस पुरुष समाज ने उसे अपनी इच्छाओं के नीचे दबा कर रखा. आखिर एक नारी भी अपने मन में सपने संजोती है, उन्हें पूरा करना चाहती है, किसी का हक नहीं बनता कि उस के सपनों को दबाए. किस रूप में साधना करूं तुम्हारी, हर रूप में श्रद्धेय लगती हो, नींव बन कर सहती हो सबकुछ, पर आधार पुरुष को दे जाती हो, हर पल बन कर परछाई नर की, तुम अस्तित्व अपना खो देती हो, हर मन में, हर पल में, खुद को त्याग कर, तुम खुद को जला जाती हो. ‘भारत की नारी’ नाम सुनते ही हमारे सामने प्रेम, करुणा, दया, त्याग और सेवासमर्पण की मूर्ति अंकित हो जाती है. हम सम?ाते हैं कि नारी के व्यक्तित्व में कोमलता और सुंदरता का संगम होता है, वह तर्क नहीं भावना से जीती है, इसलिए उस में प्रेम, करुणा, त्याग आदि के गुण अधिक होते हैं और इन सब की सहायता से वह अपना तथा अपने परिवार का जीवन सुखमय बनाती है.

किंतु महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों की घटनाएं स्त्री जीवन के उस मरूस्थल को प्रतिबिंबित करती हैं जो सदियों से घटती रही हैं और हमारा यह सोचना कि नारी न तो परेशान होती है और न ही हार मानती है, उसे कचोटता रहता है जो एक प्रतिकार के रूप में उस के मन से बाहर नहीं आ पाता, क्योंकि यह कहीं न कहीं नारी के उस रूप, जिसे हम ममता, प्यार, वात्सल्य से परिपूर्ण पाते हैं, के रास्ते की रुकावट बन जाता है. महिला अपनी आंखों में ढेर सारे सपने बुनती है, जो पूरी तरह मृगमरीचिका की तरह होते हैं. वहां पहुंचने की उस की मेहनत उसे अंत में भी प्यासे रह जाने की तड़प दे जाती है और भविष्य से जुड़े उस के तमाम सपने उस की योग्यता की अनदेखी कर उसे एक नारी होने का एहसास दिलाते हैं. उस की आत्मनिर्भरता तो छोडि़ए, वह अपने होने का ही अर्थ आज तक नहीं ढूंढ़ पाई है. इस तलाश में वह पूरी जिंदगी भागती रहती है कभी किसी के लिए, कभी किसी के लिए, क्योंकि लगता है कि नारी का जन्म ही खुद के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए होता है. भारतीय नारी का चरित्र त्यागमयी अधिक हो गया है, जो कभी भी किसी बात के लिए शिकायत नहीं करती है. इस के विपरीत, उन्नत देशों की नारियां प्रगति की दौड़ में पुरुषों से मुकाबला करने लगी हैं. वे पुरुषों के समान व्यवसाय और धनप्राप्ति में शामिल हैं. अनेक नारियां माता बनने का विचार ही मन में नहीं लातीं, क्योंकि वे खुद के लिए जीना चाह रही हैं. विदेशी नारियां शराब, जुआ, सिगरेट पीना भी बुरा नहीं मानती हैं. आज आधुनिक समय में भारतीय नारियों में बदलाव आया है. सैकड़ों वर्षों तक घरगृहस्थी रचातेरचाते उसे अनुभव होने लगा है कि उस का काम बरतनचौके तक ही नहीं है. बदलते वातावरण में भारतीय नारी को समाज में खुलने का अवसर मिला है तो वे खुद के लिए जीना चाहती हैं.

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स्वतंत्रता आंदोलन में सरोजिनी नायडू, सत्यवती, कमला नेहरू जैसी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. परिणामस्वरूप स्त्रियों में पढ़नेलिखने और कुछ कर गुजरने की आकांक्षा जागृत हुई. लेकिन पुरुषों के ताकतवर समाज में महिलाओं की ये कोमल भावनाएं दबा दी जाती हैं. एक महिला अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहती है, संपूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती है. इस के लिए वर्तमान समाजव्यवस्था में अनेक सम?ाते उसे करने पड़ते हैं. पुरुषों के समाज में आज भी महिलाएं अकेली ही हैं. समानता और सम्मान की तमाम राजनीतिक घोषणाओं के बावजूद वे समाज के दूसरे दर्जे की नागरिक हैं. भारत में नारियों को प्रेम, बलिदान तथा विनम्रता के प्रतीक के रूप में सराहा तो गया है पर अफसोस यह है कि महिलाओं, जिन्होंने अपने परिवार तथा समाज के विकास के लिए स्वयं को मिटा दिया, को इतने वर्षों बाद भी सामाजिक व्यवस्था में उचित स्थान नहीं मिल पाया है. पुरुष के तथाकथित पौरुषत्व एवं उद्धत अहंकार ने नारी का शोषण किया है. नारी के संबंध में आज बहुत ऊंची तथा बढ़बढ़ कर बातें की जाती हैं. उन्हें जननी, बहन का दर्जा दे कर आदर्श नारी कहा जाता है. उन के उन्नयन हेतु अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं पर समाज में उन का स्थान आज भी असमान है.

आज जबकि 21वीं सदी का पदार्पण हो चुका है, वर्तमान कुछ नारियां विकास के ऊंचे शिखर को छू रही हैं. शिक्षा, कंप्यूटर, नारी सुलभ क्षेत्र- चिकित्सा, सेवा के क्षेत्र, इंजीनियरिंग, वाणिज्य, तकनीकी, पुलिस, विमान चालन जैसे क्षेत्र भी अब उस से अछूते नहीं रहे, फिर भी उसे पुरुषों के मुकाबले उतना योग्य व बुद्धिमान नहीं सम?ा जाता है. जो स्वतंत्रता जिंदगी के हर क्षेत्र में, हर काम में, हर निर्णय आदि में पुरुषों को है, वह स्त्रियों को नहीं है. उन्हें आज भी इस स्वतंत्र भारत व अन्य विकासशील देशों में शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक अत्याचार, अनाचार व अन्य प्रकार की यातनाओं का शिकार होना पड़ता है. आज भी परिवार में कन्या को अपने भाई के मुकाबले अधिक गृहकार्य, जैसे पानी लाना, चौकाबरतन, ?ाड़ूपोंछा आदि करना पड़ता है. आज भी लाखों की संख्या में बालिकाएं नौकरानी के रूप में घरेलू कार्यों को संपन्न करती हैं जबकि उन की आयु पढ़ने व विद्यालय जाने की होती है. कहा जाता है कि नारी जन्म से ही सम्मान एवं अधिकारों की दृष्टि से स्वतंत्र है.

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लेकिन, इस बात में कितना खोखलापन नजर आता है कि जीवन के हर मोड़ पर कन्या, जो आगे चल कर महिला का रूप धारण करती है, को घोर उल्लंघनीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इतना सबकुछ होते हुए भी अगर उन की जिम्मेदारियों की तरफ नजर घुमाएं तो हम देखते हैं कि गांव से ले कर शहर तक, गरीब से ले कर अमीर तक, हर वर्ग में वास्तव में आज नारी की भूमिका दोहरी हो गई है. उसे घर और बाहर दोदो मोरचों पर अपने परिवार की जीविका के लिए काम करना पड़ रहा है. घर की सारी जिम्मेदारियों और बाहर के कार्य इन दोनों में वह जबरदस्त संतुलन बनाए हुए है.

इतनी मेहनत करने के बाद भी उसे पगपग पर पुरुष समाज की ईर्ष्या, घृणा, हिंसा और वासना से भी लड़ना पड़ता है. यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि यह पुरुषों की दुनिया है. हमारी संसद तथा विधानसभाओं में, समाचार जगत तथा सार्वजनिक मंचों पर मात्र पुरुषों के दृष्टिकोण को स्थान मिलता है. विशेषरूप से शहरी शिक्षित पुरुषों को बालिकाओं व महिलाओं की समस्याओं के बारे में कभीकभार ही गंभीर चिंतन हुआ होगा. नारी की आज की यह हालत गांवों के साथसाथ शहरों की नारी के लिए एक अति गंभीर समस्या के रूप में सामने आ चुकी है. उस के इस हालत का जिम्मेदार कौन है, किस का नाम लिया जाए?

धूमावती- भाग 5 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

“मैं किसी के नजर में आने न दूंगी, लेकिन यह चिट्ठी तुम्हारी जबान की निशानी है. मुझे इसे संभालना ही पड़ेगा, बच्चा तुम्हारी जिद पर ला रही हूं, तो तुम्हारी ‘हां’ मेरे पास होनी चाहिए प्रभास. “मुझे माफ करना,अपनी और बच्चे की सुरक्षा के लिए यह है.”

“यह प्रेम था? हेमा ऐसे ही नाकाबिल रिश्ते के लायक थी. छी:…” तरुण बोल कर चिट्ठी एक किनारे फेंक चुपचाप पलंग पर बैठ गया. मेघना के अंदर धुआं भरता जा रहा था. सालों से धोखे का खेल… और वह घर और बच्चियों में खुद को होम कर चुकी. प्रभास कितना बुरा बरताव करता रहा उस के साथ, और वह खुद को दिलासा देती रही कि पति काम के बोझ से परेशान है.

तरुण ने चुप्पी तोड़ी, “बेटी का नाम ‘तमन्ना’ यानी प्रभास की तमन्ना. मैं और अच्छा इनसान नहीं बन सकता. मैं बच्ची को देखते ही हेमा की बेवफाई ही याद करूंगा. कैसे पालूंगा दीदी इस बच्ची को? इस धोखे की निशानी को… बच्ची मेरे साथ खुश नहीं रह पाएगी दीदी.

तरुण अचानक फूटफूट कर रो पड़ा. मेघना ने उस के सिर पर हाथ रखा और कहा, “तुम चिंता न करो तरुण. प्रभास कल ही कह रहा था कि वह बेटी को तुम से ले लेगा, और मुझे तुम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखने देगा. “अगर बच्ची यहां रही, तो मुझे देखभाल के लिए आना ही पड़ेगा, और प्रभास मुझे रोकेगा.

“अच्छा है कि मैं ही बच्ची को ले जाऊं. मेरी ममता भेद नहीं करेगी. मुझे तो प्रभास के बुरे स्वभाव की आदत ऐसे भी पड़ ही चुकी थी, सीने पर एक पत्थर और सही. “मैं बच्ची को ले जाती हूं, प्रभास की हकीकत को उसे बताने की जरूरत नहीं. उस की सजा यही है कि वह खुशफहमी में ही जिए. वक्त उसे क्या सजा देना चाहता है, मैं देखना चाहती हूं.”

तरुण ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. मेघना बच्ची को डाक्टर से दिखाते हुए घर ले आई. प्रभास खुश था कि उस की बच्ची उसे मिल गई, और अब मेघना का तरुण के साथ उठनाबैठना भी बंद होगा. एकाध महीने बीतते ही तरुण के मेघना के पास फोन आने लगे. दोनों बेटे ओज और ओम अपनी बहन के बिना अब एक पल भी नहीं रहना चाहते. दीवाने हुए जा रहे हैं कि बहन को जल्दी मंगाओ.

बारबार तरुण का फोन करना इस बात की गारंटी थी कि दोनों बच्चे अपनी फूल सी प्यारी बहन के बिना कोहराम मचाए हैं. बाध्य हो कर मेघना को प्रभास से बात करनी पड़ी कि वे अपनी बेटी वापस चाहते हैं. प्रभास गुस्से से आगबबूला हो गया.

“मैं अब इसे बोर्डिंग भेज दूंगा, लेकिन नालायक तरुण को कभी मेरी बच्ची मतलब हेमा की बच्ची नहीं दूंगा.” मेघना का सब्र अब टूट रहा था. वह चीख पड़ी “धोखा दे कर सिर ऊंचा कर के बात मत करो प्रभास… तुम किस हक से मुझे धोखा दे सकते थे, जबकि अकेले सारा कुछ संभालती आई हूं अब तक. क्या तुम्हारे बूढ़े मांबाप, क्या तुम्हारे रिश्तेदार और क्या तुम्हारी बच्चियां. कभी तुम ने कोई जिम्मेदारी ली? शर्म नहीं आती अपने कलिग से बच्चे पैदा किए, और अब बच्चे जब अपनी बहन को चाहते हैं, तुम उन्हें छीन कर बोर्डिंग में भेजना चाहते हो.

ऐसा भी नहीं है कि तुम ने बच्ची को बहुत चाहा हो, तुम तो बस अधिकार जमाना जानते हो. हेमा तुम्हें क्या समझती थी, अब भी चिट्ठी में लिखा है. और तुम ने भी हेमा के शरीर और खूबसूरती को चाहा था, तभी उस की खूबसूरती को अपने शरीर के साथ मिलाना चाहते थे. तुम समझ भी सकोगे कभी कि तुम्हारी हरकतों का मुझ पर क्या असर हुआ है? धुआं भरा है मेरे अंदर… और उस धुएं में ऐसी आग है कि तुम पलपल जलोगे, लेकिन आसपास किसी को खबर नहीं होगी.” “बकवास छोड़ो, चिठ्ठी के लिखे से कुछ भी प्रमाण नहीं होता… और बच्ची को मैं बोर्डिंग ही भेजूंगा.”

मेघना क्रोध और निराशा से भरी कुछ देर प्रभास को देखती रही, फिर बोली, “तुम तरुण और उस के बेटों के प्रति बदले की भावना से ग्रस्त हो… और इस का प्रतिकार मैं करूंगी जरूर.” प्रभास  ने आगंतुक को आंखें फाड़फाड़ कर देखा, लेकिन फिर भी उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. उस के घर बैंक के जोनल औफिस के हेड आए हुए थे. पास ही तरुण और उस के दो बेटे बैठे थे, और बड़े बेटे ओज की गोद में तमन्ना थी. मेघना ने प्रभास के आते ही मुसकरा कर कहा, “तमन्ना के नाम बदलने की हम ने एक छोटी सी व्यवस्था रखी है. तुम्हारे सर का आना कैसा लगा प्रभास? तरुण अपनी बेटी को लेने आए हैं.”

उसी वक्त प्रभास को कुछ कहने का मौका दिए बगैर उस के बौस ने कहा, “क्यों प्रभास सुना है कि तुम तरुण की बेटी को जबरदस्ती बोर्डिंग भेजना चाहते हो? उन से उन की बच्ची छीन कर अपने पास रखे हो?” “सर, ये मेरी, मेरी भी बेटी है,” तरुण हकला गया, तुरंत सर ने कहा, “क्या ये बच्ची तरुण की नहीं है? अगर यह बच्ची उस की नहीं है तो तुम्हें सब के सामने बैंक में कहना होगा कि तुम ने अपनी पत्नी और हेमा के पति को धोखा दे कर नाजायज संबंध बनाए. छल करने के एवज में मैं तुम्हारा सीआर खराब कर दूंगा… तुम्हें मेघना को दुख भरपाई के लिए एक बड़ी रकम भी  देनी होगी.”

“नहीं… नहीं सर, ये बच्ची मेरी नहीं, तरुण की है.” “अच्छा…? फिर तुम उसे बोर्डिंग किस अधिकार से भेज रहे थे? आगे से खुद को बच्ची के परिवार से दूर रखो, वरना चैन से नहीं रह पाओगे. मैं तुम्हारी हरकतों की ऊपर तक खबर करूंगा. मेरे पास पूरा प्रमाण है. तुम्हारे बैंक के कुछ कर्मचारी भी औफिस में तुम्हारी हरकतों के बारे में बताने को तैयार हैं. तुम कितने निर्दय हो, जो बच्ची तुम्हें जानती तक नहीं, उसे तुम उन लोगों से छीन रहे हो, जो उस पर जान लुटाते हैं. देखो, बच्ची तरुणजी की गोद में कैसे लपक कर चली जाती है.”

मेघना ने हेड सर से कहा, “सर, हम इस बच्ची का नाम ‘अनाया’ रखना चाहते हैं. आप इस बच्ची को नए नाम के साथ आशीष दे दीजिए.” हेड ने उसे अपनी गोद में लेते हुए ‘अनाया’ नाम से आशीष दिया और सब लोगों ने मुंह मीठा किया. मेघना ने पूरी वीडियोग्राफी कर ली थी. तरुण बच्ची को गोद में लेते हुए बेटों के साथ चलने को तैयार हुआ, तो हेड सर का आभार मानते हुए प्रभास से कहा, ” प्रभासजी, मेघना मेरी दीदी है, अपने छोटे भाई के पास आने को मना न करना.”

“फालतू बहनापा का दिखावा मत करो. मुझे सब पता है,” प्रभास ने चिढ़ कर कहा. मेघना ने प्रभास की ओर घृणा और व्यंग्य से देखते हुए कहा, “आप के लिए औरत हमेशा एक देह ही रहेगी, उस से ज्यादा आप की नजर में आना मुश्किल है. लेकिन दुनिया के बाकी लोग आप जैसे बिलकुल भी नहीं हैं. छोटी तो फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने मुंबई के कालेज होस्टल में चली ही गई है. मैं बड़ी बेटी के पास चली जाऊंगी. मेरा होम डेकोर आर्ट औनलाइन बिजनेस अब जोर पकड़ ही रहा है, मैं बंगलोर अपनी बड़ी के पास जा कर इसी में व्यस्त हो जाऊंगी.”

हेड ने जातेजाते कहा, “अब भी सुधर जाओ प्रभास, वरना पछताओगे.” सब के चले जाने के बाद प्रभास मेघना के पास आया और बोला, ” मेघना, तुम कहीं मत जाओ, आगे से तुम्हें कभी तकलीफ नहीं दूंगा. मैं दूसरे रिश्ते में रह कर देख चुका हूं, मैं अब तुम्हारे साथ एक शांति की जिंदगी चाहता हूं, एक मौका दो, शिकायत नहीं होगी.” मेघना अंदर से बिलकुल भी गदगद नही हुई. वह बोली,

“प्रभास,मैं रह भी जाऊं तो पहले जैसा प्यार और समर्पण की उम्मीद मुझ से मत करना. मैं जानती हूं कि तुम्हारा शरीर अब वैसा नहीं रहा कि तुम अकेले मौज कर सको. लेकिन, जान लो, मैं एक धुएं भरे रिश्ते में हूं, और इस की घुटन मेरे अंदर हमेशा बनी रहेगी. ऐसे भी मेरी तुम्हारे साथ रहने की कोई मजबूरी नहीं है, जो पति के लिए प्यार होता है न, वो तो अब खत्म ही हो गया है मुझ में. रहने को कहते हो तो रह जाऊंगी, लेकिन तुम्हारे व्यवहार पर मेरी पूरी नजर रहेगी, और  तुम्हारे जोनल हेड सर की बात सुन चुके न… ये सर मेरे गांव से हैं, मेरे घरपरिवार के लोगों की वे बहुत इज्जत करते हैं. और इज्जत वैसे कमाई जाती है, भीख में नहीं मिलती, तुम्हें बता दूं.”

प्रभास और मेघना साथ रहे, लेकिन अब प्रभास की डोर मेघना के हाथों में थी, एक सच्चे ईमानदार शक्तिशाली व्यक्तित्व के हाथों में, जो खुद धूमावती थी, अपने अंदर ढेरों दुख के धुएं लिए, लेकिन सचाई की रोशनी बिखेरती हुई.

फेस्टिवल और वेडिंग सीजन में चाहिए हेयर फॉल फ्री बाल तो आज से ही करिए ये काम

जल्द ही फेस्टिवल और वेडिंग सीजन की शुरुआत होने वाली है, जिसके लिए कपड़े, ज्वैलरी और मेकअप से जुड़ी सारी तैयारियां आपने शुरु कर दी होगी. लेकिन क्या आपने अपने बालों के बारे में कुछ सोचा है. क्योंकि अगर आप रूखे सूखे या कमजोर बालों के साथ तैयार होगी तो आपका सारा लुक खराब हो जाएगा जी हां आपका हेयरस्टाइल कैसा भी क्यों न हो उसके लिए मजबूत और सुंदर बाल होना बेहद जरुरी है.

बदलते मौसम में झड़ते और ड्राय बालों के कारण फेस्टिव सीजन का मजा भी किरकिरा हो सकता है. इसीलिए आज हम आपको बताने वाले हैं Kesh King Ayurvedic Medicinal Oil के बारे में, जो आपके ड्राय और झड़ते बालों को न सिर्फ ठीक करेगा बल्कि उन्हें मजबूज और खूबसूरत भी बनाएगा.

हेयर फॉल को कहें बाय-बाय

ये आयुर्वेदिक तेल बालों से जुड़ी अनेक प्रौबल्म से छुटकारा दिलाता है. 21 आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनाया गया ये तेल बालों को झड़ने से रोकता है और उन्हें जड़ से पोषण देता है और बिना किसी कैमिकल के नुकसान के हर उम्र के लोगों के बालों को हेल्दी और मजबूत बनाता है.

रोजाना इस्तेमाल से होंगे ये फायदे

दीवाली हो या दशहरा या शादी खास दिन पर हर कोई खूबसूरत दिखना चाहता है. लेकिन इसके लिए आपको आज से ही शुरूआत करनी होगी. न सिर्फ अपने चेहरे की बल्कि अपने बालों की भी खास केयर करनी होगी. इस तेल के रोजाना इस्तेमाल से ना सिर्फ आपके बाल झड़ना बंद होंगे. बल्कि आपके बेजान बालों को एक नई चमक मिलेंगे, जिससे आप नई नई हेयर स्टाइल भी बना सकेंगे और हर लुक से लोगों की तारीफें भी बटोर पाएंगे.

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  1. चंपी है जरूरी

अगर बालों की जड़ें सूखी हैं तो इस तेल की मालिश उन्हें ताकत देती है और बालों को बढ़ने  में मदद करती है. ये तेल बालों को टूटने व उलझने से रोकता है, साथ ही तेल से सिर की मालिश करने से सिर में ब्लड सर्कुलेशन बना रहता है.

  1. शाइनी बालों के लिए करें मसाज

इस तेल से बालों में नमी आती है, जिससे बाल मुलायम व चमकदार बनते हैं. ये  तेल स्कैल्प तक अच्छी तरह पहुंचता है, जिससे बाल खूबसूरत लगते हैं. बालों की ग्रोथ के हेयर ऑयल बेहद जरूरी है. इस तेल की मालिश से आपके सिर की कोशिकाएं काफी सक्रिय हो जाती हैं, जिससे बाल जल्दी लंबे होते हैं.

मां की याद में janhvi Kapoor ने बनवाया टैटू, दर्द में निकला ये नाम

बॉलीवुड अदाकारा जाह्नवी कपूर आए दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं. हाल ही में जाह्नवी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह टैटू बनवाती नजर आ रही हैं.

जाह्नवी की यह वीडियो लोगों को खूब पसंद आ रही है. शेयर किए हुए वीडियो में जाह्नवी बेहद खूबसूरत जगह पर छुट्टियां बीताती नजर आ रही हैं. इस वीडियो में जाह्नवी टैटू बनवाते समय काफी ज्यादा तकलीफ झेलती नजर आ रही हैं. इस दौरान कांपते हुए जाह्नवी के मुंह से गोविंदा , गोविंदा शब्द निकल रहे हैं.

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बता दें कि हाथ पर बनाएं हुए टैटू पर जाह्नवी ने अपनी मां की हैंडराइटिंग के कुछ शब्द लिखवाएं हैं. जिसमें लिखा है कि ‘ आई लव यू लब्बू’ , इस टैटू की दिलचस्प बात यह है कि जाह्नवी कपूर की मां प्यार से उन्हें लब्बू बुलाया करती थी. इसलिए उन्होंने यह नाम अपने टैटू पर लिखवाया है.

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जाह्नवी कपूर ने अपनी मां को एक बार फिर से याद करते हुए इस नोट को शेयर किया है, जिसमें श्री देवी ने अपनी बेटी को प्यार से लब्बू कहकर बुलाया है.

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अगर जाह्नवी कपूर की वर्कफ्रंट की बात करें तो वह इन दिनों दोस्ताना 2 और गुड लक जैरी फिल्म को लेकर चर्चा में बनी हुईं हैं. इससे पहले कार्तिक आर्यन दोस्ताना 2 में नजर आने वाले थें, लेकिन धर्मा प्रॉडक्शन के साथ विवाद के बाद से कार्तिक आर्यन को इस फिल्म से हटा दिया गया है.

 

काम पर लौटी Shehnaaz Gill, सेट पर आते ही कर दी इस एक्टर की पिटाई

2 सितंबर के दिन सिद्धार्थ शुक्ला का निधन दिल का दौरा पड़ने से हो गया था, जिससे पूरी इंडस्ट्री को सदमा लगा था, सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल की मुलाकात बिग बॉस 13 में हुई थी, जहां से उनकी दोस्ती कब प्यार में बदल गई इसका किसी को अंदाजा नहीं लगा.

सिद्धार्थ की मौत के बाद से शहनाज गिल वो शख्स थी, जिसे सबसे ज्यादा धक्का लगा था, शहनाज गिल इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी, हालांकि धीरे-धीरे दोस्तों और परिवार वालों की मदद से वह खुद को मजबूत बना पाई हैं.

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बीते दिनों उन्हें अपनी अपकमिंग फिल्म  हौसला रख के सेट पर एक्टर और सिंगर दिलजीत दौसांझ के साथ देखा गया, जहां शहनाज एक बार फिर अपनी चुलबुली अंदाज में नजर आईं, शहनाज सेट पर दिलजीत दोसांझ को पीटते हुए नजर आ रही हैं.

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शहनाज गिल और दिलजीत दोसांझ की यह फिल्म 15 अक्टूबर को रिलीज होने वाली है. शहनाज गिल के फिल्म के सेट से एक नया वीडियो सामने आया है.

बता दें कि शहनाज गिल का यह वीडियो लोगों को खूब पसंद आ रहा है, फैंस इस वीडियो पर कमेंट भी कर रहे हैं. फैंस का यह कहना है कि शहनाज को फिर से ऐसे देखकर काफी अच्छा लग रहा है. शहनाज गिल जल्दी से अपने जीवन में आगे बढ़ें.

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बता दें कि शहनाज और सिद्धार्थ इस साल दिसंबर में शादी के बंधन में बंधने वाले थें, लेकिन इससे पहले ही इन दोनों का साथ छूट गया, शहनाज गिल आखिरी वक्त में भी सिद्धार्थ शुक्ला के साथ थी.

महिलाओं के लिए अलग से बने पिंक बूथ

लखनऊ . यूपी पुलिस व्‍यवस्‍था में जो बदलाव बरसों से नहीं हो सके उसे प्रदेश सरकार ने मात्र साढ़े 04 सालों में करके दिखा दिया. प्रदेश की महिलाओं के लिए अलग से पिंक बूथ और पुलिस लाइन स्थित खस्‍ताहाल भवनों का नवीनीकरण कर पुलिस कर्मियों को नए आवास दिए गए हैं. सरकार ने यूपी के कई शहरों में कमिश्‍नरेट सिस्‍टम लागू कर पुलिसिंग को नई दिशा दी है. राज्य में यूपी पुलिस आधुनिकीकरण एवं सुदृढ़ीकरण आयोग का गठन किया गया और पुलिस रिफार्म के लिए बेहतर कदम उठाए गए.

साढ़े 4 सालों में प्रदेश सरकार ने पुलिस का चेहरा ही बदल कर रख दिया. सरकार ने संकल्‍प पत्र में यूपी पुलिस को आधुनिक बनाने के जो वादे किए उससे अधिक करके दिखाया. यूपी पुलिस को मॉडर्न पुलिस बनाने के लिए उनको अत्‍याधुनिक वाहनों व हथियारों से लैस किया. साथ ही 18 नई विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं का निर्माण कराया.  इसके साथ ही उत्तर प्रदेश इंस्टीट्यूट ऑफ फॅारेंसिक साइंसेज का निर्माण भी लखनऊ में शुरू हो चुका है. जिससे जटिल अपराधों की जांच आसानी से हो सकेगी.  पॉक्सो एक्ट में त्वरित न्याय दिलाने के लिए 218 नये फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन क‍िया. पुलिस अधीक्षक कार्यालयों में एफ.आई.आर. काउन्टर स्थापित किए.  महिलाओं की सुरक्षा के लिए वूमेन पावर लाइन-1090 चलाई गई.

पुलिस विभाग में हुई रिकार्ड भर्ती

कानून व्‍यवस्‍था को बेहतर बनाने के लिए प्रदेश में 214 नए थानों की स्‍थापना की गई. उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के द्वारा 1 लाख 43 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों की भर्ती व 76 हजार से अधिक अराजपत्रित पुलिसकर्मियों की पदोन्नति की गई.  महिलाओं के लिए प्रदेश के सभी 1535 थानों में महिला हेल्प डेस्क की स्थापना की गई. यू.पी.-112 हेल्पलाइन से 6 लाख 46 हजार जरूरतमंद को मदद दिलाई. इसके अलावा ‘सवेरा’ कार्यक्रम में 7 लाख 33 हजार 770 लाख बुजुर्ग पंजीकृत किए गए हैं.

लखीमपुर खेरी में किसानों की हत्या

करनाल और लखीमपुर खेरी में जिस बेरहमी से किसानों को मारा गया है. इस देश के लिए कोई नया नहीं हैं. इस समय सरकार यह समझ नहीं पा रही कि जो किसान और मजदूर नोटबंदी के समय पूंछ दबाए लाइनों में घंटों खड़े रहे आखिर कैसे हाकिमों के सामने खड़े हो कर आंख से आंख मिला कर बात कर रहे हैं. सरकार को तो आदत है कि राजा का आदेश आकाशवाणी की तरह हो कि वह भगवान का कहा है और उसे मानना हरेक को होगा ही.

कांग्रेस सरकारों ने 60-70 सालों में मंडियों का जो जाल बिछाया कर वह कोई किसानों के फायदे में नहीं था पर किसानों ने हार मान कर उस में जीना सीख लिया था क्योंकि मंडी का आढ़ती और लाला उन्हीं के आसपास के गांव का तो था जिससे रोज मेलमुलाकात होती थी.

अब सरकार दूर मुंबई, अहमदाबाद में बैठे सेठों को खेती की बागडोर दे रही है जैसे अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को दी थी. ईस्ट इंडिया कंपनी को तो सिर्फ लगान की फिक्र थी, आज सरकार चाहती है कि किसान वह उगाए जो सेठ चाहें, उसे बेचें, जिसे सेठों की कंपनियां चाहें, उतने पैसे पा कर जयजयकार बोलें जितने मिल जाएं.

सरकार को समझ नहीं आ रहा कि ऐसा क्या हो गया कि हमेशा से अपनी जाति की वजह से डरा रहने वाला किसान आज आंखे तरेर कर पूछ रहा है कि इस फरमान की क्या जरूरत है, क्यों उस की पीठ पर सेठों की कंपनियां लादी जा रही हैं, क्यों मंडियों के बिछे जालों को तोड़ा जा रहा है. सरकार का इरादा तो नेक था. वह चाहती है कि 1947 के बाद के भूमि सुधार कानूनों के बाद जो जमीन शूद्र कहे जाने वाले किसानों को मिल गई थीं. एक बार फिर उन जमींदारों के हाथों में पहुंच जाएं जिनके नाम कंपनियों सरीखे हैं और जहां से वे किसानों का आज और कल दोनों तय कर सकें.

इंदिरा गांधी ने जब निजी कंपनियों का सरकारीकरण करा था तो उस ने प्राईवेट सेठों का हक छीन कर सरकारी अफसरों को दे दिया था. जनता के पल्ले तो अब भी कुछ नहीं पड़ा था. मंडी कानून भी अफसरशाही को किसानों पर बैठाने के लिए थे पर कम से कम वे मंडियां अफसरों की निजी जागीरें तो नहीं बाकी थीं. उन के बच्चे बैठेबिठाए तो नहीं क्या सकते थे. अब सेठों के बच्चों के अकाउंट विदेशों में खुलेंगे, पैसा वहां जमा होगा जहां टैक्स नहीं देना होता, वे हर साल 6 महीने विदेशों के मजे लेंगे और मेहनती किसान बिना अपनी जमीन के रातदिन जोत में लगेगा. किसान इस की खिलाफत कर रहे हैं तो किसानों के घरों से ही अब पुलिस बलों के सिपाहियों के हाथों उन्हें पिटवाया जा रहा है. न वह खट्टर और न वह ……….सिन्हा जो किसानों के सिर फोडऩे की वकालत करते हुए केमरों में पकड़े गए किसानों के घर से आए हैं.

अगर देश के नेता किसान होते जैसे देवगौड़ा, लालू यादव, चरण ङ्क्षसह, देवीलाल या मुलायम ङ्क्षसह तो किसान कानून न बनते न आफत आती. कांग्रेस ने तो जातेजाते किसानों की जमीन को छीनने को रोकने का कानून बना दिया था और नई सरकार 7 सालों में चाह कर भी उसे अपने आकाओं के हिसाब से बदल नहीं सकी तो उस ने कृषि कानूनों को सहारा लिया है कि किसान इतने फटेहाल हो जाएं कि जमीन बेच कर कूएं में कूद जाएं. नहीं तो पुलिस के डंडे और गाडिय़ां तो हैं न कुचलने के लिए.

बीमारियों से रहना है दूर तो शुगर को कहे नो

आज हमारी दिनचर्या ऐसी हो गई है कि हमें पूरा दिन बैठे ही रहना पड़ता है जिस से मानसिक तनाव तो बढ़ता ही है, साथ ही उतनी कैलोरी भी खर्च नहीं हो पाती जितनी होनी चाहिए, इस से हम तरहतरह की गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं.

इस के अलावा हम हैवी प्रैशर को कम करने के लिए औफिस हो या घर बैठेबैठे कई कप चाय या फिर कौफी पी लेते हैं, जो हमारे लिए घातक साबित होता है. ऐसे में जरूरत है शुगर फ्री चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने की ताकि आप रहें हैल्दी व फिट. चीनी शरीर में ऐसिड बनाती है, जो पेट के लिए बिलकुल सही नहीं है. ऐसे में आप का धीरेधीरे चीनी नामक सफेद जहर को छोड़ना बहुत जरूरी है.

अमेरिका में हाल ही में की गई एक रिसर्च के अनुसार अगर एक व्यक्ति पूरे दिन में 94 ग्राम जो 358 कैलोरी के बराबर होती है चीनी लेता है तो यह उस के लिए नुकसानदायक है. इसे छोड़ने से वह मोटापे, टाइप 2 डायबिटीज पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा पा सकता है.

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क्यों जरूरी है चीनी कम करना:

अगर आप जरूरत से ज्यादा चीनी लेते हैं तो यह आप के ब्लड शुगर लैवल को बढा़ देगी. आप को बता दें कि जब तक इस का असर रहता है तब तक आप बहुत सक्रिय रहते हैं, लेकिन असर खत्म होते ही आप को थकान फील होने लगती है, जिस से काम में मन नहीं लगना आदि समस्याएं होने लगती हैं. जबकि फाइबर, विटामिन, प्रोटीन ज्यादा से ज्यादा लेने से आप के ब्रेन और बौडी को ऐनर्जी मिलती है जिस से पूरा दिन आप बिना थके काम करने में सक्षम रहते हैं.

वजन कम करने में सहायक:

हर व्यक्ति को गुड फैट जैसे ओमेगा 3 फैटी ऐसिड की जरूरत होती है, क्योंकि यह हमारे ब्लड सर्कुलेशन को ठीक करने का काम जो करता है जबकि ज्यादा मात्रा में चीनी लेने से यह खतरनाक फैट के रूप में ही हमारे शरीर में जमा हो जाता है. इसलिए अगर मीठा खाने का मन करे भी तो आर्टिफिशियल स्वीटनर लें.

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बचें ऐलर्जी से:

हर कोई मुंहासों और झुर्रियों से दूर रहना चाहता है. इसलिए आप को बता दें कि चीनी से बनी चीजों को डाइट से गुडबाय करने से आप पिंपल्स, झुर्रियों की समस्या से खुद को दूर रख कर क्लीयर स्किन की मलिका बन सकती हैं.

मैमोरी लौस से बचाए:

एक रिसर्च के अनुसार ज्यादा शुगर लेने से काम में मन नहीं लगने के साथसाथ मैमोरी लौस की समस्या भी आती है. ऐसे में अगर आप नैगेटिव विचारों से खुद को दूर रखना चाहते हैं तो चीनी को छोड़ हैल्दी फूड खाने पर ध्यान दें. साथ ही दांतों व लिवर संबंधी बीमारियों से भी खुद को दूर रखें.

उधार का बच्चा

उसदिन सुबह की पहली किरण एक नए सुनहरे इंद्रधनुष को ले कर आई. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि जिसे आज जिले के सर्वश्रेष्ठ होनहार बालक के सम्मान से नवाजा जा रहा है यह वही अर्पण है. मुझे याद आ रही थीं क्लास की बातें.

‘‘मैम, इस ने फिर मुझे मारा.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया,’’ अर्पण के उत्तर में गुस्सा साफ झलक रहा था.

‘‘आप और बच्चों से पूछ लीजिए मैम और यह कागज का गोला देखिए, मेरी आंख पर लगा है.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रहे हो,’’ अर्पण का फिर इनकार भरा स्वर गूंजा.

मैं इस क्लास की क्लास टीचर हूं. मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि सच क्या है. मुझे रोज किसी न किसी मामले में बच्चों का जज बनना पड़ता था और अर्पण मेरे लिए एक पहेली बना हुआ था. मुझे कभीकभी अर्पण की कही बात ही सच लगती, तो बच्चों के इलजाम और गवाही सब उस के प्रतिकूल निर्णय देते नजर आते. आज भी यही हुआ था. मैं मनोविज्ञान की छात्रा रही हूं, लेकिन इस बालक के सामने हारने लगी थी. कक्षा में प्यार से समझाने से अर्पण चुप रहता पर बुद्धि इतनी तेज कि जो एक बार सुन लिया उसे पूछने पर तोते की तरह सुना देता. टिक कर बैठना शायद इस की डिक्शनरी में ही नहीं था. लेकिन कोई काम कहो तो शतप्रतिशत खरा उतरता और पूरा कर के ही दम लेता. पेपर मिलते ही 10 मिनट में उत्तर पुस्तिका दे देता, तो मैं हैरान रह जाती उस की स्पीड देख कर. जितना आता उसे कंप्यूटर प्रिंट की तरह फटाफट कागज पर उतार देता और बाकी समय पूरे स्कूल में घूमता रहता. इस के लिए नियम तो जैसे तोड़ने के लिए ही बने थे. किसी होस्टल से इसी साल यह इस विद्यालय में आया है. पिछले 2 साल इस ने होस्टल में ही काटे थे. मैं सोचती रहती हूं कि यह वहां कैसे रहा होगा? वहां के नियमों ने इसे ऐसा बना दिया या फिर अब खुली हवा में उड़ना सीख रहा है?

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सब से चौंका देने वाला तथ्य तो तब सामने आया जब पता चला कि इस के मम्मीपापा दोनों वर्किंग हैं. तब लगा कि सुबह 9 से शाम 5 तक की नौकरी करने वाली मां इसे कैसे संभालती होगी? धीरेधीरे बातों ही बातों में अर्पण ने मुझे बताया कि उस की एक दीदी भी है, जो उस से 5 साल बड़ी है.

‘‘घर में सब से अच्छा कौन लगता है?’’ पूछने पर बोला, ‘‘पापा.’’

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों?’’ तो उस का जवाब था, ‘‘क्योंकि वे मुझे खिलौने ला कर देते हैं.’’

‘‘और दीदी?’’ अजीब सा मुंह बना कर वह बोला, ‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. वह तो सारा दिन मुझे मारती रहती है और मम्मी से शिकायत करती रहती है.’’

अब बात बची थी मम्मी की. लेकिन मैं ने अब उस से कुछ भी पूछना उचित नहीं समझा. सोचा किसी दिन उन्हीं से मिलूंगी. अगले दिन सुबहसुबह मेरी मेज पर एक डायरी रखी मिली, जिस के साथ प्रिंसिपल का एक नोट लगा था, ‘अर्पण की प्रत्येक गतिविधि और शरारत इस में नोट की जाए.’ अब तो बच्चों को एक अच्छा मौका मिल गया, डायरी भरवाने का. अब तो रोज लाल पेन गति पकड़ने लगा. समस्या समाधान की ओर जाने की बजाय और गहराने लगी. अर्पण की उद्दंडता भी बढ़ने लगी. एक दिन तो हद हो गई जब कक्षा की एक लड़की कनिष्का ने आ कर बताया कि अर्पण ने गर्ल्स वाशरूम में जा कर उस के दरवाजे को धक्का दिया. 8-9 साल का बालक और ऐसी हरकत? मैं तो सुन कर चकित हो गई. मेरा मनोविज्ञान डांवाडोल होने लगा. अब तो पानी सर के ऊपर से जाने लगा था.

हिम्मत कर के मैं कक्षा में गई और दोनों को अलग ले जा कर पूछताछ की, पर अर्पण की तरफ से फिर वही इनकार कि मैं तो वहां गया ही नहीं. कनिष्का से मैं ने पूछा, ‘‘तुम ने इसे वहां देखा था?’’ जवाब था, ‘‘नहीं, मुझे सुयश ने बताया था.’’

तब सुयश को बुलाया गया और उस से पूछा, ‘‘तुम ने अर्पण को दरवाजे को धक्का देते हुए देखा था?’’

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सुयश ने कहा, ‘‘धक्का देते तो नहीं, पर यह गर्ल्स टौयलेट की तरफ छत पर घूम रहा था.’’ सवाल फिर उलझ गया था. पर इस बार भी अर्पण को शक से बचाते हुए मैं ने सुयश को पहले डांटा, ‘‘जब तुम भी छत पर थे तो हो सकता है तुम ने ही दरवाजे को धक्का दिया हो और नाम अर्पण का लग रहे हो.’’ कनिष्का को भी समझाया कि देखो बेटा, जब तुम ने खुद नहीं देखा, तो कैसे किसी के कहने पर किसी का नाम लगा सकती हो? आगे से ध्यान रखना. बच्चों को भेज कर मैं माथा पकड़ कर बैठ गई और सोचने लगी कि इस तरह का प्रतिरोध झेलतेझेलते तो बच्चा और गलत दिशा में चला जाएगा. मैं ने उस की डायरी बंद करने और शनिवार को उस के घर जाने का निश्चय किया. फोन पर समय तय कर शनिवार को शाम 4 बजे मैं अर्पण के घर पहुंची. यह समय मैं ने जानबूझ कर चुना था, क्योंकि उस समय बच्चे बाहर खेलने गए होते हैं. मैं और उस की मम्मी संध्या बालकनी में बैठ कर अर्पण के बारे में बातें करने लगीं.

वह बहुत परेशान थी उसे ले कर. कहने लगी, ‘‘कहांकहां नहीं दिखाया इसे. कई डाक्टरों को, साइकोलौजिस्ट को…’’

‘‘कहीं प्रैगनैंसी के दौरान ली गई किसी दवा का असर तो नहीं है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, सब ठीक था,’’ वह बोली.

लेकिन उस का जवाब और हावभाव मुझे मेल खाती नजर नहीं आया. फिर कुछ पर्सनल सवालों के जवाब जब वह गोलमोल ढंग से देने लगी तो मेरे मन में शक की जड़ें गहराने लगीं. एक तरफ उस ने मुझे बताया कि प्रैगनैंसी के आखिरी 4 महीने वह छुट्टी पर थी तथा डाक्टर की सलाह से किसी हिल स्टेशन पर रही थी, तो दूसरी तरफ वह बोली सब ठीक था.

उस से विदा लेते हुए सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘मैं अर्पण के लिए एक अच्छे भविष्य की डगर खोजने आई थी. तुम सहयोग दोगी तो शायद यह संभव हो सके.’’ सीढि़यों से उतरते हुए उस की एक परिचित से मुलाकात हो गई. संयोगवश बात बच्चों की चल पड़ी. अर्पण का नाम सुनते ही वह चुप हो गई. बहुत पूछने पर बस इतना ही कहा कि उसे अपना बनाने के चक्कर में संध्या की ममता अंधी हो गई है. इस गोलमोल और अधूरे वाक्य ने तो मुझे और उलझा दिया. सवालों की अनसुलझी गठरी लिए बोझिल कदमों से मैं घर आ गई. अगली सुबह संध्या ने फोन कर के मेरे पास आने का समय मांगा. मैं ने उसे शाम 5 बजे का समय दिया. लेकिन तब तक मेरा मन न जाने कितने सवालों से घिरा रहा. संध्या क्यों मिलना चाहती है, क्या बताना चाहती है या फिर क्या अर्पण ने कुछ और किया है? आदिआदि.

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हालांकि मैं ने सुन रखा था कि अपने घर से भी उस के चीखनेचिल्लाने की आवाजें अन्य लोगों ने सुनी हैं और छुट्टी के दिन सारा दिन वह घर से बाहर ही आवरागर्दी करता है. कमीज के बटन खोल कर सड़क पर साइकिल चलाता रहता है वगैरह. पर बेचारी मां क्या करे. शाम को ठीक 5 बजे घंटी बजी. मैं ने देखा तो संध्या ही थी. मैं ने कौफी तैयार की और उस के साथ बैठ गई. ऐसा लग रहा था जैसे अधूरी फिल्म आज क्लाइमैक्स पर आ कर ही दम लेने वाली हो.

संध्या ने पहले कल के लिए क्षमा मांगी फिर बोली, ‘‘मैम, मैं जानती हूं आप अर्पण का भला चाहती हैं पर मैं तो एक मां हूं. अपने बच्चे के बारे में बुरा कुछ भी सुन नहीं पाती. बड़े अरमानों से पाया था उसे और आज भी वैसी ही भावना उस के प्रति रखती हूं, लेकिन ऐसा भी लगता है कि मैं ने कहीं कोई गलती तो नहीं कर दी. कल, आप से बातें करने के बाद मैं सारी रात सोचती रही और अंत में यही निर्णय कर पाई कि आप ही मेरी बात को समझ सकेंगी.’’

मैं ने संध्या के पास बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर विश्वास कर सकती हो.’’

संध्या पहले तो रो पड़ी फिर संयत होते हुए उस ने कहना शुरू किया, ‘‘बात शादी के 7 साल बाद की है. इलाज के बाद भी मैं एक बच्चे की चाह पूरी नहीं कर पा रही थी. मेरे पति और मुझ में कोई कमी न थी पर शायद कुदरत को मंजूर नहीं था. हम दोनों ने अंत में बच्चा गोद लेने का फैसला किया पर घर वालों को नहीं बताना चाहते थे, अत: बड़ी बेटी के समय तबीयत का बहाना बना कर हम मसूरी में 5 महीने रहे और वहीं से बच्ची दिया को गोद लिया. हम दोनों बहुत खुश थे, पर दिया के दादादादी ने फिर पोते के लिए कहना शुरू कर दिया. हम एक बार अपना झूठ छिपा गए थे, पर एक बार और ऐसा करना मेरे बस में नहीं था. पर आप यह तो जानती हैं कि घर के बड़ेबुजुर्गों की बातें उन का आदेश होती हैं.

‘‘उन की कही बात पूरी करने के लिए मैं ने इस बार दार्जिलिंग में 5 महीने बिताए और जब वापस आई तो दादादादी के लिए पोते को साथ ले कर आई. पर दरवाजे पर ही बेटी ने उसे अपना भाई मानने से इनकार कर दिया. फिर तो दोनों की जंग दिनोंदिन बढ़ती गई और इस का असर शायद अर्पण पर उलटा ही पड़ता गया. इस माहौल से मैं तंग आ चुकी थी, लेकिन अर्पण की हर सहीगलत बात का पक्ष लेती रही. लेकिन मैं दिया और अर्पण दोनों के लिए एक सफल मां नहीं बन सकी,’’ कह कर वह फफकफफक कर रोने लगी. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा उस से क्या कहूं? जिस बात को जानने के लिए मैं बहुत उत्सुक थी, उस के बारे में इतना सपाट सच सुन कर मैं हतप्रभ रह गई थी. मैं ने धीरे से उस का हाथ दबा कर अपनापन जताया.

संध्या ने अपने को संभाल लिया था. वह मुझ से बोली, ‘‘मैं बहुत सालों से अपने अंदर ही घुटती रही हूं. न किसी को बता सकी और न ही कोई हल नजर आ रहा था. मैं ने अर्पण को अच्छा माहौल देने के लिए होस्टल भी भेजा पर वहां के नियम उसे रास नहीं आए. परिवार से तो मेरे डर ने मुझे हमेशा एक फासले पर ही रखा. आज इस दोराहे पर खड़ी मैं आप से पूछती हूं कि क्या मेरा फैसला कहीं गलत था? 2 बच्चों को एक परिवार दे कर अपने परिवार को खुशियां ही तो देना चाहा था मैं ने, लेकिन मुझे मिला क्या? आप तो मनोविज्ञान जानती हो, बताओ न खून का असर ज्यादा गहरा होता है या संस्कारों का? अर्पण को तो सभी अच्छी सुविधाएं और संस्कार देने का प्रयास किया तो फिर ऐसा क्यों हुआ?’’ मैं अपने को इन प्रश्नों से दबा हुआ सा महसूस कर रही थी. लेकिन मैं ने यह सोचते हुए कि सच्चे मन से किए गए कार्य कभी निष्फल नहीं होते. संध्या से पुन: मिलने की मन में ठान ली थी. और आज उसी सोच का परिणाम देख कर आंखें भर आई थीं. अर्पण तो आज सब के लिए एक मिसाल बन गया था.

ऐंटरटेनमैंट : शेखर का पत्नी के साथ क्यों लड़ाई हो रहा था

‘‘क्यातुम ने प्रैस के कपड़ों में अंडरवियर भी डाल दिया था?’’ शिखा ने पति शेखर से पूछा.

‘‘शायद… गलती से कपड़ों के साथ चला गया होगा,’’ शेखर बोला.

‘‘प्रैस वाले ने उस के भी क्व5 लगा लिए

हैं. अब ऐसा करना कि कल अंडरवियर पहनो

तो उस पर पैंट मत पहनना क्व5 जो लगे हैं,’’

शिखा बोली.

‘‘तुम भी बस… हर समय मजाक के मूड में रहती हो. कभीकभी सीरियस भी हो जाया करो.’’

‘‘अरे, हम तो हैं ही ऐसे… इसीलिए तो आज भी 50 की उम्र में भी हम से कोई शादी

कर ले.’’

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बेटी नेहा बोली, ‘‘तो पापा आप मेरे लिए बेकार में लड़का ढूंढ़ रहे हो… मम्मी की शादी करवा दो. वैसे भी मु झे शादी नहीं करनी.’’

शेखर ने पूछा, ‘‘क्यों बेटा?’’

‘‘पापा, मैं ने अब तक की जो जिंदगी जी है उस में ऐसा महसूस किया है… मैं शादी कर के अपनी आजादी को खो दूंगी… शादी एक बंधन है और मैं बंधन में नहीं बंध सकती. इस बारे में मैं मम्मी से सारी बात शेयरकर लूंगी,’’ नेहा ने स्पष्ट सा जवाब दिया.

तभी शेखर की नजर दरवाजे पर पड़ी. एक कुत्ता घुस आया था. शेखर ने शिखा से कहा, ‘‘तुम ने बाहर का दरवाजा भी ठीक से बंद नहीं किया. देखो कुत्ता घुस आया.’’

‘‘अरे, ठीक से तो देख लिया करो. यह कुत्ता नहीं कुतिया है. शायद तुम से मिलने आई है. मिल लो. फिर इसे बाहर का रास्ता दिखा देना,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम तो हर समय मेरे पीछे ही पड़ी रहती हो,’’ शेखर ने तुनक कर कहा.

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‘‘तुम्हारे पीछे नहीं तो क्या पड़ोसी के पीछे पड़ूंगी? वह भी तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा और ऐसा तो होता ही आया है कि पति आगेआगे और पत्नी पीछेपीछे,’’ शिखा ने झट जवाब दिया.

‘‘खैर, छोड़ो मै तुम से जीत नहीं सकता.’’

‘‘शादी भी एक जंग है. उस में जीत कर ही तो तुम मु झे लाए हो. यही सब से बड़ी जीत है…ऐसी पत्नी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगी,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा छोड़ो, अपने गुण बहुत बखान कर लिए तुम ने. अब मेरी सुनो,’’ शेखर ने कहा.

‘‘तुम्हारी ही तो सुन रही हूं अब तक.’’

‘‘अपनी नेहा के लिए रिश्ता आया है… नेहा ने मु झ से कहा था कि वह शादी नहीं करना चाहती. तुम जरा उस से बात कर लेना.’’

‘‘ठीक है श्रीमानजी जो आप की आज्ञा… शादी की इस जंग में पत्नी को जीत लाए थे. तब से अब तक आप के ही इशारों पर नाच रही हूं,’’ शिखा बोली.

‘‘अच्छा बहुत जोर की भूख लगी है. अब कुछ खिलाओपिलाओ,’’ शेखर ने कहा.

‘‘देखोजी, खिलानेपिलाने की नौकरी मैं ने नहीं बजाई. अब तुम नन्हे बच्चे तो हो नहीं… लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ रहे हो. वह उम्र तो तुम्हारी निकल चुकी.’’

‘‘ठीक है मेरी मां तू दे तो सही.’’

‘‘देखो मां शब्द का इस्तेमाल मत करो. घाटे में रहोगे. सोच लो फिर कुछ मिलने वाला नहीं. बस मां के प्यार पर ही आश्रित रहोगे.’’

‘‘अरे यार तेरे मांबाप ने तु झे क्या खा कर जना था?’’ शेखर के मुंह से निकला.

‘‘पूछूंगी जा कर उन से कि आप के दामाद को आप का राज पता करना है… इतने सालों बाद आज कुरेदन हो रही है उन को.’’

‘‘ठीक है, ठीक है. बस अब बहुत हो गया,’’ शेखर बोला.

‘‘अरे नेहा, बेटी मेरा चश्मा कहां है?’’ शेखर ने बेटी को आवाज दी.

‘‘अरे पापा, चश्मा आप के सिर पर ही

रखा है. इधरउधर क्यों ढूंढ़ रहे हो?’’ नेहा हंसते हुए बोली.

‘‘इन का हिसाब तो यह है कि बगल में छोरा शहर में ढिंढोरा,’’ शिखा बोली.

‘‘पूछूंगा बच्चू…’’ शेखर ने मुंह बनाते

हुए कहा.

‘‘वाहवाह, कभी बच्चू, कभी अम्मां, कभी मां. अरे जो रिश्ता है, उसी में रहो न?’’

‘‘तुम नहीं सम झोगी… वैसे भी चिराग तले अंधेरा… पूरी दुनिया में भी ढूंढ़ती, तो ऐसा पति नहीं मिलता. कल की ही बात लो. चीनी का डब्बा फ्रिज में रख दिया और जमाने में ढूंढ़ते हुए परेशान हो रही थी… बात करती है कि मैं जवान हूं…ये बुढ़ापे के लक्षण नहीं हैं तो और क्या है?’’

‘‘चलो, छोड़ो अब. बहुत हो गया. 1 कप चाय मिलेगी?’’

‘‘1 कप नहीं, एक बालटी भर लो,’’ शिखा ने कहा.

‘‘बस बहुत हो गया. शेर जब जख्मी हो जाता है न, तो ज्यादा खूंख्वार हो जाता है,’’ मेरी सहनशक्ति का इम्तिहान मत लो. जबान में मिस्री है ही नहीं.’’

‘‘हांहां, मेरी जबान में तो जहर घुला है.

कुएं के मेढक की तरह टर्रटर्र किए जाएंगे,’’ शिखा बोली.

‘‘कभी नहीं सम झोगी तुम… ये शब्द ही हैं, जो जिंदगी  में उल झन पैदा करते हैं. मुसकराहट जिंदगी को सुल झाती है, सम झी?’’

‘‘अरे बेटी नेहा 1 कप चाय बना दे. 1 कप चाय मांगना गुनाह हो गया.’’

‘‘हांहां, चाय तो नेहा ही बनाएगी… सारी जिंदगी छाती पर बैठा कर रखना इसे… मेरे हाथों में तो जहर है,’’ शिखा हाथ नचाते हुए बोली.

‘‘न… न… तुम्हारे हाथों में नहीं, तुम्हारी जवान में जहर है,’’ शेखर ने कहा.

‘‘मेरे लिए तो प्यार के 2 बोल भी नहीं… अब क्या मैं इतनी बुरी हो गई?’’

‘‘मैं ने कब कहा? अरे पगली, तेरे से अच्छी तो दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती… बस थोड़ा सा ज्यादा नहीं चुप रहना सीख ले. हर बात पर पलट कर वार मत किया कर… पगली अब इस उम्र में मैं कहां जाऊंगा?’’ शेखर बोला.

‘‘चाय पीयोगे?’’ शिखा ने दबे शब्दों में पूछा.

‘‘अरे, मैं तो कब से चाय के लिए तरस

रहा हूं.’’

‘‘अरे बेटी नेहा जरा आलू छीलना… सोच रही हूं चाय के साथ पकौड़े भी बना लेती. क्योंजी?’’ शिखा ने पूछा.

‘‘देर आए दुरुस्त आए,’’ शेखर ने हंसते

हुए कहा.

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