कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी बेबात की बयानबाजी में टाइम बेकार कर रहे हैं कि विधानसभा  चुनावों से पहले किसने कैसे साथ चलने की बात की थी और किस ने इंकार कर दिया था. कांग्रेस अगर कह रही कि उस ने मायावती के जीवन पर मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया भी था तो भी यह बेकार की बात है. यह तो एक 10 करोड़ की लौटरी के टिकट को 10 रुपए में खरीद कर 10 करोड़ को बांटने की लड़ाई जैसा है. न लौटरी निकलनी थी, न निकली तो लड़ाई किस बात की.

यह पक्का है कि  कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी दोनों के नेता अपना रास्ता भटक गए हैं और अब अपने भक्तों के मझदार में डूबने को छोड़ कर किसी विरान टापू पर सन्यास लेने की तैयारी में है. ऐसा नहीं कि उन के भक्तों के उन की जरूरत नहीं है या फिर उन के भक्तों को अपनी पाॢटयों नीतियों से नाराजगी हो.

कांग्रेस और बहुजन पार्टी को चाहने वालों की कमी नहीं है. सीधीसादी, बिखराव से बचाने वाली पार्टी कांग्रेस राज चलाने में खासी ठीकठाक है. बहुजन पार्टी हजारों सालों गुलामी झेल रहे दलितों को नई उम्मीद देती है. दिक्कत यह है कि दोनों नेता अब आरामतलब है. राहुल और प्रियंका गांधी भी पकीपकाई खीर चाहते हैं और मायावती ऐश की ङ्क्षजदगी चाहती हैं. इन दोनों को घरघर जा कर यह भरोसा दिलाना आता ही नहीं है कि वे उन के हकों को बचा कर रखेंगे या उन के लिए लड़ेंगे. वे तो कहते है कि राज दिला दो फिर सब ठीक कर देंगे. लेकिन राज मिलने के लिए जो करना होता है वह कांग्रेस 50 साल ब्रिटीश शासन में किया ओर मायावती ने कांशीराम के साथ 10-15 साल किया.

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