Writer- राज लक्ष्मी

प्रश्न बहुत जटिल और असमंजस भरा है लेकिन है समय की जरूरत है. वास्तव में पैसा क्या है? क्या पैसे के अभाव में फैली विकट परिस्थितियां उपज सकती हैं जैसे ढेरों सवाल इस प्रश्न से जुड़े हैं.

कोविड के दौरान लोगों को पता चला कि अगर हाथ में पूंजी न होती, जान पर कितनी आफतें आ सकती हैं. यह कभी पता नहीं चलेगा कि पैसे की कमी के चलते कितनों को एंबुलैंस नहीं मिली, कितनों को औक्सीजन सिलैंडर नहीं मिला.

‘बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपया.’ पैसे को शक्ति मानना कहां तक उचित है, यह सोचने वाली बात है. इस बारे में हरेक की सोच अलग हो सकती है पर कहीं न कहीं बात पैसे को किसी न किसी रूप में शक्ति मानने पर ही ठहर जाती है.

बुनियादी जरूरत

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘कफन’ पैसे के महत्त्व को एकदम से उजागर कर देती है. उस में नायक घीसू, भूख से परेशान होने के कारण, ने अपनी पत्नी के लिए एकत्रित उस के कफन के पैसों से भरपेट खाना खाया व शराब पी और उस के बाद मरने वाली को आशीर्वाद देने लगा कि जातेजाते भी वह उस के लिए खानेपीने का इंतजाम कर गई. इस कहानी ने पैसे के लिए व्यक्ति किसी हद तक गिर सकता है उजागर कर दिया. धर्म के ठेकेदार बारबार धर्म को मानने के साथ दानदक्षिणा पर ही जोर देते हैं. वे जानते हैं कि असल शक्ति उन का बनाया भगवान नहीं, उस के नाम पर वसूला पैसा है.

यह निर्विवाद सत्य है कि पैसा व्यक्ति की मूलभूत जरूरत है. उस के बिना एक कदम चल पाना भी मुश्किल है. हालांकि पैसों के अभाव में देश की 50 फीसदी जनसंख्या है.

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