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Valentine’s Special: बनें स्मार्ट हमसफर

आजकल ज्यादातर कपल्स वर्किंग हैं. ऐसे में भागदौड़ भरी लाइफ में काम व स्ट्रैस की वजह से उन के बीच छोटीछोटी बातों को ले कर अनबन हो ही जाती है. अगर इन विवादों को साथ मिल कर दूर कर लिया जाए तो लाइफ आसान बन सकती है. आप भी छोटीछोटी बातों पर ध्यान दे कर एक स्मार्ट पार्टनर बन सकते हैं और अपने साथी को खुशियों भरा उपहार दे सकते हैं.

पसंदनापसंद का रखें ध्यान

प्यार भरे संबंधों के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने साथी की पसंदनापसंद का ध्यान रखें. अगर उसे आप की कोई बात अच्छी नहीं लगती है तो उसे बदलने की कोशिश करें. इसी तरह से इस बात का भी खयाल रखें कि कौनकौन सी बातें हैं जो आप के साथी को अच्छी लगती हैं और जो आप के जीवनसाथी के चेहरे पर मुसकान ला सकती हैं. अगर आप के साथी को आप का फुजूलखर्च करना अच्छा नहीं लगता है, तो कोशिश करें कि  बेवजह की चीजों में पैसे बरबाद न करें. अगर किसी चीज के लिए आप को मना कर दिया है तो उस के लिए जिद न करें, बल्कि यह समझने की कोशिश करें कि आप के साथी ने आप की भलाई के लिए ही मना किया है.

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एकदूसरे को स्पेस दें

शादी से पहले भले ही आप का ऐक्स्ट्रा केयरिंग नेचर आप के पार्टनर को अच्छा लगता हो लेकिन शादी के बाद ऐक्स्ट्रा केयरिंग नेचर आप दोनों के बीच मनमुटाव का कारण भी बन सकता है. इसलिए एकदूसरे को स्पेस दें. हर बात के लिए पूछताछ न करें बल्कि भरोसा करना सीखें. एकदूसरे के निर्णयों का सम्मान करें.

सुझाव दें मगर थोपें नहीं

कई बार ऐसा देखा जाता है कि पति जब भी कोई चीज खरीदने की प्लानिंग करते हैं तो पत्नी उस में अपने सुझाव के बजाय अपना फैसला थोपने लगती है कि नहीं यह गाड़ी नहीं, गाड़ी खरीदेंगे तो बड़ी ही खरीदेंगे. ऐसा न करें. बल्कि आप उस में आर्थिक रूप से मदद करने की कोशिश करें.

टैक्नोफ्रैंडली बनें

आप कामकाजी महिला हों या घरेलू, कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा टैक्नोलौजी का इस्तेमाल करें, जिस से आप को हर बात के लिए अपने पति पर निर्भर रहने की जरूरत न पड़े. आप को यह बात समझने की जरूरत है कि आप के पति के पास कई काम होते हैं और ऐसे में आप भी उन पर निर्भर रहेंगी तो इस बात से आप दोनों के बीच हलकीफुलकी नोकझोंक हो सकती है. इसलिए घर के छोटेमोटे काम जिन्हें आप टैक्नोलौजी की मदद से कर सकती हैं खुद करें. ऐसा कर के आप न केवल स्मार्ट वूमन बन सकती हैं बल्कि अपना कीमती समय भी बचा सकती हैं.

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फाइनैंशियल प्लानिंग करें

आज फाइनैंशियल प्लानिंग बहुत जरूरी है, जो आप के भविष्य को सुरक्षित और टैंशन फ्री बनाती है. आजकल इस तरह की भी पौलिसी आ रही हैं जो आप दोनों कम्बाइंड ले सकते हैं. आप दोनों को अलगअलग पौलिसियां लेने की जरूरत नहीं है, बल्कि एक ही पौलिसी से आप अपना फ्यूचर सिक्योर कर सकते हैं.

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पार्टनर की राय अवश्य लें

आप घर, कार या इनवैस्टमैंट की प्लानिंग कर रहे हैं तो अपने पार्टनर की राय अवश्य लें. कई पति ऐसा सोचते हैं कि पत्नी से क्या पूछना, उसे इन सब चीजों की कहां जानकारी होती है. ऐसा न करें, बल्कि यह भी हो सकता है कि आप के पार्टनर को इस के बारे में आप से ज्यादा जानकारी हो और वह आप को सही गाइड कर सके.

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सुरक्षा व खुशियों भरा उपहार दें

अकसर पार्टनर एकदूसरे को शादी की सालगिरह या बर्थडे पर कपड़े, फोन या सजनेसंवरने की चीजें ही गिफ्ट करते हैं. आप भी इसी तरह के गिफ्ट्स न दें, बल्कि आप अपने पार्टनर को एक स्मार्ट उपहार यानी इंश्योरैंस पौलिसी का उपहार दें, जो उसे खुशी के साथसाथ सुरक्षा भी दे. जिस तरह से आप अपने पार्टनर का हाथ हमेशा थाम कर रखते हैं उसी तरह से उस का भविष्य भी सुरक्षित बनाएं.

क्या आप डैस्क जौब करते हैं?

आप को डैस्क जौब पसंद हो या नहीं, लेकिन एक जगह बैठ कर काम करना और डैस्क जौब आज हमारे जीवन का एक हिस्सा है. आज काफी संख्या में शहरी कामकाजी लोग अपने दिन का बड़ा हिस्सा कंप्यूटर के सामने मेज पर बैठ कर बिताते हैं. इतना ही नहीं, इस प्रकार की जीवनशैली के चलते शरीर का मूवमैंट कम होता है जिस के कारण मोटापा और दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. पीठदर्द, गरदनदर्द, फ्रोेजेन शोल्डर और हड्डी से जुड़ी दूसरी बीमारियों के कारण काफी संख्या में पुरुषों और महिलाओं को आर्थौपैडिक विशेषज्ञों के पास जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

लंबे समय तक एक ही स्थिति में बैठने से शरीर में दर्द और मांसपेशियों व ऊतकों के रिपिटीटिव स्ट्रैस इंजुरीज सहित कई तरह की समस्याएं होने की आशंकाएं हो सकती हैं.

गरदन में जकड़न, कंधे का झुकना, फ्रोजेन शोल्डर्स से ले कर पीठ और कमर में तेज दर्द और उंगली में सुन्नपन जैसी समस्याओं की पूरी सूची है जो डैस्क कार्य करते हुए पैदा होती हैं. हालांकि आप को अपनी डैस्क से हर घंटे उठ कर बाहर जा कर चहलकदमी करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इस प्रकार के दबाव से निबटने व अपने शरीर को सक्षम बनाने के लिए आप कुछ छोटे कदम उठा सकते हैं.

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आप सावधानीपूर्वक छोटे से प्रयास कर भी इस तरह की समस्याओं को काफी हद तक रोक सकते हैं. उदाहरण के तौर पर, हमेशा एलिवेटर के प्रयोग से बचें और सीढि़यों का इस्तेमाल करें.

यहां कुछ आसान व्यायाम बताए जा रहे हैं जो आप के शरीर को लंबे समय तक डैस्क पर काम करने के तनाव से निबटने में मदद कर सकते हैं :

गरदन के व्यायाम

  • अपने दोनों हाथ अपने सिर के पीछे रखें, फिर सिर को पीछे की ओर दबाएं जबकि अपने हाथ से आगे की ओर दबाएं. इस स्थिति में 10 सैकंड तक रहें और 5 से 10 बार दोहराएं.
  • डैस्क पर लंबे समय तक बैठने के बाद, अपने सिर को बायीं, दायीं ऊपर से नीचे की दिशा और फिर दोनों ओर झुकाएं. इस व्यायाम को कई बार दोहराएं.
  • दिनभर का काम खत्म होने के बाद अपनी ठुड्डी को पीछे की ओर खींचें और आगे देखते हुए इस तरह से खिंचाव डालें, मानो आप इसे डबल चिन बनाने की कोशिश कर रहे हों.

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कंधों का व्यायाम

  • अपने कंधों के दोनों हिस्सों को पीठ की तरफ निकट लाने की कोशिश करें.
  • अपने हाथों को ऊपर की तरफ ले जाएं और कुछ सैकंड तक इसी मुद्रा में रहें. धीरे से अपनी बांह को आगे, पीछे और बगल की ओर उठाएं.
  • कंधे को घुमाएं और ऊपरनीचे करें. ऐसा कई बार करें और मांसपेशियों को तनावरहित छोड़ दें.
  • दाहिने हाथ से बायीं कुहनी को पकड़ कर कंधे को धीरेधीरे स्ट्रैच करें. इस के विपरीत क्रम को दोहराएं. कुहनी को अपने सिर के पीछे ले जाएं और कंधे पर स्ट्रैच लाएं. इस स्थिति में 10 सैकंड रहें. इसे 5-6 बार दोहराएं.

पोस्चर एलाइनमैंट

  • अपनी कुरसी को इतनी ऊंचाई पर रखें जहां आप सब से आरामदायक स्थिति में सीधा बैठ सकते हों और कंप्यूटर स्क्रीन को अपनी आंख की सीध में रखें.
  • अपने सिर को सीधा रखें, आगे की ओर न झुकें.
  • कुरसी की गहराई इतनी होनी चाहिए कि उस के ऊपरी हिस्से और आप के घुटने के पीछे के हिस्से के बीच थोड़ी जगह हो, करीब मुट्ठी भर जगह.
  • अगर जरूरत पड़े तो कुरसी के ऊपरी हिस्से पर कोई सपोर्ट रखें ताकि आप को सीधा बैठने में मदद मिल सके.
  • कुहनी कुरसी की हाथ रखने वाली आर्मरेस्ट पर रखें.
  • कीबोर्ड को अपने पास रखने के लिए कीबोर्ड ट्रे का उपयोग करें. कम ऊंचाई वाली कुरसी पर बैठने से बचें.
  • अगर आप की कुरसी बहुत अधिक ऊंची हो तो आप फुटरैस्ट या स्टूल का इस्तेमाल करें. ज्यादातर लोगों के लिए 16 से 21 इंच की ऊंचाई आदर्श मानी जाती है.

पैरहाथ और कलाई के व्यायाम

  • कुरसी पर बैठे रहने के दौरान आगे की ओर झुकें. सिर को नीचे करें और गरदन को रिलैक्स छोड़ दें ताकि आप की पीठ पर स्ट्रैच महसूस हो. इस स्थिति में 10 सैकंड रहें. इसे 5 बार दोहराएं.
  • शरीर के ऊपरी हिस्से को स्ट्रैच करें और हथेलियों की उंगलियों को एकदूसरे में फंसा लें. बांह को ऊपर उठाएं और सिर के ऊपर सीधा करें. छत की ओर उठाने की कोशिश करें. ऐसा 5 से 6 बार करें.
  • बाएं पैर को दाहिने पैर के ऊपर रखें, फिर बाएं कंधे की ओर देखें तथा पीठ और कूल्हे के हिस्से में स्ट्रैच दें.
  • स्थिर बैठें और पैर को ऊपरनीचे घुमाएं.
  • अपनी मुट्ठी को कस कर बांध लें. इस के बाद उंगलियों को बाहर की ओर जितना संभव हो, खोलें. ऐसा लगातार 5 से 6 बार करें.
  • ब्रैक के दौरान जब आप अकेले हों, अपने पैर व हाथ की मांसपेशियों को आजाद करने के लिए हवा में जोरदार घूंसे और किक मारने की कोशिश करें.
  • एक हथेली को दूसरी हथेली से सटाएं और नमस्ते करें. इसे उलटा कर के नमस्ते करें, फिर कुहनी को सीधा रखते हुए हाथ के आगे के हिस्से में स्ट्रैच अनुभव करें. इसे 5 से 6 बार करें.

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पीठदर्द कम करना

  • घूमने वाली कुरसी का इस्तेमाल करें. घूमने की विपरीत दिशा में, एक तरफ से दूसरी तरफ घूम कर अपने पेट के निचले हिस्से में मूवमैंट लाने की कोशिश करें.
  • गरदन पर दबाव कम करने के लिए समयसमय पर ब्रैक लें और औफिस में चहलकदमी करें.

:डा. चित्रा कटारिया, प्रमुख, पुनर्वास सेवाएं, प्राचार्य, आईएसआईसी पुनर्वास विज्ञान संस्थान,  इंडियन स्पाइनल इंजुरीज सैंटर, नई दिल्ली

Anupamaa: बा से बताएगा वनराज, मालविका के लिए क्या फील करता है! काव्या ने लिया ये फैसला

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में दर्शकों को हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो में नया ट्विस्ट एंड टर्न दिखाया जा रहा है. वनराज शाह परिवार को बताता है कि अब अनुज अनुपमा के घर में रहेगा. वह घरवालों से ये भी कहता है कि वो दोनों लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे. इतना ही नहीं, वनराज मालविका और अनुज की लड़ाई का दोष अनुपमा को ही देता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है, आइए बताते हैं शो के आने वाले एपिसोड के बारे में.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा अनुज से कहती है यहा हमारा घर है और उसे कोई डर नही है कि समाज उसे क्या कहेगा. वह ये भी कहती है कि समाज उनके लिए मायने नहीं रखता. ये सुनकर अनुज हैरान हो जाता है.

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अनुज, अनुपमा से माफी मांगता है कि उसने उसे अपने फैमिली प्रॉब्लम में घसीट लिया. तो दूसरी तरफ वनराज अपनी मां लीला से पूछता है कि वो क्या वह भी उसे गलत समझती है. इसपर लीला कहती है कि वनराज कुछ गलत नहीं कर रहा.

 

वनराज बा से ये भी बताता है कि वह मालविका के लिए कुछ भी फील नहीं करता. दूसरी तरफ काव्या ये सारी बातें सुन लेती है और मन ही मन काफी खुश होती है. काव्या वनराज का साथ देने का मन बनाती है. वह सोचती है कि वनराज सिर्फ काव्या से प्यार करता है.

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काव्या ये भी सोचती है कि वनराज जल्द ही अमीर होने वाला है इसलिए उसे उसका साथ देना चाहिए. तो वहीं अनुपमा अपना फिर से डांस अकेडमी खोलने का प्लान करती है. इसमें अनुज उसके साथ काम करने के लिए कहता है.

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हप्पू सिंह असल जिंदगी में बने दूसरी बार पापा, सीरियल में हैं 9 बच्चों के पिता

टीवी के मशहूर एक्टर योगेश त्रिपाठी (हप्पू सिंह) के घर किलकारियां गूंज रही है. जी हां, आपके फेवेरेट स्टार दूसरी बार पापा बन गए हैं. उनके घर नन्ही परी का आगमन हुआ है. योगेश की वाइफ सपना त्रिपाठी ने एक बेटी को जन्म दिया है.

बता दें कि सीरियल उल्टन पल्टन में योगेश त्रिपाठी (Yogesh Tripathi) हप्पू सिंह (Happu Singh) के किरदार में घर-घर में मशहूर हैं. बताया जा रहा है कि योगेश त्रिपाठी ने कहा है कि मैं बहुत खुश हूं कि मेरे बेटे को बहन मिल गई. उन्होंने ये भी बताया कि मेरे और मेरी पत्नी से ज्यादा मेरा बेट दक्शेष परिवार बढ़ने से बेहद खुश है.

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रिपोर्ट के मुताबिक योगेश ने कहा कि मेरे बेटे को पार्टनर इन क्राइम मिल गया. वो भाई-बहन को मिस कर रहा था, खासतौर से रक्षाबंधन में. मैं शूट्स में बिजी रहता हूं और मेरी पत्नी घर के कामों में लगी रहती है. वो पूरे दिन टीवी देखते हुए या मोबाइल पर गेम खेलते हुए समय बिताता था. तो इमेजिन कर सकते हैं कि वो अपनी बहन आने के बाद कितना खुश होगा.

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सीरीयल उल्टन-पल्टन में योगेश के 9 बच्चे हैं जबकि असल जिंदगी में उनका एक बेटा था. अब वे दो बच्चों के पिता बन गए हैं. फिलहाल उन्होंने अपनी बेटी का कोई नाम नहीं रखा है.

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योगेश का बड़ा बेटा 9 साल का है. शो में हप्पू सिंह एक पुलिस के किरदार में है जो कि भ्रष्ट है और थोड़ा गंवार भी है. लेकिन इस कैरेक्टर की कॉमेडी काफी दिलचस्प है. हप्पू सिंह के साथ साथ उनकी बीवी, मां और बच्चों का किरदार भी सीरियल में काफी पसंद किया जाता है.

जनता सदियों से पिसती रही है!

केंद्र सरकार के हर साल के बजट पर आम लोगों को न पता होता है न उस से उन्हें कोई फर्क पड़ता है क्योंकि जो चीज मंहगी होनी होती है वह तो होगी ही चाहे बजट की वजह से हो या सालभर में कभी हो. बजट तो सरकारी वायदा होती है जो पढ़ेलिखों को बताने के लिए होता है कि इस साल आम गरीब किसान, मजदूर, बस आपरेटर, मैकेनिक, इलेक्ट्रिशियन, ब्यूटीशियन, नर्सों, बेलदारों से कितना कैसे वसूलता है. अब हाकिम ने जो लेना है तो लेना है, आम आदमी को तो कहा गया है कि उस के दुख तो उस के पिछले जन्मों के पापों के फल है, भोगते रहे.

शुद्ध ब्राहमण परिवार को निर्मला सितारमण वित्त मंत्री और उस के ऊंची जातियों के सलाहकारों ने पूरी तैयारी से गरीबों को लूटने वाला 35 लाख करोड़ रुपए (ये कितने होते है, पता करने की कोशिश भी न करें) का सरकारी हिसाब बना दिया है, भारतीय जनता पार्टी के सांसद हाथ खड़ा कर उसे पास कर देंगे और छुट्टी. पर केबल छिपाने के लिए और पक्के गहरे गड्डे खोदे जाएंगे, आईटी पंडों की भरमार होगी, इस का इंतजाम कर दिया गया है. सरकार ठेकों पर चलेगी जो कम तन्खाह पर लोग रखेंगे और रिश्वत में बाबूओं, अफसरों और भगवा नेताओं की जेबें भरेंगे, यह इंतजाम कर लिया गया है.

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किसान मजदूर का तो नाम भी नहीं लिया है. अमीरों की चौंचनेबाजी के लिए और्गेनिक खेती गंगा के किनारे की बात जरूर की गई है जिस का आम किसान से कोई लेनादेना नहीं है.

और हां, एक नए तरीके की नोटबंदी की शुरूआत भी कर दी गई है. अब तक बैंक अकाउंट में नोट रहते थे, चाहे सिर्फ कागज पर, अब डिजिटल कैंसी रहेगी जिस का मतलब पढ़ेलिखे भी वर्षों बाद समझ सकेंगे इस दौरान इस के सपने दिखा कर सरकारी लूटेरे अरबों रुपए आम आदमी के ले कर चंपत हो जाएंगे जैसे पोटबंदी में बैंक मैनेजरों ने किया था.

सरकार बारबार यह कहना नहीं भूलती कि कांग्रेस सरकार के दौरान क्याक्या हुआ था, 7 साल बाद भी. या वैसा ही है जैसा हर साल रामलीला कर के बता दिया जाता है कि पंडों की सेवा करो, राम की पूजा करो वर्ना रावण आएगा और भीम को ले जाएगा. उस में जोर रावण पर होता है, दशरथ पर नहीं जिस ने राम और सीता को घर छोडऩे को कहा. बारबार कांग्रेस का राज रावण राज कहा जाता है. जब दशरथ राज में तो राम लक्ष्मण सीता तीनों घर से निकले थे. अब तो भाजपा सरकार अपने 7 सालों के काम गिना दे पर किए हो तो गिनाए न.

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बजट को ध्यान से पढ़ें तो यही पता चलता है कि सरकार का कौन सा विभाग किस तरह जनता से वसूले पैसे पर मौज कर रहा है. पर जनता क्या कर सकती है. वह तो सदियों से पिसती रही है. एक तरफ पंडेपुजारी, मौलवी पादरी उसे लूटते है, दूसरी ओर हाकिम के पुलिस, पटवारी, जज, प्रशासक, उस बेचारी को  वोट का हक का मिला है पर उसे जल्लादों में से एक का चुनाव होता, फंदा तो गले मेंं  हर कोई डालेगा.

नेटाफिम: सिंचाई की उन्नत तकनीक

अच्छी उपज लेने के लिए खेत में अच्छे खादबीज के साथसाथ सही समय पर सही सिंचाई का होना भी बहुत जरूरी है. कई फसलों को ज्यादा पानी की दरकार होती है, तो कई फसलें ऐसी हैं, जो कम पानी में भरपूर उपज देती हैं.

आज के समय में पानी व सिंचाई ऐसा विषय है, जिन पर बहुतकुछ सोचा व किया जा रहा है, खासकर खेती की सिंचाई बात करें, तो हमारे देश में अलगअलग जलवायु है. कहीं बेहिसाब पानी है, तो कहीं सूखा पड़ता है, इसलिए हमें पानी को ले कर जल संरक्षण के बारे में सोचना होगा. कम पानी में भी अच्छी खेती की जा सकती है. इस के लिए हमें खेती में सिंचाई के लिए आधुनिक तौरतरीकों को जानना होगा और उन्हें अपनाना होगा.

सिंचाई की आधुनिक तकनीकों में स्पिंकलर विधि (फव्वारा), ड्रिप इरिगेशन (टपक सिंचाई) जैसी तकनीकें हैं, जिन्हें नेटाफिम जैसी कंपनियों ने बढ़ावा दिया है. वे सिंचाई के ऐसे उपकरण बना रही हैं, जो हर छोटेबड़े किसानों की पहुंच में हो सकती हैं. शुरुआत में यह महंगा सौदा जरूर मालूम होता है, लेकिन कुलमिला कर पानी की खपत को ले कर हिसाब लगाया जाए तो यह बेहद फायदेमंद हैं.

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ड्रिप इरिगेशन

(टपक सिंचाई)

नेटाफिम प्रणाली दुनियाभर के देशों में पिछले 4 दशकों से भी अधिक समय से काम कर रही है. साल 1997 से भारतीय किसानों को उच्च प्रति की ड्रिप सिंचाई प्रणाली और विभिन्न सेवाएं प्रदान कर रही है. आज भारत में 8 लाख एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र पर नेटाफिम ड्रिप प्रणाली सफलतापूर्वक काम कर रही है.

ड्रिपलाइन

अत्याधुनिक इजरायली तकनीक से बनी नेटाफिम ड्रिपलाइन का निर्माण भारतीय खेती की जरूरतों को ध्यान में रख कर किया गया है. ड्रिपलाइन के हर ड्रिपर में फिल्टर होता है, जो  ड्रिपर में कचरा जमा नहीं होने देता. जमीन व फसल की जरूरत के मुताबिक ड्रिपर के बीच की दूरी 20, 30, 40, 50, 60, 75 व 90 सैंटीमीटर और ड्रिपर 1.4/2.1/2.9 लिटर प्रति घंटा प्रवाह दर में उपलब्ध है. सभी प्रकार की सब्जियों, गन्ना, कपास, फूलों की खेती व सघन बागबानी के लिए खास उपयोगी है.

ड्रिपनेट पीसी (प्रवाह नियंत्रित ड्रिपलाइन)

अत्याधुनिक इजरायली तकनीक से बनी यह ड्रिपर प्रैशर नियंत्रित करते हुए समान प्रवाह से ऊंचीनीची जमीन पर सिंचाई करती है. सभी प्रकार की सब्जियों, गन्ना, कपास, फूलों की खेती व सघन बागबानी के लिए खास उपयोगी है.

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ड्रिपर के माध्यम से

यह ड्रिपर प्रैशर नियंत्रित करते हुए समान प्रवाह से ऊंचीनीची जमीन पर सिंचाई करती है. यह ड्रिपर 1/2/4/8 व 12 लिटर प्रति घंटा प्रवाह दर में उपलब्ध है.

बटन ड्रिपर्स (औनलाइन)

अत्याधुनिक इजरायली तकनीक से बने ड्रिपर के रास्ते में कचरा ठहरता नहीं और ड्रिपर बंद होने की संभावना बहुत ही कम होती है. यह ड्रिपर 1/2/4/8 लिटर प्रति घंटा प्रवाह दर में उपलब्ध है.

कूलनेट प्रो

यह 80 से 90 माइक्रोन आकार के अत्यंत सूक्ष्म जलबिंदुओं का वातावरण में छिड़काव करता है, जिस से तापमान कम करने व

आर्द्रता बढ़ाने में मदद मिलती है. ग्रीनहाउस, पोल्ट्री और डेरी में तापमान कम करने के लिए भी यह काफी खास है.

माइक्रो स्प्रिंकलर्स

यह 20 से 140 लिटर प्रति घंटा प्रवाह दर से सिंचाई करता है. इस का उपयोग नर्सरी व बागों में किया जा सकता है. अदरक और अन्य सब्जियों के लिए, खासतौर पर तापमान नियंत्रण के लिए स्ट्राबेरी में उपयोगी है.

सुपरनेट ( प्रैशर कंपनसेटेड माइक्रो स्प्रिंकलर्स )

ऊंचीनीची जमीन पर एकसमान प्रवाह से सिंचाई करने के लिए उपयोगी है. यह 20 से 90 लिटर प्रति घंटा की दर से सिंचाई करता है.

नेटाफिम मिडरेंज कंट्रोलर

इस श्रेणी में 2 मौडल एनएमसी 64 और एनएमसी प्रो उपलब्ध हैं. डिजिटल तंत्र ज्ञान पर आधारित ये कंट्रोलर्स एक ही जगह से विभिन्न जगहों पर स्थित वाल्वों को संचालित करते हैं. एनएमसी 64 सिंचन और खाद नियंत्रक है. एनएमसी प्रो भी सिंचन और खाद नियंत्रक है.

डिस्क फिल्टर

उच्च दर्जे की प्लास्टिक से बनने के कारण पानी के दबाव से टूटने और जंग लगने की संभावना नहीं है. एसिड और खाद प्रवाह से फिल्टर पर कोई असर नहीं पड़ता. यह 4,000 से 50,000 लिटर प्रति घंटा प्रवाह क्षमता व 40, 80, 120, 140 और 200 मेश में उपलब्ध है. साथ ही, 0.75, 1, 1.5, 2 और 3 इंच के आकार में उपलब्ध है.

फर्टिलाइजर पंप

पूरी तरह से प्लास्टिक से बनने के कारण इस में जंग नहीं लगता है. इस के इस्तेमाल से आवश्यक खाद एकसमान मात्रा से दिया जाता है. यह पंप ड्रिप सिंचाई प्रणाली में एसिड व क्लोरीन ट्रीटमैंट के लिए बेहद उपयोगी है.

नेटाफिम इंडिया का स्मार्ट सिंचाई के लिए

फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट

ड्रिप सिंचाई किट

भारत के छोटे व मझोले किसानों के लिए स्मार्ट सिंचाई की एक पोर्टेबल ड्रिप सिंचाई किट किफायती दाम पर मौजूद है. पोर्टेबल ड्रिप किट की कीमत 21,000-25,000 रुपए है. किट नेटाफिम के डीलर नैटवर्क के माध्यम से देशभर में उपलब्ध हैं. हलके वजन और पोर्टेबल ड्रिप किट को आसानी से लगाया जा सकता?है.

पोर्टेबल ड्रिप किट सब्जियों, खीरा, केला और पपीता सहित सभी प्रकार की फसल किस्मों के लिए उपयुक्त है.

पानी की खपत होगी कम : किट का प्रमुख पार्ट फ्लेक्सनेट है. यह एक लीक प्रूफ फ्लेक्सिबल मेनलाइन और मैनिफोल्ड पाइपिंग सौल्यूशन है, जो सटीक जल वितरण समाधान प्रदान करता है. इस की वजह से पानी की खपत कम होती है. साथ ही, ड्रिप सिंचाई के माध्यम से फसलों को पूरा पानी मिलता है.

पोर्टेबल ड्रिप किट में फील्ड इंस्टौलेशन और संचालन के लिए सभी आवश्यक पार्ट शामिल हैं, जिस में स्क्रीन फिल्टर, फ्लेक्सनेट पाइप, ड्रिपलाइन और कनैक्टर शामिल हैं.

नेटाफिम इंडिया ने छिड़काव के जरीए फसलों की सिंचाई से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए ‘फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट’ को बाजार में उतारा है. वर्ष 2022 तक इस उपकरण के जरीए 15,000 हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के दायरे में शामिल करने का लक्ष्य रखा है.

यह किट सब्जियों और खेतों में उगाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए उपयुक्त है. इस में मुख्य रूप से गेहूं, बाजरा, ज्वार, सोयाबीन, मूंगफली आदि फसलें हैं.

फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट भारत में इस प्रकार का पहला उपकरण है, जो फसलों की पैदावार को अधिकतम करने के लिए पूरे खेत में पानी के एकसमान वितरण को सुनिश्चित करता है. यह उपकरण यूवी किरणों के साथसाथ हर तरह की जलवायु का सामना करने में सक्षम है. इसी वजह से यह उत्पाद बेहद टिकाऊ है और लंबे समय तक बिना किसी परेशानी के इस का इस्तेमाल किया जा सकता है. कई नलिकाओं वाला यह पोर्टेबल और सुविधाजनक पाइपिंग सिस्टम सिंचाई के लिए बेहद स्मार्ट और टिकाऊ समाधान है.

इस उत्पाद की प्रमुख विशेषताओं में से एक यह है कि काफी हलके और मजबूत होने के कारण किसानों के लिए इसे इंस्टौल करना और इस्तेमाल में लाना बेहद आसान हो जाता है. इसे खेतों में आसानी से बिछाया जा सकता है और उपयोग के बाद एकदम सुरक्षित तरीके से निकाला जा सकता है.

इस के अलावा इस किट को अपने घर सहित किसी भी स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है और इस्तेमाल के बाद इस के सभी कलपुरजों को खोल कर कहीं भी रखा जा सकता?है, क्योंकि इसे रखने के लिए बेहद

कम जगह की जरूरत होती है. इसी वजह से यह किसानों के लिए लंबे समय तक चलने वाला और मेहनत बचाने वाला उत्पाद है.

रणधीर चौहान, मैनेजिंग डायरैक्टर, नेटाफिम इंडिया ने कहा, ‘‘नेटाफिम में हम किसानों को अत्याधुनिक समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में लगातार काम करने और पूरी दुनिया में पानी की कमी की समस्या से निबटने के अपने वादे पर कायम हैं. भारतीय किसानों के लिए ‘पोर्टेबल ड्रिप किट’ को सफलतापूर्वक पेश करने के बाद फ्लेक्सी स्प्रिंकलर किट को लौंच करते हुए हमें बेहद खुशी हो रही है. अत्याधुनिक तकनीक वाला यह नया उपकरण उन सभी किसानों के लिए बेहद मददगार है, जो आसान तरीके से खेतों में समान रूप से पानी का वितरण करना चाहते हैं.’’

नेटाफिम के डीलर के माध्यम से यह किट पूरे भारत में उपलब्ध है.

Crime Story: फेसबुक दोस्ती और जेल

वस्तुत: अनजान लोगों से फेसबुक आदि सोशल मीडिया पर दोस्ती का हाथ सोच समझकर बढ़ाना चाहिए. अन्यथा हालात रानी शर्मा (काल्पनिक नाम) जैसा हो सकता है.

भोली भाली मासूम रानी उम्र 23 ने फेसबुक पर दोस्ती की और जब दोस्ती की हद पार हुई तो उसे ऐसी त्रासदी से गुजरना पड़ा जो आपकी आंख खोलने के लिए पर्याप्त है.

दरअसल, एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद दोस्ती करके अपने मोबाइल पर एक युवती की अश्लील फोटो कैद करने वाले एक आरोपी को पुलिस ने घर दबोचा है.

जब रानी का विवाह दूसरे लड़के राजेश से तय हुआ तो आरोपी ने उक्त अश्लील फोटो को युवती के पिता के मोबाइल पर भेजकर परिवार को अपमानित किया. रिपोर्ट पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भादवि की धारा 354 (ग) 509 (ख) एवं 67 कर जांच में लिया था.

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आपको बताते चलें कि

मामला एक युवती का होने से मामले की जांच को गंभीरता से लेते हुए विवेचना की जा रही थी. इसी दौरान आरोपी के पता तलाश हेतु लगाये गये मुखबीर से आरोपी कोमल वैष्णव के ग्राम घोघरा जिला बिलासपुर में देखे जाने की सूचना पुलिस को मिली.

पुलिस ने (ए) आईटीएक्ट का जुर्म दर्ज करके रानी का रिश्ता तय होने पर अश्लील फोटो वायरल करने पर  निरीक्षक कार्तिकेश्वर जांगड़े ने खोज बीन तेज कर दी. और अपराध करके लुका छुपी का खेल करने वाले आरोपी युवक को आखिरकार पुलिस ने खोज ही निकाला.

अश्लील फोटो का भयदोहन

आज आपको एक ऐसी संवेदनशील अपराध कथा से रूबरू कराते हैं जिसे पढ़ समझ कर शायद युवा पीढ़ी को एक सबक मिल जाए. फिर कभी भी ऐसी गलती जिंदगी में ना हो पाए.

युवावस्था में युवक युवती का विपरीत लिंगी आकर्षण स्वाभाविक होता है. मगर हम आपको यह बताते चलें कि इस दुनियावी  सच्चाई के साथ यह सच भी युवाओं को कभी नहीं भूलनी चाहिए कि अपनी मर्यादा बनी रहे जब मर्यादा भंग होती है उसके बाद ही अश्लील हरकत के कारण आगे चलकर जाने कितने युवक युवतियों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है.

यह सच्ची कहानी भी इसी सच्चाई से रूबरू कराती है.

यह अपराध कथा है

गौरसिंग पिता जीतलाल निर्मलकर की, जिसने रिपोर्ट दर्ज कराई कि उसकी लड़की (23) चन्द्रपुर महाराष्ट्र काम करने गई थी. उसके मोबाईल नंबर पर आरोपी कोमल प्रसाद पिता अशोक कुमार वैष्णव (25) निवासी भोघरा थाना तखतपुर जिला बिलासपुर ने मोबाइल के माध्यम से फेस बुक के जरिये संपर्क कर दोस्ती की और नजदीकी बनाकर अपने प्रेम जाल में फंसा, मोबाईल फोन के माध्यम से अश्लील फोटो तैयार की, जब लड़की रानी का विवाह दूसरे लड़के से तय हुआ तब रिश्ता तय होने को जानकारी होते ही उसने रिश्ता तोड़ने की नियत से आरोपी ने रानी अश्लील फोटो वायरल कर दिया.

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थाना प्रभारी अं, चौकी द्वारा विशेष टीम गठित कर लोरमी सूचना तस्दीक आरोपी की पतासाजी हेतु भेजा गया. आरोपी कोमल प्रसाद पिता अशोक कुमार वैष्णव (25) निवासी घोपरा थाना तखतपुर जिला बिलासपुर  उज्जैन (मध्यप्रदेश) भागने की फिराक में था, टीम द्वारा तलाश करते हुए सिरगिट्टी थाना क्षेत्र अन्तर्गत ग्राम तिफरा काली मंदिर के पास से अभिरक्षा में लेकर थाना अंबागढ़ चौकी लाया गया पूछताछ करने पर उसके द्वारा अपराध करना स्वीकार करने और घटना में प्रयुक्त मोबाईल मय सिम को जप्त कर आरोपी को विधिवत गिरफ्तार कर ज्युडिशियल रिमांड पर पेश किया गया.

पाखंड: आखिर क्या जान गई थी बहू?

Writer- Shalu Duggal

‘‘दीदीजी, हमारी बात मानो तो आप भी पहाड़ी वाली माता के पास हो आओ. फिर देखना, आप के सिर का दर्द कैसे गायब हो जाता है,’’ झाड़ू लगाती रामकली ने कहा.

कल रात को लाइट न होने के कारण मैं रात भर सो नहीं पाई थी, इसलिए सिर में हलका सा दर्द हो रहा था, पर इसे कैसे समझाऊं कि दर्द होने पर दवा खानी चाहिए न कि किसी माता के पास जाना चाहिए.

‘‘रामकली, पहले मेरे लिए चाय बना लाओ,’’ मैं कुछ देर शांति चाहती थी. यहां आए हमें 3 महीने हो चुके थे. ऐसा नहीं था कि मैं यहां पहली बार आई थी. कभी मेरे ससुरजी इस गांव के सरपंच हुआ करते थे. पर यह बात काफी पुरानी हो चुकी है. अब तो इस गांव ने काफी उन्नति कर ली है.

30 साल पहले मेरी डोली इसी गांव में आई थी, पर जल्द ही मेरे पति की नौकरी शहर में लग गई और धीरेधीरे बच्चों की पढ़ाईलिखाई के कारण यहां आना कम हो गया. मेरे सासससुर की मृत्यु के बाद तो यहां आना एकदम बंद हो गया. अब जब हमारे बच्चे अपनेअपने काम में रम गए और पति रिटायर हो गए, तो फिर से एक बार यहां आनाजाना शुरू हो गया.

‘‘मेमसाहब, चाय,’’ रामकली ने मुझे चाय ला कर दी. अब तक सिरदर्द कुछ कम हो गया था. सोचा, थोड़ी देर आराम कर लूं, पर जैसे ही आंखें बंद कीं, गली में बज रहे ढोल की आवाजें सुनाई देने लगीं.

‘‘दीदीजी, आज पहाड़ी माता की चौकी लगनी है न… उस के लिए ही पूरे गांव में जुलूस निकल रहा है. आप भी चल कर दर्शन कर लो.’’

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‘‘यह पहाड़ी वाली माता कौन है?’’ मैं ने पूछा, पर रामकली मेरी बात को अनसुना कर के जय माता दी कहती हुई चली गई.

थोड़ी देर बाद ढोल का शोर दूर जाता सुनाई दिया. तभी रामकली आ कर बोली, ‘‘लो दीदी, मातारानी का प्रसाद,’’ और फिर अपने काम में लग गई.

कुछ दिनों बाद रामकली ने मुझ से छुट्टी मांगी. मैं ने छुट्टी मांगने का कारण पूछा तो बोली, ‘‘दीदी, माता की चौकी पर जाना है.’’ मैं ने ज्यादा नानुकर किए बिना छुट्टी दे दी.

मेरे पति अपना अधिकतर समय मेरे ससुरजी के खेतों पर ही बिताते. सेवानिवृत्त होने के बाद यही उन का शौक था. मैं घर पर कभी किताबें पढ़ कर तो कभी टीवी देख कर समय बिताती थी. पासपड़ोस में कम ही जाती थी. अगले दिन जब रामकली वापस आई तो बस सारा वक्त माता का ही गुणगान करती रही. शुरूशुरू में मुझे ये बातें बोर करती थीं, पर फिर धीरेधीरे मुझे इन में मजा आने लगा. मैं ने भी इस बार चौकी में जाने का मन बना लिया. सोचा, थोड़ा टाइम पास हो जाएगा.

मैं ने रामकली से कहा तो वह खुशी से झूम उठी और बोली, ‘‘दीदी, यह तो बहुत अच्छा है. आप देखना, आप की हर मुराद वहां पूरी हो जाएगी.’’

कुछ दिनों बाद मैं भी रामकली के साथ मंदिर चली गई. इस मंदिर में मैं पहले भी अपनी सास के साथ कई बार आई थी, पर अब तो यह मंदिर पहचान में नहीं आ रहा था. एक छोटे से कमरे में बना मंदिर विशाल रूप ले चुका था. जहां पहले सिर्फ एक फूल की दुकान होती थी वहीं अब दर्जनों प्रसाद की दुकानें खुल चुकी थीं और इतनी भीड़ कि पूछो मत.

रामकली मुझे सीधा आगे ले गई. मंच पर एक बड़ा सिंहासन लगा हुआ था. रामकली मंच के पास खड़े एक आदमी के पास जा कर कुछ कहने लगी, फिर वह आदमी मेरी ओर देख कर मुसकराते हुए नमस्ते करने लगा. मैं ने भी नमस्ते का जवाब दे दिया.

रामकली फिर मेरे पास आ कर बोली, ‘‘दीदी, वह मेरा पड़ोसी राजेश है. जब से माताजी की सेवा में आया है, इस के वारेन्यारे हो गए हैं. पहले इस की बीवी भी मेरी तरह ही घरों में काम करती थी, पर अब देखो माता की सेवा में आते ही इन के भाग खुल गए. आज इन के पास सब कुछ है.’’

थोड़ी देर बाद वहां एक 30-35 वर्ष की महिला आई, जिस ने गेरुआ वस्त्र पहन रखे थे. माथे पर बड़ा सा तिलक लगा रखा था और गले में रुद्राक्ष की माला पहनी हुई थी.

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उस के मंच पर आते ही सब खड़े हो गए और जोरजोर से माताजी की जय हो, बोलने लगे. सब ने बारीबारी से मंच के पास जा कर उन के पैर छुए. पर मैं मंच के पास नहीं गई, न ही मैं ने उन के पैर छुए. 20-25 मिनट बाद ही माताजी उठ कर वापस अपने पंडाल में चली गईं.

माताजी के जाते ही लाउडस्पीकर पर जोरजोर से आवाजें आने लगीं, ‘‘माताजी का आराम का वक्त हो गया है. भक्तों से प्रार्थना है कि लाइन से आ कर माता के सिंहासन के दर्शन कर के पुण्य कमाएं.’’

अजीब नजारा था. लोग उस खाली सिंहासन के पाए को छू कर ही खुश थे.

‘‘दीदी चलो, राजेश ने माताजी के विशेष दर्शन का प्रबंध किया है,’’ रामकली के कहने पर मैं उस के साथ हो गई.

‘‘आओआओ, अंदर आ जाओ,’’ राजेश हमें कमरे के बाहर ही मिल गया. कमरे के अंदर से अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी. हलकी रोशनी में माताजी आंखें बंद कर के बैठी थीं. हम उन के सामने जा कर चुपचाप बैठ गए.

थोड़ी देर बाद माताजी की आंखें खुलीं, ‘‘देवी, आप के माथे की रेखाएं बता रही हैं कि आप के मन में हमें ले कर बहुत सी उलझनें हैं…देवी, मन से सभी शंकाएं निकाल दो. बस, भक्ति की शक्ति पर विश्वास रखो.’’

उन की बातें सुन कर मैं मुसकरा दी.

कुछ देर रुक कर वह फिर बोलीं, ‘‘तुम एक सुखी परिवार से हो…तुम्हारे कर्मों का फल है कि तुम्हारे परिवार में सब कुछ ठीक चल रहा है पर देखो देवी, मैं साफसाफ देख सकती हूं कि तुम्हारे परिवार पर संकट आने वाला है. यह संकट तुम्हारे पति के पिछले जन्म के कर्मों का फल है,’’ और माताजी ने एक नजर मुझ पर डाली.

‘‘संकट…माताजी कैसा संकट?’’ मुझ से पहले ही रामकली बोल पड़ी.

‘‘कोई घोर संकट का साया है…और वह साया तुम्हारे बेटे पर है,’’ फिर एक बार माताजी ने मुझ पर गहरी नजर डाली, ‘‘पर इस संकट का समाधान है.’’

‘‘समाधान…कैसा समाधान?’’ इस बार मैं ने पूछा.

‘‘आप के बेटे की शादी को 3 साल हो गए, पर आप आज तक पोते पोतियों के लिए तरस रही हैं,’’ माताजी के मुंह से ये बातें सुन कर मैं सोच में पड़ गई.

माताजी ने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘देवीजी, आप का बेटा किसी दुर्घटना का शिकार होने वाला है, पर आप घबराएं नहीं. हम बस एक पूजा कर के सब संकट टाल देंगे और आप के बेटे को बचा लेंगे…यही नहीं, हमारी पूजा से आप जल्दी दादी भी बन जाएंगी.’’

मेरी समझ काम करना बंद कर चुकी थी. मुझे परेशान देख कर रामकली बोली, ‘‘माताजी, आप जैसा कहेंगी, दीदीजी वैसा ही करेंगी…ठीक कहा न दीदी?’’ रामकली ने मुझ से पूछा पर मैं कुछ न कह पाई. बेटे की दुर्घटना वाली बात ने मुझे अंदर तक हिला दिया.

मेरी चुप्पी को मेरी हां मान कर रामकली ने माताजी से पूजा की विधि पूछी तो माताजी बोलीं, ‘‘पूजा हम कर लेंगे…बाकी बात तुम्हें राजेश समझा देगा…देवी, चिंता मत करना हम हैं न.’’

घर आ कर मैं ने सारी बात अपने पति को बताई. मैं अपने बेटे को ले कर काफी परेशान हो गई थी. मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था. सारी बातें सुन कर मेरे पति बोले, ‘‘शिखा, तुम पढ़ीलिखी हो कर कैसी बातें करती हो? ये सब इन की चालें होती हैं. भोलीभाली औरतों को कभी पति की तो कभी बेटे की जान का खतरा बता कर और मर्दों को पैसों का लालच दे कर ठगते हैं. तुम बेकार में परेशान हो रही हो.’’

‘‘पर अगर उन की बात में कुछ सचाई हुई तो…देखिए पूजा करवाने में हमारा कुछ नहीं जाएगा और मन का डर भी निकल जाएगा…आप समझ रहे हैं न?’’

‘‘हां, समझ रहा हूं…जब तुम जैसी पढ़ीलिखी औरत इन के झांसे में आ गई तो गांव के अनपढ़ लोगों को यह कैसे पागल बनाते होंगे…देखो शिखा, रामकली जैसे लोग इन माताओं और बाबाओं के लिए एजैंट की तरह काम करते हैं. तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आ रहा,’’ मेरे पति गुस्से से बोले, फिर मेरे पास आ कर बोले, ‘‘तुम इस माता को नहीं जानती. कुछ महीने पहले यह अपने पति के साथ इस गांव में आई थी. पति महंत बन गया और यह माता बन गई. मंदिर के आसपास की जमीन पर भी गैरकानूनी कब्जा कर रखा है. हम लोगों को तो इन के खिलाफ कुछ करना चाहिए और हम ही इन के जाल में फंस गए…शिखा, सब भूल जाओ और अपने दिमाग से डर को निकाल दो.’’

पति के सामने तो मैं चुप हो गई पर सारी रात सो नहीं पाई.

अगले दिन रामकली ने आ कर बताया कि पूजा के लिए 5 हजार रुपए लगेंगे. मैं ने पति के डर से उसे कुछ दिन टाल दिया. पर मन अब किसी काम में नहीं लग रहा था. 3 दिन बीत गए. इन तीनों दिनों में मैं कम से कम 7 बार अपने बेटे को फोन कर चुकी थी, पर मेरा डर कम नहीं हो रहा था.

1 हफ्ता बीत चुका था. दिल में आया कि अपने पति से एक बार फिर बात कर के देखती हूं, पर हिम्मत नहीं कर पाई. फिर एक दिन रामकली ने आ कर बताया कि माताजी ने कहा है कि कल पूर्णिमा है. पूजा कल नहीं हुई तो संकट टालना मुश्किल हो जाएगा. मेरे पास कोई जवाब नहीं था.

रामकली के जाने के बाद मन में गलत विचार आने लगे. मैं ने बिना अपने पति को बताए पैसे देने का फैसला कर लिया. मैं ने सोचा कि कल पूजा हो जानी चाहिए. इस के लिए मुझे अभी पैसे रामकली को दे देने चाहिए, यह सोच कर मैं रामकली के घर पहुंच गई. वहां पता चला कि वह मंदिर गई है.

मेरे पति के आने में अभी वक्त था, इसलिए मैं तेजतेज कदमों से मंदिर की ओर चल दी. मंदिर में आज रौनक नहीं थी, इसलिए मैं सीधी माताजी के कमरे की ओर चल दी. माता के कमरे के बाहर मेरे कदम रुक गए. अंदर से रामकली की आवाजें आ रही थीं, ‘‘मैं ने तो बहुत कोशिश की माताजी पर वह शहर की है. इतनी आसानी से नहीं मानेगी.’’

‘‘अरे रामकली, तुम नईनई इस काम में आई हो, जरा सीखो कुछ राजेश से…इस का फंसाया मुरगा बिना कटे यहां से आज तक नहीं गया,’’ यह आवाज माताजी की थी.

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‘‘यकीन मानिए माताजी, मैं ने बहुत कोशिश की पर उस का आदमी नहीं माना. साफ मना कर दिया उसे.’’

अब तक मुझे समझ आ गया था कि यहां मेरे बारे में ही बातें चल रही हैं.

‘‘देख रामकली, तेरा कमीशन तो हम काम पूरा होने पर ही देंगे, तू उस से 5 हजार रुपए ले आ और अपने 500 रुपए ले जा…अगर उस का आदमी नहीं मान रहा तो तू कोई और मुरगा पकड़,’’ राजेश बोला, ‘‘हां, वह दूध वाले की बेटी की शादी नहीं हो रही…अगली चौकी पर उस की घरवाली को ले कर आ…वह जरूर फंस जाएगी.’’

बाहर खडे़खड़े सब सुनने के बाद मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था. मैं वहां से चली आई, पर अंदर ही अंदर मैं खुद को कोस रही थी कि मैं कैसे इन के झांसे में आ गई. मेरी आंखें भर चुकी थीं और खुल भी चुकी थीं कितने सही थे मेरे पति, जो इन लोगों को पहचान गए थे.

शाम को जब मेरे पति घर आए तो मैं ने उन को एक लिफाफा दिया.

‘‘यह क्या है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘आप ने ठीक कहा था इन पाखंडियों के चक्कर में नहीं आना चाहिए. ये जाल बिछा कर इस तरह फंसाते हैं कि शिकार को पता भी नहीं चल पाता और उस की जेब खाली हो जाती है,’’ मैं ने कहा.

फर्क: इरा की कामयाबी, सफलता थी या किसी का एहसान

इरा की स्कूल में नियुक्ति इसी शर्त पर हुई थी कि वह बच्चों को नाटक की तैयारी करवाएगी क्योंकि उसे नाटकों में काम करने का अनुभव था. इसीलिए अकसर उसे स्कूल में 2 घंटे रुकना पड़ता था.

इरा के पति पवन को कामकाजी पत्नी चाहिए थी जो उन की जिम्मेदारियां बांट सके. इरा शादी के बाद नौकरी कर अपना हर दायित्व निभाने लगी.

वह स्कूल में हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना ‘मातादीन इंस्पेक्टर चांद पर’ का नाट्य रूपांतर कर बच्चों को उस की रिहर्सल करा रही थी. प्रधानाचार्य ने मुख्य पात्र के लिए 10वीं कक्षा के एक विद्यार्थी मुकुल का नाम सुझाया क्योंकि वह शहर के बड़े उद्योगपति का बेटा था और उस के सहारे पिता को खुश कर स्कूल अनुदान में खासी रकम पा सकता था.

मुकुल में प्रतिभा भी थी. इंस्पेक्टर मातादीन का अभिनय वह कुशलता से करने लगा था. उसी नाटक के पूर्वाभ्यास में इरा को घर जाने में देर हो जाती है. वह घर जाने के लिए स्टाप पर खड़ी थी कि तभी एक कार रुकती है. उस में मुकुल अपने पिता के साथ था. उस के पिता शरदजी को देख इरा चहक उठती है. शरदजी बताते हैं कि जब मुकुल ने नाटक के बारे में बताया तो मैं समझ गया था कि ‘इरा मैम’ तुम ही होंगी.

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इरा उन के साथ गाड़ी में बैठ जाती है. तभी उसे याद आता है कि आज उस के बेटे का जन्मदिन है और उस के लिए तोहफा लेना है. शरदजी को पता चलता है तो वह आलीशान शापिंग कांप्लेक्स की तरफ गाड़ी घुमा देते हैं. वह इरा को कंप्यूटर गेम दिलवाने पर उतारू हो जाते हैं. इरा बेचैन थी क्योंकि पर्स में इतने रुपए नहीं थे. अब आगे…

एक महंगा केक और फूलों का बुके आदि तमाम चीजें शरदजी गाड़ी में रखवाते चले गए. वह अवाक् और मौन रह गई.

शरदजी को घर में भीतर आने को कहना जरूरी लगा. बेटे सहित शरदजी भीतर आए तो अपने घर की हालत देख सहम ही गई इरा. कुर्सियों पर पड़े गंदे,  मुचड़े, पहने हुए वस्त्र हटाते हुए उस ने उन्हें बैठने को कहा तो जैसे वे सब समझ गए हों, ‘‘रहने दो, इरा… फिर किसी दिन आएंगे… जरा अपने बेटे को बुलाइए… उस से हाथ मिला लूं तब चलूं. मुझे देर हो रही है, जरूरी काम से जाना है.’’

इरा ने सुदेश और पति को आवाज दी. वे अपने कमरे में थे. दोनों बाहर निकल आए तो जैसे इरा शरम से गड़ गई हो. घर में एक अजनबी को बच्चे के साथ आया देख पवन भी अचकचा गए और सुदेश भी सहम सा गया पर उपहार में आई ढेरों चीजें देख उस की आंखें चमकने लगीं… स्नेह से शरदजी ने सुदेश के सिर पर हाथ फेरा. उसे आशीर्वाद दिया, उस से हाथ मिला उसे जन्मदिन की बधाई दी और बेटे मुकुल के साथ जाने लगे तो सकुचाई इरा उन्हें चाय तक के लिए रोकने का साहस नहीं बटोर पाई.

पवन से हाथ मिला कर शरदजी जब घर से बेटे मुकुल के साथ बाहर निकले तो उन्हें बाहर तक छोड़ने न केवल इरा ही गई, बल्कि पवन और सुदेश भी गए.

उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और गाड़ी में बैठने से पहले अपना कार्ड दे कर बोले, ‘‘इरा, कभी पवनजी को ले कर आओ न हमारे झोंपड़े पर… तुम से बहुत सी बातें करनी हैं. अरसे बाद मिली हो भई, ऐसे थोड़े छोड़ देंगे तुम्हें… और फिर तुम तो मेरे बेटे की कैरियर निर्माता हो… तुम्हें अपना बेटा सौंप कर मैं सचमुच बहुत आश्वस्तहूं.’’

पवन और सुदेश के साथ घर वापस लौटती इरा एकदम चुप और खामोश थी. उस के भीतर एक तीव्र क्रोध दबे हुए ज्वालामुखी की तरह भभक रहा था पर किसी तरह वह अपने गुस्से पर काबू रखे रही. इस वक्त कुछ भी कहने का मतलब था, महाभारत छिड़ जाना. सुदेश के जन्मदिन को वह ठीक से मना लेना चाहती थी.

सुदेश के जन्मदिन का आयोजन देर रात तक चलता रहा था. इतना खुश सुदेश पहले शायद ही कभी हुआ हो. इरा भी उस की खुशी में पूरी तरह डूब कर खुश हो गई.

बिस्तर पर जब वह पवन के साथ आई तो बहुत संतुष्ट थी. पवन भी संतुष्ट थे, ‘‘अरसे बाद अपना सुदेश आज इतना खुश दिखाई दिया.’’

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‘‘पर खानेपीने की चीजें मंगाने में काफी पैसा खर्च हो गया,’’ न चाहते हुए भी कह बैठी इरा.

‘‘घर वालों के ही खानेपीने पर तो खर्च हुआ है. कोई बाहर वालों पर तो हुआ नहीं. पैसा तो फिर कमा लिया जाएगा… खुशियां हमें कबकब मिलती हैं,’’ पवन अभी तक उस आयोजन में डूबे हुए थे.

‘‘सोया जाए… मुझे सुबह फिर जल्दी उठना है. सुदेश का कल अंगरेजी का टेस्ट है और मैं अंगरेजी की टीचर हूं अपने स्कूल में. मेरा बेटा ही इस विषय में पिछड़ जाए, यह मैं कैसे बरदाश्त कर सकती हूं? सुबह जल्दी उठ कर उस का पूरा कोर्स दोहरवाऊंगी…’’

‘‘आजकल की यह पढ़ाई भी हमारे बच्चों की जान लिए ले रही है,’’ पवन के चेहरे पर से प्रसन्नता गायब होने लगी, ‘‘हमारे जमाने में यह जानमारू प्रतियोगिता नहीं थी.’’

‘‘अब तो 90 प्रतिशत अंक, अंक नहीं माने जाते जनाब… मांबाप 99 और 100 प्रतिशत अंकों के लिए बच्चों पर इतना दबाव बनाते हैं कि बच्चों का स्वास्थ्य तक चौपट हुआ जा रहा है. क्यों दबा रहे हैं हम अपने बच्चों को… कभीकभी मैं भी बच्चों को पढ़ाती हुई इन सवालों पर सोचती हूं…’’

‘‘शायद इसलिए कि हम बच्चों के भविष्य को ले कर बेहद डरे हुए हैं, आशंकित हैं कि पता नहीं उन्हें जिंदगी में कुछ मिलेगा या नहीं… कहीं पांव टिकाने को जगह न मिली तो वे इस समाज में सम्मान के साथ जिएंगे कैसे?’’ पवन बोले, ‘‘हमारे जमाने में शायद यह गलाकाट प्रतियोगिता नहीं थी पर आजकल जब नौकरियां मिल नहीं रहीं, निजी कामधंधों में बड़ी पूंजी का खेल रह गया है. मामूली पैसे से अब कोई काम शुरू नहीं किया जा सकता, ऐसे में दो रोटियां कमाना बहुत टेढ़ी खीर हो गया है, तब बच्चों के कैरियर को ले कर सावधान हो जाने को मांबाप विवश हो गए हैं… अच्छे से अच्छा स्कूल, ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं, साधन, अच्छे से अच्छा ट्यूटर, ज्यादा से ज्यादा अंक, ज्यादा से ज्यादा कुशलता और दक्षता… दूसरा कोई बच्चा हमारे बच्चे से आगे न निकल पाए, यह भयानक प्रत्याशा… नतीजा तुम्हारे सामने है जो तुम कह रही हो…’’

‘‘मैं तो समझती थी कि तुम इन सब मसलों पर कुछ न सोचते होंगे, न समझते होंगे… पर आज पता चला कि तुम्हारी भी वही चिंताएं हैं जो मेरी हैं. जान कर सचमुच अच्छा लग रहा है, पवन,’’ कुछ अधिक ही प्यार उमड़ आया इरा के भीतर और उस ने पवन को एक गरमागरम चुंबन दे डाला.

पवन ने भी उसे बांहों में भर, एक बार प्यार से थपथपाया, ‘‘आदमी को तुम इतना मूर्ख क्यों मानती हो? अरे भई, हम भी इसी धरती के प्राणी हैं.’’

‘‘यह नाटक मैं ठीक से करा ले जाऊं और शरदजी को उन के बेटे के माध्यम से प्रसन्न कर पाऊं तो शायद उस एहसान से मुक्त हो सकूं जो उन्होंने मुझ पर किए हैं. जानते हो पवन, शरदजी ने अपने निर्देशन में मुझे 3 नाटकों में नायिका बनाया था. बहुत आलोचना हुई थी उन की पर उन्होंने किसी की परवा नहीं की थी. अगर तब उन्होंने मुझे उतना महत्त्व न दिया होता, मेरी प्रतिभा को न निखारा होता तो शायद मैं नाटकों की इतनी प्रसिद्ध नायिका न बनी होती. न ही यह नौकरी आज मुझे मिलती. यह सब शरदजी की ही कृपा से संभव हुआ.’’

नाटक उम्मीद से कहीं अधिक सफल रहा. मुकुल ने इंस्पेक्टर मातादीन के रूप में वह समां बांधा कि पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. स्कूल प्रबंधक और प्रधानाचार्या अपनेआप को रोक नहीं सके और दोनों उठ कर इरा के पास मंच के पीछे आए, ‘‘इरा, तुम तो कमाल की टीचर हो भई.’’

मुकुल के पिता शरदजी तो अपने बेटे की अभिनय क्षमता और इरा के कुशल निर्देशन से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने वहीं, मंच पर आ कर स्कूल के लिए एक वातानुकूलित कंप्यूटर कक्ष और 10 कंप्यूटर अत्यंत उच्च श्रेणी के देने की घोषणा कर प्रबंधक और प्रधानाचार्या के मन की मुराद ही पूरी कर दी.

जब वे आयोजन के बाद चायनाश्ते पर अन्य अतिथियों के साथ प्रबंधक के पास बैठे तो न जाने उन के कान में क्या कहते रहे. इरा ने 1-2 बार उन की ओर देखा भी पर वे उन से ही बातें करते रहे. बाद में इरा को धन्यवाद दे वे जातेजाते पवन और सुदेश की तरफ देख हाथ हिला कर बोले, ‘‘इरा…मुझे अभी तक उम्मीद है कि किसी दिन तुम आने के लिए मुझे दफ्तर में फोन करोगी…’’

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‘‘1-2 दिन में ही तकलीफ दूंगी, सर, आप को,’’ इरा उत्साह से बोली थी.

‘‘जो आदमी खुश हो कर लाखों रुपए का दान स्कूल को दे सकता है, उस से हम बहुत लाभ उठा सकते हैं, इरा… और वह आदमी तुम से बहुत खुश और प्रभावित भी है,’’ अपना मंतव्य आखिर पवन ने घर लौटते वक्त रास्ते में प्रकट कर ही दिया.

परंतु इरा चुप रही. कुछ बोली नहीं. किसी तरह पुन: पवन ने ही फिर कहा, ‘‘क्या सोच रही हो? कब चलें हम लोग शरदजी के घर?’’

‘‘पवन, तुम्हारे सोचने और मेरे सोचने के ढंग में बहुत फर्क है,’’ कहते हुए बहुत नरम थी इरा की आवाज.

‘‘सोच के फर्क को गोली मारो, इरा. हमें अपने मतलब पर ध्यान देना चाहिए, अगर हम किसी से अपना कोई मतलब आसानी से निकाल सकते हैं तो इस में हमारे सोच को और हमारी हिचक व संकोच को आड़े नहीं आना चाहिए,’’ पवन की सूई वहीं अटकी हुई थी, ‘‘तुम अपने घरपरिवार की स्थितियों से भली प्रकार परिचित हो, अपने ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं, यह भी तुम अच्छी तरह जानती हो. इसलिए हमें निसंकोच अपने लिए कुछ हासिल करने का प्रयास करना चाहिए.’’

‘‘मैं तुम्हें और सुदेश को ले कर उन के बंगले पर जरूर जाऊंगी, पर एक शर्त पर… तुम इस तरह की कोई घटिया बात वहां नहीं करोगे. शरदजी के साथ मैं ने नाटकों में काम किया है, मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह जानती हूं. वह इस तरह से सोचने वाले व्यक्ति नहीं हैं. बहुत समझदार और संवेदनशील व्यक्ति हैं. उन से पहली बार ही उन के घर जा कर कुछ मांगना मुझे उन की नजरों में बहुत छोटा बना देगा, पवन. मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकती.’’

दूसरे दिन इरा जब स्कूल में पहुंची तो प्रधानाचार्या ने उसे अपने दफ्तर में बुलाया, ‘‘हमारी कमेटी ने तय किया है कि यह पत्र तुम्हें दिया जाए,’’ कह कर एक पत्र इरा की तरफ बढ़ा दिया.

एक सांस में उस पत्र को धड़कते दिल से पढ़ गई इरा. चेहरा लाल हो गया, ‘‘थैंक्स, मेम…’’ अपनी आंतरिक प्रसन्नता को वह मुश्किल से वश में रख पाई. उसे प्रवक्ता का पद दिया गया था और स्कूल की सांस्कृतिक गतिविधियों की स्वतंत्र प्रभारी बनाई गई थी. साथ ही उस के बेटे सुदेश को स्कूल में दाखिला देना स्वीकार किया गया था और उस की इंटर तक फीस नहीं लगेगी, इस का पक्का आश्वासन कमेटी ने दिया था.

शाम को जब घर आ उस ने वह पत्र पवन, ससुरजी व घर के अन्य सदस्यों को पढ़वाया तो जैसे किसी को विश्वास ही न आया हो. एकदम जश्न जैसा माहौल हो गया, सुदेश देर तक समझ नहीं पाया कि सब इतने खुश क्यों हो गए हैं.

इरा ने नजदीकी पब्लिक फोन से शरदजी को दफ्तर में फोन किया, ‘‘आप को हार्दिक धन्यवाद देने आप के बंगले पर आज आना चाहती हूं, सर. अनुमतिहै?’’

सुन कर जोर से हंस पड़े शरदजी, ‘‘नाटक वालों से नाटक करोगी, इरा?’’

‘‘नाटक नहीं, सर. सचमुच मैं बहुत खुश हूं. आप के इस उपकार को कभी नहीं भूलूंगी,’’ वह एक सांस में कह गई, ‘‘कितने बजे तक घर पहुंचेंगे आप?’’

‘‘मेरा ड्राइवर तुम्हें लगभग 9 बजे घर से लिवा लाएगा… और हां, सुदेश व पवनजी भी साथ आएंगे,’’ उन्होंने फोन रख दिया था.

अपनी इरा मैम को अपने घर पर पाकर मुकुल बेहद खुश था. देर तक अपनी चीजें उन्हें दिखाता रहा. अगले नाटकों में भी इरा मैम उसे रखें, इस का वादा कराता रहा.

पूरे समय पवन कसमसाते रहे कि किसी तरह इरा मतलब की बात कहे शरदजी से. शरदजी जैसे बड़े आदमी के लिए यह सब करना मामूली सी बात है, पर इरा थी कि अपने विश्वविद्यालय के उन दिनों के किए नाटकों के बारे में ही उन से हंसहंस कर बातें करती रही.

जब वे लोग वापस चलने को उठे तो शरदजी ने अपने ड्राइवर से कहा, ‘‘साहब लोगों को इन के घर छोड़ कर आओ…’’ फिर बड़े प्रेम से उन्होंने पवन से हाथ मिलाया और उन की जेब में एक पत्र रखते हुए बोले, ‘‘घर जा कर देखना इसे.’’

रास्ते भर पवन का दिल धड़कता रहा, माथे पर पसीना आता रहा. पता नहीं, पत्र में क्या हो. जब घर आ कर पत्र पढ़ा तो अवाक् रह गए पवन… उन की नियुक्ति शरदजी ने अपने दफ्तर में एक अच्छे पद पर की थी.

सीख: जब बहुओं को एक साथ रखने के लिए सास ने निकाली तरकीब

Writer- Avnish Sharma

हमारे घर की खुशियों और सुखशांति पर अचानक ही ग्रहण लग गया. पहले हमेशा चुस्तदुरुस्त रहने वाली मां को दिल का दौरा पड़ा. वे घर की मजबूत रीढ़ थीं. उन का आई.सी.यू. में भरती होना हम सब के पैरों तले से जमीन खिसका गया. वे करीब हफ्ते भर अस्पताल में रहीं. इतने समय में ही बड़ी और छोटी भाभी के बीच तनातनी पैदा हो गई.

छोटी भाभी शिखा की विकास भैया से करीब 7 महीने पहले शादी हुई थी. वे औफिस जाती हैं. मां अस्पताल में भरती हुईं तो उन्होंने छुट्टी ले ली.

मां को 48 घंटे के बाद डाक्टर ने खतरे से बाहर घोषित किया तो शिखा भाभी अगले दिन से औफिस जाने लगीं. औफिस में इन दिनों काम का बहुत जोर होने के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ा था.

बड़ी भाभी नीरजा को छोटी भाभी का ऐसा करना कतई नहीं जंचा.

‘‘मैं अकेली घर का काम संभालूं या अस्पताल में मांजी के पास रहूं?’’ अपनी देवरानी शिखा को औफिस जाने को तैयार होते देख वे गुस्से से भर गईं, ‘‘किसी एक इनसान के दफ्तर न पहुंचने से वह बंद नहीं हो जाएगा. इस कठिन समय में शिखा का काम में हाथ न बंटाना ठीक नहीं है.’’

‘‘दीदी, मेरी मजबूरी है. मुझे 8-10 दिन औफिस जाना ही पड़ेगा. फिर मैं छुट्टी ले लूंगी और आप खूब आराम करना,’’ शिखा भाभी की सहजता से कही गई इस बात का नीरजा भाभी खामखां ही बुरा मान गईं.

यह सच है कि नीरजा भाभी मां के साथ बड़ी गहराई से जुड़ी हुई हैं. उन की मां उन्हें बचपन में ही छोड़ कर चल बसी थीं. सासबहू के बीच बड़ा मजबूत रिश्ता था और मां को पड़े दिल के दौरे ने नीरजा भाभी को दुख, तनाव व चिंता से भर दिया था.

शिखा भाभी की बात से बड़ी भाभी अचानक बहुत ज्यादा चिढ़ गई थीं.

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‘‘बनठन कर औफिस में बस मटरगश्ती करने जाती हो तुम…मैं घर न संभालूं तो तुम्हें आटेदाल का भाव मालूम पड़ जाए…’’ ऐसी कड़वी बातें मुंह से निकाल कर बड़ी भाभी ने शिखा को रुला दिया था.

‘‘मुझे नहीं करनी नौकरी…मैं त्यागपत्र दे दूंगी,’’ उन की इस धमकी को सब ने सुना और घर का माहौल और ज्यादा तनावग्रस्त हो गया.

शिखा भाभी की पगार घर की आर्थिक स्थिति को ठीकठाक बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी. सब जानते थे कि वे जिद्दी स्वभाव की हैं और जिद पर अड़ कर कहीं सचमुच त्यागपत्र न दे दें, इस डर ने पापा को इस मामले में हस्तक्षेप करने को मजबूर कर दिया.

‘‘बहू, उसे दफ्तर जाने दो. हम सब हैं न यहां का काम संभालने के लिए. तुम अपनी सास के साथ अस्पताल में रहो. अंजलि रसोई संभालेगी,’’ पापा ने नीरजा भाभी को गंभीर लहजे में समझाया और उन की आंखों का इशारा समझ मैं रसोई में घुस गई.

राजीव भैया ने नीरजा भाभी को जोर से डांटा, ‘‘इस परेशानी के समय में तुम क्या काम का रोनाधोना ले कर बैठ गई हो. जरूरी न होता तो शिखा कभी औफिस जाने को तैयार न होती. जाओ, उसे मना कर औफिस भेजो.’’

राजीव भैया के सख्त लहजे ने भाभी की आंखों में आंसू ला दिए. उन्होंने नाराजगी भरी खामोशी अख्तियार कर ली. विशेषकर शिखा भाभी से उन की बोलचाल न के बराबर रह गई थी.

अस्पताल से घर लौटी मां को अपनी दोनों बहुओं के बीच चल रहे मनमुटाव का पता पहले दिन ही चल गया.

उन्होंने दोनों बहुओं को अलगअलग और एकसाथ बिठा कर समझाया, पर स्थिति में खास सुधार नहीं हुआ. दोनों भाभियां आपस में खिंचीखिंची सी रहतीं. उन के ऐसे व्यवहार के चलते घर का माहौल तनावग्रस्त बना रहने लगा.

बड़े भैया से नीरजा भाभी को डांट पड़ती, ‘‘तुम बड़ी हो और इसलिए तुम्हें ज्यादा जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए. बच्चों की तरह मुंह फुला कर घूमना तुम्हें शोभा नहीं देता है.’’

छोटे भैया विकास भी शिखा भाभी के साथ सख्ती से पेश आते.

‘‘तुम्हारे गलत व्यवहार के कारण मां को दुख पहुंच रहा है, शिखा. डाक्टरों ने कहा है कि टैंशन उन के लिए घातक साबित हो सकता है. अगर उन्हें दूसरा अटैक पड़ गया तो मैं तुम्हें कभी माफ नहीं करूंगा,’’ ऐसी कठोर बातें कह कर विकास भैया शिखा भाभी को रुला डालते.

पापा का काम सब को समझाना था. कभीकभी वे बेचारे बड़े उदास नजर आते. जीवनसंगिनी की बीमारी व घर में घुस आई अशांति के कारण वे थके व टूटे से दिखने लगे थे.

मां ज्यादातर अपने कमरे में पलंग पर लेटी आराम करती रहतीं. बहुओं के मूड की जानकारी उन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर डाली हुई थी. मैं बहुत कुछ बातें उन से छिपा जाती, पर झूठ नहीं बोलती. घर की बिगड़ती जा रही स्थिति को ले कर मां की आंखों में चिंता के भावों को मैं निरंतर बढ़ते देख रही थी.

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फिर एक खुशी का मौका आ गया. मेरे 3 साल के भतीजे मोहित का जन्मदिन रविवार को पड़ा. इस अवसर पर घर के बोझिल माहौल को दूर भगाने का प्रयास हम सभी ने दिल से किया था.

शिखा भाभी मोहित के लिए बैटरी से पटरियों पर चलने वाली ट्रेन लाईं. हम सभी बनसंवर कर तैयार हुए. बहुत करीबी रिश्तेदारों व मित्रों के लिए लजीज खाना हलवाई से तैयार कराया गया.

उस दिन खूब मौजमस्ती रही. केक कटा, जम कर खायापिया गया और कुछ देर डांस भी हुआ. यह देख कर हमारी खुशियां दोगुनी हो गईं कि नीरजा और शिखा भाभी खूब खुल कर आपस में हंसबोल रही थीं.

लेकिन रात को एक और घटना ने घर में तनाव और बढ़ा दिया था.

शिखा भाभी ने रात को अपने पहने हुए जेवर मां की अलमारी में रखे तो पाया कि उन का दूसरा सोने का सेट अपनी जगह से गायब था.

उन्होंने मां को बताया. जल्दी ही सैट के गायब होने की खबर घर भर में फैल गई.

दोनों बहुओं के जेवर मां अपनी अलमारी में रखती थीं. उन्होंने अपनी सारी अलमारी खंगाल मारी, पर सैट नहीं मिला.

‘‘मैं ने चाबी या तो नीरजा को दी थी या शिखा को. इन लोगों की लापरवाही के कारण ही किसी को सैट चुराने का मौका मिल गया. घर में आए मेहमानों में से अब किसे चोर समझें?’’ मां का चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

मां किसी मेहमान को चोर बता रही थीं और शिखा भाभी ने अपने हावभाव से यह जाहिर किया जैसे चोरी करने का शक उन्हें नीरजा भाभी पर हो.

शिखा भाभी नाराज भी नजर आती थीं और रोंआसी भी. किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि उन से इस मामले में क्या कहें. सैट अपनेआप तो गायब हो नहीं सकता था. किसी ने तो उसे चुराया था और शक की सूई सब से ज्यादा बड़ी भाभी की तरफ घूम जाती क्योंकि मां ने अलमारी की चाबी उन्हें दिन में कई बार दी थी.

हम सभी ड्राइंगरूम में बैठे थे तभी नीरजा भाभी ने गंभीर लहजे में छोटी भाभी से कहा, ‘‘शिखा, मैं ने तुम्हारे सैट को छुआ भी नहीं है. मेरा विश्वास करो कि मैं चोर नहीं हूं.’’

‘‘मैं आप को चोर नहीं कह रही हूं,’’ शिखा भाभी ने जिस ढंग से यह बात कही उस में गुस्से व बड़ी भाभी को अपमानित करने वाले भाव मौजूद थे.

‘‘तुम मुंह से कुछ न भी कहो, पर मन ही मन तुम मुझे ही चोर समझ रही हो.’’

‘‘मेरा सैट चोरी गया है, इसलिए कोई तो चोर है ही.’’

‘‘नीरजा, तुम अपने बेटे के सिर पर हाथ रख कर कह दो कि तुम चोर नहीं हो,’’ तनावग्रस्त बड़े भैया ने अपनी पत्नी को सलाह दी.

‘‘मुझे बेटे की कसम खाने की जरूरत नहीं है…मैं झूठ नहीं बोल रही हूं…अब मेरे कहे का कोई विश्वास करे या न करे यह उस के ऊपर है,’’ ऐसा कह कर जब बड़ी भाभी अपने कमरे की तरफ जाने को मुड़ीं तब उन की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे.

मोहित के जन्मदिन की खुशियां फिर से तनाव व चिंता में बदल गईं.

छोटी भाभी का मूड आगामी दिनों में उखड़ा ही रहा. इस मामले में बड़ी भाभी कहीं ज्यादा समझदारी दिखा रही थीं. उन्होंने शिखा भाभी के साथ बोलना बंद नहीं किया बल्कि दिन में 1-2 बार जरूर इस बात को दोहरा देतीं कि शिखा उन पर सैट की चोरी का गलत शक कर रही है.

मांने उन दोनों को ही समझाना छोड़ दिया. वे काफी गंभीर रहने लगी थीं. वैसे उन को टैंशन न देने के चक्कर में कोई भी इस विषय को उन के सामने उठाता ही नहीं था.

मोहित के जन्मदिन के करीब 10 दिन बाद मुझे कालेज के एक समारोह में शामिल होना था. उस दिन मैं ने शिखा भाभी का सुंदर नीला सूट पहनने की इजाजत उन से तब ली जब वे बाथरूम में नहा रही थीं.

उन की अलमारी से सूट निकालते हुए मुझे उन का खोया सैट मिल गया. वह तह किए कपड़ों के पीछे छिपा कर रखा गया था.

मैं ने डब्बा जब मां को दिया तब बड़ी भाभी उन के पास बैठी हुई थीं. जब मैं ने सैट मिलने की जगह उन दोनों को बताई तो मां आश्चर्य से और नीरजा भाभी गुस्से से भरती चली गईं.

‘‘मम्मी, आप ने शिखा की चालाकी और मक्कारी देख ली,’’ नीरजा भाभी का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, ‘‘मुझे चोर कहलवा कर सब के सामने अपमानित करवा दिया और डब्बा खुद अपनी अलमारी में छिपा कर रखा था. उसे इस गंदी हरकत की सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘तुम अपने गुस्से को काबू में रखो, नीरजा. उसे नहा कर आने दो. फिर मैं उस से पूछताछ करती हूं,’’ मां ने यों कई बार भाभी को समझाया पर वे छोटी भाभी का नाम ले कर लगातार कुछ न कुछ बोलती ही रहीं.

कुछ देर बाद छोटी भाभी सब के सामने पेश हुईं तो मैं ने सैट उन की अलमारी में कपड़ों के पीछे से मिलने की बात दोहरा दी.

सारी बात सुन कर वे जबरदस्त तनाव की शिकार बन गईं. फिर बड़ी भाभी को गुस्से से घूरते हुए उन्होंने मां से कहा, ‘‘मम्मी, चालाक और मक्कार मैं नहीं बल्कि ये हैं. मुझे आप सब की नजरों से गिराने के लिए इन्होंने बड़ी चालाकी से काम लिया है. मेरी अलमारी में सैट मैं ने नहीं बल्कि इन्होंने ही छिपा कर रखा है. ये मुझे इस घर से निकालने पर तुली हुई हैं.’’

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नीरजा भाभी ने शिखा भाभी के इस आरोप का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच हमारे रोकतेरोकते भी कई कड़वे, तीखे शब्दों का आदानप्रदान हो ही गया.

‘‘खामोश,’’ अचानक मां ने दोनों को ऊंची आवाज में डपटा, तो दोनों सकपकाई सी चुप हो गईं.

‘‘मैं तुम दोनों से 1-1 सवाल पूछती हूं,’’ मां ने गंभीर लहजे में बोलना आरंभ किया, ‘‘शिखा, तुम्हारा सैट मेरी अलमारी से चोरी हुआ तो तुम ने किस सुबूत के आधार पर नीरजा को चोर माना था?’’

शिखा भाभी ने उत्तेजित लहजे में जवाब दिया, ‘‘मम्मी, आप ने चाबी मुझे या इन्हें ही तो दी थी. अपने सैट के गायब होने का शक इन के अलावा और किस पर जाता?’’

‘‘तुम ने मुझ पर शक क्यों नहीं किया?’’

‘‘आप पर चोरी करने का शक पैदा होने का सवाल ही नहीं उठता, मम्मी. आप आदरणीय हैं. सबकुछ आप का ही तो है…अपनी हिफाजत में रखी चीज कोई भला खुद क्यों चुराएगा?’’ छोटी भाभी मां के सवाल का जवाब देतेदेते जबरदस्त उलझन की शिकार बन गई थीं.

अब मां नीरजा भाभी की तरफ घूमीं और उन से पूछा, ‘‘बड़ी बहू, अंजलि को सैट शिखा की अलमारी में मिला. तुम ने सब से पहले शिखा को ही चालाकी व मक्कारी करने का दोषी किस आधार पर कहा?’’

‘‘मम्मी, मैं जानती हूं कि सैट मैं ने नहीं चुराया था. आप की अलमारी से सैट कोई बाहर वाला चुराता तो वह शिखा की अलमारी से न बरामद होता. सैट को शिखा की अलमारी में उस के सिवा और कौन छिपा कर रखेगा?’’ किसी अच्छे जासूस की तरह नीरजा भाभी ने रहस्य खोलने का प्रयास किया.

‘‘अगर सैट पहले मैं ने ही अपनी अलमारी से गायब किया हो तो क्या उसे शिखा की अलमारी में नहीं रख सकती?’’

‘‘आप ने न चोरी की है, न सैट शिखा की अलमारी में रखा है. आप इसे बचाने के लिए ऐसा कह रही हैं.’’

‘‘बिलकुल यही बात मैं भी कहती हूं,’’ शिखा भाभी ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मम्मी, आप समझ रही हैं कि सारी चालाकी बड़ी भाभी की है और सिर्फ इन्हें बचाने को…’’

‘‘यू शटअप.’’

दोनों भाभियां एकदूसरे को फाड़ खाने वाले अंदाज में घूर रही थीं. मां उन दोनों को कुछ पलों तक देखती रहीं. फिर उन्होंने एक गहरी सांस इस अंदाज में ली मानो बहुत दुखी हों.

दोनों भाभियां उन की इस हरकत से चौंकीं और गौर से उन का चेहरा ताकने लगीं.

मां ने दुखी लहजे में कहा, ‘‘तुम दोनों मेरी बात ध्यान से सुनो. सचाई यही है कि शिखा का सैट मैं ने ही अपनी अलमारी से पहले गायब किया और फिर अंजलि के हाथों उसे शिखा की अलमारी से बरामद कराया.’’

दोनों भाभियों ने चौंक कर मेरी तरफ देखा. मैं ने हलकी सी मुसकराहट अपने होंठों पर ला कर कहा, ‘‘मां, सच कह रही हैं. मैं सैट चुन्नी में छिपा कर शिखा भाभी के कमरे में ले गई थी और फिर हाथ में पकड़ कर वापस ले आई. ऐसा मैं ने मां के कहने पर किया था.’’

‘‘मम्मी, आप ने यह गोरखधंधा क्यों किया? अपनी दोनों बहुओं के बीच मनमुटाव कराने के पीछे आप का क्या मकसद रहा?’’ नीरजा भाभी ने यह सवाल शिखा भाभी की तरफ से भी पूछा.

मां एकाएक बड़ी गंभीर व भावुक हो कर बोलीं, ‘‘मैं ने जो किया उस की गहराई में एक सीख तुम दोनों के लिए छिपी है. उसे तुम दोनों जिंदगी भर के लिए गांठ बांध लो.

‘‘देखो, मेरी जिंदगी का अब कोई भरोसा नहीं. मेरे बाद तुम दोनों को ही यह घर चलाना है. राजीव और विकास सदा मिल कर एकसाथ रहें, इस के लिए यह जरूरी है कि तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए प्यार व सम्मान हो.

‘‘सैट से जुड़ी समस्या पैदा करने की जिम्मेदार मैं हूं, पर तुम दोनों में से किसी ने मुझ पर शक क्यों नहीं किया?

‘‘इस का जवाब तुम दोनों ने यही दिया कि मैं तुम्हारे लिए आदरणीय हूं…मेरी छवि ऐसी अच्छी है कि मुझे चोर मानने का खयाल तक तुम दोनों के दिलों में नहीं आया.

‘‘तुम दोनों को आजीवन एकदूसरे का साथ निभाना है. अभी तुम दोनों के दिलों में एकदूसरे पर विश्वास करने की नींव कमजोर है तभी बिना सुबूत तुम दोनों ने एकदूसरे को चोर, चालाक व मक्कार मान लिया.

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‘‘आज मैं अपनी दिली इच्छा तुम दोनों को बताती हूं. एकदूसरे पर उतना ही मजबूत विश्वास रखो जितना तुम दोनों मुझ पर रखती हो. कैसी भी परिस्थितियां, घटनाएं या लोगों की बातें कभी इस विश्वास को न डगमगा पाएं ऐसा वचन तुम दोनों से पा कर ही मैं चैन से मर सकूंगी.’’

‘‘मम्मी, ऐसी बात मुंह से मत निकालिए,’’ मां की आंखों से बहते आंसुओं को पोंछने के बाद नीरजा भाभी उन की छाती से लग गईं.

‘‘आप की इस सीख को मैं हमेशा याद रखूंगी…हमें माफ कर दीजिए,’’ शिखा भाभी भी आंसू बहाती मां की बांहों में समा गईं.

‘‘मैं आज बेहद खुश हूं कि मेरी दोनों बहुएं बेहद समझदार हैं,’’ मां का चेहरा खुशी से दमक उठा और मैं भी भावुक हो उन की छाती से लग गई.

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