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Manohar Kahaniya: सीरियल किलर सिंहराज

सौजन्य: मनोहर कहानियां

Writer- शाहनवाज 

सुनीता की हत्या का पता लगाते हुए पुलिस की टीम सिंहराज तक जा पहुंची. इलाके में सब से शरीफ और ईमानदार सिंहराज ने जब अपना जुर्म स्वीकारा. हरियाणा के फरीदाबाद जिले में एक छोटे से गांव जसाना का रहने वाला 55 वर्षीय सिंहराज नागर, फरीदाबाद के सेक्टर 16 में स्थित सिटी हौस्पिटल में चौकीदारी का काम करता था. जसाना गांव से सिटी हौस्पिटल 13-14 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह पिछले 10 सालों से साइकिल द्वारा ही अस्पताल आताजाता था.

4 जनवरी, 2022 की सुबह के करीब 7 बज रहे थे, जब सिंहराज अपने घर से ड्यूटी के लिए निकला. पौने 8 बजे के करीब वह आगरा कैनाल (नहर) के पुल से जा रहा था तो उस ने सड़क से थोड़ी दूर झाडि़यों के बीच एक युवती की लाश लटकी देखी.

यह देख तेजी से साइकिल चला रहे सिंहराज के पांव अचानक से रुक गए. पुल पर उस समय उस के अलावा और कोई नहीं था. ठंड के उन दिनों में झाडि़यों के बीच अटकी उस लाश को देख कर उस के माथे पर पसीना छलक आया था.

हलके नीले रंग का सूट सलवार पहने उस युवती की लाश को देख कर सिंहराज के मन में सवालों का बवंडर बनने लगा.

लेकिन वह ज्यादा देर तक उस जगह पर खड़ा नहीं रह सकता था. क्योंकि उसे समय पर अपनी ड्यूटी पर भी तो पहुंचना था.

सिंहराज जिस सिटी हौस्पिटल में चौकीदार था वह पिछले कुछ सालों से बंद पड़ा था, जिस की वजह से वहां मरीजों का आनाजाना बिलकुल भी नहीं था. वहां आम अस्पतालों वाली भागमभाग बिलकुल भी नहीं होती थी.

लेकिन हौस्पिटल की इमारत और आंगन में हर दिन साफसफाई होती थी, जिस के लिए सफाई करने वाले कुछ लोग अपने समय से आते थे.

हौस्पिटल पहुंच कर सिंहराज ने मेन गेट के पास अपनी साइकिल खड़ी की और वहीं मौजूद कुरसी पर बैठ गया. सुबह का समय था और कोई भी सफाई वाला उस समय तक हौस्पिटल नहीं पहुंचा था. सिंहराज अपनी कुरसी पर जम गया और सुबह वाली घटना के बारे में सोचने लगा.

जब उसे सुनीता के बारे में याद आया तो वह और भी परेशान हो गया. दरअसल, सिंहराज सुनीता को पिछले 2 सालों से जानता था और एक दिन पहले ही उस ने उसे फोन कर के अपने पास उसे पैसे लेने के लिए बुलाया था.

सिंहराज पिछले 2 सालों से हर महीने सुनीता को कुछ पैसे दिया करता था ताकि उस की कुछ आर्थिक मदद हो सके. सुनीता के बारे में सोचसोच कर सिंहराज की रूह अंदर से कांपे जा रही थी.

वह एक पल के लिए अपने मन में सुनीता के बारे में सोचता तो दूसरे पल वह झाडि़यों के बीच मौजूद उस लाश को याद कर रहा था. उस ने बिना किसी देरी के अपनी जेब से फोन निकाला और सुनीता की नानी मैना देवी को फोन किया.

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उस ने मैना देवी को पूरी बात बताई तो उस की नानी फोन पर ही रोने लगी. सिंहराज बोला, ‘‘मुझे लगता है तेरी नातिन वहां मरी पड़ी है. उसे आ कर देख जा. लगता है वो लाश उसी की है.’’

सिंहराज की बात सुन कर मैना देवी को अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. किंतु वह करती भी तो क्या करती. मैना देवी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और उस के जीवन में सुनीता के अलावा और कोई भी नहीं था. सुनीता के मातापिता की मृत्यु उस समय हो गई थी, जब वह मात्र 6 साल की ही थी.

सिंहराज आया पुलिस के शक में

सुनीता का पालनपोषण मैना देवी ने ही किया था. मैना देवी ने अपनी नातिन के बारे में सिंहराज से सुना तो वह रोने लगी. उस के रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले की औरतें इकट्ठी हो गईं और सुनीता की हत्या पर सभी आश्चर्यचकित थीं.

फिर मोहल्ले के एक व्यक्ति के साथ वह ओल्ड फरीदाबाद थाने में चली गई तथा पुलिस को नातिन की हत्या की जानकारी दे दी.

इस के बाद ओल्ड फरीदाबाद थाना पुलिस मौके पर पहुंच गई. वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर डीएलएफ क्राइम ब्रांच पुलिस भी वहां पहुंच गई. टीम ने आगरा कैनाल के उस पुल के पास पहुंच कर मामले की छानबीन शुरू कर दी.

पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया. प्रारंभिक जांच पूरी हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस केस की जांच डीएलएफ क्राइम ब्रांच के एसीपी सुरेंद्र श्योरान के निर्देशन में गठित टीम ने करनी शुरू कर दी. क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर अनिल कुमार और एएसआई समुंदर सिंह ने मैना देवी के कमरे पर पहुंच कर सुनीता के संबंध में पूछताछ की.

तब वह रोते हुए बोली, ‘‘मेरी नातिन को मार दिया रे सिंहराज ने. उस ने उसे पैसे लेने के लिए बुलाया और मार दी.’’

सिंहराज की बात सुन कर पुलिस टीम ने मैना देवी से सुनीता का फोन मांगा. इस के बाद उन्होंने सुनीता के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई ताकि जांच का कोई सबूत मिल सके.

काल डिटेल्स से पता चला कि 30 दिसंबर, 2021 को सिंहराज ने सुनीता को फोन किया था. यह बात मैना देवी भी पुलिस को बता चुकी थी कि सिंहराज ने सुनीता को पैसे देने के लिए बुलाया था. क्योंकि वह हर महीने कुछ रुपए उसे सहायता के तौर पर देता था, इसलिए वह चली गई. लेकिन उस के बाद नहीं लौटी.

अब पुलिस को सिंहराज पर ही शक होने लगा. लिहाजा पुलिस ने 7 जनवरी, 2022 को पूछताछ के लिए सिंहराज को सिटी हौस्पिटल से हिरासत में ले लिया.

जब पुलिस उसे हिरासत में लेने आई तो आसपास के लोगों को यकीन ही नहीं हुआ. क्योंकि सभी की नजरों में वह एक शरीफ इंसान था. और सिंहराज जैसा भला और बूढ़ा आदमी कभी किसी को क्या चोट पहुंचा सकता था.

पुलिस सिंहराज को हिरासत में ले कर सुनीता हत्याकांड में सिंहराज की भूमिका को तलाशने में जुट गई और उस के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाने लगी.

पुलिस टीम ने सिंहराज से बेहद सख्ती से पूछताछ की. उन्होंने मैना देवी से उस की बातचीत और सुनीता को काल कर पैसे देने के लिए आने की बातचीत का खुलासा किया तो सिंहराज ने खुद को चारों ओर से घिरा हुआ महसूस किया.

अंत में सिंहराज ने जब अपना मुंह खोला तो पूछताछ करने वाली टीम तो क्या जिस किसी ने सिंहराज के किस्से के बारे में सुना, उस का मुंह खुला का खुला ही रह गया.

सिंहराज पुलिस पूछताछ में ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया. उस ने सुनीता की हत्या के गुनाह को कुबूल कर लिया. लेकिन वह सिर्फ यहीं नहीं थमा. उस ने सुनीता के साथसाथ बीते 3-4 सालों में फरीदाबाद के उसी इलाके की 3 अन्य नाबालिग लड़कियों की हत्या की बात भी कुबूल कर ली. जिसे सुन कर पुलिस टीम भी चौंक गई.

वक्त गुजरने के साथसाथ मामला और भी संगीन होता चला जा रहा था. जिन हत्याओं के बारे में सिंहराज ने पुलिस के आगे अपना जुर्म कुबूला था, जब पुलिस ने उन सभी का पता लगाया तो पता चला कि ये  सभी नाबालिग लड़कियां लापता थीं.

यही नहीं, पुलिस ने जब सिंहराज के क्राइम रिकौर्ड्स खंगाले तो सब ने अपना सिर पकड़ लिया.

सिंहराज ने 1986 में जब वह सिर्फ 18 साल का था, उस समय परिवार में जमीनी विवाद के चलते उस ने अपने चाचा और उन के बेटे की हत्या की थी. जिस के लिए उसे उस समय गिरफ्तार तो किया गया था, लेकिन उस के खिलाफ पुख्ता सबूत न मिलने के कारण उसे बरी कर दिया गया था.

हद तो तब हो गई, जब सिंहराज ने अब पुलिस के सामने अपने द्वारा 36 साल पहले की गई हत्या की बात कुबूल कर ली.

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सनसनीखेज हत्याओं की वजह

सिंहराज ने इन सभी हत्याओं को अंजाम अलगअलग समय पर दिया था. और 1986 के बाद हर हत्या के पीछे उद्देश्य सिर्फ एक ही था, वह था उस की यौन इच्छाओं की भूख. जब उस ने पुलिस के सामने अपने सभी जुर्मों को कुबूल कर लिया था तो पुलिस ने एकएक कर उस से हत्याओं के बारे में पूछताछ शुरू की.

पूछताछ के दौरान उस ने पुलिस के हर सवाल का जवाब दिया. उस ने अपने द्वारा की गई पहली हत्या के बारे में बताते हुए कहा, ‘‘जब मैं 18 साल का था तो उस समय हमारे परिवार में जमीन का झगड़ा शुरू हुआ. हमारे चाचा के पास पहले से ही बहुत जमीनजायदाद थी, जोकि उन्हें चाची की तरफ से मिली थी. लेकिन फिर भी मेरे बड़े चाचा की नजर हमारे दादा की जमीन पर थी जोकि पहले से ही बहुत कम थी.

‘‘मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे दादा की तरफ से जितनी जमीन का बंटवारा होगा, उस से हमें बहुत कम हिस्सा मिलेगा. जिस से गुजारा चलाना मुश्किल होगा. मैं ने चाचा को इस के लिए प्यार से समझाया, लेकिन वह नहीं माने. इसलिए मैं एक रात चुपके से उन के घर में घुसा और जब चाचा गहरी नींद में खाट पर लेटे हुए थे तो मैं ने पीछे से जा कर अपने गमछे से उन का गला दबा दिया.

‘‘मैं ने इतना जोर लगाया कि कोई भी उस पकड़ को मुझ से नहीं छुड़ा सकता था. चाचा कुछ तड़पे थे, लेकिन मैं ने उन के मुंह पर अपना हाथ रख लिया था ताकि शोर न हो सके. 5 मिनट तक लगातार गला दबाया और उन की जान ले ली.

‘‘फिर मैं ने सोचा कि इन के बेटे को क्यों छोड़ा जाए. झगड़े के समय वह बहुत जुबान चलाता था. मेरा गुस्सा उस पर भी उतना ही था, जितना कि चाचा पर. मैं ने अपने चाचा की ही तरह उसे भी लटका दिया. बिना शोर किए.’’

3 लड़कियों का हत्यारा निकला सिंहराज

फरीदाबाद के जसाना गांव का रहने वाला सिंहराज अपने द्वारा किए गए हत्या के राज तो इस तरह से खोल रहा था जैसे कि उस ने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की हो. इस तरह से उस ने 1986 में अपने चाचा और चचेरे भाई की हत्या की थी. उस ने बताया कि उस के बाद उस की शादी हो गई और कई सालों तक वह गांव में रह कर खेती करने लगा.

खेती करने से उस के परिवार का गुजारा नहीं हुआ. उस के परिवार में उस की पत्नी विमला देवी और 4 बच्चे थे, जिन में 2 बेटियां और 2 बेटे थे. घर में पैसा कम होने लगा तो वह अपने खेतों को बेचने लगा.

जब उस ने महसूस किया कि उस के पास संपत्ति के नाम पर सिर्फ उस का घर और कुछ जमीन बची है तो करीब 10 साल पहले यानी 2011 में वह फरीदाबाद में सेक्टर 16 सिटी हौस्पिटल में चौकीदार बन गया और यहीं काम करता रहा.

उस ने साल 2019 में पहली नाबालिग लड़की को अपना शिकार बनाया. उस ने बताया कि सिटी हौस्पिटल जहां वह चौकीदार था, उस के पास ही चौराहे पर रेहड़ी पटरी पर बंटी नाम की युवक चाय बेचता था.

बंटी के साथ उस की 14 साल की छोटी बहन प्रिया भी आती थी. वे लोग पास में लाल क्वार्टर में किराए पर रहते थे. सिंहराज हर दिन सुबह और शाम उस के पास चाय पीने जाता था. वह बंटी से हर दिन उधार चाय पीता था और बंटी के पैसे मांगने पर उसे अगले दिन पैसे देने का वादा करता था. ऐसा करते हुए बंटी के पास सिंहराज का करीब एक महीने का उधार जमा हो गया.

अगले दिन जब सिंहराज चाय पीने आया तो बंटी ने फिर एक बार उसे पैसों के लिए टोका. जिस की वजह से बंटी और सिंहराज के बीच पैसों को ले कर थोड़ीबहुत नोकझोंक हो गई.

सिंहराज को बंटी पर बहुत गुस्सा आया लेकिन उस ने अपने गुस्से को दबा कर रखा. उस ने उस के बाद बंटी के यहां चाय पीनी बंद कर दी. लेकिन जब कभी बंटी की छोटी बहन प्रिया आसपास के इलाकों में चाय दे कर हौस्पिटल के सामने से गुजरती तो सिंहराज उसे अपने पास बुलाता और उसे कुछ पैसे दे दिया करता था.

लगभग रोज वह प्रिया को अपने पास पैसे देने के बहाने बुलाता था और उस को छूता था. वह उस छोटी बच्ची के यौन अंगों को भी छू लिया करता था. 2 दिसंबर, 2019 के दिन भी उस ने यही किया. लेकिन प्रिया छोटी बच्ची होने के बावजूद उस के गंदे इरादों को समझ गई थी.

उस ने उस के पास आने से साफ इनकार कर दिया तो सिंहराज ने उसे पैसे दिखाते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं मत आ, लेकिन मेरे लिए चाय लेती आ. ये ले जा पैसे.’’

प्रिया उस के झांसे में आ गई और जब वह सिंहराज के पास गई तो उस ने उसे जकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों को छूने लगा. प्रिया को इतना गुस्सा आया कि उस ने खुद को उस से छुड़ाते हुए कहा, ‘‘आज तो मैं भैया को सब कुछ बताऊंगी कि अंकल मेरे साथ क्याक्या करते हैं.’’

प्रिया के मुंह से यह सुन कर सिंहराज उसी पल घबरा गया. उस ने उसी समय गले में पड़े गमछे से प्रिया का गला घोंट दिया. इस के बाद उस ने उस की लाश आगरा कैनाल में डाल दी, जो बह कर कहीं दूर चली गई.

उधर जब प्रिया अचानक लापता हो गई तो उस के भाई बंटी ने ओल्ड फरीदाबाद थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

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इसी तरह से अगले साल लौकडाउन के समय जब वह इलाका जोकि पहले से ही सुनसान था, उस ने बाजार से घर जाती 12 साल की बच्ची को अपना शिकार बनाया.

12 साल की चांदनी पास के बाजार से घर जा रही थी तो सिंहराज ने उसे हौस्पिटल में अपने पास बुलाया और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा.

जब चांदनी ने इस का विरोध किया और अपने घर वालों को बताने की धमकी दी तो फिर से सिंहराज ने अपने गले से गमछा निकाल कर 12 साल की चांदनी का गला घोंट उसे जान से मार दिया.

उस की लाश भी आगरा कैनाल में बहा दी. थाने में चांदनी की भी गुमशुदगी दर्ज हुई थी, लेकिन पुलिस की फाइलों में यह जांच भी दब कर रह गई.

उसी तरह से सिंहराज ने पिछले साल मई 2021 में तीसरी लड़की को अपना शिकार बनाया. 15 साल की प्रेरणा जोकि सिटी हौस्पिटल में ही साफसफाई का काम करती थी, एक दिन वह अपना मेहनताना लेने के लिए थोड़ा देर से आई.

कुंठित सीरियल किलर निकला सिंहराज

उस समय पूरे अस्पताल में सिवाय सिंहराज के और कोई भी नहीं था. सिंहराज की प्रेरणा पर काफी समय पहले से ही गंदी नजर थी. उस दिन जब सिंहराज को मौका मिला तो उस ने प्रेरणा के साथ भी जबरदस्ती करनी शुरू कर दी. विरोध करने पर उस ने प्रेरणा का भी गला घोंट दिया. प्रेरणा की लाश भी आगरा नहर में फेंक दी.

अंत में उस ने 31 दिसंबर को सुनीता को अपना शिकार बनाया. दरअसल, 22 वर्षीय सुनीता के साथ उस ने 2 साल पहले ही छेड़छाड़ की थी. लेकिन सुनीता को अपना मुंह बंद करने के लिए उस ने हर महीने उसे पैसे देने का वादा किया था.

लेकिन 31 दिसंबर को उस ने सुनीता के साथ दोबारा छेड़छाड़ की तो सुनीता ने भी उस का विरोध किया. और उस ने उसी तरह सुनीता को मौत के घाट उतार दिया, जिस तरह से उस ने बाकी लड़कियों को जान से मारा था.

लाशों को इस तरह लगाया ठिकाने

सिंहराज जब हत्या करता था तो वह उन्हें ठिकाने लगाने के लिए हौस्पिटल परिसर का ही सहारा लिया करता था. सब से पहले वह लड़कियों के साथ छेड़छाड़ करता, फिर वह उन्हें जान से मार देता, जिस के बाद वह लाश को हौस्पिटल के पीछे स्टोररूम में रखता, उन्हें स्टोररूम में ही बोरे में डाल देता और अपनी साइकिल की मदद से उसे सुबहसुबह आगरा कैनाल में फेंक आता.

सिंहराज ने प्रिया, चांदनी और प्रेरणा की लाश को आगरा कैनाल के बहते हुए पानी में फेंक कर ही उन्हें ठिकाने लगाया था. लेकिन वह सुनीता के शव को बहते पानी में नहीं फेंक पाया था.

दरअसल, सिंहराज की बढ़ती उम्र और सुनीता के शव का वजन बहुत ज्यादा था. वह सुनीता के शव को फेंक तो आया था, लेकिन किसी कारणवश सुनीता का शव झाडि़यों में ही अटक कर रह गया.

सुनीता के अटके शव की वजह से ही सीरियल किलर सिंहराज का खुलासा हो पाया अन्यथा फरीदाबाद क्राइम ब्रांच, एसआईटी टीम, एनडीआरएफ की टीम ने मिल कर आगरा कैनाल में काफी दूर तक छानबीन की, लेकिन 3 लाशें नहीं मिल पाईं.

यह मामला सिर्फ सुनीता की हत्या से शुरू हुआ था, लेकिन यह इतना बड़ा मामला बन गया, जिस में 3 नाबालिग लड़कियां भी इस का शिकार हुई थीं. आरोपी सिंहराज की हवस की शिकार हुई इन चारों लड़कियों के परिवारों को अब इंसाफ मिलने की उम्मीद है.

आरोपी सिंहराज इस समय सलाखों के पीछे है और उस पर कई संगीन धाराओं में मुकदमे दर्ज हैं. सिंहराज पर आईपीसी की धारा 363, 66, 376, 302, 201, पोक्सो एक्ट (8 और 17) और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में चांदनी, प्रेरणा, प्रिया, सुनीता परिवर्तित नाम हैं.

धर्म की धोंस

यूक्रेन पर हमले पर किस तरह पूरा यूरोप, जापान, आस्टे्रलिया और अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के देश तेजी से लोकतंत्र को बचाने में जुट गए, यह एक राहत का सबब है. जो ढीलढाल दूसरे विश्व युद्ध के समय की गई थी, अब न की जाए और यूक्रेन चेकेस्लोवानिया की तरह खूनी हिटलर का पहला निवाला न बए जाए. इस के लिए अब सारे देश जुट गए हैं.

इस में ज्यादा श्रेय व्लादिमीर जेलेंस्की को जाता है जिस ने देश छोडऩे से इंकार कर दिया और रूस साम्राज्य का पहले अंग रहते हुए भी अब हर सडक़, हर खेत, हर फैक्ट्री, हर घर, हर जंगल हर पहाड़ से लडऩे को देश को तैयार किया है. यूरोप ने जिस तेजी से रूस के हाथ पैर बांधने के लिए आॢथक प्रतिबंध लगा और जिस तत्परा से यूक्रेन को हथियारों का भंडार भेजना शुरू किया है, वह लगभग अद्भुत है.

यह एक देश की जनता की अपने अधिकारों की रक्षा की परीक्षा है और फिलहाल यह दिख रहा हैकियूरोप और एशिया में फैला विशाल रूस छोटे से यूक्रेन के आगे ढीला पड़ रहा है.

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इतिहास में यह पहली बार नहीं हो रहा है. छोटेछोटे देशों ने अक्सर बड़े देशों को हराया है और अक्सर व छोटे देशों के राजाओं ने कमजोर किया जिन विशाल देशों को गुलाम भी बनाया है. सवाल यह होता है कि आप आम आदमी के हकों के लिए कितना लडऩा चाहते हैं या आप का दुश्मन कितना अपने हको के प्रति उदासीन हैं.

भारत एक क्लासिक उदाहरण है जहां मुट्ठी भर लोग दशकों नहीं सैंकड़ों साल बाहर से आकर राज करते रहे हैं. कई बार वे इसी मिट्टी में घुलमिल कर वैसे ही बन गए तो परिणाम उन्होंने झेला जो कुछ दशक या सदी पहले यहां के निवासियों ने झेला था.

यूक्रेन कोई धर्म राष्ट्र नहीं बन रहा था. वहां की जनता, जो कई दशकों को करनी तानाशाही शासन झेल चुकी थी, अब फिर से गुलामी का जीवन जीने को तैयार नहीं है. वे कठपुतली नहीं रहना चाहते. उन्हें एक कोमेडियन में एक कर्मठ हिम्मत वाला नेता मिल गया जो आर्मी का भी हिस्सा बन चुका है, जो दिलेर है, जो अपने घर का पता भी दुनिया को देने में नहीं हिचकता.

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यूक्रेन में रूसी समर्थक नहीं है. ऐसा नहीं कहा जा सकता है पर आज उन के मुंह और हाथ बंद हो गए है क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि जनता के अधिकार एक बड़े देश, धर्म की धोंस से ज्यादा महत्व के हैं. यूरोप ने उन्हें पूरा सहयोग दिया है और यूक्रेनियों को न भूखे मरने दिया जा रहा न निहत्थे छोड़ा जा रहा. लोकतंत्र की बड़ी कीमत है और मंदिर और पूजापाठ के नाम पर जो समाज इसे बेच दे वह इंग्लैंड जैसे देश का गुलाम बनेगा ही, इस का न आॢथक विकास न वहां सामाजिक चेतना मिलेगी.

Holi के रंगों से आंखों को बचाएं, फॉलो करें ये टिप्स

होली रंगों का त्योहार है. रंग सूखे हों या गीले, उन्हें लगाए बिना होली अधूरी है. आप रंगों से अपना चेहरा रंगवाएं या दूसरे के चेहरे पर रंग लगाएं, इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि इस से आंखों को नुकसान न पहुंचे.

इन दिनों सिंथैटिक रंगों से होली खेली जाती है. इन में घातक रसायन होते हैं जो आंखों में जाने से गंभीर समस्या उत्पन्न कर सकते हैं और होली का सारा मजा किरकिरा हो सकता है. कईर् बार आंखों में रंगगुलाल चले जाने से उन में इतनी तीव्र जलन होती है कि ऐसा लगता है जैसे कुछ समय के लिए अंधे ही हो गए. आंखें खुलने का नाम नहीं लेतीं. वे लाल सुर्ख हो जाती हैं और सूज भी सकती हैं.

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1 चेहरा धोने से पहले सूखे कपड़े से पोछ लें…

होली खेलने के बाद शाम को जब आप स्नान करें तो सब से पहले अपनी आंखें बंद कर के बालों में कंघी कर लें या सूखे कपड़े से बाल झाड़पोंछ लें. चेहरा भी सूखे कपड़े से ठीक से पोंछ लें. इस के बाद जब आप बालों या चेहरे को साबुन व पानी से धोएं तो आंखों को कस कर बंद रखें ताकि रंग घुल कर आंखों में न जा सके.

2 रंग खेलते वक्त लगा लें चश्मा…

होली खेलते समय आप को चश्मा लगा लेना चाहिए ताकि आंखों का थोड़ा बचाव हो सके. यदि आप को नजर वाला चश्मा नहीं लगता है तो धूप का चश्मा भी लगाया जा सकता है. वैसे भी, जब आप को मालूम है कि सामने वाला आप के चेहरे या बालों में गीला-सूखा रंग डाले बगैर मानने वाला नहीं है, तो आप अपनी आंखों को कस कर बंद कर लें और उसे लगाने दें. अन्यथा रंगों से बचने की कोशिश में आप की आंखों में रंग चला जाएगा और परेशानी खड़ी हो जाएगी.

3 सड़कों पर हेलमेट का करें प्रयोग

यदि आप दोपहिया वाहन से जा रहे हैं तो हैलमेट लगा कर ही जाएं. बच्चे रंग या पानी से भरे गुब्बारे फेंकते हैं जो आंखों में घुस कर उन्हें चोटिल कर सकते हैं. इसी प्रकार, यदि आप कार से जा रहे हैं तो शीशे चढ़ा कर रखें वरना रंगभरे गुब्बारे लगने से आप की आईबौल या रेटिना क्षतिग्रस्त हो सकती है. गुब्बारे की मार इतनी जबरदस्त होती है कि आंखों की रोशनी जा भी सकती है.

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4 कौन्टैक्ट लैंस न लगाएं

यदि आप कौन्टैक्ट लैंस लगाते हैं तो होली के दिन उस के बजाय चश्मा पहन लेना बेहतर है क्योंकि गुब्बारे से लैंस निकल सकता है.

5 डॉक्टर को दिखाए

यदि तमाम सावधानियां और सतर्कता बरतने के बावजूद आंखों में रंग चला ही जाए तो साफ, ठंडे पानी से उन्हें धोएं. एक बार नहीं, बारबार धोएं, इस से रंगों का प्रभाव कम हो कर जलन से राहत मिलेगी. इस के बाद नेत्र रोग विशेषज्ञ को दिखाना चाहिए. अपने मन से कोई भी लोशन, तेल या औइंटमैंट न लगाएं.

होली में सब से ज्यादा नुकसान दानेदार कण वाले रंगों से पहुंचता है. कौर्निया यानी आंखों की पुतली के लिए ये बेहद नुकसानदायक होते हैं क्योंकि इन में टौक्सिक यानी जहरीले पदार्थ होते हैं. इस से आंखों में तीव्र दर्द महसूस होता है. समय पर डाक्टर को नहीं दिखाने से आंखों में इन्फैक्शन या अल्सर भी हो सकता है.

Holi Special: सर्वस्व- क्या मां के जीवन में खुशियां ला पाई शिखा ?

बैठक में बैठी शिखा राहुल के खयालों में खोई थी. वह नहा कर तैयार हो कर सीधे यहीं आ कर बैठ गई थी. उस का रूप उगते सूर्य की तरह था. सुनहरे गोटे की किनारी वाली लाल साड़ी, हाथों में ढेर सारी लाल चूडि़यां, माथे पर बड़ी बिंदी, मांग में चमकता सिंदूर मानो सीधेसीधे सूर्य की लाली को चुनौती दे रहे थे. घर के सब लोग सो रहे थे, मगर शिखा को रात भर नींद नहीं आई. शादी के बाद वह पहली बार मायके आई थी पैर फेरने और आज राहुल यानी उस का पति उसे वापस ले जाने आने वाला था. वह बहुत खुश थी.

उस ने एक भरपूर नजर बैठक में घुमाई. उसे याद आने लगा वह दिन जब वह बहुत छोटी थी और अपनी मां के पल्लू को पकड़े सहमी सी दीवार के कोने में घुसी जा रही थी. नानाजी यहीं दीवान पर बैठे अपने बेटों और बहुओं की तरफ देखते हुए अपनी रोबदार आवाज में फैसला सुना रहे थे, ‘‘माला, अब अपनी बच्ची के साथ यहीं रहेगी, हम सब के साथ. यह घर उस का भी उतना ही है, जितना तुम सब का. यह सही है कि मैं ने माला का विवाह उस की मरजी के खिलाफ किया था, क्योंकि जिस लड़के को वह पसंद करती थी, वह हमारे जैसे उच्च कुल का नहीं था, परंतु जयराज (शिखा के पिता) के असमय गुजर जाने के बाद इस की ससुराल वालों ने इस के साथ बहुत अन्याय किया. उन्होंने जयराज के इंश्योरैंस का सारा पैसा हड़प लिया. और तो और मेरी बेटी को नौकरानी बना कर दिनरात काम करवा कर इस बेचारी का जीना हराम कर दिया. मुझे पता नहीं था कि दुनिया में कोई इतना स्वार्थी भी हो सकता है कि अपने बेटे की आखिरी निशानी से भी इस कदर मुंह फेर ले. मैं अब और नहीं देख सकता. इस विषय में मैं ने गुरुजी से भी बात कर ली है और उन की भी यही राय है कि माला बिटिया को उन लालचियों के चंगुल से छुड़ा कर यहीं ले आया जाए.’’

फिर कुछ देर रुक कर वे आगे बोले, ‘‘अभी मैं जिंदा हूं और मुझ में इतना सामर्थ्य है

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कि मैं अपनी बेटी और उस की इस फूल सी बच्ची की देखभाल कर सकूं… मैं तुम सब से भी यही उम्मीद करता हूं कि तुम दोनों भी अपने भाई होने का फर्ज बखूबी अदा करोगे,’’ और फिर नानाजी ने बड़े प्यार से उसे अपनी गोद में बैठा लिया था. उस वक्त वह अपनेआप को किसी राजकुमारी से कम नहीं समझ रही थी. घर के सभी सदस्यों ने इस फैसले को मान लिया था और उस की मां भी घर में पहले की तरह घुलनेमिलने का प्रयत्न करने लगी थी. मां ने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली थी. इस तरह से उन्होंने किसी को यह महसूस नहीं होने दिया कि वे किसी पर बोझ हैं.

नानाजी एवं नानी के परिवार की अपने कुलगुरु में असीम आस्था थी. सब के गले में एक लौकेट में उन की ही तसवीर रहती थी. कोई भी बड़ा निर्णय लेने के पहले गुरुजी की आज्ञा लेनी जरूरी होती थी. शिखा ने बचपन से ही ऐसा माहौल देखा था. अत: वह भी बिना कुछ सोचेसमझे उन्हें मानने लगी थी. अत्यधिक व्यस्तता के बावजूद समय निकाल कर उस की मां कुछ वक्त गुरुजी की तसवीर के सामने बैठ कर पूजाध्यान करती थीं. कभीकभी वह भी मां के साथ बैठती और गुरुजी से सिर्फ और सिर्फ एक ही दुआ मांगती कि गुरुजी, मुझे इतना बड़ा अफसर बना दो कि मैं अपनी मां को वे सारे सुख और आराम दे सकूं जिन से वे वंचित रह गई हैं.

तभी खट की आवाज से शिखा की तंद्रा भंग हो गई. उस ने मुड़ कर देखा. तेज हवा के कारण खिड़की चौखट से टकरा रही थी. उठ कर शिखा ने खिड़की का कुंडा लगा दिया. आंगन में झांका तो शांति ही थी. घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6 बज रहे थे. सब अभी सो ही रहे हैं, यह सोचते हुए वह भी वहीं सोफे पर अधलेटी हो गई. उस का मन फिर अतीत में चला गया…

जब तक नानाजी जिंदा रहे उस घर में वह राजकुमारी और मां रानी की तरह रहीं. मगर यह सुख उन दोनों के हिस्से बहुत दिनों के लिए नहीं लिखा था. 1 वर्ष बीततेबीतते अचानक एक दिन हृदयगति रुक जाने के कारण नानाजी का देहांत हो गया. सब कुछ इतनी जल्दी घटा कि नानी को बहुत गहरा सदमा लगा. अपनी बेटी व नातिन के बारे में सोचना तो दूर, उन्हें अपनी ही सुधबुध न रही. वे पूरी तरह से अपने बेटों पर आश्रित हो गईं और हालात के इस नए समीकरण ने शिखा और उस की मां माला की जिंदगी को फिर से कभी न खत्म होने वाले दुखों के द्वार पर ला खड़ा कर दिया.

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नानाजी के असमय देहांत और नानीजी के डगमगाते मानसिक संतुलन ने जमीनजायदाद, रुपएपैसे, यहां तक कि घर के बड़े की पदवी भी मामा के हाथों में थमा दी. अब घर में जो भी निर्णय होता वह मामामामी की मरजी के अनुसार होता. कुछ वक्त तक तो उन निर्णयों पर नानी से हां की मुहर लगवाई जाती रही, पर उस के बाद वह रस्म भी बंद हो गई. छोटे मामामामी बेहतर नौकरी का बहाना बना कर अपना हिस्सा ले कर विदेश में जा कर बस गए. अब बस बड़े मामामामी ही घर के सर्वेसर्वा थे.

मां का अपनी नौकरी से बचाखुचा वक्त रसोई में बीतने लगा था. मां ही सुबह उठ कर चायनाश्ता बनातीं. उस का और अपना टिफिन बनाते वक्त कोई न कोई नाश्ते की भी फरमाइश कर देता, जिसे मां मना नहीं कर पाती थीं. सब काम निबटातेनिबटाते, भागतेदौड़ते वे स्कूल पहुंचतीं.

कई बार तो शिखा को देर से स्कूल पहुंचने पर डांट भी पड़ती. इसी प्रकार शाम को घर लौटने पर जब मां अपनी चाय बनातीं, तो बारीबारी पूरे घर के लोग चाय के लिए आ धमकते और फिर वे रसोई से बाहर ही न आ पातीं. रात में शिखा अपनी पढ़ाई करतेकरते मां का इंतजार करती कि कब वे आएं तो वह उन से किसी सवाल अथवा समस्या का हल पूछे. मगर मां को काम से ही फुरसत नहीं होती और वह कापीकिताब लिएलिए ही सो जाती. जब मां आतीं तो बड़े प्यार से उसे उठा कर खाना खिलातीं और सुला देतीं. फिर अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर उसे पढ़ातीं.

यदि वह कभी मामा या मामी के पास किसी प्रश्न का हल पूछने जाती तो वे हंस कर उस की खिल्ली उड़ाते हुए कहते, ‘‘अरे बिटिया, क्या करना है इतना पढ़लिख कर? अफसरी तो करनी नहीं तुझे. चल, मां के साथ थोड़ा हाथ बंटा ले. काम तो यही आएगा.’’

वह खीज कर वापस आ जाती. परंतु उन की ऐसी उपहास भरी बातों से उस ने हिम्मत न हारी, न ही निराशा को अपने मन में घर करने दिया, बल्कि वह और भी दृढ़ इरादों के साथ पढ़ाई में जुट जाती.

मामामामी अपने बच्चों के साथ अकसर बाहर घूमने जाते और बाहर से ही खापी कर आते. मगर भूल कर भी कभी न उस से न ही मां से पूछते कि उन का भी कहीं आनेजाने का या बाहर का कुछ खाने का मन तो नहीं? और तो और जब भी घर में कोई बहुत स्वादिष्ठ चीज बनती तो मामी अपने बच्चों को पहले परोसतीं और उन को ज्यादा देतीं. वह एक किनारे चुपचाप अपनी प्लेट लिए, अपना नंबर आने की प्रतीक्षा में खड़ी रहती.

सब से बाद में मामी अपनी आवाज में बनावटी मिठास भर के उस से बोलतीं, ‘‘अरे बिटिया तू भी आ गई. आओआओ,’’ कह कर बचाखुचा कंजूसी से उस की प्लेट में डाल देतीं. तब उस का मन बहुत कचोटता और कह उठता कि काश, आज उस के भी पापा होते, तो वे उसे कितना प्यार करते, कितने प्यार से उसे खिलाते. तब किसी की भी हिम्मत न होती, जो उस का इस तरह मजाक उड़ाता या खानेपीने को तरसता. तब वह तकिए में मुंह छिपा कर बहुत रोती. मगर फिर मां के आने से पहले ही मुंह धो कर मुसकराने का नाटक करने लगती कि कहीं मां ने उस के आंसू देख लिए तो वे बहुत दुखी हो जाएंगी और वे भी उस के साथ रोने लगेंगी, जो वह हरगिज नहीं चाहती थी.

एकाध बार उस ने गुरुजी से परिवार से मिलने वाले इन कष्टों का जिक्र करना चाहा, परंतु गुरुजी ने हर बार किसी न किसी बहाने से उसे चुप करा दिया. वह समझ गई कि सारी दुनिया की तरह गुरुजी भी बलवान के साथी हैं.

जब वह छोटी थी, तब इन सब बातों से अनजान थी, मगर जैसेजैसे बड़ी होती गई, उसे सारी बातें समझ में आने लगीं और इस सब का कुछ ऐसा असर हुआ कि वह अपनी उम्र के हिसाब से जल्दी एवं ज्यादा ही समझदार हो गई.

उस की मेहनत व लगन रंग लाई और एक दिन वह बहुत बड़ी अफसर बन गई. गाड़ीबंगला, नौकरचाकर, ऐशोआराम अब सब कुछ उस के पास था.

उस दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर इतना रोईं, इतना रोईं कि पत्थरदिल हो चुके मामामामी की भी आंखें भर आईं. नानी भी बहुत खुश थीं और अपने पूरे कुनबे को फोन कर के उन्होंने बड़े गर्व से यह खबर सुनाई. वे सभी लोग, जो वर्षों से उसे और उस की मां को इस परिवार पर एक बोझ समझते थे, ‘ससुराल से निकाली गई’, ‘मायके में आ कर पड़ी रहने वाली’ समझ कर शक भरी निगाहों से देखते थे और उन्हें देखते ही मुंह फेर लेते थे, आज वही सब लोग उन दोनों की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे. मामामामी ने तो उस के अफसर बनने का पूरा क्रैडिट ही स्वयं को दे दिया था और गर्व से इतराते फिर रहे थे.

समय का चक्र मानो फिर से घूम गया था. अब मां व शिखा के प्रति मामामामी का रवैया बदलने लगा था. हर बात में मामी कहतीं, ‘‘अरे जीजी, बैठो न. आप बस हुकुम करो. बहुत काम कर लिया आप ने.’’

मामी के इस रूप का शिखा खूब आनंद लेती. इस दिन के लिए तो वह कितना तरसी थी.

जब सरकारी बंगले में जाने की बात आई, तो सब से पहले मामामामी ने अपना सामान बांधना शुरू कर दिया. मगर नानी ने जाने से मना कर दिया, यह कह कर कि इस घर में नानाजी की यादें बसी हैं. वे इसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी. जो जाना चाहे, वह जा सकता है. मां नानी के दिल की हालत समझती थीं. अत: उन्होंने भी जाने से मना कर दिया. तब शिखा ने भी शिफ्ट होने का प्रोग्राम फिलहाल टाल दिया.

इसी बीच एक बहुत ही सुशील और हैंडसम अफसर, जिस का नाम राहुल था की तरफ से शिखा को शादी का प्रस्ताव आया. राहुल ने खुद आगे बढ़ कर शिखा को बताया कि वह उसे बहुत पसंद करता है और उस से शादी करना चाहता है. शिखा को भी राहुल पसंद था.

राहुल शिखा को अपने घर, अपनी मां से भी मिलाने ले गया था. राहुल ने उसे बताया कि किस प्रकार पिताजी के देहांत के बाद मां ने अपने संपूर्ण जीवन की आहुति सिर्फ और सिर्फ उस के पालनपोषण के लिए दे दी. घरघर काम कर के, रातरात भर सिलाईकढ़ाईबुनाई कर के उसे इस लायक बनाया कि आज वह इतना बड़ा अफसर बन पाया है. उस की मां के लिए वह और उस के लिए उस की मां दोनों की बस यही दुनिया थी. राहुल का कहना था कि अब उन की इस 2 छोरों वाली दुनिया का तीसरा छोर शिखा है, जिसे बाकी दोनों छोरों का सहारा भी बनना है एवं उन्हें मजबूती से बांधे भी रखना है.

यह सब सुन कर शिखा को महसूस हुआ था कि यह दुनिया कितनी छोटी है. वह समझती थी कि केवल एक वही दुखों की मारी है, मगर यहां तो राहुल भी कांटों पर चलतेचलते ही उस तक पहुंचा है. अब जब वे दोनों हमसफर बन गए हैं, तो उन की राहें भी एक हैं और मंजिल भी.

राहुल की मां शिखा से मिल कर बहुत खुश हुईं. उन की होने वाली बहू इतनी सुंदर, पढ़ीलिखी तथा सुशील है, यह देख कर वे खुशी से फूली नहीं समा रही थीं. झट से उन्होंने अपने गले की सोने की चेन उतार कर शिखा के गले में पहना दी और फिर बड़े स्नेह से शिखा से बोलीं, ‘‘बस बेटी, अब तुम जल्दी से यहां मेरे पास आ जाओ और इस घर को घर बना दो.’’

मगर एक बार फिर शिखा के परिवार वाले उस की खुशियों के आड़े आ गए. राहुल दूसरी जाति का था और उस के यहां मीटमछली बड़े शौक से खाया जाता था जबकि शिखा का परिवार पूरी तरह से पंडित बिरादरी का था, जिन्हें मीटमछली तो दूर प्याजलहसुन से भी परहेज था.

घर पर सब राहुल के साथ उस की शादी के खिलाफ थे. जब शिखा की मां माला ने शिखा को इस शादी के लिए रोकना चाहा तो शिखा तड़प कर बोली, ‘‘मां, तुम भी चाहती हो कि इतिहास फिर से अपनेआप को दोहराए? फिर एक जिंदगी तिलतिल कर के इन धार्मिक आडंबरों और दुनियादारी के ढकोसलों की अग्नि में अपना जीवन स्वाहा कर दे? तुम भी मां…’’ कहतेकहते शिखा रो पड़ी.

शिखा के इस तर्क के आगे माला निरुत्तर हो गईं. वे धीरे से शिखा के पास आईं और उस का सिर सहलाते हुए रुंधी आवाज में बोलीं, ‘‘मुझे माफ कर देना मेरी प्यारी बेटी. बढ़ती उम्र ने नजर ही नहीं, मेरी सोचनेसमझने की शक्ति को भी धुंधला दिया था. मेरे लिए तुम्हारी खुशी से बढ़ कर और कुछ भी नहीं… हम आज ही यह घर छोड़ देंगी.’’

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जब मामामामी को पता लगा कि शिखा का इरादा पक्का है और माला भी उस के साथ है, तो सब का आक्रोश ठंडा पड़ गया. अचानक उन्हें गुरुजी का ध्यान आया कि शायद उन के कहने से शिखा अपना निर्णय बदल दे.

बात गुरुजी तक पहुंची तो वे बिफर उठे. जैसे ही उन्होंने शिखा को कुछ समझाना चाहा, शिखा ने अपने मुंह पर उंगली रख कर उन्हें चुप रहने का इशारा किया और फिर अपने गले में पड़ा उन की तसवीर वाला लौकेट उतार कर उन के सामने फेंक दिया.

सब लोग गुस्से में कह उठे, ‘‘यह क्या पागलपन है शिखा?’’

गुरुजी भी आश्चर्यमिश्रित रोष से उसे देखने लगे.

इस पर शिखा दृढ़ स्वर में बोली, ‘‘बहुत कर ली आप की पूजा और देख ली आप की शक्ति भी, जो सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ देखती है. मेरा सर्वस्व अब मेरा होने वाला पति राहुल है, उस का घर ही मेरा मंदिर है, उस की सेवा आप के ढोंगी धर्म और भगवान से बढ़ कर है,’’ कहते हुए शिखा तेजी से उठ कर वहां से निकल गई.

शिखा के इस आत्मविश्वास के आगे सब ने समर्पण कर दिया और फिर खूब धूमधाम से राहुल के साथ उस का विवाह हो गया.

अचानक बादलों की गड़गड़ाहट से शिखा की आंख खुल गई. आंगन में लोगों की चहलकदमी शुरू हो गई थी. आंखें मलती हुई वह उठी और सोचने लगी, यहां दीवान पर लेटेलेटे उस की आंख क्या लगी वह तो अपना अतीत एक बार फिर से जी आई.

‘राहुल अब किसी भी वक्त उसे लेने पहुंचने ही वाला होगा,’ इस खयाल से शिखा के चेहरे पर एक लजीली मुसकान फैल गई.

सच्ची श्रद्धांजलि: भाग 3

Writer- Sandhya

वे चली गईं. तब मैं ने कटाक्ष करते हुए राजेश से कहा, ‘‘खाना हमारी पसंद से बनेगा और शादी के समय हमारी पसंद कहां गई थी? हुंह, बात बनाना भी कोई इन से सीखे. कितनी बेशर्मी से नाटक जारी है,’’ कहते हुए मैं ने बेमन से कागज खोला, यह तो मम्मी का पत्र था :

प्यारी प्यारी निम्मो,

आज मैं तुझ से अपनी हेमेश की कसम तोड़ने की इजाजत लेते हुए पुनर्विवाह की बात कर रही हूं. आशा करती हूं, मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने से ‘न’ नहीं करेगी. मेरी तो विदाई की वेला आ गई है. तुझ से, हेमेश से, बेटी रिया, राजेश, रिंकू सभी से इच्छा न होते हुए भी विदा तो मुझे होना ही पड़ेगा.

एक दिन मैं ने हेमेश और डाक्टर की बातें सुन ली थीं. मुझे अपनी बीमारी का हाल मिल गया था. मैं अच्छी तरह समझ चुकी थी कि मैं चंद दिनों की मेहमान हूं. मैं ने सब से नजर बचा कर यह पत्र लिखा क्योंकि अपनी अंतिम इच्छा बताना जरूरी था. मन की बात तुम लोगों को बताए बिना भी तो मेरी आत्मा को शांति न मिल सकेगी.

मेरे बाद हेमेश एकदम अकेले हो जाएंगे. तू भी अब रिटायर होने वाली है. मेरे हेमेश को अपना लेना. दोनों एकदूसरे का सहारा बन जाना. हेमेश को तो जानती ही है, अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह रहते हैं, तू रहेगी तो उन्हें वक्त पर हर चीज मिलेगी. प्यारी निम्मो, हेमेश की साली साहिबा से बीवी साहिबा बन जाना.

रिया बेटी मेरे जाने से बहुत दुखी होगी. फिर धीरेधीरे रियाराजेश अपनी जिंदगी, अपनी गृहस्थी में मन लगा लेंगे. उन की आंटी से उन की मम्मी बन जाना. मेरी बेटी का मायका पूर्ववत बना रहेगा.

थक गई हूं, अब लिखा नहीं जा रहा है. बोल देती हूं, तुम दोनों की शादी ही तुम दोनों की तरफ से मेरे लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

तेरी,

हेमू

पत्र पढ़ कर मेरी आंखों से आंसू गिरने लगे. राजेश ने भी मेरे साथ ही पत्र पढ़ लिया था. उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोले, ‘‘चलो, सारी गलतफहमियां दूर हो गईं. चल कर देखें मम्मी क्या कर रही हैं?’’

हम लोग किचन में गए. देखा, निर्मला आंटी खाना बनाने में व्यस्त थीं. पापा भी किचन में ही थे. वे सलाद काट रहे थे. मैं निर्मला आंटी के पास गई तथा बोली, ‘‘क्या बना रही हैं, मम्मी?’’

निर्मला आंटी की आंखें डबडबा आईं. उन्होंने प्यार से मेरा हाथ अपने हाथों में ले लिया फिर धीरे से कहा, ‘‘हेमेश और मेरा शादी करने का एकदम मन नहीं था. हम ने कभी एकदूसरे को इस नजर से देखा ही नहीं था लेकिन हेमू की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए शादी करनी पड़ी. मंदिर में तुम्हारे बूआ, फूफा की उपस्थिति में हम ने एकदूसरे को माला पहनाई, हेमेश ने मेरी सूनी मांग में सिंदूर भर दिया, हो गई शादी. तुम्हारी नीता बूआ ने मिठाई खिला हमारा मुंह मीठा कराया.’’

मैं चुपचाप उन्हें देखे जा रही थी.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘तुम्हें बताने की हिम्मत मुझ में और हेमेश में न थी.

तुम्हें बताने की जिम्मेदारी नीता ने ली, उस ने तुम्हें सारी बातें बताने की कोशिश की, लेकिन तुम ने उस के फोन काट दिए, बात नहीं सुनी उस की. वैसे बेटा, तुम ने भी वही किया जो एक बेटी अपनी मम्मी को खोने के बाद इस तरह की खबर सुन कर करेगी, हमें तुम से…’’

मैं ने बीच में ही निर्मला आंटी की बात काटते हुए कहा, ‘‘आप लोगों से माफी मांगने लायक तो नहीं हूं, लेकिन फिर भी हो सके तो मुझे माफ कर दीजिए. सौरी मम्मी, सौरी पापा.’’

मम्मीपापा दोनों ने आगे बढ़ कर मुझे गले से लगा लिया. मैं ने देखा राजेश, रिंकू को गोद में लिए पूरी तरह संतुष्ट नजर आ रहे थे. वे भी मुझ से नजर मिलते ही मुसकरा दिए. इस दौरान एक विचार दिल और दिमाग को लगातार मथ रहा था कि दो उदास और तन्हा प्राणियों को एक कर जीने का मौका देना क्या हमारा कर्तव्य नहीं बनता है? इस विचार के आते ही मम्मी के प्रति श्रद्धा से सिर झुक गया.

3 हत्याओं से खुला इश्क का खौफनाक मंजर

सौजन्य: मनोहर कहानियां

Writer- श पी.एल. कश्यप ‘अलंकृत’

इधर लखनऊ पुलिस 3 लाशों का सच जानने के सिलसिले में उस के हत्यारे की तलाश में जुटी थी, तो वहीं हत्यारा सरफराज खुद को बचाने का तानाबाना बुन कर पुलिस की आंखों में धूल झोंक रहा था.

विधानसभा चुनावों की गहमागहमी में एक सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 3 लाशों के बरामद होने से कानूनव्यवस्था पर अंगुली उठने लगी थी. बरामद लाशों के पहनावे आदि से उन के मुसलिम होने का संदेह हुआ था. इस वजह से पुलिस और भी चिंतित हो गई थी. पुलिस को इस बात की आशंका थी कि कहीं इसे कोई राजनीतिक दल या सोशल मीडिया सांप्रदायिक मुद्दा न बना दे.

पहली लाश 6 जनवरी, 2022 को सुबहसुबह लखनऊ जिले के सीतापुर रोड से इटौंजा थाना क्षेत्र में मिली थी. उसे थानाप्रभारी सुभाषचंद्र सरोज ने एक सड़क ठेकेदार की सूचना पर बरामद किया था.

वह एक 25-26 वर्षीय युवक की लाश थी, जो सुलतानपुर गांव के पास सुनसान जगह पर सड़क किनारे  गड्ढे में पड़ी हुई थी. उस की गरदन आधी कटी थी, लेकिन शरीर पर कहीं भी चोट के निशान नहीं थे. उस का पहनावा मुसलिमों जैसा था.

शव बरामदगी के बाद उसे अज्ञात लाश के तौर पर पंचनामा कर भादंवि की धारा 302 के तहत अनजान व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई थी. इसी के साथ आगे की काररवाई शुरू की जा चुकी थी.

दूसरी लाश 2 दिनों के बाद 8 जनवरी, 2022 को मलीहाबाद थानांतर्गत जेहटा रोड पर यादव खेड़ा गांव के पास मिली थी. वह लाश एक 60-62 साल के व्यक्ति की थी. इस की भी मलीहाबाद थाने में अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया था. इस लाश की गरदन कटी हुई थी, लेकिन उस पर जख्म के कई निशान थे. यह लाश भी पहली नजर में देखने पर मुसलिम व्यक्ति की लग रही थी.

तीसरी लाश की बरामदगी 13 जनवरी को माल थाने के अंतर्गत दुबग्गा मेन रोड के किनारे झाडि़यों से हुई थी. वह लाश एक वृद्ध महिला की थी. उस का पहनावा भी मुसलमानों वाला ही था. पुलिस ने उसे भी अज्ञात शव के तौर पर अनजान आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था.

इस तरह से एक सप्ताह के भीतर 3 अलगअलग थानों में 3 अज्ञात लाशों की प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी थी. इस की सूचना जब लखनऊ के पुलिस हैडक्वार्टर को मिली, तब बड़े अधिकारी चिंतित हो गए. इस की वजह यह थी कि मीडिया में अज्ञात मुसलिम समुदाय के व्यक्तियों की लाशें बरामद होने की खबरें आने लगी थीं.

सोशल मीडिया पर भी इस की चर्चा हो रही थी. इसे देखते हुए आला पुलिस अधिकारियों ने तीनों थानों के प्रभारियों को उन के बारे में जल्द से जल्द तहकीकात कर मामले को निपटाने के आद

राहुल-प्रियंका: राहें अभी और भी हैं…

दरअसल,उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के पश्चात देश में जो हवाएं बह रही है उसके मुताबिक कहा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस को खोने के लिए कुछ भी न था, मगर उत्तराखंड, पंजाब और गोवा की हालत कांग्रेस के ताबूत पर एक कील के रूप में देखी जा रही है. ऐसी स्थितियों में इस रिपोर्ट में हम उन महत्वपूर्ण तथ्यों पर नजर डाल रहे हैं जिससे आने वाले समय में कांग्रेस मजबूत होती है.

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों में कांग्रेस के सुपड़ा साफ होने के बाद राहुल और प्रियंका गांधी जैसे शीर्ष  नेतृत्व पर सवाल उठ खड़े होने की संभावना है.

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कांग्रेस शासित पंजाब जिसे बड़े ही राजनीतिक सूझबूझ के साथ अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस की झोली में डाला था हाथ से निकल गया है. पंजाब की सबसे बड़ी ताकत अकाली दल उसके बाद भाजपा की जगह अगर अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी ने सत्ता पर कब्जा बनाया है तो सवाल खड़े हो जाते हैं कि कांग्रेस 5 साल आखिर क्या कर रही थी?

पंजाब में जिस तरीके से गुटबाजी अपने उफान पर थी नवजोत सिंह सिद्धू लगातार हाईकमान को आंखें दिखा रहे थे. मुख्यमंत्री को औकात दिखाने की कोशिश जारी थी और यह सब छुपी हुई बातें नहीं बल्कि देश की नजरों के सामने चल रही थी. इस नाटक को रोक पाने में राहुल और प्रियंका गांधी नाकाम रहे. यही हालात उत्तराखंड में भी चल रहे थे. परिणाम स्वरूप वही हुआ जिसकी आशंका थी पंजाब और उत्तराखंड दोनों ही महत्वपूर्ण राज्य कांग्रेस के हाथ से निकल गए हैं अब चिंतन का विषय यह है कि राहुल गांधी जो कांग्रेस से पहले ही एक तरह से हाशिए पर स्वयं चले गए हैं यानी कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ चुके हैं क्या कदम उठाते हैं.

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प्रियंका का राजनीतिक पाठ

उत्तर प्रदेश का अति महत्वपूर्ण चुनाव इस दफे पूरी तरीके से प्रियंका गांधी के हाथों में था. शुरुआत में उन्होंने उत्तर प्रदेश के साथ पूरे देश में यह संदेश दिया कि कांग्रेस बड़ी ताकत के साथ आगे आ रही है उनकी घोषणाओं वक्तव्यों को लोगों ने बड़ी गंभीरता से लिया जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं लड़की हूं और लड़ सकती  हूं.

जिस राजनीतिक परिपक्वता का परिचय प्रियंका गांधी को देना चाहिए था उसमें चूक हो गई. चुनाव के दरमियान जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा था कि क्या आप मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं तो प्रियंका ने इशारे इशारे में कहा था कि कौन दिखाई दे रहा है और कोई है क्या?

इस बात का उत्तर प्रदेश सहित संपूर्ण देश में एक सकारात्मक प्रभाव गया था. मगर चंद घंटों बाद ही उन्होंने यह बयान वापस ले लिया. सच तो यह है कि इसके बाद से ही उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पीछे पीछे और पीछे होती चली गई.

मुख्यमंत्री वाले बयान पर अगर प्रियंका गांधी कायम होती तो निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चित्र बदल सकता था. कांग्रेस को चाहिए कि वह अनुभवी साथियों  को तवज्जो दें और पार्टी संगठन को मजबूत बनाने का प्रयास करें.

अन्यथा आने वाले समय में कांग्रेस  देश के राजनीतिक नक्शे से ही गायब न हो जाए.

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यहां गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के यूपी में पार्टी की कमान संभालने के बावजूद राज्य में कांग्रेस का मत फीसद आधा रह गया. इस बार पार्टी यूपी में तीन फीसद मत हासिल करने में यूपी नाकाम रही है.

उल्लेखनीय है कि पंजाब जहां कांग्रेस सत्ता में थी, वहां कांग्रेस का मत फीसद 2017 में 38.5 फीसद से गिर कर 2022 में 23.3 फीसद हो गया . इसके अतिरिक्त 2017 में सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी कांग्रेस गोवा और मणिपुर में दूसरे पायदान पर खिसकने से पार्टी के मत फीसद में भी गिरावट आई है. मणिपुर में कांग्रेस का वोट मत फीसद 2017 में 35.1 फीसद था, 2022 में आधा होकर 17 फीसद रह गया .

तेजस्वी प्रकाश और Karan Kundrra जल्द करेंगे शादी? खुद किया कुबूल

तेजस्वी प्रकाश (Tejasswi Prakash) और करण कुंद्रा (Karan Kundrra) की जोड़ी फैंस का दिल जीत रही है. फैंस को करण-तेजस्वी के फोटोज और वीडियो का बेसब्री से इंतजार रहता है. दोनों की केमिस्ट्री फैंस को खूब पसंद आती है. हाल ही में तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा अपने मम्मी-पापा के साथ एक्ट्रेस के घर पर भी मिले थे, जिससे जुड़ी उनकी फोटोज और वीडियो खूब वायरल हुए थे.

दरअसल करण कुंद्रा को तेजस्वी प्रकाश के घर पर स्पॉट किया गया. करण अपने पेरेंट्स के साथ तेजस्वी प्रकाश के घर पहुंचे थे. इस दौरान करण के माथे पर टीका लगा नजर आया. जिससे अंदाजा लगाया गया कि करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश का रोका हो गया है. लेकिन करण कुंद्रा ने बताया कि वह तेजस्वी प्रकाश के मम्मी-पापा की एनीवर्सरी सेलीब्रेट करने गए थे.

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अब करण कुंद्रा का एक वीडियो सामने आया है. इस वीडियो को देखने के बाद आप भी कहेंगे कि करण-तेजस्वी जल्द ही शादी करेंगे. करण कुंद्रा कैमरे के सामने कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि वह तेजस्वी प्रकाश के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहते हैं.

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दरअसल, करण कुंद्रा से सवाल किया गया कि वह तेजस्वी प्रकाश के साथ फिल्म, शो या क्या करना चाहते हैं? इसके जवाब में करण ने कहा, मुझे लगता है कि मैं उनके साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता हूं, मूवी और शो तो आते-जाते रहेंगे.

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Anupamaa: अनुपमा ने की अनुज की नकल, Video हुआ वायरल

‘अनुपमा’ सीरियल में अनुज कपाड़िया (Anuj Kapadia) और अनु (Anupama) की जोड़ी अक्सर चर्चे में छायी रहती है. दोनों की जोड़ी को फैंस बहुत पसंद करते हैं. अनुज-अनुपमा ऑफस्क्रीन भी खूब मस्ती करते हैं. अनुपमा कैमरे के पीछे अनुज को खूब तंग करती है. एक वीडियो ने इसका खुलासा किया है. इस वीडियो को अनुपमा ने शेयर किया है.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि सेट पर अनुपमा और अनुज एक साथ सेट पर मस्ती करते हुए दिखाई दे रहे हैं. वीडियो में अनुपमा कहती हुई दिखाई दे रही है, ‘देखिए द अनुज कपाड़िया की वॉक.’ इसके बाद अनुपमा अनुज कपाड़िया की तरह चलने की नकल करती हैं. जिसे देखने के बाद अनुज कहता है, ये तो ऐसे चल रही है जैसे कोई रैंप पर वॉक कर रहा हो.तभी रुपाली गांगुली कहती है, हां  लेकिन आप ऐसे ही वॉक करते हैं.

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रुपाली गांगुली ने इस वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन लिखा है. वॉक करो बात नहीं. ये तो वॉक था वॉक है. द अनुज कपाड़िया वॉक अनुपमा के द्वारा.

 

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अनुपमा के अपकमिंग एपिसोड में खूब ड्रामा देखने को मिलने वाला है. शो में आप देखेंगे कि अनुपमा शाह हाउस में किंजल के लिए रहने लगेगी. तो दूसरी तरफ वनराज अपने तेवर दिखाएगा. वनराज कहेगा कि अनुज शाह हाउस में अनुपमा से नहीं मिल सकता. जिसके बाद वनराज और अनुपमा के बीच जबरदस्त बहस होगी.

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तो दूसरी तरफ अनुपमा के आने बाद काव्या भी चिढ़ जाएगी. काव्या वनराज को खरी-खोटी सुनाएगी. वनराज के मना करने के बाद भी अनुज शाह हाउस पहुंच जाएगा. अनुज अनुपमा साथ में शिवरात्री की पूजा करेंगे. अनुज और अनुपमा का प्यार देखकर वनराज को जलन होगी.

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पौराणिक ख्वाब

‘2 मई, दीदी गई’ का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई बयान नहीं आया पर उन में छटपटाहट और हताशा अवश्य होगी. दरअसल, पश्चिम बंगाल के शहरी निकायों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का ‘जयश्रीराम’ का छद्म नारा एक भी शहर में नहीं चला. 107 शहरी निकायों में से 102 पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा कर लिया. धर्म को राष्ट्र का नाम दे व पूजापाठ को विकास का नारा दे कर जो ख्वाब पौराणिक सोच वाली, हेडगेवार, सावरकर व गोलवालकर की अनुयायी, भारतीय जनता पार्टी ने देखा था वह चूर होता प्रतीत हो रहा है क्योंकि वह एकएक कर चुनाव हारती जा रही है.

दक्षिण में तमिलनाडू में भी यही हुआ जब नगर पंचायतों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी समर्थक अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम को न के बराबर सीटें मिलीं और कांग्रेस व द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सहयोग वाले गठबंधन ने लगभग सारे जिले जीत लिए. 21 कौर्पोरेशनों, 138 म्युनिसिपैलिटीज और 489 शहरी पंचायतों की 12,500 सीटें में से दोतिहाई से ज्यादा एम के स्टालिन की झोली में जा गिरीं.

ओडिशा के स्थानीय चुनावों की 829 सीटों में से 74 सीटों पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को जीत मिली, दूसरे नंबर पर 42 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिलीं. भाजपा ने 5 वर्षों पहले 297 सीटों पर कब्जा किया था.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अहंकारी व हर समय लडऩे के मूड वाली राजनीति उत्तर प्रदेश और 4 अन्य विधानसभाओं में ही नहीं पिट रही है, उन राज्यों में भी मार खा रही है जहां भारतीय जनता पार्टी मेहनत से पैर जमा रही थी.

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2014 के बाद सरकार चलाने में बेसिरपैर के फैसले लेने की जो आदत भाजपा सरकार ने अपना ली है वह अब कच्चे रंगों की तरह से घुल गई है और पूरे भारत में वह अब कांग्रेस की जगह पर आ खड़ी हुई है. ओडिशा और पश्चिम बंगाल दोनों में सीटें लगभग बराबर हैं.

पौराणिक ग्रंथों को पढ़पढ़ कर आए पूजापाठी लोगों की सरकार के फैसले पुराणों की कहानियों से प्रेरित होते हैं. अमृत मंथन में पहले दस्युओं को साथ लेना और फिर विष्णु का मोहिनी रूप धारण कर उन से अमृत क्लश छीन लेना या दशरथ का एक अंधे दंपती के पुत्र को मार डालना या कौरवों और पांडवों का भाईयों के झगड़े में बड़ी लड़ाई कर डालना और उसे जीतने के लिए कृष्ण की अगुआई में पांडवों का हर नियम को तोड़ देना आज भगवाई नेताओं की सोच का हिस्सा बना हुआ है.

भारतीय जनता पार्टी के नेता अच्छे वक्ता हैं. प्रवचनों में कुतर्क का जम कर इस्तेमाल होता है. कपोलकल्पित बातें बारबार दोहराई जाती हैं. संस्कृत शब्दों से लपेट कर हर तरह की बेईमानी को भगवान की मरजी घोषित कर दिया जाता है. पिछड़ों को शूद्र और दलितों को अछूत की सोच को कृष्ण की गीता का आदेश मान कर 21वीं सदी में थोपा जा रहा है.

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देश अब इस छलावे से होशियार होने लगा है. उसे मंदिर या हिंदू राष्ट्र नहीं, रोजगार, सही सड़कें, साफसुथरे शहर और संविधान के अनुसार स्वतंत्रता, बराबरी, कानून का राज चाहिए. वर्ष 1996 के बाद कांग्रेस के पतन का कारण यह था कि उस में ब्राह्मणत्व बुरी तरह घुसने लगा था. वर्ष 2004 में सोनिया गांधी ने इस दलदल से पार्टी को निकाला पर 2014 आतेआते ब्राह्मणत्व के खिलाफ उन की लड़ाई धीमी पड़ गई. नरेंद्र मोदी ने उसी के उग्र रूप -हिंदुत्व- का लाभ उठा कर एकछत्र राज की नींव रख दी. अफसोस कि पूजापाठों, साष्टांग प्रवचनों, आरतियों, धर्मों आदि ढकोसलों से किसी देश का उत्थान नहीं होता.

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