जीवन के हर रंग की आवाज बनीं लता मंगेशकर भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, पर उन की सुमधुरता सदियों तक गूंजती रहेगी. रविवार के दिन की तारीख 6 फरवरी, 2022 देशदुनिया के इतिहास के पन्ने में जुड़ गई. इसी के साथ इतिहास के पन्ने में वह नाम भी दर्ज हो गया, जिस की आवाज आने वाली पीढि़यों तक सुनी जाती रहेगी. सर्द सुबह में चाय का प्याला थामे, मार्निंग वाक करते, छुट्टी के दिन प्लान बनाते, या रोजमर्रा के कामकाज से कुछ पल आराम करते हुए अनगिनत लोग हों, या फिर हाटबाजार में अपनी दिनचर्या पर निकल पड़े मेहनतकश. जिन्होंने भी लता मंगेशकर के निधन की खबर सुनी स्तब्ध रह गए.
पलभर के लिए लगा, जैसे कुछ पल थम गया. एक शून्य आ गया. एफएम रेडियो पर आ रही मधुर आवाज थरथरा उठी. उस संगीत से साजों के म्यूजिक से महीन आवाज अलग होने की कोशिश करने लगी.
लता मंगेशकर की वह भारतीय संस्कृति में रचीबसी विशुद्ध आवाज थी, जिस बारे में शायर गुलजार की लिखी चंद पंक्तियां हैं— मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे...
विश्व के उपमहाद्वीप में 8 दशक की पीढि़यों को संगीत की सुमधुरता की अनुभूति करवाने वाली लता मंगेशकर अपने 30 हजार फिल्मी, गैरफिल्मी गीतों के माध्यम से हर स्त्री की न सिर्फ एक अनूठी आवाज बन गईं, बल्कि उन्होंने उन्हें संपूर्णता के प्रति प्रेरित भी किया. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिस ने लता मंगेशकर के गानों को गुनगुनाया या गाया न हो.
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