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TV पर फिर दिखेगी Shivangi Joshi और मोहसिन खान की जोड़ी

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में शिवांगी जोशी(Shivangi Joshi)  और मोहसिन खान की (Mohsin Khan) जोड़ी ने  फैंस का दिल जीतने में कामयाब हुई थी. फैंस को शिवांगी और मोहसीन की ऑनस्क्रीन जोड़ी बेहद पसंद आई. लेकिन इस जोड़ी ने शो को अलविद कह दिया. इस खबर से फैंस का दिल टूट गया था. लेकिन अब फैंस के लिए खुशखबरी है. आइए बताते है क्या है वह खुशखबरी.

एक खबर सामने आई है, जिससे शिवांगी जोशी और मोहसिन खान के फैन्स काफी खुश हैं. खबर आ रही है कि शिवांगी जोशी और मोहसिन खान एक नए प्रोजेक्ट में एक साथ फिर से काम करने वाले हैं.जी हां सही सुना आपने. टीवी पर एक बार फिर आप अपने फेवरेट जोड़ी को देखेंगे.

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फैंस इस जोड़ी को बहुत मिस कर रहे थे. अब फैन्स का इंतजार खत्म हो गया है क्योंकि शिवांगी जोशी और मोहसिन खान की जोड़ी छोटे पर्दे पर फिर से नजर आएगी. दरअसल शिवांगी जोशी और मोहसिन खान जल्द ही राजन शाही के नए प्रोजेक्ट में साथ नजर आने वाले हैं.

 

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एक रिपोर्ट के अनुसार, शिवांगी जोशी ने कहा है कि मैं इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सकती हूं, लेकिन हां एक प्रोजेक्ट की बातचीत जारी है और जब भी यह प्रोजेक्ट शुरू होगा. हर किसी को इस बारे में पता चल जाएगा.

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शिवांगी जोशी ने आगे कहा कि अगर राजन सर ने कहा है कि हम जल्द साथ आ रहे हैं तो जाहिर है कि हम आ रहे होंगे. जब भी होगा, जैसे भी होगा, मैं दावे से कह सकती हूं कि बहुत खूबसूरत होगा. बता दें कि ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’  में दोनों की केमिस्ट्री को बहुत पसंद किया गया था. फैंस ने सोशल मीडिया पर उनके ऑनस्क्रीन नाम कार्तिक और नायरा को मिलाकर #कायरा बना दिया था.

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हिंदू-मुसलिम, हिंदू- मुसलिम

देश में जब महंगाई, बेरोजगारी, ठप होते व्यापारों, किसानों की दुर्दशा जैसे मामले सामने खड़े हों और यूरोप में यूक्रेन को ले कर रूस का पैदा किया भयंकर युद्ध का खतरा मंडरा रहा हो, भारतीयों को ‘हिंदूमुसलिम हिंदूमुसलिम’ का पाठ पढ़ाया जा रहा है. उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों को भारतीय जनता पार्टी किसी तरह हिंदूमुसलिम समस्या की ओर ले जाने में जुटी रही.

जब हत्या हुई, उत्तर प्रदेश के 3 चरणों के वोट डल चुके थे और चाहे आदित्यनाथ, अमित शाह और स्वयं नरेंद्र मोदी ने बुल्डोजरों, जिन्ना, साइकिलों पर आंतकवादियों के बमों, टोपियों, बुर्कों की बारबार कितनी ही बात की हो लेकिन प्रदेश की जनता को अपनी रोजीरोटी की ही पड़ी रही और राज्य के मतदाताओं का मूड भाजपाई सरकार से उखड़ा रहा. चुनाव के दौरान हिंदू नेताओं की बहुत बड़ी भीड़ राज्य की गलीगली में मौजूद रही. हर मंदिर का पुजारी, मंदिर के सामने फूल बेचने वाला, मंदिर के नाम पर जमीन हथिया कर वहां दुकान खुलवाने वाला, शादीब्याह में पूजापाठ कराने वाला, कुंडलियां तैयार करने वाला, ज्योतिष, वास्तु, आयुर्वेद के नाम पर धंधा करने वाला आदि हर जना भारतीय जनता पार्टी के हिंदूमुसलिम एजेंडे का एजेंट है.

यही लोग हर समय ‘हिंदू एक हैं’ का नारा लगाते हैं, ‘जयश्रीराम’ का नारा जबरन लगवाते हैं. इन लोगों का आज असली मकसद मेहनतकश लोगों को लूटना है. आज अगर व्यापार ठप हो रहे हैं तो उन पिछड़ी जातियों के व्यापारियों के जिन्होंने पिछले 20-25 वर्षों में थोड़ीबहुत पढ़ाई करने के बाद अपना जुगाड़ बैठा कर छोटामोटा धंधा शुरू किया था. आज अगर कुछ हजार नौकरियों के लिए सवा करोड़ एप्लीकेशनें आती हैं तो वे पिछड़ों की होती हैं जिन्होंने सरकारी स्कूलों का फायदा उठा कर थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के सरकारी नौकरी के सपने देखने शुरू किए. पर हकीकत में भारतीय जनता पार्टी और उस के जैसे धर्म का व्यापार करने वाले कह रहे हैं, ‘हिंदुओ एक हो जाओ.’ यह एकता का नारा उन पिछड़ों को दिया जा रहा है जो कम से कम लाठी चलाना तो जानते हैं. एक हो कर वे क्या करें. किसी मुसलमान का सिर फोड़ें. क्यों, क्या मुसलमान किसी का हक मार रहे हैं?

हिटलर व्लादिमीर पुतिन

नहीं, इसलिए कि ये हिंदूहिंदू करेंगे तो हिंदू धर्म से जुड़े व्यापार चमकेंगे. बाकी व्यापार ठप होंगे और भव्य मंदिर बनेंगे. बाजारों में सूनापन पर मंदिरों के आगे भीड़ जुटेगी. हिंदूमुसलिम कर के हिंदुओं, खासतौर पर पिछड़ों, को लूटने की कोशिश हो रही है. साथ में ऊंची जातियों की औरतों को लपेटे में ले लिया जाता है. उन्हें भी गुलाम बनाए रखना हिंदू धर्म का पहला उद्देश्य सदियों से रहा है. आज जैसे पढ़लिख कर पिछड़ों का युवा भड़क रहा है वैसे ऊंची ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य जातियों की औरतें भड़क न जाएं, यह कोशिश जारी है.

हिजाब के सहारे इसलाम धर्म के पाखंडी दुकानदार भी यही कर रहे हैं. छोटी लड़कियों को बिना कारण धर्म के दलदल में धकेल दिया गया है. उन्हें अपने साथ की पिछड़ी जमात की लड़कियों से दूर कर दिया गया है. उन्हें घरों में बंद रहने को मजबूर कर दिया गया है. मुसलिम पाखंडी चाहते हैं कि लड़कियां हिजाब पहन कर अपना धर्म जगजाहिर करती फिरें. इस से जब वे दूसरों से अलग दिखेंगी तो उन के पास कोई नहीं फटकेगा.

जैसे कोई भगवा साड़ी पहनी साध्वियों को अपना दोस्त नहीं बनाता वैसे ही हिजाब पहनने वालियां केवल धर्म की दीवारों की कैद में, दोस्तों के बिना खुले आसमां को भूल कर, रहने को मजबूर हो रही हैं. पिछड़ी जातियां, चाहे हिंदुओं की हों या मुसलमानों की, जो कुछ भी कदम आगे बढ़ी थीं, अब वे फिर अंधेरे कुएं में धकेली जा रही हैं.

बच्चों में दिल की बीमारी

देश में हर साल 17 लाख लोग हृदय संबंधी रोग के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं. इस में एक बड़ी संख्या छोटे बच्चों की भी है. विडंबना यह है कि सरकारी अस्पतालों की कमी और प्राइवेट अस्पतालों की ऊंची फीस ने इस बीमारी को बच्चों के लिए घातक बना दिया है.

देश में लगातार तेजी से हृदय संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है. भारत में हर साल 17 लाख लोगों की हृदय रोग से मौत हो जाती है. लोग अकसर इस बीमारी को सिर्फ बुढ़ापे की बीमारी मान कर चलते हैं जोकि सरासर गलत है. एक रिसर्च के अनुसार, प्रति 1,000 में 10 बच्चे हृदय रोग से संबंधित बीमारियों से ग्रस्त हैं.

जब से कोविड महामारी आई है तब से हृदय रोग संबंधित बीमारियों ने और भी घातक रूप ले लिया है. कोविड की वजह से बच्चों की दिल की बीमारी को ले कर मातापिता काफी परेशान रहते हैं. आएदिन छोटे बच्चों में जन्मजात दिल की बीमारियों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.

दुखद यह कि इस बीमारी से जू झ रहे बच्चों का महज 10-15 फीसदी ही इलाज हो पाता है. यही कारण है कि जवान होने से पहले ही ये बच्चे दम तोड़ देते हैं. जिन बच्चों की बीमारी डाइगनोस हो चुकी है उन्हें कोविड महामारी ने और भी गंभीर बना दिया है क्योंकि कई सरकारी अस्पतालों में कोविड की वजह से इन बच्चों का इलाज नहीं हो पाया.

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ज्यादातर बच्चों में जन्म से ही दिल में छेद, खून की नसों का सिकुड़ना, आर्टरी का ब्लौक होना और वौल्व में परेशानी की समस्या आती है. एक शोध में पाया गया है कि हर साल उत्तरी भारत में करीब 14 हजार बच्चे वहीं पूर्वी और दक्षिणी भारत में 1500 और 6500 सीएचडी यानी जन्मजात हृदय विकार के साथ पैदा होते हैं जिन्हें जन्म के पहले ही साल में इलाज की जरूरत होती है, पर ऐसा हो नहीं पाता, जो चिंता का विषय है.

8 साल का रयान खान भी ऐसे ही बच्चों में से एक है. बचपन से ही रयान को हार्ट की समस्या थी. रयान के पिता मुस्तकीम खान, जोकि गढ़मुक्तेश्वर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, ने बताया, ‘‘मैं अपने बच्चे की बीमारी को ले कर बहुत परेशान था. मैं कई सरकारी अस्पतालों में गया लेकिन कहीं से भी मु झे सही तरीके से इलाज नहीं मिल पाया. दिनोंदिन इस की हालत बिगड़ती जा रही थी. तब जा कर किसी ने बताया कि हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया, जो दिल्ली में है, जाओ और बच्चे को दिखाओ.

‘‘मैं वहां पर पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई. वहां रयान के सारे डौक्यूमैंट्स तैयार कराए गए और मु झे 19 नवंबर, 2017 को मेदांता अस्पताल भेजा गया. जहां रयान की कई जांचें की गईं और

21 नवंबर, 2017 को इस का औपरेशन हो गया. आज मेरा बच्चा ठीक है.’’

मुस्तकीम खान एक बहुत साधारण व्यक्ति हैं. उस दौरान परिवार की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी, वे यह सोच भी नहीं सकते थे कि उन के बेटे रयान का औपरेशन मेदांता जैसे बड़े अस्पताल में भी हो सकता है, क्योंकि इस से पहले

वे सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगातेलगाते थकहार चुके थे. आज हकीकत यह है कि दिल की बीमारियों से जुड़े बच्चों में से महज 17 फीसदी ही बच्चों का इलाज हो पाता है जो कि बेहद चिंताजनक स्थिति है. दरअसल, रोगियों के अभिभावक सरकारी अस्पतालों की भारी कमी और प्राइवेट अस्पतालों की महंगी फीस के चलते अपने पांव पीछे खींचने को मजबूर रहते हैं.

10 वर्षीया आफिया गाजीपुर की रहने वाली है. आफिया को भी बचपन से दिल की बीमारी थी. आफिया की मां अफसाना बेहद भावुक हो कर अपनी बात सा झा करने लगीं. वे कहती हैं, ‘‘जब आफिया 3-4 महीने की थी तो इसे वौमिटिंग, सर्दीजुकाम, पसीना आना और बुखार होने लगा था. लोकल डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कुछ दवाएं दीं मगर उस से ठीक नहीं हुई. फिर डाक्टर ने कहा कि इसे सरकारी अस्पताल एम्स में ले जाओ.

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‘‘एम्स में कहा गया कि इस की सर्जरी करनी पड़ेगी, जिस का एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च बताया गया था. प्राइवेट अस्पताल में जा नहीं सकती थी क्योंकि मेरी आर्थिक स्थिति किसी तरह से घर चलाने की ही बन पा रही थी.

‘‘उस के बाद एक डा. बी बी गुप्ता ने बताया कि आप जा कर डाक्टर योगेश से मिलना जो कि इस की फ्री में सर्जरी करा देंगे. डा. योगेश से मिलने के बाद मेरी मुलाकात डा. कृष्ण कुमार अग्रवाल से हुई थी. उन्होंने सबकुछ चैक करने के बाद ही हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया संस्था की तरफ से मु झे डौक्यूमैंट्स तैयार कर एक बड़े प्राइवेट अस्पताल भेज दिया, जहां मेरी बच्ची के हार्ट की सर्जरी हुई.’’

बच्चों की हार्ट से संबंधित कई बीमारियां हैं जो नन्ही सी जान को भी नहीं बख्शतीं. ऐसी बीमारियां असियानौटिक कौन्जेनिटल हार्ट डिजीज वैंट्रीकुलर सैप्टल डिफैक्ट, एट्रियल सैप्टल डिफैक्ट, हाइपोप्लास्टिक लैफ्ट हार्ट सिंड्रोम जैसे नामों से जानी जाती हैं. इस के और भी कई प्रकार हैं और ये बच्चों पर अलगअलग तरह से इफैक्ट करती हैं.

5 वर्षीया लक्षिता शर्मा को हार्ट की समस्या थी. लक्षिता की मां अनीता शर्मा ने बताया, ‘‘जब लक्षिता 8 महीने की थी तो उसे खांसी बहुत होती थी. बहुत से डाक्टर्स को दिखाया पर कोई फायदा नहीं हुआ. एक डाक्टर ने इको के लिए सजेस्ट किया. पता चला कि उसे तो दिल की बीमारी है.’’ फिर अनीता भागीभागी एम्स गईं लेकिन वहां की भीड़ देख कर उन्हें नंबर ही नहीं मिला.

नंबर मिला तो लंबी डेट्स के कारण वे निराश हो गईं. तब उन्हें हार्ट केयर फाउंडेशन के बारे में किसी ने बताया. वे कहती हैं, ‘‘वहां जाने के बाद मु झे उम्मीद की किरण दिखने लगी और मैं हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया की वजह से अपनी बच्ची का इलाज करा पाई. आज मैं उस संस्था की शुक्रगुजार हूं कि मेरी बच्ची को जीवनदान मिल गया.’’

ऐसे ही 13 वर्षीय विवेक को भी दिल की बीमारी थी. विवेक के मातापिता बहुत परेशान थे. विवेक की मां रेखा का दर्द भी कुछकुछ अफसाना जैसा था. उन्होंने बताया, ‘‘विवेक जब 11 महीने का था तो इस को फीवर रहता था और फीवर उतरता नहीं था. डाक्टर को दिखाया तो पता चला, इसे हार्ट की बीमारी है और सर्जरी की जरूरत है. प्राइवेट अस्पतालों में गई तो 2-3 लाख रुपए का खर्चा बताया.’’

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वे आगे कहती हैं, ‘‘मेरे पति की कमाई इतनी नहीं थी कि प्राइवेट अस्पतालों के बिल भर सकें. कई सरकारी अस्पतालों के धक्के खाने के बाद मु झे पता चला कि एक संस्था है जो न सिर्फ इलाज कराती है बल्कि औपरेशन का भी खर्चा भी उठाती है. बस, फिर क्या था, आज मेरा बच्चा आप के सामने बिलकुल स्वस्थ है.’’

देखा गया है कि अमेरिका जैसे देशों में 5 साल की उम्र में ही दिल से संबंधित बीमारी से पीडि़त बच्चों की सर्जरी कर दी जाती है. विडंबना यह है कि भारत में इस तरह की सर्जरी ज्यादातर मामलों में देरी से होती है. इस के कई कारण हैं जैसे, सरकारी अस्पतालों की कमी, इलाज सही से न होना, लंबीलंबी डेट्स मिलना इत्यादि. मगर वहीं हार्ट केयर फाउंडेशन औफ इंडिया जैसी संस्था भी है जो अपने स्तर पर ऐसे बच्चों का मुफ्त में इलाज करवा कर परिवार की मदद कर रही है.

हार्ट केयर फाउंडेशन फंड की डा. वीणा अग्रवाल बताती हैं, ‘‘फंड संस्थापक का उद्देश्य यही है कि किसी व्यक्ति को दिल की बीमारी से इसलिए नहीं मरना चाहिए कि वह इलाज का खर्च नहीं उठा सकता है.’’ वहीं नैना अग्रवाल आहूजा ने बताया, ‘‘आज जरूरत इस बात की है कि बीमारी का सही समय पर डाइगनोस होना और सही तरीके से इलाज कराना या सही इलाज होना.’’

यह बात सही है कि हमारे देश में न तो सही समय पर डाइगनोस का पता लगाया जाता है, न ही इलाज होता है. इस का बड़ा कारण है कि सरकारी अस्पतालों में भीड़ और लंबीलंबी डेट्स का मिलना, जिस के चलते लोग इलाज नहीं करा पाते. वहीं दूसरी तरफ प्राइवेट अस्पतालों की फीस इतनी ऊंची होती है कि आम इंसान के लिए उन की फीस भर पाना मुश्किल होता है. ऐसे में जरूरत है कि सब से पहले केंद्र सरकार हैल्थ सैक्टर को मजबूत और सक्षम बनाए क्योंकि इस की लचर व्यवस्था को हम सब कोविड महामारी के दौरान  झेल चुके हैं.

घर आंगन में ऐसे लगाएं सब्जियां

घर के बगीचे में सब्जियों की खेती करने को हम किचन गार्डन कह सकते हैं. किचन गार्डन यानी गृहवाटिका में सब्जी उत्पादन का प्रचलन पुराने समय से ही चला आ रहा है. इस में सब्जी उत्पादन का खास मकसद यह होता है कि पूरे परिवार को सालभर ताजा सब्जी मिलती रहे.

इस किचन गार्डन में सब्जियों के अलावा फलफूल वगैरह को भी उगाया जा सकता है. इसी वजह से इसे परिवार आधारित रसोई उद्यान यानी गृहवाटिका या किचन गार्डन भी कहते हैं.

इस तरह के सब्जी उत्पादन में खास मकसद माली फायदा न हो कर परिवार के पोषण लैवल को बढ़ाना व घर में ही ताजा सब्जियों का उत्पादन करना होता है. सब्जियों का चयन परिवार के सदस्यों के मुताबिक ही किया जाता है.

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आप अपने घर के आंगन में, गमलों में, घर की छत पर या आप के आसपास कोई खाली जगह है, तो आसानी से घर में सब्जी का बगीचा यानी किचन गार्डन बना सकते हैं. इस से आप को ताजा सब्जियां भी मिलेंगी और साथ ही साथ उत्पादन ज्यादा हो तो आप इन सब्जियों को बेच कर कुछ पैसे भी कमा सकते हैं.

घर पर सब्जियां लगाने के तरीके

घर पर सब्जियां लगाने के कुछ खास तरीके हैं :

* गमले और प्लास्टिक ट्रे में सब्जी लगाना.

* घर की छत पर सब्जी लगाना.

* घर में खाली पड़ी जमीन में क्यारी बना कर सब्जी लगाना.

गमले और प्लास्टिक ट्रे में सब्जी लगाना : गमले में सब्जी उगाने के लिए आप को ज्यादा जगह की जरूरत नहीं पड़ती है. बालकनी या ऐसी थोड़ी सी भी खाली जगह, जहां गमला रख सकते हैं, वहां बहुत आसानी से गमले में सब्जियों को उगा सकते हैं.

गमला मिट्टी का हो, तो यह काफी अच्छा रहेगा. इस के अलावा आप अपने घर पर पड़ी खराब बालटियां, तेल के कनस्तर, लकड़ी की पटरियां आदि भी इस्तेमाल कर सकते हैं, बस उन के नीचे 2 या 4 छेद कर के पानी की निकासी जरूर कर दें.

गमले के पेंदे के छेद पर कुछ कंकड़ डाल देंगे तो मिट्टी जम कर छेद बंद नहीं होंगे. गमलों में टमाटर, बैगन, गोभी जैसी सब्जियां आसानी से उगाई जा सकती हैं.

टिन या प्लास्टिक की ट्रे, जिस में 3 या 5 इंच मिट्टी आती हो, उस में हम हरा धनिया, मेथी, पुदीना वगैरह सब्जियां उगा सकते हैं. भिंडी वगैरह के पौधे को गमले में गिरने से बचाने के लिए सपोर्ट देते हुए कुछ स्टिक जरूर गाड़ दें.

गमले में लौकी, तुरई, करेला, मूली, गोभी, भिंडी, प्याज वगैरह सब्जियों को लगा सकते हैं. इस तरह के पौधों के लिए गमले का आकार थोड़ा बड़ा होना चाहिए, जिस में 10-12 किलोग्राम मिट्टी आ सके.

बेलदार सब्जियों जैसे लौकी, तुरई, टिंडा, करेला, सेम आदि के लिए बड़े गमले की जरूरत होती है. कम से कम 12 इंच या उस से बड़े गमले में बेलदार सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

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बैगन, मिर्च, टमाटर, प्याज, अदरक, मिर्च जैसी छोटी सब्जियों के लिए मध्यम आकार के गमले (6 से 10 इंच) सही रहते हैं. धनिया, पालक, मेथी, सौंफ जैसी सब्जियों के लिए कम ऊंचाई, लेकिन ज्यादा चौड़ाई वाले गमले सही रहते हैं.

घर की छत पर सब्जी लगाना : सब्जियां लगाने से पहले छत पर एक मोटी प्लास्टिक की चादर बिछा दें, फिर ईंटों या लकड़ी की पट्टियों से चारदीवारी बना लें. उस में समान रूप से मिट्टी बिछा दें और पानी की निकासी भी रखें.

छत पर सब्जी लगाने से गरमी के दिनों में आप का घर भी ठंडा रहता है, जिस से आप को काफी राहत मिलेगी.

घर में खाली पड़ी जमीन में क्यारी बना कर सब्जी लगाना : हमारे घर में या घर के आसपास कोई खाली जगह हो, तो ऐसी जगह का इस्तेमाल हम सब्जियां उगाने के लिए कर सकते हैं.

यदि वहां की मिट्टी ठोस हो, तो पहले उसे खुदाई कर के खेत जैसी बना लें और अगर मुमकिन हो, तो उस में किसी तालाब की उपजाऊ मिट्टी और गोबर की सड़ी खाद वगैरह डाल कर अच्छी तरह से जुताई कर दें. उस के बाद उस में छोटीछोटी क्यारियां बना कर आप अपनी मनपसंद सब्जियों को लगा सकते हैं.

अगर आप के पास सिंचाई के लिए पानी की कमी हो, तो किचन से निकले फालतू पानी को पाइप द्वारा सब्जियों की सिंचाई कर सकते हैं. आजकल आरओ से पानी के शुद्धीकरण में काफी पानी बरबाद होता है, इसलिए आप एक पतली नली से यह पानी किसी सब्जी की क्यारी में या पेड़ की जड़ में छोड़ सकते हैं.

अगर आप के पास बड़ा किचन गार्डन लगाने की जगह है, तो आप क्यारी बना कर लगा सकते हैं. उस में एक भाग में फल वाले पेड़ और दूसरे भाग में सब्जियों के पौधे लगाए जा सकते हैं.

पेड़ इस तरह से लगाएं कि वे दूसरे पौधों पर छाया न डालें. इस हिसाब से आप के प्लौट का उत्तर और उत्तरपश्चिम का कोना फलदार पेड़ों के लिए सही रहता है.

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कुछ फलदार पेड़ और सब्जियां साथसाथ भी लगाई जा सकती हैं. किचन गार्डन बड़ा होने पर हम इस तरह की सब्जियां भी लगा सकते हैं, जिन को निकाल कर उन को लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है, जैसे प्याज, लहसुन, टमाटर, अदरक वगैरह. इसी तरह मटर को भी लगाया जा सकता है.

सब्जियों का चयन आप को इस तरह से करना चाहिए कि बाजार में आने से पहले वे सब्जियां आप को मिल जाएं. जो सब्जियां महंगी होती हैं, उन को भी किचन गार्डन में प्राथमिकता देनी चाहिए.

घर के पिछले हिस्से में ऐसी जगह का चुनाव करें, जहां सूरज की रोशनी पहुंचती हो, क्योंकि सूरज की रोशनी से ही पौधे का विकास मुमकिन है. पौधों को रोज 5-6 घंटे सूरज की रोशनी मिलना बहुत जरूरी होता है, इसलिए गार्डन छाया वाली जगह पर न बनाएं.

बगीचे के एक किनारे खाद का गड्ढा बनाएं, जिस में घर का कचरा और पौधों का अवशेष डाला जा सके, जो बाद में सड़ कर खाद के रूप में इस्तेमाल किया जा सके.

बगीचे की सुरक्षा के लिए कंटीली झाड़ी व तार से बाड़ लगाएं, जिस में लता वाली सब्जियां उगाएं. रोपाई की जाने वाली सब्जियों के लिए किसी किनारे पर पौधशाला बनाएं, जहां पौध तैयार की जा सके.

जड़ वाली सब्जियों को मेंड़ों पर उगाएं. समयसमय पर निराईगुड़ाई करें. सब्जियों, फलों व फूलों के तैयार होने पर तुड़ाई करते रहें. सब्जियों का चयन इस तरह करें कि सालभर मिलती रहें.

घर में कौनकौन सी सब्जियां लगा सकते हैं?

रबी के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियां सितंबरअक्तूबर महीने में लगा सकते हैं, जैसे फूलगोभी, पत्तागोभी, शलजम, बैगन, मूली, गाजर, टमाटर, मटर, सरसों, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी वगैरह.

खरीफ के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियों को लगाने का सही समय जूनजुलाई का महीना है. इस समय भिंडी, मिर्च, लोबिया, अरबी, टमाटर, करेला, लौकी, तोरई, शकरकंद वगैरह सब्जियों को लगा सकते हैं.

जायद के मौसम की सब्जियां : इस मौसम की सब्जियां फरवरीमार्च और अप्रैल महीने में लगाई जाती हैं. इस में टिंडा, खरबूजा, तरबूज, खीरा, ककड़ी, टेगसी, करेला, लौकी, तुरई, भिंडी जैसी सब्जी लगा सकते हैं.

गमले में फलसब्जी के पौध लगाने की विधि

  1. गमले में पौध तैयार करने के लिए आप को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई विधि बताई जा रही है. इस विधि का आप इस्तेमाल कर सकते हैं.
  2. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, गमले में पौधे लगाने के लिए गमले का आकार थोड़ा बड़ा होना चाहिए, जिस में तकरीबन 10-12 किलोग्राम या ज्यादा मिट्टी आ जाए.
  3. गमले को सूखी उपजाऊ मिट्टी से भर कर फिर उस में से 2 किलोग्राम के तकरीबन मिट्टी निकाल दें और बाकी मिट्टी को फर्श या जमीन पर डाल कर इस में 200 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश, एक किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट अच्छी तरह से मिला लें.
  4. अगर मिट्टी में पोषक तत्त्वों (जिंक, सल्फर, कौपर, मैगनीज, बोरोन वगैरह) की कमी हो, तो बाजार से ले कर इन की थोड़ी मात्रा मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, फिर इस मिट्टी को गमले में भर दें.
  5. गमला ऊपर से तकरीबन 2-3 इंच खाली रखना चाहिए.
  6. गौरतलब है कि गमलों में लगाने के लिए कलम, बडिंग या गूटी से तैयार अच्छी प्रजाति के पौधे ही लगाने चाहिए. ऐसे पौधे 1 से 2 साल में फल देने लगते हैं. नीबू की प्रजाति ऐसी लगाएं, जिन पर साल में 2 बार फल जरूर आएं या 12 महीने फलफूल लगे रहें.
  7. गमले में पौधे लगा कर उस में पानी लगाएं, इस तरह मिट्टी नीचे दब जाएगी. गमला ऊपरी सतह पर 2-3 इंच खाली रहना चाहिए, ताकि समयसमय पर पानी लगाया जा सके.
  8. गमलों में जरूरत के मुताबिक पानी देते रहें. फूल आते समय ज्यादा पानी दें. पौधों को रोशनी भी मिलनी चाहिए, इसलिए ऐसी जगह रखें कि दिन में कुछ घंटे उन को सूरज की रोशनी मिल सके.
  9. जिन गमलों में सीधे बीज बो कर सब्जी (जैसे भिंडी, पालक, मेथी, धनिया वगैरह) लगानी हो, तो उन में बीजों को मिट्टी में मिला कर फिर हलका पानी लगाएं. आने वाले दिनों में सही नमी बनाए रखें. घर में गमलों की नियमित देखभाल करते रहें.

छत पर सब्जी लगाना

अगर आप के मकान की छत खुली हुई है, तो उस पर पौलीथिन की शीट डाल कर उस के ऊपर 4-5 इंच मोटी गोबर की सड़ी खाद मिली मिट्टी की परत डाल कर भी उथली जड़ वाली सब्जियां, जैसे पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, टमाटर, धनिया, पुदीना, बथुआ, पालक, मेथी वगैरह उगा सकते हैं.

12 इंची या जरूरत के मुताबिक (उगाए जाने वाले पेड़पौधों के मुताबिक) या इस से बड़े मिट्टी, सीमेंट या प्लास्टिक के बने गमलों का इस्तेमाल करें.

गमलों को सूखी उपजाऊ मिट्टी से भर लें और फिर तकरीबन एक किलोग्राम मिट्टी को गमले से वापस निकाल लें, बाकी मिट्टी को फर्श या जमीन पर पलट दें. अब इस में 50 ग्राम डीएपी, 50 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश या फिर 100 ग्राम डीएपी, 500 ग्राम केंचुआ की खाद (वर्मी कंपोस्ट) या गोबर की खाद अच्छी तरह मिला दें.रोग व कीट नियंत्रण बैगन, भिंडी, फूलगोभी, पत्तागोभी, टमाटर में सफेद मक्खी सूंड़ी की समस्या ज्यादा होती है. यदि पत्तियां हिलाने से हरे रंग के कीट या रस चूसने वाले कीट या बारीक सफेद मक्खी दिखाई दे, तो पौधों पर पानी की बौछार मार कर धुलाई करें या नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर, उस पानी को ठंडा कर के छान कर पौधों पर छिड़काव करें, वरना कृषि माहिरों से भी संपर्क कर सकते हैं.

अगर आप को गमले में सब्जी की तैयार नर्सरी बैगन, टमाटर, पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, मिर्च, शिमला मिर्च आदि में से कोई भी (जिस का मौसम हो) लगानी है, तो उस का एक पौधा या बड़े गमले में एक से ज्यादा पौधे लगा कर उस में पानी डालें और ध्यान रखें कि पानी गमले से बाहर न निकले, इस के लिए गमलों को तकरीबन 2 इंच खाली रखें. पानी लगाने पर अगर पौधा गिर जाता है, तो उसे सीधा खड़ा कर मिट्टी का सहारा दें.

रूसी बर्बर हमला: पुतिन, दुनिया का विलेन

व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अद्भुत साहस और क्षमता का प्रदर्शन कर सारे विश्व को संदेश दे दिया है कि एक बहुत छोटा देश भी बड़े देश के सामने सिर झुकाने से इनकार कर सकता है. अमेरिका और यूरोप अभी आर्थिक शिकंजा ही कस रहे हैं पर उन से भी रूस गरीबी के गहरे गड्ढे में दशकों तक के लिए सिर्फ व्लादिमीर पुतिन की हठधर्मिता के कारण गिर जाएगा.

रूस और यूक्रेन के बीच विवाद नया नहीं है. यह विवाद 2014 से जारी है. यह वर्चस्व की एक लंबी लड़ाई है, जिस का पूर्ण समाधान हालफिलहाल निकलता नहीं दिख रहा है. इस लड़ाई में एक तरफ खुद को महाशक्ति मानने वाला रूस और उस की समर्थक सेनाएं हैं और दूसरी तरफ यूक्रेन व उस के पीछे नाटो की शक्ल में अमेरिका की कूटनीतिक ताकत है.

1991 तक यूक्रेन पूर्ववर्ती सोवियत संघ (यूएसएसआर) का हिस्सा था. यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोप और पूर्व में रूस से जुड़ी हुई है. रूस के विघटन के बाद जो देश अलग हुए थे उन में यूक्रेन भी एक था. क्रीमिया भावनात्मक रूप से रूस के साथ जुड़ा हुआ था, जिस को वर्ष 2014 में रूस ने आजाद कर अपने नियंत्रण में ले लिया था. इस के अलावा यूक्रेन के डोनबास, लुहांस्कन और डोनेस्ततक इलाकों में रूसी समर्थक लोग बहुत ज्यादा संख्या में हैं. यूक्रेन के बाहर बेलारूस और जौर्जिया पूरी तरह से रूस के साथ हैं. यानी एक तरह से यूक्रेन पूरी तरह रूस और उस के समर्थक देशों से घिरा हुआ है.

आइए उन कारणों की बात करते हैं जिन की वजह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है. कई महीनों तक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर हमले की किसी भी योजना से इनकार करते रहे, लेकिन अचानक उन्होंने यूक्रेन में ‘स्पैशल मिलिटरी औपरेशन’ का ऐलान कर दिया.

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इस लड़ाई को सम?ाने के लिए हमें 8 साल पीछे यानी साल 2014 में जाना होगा जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था. उस वक्त रूस समर्थित विद्रोहियों ने देश के पूर्वी हिस्से में एक अच्छेखासे इलाके पर कब्जा कर लिया था. उस वक्त से ले कर आज तक इन विद्रोहियों की यूक्रेन की सेना से भिड़ंत लगातार जारी है. पुतिन ने मिन्स्क शांति सम?ाते को खत्म कर यूक्रेन के 2 अलगाववादी क्षेत्रों में सेना भेजने की घोषणा के बाद कहा था, ‘हम इन क्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिए सेना भेज रहे हैं. मगर अब उन का इरादा यूक्रेन में तख्तापलट का है.’

यूक्रेन से चिढ़ते हैं पुतिन

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन को पश्चिमी देशों की कठपुतली मानते हैं. वे यूक्रेन की यूरोपियन यूनियन, नाटो और अन्य यूरोपीय संस्थाओं के साथ नजदीकी का विरोध करते रहे हैं. उन का कहना है कि यूक्रेन पूर्णरूप से कभी एक देश था ही नहीं. वहां रहने वाले भावनात्मक रूप से रूस से जुड़े हुए हैं. ऐसी धारणा फैला कर रूस काफी वक्त से यूक्रेन पर पूर्वी हिस्से में ‘जनसंहार’ का आरोप लगा कर युद्ध के लिए माहौल तैयार कर रहा था. उस ने विद्रोही इलाकों में लगभग 7 लाख लोगों के लिए पासपोर्ट भी जारी किए हैं. माना जाता है कि इस के पीछे रूस की मंशा अपने नागरिकों की रक्षा के बहाने यूक्रेन पर कार्रवाई को सही ठहराना है.

विवाद की बड़ी वजह है नाटो

यों तो रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की कई वजहें हैं लेकिन इन में सब से बड़ी वजह है नौर्थ अटलांटिक ट्रीटी और्गेनाइजेशन यानी नाटो. इसी की वजह से सारा बवाल शुरू हुआ है. गौरतलब है कि वर्ष 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ से निबटने के

लिए अमेरिका ने नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) का गठन किया था. इस संगठन को रूस को काउंटर करने के लिए बनाया गया था.

अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनिया के 30 देश नाटो के सदस्य हैं. यदि कोई देश नाटो देश पर हमला करता है तो वह हमला पूरे नाटो देश पर माना जाता है और उस का मुकाबला सभी नाटो सदस्य देश एकजुट हो कर करते हैं. यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता है, लेकिन यह बात रूस को रास नहीं आ रही है. इसी वजह से ही विवाद जारी है.

रूस का मानना है कि अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हुआ तो उस के सैनिक रूस-यूक्रेन सीमा पर डेरा जमा लेंगे. इस वजह से रूस को लगता है कि नाटो जैसे संगठन के सैनिक अगर उस सीमा पर आ जाते हैं तो उस के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी. रूस चाहता है कि नाटो अपना विस्तार न करे.

राष्ट्रपति पुतिन इसी मांग को ले कर यूक्रेन व पश्चिमी देशों पर दबाव डाल रहे थे. गौरतलब है कि नाटो में 30 लाख से अधिक सैनिक हैं, जबकि रूस के पास सिर्फ 12 लाख सैनिक हैं. इस की वजह से रूस को बड़ा खतरा महसूस होता है. यही वजह है कि रूस किसी भी कीमत पर यूक्रेन को इस का सदस्य नहीं बनने देना चाहता. रूस चाहता है कि नाटो उसे लिखित रूप में यह आश्वासन दे कि वह यूक्रेन को नाटो में कभी शामिल नहीं करेगा. इस के अलावा रूस का कहना है कि नाटो उन देशों को शामिल न करे, जो देश सोवियत संघ से अलग हुए हैं.

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क्रीमिया विवाद

रूस ने वर्ष 2014 में यूक्रेन के शहर क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था. दरअसल, क्रीमिया में रूस समर्थित लोग बहुसंख्यक हैं. वे रूसी भाषा बोलते थे और रूस से अधिक लगाव रखते थे. साल 2014 में रूस समर्थित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच यूक्रेन के राष्ट्रपति थे, लेकिन राजधानी कीव में हिंसक प्रदर्शन के बाद यानुकोविच को सत्ता गंवानी पड़ी थी. इस के बाद रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया. क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह में लोगों ने रूस के साथ जाने के लिए मतदान किया. मगर तब से यूक्रेन और पश्चिमी देश क्रीमिया को रूस में मिलाने को अवैध मानते हैं.

इस के साथ ही क्रीमिया में एक बंदरगाह है, सेवस्तोपोल पोर्ट, जो रूस के लिए सामरिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण है. यह ऐसा बंदरगाह है जो रूस को साल के बारहों मास समुद्र से कनैक्टिविटी देता है. इस वजह से यूक्रेन डरा हुआ है कि रूस उस के और भी क्षेत्रों पर कब्जा कर सकता है. सो, यूक्रेन नाटो में शामिल हो कर खुद की सुरक्षा चाहता है.

गैस पाइपलाइन

रूस और यूरोप गैस पाइपलाइन विवाद भी लड़ाई की एक वजह है. रूस इस पाइपलाइन के जरिए गैस को यूरोप तक भेजता था. यह पाइपलाइन यूक्रेन से हो कर जाती थी, रूस को उन्हें ट्रांजिट शुल्क देना पड़ता है. रूस हर साल करीब 33 बिलियन डौलर का भुगतान युक्रेन को कर रहा था. यह राशि यूक्रेन के कुल बजट की 4 फीसदी है. रूस को इस कारण बहुत महंगी (10 बिलियन डौलर) नौर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन की शुरुआत करनी पड़ी. इस के जरिए रूस ने समुद्र में पाइपलाइन डाल कर यूरोप को गैस पहुंचाई थी. ऐसे में रूस को लगता है कि अगर वह यूक्रेन के कुछ क्षेत्र पर कब्जा करता है तो उसे गैस पाइपलाइन भेजना आसान होगा.

भीषण संघर्ष जारी

रूस और यूक्रेन के बीच भीषण जंग जारी है. यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव में रूसी सेना के ताबड़तोड़ हमले जारी हैं. दोनों देशों के बीच बेलारूस में हुई बातचीत बेनतीजा रही. एक ओर जहां संयुक्त राष्ट्र यूक्रेन की मदद के लिए कमर कस कर खड़ा है वहीं राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना को ‘स्पैशल अलर्ट’ पर रखने का आदेश दिया है जिस में परमाणु हथियार भी शामिल हैं. अब तक दोनों ओर से सैकड़ों सैनिकों की मौत हो चुकी है. साथ ही, दर्जनों लड़ाकू विमान, हैलिकौप्टर और टैंक नष्ट हो चुके हैं.

राजधानी कीव के करीब 40 मील तक रूसी सेना का जमावड़ा लगा है. वहीं संसाधनों की कमी के बावजूद यूक्रेन पूरी मुस्तैदी से अपनी सरहदों की रक्षा में जुटा है. चारों ओर तबाही का मंजर है. अब तक यूक्रेन में 352 लोगों की जान जा चुकी है, जिन में 16 बच्चे भी शामिल हैं. इन के अलावा 1,684 लोग घायल हुए हैं. यूनाइटेड नैशंस के मुताबिक, यूक्रेन छोड़ कर दूसरे देशों में पलायन करने वाले शरणार्थियों की संख्या 3 लाख 86 हजार से ज्यादा हो गई है.

ईयू ने लगाए प्रतिबंध

यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस पर ईयू ने कई कड़े प्रतिबंध लगाए हैं. इस के जवाब में रूस ने भी बड़ा पलटवार किया है. रूस ने 36 देशों के लिए हवाई क्षेत्र को बंद कर दिया है जिन में यूरोपियन यूनियन के सदस्य देश जरमनी, फ्रांस, स्पेन और इटली भी शामिल हैं.

इस बीच यूरोपियन यूनियन की सदस्यता के लिए यूक्रेन ने आवेदन कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्र्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए एक आवेदन पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. यूक्रेन की संसद ने बाकायदा इस का ऐलान किया है. जेलेंस्की के इस कदम से पुतिन का पारा और चढ़ गया है.

यूक्रेन को 50 करोड़ यूरो की आर्थिक मदद

यूक्रेन पर रूस के हमले ने दुनिया को 2 धड़ों में बांट दिया है. एक तरफ भारत जैसा देश तटस्थ रहने की कोशिश में है तो वहीं चीन और पाकिस्तान ने भी दूरी बना रखी है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जरमनी जैसे पश्चिमी व यूरोपीय देश खुल कर रूस के सामने आ गए हैं. इन में से कई देशों ने यूक्रेन को सैन्य हथियार मुहैया कराने से ले कर अन्य मदद देने की बात कही है.

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नाटो चीफ ने यूक्रेन को एंटी टैंक हथियार और मिसाइल देने का एलान किया है. अब तक कुल 21 देशों की ओर से यूक्रेन को मदद देने का एलान हो चुका है. यूरोपीय संघ ने औपचारिक रूप से यूक्रेनी सशस्त्र बलों को उपकरण और आपूर्ति के लिए 50 करोड़ यूरो (लगभग 42 अरब 37 करोड़ 10 लाख रुपए) उपलब्ध कराने के प्रावधान को मंजूरी दे दी है. ईयू ने इस मदद में पहली बार घातक हथियारों को भी शामिल करने का फैसला लिया है.

क्यों है भारत तटस्थ

भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने से दूरी बनाई हुई है और वार्त्ता के जरिए समस्या का समाधान खोजने पर जोर दे रहा है. भारत यूक्रेन को ले कर सावधानी से कदम उठा रहा है. वह रूस और अमेरिका दोनों से ही नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता. कुछ खास वजहों पर नजर डालते हैं.

भारत के लिए यूक्रेन संकट 2 खंभों के बीच बंधी रस्सी पर चलने जैसा है, जिस की वजह से उसे अपने पुराने दोस्त रूस और पश्चिम में नए दोस्तों का दबाव ?ोलना पड़ रहा है.

रूस भारत के हथियारों की सप्लाई करने वाला सब से बड़ा आपूर्तिकर्ता है और उस ने भारत को एक बैलिस्टिक मिसाइल सबमरीन दी है.

भारत के पास 272 सुखोई, 30 फाइटर जेट हैं. ये भारत को रूस से ही मिले हैं. भारत के पास पनडुब्बियां और 1,300 से ज्यादा टी-90 टैंक्स हैं, जो रूस ने ही मुहैया कराए हैं.

अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत रूस से एस-400 एयर डिफैंस सिस्टम खरीदने के लिए अडिग रहा. एस-400 रूस की सब से एडवांस्ड लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है. इस मिसाइल सिस्टम की खरीद के लिए भारत ने रूस से 2018 में 5 अरब डौलर की डील की थी.

रूस यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में सभी मुद्दों पर भारत के साथ खड़ा रहा है.

उधर, अमेरिका ने रूस के खिलाफ कड़ी प्रतिक्रिया के लिए भारत पर दबाव बना रखा है. भारत के लिए अमेरिका भी रक्षा, व्यापार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार है. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कट्टरपंथी, धार्मिक और दंभी नेता ज्यादा पसंद आते हैं जिन में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी हैं.

अपने लोगों को निकालने की कवायद

जैसेजैसे युद्ध का रूप भयानक होता जा रहा है और रूस यूक्रेन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है, वैसेवैसे वहां फंसे विदेशी नागरिकों की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं, खासतौर से छात्रछात्राओं की, जिन को निकालने की कोशिशें लगातार हो रही हैं. यूक्रेन में 80 हजार विदेशी छात्रों में सब से ज्यादा भारतीय हैं. इस के बाद मोरक्को, अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान और नाइजीरिया के छात्रों का नंबर आता है.

खारकीव में भारतीय छात्र की मौत

खारकीव यूक्रेन का दूसरा सब से बड़ा शहर है जिसे रूस की सेना का पहला रणनीतिक लक्ष्य माना जा रहा है. जब रूसी सैनिक इस शहर में घुसे तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिस के बाद से रूस यहां बम बरसा रहा है. रूसी सेना खारकीव पर क्लस्टर बम और वैक्यूम बम जैसे विनाशकारी हथियारों से कहर बरपा रही है.

खारकीव में करीब 3,000 भारतीय छात्र फंसे हुए हैं. यहां हो रही गोलाबारी में एक भारतीय छात्र नवीन शेखरप्पा की मौत के बाद से छात्रों का भय चरम पर है. वहीं फंसे एक भारतीय डाक्टर स्वाधीन ने पिछले दिनों सोशल मीडिया के माध्यम से वहां के बदतर होते जा रहे हालात का जिक्र करते हुए कहा था कि वहां फंसे भारतीय छात्रों की हालत बहुत खराब है.

उन्होंने कहा था कि लोगों को खानेपीने की बहुत दिक्कत है. वे छात्रों को खाना दे रहे हैं लेकिन खुद उन के पास एक या दो दिन का ही खाना बचा था. उन्होंने कहा था कि अगर भारत सरकार ने जल्दी कोई ऐक्शन नहीं लिया तो छात्रों के लिए हालात बहुत खराब होने जा रहे हैं.

गौरतलब है कि खारकीव यूक्रेन की पश्चिमी सीमाओं से बहुत दूर है. इसलिए यहां से छात्रों को निकालना भी बहुत बड़ी चुनौती है. हवाई हमलों के बीच 1,500 किलोमीटर पैदल चल कर रोमानिया सीमा तक पहुंचना उन के लिए संभव नहीं है.

एक अनुमान के मुताबिक यूक्रेन में 20 हजार भारतीय छात्र हैं. ये वहां विभिन्न मैडिकल कालेजों में पढ़ रहे हैं. मैडिकल शिक्षा की कम लागत और आसान प्रवेश प्रक्रिया के कारण फिलीपींस और यूक्रेन को प्राथमिकता दी जाती है. भारतीय छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने की प्रक्रिया रोमानिया, हंगरी और पोलैंड के भारतीय दूतावासों के संयुक्त प्रयासों से पूरी की जा रही है. इन छात्रों ने सोशल मीडिया पर मोदी सरकार की बहुत छीछालेदरी की तो वह हिली और अंत में अपने नागरिकों को वापस लाने में सहयोग दिया.

युद्ध बनाम जनयुद्ध 

युद्ध सिर्फ त्रासदियों को जन्म देता है. हम ने इतिहास में कई युद्ध देखेसुने और ?ोले हैं. उन युद्धों से कुछ भी ऐसा हासिल नहीं हुआ जिसे सहेजा जाए. उन की कड़वी यादें और उन से हुए भारी नुकसान ही इतिहास के पन्नों में काले अक्षरों से अंकित हुए.

मौजूदा समय में पुतिन ने रूस के कपोलकाल्पनिक अस्थिर हो जाने के खतरे की संभावना मात्र के चलते एक लोकतांत्रिक व अपने से काफी कमजोर देश यूक्रेन को अस्थिर कर दिया है. सोचिए, एक शहर बसने में सदियां लग जाती हैं, सुंदर इमारतों के खड़े होने में संपत्तियां लुट जाती हैं, लेकिन उन के उजड़ने और बिखरने में मिनटभर भी नहीं लगा. आग में धूधू हो रहे कितने बेकुसूर यूक्रेनियन लोगों के घर उजड़ गए, कितने बेघर हो गए हैं, कितने मारे जा रहे हैं और कितने डर के साए में जी रहे हैं.

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रूस के और्थोडौक्स राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सनक ने दुनिया को महायुद्ध की स्थिति में ला खड़ा किया है. पुतिन एक ऐसा शासक है जो बिना जनता की राय के खुद को आजीवन सत्ता में बनाए रखने के लिए संविधान में संशोधन कर चुका है. उसी की राह पर चीन का राष्ट्रपति जिनपिंग भी वही संशोधन कर चुका है. वहीं, हमारे देश भारत के कई भारतीयों को डर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी राह जाते दिख रहे हैं, कहीं यहां भी वैसा ही न हो जाए.

दुनिया का हर तानाशाह ?ाठ बोलता है, ?ाठ नहीं बोलेगा तो तानाशाही नहीं चलेगी. हिटलर के ?ाठ से आज भी दुनियाभर के तानाशाह अपने लिए नाजीर सैट करते हैं. लेकिन वे सब यह भूल जाते हैं कि भ्रम की दुनिया एक समय तक ही रहती है.

जाहिर तौर पर पुतिन की आक्रामक हरकत से दुनियाभर में पुतिन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं. यहां तक कि रूस की राजधानी मास्को में भी कई रशियन नागरिक बिना राष्ट्रवाद का उन्माद लिए अपने ही राष्ट्रपति के खिलाफ सड़कों पर आंदोलन करते देखे गए और नारे लगाते रहे कि ‘‘पुतिन 21वीं सदी ने नया ‘जार’ है.’’

पुतिन को नागरिकों का एक युद्ध बाहर से तो एक युद्ध उस की सेना को युद्धभूमि में यूक्रेनवासियों से ?ोलने को मिल रहा है. जिस दौरान रूस के सैनिकों ने अपने भयानक हथियारों से यूक्रेन पर चढ़ाई की तो यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने अपनी भावुक अपील से यूक्रेन और दुनिया के नाम एक संदेश दिया. उन्होंने अपने संदेश में कहा, ‘‘दुनिया ने हमें अकेला छोड़ दिया है, लेकिन हम अपनी आजादी के लिए लड़ेंगे.’’ इस संदेश के बाद जेलेंस्की खुद भी युद्ध मोरचे में चले गए.

यह बात इतिहास में दर्ज होने जा रही है कि यह युद्ध ऐसा है जिस में तकरीबन निहत्थी, कमजोर सेना व छोटे से देश के मुकाबले दुनिया की दूसरी सब से बड़ी ताकत रूस पूरी दमखम से उतर गई और उस के कमांडर इन चीफ ने जरा भी नैतिकता नहीं बरती बल्कि परमाणु बम की धमकी तक दे डाली. इस के बावजूद यूक्रेन की जनता अपनी आजादी के लिए लगातार संघर्ष करती रही.

क्या ऐसा मंजर हम ने अतीत में शीतयुद्ध के दौर में हुए अमेरिका-वियतनाम युद्ध में नहीं देखा, जब दुनिया की सब से बड़ी महाशक्ति एक नवजात, कमजोर और अपनी नईनई आजादी का जश्न मना रहे देश वियतनाम को ध्वस्त करने पर आमादा थी. लेकिन वियतनामी लड़ाकुओं के आगे अंत में अमेरिका को मुंह की खानी पड़ी. इतिहास में जब इस का जिक्र आता है तो अमेरिकी आक्रमणकारी और वियतनामी संघर्ष की गाथा ही कानों में सुनाई देती है.

आज गलियारों में ऐसी चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं कि कहीं पुतिन के लिए यह युद्ध ‘वाटरलू’ न साबित हो जाए. इस में सब से बड़ी बात यह कि यूक्रेन का युद्ध अब जनयुद्ध में तबदील हो गया है. यूक्रेन की जनता इस युद्ध में खुद ही शामिल हो गई है. यह यूक्रेन के लिए इमोशनल वार में बदल चुका है. इसी का परिणाम है कि पुतिन जो सोच रहे थे कि वे 2-3 दिनों के भीतर ही यूक्रेन के दो चीरे कर आगे बढ़ जाएंगे और यूक्रेन अपने हथियार डाल देगा, वह नहीं हो सका. रूस के दांत फिलहाल यूक्रेन की साहसी जनता व सेना के आगे खट्टे हो गए हैं. इस की फ्रस्ट्रेशन इसी से सम?ा जा सकती है कि अपने हिसाब से सबकुछ ठीक नहीं होने के चलते पुतिन को परमाणु बम की गीदड़ भभकी देनी पड़ गई.

मान भी लें कि अगर भविष्य में रूस यूक्रेन को कब्जा भी ले या सत्ता परिवर्तित कर किसी कठपुतली को वहां बैठा भी दे तो यह जनता को कतई मंजूर नहीं होगा.

अब परिणाम चाहे जो हो पर यह तय है कि इतिहास के पन्नों में जेलेंस्की और यूक्रेन का नाम अपनी आजादी के लिए लड़ने में शामिल होगा और पुतिन का नाम हत्यारे व आक्रमणकारी के तौर पर लिया जाने वाला है. साथ ही, इस युद्ध ने यह फिर साबित कर दिया है कि बड़ी बात, बड़ी ताकत वाले जीत ही जाएं, यह जरूरी नहीं. आज या कल, वे इतिहास के पन्नों में हारे हुए देखे जाते हैं.

क्या यही प्यार है

लेखक- जोगेश्वरी सुधीर

दीपाली की शादी में कोई अड़चन नहीं हो सकती थी, क्योंकि वह बहुत सुंदर थी. किंतु उस के मातापिता को न जाने क्यों कोई लड़का जाति, समाज में जंचता नहीं था. खूबसूरत दीपाली की शादी की उम्र निकलती जा रही थी. पिता कालेज में प्रिंसिपल थे. किसी भी रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे थे. अंतत: हार कर दीपाली ने एक गुजराती युवक अरुण के साथ अपने प्रेम की पींगें बढ़ानी शुरू कर दीं. दीपाली और अरुण का प्रेम 3-4 साल चला. मृत्युशैया पर पड़े प्रिंसिपल साहब ने मजबूरन अपनी सुंदर बेटी को प्रेम विवाह की इजाजत दे दी.

दीपाली के विवाह बाद उस के पिता की मौत हो गई. उधर अरुण एक सच्चे प्रेमी की तरह दीपाली को पत्नी का सम्मान देते हुए अपने परिवार में अपनी मां के पास ले गया. घर का व्यवसाय था. आर्थिक स्थिति मजबूत थी. अरुण दीपाली को जीजान से चाहता था. किंतु दीपाली को अरुण की मां कांतिबेन का स्वभाव नहीं सुहाता था.  कांतिबेन अपनी पारिवारिक परंपराओं का पालन करती थीं जैसे सिर पर पल्लू डालना आदि. वे दीपाली को जबतब टोक देतीं कि वह हाथपांव ढक कर रखे, सिर पर आंचल डाले आदि. यह सब गुजराती परिवार में बहू का सामान्य आचरण था. किंतु दीपाली को यह कतई पसंद नहीं था.

इसी वजह से इस अंतर्जातीय विवाह में दरार पड़ने लगी. शुरू में अरुण ने दीपाली को समझाबुझा कर शांत रखने की मनुहार की. किंतु अरुण की मानमनौअल तब बेकार हो गई जब दीपाली इस टोकाटाकी से बेहद चिढ़ गई और अरुण के बहुत समझाने पर भी मायके चली गई. दीपाली मायके गई तो उस की मां माया ने उसे समझाने के बदले अपनी दूसरी बेटियों संग भड़काना शुरू कर दिया.

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दीपाली की बहन राजश्री ने तो आग में घी डालने का काम कर दिया. वैसे भी राजश्री की आदत सब के घर मीनमेख निकाल कर कलह कराने की थी. दीपाली के विवाह को भी उस ने नहीं छोड़ा. सभी बहनों को वह सास के प्रति कठोरता बरतने की शिक्षा देने लगी.  मां और बहन के बहकावे में आ कर दीपाली ने अपने पति अरुण के प्यार से मुख मोड़ लिया. बेचारा अरुण कितनी बार आता, रूठी पत्नी को मनाता पर न तो दीपाली टस से मस हुई, न उस की मां माया. मायके में भाभी सारा काम कर लेती, दीपाली मां के साथ घूमतीफिरती रहती. रात को खापी कर सो जाती.

घरेलू कामकाज न होने तथा खाने और बेफिक्री से सोने से दीपाली का शरीर  काफी भर गया. अब वह सुकोमल की जगह मोटी सी बन गई. हालांकि आकर्षक वह अब भी थी. पर पति के प्रेम को ठुकराने से उस के सौंदर्य में वह मासूमियत नहीं छलकती.  दीपाली अपने मायके में खानेसोने में दिन गुजारने में मस्त थी तो दूसरी तरफ अरुण अपनी पत्नी के लिए हमेशा उदास रहता. कांतिबेन भी चाहती थीं कि उन की बहू घर लौट आए तो बेटे का परिवार आगे बढ़े और वे भी बच्चों को खेलाएं.  मगर फिर दीपाली अपनी ससुराल नहीं गई. अरुण उस से पहले मिलने आता रहा, पर बाद में फोन तक ही शादी सिमट गई. अकेले रहते हुए भी अरुण ने न कहीं चक्कर चलाया और न ही दीपाली ने उसे तलाक दिया. वह अरुण की जिंदगी को अधर में लटकाए रही.

अरुण मनातेमनाते थक गया. दिल में दीपाली के लिए सच्ची चाहत थी. जिंदगी ऐसे ही खाली व अकेले कटने लगी. वह नहीं सोच सका कि दीपाली से अलग भी दुनिया हो सकती है. पत्नी से दूर रह कर वह खोयाखोया सा रहता था. एक दिन न जाने बाइक चलाते किन खयालों में गुम था कि एक ट्रक से टकरा गया. माथे पर गहरी चोट लगी.  कांतिबेन व उस के पति ने दीपाली को खबर भेजी. मगर न दीपाली ने और न ही उसकी मां ने अस्पताल जा कर अरुण को देखना उचित समझा. उलटे इस नाजुक मौके पर दीपाली की मां ने अरुण के पिता से सौदेबाजी शुरू कर दी.  उधर अरुण अस्पताल में इलाज करा रहा था, इधर दीपाली की मां ने कहला भेजा कि दीपाली अब उस की सास के संग हरगिज नहीं रहेगी. उसे एक नई जगह, नए क्वार्टर में बसाया जाए.

अपने घायल बेटे के सुख के लिए उस के पिता नारायण ने यह शर्त भी कबूल कर ली. किंतु जख्मी बेटे की तीमारदारी में वे ऐसे व्यस्त रहे कि अलग से घरगृहस्थी से मुक्त सजासजाया कमरा बेटे के लिए अरेंज नहीं कर सके.  इसी तरह कुछ दिन और निकल गए, पर अपने कमजोर हो चुके जख्मी पति को देखने दीपाली अस्पताल नहीं आई. वह बस नए कमरे की मांग पर अड़ी रही. मानो उसे अपने पति से ज्यादा परवाह अपने लिए अलग कमरे की थी.  अरुण को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर उस के पिता घर ले आए. फिर बेटे की नई गृहस्थी बसाने के लिए नए कमरे की व्यवस्था में जुट गए.  किंतु घायल अरुण के दिल पर दीपाली की इस स्वार्थी शर्त का और बुरा प्रभाव पड़ा. वह अब और ज्यादा गुमसुम रहने लगा. पहले की भांति वह रूठी पत्नी को मनाने के लिए अब फोन भी नहीं करता. न ही दीपाली अपनी अकड़ छोड़ कर पति से बात करती.

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इसी निराशा ने अरुण को भीतर से तोड़ दिया. वह जैसे समझ गया कि जिसे उस ने इतना जीजान से चाहा, वह गर ब्याहता हो कर भी उसे जख्मी हालत में देखने नहीं आई, तो उस के संग आगे की जिंदगी व्यतीत करने की क्या अपेक्षा करनी. अरुण के सारे स्वप्न झुलस गए. जो प्रेम का भाव उसे जीवन जीने की ऊर्जा देता था, वह अब लुप्त हो गया था. वह खाली सा महसूस करता.  इसी हालत में एक रात अरुण उठा. सिर पर अभी भी पट्टी बंधी थी. मां दूसरे कमरे में सोई थीं. पत्नी से फोन पर बात होती नहीं थी. दीपाली से अब उसे प्रेम की आशा नहीं थी. उस ने देख लिया था कि जिसे वह अभी तक चाह रहा था, वह तो पत्थर की एक मूर्त भर थी.  बेखयाली में, बेचैनी में अरुण उठा और जीने की तरफ बढ़ा और फिर चंद सैकंडों में सीढि़यां लुढ़कता चला गया. सीढि़यों के नीचे पहुंचने तक उस के प्राणपखेरू उड़ चुके थे. जिस जख्मी पति को दीपाली देखने नहीं आई थी, वही पति की मौत पर उस के मांबाप से पति का हिस्सा मांगने अपनी मां, बहन, भाई व जीजा को ले कर आ गई.

जिस ने भी दीपाली को देखा वह समझ गया कि इस मतलबपरस्त लड़की ने एक विजातीय लड़के को झूठे प्रेमजाल में फंसा उस का जीवन बरबाद कर उसे मरने को मजबूर कर दिया. वही अब सासससुर से अपने पति का हिस्सा मांग रही है. तो क्या यही है प्यार? क्या यही विवाह का हश्र है?

YRKKH: ‘अनुपमा’ करेगी अक्षरा और अभिमन्यू को एक

स्टार प्लस का पॉपुलर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है.  शो में अक्षरा और अभिमन्यु की शादी की ट्रैक चल रहा है. इस शो में अब अनुपमा की एंट्री होने वाली है.जी हां सही सुना आपने, शो के नये प्रोमो के अनुसार अनुपमा का तड़का लगने वाला है. आइए बताते है, शो में क्या होने वाला है.

नए प्रोमो के अनुसार दर्शकों को जल्द दिलचस्प ड्रामा देखने को मिलने वाला है. यह ट्रैक अब अभिमन्यु और अक्षरा की सगाई का है. जहां अक्षरा और अभिमन्यु एक दूसरे से मिलते हैं और साथ में डांस करने वाले हैं.

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शो में आप देखेंगे कि अभिमन्यु, अक्षरा से पूछेगा कि क्या उसने नायरा के झुमके नहीं पहने? इस पर अक्षरा कहती है कि झुमके गायब हो गए हैं.  अभिमन्यु को आरोही पर शक होता है और अक्षरा को भी इसके बारे में बताता है. लेकिन अक्षरा अभिमन्यु से आरोही पर भरोसा रखने के लिए कहेगी. तभी उन दोनों के बीच लड़ाई होगी.

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दरअसल अक्षरा चाहती है कि अभिमन्यु आरोही पर भरोसा करे. इस दौरान दोनों लड़ने लगेंगे. ऐसे में अनुपमा की एंट्री होगी. अनुपमा यानि रूपाली गांगुली उन्हें अब एक-दूसरे से प्यार करने और शादी के बाद के समय के लिए झगड़े बचाकर रखने की सलाह देगी.

 

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शो में दिखाया जा रहा है कि मंजरी अस्पताल में भर्ती है. नील को हिट एंड रन मामले के बारे में पता चलता है. तो वहीं आरोही काफी डरी हुई है. वह नहीं चाहती कि अभिमन्यु को सजा दी जाए. आरोही इस तरह अक्षरा को देखती है और उसे गले लगा लेती है.

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आरोही को लगता है कि अक्षरा उसे किसी तरह बचा लेगी. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अक्षरा कैसे सामना करती है.

Anupamaa: अपने रोल की वजह से ट्रोल हो रहा है ये एक्टर

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी अक्सर चर्चे में रहती है. शो में हर किरदार घर-घर में मशहूर है. शो में वनराज की भूमिका निभाने वाले सुधांशु पांडे को अक्सर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है. दरअसल उनके किरदार की वजह से ट्रोलर्स सोशल मीडिया पर खरी-खोटी सुनाते हैं. शो में वनराज के इतने शेड्स हैं कि लोग इनसे नफरत करने लगे हैं.

शो में वनराज कब अपना रंग बदल ले, ये कहना मुश्किल है. ‘अनुपमा’ में वनराज का रोल कभी पॉजिटिव हो जाता है तो कभी इतना निगेटिव होता है कि फैंस उनसे नफरत करने लगते हैं. सुधांशु पांडे के लिए यह किरदार मुसिबत बन गया है.

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एक इंटरव्यू के अनुसार वनराज शाह यानी सुधांशु पांडे ने कहा है कि मैं सोशल मीडिया पर अपने किरदार के बारे में कमेंट्स पढ़ता हूं. मेरे लिए ये सब बहुत नया है. मैं पहली बार टीवी शो में काम कर रहा हूं. मुझे नहीं पता कि टीवी की ऑडियंस किस तरह रिस्पॉन्स करेगी.

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रिपोर्ट के मुताबिक वनराज शाह यानी सुधांशु पांडे ने ट्रोलिंग को लेकर कहा है कि लोग मेरे किरदार को पसंद कर रहे हैं. जनता वनराज के बारे में सोशल मीडिया पर लिखती है. लोगों को लगने लगा है कि वनराज का किरदार सच है. मुझे अक्सर सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है.

 

एक्टर ने आगे कहा कि लोग मेरे बारे में गलत भाषा का भी इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि यूजर्स के कमेंट्स पढ़ने में मुझे मजा आता है. मैं बस एक बात कहना चाहता हूं कि लोग रील और रियल लाइफ में अंतर करना भूल गए हैं.

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हिटलर व्लादिमीर पुतिन

छोटे पड़ोसी देशों की स्वतंत्रता से अकसर बड़े देश जल्दी ही नाराज हो जाते हैं और उन्हें धमकाने लगते हैं. रूस ने यूक्रेन को हथियाने और महान सोवियत संघ के सपने को फिर से साकार करने के लिए उस पर हमला तो कर दिया पर यह रूस को खुद कितना महंगा पड़ेगा, इस का अंदाजा अभी नहीं लगाया जा सकता. अमेरिका ने वियतनाम, अफगानिस्तान, इराक पर हमले किए पर अमेरिका की अर्थव्यवस्था इतनी बड़ी है कि वह इस तरह के हमलों का खर्च बरदाश्त कर सकती है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दूसरी तरफ उन नेताओं में से हैं जो सिर्फ धौंस जमाने के लिए बेसिरपैर के फैसले लेने को तैयार रहते हैं ठीक नरेंद्र मोदी की तरह जो आज उन का हर कदम पर साथ दे रहे हैं.

4 करोड़ की आबादी वाले छोटे से देश यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमीर जेलेंस्की ने हार न मानते हुए ?ाकने से इनकार कर पुतिन के लिए शायद मुसीबत खड़ी कर दी. पुतिन को भरोसा था कि यूक्रेन जल्दी ही घुटने टेक देगा और कौमेडियन से राष्ट्रपति बने जेलेंस्की देश छोड़ कर भाग जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और लड़ाई की शुरुआत में हर दिन रूस को एक नई बाधा का सामना करना पड़ा.

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आज रूस की प्रतिव्यक्ति आय

11,000 डौलर है और अमेरिका व यूरोप के बाकी देशों की प्रतिव्यक्ति आय 40,000 से 60,000 डौलर है. यूरोप के बाकी देश रूस का आर्थिक मुकाबला लंबे समय तक कर सकते हैं. रूस की सेना आज खासी आत्मनिर्भर तो है पर रूसी व्यापार व अर्थव्यवस्था पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर है. दूरदर्शिता के अभाव वाले पुतिन को यह सम?ा नहीं आया कि यूक्रेन पर हिंसक कार्रवाई यूरोप को एक नए हिटलर की याद दिला सकती है और शायद अब वे, यूरोपीय देश, जोखिम नहीं लेंगे कि यूक्रेन पर रूस सफल हो कर पूर्व के सोवियत संघ के दूसरे देशों की ओर नजर डालने लगे.

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इधर भारत सरकार का रूस के प्रति मोह खतरनाक है क्योंकि जो दबाव पश्चिमी देश बना सकते हैं वह चीन और रूस मिल कर नहीं बना सकते. भारत को अपनी सीमाओं पर शांति चाहिए तो उसे हर देश के हमले का विरोध करना होगा. रूस ने बिना कारण जो हमला यूक्रेन पर किया है वह सफल हुआ तो वह बहुत से देशों को पाठ पढ़ा जाएगा.

भारत में कुछ लोग पाकिस्तान पर हमला कर कश्मीर को वापस लेने की बात करते रहते हैं. पर वे भूल जाते हैं कि सामने वाला चुप नहीं रहेगा. देश का आकार नहीं, देश के नेता की बुद्धि और दूरदर्शिता चाहिए होती है. जो नेता यूक्रेन पर हमला कर यूरोप में दबदबा जमाने के लिए अपनी सेना को ?ांक दे या जो बिना कारण नोटबंदी कर के पूरे देश को लाइनों में खड़ा कर दे, बेबात के कृषि कानून ला कर किसानों को दुश्मन बनाने पर ताली बजाए, गौपूजा के दुष्परिणाम -छुट्टे जानवरों- के बारे में पहले न सोच सके, वे इतिहास में मूर्ख ही दर्ज किए जाते हैं. ऐसे ही नेताओं में हिटलर, मुसोलिनी, माओ गिने जाते हैं. इन में अब व्लादिमीर पुतिन भी शामिल हो गए हैं. ऐसे कुछ नेता और भी हैं जो फिलहाल लाइन में हैं.

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हिजाब जरूरी या आजादी

कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. हिजाब महिला आजादी की पहचान नहीं हो सकता, बल्कि यह गुलामी को दर्शाता है. हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर पूरे राज्य में ही नहीं बल्कि देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

शबनम (बदला हुआ नाम) को जब पहली दफा हिजाब उतार कर फ्रांस में अपने परिवार के साथ घूमनेफिरने का मौका मिला तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं था. वह पहली बार अपनी जुल्फों को हवाओं के साथ उड़ते हुए महसूस कर रही थी. हवाओं का स्पर्श उसे रोमांचित कर रहा था. वह पहली बार अपने बालों को अपने हिसाब से स्टाइल कर सकती थी.

आज वह खुद को बहुत स्वतंत्र और खुश महसूस कर रही थी, पर कहीं न कहीं एक डर भी उस के दिल में था. उसे याद था अपनी मातृभूमि में कैसे उसे सिर न ढकने पर पुलिस द्वारा पकड़ लिए जाने का खौफ सताता था. वह एक पल को भी घर के बाहर बाल खोल कर नहीं घूम सकती थी.

शबनम का बचपन और युवावस्था ईरान में बीता जहां महिलाओं को घरों से बाहर हिजाब पहनने के लिए मजबूर किया जाता है. अफगानिस्तान जैसे कई देशों में भी ऐसा ही होता है. वैसे बहुत से मुसलिम देशों की सरकारें महिलाओं को हिजाब पहनने के लिए बाध्य नहीं करती हैं. इस के बावजूद रूढि़वादी परिवार धर्म के नाम पर अपनी बेटियों पर बड़े होने के बाद हिजाब थोपते हैं.

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अरबी में ‘हिजाब’ का अर्थ ‘बाधा’ या ‘विभाजन’ है. इस शब्द का उपयोग उस परिधान के लिए किया जाता है जिस का उपयोग कई मुसलिम महिलाएं शरीयत, इसलामी धार्मिक कानून के तहत शील बनाए रखने के उद्देश्य से सार्वजनिक रूप से अपने सिर को ढकने के लिए करती हैं.

इस के कई रूप हैं. उदाहरण के लिए हिजाब के अलावा नकाब और बुर्का भी इसी के रूप हैं. नकाब में आंखों के ऊपर एक स्लिट होती है ताकि महिला सामने देख सके. उस के बालों के साथ चेहरा भी ढका होता है. केवल आंखें खुली होती हैं. जबकि बुर्के में आंखों के स्थान पर या तो एक खिड़कीनुमा जाली बनी होती है या हलका कपड़ा होता है जिस से आरपार दिख सके. इस के साथ ही पूरे शरीर पर एक बिना फिटिंग वाला लबादा होता है. यह अकसर एक ही रंग का होता है.

हाल ही में 7 मुसलिम बहुल देशों (ट्यूनीशिया, मिस्र, इराक, लेबनान, पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की) में मिशिगन विश्वविद्यालय के सामाजिक अनुसंधान संस्थान द्वारा कराए गए एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि ज्यादातर मुसलिम लोग पसंद करते हैं कि महिलाएं अपने बालों को पूरी तरह से ढक कर रखें. केवल तुर्की और लेबनान के 4 में से एक से अधिक लोग सोचते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपना सिर न ढकना उचित है.

सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को सही बताया जिस में उन के बाल और कान पूरी तरह से एक सफेद हिजाब से ढके हुए थे. इस में ट्यूनीशिया के 57 फीसदी, मिस्र के 52 फीसदी, तुर्की के 46 फीसदी और इराक के 44 फीसदी लोगों की सोच यही थी. इराक और मिस्र के ज्यादातर लोगों ने महिलाओं के उस रूप को वरीयता दी जिस में उस के बाल और कान काले हिजाब से ढके थे.

पाकिस्तान के ज्यादातर लोगों ने उस नकाब को पसंद किया जिस में महिला की केवल आंखें दिख रही हों. सऊदी अरब के (63 फीसदी) ज्यादातर लोगों ने महिलाओं को नकाब में देखना पसंद किया. जबकि इन से अलग एकतिहाई (32 फीसदी) तुर्क इस दृष्टिकोण को मानते हैं कि एक महिला के लिए सार्वजनिक रूप से अपने बालों को नहीं ढकना स्वीकार्य है. लेबनान में लगभग आधे (49 फीसदी) भी इस बात से सहमत हैं कि एक महिला के लिए बिना सिर ढके सार्वजनिक रूप से उपस्थित होना स्वीकार्य है.

इस बात को ज्यादा समय नहीं हुआ है जब अफगानिस्तान में महिलाओं ने अपने अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले तालिबान सरकार के नियमों के खिलाफ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया जिस के तहत हिजाब पहनना अनिवार्य है. बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए. कुछ महिलाओं ने प्रतिरोध के संकेत के रूप में अपना बुर्का उतार कर जला दिया. ऐसा ही कुछ अफगानिस्तान में भी हुआ. महिलाओं के प्रदर्शनों की एक लहर चल पड़ी. इधर हमारे देश में मामला उलटा है. यहां खुद मुसलिम महिलाओं द्वारा हिजाब पहनने की पैरवी की जा रही है.

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आज दुनियाभर में लोग जिंदगी आसान करने के तरीके ढूंढ़ रहे हैं, विकास और आधुनिक सोच की धारा बह रही है, नएनए आविष्कार हो रहे हैं, विचारों की क्रांति आ रही है, परंपरागत रूप से चले आ रहे बंधनों व संकीर्णताओं से इंसान आजाद हो रहा है, स्त्रीपुरुष समानता, धार्मिक सहिष्णुता और सब के लिए शिक्षा का चलन बढ़ रहा है, दुनियाभर में लड़कियों व महिलाओं को परदे में रखने वाले परिधानों का लगभग परित्याग किया जा चुका है. हमारे देश में भी घूंघट का चलन कुछ पिछड़े गां?वों तक ही सिमट कर रह गया है. ऐसे में कर्नाटक में मुसलिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने की जिद हजम नहीं होती. पिछले साल शुरू हुए इस हिजाब विवाद की आग एक जिले से निकल कर देश के दूसरे राज्यों तक पहुंच चुकी है.

देखा जाए तो यह जिद खुद को सदियों पहले के जमाने में धकेलने जैसी है. इसे हम कूपमंडूकता या एक किस्म की धर्मांधता व कट्टरता भी कह सकते हैं. यह स्त्री स्वतंत्रता में बाधक उन कुरीतियों से खुद को जकड़े रखने की सनक जैसा है जिन का मकसद ही महिलाओं को दोयम दर्जे का साबित करना होता है. इस हिजाब या बुर्के की पैरवी खुद लड़कियां करें तो अजीब सा लगता है. खुल कर सांस लेने के बजाय सुरक्षा के नाम पर चेहरा या सिर छिपाने का फैसला कहीं से भी उचित नहीं लगता.

हिजाब को लेकर हल्ला क्यों

हिजाब के लिए प्रोटैस्ट करने वाली कुछ वे लड़कियां भी हैं जिन के सोशल मीडिया अकाउंट में जींस और शौर्ट ड्रैसेस में बहुत सारी तसवीरें भरी पड़ी हैं. वैसी लड़कियां जो चिल करने, घूमनेफिरने या दोस्तों के साथ कहीं जाते समय अगर मौडर्न ड्रैसेस पहनने में कोताही नहीं करतीं तो फिर वे कालेज या स्कूल में हिजाब की अनिवार्यता पर जोर क्यों दे रही हैं. यह बात सम?ा नहीं आती.

आखिर स्त्री हो या पुरुष, हर किसी को आजादी से जीने व आधुनिक समाज में सब के साथ कदम से कदम मिला कर चलने का पूरा हक है. आज के समय में जब हम महिलाओं को चांद पर भेज रहे हैं, देश की बागडोर संभालने की जिम्मेदारी दे रहे हैं, बेटियों को परिवार में बेटे से कहीं ज्यादा प्यार व सुविधाएं दे रहे हैं, ऐसे में यदि हम हिजाब या बुर्के के रूप में घूंघट प्रथा का समर्थन करें तो यह एक तरह से खुद को सालों पीछे ले जाने जैसा है.

सदियों तक भारतीय महिलाएं पुरुषवादी समाज की ज्यादतियों का शिकार रहीं. धर्मगुरुओं ने उन्हें पुरुषों से दब व ढक कर रहने के उपदेश दिए. महिलाओं को दोयम दर्जा दिया गया और उन से उम्मीद की गई कि वे अपना वजूद भूल कर केवल पुरुष वर्ग की दासी की तरह रहें. मुसलिम महिलाओं को भी अपने शौहर की कनीज बन कर रहने की तालीम दी गई. ज्यादातर हक शौहर को दे दिए गए, उन्हें कईकई शादियों की इजाजत के साथ ही जब चाहा बेकुसूर बीवी को तलाक देने का हक भी मिला.

हिंदुओं में भी औरतों को घूंघट प्रथा के जरिए आगे बढ़ने से रोका गया, सती प्रथा उन के जीने के हक को निगल गया, दहेजप्रथा ने उन की कीमत कम कर दी तो बाल विवाह ने बहुत नादान उम्र में ही उन के कदमों को बांध दिया. इन प्रथाओं से लड़ कर वापस अपना वजूद स्थापित करने में महिलाओं ने बहुत कुर्बानियां दीं. सामाजिक क्रांति की लौ जली और तब सालों प्रयास करने के बाद आज महिलाएं फिर से खुद को साबित कर रही हैं. वे अपनी आजादी का जश्न मना रही हैं. ऐसे में हिजाब के नाम पर फिर से उसी घूंघट प्रथा को बड़े नाज के साथ स्वीकारना और उस की पैरवी करना क्या अजीब नहीं है?

जहां तक बात सुरक्षा की है तो उस के लिए स्त्रियों को खुद पर परदे डालने के बजाय अपनी शक्ति और मनोबल बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. यदि बिना हिजाब या बुर्के के स्त्री को देख कर पुरुषों की नजरें खराब होने का अंदेशा होता हो तो इस के लिए परदादारी के बजाय आंखें मिला कर बात करने और गरदन ऊंची कर चलने का रिवाज अपनाना ज्यादा उचित है. अगर किसी की नजर खराब होती है तो महिला अपनी एक नजर से सामने वाले को सीधा करने का हौसला भी रखती है. अपनी बेटियों को मजबूत बनाना जरूरी है न कि परदे में छिपाना.

स्कूलकालेज में हिजाब से समस्या

गौर करने वाली बात यह है कि यदि हिजाब या बुर्का पहन कर छात्राएं स्कूलकालेज में जाती हैं तो यह वहां के मैनेजमैंट के लिए भी गलत ही होगा. बुर्के के अंदर से यदि कोई छात्रा कुछ अनुचित बात करती है, सहेली से बातें करती है या फिर शोर मचाती है तो टीचर के लिए यह सम?ाना कठिन होगा कि यह शरारत किस ने की. क्लास में डिसिप्लिन के लिए हिजाब बड़ी बाधा है.

यही नहीं, एग्जाम के समय यदि कोई छात्रा चाहे तो हिजाब के अंदर बहुत आराम से कई सारी चिटें छिपा सकती है. नकल करने के लिए वह बड़े आराम से अपने हिजाब की सहायता ले सकती है. एग्जाम के दौरान हिजाब के साथ छात्राओं की चैकिंग आसान नहीं होगी. इसलिए अगर कोई छात्रा हिजाब पहन कर कालेज आती भी है तो उचित यही होगा कि वह कालेज परिसर में आ कर उसे उतार दे.

विवाद की शुरुआत

हिजाब विवाद की शुरुआत हुई देश की राजधानी नई दिल्ली से लगभग 2 हजार किलोमीटर दूर कर्नाटक प्रदेश के उडुपी जिले से. अक्तूबर 2021 में सरकारी पीयू कालेज की कुछ छात्राओं ने हिजाब पहनने की मांग शुरू कर दी. इस के बाद 31 दिसंबर को 6 छात्राओं को हिजाब पहनने के कारण कालेज में नहीं जाने दिया गया. छात्राओं ने कालेज के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिया.

कालेज प्रशासन ने 19 जनवरी, 2022 को छात्राओं, उन के मातापिता और अधिकारियों के साथ बैठक की थी. लेकिन इस बैठक का कोई परिणाम नहीं निकला. 3 फरवरी को पीयू कालेज में हिजाब पहन कर आने वाली छात्राओं को फिर से रोका गया. इस के बाद 5 फरवरी को कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हिजाब पहन कर स्कूल आने वाली मुसलिम छात्राओं के समर्थन में आ गए.

छात्राओं ने कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 5 फरवरी को यूनिफौर्म का आदेश जारी हुआ और राज्य सरकार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम 1983 की धारा 133(2) लागू कर दी. इस के अनुसार, सभी छात्रछात्राओं के लिए कालेज में तय यूनिफौर्म पहनना अनिवार्य कर दिया गया. यह आदेश सरकारी और निजी दोनों कालेजों पर लागू किया गया.

8 फरवरी को विवाद ने हिंसक रूप ले लिया. कर्नाटक में कई जगहों पर ?ाड़पें हुईं. कई जगहों से पथराव की खबरें भी सामने आईं. शिवमोगा का एक वीडियो सामने आया जिस में एक कालेज छात्र तिरंगे के पोल पर भगवा ?ांडा लगा रहा था. मांड्या में बुर्का पहनी हुई एक लड़की के साथ अभद्रता की गई. इधर उडुपी जिले के एमजीएम कालेज में हिजाब और भगवा की लड़ाई शुरू हो गई. कुछ हिजाब पहने छात्राएं कालेज में आईं. दूसरा पक्ष भगवा पगड़ी और शौल डाल कर कालेज आया.

इस बीच कर्नाटक के शिवमोगा जिले में रात लगभग 9 बजे बजरंग दल के एक 23 साल के कार्यकर्ता की चाकू मार कर हत्या कर दी गई. मारे गए बजरंग दल कार्यकर्ता की पहचान हर्ष नाम के युवक के तौर पर की गई है. घटना के बाद इलाके में स्कूलकालेज बंद कर दिए गए. मृतक के समर्थक सड़कों पर उतर आए और अपना आक्रोश प्रकट किया. कुछ दिनों पहले इस युवक ने सोशल मीडिया पर हिजाब विवाद को ले कर पोस्ट लिखी थी. अपनी इस पोस्ट में युवक ने हिजाब का विरोध किया था और भगवा गमछे का समर्थन किया था.

कर्नाटक में हिजाब विवाद नया नहीं

कर्नाटक में हिजाब पहनने को ले कर विवाद नया नहीं है. यहां 2009 में बंटवाल के एसवीएस कालेज में ऐसा मामला सामने आया था. उस के बाद 2016 में बेल्लारे के डा. शिवराम करांत सरकारी कालेज में भी हिजाब को ले कर विवाद हुआ था. 2018 में भी सैंट एग्नेस कालेज में बवाल हुआ था. उडुपी जैसा विवाद बेल्लारे में भी हुआ था. उस समय कई छात्रों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की मांग को ले कर भगवा गमछा पहन कर प्रदर्शन किया था.

फिलहाल हिजाब विवाद का मसला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया. शीर्ष अदालत ने इस मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया. कोर्ट ने कहा कि मामले की सुनवाई उचित समय पर की जाएगी.

वैसे कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के तहत सभी शैक्षिक संस्थानों को अपनी यूनिफौर्म तय करने का अधिकार दिया गया है. शर्त बस, इतनी है कि यूनिफौर्म कोड की घोषणा सत्र शुरू होने से काफी पहले करनी होगी और उस में 5 साल तक बदलाव नहीं होना चाहिए.

हिजाब के पक्ष में दलील

यह दलील दी जा रही है कि यदि हिंदू लड़कियों को बिंदी लगाने से कभी नहीं रोका गया तो फिर मुसलिम लड़कियों को हिजाब या बुर्का पहनने से क्यों रोका जा रहा है, पर यहां सोचने वाली बात यह है कि बिंदी से इंसान का चेहरा नहीं ढकता, यह इंसान की पहचान को नहीं छिपाता. मगर नकाब या बुर्के में लड़की की सिर्फ आंखें नजर आती हैं, इसलिए यह ड्रैस शिक्षण संस्थानों के लिए मान्य नहीं हो सकती. यहां सब बराबर होते हैं और एकदूसरे के साथ मिल कर रहते हैं, साथ में पढ़ते हैं, जीवन में आगे बढ़ने के गुर सीखते हैं. ऐसे में कुछ छात्राएं अगर अलग दिखना चाहें तो इसे उचित नहीं कहा जा सकता. प्रैक्टिकली देखें तो लड़कियां परिसर में हिजाब पहन सकती हैं लेकिन कक्षाओं में नहीं.

छात्राएं पहले भी कक्षाओं में प्रवेश करने के बाद हिजाब और बुर्का हटाती रही हैं. इसलिए यह कोई बड़ी बात नहीं है. जिन के घर में हिजाब को ले कर ज्यादा सख्ती है उन्हें कोएड कालेज के बजाय किसी वूमन कालेज में दाखिला लेना चाहिए क्योंकि वहां नकाब की जरूरत ही नहीं होगी.

गौर करने की बात यह है कि जिस सऊदी अरब से हिजाब, बुर्का आदि का चलन शुरू हुआ, आज वह देश आधुनिक तौरतरीके अपना रहा है. नए तौरतरीकों के साथ आगे बढ़ रहा है. सिर्फ वही नहीं, बल्कि दुनिया के कई अन्य इसलामिक देशों में भी हिजाब को ले कर कोई सख्त या अनिवार्य प्रावधान नहीं हैं.

आज यह बात सब को सम?ा आने लगी है कि कोई भी समाज स्त्रियों को पीछे रख कर आगे नहीं बढ़ सकता. स्त्रीपुरुष मिल कर, कंधे से कंधा मिला कर चलेंगे तभी उन्नति के पथ पर आगे बढ़ सकेंगे. अफसोस, भारत में कुछ लड़कियां और उन के घर वाले इस बात को सम?ा नहीं पा रहे.

कई देशों में प्रतिबंधित है हिजाब

जहां भारत में कुछ लोग इसलाम की दुहाई दे कर हिजाब की पैरवी करने में लगे हैं वहीं दुनिया के कई मुसलिम देशों में शिक्षण संस्थानों, सरकारी भवनों आदि में हिजाब प्रतिबंधित है. इन देशों ने माना कि महिलाओं पर जबरन पहनावा थोपना सही नहीं है. अपने यहां महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए समानता का माहौल देना सुनिश्चित किया.

मिस्र : मिस्र में पढ़ालिखा तबका हिजाब का विरोध करता है. कई संस्थानों ने अपने स्तर पर हिजाब, नकाब को प्रतिबंधित किया हुआ है और इन प्रतिबंधों को लोगों का समर्थन मिला है.

सऊदी अरब : यहां हिजाब पहनना अनिवार्य नहीं है.

इंडोनेशिया : यहां हिजाब पूरी तरह वैकल्पिक है. जौर्डन में भी ऐसा ही है.

कजाखिस्तान : यहां सितंबर 2017 में कुछ स्कूलों ने हिजाब प्रतिबंधित कर दिया था. इस के खिलाफ अभिभावकों ने अपील की थी लेकिन प्रतिबंध बना रहा. 2018 में सरकार ने नकाब और इस तरह के परिधानों को सार्वजनिक स्थलों पर प्रतिबंधित कर दिया.

सीरिया : विश्वविद्यालयों में चेहरे को ढकने वाले पहनावे पर प्रतिबंध लगा है. हिजाब पर कोई व्यवस्था नहीं है.

कुछ देशों में अनिवार्य

अफगानिस्तान, इराक समेत कुछ देशों में सार्वजनिक स्थान पर महिलाओं के लिए हिजाब, नकाब और बुर्का जैसे परिधान अनिवार्य किए गए हैं. ईरान में भी पिछली सदी के 8वें दशक में हुई इसलामिक क्रांति के बाद से महिलाओं के लिए ढीले कपड़े और हिजाब अनिवार्य हैं. इसलामिक कट्टरपंथी महिलाओं के लिए ऐसे पहनावों की वकालत करते हैं हालांकि इन देशों में भी समयसमय पर इन के विरोध में आंदोलन देखने को मिले हैं.

इस मसले पर गरम होती सियासत और अदालती लड़ाई के बीच फैसला कुछ भी आए लेकिन एक बात तो तय है कि इस मसले को समर्थन वाली जिद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महिलाओं के सशक्तीकरण को कुंद करने वाली है.

कुछ छात्राएं मानती हैं कि हिजाब उन की धार्मिक पहचान का हिस्सा है, पर क्या जरूरी यह नहीं कि लड़कियों को इस उम्र में हिजाब या धर्म के मुकाबले शिक्षा और कैरियर पर ज्यादा जोर देना चाहिए. लड़कियों को सभी वर्ग के लोगों से दोस्ती करनी चाहिए और एक जैसा रहना चाहिए.

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