Download App

मैं अपनी मौसी के लड़के से पिछले 3 वर्षों से प्यार करती हूं, क्या हमारी शादी संभव है?

सवाल

मैं 18 वर्षीय युवती हूं और अपनी मौसी के लड़के से पिछले 3 वर्षों से प्यार करती हूं. हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते, इसलिए मैं उस से शादी करना चाहती हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या यह शादी संभव है?

जवाब

आप की उम्र अभी बहुत कम है और आप पिछले 3 वर्षों यानी किशोरावस्था से प्यार का दम भर रही हैं. जिसे आप प्यार समझ रही हैं वह प्यार नहीं सिर्फ यौनाकर्षण है. इस उम्र में अपोजिट सैक्स के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक होता है और यह जितनी तेजी से चढ़ता है उसी वेग से उतर भी जाता है. अत: आप इस भ्रम को मन से निकाल दें. इस के अलावा शादीब्याह के लिए सोचने की अभी आप की उम्र नहीं है. यह जिम्मेदारी बड़ों पर छोड़ दें. अभी मौजमस्ती करें और अपने कैरियर के बारे में सोचें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

वैलेंटाइन डे पर सितारों ने कही ये बात, पढ़ें खबर

प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती, उसे कभी और कहीं भी महसूस किया जा सकता है. ये फीलिंग्स आपके पेरेंट्स, बहन, भाई, या दोस्त किसी के साथ भी हो सकता है, जो आपके प्यारे हो, जिनके बिना जिंदगी अधूरी हो जाती है. इस प्यार को सेलिब्रेट करने का दिन होता है, वैलेंटाइन डे. जिसे सभी मनाना पसंद करते है, जिसमें खासकर सेलिब्रिटीज जो प्यार की गहराई को पर्दे पर उतारते है.इसी प्यार को वे कैसे याद कर मनाने वाले है, आइये जाने उनकी बातें,

मुस्कान वर्मा

मुस्कान कहती है कि मैंने पहली बार वैलेंटाइन डे के बारें में टीनएज में सुनी थी. प्यार गिफ्ट और चोकलेट के लिए नहीं होता, बल्कि ये लव्ड वन को प्यार और ख़ुशी देने का है. मेरे लिए वेलेंटाइन डे हर दिन है, जिसे मैं परिवार के साथ महसूस करती हूँ.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: वैलेंटाइन डे पर अनुपमा करेगी प्यार का इजहार! देखें Video

muskan..

 

हंसा सिंह

हँसा सिंह हंसती हुई कहती है कि मुझे वेलेंटाइन डे के बारें में मुझे स्कूल में ही पता चल गया था, क्योंकि मैं इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ी हूँ. इस दिन को मैं अपने सभी दोस्तों के साथ मनाती आई हूँ. समय के साथ ही मुझे प्यार का सही अर्थ पता चला. किसी को प्यार देने से पहले खुद से प्यार करना जरुरी होता है. ये दिन मेरे लिए खास होता है. इस बार मैं दुबई अपने भाई और पुराने दोस्तों के साथ मनाने वाली हूँ.

ये भी पढ़ें- पति रितेश से अलग हुईं Rakhi Sawant, शेयर किया ये पोस्ट

hansha-singh

हेमल देव

टीवी शो विद्रोही फेम अभिनेत्री हेमल कहती है कि कॉलेज में मुझे वेलेंटाइन डे का पता चला, पर कभी सेलिब्रेट करने का मौका नहीं मिला.मैं इस बार माँ को डिनर पर ले जाउंगी, क्योंकि वह समय-समय पर कोल्हापुर से मुंबई मुझसे मिलने और मोरल सपोर्ट देने आ जाती है.मेरे लिए ये दिन मॉम – डॉटर डेट होगी, क्योंकि उन्होंने मुझे ट्रू लव के अर्थ को समझाया है.

hemel

प्रतीक चौधरी

अभिनेता प्रतीक को वेलेंटाइन डे बहुत पसंद है, उनका कहना है कि स्कूल के दिनों में मैं चोकलेट डे और रोज डे समझता था, क्योंकि उस दिन चोकलेट और गुलाब के फूल मिलते थे. किसी को भी मेरे जीवन में स्पेशल जताने के लिए केवल एक दिन नहीं होना चाहिए, क्योंकि मेरे लिए जो स्पेशल है, उन्हें मैं हर रोज स्पेशल महसूस करवाना चाहूँगा. भविष्य में अगर मेरा कोई पार्टनर हो तो, वह हर दिन मेरे लिए स्पेशल रहेगी. मैं इस बार शो ‘सिंदूर की कीमत’ के सेट पर सेलिब्रेट करूँगा. इस दिन को किसी के साथ मनाया जा सकता है, जो आपके करीब हो, लेकिन मैं अपने परिवार और दोस्तों के साथ मनाने वाला हूँ.

ये भी पढ़ें- हप्पू सिंह असल जिंदगी में बने दूसरी बार पापा, सीरियल में हैं 9 बच्चों के पिता

bolllywood

रोहन बिरला

अभिनेता रोहन बिरला को वेलेंटाइन डे कक्षा 10 से ही पता चला, क्योंकि वे सभी दोस्तों को इस विषय पर बात करते हुए सुन रखा था. घर आकर उन्होंने गूगल सर्च किया तो पता चला कि वेलेंटाइन डे केवल कपल्स के लिए नहीं होता, बल्कि हर रिश्ते में खास होने वालों के लिए भी होता है. मैं इस साल घर पर बैठकर 80 के दशक की फिल्में देखूंगा और अपनी बहन के साथ एक फिल्म देखने की इच्छा है.

प्रगति मेहरा

धारावाहिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम अभिनेत्री प्रगति कहती है कि मुझे वेलेंटाइन डे के बारें में स्कूल से ही पता चल गया था, लेकिन सही माइने में तब पता चला जब मैं किसी को डेट करने लगी थी. ये दिन रोमांटिक लव का हो ऐसा जरुरी नहीं, जो भी व्यक्ति आपके करीब हो इस दिन को उनके साथ मना सकते है. इसे केवल एक दिन नहीं, हर दिन मनाने की जरुरत है,

Anupamaa: वैलेंटाइन डे पर अनुपमा करेगी प्यार का इजहार! देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa)  में अब तक आपने देखा कि अनुपमा अनुज को अपने घर ले आती है. उस जीवन में आगे बढ़ने के लिए समझाती है. तो दूसरी तरफ मालविका जीके से कहती है, कैसे अनुज ने उसे छोड़ दिया. जीके कहते हैं कि तुम भी तो अनुज को छोड़कर चली गई थी. शो के आने वाले एपिसोड में वैलेंटाइन एपिसोड देखने को मिलेगा. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो का एक नया प्रोमो सामने आया है. प्रोमो में आप देख सकते हैं कि अनुपमा अपने दिल की बात अनुज से कहने वाली है. अनुज 26 साल से अपने प्यार का इंतजार कर रहा है. बताया जा रहा है कि वैंलेटाइन एपिसोड में अनुपमा अनुज से अपने प्यार का इजहार करने वाली है.

ये भी पढ़ें- पति रितेश से अलग हुईं Rakhi Sawant, शेयर किया ये पोस्ट

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rups (@rupaliganguly)

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि बाबूजी फिर से अनुपमा को नई शुरुआत करने के लिए कहेंगे. बाबू जी अनुपमा से कहेंगे कि वह जो भी कर रही है, सही है. अनु समर को साथ में रहने के लिए कहती है.  इसके लिए बाबूजी मान जाते हैं.

ये भी पढ़ें- हप्पू सिंह असल जिंदगी में बने दूसरी बार पापा, सीरियल में हैं 9 बच्चों के पिता

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gaurav Khanna (@gauravkhannaofficial)

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि समर वैलेंटाइन डे के बारे में अनुज और अनुपमा को बताता है. दोनों सुनकर शरमा जाते हैं. तो वहीं वनराज पारितोष से कहता है कि उन्हें ऐलान करने की जरूरत है कि मालविका कपाड़िया बिजनेस की नयी हेड है.

 

तो वहीं बाबूजी वनराज और तोशू को कहते हैं कि वो अपना काम करे लेकिन अनुपमा और अनुज को परेशान न करे. दूसरी तरफ अनुज रहने के लिए होटल जाने लगता है. लेकिन अनुपमा उसे रोक लेती है.

क्या मुसीबतों का हल पूजा-पाठ है?

बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की नाराजगी, न्यूनतय मूल्य न दे पाने की गारंटी, गांंवों और कस्बों में बढ़ते अपराधों, अदालतों में देरदार पर रोक न कर पाने, कोविड में हुई मौतों का जवाब न होना. लौक डाउन पर पैदल घर लौटते को मजबूर हुए लाखों मजदूरों की नाराजगी वगैरा पर भारतीय जनता पार्टी की केंद्र या उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकारों के पास ढोल पीटने के लिए कुछ नहीं बचा जिस से चुनावी गंगा पार कर सकें. इसलिए उस ने पुराना जिन्न बोतल से निकाला- ङ्क्षहदूमुसलमान वाला.

इस चुनाव में मोदीयोगी और शाह बस एक ही बात दोहरा रहे हैं, मुसलमानों ने यह किया, वह किया और अगर भाजपा न होती तो यह हो जाता वह हो जाता. 7 साल तक राज करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी कभी 1947 की बात करती है, कभी 1984 की कभी 1493 की. मानो इन बातों से नलों में पानी आ जाएगा. बाइक में पैट्रोल भर जाएगा, अनाज के दुगने दाम मिलने लगेंगे, दलितों पर हो रहे अत्याचार बंद हो जाएंगे.

ये भी पढ़ें- जनता सदियों से पिसती रही है!

यह सरकार के निकम्मेपन को छिपाने की अच्छी तरकीब है. आज भी जब गांव में जमीन या मकान के बारे पड़ोसियों या रिश्तेदारों में झगड़ा होता है, पुराने इतिहास की परतें एकदूसरे को जवाब देने में खूब काम मेंं  आती है. बात जमीन की सीमा हो रही हो तो जिस ने जमीन हथियाई वह सवाल उठाने वाले के पुरखों का बयान  करना शुरू देता. असली सवाल छिपा रह जाता और दोनों एकदूसरे के पुरखों या एकदूसरे के पुराने कामों की बखिया उधेडऩे लगते हैं. यही भारतीय जनता पार्टी कर रही है.

विज्ञान और तकनीक हमें समझाता है कि मुसीबतों का हल न पूजापाठ में है, न इतिहास के पन्नों में. वह तो मुसीबत की जड़ में जाने से मिलेगा और उस की सही मरम्मत से. टै्रक्टर के इंजन का गैरवर्स खराब हइो जाए तो चलाने वाले ड्राइवर के बाप को कोसने से टै्रक्टर नहीं चलेगा, इंजन खोल कर गैरवर्स बदलाने से होगा. देश में गरीबी और भुखमरी मेहनत से दूर होगी, सही पौलिसियों से दूर होगी, नई तकनीक से दूर होगी, मुसलमानों को देश का दुश्मन बनाने से नहीं.

ये भी पढ़ें- क्या है फंडामैंटल राइट और प्रैक्टिकल राइट

असल में देश और समाज के दुश्मन तो वे लोग हैं जो धर्म, पूजापाठ, पाखंड, इतिहास से गली रस्सियां निकाल कर घेरेबंदी कर रहे हैं. भारत जैसे विशाल देश का एक रहने का लाभ तभी है जब सब मिल कर देश के लिए काम करें, 80′ फीसदी, 20 सदी, 90 फीसदी, 10 फीसदी की बातें छोड़ कर 100 फीसदी की बातें करें. 130 करोड़ लोग जब तक एक हो कर एक साथ काम नहीं करेंगे, देश को ढंग से चलाने के लिए मेहनत नहीं करेंगे, खाइयों को पाट कर नए खेत, खलिहान, कारखाने नहीं बनाएंगे, देश रोता रहेगा, लड़ता रहेता. सत्ता में बैठी पार्टी से उम्मीद की जाती है कि वह सारे देश को बांध कर रखे, यह तो उलटा हो रहा है. देश का भार जिन के पास है, वे ‘हम’ और ‘उन’ पर लगे हुए हैं.

Manohar Kahaniya: फिल्म राइटर और एक्ट्रेस के इश्क की उड़ान

26दिसंबर, 2021 की सुबह का वक्त था. उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के थाना खागा के थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल पलट रहे थे. तभी एक युवक ने उन के कक्ष में प्रवेश किया.

वह बेहद घबराया हुआ था. उन्होंने एक नजर उस पर डाली फिर पूछा, ‘‘सुबहसुबह कैसे आना हुआ? क्या कोई खास बात है? तुम इतने घबराए हुए क्यों हो?’’

‘‘सर, मेरा नाम इंद्रमोहन सिंह राजपूत है. मैं गुलरिहनपुर मजरे के कूरा गांव का रहने वाला हूं. बीती रात मेरी पत्नी योगमाया ने हंसिया से गला रेत कर आत्महत्या कर ली. उस की लाश घर के अंदर पड़ी है. रात में सूचना देने नहीं आ सका. इसलिए सुबह आया हूं.’’

थानाप्रभारी आनंद शुक्ला के सामने कई ऐसे सवाल थे, जिन के जवाब इंद्रमोहन सिंह दे सकता था. लेकिन पहली जरूरत मौके पर पहुंचने की थी. इसलिए उन्होंने सब से पहले एसपी (फतेहपुर) राजेश कुमार सिंह और डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा को घटना की जानकारी दी. फिर वह पुलिस टीम ले कर मौके पर पहुंच गए.

उस समय इंद्रमोहन सिंह के घर के बाहर लोगों की भीड़ थी. भीड़ को हटाते हुए थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने सहकर्मियों के साथ घर के अंदर प्रवेश किया और उस कमरे में पहुंचे, जहां मृतका की लाश पड़ी थी.

कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर पड़े पलंग पर योगमाया नाम की युवती की लाश खून से तरबतर पड़ी थी. उस के गले पर 3 गहरे घाव थे, जिन से खून रिस रहा था. खून से बिस्तर तरबतर था. पलंग के पास ही खून सना हंसिया पड़ा था, जिसे श्री शुक्ला ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

मृतका योगमाया का रंग गोरा, शरीर स्वस्थ और उम्र 25 वर्ष के आसपास थी. मौके से कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ. शव निरीक्षण के बाद थानाप्रभारी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह मामला आत्महत्या का नहीं है, बल्कि रणनीति के तहत हत्या का है. पुलिस को गुमराह करने के लिए आत्महत्या की सूचना दी गई है.

सच्चाई का पता लगाने के लिए वह वहां पर मौजूद मृतका के मायके वालों से जानकारी के लिए बड़े तभी एसपी राजेश कुमार सिंह तथा डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा वहां आ गए.

ये भी पढ़ें- Crime Story: फेसबुक दोस्ती और जेल

पुलिस को दिखा हत्या का मामला

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर इंसपेक्टर आनंद प्रकाश शुक्ला से बातचीत की. इंसपेक्टर शुक्ला ने शक जाहिर किया कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का है और इस का रहस्य मृतका के पति इंद्रमोहन सिंह के पेट में ही छिपा है.

मौके पर मृतका का पति इंद्रमोहन सिंह मौजूद था. अत: एसपी राजेश कुमार सिंह ने उस से पूछताछ की. इंद्रमोहन सिंह ने बताया कि वह रंगकर्मी है. भोजपुरी फिल्मों में कहानी लेखन का काम करता है. इस के अलावा वह भोजपुरी गानों पर एलबम बनाता है.

कल सुबह वह पहले अपनी ससुराल गया, फिर वहां से लखनऊ चला गया था. घर पर उस की पत्नी योगमाया, एक वर्षीय बेटा अनमोल तथा भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री नेहा वर्मा थी.

देर रात जब वह घर वापस आया तो नेहा वर्मा ने बताया कि योगमाया ने आत्महत्या कर ली. रात अधिक हो जाने के कारण वह थाने नहीं गया. सुबह सूचना देने गया. भोजपुरी फिल्म नायिका नेहा वर्मा डरीसहमी घर पर ही मौजूद थी.

राजेश कुमार सिंह ने नेहा वर्मा से पूछताछ की तो उस ने बताया कि रात 8 बजे उस ने और योगमाया ने साथ बैठ कर खाना खाया था. उस के बाद योगमाया अपने बेटे के साथ कमरे में जा कर लेट गई और वह दूसरे कमरे में जा कर सो गई.

रात 10 बजे के लगभग उसे बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी तो वह कमरे में गई. वहां पलंग पर योगमाया मृत पड़ी थी. उस ने हंसिया से गला रेत कर आत्महत्या कर ली थी. कुछ देर बाद इंद्रमोहन सिंह आ गए.

तब वह बच्चे को गोद में ले कर चीखते हुए बाहर निकले. उस के बाद इंद्रमोहन सिंह के मातापिता व भाई आ गए, जो पड़ोस में रहते हैं.

नेहा वर्मा ने यह भी बताया कि वह 2 साल से इंद्रमोहन सिंह के संपर्क में है. वह भोजपुरी फिल्मों में साइड रोल करती है. अभी कुछ माह पहले ही उस की ‘पश्चाताप’ फिल्म बनी है, जो जल्द ही रिलीज होने वाली है. इस भोजपुरी फिल्म में उस का साइड रोल है.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: जहरीली इश्क की दवा

फिल्म की कहानी इंद्रमोहन सिंह ने लिखी थी. उस ने बताया कि वह 4 दिन पहले ही अपने पिता के साथ गोरखपुर से कूरा गांव आई थी. पहले भी वह कई बार इंद्रमोहन सिंह के साथ गांव आई थी.

पूछताछ के दौरान राजेश सिंह की नजर नेहा वर्मा के कपड़ों पर पड़ी. वह सलवार सूट पहने थी. सलवार खून से सनी थी और हाथों पर भी खून के दाग थे. गले पर खरोंच का निशान था. श्री सिंह ने वहां पर लगे खून के बाबत उस से पूछा, तो वह सकपका गई और कोई सही जवाब न दे सकी. वह कभी इंद्रमोहन सिंह की तरफ देखती तो कभी आंखें नीची कर लेती.

राजेश कुमार सिंह समझ गए कि नेहा वर्मा कुछ गहरा राज छिपा रही है. यह मामला आत्महत्या का नहीं है. हत्या के इस मामले में नेहा का हाथ हो सकता है.

योगमाया के शव के पास उस की सास कृष्णा व ससुर चंद्रमोहन सुबक रहे थे. डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा ने उन से पूछताछ की तो कृष्णा देवी ने बताया, ‘‘साहब, हमारी बहू योगमाया आत्महत्या नहीं कर सकती, उस की हत्या की गई है. नेहा और इंद्रमोहन के बीच नाजायज रिश्ता है, जिस का विरोध योगमाया करती थी. इसी विरोध के चलते नेहा ने उस को रास्ते से हटा दिया साहब, उस को तुरंत गिरफ्तार करो.’’

मृतका के भाई सत्यप्रकाश ने डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा को बताया कि बहनोई इंद्रमोहन व नेहा वर्मा के बीच पिछले 2 सालों से अवैध संबंध है. इस नाजायज रिश्ते का बहन विरोध करती थी. इस पर इंद्रमोहन उसे प्रताडि़त करता था.

कई बार उसे समझाने की कोशिश की गई लेकिन वह नहीं माना. इन्हीं नाजायज रिश्तों का विरोध करने पर इंद्रमोहन और नेहा वर्मा ने उस की हत्या कर दी और आत्महत्या करने की झूठी सूचना थाने जा कर दी.

आसपड़ोस के लोगों ने भी नाजायज रिश्ता पनपने और हत्या का शक जताया. शक के आधार पर पुलिस अधिकारियों ने इंद्रमोहन सिंह राजपूत और उस की प्रेमिका नेहा वर्मा को हिरासत में ले लिया और मृतका योगमाया के शव को पोस्टमार्टम हेतु फतेहपुर के जिला अस्पताल भिजवा दिया.

इंद्रमोहन सिंह राजपूत और नेहा वर्मा को थाना खागा लाया गया. यहां पुलिस कप्तान राजेश कुमार सिंह व डीएसपी ज्ञान दत्त मिश्रा ने दोनों से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की तो उन को सच्चाई उगलने में ज्यादा देर नहीं लगी.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: लौकडाउन की लुटेरी दुल्हन

नेहा ने बताया कि वह इंद्रमोहन राजपूत से प्यार करने लगी थी. दोनों के बीच अवैध रिश्ता भी बन गया था. वह इंद्रमोहन से शादी रचाना चाहती थी. लेकिन उस की पत्नी योगमाया बाधक थी. इस बाधा को दूर करने के लिए उन दोनों ने साजिश रची और योगमाया की हत्या कर दी. वह अपना जुर्म कुबूल करती है.

इंद्रमोहन सिंह राजपूत ने बताया कि वह खूबसूरत नेहा वर्मा के प्यार में अंधा हो गया था. वह उस से शादी कर खुशियां पाना चाहता था. नेहा के कहने पर उस ने पत्नी की मौत का षडयंत्र रचा और उसे मौत की नींद सुला दिया.

चूंकि इंद्रमोहन और नेहा ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल हंसिया भी बरामद हो गया था. अत: थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने मृतका के भाई सत्यप्रकाश को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत इंद्रमोहन सिंह राजपूत तथा नेहा वर्मा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और दोनों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस जांच में इश्क में डूबी एक ऐसी नायिका की कहानी सामने आई, जो खुद ही नायिका से खलनायिका बन गई.

उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जनपद के थरियांव थाना अंतर्गत एक गांव है अब्दुल्लापुर घूरी. इसी गांव में विदित कुमार राजपूत अपने परिवार के साथ रहते थे. उस के परिवार में पत्नी आरती के अलावा एक बेटा सत्यप्रकाश तथा 2 बेटियां दिव्या व योगमाया थीं.

विदित कुमार किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. बड़ी बेटी दिव्या का विवाह वह कर चुके थे.

ममेरी बहन से की थी लवमैरिज

दिव्या से छोटी योगमाया थी. वह छरहरी काया और तीखे नाकनक्श वाली लड़की थी. उस की मुसकान सामने वाले पर गहरा असर डालती थी. योगमाया जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में भी उतनी ही तेज थी.

उस ने हाईस्कूल की परीक्षा सरस्वती बालिका इंटर कालेज से पास कर ली थी और आगे भी पढ़ना चाहती थी. लेकिन मांबाप ने उस की पढ़ाई बंद करा दी और घरेलू काम में लगा दिया.

योगमाया के घर इंद्रमोहन सिंह का आनाजाना लगा रहता था. वह फतेहपुर जिले के ही थाना खागा के गांव कूरा के रहने वाले चंद्रमोहन राजपूत का बेटा था. रिश्ते में दोनों सगे ममेरे भाईबहन थे. घर आतेजाते योगमाया की खूबसूरती और मुसकान इंद्रमोहन के दिल में बस गई थी.

एक दिन इंद्रमोहन ने उस से अपने मन की बात भी कह दी, ‘‘योगमाया, मैं तुम से प्यार करता हूं. यदि तुम मेरा प्यार कुबूल कर लोगी, तो मैं खुद को दुनिया का सब से खुशनसीब इंसान समझूंगा.’’

योगमाया उम्र के जिस पायदान पर थी, उस उम्र में लड़कियों को ऐसी बातें गुदगुदा देती हैं. योगमाया का दिलोदिमाग भी सनसनी से भर गया. उस ने इंद्रमोहन की आंखों में देखा. उन आंखों में प्यार का सागर ठाठें मार रहा था. उस की आंखों में देखते हुए कुछ देर तक वह सोच में डूबी रही, उस के बाद बोली, ‘‘अगर मैं तुम्हारा प्यार कुबूल कर लूं तो तुम्हारा अगला कदम क्या होगा?’’

‘‘शादी?’’ इंद्रमोहन ने तपाक से जवाब दिया.

‘‘लेकिन हमारातुम्हारा रिश्ता तो बहनभाई का है. हम दोनों के घर वाले राजी नहीं हुए तो…?’’ योगमाया ने पूछा.

‘‘…तो हम भाग कर प्रेम विवाह कर लेंगे.’’

योगमाया मुसकराई फिर नजरें झुका कर स्वीकृति में सिर हिला दिया.

इंद्रमोहन और योगमाया के घर वालों को दोनों के प्यार व शादी रचाने की बात पता चली तो उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. घर वालों ने दोनों को बहुत समझाया, लेकिन जब वह नहीं माने तो विदित कुमार ने 20 वर्षीय बेटी योगमाया की शादी 12 फरवरी, 2015 को इंद्रमोहन राजपूत के साथ कर दी.

फिल्म कहानी लेखक बन गया इंद्रमोहन

शादी के बाद योगमाया इंद्रमोहन की दुलहन बन कर ससुराल आ गई. चूंकि इंद्रमोहन की मां कृष्णा इस शादी से नाराज थी, अत: वह पति चंद्रमोहन व छोटे बेटे जंगबहादुर के साथ अलग मकान में रहने लगी. वह इंद्रमोहन व योगमाया से बहुत कम बातचीत करती थी.

इंद्रमोहन सिंह बीए पास था. उस का रुझान भोजपुरी फिल्मों की तरफ था. वह फिल्म लेखन में अपनी किस्मत आजमाना चाहता था. उस ने भोजपुरी फिल्म के लिए कई कहानियां लिखीं, कुछ कहानी भोजपुरी फिल्म निर्माताओं को पसंद आईं तो कुछ कूड़ेदान में चली गईं.

लेकिन इंद्रमोहन सिंह हताश नहीं हुआ और लेखन कार्य तथा निर्माताआें के संपर्क में बना रहा. इंद्रमोहन सिंह अपनी पत्नी योगमाया से खूब प्यार करता था और उसे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं होने देता था.

योगमाया भी इंद्रमोहन की सेवा करती थी. आर्थिक संकट में भी वह पति का साथ देती थी. आर्थिक संकट के दौरान एक बार तो उस ने अपने आभूषण तक बेच दिए थे.

इंद्रमोहन और योगमाया का जीवन सुखमय बीत ही रहा था कि इसी बीच नेहा वर्मा नाम की बला आ गई, जिस ने योगमाया की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस ने योगमाया के जीवन की खुशियां तो छीनी ही फिर आखिर में जिंदगी भी छीन ली.

नेहा वर्मा मूलरूप से मुंडेरा कस्बे के महराजगंज की रहने वाली थी. उस के पिता काशीनाथ वर्मा गोरखपुर के सुभाष नगर मोहल्ले में रहते थे. वह प्राइवेट फर्म में नौकरी करते थे.

काशीनाथ साधारण पढ़ेलिखे व्यक्ति थे. आमदनी भी सीमित थी. लेकिन वह सीमित आमदनी में भी खुश थे. मुंडेरा कस्बे में उन का आनाजाना लगा रहता था.

नेहा वर्मा से हुई मुलाकात

20 वर्षीय नेहा वर्मा गोरीचिट्टी छरहरी काया की युवती थी. नैननक्श भी तीखे थे. सब से खूबसूरत थीं उस की आंखें. खुमार भरी गहरी आंखें. उस की आंखों में ऐसी कशिश थी कि जो उस में देखे, खो सा जाए.

नेहा ने इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी और आगे की पढ़ाई जारी रखना चाहती थी. वह फैशनेबल थी. अकसर मौडर्न कपड़े पहनती थी और खुद को सजासंवरा बनाए रखती थी.

सुंदर चेहरे वाली नेहा की आकर्षक देह पर मौडर्न कपड़े खूब फबते थे. जिस से देखने में वह फिल्मी हीरोइन सरीखी लगती थी. वह स्वभाव से चंचल और समय के हिसाब से काफी तेज थी. नेहा भोजपुरी फिल्में खूब देखती थी. उस का भी सपना था कि वह फिल्मों में काम करे.

वह फिल्म अभिनेत्री बनने का सपना संजोए बैठी थी. नेहा वर्मा और इंद्रमोहन सिंह की पहली मुलाकात 25 नवंबर, 2019 को मुंडेरा (महराजगंज) में एक पारिवारिक शादी समारोह में हुई. इस शादी समारोह में नेहा वर्मा अपने पिता काशीनाथ के साथ आई थी, जबकि इंद्रमोहन अपनी पत्नी योगमाया के साथ आया था.

सजीसंवरी नेहा पर जब इंद्रमोहन की नजर पड़ी तो पहली ही नजर में वह उस के दिल में रचबस गई. मौका मिला तो दोनों में हायहैलो हुई और फिर परिचय हुआ.

इंद्रमोहन ने बताया कि वह फतेहपुर जिले के कूरा गांव का रहने वाला है और भोजपुरी फिल्मों में फिल्म की कहानी लेखन का कार्य करता है. नेहा वर्मा ने बताया कि वह गोरखपुर से पिता के साथ आई है. उसे भोजपुरी फिल्में पसंद है. वह भी फिल्मों में काम करना चाहती है. नेहा ने इंद्रमोहन का परिचय अपने पिता काशीनाथ से भी कराया. इंद्रमोहन ने भी अपनी पत्नी योगमाया का परिचय नेहा से कराया.

उस शादी समारोह में नेहा वर्मा और इंद्रमोहन ने एकदूसरे से खूब बातचीत की तथा एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनोें के बीच मोबाइल फोन पर बातचीत होने लगी.

इंद्रमोहन नेहा से मिलने गोरखपुर भी जाने लगा. नेहा और इंद्रमोहन के बीच पहले दोस्ती हुई फिर प्यार पनपने लगा. इसी बीच इंद्रमोहन और नेहा भोजपुरी फिल्म के गाने पर एलबम भी बनाने लगे. इंद्रमोहन ने नेहा को कई भोजपुरी फिल्म निर्माताओं से भी मिलवाया और फिल्म में रोल देने का अनुरोध किया.

साथसाथ काम करते दोनों के बीच प्यार पनपा तो तन मिलन की भी इच्छा प्रबल हो उठी. एक दिन प्यार के क्षणों में दोनों के तन सटे तो दोनों ने एकदूसरे को बांहों में भर

लिया. फिर तो उन्हें एकाकार होने में ज्यादा देर नहीं लगी.

अवैध संबंधों का सिलसिला अनवरत चलने लगा. नेहा इंद्रमोहन के प्यार में ऐसी पड़ी कि हमेशा के लिए उस के साथ रहने के बारे में सोचने लगी.

फिल्म में नेहा को दिलाया रोल

फरवरी, 2020 में इंद्रमोहन सिंह राजपूत ने फिल्म ‘पश्चाताप’ की कहानी लिखी. यह कहानी भोजपुरी फिल्म निर्मातानिर्देशक सन्नी प्रकाश को पसंद आ गई. सन्नी प्रकाश ने फिल्म के कलाकारों का चयन किया और इंसपायरर फिल्म ऐंड एंटरटेनमेंट प्रा.लि. के बैनर तले फिल्म बनाने का निर्णय लिया.

इस फिल्म में नायकनायिका के रूप में राकेश गुप्ता तथा स्मिता सना का चयन हुआ. साथ ही सहनायिका के रूप में नेहा वर्मा का चयन हुआ.

ग्रामीण परिवेश की इस ‘पश्चाताप’ फिल्म की शूटिंग 21 सितंबर, 2020 से फतेहपुर के आसपास के क्षेत्र से शुरू हुई. शूटिंग के लिए नेहा वर्मा गोरखपुर से फतेहपुर आती थी और इंद्रमोहन सिंह राजपूत के गांव कूरा में उसी के घर में रुकती थी.

इंद्रमोहन की पत्नी योगमाया पति पर आंखें मूंद कर विश्वास करती थी और उस के कहने पर नेहा की सेवा में लगी रहती थी.

लेकिन उस के विश्वास को ठेस तब लगी, जब उस ने एक रात नेहा को पति के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. कोई भी औरत भूख और पति की प्रताड़ना तो सह सकती है, लेकिन पति का बंटवारा कभी नहीं.

योगमाया को भी पति का बंटवारा मंजूर नहीं था. सो उस ने विरोध शुरू कर दिया. नेहा को ले कर वह पति से लड़नेझगड़ने लगी.

नेहा वर्मा को योगमाया का विरोध खटकने लगा. वह इंद्रमोहन को योगमाया के खिलाफ भड़काने लगी. इस का नतीजा यह हुआ कि इंद्रमोहन पत्नी को अधिक प्रताडि़त करने लगा. तब योगमाया ने पति और नेहा के बीच पनप रहे रिश्तों की जानकारी सास कृष्णा तथा अपने मायके वालों को दे दी. सब ने इंद्रमोहन को समझाया भी, लेकिन वह नहीं माना.

फिल्म ‘पश्चाताप’ की शूटिंग 6 महीने तक चली. इस बीच नेहा वर्मा कई बार कूरा गांव आई. वह जब भी आती, घर में कलह होती. नेहा वर्मा इंद्रमोहन के प्यार में इतनी डूब गई थी कि वह उस के साथ शादी कर घर बसाने की सोचने लगी थी. लेकिन वह यह भी जानती थी कि योगमाया के रहते घर बसाना संभव नहीं है.

उस के प्यार में योगमाया बाधा बनी तो उस ने उसे मिटाने का निश्चय कर लिया. इंद्रमोहन पहले ही नेहा की खूबसूरती का कायल था, सो वह उस की जायजनाजायज बातों को मान लेता था. इंद्रमोहन अब तक एक बच्चे का बाप बन चुका था, लेकिन उसे बच्चे से ज्यादा लगाव न था. योगमाया से भी वह नफरत करने लगा था.

पे्रमिका नेहा के साथ किया पत्नी का कत्ल

21 दिसंबर, 2021 को नेहा वर्मा अपने पिता काशीनाथ वर्मा के साथ गोरखपुर से इंद्रमोहन के घर कूरा गांव आई. उसे पता चला था कि फिल्म ‘पश्चाताप’ जल्दी ही रिलीज होने वाली है. सिनेमाघरों में पोस्टर भी चस्पा हो गए थे.

एक दिन रुक कर काशीनाथ वर्मा तो वापस चले गए लेकिन नेहा इंद्रमोहन के घर ठहर गई. 23 दिसंबर, 2021 की रात योगमाया ने नेहा और इंद्रमोहन को फिर से रंगेहाथों पकड़ लिया. इस पर उस ने जम कर हंगामा किया और पति तथा नेहा को खूब खरीखोटी सुनाई. अपमानित नेहा ने इंद्रमोहन को योगमाया के खिलाफ भड़काया और रास्ते से हटाने को कहा.

इंद्रमोहन पहले तो राजी नहीं हुआ, लेकिन बाद में मान गया. इस के बाद नेहा और इंद्रमोहन ने योगमाया की हत्या का षडयंत्र रचा.

25 दिसंबर, 2021 को योजना के तहत इंद्रमोहन अपने भाई जंगबहादुर के साथ लखनऊ जाने की बात कह कर घर से निकला. लेकिन लखनऊ न जा कर वह अपनी ससुराल घुरू गया और अपने साले सत्यप्रकाश से मिला. उस ने साले को भी बताया कि वह किसी काम से लखनऊ जा रहा है. भाई जंगबहादुर को उस ने फतेहपुर भेज दिया.

इधर घर में योगमाया, उस का एक वर्षीय बेटा अनमोल तथा नेहा वर्मा थी. रात 8 बजे योगमाया ने नेहा वर्मा के साथ खाना खाया फिर बच्चे के साथ कमरे में पड़े पलंग पर जा कर लेट गई. कुछ देर बाद योगमाया सो गई.

लेकिन नेहा वर्मा की आंखों से नींद कोसों दूर थी. योजना के तहत उसने इंद्रमोहन से मोबाइल फोन पर बात की और घर बुला लिया. रात 10 बजे नेहा वर्मा और इंद्रमोहन, योगमाया के कमरे में पहुंचे. नेहा के हाथ में हंसिया था. कमरे में योगमाया रजाई से मुंह ढंके सो रही थी. नेहा उस की छाती पर सवार हो गई और रजाई मुंह से हटा कर उस की गरदन पर हंसिया से वार कर दिया.

योगमाया चीखी और उठने का प्रयास किया लेकिन उठ न सकी. बचाव में उस ने नेहा की गरदन पकड़ ली. इसी बीच नेहा ने हंसिया से वार पर वार योगमाया की गरदन पर किए. जिस से उस की गरदन पर 3 गहरे जख्म बने और खून की धार बहने लगी.

फिर भी उस ने उठने का प्रयास किया और पैर पटकने लगी. तभी इंद्रमोहन ने उस के पैर दबोच लिए और नेहा ने फिर गरदन पर हंसिया से वार किए. कुछ देर तड़पने के बाद योगमाया ने दम तोड़ दिया.

इसी बीच मां की बगल में लेटा मासूम अनमोल तेज आवाज में रोने लगा तो इंद्रमोहन ने उसे गोद में उठा लिया. फिर वह चीखता हुआ घर के बाहर आया.

उस की चीखने की आवाज सुन कर उस के मातापिता व पड़ोसी आ गए. उन सब को इंद्रमोहन ने बताया कि योगमाया ने आत्महत्या कर ली है. लेकिन मातापिता व पड़ोसियों ने उस की बात का यकीन नहीं किया.

नेहा वर्मा के हाथों में लगा खून तथा खून से सराबोर सलवार देख कर सब समझ गए कि मामला हत्या का है.

रात अधिक हो जाने के कारण इंद्रमोहन थाने नहीं गया. सुबह 7 बजे वह थाना खागा पहुंचा और पत्नी योगमाया द्वारा आत्महत्या किए जाने की सूचना दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला पुलिस टीम के साथ इंद्रमोहन के घर पहुंचे.

27 दिसंबर, 2021 को थानाप्रभारी आनंद प्रकाश शुक्ला ने आरोपी इंद्रमोहन सिंह राजपूत तथा नेहा वर्मा से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें फतेहपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रोंं पर आधारित

जाड़े की अति वर्षा से खेती को हुए नुकसान और उस की भरपाई

डा. जितेंद्र सिंह, कृषि वैज्ञानिक, फसल उत्पादन, कृषि विज्ञान केंद्र, थरियांव, फतेहपुर

रबी की खेती किसानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इसी से उस के सारे काम व विकास निर्धारित होते हैं. इन दिनों अच्छीखासी ठंड होती है और अगर बारिश हो जाए तो कहीं तो ये फायदेमंद होती है, लेकिन कई दफा ओला गिरने आदि से फसल को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. किसानों की मेहनत और कीमत दोनों ही जाया हो जाती हैं.

जाड़े की वर्षा को महावट कहा जाता था. फसल के लिए इसे अमृत वर्षा कहा जाता है, परंतु जब ये जाड़े की वर्षा इतनी अधिक हो जाए, जो खेत को नमी देने के बजाय उस में जलभराव हो जाए या ओला पड़ जाए, तो यह किसानों की फसल के लिए नुकसानदेह साबित होती है.

जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है, उस में उतने नुकसान की संभावना होती है.

ऐसी बरसात से दलहनी व तिलहनी फसलें पूरी तरह से बाधित हो जाती हैं और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना हो जाती है.

जब ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. चना, मटर, मसूर, अरहर, सरसों, आलू आदि में अधिक नुकसान होता है. कई जगहों पर तो सरसों व अरहर की जो फसलें गिर जाती हैं, उन्हें भी खासा नुकसान होता है.

ऐसे समय में ढालू भूमि जैसे यमुना, गंगा व नदियों के किनारे की खेती में जलभराव से नहीं जल बहाव से नुकसान होता है.

फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी खासा नुकसान होता है. फूल की अवस्था की समस्त फसलों में फूल गिरने व क्षतिग्रस्त होने से उत्पादन गिर जाता है.

ये भी पढ़ें- नेटाफिम: सिंचाई की उन्नत तकनीक

मौसम नम होने व कोहरा होने से रोग व कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिस से फसल को नुकसान होना तय है.

वर्षा के बाद के उपाय

* खेतों में जो पानी भरा है, उसे निकालने की तुरंत कोशिश की जाए.

* खेत की निगरानी नियमित करते हुए रोग व कीट नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करें.

*  झुलसा रोग का उपचार करें.

* माहू कीट का नियंत्रण करें.

* चना, मटर में फली छेदक कीट का निदान करें.

* गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाएं.

* आलू बीज उत्पादन वाली फसल की बेल को काट दें.

* देरी से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजातियों हलना, उन्नत हलना नैना की बोआई कर सकते हैं.

ये भी पढ़ें- रबी फसलों को पाले से बचाएं

खाली खेतों के लिए फसल योजना

* अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत को तैयार कर तुरंत गेहूं की बोआई की जा सकती है.

* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल और प्याज की रोपाई कर सकते हैं.

* जायद की भिंडी व मिर्च के लिए खेत की तैयारी कर के फरवरी माह में बोआई व रोपाई कर सकते हैं.

* गन्ने की 2 कतारों के बीच मूंग व उड़द की बोआई कर सकते हैं.

* सब्जी की बोआई के लिए खेत को तैयार कर सकते हैं.

* आलू के खेत में गरमी की मूंगफली की बोआई कर क्षति पूर्ति कर सकते हैं.

दिए गए सुझाव के साथ  यदि इस विपरीत परिस्थिति में खेती का प्रबंधन करें तो कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है.

बैंड, बाजा और बरात के साथ गे कपल की शादी

समाज तेजी से बदल रहा है, सिंगल मदर, सिंगल फादर, बगैर मां का पिता, बगैर पिता की मां. …और अब बैंड, बाजा और बारात के साथ समलैंगिक शादी. पिछले दिनों गे कपल यानी पुरुष समलैंगिक जोड़े ने कानून को ठेंगा दिखाते हुए हैदराबाद में धूमधाम से शादी रचाई. इस में खास बात यह रही कि शादी में उन के मातापिता समेत रिश्तेदार, यारदोस्त भी शामिल हुए.

दिल्ली का रहने वाला 34 वर्षीय अभय डांगे अपने प्रिय साथी सुप्रियो चक्रवर्ती (31) के साथ वर्चुअल डेटिंग कर ऊब चुका था. उसे कैफे में बैठ कर साथसाथ कौफी पिए कई महीने बीत गए थे.

फरवरी 2021 में जब सुप्रियो दिल्ली आया था, तभी अभय उस के साथ कनाट प्लेस के कैफे में पूरे एक साल के बाद कौफी पी थी और घंटों ढेर सारी बातें की थी. पुरानी यादों को ताजा किया था. भविष्य की कुछ योजनाएं भी बनाई थीं.

वे अकसर कौफीहाउस जाते थे और खूब बातें करते थे. दोनों जितने खानेपीने के शौकीन थे, उतने ही पहननेओढ़ने के भी थे. डिजाइनर मगर भड़कीले और कपल की मैचिंग जैसे  कपड़े की जम कर खरीदारी करते थे.

इस के लिए हौजखास, खान मार्केट, आईएनए या एमजी रोड के फैशनेबल शोरूम से ले कर जनपथ मार्केट तक में छान मारते थे. एकएक चीज एकदूसरे की पसंद के ही खरीदते थे. वे उसे आपस में गिफ्ट भी कर दिया करते थे. मौल मल्टीप्लेक्स जाने के अलावा शाम के समय 2-2 पैग लगाने का भी समय निकाल लेते थे. दोनों का एकदूसरे के प्रति समर्पित भाव किसी प्रेमी युगल की तरह ही था.

फरवरी में सुप्रियो जल्द ही वापस हैदराबाद लौट गया था. क्योंकि वह जिस होटल में काम करता था, उसे लौकडाउन खत्म होने के बाद खोले जाने के लिए मैनेजमेंट मीटिंग में शामिल होना था. अभय को साथसाथ 2 पैग लेने का मलाल बना रहा.

उन के दिल में साथसाथ बैठ कर किसी रोमांटिक फिल्म देखने की कसक भी बनी रही. आखिर वे कर भी क्या सकते थे. कोरोना की दूसरी लहर तेजी से पांव पसारने लगी थी.

यह संयोग ही था कि दोनों अप्रैल के महीने में कोरोना की दूसरी लहर की चपेट में आ गए थे. अभय दिल्ली में था और सुप्रियो हैदराबाद में क्वारंटीन लाइफ के दिन काटने को मजबूर था. ठीक होने के बाद उन्होंने कोविड की वैक्सीन लगवा ली थी.

बात अक्तूबर 2021 की है. मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाला अभय किचन में था. रात के 9 बजने वाले थे. नाइट शिफ्ट में काम करने के लिए उस ने लैपटौप खोल लिया था. तभी उस के एप्पल घड़ी में सुप्रियो चक्रवर्ती के काल का सिग्नल मिला.

वीडियो काल थी. वह झट से भाग कर ड्राइंगरूम जा कर लैपटौप उठा लाया. किचन में गैस स्टोव के बर्नर के बगल में रख घड़ी से ही काल रिसीव कर ली. चंद सेकेंड में लैपटौप की स्क्रीन पर सुप्रियो का मुसकराता हुआ चेहरा सामने था.

ये भी पढ़ें- कोरोना काल में पुरुष मांज रहे बर्तन

वह बोल पड़ा, ‘‘हाय! हाय मेरी जान!! कैसा है तू?’’ सुप्रियो अभय को जान कह कर ही बुलाता था.

‘‘देख रहा है न, काफी बना रहा हूं वह भी तुम्हारी यादों में,’’ अभय मुसकराता हुआ बोला.

‘‘मेरी यादों में… क्या मतलब?’’ सुप्रियो बोला.

‘‘यह देख एक मग तेरा और दूसरा मेरा है. दोनों में कौफी डालूंगा और बारीबारी से सिप करता रहूंगा. तुझे याद भी करता रहूंगा.’’ अभय उदासी भरे लहजे में बोला.

‘‘मैं समझ सकता हूं तेरी भावना को. क्या करूं मैं भी तुझे कुछ कम मिस नहीं कर रहा हूं मेरी जान.’’ सुप्रियो ने उसे समझाने की कोशिश की.

‘‘क्या यार, ऐसे कब तक चलेगा? कोई तो उपाय होगा. अब और दूरी सही नहीं जाती है. दिल रोता है…’’ अभय भावुक होने लगा था.

‘‘अरे देख, दूध उबलने वाला है. बस, थोड़े समय की बात है मैं ने मां को कोलकाता से बुलाया है. उन के आते ही बैंड बाजा और बारात की तैयारी शुरू कर दूंगा,’’ सुप्रियो बोला.

‘‘तू सच कह रहा है. ये ले तेरे नाम की कौफी डाल रहा हूं.’’

अभय ने कहते हुए कौफी का बड़ा मग निकाला, जिस पर सुप्रियो की तसवीर छपी हुई थी. उस ने एक हाथ में मग उठाया और दूसरे हाथ में लैपटौप ले कर ड्राइंगरूम में चला आया. फिर कौफी सिप करते हुए सुप्रियो से बातें करने लगा. उस की बातें तब तक चलती रहीं, जब तक कि अभय के औफिस से काल नहीं आ गई.

बढ़ रही थी गे कपल की बेचैनी

पंजाबी अभय डांग और बंगाली सुप्रियो चक्रवर्ती साल 2012 में एकदूसरे के करीब आए थे. उन की पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी. सुप्रियो के मुताबिक, अभय के साथ उस की पहली डेट 7 घंटे से अधिक चली थी. तब वे कौफी होम में मिले थे.

इस बारे में सुप्रियो का कहना है कि तब हमारी पहली डेट कौफी पीने से शुरू हो कर अभय के बाल कटवाने के लिए सैलून जाने तक चली थी. कह सकते हैं कि हमारी पहली डेट काफी अच्छी रही थी और इस के बाद हम लोग काफी बार मिलते रहे.

सुप्रियो को अभय क्यों अच्छा लगा, यह कहने में वह थोड़ा शरमाता है. जबकि वह बातें करने में काफी मुंहफट और बातूनी भी है.

वह अभय के बारे में बताता है, ‘‘मैं ने जब पहली बार अभय को देखा था, तब उस के स्वभाव और हावभाव के चलते उस की तरफ अट्रैक्ट हो गया. उस के प्रति मेरा अटै्रक्शन दिनप्रतिदिन बढ़ता ही चला गया. वह (अभय) काफी शांत स्वभाव का है, जबकि मैं तुरंत कुछ भी बोल पड़ने वाला इंसान हूं.

‘‘हमारा मिलनाजुलना बना रहा. करीबकरीब नियमित मिलते थे. बातें करते थे. उन में कुछ काम की प्रोफैशनल बातें होती थीं तो कुछ घरपरिवार की भी बातें रहती थीं. हम ने एकदूसरे के कल्चर की बातें भी कीं, रीतिरिवाज पर चर्चा की.

‘‘शादीब्याह से ले कर कानून और सरकार की उपेक्षा की समस्या पर भी गंभीर हुए. किंतु सब से अहम बात यह थी कि अभय ने कभी भी किसी गर्लफ्रैंड की बात नहीं की. और न ही उस ने कभी मुझ से मेरे किसी लड़की से दोस्ती के बारे में पूछताछ की.

ये भी पढ़ें- चुनाव और प्रलोभन: रोग बना महारोग

‘‘एक बार जंतर मंतर पर एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) सुमदाय के प्रदर्शन में शामिल होने का मौका मिला. उस के बाद हमें पूरी तरह से एहसास हो गया कि मैं और अभय गे हैं. हम समलैंगिक प्रभाव से ग्रसित हैं.’’

यह सुप्रियो और अभय दोनों के लिए एक समस्या की तरह थी. दोनों अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि के थे, प्रोफैशनल नौकरीपेशा थे. वे अपने पैरेंट्स को यह बताने से काफी झिझक भी रहे थे. एक तरफ समाज, परिवार से ले कर कानून तक से किसी भी किस्म के सहयोग की उम्मीद नहीं थी, जबकि दूसरी ओर वे एकदूजे के बगैर रह नहीं सकते थे.

उन के बीच की केमिस्ट्री काफी डेवलप हो चुकी थी. इसी ऊहापोह में करीब डेढ़ साल कोरोना के चलते निकल गए. इस दौरान दोनों काफी अवसाद से घिर गए थे.

अप्रैल 2021 में कोरोना पौजिटिव होने की स्थिति में उन्होंने खुद को असहाय महसूस किया था. इस कारण ही वह आजीवन साथ रहना चाहते थे. वह भी सामाजिक और पारिवारिक मान्यता के साथ.

अपने बारे में पहले अभय ने अपनी फैमिली को बताया कि वह एक गे है और उस का संबंध बंगाली युवक के साथ बना हुआ है. साथ ही उन्होंने साथ रहने की अनुमति भी मांगी थी. अभय के पैरेंट्स ने उस की मन:स्थिति को समझते हुए उस के रिलेशन को स्वीकार कर लिया था.

उस के बाद से ही अभय ने सुप्रियो पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था कि वे भी दूसरे समलैंगिकों की तरह शादी कर लें. इस पर सुप्रियो ने भी हामी भर दी थी, किंतु उस का कहना था कि वह चोरी से विवाह बंधन में नहीं बंधेंगे. मंदिर या गुरुद्वारे में वरमाला पहन कर फोटो नहीं खिचवाएंगे, बल्कि बैंडबाजे और बाराती के साथ विवाह की रिंग सेरेमनी, गीतसंगीत और दूसरी रस्मों का निर्वाह करते हुए धूमधड़ाके के साथ विवाह रचाएंगे.

बजा बैंड और हुई बधाइयों की बौछार

सुप्रियो के दिमाग और मन में अपने और अभय के रिश्ते को ले कर कसक बनी हुई थी, लेकिन वह अपनी फैमिली के सामने खुल कर बताने में शर्म महसूस कर रहा था. वह पैरेंट्स, बहन और रिश्तेदारों के मानसम्मान को भी बनाए रखना चाहता था और अभय के प्यार को हर हाल में पाना चाहता था.

कोरोना से उबरने के बाद उस ने मां को हैदराबाद बुलाया. उन से साफ शब्दों में कहा, ‘‘मैं समलैंगिक हूं और अभय मेरा पार्टनर है.’’

यह सुन कर उस की मां कुछ पल को रुकीं, फिर बोलीं, ‘‘तुम मेरे बेटे हो और मैं तुम से प्यार करती हूं.’’

इतना कह कर उन्होंने सुप्रियो को गले से लगा लिया. बस मां के ये शब्द सुनने के बाद सुप्रियो के दिल को शांति मिली. उस के बाद उस ने पापा और बहन को भी यह बात बताई. पापा और बहन ने भी कहा, ‘‘अगर तुम खुश हो तो हम खुश हैं, हमारे लिए बस यही मायने रखता है.’’

यहां तक तो सब कुछ सुप्रियो और अभय के पक्ष में था, लेकिन एक समस्या अभी भी थी कि अभय को सार्वजनिक तौर पर पति मानने पर वह कानून के जाल में न फंस जाए. दोनों जानते थे कि विवाह के लिए कानून का साथ कभी नहीं मिलने वाला है.

हालांकि 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को अपराध घोषित करने वाले कानून को तो रद्द कर दिया गया था, लेकिन देश में समलैंगिक विवाह को अभी तक मान्यता नहीं मिली थी.

अप्रैल, 2021 तक जब सुप्रियो और अभय दोनों कोविड पौजिटिव थे. तब अभय जल्द ही स्वस्थ हो गया था. उस ने हैदराबाद जा कर तेज बुखार में तपते सुप्रियो की काफी देखभाल की थी. उस समय उस ने अभय से बोल दिया कि वह उस से ही शादी करना चाहता है. इस पर अभय ने कहा था कि करना तो मैं भी चाहता हूं, लेकिन कैसे?

उस के बाद सुप्रियो ने एक तर्क दिया कि कानूनी कागजात कोई मायने नहीं रखते, हमारे साथ हमारा परिवार और उन का साथ है तो फिर शादी कर लेते हैं. परिवार की नजर में दंपति बन कर नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे.

इस तरह से दोनों ने शादी करने का पूरा मन बना लिया और इस की तैयारियां शुरू कर दीं. शादी की तारीख दिसंबर के महीने में तय कर दी गई. बाकायदा कार्ड छपे. अतिथियों को आमंत्रित किया गया. बंगाली और पंजाबी शादी के रस्मोरिवाज की तैयारियां की गईं.

ऐसे समय में जब भारत में समलैंगिकता अवैध है, 18 दिसंबर को अभय और सुप्रियो की शादी के लिए एलजीबीटी समुदाय की सोफिया डेविड की देखरेख में विवाह संपन्न हुआ. उन की शादी में हर वो रस्म निभाई गई थी, जो सामान्य शादी में होती है.

शादी में मेहंदी से संगीत और हल्दी तक हर तरह की रस्में हुईं. दोनों ने अपनी पुरानी घडि़यां पहनी थीं और जीवन भर एकदूसरे को प्यार करने और साथ देने की कसमें खाईं. शादी में दोनों परिवारों से करीब 60 लोग शामिल हुए थे.

विवाह समारोह में अभय और सुप्रिया ने एक रंग की शेरवानी पहन रखी थी. विवाह संपन्न होने के बाद उन्होंने एकदूसरे को ‘आत्मसाथी’ कहा और आयोजन को प्रेरक और बदलाव लाने वाला कहा. दोनों के परिवार वालों और मेहमानों ने दोनों को आशीर्वाद दिया. खूब बलाइयां लीं. शादी के बाद अभय और सुप्रियो दोनों एक ही घर में रहने लगे हैं.

ये भी पढ़ें- अमानवीयता: नारी तेरी यही कहानी

इस तरह से यह तेलंगाना की पहली गे वेडिंग थी, जो निजी समारोह में संपन्न हुई. हालांकि भारत में समलैंगिक शादियों को कानूनी रूप से मान्यता नहीं मिली है.

विवाह का कानूनी आधार

भारत ने 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को अपराध घोषित करने वाले औपनिवेशिक युग के कानून को रद्द कर दिया है, लेकिन समान विवाह की अनुमति देने वाला भी कोई कानून नहीं है.

हालांकि दुनिया के समलैंगिक अपने रिश्तों को कानूनी मान्यता देने को ले कर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं. भारत में भी लेस्बियन (स्त्री समलैंगिक), गे (पुरुष समलैंगिक), बाइसेक्सुअल और टी (ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोगों में इसे ले कर बेचैनी बरकरार है.

उन्हें न तो सामाजिक मान्यता मिल पा रही है और न ही कानूरी आधार बन पा रहा है. फिर भी कानून के विरुद्ध जा कर कइयों ने साथसाथ रहने और शादी रचाने की कोशिश की है. ऐसी कई शादियां कानूनन रोक दी गईं या फिर वे शर्म के मारे समाज की नजरों में ऐसा करने से बचते रहे.

साल 2019 में तमिलनाडु के एक पुरुष ने ट्रांसवीमन से शादी रचाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट में अनुमति की याचिका दायर की थी. उसे निरस्त करते हुए शादी रोकने के आदेश भी जारी कर दिए गए थे.

इसी तरह से दिल्ली हाईकोर्ट में 2019 में ही हुआ था. कोर्ट ने हिंदू मैरेज ऐक्ट का हवाला देते हुए एक समलैंगिक विवाह को मना कर दिया था. यह विवाह लेस्बियन का था.

2020 में भी केरल के हाईकोर्ट में समलैंगिक जोड़े ने विवाह की अरजी दी थी, उन्हें भी मना कर दिया था. यही नहीं उन दिनों दिल्ली में ऐसे 8 मामले दर्ज किए गए थे, जिस में समलैंगिक विवाह के लिए अनुमति मांगी गई थी. ये याचिकाएं हिंदू और फारेर मैरेज ला के हवाले दी गई थीं.

इस का मतलब यह था कि समान लिंग वाले कानूनी रूप से अपनी शादी को पंजीकृत नहीं करवा सकते. फिर भी ऐसे जोड़े जश्न मनाने का एक तरीका खोजना चाहते थे.

ऐसे लोग चाहते हैं कि उन की शादी भारत में समान सैक्स संबंधों को मान्य हो, जिस से कोठरी में रहने वालों की मदद मिल सके और वे मानसिक तौर पर अवसाद में न आने पाएं. इस पर सुप्रियो और अभय का कहना है, ‘हम बिना किसी कोठरी वाली दुनिया में रहने की उम्मीद करते हैं.’

सुप्रियो खुशी से कहता है, ‘‘हमारे मातापिता शुरू में अधिक सहायक नहीं थे. हालांकि, उन्होंने भी इसे अस्वीकार नहीं किया था. हम ने खुद को आत्मनिरीक्षण करने और बेहतर निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पर्याप्त समय देने का फैसला किया.’’

समलैंगिकता कितनी गैरकानूनी

भारत में समलैंगिकता का एक पेचीदा इतिहास है और हिंदू धर्म के कुछ सब से प्राचीन ग्रंथ समलैंगिक यौन संबंधों को स्वीकार कर रहे हैं. लेकिन कई भारतीय समुदायों में समलैंगिक जोड़ों को भी सदियों से परेशान किया जाता रहा है, चाहे वे हिंदू, मुसलिम या ईसाई हों.

भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 2018 में समलैंगिक यौन संबंध को 10 साल तक की जेल की सजा देने वाले कानून को रद्द करने के फैसले को समलैंगिक अधिकारों के लिए एक ऐतिहासिक जीत के रूप में देखा गया. इस पर एक न्यायाधीश ने कहा था कि यह बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगा. लेकिन इस प्रगति के बावजूद समलैंगिक विवाह अवैध बना हुआ है और कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं का सरकार ने विरोध किया है.

फिर भी, पिछले एक दशक में, विशेष रूप से बड़े शहरों में, समलैंगिकता ने गहन रूढि़वादी भारत में स्वीकृति की एक डिग्री प्राप्त की है.

भारत में अब खुले तौर पर समलैंगिक हस्तियां हैं और कुछ हाईप्रोफाइल बौलीवुड फिल्में समलैंगिक मुद्दों से निपटती हैं, लेकिन 2018 में ऐतिहासिक फैसले के बावजूद कई समलैंगिक लोगों को अभी भी भारी कलंक, अलगाव और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है कि देश में कितने अन्य समलैंगिक विवाह समारोह आयोजित किए गए हैं.

जिन दिनों अभय और सुप्रियो विवाह बंधन में बंध रहे थे, उन्हीं दिनों महाराष्ट्र के नागपुर में 2 महिलाओं की रिंग सेरेमनी हुई थी. उस में करीब 150 मेहमान शामिल हुए थे और जम कर नाचगाना हुआ था. मेहमानों ने बगैर किसी झिझक और आशंका के खूब मौजमस्ती की थी.

सिर्फ वरमाला पहन कर की शादी

सुप्रियो और अभय की तरह निकेश ऊषा पुष्करण और सोनू एमएस भी कोच्चि, केरल के रहने वाले समलैंगिक पार्टनर हैं. दोनों ने जुलाई 2018 में शादी (गे वेडिंग) की थी. वह भी चुपकेचुपके, क्योंकि उन्हें जानने वाले उन के रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे.

लिहाजा, नई कमीज और परंपरागत धोती में तैयार हो कर दोनों जब त्रिशुर गुरुवयूर मंदिर शादी के लिए पहुंचे, तब उन के साथ सिर्फ चंद दोस्त ही थे. उन्हीं की मौजूदगी में उन्होंने एकदूसरे को अंगूठियां पहनाईं.

फिर चुपचाप मंदिर से बाहर निकल कर पार्किंग स्थल पर एकदूसरे के गले में मालाएं डालीं और घर रवाना हो गए. मातापिता को भी दोनों ने बाद में ही अपनी शादी के बारे में बताया.

फेसबुक पर शादी की तसवीर डाली तो उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलीं. तब तक अदालत ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी दरजा दिया नहीं था. इसलिए निकेश और सोनू के पास पुलिस की सुरक्षा भी नहीं थी. इस सब के कारण उन्हें करीब एक साल तक अपना रिश्ता और शादी बाहर वालों से छिपा कर रखना पड़ा.

काफी कुछ इसी तरह के हालात का सामना कोलकाता के सुचंद्र दास और श्री मुखर्जी को करना पड़ा. साल 2015 में उन्होंने अपने दोस्त के अपार्टमेंट में परंपरागत बंगाली रीतिरिवाज के साथ शादी की थी, क्योंकि वे कोई शादी हाल बुक नहीं कर सके थे. डर था कि वहां किसी तरह का बखेड़ा न खड़ा हो जाए.

इस पर दास कहते हैं, ‘हम ऐसे समाज में रहते हैं, जहां आज भी इस तरह के रिश्ते को स्वीकार नहीं किया जाता. जबकि समझने की जरूरत है कि इस तरह का संग भी साथ होता है. रिश्ते होते हैं और शादियां भी.’

हालांकि दास और मुखर्जी की की तुलना में निकेश और सोनू को कुछ कम मुश्किलें आईं. उन्हें तुलनात्मक रूप से दोस्त, यार, परिचितों का समर्थन भी ज्यादा मिला.

यही वजह थी कि सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डंग जब शादी की तैयारियां कर रहे थे, तो वह भी डरे हुए थे. उन के दोस्त और सहयोगी भी आशंकित थे, लेकिन जैसा कि चक्रवर्ती कहते हैं, ‘हैदराबाद चूंकि तरक्कीपसंद शहर है, तो हमारी ज्यादातर आशंकाएं गलत ही साबित हुईं.’

घुटन: मैटरनिटी लीव के बाद क्या हुआ शुभि के साथ?

शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.

मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’

‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’

शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’

शुभि सिया को सास की गोद में दे कर फीकी सी हंसी हंस दी. सिया की टुकुरटुकुर देखती आंखें शुभि की आंखें नम कर गईं पर इस समय भावुक बनने से काम चलने वाला नहीं था. इसलिए तेजी से अपना बैग उठा कर मयंक के साथ बाहर निकल गई.

उन का घर नवी मुंबई में ही था. वहां से 8 किलोमीटर दूर वाशी में शुभि का औफिस था. मयंक ने उसे बसस्टैंड छोड़ा. रास्ते भर बस में शुभि कभी सिया के तो कभी औफिस के बारे में सोचती रही. अकसर बस में सीट नहीं मिलती थी. वह खड़ेखड़े ही कितने ही विचारों में डूबतीउतरती रही.

शुभि एक प्रसिद्ध सौंदर्य प्रसाधन की कंपनी में ऐक्सपोर्ट मैनेजर थी. अच्छी सैलरी थी. अपने कोमल स्वभाव के कारण औफिस और घर में उस का जीवन अब तक काफी सुखी और संतोषजनक था पर आज सिया के जन्म के बाद पहली बार औफिस आई थी तो दिल कुछ उदास सा था.

औफिस में आते ही शुभि ने इधरउधर नजरें डालीं, तो काफी नए चेहरे दिखे. पुराने लोगों ने उसे बधाई दी. फिर सब अपनेअपने काम में लग गए. शुभि जिस पद पर थी, उस पर काफी जिम्मेदारियां रहती थीं. हर प्रोडक्ट को अब तक वही अप्रूव करती थी.

शुभि की बौस शिल्पी उस की लगन, मेहनत से इतनी खुश, संतुष्ट रहती थी कि वह अपने भी आधे काम उसे सौंप देती थी, जिन्हें काम की शौकीन शुभि कभी करने से मना नहीं करती थी.

शिल्पी कई बार कहती थी, ‘‘शुभि, तुम न हो तो मैं अकेले इतना काम कर ही नहीं पाऊंगी. मैं तो तुम्हारे ऊपर हर काम छोड़ कर निश्चिंत हो जाती हूं.’’

शुभि को अपनी काबिलीयत पर गर्व सा हो उठता. नकचढ़ी बौस से तारीफ सुन मन खुश हो जाता था. शुभि उस के वे काम भी निबटाती रहती थी, जिन से उस का लेनादेना भी नहीं होता था.

ये भी पढ़ें- हनी… प्रैग्नैंसी शादी के बाद

औफिस पहुंचते ही शुभि ने अपने अंदर पहली सी ऊर्जा महसूस की. अपनी कार्यस्थली पर लौटते ही कर्तव्य की भावना से उत्साहित हो कर काम में लग गई. शिल्पी से मिल औपचारिक बातों के बाद उस ने अपने काम देखने शुरू कर दिए. 1 महीने बाद ही कोई नया प्रोडक्ट लौंच होने वाला था. शुभि उस के बारे में डिटेल्स लेने के लिए शिल्पी के पास गई तो उस ने सपाट शब्दों में कहा, ‘‘शुभि, एक नई लड़की आई है रोमा, उसे यह असाइनमैंट दे दिया है.’’

‘‘अरे, क्यों? मैं करती हूं न अब.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. उस के लिए तो देर तक काम रहेगा. तुम्हें तो अब घर भागने की जल्दी रहा करेगी.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं है. काम तो करूंगी ही न.’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो.’’

शुभि के अंदर कुछ टूट सा गया. सोचने लगी कि वह तो हर प्रोडक्ट के साथ रातदिन एक करती रही है. अब क्यों नहीं संभाल पाएगी यह काम? सिया के लिए घर टाइम पर पहुंचेगी पर काम भी तो उस की मानसिक संतुष्टि के लिए माने रखता है. पर वह कुछ नहीं बोली. मन कुछ उचाट सा ही रहा.

शुभि ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं. अचानक कपिल का ध्यान आया कि कहां है. सुबह से दिखाई नहीं दिया. उसे याद करते ही शुभि को मन ही मन हंसी आ गई. दिलफेंक कपिल हर समय उस से फ्लर्टिंग करता था. शुभि को भी इस में मजा आता था. वह मैरिड थी, फिर प्रैगनैंट भी थी. तब भी कपिल उस के आगेपीछे घूमता था. कपिल उसे सीधे लंचटाइम में ही दिखा. आज वह लंच ले कर नहीं आई थी. सोचा था कैंटीन में खा लेगी. कल से लाएगी. कैंटीन की तरफ जाते हुए उसे कपिल दिखा, तो आवाज दी, ‘‘कपिल.’’

‘‘अरे, तुम? कैसी हो?’’

‘‘मैं ठीक हूं, सुबह से दिखे नहीं?’’

‘‘हां, फील्ड में था, अभी आया.’’

‘‘और सुनाओ क्या हाल है?’’

‘‘सब बढि़या, तुम्हारी बेटी कैसी है?’’

‘‘अच्छी है. चलो, लंच करते हैं.’’

‘‘हां, तुम चल कर शुरू करो, मैं अभी आता हूं,’’ कह कर कपिल एक ओर चला गया.

शुभि को कुछ अजीब सा लगा कि क्या यह वही कपिल है? इतना फौरमल? इस तरह तो उस ने कभी बात नहीं की थी? फिर शुभि पुराने सहयोगियों के साथ लंच करने लगी. इतने दिनों के किस्से, बातें सुन रही थी. कपिल पर नजर डाली. नए लोगों में ठहाके लगाते दिखा, तो वह एक ठंडी सांस ले कर रह गई. सास से फोन पर सिया के हालचाल ले कर वह फिर अपने काम में लग गई.

शाम 6 बजे शुभि औफिस से बसस्टैंड चल पड़ी. पहले तो शायद ही वह कभी 6 बजे निकली हो. काम ही खत्म नहीं होता था. आज कुछ काम भी खास नहीं था. वह रास्ते भर बहुत सारी बातों पर मनन करती रही… आज इतने महीनों बाद औफिस आई, मन क्यों नहीं लगा? शायद पहली बार सिया को छोड़ कर आने के कारण या औफिस में कुछ अलगअलग महसूस करने के कारण. आज याद आ रहा था कि वह पहले कपिल के साथ फ्लर्टिंग खूब ऐंजौय करती थी, बढि़या टाइमपास होता था. उसे तो लग रहा था कपिल उसे इतने दिनों बाद देखेगा, तो खूब बातें करेगा, खूब डायलौगबाजी करेगा, उसे काम ही नहीं करने देगा. इन 6 महीनों की छुट्टियों में कपिल ने शुरू में तो उसे फोन किए थे पर बाद में वह उस के हायहैलो के मैसेज के जवाब में भी देर करने लगा था. फिर वह भी सिया में व्यस्त हो गई थी. नए प्रोडक्ट में उसे काफी रुचि थी पर अब वह क्या कर सकती थी, शिल्पी से तो उलझना बेकार था.

घर पहुंच कर देखा सिया को संभालने में सास और ससुर की हालत खराब थी. वह भी पहली बार मां से पूरा दिन दूर रही थी. शुभि ने जैसे ही सिया कहा, सिया शुभि की ओर लपकी तो वह, ‘‘बस, अभी आई,’’ कह जल्दीजल्दी हाथमुंह धो सिया को कलेजे से लगा लिया. अपने बैडरूम में आ कर सिया को चिपकाएचिपकाए ही बैड पर लेट गई. न जाने क्यों आंखों की कोरों से नमी बह चली.

‘‘कैसा रहा दिन?’’ सास कमरे में आईं तो शुभि ने पूछा, ‘‘सिया ने ज्यादा परेशान तो  नहीं किया?’’

‘‘थोड़ीबहुत रोती रही, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी उसे भी, तुम्हें भी और हमें भी. तुम्हारा औफिस जाना भी तो जरूरी है.’’

अब तक मयंक भी आ गया था. रमा बाई रोज की तरह डिनर बना कर चली गई थी. खाना सब ने साथ ही खाया. सिया ने फिर शुभि को 1 मिनट के लिए भी नहीं छोड़ा.

ये भी पढ़ें- वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?

मयंक ने पूछा, ‘‘शुभि, आज बहुत दिनों बाद गई थी, दिन कैसा रहा?’’

‘‘काफी बदलाबदला माहौल दिखा. काफी नए लोग आए हैं. पता नहीं क्यों मन नहीं लगा आज?’’

‘‘हां, सिया में ध्यान रहा होगा. खैर, धीरेधीरे आदत पड़ जाएगी.’’

अगले 10-15 दिनों में औफिस में जो भी बदलाव शुभि ने महसूस किए, उन से उस का मानसिक तनाव बढ़ने लगा. शिल्पी 35 साल की चिड़चिड़ी महिला थी. उस का पति बैंगलुरु में रहता था. मुंबई में वह अकेली रहती थी. उसे घर जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी. 15 दिन, महीने में वीकैंड पर उस का पति आता रहता था. उस की आदत थी शाम 7 बजे के आसपास मीटिंग रखने की. अचानक 6 बजे उसे याद आता था कि सब से जरूरी बातें डिस्कस करनी हैं.

शुभि को अपने काम से बेहद प्यार था. वह कभी देर होने पर भी शिकायत नहीं करती थी. मध्यवर्गीय परिवार में पलीबढ़ी शुभि ने यहां पहुंचने तक बड़ी मेहनत की थी. 6 बजे के आसपास जब शुभि ने अपनी नई सहयोगी हेमा से पूछा कि घर चलें तो उस ने कहा, ‘‘मीटिंग है न अभी.’’

शुभि चौंकी, ‘‘मीटिंग? कौन सी? मुझे तो पता ही नहीं?’’

‘‘शिल्पी ने बुलाया है न. उसे खुद तो घर जाने की जल्दी होती नहीं, पर दूसरों के तो परिवार हैं, पर उसे कहां इस बात से मतलब है.’’ शुभि हैरान सी ‘हां, हूं’ करती रही. फिर जब उस से रहा नहीं गया तो शिल्पी के पास जा पहुंची. बोली, ‘‘मैम, मुझे तो मीटिंग के बारे में पता ही नहीं था… क्या डिस्कस करना है? कुछ तैयारी कर लूं?’’

‘‘नहीं, तुम रहने दो. एक नए असाइनमैंट पर काम करना है.’’

‘‘मैं रुकूं?’’

‘‘नहीं, तुम जाओ,’’ कह कर शिल्पी लैपटौप पर व्यस्त हो गई.

शुभि उपेक्षित, अपमानित सी घर लौट आई. उस का मूड बहुत खराब था. डिनर करते हुए उस ने अपने मन का दुख सब से बांटना चाहा. बोली, ‘‘मयंक, पता है जब से औफिस दोबारा जौइन किया है, अच्छा नहीं लग रहा है. लेट मीटिंग में मेरे रहने की अब कोई जरूरत ही नहीं होती… कहां पहले मेरे बिना शिल्पी मीटिंग रखती ही नहीं थी. मुझे कोई नया असाइनमैंट दिया ही नहीं जा रहा है.’’

फिर थोड़ी देर रुक कर कपिल का नाम लिए बिना शुभि ने आगे कहा, ‘‘जो मेरे आगेपीछे घूमते थे, वे अब बहुत फौरमल हो गए हैं. मन ही नहीं लग रहा है… सिया के जन्म के बाद मैं ने जैसे औफिस जा कर कोई गलती कर दी हो. आजकल औफिस में दम घुटता है मेरा.’’

मयंक समझाने लगा, ‘‘टेक इट ईजी, शुभि. ऐसे ही लग रहा होगा तुम्हें… जौब तो करना ही है न?’’

‘‘नहीं, मेरा तो मन ही नहीं कर रहा है औफिस जाने का.’’

‘‘अरे, पर जाना तो पड़ेगा ही.’’

सास खुद को बोलने से नहीं रोक पाईं. बोलीं, ‘‘बेटा, घर के इतने खर्चे हैं. दोनों कमाते हैं तो अच्छी तरह चल जाता है. हर आराम है. अकेले मयंक के ऊपर होगा तो दिक्कतें बढ़ जाएंगी.’’

शुभि फिर चुप हो गई. वह यह तो जानती ही थी कि उस की मोटी तनख्वाह से घर के कई काम पूरे होते हैं. अपने पैरों पर खड़े होने को वह भी अच्छा मानती है पर अब औफिस में अच्छा नहीं लग रहा है. उस का मन कर रहा है कुछ दिन ब्रेक ले ले. सिया के साथ रहे, पर ब्रेक लेने पर ही तो सब बदला सा है. दिनेश, लता और मयंक बहुत देर तक उसे पता नहीं क्याक्या समझाते रहे. उस ने कुछ सुना, कुछ अनसुना कर दिया. स्वयं को मानसिक रूप से तैयार करती रही.

कुछ महीने और बीते. सिया 9 महीने की हो गई थी. बहुत प्यारी और शांत बच्ची थी. शाम को शुभि के आते ही उस से लिपट जाती. फिर उसे नहीं छोड़ती जैसे दिन भर की कमी पूरी करना चाहती हो.

शुभि को औफिस में अपने काम से अब संतुष्टि नहीं थी. शिल्पी तो अब उसे जिम्मेदारी का कोई काम सौंप ही नहीं रही थी. 6 महीनों के बाद औफिस आना इतना जटिल क्यों हो गया? क्या गलत हुआ था? क्या मातृत्व अवकाश पर जा कर उस ने कोई गलती की थी? यह तो हक था उस का, फिर किसी को उस की अब जरूरत क्यों नहीं है?

ऊपर से कपिल की बेरुखी, उपेक्षा मन को और ज्यादा आहत कर रही थी. 1 बच्ची की मां बनते ही कपिल के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर देख कर शुभि बहुत दुखी हो जाती. कपिल तो जैसे अब कोई और ही कपिल था. थोड़ीबहुत काम की बात होती तो पूरी औपचारिकता से करता और चला जाता. दिन भर उस के रोमांटिक डायलौग, फ्लर्टिंग, जिसे वह ऐंजौय करती थी, कहां चली गई थी. कितना सूना, उदास सा दिन औफिस में बिता कर वह कितनी थकी सी घर लौटने लगी थी.

अपने पद, अपनी योग्यता के अनुसार काम न मिलने पर वह रातदिन मानसिक तनाव का शिकार रहने लगी थी. उस के मन की घुटन बढ़ती जा रही थी. शुभि ने घर पर सब को बारबार अपनी मनोदशा बताई पर कोई उस की बात समझ नहीं पा रहा था. सब उसे ही समझाने लगते तो वह वहीं विषय बदल देती.

औफिस में अपने प्रति बदले व्यवहार से यह घुटन, मानसिक तनाव एक दिन इतना बढ़ गया कि उस ने त्यागपत्र दे दिया. वह हैरान हुई जब किसी ने इस बात को गंभीरतापूर्वक लिया ही नहीं. औफिस से बाहर निकल कर उस ने जैसे खुली हवा में सांस ली.

सोचा, थोड़े दिनों बाद कहीं और अप्लाई करेगी. इतने कौंटैक्ट्स हैं… कहीं न कहीं तो जौब मिल ही जाएगी. फिलहाल सिया के साथ रहेगी. जहां इतने साल रातदिन इतनी मेहनत की, वहां मां बनते ही सब ने इतना इग्नोर किया… उस में प्रतिभा है, मेहनती है वह, जल्द ही दूसरी जौब ढूंढ़ लेगी.

उस शाम बहुत दिनों बाद मन हलका हुआ. घर आते हुए सिया के लिए कुछ खिलौने

खरीदे. घर में घुसते ही सिया पास आने के लिए लपकी. अपनी कोमल सी गुडि़या को गोद में लेते ही मन खुश हो गया. डिनर करते हुए ही

उस ने शांत स्वर में कहा, ‘‘मैं ने आज रिजाइन कर दिया.’’

सब को करंट सा लगा. सब एकसाथ बोले, ‘‘क्यों?’’

‘‘मैं इतनी टैंशन सह नहीं पा रही थी. थोड़े दिनों बाद दूसरी जौब ढूंढ़ूगी. अब इस औफिस में मेरा मन नहीं लग रहा था.’’

मयंक झुंझला पड़ा, ‘‘यह क्या बेवकूफी की… औफिस में मन लगाने जाती थी या काम करने?’’

‘‘काम ही करने जाती थी पर मेरी योग्यता के हिसाब से अब कोई मुझे काम ही नहीं दे रहा था… मानसिक संतुष्टि नहीं थी… मैं अब अपने काम से खुश नहीं थी.’’

ये भी पढ़ें- कुछ कहना था तुम से: 10 साल बाद सौरव को क्यों आई वैदेही की याद?

‘‘दूसरी जौब मिलने पर रिजाइन करती?’’

‘‘कुछ दिन बाद ढूंढ़ लूंगी. मेरे पास योग्यता है, अनुभव है.’’

सास ने चिढ़ कर कहा, ‘‘क्या गारंटी है तुम्हारा दूसरे औफिस में मन लगेगा? मन न लगने पर नौकरी छोड़ी जाती है कहीं? अब एक की कमाई पर कितनों के खर्च संभलेंगे… यह क्या किया? थोड़ा धैर्य रखा होता?’’

ससुर ने भी कहा, ‘‘जब तक दूसरी जौब नहीं मिलेगी, मतलब एक ही सैलरी में घर चलेगा. बड़ी मुश्किल होगी… इतने खर्चे हैं… कैसे होगा?’’

शुभि सिया को गोद में बैठाए तीनों का मुंह देखती रह गई. उस के तनमन की पीड़ा से दूर तीनों अतिरिक्त आय बंद होने का अफसोस मनाए जा रहे थे. अब? मन की घुटन तो पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई थी.

पति रितेश से अलग हुईं Rakhi Sawant, शेयर किया ये पोस्ट

बिग बॉस (Bigg Boss) फेम राखी सावंत (Rakhi Sawant) अपने शादी को लेकर सुर्खियों में छाई हुई थी. इस सीजन में राखी के पति भी नजर आए थे. शो में दोनों ने फैंस का फुल एंटरटेनमेंट किया था. लेकिन अब खबर आ रही है कि राखी सावंत अपने पति से अलग हो गई हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.

दरअसल राखी सावंत ने खुद सोशल मीडिया पर जानकारी दी है कि वह रितेश से अलग हो रही हैं. राखी ने सोशल मीडिया पर ऐलान किया कि वो पति रितेश से रिश्ता तोड़ रही हैं. उन्होंने इंस्टाग्राम पर फैंस के साथ एक पोस्ट शेयर किया है.

ये भी पढ़ें- Anupamaa: बा से बताएगा वनराज, मालविका के लिए क्या फील करता है!

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rakhi Sawant (@rakhisawant2511)

 

राखी सावंत ने पोस्ट में लिखा है कि मेरे सभी फैंस और प्रियजन, हम आप सभी से कहना चाहते हैं कि मैं और रितेश एक दूसरे से अलग हो गए हैं. बिग बॉस  के बाद बहुत कुछ हुआ और कई चीजें ऐसी हुई जो मेरे कंट्रोल से बाहर थी. हम लोगों ने बहुत कोशिश की  लेकिन आखिर में यही फैसला किया हम दोनों अपनी लाइफ अलग-अलग बिताएं.

ये भी पढ़ें- हप्पू सिंह असल जिंदगी में बने दूसरी बार पापा, सीरियल में हैं 9 बच्चों के पिता

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rakhi Sawant (@rakhisawant2511)

 

राखी सांवत ने आगे लिखा है कि मैं बहुत दुखी हूं कि ये सब वैलेंटाइन डे के ठीक एक दिन पहले हुआ. लेकिन फैसला तो लेना ही था. उम्मीद करती हूं कि रितेश के साथ सब अच्छा हो. मुझे अभी इस वक्त अपने काम पर फोकस करना है और अपने आप को खुश और हेल्दी रखना है. आपसभी का मुझे समझने और सपोर्ट करने के लिए शुक्रिया. राखी सावंत.

ये भी पढ़ें- चॉकलेट की खातिर जमीन पर बैठीं तेजस्वी, हंसी से बेहाल हुए करण के दोस्त

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Rakhi Sawant (@rakhisawant2511)

 

अपनी पीठ ठोंकता, मिस्टर प्रधानमंत्री!

मगर, आज इस रिपोर्ट को पढ़ने के पश्चात आप यकीनन यह बात मानेंगे कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी अक्सर अपनी पीठ थपथपाने में यकीन रखते हैं. अगर इस रिपोर्ट को पढ़ने के पश्चात संपूर्ण व्यक्तित्व पर निगाह डाली जाए तो आप बड़ी आसानी से इसे तल्खी से महसूस कर सकते हैं.  यह एक बहुत बड़ा सच है-देश में कहीं भी कोई चुनाव हो, पास आते आते तो आप अपनी पूरी ताकत लगाने में कोई गुरेज नहीं करते, कहीं पर भी बाज नहीं आते और अगर पीठ थपथपाने का कोई रिकॉर्ड  ना हो तो यह बन सकता है और और अगरचे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में बन गया होगा तो वह मिस्टर प्रधानमंत्री के इस कवायद से टूट भी सकता है.

अरे हो…पेट भरता नहीं!

अमिताभ बच्चन की आठवें दशक में एक पिक्चर आई थी जिसमें एक गीत था-” अरे हो, ऊंची ऊंची बातों से किसी का पेट भरता नहीं…”

हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी  भाषण भी इतनी ऊंची ऊंची पिलाते हैं कि सुनने में तो अच्छा लगता है मगर जब हम उसके भीतर प्रवेश  करते हैं तो हमें अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है. सब कुछ समझने के लिए आग्रह है कि नीचे के अंश ध्यान से पढ़ें-

उत्तर प्रदेश के चुनाव को लेकर के मोदी साहब ने जो कहा है उसकी एक राष्ट्रीय अखबार में बानगी कुछ ऐसी है-

ये भी पढ़ें- चुनावी सपने में कृष्ण

-“उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान में भाजपा के प्रति जनता के उत्साह को ‘जबरदस्त’ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को दावा किया कि इस बार चुनावों में भाजपा की जीत के पुराने रेकार्ड टूट जाएंगे.”

आगे रिपोर्ट में कहा गया है-“

उत्तराखंड में 14 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में अल्मोड़ा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि जनता कभी अच्छे काम करने वालों, अच्छे इरादों और नेकनीयत वालों का साथ कभी नहीं छोड़ती. प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि विरोधियों ने हमेशा कुमाऊं और गढ़वाल की लड़ाई कराने की कोशिशें की हैं ताकि इन दोनों जगहों के लोगों पर ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपना कर दोनों जगहों को ‘लूट’ सके और जबकि केंद्र और उत्तराखंड की भाजपा की डबल इंजन की सरकारों ने और कुमाऊं के विकास के लिए डबल काम किया.”

प्रधानमंत्री पद की गरिमा होती है मगर जिस तरीके से चाहे पश्चिम बंगाल का चुनाव हो या फिर बिहार का अथवा अभी पांच राज्यों में हो रहे चुनाव की परिदृश्य को हम देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के साथ जगह-जगह पहुंचकर के चुनाव अभियान की कमान संभाले  हुए हैं. और आप कांग्रेस पर लूट का आरोप लगा रहे हैं वह भी देश की एक राजनीतिक पार्टी पर, प्रधानमंत्री अगर कांग्रेस पर लूट का आरोप लगाते हैं और कभी पलटकर कांग्रेस यह कहें कि आप लूट रहे हो तो फिर क्या होगा?

ये भी पढ़ें- नरेंद्र दामोदरदास मोदी और संसद का आईना

दरअसल,इस चुनावी दंगल के मुद्दे पर चुनाव आयोग की भी खूब आलोचना हो रही है मगर वह मौन है. प्रधानमंत्री मोदी यह भूल जाते हैं कि वह प्रधानमंत्री है और प्रधानमंत्री के नाते जब कहीं चुनाव प्रचार में जाते हैं तो पूरी भारत सरकार एक तरह से चुनाव प्रचार में लग जाती है जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए दुर्भाग्य जनक है. इसे चुनाव आयोग व देश की उच्चतम न्यायालय को संज्ञान लेते हुए रोकना चाहिए.

धन्य है हमारी संवैधानिक संस्थाएं

आज जब देश में आजादी की अमृतवेला का ढोल पीटा जा रहा है और जब हम पांच राज्यों के चुनाव का अवलोकन करते हैं तो स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है कि हमारे यहां चुनाव किस तरह प्रभावित किए जा सकते हैं. किसी व्यक्ति संस्था के लिए कही कोई मर्यादा, नियम कानून दिखाई नहीं देता.  अगर कुछ है भी तो उसका पालन करने के लिए कोई सत्ता धारी और पदाधिकारी तैयार नहीं है. नैतिकता को तो मानो चौराहे पर फांसी लगा दी गई है.

यही कारण है कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी कहते हैं-

जो दृश्य मैंने देखा है, उससे साफ है कि इस चुनाव को भाजपा से ज्यादा जनता लड़ रही है.  भाजपा को दोबारा जिताने के लिए माताएं, बहनें, नौजवान और किसानों ने कमर कस ली है. उत्तर प्रदेश में बृहस्पतिवार को पहले चरण के मतदान में भाजपा के प्रति वातावरण को ‘जबरदस्त’ बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कल जो मतदान हुआ है उसमें भाजपा पुराने सारे रेकार्ड तोड़कर जीतने वाली है. अल्मोड़ा में मौजूद लोगों की भीड़ से उत्साहित मोदी ने कहा कि यह दिखाता है कि फिर एक बार भाजपा सरकार बन रही है.

ये भी पढ़ें- चुनाव और प्रलोभन: रोग बना महारोग

हे जनता जनार्दन हम तो आपसे आग्रह करते हैं कि पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं इन चुनावों में भाजपा को जिताने की अपील करना अलग बात है मगर दावे के साथ यह कहना कि भाजपा की सरकार बन रही है इसका सीधा मतलब है कि आपको भगवान ने दिव्य दृष्टि दे दी है या फिर आप अतिशयोक्ति पूर्ण बातें कर रहे हैं. दोनों ही बातें गलत है.

आगे नीर छीर के साथ निर्णय लेना आपका काम है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें