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कर्ज बना जी का जंजाल- भाग 3: खानदान के 9 लोगों की मौत

बात साल 2009 की है. मुश्ताक सैय्यद रशीद इनामदार और उन की बेगम शाहीन को अब्बास ने गुप्त धन निकाल कर देने का लालच दिया था. इनामदार दंपति अब्बास की चिकनीचुपड़ी बातों के बुने जाल में फंस गए थे. धीरेधीरे गुप्त धन को ले कर उन से लाखों रुपए ऐंठ लिए थे. तांत्रिक अब्बास ने इनामदार दंपति के घर में धन हासिल करवाने के लिए एक पूजा अर्चना करवाई थी.

बताते हैं कि उस वक्त हजरत का हुकुम बोल कर इनामदार को करेले का रस पिलाया था. रस पी कर इनामदार तुरंत बेहोश हो गए थे. उस के बाद तांत्रिक ने उन की पत्नी शाहीन इनामदार को फांसी लगा लेने के आदेश दिए.

अब्बास के आदेश को अल्लाह का हुकुम मान कर शाहीन ने ऐसा ही किया और उस की फांसी लगने से मौत हो गई. बेहोश मुश्ताक जब होश में आए, तब उन की हालत बहुत नाजुक थी. अस्पताल ले जाया गया. कुछ समय में ही उन की भी मौत हो गई. इस मामले में इनामदार की 2 बेटियां बच गई थीं.

उन से मालूम हुआ कि मुश्ताक इनामदार ने भी साहूकारों से पैसे उधार ले रखे थे. जिस की तकलीफ से मुश्ताक इनामदार ने एक आत्महत्या करने की चिट्ठी लिख रखी थी. चिट्ठी में अब्बास के साथ साहूकार का नाम भी दर्ज था. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया था और मामला अदालत में चला गया था. सबूत के अभाव में अब्बास सोलापुर अदालत से छूट गया था.

दोनों ही घटनाओं में एक जैसी बात क्यों

दरअसल, अब्बास ने इनामदार दंपति मामले में तांत्रिक पूजा से पहले ही उन की दोनों बेटियों को एक चिट्ठी दी थी, जिस पर साहूकार का नाम लिखा हुआ था.

अब्बास ने उस के लिए गए कर्ज के बारे में इनामदार से ही लिखवाया था, जिस में इस बात का जिक्र किया था कि उस की आत्महत्या करने जैसी नौबत आ सकती है.

वानमोरे परिवार की खुदकुशी मामले की जांच कर रही पुलिस टीम ने पाया कि सोलापुर की पुरानी घटना और सांगली मिरज के म्हैसल के वानमोरे परिवार की घटना में चिट्ठियों की बातों की समानता है.

म्हैसल के वानमोरे परिवार में कर्जदारों के नामों का ऐसा ही पत्र मिला था, जिस में इस परिवार द्वारा करोड़ों का कर्ज लिए जाने की बात स्पष्ट कही थी.

आश्चर्यजनक बात यह थी कि पोपट और माणिक वानमोरे के घर में जो चिट्ठियां बरामद हुई थीं, उन की लिखावट एक जैसी नजर आ रही थी. फर्क केवल कुछ साहूकारों के नाम का था.

दोनों घरों में अलगअलग जगहों पर चिट्ठियां बरामद हुईं, फिर भी उन की लिखावट और हस्ताक्षर एक जैसे कैसे हो सकते हैं?

इस सवाल पर पुलिस ने अनुमान लगाया कि दोनों चिट्ठियां एक ही व्यक्ति की लिखी हुई थीं. उस के हस्ताक्षरों की जांच करवाने के लिए दोनों चिट्ठियों को पुलिस ने फोरैंसिक लैब में भेज दिया.

जांच में पुलिस ने तमाम पिछली कडि़यों को जोड़ कर देखा. पाया कि मामला आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्याकांड का है.

पुलिस ने अब्बास की गतिविधियों पर नजर रखते हुए उस के संबंध वानमोरे भाइयों से होने के बारे में पता किया.

पता चला कि 3-4 सालों से अब्बास वानमोरे परिवार के लगातार संपर्क में था. अब्बास ने उन्हें भी गुप्त धन निकालने का लालच दिया था.

धीरज सोनावने तांत्रिक अब्बास का सहायक था. वह हमेशा उस के साथ रहता था. जांच में यह भी मालूम हुआ कि गुप्त धन के लालच में वानमोरे परिवार अब्बास को करीब 80 लाख रुपए दे चुका था.

इस के लिए वानमोरे परिवार अपने रिश्तेदारों के साथसाथ साहूकारों से ब्याज पर काफी पैसे ले चुका था. साहूकारों को स्टील प्लांट लगाने के प्रोजैक्ट के बारे में बता रखा था. काफी दिन गुजरने के बाद जब साहूकारों का वह पैसा नहीं लौटाया तो वे लगातार वानमोरे भाइयों पर दबाव बनाए हुए थे.

दूसरी तरफ तंत्रमंत्र के माध्यम से गुप्त धन की उम्मीद में वानमोरे तांत्रिक अब्बास के पीछे लगे हुए थे. तांत्रिक भी उन से मोटा पैसा वसूलना चाहता था.

वानमोरे बंधुओं से लगातार पैसा वापसी की रट से तंग आ कर तांत्रिक अब्बास और सहायक धीरज सुरवसे ने एक रोज नए सिरे से अनुष्ठान की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक ही 19 जून, 2022 को तांत्रिक अब्बास बागबान और धीरज ने बताया कि धन निकलने का वक्त आ गया है. उन्होंने वानमोरे परिवार के हर सदस्य को योजना के मुताबिक काली चाय में जहर मिला कर पिला दिया.

कुछ घंटों बाद धीरेधीरे जहर का असर हुआ और वे मर गए. वे अपनेअपने घरों के कमरे में मृत पाए गए. कोई कमरे में तो कोई हाल में सोफे पर तो कोई किचन में मृत पाया गया.

जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अब्बास महमूद अली बागबान और उस के सहयोगी धीरज सोनावने के खिलाफ आईपीसी की धारा 306, 341, 504 के साथसाथ महाराष्ट्र मनी लेंडिंग (विनियमन) अधिनियम और अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की कई धाराओं के साथ दफा 302 के तहत उन्हें गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया.

उन दोनों में से धीरज को 7 जुलाई, 2022 तक पुलिस हिरासत में भेज दिया गया. जबकि तांत्रिक अब्बास बागबान की छाती में दर्द उठने के कारण उसे इलाज के लिए अस्पताल में भरती करवा दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फ्रैंडशिप- भाग 2: नैना ने अपना चेहरा क्यों छिपा लिया

सागर से मिलने मात्र की कल्पना से ही नैना की भूखप्यास जैसे पंख लगा कर कहीं दूर उड़ जाती थीमन में एक अजीब सी बेचैनी छाई रहती थीमन किसी काम में नहीं लगता थाऐसा लगता थाबससोचते रहोसागर के खयालों में डूबे रहो. और खयालों के भंवर से निकलो व फिर उसी में डूब जाओ. न जाने कैसी प्यास है जो बुझती ही नहीं.

नैनाओ नैनाअब उठो भीकहां  खोई  होखाना नहीं खाओगीचलोजल्दी से आ जाओडिनर टेबल पर सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं,” नैना की आंटी कहती हुई अपने काम में लग गईं.

नैना ने आंटी की आवाज सुनी तो खयालों के घेरे से बाहर निकली. घड़ी की तरफ नजर डाली तो रात के 8 बज रहे थे. इस का मतलब लगभग सारी दोपहर से रात 8 बजे तक वह सोचती रही. उसे सागर की आकर्षक गहरी आंखों  में इतना नहीं डूबना चाहिएसब कामधाम ही भूल जाओ. उसे तो आज नोट्स भी तैयार करना थे पर पूरा शनिवार यों ही बरबाद हो गयायही सब सोचतेसोचते ही डिनर की टेबल पर आई तो देखाखाना आंटीजी लगा चुकी हैंअंकलजी और भाभीभैया डिनर की टेबल पर जम चुके हैं. सभी ने खामोशी से खाना खाया. अंकलजी को खाने के दौरान किसी भी प्रकार की बातचीत करना पसंद नहीं था. उन्हें अनुशासन के खिलाफ किसी का भी जाना पसंद नहीं था. नैना उन के दिवंगत बड़े भाई की इकलौती बेटी थीइसलिए वे उस की पढ़ाईलिखाई का ध्यान रखते थे. नैना के मातापिता की मृत्यु के बाद आंटी ने ही  नैना की देखभाल की. जब नैना 12वीं में पढ़ती थी तभी एक हादसे में नैना के मातापिता दोनों की मृत्यु हो गई थी.

खाना खा कर नैना ने अपने कमरे की राह पकड़ी यह सोच कर कि कुछ पढ़ाई भी कर ली जाएयही सोच कर वह अपने अधूरे नोट्स ले कर बैठ गई. रात के 11  बजे तक वह पढ़ाई में डूबी रही. तभी एक मेसेज की आवाज से उस का ध्यान भंग हुआ. देखातो सागर का मैसेज था कि कल शाम 5 बजे.

उस ने तुरंत जवाब भेज दिया की उसे याद है.

उस के बाद  नैना का मन पढ़ाई में नहीं लगा. सागर के साथ कल बिताने वाले पलों को सोच कर वह रोमांचित हो उठी. एक अजीब  की सुखद अनुभूति उस के मन में होने लगी. कितना अच्छा लगता है सागर के साथ बात करना. लेकिन सागर कम बोलता हैकभीकभी तो उसे चिढ़ होती उस के  कम बोलने पर. वही बोलती रहती है. सागर सिर्फ सुनने का ही काम करता है.  हांहूं के अलावा जवाब नहीं देता. एक ही काम आता है उसेअपनी गहरी नजरों से नैना को देखना. ऐसा लगता है उस की आंखें कहीं भी भीतर तक उतरती जा रही हैं. एक अजीब सी मदहोशी छाने लगती है. कुछ बोलने को शेष नहीं रहता. सागर के खयालों  में डूबतीउतरती नैना कब नींद की आगोश में सिमटती  चली गईउसे पता ही न चला. बादलों की ओट से चांद निकल कर खिड़की से झांकने लगा था. दूधिया चांदनी  बिखरने लगी थी. सितारे फुलझड़ी से लग रहे थे. नैना के माथे पर खिल  रहे थे सपनों के फूलरस बरसा रहा था आसमान.

रविवार की अलसाई हुई सुबह ओस की बूंदों को मोती सा चमकाताइतराता पीला गुलाब सुबह की शोखचंचल हवाओं के झोंकों से झूम रहा था. सूर्य की सुनहरी किरणों का जादू धरती पर बिखर जाना चाहता था. सितार की मीठी ध्वनि पूरे घर में एक अलौकिक सा वातावरण बना रही थी. अगरबत्ती की खुशबू भी घर में चारों ओर बिखर रही थी. मतलबआंटीजी सुबह के अपने सितार के रियाज में व्यस्त हैंअंकलजी स्नान के बाद घर में खुशबू कर रहे हैं. थोड़ी देर और लेटा जा सकता हैआंटीजी रियाज करने के बाद तुरंत ही नैना को उठने का आदेश दे देंगी,’ यह सोच कर नैना ने फिर आंखे बंद कर लीं. खिड़की  से आती हवाओं ने नैना के बिखरे बालों से अठखेलियां शुरू कर दी थींनैना को उठना पड़ा.

 आज तो मौर्निंग वौक पर भी जाना रह गया. घड़ी पर नजर डालीसुबह के साढे 7 बज रहे थे. अगर वह फ्रैश होने के बाद निकलती है तो 8 बज जाएंगेरहने देते हैंयह सोच कर वह किचन की तरफ चल दी. पहले चाय की चुस्कियों के साथ डाक से आई पत्रिकाओं व पत्रों पर नजर डाली जाए.

कुछ पत्रिका देखने के बाद उस ने पत्रों पर भी नजर डाली. पत्रों में ऐसा कुछ विशेष नहीं थावही लेखन की तारीफ या फिर अपनी भावनाएं प्रकट की गई थीं. पत्रों में एक पत्र ने जरूर ध्यान आकर्षित किया- गोवा की जेल से एक कैदी का पत्र था. कैदी का नाम था रितेश कुमार. उस ने कादंबिनी’  में छपी कविता मां’ की तारीफ की थी. बेहद भावुकता में पत्र लिखा गया था. उस पत्र ने नैना के दिल को झकझोर कर रख दिया. वह रितेश को पत्र लिखने  बैठ गई. पत्रों का जवाब देतेदेते ही और कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं को पढ़ने में ही दोपहर गुजर गई.

नैना ने आंटीजी को पहले ही बोल दिया था कि वह सागर के साथ चोखी ढाणी जाएगी. अंकलआंटीजी की स्वीकृति मिल चुकी थी. नैना ने अपने  मनपसंद रंग पिंक और नेवी ब्लू कौम्बिनेशन वाला  सूट चुना. वह जानती थीसागर तड़कभड़क पसंद नहीं करता. बसहलके से काजल से नैना की बोलती आंखें ज्यादा सुंदर लगने लगती हैं. तिलकनगर से  रीगल टाकीज तक टैक्सी से जाने में ज्यादा समय नहीं लगा. नैना की टैक्सी जैसे ही  रीगल टाकीज पहुंची और किराया देने के लिए उस ने पर्स  खोला ही था कि सागर की बाइक टैक्सी के पास आ कर रुकी. बसफिर क्या थाअगले ही पल वह बाइक पर.

सागर बाइक तेज चलाता था. नैना को सागर के विशाल कंधों पर सिर टिका कर बैठने में सुकून मिलता था. बाइक इंदौर की चौड़ी खूबसूरत सड़कों पर दौड़ने लगी.

शाम के आंचल का रंग गहरा होने लगा था. मौसम में हवाओं की  रूमानियत बढ़ने लगी थी. नैना की पलकें मानो बोझिल  सी हो रही थीं. अचानक बाइक रुक गई. नैना मानो सपने से जागी, “क्या हुआ सागर?”

कुछ नहीं,” सागर ने बाइक पर पलट कर नैना से कहा.

तो फिर चलो न,” नैना का अंदाज मासूम था. सागर के घूमते ही नैना को लगासागर की सांसों से मानो हरसिंगार झर रहा हो. उस के दिल में समाता जा रहा हो. नैना. कौफी पीते हैंफिर चलते हैं,” सागर ने कहा.

ठीक है,” कहती हुई नैना सड़क के किनारे की बनी  कौफी शौप के पास खड़ी हो गई. कौफी की चुस्कियों के साथ सागर का साथ नैना को सुकून दे रहा था. पास  कहीं धरा से सोंधी गंध उठ रही थीसितारे धीरेधीरे बादलों की ओट से निकलना चाहते थे और नैना के  नीले आंचल में सिमट जाना चाहते थे.

अचानक नैना की नजरें सागर के चेहरे पर आ गईं. सागर उसे ही देख रहा था. नैना शरमा गई.  सागर की आंखों में दीप जल उठेसपनों के दीप. जब वे चोखी ढाणी पहुंचे तो अंधेरे ने अपने पंख हलके से पसार लिए थे. चोखी ढाणी में हरेक वस्तु में राजस्थानी अंदाज था. छोटेछोटे कौटेज ग्रामीण संस्कृति की झलक पेश कर रहे थेसजावट भी उसी तरह से की गई थी.

एक तरफ बंदर का नाच दिखाया जा रहा था तो दूसरी ओर कठपुतली का खेल चल रहा था. थोड़ीथोड़ी दूरी पर बनी लालटेननुमा बत्तियां जल चुकी थीं जो एक सुंदर सा वातावरण बना रही थीं.

 राजस्थानी नृत्य के लिए चोखी ढाणी के दूसरे कोने पर खुला स्टेज बना थाजहां कालबेलिया नृत्य चल रहा था. नैना सागर को वहीं ले  गई. दोनों नृत्य  देखने में तल्लीन हो गए. उन जैसे अनेक जोड़े अपनी रुचि से अपने मनोरंजन में व्यस्त थे. कई परिवार सहित पिकनिक मनाने आए थे. बच्चों को टीवी चैनलों से दूर इस ग्रामीण अंदाज में मजा आ रहा था. कोई बंदर नाच के लिए जिद कर रहा थाकोई राजस्थानी नृत्य के लिए.

क्या चिराग पासवान को नेता बनना चाहिए था?

रामविलास पासवान के पुत्र को जिस बेइज्जती से दिल्ली के घर से निकाला गया है और उन के पिता की तस्वीरों को बाहर गेट पर पटक दिया गया ताकि पूरी जनता टीवी कैमरों के माध्यमों से देख सके, दलितों को उन की सही औकात बताती है. अगर उत्तर प्रदेश में मायावती डटी रहती है और कितने ही दलित नेता सरकारी चरण चूमते नजर आते हैं तो इसलिए कि उन्हें अपनी औकात के बारे में पैदा होते ही बता दिया जाता है.

रामविलास पासवान ने कभी दलितों के लिए कार्य किया था, उन के हितों के लिए लड़े थे पर जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि इस कौम की जनता अपने हकों के लिए लड़ सकती ही नहीं है. वे भी उसी रास्ते पर चल दिए जिस पर मायावती चलीं और उदित राज चले.

चिराग पासवान ने भारतीय जनता पार्टी ही नहीं, लालूृ यादव की राष्ट्रीय लोकदल का भी साथ न देने का फैसला करा जो उन्हें उन के उन सलाहकारों की देन था जो कौम के बल पर कुछ छोटे लाभों के लालच में आ गए. रामविलास पासवान ने लगातार एक के बाद एक पाॢटयां बदलीं और यह भरोसा ऊंची जातियों को दिला दिया कि दलितों के वोट पाने के लिए उन्हें बराबर के मौके, हक, स्थान आदि देने की जरूरत नहीं, कुछ टुकड़े फेंकने की जरूरत है, बाकी काम वे पाठ पढ़ाने वाले करते रहते हैं जो उन्हें कहते रहते हैं कि उन का जन्म इस कौम में हुआ तो इसलिए कि उन्होंने पिछले जन्मों में पाए किए थे.

रामविलास पासवान या चिराग पासवान या दूसरे सैंकड़ों दलित नेता, अफसर, प्रोफेसर, ङ्क्षचतक, लेखक इस गलतफहमी को दूर करने की जगह अपनी जनता को कुछ टुकड़े दिलाने में लगे रहते हैं. उसी चक्कर में उन्हें अपने लिए कुछ ज्यादा मिल जाता है जिस से वे खुश रहत हैं. रामनिवास पासवान पिछली कई सरकारों में लगातार पाॢटयां बदल कर मंत्री बने रहे और उन का दलितों के लिए काम कब का धुल गया और उस का खामियाजा उस बेइज्जती से हुआ जिस से उन के पुत्र चिराग पासवान के दिल्ली के सरकारी बंगले से निकालने पर हुआ.

वैसे चिराग पासवान को कब का यह बंगला छोड़ देना चाहिए था. उन्हें नेता बनना चाहिए था जो कुर्बानी कर सके. सुख भोगने के लिए नहीं, एक सताई हुए कौम को आवाज देने और उस की खुशियों के लिए. लोकजनशक्ति पार्टी आज बिखर गई है सभी नेता रामविास पासवान की नकल कर के जहां शहद है वहां चले गए हैं. दलित वोटर साबित करते रहते है कि 2 वक्त की रोटी और शराब की बोतल से उन के वोट वह खरीद सकता है जो बाद में उन पर डंडे बरसाए. उन को लगातार धर्मभीरू भी बनाया जा रहा है और रामविलास पासवान हों या उदित राज भक्तों का साथ दे कर साबित करते रहते हैं कि पूजापाठ से ही उन का कल सुधरेगा.

जनपथ पर बना दिल्ली का उनका सरकारी बंगला बड़ा था पर इतना बड़ा भी नहीं कि सरकार के लिए आफत होता पर खाली करा कर जता दिया गया है कि दलितों के नेता चिराग पासवान की औकात क्या है. हर दलित को हर रोज यह औकात किसी न किसी तरह जता ही जाती है.

महंगाई: भाजपा को गुस्सा क्यों आता है?

महंगाई विगत सात- आठ सालों में बढ़ती ही चली जा रही है. जिस महंगाई को प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने फिल्म शोले के ठाकुर के अंदाज में पैरों से कुचल देने का अंदाज अख्तियार किया था, आज वहीं महंगाई भाजपा के लिए सर दर्द बनती जा रही है.

विगत दिनों जब स्मृति ईरानी से एक फ्लाइट में कांग्रेसी नेत्री ने महंगाई पर गैस सिलेंडर पर सवाल किए तो स्मृति ईरानी अपनी गरिमा भूल कर के क्रुद्ध हो गई और अपना मोबाइल निकाल कर के अपने कथन की रिकॉर्डिंग करने लगीं यह अपने बचाव का एक मनोवैज्ञानिक तरीका है.

हाल ही में बाबा रामदेव ( राम किशन यादव) से भी जब एक पत्रकार ने सवाल किया था तो गुस्सा हो गए थे और वह सब कह डाला था जो एक सन्यासी को शोभा नहीं देता.

दरअसल, हाथ से निकलती महंगाई के जिन्न के मसले पर भाजपा बहुत चिंतित है भाजपा के बड़े-बड़े नेता लाख कोशिश के बाद भी महंगाई को काबू में नहीं कर पा रहे हैं.

परिणाम स्वरूप यह ह्यूमर फैलाया जा रहा है कि महंगाई तो देश हित में है और हम तो चाहे पेट्रोल डीजल दो सौ लीटर हो जाए, लेने के लिए तैयार हैं.

हाल ही में देश की मशहूर व्यंग्य चित्रकार राजेंद्र का एक व्यंग चित्र सोशल मीडिया पर खूब देखा जा रहा है. इसमें बढ़ती महंगाई का धारदार हथियार गला काटने तत्पर है और आम आदमी कहता जा रहा है कि मोदी जी जिंदाबाद!

वस्तुतः महंगाई एक ऐसा हल्ला बोल नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार के खिलाफ बन गया है जो उसके लिए ना उगलते बन रहा है ना निगलते.

स्मृति ईरानी को आया गुस्सा

अभी-अभी रामदेव के गुस्से की चर्चा देशभर में हुई. अब स्मृति ईरानी का गुस्से का वीडियो वायरल है. अपनी  तल्ख आवाज में स्मृति ईरानी अपने गुस्से का इजहार कर रही हैं.

अब यह कहा जा रहा है कि किसी भी भाजपा नेता या मंत्री से किसी भी फ्लाइट या सार्वजनिक जगह पर प्रश्न उत्तर न किया जाए. यह गलत है आम आदमी हो या कोई देश का नागरिक वह तो महंगाई हो या अन्य कोई मुद्दा आपसे मौका मिलते ही प्रश्न पूछेगा और पूछना भी चाहिए क्योंकि यही लोकतंत्र है आप महंगाई के पक्ष में अपने शालीनता से रख सकते हैं. आप अपनी बात रख सकते हैं मगर महंगाई या किसी मसले पर आ गए प्रश्न को टाल कर गुस्सा हो कर के समस्या का हल नहीं कर सकते.

आइए आपको बताते हैं पूरी तथाकथा- दरअसल,आल इंडिया महिला कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष नेटा डीसूजा ने इंडिगो की दिल्ली गुवाहाटी उड़ान में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से आमना-सामना होने पर रसोई गैस और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों को लेकर उन पर सवालों की बौछार कर दी.

इन प्रश्नों से बौखला कर स्मृति ईरानी ने असंयमित व्यवहार किया पिलानी चाहती  तो बड़े ही शालीनता से प्रश्नों का जवाब दे सकती थी मगर गुस्सा हो करके उन्होंने कहा -यह कोई स्थान नहीं है.

तो क्या आप सिर्फ संसद में ही जवाब देंगे. भाजपा तो संसद में भी महंगाई पर चर्चा नहीं करना चाहती यह सारा देश जानता है. ऐसे में आखिर आम आदमी के मन का महंगाई को लेकर के गुस्सा बाहर कैसे निकलेगा?

वस्तुत: डीसूजा ने रविवार को ट्विटर पर एक वीडियो क्लिप डाली, जिसमें वे मोदी सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी से रसोई गैस और पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के बारे में सवाल कर रही हैं. और स्मृति ईरानी इधर-उधर की बातें कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘यह अच्छा होगा कि मुझे  नहीं घेरा जाए.’ इस पर डीसूजा ने कहा कि किसी को घेरा नहीं जा रहा है. कांग्रेस नेता ने फिर ईरानी से कहा कि वह एक मंत्री हैं जिस पर ईरानी ने जवाब दिया, मैं जवाब दे रही हूं मैम, और मुफ्त कोविड-19 टीके के बारे में बोलने लगीं.

Summer Special: इस मौसम को ऐसे बनाएं खुशहाल

कहा जाता है कि गरमी आई, समस्या  लाई. लेकिन इस गरमी अगर आप थोड़ी सी सावधानी बरते तो ये गरमी आपके लिए समस्याओ का पहाड़ खड़ा करने के बजाये, खुशियों की बरसात करेंगी.  आप की थोड़ी सी लापरवाही आपके लिए भरी पड़ सकती है.गरमी का मौसम  कुछ कामो के लिए बुरा तों कुछ कामो के लिए खास होता है. इस मौसम में क्या करे,क्या ना करे, कैसे रखे अपने-आप कों कूल-कूल, क्या खाए एवं कैसे रखे अपना ख्याल इन सब पर  प्रस्तुत है, यह आलेख. ताकि आपके लिए यह गरमी यादगार बन जाये .

इन बातों का ध्यान रखे –

घर से बाहर निकलते समय, सीधे अल्ट्रावॉयलेट किरणों से बचें. सर पर कैप या कोई कपड़ा अवश्य रखें सीधी धूप से आपके बाल रूखे भूरे हो सकते है. आखों पर काला चश्मा अवश्य लगायें ताकि सीधी धूप आंखों को न लगे तथा पसीना आंखों में जाने से आंखों को नुकसान पहुंचाता है. घर से कभी खाली पेट बाहर न जायें . खाली पेट लू जल्दी लगती है या बाहर का खाया पिया तो इंफेक्शन जल्दी हो सकता है. गरमी के दिनों में ज्यादा से ज्यादा लिक्विड़़ पियें जैसे नींबू की मीठी ,नमकीन शिकंजी, फलों का रस या फिर अधिक पानी वाले फल जैसे खरबूजा,तरबूज,खीरा ,ककड़ी इत्यादि. मौसमी फलों का सेवन करें. उपर बताई गई तमाम बातों पर ध्यान देकर हम तमाम मौसमी बिमारियों(वायरल इंन्फक्शन) से बच सकते हैं.यही हील एण्ड हेल्थ का मकसद है.आपको तमाम स्वास्थ्य संबंधि किसी भी परेशानी में पडऩे से पहले बचाने की.

इनसे करे परहेज –

कैफिन युक्त चीजें और सॉफ्ट ड्रिंक्सकासेवनकमसेकमकरें.इनमेंप्रिजरवेटिव्स, रंगवशुगर कीभरपूर मात्राहोतीहै.येअम्लीयप्रकृति और डाइयूरेटिक होते हैं, जो शरीर से पानी मलमूत्र के रूप में निकालते हैं. सॉफ्ट ड्रिंक्समेंफॉस्फोरिकएसिडकीमात्राअधिकहोतीहै, जिसकाप्रभावपाचनतंत्रपर पड़ताहै.इससेशरीर मेंसेमिनरल्सकीमात्राभीकमहोजातीहै.एकसाथखानेकी बजाए बार-बार और थोड़े से अंतराल में कुछ खाते रहना चाहिए. तले हुए खाद्य पदार्थ जैसे बड़ा, पकौड़े, चिप्स, नमकीन, तेल व घी युक्त भोजन से बचें, क्योंकि इनमें थर्मल इफेक्ट होता है, जो गरमी उत्पन्न करता है. बहुत ठंडे पेय पदार्थ पीने से बचें. एकदम गरमी में ठंडा पीने से कुछ देर तो अच्छा लगता है, पर शरीर को ठंडक नहीं मिलती. इससे त्वचा की ब्लड वेसल्स पिचक जाती हैं जिससे शरीर से ताप कम निकल पाता है.बाजार में फलों के रस न पिएँ, क्योंकि प्रिजरवेटिव, कृत्रिम रंग और एसेंस डालकर बनाया जाता है जो नुकसानदायक होते हैं.

 गर्मियों में क्या खाए :-

लाइट डाइट, पौष्टिक और बिना फैट की चीजें खाने पर जोर दें. ज्यादा गर्म, तेज मसाले और अत्यधिक नमक युक्त खाने का सेवन कम करें. शरीर में नमक ऑर्गेनिक के रूप में सम्मिलितहोताहै, जोफल, सब्जियोंसेप्राप्त होताहै.नमककाइनऑर्गेनिकफार्मपचकर शरीर से बाहर निकलता है.इस मौसम में पानी अच्छी मात्रा में पिएँ. पानी शरीर को ठंडा बनाए रखने में मददगार होता है. पानी पीने से शरीर की गरमी सही रूप से बाहर निकलती है. यह शरीर को हाइड्रेट भी करता है. रोजाना कम-से-कम 8-10 गिलास पानी पिएँ. चाहे आप शारीरिक गतिविधियाँ करें या न करें. हाँ, पर हर जगह का पानी पीने से बचें. इस मौसम में नींबू पानी, नारियल का पानी और छाछ का सेवन अच्छी मात्रा में करना चाहिए. ये न केवल शरीर को ठंडक पहुँचाते हैं, बल्कि जो पानी शरीर से पसीने के रूप में निकल जाता है उसकी आपूर्ति भी करते हैं. कटे हुए फल विशेषकर तरबूज, खरबूजा, सड़े हुए पुराने फल या इनके जूस का कतई सेवन न करें. ताजा फल ही खरीदें. कटे हुए फलों को उसी समय उपयोग में लाएँ. यहाँ तक कि फ्रिज में भी ज्यादा समय तक कटे हुए फलों को न रखें.गर्मियों में पुदीना बहुत लाभदायक है, पौष्टिक होने के साथ-साथ पुदीने में शरीर को ठंडा करने के गुण भी होते हैं. इसे छाछ, दही, रोटी में मिलाकर खाएँ. इस मौसम में ताजा फल और सब्जियाँ खूब खाएँ, कोशिश करें कि सलाद, फ्रूट चाट और जूस जरूर अपने खानपान में शामिल हों.

गरमी में आजमाए घरेलू नुश्खे –

फलों में ज्यादातर मौसमी फल ही खाने की कोशिश करें,जैसे तरबूज,खरबूजा, खीरा, ककड़ी, टमाटर . मौसमी फल नैचुरल वाटर(मिनिरल वाटर)से भरपूर होते हैं,जिनकी आपके शरीर को बहुत जरूरत होती है. धूप में अधिक समय तक रहने से हमारे शरीर का अधिकतर पानी पसीना बनकर उड़ जाता है और तेज धूप से त्वचा लाल होकर खुजली,चकत्ते,दाने इत्यादि भी हो सकते है. इसीलिए  अदिक पानी का सेवन करे और हो सके तो पानी मे गुलोकोस डाल कर पिये. कम से कम दिन मे एक बार अवश्य ही नीबू का पानी पिए . ये नुश्खे आपके शरीर में पानी की कमी को दूर करते है. लू से बचने का एक तरीका और भी है, घर से बाहर निकलने से पहले या बाहर से आने के बाद कच्चे आम का पन्ना  पी सकते हैं . कच्चे आम का पन्ना (शर्बत मीठा या नमकीन)भी ले सकते हैं.

Summer Special: स्किन प्रौब्लम को कहें बाय बाय

गरमी का मौसम आते ही हमारे मनपसंद अलग-अलग डिजाइन के कपड़े निकल आते हैं और उन्हें पहन कर बाहर निकलने की खुशी के तो क्या कहने. लेकिन इसके साथ ही कई सारी स्किन प्रौब्लम्स से भी दोचार होना पड़ता है. जैसे रैशेज, घमोरियां, ऐक्ने और सनबर्न. ये इतनी गंभीर नहीं होतीं कि डौक्टर के पास जाना पड़े, परंतु इतनी छोटी भी नहीं कि इन्हें नजरअंदाज किया जाए. इस तरह की प्रौब्लम्स से कैसे बचें, आज हम आपको बताएंगे…

धूम में सनबर्न होना है आम

sunburn

गरमी में अकसर घर से बाहर कड़ी धूप में निकलने से सनबर्न की प्रौब्लम हो जाती है. सनबर्न से अभिप्राय स्किन का धूप से जलना है. सूरज की हानिकारक किरणें जब स्किन से डायरैक्ट कौन्टैक्ट में आती हैं तो उस पर असर पड़ता है. स्किन रूखी, बेजान सी होने के साथ उस पर छाले भी हो जाते हैं. कभी-कभी स्किन लाल हो जाती है व छिल भी जाती है.

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सनबर्न से बचने के लिए इन तरीकों को आजमाएं

सनबर्न होने पर अहम यह है कि संक्रमित स्किन को अधिक से अधिक ठंडक प्रदान करें. ठंडे पानी से नहाएं, ठंडे पानी की पट्टियां स्किन पर लगाएं व स्किन पर बर्फ धीरे-धीरे रगड़ें.

– आलू सनबर्न को कम करने और दर्द खत्म करने का कार्य करता है. आलू को काट कर या घिस कर सनबर्न से प्रभावित स्किन पर लगाएं. इस से आराम मिलेगा.

– पुदीने की पत्तियों का रस निकाल कर धूप से झुलसी स्किन पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है. इस के अलावा एलोवेरा जेल भी स्किन को ठंडक प्रदान करता है. एलोवेरा जेल को स्किन पर डायरैक्ट लगाएं.

– उड़द दाल को दही में मिला कर जली हुई स्किन पर लगाने से भी राहत मिलती है.

– दिल्ली स्थित विनायक स्किन ऐंड कौस्मेटोलौजी क्लिनिक के स्किन विशेषज्ञ डा. विजय कुमार गर्ग ने बताया, ‘‘विटामिन ई एंटीऔक्सिडैंट होता है जो संक्रमण को कम करता है. विटामिन ई को सनबर्न के समय भोजन में शामिल करना चाहिए, इस से आप की स्किन जल्दी ठीक होगी. विटामिन ई पालक, सोयाबीन, बादाम व मूंगफली में होता है.

– ‘‘टी ट्री तत्वों से मुक्त पदार्थो का सनबर्न से प्रभावित स्किन पर उपयोग करें. साबुन का इस्तेमाल न कर के टी ट्री तत्त्वों वाले फेसवाश का इस्तेमाल करें. साथ ही, सनस्क्रीन क्रीम या लोशन का जरूर इस्तेमाल करें. ‘‘यदि जलन और दर्द अत्यधिक हो और स्किन अधिक झुलसी हुई हो तो स्किन रोग विशेषज्ञ को जरूर दिखाएं.’’

प्रिकली हीट की प्रौब्लम

prickly heat

प्रिकली हीट जिसे हम घमोरियां कहते हैं, गरमी में होने वाली एक सामान्य परेशानी है. यह किसी को भी हो सकती है. ये शरीर पर खुजली, दर्द और चिलमिलाहट पैदा करती हैं. स्किन पर छोटेछोटे बंप उभर आते हैं. जब ये फूटते हैं तो इन में से पसीना निकलता है और स्किन पर प्रिकली सैंसेशन होती है.

इन तरीकों का करें इस्तेमाल

– घमोरियां होने पर यह आवश्यक है कि आप ढीले कपड़े पहनें और हो सके तो कौटन के कपड़े पहनें क्योंकि वे पसीना सोख लेते हैं और घमोरियों से बचाव करते हैं. टाइट कपड़े न पहनें और शरीर पर पसीना न जमने दें.

– बेकिंग सोडा लें और उस मे ठंडा पानी मिला लें. अब इस में एक साफ कपड़ा डुबोएं और उसे प्रिकली हीट प्रभावित स्किन पर 10 मिनट तक रहने दें. इस से दर्द व खुजली से आराम मिलेगा.

– हर 5 घंटे के अंतराल में स्किन पर बर्फ लगाएं. बर्फ को एक कपड़े में रखें और प्रभावित हिस्से पर लगाएं. ऐसा करने से घमोरियां फैलेंगी नहीं और दर्द में राहत मिलेगी.

– ठंडे पेय पदार्थों, जैसे छाछ, नीबू पानी, नारियल पानी आदि का सेवन करें. ये अंदरूनी रूप से आप के शरीर को ठंडा रखते हैं.

– मुलतानी मिट्टी को सर्दियों से प्रिकली हीट का तोड़ माना जाता है, कारण स्पष्ट है कि यह ठंडक पहुंचाती है. मुल्तानी मिट्टी या चंदन पाउडर में गुलाबजल मिला कर पेस्ट बनाइए और इसे प्रिकली हीट पर लगाइए. सूखने के बाद ठंडे पानी से धो लीजिए.

– दिन में 2 बार ऐसा करने से आप को आराम भी मिलेगा.

डा. विजय कहते हैं, ‘‘प्रिकली हीट के लिए हाइड्रोफेशियल ट्रीटमैंट किया जाता है. यह 3-4 स्टैप में होता है. सबसे पहले स्किन टाइटनिंग, फिर टौक्सिन रिमूवल, उस के बाद औक्सिजनाइजेशन और आखिर में विटामिन सी इंफ्यूज किया जाता है.

‘‘यदि आप को घमोरियों से बचना है तो नहाने के बाद 10-15 मिनट तक पंखे के नीचे जरूर बैठें. ऐसा करने से घमोरियां नहीं होंगी. आमतौर पर एसी में रहने वाले व्यक्ति को घमोरियां नहीं होती हैं.’’

ऐक्ने और ब्लैकहैड्स की प्रौब्लम

जब पसीना स्किन पर तैलीय ग्रंथियों से मिलता है तो ऐक्ने का रूप ले लेता है. तैलीय ग्रंथियों के अत्यधिक रिसाव से स्किन के रोमछिद्र खुल जाते हैं और ऐक्ने व ब्लैकहैड्स जैसी प्रौब्लम होने लगती हैं.

होममेड टिप्स का करें इस्तेमाल

– ऐक्ने के लिए हलदी एक कारगर उपाय है. 2 चम्मच चंदन में थोड़ी सी हलदी और बादाम का तेल मिला कर चेहरे पर लगाएं. 15 मिनट के बाद हलके हाथ से रगड़ कर हटाएं और ठंडे पानी से धो लें.

– ऐक्ने के लिए खीरे का फेसपैक भी उपयोगी रहता है. खीरा, ओटमील और एक चम्मच दही को मिला कर पेस्ट बना लें. अब इसे ऐक्ने पर लगाएं और सूखने पर ठंडे पानी से धो लें. यह फेसपैक स्किन को रिजुवनेट करता है और ऐक्ने को कम करता है.

– शहद भी ऐक्ने पर कारगर साबित होता है. शहद में नीबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं और सूखने के बाद गुनगुने पानी से चेहरे को धो लें.

– आजकल ऐक्ने के लिए विभिन्न प्रकार की क्रीम व फेसवाश आते हैं जिन के इस्तेमाल के लिए खुद डाक्टर भी कहते हैं. ऐक्ने को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए लेजर ट्रीटमैंट भी किया जाता है. सैलिसिलिक एसिड भी ऐक्ने हटाने के लिए अच्छा उपाय है तो सैलिसिलिक एसिड से बने फेसवाश व क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं.

नौर्मल समर प्रौब्लम है बौडी ओडोर

Smelly-Armpits

बौडी ओडोर गरमी में होने वाली एक साधारण समस्या है जो पसीने के कारण होती है. हमारे शरीर से 2 तरह का पसीना निकलता है. पहला, एक्राइन जो साफ और बिना दुर्गंध का होता है व शरीर के तापमान को बनाए रखता है और दूसरा, ऐपोक्राइन जो मोटा पदार्थ होता है व कमर और कांख में ग्रंथियों द्वारा निर्मित होता है. एपोक्राइन भी बिना दुर्गंध का ही होता है परंतु बैक्टीरिया के संपर्क में आने से इस में से दुर्गंध आने लगती है. यदि आप भी बौडी ओडोर अर्थात शरीर की बदबू से परेशान हैं तो ये कुछ उपाए हैं जिन्हें आप अपना सकते हैं.

 होममेड टिप्स का करें इस्तेमाल

ताजे नीबू को 2 भागों में काट कर अंडरआर्म्स में रगडि़ए. ये शरीर की दुर्गंध को हटाता है और बैक्टीरिया भी मारता है.

– आप को ओडोर से बचने के लिए डियोड्रैंट का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि आप के पास डियोड्रैंट नहीं है तो एक कप पानी लें और उस में हाइड्रोजन पैरोक्साइड मिलाएं. इस पानी में एक साफ कपड़े को डुबो कर अंडरआर्म्स में रगडि़ए. यह शरीर के बौडी ओडोर को दूर कर देगा.

– बेकिंग सोडा में एक नीबू निचोडि़ए और पेस्ट बना कर शरीर के जिन हिस्सों में अत्यधिक पसीना आता है वहां लगाइए. इसे रगडि़ए नहीं. कुछ देर बाद ठंडे पानी से धो लीजिए. कुछ हफ्ते इस विधि को अपनाने से बौडी ओडोर खत्म हो जाएगा.

– अत्यधिक डाक्टर बौडी ओडोर से बचने के लिए एंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. इस में ऐल्युमिनियम क्लोराइड होता है, जो शरीर द्वारा उत्पन्न पसीने को कम करता है. बोटोक्स ट्रीटमैंट के द्वारा भी पसीने को कम किया जाता है.

राखी दवे को शाह हाउस से बाहर करेगी किंजल! वनराज को लगेगा झटका

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupamaa) में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुज और बापूजी अनुपमा की मां को शादी का कार्ड देते हैं. तो वहीं अनुज अनुपमा की मां से वादा करता है कि वह हमेशा उसका ख्याल रखेगा और कांता का बेटा बनकर रहेगा. तो दूसरी तरफ तोषु वनराज को लूजर कहता है.शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के आनेवाले एपिसोड में आप देखेंगे कि शाह हाउस में राखी दवे की एंट्री होगी. वह तोषु के कहने पर वनराज की मदद करने के लिए तैयार हो जाएगी. लेकिन ये सुनकर वनराज भड़क जाएगा. वनराज तोषु को राखी दवे से दूर रहने के लिए कहेगा.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि तोषु सबके सामने वनराज की बेइज्जती करेगा. तोषु कहेगा कि वनराज को अपने घमंड के आगे कुछ नहीं देखता है. बा तोषु को चुप करवाने की कोशिश करेगी लेकिन वह किसी की नहीं सुनेगा. दूसरी तरफ अनुपमा भी तोषु को ही गलत बताएगी.

 

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शाह परिवार के लड़ाई के बीच अनुज की धमाकेदार एंट्री होगी. वह सबको नजरअंदाज करते हुए अनुपमा को एक खुशखबरी देगा. अनुज बताएगा कि अनुपमा की डांस एकेडमी ने एक बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लिया है. ये बात सुनकर अनुपमा काफी खुश हो जाएगी.

 

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तो वहीं किंजल अपनी मां राखी को खूब सुनाएगी. इतना ही नहीं, वह राखी दवे को शाह हाउस से बाहर जाने के लिए भी कहेगी. शो में अब ये देखना होगा कि राखी दवे का चाल कामयाब होता है या नहीं?

‘ये रिश्ता’ फेम मोहिना कुमारी सिंह का हुआ वर्चुअल बेबी शावर, देखें Video

ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम मोहिना कुमारी सिंह (Mohena Kumari Singh) जल्द ही मां बनने वाली है. वह अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर सुर्खियों में छाई हुई हैं. एक्ट्रेस ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पर दी थी. हाल ही में मोहिना कुमारी सिंह की गोदभराई हुई, जिसकी फोटोज और वीडियोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी. अब एक्ट्रेस का का वर्चुअल बेबी शावर हुआ है.

दरअसल मोहिना कुमारी सिंह ने वर्चुअल बेबी शावर का वीडियो इंस्टाग्राम पर शेयर किया है. फैंस ने उन्हें ढेर सारी बधाइयां और खूब सारी ब्लेसिंग दी है. एक्ट्रेस फैंस को धन्यवाद कहा है.

 

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मोहिना कुमारी सिंह ने वर्चुअल बेबी शावर से जुड़ा वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया है. उन्होंने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है कि वर्चुअल बेबी शावर, ढेर सारे सरप्राइज के लिए आप सभी का ढेर सारा शुक्रिया. वर्चुअल बेबी शावर बहुत ही शानदार था. आप सभी को मेरा बहुत सारा प्यार.

 

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मोहिना कुमारी सिंह ने ने इस बारे में बात करते हुए कहा, आप लोगों ने इकट्ठा होकर जिस प्रकार वर्चुअल बेबी शावर किया, उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूं. आप लोग बेबी का जिस तरह से वेट कर रहे हो, उसके लिए भी मैं धन्यवाद कहती हूं. मैं अपनी प्रेग्नेंसी की लास्ट स्टेज पर हूं, एक्साइटमेंट भी है और थोड़ी घबराहट भी है. एक्ट्रेस ने आगे कहा कि बस मैं एक हेल्दी बेबी की दुआ कर रही हूं.

 

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बता दें कि एक्ट्रेस के दोस्तों ने उनके लिए वर्चुअल बेबी शावर का आयोजन किया था. मोहिना कुमारी सिंह ने इससे जुड़ा फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था.

 

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किसानों ने बनाई अपनी सब्जी मंडी

बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड में एक छोटा सा बाजार है, जिस का नाम है मोरसंड. यहां सड़क के किनारे सुबहसवेरे 7 बजे से ही सब्जियों की मंडी सजने लगती है. इस स्थानीय मंडी में आने वाली सब्जियां इतनी ताजी, खूबसूरत और अच्छी होती हैं कि अगर आप का मन न भी हो, तब भी आप सब्जी खरीदने को मजबूर हो जाएंगे.

लेकिन मोरसंड गांव में लगने वाली इस सब्जी मंडी का संचालन बाकी मंडियों की तर्ज पर बिहार सरकार नहीं करती है, बल्कि इस सब्जी मंडी को किसान बिचौलियों से बचने के लिए खुद ही संचालित करते हैं.

किसानों द्वारा संचालित मंडी सरकार द्वारा संचालित शहर की मुख्य मंडी से काफी दूरी पर मौजूद है. उस के बावजूद भी ग्राहक सरकारी मंडी में न जा कर मीलों का फासला तय कर किसानों द्वारा संचालित इस मंडी में खरीदारी करने आते हैं, जहां किसानों को उन के गांव के बगल में ही सब्जियों की उपज का सरकारी मंडी से अच्छा रेट मिल जाता है. इस से यहां अपनी सब्जी बेचने वालों को न केवल अच्छा मुनाफा मिलता है, बल्कि समय और पैसे की बचत भी होती है.

किसानों को खुद की मंडी चलाने का ऐसे आया विचार

पूसा के मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित इस मंडी को खोलने का काम छोटे और म   झोले किसानों की आय बढ़ाने और उन के जीवनस्तर को सुधारने के लिए बिहार में काम कर रही संस्था आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व एक्सिस बैंक फाउंडेशन द्वारा दिया गया.

जब किसानों ने एकेआरएसपीआई को मंडी में अपनी सब्जियों की उपज का वाजिब रेट न मिलने की बात बताई, तो एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं ने उन्हें संगठित कर जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर नाम से एक किसानों की एक मंडी समिति बनवाने में मदद की.

इस मंडी समिति में सब्जी उत्पादक गांवों के किसानों को पदाधिकारी और सदस्य बनाया गया. इस के बाद किसानों ने मोरसंड कसबे की एक जगह को मंडी के रूप में चुना, जहां इस समिति से जुड़े सभी किसान अपनी सब्जियों को थोक में बेचने के लिए लाने लगे.

शुरुआती दौर में किसानों को ग्राहक कम मिलते थे, लेकिन जब लोगों को यह पता चला कि मोरसंड कसबे में किसानों द्वारा संचालित मंडी में ताजा और अच्छी सब्जियां वाजिब रेट में मिल रही हैं, तो दूरदूर के व्यापारी भी इन किसानों की सब्जियां खरीदने आने लगे.

सरकारी मंडी की जगह किसानों द्वारा खुद की मंडी खोलने के सवाल पर किसानों द्वारा संचालित मोरसंड मंडी के अध्यक्ष राम नंदन सिंह ने बताया कि भारत भले ही कृषि प्रधान देश है, लेकिन यहां सब से बुरी हालत भी किसान की ही है. सरकारें किसानों को तमाम तरह की छूट और राहतें देने की बात करती हैं, लेकिन कृषि उपज के वाजिब रेट को ले कर कोई ठोस सरकारी नीति न होने के चलते किसान हर जगह ठगा जाता रहा है.

उन्होंने बताया कि कभी मौसम किसान पर मुसीबत बन कर टूटता है, तो कभी हालात उस का साथ नहीं देते और सबकुछ ठीक रहने के बावजूद भी जब वह अपनी फसल बेचने मंडी पहुंचता है, तो वहां सही भाव नहीं मिलता. क्योंकि मंडियों में बिचौलियों और मुनाफाखोरों का गठजोड़ उन्हें अपनी उपज औनेपौने दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ता है.

ऐसी दशा में हम किसानों द्वारा संचालित इस मंडी पर पूरा नियंत्रण भी किसानों का होता है, जिस से हमें अपनी फसल का रेट तय करने का पूरा अधिकार होता है.

उन्होंने आगे बताया कि 5 किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले मोरसंड व उस से लगे आसपास के गांवों चकहारी, पुनास, सिहिया खुर्द, ठहरा पातेपुर, गोपीनाथ, कैजिया, बेला जैसे दर्जनों गांवों के सैकड़ों किसान इस मंडी से जुड़े हुए हैं, जो अपनी सब्जियों जैसे आलू, गोभी, टमाटर, ब्रोकली, मटर, कद्दू, लौकी, गाजर, मेथी, धनिया, बंदगोभी, नेनुआ, बैगन, सेम, प्याज, लहसुन, परवल, मूली, साग, कुसुम, फर, भिंडी, पालक, खीरा, गेंधरी, हरी मिर्च जैसी फसलें बेचने आते हैं. यहां कुछ ही घंटों में किसानों की सब्जियां आसानी से बिक जाती हैं.

मोरसंड कसबे के किसानों द्वारा संचालित इस मंडी के संरक्षक देवनारायण सिंह ने बताया कि शहर की सरकारी मंडियों में किसान जब सब्जी या फल ले कर पहुंचता था, तो वहां उन की मुलाकात बहुत सारे एजेंट से हो जाती थी, जो उन की सब्जी को बिकवाने का काम करते थे, क्योंकि इन मंडियों में किसान बिचौलियों के बिना कुछ भी खरीदबेच नहीं सकते. वजह, यहां बिचौलिए ही किसानों की फसल की बोली लगाता है और उसे बिकवाता है.

उन्होंने बताया कि कुछ व्यापारी साठगांठ कर किसान की फसल औनेपौने दाम में खरीद लेते हैं. ऐसा छोटे शहरों की मंडियों में होता है, जहां ग्राहक कम आते हैं. और जो ग्राहक आते हैं, वह व्यापारी यानी बिचौलियों से आपस में मिले हुए होते हैं, जो किसान से उस की फसल को कम कीमत में खरीद कर दिल्ली, कानपुर जैसी बड़ी मंडी में पहुंचा कर ऊंचे भाव में बेचने में कामयाब हो जाते हैं.

इस मंडी में कई तरीके से होता है किसानों का फायदा

महिला किसान सविता देवी ने बताया कि सरकारी मंडी की तुलना में किसानों द्वारा संचालित खुद की मंडी में कई तरीके से धन, समय और श्रम की बचत होती है, क्योंकि किसान अपने खेतों में सब्जी की तुड़ाई करने के बाद दूर मंडियों में बेचने जाता है, तो उस में ट्रांसपोर्टेशन का खर्च तो जुड़ता ही है, साथ ही साथ मंडी में जाने के बाद उन्हें मंडी टैक्स, एजेंट का कमीशन, पल्लेदारी की जरूरत पड़ती है. ये सब खर्चे किसान को अपनी जेब से करने होते हैं. जो सब्जियों की बिक्री से हुई आमदनी से ही देना पड़ता है. बाकी जो बचता है, वो किसान को मिलता है.

लेकिन मोरसंड मंडी के सफल संचालन के लिए किसानों की सहमति से महज एक रुपया किलोग्राम मंडी शुल्क लिया जाता है. इस के अलावा सब्जियों की लोडिंग और अनलोडिंग का काम किसान खुद ही आपस में मिल कर करते हैं, जिस से पल्लेदारी पर आने वाला शुल्क पूरी तरह से बच जाता है.

पूसा प्रखंड के लालपुर गांव के किसान राम दयाल ने बताया कि वह बैगन, फूलगोभी, पालक, टमाटर सहित कई तरह की सब्जियों की खेती करते हैं.

उन्होंने बताया कि कुछ साल पहले तक उन्हें तैयार सब्जियों को बेचने के लिए गांव से तकरीबन 15 से 20 किलोमीटर दूर तक की मंडी में जाना पड़ता था, जिस से उन्हें ट्रांसपोर्टेशन पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता था. दूर मंडियों में आनेजाने में लगने वाले अतरिक्त समय व खर्च में भी कमी आई है.

उन्होंने यह भी बताया कि किसानों की इस मंडी का संचालन पूरी तरह से किसान ही करते हैं और इस पर सरकार का किसी तरह का हस्तक्षेप भी नहीं है.

जनता सब्जी संग्रह सह विक्रय केंद्र, मोरसंड बहादुरपुर में सब्जियों की बिक्री का हिसाबकिताब देखने वाले और इस समिति के कोषाध्यक्ष मंजेश कुमार ने बताया कि कई बार शहर की मंडी में सब्जियां बेचने के बाद आढ़ती किसानों का पैसा बकाया कर देते हैं, जबकि इस मंडी में किसानों की उपज की बिक्री के तुरंत बाद उन्हें भुगतान कर दिया जाता है.

शहर की मंडियों से व्यापारी यहां खरीदने आते हैं सब्जियां

समस्तीपुर जिले में बड़ी सब्जी मंडी होने के बावजूद भी वहां से फुटकर व्यापारी मोरसंड में सब्जियों की खरीदारी करने आते हैं. फुटकर व्यापारी बाबुल कुमार से जब यह पूछा गया कि जब जिले में मंडी है, तो वह इतनी दूर सब्जियों की खरीदारी करने क्यों आते हैं?

उन्होंने कहा कि शहर की मंडी में बहुत ज्यादा भीड़ होती है. इस से बचाव तो होता ही है. साथ ही, यहां लोडिंग चार्ज, मंडी शुल्क, कमीशन एजेंट शुल्क भी नहीं देना पड़ता है. यहां हर समय हरी और ताजी सब्जियां मिलती हैं, जबकि शहर की मंडी में दूर से आने वाली सब्जियां बासी हो जाती हैं.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि शहर की मंडी में देरी से पहुंचने पर सब्जियां नहीं मिल पाती हैं, जबकि यहां लेट हो जाने पर भी सब्जी उपलब्ध हो जाती है. और कभीकभी न पहुंच पाने की दशा में किसान द्वारा उन की दुकान तक डिलीवरी भी दे दी जाती है.

आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) में पूसा के एरिया मैनेजर शांतनु सिद्धार्थ दुबे ने बताया कि एकेआरएसपीआई व एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से मोरसंड में किसानों द्वारा संचालित सब्जी मंडी पूरे बिहार के लिए मौडल है.

उन्होंने बताया कि इस मंडी के खुल जाने से किसानों की आमदनी में इजाफा हुआ है, जिस से किसान अपनी जरूरतों को पूरा करने के बाद भी बचत कर लेते हैं.

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के कृषि प्रबंधक डा. बसंत कुमार ने बताया कि मोरसंड सब्जी मंडी की सफलता को देखते हुए इसी तर्ज पर बिहार में और भी कई जगहों पर किसान इस तरह की खुद की मंडी संचालित करने की कवायद कर रहे हैं. अगर ऐसा होता है, तो किसानों की सरकारी सब्जी मंडी पर निर्भरता कम होगी. साथ ही, अपनी उपज की कीमत भी किसान खुद तय कर पाएंगे.

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि एकेआरएसपीआई द्वारा एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से समस्तीपुर में छोटे व म   झोले किसानों की आय बढ़ाने के लिए फील्ड लैवल पर कई तरह की तकनीकी, व्यावहारिक और आर्थिक सहायता मुहैया कराई जा रही है, जिस से किसान खेती में जोखिम को कम करने में कामयाब होने के साथ ही आधुनिक तरीकों से लागत को कम कर अपनी आय में इजाफा करने में कामयाब हो रहे हैं.

सब्जी उत्पादन तकनीक प्रशिक्षण  का आयोजन

हाल ही में ‘सब्जी उत्पादन तकनीक’ पर कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. केंद्राध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह ने बताया कि केंद्रीय बारानी कृषि अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद से इस जनपद में जलवायु परिवर्तन आधारित कृषि तकनीकों का प्रदर्शन एवं क्षमता में विकास हेतु परियोजना की शुरुआत की गई है, जिस का उद्देश्य कृषि बागबानी, सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मत्स्यपालन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खीपालन आदि क्षेत्रों में रणनीतिक अनुसंधान के तहत अनुकूलीय रणनीतियों के निर्माण के साथसाथ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आंकलन प्रमुख है.

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और मानव निर्मित संसाधनों के निरंतर प्रबंधन के साथ ही साथ कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि करने वाली जलवायु अनुकूल कृषि प्रौद्योगिकियों के माध्यम से बेरोजगारों को कृषि आधारित स्वरोजगार से जोड़ कर पारिवारिक आय में वृद्धि करना है. इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए किसानों व बेरोजगार नौजवानों को जायद के मौसम में उत्पादित की जाने वाली सब्जियों जैसे भिंडी, मिर्चा, लौकी, तोरई, लोबिया, धनिया, सहजन आदि की खेती करने का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है. इस से वे अतिरिक्त आय के साथसाथ रोजगार भी पा सकते हैं.

पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने अवगत कराया कि जायद के मौसम में सिंचाई की समुचित व्यवस्था होने पर आलू, सरसों, चना, मटर के बाद हरा चारा उत्पादन के लिए लोबिया और बाजरा की खेती करना उपयुक्त है. इस से पशुओं को शुष्क मौसम में भरपूर प्रोटीनयुक्त हरा चारा मिलता रहेगा, जिस से उन की दूध उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होगी.

लोबिया की प्रमुख किस्में पूसा कोमल, काशी कंचन, नरेंद्र आदि हैं. इस के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 20 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है. इसी प्रकार बाजरा की उन्नत किस्म अनन्त है, जिस में 8-10 कटाई कर के चारा प्राप्त कर सकते हैं.

पौध रक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने सब्जियों में लगने वाले प्रमुख रोगों एवं कीड़ों पर चर्चा करते हुए बताया कि सब्जियों में रोगों एवं कीटों से बचाव के लिए नीम तेल 10 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें. नियंत्रित न होने की दशा में सब्जियों को    झुलसा रोग से बचाने के लिए मैनकोजेब 64 फीसदी, साइमोक्जिल 8 फीसदी डब्ल्यूपी फफूंदीनाशक मिश्रण का 1.2 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

प्रसार वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने जायद में सब्जियों (भिंडी, लोबिया, तोरोई, लौकी, कद्दू, करेला आदि) की खेती की नवीनतम तकनीकों के विषय में किसानों को विस्तृत जानकारी दी. साथ ही, जायद में दलहनी फसल (मूंग, उड़द) की खेती के विषय में भी विस्तृत जानकारी प्रदान की.

उन्होंने यह भी बताया कि जो किसान भाई वसंतकालीन गन्ने की खेती करते हैं, वे गन्ने के साथ लोबिया, भिंडी, करेला एवं धनिया (हरी पत्ती के लिए) की सहफसली खेती से अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रगतिशील किसान ओमप्रकाश, कमलेश, नरायन आदि ने प्रतिभाग किया. इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिकों के साथसाथ जेपी शुक्ला, निखिल सिंह, प्रहलाद सिंह, बनारसी व सीताराम आदि कार्मिक भी उपस्थित रहे.

कांग्रेस बनाम बहुजन पार्टी

कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी बेबात की बयानबाजी में टाइम बेकार कर रहे हैं कि विधानसभा  चुनावों से पहले किसने कैसे साथ चलने की बात की थी और किस ने इंकार कर दिया था. कांग्रेस अगर कह रही कि उस ने मायावती के जीवन पर मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया भी था तो भी यह बेकार की बात है. यह तो एक 10 करोड़ की लौटरी के टिकट को 10 रुपए में खरीद कर 10 करोड़ को बांटने की लड़ाई जैसा है. न लौटरी निकलनी थी, न निकली तो लड़ाई किस बात की.

यह पक्का है कि  कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी दोनों के नेता अपना रास्ता भटक गए हैं और अब अपने भक्तों के मझदार में डूबने को छोड़ कर किसी विरान टापू पर सन्यास लेने की तैयारी में है. ऐसा नहीं कि उन के भक्तों के उन की जरूरत नहीं है या फिर उन के भक्तों को अपनी पाॢटयों नीतियों से नाराजगी हो.

कांग्रेस और बहुजन पार्टी को चाहने वालों की कमी नहीं है. सीधीसादी, बिखराव से बचाने वाली पार्टी कांग्रेस राज चलाने में खासी ठीकठाक है. बहुजन पार्टी हजारों सालों गुलामी झेल रहे दलितों को नई उम्मीद देती है. दिक्कत यह है कि दोनों नेता अब आरामतलब है. राहुल और प्रियंका गांधी भी पकीपकाई खीर चाहते हैं और मायावती ऐश की ङ्क्षजदगी चाहती हैं. इन दोनों को घरघर जा कर यह भरोसा दिलाना आता ही नहीं है कि वे उन के हकों को बचा कर रखेंगे या उन के लिए लड़ेंगे. वे तो कहते है कि राज दिला दो फिर सब ठीक कर देंगे. लेकिन राज मिलने के लिए जो करना होता है वह कांग्रेस 50 साल ब्रिटीश शासन में किया ओर मायावती ने कांशीराम के साथ 10-15 साल किया.

1947 के बाद कांग्रेस ने कभी लोगों के नाम पर लड़ाई नहीं लड़ी. सरकार मं होते हुए भी उस ने  चाहा जनता की नहीं सोची. कांग्रेस के जमाने में सरकारी अफसरों की चांदी हो गई. सरकारी कंपनियां अफसरों व कर्मचारियों की सैरगाह हो गईं. जहां जमीन पर पड़े सोने के टुकड़ों को जो चाहे बटोर ले. मायावती सत्ता में आने पर या तो अंबेडकर और खुद के महल मूॢतयां बनाने में लग गई या हीरों के हार पहनने में.

अब वे एकदूसरे को दोष दे रहे हैं पर फायदा क्या है? जनता आज खुश है यह नहीं कहा जा सकता या आज की जनता को इतना धर्मभीरू बना दिया गलत है कि वह धर्म ेे नाम पर पहले वोट देती है,  काम पर बाद में जनता के जाति का अहसास भी दिला दिया गया है और जनता अपने कपड़े बेच कर भी जाति को ओडऩा बचाने में लगी हुई है. कांग्रेस की जाति और धर्म के बिना की और बसपा की केवल दलित जाति की नीति किसी को नहीं भा रही. इन नेताओं का कार्य था कि ये सत्ता में आई पार्टी की छिपी लूट की पोल खोलते. आज हर मंदिर फैल रहा है, रामनवमी हो या जन्माष्टमी, लाखों नहीं करोड़ों एकएक जगह फूंके जा रहे हैं जो जनता से जबरन या उसे बहका कर लूटे जा रहे है, इस की कीमत मेहनतकश लोग दे रहे हैं जो या तो धर्म और जाति में क्या और काम पर भरोसा रखते है यवे जो नीची जाति का होने की वजह से बरसों से आजादी फायदे का इंतजार कर रहे है.

ये दोनों पाॢटयां जनता के बड़े हिस्से को ज्यादा हक ज्यादा मौके, ज्यादा पैसा, ज्यादा बराबरी दिला सकती हैं पर इन के नेताओं को खुद से ही फुरसत नहीं है.

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