Smoking : हड्डियों को गलाती तंबाकू की लत भारत ही नहीं दुनियाभर में तंबाकू का भारी मात्रा में सेवन चिंता का विषय बनता जा रहा है, वह भी तब जब इस से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां सब के सामने हैं. तंबाकू चबाना हो अथवा धूम्रपान करना, व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. इस से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान करने से शरीर की हड्डियों के विकास और उस की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा धमनियों के कमजोर होने, कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने, हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा हो सकता है. तंबाकू सेवन से कैंसर और फेफड़ों की बीमारी जैसी जानलेवा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. दुनियाभर में तंबाकू उत्पादों की निर्माता कंपनियां अपने व्यापार को बढ़ाने तथा आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से युवाओं को उन की लत की गिरफ्त में लाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. आज विश्व में 13 से 15 वर्षीय आयु वर्ग के लगभग 37 मिलियन युवा किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं.
‘सोसाइटी फौर रिसर्च औन निकोटिन एंड टोबैको जर्नल’ 2024 के अनुसार भारत में लगभग 23 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिन में 11 करोड़ लोग खैनी, 5 करोड़ लोग गुटखा, तथा 7 करोड़ लोग तंबाकू मिश्रित सुपारी का सेवन करते हैं. भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख लोग तंबाकू के कारण कैंसरग्रस्त हो कर जान गंवाते हैं. हमारे देश में 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में मुख के कैंसर या हार्टअटैक के पीछे मुख्यतया तंबाकू और धूम्रपान का हाथ होता है. धूम्रपान के दौरान तंबाकू का धुआं नाक की कोमल झिल्ली में जलन पैदा करते हुए फेफड़ों में पहुंच कर उन के कोमल वायु कोषों को क्षतिग्रस्त करता है. धूम्रपान के माध्यम से शरीर में कार्बन मोनोऔक्साइड, निकोटिन, बेंजीन तथा कई अन्य विषाक्त पदार्थ शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर, हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बनते हैं. दुनियाभर में तंबाकू कई रूप में प्रयोग किया जाता है. खैनी, सुरती के रूप में चबाना, बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के रूप में धूम्रपान करना या फिर बड़ीबड़ी चालाक फैक्ट्रियों में निर्मित सुगंधित पान मसाला के रूप में. तंबाकू में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एक भी गुण नहीं. विश्व के लगभग सभी देशों में तंबाकू सेवन का नशा असामयिक मौतों को खुलेआम बुलावा देता है. अनपढ़ व्यक्ति अज्ञानतावश इस की गिरफ्त में आए तो बात कुछ हद तक समझ में आती है, परंतु पढ़ेलिखे, यहां तक कि उच्च शिक्षा प्राप्त नामीगिरामी पेशेवर लोगों में इस के सेवन की लत लगना और उस के कारण कैंसर, हृदय रोग, ब्लड प्रैशर, पैरालिसिस जैसी तरहतरह की अनेक स्वास्थ्य समस्याओं की गिरफ्त में आ कर अकाल मृत्यु को दावत देना किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. तंबाकू से शरीर तक निकोटिन का सफर तंबाकू धूम्रपान के माध्यम से निकोटिन संचरण प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न अंगों में बड़ी तेजी से पहुंच जाता है.
धूम्रपान के बाद प्रथम कुछ मिनटों में ही रक्त में निकोटिन का स्तर बड़ी तेजी से बढ़ जाता है. निकोटिन एक कमजोर बेस होने के नाते मुख की मेंबरेंस (कलाओं) में इस का बहुत कम अवशोषण हो पाता है. हालांकि पाइप, सिगार, चिलम अथवा डार्क तंबाकू से निकलने वाला धुआं अधिक क्षारीय होने के कारण निकोटिन की कुछ मात्रा मुंह के माध्यम से अवशोषित हो जाती है. तंबाकू का धूम्रपान करने की तुलना में तंबाकू चबाने अथवा सूंघने पर मुख के माध्यम से निकोटिन का अवशोषण मंद होता है. शरीर में निकोटिन का फैलाव और उस का निष्कासन सिगरेट का कश लेने के 10 से 20 सैकंड के भीतर निकोटिन मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. सिगरेट के धुएं में घुला निकोटिन सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर, धमनी रक्त वाहिका के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर व्यक्ति के व्यवहार में बड़ी तेजी से बदलाव पैदा करता है. निकोटिन शरीर के अन्य ऊतकों में भी व्यापक रूप से पहुंच जाता है. शरीर से निकोटिन का बाहर निकलना यकृत के चयापचय यानी लिवर मेटाबोलिज्म के द्वारा होता है. मेटाबौलिज्म की दर अलगअलग व्यक्तियों में भिन्न होती है. अर्थात अलगअलग व्यक्तियों द्वारा समान मात्रा में निकोटिन का सेवन करने से उन के रक्त में निकोटिन का स्तर भिन्न हो सकता है. औसतन एक सिगरेट के धूम्रपान से रक्त परिवहन में एक मिलीग्राम निकोटिन अवशोषित हो जाता है, हालांकि इस की सीमा 0.5 से 3.0 मिलीग्राम के बीच में हो सकती है. रक्त में पहुंची निकोटिन की आधी मात्रा 2 से 3 घंटे के भीतर निष्कासित हो जाती है. इस का तात्पर्य यह भी है कि तंबाकू के एक बार सेवन के पश्चात शरीर में 8 से 12 घंटे तक निकोटिन की मौजूदगी बनी रहती है. बारबार धूम्रपान करने से शरीर में निकोटिन की मात्रा एकत्रित होती रहती है. इस प्रकार सिगरेट धूम्रपान के व्यसनी लोगों का मस्तिष्क और शरीर निकोटिन से निरंतर प्रभावित होता रहता है. नियमित धू्म्रपानकर्ताओं की तुलना में यदाकदा धूम्रपान करने वालों के लिए इस आदत को त्यागना आसान होता है. कुछ सिगरेट निर्माता कंपनियां अपने ब्रैंड में निकोटिन की उपस्थिति कम मात्रा में होने का दावा करती हैं और कुछ लोग तथाकथित कम निकोटिन युक्त सिगरेट पीना शुरू भी कर देते हैं पर उस से अपेक्षित परिणामों की संभावना बहुत कम रहती है. अल्प निकोटिन युक्त सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की धारणा होती है कि दैनिक धूम्रपान की संख्या बढ़ने पर भी उन के शरीर में निकोटिन का अवशोषण कम मात्रा में होगा. परंतु इस के चलते अधिकांश धूम्रपानकर्ता सामान्य सिगरेट की तुलना में अल्प निकोटिन ब्रैंड की सिगरेट के धूम्रपान की संख्या बढ़ा देते हैं, जिस से शरीर में निकोटिन का अवशोषण अधिक मात्रा में हो कर उन के व्यवहार को सीधे प्रभावित करता है.
एक अध्ययन में प्रतिदिन असीमित संख्या (औसतन 37 सिगरेट प्रतिदिन) और प्रतिदिन 5 सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तुलना करने पर कम धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के शरीर में तंबाकू की विषाक्तता में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीने वाला व्यक्ति निकोटिन की लत का शिकार माना जाता है. तंबाकू, खैनी चबाना व सूंघना भी एक लत दुनिया में लगभग सभी आयु वर्ग के बड़ी संख्या में लोग, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र के वयस्क और किशोर तंबाकू चबाने अथवा सूंघने की लत के शिकार हैं. जहां एक सिगरेट के धूम्रपान से शरीर में एक मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, वहीं एक ग्राम तंबाकू चबाने अथवा सूंघने से शरीर में 5 से 30 मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, जो धूम्रपान की तुलना में बहुत अधिक है. एक अन्य अध्ययन में एक ग्राम तंबाकू के चबाने और सूंघने से शरीर में क्रमश: 4.5 मिलिग्राम और 3.6 मिलिग्राम निकोटिन की मात्रा का अवशोषण पाया गया है. नियमित धूम्रपानकर्ताओं और धुआंरहित तंबाकू सेवन करने वाले व्यक्तियों के रक्त में निकोटिन का स्तर पूरे दिनभर एक समान बना रहता है. तंबाकू की लत और स्वास्थ्य आमतौर पर तंबाकू सेवन की शुरुआत किशोरावस्था के आगमन यानी 8 से 12 वर्ष की आयु में प्रायोगिक तौर पर की जाती है. अधिकांश बच्चे अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों की संगत में आने अथवा आकर्षक विज्ञापनों में उन के आदर्श स्वरूप व्यक्तियों द्वारा धूम्रपान करते दिखाई देने के प्रभाव में धूम्रपान करने अथवा तंबाकू सेवन करने की शुरुआत करते हैं. आमतौर पर प्रतिदिन 2 से 3 सिगरेट पीने का प्रयोग करने वाले किशोरों को इस की लत लग जाने की संभावना अधिक होती है. तंबाकू का कंकाल पर प्रभाव हड्डियों से निर्मित ढांचा, जिसे कंकाल कहा जाता है, हमारे शरीर को खड़ा रखने, शारीरिक वृद्धि तथा हमारे चलने को सुगम बनाता है. मानव कंकाल विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित एक गतिशील एवं जीवित ऊतक होता है. हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में इन कोशिकाओं की संतुलित गतिविधियां महत्त्वपूर्ण होती हैं. तंबाकू के धूम्रपान के दौरान निकलने वाला निकोटिन इस नाजुक संतुलन को अव्यस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
निकोटिन का पहला प्रभाव हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार औस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता को घटाना है. औस्टियोब्लास्ट हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं होती हैं, जिन का मुख्य काम नई हड्डी कोशिकाओं का निर्माण करना, हड्डियों को मजबूती प्रदान करना, नई हड्डी के ऊतकों को बनाना, हड्डियों के विकास के दौरान नई हड्डियों का निर्माण करना होता है. निकोटिन के प्रभाव में हड्डियों के संरक्षण और उन की टूटफूट में सुधार लाने की औस्टियोब्लास्ट की जटिल प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होती है. उसी के साथ हड्डियों की ओस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. इस के अंतर्गत कोशिकाएं हड्डी के ऊतकों को नष्ट कर अस्थिपुंज को क्षतिग्रस्त करती हैं. निकोटिन के कारण पैराथाइरौ?एड हार्मोन का स्राव बाधित होने पर हड्डियों पर पड़ने वाला हानिकारक प्रभाव और गंभीर हो जाता है. यह हार्मोन शरीर में कैल्शियम के स्तरों पर नियंत्रण रखता है. इस बाधा के कारण अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनरल डैंसिटी में गिरावट आ सकती है, जो औस्टियोपोरोसिस यानी अस्थिसुषिरता का कारण बनती है. हम जानते हैं कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए विटामिन डी एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व होता है. निकोटिन विटामिन डी के साथ क्रिया करते हुए शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को घटाने के लिए भी जिम्मेदार होता है. हार्मोन पर बुरा असर धूम्रपान का असर गोनैडोट्रौपिन रिलीजिंग हार्मोन पर भी पड़ता है. यह हार्मोन शरीर में सैक्स हार्मोन के उत्पादन पर नियंत्रण रखता है. साथ ही किशोरवय आयु और शुरुआती वयस्ककाल के दौरान हड्डियों को संपूर्णता प्रदान करने में भी इस हार्मोन की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है.
निकोटिन के प्रभाव में इस हार्मोन के असंतुलित होने से हड्डियों में खनिज बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिस कारण भविष्य में औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. हमारे इर्दगिर्द कई चेन स्मोकर्स मिल जाते हैं जो दिनभर में दोचार सिगरेट व बीड़ी नहीं बल्कि उन के कई पैकेट का धूम्रपान करते हैं. ऐसे धूम्रपानकर्ताओं में सूजन, शोथ करने वाली यानी इन्फ्लैमेटरी क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिस के परिणामस्वरूप हड्डी की कोशिका प्रभावित हो कर अस्थि निर्माण और उस के टूटने के बीच का संतुलन बाधित हो जाता है, जिस से हड्डियां तेजी से कमजोर होने लगती हैं. दुष्प्रभाव घातक धूम्रपान का असर केवल धूम्रपानकर्ता की हड्डियों की मजबूती पर ही नहीं पड़ता. गर्भावस्था के दौरान महिला द्वारा धूम्रपान करने से अजन्मे नवजात के कंकाल का विकास प्रभावित हो सकता है. अर्थात इस के दुष्प्रभावों का दंश पीढि़यों तक भुगतना पड़ सकता है. धूम्रपानकर्ताओं के लिए हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए धूम्रपान का त्याग करना लाभकारी होता है. शोध परिणामों से पता चलता है कि धूम्रपान त्याग करने से अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनिरल डैंसिटी में आंशिक सुधार हो सकता है. उन के लिए धूम्रपान की आदत छुड़ाने की दिशा में उठाए गए कदम, प्रदान की गई सहायता तथा प्रेरक गतिविधियां उन की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए एक संभावित प्रयास हो सकता है. एक स्वस्थ कंकाल के लिए धूम्रपान का त्याग करने के अलावा नियमित व्यायाम करने, कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर आहार का सेवन करने, अल्कोहल का सेवन न करने जैसे जीवनशैली में बदलाव लाना धूम्रपान के कारण हड्डियों के कमजोर होने के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है. हड्डियों को स्वस्थ रखने की जंग केवल कमरे में परामर्श दे कर नहीं जीती जा सकती. इस के लिए धूम्रपान छोड़ने को सुगम बनाने की नीतियां विकसित करने, धूम्रपान की लत का शिकार हुए व्यक्तियों के लिए एक सहायक परिवेश का निर्माण करने जैसे बदलाव लाने की जरूरत है. युवा धूम्रपानकर्ताओं को जागरूक करना उन की आदत को बदलने के लिए एक सशक्त प्रेरक हो सकता है. धूम्रपानकर्ता को धूम्रपान करने से रोकने के लिए सामुदायिक स्तर पर प्रेरित करना उन की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों दोनों पर अनुकूल प्रभाव डाल सकता है. धूम्रपान और हड्डियों की मजबूती के बीच संबंधों को ज्ञात करना महज एक अकादमिक जिज्ञासा नहीं है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक व आर्थिक स्थितियों पर भी इस का अत्यंत प्रभाव पड़ता है. बाल्यकाल में धूम्रपान की शुरुआत करने वाले व्यक्तियों में हड्डियां टूटने तथा टूटी हड्डियों के ठीक होने में अधिक समय लगने का खतरा अधिक होता है. ये स्थितियां व्यक्ति के दैनिक कार्यकलापों को सीधे प्रभावित करने के साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली पर अनावश्यक आर्थिक बो?ा भी डालती हैं. निकोटिन का प्रभाव निकोटिन अणु (मौलिक्यूल) की रचना शरीर में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एसिटिलकोलीन नामक एक रसायन के रूप में होती है. यह एसिटिलकोलीन मस्तिष्क की एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरौन) से दूसरी तंत्रिका कोशिका तक सूचना का संचार करता है. एसिटिलकोलीन में मौजूद रिसेप्टर कोलीनर्जिक रिसेप्टर्स कहलाते हैं. निकोटिन मस्तिष्क तथा शरीर के अन्य अंगों में मौजूद कुछ कोलीनर्जिक रिसेप्टरों के साथ क्रिया करता है. इन रिसेप्टरों के सक्रिय होने पर निकोटिन शरीर में अन्य न्यूरोट्रांसमीटर्स और हार्मोंस के स्राव को बढ़ा देता है, जिन में एसिटिलकोलीन, नौरएपीनेफ्रीन, डोपामिन, वेसोप्रेसिन और बीटाएंडोरफिन सम्मिलित हैं. शरीर में डोपामिन, नौरएपीनेफ्रीन और सेरोटोनिन का स्राव बढ़ने पर आनंद की अनुभूति होती है, साथ ही भूख नहीं लगने की स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है. एसिटिलकोलीन का स्राव बढ़ने की स्थिति में कार्य क्षमता और स्मरण शक्ति बेहतर होने में सहायक होती है. इसी प्रकार बीटाएंडोरफिन का स्राव बढ़ने से चिंता और तनाव में गिरावट की अनुभूति होती है.
नियमित धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के शरीर में ये बदलाव उन में लत लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं. निकोटिन की उपस्थिति में मस्तिष्क का सामान्य रूप से कार्य करना उस की लत लगने का ही परिणाम है. ऐसे व्यक्ति धूम्रपान बंद करने की स्थिति में शरीर में निकोटिन न मिलने से मस्तिष्क का कार्य बाधित हो जाता है, जो उपर्युक्त अनेक विद्ड्रौल सिंप्टम्स (लक्षणों) के उभरने का कारण बनता है. तंबाकू सेवन से बचाव संभव पेरैंट्स को अपने किशोरवय बच्चों की गतिविधियों और उन में होने वाले व्यावहारिक परिवर्तनों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. वरना किशोरवय आयु में प्रायोगिक तौर पर धूम्रपान अथवा तंबाकू सेवन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति को भविष्य में इस की लत का शिकार होने से बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. बच्चों को तंबाकू सेवन से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूक बना कर भावी पीढ़ी को तंबाकू की लत से बचाया जा सकता है. अच्छी शिक्षा व्यवस्था के साथसाथ मातापिता द्वारा बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना उन्हें तंबाकू की लत से बचाने में कारगर हो सकता है. तंबाकू निर्माता कंपनियों और लोकप्रिय अभिनेताओं, खिलाडि़यों के लिए तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों से बचना भी काफी हद तक सहायक हो सकता है. स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों और अधिकारियों द्वारा विशेष तौर पर स्कूलकालेजों में तंबाकू और तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए. द्य नशे की गिरफ्त में क्यों आते हैं लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी नशे की लत लगना व्यक्ति और समाज को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की हद तक उस के व्यवहार में परिवर्तन आना होता है. बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के धूम्रपान की लत लगने पर व्यक्ति के शरीर में निकोटीन का जमाव हो जाता है, जिस के कारण शरीर में निम्नलिखित बदलाव आ जाते हैं: द्य शरीर के अलगअलग अंगों के कार्यों पर नियंत्रण रखने वाले मस्तिष्क के अलगअलग भागों (लोब्स) के बीच पारस्परिक तालमेल (सिंक्रनाइजेशन) का टूटना. द्य कैटेकोलामाइंस, वेसोप्रेसिन, ग्रोथ हार्मोन, कोर्टिसोल, प्रोलैक्टिन और बीटाएंडोर्फिन के स्तरों का बढ़ना. द्य मेटाबोलिक रेट का बढ़ना. द्य लाइपोलाइसिस, फ्री फैटी एसिड्स का स्तर बढ़ना. द्य हृदय गति बढ़ना, त्वचा और कोरोनरी धमनियों का सिकुड़ना, रक्तदाब बढ़ना (उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रैशर की स्थिति). द्य स्केलेटल मसल्स (कंकाली पेशियों) का शिथिल होना. धूम्रपान के आदी व्यक्ति में अचानक निकोटीन की मात्रा बंद करने पर विद्ड्रौल सिंप्टम्स के रूप में निम्नलिखित विशेष लक्षण उभर सकते हैं : द्य घबराहट, चिंता व तनाव, द्य अधिक भोजन करना. द्य अधैर्य होना, चिड़चिड़ापन व गुस्सा आना. द्य एकाग्रता में कठिनाई. द्य भूख अधिक लगना. द्य अवसाद, लड़खड़ा कर चलना. द्य शरीर में कमजोरी और थकान. द्य चक्कर आना, पेट संबंधी समस्या, सिरदर्द, पसीना आना, नींद नहीं आना. द्य धड़कन तेज होना, शरीर में ?ाटका लगना. द्य सिगरेट व बीड़ी पीने की तीव्र इच्छा होना. स्वास्थ्य द्य डा. कृष्णा नंद पांडेय हड्डियों को गलाती तंबाकू की लत भारत ही नहीं दुनियाभर में तंबाकू का भारी मात्रा में सेवन चिंता का विषय बनता जा रहा है, वह भी तब जब इस से जुड़ी गंभीर स्वास्थ्य संबंधित बीमारियां सब के सामने हैं. तंबाकू चबाना हो अथवा धूम्रपान करना, व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है. इस से कई तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
धूम्रपान करने से शरीर की हड्डियों के विकास और उस की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा धमनियों के कमजोर होने, कोरोनरी हृदय रोग विकसित होने, हार्टअटैक और स्ट्रोक का खतरा हो सकता है. तंबाकू सेवन से कैंसर और फेफड़ों की बीमारी जैसी जानलेवा स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. दुनियाभर में तंबाकू उत्पादों की निर्माता कंपनियां अपने व्यापार को बढ़ाने तथा आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से युवाओं को उन की लत की गिरफ्त में लाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं. आज विश्व में 13 से 15 वर्षीय आयु वर्ग के लगभग 37 मिलियन युवा किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते हैं. ‘सोसाइटी फौर रिसर्च औन निकोटिन एंड टोबैको जर्नल’ 2024 के अनुसार भारत में लगभग 23 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, जिन में 11 करोड़ लोग खैनी, 5 करोड़ लोग गुटखा, तथा 7 करोड़ लोग तंबाकू मिश्रित सुपारी का सेवन करते हैं. भारत में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख लोग तंबाकू के कारण कैंसरग्रस्त हो कर जान गंवाते हैं. हमारे देश में 35 वर्ष से कम आयु के लोगों में मुख के कैंसर या हार्टअटैक के पीछे मुख्यतया तंबाकू और धूम्रपान का हाथ होता है. धूम्रपान के दौरान तंबाकू का धुआं नाक की कोमल ?िल्ली में जलन पैदा करते हुए फेफड़ों में पहुंच कर उन के कोमल वायु कोषों को क्षतिग्रस्त करता है. धूम्रपान के माध्यम से शरीर में कार्बन मोनोऔक्साइड, निकोटिन, बेंजीन तथा कई अन्य विषाक्त पदार्थ शरीर के विभिन्न अंगों में कैंसर, हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बनते हैं. दुनियाभर में तंबाकू कई रूप में प्रयोग किया जाता है. खैनी, सुरती के रूप में चबाना, बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के रूप में धूम्रपान करना या फिर बड़ीबड़ी चालाक फैक्ट्रियों में निर्मित सुगंधित पान मसाला के रूप में. तंबाकू में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एक भी गुण नहीं. विश्व के लगभग सभी देशों में तंबाकू सेवन का नशा असामयिक मौतों को खुलेआम बुलावा देता है. अनपढ़ व्यक्ति अज्ञानतावश इस की गिरफ्त में आए तो बात कुछ हद तक सम?ा में आती है, परंतु पढ़ेलिखे, यहां तक कि उच्च शिक्षा प्राप्त नामीगिरामी पेशेवर लोगों में इस के सेवन की लत लगना और उस के कारण कैंसर, हृदय रोग, ब्लड प्रैशर, पैरालिसिस जैसी तरहतरह की अनेक स्वास्थ्य समस्याओं की गिरफ्त में आ कर अकाल मृत्यु को दावत देना किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. तंबाकू से शरीर तक निकोटिन का सफर तंबाकू धूम्रपान के माध्यम से निकोटिन संचरण प्रणाली के माध्यम से मस्तिष्क सहित शरीर के विभिन्न अंगों में बड़ी तेजी से पहुंच जाता है.
धूम्रपान के बाद प्रथम कुछ मिनटों में ही रक्त में निकोटिन का स्तर बड़ी तेजी से बढ़ जाता है. निकोटिन एक कमजोर बेस होने के नाते मुख की मेंबरेंस (कलाओं) में इस का बहुत कम अवशोषण हो पाता है. हालांकि पाइप, सिगार, चिलम अथवा डार्क तंबाकू से निकलने वाला धुआं अधिक क्षारीय होने के कारण निकोटिन की कुछ मात्रा मुंह के माध्यम से अवशोषित हो जाती है. तंबाकू का धूम्रपान करने की तुलना में तंबाकू चबाने अथवा सूंघने पर मुख के माध्यम से निकोटिन का अवशोषण मंद होता है. शरीर में निकोटिन का फैलाव और उस का निष्कासन सिगरेट का कश लेने के 10 से 20 सैकंड के भीतर निकोटिन मस्तिष्क तक पहुंच जाता है. सिगरेट के धुएं में घुला निकोटिन सांस के साथ फेफड़ों में पहुंच कर, धमनी रक्त वाहिका के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर व्यक्ति के व्यवहार में बड़ी तेजी से बदलाव पैदा करता है. निकोटिन शरीर के अन्य ऊतकों में भी व्यापक रूप से पहुंच जाता है. शरीर से निकोटिन का बाहर निकलना यकृत के चयापचय यानी लिवर मेटाबोलिज्म के द्वारा होता है. मेटाबौलिज्म की दर अलगअलग व्यक्तियों में भिन्न होती है. अर्थात अलगअलग व्यक्तियों द्वारा समान मात्रा में निकोटिन का सेवन करने से उन के रक्त में निकोटिन का स्तर भिन्न हो सकता है. औसतन एक सिगरेट के धूम्रपान से रक्त परिवहन में एक मिलीग्राम निकोटिन अवशोषित हो जाता है, हालांकि इस की सीमा 0.5 से 3.0 मिलीग्राम के बीच में हो सकती है. रक्त में पहुंची निकोटिन की आधी मात्रा 2 से 3 घंटे के भीतर निष्कासित हो जाती है. इस का तात्पर्य यह भी है कि तंबाकू के एक बार सेवन के पश्चात शरीर में 8 से 12 घंटे तक निकोटिन की मौजूदगी बनी रहती है. बारबार धूम्रपान करने से शरीर में निकोटिन की मात्रा एकत्रित होती रहती है. इस प्रकार सिगरेट धूम्रपान के व्यसनी लोगों का मस्तिष्क और शरीर निकोटिन से निरंतर प्रभावित होता रहता है. नियमित धू्म्रपानकर्ताओं की तुलना में यदाकदा धूम्रपान करने वालों के लिए इस आदत को त्यागना आसान होता है.
कुछ सिगरेट निर्माता कंपनियां अपने ब्रैंड में निकोटिन की उपस्थिति कम मात्रा में होने का दावा करती हैं और कुछ लोग तथाकथित कम निकोटिन युक्त सिगरेट पीना शुरू भी कर देते हैं पर उस से अपेक्षित परिणामों की संभावना बहुत कम रहती है. अल्प निकोटिन युक्त सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की धारणा होती है कि दैनिक धूम्रपान की संख्या बढ़ने पर भी उन के शरीर में निकोटिन का अवशोषण कम मात्रा में होगा. परंतु इस के चलते अधिकांश धूम्रपानकर्ता सामान्य सिगरेट की तुलना में अल्प निकोटिन ब्रैंड की सिगरेट के धूम्रपान की संख्या बढ़ा देते हैं, जिस से शरीर में निकोटिन का अवशोषण अधिक मात्रा में हो कर उन के व्यवहार को सीधे प्रभावित करता है. एक अध्ययन में प्रतिदिन असीमित संख्या (औसतन 37 सिगरेट प्रतिदिन) और प्रतिदिन 5 सिगरेट का धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों की तुलना करने पर कम धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के शरीर में तंबाकू की विषाक्तता में 50 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. औसतन प्रतिदिन 10 सिगरेट पीने वाला व्यक्ति निकोटिन की लत का शिकार माना जाता है. तंबाकू, खैनी चबाना व सूंघना भी एक लत दुनिया में लगभग सभी आयु वर्ग के बड़ी संख्या में लोग, विशेषतया ग्रामीण क्षेत्र के वयस्क और किशोर तंबाकू चबाने अथवा सूंघने की लत के शिकार हैं. जहां एक सिगरेट के धूम्रपान से शरीर में एक मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, वहीं एक ग्राम तंबाकू चबाने अथवा सूंघने से शरीर में 5 से 30 मिलीग्राम निकोटिन का अवशोषण होता है, जो धूम्रपान की तुलना में बहुत अधिक है. एक अन्य अध्ययन में एक ग्राम तंबाकू के चबाने और सूंघने से शरीर में क्रमश: 4.5 मिलिग्राम और 3.6 मिलिग्राम निकोटिन की मात्रा का अवशोषण पाया गया है.
नियमित धूम्रपानकर्ताओं और धुआंरहित तंबाकू सेवन करने वाले व्यक्तियों के रक्त में निकोटिन का स्तर पूरे दिनभर एक समान बना रहता है. तंबाकू की लत और स्वास्थ्य आमतौर पर तंबाकू सेवन की शुरुआत किशोरावस्था के आगमन यानी 8 से 12 वर्ष की आयु में प्रायोगिक तौर पर की जाती है. अधिकांश बच्चे अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों की संगत में आने अथवा आकर्षक विज्ञापनों में उन के आदर्श स्वरूप व्यक्तियों द्वारा धूम्रपान करते दिखाई देने के प्रभाव में धूम्रपान करने अथवा तंबाकू सेवन करने की शुरुआत करते हैं. आमतौर पर प्रतिदिन 2 से 3 सिगरेट पीने का प्रयोग करने वाले किशोरों को इस की लत लग जाने की संभावना अधिक होती है. तंबाकू का कंकाल पर प्रभाव हड्डियों से निर्मित ढांचा, जिसे कंकाल कहा जाता है, हमारे शरीर को खड़ा रखने, शारीरिक वृद्धि तथा हमारे चलने को सुगम बनाता है. मानव कंकाल विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से निर्मित एक गतिशील एवं जीवित ऊतक होता है. हड्डियों को मजबूती प्रदान करने में इन कोशिकाओं की संतुलित गतिविधियां महत्त्वपूर्ण होती हैं. तंबाकू के धूम्रपान के दौरान निकलने वाला निकोटिन इस नाजुक संतुलन को अव्यस्थित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. निकोटिन का पहला प्रभाव हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार औस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता को घटाना है. औस्टियोब्लास्ट हड्डियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं होती हैं, जिन का मुख्य काम नई हड्डी कोशिकाओं का निर्माण करना, हड्डियों को मजबूती प्रदान करना, नई हड्डी के ऊतकों को बनाना, हड्डियों के विकास के दौरान नई हड्डियों का निर्माण करना होता है. निकोटिन के प्रभाव में हड्डियों के संरक्षण और उन की टूटफूट में सुधार लाने की औस्टियोब्लास्ट की जटिल प्रक्रिया गंभीर रूप से प्रभावित होती है. उसी के साथ हड्डियों की ओस्टियोब्लास्ट की क्रियाशीलता बढ़ जाती है. इस के अंतर्गत कोशिकाएं हड्डी के ऊतकों को नष्ट कर अस्थिपुंज को क्षतिग्रस्त करती हैं.
निकोटिन के कारण पैराथाइरौ?एड हार्मोन का स्राव बाधित होने पर हड्डियों पर पड़ने वाला हानिकारक प्रभाव और गंभीर हो जाता है. यह हार्मोन शरीर में कैल्शियम के स्तरों पर नियंत्रण रखता है. इस बाधा के कारण अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनरल डैंसिटी में गिरावट आ सकती है, जो औस्टियोपोरोसिस यानी अस्थिसुषिरता का कारण बनती है. हम जानते हैं कि हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए विटामिन डी एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व होता है. निकोटिन विटामिन डी के साथ क्रिया करते हुए शरीर में कैल्शियम के अवशोषण को घटाने के लिए भी जिम्मेदार होता है. हार्मोन पर बुरा असर धूम्रपान का असर गोनैडोट्रौपिन रिलीजिंग हार्मोन पर भी पड़ता है. यह हार्मोन शरीर में सैक्स हार्मोन के उत्पादन पर नियंत्रण रखता है. साथ ही किशोरवय आयु और शुरुआती वयस्ककाल के दौरान हड्डियों को संपूर्णता प्रदान करने में भी इस हार्मोन की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. निकोटिन के प्रभाव में इस हार्मोन के असंतुलित होने से हड्डियों में खनिज बनने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिस कारण भविष्य में औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. हमारे इर्दगिर्द कई चेन स्मोकर्स मिल जाते हैं जो दिनभर में दोचार सिगरेट व बीड़ी नहीं बल्कि उन के कई पैकेट का धूम्रपान करते हैं. ऐसे धूम्रपानकर्ताओं में सूजन, शोथ करने वाली यानी इन्फ्लैमेटरी क्रियाशीलता बढ़ जाती है, जिस के परिणामस्वरूप हड्डी की कोशिका प्रभावित हो कर अस्थि निर्माण और उस के टूटने के बीच का संतुलन बाधित हो जाता है, जिस से हड्डियां तेजी से कमजोर होने लगती हैं. दुष्प्रभाव घातक धूम्रपान का असर केवल धूम्रपानकर्ता की हड्डियों की मजबूती पर ही नहीं पड़ता. गर्भावस्था के दौरान महिला द्वारा धूम्रपान करने से अजन्मे नवजात के कंकाल का विकास प्रभावित हो सकता है. अर्थात इस के दुष्प्रभावों का दंश पीढि़यों तक भुगतना पड़ सकता है. धूम्रपानकर्ताओं के लिए हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए धूम्रपान का त्याग करना लाभकारी होता है. शोध परिणामों से पता चलता है कि धूम्रपान त्याग करने से अस्थि खनिज सघनता यानी बोन मिनिरल डैंसिटी में आंशिक सुधार हो सकता है. उन के लिए धूम्रपान की आदत छुड़ाने की दिशा में उठाए गए कदम, प्रदान की गई सहायता तथा प्रेरक गतिविधियां उन की हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए एक संभावित प्रयास हो सकता है.
एक स्वस्थ कंकाल के लिए धूम्रपान का त्याग करने के अलावा नियमित व्यायाम करने, कैल्शियम और विटामिन डी प्रचुर आहार का सेवन करने, अल्कोहल का सेवन न करने जैसे जीवनशैली में बदलाव लाना धूम्रपान के कारण हड्डियों के कमजोर होने के खतरे को कम करने में सहायक हो सकता है. हड्डियों को स्वस्थ रखने की जंग केवल कमरे में परामर्श दे कर नहीं जीती जा सकती. इस के लिए धूम्रपान छोड़ने को सुगम बनाने की नीतियां विकसित करने, धूम्रपान की लत का शिकार हुए व्यक्तियों के लिए एक सहायक परिवेश का निर्माण करने जैसे बदलाव लाने की जरूरत है. युवा धूम्रपानकर्ताओं को जागरूक करना उन की आदत को बदलने के लिए एक सशक्त प्रेरक हो सकता है. धूम्रपानकर्ता को धूम्रपान करने से रोकने के लिए सामुदायिक स्तर पर प्रेरित करना उन की शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्थितियों दोनों पर अनुकूल प्रभाव डाल सकता है. धूम्रपान और हड्डियों की मजबूती के बीच संबंधों को ज्ञात करना महज एक अकादमिक जिज्ञासा नहीं है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक व आर्थिक स्थितियों पर भी इस का अत्यंत प्रभाव पड़ता है. बाल्यकाल में धूम्रपान की शुरुआत करने वाले व्यक्तियों में हड्डियां टूटने तथा टूटी हड्डियों के ठीक होने में अधिक समय लगने का खतरा अधिक होता है. ये स्थितियां व्यक्ति के दैनिक कार्यकलापों को सीधे प्रभावित करने के साथ ही स्वास्थ्य प्रणाली पर अनावश्यक आर्थिक बो?ा भी डालती हैं. निकोटिन का प्रभाव निकोटिन अणु (मौलिक्यूल) की रचना शरीर में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एसिटिलकोलीन नामक एक रसायन के रूप में होती है. यह एसिटिलकोलीन मस्तिष्क की एक तंत्रिका कोशिका (न्यूरौन) से दूसरी तंत्रिका कोशिका तक सूचना का संचार करता है. एसिटिलकोलीन में मौजूद रिसेप्टर कोलीनर्जिक रिसेप्टर्स कहलाते हैं. निकोटिन मस्तिष्क तथा शरीर के अन्य अंगों में मौजूद कुछ कोलीनर्जिक रिसेप्टरों के साथ क्रिया करता है. इन रिसेप्टरों के सक्रिय होने पर निकोटिन शरीर में अन्य न्यूरोट्रांसमीटर्स और हार्मोंस के स्राव को बढ़ा देता है, जिन में एसिटिलकोलीन, नौरएपीनेफ्रीन, डोपामिन, वेसोप्रेसिन और बीटाएंडोरफिन सम्मिलित हैं. शरीर में डोपामिन, नौरएपीनेफ्रीन और सेरोटोनिन का स्राव बढ़ने पर आनंद की अनुभूति होती है, साथ ही भूख नहीं लगने की स्थिति में शरीर का वजन घटने लगता है. एसिटिलकोलीन का स्राव बढ़ने की स्थिति में कार्य क्षमता और स्मरण शक्ति बेहतर होने में सहायक होती है. इसी प्रकार बीटाएंडोरफिन का स्राव बढ़ने से चिंता और तनाव में गिरावट की अनुभूति होती है. नियमित धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों के शरीर में ये बदलाव उन में लत लगाने के लिए जिम्मेदार होते हैं.
निकोटिन की उपस्थिति में मस्तिष्क का सामान्य रूप से कार्य करना उस की लत लगने का ही परिणाम है. ऐसे व्यक्ति धूम्रपान बंद करने की स्थिति में शरीर में निकोटिन न मिलने से मस्तिष्क का कार्य बाधित हो जाता है, जो उपर्युक्त अनेक विद्ड्रौल सिंप्टम्स (लक्षणों) के उभरने का कारण बनता है. तंबाकू सेवन से बचाव संभव पेरैंट्स को अपने किशोरवय बच्चों की गतिविधियों और उन में होने वाले व्यावहारिक परिवर्तनों पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. वरना किशोरवय आयु में प्रायोगिक तौर पर धूम्रपान अथवा तंबाकू सेवन की शुरुआत करने वाले व्यक्ति को भविष्य में इस की लत का शिकार होने से बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है. बच्चों को तंबाकू सेवन से उत्पन्न गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरूक बना कर भावी पीढ़ी को तंबाकू की लत से बचाया जा सकता है. अच्छी शिक्षा व्यवस्था के साथसाथ मातापिता द्वारा बच्चों में अच्छे संस्कार विकसित करना उन्हें तंबाकू की लत से बचाने में कारगर हो सकता है. तंबाकू निर्माता कंपनियों और लोकप्रिय अभिनेताओं, खिलाडि़यों के लिए तंबाकू एवं तंबाकू उत्पादों के संबंध में भ्रामक विज्ञापनों से बचना भी काफी हद तक सहायक हो सकता है. स्वास्थ्य संस्थानों के चिकित्सकों और अधिकारियों द्वारा विशेष तौर पर स्कूलकालेजों में तंबाकू और तंबाकू उत्पादों के सेवन से होने वाली गंभीर समस्याओं के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से व्याख्यानों का आयोजन किया जाना चाहिए. द्य नशे की गिरफ्त में क्यों आते हैं लोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार किसी भी नशे की लत लगना व्यक्ति और समाज को अधिकतम नुकसान पहुंचाने की हद तक उस के व्यवहार में परिवर्तन आना होता है. बीड़ी, सिगरेट अथवा हुक्का के धूम्रपान की लत लगने पर व्यक्ति के शरीर में निकोटीन का जमाव हो जाता है, जिस के कारण शरीर में निम्नलिखित बदलाव आ जाते हैं:
शरीर के अलगअलग अंगों के कार्यों पर नियंत्रण रखने वाले मस्तिष्क के अलगअलग भागों (लोब्स) के बीच पारस्परिक तालमेल (सिंक्रनाइजेशन) का टूटना.
कैटेकोलामाइंस, वेसोप्रेसिन, ग्रोथ हार्मोन, कोर्टिसोल, प्रोलैक्टिन और बीटाएंडोर्फिन के स्तरों का बढ़ना.
मेटाबोलिक रेट का बढ़ना.
लाइपोलाइसिस, फ्री फैटी एसिड्स का स्तर बढ़ना.
हृदय गति बढ़ना, त्वचा और कोरोनरी धमनियों का सिकुड़ना, रक्तदाब बढ़ना (उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रैशर की स्थिति).
स्केलेटल मसल्स (कंकाली पेशियों) का शिथिल होना.
धूम्रपान के आदी व्यक्ति में अचानक निकोटीन की मात्रा बंद करने पर विद्ड्रौल सिंप्टम्स के रूप में निम्नलिखित विशेष लक्षण उभर सकते हैं :
घबराहट, चिंता व तनाव, अधिक भोजन करना.
अधैर्य होना, चिड़चिड़ापन व गुस्सा आना. द्य एकाग्रता में कठिनाई.
भूख अधिक लगना.
अवसाद, लड़खड़ा कर चलना.
शरीर में कमजोरी और थकान.
चक्कर आना, पेट संबंधी समस्या, सिरदर्द, पसीना आना, नींद नहीं आना.
धड़कन तेज होना, शरीर में झटका लगना.
सिगरेट व बीड़ी पीने की तीव्र इच्छा होना.
लेखक : डा. कृष्णा नंद पांडेय