महिला विमर्श हिंदू धर्म, आरएसएस और कांग्रेस द्य शैलेंद्र सिंह कांग्रेस महिला विमर्श के मसले पर सच में संवेदनशील दिखाई दे रही है या चुनावी जमीन तैयार कर रही है, यह बाद में पता चलेगा, पर उत्तर प्रदेश में महिलाओं को 40 प्रतिशत सीटें देने और महिला कांग्रेस दिवस पर राहुल गांधी का महिलाओं के नाम आरएसएस पर बेबाक बयान, बहुतकुछ इशारा करता है. आरएसएस जिस मनुवादी विचारधारा का समर्थक है उस में कहा गया है कि ‘महिला को बचपन में पिता के अधीन, यौवनवास्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए.
’ पौराणिक ग्रंथों में महिला को ‘पितृसत्ता’ के अधीन रहने को ‘स्त्रीधर्म’ बताया गया. सीता, अहल्या, द्रौपदी, कुंती, गांधारी जैसी जिन महिलाओं को देवी की उपाधि दी गई, ‘पितृसत्ता’ द्वारा उन का भी तिरस्कार किया गया था. राहुल गांधी के आरएसएस की दुखती नस पर दबाव डालने से आरएसएस के लोग तिलमिला गए. जबकि सभी को यह पता है कि आरएसएस का पूर्णकालिक प्रचारक बनने के लिए गृहस्थ जीवन को छोड़ना पड़ता है. आरएसएस में प्रचारकों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिस ने शादी नहीं की है. राहुल गांधी ने जो बात कही उस को चुनाव की जगह पर समाज की हालत के साथ मिला कर देखा जाए तो बेहतर विश्लेषण हो सकेगा. भारतीय महिला कांग्रेस की स्थापना दिवस पर बोलते हुए कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को महिलाविरोधी बताते हुए कहा कि ‘‘भाजपा और आरएसएस महिलाशक्ति को दबाते हैं.’’
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राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘महात्मा गांधी के आसपास 3-4 महिलाएं देखी जाती थीं. क्या किसी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ महिलाओं को देखा है. इस की वजह यह है कि उन का संगठन महिलाशक्ति को दबाता है, क्रश करता है. भाजपा और आरएसएस खुद को हिंदूवादी पार्टी कहते हैं. 100-200 साल के अंदर अगर किसी व्यक्ति ने हिंदू धर्म को सम?ा और उस को अपनी जीवनशैली में उतारा तो वे महात्मा गांधी थे. यह बात आरएसएस और भाजपा दोनों ही मानते हैं. अगर गांधीजी हिंदू थे तो उन की हत्या क्यों की गई? आरएसएस और भाजपा ने कभी किसी महिला को प्रधानमंत्री नहीं बनाया क्योंकि ये महिलाविरोधी हैं. भाजपा ने महिला आरक्षण बिल को संसद में पास नहीं होने दिया.’’ महिलाओं को प्रोत्साहन नहीं राहुल गांधी की बात बहुत हद तक सही है.
भारतीय जनता पार्टी में कई ऐसी महिला नेता रही हैं जिन्होंने अपने बलबूते अपनी पहचान बनाई. लेकिन आरएसएस ने इस तरह की महिला नेताओं को कभी आगे नहीं बढ़ाया. इन में सुषमा स्वराज, उमा भारती, हेमा मालिनी, मेनका गांधी, स्मृति ईरानी जैसे तमाम नाम हैं. सुषमा स्वराज योग्यता में कभी भी किसी पुरुष नेता से कम न थीं. सुषमा स्वराज के पिता हरदेव शर्मा अंबाला, हरियाणा के रहने वाले थे. वे शुरू से ही आरएसएस के कायकर्ता थे. मूलरूप से लाहौर के धरमपुरा के रहने वाले थे वे. बंटवारे के बाद वे अंबाला में बस गए थे. सुषमा की शादी स्वराज कौशल से हुई. उन्होंने अपना कैरियर वकील के रूप में शुरू किया. 1970 के दशक में सुषमा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना कैरियर शुरू किया. वे दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. लोकसभा स्पीकर बनीं.
इस के बाद भी आरएसएस ने उन को उतना महत्त्व नहीं दिया जितने की वे हकदार थीं. इसी तरह से उमा भारती हिंदुत्व से जुड़ी थीं. मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं और केंद्र सरकार में मंत्री रहीं. इस के बाद भी उमा भारती को वैसा स्थान नहीं मिला जिस तरह से कल्याण सिंह को दिया गया. इस कड़ी में हेमा मालिनी, मेनका गांधी और स्मृति ईरानी जैसे तमाम नाम भी शामिल हैं, जिन को आरएसएस ने उतना महत्त्व नहीं दिया जितना देना चाहिए था. महिला नेताओं को आगे न बढ़ाने के कारण ही भाजपा में महिला नेता की कमी दिखती है. किसी भी प्रदेश में उस के पास मायावती, ममता बनर्जी, जयललिता, शीला दीक्षित और नंदिनी सप्तपदी जैसी महिला नेता नहीं है, जो अपने बलबूते पर अपनी पहचान बनाने में सफल हो सकी हो. सरकारी नीतियों में महिलाओं को राहत नहीं मोदी सरकार की तमाम ऐसी योजनाएं हैं जो महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन रही हैं.
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मोदी सरकार नोटबंदी को सब से सफल योजना बताती है. नोटबंदी में सब से अधिक परेशानी महिलाओं को उठानी पड़ी. गांवकसबे से ले कर शहर तक की महिलाओं ने छिपा कर पैसा रखा था वह उन को बाहर निकालना पड़ा. इस के बाद मोदी सरकार के दौर में महंगाई सब से अधिक बढ़ी है, जिस का प्रभाव किचन व महिलाओं पर सब से अधिक पड़ा है. महिलाओं को घर चलाने के लिए जो पैसा मिलता था उसी में कटौती कर के वे अपनी बचत करती थीं. महंगाई के दौर में किचन का बजट गड़बड़ा गया. ऐसे में बचत कहां से होगी, सम?ा जा सकता है. यही नहीं, नोटबंदी और जीएसटी के कारण छोटेछोटे रोजगार करने वाली महिलाएं वकील और सरकारी कर्मचारियों के पास चक्कर लगाती घूम रही हैं. रसोई गैस के दाम बढ़ने से महिलाओं को दिक्कत हो रही है.
इस के साथ ही साथ भारतीय संस्कृति के नाम पर तरहतरह के दबाव महिलाओं पर बनाए जाते हैं. कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव में 40 फीसदी टिकट महिलाओं को देने की बात कही तो सब से अधिक दिक्कत भाजपा को ही हुई. इस की प्रमुख वजह यह है कि आरएसएस महिला सम्मान की बात तो करता है लेकिन उस को अधिकार दिए जाने के मामले में मौन धारण कर लेता है. जिस की वजह से राहुल गांधी जैसे नेताओं को आरएसएस पर बोलने का मौका मिला है. मनुवादी विचारों में महिलाओं को देवी बना कर रखने की बात कही गई पर उन को कभी अधिकार नहीं दिए गए, जिस की वजह से महिला नेता केवल शोपीस बन कर रह जाती हैं.
राहुल के बयान पर जवाबी हमला कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के बयान पर आरएसएस और भाजपा से जुड़े लोगों की तीखी प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर दिखने लगी है. भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने लिखा, ‘‘वैचारिक निरक्षर राहुल गांधी तो संघ पर अनापशनाप बोलते रहते हैं. कोई आश्चर्य नहीं होता. राहुल गांधी अगर हिंदू हैं तो बताएं कि राममंदिर निर्माण में एक रुपया भी दिया है?’’ भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा ने लिखा कि राहुल गांधी द्वारा महात्मा गांधी को पहले भी राजनीति में घसीटने का प्रयास किया जा चुका है. उन पर केस हुआ था, माफी भी मांगी थी. अब वे फिर से वही गलती कर रहे हैं. राहुल गांधी नासम?ा हैं, वे गलती पर गलती करते ही रहेंगे.’’ राहुल गांधी आरएसएस को ले कर हमलावर होते रहते हैं. किसान आंदोलन में राहुल गांधी ने कहा कि ‘‘आरएसएस हमले करना सिखाता है.’’ ऐसे ही अलगअलग अवसरों पर राहुल गांधी के ऐसे बयान आते रहते हैं.
राहुल अकेले ऐसे नेता हैं जो आरएसएस पर खुल कर बोलते रहते हैं. यही वजह है कि आरएसएस और उस से जुड़े लोग भी राहुल गांधी की आलोचना व उन्हें ‘नासम?ा’ ‘पप्पू’ साबित करने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते. सोशल मीडिया पर सक्रिय भाजपा का आईटी सैल लगातार राहुल गांधी को पप्पू साबित करने और उन का मखौल उड़ाने में पीछे नहीं रहता. राहुल गांधी कितनी भी सही बात कहें, उन का मजाक उड़ाने का प्रयास किया जाता है ताकि जनता राहुल गांधी का भरोसा न करे. नोटबंदी से ले कर कोरोना तक राहुल गांधी ने जनता को सच दिखाने का काम किया था. लेकिन आईटी सैल और व्हाट्सऐप के फेक मैसेज इस तरह से सच को ?ाठ बनाने में लग गए कि जनता को सच ?ाठ ही नजर आने लगा. आरएसएस को क्यों पसंद नहीं है राहुल गांधी राहुल गांधी आरएसएस पर हमलावर रहते हैं और आरएसएस राहुल गांधी पर. इस की वजह बहुत साफ है.
आरएसएस और कांग्रेस के बीच वैचारिक टकराव हमेशा रहा है. आरएसएस की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को हुई थी. कांग्रेस मानती है कि यही वह दौर था जब देश में हिंदुत्व को ले कर राजनीति शुरू हुई, जिस के फलस्वरूप देश का विभाजन हुआ. आरएसएस देश के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को दोषी मानता था, जिस के परिणामस्वरूप 1948 में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी. 30 जनवरी, 1948 को घटित इस घटना के बाद आरएसएस पर पहली बार प्रतिबंध लगाया गया था. उस समय आरएसएस के सरसंघ चालक गुरु गोलवलकर को बंदी भी बनाया गया था. करीब एक साल बाद 11 जुलाई, 1949 को कुछ शर्तों के साथ यह प्रतिबंध हटाया गया था. इस के बाद 1975 में इमरजैंसी के समय भी आरएसएस पर 2 साल के लिए प्रतिबंध लगा था.
आरएसएस पर तीसरी बार 1992 में 6 माह का प्रतिबंध लगा था जब अयोध्या में ढांचा गिराया गया था. इन घटनाओं के कारण आरएसएस को यह लगता है कि कांग्रेस के कारण ही उस पर बारबार प्रतिबंध लगा है. आरएसएस यह कभी नहीं चाहता कि कांग्रेस सत्ता में आए. राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी को विदेशी कहा गया, गोरी चमड़ी की जर्सी गाय कहा गया ताकि देश की जनता उन को स्वीकार न करे. इस के बाद भी सोनिया गांधी ने 2004 में भाजपा की अटल बिहारी सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया. इस के बाद 2014 तक 10 साल कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखा. अगर 2024 में भाजपा सत्ता से बाहर होती है, फिर सत्ता में उस की वापसी कठिन हो जाएगी.
इस कारण आरएसएस और भाजपा सरकार से बाहर नहीं होना चाहते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए वे हर संभव काम करने को तैयार हैं. आरएसएस कई बार अपने लोगों को भी यह सम?ाता है कि कांग्रेस का विरोध क्यों जरूरी है. इस में यही कहा जाता है कि कांग्रेस की जब मजबूत सरकार आ जाएगी तो आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऐसे में पहली जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस को सत्ता में आने से रोका जाए. अगर राहुल गांधी की पीढ़ी को सत्ता में आने से रोक लिया गया तो कांग्रेस का वजूद खत्म हो जाएगा. फिर भाजपा और आरएसएस को रोकने वाला कोई दूसरा दल नहीं होगा. इस कारण आरएसएस राहुल गांधी को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखना चाहता है. हिंदू गोलबंदी को सम?ा गए राहुल गांधी 2014 के बाद भले ही कांग्रेस 2 लोकसभा चुनाव हार गई हो, लेकिन उस ने आरएसएस और भाजपा पर हमले जारी रखे. सरकार के गलत कामों का विरोध किया.
इस में नोटबंदी और किसान आंदोलन प्रमुख रहे हैं. राजनीतिक रूप से कांग्रेस का भाजपा पर हमला करना सम?ा जा सकता है पर जिस तरह से राहुल गांधी आरएसएस को ले कर हमला करते हैं, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर हमला करते हैं, वह आरएसएस को बहुत नागवार गुजरता है. यही कारण है कि आरएसएस राहुल गांधी को कभी पसंद नहीं करता. आरएसएस को यह पता है कि कांग्रेस अकेली पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बन सकती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ही भाजपा को सत्ता में आने से रोक सकती है. 2014 के बाद जिस तरह से भाजपा का उदय हुआ है उसे आरएसएस अपना गोल्डन पीरियड मान रहा है.
ऐसे में वह 2024 में लोकसभा चुनाव किसी भी कीमत पर हारना नहीं चाहता है. राहुल गांधी यह सम?ा गए हैं कि भाजपा पर हमले करने के पहले उस की विचारधारा और उस को चलाने वालों पर हमले होने चाहिए. इसी कारण वे आरएसएस की मनुवादी नीतियों पर हमला करते हैं. इन में महिला, दलित और गरीब शामिल होते हैं. राहुल गांधी ने आरएसएस के महिलाविरोधी होने का बयान भी इसी दिशा में दिया है. फरवरीमार्च 2022 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों में भाजपा उत्तर प्रदेश को केंद्र में रख कर अपनी चुनावी रणनीति बना रही है.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने महिलाओं को आगे करने का अभियान चलाया है. कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने नारा दिया है ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं.’ राहुल गांधी ने कांग्रेस को महिलाओं को मंच देने वाली पार्टी बताया और भाजपा को महिलाविरोधी. भाजपा को महिलाविरोधी बताते हुए राहुल गांधी ने आरएसएस को भी जोड़ लिया. हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत राजनीतिक बहस के इतर अगर सम?ाने की कोशिश की जाए कि हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत क्या है तो यह साफ पता चलता है कि हिंदू धर्म में महिलाओं की हालत दयनीय रही है. आरएसएस जिस मनुवाद की विचारधारा को मानता है, उस में महिलाओं को किसी भी तरह के अधिकार देने की बात नहीं कही गई है.
मनु ने कहा कि ‘महिला को बचपन में पिता के अधीन, यौवनवास्था में पति के आधिपत्य में तथा पति की मृत्यु के उपरांत पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए.’ इस विचारधारा से महिलाओं के अधिकारों का हनन शुरू हो गया. धीरेधीरे महिलाओं को दोयम दर्जे का मान लिया गया. महिलाओं के साथ अत्याचारों का सिलसिला शुरू हो गया. उस पर तरहतरह की पाबंदियां लगाई जाने लगीं जिन में परदे में रहना, पुरुषों की आज्ञा का पालन करना, चारदीवारी में रहना और धर्म की बातों को मानना प्रमुख था. यहीं से महिला भोग्य के रूप में बदलती चली गई. महिला का प्रमुख काम संतान पैदा करना रह गया. तमाम व्रतत्योहार ऐसे बनाए गए जिस से वह पूजापाठ में लीन रह सके.
पौराणिक ग्रंथों में इस के प्रमाण भी मिलते हैं. द्वापर युग में द्रौपदी इस का सब से बड़ा उदाहरण है. द्रौपदी के साथ जैसा हुआ वैसा किसी अन्य महिला के साथ नहीं हुआ. द्रौपदी ने अर्जुन के साथ विवाह किया. इस के बाद भी सास के कहने पर उसे 5 पतियों के साथ रहना पड़ा. यही नहीं, किसी वस्तु की तरह उस को जुए में दांव पर लगा दिया गया जहां भरी सभा में उसे दुर्योधन के हाथों अपमानित होना पड़ा. धर्म के प्रभाव में धीरेधीरे महिलाओं की हालत और भी खराब होती चली गई. कोशिश यह की जाने लगी कि महिलाओं को जन्म देते ही मार दिया जाए. धर्म में पिंडदान को बहुत महत्त्व दिया गया. पिंडदान करने का अधिकार बेटे को दिया गया. ऐसे में हर किसी की चाहत बेटे की होने लगी. पुत्री के जन्म को भेदभाव की नजर से देखा जाना शुरू हो गया. ‘पितृसत्ता’ और ‘पतिव्रत धर्म’ मनु और याज्ञवल्क्य जैसे लोगों के द्वारा महिलाओं पर ‘पतिव्रत धर्म’ का पालन करने और पति को परमेश्वर का रूप मानने का आदेश दिया जाने लगा.
11वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी के काल में महिलाओं पर पाबंदियां बढ़ने लगीं. यह वह दौर था जब भारत पर मुसलमानों का आक्रमण शुरू हुआ. बादशाहों ने जोरजबरदस्ती कर के धर्मपरिवर्तन करवाया तथा महिलाओं के साथ ज्यादतियां शुरू कर दीं. यहीं से महिलाओं में परदा प्रथा शुरू हुई. महिलाओं को घर की चारदीवारी की कैद में रहने के लिए मजबूर किया जाने लगा. बालविवाह बढ़ गए. शिक्षा के रास्ते बंद हो गए. सती प्रथा शुरू हो गई. महिलाओं को घर के कामकाज तक ही सीमित कर दिया गया. पति परमेश्वर, पतिव्रत धर्म और पति के आदेशों पर महिलाओं को चलने को ही नैतिकता कहा जाने लगा. महिलाओं को जन्म से मृत्यु तक पुरुषों के अधीन कर दिया गया.
महिलाओं को हर तरह से गुलाम बना कर रखा जाने लगा. सैक्स के लिए उन्हें वेश्यालयों में बेचा जाने लगा. दक्षिण भारत में कुंआरी कन्याओं को देवदासी बना कर मंदिरों में भेजा जाने लगा जहां उन का शोषण होता था. हिंदू धर्म की व्यवस्था पुरुष प्रधान हो गई. पुरुष अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए महिलाओं का उपयोग एक वस्तु की तरह करने लगा. आज भी लड़कियों की भ्रूण हत्या की जाती है. धर्म की आड़ में अभी भी महिलाओं का उत्पीड़न किया जाता है. महिलाओं को नहीं है धार्मिक अधिकार महिलाओं की पूरी जीवनशैली को नियंत्रण में करने का काम धर्म ने किया. मंदिरों या दूसरी धार्मिक जगहों पर महिलाओं का प्रवेश तक उन के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. धर्म यह तो चाहता है कि महिलाएं धर्म का पालन करें पर उन को किसी भी तरह का अधिकार नहीं देना चाहता.
धर्म महिलाओं के साथ भेदभाव करता है. माहवारी को ले कर उस ने तमाम रिवाज बना रखे हैं. उस समय महिला के साथ अछूत सा व्यवहार किया जाता है. धार्मिक कर्मकांड में भी उन के साथ भेदभाव किया गया. पिंडदान से ले कर तमाम अधिकार उन को नहीं दिए गए. इसी राह पर चलते हुए उन को पिता की जायदाद से भी बेदखल किया गया. कुछ सालों में ऐसी तमाम घटनाएं घटीं, जिन को देखने से महिलाओं के साथ धार्मिक भेदभाव देखा जा सकता है. केरल के सबरीमला मंदिर, महाराष्ट्र के शनि शिगणापुर मंदिर और मुंबई के हाजी अली में भी महिलाओं का प्रवेश विवादों में रहा है. सबरीमाला में 10 से 50 साल तक की उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मसला सुप्रीम कोर्ट तक गया. शनि शिगणापुर में महिलाओं के प्रवेश पर विवाद है. माना जाता है कि महिलाओं के प्रवेश से यह स्थान अपवित्र हो जाता है.
वैसे, महिलाओं को खुद ही ऐसी जगहों पर नहीं जाना चाहिए जहां उन के मान और सम्मान को चोट पहुंचाई जाती हो. धर्म तो हमेशा से ही महिलाओं के मानसम्मान पर ठेस पहुंचाता है. धर्म और परंपरा के नाम पर महिलाओं पर पाबंदी लगाई जाती है. सबरीमला में यह परंपरा 500 साल पुरानी और शनि शिगणापुर मंदिर में इसे 400 साल पुरानी बताई जाती है. 21वीं सदी में भी यह परंपरा टूट नहीं सकती. धर्म यह मानता है कि महिलाओं से धर्म को खतरा होता है. आदमी भले ही पुरानी पंरपरा तोड़ रहे हों पर वे यह नहीं चाहते कि महिलाएं यह परंपरा तोड़ें. अगर परंपरा की बात करें तो आदमी धोतीकुरता पहनते थे. आज उन का पहनावा बदल गया है. परंपरा तो समुद्र पार न करने की भी थी. मगर आज लोग विदेश जा रहे हैं. परंपरा तो मंदिर और मसजिद में लाउडस्पीकर लगाने की भी न थी. अब लग रहे हैं. धर्म के नाम पर लोगों को जो पंसद था उस को अपना लिया और जो नापसंद था उस पर पाबंदी लगा दी.
शनि मंदिर, सबरीमाला और हाजी अली में महिलाओं को परंपरा के नाम पर रोका जाता है. यह परंपरा पवित्र है, इस से सम?ाता कोई नहीं करना चाहता. महिलाएं नौकरी, सिनेमा, सेना, संसद और विधानसभा में जाने के बाद भी पुरुष के बराबर नहीं हो सकती हैं. महिलाओं के साथ धार्मिक रूप से यह भेदभाव कायम है. महिलाओं से मंदिर अपवित्र होता है. कुछ मंदिरों में माहवारी के नाम पर महिलाओं को रोका जाता है. कहीं दलित, गैरबिरादरी धर्म के नाम पर रोका जाता है. मासिकधर्म महिलाओं की प्रजनन क्षमता का सूचक है, जिस के कारण पुरुष पैदा होते हैं, जिस को धार्मिक परंपरा माना जाता है. असल में, यह पितृसत्ता का प्रतीक माना जाता है. आरएसएस पितृसत्ता और मनुवाद को मानता है, जिस के मूल में महिलाओं को अधिकार नहीं देना रहा है. ऐसे में राहुल गांधी ने जो बात कही उस में कुछ गलत नहीं है. चुनाव के हिसाब से इस मुद्दे को देखने की जगह अगर समाज की हालत के रूप में देखा जाए तो अच्छा रहेगा.