Politics : जब देशों में कट्टरवाद की लहरें उठनी शुरू होती हैं तो वे एक से दूसरे देश में कोराना वायरस की तरह फैलती हैं. एक समय बराबरी और सब को अवसर के नारों से डैमोक्रेसी ने अपना झंडा फहराया था पर मुसलिम देशों से शुरू हुआ धार्मिक कट्टरवाद अब अमीर, डैमोक्रेटिक देशों में फैल रहा है. इटली, आस्ट्रिया, जरमनी, पोलैंड, फ्रांस, अमेरिका अब एक अजीब से डैमोके्रसी विरोधी, विदेशी रंग के विरोधी दलों की गिरफ्त में आते जा रहे हैं.

समाजशास्त्री इस का चाहे जो विश्लेषण करें, यह बदलाव बेहद खतरनाक है और 200 सालों की जनचेतना व स्वतंत्रताओं के निगलने को तैयार बैठा है. अमेरिका इस का सिरमौर है. भारत पहले से ही शिकार हो चुका है. बंगलादेश में अति कट्टरवाद फैल रहा है. सब जगह नाजी खून के बुलबुले उठ रहे हैं कि हम श्रेष्ठ हैं. बाहरी लोग हमारे कल्चर और फैब्रिक को खराब कर रहे हैं.

जो हिंदूमुसलिम भारत में हो रहा है वह अमेरिका में गोरों, लेटिनों और कालों में हो रहा है, यूरोप में गोरों और मुसलिम शरणार्थियों में हो रहा है, पाकिस्तान में अफगानों को ले कर हो रहा है. इन सब देशों में पुलिस और सेना के अफसरों के चेहरों पर भारी मुसकान है क्योंकि उन्हें लग रहा है कि अब असल ताकत उन के पास आने वाली है.

भारत में जो बुलडोजरी राज चल रहा है, वैसा ही अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप उन 14 लाख अवैध घुसपैठियों पर लागू करने की धमकी दे रहे हैं, वही आस्ट्रिया में फ्रीडम पार्टी कह रही है. वैसा ही कुछ इटली की जौर्जिया मैलोनी कह रही हैं जो ट्रंप और मोदी को इसीलिए पसंद करती हैं. रूस में पुतिन को कोई हिला नहीं पा रहा है. वे पूरे यूरोप पर सैनिक कब्जा करने का सपना पाले हुए हैं. और फार राइट कट्टरवादी पार्टियां उन से फिर भी कोई ज्यादा नाराज नहीं हैं.

यह राइटिस्ट, दक्षिणपंथी राजनीति न केवल इन देशों को महंगी पड़ेगी बल्कि यह आम लोगों के लिए कहर भी लाएगी. डैमोक्रेसी में जियो और जीने दो का सिद्धांत चलता है पर ये राइटिस्ट यह विश्वास करते हैं कि उन के हिसाब से जियो वरना जियो या न जियो. जो हम से अलग दिखता है, अलग धर्म का है, अलग बोली बोलता है, वह पराया है और उसे साथ रहने का हक नहीं है.

दुनिया ने जो सहयोग का माहौल बनाया था वह विवादों में बदल रहा है, कुछ देशों में अपने ही लोगों के गुटों में तो कहीं दूसरे देशों के साथ. रूस, यूक्रेन, इजराइल, फिलिस्तीन, तुर्किए, सीरिया ऐसे पटाखे हैं जो रोज फट रहे हैं. अब ये हर जगह फटते दिखने लगें, तो आश्चर्य नहीं क्योंकि राइटिस्ट केवल हिंसा, जिद, कट्टरता की भाषा समझते हैं.

दुनिया में फैली राइटिज्म की बीमारी कोविड की तरह की छूत की हो सकती है और जरमनी के 1940-1945 के दिनों को वापस ला सकती है. अब कल पर भरोसा थोड़ा कम हो गया है.

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