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ब्रेकफास्ट में बनाएं क्रिस्पी अंडा पराठा

सामग्री:-

– आटा (150 ग्राम)

– घी/तेल(50 ग्राम)

– नमक(स्वादानुशार)

– पानी(100 ग्राम)

– अंडा(4)

– प्याज(1)

– हरी मिर्च(2)

– लाल मिर्च पाउडर (1 चम्मच)

बनाने की विधि:-

– सबसे पहले एक बड़े बर्तन में आटा ले ले और उसमे नमक और घी डालकर उसे मिला लें.

– फिर उसमे थोड़ा-थोड़ा पानी डालकर उसका एक मिलायम डो (लोई) तैयार करें.

– फिर उसके ऊपर से थोड़ा सा और तेल डालकर मिला दे और उसे 5 मिनट के लिए ढक कर छोड़ दें.

– अब किसी दूसरे कटोरे में अंडे को तोड़ ले और उसमे कटी हुई मिर्च, प्याज, नमक और मिर्च पाउडर       डालकर उसे मिला लें.

– और फिर आते को एक बार और मिला ले और उससे एक छोटा लोई काटे.

– अब हम उसे बेल लेंगे और उसके ऊपर ढेर सारा घी डालकर चारो तरफ लगा दें.

– फिर उसे मोड़ दे और उसमें आटा लगा कर उसे त्रिभुज के आकर का बेल ले.

– अब गैस पे पैन रखे और गरम हो जाने पे उसपे पराठा को डाल दें.

– थोड़ी देर बाद उसे पलट दे, और उसे 1 मिनट तक धीमी आंच पे पकाये.

– अब उसे साइड से होल कर दे और आप देखने की वो 2 भाग में खुल जाएगी.

– फिर उसमे थोड़ा थोड़ा करके अंडे के घोल को डाल दे (एक साथ पूरा नहीं डाले).

– फिर उसका मुंह बंद कर दे और उसे ढक दे धीमी आंच पे 2 मिनट तक पकाये.

– अब उसके- चारि तरफ घी लगा दे और उसे पलट कर चारो तरफ दबा कर पका लें.

– और आपकी अंडा पराठा बन कर तैयार है.

Winter 2021 : इन खानों को कभी ना करें दोबारा गर्म, होते हैं जहरीले

गर्मा गर्म खाना कितना स्वादिष्ट होता है, आखिर किसे नहीं पसंद होगा गर्म खाना खाना. पर क्या आपको पता है कि खाना को दोबारा गर्म कर के खाना कितना घातक हो सकता है. आम तौर पर लोग खाने को गर्म कर के खाने से कोई परहेज नहीं करते. कौलेज के दिनों में विद्यार्थी भी रात के खाने को सुबह गर्म कर के खाते हैं. पर इसका हमारी सेहत पर काफी बुरा असर होता है.

इस खबर में हम आपको कुछ ऐसे ही खानों के बारे में बताएंगे जिनको दोबारा गर्म कर के खाना जहरीला हो सकता है.

मशरूम

foods became poisonous after reheating

मशरूम हमारी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है. पर जरूरी है कि उसे बनाते ही तुरंत खा लिया जाए. क्योंकि इसे रख देने से इसके अंदर पाए जाने वाले प्रोटीन का पचना काफी मुश्किल होता है.

अंडे

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अंडो को बनाते वक्त ध्यान रखें कि उन्हें ज्यादा देर तक ना पकाएं. ऐसा करने से उनमें कुछ जहरीले तत्व पैदा हो जाते हैं. अंडे की भुर्जी या उबाले गए अंडों को दोबारा गर्म नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से इनमें उपस्थित प्रोटीन बेकार हो जाते हैं. जिसके बाद आपके पाचन तंत्र पर इनका असर काफी बुरा होता है.

चुकंदर

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चुकंदर में नाइट्रेट की मात्रा प्रचूर होती है. शरीर के लिए ये काफी लाभकारी है. पर इसे गर्म कर के खाने से सेहस संबंधी कई परेशानियां हो सकती हैं.

आलू

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सभी के घरों में आलू बेहद आम खाद्य पदार्थ है. उत्तर भारत के ज्यादातर सभी घरों में आलू की सब्जी अक्सर रोज ही बनती है. पर इसे दोबारा गर्म कर के खाना काफी खतरनाक होता है. यदि पकाए गए आलू को ठंडा कर के फ्रिज में नहीं रखा गया तो गर्म तापमान के कारण इसमें बौटूलिस्म नाम का बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं. ये आपकी सेहत के लिए काफी घातक होते हैं. खाने को दोबारा गर्म करने पर भी ये मरते नहीं हैं.

पालक

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पालक नाइट्रेट का प्रमुख श्रोत है. ये हमारी सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. पर इसे ज्यादा देर तक गर्म करना या पुन: गर्म करने से यह तत्व नाइट्रोस्माइन में बदल जाता है. इसके पेट में जाने से कैंसर की संभावना अधिक हो जाती है.

दर्द का रिश्ता : भाग 4

अपूर्वा की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अजयजी बोल पड़े,”बेटा, अब इस उम्र में कुछ पचता नहीं है,”अजयजी ने नजरें चुराते हुए कहा. अपूर्वा जानती थी कि झूठ बोलना पापा के बस की बात नहीं. आज से 1 महीने पहले तक मां पापा के लिए उन की पसंद की हर चीज बनाती थीं.कभी आलू के परांठे, कभी सैंडविच, कभी कटलेट…फैमिली डाक्टर ने कई बार कहा,”अंकलजी, पौष्टिक खाना खाया करिए ओट्स, कौर्नफ्लैक्स, दलिया…” और अजयजी हर बार उन की बात हंसी में उड़ा देते.

“यह मरीजों का खाना खाना मेरे बस की बात नहीं, कभी मेरी पत्नी के हाथ का खाना खा कर देखिए सब भूल जाएंगे.”जिस आदमी को मां ने जीतेजी एक गिलास पानी नहीं उठाने दिया आज वे…अपूर्वा का दिल छलनी हो गया.

“पापा, 1 मिनट आप का हाथ…””अरे, कुछ नहीं बताया तो था कल वह चाय बनाते वक्त थोड़ी छलक गई थी. कुछ नहीं 2 दिन में ठीक हो जाएगी.”अजयजी ने अपने हाथ को पीछे छिपाने की कोशिश की पर अपूर्वा ने जबरदस्ती उन के हाथ को खींच कर आगे कर लिया. वे दर्द से कराह उठे. चेहरे पर दर्द की टीस उभर आई.उन के हाथों में बड़ेबड़े फफोले देख कर उस की आंखें भर आईं. दाढ़ी बनाते वक्त एक हलकी सी खरोंच लग जाने पर पूरा घर सिर पर उठा लेने वाले अजयजी आज दर्द के साथ जीना सीख रहे थे. अपूर्वा ध्यान से उन के चेहरे पर दर्द की लकीरों को पढ़ने की कोशिश करती रही. उस दर्द को पढ़ने के आगे वर्षों की पढ़ाई और डिग्रियां भी फेल हो गई थीं. अपूर्वा को बारबार लगता कि मां अभी किसी कमरे से बाहर निकलेंगी और बोलेंगी,”देख रही अप्पू, तेरे पापा अपना हाथ जला बैठे,:कितनी बार समझाया था कि कुछ काम करना सीख लीजिए, काम ही देगा. कल को बीमार पड़ गई या मुझे कुछ हो गया तो 1 कप चाय को तरस जाएंगे.”

अपूर्वा को लगा वह जारजार कर के रो पड़े,’मां, तुम कहां हो देखो न तुम्हारे बिना हम सब का क्या हाल हो गया है. आ जाओ मां, वापस आ जाओ. अपूर्वा अपने आंसुओं को छिपाने गुसलखाने में घुस गई. बहुत देर तक वह पानी से अपने मुंह को धोती रही. पानी की शीतल तासीर ने उस के मनमस्तिष्क में चल रहे विचारों के तूफान को थामने का प्रयास किया.

“पापा, कमला को फोन मिलाइए कब तक आएगी.””मेरे पास उस का नंबर नहीं है. तेरी मां ही यह सब देखती थी.””मां का फोन कहां है? उसमें नंबर होगा.””तेरी मां की अलमारी में रखा है पर वह तो डिस्चार्ज हो गया होगा. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी. उसे इस्तेमाल करने वाली ही नहीं रही तो मैं क्या करता.”

अपूर्वा महसूस कर रही थी कि पापा हर बात में मां को ही ढूंढ़ रहे थे. उस ने अलमारी खोली, मां के बदन की खुशबू आज भी उन के कपड़ों से आ रही थी. 1-1 साड़ी उसे अजनिबियत से देख रहे थे, मानों पूछना चाहते हों कि मुझे पहनने वाली कहां है उसे बुलाओ…मां के हाथों के काढ़े रुमाल के बगल में मोबाइल रखा हुआ था. पिछले साल उन के जन्मदिन पर पापा ने उपहार स्वरूप दिया था.कितना भुनभुनाई थीं वे,’अब इस बुढ़ापे में यह सब चोंचलेबाजी अच्छी नहीं लगती.’

शुरूशुरू में कितनी दिक्कत हुई थी उन्हें इस फोन को सीखने में…फोन पर ही मां चिल्ला उठी थी,”तेरे पापा को कितना समझाया था कि महंगा वाला फोन मत दिलाओ पर मेरी सुनता कौन है. ऐसा झुनझुना ले आए हैं कि न उन्हें समझ आता है न मुझे, बताओ बिना बात के पैसे फंसवा दिए इन्होंने.”

कितना हंसी थी वह उस दिन, मम्मीपापा बच्चों की तरह छोटीछोटी बातों पर लड़ जाते थे और फिर क्या… झगड़ा निबटाने की जिम्मेदारी उस की…किस की तरफ से बोले और किस की तरफ से नहीं. मां का फोन स्विचऔफ था, अपूर्वा ने कांपते हाथों से फोन को खोलने की कोशिश की.सुर्ख बंधेज की साड़ी में मां का मुसकराता चेहरा सामने था. मां को हमेशा खिलते रंग ही पसंद थे. मां की अलमारी खिलते रंगों से भरी पड़ी थी पर आज वे सब के जीवन को बेरंग कर गई थीं. अपूर्वा ने साड़ियों पर हाथ फेरा, बचपन में भी तो वह ऐसे ही उन पर हाथ फेरती तो मां खिलखिला कर हंस पड़ती.

“अप्पू, क्या करती है तू…” और नन्ही सी अप्पू हुलस कर कहती,”मां, कितना प्यारा रंग है न… मेरे कलर बौक्स में भी ऐसे रंग नहीं हैं.” और मां उस की मासूमियत पर मुसकरा देतीं.’मां, आप ने एक बार भी पापा के विषय में नहीं सोचा कि आप के बाद उन का क्या होगा. पापा चुप से हो गए थे, कहते हैं जब आप बात नहीं कर रही होती हैं तो तब आप सही मानों में बहुत कुछ बोल रही होती हैं. बस उसे सुनने वाला केवल एक ही शख्स होता है और वो शख्स कोई और नहीं आप होती हैं.’

अपूर्वा ने मां के फोन से कमला को फोन कर दिया. अपूर्वा ने उस दिन पापा की पसंद की चीजें बनाई थी.पापा सबकुछ देख और समझ रहे थे पर कब तक? एक दिन तो अपूर्वा को जाना ही है. अपूर्वा दिन भर लैपटौप से जुझती रहती. इन दिनों औफिस घर से ही चल रहा था पर वह पापा का नाश्ता, खाना और दवाएं देना नहीं भूलती. अपूर्वा ने कई बार घुमाफिरा कर पापा से साथ चलने के लिए कहती पर पापा कभी दुनिया, कभी रिश्तेदार तो कभी परंपराओं की दुहाई देने लगते. अपूर्वा को रहतेरहते 1 हफ्ता हो चुका था. इधर समर भी बारबार फोन करकर के उस का प्रोग्राम पूछते रहते. अपूर्वा अजीब सी दुविधा में थी, पापा जाने को तैयार नहीं थे और अपूर्वा उन्हें छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी. आखिर उस की भी गृहस्थी थी, उस के भी कुछ कर्तव्य थे. पापा खाना कर आराम कर रहे थे, कमला चौका समेट रही थी.

“कमला, शाम को लौकी के कोफ्ते बनाएंगे.””ठीक है दीदी…” “तेरी मां कैसी है कमला…””क्या बताऊं दीदी, 2 साल से नहीं जा पाई, भाई का फोन आया था. एक जगह की हो कर रह गई है, खानापीना सब बिस्तर पर…” “तू मिल क्यों नहीं आती?”

दर्द का रिश्ता : भाग 3

लेखिक डा. रंजना जायसवाल

“मां, अपने कमरें में ही रहेंगी, जानती हूं पापा का आना उन्हें अच्छा नहीं लगेगा. इसलिए उन के कमरे से थोड़ा दूर ही रखा है जिस से बहुत ज्यादा आमनासामना न हो.”जब रहना एक ही घर में है तो क्या दूर क्या पास…”

“समर, समझती हूं यह सब इतना आसान नहीं है पर मैं भी क्या कर सकती हूं. मैं ने तो शादी के पहले ही…” “एक ही बात कितनी बार कहोगी…” समर न जाने क्यों झुंझला सा गया, “मां को बताया है तुम ने?”

“हां, उन से इतना कहा है कि कल पापा के पास जा रही हूं.” “और उन को साथ लाने की बात?” “नहीं.” “वही तो मैं सोचूं, आज शाम को मां इतनी चुपचुप क्यों थीं. खाना भी ठीक से नहीं खा रही थीं.” “समर, मुझे लगता है कि उन्हें अंदाजा है. आज जब मैं पापा के लिए कमरा सही कर रही थी तो आसपास ही घूम रही थीं. एक अजीब सी बेचैनी थी उन के व्यवहार में.”

“कुछ कहा उन्होंने?” “कहा तो कुछ भी नहीं पर उन का मौन बहुत कुछ कह रहा था. समर, मैं समझती हूं इतना आसान नहीं है यह सब पर और कोई रास्ता नहीं…मेरे फैसले में तुम हो न मेरे साथ?” अपूर्वा ने समर की आंखों में अपने प्रश्न का जवाब ढूंढ़ने की कोशिश की…समर ने अपूर्वा के चेहरे पर लटक आई अलकों को अपनी उंगलियों से पीछे करते हुए कहा,”मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं.”

रात गहराती जा रही थी. दोनों की आंखों मे नींद नहीं थी. एक अजीब सी कशमकश दोनो के मनमस्तिष्क में घूम रही थी. आने वाले दिन न जाने कैसे होंगे, अपूर्वा साधनाजी के उठने से पहले ही मायके के लिए निकल गई. शादी के बाद ऐसा शायद उस ने पहली बार किया था. घर का कोई भी सदस्य साधनाजी से कहे बिना नहीं जाता था पर न जाने क्यों एक अनजान सा डर उस को जकड़े हुआ था.

अपूर्वा मृदुलाजी के जाने के बाद पहली बार घर आई थी. लौकडाउन की वजह से एक शहर से दूसरे शहर जाना इतना आसान नहीं था. कितने हाथपैर जोड़े थे उस ने… घर के दरवाजे पर लगा तुलसी का चौरा सूख गया था. शायद अपनी देखभाल करने वाली गृहस्वामिनी के जाने का वस आज तक मातम मना रहा था. उसी के बगल में पड़ा आज का ताजा अखबार हवा में फड़फड़ा रहा था.बरामदे की लाइट अभी तक जल रही थी. अपूर्वा ने कलाई में बंधी घड़ी पर नजर डाली,’9 नौ बजे गए हैं. पापा तो 6 बजे ही जग जाते हैं फिर मौर्निंग वाक…सब ठीक है न कहीं कुछ…’

उस ने घबरा कर घंटी की तरफ हाथ बढ़ाया. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं, एक अनजाने डर से उस का चेहरा पीला पड़ गया, अपूर्वा ने एक बार फिर घंटी बजाई और अपने कान दरवाजे पर चिपका कर सुनने की कोशिश करने लगी. अंदर सन्नाटे को चीरती किसी के पैरों की आहट से अपूर्वा के चेहरे पर एक सुकून पसर गया. अपूर्वा का ड्राइवर सामान रखने लगा,”भाभी, अब कब आना है?”

“दिनेश भैया, मैं आप को फोन कर के बता दूंगी. साहब से जा कर पैसे ले लीजिएगा.””अच्छा भाभी, चलता हूं.”2 बार “अच्छा भाभी चलता हूं” कहने के बाद भी दिनेश वहीं खड़ा रहा. अपूर्वा समझ गई दिनेश कुछ लिए बिना खिसकने वाला नहीं. उस ने पर्स खोला और एक कड़क 100 का नोट पकड़ा दिया. दिनेश का चेहरा चमक उठा. अपूर्वा दरवाजे की तरफ मुड़ी, शायद किसी ने सिटकनी खोली थी, इंटरलौक 3 बार खटखट कर के खुल गया. सामने दूध का भगौना लिए अजयजी खड़े थे, शायद घंटी की आवाज सुन कर ही उन की नींद खुली थी.

“कितनी बार कहा है रामलाल थोड़ी देर से आया कर, बस अभीअभी नींद लगी ही थी.”‘कितने दुबले लग रहे थे पापा…’ अपूर्वा मन ही मन बुदबुदाई… 1 महीने में अजयजी के चेहरे की वे रौनक न जाने कहां गुम हो गई थी.अपूर्वा की आंखें छलछला आईं.”अरे अप्पू तू…सब ठीक है न यों अचानक कैसे? समर और भाभीजी सब ठीक हैं न…””सब दरवाजे पर ही पूछ लेंगे या अंदर भी आने देंगे पापा…”

मृदुलाजी तसवीरों में मुसकरा रही थीं, स्वागत करने वाले हाथ बाट जोहती वे दो जोड़ी आंखें दूसरी दुनिया में जा चुकी थीं. अजयजी और मृदुलाजी की तसवीर बैठक में आज भी मुसकरा रही थी, जैसे कहना चाहती हो हम तो हमेशा साथ थे और रहेंगे.

“तू अचानक कैसे आ गई अप्पू?””पापा, अपने घर आने के लिए क्या सोचना…”अजयजी ने भरसक मुसकराने का प्रयास किया, पर वे निश्छल हंसी कहीं गुम हो गई थी. घर में एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था, एक ऐसा सन्नाटा जो कभी भी टूटने वाला नहीं था. अपूर्वा हमेशा की तरह आंगन के झूले में आ कर बैठ गई.कितनी यादें जुड़ी थी इस झूले से, मां इसी झूले पर बैठ कर उस को खाना खिलाया करती थीं, पापा से रूठ कर वह यहीं तो लेट जाती थी और मां अपनी गोद में उस का सर रख कर उस को कहानियां भी यहीं सुनाया करती थीं.

मां के पास उस की बात हर परेशानी का हल था. कालेज में एक लड़के ने उस के ऊपर एक भद्दा सा फिकरा कस दिया था, इसी झूले पर बैठ कर तो मां ने कितने घंटों तक उसे दुनियादारी समझाई थी.समर के विषय में जब उस ने मां को बताया था तब भी तो वे यहीं बैठी थीं.उफ्फ…अपूर्वा ने एक गहरी सांस ली.किचन की खटरपटर से वे यादों की परिधि से बाहर आ गई. अजयजी ने पानी का गिलास उस की ओर बढ़ाया,”अपूर्वा, जल्दी से हाथमुंह धो ले, मैं तेरे लिए बढ़िया चाय बनाता हूं. तुम ने पहले नहीं बताया वरना मैं कमला को जल्दी बुला लेता वह तो दोपहर के खाने के समय ही आएगी.”

“और नाश्ता?””नाश्ता… नाश्ते का क्या है, कभी ओट्स, कभी कौर्नफ्लैक्स खा लेता हूं.””पर पापा आप को तो यह सब…”

शापित- भाग 3: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

Writer-आशीष दलाल

चाचाजी आराम से सोफे पर बैठे हुए टीवी देख रहे थे और चाची उन से कुछ दूरी पर नीचे फर्श पर बैठी हुई थीं. दो पल इधरउधर की बातें कर चाचाजी से मुद्दे की बात छेड़ दी.

पहले तो चाचाजी उस की बात मानने को तैयार ही न हुए, पर फिर बारबार एक ही बात दोहराते रहने पर उस के आश्चर्य का पार तब रहा, जब चाचाजी ने सारी बात जानने के बाद भी उस की बात को हलके अंदाज में लेते हुए उसे इस बात को परिवार की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए यहीं पर खत्म कर देने को कहा.

संकेत ने उन की बात पर अपनी असहमति दर्शाते हुए पुलिस में शिकायत कर कानून का सहारा लेने की बात छेड़ी तो चाचाजी उलटे उस पर ही गुस्सा हो उठे.

‘पगला गया है संकेत. तेरे छोरे के संग रेप हुआ है, यह बात जान कर सारी दुनिया तुझ पर और तेरे छोरे पर ही हंसेगी. छोरे का बाप हो कर अपने बेटे का ही ध्यान न रख सका. फिर उस के बड़ा होने पर यह बात जानते हुए कौन बाप अपनी छोरी तेरे छोरे के संग ब्याहेगा. बात अभी घर में है तो घर में ही रहने दे. नमन अभी छोटा है. कुछ ही दिनों में सब आप ही भूल जाएगा.’

‘पर चाचाजी… रोहित…’ संकेत ने कुछ कहना चाहा, तो चाचाजी ने उसे टोक दिया.

‘उस की खबर तो मैं ले लूंगा. तू चिंता न कर. एक बार उसे पूना से घर आने दे. मारमार कर उस की हड्डीपसली एक कर दूंगा. फिर कभी ऐसा गंदा काम करने की हिम्मत न करेगा.’

संकेत को नमन के लड़के होने पर उस के संग इस तरह की दुर्घटना होने पर बात जगजाहिर होने से उस के भविष्य को ले कर भय दिखा कर चाचाजी ने उसे चुप रहने पर विवश कर दिया. फिर संकेत को उन्होंने रोहित को उस की इस करतूत पर कड़ी सजा देने का आश्वासन दे कर विदा कर दिया.

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बुझे मन से वापस आ कर संकेत ने चाचाजी से हुई सारी बात जब सुनंदा को बताई, तो दोनों पतिपत्नी अपनी विवशता पर आंसू बहाते हुए सारी रात सो न सके.

सुनंदा अगले 2 दिन तक औफिस न जा कर सारा दिन नमन के संग ही रह कर उस से बात कर उसे इस सदमे से बाहर निकालने की कोशिश करती रही, लेकिन उस के काफी प्रयासों के बाद भी नमन अकसर गुमसुम ही रहने लगा था. उस ने आज शाम को जब उसे जबरदस्ती खेलने के लिए बाहर भेजा, तो वहां भी वह चुपचाप एक कोने में जा कर बैठा ही रहा.

नमन एक तो पहले से ही शर्मीले स्वभाव का था और हर किसी बच्चे से जल्दी दोस्ती भी न कर पाया था. उस पर उस के संग हुई इस दुर्घटना से वह और भी कटाकटा सा रहने लगा.

संकेत, नमन का इस तरह चुपचुप रहना मुझ से अब और नहीं देखा जाता. दुनियादारी का डर छोड़ कर रोहित को जेल की सलाखों के पीछे डलवा कर कम से कम मन में समाया हुआ गुस्सा तो दूर होगा,’ रात को संकेत के पास लेटते हुए सुनंदा रो पड़ी.

‘सुनंदा, क्या हासिल होगा बात को बाहर फैला कर? परिवार और खानदान की आबरू तो जाएगी ही, साथ ही साथ नमन को लोग दयाभरी नजरों से देखने लगेंगे. तकलीफें नमन के लिए ही बढ़ जाएंगी,’ संकेत ने रुंधे स्वर में सुनंदा से कहा, तो सुनंदा की आंखों के आगे नमन का उदास चेहरा तैर गया. बात की वास्तविकता का खयाल कर वह आगे कुछ न बोल सकी और मन मसोस कर करवट ले कर आंखों से आंसू टपकाने लगी.

इस घटना के बाद संकेत और सुनंदा ने चाचाजी के परिवार के साथ अपने संबंध सीमित कर औपचारिक कर दिए. नमन ने खुद ही उन के घर जाना बंद कर दिया था. रोहित जब भी वापस पूना से आता तो नमन उस से नजरें मिलाने में कतराता था.

समय अपनी गति से आगे बढ़ने लगा. सालभर के भीतर ही रोहित की शादी हो गई और वह अपनी पत्नी को ले कर पूना सैटल हो गया.

सुनंदा के प्रयासों के तहत नमन धीरेधीरे उस खौफ से बाहर निकलने लगा. उस रात रविवार होने से टीवी पर कुछ माह पहले रिलीज हुई एक एक्शन फिल्म चल रही थी. नमन को एक्शन फिल्में देखना बहुत पसंद था. सो, संकेत ने उसे खुश रखने के लिए खासतौर पर अपना मैच देखने का कार्यक्रम कैंसल कर नमन के लिए आज प्रसारित हो रही फिल्म चला दी थी. फिल्म में दिखाए जा रहे दृश्यों के अनुरूप नमन के चेहरे पर तरहतरह के भाव आ रहे थे. तभी नायक और नायिका के एक प्रणय दृश्य में जैसे ही नायक ने अपने हाथों से नायिका के होंठों को छूते हुए अपना चेहरा उस के चेहरे की तरफ झुकाया तो नमन कुछ असहज सा हो गया. वह बारबार अपने दाएं हाथ से अपने होंठ और गालों को पोंछने का यत्न करने लगा.

संकेत की नजर जब नमन पर पड़ी तो उस ने टीवी बंद कर दिया और उसे सहलाते हुए उस के सिर पर हाथ फेरने लगा.

नमन ने गुस्से से संकेत का हाथ अपने सिर से हटाया और दौड़ कर अपने कमरे में चला गया.

सुनंदा उस के पीछे नमन के कमरे में जाने लगी, तो संकेत ने उसे रोक दिया.

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‘सुनंदा, उसे अकेला छोड़ दो. नमन अब बच्चा नहीं रहा. 15 साल का हो गया है. ऐसी बातें रहरह कर उस के सामने आती रहेंगी. कब तक उस के साथ खड़ी रहोगी? अब यह उस की अकेले की लड़ाई है. उसे खुद अपने मनोभावों से संघर्ष करना सीखने दो.’

‘पर, संकेत…’

‘सुनंदा, जवान होने के बाद कभी न कभी तो उसे इस तरह के क्षणों से गुजरना होगा. वह इन बातों को अब समझने लगा है तो बेहतर होगा कि उसे अपने अंतर्द्वंद्व से खुद ही लड़ कर परिपक्व होने दो. कभीकभी जरूरत से ज्यादा सहारा मिलने से पौध मजबूत नहीं पाती है,’ सुनंदा ने कुछ कहना चाहा, तो संकेत ने उसे समझाते हुए रोक दिया.

सुशांत सिंह राजपूत की बहन श्वेता सिंह ने अंकिता और विक्की जैन के लिए लिखा प्यारा सा मैसेज

मशहूर अदाकारा अंकिता लोखंडे 14 दिसंबर के दिन अपने बॉयफ्रेंड विक्की जैन के साथ सात फेरे लिए . जहां इस न्यूली वेड कपल को फैंस से लेकर सेलिब्रिटी तक सभी ने शादी की ढ़ेर सारी बधाइयां दी हैं. वहीं दिवंगत एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की बहन श्वेता सिंह ने भी अंकिता को शादी की बधाई दी है.

अंकिता ने शादी के बाद अपने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा कि प्यार में धैर्य है लेकिन हम दोनों में नहीं, अब हम ऑफिशियल मिस्टर और मिसेज जैन हैं.

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अंकिता के इस पोस्ट पर लोगों ने बधाई देने का तांता लगा दिया है. पूजा रॉय से लेकर मौनी रॉय के साथ -साथ कुशल टंडन ने भी बधाई दिया है. सुशांत कि बहन अंकिता ने फोटो पर कमेंट करते हुए लिखा है कि मुबारक हो न्यूली वेड कपल को ढ़ेर सारा प्यार और आशीर्वाद.

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बता दें कि विक्की जैन से पहले अंकिता लोखंडे ने सुशांत सिंह राजपूत को डेट किया था. दोनों लंबे समय तक रिलेशन में थें, इसके बाद इन दोनों का ब्रेकअप हो गया. दुख का पहाड़ तब टूटा जब साल 2020 में सुशांत सिंह राजपूत इस दुनिया को अलविदा कह दिए. उस वक्त अंकिता लोखंडे लगातार सुशांत की बहनों के साथ खड़ी थी.

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अब जब अंकिता अपनी जिंदगी के नए पड़ाव की तरफ बढ़ रही हैं तो ऐसे में विक्की जैन और अंकिता को सुशांत की बहन श्वेता ने शुभकामनाएं दी हैं.

एक्टिंग में जल्दी काम न मिलने की वजह बता रहे है, अभिनेता सौरभ गोयल

नैनीताल के पास एक छोटा सा क़स्बा किच्छा है, वहां से निकल कर इंजिनीयरिंग की पढाई पूरी करने के बाद अभिनेता सौरभ गोयल मुंबई आये और काफी संघर्ष के बाद उन्हें छोटे-छोटे काम विज्ञापनों,टीवी शो और फिल्मों में मिलने लगे.दिल्ली पढाई करते हुए उन्होंने बैरीजोन एक्टिंग स्कूल और मुंबई में व्हिसलिंग वुड्स में ट्रेनिंग ली थी. करीब 10 साल की मेहनत के बाद उन्हें फीचर फिल्म ‘छोरी’ में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला और चर्चा में आये. फिल्म में उनके अभिनय की आलोचकों ने काफी प्रशंसा की और आगे उन्हें इसका फायदा मिल रहा है. ये फिल्म उनके जर्नी की माइलस्टोन साबित हुई है,हालाँकि अभी भी वे संघर्ष रत है, लेकिन धीरज की कमी उनमे नहीं है. वे हर बार एक अलग और चुनौतीपूर्ण भूमिका निभाना चाहते है. उनसे बात करना रोचक था, पेश है, कुछ अंश.

सवाल – बिना गॉडफादर के इंडस्ट्री में काम मिलना कितना कठिन था?

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जवाब – मेरी कोई जान-पहचान नहीं है, यहाँ तक पहुँचने में मुझे 10 साल लग गए है. संघर्ष अभी भी जारी है, काम का संघर्ष रहता है, क्योंकि बाहर से आकर फिल्म हिट होने पर भी नया काम मिलने में समय लगता है. परिवारवाद से संपर्क रखने वालों को थोडा अधिक काम अवश्य मिलता है. नए कलाकार को आगे आने में समय लगता है, लेकिन एक या दो शो हिट होने पर उन्हें भी काम मिलता है. मेरे मेहनत का फल मुझे मिलने लगा है. बाहर से आने वालों के लिए संघर्ष अवश्य होता है. इसके अलावा फिल्म इंडस्ट्री में काम करने वालों को आज भी अच्छा नहीं माना जाता. लोग अपने बेटे को डॉक्टर या इंजीनियर बनाना चाहते है, आर्ट के क्षेत्र को तवज्जों नहीं दी जाती, लेकिन मेरे पेरेंट्स ने मुझे पढाई पूरी कर इस फील्ड में आने की सलाह दी. मुम्बई एक महंगा शहर है और इतने सालों से मैं यहाँ रह रहा हूँ. कहावत है कि यहाँ काम करना आसान है, लेकिन काम ढूँढना बहुत मुश्किल है. असल में काम ढूंढने की प्रोसेस बहुत कठिन है.

सवाल – ऑडिशन देते समय आपको किस तरह के रिजेक्शन का सामना करना पड़ा?

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जवाब – पहले अधिकतर लोग शकल को देखकर ही मना कर देते थे या कहते थे कि ऑडिशन दे दो, लेकिन इस शो में आपको नहीं रखा जायेगा, पर पिछले कुछ सालों से ऑडिशन की प्रथा बदली है, क्योंकि पहले एक खास चेहरा इंडस्ट्री में चलता था, जिसमें गोरे, फिट बॉडी और सुंदर नाक नक्श को ही लिया जाता था, तब हमारे जैसे साधारण कद – काठी के कलाकारों को काम नहीं मिलता था. पिछले 4 से 5 सालों से इसमें बदलाव आया है, आज उन्हें ऐसा चेहरा चाहिए, जो आम चेहरा हो, जिससे आम इंसान कनेक्ट कर सके. इससे मुझ जैसे साधारण कलाकारों को काम मिल रहा है, जो एक अच्छी बात है.

सवाल– पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?

जवाब – पहला ब्रेक साल 2012-13 में परवरिश एक टीवी शो में कैमियों किया, इसके बाद धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया.

सवाल–‘छोरी’ फिल्म में काम करने खास वजह क्या रही?

जवाब – एक हॉरर फिल्म थी और हमारे देश में हॉरर फिल्म अधिक नहीं बनती, इसलिए मैं इसकी कहानी सुनकर एक्साईट हो गया था. इसके अलावा ये एक मराठी फिल्म ‘लापाछापी’ पर आधारित फिल्म है. निर्देशक भी विशाल फुरिया है और इस फिल्म को बहुत सारे अवार्ड मिले है, तो मेरे लिए मना करने की कोई वजह नहीं थी. कन्या भ्रूण हत्या पर बनी ये एक कमर्शियल फिल्म होने के साथ-साथ मैने इसमें मुख्य भूमिका भी निभाई है.

सवाल–हमारे देश में ऐसे कई दकियानूसी बातें और सोच है, जिसे बदलना बहुत जरुरी है, ऐसे में किस तरह की मानसिकता और जिम्मेदारी होने जरुरत है, आप क्या सोचते है?

जवाब – मेरे ख्याल से एक जेनरेशन से दूसरी जेनरेशन बदलती जा रही है, ऐसे ही धीरे-धीरे सोच बदल रही है. इसमें आगे आने वाली जेनरेशन को अच्छी शिक्षा,सही मानसिकता रखने, बेटे – बेटी में फर्क न समझने वाले, बराबर के अधिकार की सोच रखने की जरुरत है. इसमें हमारे बच्चों को आगे आकर अपने बच्चों को वैसी शिक्षा देनी पड़ेगी. इसमें समाज, परिवार, धर्म, टीवी, फिल्म्स आदि सभी जिम्मेदार है. गांव या छोटे कस्बों में थोडा समय लग सकता है, लेकिन सुधार होना शुरू हो चुका है.

सवाल– इस फिल्म को हिट होने पर दर्शकों की प्रतिक्रिया क्या रही?

जवाब – सभी को मेरी भूमिका पसंद आई है. आज सोशल मीडिया एक अच्छीमाध्यम है, जहाँ आप अपनी बातें मेसेज कर सकते है, पहले ऐसी बात नहीं थी, किसी भी कलाकार को आगे आने में समय लगता था. सोशल मीडिया पर ढेरों ऐसे मेसेज है, जिसे पढ़कर मुझे ख़ुशी हुई.

सवाल– एक्टर बनना एक इत्तफाक था या बचपन से सोचा था ?

जवाब – बचपन से थोडा शौक था, लेकिन मैं जिस परिवार और जगह से हूँ, वहां एक्टिंग को लेकर कुछ लेना-देना नहीं था, मुंबई आने पर भी मेरा किसी से कोई परिचय नहीं था. मैं एक इंजीनियर हूँ और कॉलेज के दौरान थिएटर ग्रुप ज्वाइन किया और इस ओर जाने का मन किया. इसके बाद मैंने इंजीयरिंग की पढ़ाई पूरी की, लेकिन नौकरी नहीं की और मुंबई आ गया. यहाँ पर शुरुआत कुछ टीवी शो, वेब सीरीज और अब फीचर फिल्म मैंने किया है.

सवाल – कास्टिंग काउच का सामना केवल लड़कियों को ही नहीं, लड़कों को भी करना पड़ता है, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ?

जवाब – मैंने भी इस बारें में सुना है, पर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि जब भी मुझे कुछ ऐसी बातों का अंदाजा होता है, तो मैं रास्ता बदल लेता हूँ, उसमें घुसता नहीं, क्योंकि किसी से भी बात करते समय जब बातें दूसरी दिशा में जाने लगे, तो पलट जाना बेहतर होता है. मैं हमेशा काम आने पर उसकी छानबीन कर मिलने जाता हूँ, ताकि किसी प्रकार की अनकम्फ़र्टेबल मुझे न लगे.

सवाल– यहाँ तक पहुँचने में किसका श्रेय मानते है?

जवाब– माता -पिता का सहयोग हमेशा रहता है, भले ही वे कई बार मेरे फैसले से दुखी हुए, पर अंत में सब ठीक हो गया. भाई – बहन और दोस्तों ने भी बहुत सहयोग किया है.

सवाल– आप के सपनो की राजकुमारी कैसी हो?

जवाब– अभी तक मैंने सोचा नहीं है, लेकिन मेरे लिए वह लड़की ठीक है, जिसने मुझे दिल से चाही हो, मैं एक सुलझा हुआ शांत, व्यक्ति हूँ, मेरे साथ वैसी ही कोई लड़की सही रहेगी, जो मेरे साथ मिलकर काम करें और महत्वाकांक्षी हो.

सवाल– आपको अगर कोई सुपर पॉवर मिले तो आप क्या बदलना चाहते है?

जवाब– करप्शन को हटाना, हायजिन के बारें में जागरूक करना, अच्छी सड़क का निर्माण करना, गांव में अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करना है, ताकि आगे हमें देश के विकास में इनका योगदान रहे.

 

बदलता नजरिया

दीपिका औफिस से लौट रही थी, तो गाड़ी की तेज गति के साथ उस के विचार भी अनियंत्रित गति से भागे जा रहे थे. आज उसे प्रमोशन लैटर मिला था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के उसे ब्रांच मैनेजर के पद के लिए चुना गया था. उसे सफलता की आशा तो थी पर पूरी भी होगी, इस बात का मन में संशय था, क्योंकि उस से भी सीनियर औफिसर इस पद के दावेदार थे. उन सब को सुपरसीड कर के इस पद को पाना उस की अपनेआप में बहुत बड़ी उपलब्धि थी. इस उपलब्धि पर औफिस में सभी लोगों ने बधाई तो दी ही थी, ट्रीट की मांग भी कर डाली थी. उस ने उसी समय अपने चपरासी को बुला कर मिठाई लाने के लिए पैसे दिए थे तथा सब का मुंह मीठा करवाया था. यह खुशखबरी वह सब से पहले जयंत को देना चाहती थी, जिस ने हर अच्छेबुरे पल में सदा उस का साथ दिया था. चाहती तो फोन के द्वारा भी उसे यह सूचना दे सकती थी पर ऐसा करने से सामने वाले की प्रतिक्रिया तो नहीं देखी जा सकती थी.

बहुत पापड़ बेले थे उस ने. घरबाहर हर संभव समझौता करने का प्रयत्न किया था. एकमात्र पुत्र की पुत्रवधू होने के कारण सासससुर को जहां उस से बहुत अरमान थे, वहीं कर्तव्यों की अनेकानेक लडि़यां भी उसे लपेटने को आतुर थीं. विवाह से पूर्व सास अमिता ने उस से पूछा था, ‘‘अगर जौब और फैमिली में तुम्हें कोई एक चुनना पड़े, तो तुम किसे महत्त्व दोगी?’’

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‘‘फैमिली को,’’ मां के सिखाए शब्द उस के मुंह से अनायास ही निकल गए थे, क्योंकि मां नहीं चाहती थीं कि उस की किसी बेवकूफी के कारण इतना अच्छा घर व वर हाथ से निकल जाए. उन्होंने उसे पहले ही नपातुला तथा सोचसमझ कर बोलने की चेतावनी दे दी थी.

उस के ममापापा को जयंत बहुत पसंद आया था. उस का स्वभाव, अच्छा ओहदा उस से भी अधिक उस का सुदर्शन व्यक्तित्व. जयंत एक मल्टीनैशनल कंपनी में प्रोजैक्ट मैनेजर था. जबकि वह स्वयं बैंक में प्रोबेशन अधिकारी थी. वह किसी हालत में अपनी नौकरी नहीं छोड़ना चाहती थी, लेकिन सास तो सास, मां का भी यही कहना था कि एक लड़की के लिए उस का घरपरिवार उस की महत्त्वाकांक्षा से अधिक होना चाहिए. हम चाहे स्वयं को कितना भी आधुनिक क्यों न मानने लगें पर मानसिकता नहीं बदलने वाली. स्त्री चाहे पुरुष से अधिक ही क्यों न कमा रही हो पर उस का हाथ और सिर सदा नीचे ही रहना चाहिए. यह बात और है कि एक स्त्री अपनी इसी विशेषता और विनम्रता के बल पर एक दिन सब के दिलों पर राज करने में सक्षम हो सकती है. बस इसी मानसिकता के तहत ममा ने सोचसमझ कर उत्तर देने के लिए कहा था और उस ने वही किया भी था.

सासूमां दीपिका के उत्तर से बेहद संतुष्ट हुई थीं और उन्होंने उसे अपनी बहू बनाने का फैसला कर लिया था. विवाह के बाद धीरेधीरे उस के लिए भी अपने कैरियर से अधिक घरपरिवार महत्त्वपूर्ण हो गया था, क्योंकि उस का मानना था कि अगर घर में सुखशांति रहे तो औफिस में भी ज्यादा मनोयोग से काम किया जा सकता है. उस की ससुराल में संयुक्त परिवार और अच्छा व बड़ा 4 बैडरूम का घर था. उस के विवाह के 2 महीने बाद ही ससुरजी रिटायर हो गए थे और ननद विभा का विवाह हो गया था. पर उसी शहर में रहने के कारण उस का आनाजाना लगा रहता था. विवाह के बाद सारी जिम्मेदारी सासूमां ने उसे सौंप दी थीं. इस बात से जहां उसे खुशी का अनुभव होता था, वहीं कभीकभी कोफ्त भी होने लगती थी, क्योंकि सुबह से ले कर देर रात तक वह किचन में ही लगी रह जाती थी. कहने को तो खाना बनाने के लिए नौकरानी थी, पर उसे सुपरवाइज तथा गाइड करना, सब के मनमुताबिक नाश्ताखाना बनवा कर सर्व करना उस का ही काम था. सुबहसुबह सब को बैडटी तथा रात में गरमगरम दूध देना तो उसे ही करना पड़ता था, वह भी सब के समय के अनुसार. विवाह से पूर्व जिस लड़की ने कभी एक गिलास पानी भी खुद ले कर न पिया हो, सिर्फ पढ़ना ही जिस का मकसद रहा हो, दोहरी जिम्मेदारी निभाना तथा साथ में सब को खुश रखना किसी चुनौती से कम नहीं था. पर जहां चाह हो वहां राह निकल ही आती है.

दीपिका जब गर्भवती हुई तो घर भर में खुशियों के फूल खिल गए थे. सासूमां ने उस की कुछ जिम्मेदारियां शेयर कर ली थीं. डिनर अब वे अपनी देखरेख में बनवाने लगी थीं. उस दिन रविवार था. शाम की चाय सब एकसाथ बैठे पी रहे थे कि अचानक ससुरजी आलोकनाथ ने चाय का कप टेबल पर रख दिया तथा बेचैनी की शिकायत की. जब तक कोई कुछ समझ पाता वे अचेत हो गए. जयंत ने आननफानन गाड़ी निकाली और उन्हें अस्पताल ले गए. पर वे बचे नहीं. सासूमां अचानक हुई इस दुर्घटना को सह नहीं पाईं. बारबार अचेत होने लगीं, तो डाक्टर ने उन्हें नींद का इंजैक्शन दे कर सुला दिया. उस के बाद विधिविधान से सारे काम हुए पर सासूमां सामने रहते हुए भी नहीं थीं. आखिर 34 वर्षों का साथ भुलाना आसान नहीं होता. फिर वे सब से कटीकटी रहने लगीं और घर में सब कुछ बिखराबिखरा सा लगने लगा. ऐसे में दीपिका कभीकभी यह सोचती कि वह नौकरी छोड़ दे. लेकिन थोड़ी देर में उसे लगता कि ऐसी कठिनाइयां तो हर किसी की जिंदगी में आती हैं तो क्या हर कोई पलायन कर जाता है? नहीं, वह नौकरी नहीं छोड़ेगी.

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फिर वक्त गुजरता गया और दीपिका को बेटी हुई. उस का नाम कविता रखा गया. दीपिका ने 6 महीने का ब्रेक लिया. फिर औफिस जाना शुरू किया तो कविता के लिए नौकरानी की व्यवस्था कर दी. उस पर भी सासूमां के ताने कि जरा भी आराम नहीं करने देती. हर समय चिल्लपों. क्या जिंदगी है, अपने बच्चे भी पाले और अब बच्चों के बच्चे भी पालो. दीपिका यह सब सुनती पर यह सोच कर मन को शांत करने का प्रयत्न करती कि वे अभी भी अपने दुख से उबर नहीं पाई हैं. पर फिर भी मन अशांत रहने लगा था. औफिस पहुंचने में जरा भी देरी होने पर सहकर्मी ताने कसते कि ये औरतें काम करने के लिए नहीं मस्ती करने के लिए आती हैं. धीरेधीरे समय गुजरता गया और कविता ने स्कूल जाना शुरू कर दिया. सासूमां ने भी स्वयं को संभाल लिया. कविता के स्कूल से आने पर जहां वे कविता का खयाल रखती थीं, वहीं उस के साथ बाहर भी आनेजाने लगी थीं.

घर का वातावरण सामान्य होने और कविता के बड़ा और समझदार होने पर जयंत को उस की कंपनी के लिए एक और बच्चे की चाहत हुई. चाहत तो उसे भी थी पर फिर वही परेशानी और अस्तव्यस्त जिंदगी, यह सोच कर वह इतना बड़ा निर्णय लेने में झिझक रही थी. फिर सोचा कि अगर प्लानिंग करनी है तो अभी ही क्यों नहीं? जैसेजैसे समय गुजरता जाएगा कठिनाइयां और बढ़ती जाएंगी. उस की कोख में फिर हलचल हुई तो नवागंतुक के आने की सूचना मात्र से सासूमां चहक उठीं, लेकिन कहा, ‘‘दीपिका इस बार लड़का ही होना चाहिए, बस इतना ध्यान रखना.’’

मांजी यह मेरे बस में नहीं है, यह कहना चाह कर भी नहीं कह पाई थी दीपिका. पर इतना अवश्य मन में आया था कि हम चाहे कितना भी क्यों न पढ़लिख जाएं, आधुनिक होने का दम भर लें पर लड़कालड़की में अभी भी भेद कायम है. संयोग से इस बार उसे बेटा ही हुआ, लेकिन पहले की तरह इस बार भी अड़चनें बहुत आईं. पर अपने लक्ष्य से वह नहीं भटकी. क्योंकि उस ने मन ही मन यह फैसला किया था कि अपने कार्य और कर्तव्य का निर्वहन वह पूरी ईमानदारी से करेगी. दूसरा क्या कहता है इस पर ध्यान नहीं देगी. शायद उस की एकाग्रता और सफलता का यही मूलमंत्र था.  चौराहे पर लालबत्ती के साथ ही उस के विचारों पर भी ब्रेक लग गया. यहां से घर तक का सिर्फ 10 मिनट का रास्ता था. 4 लोगों को सुपरसीड कर के ब्रांच मैनेजर बनना उस के कैरियर का अहम मोड़ था. वह इस खुशी को सब के साथ शेयर करना चाहती थी, चाहे प्रतिक्रियास्वरूप कुछ भी क्यों न सुनना पड़े.

दीपिका के घर के अंदर प्रवेश करते ही जयंत ने कहा, ‘‘दीपिका तुम आ गईं…कल मुझे कंपनी के काम से मुंबई जाना है. सुबह 6 बजे की फ्लाइट है. प्लीज, मेरा सूटकेस पैक कर देना… और हां कल मां को डा. पीयूष को शाम 6 बजे दिखाना है. तुम ले जाना… और प्लीज, मुझे डिस्टर्ब मत करना. कल के लिए मुझे प्रैजेंटेशन तैयार करना है.’’ जयंत का तो यह रोज का काम था… औफिस तो औफिस, वे घर में भी हमेशा ऐसे ही व्यस्त रहा करते हैं. कभी प्रैजेंटेशन, कभी कौन्फ्रैंसिंग तो कभी टूअर. और कुछ नहीं तो उन का फोन से ही पीछा नहीं छूटता. सीईओ जो हैं कंपनी के. आज वह अपने लिए उन से समय का एक टुकड़ा चाह रही थी पर वह भी नहीं मिला.

‘‘दीपिका आ गई हो तो जरा मेरे लिए अदरक वाली चाय बना देना. सिर में बहुत दर्द हो रहा है,’’ सासूमां की आवाज आई. दीपिका सासूमां को चाय दे कर लौट ही रही थी कि पल्लव ने कहा, ‘‘ममा, आज मेरे मित्र रवीश का बर्थडे है. वह होटल ग्रांड में ट्रीट दे रहा है, देर हो जाए तो चिंता मत कीजिएगा.’’ उस का लैटर पर्स में ही पड़ा रह गया. सब को व्यस्त देख कर तथा सासूमां की पिछली बातों को याद कर मन का उत्साह ठंडा पड़ गया था. अब अपनी सफलता का लैटर किसी को भी दिखाने का उस का मन नहीं हो रहा था. उस की सारी खुशियों पर मानों किसी ने ठंडा पानी डाल दिया था. बुझे मन से उस ने किचन की ओर कदम बढ़ाया. आखिर डिनर की तैयारी के साथ जयंत का सूटकेस भी तो उसे लगाना था.

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‘‘ममा, पापड़ रोस्ट करने जा रही हूं, आप लेंगी?’’ कविता ने दीपिका से पूछा. लेकिन दीपिका के कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करने पर कविता ने उसे झकझोरते हुए फिर अपना प्रश्न दोहराया. फिर भी जवाब में सूनी आंखों से उसे अपनी ओर देखता पा कर उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है ममा, क्या तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘ठीक है. तुम अपने लिए पापड़ रोस्ट कर लो, मेरा खाने का मन नहीं है.’’

‘‘ममा, कुछ बात तो है वरना रोस्टेड पापड़ के लिए आप कभी मना नहीं करती हो.’’

‘‘कोई बात नहीं है.’’

‘‘कुछ तो है जो आप मुझे भी नहीं बताना चाहतीं. आफ्टर औल वी आर फ्रैंड… आप ही तो कहती हो.’’ कविता के इतने आग्रह पर आखिर दीपिका से रहा नहीं गया. उस ने प्रमोशन लैटर की बात उसे बता दी.

‘‘वाऊ ममा, कौंग्रैचुलेशन. यू आर ग्रेट. वी औल आर प्राउड औफ यू. मैं अभी डैड को बता कर आती हूं.’’ ‘‘उन्हें डिस्टर्ब मत करना बेटा. जरूरी काम कर रहे हैं, कल उन्हें मुंबई जाना है.’’

‘‘पल्लव…’’

‘‘वह अपने मित्र की बर्थडे पार्टी में गया है.’’

‘‘तब ठीक है, दादी को बता कर आती हूं.’’

‘‘नहीं बेटा, उन के सिर में दर्द हो रहा है. उन्हें चाय और दवा दे कर आई हूं. वे आराम कर रही होंगी.’’ ‘‘ठीक है, डिनर के समय यह खुशखबरी सब के साथ शेयर करूंगी. मैं अभी आई.’’

जब तक दीपिका कुछ कहती तब तक वह जा चुकी थी. डिनर की सब्जियां बना कर रख दीं तथा जयंत का सूटकेस लगाने चली गई. लगभग 1 घंटे बाद लौट कर डिनर के लिए डाइनिंग टेबल अरेंज करने जा रही थी कि कविता को एक बड़ा सा पैकेट हाथ में ले कर अंदर प्रवेश करते हुए देखा.

‘‘यह क्या है बेटा?’’

‘‘एक सरप्राइज.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’

‘‘वेट ममा, वेट.’’

‘‘ममा, दीदी ने मुझे फोन कर के जल्दी घर आने के लिए कहा था पर कारण नहीं बताया. क्या बात है ममा, सब ठीक है?’’ थोड़ी ही देर बाद पल्लव ने अंदर आते हुए कहा. उस के चेहरे पर चिंता की झलक थी. ‘‘ममा, आप अंदर जाइए. जब मैं बुलाऊं तब आइएगा,’’ उस के हाथ से डिनर प्लेट लेते हुए कविता ने कहा, ‘‘ममा प्लीज, बस थोड़ी देर,’’ दीपिका को आश्चर्य में पड़ा देख कविता ने कहा. वह अंदर चली गई. थोड़ी देर बाद कविता ने सब को बुलाया.

‘‘केक, किस का जन्मदिन है आज?’’ डाइनिंग टेबल पर केक रखा देख कर सासूमां ने प्रश्न दागा. जयंत और पल्लव भी कविता की ओर आश्चर्य से देख रहे थे. ‘‘वेट… वेट… वेट… ममा, प्लीज आप इधर आइए,’’ कहते हुए कविता दीपिका का हाथ पकड़ कर उसे डाइनिंग टेबल के पास ले गई तथा हाथ में चाकू पकड़ाते हुए कहा, ‘‘ममा, केक काटिए.’’

कविता की बात सुन कर सासूमां, जयंत और पल्लव कविता को आश्चर्य से देखने लगे. ‘‘आज मेरी ममा का जन्मदिन है. आई मीन मेरी ममा के कैरियर का नया जन्मदिन,’’ उस ने सब के आश्चर्य को देखते हुए कहा.

‘‘कैरियर का नया जन्मदिन… क्या कह रही हो दीदी?’’  आश्चर्य से पल्लव ने पूछा.

‘‘हां, मैं ठीक कह रही हूं. आज मेरी ममा का प्रमोशन हुआ है. वे ब्रांच मैनेजर बन गई हैं. ममा प्लीज, इस खुशी के अवसर पर केक काट कर हम सब का मुंह मीठा करवाइए,’’ कविता ने दीपिका से आग्रह करते हुए कहा.

‘‘कौंग्रैचुलेशन ममा… वी औल आर प्राउड औफ यू…’’ पल्लव ने उस के गले लग कर बधाई देते हुए कहा.

‘‘तुम ने बताया नहीं कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है,’’ जयंत बोले.

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‘‘तुम बिजी थे.’’

‘‘बधाई… कब जौइन करना है?’’

‘‘कल ही अलीगंज ब्रांच में.’’

‘‘बधाई बहू… बड़ा पद, बड़ी जिम्मेदारी. पर औफिस में ही इतना मत उलझ जाना कि घर अस्तव्यस्त हो जाए. घर में तू बहू के रूप में भी सफल हो कर दिखाना.’’ ‘‘मांजी, आप निश्चिंत रहें. मैं औफिस में ही ब्रांच मैनेजर हूं, घर में तो आप की बहू ही हूं,’’ दीपिका ने उन के कदमों में झुकते हुए कहा. ‘‘वह तो मैं ने ऐसे ही कह दिया था दीपिका. सच तो यह है कि तू ने घर की सारी जिम्मेदारियों के साथ बाहर की जिम्मेदारियां भी बखूबी निभाई हैं. मुझे तुझ पर गर्व है. और मेरी जितनी सेवा तू ने की है, उतनी तो मेरी बेटी भी नहीं कर पाती.’’ ‘‘ऐसा मत कहिए मांजी, आप मां हैं मेरी. अगर आप पगपग पर मेरे साथ खड़ी न होतीं, तो शायद न मैं सफलता प्राप्त कर पाती और न ही अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से कर पाती.’’

‘‘ममा, केक,’’ कविता ने कहा.

‘हां बेटा.’’ मांजी और जयंत की आंखों में स्वयं के लिए सम्मान देख कर दीपिका के मन में जमी बर्फ पिघलने लगी थी. हर उत्तरदायित्व को निभाते जाना ही एक बार फिर उस के जीवन का लक्ष्य बन गया था.

ट्रिक

ट्रिक – भाग 1 : मां और सास के झगड़े को क्या सुलझा पाई नेहा?

“मम्मा आप को एक खुशखबरी देनी थी.”

“हां बेटा बता न क्या खुशख़बरी है? कहीं तू मुझे नानी तो नहीं बनाने वाली?” सरला देवी ने उत्सुकता से पूछा.

“जी मम्मा यही बात है,” कहते हुए नेहा खुद में शरमा गई.

आज सुबह ही नेहा को यह बात कंफर्म हुई थी कि वह मां बनने वाली है. एक बार जा कर हॉस्पिटल में भी चेकअप करा लिया था. अपने पति अभिनव के बाद खुशी का यह समाचार सब से पहले उस ने अपनी मां को ही सुनाया था.

मां यह समाचार सुन कर खुशी से उछल पड़ी थीं,” मेरी बच्ची तू बिलकुल अपने जैसी प्यारी सी बेटी की मां बनेगी. तेरी बेटी अपनी नानी जैसी इंटेलिजेंट भी होगी और तेरे जैसी खूबसूरत भी. ”

“मम्मा आप भी न कमाल करते हो. आप ने पहले से कैसे बता दिया कि मुझे बेटी ही होगी?”

“क्योंकि बेटा ऐसा मेरा दिल कह रहा है और मैं ऐसा ही चाहती हूं. मेरी बच्ची देखना तुझे बेटी ही होगी. मैं अभी तेरे पापा को यह समाचार दे कर आती हूं. ”

नेहा ने मुस्कुराते हुए फोन काटा और अपनी सास को फोन लगाया,” मम्मी जी आप दादी बनने वाली हो.”

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“क्या बहू तू सच कह रही है? मेरा पोता आने वाला है? तूने तो मेरा दिल खुश कर दिया. सच कब से इस दिन की राह देख रही थी. खुश रह बेटा,” सास उसे आशीर्वाद देने लगीं.

नेहा ने हंस कर कहा,” मम्मी जी ऐसा आप कैसे कह सकती हो कि पोता ही होगा? पोती भी तो हो सकती है न. ”

“न न बेटा. मुझे पोता ही चाहिए और देखना ऐसा ही होगा. पर बहू सुन तू अपनी पूरी केयर कर. इन दिनों ज्यादा वजन मत उठाना और वह लीला आ रही है न काम करने?”

“हां मम्मी जी आप चिंता न करो वह रेगुलर काम पर आ रही है. आजकल छुट्टियाँ लेनी भी कम कर दी है. ”

” उसे छुट्टी बिल्कुल भी मत देना बेटा. ऐसे समय में तेरा आराम करना बहुत जरूरी है. खासकर शुरू के और अंत के 3 महीने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.”

“हां मम्मी जी मैं जानती हूं. आप निश्चिंत रहिए. मैं अपना पूरा ख्याल रखूंगी,” कह कर नेहा ने फोन काट दिया.

प्रैग्नैंसी के इन शुरुआती महीनों में नेहा का जी बहुत मिचलाता था. ऐसे में अभिनव उस की बहुत केयर कर रहा था. कामवाली भी अपनी बीवी जी को हर तरह से आराम देने का प्रयास करती. सब कुछ अच्छे से चल रहा था. नेहा का पांचवां महीना चढ़ चुका था. उस दिन सुबहसुबह उठ कर वह बालकनी में आई तो देखा मां गाड़ी से उतर रही हैं. उन के हाथ में एक बड़ा सा बैग और नीचे सूटकेस भी रखा हुआ था. यानी मां उस के पास रहने आई थीं. खुशी से चिल्लाती हुई नेहा नीचे भागी. पीछेपीछे अभिनव भी पहुंच गया.

मां के हाथ से सूटकेस ले कर सीढ़ियां चढ़ते हुए उस ने पूछा,” मम्मी जी आप के क्लासेज का क्या होगा? आप यहां आ गए तो फिर बच्चों के क्लासेज कैसे कंटिन्यू करोगे?”

“अरे बेटा आजकल क्लासेज ऑनलाइन हो रहे हैं न. तभी मैं ने सोचा कि ऐसे समय में मुझे अपनी बिटिया के पास होना चाहिए.”

“यह तो आप ने बहुत अच्छा किया मम्मी जी. नेहा का मन भी लगेगा और उस की केयर भी हो जाएगी.”

“हां बेटा यही सोच कर मैं आ गई.”

“पर मम्मा पापा आप के बिना सब संभाल लेंगे?” नेहा ने शंका जाहिर की.

” बेटे तेरे पापा को संभालने के लिए बहू आ चुकी है. अब तो उन के सारे काम वही करती है. मैं तो वैसे भी आराम ही कर रही होती हूं.”

“ग्रेट मम्मा. आप ने बहुत प्यारा सरप्राइज दे दिया,” नेहा आज बहुत खुश थी. कितने समय बाद आज उसे मां के हाथों का खाना मिलेगा.

नेहा की मां को आए 10 दिन से ज्यादा समय बीत चुका था. मां उसे अपने हिसाब से प्रैग्नैंसी में जरुरी चीजें खिलातीं. उसे ताकीद करतीं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं. अपनी प्रैग्नैंसी के किस्से सुनातीं. सब मिला कर नेहा का समय काफी अच्छा गुजर रहा था. उस की मां काफी पढ़ीलिखी थीं. वह कॉलेज में लेक्चरर थीं और उसी हिसाब से थोड़ी कड़क भी थीं. जबकि नेहा का स्वभाव उन से अलग था. पर मां बेटी के बीच का रिश्ता बहुत प्यारा था और फिलहाल नेहा मां के सामीप्य और प्यारदुलार का भरपूर आनंद ले रही थी.

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समय इसी तरह हंसीखुशी में बीत रहा था कि एक दिन अभिनव की मां का फोन आया,” बेटा मैं बहू के पास आ रही हूं. बड़ा मन कर रहा है अपने पोते को देखने का.”

“पर मौम आप का पोता अभी आया कहां है?” अभिनव ने टोका.

“अरे पागल आया नहीं पर आने वाला तो है. गर्भ में बैठे अपने पोते की सेवा नहीं करूंगी तो भला कैसी दादी कहलाउंगी? चल फोन रख मैं ने पैकिंग भी करनी है.”

“पर मौम आप का सत्संग और वह सेमिनार जहां आप रोज जाती हो? फिर आप का टिफिन सर्विस वाला बिजनेस भी तो है. उसे छोड़ कर यहाँ कैसे रह पाओगे?”

 

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