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घर पर यूं बनाएं रसीले चावल और टमाटरी राजमा

रसीले चावल

सामग्री :

1 कप पके चावल, 1 कप कटे फल (संतरा, सेब, अनार, कीवी, चीकू, अनन्नास, अमरूद, पपीता और केला), 1/2 कप क्रीम, 1 बड़ा चम्मच चीनी पाउडर, 1 बड़ा चम्मच शहद, 1/4 बड़ा चम्मच इलायची पाउडर.

विधि :

  • फलों को धो कर मनचाहे आकार में काट लें.
  • एक बड़े बाउल में पके चावल लें. दूसरे बाउल में कटे फल, चीनी पाउडर, इलायची पाउडर, शहद व क्रीम एकसाथ मिला लें.
  • अब चावलों को फलों के साथ मिलाएं. तैयार फ्रूटी राइस यानी रसीले चावल पर अनार के दाने या अन्य फल सजा कर लंच बौक्स में दें.

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टमाटरी राजमा

सामग्री :

1/2 कप मैदा, 1/2 कप मक्की का आटा, 2 बड़े चम्मच तेल, 1 कप उबले राजमा, 1 प्याज, 2 टमाटर, 1-2 कली लहसुन, 1 बड़ा चम्मच तेल, 1 हरी मिर्च, 1 बड़ा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि :

  • मैदा, मक्की का आटा व नमक छान लें.
  • इस में तेल डाल कर गूंध लें व एक बड़ी सी पतली रोटी बेल लें.
  • गरम तवे पर इसे दोनों तरफ से सेंक लें.
  • कड़ाही में तेल गरम कर प्याज, लहसुन भूनें व टमाटर डाल कर पकाएं.
  • इस में राजमा स्वादानुसार नमक, हरीमिर्च मिलाएं व आंच से उतारें.
  • आधी रोटी में राजमा की परत लगाएं और बची आधी रोटी से ढक दें व गरम तवे पर दोनों तरफ मक्खन लगा कर सेंकें. बीच से आधा काट कर दें.

सब्जी के त्रिकोण

सामग्री :

1 कप व्हाइट सौस, 2 कप सब्जियां (गाजर, पत्तागोभी, शिमलामिर्च, ब्रोकली, पालक, बींस, प्याज, टमाटर), 1/2 कप मैश पनीर, 1/4 बड़ा चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 1 कप मैदा, 1 बड़ा चम्मच तेल तलने के लिए, नमक स्वादानुसार.

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विधि :

  • मैदे में नमक व2 बडे़ चम्मच तेल डाल कर गूंध लें.
  • ब्रोकली, प्याज, गाजर, पत्तागोभी, बींस और शिमलामिर्च को1 बड़े चम्मच तेल में हलका पका लें. नमक व कालीमिर्च पाउडर मिला लें.
  • अब इस में टमाटर व पनीर को मिला लें.
  • इन सभी पकी सब्जियों को व्हाइट सौस में मिलाएं.
  • मैदे की छोटी गोलियां बनाएं व बेल लें, बीच से आधा काट कर तिकोना मोड़ लें.
  • इस त्रिकोण में सब्जियां भर कर किनारों पर बंद करें व गरम तेल में तल लें.
  • सब्जी के त्रिकोण तैयार हैं.

 

भाजपाई हथकंडे, कांग्रेसी मौन

जहां भारतीय जनता पार्टी और उस का पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिना बड़े नेताओं के हर समय आम जनता के बीच बने रहते हैं, वहां कांग्रेस, आम जनता से दूर, अपने बड़े और बूढ़े नेताओं की खैरखबर में लगी रहती है. पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर, गोवा में हार और उत्तर प्रदेश में नाममात्र की पार्टी रह जाने के बाद मातमपुरसी के लिए कांग्रेस की जो बैठक हुई उस में नेताओं ने अपने ख़याल न रखे जाने की शिकायत ज्यादा की, पार्टी के प्रभावी कार्यक्रमों की कमी की कम.

आम जनता को एक राजनीतिक दल की जरूरत इसलिए होती है कि देश का काम सुचारु रूप से चल सके और सरकार हर कोने पर उसे सहायता करती दिखाई दे. पिछले 40-50 सालों में कांग्रेस ने राज किया पर कभी भी जनता के साथ चलने का काम नहीं किया. चुनाव जीते तो इसलिए कि उस के पास कुछ इतिहास पुरुष थे जो कांग्रेस की पूंजी थे पर जैसेजैसे वे इतिहास पुरुष किताबों की कब्रों में दफन होते गए, उन ‘कंकालों’ की जगह म्यूजियमों में रह गई, चुनावी रणक्षेत्रों में नहीं.

भारतीय जनता पार्टी ने पौराणिक पुरुषस्त्री खोज कर निकाले और इस के साथ उन को पूजापाठ, सुखी जीवन, भविष्य और जीने की कला से जोड़ दिया गया. भाजपा के पास लाखों पुजारी हैं जो बिना पैसे लिए काम करते हैं. उन्हें पैसा तो भक्त अपनेआप देते हैं. उधर कांग्रेसी नेता कानूनों के सहारे जनता पर हावी होते चले गए. जनता को कांग्रेस के नेताओं की जरूरत कांग्रेस सरकार के बनाए व बुने मकडज़ाल से निकालने के लिए होती थी. कांग्रेस ने अपने शासन के दौरान सैकड़ों कानून बनवाए जिन्होंने जनता का गला पकड़ रखा है और नेता अगर कुछ काम करते थे तो सिर्फ अपने कुछ चहेतों को इन जाल से निकालने का करते थे.

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आज भी कांग्रेस समझ नहीं पा रही है कि उस की दुर्गति नेताओं की अवहेलना से हुई है या जनता को भूल जाने से. कांग्रेस आज भी भाजपा के बाद सब से बड़ी पार्टी है पर उस का एजेंडा क्या है, यह सवाल उस के खुद के लिए मुंहबाए खड़ा है. सोनिया गांधी, राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को सिरमाथे पर रखना तो उद्देश्य नहीं हो सकता. उत्तर प्रदेश में दिए नारे ‘लडक़ी हूं, लड़ सकती हूं’ का मतलब कुछ होता अगर कांग्रेस राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तमिलनाडू, जहां सत्ता में है या भागीदार है, में इस प्रोग्राम को लागू करती या करवा पाती.

भाजपा इस के विपरीत हर एकादशी, अमावस्थ्या, पूर्णिमा, दशमी, चौदस… यानी लगभग हर रोज कुछ न कुछ तमाशा अपने मंदिरों में कराती रहती है. ‘जय बम बोले’, ‘जय श्री राम’, ‘जय माता दी’ आदि नारों के साथ ‘जय भाजपा’ अपनेआप निकलता है.

कांग्रेस पहले समाज का परिवर्तन कर रही थी. आज भाजपा उस के परिवर्तन पर सीमेंट का लेप लगा रही है. और कांग्रेस चुप है. उसे कोई चिंता नहीं. वह विरोध नहीं कर रही कि दिए गए आरक्षण को खत्म किया जा रहा है, औरतों को संस्कृति के नाम पर पूजापाठी बनाया जा रहा है, जनता के टैक्स का पैसा भगवा सरकार द्वारा मंदिरों, घाटों और आरतियों में फूंका जा रहा है.

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कांग्रेस में चाहे ऊंची जातियों के नेता सदा भरे रहे पर उन में से काफी उदार थे जो संवैधानिक मूल्यों को समझते थे. आज उन की दूसरीतीसरी पीढ़ी समाज से कट गई है. वह ???……??? के दंभ में गरीबों से बहुत दूर हो गई है. नाक पर फुनैल रख कर चुनाव से मात्र 10 दिनों पहले गंदी गलियों की पदयात्रा से जीत नहीं मिलती. जीत तो उन पुजारियों से मिलती है जो अछूतों के घरों में भी जाते रहते हैं और दक्षिणा में उन से पैसा भी बनाते हैं और वोट भी.

कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने ऐसा कोई फैसला नहीं लिया कि यह आम गरीब, सताए जाने वालों की पार्टी है और रहेगी. कमेटी को तो गांधी परिवार को कोसने के अलावा कुछ नहीं मिला.

शक: भाग 2- क्या शादीशुदा रेखा किसी और से प्रेम करती थी?

कई हफ्तों तक राकेश ने रेखा की गतिविधियों पर सूक्ष्म नजर रखी, मन ही मन पड़ताल की, उस की अलमारी टटोली, पर ऐसा कोई सुबूत हाथ नहीं लगा जिसे वह रेखा के सामने रख देता. आखिर एक रात को खाना खाते हुए राकेश ने पूछा, ‘‘यह राजीव कौन है?’’

‘‘मेरे साथ बैंक में काम करता है,’’ रेखा ने जवाब दिया.

‘‘तुम इसे कब से जानती हो?’’ राकेश ने रोटी का टुकड़ा प्लेट में ही रख दिया.

‘‘इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हो?’’ रेखा ने पति की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘इसलिए कि आजकल यह अकसर तुम्हारे साथ दिखाई देता है,’’ राकेश ने तनिक तेज स्वर में कहा.

‘‘हम बैंककर्मी 8-10 घंटे साथसाथ काम करते हैं. जाहिर है, कभी चायकौफी भी साथ बैठ कर पी लेते हैं,’’ रेखा ने ठंडे स्वर में कहा.

राकेश खाना खाते हुए सोचने लगा कि दफ्तर में सहयोगियों का आपस में हंसनाबोलना, साथसाथ चाय पीना, लंच करना तो चलता ही रहता है, इस का गलत मतलब नहीं निकालना चाहिए और गृहस्थी की तो नींव ही विश्वास पर टिकी है. उसे रेखा पर शक नहीं करना चाहिए. आखिर वह घर और दफ्तर दोनों की जिम्मेदारी कितनी कुशलता से निभाती है.

राकेश ने अपनी शादी से पहले ही यह तय कर लिया था कि वह अपने अहं को कभी बैडरूम में नहीं ले जाएगा. टूटने की हद तक बात को बढ़ा देना किसी भी रिश्ते के लिए नुकसानदेह होता है और वैवाहिक संबंधों की तो नींव ही सैक्स पर आधारित है. सैक्स उतना ही जरूरी है जितना कि पेड़पौधे को पनपने के लिए खादपानी जरूरी है. सो, राकेश ने रेखा के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘चलो, सब सोते हैं.’’

रेखा भी बिना किसी विरोध के तुरंत मोनू को गोदी में उठा कर बैडरूम की तरफ बढ़ गई.

सुबह जब राकेश की आंख खुली तो रेखा कमरे में नहीं थी.

राकेश बाथरूम से फारिग हो कर जब ड्राइंगरूम में आया तो देखा, रेखा धीरेधीरे किसी से फोन पर बात कर रही थी. उस के बातचीत का स्वर इतना धीमा था कि राकेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था. राकेश को देखते ही रेखा ने फोन काट दिया और बोली, ‘‘अरे, आप उठ गए, मैं तो कौफी के लिए आप का इंतजार कर रही थी.’’

रेखा रसोई की तरफ चली गई और राकेश आरामकुरसी पर बैठ कर अखबार की खबरें देखने लगा. कुछ ही क्षणों बाद रेखा ने राकेश की तरफ कप बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह लो, कौफी.’’

राकेश को कौफी का कप दे कर रेखा अपने कमरे की तरफ बढ़ गई. राकेश ने पत्नी से पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

रेखा ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘रेखा, तुम ने मेरी बात का उत्तर नहीं दिया, यह सुबहसुबह किस का फोन था?’’ राकेश ने कमरे में आते हुए पूछा.

‘‘मेरे बैंक की एक महिला कर्मचारी का फोन था. आज वह बैंक नहीं आएगी, यही बताने के लिए उस ने फोन किया था,’’ रेखा ने कहा.

‘‘पर तुम इतनी उखड़ीउखड़ी क्यों हो?’’ राकेश ने पत्नी की तरफ ध्यानपूर्वक देखते हुए पूछा.

‘‘तुम मेरे दफ्तर के तनाव को नहीं सम?ा सकते,’’ रेखा ने शांत स्वर में जवाब दिया.

‘‘दफ्तर में कोई तनाव है तो उसे कहो, मिलजुल कर ही घरबाहर की समस्याओं से निबटा जा सकता है,’’ राकेश ने पत्नी के पास खड़े होते हुए कहा.

रेखा शून्य में ताकती रही, कुछ बोली नहीं. फिर अपने दैनिक कार्यों को निबटाने में लग गई.

राकेश ने घड़ी देखी और वह जल्दी से बाथरूम में घुस गया. सुबह का समय कामकाजी दंपतियों के लिए व्यस्त होता है.

धीरेधीरे एक हफ्ता बीत गया. इस बीच राकेश ने रेखा की मनपसंद फिल्म के टिकट ला कर उसे अचानक चौंका दिया और एक शाम उस की मनपसंद का खाना भी उसे होटल में खिलाया. वह  दांपत्य में आई एकरसता को तोड़ देने में विश्वास करता था. राकेश ने एकएक ईंट जोड़ कर अपनी गृहस्थी की इमारत खड़ी की थी, कभी पत्नी का दिल न दुखाया था और न ही किसी सुखसुविधा की कमी होने दी थी.

एक दिन राकेश गुस्से से भरा हुआ दफ्तर से लौटा और आते ही रेखा से बोला, ‘‘यह राजीव तुम्हारे साथ कालेज में पढ़ता था?’’

‘‘हां, कैरम और बैडमिंटन में वह मेरा पार्टनर होता था. वह मेरा अच्छा दोस्त था,’’ रेखा ने निर्विकार भाव से कहा.

‘‘सिर्फ अच्छा दोस्त…’’ अर्थपूर्ण नजरों से रेखा को घूरते हुए राकेश बोला, ‘‘और आजकल तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी?’’

‘‘खिचड़ी, कैसी खिचड़ी? यह महज एक इत्तफाक है कि शादी के 3 वर्षों बाद वह अचानक उसी बैंक में तबादला हो कर आ गया जहां मैं काम करती हूं. बस और कुछ नहीं,’’ रेखा ने संयत स्वर में जवाब दिया.

‘‘तुम जानती हो मैं उसे नापसंद करता हूं,’’ राकेश ने कहा.

‘‘यह जरूरी तो नहीं कि तुम मेरे सभी बैंककर्मियों को पसंद करो,’’ रेखा ने रूखे स्वर में कहा.

‘‘रे…खा…’’ राकेश चीखा.

‘‘चीखो मत, मैं तुम्हारी पत्नी हूं, कोई निर्जीव किताब नहीं हूं. राकेश, आज मु?ो इस बात का गहरा अफसोस हो रहा है कि मैं तुम्हारी कल्पना की पोषण मूर्ति नहीं बन सकी,’’ रेखा का स्वर शांत था.

‘‘पहेलियां मत बुझाओ,’’ राकेश बोला, ‘‘जो कहना चाहती हो, साफसाफ कहो.’’

‘‘सबकुछ साफ है, तुम अपने गुस्से के कारण साफ नहीं देख पा रहे हो.’’

दोनों कुछ देर चुप बैठे रहे, फिर रेखा उठी और अपने घरेलू काम में व्यस्त हो गई.

कई दिन ठीक से गुजर गए. एक शाम राकेश दफ्तर से लौटा तो रेखा घर पर नहीं थी. मोनू घर की नौकरानी के साथ था. राकेश ने नौकरानी से पूछा, ‘‘मोनू ने दूध पिया?’’

‘‘नहीं साहब, मोनू मेरे हाथ से आज दूध ही नहीं पी रहा है,’’ विमला ने दूध से भरी बोतल उठा कर दिखाते हुए कहा.

राकेश ने मोनू को गोद में उठा लिया और विमला के हाथ से दूध की बोतल ले कर मोनू को दूध पिलाने लगा. अपने पिता की गोद में लेटा मोनू खुश था और बालसुलभ चंचलता के साथ दूध पी रहा था. राकेश ने घड़ी पर नजर डाली और सोचने लगा, अब तक तो रेखा को घर पहुंच जाना चाहिए. रोज तो वह इस समय तक घर आ जाती है. तभी फोन की घंटी बजी. राकेश ने रिसीवर उठाया, उधर से दीदी की आवाज आई, ‘‘भैया, रेखा घर पहुंच गई?’’

‘‘दीदी, क्या रेखा तुम्हारे पास गई थी?’’ राकेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘हां, उसे मैं ने बुलाया था. यहां से आधा घंटा पहले गई है, पहुंचती ही होगी,’’ कह कर उधर से फोन कट गया.

अपनी दीदी का फोन सुन कर राकेश का गुस्सा शांत हो गया और वह चिंता में डूब गया. दीदी ने रेखा को क्यों बुलाया था और रेखा भी उसे बताए बगैर दीदी के पास चली गई. आखिर रेखा के मन में क्या उधेड़बुन चल

रही है, क्या राजीव को ले कर कोई समस्या है?

तभी रेखा ने घर में प्रवेश किया, वह बेहद थकी हुई और तनाव में थी. उस ने आते ही अलमारी खोल कर उस में अपना पर्स टांगा और गाउन उठा कर बाथरूम में घुस गई.

रेखा नहाधो कर निकलती सीधी रसोई में पहुंची. उस के सधे हाथ जल्दीजल्दी रात के खाने का प्रबंध करने लगे. राकेश ने कुछ देर इंतजार किया कि रेखा उसे खुद ही दीदी के घर जाने का कारण बता देगी, परंतु वह चुप थी.

राकेश ने रसेई में आ कर पूछा, ‘‘आज तुम दीदी के यहां गई थीं?’’

रेखा ने आश्चर्य से पति की तरफ देखा क्योंकि उसे यह उम्मीद नहीं थी कि दीदी के घर जाने की बात राकेश को मालूम हो जाएगी, पर राकेश को यह कैसे पता चला कि वह दीदी के यहां गई थी? रेखा ने स्थिति पर विचार करते हुए धीरे से कहा, ‘‘हां.’’

‘‘दीदी के यहां तुम क्यों गई थीं?’’

‘‘मिलने,’’ गैस पर दाल चढ़ाते हुए रेखा बोली.

‘‘मु?ो बिना बताए दीदी के यहां जाने का उद्देश्य क्या है?’’ राकेश अब परेशान हो गया था.

‘‘अगर दीदी फोन कर के यह न बतातीं कि तुम वहां गई थीं तो मु?ो पता भी नहीं चलता.’’

‘‘तुम्हें दीदी ने बताया है?’’ रेखा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘आज तक जो तुम मु?ा से छिपाती आ रही हो, वह अब तुम्हें सचसच बताना होगा, रेखा,’’ राकेश ने सख्त स्वर में कहा.

‘‘तुम मु?ा पर इतना शक करने लगे हो कि अब अपमान करने पर उतर आए,’’ कहते हुए रेखा फफकफफक कर रो पड़ी.

आखिरी मुलाकात: भाग 3

Writer- Shivi Goswami

मैं बस फोन को देखे जा रहा था और नीलेश मुझे देखे जा रहा था. उस का मेरे प्यार को स्वीकार करना जितना खूबसूरत सपने की तरह था, उतना ही आज उस का यह बोलना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. मैं चाहता था कि दोनों बातों में से सिर्फ एक ख्वाब बन जाए, लेकिन दोनों ही हकीकत थीं.

आज इस बात को पूरे 3 साल हो गए. उस दिन के बाद मैं ने कभी सुमेधा को न तो फोन किया और न ही उस ने मेरा हाल जानने की कोशिश की. जिस दिन उस की शादी थी उसी दिन मुझे दिल्ली की एक मल्टीनैशनल कंपनी से इस नौकरी का औफर आया था. यहां की सैलरी से दोगुनी सैलरी और एक फ्लैट. सब कुछ ठीक ही नहीं बल्कि एकदम परफैक्ट. आज जो मेरे पास है अगर वह मेरे पास 3 साल पहले होता तो शायद आज सुमेधा मिसेज समीर होती.

वक्त बदल गया और वक्त के साथ लोग भी. आज मैं जिस मुकाम पर पहुंच गया हूं शायद उस समय इन सब चीजों की कल्पना उस ने कभी की ही नहीं होगी. उस वक्त मैं सिर्फ समीर था लेकिन आज एक मल्टीनैशनल कंपनी का जनरल मैनेजर. आज मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरी सफलता को बांटने के लिए वह नहीं है जिस के लिए शायद मैं यह सब करना चाहता था.

अचानक मेरे मोबाइल की बजी. घंटी ने मुझे मेरी यादों से बाहर निकाला.

नीलेश का फोन था. सब कुछ बदल जाने के बाद भी मेरी और नीलेश की दोस्ती नहीं बदली थी. शायद कुछ रिश्ते सच में सच्चे और अच्छे होते हैं.

‘‘कब तक पहुंचेगा?’’ नीलेश ने पूछा.

‘‘निकलने वाला हूं बस,’’ मैं ने नीलेश से कहा.

‘‘जल्दी निकल यार,’’ कह कर नीलेश ने फोन रख दिया.

नीलेश की शादी है आज. शादी दिल्ली में ही हो रही थी. मुझे सीधे शादी में ही शरीक होना था. अपने सब से अच्छे दोस्त की शादी में न जाने का कोई बहाना होता भी तो भी मैं उस को बना नहीं सकता था.

मैं फटाफट तैयार हुआ. अपनी कार निकाली और चल दिया. वहां पहुंचा तो चारों तरफ फूलों की भीनीभीनी खुशबू आ रही थी. नीलेश बहुत स्मार्ट लग रहा था. मैं ने उस की तरफ फूलों का गुलदस्ता बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारी नई जिंदगी की शुरुआत है और मेरी दिल से शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं.’’

नीलेश मेरे गले लग गया. और लोगों को भी उसे बधाइयां देनी थीं, इसलिए मैं स्टेज से नीचे उतर गया. उतर कर जैसे ही मैं पीछे मुड़ा तो देखा कि लाल साड़ी में एक महिला मेरे पीछे खड़ी थी. उस के साथ उस का पति और बेटा भी था.

वह कोई और नहीं सुमेधा थी, जो मेरी ही तरह अपने दोस्त की शादी में शामिल होने आई थी. मुझे देख कर वह चौंक गई. वह मुझ से कुछ कहती, इस से पहले ही मेरी पुरानी कंपनी के सर ने मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वैल डन समीर. मुझे तुम पर बहुत गर्व है. थोड़े से ही समय में तुम ने बहुत सफलता हासिल कर ली है. मैं सच में बहुत खुश हूं तुम्हारे लिए.’’

मैं बस हां में सिर हिला रहा था और जरूरत पड़ने पर ही जवाब दे रहा था. मेरा दिमाग इस वक्त कहीं और था.

सुमेधा अपने पति के साथ खड़ी थी. उस का पति एक बिजनैसमैन था, लेकिन उस की कंपनी इतनी बड़ी नहीं थी. आज मेरा स्टेटस उस से ज्यादा था.

यह मैं क्या सोच रहा हूं? मेरी सोच इतनी गलत कब से हो गई? मुझे किसी की व्यक्तिगत और व्यावसायिक जिंदगी से कोई मतलब नहीं होना चाहिए. मेरा दम घुट सा रहा था. अब इस से ज्यादा मैं वहां नहीं रुक सकता था. मैं जैसे ही बाहर जाने लगा सुमेधा ने पीछे से मुझे आवाज लगाई.

‘‘समीर…’’

उस के मुंह से अपना नाम सुनते ही मन में आया कि उस से सारे सवालों के जवाब मांगूं. पूछूं उस से कि जब प्यार किया था तो विश्वास क्यों नहीं किया? सब कुछ एकएक कर के उस की आवाज से मेरी आंखों के सामने आ गया.

लेकिन अब वह पहले वाली सुमेधा नहीं थी. अब वह मिसेज सुमेधा थी. मुझे उस का सरनेम तो क्या उस के पति का नाम भी मालूम नहीं था और मुझे कोई दिलचस्पी भी नहीं थी ये सब जानने की. न मैं उस का हाल जानना चाहता था और न ही अपना बताना.

मैं ने पलट कर उस की आंखों में आखें डाल कर कहा, ‘‘क्या मैं आप को जानता हूं?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखती रही. अगर मैं पहले वाला समीर नहीं था तो वह भी पहले वाली सुमेधा नहीं रही थी.

शायद मेरा यही सवाल हमारी आखिरी मुलाकात का जवाब था. उस की चुप्पी से मुझे मेरा जवाब मिल गया और मैं वहां से चल दिया.

कार्तिक-नायरा की तरह सगाई से पहले छाये अभिमन्यू-अक्षरा

स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में  अक्षरा और अभिमन्यु की शादी का ट्रैक चल रहा है.  दोनों की जल्द ही सगाई होने वाली है. अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई की तैयारी खूब धूम-धाम से चल रही है.  ऐसे में दोनों की सगाई से जुड़ी कुछ फोटोज जमकर वायरल हो रही है.

इन फोटोज को देखकर आप कह सकते हैं कि अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई, नायरा और कार्तिक की सगाई से भी ज्यादा रॉयल होने वाली है. जी हां, आइए दिखाते हैं आपको सगाई की फोटोज.

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इन फोटोज में अक्षरा ब्लू ड्रेस में नजर आई तो वहीं अभिमन्यु भी उससे ट्विनिंग करता दिखाई दिया. अक्षरा और अभिमन्यु की केमिस्ट्री फिर से सोशल मीडिया पर छा गई है. सगाई के गेटअप में दोनों की जोड़ी शानदार दिखाई दे रही है.

 

अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई नायरा और कार्तिक की सगाई की तरह ही शानदार अंदाज में होने वाली है. ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ का पूरा परिवार इस मौके पर एक साथ आने वाला है.

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शो में दिखाया गया कि आरोही की कार से अभिमन्यु की मां मंजरी का एक्सीडेंट हो गया था. तो वही अभिमन्यु, आनंद और महिमा मिलकर मंजरी की जान बचा लेते हैं, लेकिन दूसरी ओर अभि पुलिस से जल्दी से जल्दी अपनी जांच करने के लिए कहता है.

 

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मंजरी की गंभीर हालत को देखते हुए अभिमन्यु और अक्षरा अपनी शादी टालने का फैसला लेते हैं। वे इस बात को पूरे परिवार के सामने भी कहते हैं. जहां एक तरफ बिरला परिवार राजी हो जाता है तो वहीं मिमी कहती हैं कि यह शादी नहीं टलनी चाहिए. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अभिमन्यू और अक्षरा की शादी के दौरान क्या-क्या परेशानी आती है?

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क्या बंद हो सकता है कपिल शर्मा का शो?

मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा के शो को दर्शक काफी पसंद करते हैं. लेकिन  अब फैंस के लिए बुरी खबर आ रही है कि यह शो जल्द बंद होने वाला है. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

दरअसल  कुछ दिन पहले ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) फिल्म के प्रमोशन से जुड़ा कपिल शर्मा का विवाद सामने आया था. लेकिन अब खबर आ रही है कि ‘द कपिल शर्मा शो’ (The Kapil Sharma Show) जल्द ही ऑफ एयर हो सकता है.

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बता दें कि हाल ही में ये हिंट कपिल शर्मा के एक पोस्ट से मिली. जिसमें उन्होंने कनाडा टूर पर जाने का ऐलान किया था. इसके बाद से शो के बंद होने की खबरें तेजी से वायरल हो रही है. कपिल शर्मा ने कुछ दिन पहले ही सोशल मीडिया पर कनाडा टूर को लेकर एक पोस्ट किया था.

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कपिल ने इस पोस्ट को शेयर करते हुए लिखा था, साल 2022 में अपने यूएस-कनाडा टूर के बारे में घोषणा करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. जल्द ही आप लोगों से मिलना होगा.

 

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इस पोस्ट के आने के बाद शो के ऑफ एयर होने की खबरें आ रही है. हालांकि कपिल शर्मा का शो आधिकारिक तौर पर बंद होने का ऐलान नहीं किया गया है.

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मीठी छुरी- भाग 2: कौन थी चंचला?

Writer- Reeta Kumari

पूरी तरह टूट चुके नवीन भैया देर तक ड्राइंगरूम के एक कोने में सुबकसुबक कर रोते रहे थे. उन का तो आत्मविश्वास के साथ जैसे स्वाभिमान भी खत्म हो रहा था. दूसरे ही दिन नौकरी की तलाश में जाने के लिए उन्होंने बाबूजी से ही रुपए मंगवाए थे. भाई की दुर्दशा से आहत बड़े भैया ने दूसरा कोई रास्ता न देख समझाबुझा कर उन का दाखिला ला कालेज में करवा दिया.

नवीन भैया के ऐसे कठिन समय में उन का साथ देने के बदले चंचला भाभी मां और बाबूजी के पास बैठी उन्हें कोसती रहतीं और आंसू बहाती रहतीं जिस से उन लोगों की पूरी सहानुभूति बहू के साथ होती चली गई और नवीन भैया के लिए उन के अंदर गरम लावे की तरह उबलता गुस्सा ही बचा रह गया था.

क्षणिक आवेश में लिए गए जीवन के एक गलत फैसले ने नवीन भैया को कहां से कहां पहुंचा दिया था. विपरीत परिस्थितियों के शिकार नवीन भैया के मन की स्थिति समझने के बदले जबतब उन के जन्मदाता बाबूजी ही उन के विरुद्ध कुछ न कुछ बोलते रहते. वे अपनी सारी सहानुभूति और वात्सल्य  चंचला भाभी पर न्योछावर करते और अपनी सारी नफरत नवीन भैया पर उड़ेलते.

चंचला भाभी ने अपनी मीठी जबान और सेवाभाव से सासससुर को अपने हिसाब से लट्टू की तरह नचाना शुरू कर दिया था. वे जो चाहतीं, जैसा चाहतीं, मांबाबूजी वैसा ही करते. नवीन भैया वकालत पास कर कोर्ट जाने तो लगे पर उन की वकालत ढंग से चल नहीं पा रही थी. पैसों की तंगी हमेशा बनी रहती.

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इस दौरान उन के 2 लड़के भी हो गए अंश और अंकित. शुरू से ही बड़ी होशियारी से चंचला भाभी अपने दोनों बच्चों को नवीन भैया से दूर अपने अनुशासन में रखतीं. बातबात में जहर उगल कर बच्चों के मन में पिता के प्रति उन्होंने इतना जहर भर दिया था कि अपने पिता की अवज्ञा करना उन के दोनों बेटों के लिए शान की बात थी. घर के बड़े ही जब घर के किसी सदस्य की उपेक्षा करने लगते हैं तो क्या नौकर, क्या बच्चे, कोई भी उसे जलील करने से नहीं चूकता.

अंश और अंकित पूरी तरह बाबूजी के संरक्षण में पलबढ़ रहे थे पर उन का रिमोट कंट्रोल हमेशा चंचला भाभी के पास रहता. नवीन भैया तो अपने बच्चों के लिए भी कोई फैसला लेने से वंचित हो गए थे. धीरेधीरे उन के अंदर भी एक विरक्ति सी उत्पन्न होने लगी थी, अब वे देर रात तक यहांवहां घूमते रहते. घर आते बस खाने और सोने के लिए.

घर के लोग चंचला भाभी की चाहे जितनी बड़ाई करें पर मैं जब भी उन के स्वभाव का विश्लेषण करती, मुझे लगता कुछ है जो सामान्य नहीं है. चंचला भाभी की जरूरत से ज्यादा फर्ज निभाने का उत्साह मेरे मन में संशय भरता. मैं अकसर मां से कहती, ‘‘मां, ज्यादा मिठास की आदत मत डालो, कहीं तुम्हें डायबिटीज न हो जाए.’’

मेरी बातें सुनते ही बड़ों की आलोचना करने के लिए मां दस नसीहतें सुना देतीं.

यह चंचला भाभी के मीठे वचनों का ही असर था जो मयंक भैया अंश और अंकित को भी अपने तीनों बच्चों में शामिल कर अपने बच्चों की तरह पढ़ातेलिखाते और उन की सारी जरूरतों को पूरा करते. पर्वत्योहार में जैसी साड़ी भैया भाभी के लिए खरीदते वैसी ही साड़ी चंचला भाभी के लिए भी खरीदते. वैसे भी मां की मयंक भैया को सख्त हिदायत थी कि कपड़ा हो या और कोई दूसरी वस्तु, दोनों बहुओं के लिए एक समान होनी चाहिए. भैया भी मां की इस बात का मान रखते.

वैसे चंचला भाभी भी कुछ कम नहीं थीं, जबतब बड़ी भाभी के कीमती सामान पर भी मीठी छुरी चलाती रहतीं. कभी कहतीं, ‘‘हाय भाभी, कितने सुंदर कर्णफूल आप ने बनवाए हैं. इन पर तो मेरी पसंदीदा मीनाकारी है. मैं तो इन के कारण लाचार हूं, इन्होंने इतनी छोटीछोटी चीजों को भी मेरे लिए दुर्लभ बना दिया है.’’

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झट बड़ी भाभी अपना बड़प्पन दिखातीं, ‘‘अरे नहीं, चंचला, इतना मायूस मत हो. तू इन्हें रख ले. मैं अपने लिए दूसरे बनवा लूंगी.’’

पहले वे मना करतीं, ‘‘नहींनहीं, भाभी, मैं भला इन्हें कैसे ले सकती हूं. ये आप ने अपने लिए बनवाए हैं.’’

बड़ी भाभी जब जिद कर उन्हें थमा ही देतीं तब बोलतीं, ‘‘मैं खुश हूं कि मुझे आप जैसी जेठानी मिलीं. भला इस दुनिया में कितने लोग हैं जिन के दिल आप के जैसे सोने के हैं. आप मुझे छोटी बहन मानती हैं तो पहन ही लूंगी.’’

चंचला भाभी की तारीफ सुन कर बड़ी भाभी फूल कर कुप्पा हो जातीं.

सुनंदा दी जब भी चेन्नई से आतीं, सब के लिए साडि़यां लातीं. यह सोच कर कि नवीन तो शायद ही चंचला के लिए अच्छी साड़ी ला पाता होगा, सब से पहले चंचला भाभी को ही साड़ी पसंद करने को बोलतीं और चंचला भाभी अकसर 2 साडि़यों के बीच कन्फ्यूज हो जातीं कि कौन सी साड़ी ज्यादा अच्छी है. तब सुनंदा दी इस का हंस कर समाधान निकालतीं, ‘‘तुम दोनों ही साडि़यां रख लो.’’

जितना जादू चंचला भाभी के मधुर वचनों का घर के लोगों पर बढ़ता जा रहा था, उतना ही नवीन भैया अपने घर में  बेगाने होते जा रहे थे.

नवीन भैया की शादी के समय बाबूजी ने छत पर एक कमरा बनवाया था, उसी कमरे में नवीन भैया और चंचला भाभी रहते थे. जब भाभी नीचे का काम खत्म कर सोने जातीं तब सीढि़यों से दरवाजा बंद कर लेतीं.

एक बार देर रात तक पढ़तेपढ़ते मैं बुरी तरह थक कर आंगन में आ बैठी. सामने सीढि़यों का दरवाजा खुला देख, मैं ठंडी हवा  का आनंद उठाने छत पर आ गई. तभी चंचला भाभी की कर्कश और फुफकारती हुई धीमी आवाज सुन जैसे मेरी रीढ़ की हड्डी में एक ठंडी लहर सी दौड़ गई. नवीन भैया को चंचला भाभी किसी बात पर सिर्फ डांट ही नहीं रही थीं, अपशब्द भी बोल रही थीं. फिर धक्कामुक्की की आवाज सुनाई पड़ी. उस के तुरंत बाद ऐसा लगा जैसे कुछ गिरा. मेरा तो यह हाल हो गया था कि काटो तो खून नहीं.

अचानक नवीन भैया दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. कमरे से आती धीमी रोशनी में भी मुझे सबकुछ साफसाफ दिख रहा था. वे बुरी तरह हांफ रहे थे, उन के बाल बिखरे और कपड़े जगहजगह से फटे हुए नजर आ रहे थे. अपने हाथ से रिसते खून को अपनी शर्ट के कोने से साफ करने की कोशिश करते नवीन भैया को देख, मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरा कलेजा चाक कर दिया हो.

मेरी उपस्थिति से अनजान चंचला भाभी ने फटाक से दरवाजा बंद कर लिया और नवीन भैया सीढि़यों की तरफ बढ़े. तभी सीढि़यों पर जलते बल्ब की रोशनी में हम दोनों की आंखें टकराईं. भैया मुझे विवश दृष्टि से देख तेजी से आगे बढ़ गए.

हमेशा से सहनशील रहे नवीन भैया का चेहरा उस समय इतना दयनीय दीख रहा था कि वहां खड़ी मैं हर पल शर्म के बोझ तले दबती जा रही थी. इन्हीं चंचला भाभी की लोग मिसाल अच्छी बहू के रूप में देते हैं जिन्होंने अपने पति को इस कदर प्रताडि़त करने के बाद भी, दुनियाभर में उन पर तरहतरह के आरोप लगा उन को बदनाम कर रखा था. मैं ने किसी से कुछ भी नहीं कहा. परिवार के लोगों पर तो अभी भाभी का जादू छाया हुआ था. मेरी कौन सुनता.

उन्हीं दिनों मयंक भैया का ट्रांसफर रांची हो गया था. संयोग से उसी साल मुझे भी रांची मैडिकल कालेज में दाखिला मिल गया. मैं पटना से रांची आ गई.

मयंक भैया के पटना से हटते ही बाबूजी की चिंता नवीन भैया के परिवार के लिए कुछ ज्यादा बढ़ गई थी. अभी तक बड़े भैया एक परिवार की तरह सब को संभाले हुए थे. घर से बाहर निकलने पर कई तरह के खर्चे बढ़े, फिर भी अंश और अंकित की पढ़ाई का पूरा खर्च भेजते रहे. लेकिन बाबूजी संतुष्ट नहीं थे. वे नवीन भैया के परिवार की निश्चित आय की व्यवस्था करना चाहते थे.

क्या देश में तर्क और तथ्य की जगह नहीं है?

कर्र्नाटक हाईकोर्ट की हिजाब को हटाने की सरकारी जिद को मान लेने का मतलब है कि देश  को अब कट्टरता की ओर लौटना होगा. ङ्क्षहदू कट्टïरवादियों के चलाए जा रहे स्कूलकालेजों में अब खुल कर धर्म का खेल होगा. कनार्टक उच्च न्यायालय का फैसला पढ़ाई और धर्म को अलग करने का नहीं है. विकास का बहाना और उस की आढ़ में असल में एक धर्म का निशाना दूसरे धर्म पर है.

इतिहास गवाह है कि हर धर्म अपने आप में कभी थोड़े से लोगों का रहा है. ईसाइयों को रोमानों ने बुरी तरह कुचला. उस समय के यहूदियों ने ईसाईयों से बहुत बुरा बर्ताव किया. इस्लाम को शुरूआत में तब के दूसरे कबिलाई धर्मों का मुकाबला करना पड़ा. बौध धर्म को ब्राह्मïणों का कहर सहना पड़ा. आज अगर हाईकोर्ट हिजाब के नाम पर ङ्क्षहदू कट्टरपंथियों की बात मान रही है तो यही साबित कर रही है कि इस देश में तर्क और तथ्य की जगह नहीं है.

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हिजाब पहनाना लड़कियों पर एक जबरदस्ती है. इसे किसी तरह अपनी मर्जी नहीं कहा जा सकता पर हर धर्म अपने भक्तों को एक ढांचे में ढ़ाले रखता है. हिजाब के खिलाफ  हाईकोर्ट को फैसला देना होता तो उसे स्कूल और यूनिफौर्म से नहीं जोडऩा था, उसे शिक्षा से जोडऩा था. जब स्कूलकालेजों में सरस्वती पूजाएं हो रही हो, हर तरह के हिंदू धाॢमक त्यौहार मनाए जा रहे हों, गीता पाठ पढ़ाया जा रहा हो, स्कूलोंकालेजों के नाम ङ्क्षहदू देवीदेवताओं के नाम पर रखे जा रहे हों, स्कूल व कालेज के अहाते में मंदिर बन रहे हों तो कोई अदालत पढ़ाई और विकास को हिजाब से कैसे जोड़ सकती हैं.

यह फैसला एकदम से गलत है पर शायद अब इस देश में ऐसा ही चलेगा जब तक हमें समझ नहीं आएगी कि धर्म और विकास एकदूसरे के दुश्मन हैं. कर्नाटक उच्च न्यायालय का कहना कि मुसलिम लड़कियों को हिजाब और आधुनिक विकास के रास्तों में से एक को चुनना होगा सही है पर यह तो हर ङ्क्षहदू लडक़ी पर लागू होना चाहिए. इस में एक तरफ  निर्णय लिया गया है तो वह सही नहीं है.

हमारी पूरी पढ़ाई आज धर्म से भरी हुई है. इतिहास भूगोल ही नहीं, विज्ञान भी अब धर्म की कीचड़ में लिपटा हुआ है. धर्म की दी हुई जाति हमारी पढ़ाई की नींव है. नीची जातियों के स्कूल अलग हैं, पिछड़ी के अलग, ऊंचों के अलग, अमीरों के अलग, गरीबों के अलग, विकास इसे कहते हैं क्या. हाईकोर्ट केवल धाॢमक विकास की बात कर रहा है.

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हिजाब, बुरका, परदा, सिर पर चुन्नी, ङ्क्षबदी, बाल बनाने के तरीके सब धर्म के ठेकेदार तय करते हैं और अब समाज को बांटते हैं. पश्चिमी देशों के भाई कमीज पैंट एक सही पोशाक है और अगर लडक़ेलड़कियों को धर्म से अलग रखना है तो एक जैसे कपड़े और एक जैसे बाल रखने का नियम होना चाहिए. यूनिफौर्म तो उसी तरह की होगी जैसी पुलिस या सेना में होती है. अधपकी यूनिफौर्म को धर्म के अनुसार ढाल कर स्कूलों में थोपना और उस पर हाईकोर्ट की मोहर लगवाना खतरनाक है. पर इस तरह के खतरों से ही यह देश चलता है और तभी गरीब, फटेहाल, बिखरा हुआ, बदबूदार है.

प्रियंका का दांव महिलाओं पर

कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश विधानसभा में महिला कैंडिडेट्स को 40 प्रतिशत सीटें देना बड़े बदलाव वाला कदम है. ये महिलाएं जीतें या न, लेकिन देश की राजनीति में यह कदम महिला नेतृत्व को उभारेगा जरूर.

राजनीति में महिलाओं को मजबूत करने के लिए कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट दिए. कांग्रेस ने 160 महिलाओं को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिए. उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहली बार किसी दल ने महिलाओं को इतनी बड़ी संख्या में टिकट दिए हैं.

दूसरे दलों की महिला नेता भी मानती हैं कि महिला राजनीति की दिशा में यह बड़ा कदम है. समाजवादी पार्टी की महिला नेता पूनम चंद्रा मानती हैं कि प्रियंका गांधी के इस कदम का प्रभाव मौलिक और अत्यंत व्यापक होगा.

कांग्रेस की महिला नेता ममता सक्सेना कहती हैं, ‘‘अब महिलाओं को यह लगने लगा है कि किसी दल में उन के लिए भी जगह है. उन को पिछलग्गू बन कर नहीं रहना पड़ेगा. बड़े नेताओं का रहमोकरम नहीं होगा. कांग्रेस ने घरेलू और समाज के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं को टिकट दिया. मैं खुद हाउसवाइफ हूं. मैं कांग्रेस की राजनीति में हूं. मैं पार्टी के कई पदों की जिम्मेदारी संभाल रही हूं. अब मु झे भी भरोसा है कि हमें भी विधानसभा और लोकसभा के चुनाव लड़ने का मौका मिल सकेगा.’’

लखनऊ जिले की मोहनलालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाली ममता चौधरी कहती हैं, ‘‘अगर प्रियंका गांधी ने विधानसभा चुनाव में 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने का काम न किया होता तो हम जैसी साधारण कार्यकर्ता को विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका न मिलता.’’

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लखनऊ से ही विधानसभा का चुनाव लड़ीं सदफ जफर कहती हैं, ‘‘महिलाएं सालोंसाल राजनीतिक दलों में कार्यकर्ता के रूप में काम करती थीं. इस के बाद भी जब कट देने का नंबर आता था, राजनीतिक दल कोई न कोई बहाना बना कर महिलाओं को पीछे ढकेल देते थे. 40 प्रतिशत टिकट देने के वादे के बाद अब हर महिला को यह भरोसा हो चला है कि उस की मेहनत जाया नहीं होगी. उसे भी विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने का हक मिलेगा.’’

सदफ जफर का नाम नागरिकता कानून के विरोध में होने वाले आंदोलनों में प्रमुखता के साथ उभरा था. पूरे प्रदेश में कांग्रेस ने ऐसी महिलाओं को भी टिकट दिया जो किसी न किसी तरह से समाज द्वारा प्रताडि़त की गई थीं. उन्नाव के बहुचर्चित बलात्कार कांड की शिकार लड़की की मां आशा सिंह को भी टिकट दिया गया. कांग्रेस ने इस के जरिए यह संदेश दिया कि हिंसा की शिकार महिलाओं व उन के परिवार के लोगों को मजबूत किया जाएगा, जिस से वे दबंगों का सामना कर सकें. कांग्रेस ने प्रियंका मौर्य, पल्लवी सिंह और वंदना सिंह को ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान की पोस्टरगर्ल बनाया. टिकट वितरण में हुई दिक्कतों के कारण ये नाराज हो गईं. इन का कद इतना बढ़ गया और इतनी इन की चर्चा हुई कि भाजपा ने इन को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.

उत्तर प्रदेश की राजनीति में महिलाएं

उत्तर प्रदेश में 65 सालों में 336 महिलाएं अब तक विधायक बन चुकी हैं. 1957 में जहां केवल 39 महिलाएं चुनाव लड़ीं और 18 जीती थीं, वहीं 2017 में 482 महिलाएं चुनाव लड़ीं और 42 ने जीत दर्ज की. 2022 के विधानसभा चुनाव में सब से अधिक महिलाओं ने चुनाव लड़ा. कांग्रेस द्वारा 40 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देने के बाद अब महिलाओं को राजनीति भाने लगी है.

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1957 से अब तक 65 सालों में प्रदेश में कुल 336 महिलाएं ही विधानसभा चुनाव जीत पाई हैं. महिलाओं को पीछे रखने में मनुवादी सोच का भी बड़ा हाथ है.

मनुवादी सोच का प्रभाव

मनुस्मृति के अनुसार, एक स्त्री को हर उम्र में पुरुष द्वारा संरक्षण दिए जाने की जरूरत होती है. जब वह लड़की होती है तो उस की रक्षा की जिम्मेदारी उस के पिता के ऊपर होती है. विवाह के बाद पति उस की जिम्मेदारी उठाता है. यदि वह विधवा हो जाए तो उस के पुत्र की जिम्मेदारी होती है कि वह उस की रक्षा करे.

कहने के लिए धर्म महिलाओं को देवी का स्थान देता है. उन की पूजा करता है. जबकि असल बातों में पुरुष कभी भी महिला को बराबरी का हक नहीं देता. महिलाओं को जब राजनीति में आरक्षण दिए जाने की बात होती है तो उस को नजरअंदाज किया जाता है.

इस वजह से मुख्यधारा की राजनीति में महिलाएं अलगथलग पड़ जाती हैं. इस का सीधा असर महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर पड़ता है. संसद और विधानसभा में महिला मुद्दे दरकिनार कर दिए जाते हैं.

पहली बार साल 1974 में संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा और सीटों के आरक्षण की बात चली. 48 साल बीत जाने के बाद भी महिला आरक्षण का मुद्दा जस का तस है.

महिला आरक्षण पर टालमटोल

1993 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतीराज में महिलाओं को 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया. यह व्यवस्था केवल पंचायतों और नगरपालिकाओं तक सीमित रही. 3 वर्षों बाद 1996 में संसद और विधानसभा में महिला आरक्षण दिए जाने के संबंध में महिला आरक्षण विधेयक पहली बार संसद में पेश किया गया. देवगौड़ा सरकार अल्पमत में थी, जिस की वजह से यह विधेयक पास नहीं हो सका. इस का पुरुष नेताओं ने जम कर विरोध किया. साल 1998 में महिला आरक्षण विधेयक दोबारा ‘अटल सरकार’ के समय संसद में पेश हुआ. इस बार भी भारी विरोध के बाद विधेयक पास नहीं हो सका.

साल 2010 में कांग्रेस महिला आरक्षण विधेयक पहली बार राज्यसभा में पास तो हो गया लेकिन लोकसभा में अटक गया. तब से इस की स्थिति यही बनी हुई है. इस से भारत की राजनीति में महिलाओं के प्रवेश का रास्ता कठिन होता जा रहा है. यह विधेयक राज्यसभा से पारित होने के बाद भी तब से लोकसभा में लंबित पड़ा है. पंचायतों में जरूर महिलाओं को 33 फीसदी रिजर्वेशन मिल चुका है.

पुरुषवादी मानसिकता की खामी

भारत की राजनीति में महिलाओं के लिए आरक्षण एक गंभीर मुद्दा है. इस की वजह है सक्रिय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व केवल 12 प्रतिशत होना. देश की आधी आबादी के हिसाब से महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण न भी मिले तो भी कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण तो मिलना ही चाहिए. पंचायतीराज चुनाव में यह अधिकार मिला हुआ है. इस का असर भी दिख रहा है. महिला आरक्षण की राह में तमाम मुश्किलें हैं. इन में सब से बड़ी बाधा पुरुष मानसिकता है.

विधेयक का विरोध करने वाले नेता हालांकि सीधेसीधे ऐसा नहीं कहते हैं लेकिन वे विधेयक में खामियां बताते हुए इस का विरोध करते हैं. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि दलित और ओबीसी महिलाओं के लिए अलग आरक्षण दिया जाना चाहिए. कुछ नेताओं का मानना है कि आरक्षण से केवल शहरी महिलाओं को फायदा होगा.

दुनिया के दूसरे कई देशों में महिला आरक्षण की व्यवस्था चल रही है. इन में बंगलादेश, जरमनी, आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देश तक शामिल हैं. वहां राजनीति में लगभग 40 प्रतिशत महिलाएं हैं. बेल्जियम, मैक्सिको जैसे देशों में भागीदारी लगभग 50 प्रतिशत है. फ्रांस में स्थानीय निकायों से ले कर मुख्य राजनीति में भी महिलाएं काफी ऐक्टिव हैं. पेरिस की लोकल बौडी में महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा हो गया था, जिस पर वहां एतराज उठा था.

सिंदूरी मूर्ति- भाग 2: जाति का बंधन जब आया राघव और रम्या के प्यार के बीच

कंपनी के गेट तक रम्या अपने अप्पा के साथ आई थी. वे वहीं से लौट गए, क्योंकि औफिस में शनिवार के अतिरिक्त अन्य किसी भी दिन आगंतुक का अंदर प्रवेश प्रतिबंधित था. उस का स्वागत करने को कई मित्र गेट पर ही रुके थे. उस ने मुसकरा कर सब का धन्यवाद दिया. राघव एक गुलदस्ता लिए सब से पीछे खड़ा था.

रम्या ने खुद आगे बढ़ कर उस के हाथ से गुलदस्ता लेते हुए कहा, ‘‘शायद तुम इसे मुझे देने के लिए ही लाए हो.’’

एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठा. ‘तुम्हारी यही जिंदादिली तो मिस कर रहे थे हम सब,’ राघव ने मन ही मन सोचा.

रम्या को औफिस आ कर ही पता चला कि आज की लंच पार्टी रम्या की स्वागतपार्टी और राघव की विदाई पार्टी है. दोनों ही सोच में डूबे हुए अपनेअपने कंप्यूटर की स्क्रीन से जूझने लगे.

राघव सोच रहा था कि रम्या की जिंदगी के इस दिन का उसे कितना इंतजार था कि स्वस्थ हो दोबारा औफिस जौइन कर ले. मगर वही दिन उसे रम्या की जिंदगी से दूर भी ले कर जा रहा था.

रम्या सोच रही थी कि जब मैं अस्पताल में थी तो राघव नियम से मुझ से मिलने आता था और कितनी बातें करता था. शुरूशुरू में तो मां को उसी पर शक हो गया था कि यह रोज क्यों आता है? कहीं इसी ने तो हमला नहीं करवाया और अब हीरो बन सेवा करने आता है? और अप्पा को तो मामा पर शक हो गया था, क्योंकि मैं ने मामा से शादी करने को मना कर दिया था और छोेटा मामा तो वैसे भी निकम्मा और बुरी संगत का था. अप्पा को लगा मामा ने ही मुझ से नाराज हो कर हमला करवाया है. जब राघव को मैं ने मामा की शादी के प्रोपोजल के बारे में बताया तो वह हैरान रह गया. उस का कहना था कि उन के यहां मामाभानजी का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है. अगर गलती से भी पैर छू जाए तो भानजी के पैर छू कर माफी मांगते हैं. पर हमारी तरफ तो शादी होना आम बात है. मामा की उम्र अधिक होने पर उन के बेटे से भी शादी कर सकते हैं.

उन दिनों कितनी प्रौब्ल्म्स हो गई थीं घर में… हर किसी को शक की निगाह से देखने लगे थे हम. राघव, मामा, हमारे पड़ोसियों सभी को… अम्मां को भी अस्पताल के पास ही घर किराए पर ले कर रहना पड़ा. आखिर कब तक अस्पताल में रहतीं. 1 महीने बाद अस्पताल छोड़ना पड़ा. मगर लकवाग्रस्त हालत में गांव कैसे जाती? फिजियोथेरैपिस्ट कहां मिलते? राघव ने भी मुझ से ही पूछा था कि अगर वह शनिवार, रविवार को मुझ से मिलने घर आए तो मेरे मातापिता को कोई आपत्ति तो नहीं होगी. अम्मांअप्पा ने अनुमति दे दी. वे भी देखते थे कि दिन भर की मुरझाई मैं शाम को उस की बातों से कैसे खिल जाती हूं, हमारा अंगरेजी का वार्त्तालाप अम्मां की समझ से दूर रहता. मगर मेरे चेहरे की चमक उन्हें समझ आती थी.

मामा ने गुस्से में आना कम कर दिया तो अप्पा का शक और बढ़ गया. वह तो 2 महीने पहले ही पुलिस ने केस सुलझा लिया और हमलावर पकड़ा गया वरना राघव का भी अपने घर जाना मुश्किल हो गया था. मैं ने आखिरी कौल राघव को ही की थी कि मैं स्टेशन पहुंच गई हूं, तुम भी आ जाओ. उस के बाद उस अनजान कौल को रिसीव करने के बीच ही वह हमला हो गया.

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