जीवन में ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जिन के लिए हम किसी को दोषी नहीं ठहरा पाते, न खुद को, न समाज को, न संस्कार, न दोस्त, न मातापिता को. सजा खुद काटनी पड़ती है. कुछ ऐसा ही अघट घटा था प्रमिला के साथ, जिस के लिए कुसूरवार वह किसी को नहीं मानती.

आज वह अपनेआप को कोसने लगी. ऐसा सुलूक तो कोई गैरों के साथ भी नहीं करता. वह अपने उस दिन को याद करने लगी जिस दिन उस ने प्रेमपाल सिंह से शादी के लिए ‘हां’ कह दी थी. वह आत्मालाप कर रही थी, ‘काश, प्रेमपाल से शादी की कुंडली मिली न होती. काश कि मैं मां की कोख में ही मर गई होती.’ अनेक बुरे खयाल उस के जेहन में बादलों की तरह उमड़घुमड़ रहे थे.

उस दिन करवाचौथ था. उस दिन ही दूध वाले ने दूध देते वक्त मजाकमजाक में कह दिया, ‘‘भाभीजी, आज तो आप ने भी व्रत रखा होगा?’’

प्रमिला ने मुसकराते हुए जवाब दिया था, ‘हां.’

‘तब तो भाईसाहब की सौ साल उम्र हो जाएगी. भाईसाहब के लिए तो पचासपचास साल की दुआएं मांगी जाएंगी. 50 आप और 50 दूसरी मेमसाब द्वारा.’ वह दूध नापनाप कर बरतन में डालता रहा और व्यंग्य का बाण छोड़ कर चलता बना. प्रमिला का मन किया कि उसे डपट दे. मगर उसे तो ऐसी बातें सुनने की आदत सी पड़ गई थी. वह अपने दुख को दूसरों को सुनाने के बजाय खुद को कोसने लगती.

नहीं भूल पाती वह उस दिन को जब प्रेमपाल ने अपना और प्रमिला का मैडिकल चैकअप करवाया था. उसे पता चल गया था कि वह मां नहीं बन सकती. वह उस के वंश को बढ़ा नहीं सकती, ब्याह के 7 साल बीत चुके थे.

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