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Winter 2021 : सर्दियों में इन 6 परेशानियों का इलाज है हरा लहसुन

सर्दियों में कई तरह की सब्जियां बाजार में रहती हैं. इस दौरान जो सब्जी सबसे ज्यादा बाजार में दिखती है वो है हरा लहसुन. सर्दियों में इसे खाने से कई लाभ होते है. यहां हम इसके कुछ फायदे बता रहे हैं.

ब्‍लड शुगर को करे नियंत्रित

ब्लड सुगर पर नियंत्रण करने में हरा लहसुन काफी कारगर है. डायबिटीज के मरीजों को इसका सेवन जरूर करना चाहिए. ब्लडप्रेशर के मरीजों के लिए ये किसी दवा से कम नहीं है.

श्‍वसन तंत्र के लिए फायदेमंद

सांस की परेशानियों में इसका रोज सेवन बेहद फायदेमंद है. यह श्वसन तंत्र की कार्य प्रणाली को बेहतर बनाता है.

आयरन का स्‍त्रोत

हरे लहुसन में मौजूद प्रोटीन फेरोपौर्टिन कोशिका के अंदर आयरन को संग्रहित करता है, जिससे शरीर को आवश्यकतानुसार आयरन मिलता रहता है.

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दिमाग में ब्‍लड सकुर्लेशन बढ़ाए

दिमाग में ब्लड सकुर्लेशन को बेहतर करने में भी हरा लहसुन काफी फायदेमंद होता है. इस मौसम में आप दिमाग तेज करना चाहते हैं तो हरे लहसुन का सेवन करना शुरू कर दें.

गुड कौलेस्‍ट्रौल बढ़ाता है

हरे लहसुन में पौलीसल्फाइड की भरपूर मात्रा होती है. दिल की बीमारी में ये काफी लाभकारी होता है. इसके अलावा इसमें मैग्‍नीज की भरपूर मात्रा होती है, ये गुड कौलेस्ट्रौल के लिए महत्वपुर्ण कारक है. दिल की बेहतरी के लिए ये काफी कारगर होता है.

एंटीसेप्टिक की तरह करता है काम

हरे लहुसन में एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं. यह एक बेहतरीन एंटीसेप्टिक की तरह काम करता है. किसी भी तरह के घाव में ये काफी असरदार होता है. इसको नियमित खाने से आपके अंदर घावों को जल्दी भरने की क्षमता विकसित होती है.

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ट्रिक -भाग 2 : मां और सास के झगड़े को क्या सुलझा पाई नेहा?

“अरे बेटे उस के लिए मैं ने 2 लोग रखे हुए हैं , माधुरी और निलय. दोनों अच्छी तरह बिजनेस संभाल रहे हैं. वैसे भी यह समय लौट कर नहीं आने वाला. सेमिनार बाद में भी अटैंड कर सकती हूं.”

“ओके मौम फिर आप आ जाओ. वैसे यहां नेहा की मम्मी भी आई हुई हैं. आप को उन की कंपनी भी मिल जाएगी.”

” वह कब आईं ?”

“वहीं करीब 15 दिन पहले.”

“चल ठीक है मैं फोन रखती हूं.”

दो दिन बाद ही अभिनव की मां भी पहुंच गईं. ऊपर से तो नेहा की मां ने उन का दिल खोल कर स्वागत किया और अभिनव की मां ने भी उन्हें गले लगाते हुए कहा कि हाय कितना अच्छा हुआ साथ रहने का मौका मिलेगा. पर अंदर ही अंदर दोनों के मन में एकदूसरे को ले कर प्रतियोगिता की भावना थी. जल्दी ही यह बात सामने भी आने लगी.

नेहा की मां सुबह 5 बजे उठ जाती थीं और नेहा को सैर के लिए ले जाती थीं. उन की देखादेखी अभिनव की मां 5 बजे से भी पहले उठ गईं और नेहा को योगासन सिखाने लगीं. उन्होंने टहलने के बजाय नेहा को प्रैग्नैंसी के समय काम आने वाले कुछ आसन करने का दबाव डालना शुरू किया. इधर नेहा की मां उसे अपने साथ वॉक पर ले जाना चाहती थीं. नेहा असमंजस में थी कि किस की सुने और किस की नहीं.

इस बात पर नेहा की मां उखड़ गईं,” बहन जी यह मेरी बेटी है और मैं इस वक्त इसे वॉक पर ले जाऊंगी. आप कोई और समय देख लो.”

” पर बहन जी आप समझ नहीं रहीं. व्यायाम का यही समय होता है. मैं ने अपनी प्रैग्नैंसी में सास के कहने पर योगा किया था तो देखो कैसा हैल्दी बेटा पैदा हुआ,” अभिनव की मां ने अपनी बात रखी.

अभिनव ने तुरंत समाधान निकाला और अपनी मां को समझाता हुआ बोला ,” मौम नेहा सुबह व्यायाम कर लेगी और शाम में योगा करेगी. वैसे भी योगा शाम में ज्यादा अच्छा होता है क्यों कि उस समय एनर्जी भी मैक्सिमम होती है.”

अब तो रोज ही किसी न किसी बात पर ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिलने लगा. जो काम नेहा की मां करने को कहती, अभिनव की मां कुछ अलग राग अलापने लगती. वैसे दोनों ही नेहा के हित की बात करतीं मगर कहीं न कहीं उन का मकसद दूसरे को नीचा दिखाना और खुद को ऊपर रखना भी होता था. अभिनव और नेहा कुछ दिनों तक तो यह सोचते रहे कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा मगर जल्द ही उन की समझ में आने लगा कि यहां कंपटीशन चल रहा है. दोनों अपनीअपनी चलाने की कोशिश में लगी रहतीं हैं.

उस दिन भी सुबह उठते ही नेहा की मां ने बेटी का माथा सहलाते हुए उसे जूस का गिलास पकड़ाया और बोलीं,” ले बेटा गाजर और चुकंदर का जूस पी ले. ऐसे समय में यह जूस बहुत फायदेमंद होता है. ”

तब तक अभिनव की मां भी पहुंच गईं,” अरे बेटा जूसवूस पीने से कुछ नहीं होगा. तुझे सुबहसुबह अनार और सेब जैसे फल कच्चे खाने चाहिए. इस से शरीर को फाइबर भी मिलेगा और शक्ति भी. यही नहीं अनार खून की कमी भी पूरी कर देगा”

नेहा हक्कीबक्की दोनों को देखती रही फिर दोनों की चीजें लेती हुई बोली,” मम्मी जी ये दोनों चीजें मुझे पसंद हैं. मैं जूस भी पी लूंगी और फल भी खा लूंगी. आप दोनों बाहर टहल कर आइए. आज मुझे आराम करना है. ”

उन्हें बाहर भेज कर नेहा ने लंबी सांस ली और अभिनव को आवाज लगाई. अभिनव बगल के कमरे से निकलता हुआ बोला,” यार नेहा अब तो दोनों सुबह से ही तुझे घेरे रहने का कोई मौका नहीं छोड़ती. इधर रात में भी 12 से पहले जाती नहीं हैं. हमारे पास अपना पर्सनल टाइम तो बचा ही नहीं.”

“हां अभिनव मैं भी यही सोच रही हूं. ये दोनों छोटीछोटी बातों पर खींचातानी में लगी रहती हैं. मेरी मम्मी को लगता है कि वह लेक्चरर हैं सो उन्हें ज्यादा नॉलेज है तो वहीँ तुम्हारी मम्मी को इस बात का गुमान है कि उन्होंने अपने दम पर तुम्हें पालापोसा है. सो हमारे लिए भी वह अपनी सलाह ही ऊपर रखती हैं.”

“यार मैं तो तुम से 4 पल प्यार की बातें करने को भी तरस जाता हूं. समझ नहीं आ रहा कि खुद को ऊपर दिखाने के इन के शीतयुद्ध में हम अपना सुकून कब तक खोते रहेंगे?”

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तभी दोनों माएं टहल कर लौट आईं. रोज की तरह दोनों ने ही वाकयुद्ध शुरू करते हुए कहा,” सरला जी आप नेहा को मिठाइयां ज्यादा मत खिलाया करो. यह मेरी बच्ची की सेहत के लिए सही नहीं.”

“पर नैना जी मैं इसे गोंद और मेवों की मिठाइयां खिलाती हूं जो मैं ने अपने हाथों से बनाई हैं. आप नहीं जानतीं मेरी सास भी प्रैग्नैंसी के समय मुझे यही सब खिलाती थीं. तभी तो देखो अभिनव के पैदा होने में मुझे जरा सी भी तकलीफ नहीं हुई थी. अभिनव 4 किलोग्राम का पैदा हुआ था. देखने में इतना हट्टाकट्टा था और ऐसे मुस्कुराता रहता था कि नर्स भी बेवजह इसे गोद में उठा कर घूमती रहती थी.”

अभिनव ने कनखी से नेहा की तरफ देखा और दोनों मुस्कुरा उठे. नेहा की मां कहां हार मानने वाली थीं. तुरंत बोलीं,” अजी हमारी सास ने तो तरहतरह के आयुर्वेदिक काढ़े और फलों के सूप पिलाए थे तभी तो देखो नेहा बचपन से अब तक कभी बीमार नहीं पड़ी और कितना खिला हुआ रंग है इस का. मेरी जेठानी का बेटा बचपन में कभी खांसी तो कभी बुखार में पड़ा रहता था पर नेहा मस्त खेलतीकूदती बड़ी हो गई.

अभिनव की मां भी तुरंत बोल उठीं,” अरे बहन जी ऐसा भी कौन सा काढ़ा पिला दिया कि गर्भ के समय पी कर लड़की अब तक तंदुरुस्त रह जाए. ऐसा थोड़े ही होता है. आप भी जानें किस भ्रम में जीती हो.”

” मैं भ्रम में नहीं जीती बहन जी. हर बात का प्रैक्टिकल अनुभव कर के ही बताती हूं. मेरे मोहल्ले में तो मेरी इतनी चलती है कि किसी की भी बहू प्रैग्नैंट हो तो उन की सास पहले मुझ से सलाह लेने आती है कि बहू के खानेपीने का ख्याल कैसे रखा जाए. भ्रम में तो आप जीती हो.”

देखतेदेखते दोनों के बीच रोज की तरह घमासान छिड़ गया था. नेहा और अभिनव फिर से इस झगड़े को शांत कराने में जुट गए. अब तो ऐसा रोज की बात हो गई थी. कई बार तो दोनों इस बात पर झगड़ पड़ते कि आने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की. नेहा और अभिनव को पूरे दिन इन दोनों माओं के पीछे रहना पड़ता. एकदूसरे के साथ वक्त बिताने और प्यार जताने का अवसर ही नहीं मिलता.

एक दिन आजिज आ कर अभिनव ने कहा,” यार नेहा अब हमें अपनी इस बड़ी वाली समस्या का कोई हल निकालना ही पड़ेगा.”

” क्यों न हम एक ट्रिक आजमाएं. मैं बताती हूं क्या करना है,” कहते हुए नेहा ने अभिनव के कानों में कुछ कहा और दोनों मुस्कुरा उठे.

अगले दिन सुबहसुबह नेहा के पापा का कॉल आया. वह अपनी पत्नी से बात करना चाहते थे.

नेहा की मां ने फोन उठाया, “हां जी कैसे हो आप?”

” बस आप की बहुत याद आ रही है बेगम साहिबा.”

” ऐसी भी क्या याद आने लगी? अभी तो आई हूं. ”

“मैडम जी आप अभी नहीं 2 महीने पहले गई थीं और जानती हो पिछले संडे से मेरी तबीयत बहुत खराब है.” पिताजी ने कहा.

” हाय ऐसा क्या हो गया और बताया भी नहीं,” घबराते हुए नेहा की मां ने पूछा.

“बस बीपी हाई हुआ और मुझे चक्कर आ गया. मैं बाथरूम में गिर पड़ा. दाहिने पैर के घुटने बोल गए हैं. चल नहीं पा रहा हूं. अब तू ही बता बहू से हर काम तो नहीं करवा सकता न. बेटे ने स्टिक ला कर दी है पर दिल करता है तेरे कंधों का सहारा मिल जाता तो बहुत सुकून मिलता.”

“अरे इतना सब हो गया और आप मुझे अब बता रहे हो. पहले फोन कर दिया होता तो मैं पहले ही आ जाती.”

“कोई नहीं गुल्लू अब आ जा. मैं ने अभिनव से कह दिया है तेरा टिकट बुक कराने को. बस तू आ जा.”

“आती हूं जी आप चिंता न करो. मुझे बस नेहा की चिंता थी सो यहां रुकी हुई थी,” मां ने नेहा की तरफ देखते हुए कहा.

“नेहा की सास तो है न वहां. कुछ दिन वह देख लेंगी. आप हमें देख लो,” कह कर पिताजी शरारत से मुस्कुराए.

नेहा की मां हंस पड़ी,” तुम भी न कभी नहीं बदलोगे. चलो मैं आती हूं.”

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अभिनव ने टिकट बुक करा रखी थी. अगले ही दिन नेहा की मां नेहा को हजारों हिदायतें दे कर अपने घर चली गईं. नेहा और अभिनव ने राहत की सांस ली. नेहा की मां के जाने के बाद घर में शांति छा गई. अब सास जितना जरूरी होता उतना ही हस्तक्षेप करतीं. नेहा और अभिनव को भी एकदूसरे के लिए समय मिलने लगा.

 

मोटे अनाजों की खेती

लेखक-प्रो. रवि प्रकाश

लघु या छोटी धान्य फसलों जैसे मंडुआ, सावां, कोदों, चीना, काकुन आदि को मोटा अनाज कहा जाता है. इन सभी फसलों के दानों का आकार बहुत छोटा होता है. लघु अनाज पोषक तत्त्वों और रेशे से भरपूर होने के चलते इस का औषधीय उपयोग भी है. यह आयरन, कैल्शियम और प्रोटीन के साथसाथ फास्फोरस का भी अच्छा स्रोत?है. मंडुआ से रोटी, ब्रेड, सत्तू, लड्डू, बिसकुट आदि तैयार किए जाते हैं, वहीं सावां, कोदों, चीना व काकुन को चावल, खीर, दलिया व मर्रा के रूप में उपयोग करते हैं और पशुओं को चारा भी मिल जाता है. जहां मुख्य अन्य फसलें नहीं उगाई जा सकती हैं,

वहां पर ये फसलें आसानी से उगा ली जाती हैं. ये फसलें सूखे व अकाल को सहन कर लेती हैं और 70-115 दिन में तैयार हो जाती?हैं. फसलों पर कीट व रोगों का प्रकोप कम होता है. ग्रामीण क्षेत्रों में इन मोटे अनाजों के बारे में अनेक कहावतें प्रचलित हैं, जैसे : मंडुआ मीन, चीन संग दही, कोदों ?भात दूध संग लही. मर्रा, माठा, मीठा. सब अन्न में मंडुआ राजा. जबजब सेंको, तबतब ताजा. सब अन्न में सावां जेठ. से बसे धाने के हेठ. खेत की तैयारी मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें. इस के बाद 2-3 बार हैरो से गहरी जुताई करें.

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मंडुआ की उन्नत किस्में जल्दी पकने वाली प्रजाति (90-95 दिन) वीआर 708, वीएल 352, जीपीयू 45 है, जिस की उपज क्षमता प्रति बीघा (2500 वर्गमीटर/20 कट्ठा) 4-5 क्विंटल है. मध्यम व देर से पकने वाली प्रजाति (100-115 दिन) जीपीयू 28, 67, 85, आरएयू 8 है. इस की उपज क्षमता 5-6 क्विंटल प्रति बीघा है. सावां की प्रजाति वीएल 172 (80-85 दिन), वीएल 207, आरएयू 3, 9 (85-90 दिन). कोदों प्रजाति जेके 65, 76, 13, 41, 155, 439 (अवधि 85-90 दिन), जीपीयूके पाली, डिडरी (अवधि 100-115 दिन) है.

चीना की प्रजाति कम अवधि (60-70 दिन) एमएस 4872, 4884 व बीआर 7, मध्यम व देर से पकने वाली प्रजाति (70-75 दिन अवधि) जीपीयूपी 21, टीएनएयू 151, 145 है. काकुन की उन्नत किस्में आरएयू 2, को. 4, अर्जुन (75-80 दिन अवधि) व एसआईए 326, 3085, बीजी 1, मध्यम व देर से (80-85 दिन) पकने वाली है. बीज की दर प्रति बीघा मंडुआ 2.5-3.0 किलोग्राम सावां, कोदों, चीना, काकुन का 2.0 से 2.5 किलोग्राम की आवश्यकता होती है. सभी फसलों की बोआई जून से जुलाई महीने तक की जाती है. बोआई की दूरी मंडुआ में लाइन से लाइन की दूरी 20-25 सैंटीमीटर और पौध से पौध की दूरी 10 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

सावां, कोदों, चीना व काकुन के लिए 25-30 सैंटीमीटर लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10 सैंटीमीटर रखें. सभी फसलों की बोआई की गहराई 2 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. खाद एवं उर्वरक सभी फसलों में मिट्टी की जांच के आधार पर ही खाद व उर्वरक का प्रयोग करें.

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बोआई से पहले 17 किलोग्राम यूरिया, 62 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश का प्रयोग प्रति बीघा में करें. 25-30 दिन की पौध होने पर निराई के बाद 17 किलोग्राम यूरिया डालें. उपज क्षमता सावां, कोदों, चीना व काकुन की जल्दी पकने वाली प्रजातियों की 3-4 क्विंटल और मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों की उपज 3.50 से 4.50 क्विंटल प्रति बीघा है. अंत:वर्ती खेती अरहर, ज्वार व मक्का के साथ आसानी से मोटे अनाजों की अंत:खेती की जा सकती है.

धर्म और राजनीति: महिला विमर्श- हिंदू धर्म, आरएसएस और कांग्रेस

महिला विमर्श हिंदू धर्म, आरएसएस और कांग्रेस द्य शैलेंद्र सिंह कांग्रेस महिला विमर्श के मसले पर सच में संवेदनशील दिखाई दे रही है या चुनावी जमीन तैयार कर रही है, यह बाद में पता चलेगा, पर उत्तर प्रदेश में महिलाओं को 40 प्रतिशत सीटें देने और महिला कांग्रेस दिवस पर राहुल गांधी का महिलाओं के नाम आरएसएस पर बेबाक बयान, बहुतकुछ इशारा करता है. आरएसएस जिस मनुवादी विचारधारा का समर्थक है उस में कहा गया है कि ‘महिला को बचपन में पिता के अधीन, यौवनवास्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए.

’ पौराणिक ग्रंथों में महिला को ‘पितृसत्ता’ के अधीन रहने को ‘स्त्रीधर्म’ बताया गया. सीता, अहल्या, द्रौपदी, कुंती, गांधारी जैसी जिन महिलाओं को देवी की उपाधि दी गई, ‘पितृसत्ता’ द्वारा उन का भी तिरस्कार किया गया था. राहुल गांधी के आरएसएस की दुखती नस पर दबाव डालने से आरएसएस के लोग तिलमिला गए. जबकि सभी को यह पता है कि आरएसएस का पूर्णकालिक प्रचारक बनने के लिए गृहस्थ जीवन को छोड़ना पड़ता है. आरएसएस में प्रचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिस ने शादी नहीं की है. राहुल गांधी ने जो बात कही उस को चुनाव की जगह पर समाज की हालत के साथ मिला कर देखा जाए तो बेहतर विश्लेषण हो सकेगा. भारतीय महिला कांग्रेस की स्थापना दिवस पर बोलते हुए कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को महिलाविरोधी बताते हुए कहा कि ‘‘भाजपा और आरएसएस महिलाशक्ति को दबाते हैं.’’

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राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘महात्मा गांधी के आसपास 3-4 महिलाएं देखी जाती थीं. क्या किसी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ महिलाओं को देखा है. इस की वजह यह है कि उन का संगठन महिलाशक्ति को दबाता है, क्रश करता है. भाजपा और आरएसएस खुद को हिंदूवादी पार्टी कहते हैं. 100-200 साल के अंदर अगर किसी व्यक्ति ने हिंदू धर्म को सम?ा और उस को अपनी जीवनशैली में उतारा तो वे महात्मा गांधी थे. यह बात आरएसएस और भाजपा दोनों ही मानते हैं. अगर गांधीजी हिंदू थे तो उन की हत्या क्यों की गई? आरएसएस और भाजपा ने कभी किसी महिला को प्रधानमंत्री नहीं बनाया क्योंकि ये महिलाविरोधी हैं. भाजपा ने महिला आरक्षण बिल को संसद में पास नहीं होने दिया.’’ महिलाओं को प्रोत्साहन नहीं राहुल गांधी की बात बहुत हद तक सही है.

भारतीय जनता पार्टी में कई ऐसी महिला नेता रही हैं जिन्होंने अपने बलबूते अपनी पहचान बनाई. लेकिन आरएसएस ने इस तरह की महिला नेताओं को कभी आगे नहीं बढ़ाया. इन में सुषमा स्वराज, उमा भारती, हेमा मालिनी, मेनका गांधी, स्मृति ईरानी जैसे तमाम नाम हैं. सुषमा स्वराज योग्यता में कभी भी किसी पुरुष नेता से कम न थीं. सुषमा स्वराज के पिता हरदेव शर्मा अंबाला, हरियाणा के रहने वाले थे. वे शुरू से ही आरएसएस के कायकर्ता थे. मूलरूप से लाहौर के धरमपुरा के रहने वाले थे वे. बंटवारे के बाद वे अंबाला में बस गए थे. सुषमा की शादी स्वराज कौशल से हुई. उन्होंने अपना कैरियर वकील के रूप में शुरू किया. 1970 के दशक में सुषमा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना कैरियर शुरू किया. वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. लोकसभा स्पीकर बनीं.

इस के बाद भी आरएसएस ने उन को उतना महत्त्व नहीं दिया जितने की वे हकदार थीं. इसी तरह से उमा भारती हिंदुत्व से जुड़ी थीं. मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं और केंद्र सरकार में मंत्री रहीं. इस के बाद भी उमा भारती को वैसा स्थान नहीं मिला जिस तरह से कल्याण सिंह को दिया गया. इस कड़ी में हेमा मालिनी, मेनका गांधी और स्मृति ईरानी जैसे तमाम नाम भी शामिल हैं, जिन को आरएसएस ने उतना महत्त्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था. महिला नेताओं को आगे न बढ़ाने के कारण ही भाजपा में महिला नेता की कमी दिखती है. किसी भी प्रदेश में उस के पास मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, शीला दीक्षित और नंदिनी सप्तपदी जैसी महिला नेता नहीं है, जो अपने बलबूते पर अपनी पहचान बनाने में सफल हो सकी हो. सरकारी नीतियों में महिलाओं को राहत नहीं मोदी सरकार की तमाम ऐसी योजनाएं हैं जो महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं.

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मोदी सरकार नोटबंदी को सब से सफल योजना बताती है. नोटबंदी में सब से अधिक परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ी. गांवकसबे से ले कर शहर तक की महिलाओं ने छिपा कर पैसा रखा था वह उन को बाहर निकालना पड़ा. इस के बाद मोदी सरकार के दौर में महंगाई सब से अधिक बढ़ी है, जिस का प्रभाव किचन व महिलाओं पर सब से अधिक पड़ा है. महिलाओं को घर चलाने के लिए जो पैसा मिलता था उसी में कटौती कर के वे अपनी बचत करती थीं. महंगाई के दौर में किचन का बजट गड़बड़ा गया. ऐसे में बचत कहां से होगी, सम?ा जा सकता है. यही नहीं, नोटबंदी और जीएसटी के कारण छोटेछोटे रोजगार करने वाली महिलाएं वकील और सरकारी कर्मचारियों के पास चक्कर लगाती घूम रही हैं. रसोई गैस के दाम बढ़ने से महिलाओं को दिक्कत हो रही है.

इस के साथ ही साथ भारतीय संस्कृति के नाम पर तरहतरह के दबाव महिलाओं पर बनाए जाते हैं. कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की बात कही तो सब से अधिक दिक्कत भाजपा को ही हुई. इस की प्रमुख वजह यह है कि आरएसएस महिला सम्मान की बात तो करता है लेकिन उस को अधिकार दिए जाने के मामले में मौन धारण कर लेता है. जिस की वजह से राहुल गांधी जैसे नेताओं को आरएसएस पर बोलने का मौका मिला है. मनुवादी विचारों में महिलाओं को देवी बना कर रखने की बात कही गई पर उन को कभी अधिकार नहीं दिए गए, जिस की वजह से महिला नेता केवल शोपीस बन कर रह जाती हैं.

राहुल के बयान पर जवाबी हमला कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के बयान पर आरएसएस और भाजपा से जुड़े लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर दिखने लगी है. भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने लिखा, ‘‘वैचारिक निरक्षर राहुल गांधी तो संघ पर अनापशनाप बोलते रहते हैं. कोई आश्चर्य नहीं होता. राहुल गांधी अगर हिंदू हैं तो बताएं कि राममंदिर निर्माण में एक रुपया भी दिया है?’’ भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने लिखा कि राहुल गांधी द्वारा महात्मा गांधी को पहले भी राजनीति में घसीटने का प्रयास किया जा चुका है. उन पर केस हुआ था, माफी भी मांगी थी. अब वे फिर से वही गलती कर रहे हैं. राहुल गांधी नासम?ा हैं, वे गलती पर गलती करते ही रहेंगे.’’ राहुल गांधी आरएसएस को ले कर हमलावर होते रहते हैं. किसान आंदोलन में राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘आरएसएस हमले करना सिखाता है.’’ ऐसे ही अलगअलग अवसरों पर राहुल गांधी के ऐसे बयान आते रहते हैं.

राहुल अकेले ऐसे नेता हैं जो आरएसएस पर खुल कर बोलते रहते हैं. यही वजह है कि आरएसएस और उस से जुड़े लोग भी राहुल गांधी की आलोचना व उन्हें ‘नासम?ा’ ‘पप्पू’ साबित करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते. सोशल मीडिया पर सक्रिय भाजपा का आईटी सैल लगातार राहुल गांधी को पप्पू साबित करने और उन का मखौल उड़ाने में पीछे नहीं रहता. राहुल गांधी कितनी भी सही बात कहें, उन का मजाक उड़ाने का प्रयास किया जाता है ताकि जनता राहुल गांधी का भरोसा न करे. नोटबंदी से ले कर कोरोना तक राहुल गांधी ने जनता को सच दिखाने का काम किया था. लेकिन आईटी सैल और व्हाट्सऐप के फेक मैसेज इस तरह से सच को ?ाठ बनाने में लग गए कि जनता को सच ?ाठ ही नजर आने लगा. आरएसएस को क्यों पसंद नहीं है राहुल गांधी राहुल गांधी आरएसएस पर हमलावर रहते हैं और आरएसएस राहुल गांधी पर. इस की वजह बहुत साफ है.

आरएसएस और कांग्रेस के बीच वैचारिक टकराव हमेशा रहा है. आरएसएस की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को हुई थी. कांग्रेस मानती है कि यही वह दौर था जब देश में हिंदुत्व को ले कर राजनीति शुरू हुई, जिस के फलस्वरूप देश का विभाजन हुआ. आरएसएस देश के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को दोषी मानता था, जिस के परिणामस्वरूप 1948 में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी. 30 जनवरी, 1948 को घटित इस घटना के बाद आरएसएस पर पहली बार प्रतिबंध लगाया गया था. उस समय आरएसएस के सरसंघ चालक गुरु गोलवलकर को बंदी भी बनाया गया था. करीब एक साल बाद 11 जुलाई, 1949 को कुछ शर्तों के साथ यह प्रतिबंध हटाया गया था. इस के बाद 1975 में इमरजैंसी के समय भी आरएसएस पर 2 साल के लिए प्रतिबंध लगा था.

आरएसएस पर तीसरी बार 1992 में 6 माह का प्रतिबंध लगा था जब अयोध्या में ढांचा गिराया गया था. इन घटनाओं के कारण आरएसएस को यह लगता है कि कांग्रेस के कारण ही उस पर बारबार प्रतिबंध लगा है. आरएसएस यह कभी नहीं चाहता कि कांग्रेस सत्ता में आए. राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी को विदेशी कहा गया, गोरी चमड़ी की जर्सी गाय कहा गया ताकि देश की जनता उन को स्वीकार न करे. इस के बाद भी सोनिया गांधी ने 2004 में भाजपा की अटल बिहारी सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया. इस के बाद 2014 तक 10 साल कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखा. अगर 2024 में भाजपा सत्ता से बाहर होती है, फिर सत्ता में उस की वापसी कठिन हो जाएगी.

इस कारण आरएसएस और भाजपा सरकार से बाहर नहीं होना चाहते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए वे हर संभव काम करने को तैयार हैं. आरएसएस कई बार अपने लोगों को भी यह सम?ाता है कि कांग्रेस का विरोध क्यों जरूरी है. इस में यही कहा जाता है कि कांग्रेस की जब मजबूत सरकार आ जाएगी तो आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऐसे में पहली जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस को सत्ता में आने से रोका जाए. अगर राहुल गांधी की पीढ़ी को सत्ता में आने से रोक लिया गया तो कांग्रेस का वजूद खत्म हो जाएगा. फिर भाजपा और आरएसएस को रोकने वाला कोई दूसरा दल नहीं होगा. इस कारण आरएसएस राहुल गांधी को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखना चाहता है. हिंदू गोलबंदी को सम?ा गए राहुल गांधी 2014 के बाद भले ही कांग्रेस 2 लोकसभा चुनाव हार गई हो, लेकिन उस ने आरएसएस और भाजपा पर हमले जारी रखे. सरकार के गलत कामों का विरोध किया.

इस में नोटबंदी और किसान आंदोलन प्रमुख रहे हैं. राजनीतिक रूप से कांग्रेस का भाजपा पर हमला करना सम?ा जा सकता है पर जिस तरह से राहुल गांधी आरएसएस को ले कर हमला करते हैं, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर हमला करते हैं, वह आरएसएस को बहुत नागवार गुजरता है. यही कारण है कि आरएसएस राहुल गांधी को कभी पसंद नहीं करता. आरएसएस को यह पता है कि कांग्रेस अकेली पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बन सकती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ही भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकती है. 2014 के बाद जिस तरह से भाजपा का उदय हुआ है उसे आरएसएस अपना गोल्डन पीरियड मान रहा है.

ऐसे में वह 2024 में लोकसभा चुनाव किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहता है. राहुल गांधी यह सम?ा गए हैं कि भाजपा पर हमले करने के पहले उस की विचारधारा और उस को चलाने वालों पर हमले होने चाहिए. इसी कारण वे आरएसएस की मनुवादी नीतियों पर हमला करते हैं. इन में महिला, दलित और गरीब शामिल होते हैं. राहुल गांधी ने आरएसएस के महिलाविरोधी होने का बयान भी इसी दिशा में दिया है. फरवरीमार्च 2022 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों में भाजपा उत्तर प्रदेश को केंद्र में रख कर अपनी चुनावी रणनीति बना रही है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने महिलाओं को आगे करने का अभियान चलाया है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने नारा दिया है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं.’ राहुल गांधी ने कांग्रेस को महिलाओं को मंच देने वाली पार्टी बताया और भाजपा को महिलाविरोधी. भाजपा को महिलाविरोधी बताते हुए राहुल गांधी ने आरएसएस को भी जोड़ लिया. हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत राजनीतिक बहस के इतर अगर सम?ाने की कोशिश की जाए कि हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत क्या है तो यह साफ पता चलता है कि हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत दयनीय रही है. आरएसएस जिस मनुवाद की विचारधारा को मानता है, उस में महिलाओं को किसी भी तरह के अधिकार देने की बात नहीं कही गई है.

मनु ने कहा कि ‘महिला को बचपन में पिता के अधीन, यौवनवास्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए.’ इस विचारधारा से महिलाओं के अधिकारों का हनन शुरू हो गया. धीरेधीरे महिलाओं को दोयम दर्जे का मान लिया गया. महिलाओं के साथ अत्याचारों का सिलसिला शुरू हो गया. उस पर तरहतरह की पाबंदियां लगाई जाने लगीं जिन में परदे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, चारदीवारी में रहना और धर्म की बातों को मानना प्रमुख था. यहीं से महिला भोग्य के रूप में बदलती चली गई. महिला का प्रमुख काम संतान पैदा करना रह गया. तमाम व्रतत्योहार ऐसे बनाए गए जिस से वह पूजापाठ में लीन रह सके.

पौराणिक ग्रंथों में इस के प्रमाण भी मिलते हैं. द्वापर युग में द्रौपदी इस का सब से बड़ा उदाहरण है. द्रौपदी के साथ जैसा हुआ वैसा किसी अन्य महिला के साथ नहीं हुआ. द्रौपदी ने अर्जुन के साथ विवाह किया. इस के बाद भी सास के कहने पर उसे 5 पतियों के साथ रहना पड़ा. यही नहीं, किसी वस्तु की तरह उस को जुए में दांव पर लगा दिया गया जहां भरी सभा में उसे दुर्योधन के हाथों अपमानित होना पड़ा. धर्म के प्रभाव में धीरेधीरे महिलाओं की हालत और भी खराब होती चली गई. कोशिश यह की जाने लगी कि महिलाओं को जन्म देते ही मार दिया जाए. धर्म में पिंडदान को बहुत महत्त्व दिया गया. पिंडदान करने का अधिकार बेटे को दिया गया. ऐसे में हर किसी की चाहत बेटे की होने लगी. पुत्री के जन्म को भेदभाव की नजर से देखा जाना शुरू हो गया. ‘पितृसत्ता’ और ‘पतिव्रत धर्म’ मनु और याज्ञवल्क्य जैसे लोगों के द्वारा महिलाओं पर ‘पतिव्रत धर्म’ का पालन करने और पति को परमेश्वर का रूप मानने का आदेश दिया जाने लगा.

11वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के काल में महिलाओं पर पाबंदियां बढ़ने लगीं. यह वह दौर था जब भारत पर मुसलमानों का आक्रमण शुरू हुआ. बादशाहों ने जोरजबरदस्ती कर के धर्मपरिवर्तन करवाया तथा महिलाओं के साथ ज्यादतियां शुरू कर दीं. यहीं से महिलाओं में परदा प्रथा शुरू हुई. महिलाओं को घर की चारदीवारी की कैद में रहने के लिए मजबूर किया जाने लगा. बालविवाह बढ़ गए. शिक्षा के रास्ते बंद हो गए. सती प्रथा शुरू हो गई. महिलाओं को घर के कामकाज तक ही सीमित कर दिया गया. पति परमेश्वर, पतिव्रत धर्म और पति के आदेशों पर महिलाओं को चलने को ही नैतिकता कहा जाने लगा. महिलाओं को जन्म से मृत्यु तक पुरुषों के अधीन कर दिया गया.

महिलाओं को हर तरह से गुलाम बना कर रखा जाने लगा. सैक्स के लिए उन्हें वेश्यालयों में बेचा जाने लगा. दक्षिण भारत में कुंआरी कन्याओं को देवदासी बना कर मंदिरों में भेजा जाने लगा जहां उन का शोषण होता था. हिंदू धर्म की व्यवस्था पुरुष प्रधान हो गई. पुरुष अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए महिलाओं का उपयोग एक वस्तु की तरह करने लगा. आज भी लड़कियों की भ्रूण हत्या की जाती है. धर्म की आड़ में अभी भी महिलाओं का उत्पीड़न किया जाता है. महिलाओं को नहीं है धार्मिक अधिकार महिलाओं की पूरी जीवनशैली को नियंत्रण में करने का काम धर्म ने किया. मंदिरों या दूसरी धार्मिक जगहों पर महिलाओं का प्रवेश तक उन के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. धर्म यह तो चाहता है कि महिलाएं धर्म का पालन करें पर उन को किसी भी तरह का अधिकार नहीं देना चाहता.

धर्म महिलाओं के साथ भेदभाव करता है. माहवारी को ले कर उस ने तमाम रिवाज बना रखे हैं. उस समय महिला के साथ अछूत सा व्यवहार किया जाता है. धार्मिक कर्मकांड में भी उन के साथ भेदभाव किया गया. पिंडदान से ले कर तमाम अधिकार उन को नहीं दिए गए. इसी राह पर चलते हुए उन को पिता की जायदाद से भी बेदखल किया गया. कुछ सालों में ऐसी तमाम घटनाएं घटीं, जिन को देखने से महिलाओं के साथ धार्मिक भेदभाव देखा जा सकता है. केरल के सबरीमला मंदिर, महाराष्ट्र के शनि शिगणापुर मंदिर और मुंबई के हाजी अली में भी महिलाओं का प्रवेश विवादों में रहा है. सबरीमाला में 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मसला सुप्रीम कोर्ट तक गया. शनि शिगणापुर में महिलाओं के प्रवेश पर विवाद है. माना जाता है कि महिलाओं के प्रवेश से यह स्थान अपवित्र हो जाता है.

वैसे, महिलाओं को खुद ही ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहिए जहां उन के मान और सम्मान को चोट पहुंचाई जाती हो. धर्म तो हमेशा से ही महिलाओं के मानसम्मान पर ठेस पहुंचाता है. धर्म और परंपरा के नाम पर महिलाओं पर पाबंदी लगाई जाती है. सबरीमला में यह परंपरा 500 साल पुरानी और शनि शिगणापुर मंदिर में इसे 400 साल पुरानी बताई जाती है. 21वीं सदी में भी यह परंपरा टूट नहीं सकती. धर्म यह मानता है कि महिलाओं से धर्म को खतरा होता है. आदमी भले ही पुरानी पंरपरा तोड़ रहे हों पर वे यह नहीं चाहते कि महिलाएं यह परंपरा तोड़ें. अगर परंपरा की बात करें तो आदमी धोतीकुरता पहनते थे. आज उन का पहनावा बदल गया है. परंपरा तो समुद्र पार न करने की भी थी. मगर आज लोग विदेश जा रहे हैं. परंपरा तो मंदिर और मसजिद में लाउडस्पीकर लगाने की भी न थी. अब लग रहे हैं. धर्म के नाम पर लोगों को जो पंसद था उस को अपना लिया और जो नापसंद था उस पर पाबंदी लगा दी.

शनि मंदिर, सबरीमाला और हाजी अली में महिलाओं को परंपरा के नाम पर रोका जाता है. यह परंपरा पवित्र है, इस से सम?ाता कोई नहीं करना चाहता. महिलाएं नौकरी, सिनेमा, सेना, संसद और विधानसभा में जाने के बाद भी पुरुष के बराबर नहीं हो सकती हैं. महिलाओं के साथ धार्मिक रूप से यह भेदभाव कायम है. महिलाओं से मंदिर अपवित्र होता है. कुछ मंदिरों में माहवारी के नाम पर महिलाओं को रोका जाता है. कहीं दलित, गैरबिरादरी धर्म के नाम पर रोका जाता है. मासिकधर्म महिलाओं की प्रजनन क्षमता का सूचक है, जिस के कारण पुरुष पैदा होते हैं, जिस को धार्मिक परंपरा माना जाता है. असल में, यह पितृसत्ता का प्रतीक माना जाता है. आरएसएस पितृसत्ता और मनुवाद को मानता है, जिस के मूल में महिलाओं को अधिकार नहीं देना रहा है. ऐसे में राहुल गांधी ने जो बात कही उस में कुछ गलत नहीं है. चुनाव के हिसाब से इस मुद्दे को देखने की जगह अगर समाज की हालत के रूप में देखा जाए तो अच्छा रहेगा.

फिल्म ‘‘चाक एन डस्टर ’’फेम फिल्मसर्जक जयंत गिलाटर की गुजराती सिनेमा में अनोखी पहल

नौ महिला किरदारों,उनकी जिंदगी व समस्याओं का फिल्म ‘‘हलकी फुलकी’’ में चित्रणस्कूल व कालेज मैनजमेंट द्वारा टीचरों के साथ किए जाने वाले दुव्र्यवहार पर आज से पांच वर्ष जयंत गिलाटर ने फिल्म ‘‘चाक एन डस्टर’’ का निर्माण कर हंगामा मचाया था. शबाना आजीम,जुही चावला,दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों के अभिनय से सजी इस फिल्म को जबरदस्त सफलता मिली थी.इसके बाद गुजराती सिनेमा की चिरपरिचित शैली यानी राजे रजवाड़ों की कहानी सुनाने की बजाय एक अति संजीदा विषय पर गुजराती फिल्म ‘‘गुजरात 11’’ लेकर आए थे,

जिसे कई अवार्ड मिले और इस फिल्म को ‘नेशनल अर्काइब’ में रखा गया है.अब वह एक कदम आगे बढ़कर नौ महिला किरदारों  के इर्द गिर्द घूमने वाली कहानी पर गुजराती में हास्य फिल्म ‘‘हलकी फुलकी’’ लेकर आए हैं,जो कि सत्रह दिसंबर को सिनेमाघरो में पहुॅचेगी.फिल्म के सभी नौ महिला किरदार आपस में दोस्त हैं.इस फिल्म में दोस्ती तथा महिलाओं के जीवन की समस्याओं,चुनौतियों का चित्रण है.फिल्मकार जयंत गिलाटर के अनुसार यह नौ महिलाएं नौ रस की प्रतीक हैं.

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गुजराती सिनेमा ही नही बल्कि गुजराती रंगमंच पर भी हास्य परोसने के लिए महिला किरदारों को सम्मानजनक तरीके से पेश नही किया जाता.मगर फिल्म ‘‘हलकी फुलकी’में ऐसा नही है.खुद लेखक व निर्देषक जयंत गिलाटर कहते हैं-‘‘गुजराती नाटकों में महिला किरदारों को इज्जत नही मिलती है,मगर हमारी फिल्म में महिला किरदारों को पूरा सम्मान दिया गया है.हम औरतों की इज्जत करते हैं.हमने दूसरे फिल्मकारों की तरह महज लोगों को हंसाने के लिए किसी भी महिला पात्र की डिग्निटी को कम नही किया है.इन नौ महिलाओं के बिना यह फिल्म बन ही नही सकती थी.

फिल्म की यूएसपी यह है कि हमारे आस पास जो महिला पात्र हैं,उन्ही में से यह कहानी गढ़ी गयी है.यह नव दुर्गा है.यह फिल्म महिला प्रधान है,जिसमें नौ हीरोईने हैं.संवाद लेखक भी महिला है.इसमें तीन गाने हैं.’’‘शिवम सिनेमा वीजन’ और ‘जेजे क्रिएशन’ निर्मित फिल्म ‘‘हलकी फुलकी’’मे नेहा मेहता,दिषा उपाध्याय,पूर्वी देसाई,आनंदी त्रिपाठी,जायका याज्ञनिक,रचना पटेल,भाविनी जोशी आदि महिला कलाकारों ने अभिनय किया है.जबकि इसकी संवाद लेखक गीता माणिक हैं.

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अतीत में कई गुजराती फिल्मों में अभिनय कर चुकी और ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ 2020 तक अंजली मेहता का किरदार निभा चुकी अभिनेत्री नेहा मेहता पूरे दस वर्ष बाद फिल्म‘‘हलकी फुलकी’ से गुजराती सिनेमा में वापसी की है.इस फिल्म के संदर्भ में वह कहती हैं-‘‘‘‘बहुत अच्छा अनुभव रहा.इसमें मुझे कई अनुभवी कलाकारों और रचनात्मक लोगों के साथ काम करने का अनुभव मिला.हमें इस फिल्म के माध्यम से समाज के लिए मनोरंजन के साथ कुछ अच्छा करने का अवसर मिला.इस फिल्म में अभिनय करते हुए मुझे धन कमाने के साथ ही काफी कुछ सीखने का अवसर मिला.

इस फिल्म में अभिनय करके हमें गौरव का अहसास हो रहा है.इस फिल्म में कई गंभीर बातों को हलके फुलके तरीके से समझाया गया है.इस फिल्म में आप सभी की कहानियों को आप सभी के सामने रखा है.इस फिल्म को देखकर सारे दुःखों को हटाकर खुशियां कैसे ली जाए,यह सीख मिलेगी.हमने इसमें एकजुट होने की भी सलाह दी गयी है.’’अभिनेत्री रचना ‘हलकी फुलकी की चर्चा करते हुए कहा- ‘‘पुरूषों की दोस्ती वाली कई फिल्में बनी है.पर औरतों की दोस्ती पर यह पहली फिल्म है.यह फिल्म हंसाने के साथ रूलाएगी.यह फिल्म यह संदेश देती है कि परिवार के साथ ही दोस्ती का भी महत्व है.यदि आप अपने दोस्तों से दूर हो गए हैं,तो पुनः उनके साथ दोस्ती जोड़िए.’’

कई टीवी सीरियलों में अभिनय कर चुकी पूर्वी देसाई की यह पहली फिल्म है.वह कहती हैं-‘‘जब मेरे पास जयंत सर इस फिल्म का आफर लेकर आए,तो मैं समझ नहीं पा रही थी कि नौ हीरेाईनों को किस तरह से कहानी में ढाला जाएगा.पर जयंत सर ने मुझे कविंस किया और मैने फिल्म की.अब खुश हॅूं.मुझे सेट पर सभी कलाकारों का भरपूर सहयोग मिला.सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है.’’अभिनेत्री भाविनी जोशी कहती हैं-‘‘समाज में यह गलत फहमी है कि जहां औरतंे इकट्ठा होती हैं,वहां झगड़े होते हैं.जबकि हकीकत में पुरूषों के झगड़े मारा मारी तक पहुॅच जाते हैं.एक दूसरे को मार डालने या बर्बाद कर देने की बात करते हैं.मानव स्वभाव के अनुसार हर किसी के विचार भिन्न होना स्वाभाविक है.यह फिल्म सिर्फ महिलाओं के लिए नही है.पुरूष वर्ग इस फिल्म को देखकर अपनी बेटी,बहन,पत्नी को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ सकेंगे.’’

टीवी सीरियलों की चर्चित अदाकारा दिशा उपाध्याय के कैरियर की यह पहली फिल्म है.फिल्म में वाणी का किरदार निभाने वाली दिशा उपाध्याय ने कहा-‘‘यह फिल्म स्लाइस आफ लाइफ है.यॅूं तो हर औरत ताकतवर होती है.पर यह फिल्म इस बात का संदेष देेती है कि जब सभी नौ रस एक साथ आ जाएं,तो कितनी ताकत बढ़ सकती है.मैने जयंत सर की फिल्में देखी हुई हैं.जयंत सर ने हमें खुले आसमान मे पंख फैलाकर उड़ने का आत्म विष्वास दिया.’’आनंदी त्रिपाठी ने कहा -‘‘यह फिल्म गुजराती फिल्म इंडस्ट्ी मंे एक नया बदलाव लेकर आएगी.सभी की केमिस्ट्री बहुत अच्छी रही.

इसमें संदश है कि हर महिला हर तरह की समस्या के बावजूद अपनी सोच के साथ एक दूसरे की मदद करने को तत्पर रहती है.’’जायका याज्ञनिक ने कहा-‘‘इसमें मेरा किरदार मेरे जीवन के एकदम विपरीत है.मंैने इसमें काठियावाड़ी महिला का किरदार निभाया है.मेरे किरदार का नाम पाॅलिसी भाभी है.मैं बडोदा की रहने वाली हॅूं.ऐसे में मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती काठियावाड़ी जुबान को पकड़ना था.मेरे किरदार की यात्रा काफी खूबसूरत है.गुजराती फिल्मों में इस तरह के विषय पर अब तक कोई फिल्म नही बनी.जबकि हर लड़की के जीवन मंे उसकी सहेलियंा सदैव अहमियत रखती हैं.यह फिल्म दोस्ती,हैप्पीनेस,एक दूसरे को किस तरह से संभालते हैं,आदि का चित्रण है.इसमें हर किरदार का अपना संघर्ष है.’’

फिल्म में किन समस्याओं का चित्रण है?इस सवाल पर जयंत गिलाटर कहते हैं-‘‘कई समस्याओं का चित्रण है.मसलन -मुझे एक चीज लेनी है,वह नहीं मिली,तो मैं समस्याओं में फंस जाउंगा.मगर मैं अपने दोस्तो से नही मांग सकता.मैं मांग कर अपना स्टेटस कम नही कर सकता.फिल्म में जब किसी दोस्त को पता चलता है,तो वह किस तरह सामने आए बगैर मदद कर देता है.उसकी कहानी है.मसलन- एलआईसी पाॅलिसी की बात है.हम सभी एलआईसी की पाॅलिसी लेते हैं.हमारे घर मे नौकर व ड्ायवर होते हैं,जो कि एलआई सी पाॅलिसी नही लेते.फिल्म में एक किरदार ‘पाॅलिसी भाभी’ की मदद करने के लिए रोटरी क्लब के सदस्यों से कहकर उन्हे अपने वर्करों व ड्यवरां की एलआईसी पाॅलिसी करवाने के लिए कहती है.कुछ का पैसा वह भी भर देती है.वह अपनी सहेली की मदद करना चाहती है,पर ‘पाॅलिसी भाभी’ के स्वाभिमान को भी आहत नहीं करना चाहती.’’

फिल्म के अन्य किरदारों के संदर्भ में जयंत गिलाटर कहते हैं-‘‘नेहा मेहता और आनंदी त्रिपाठी ने इंटीरियर डिजायनर का किरदार निभाया है.दोनो सहेली भी हैं.दिषा ने यूट्यूब के लिए वीडियो बनाने वाली महिला का किरदार निभाया है.इन्हे अभिनय का षौक था.षादी के बाद पति के घर आ गयी.जिसके बाद उनका सपना अधूरा रह गया.उनकी एक सहेली मानसी वाॅइस ओवर आर्टिस्ट है.वह उसे सपोर्ट करती है,उसे वीडियो बनाने के लिए प्रेरित करती है.उसके वीडियो लोकप्रिय हो जाते हैं और लोग उसके साथ फोटो खिंचाने के लिए आने लगते हैं.इससे वह खुष होती है.एक टाॅम ब्वाॅय जैसा किरदार है.जो कि घर का सारा काम करती रहती है.लोग उस पर ताने मारते है कि उनकी बहू तो सीए हैं.इतना कमाती है.तब उस किरदार का ससुर कहता है.हमारी बहू भी काम करती हैं.मेरा व सास का काम करना.बेटी को स्कूल ले जाना वगैरह वगैरह…अब तो बताओ कि इससे यह कितना बचत करती है.यह बचत ही प्राॅफिट है.यह मेरी बहू नहीं बल्कि बेटी है.’’

फिल्म ‘‘हलकी फुलकी’’में रचनात्मक निर्माता आषु पटेल कहते हैं-‘‘ हमारी फिल्म में इमोशन भी हैं.इसमें सभी नौ सहेलियां एक दूसरे की समस्याओं को हल करने के लिए मदद करती रहती हैं.’’

ये रिश्ता क्या कहलाता है: पिता से नाराज होगा अभिमन्यु, अक्षरा के लिए दिखेगा प्यार

स्टार प्लस का सुपरहिट सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है एक बार फिर से टीआरपी में धमाल मचाने लगा है पहले की तरह . दर्शक फिर से अच्छा रिस्पॉन्स देने लगे हैं.

इस सीरियल में अक्षरा , अभिमन्यु और आरोही की कहानी को मेकर्स घुमा रहे हैं. जिससे सीरियल को काफी अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. अब तक सीरियल में इन तीनों के बीच में लव ट्रायएंगल देखने को मिल रहा था. जो सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा था.

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इस सीरियल की बात करें तो अक्षरा को आरोही की सच्चाई जानने के बाद से काफी ज्यादा दुख होता है. वो चाहती है कि अभिमन्यु को कभी भी आरोही की सच्चाई मालूम न हो. इसके बाद से गोयनका हाउस में उस हादसे की बात हुई जिसमें आरोही की जान बचाने की बात कही गई.

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स्वर्णा सभी से कहता है कि अभिमन्यु को भुलाने के लिए अभी भी आरोही को थोड़ा सा वक्त चाहिए होगा. यह सब देेखकर अक्षरा सभी को खुश करने की कोशिश में जुट जाती है.

इस सीरियल में आगे आप देखेंगे कि अभिमन्यु अक्षरा को सिंगिग हीलिंग सेंशन लेकर जाएगा, जहां उसे अक्षरा गाना गाते हुए दिखाई देगी. वहीं दूसरी तरफ हर्षवर्धन अक्षरा की बेइज्जती करने की कोशिश करेगा और उसे पैसे देगा. अक्षरा उस पैसे को लेने से इंकार कर देगी.

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यह सब देखकर अभिमन्यु को बहुत ज्यादा गुस्सा आएगा और वह शो के दौरान कुर्सी तोड़ देगा. जिसके बाद से हर्षवर्धन चौक जाएगा अभिमन्यु के दिल में अक्षरा के लिए इतना सारा प्यार देखकर.

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बिग बॉस में जैसे -जैसे फाइनल्स का समय आ रहा है वैसे- वैसे बवाल बढ़ता ही जा रहा है. हर रोज घर के अंदर किसी न किसी के बीच अनबन की खबर आती रहती है. अब घर में नई लड़ाई अभिजीत बिचकुले और देबोलीना भट्टाचार्जी के बीच हुई है.

आने वाले एपिसोड के प्रोमो के बीच दोनों की लड़ाई दिखाई गई है. दरअसल इन दिनों म्यूजियम से सामान चुराने का टॉस्क मिला है. ऐसे में अभीजीत काफी चीजे म्यूजियम से चुरा लेते हैं और दावा करते हैं कि अभी और भी बहुत सी चीजें म्यूजियम में पड़ी हुई है.

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इस दौरान अभिजीत देबोलीना के गाल छूते हुए कहते हैं कि तेरे लिए कुछ भी करुंगा लेकिन मुझे एक पप्पी चाहिए इसके लिए. इस पर देबोलीना उनपर चिल्लाते हुए कहती है कि नहीं करुंगी.

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देबोलीना अभिजीत पर नाराज होकर कहती है कि आप अपनी हद में रहे और अपनी लाइन को क्रॉस न करें. कहती है कि मेरी अच्छाई का फायदा मत उठाओं तुम क्योंकि बाद में तुम्हें बहुत ज्यादा पछताना पड़ सकता है. वहीं प्रतीक सहजपाल देबोलीना के सपोर्ट में उतर आते हैं. इसके बाद से तेजस्वी देबोलीना से पूछती है कि अभिजीत तुम्हारे साथ बतमीजी कर रहा था क्या.

जिसके बाद से देबोलीना के आंसू छलक आते हैं और कहती है कि मैं इन सभी बातों पर बवाल नहीं करना चाहती हूं अगर करना होता तो मैं पहले ही कर ली होती. अभिजीत घर में अपने शब्द और बोल्ड स्टेंटमेंट देने के लिए जाने जाते हैं.

इसी दौरान देवो ये सारी बातें तेजस्वी प्रकाश को बताती हैं और तेजा देवो के लिए स्टैंड लेते हुए अभिजीत से भिड़ जाती हैं और सबके सामने उसे धक्का भी मार देती हैं.

अब देखना है कि आगे शो में क्या होने वाला है.

अंत भला तो सब भला

अंत भला तो सब भला : भाग 2

पहले ही अपनी अटैची ले कर संगीता मायके चली गई थी. रवि के मुंबई चले जाने से संगीता की किराए के अलग घर में रहने की योजना लंगड़ा गई. उस के भैयाभाभी तो पहले ही से ऐसा कदम उठाए जाने के हक में नहीं थे. उस की दीदी और मां रवि की गैरमौजूदगी में उसे अलग मकान दिलाने का हौसला अपने अंदर पैदा नहीं कर पाईं. विवाहित लड़की का ससुराल वालों से लड़झगड़ कर अपने भाईभाभी के पास आ कर रहना आसान नहीं होता, यह कड़वा सच संगीता को जल्द ही समझ में आने लगा. कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा रवि उसे अपने पास रहने को बुला नहीं सकता था और संगीता ने अपनी ससुराल वालों से संबंध इतने खराब कर रखे थे कि वे उसे रवि की गैरमौजूगी में बुलाना नहीं चाहते थे.

सब से पहले संगीता के संबंध अपनी भाभी से बिगड़ने शुरू हुए. घर के कामों में हाथ बंटाने को ले कर उन के बीच झड़पें शुरू हुईं और फिर भाभी को अपनी ननद की घर में मौजूदगी बुरी तरह खलने लगी. संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी की तो उन का बेटा उन से झगड़ा करने लगा. तब संगीता की बड़ी बहन और जीजा को झगड़े में कूदना पड़ा. फिर टैंशन बढ़ती चली गई. ‘‘हमारे घर की सुखशांति खराब करने का संगीता को कोई अधिकार नहीं है, मां. इसे या तो रवि के पास जा कर रहना चाहिए या फिर अपनी ससुराल में. अब और ज्यादा इस की इस घर में मौजूदगी मैं बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ अपने बेटे की इस चेतावनी को सुन कर संगीता की मां ने घर में काफी क्लेश किया पर ऐसा करने के बाद उन की बेटी का घर में आदरसम्मान बिलकुल समाप्त हो गया. बहू के साथ अपने संबंध बिगाड़ना उन के हित में नहीं था, इसलिए संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी करना बंद कर दिया. उन में आए बदलाव को नोट कर के संगीता उन से नाराज रहने लगी थी.

संगीता की बड़ी बहन को भी अपने इकलौते भाई को नाराज करने में अपना हित नजर नहीं आया था. रवि की प्रमोशन हो जाने की खबर मिलते ही उस ने अपनी छोटी बहन को सलाह दी, ‘‘संगीता, तुझे रवि के साथ जा कर ही रहना पड़ेगा. भैया के साथ अपने संबंध इतने ज्यादा मत बिगाड़ कि उस के घर के दरवाजे तेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएं. जब तक रवि के पास जाने की सुविधा नहीं हो जाती, तू अपनी ससुराल में जा कर रह.’’ ‘‘तुम सब मेरा यों साथ छोड़ दोगे, ऐसी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी. तुम लोगों के बहकावे में आ कर ही मैं ने अपनी ससुराल वालों से संबंध बिगाड़े हैं, यह मत भूलो, दीदी,’’ संगीता के इस आरोप को सुन कर उस की बड़ी बहन इतनी नाराज हुई कि दोनों के बीच बोलचाल न के बराबर रह गई. रवि के लिए संगीता को मुंबई बुलाना संभव नहीं था. संगीता को बिन बुलाए ससुराल लौटने की शर्मिंदगी से हालात ने बचाया.

दरअसल, रवि को मुंबई गए करीब 2 महीने बीते थे जब एक शाम उस के सहयोगी मित्र अरुण ने संगीता को आ कर बताया, ‘‘आज हमारे बौस उमेश साहब के मुंह से बातोंबातों में एक काम की बात निकल गई, संगीता… रवि के दिल्ली लौटने की बात बन सकती है.’’

‘‘कैसे ’’ संगीता ने फौरन पूछा.

अनुंकपा के आधार पर उस की पोस्टिंग यहां हो सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं ’’ संगीता के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे.

‘‘मैं पूरी बात विस्तार से समझाता हूं. देखो, अगर रवि यह अर्जी दे कि दिल के रोगी पिता की देखभाल के लिए उस का उन के पास रहना जरूरी है तो उमेश साहब के अनुसार उस का तबादला दिल्ली किया जा सकता है.’’ ‘‘लेकिन रवि के बड़े भैयाभाभी भी तो मेरे सासससुर के पास रहते हैं. इस कारण क्या रवि की अर्जी नामंजूर नहीं हो जाएगी ’’

‘‘उन का तो अपना फ्लैट है न ’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘अगर वे अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं तो रवि की अर्जी को नामंजूर करने का यह कारण समाप्त हो जाएगा.’’

‘‘यह बात तो ठीक है.’’

‘‘तब आप अपने जेठजेठानी को उन के फ्लैट में जाने को फटाफट राजी कर के उमेश साहब से मिलने आ जाओ,’’ ऐसी सलाह दे कर अरुण ने विदा ली. संगीता ने उसी वक्त रवि को फोन मिलाया.

‘‘तुम जा कर भैयाभाभी से मिलो, संगीता. मैं भी उन से फोन पर बात करूंगा,’’ रवि सारी बात सुन कर बहुत खुश हो उठा था. संगीता को झिझक तो बड़ी हुई पर अपने भावी फायदे की बात सोच कर वह अपनी ससुराल जाने को 15 मिनट में तैयार हो गई. रवि के बड़े भाई ने उस की सारी बात सुन कर गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘संगीता, इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि रवि का तबादला दिल्ली में हो जाए पर मुझे अपने फ्लैट को किराए पर मजबूरन चढ़ाना पढ़ेगा. उस की मासिक किस्त मैं उसी किराए से भर पाऊंगा.’’ रवि और संगीता के बीच फोन पर 2 दिनों तक दसियों बार बातें हुईं और अंत में उन्हें बड़े भैया के फ्लैट की किस्त रवि की पगार से चुकाने का निर्णय मजबूरन लेना पड़ा.

सप्ताह भर के अंदर बड़े भैया का परिवार अपने फ्लैट में पहुंच गया और संगीता अपना सूटकेस ले कर ससुराल लौट आई. रवि ने कूरियर से अपनी अर्जी संगीता को भिजवा दी. उसे इस अर्जी को रवि के बौस उमेश साहब तक पहुंचाना था. संगीता ने फोन कर के उन से मिलने का समय मांगा तो उन्होंने उसे रविवार की सुबह अपने घर आने को कहा. ‘‘क्या मैं आप से औफिस में नहीं मिल सकती हूं, सर ’’ संगीता इन शब्दों को बड़ी कठिनाई से अपने मुख ने निकाल पाई.

‘‘मैं तुम्हें औफिस में ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊंगा, संगीता. मैं घर पर सारे कागजात तसल्ली से चैक कर लूंगा. मैं नहीं चाहता हूं कि कहीं कोई कमी रह जाए. यह मेरी भी दिली इच्छा है कि रवि जैसा मेहनती और विश्वसनीय इनसान वापस मेरे विभाग में लौट आए. क्या तुम्हें मेरे घर आने पर कोई ऐतराज है ’’

‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था. उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी. उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.

 

Miss Universe 2021 हरनाज संधू के लाजवाब बोल

वर्षों वर्षों बाद सुष्मिता सेन और लारा दत्ता के मिस यूनिवर्स चुने जाने के बाद वह समय फिर पूरे 21 साल बाद लौटा जब पंजाब की हरनाज  ने अपने खूबसूरती और लाजवाब प्रति उत्तरों से दिग्गजों को लाजवाब कर दिया.यह रिपोर्ट बताती है कि सौंदर्य प्रतियोगिताओं में खूबसूरती के साथ एक खूबसूरत अच्छा दिल और मन होना भी परम आवश्यक है.

कोई लड़की सुंदर भी हो और अपनी बातों से दुनिया भर को प्रभावित भी कर ले यह बहुत दुर्लभ बात होती है. मिस यूनिवर्स के रूप में इजराइल में हो रहे इस दफे की प्रतियोगिता में भारत की हरनाज संधू ने जब कठिनतर प्रश्नों का जवाब सहज भाव से दिया तो सब कुछ एक तरफ और हरनाज  के जवाब एक तरफ हो गए.अपने मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रतिउत्तर के कारण उसे मिस यूनिवर्स चुन लियाया गया.

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आईए आज आपको बताते हैं कि ब्रह्मांड सुंदरी के रूप में चयनित हरनाज संधू ने अखिर क्या जवाब दिया जो पूरी दुनिया लाजवाब हो गई और उसके सर माथे पर मिस यूनिवर्स का ताज पहनाया गया. आज के कठिन समय में युवा महिलाओं को संदेश और पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण के संदर्भ में हरनाज संधू ने जो जो बातें कही है वह यह बताता है कि हरनाज संधू एक सुंदर सुकन्या ही नहीं बल्कि एक प्रज्ञा से युक्त अच्छे हृदय की इंसान भी है.

आमतौर पर यह माना जाता है कि मिस यूनिवर्स का मतलब ही होता है खूबसूरती,  मगर यह सच नहीं है. हरनाज संधू की सफलता ने इतिहास रच दिया है‌ और  बता दिया कि खूबसूरती से बड़ी चीज होती है बौद्धिक समझदारी. और यही मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता की एक ऐसी खूबसूरती है जो मानवता, संवेदना और दुनिया को अपना बनाने की सोच के साथ एक गहरी  सीख भी दी जाती है.

जलवायु परिवर्तन और हरनाज

मिस यूनिवर्स के रूप में चयनित भारत की चंडीगढ़ के एक की सामान्य  सी लड़की हरनाज संधू ने प्रतियोगिता में प्रश्नों के जवाब दिए वह लाजवाब करने वाले थे. उनसे पूछा गया कि जलवायु परिवर्तन को छलावा माना जाता है आप क्या कहना चाहती हैं. इस पर उन्होंने जो जवाब दिया वह लोगों का दिल जीत जाता है उन्होंने कहा-” मेरा दिल टूट जाता है जब प्रकृति को देखती हूं वह कितनी दिक्कतों से गुजर रही है. यह हमारा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार है. यह समय कम  बात करने और काम करने का है. हमारा हर कदम प्रकृति को बचा सकता है या नष्ट कर सकता है. रोकथाम और सुरक्षा करना पछताने से मरम्मत से बेहतर है।”

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इसी तरह से युवा महिलाओं के लिए जब संदेश पूछा गया तो उन्होंने कहा- खुद पर भरोसा करना जरूरी चीज है, यह मानिए कि आप अनोखे हो, दुनिया में जो हो रहा है बात करिए मैं खुद पर विश्वास करती हूं..
हरनाज संधू से 21 वर्ष  पहले लारा दत्ता मिस यूनिवर्स चुनी गई थी. इतने लंबे समय बाद भारत को मिस यूनिवर्स के रूप में गर्व करने का क्षण आया है.एक  बहुत ही सामान्य परिवार की हरनाज संधू ने एक तरह से कहा जाए कि हौसलों की उड़ान भरी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. एक गांव की लड़की ने पूरी दुनिया में भारत की खूबसूरती और बुद्धिमत्ता का झंडा लहरा दिया है. आज भारत गर्व के साथ पूरी दुनिया के सामने खड़ा है और दुनिया  हरनाज संधू के कारण देश का लोहा मान रही है

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