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Hindi Story : डौलर का लालच – मसाज पार्लर का लालच कैसे सेवकराम को ले डूबा

Hindi Story : सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी. सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे. ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’ सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी. ‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’ ‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भीउस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है? हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हव  निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया. विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

Best Hindi Story : मखमल का पैबंद – क्या ठाठ थे उस घर के?

Best Hindi Story : “अरेअरेअरे, संभाल कर लाना, दरवाजा थोड़ा छोटा है,”  चारु ने एक एंटीक भारीभरकम मेज-कुरसी उठा कर कमरे में लाते हुए 3 लेबरों से कहा. कमरा बहुत बड़ा नहीं था. एक साधारण सा नवदंपति का कमरा जैसा होता है ठीक वैसा ही था. एक तरफ पलंग पड़ा था, एक तरफ एक छोटी सी श्रृंगार मेज रखी थी. दूसरी ओर पुराने चलन की कपड़े रखने वाली लोहे की अलमारी खड़ी थी. एक किनारे खिड़की के पास ही थोड़ी जगह शेष थी. चारु ने उसी स्थान की ओर उंगली से इशारा करते हुए कहा, “बसबस, वहीं रख दो इसे, संभाल कर.”  लेबरों ने मेजकुरसी चारु की बताई जगह पर रख दी. चारु ने उन्हें उन का मेहनताना दिया. फिर वे वहां से चले गए.

चारु कमरे में अकेले रह गई. उस ने एक ठंडी सांस ले कर उस कुरसीमेज पर दृष्टि डाली, फिर अपने कमरे को देखा. कैसे बेमेल लग रहे हैं दोनों. एक बिलकुल निम्न मध्यवर्गीय कमरे में एक राजसी कुरसीमेज का जोड़ा. दोनों में कोई साम्य ही नहीं था. कमरे का हर सामान जैसे उस के आगे अपने को हीन अनुभव करने लगा हो.

चारु उठ कर उस कुरसीमेज के पास पहुंची. उस ने कुरसी की नक्काशी पर बड़े प्रेम से हाथ फिराया. बहुत ही बारीक और कलात्मक नक्काशी की गई थी. उस के उभरे हुए एकएक बेलबूटे का उतारचढ़ाव उसे याद है. न मालूम कितनी बार अपनी कला की पुस्तिका में उस ने इसी की आकृति उकेरी थी और सदा अच्छे अंक पाए थे. मेज की लकड़ी की चमक उस की मज़बूती और स्वास्थ्य का पता दे रही थी.

चारु ने मन ही मन अनुमान लगाया-  कम से कम सौ साल पुरानी कुरसी होगी यह.  गहरे कत्थई रंग की मजबूत शीशम की लकड़ी की बनी ये कुरसीमेज उस की दादीमां की निशानी है. बचपन से ही उसे इसी कुरसीमेज पर बैठ कर पढ़ना पसंद था. अपनी दादी को इस कुरसी से हटा कर वह खुद बैठ जाती थी. तब दादी बगल के सोफे पर बैठ कर उस के लिए स्वेटर बुना करती थीं. जब वह बहुत छोटी थी, तब इसी पर सिर टिकाएटिकाए सो भी जाती थी. उस की दादी हंस कर कहती थीं, ‘तेरे दहेज में यही कुरसीमेज बांध दूंगी तुझे.’  और देखो हंसी में कही गई बात वास्तव में सच हो गई.

चार भाईबहनों में अकेले उसे ही यह कुरसीमेज मिली, वह भी इसीलिए क्योंकि उस का दादी से और इस कुरसीमेज से अत्यधिक लगाव था. बाकी सारे भाईबहनों को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिला. पर उसे? उसे तो धिक्कार के साथ, बस, ये कुरसीमेज भिजवा दी गई थी.

बस, अब मायके से मिले स्त्रीधन के नाम पर यही शीशम की कुरसीमेज उस की अभिभावक थी. न मां का आंचल मिलना था अब और न ही पिता की गोद. बस, सारे सुखदुख उसे इसी कुरसीमेज पर बैठ कर काटने थे.

चारु अचानक जैसे खुद को बहुत शक्तिहीन अनुभव करने लगी. उस के पैरों से जैसे किसी ने सारा बल खींच लिया हो. वह खड़ी न रह सकी, धम्म से उसी कुरसी पर बैठ गई और मेज पर उस ने अपना सिर टिका लिया. एक क्षण के लिए उसे लगा जैसे उस ने वास्तव में किसी अभिभावक की गोद में सिर रख कर आत्मसमर्पण कर दिया हो.

कितना मुश्किल था पिता का घर छोड़ना. पिता भी पिता से अधिक ठाकुर रघुवीर प्रताप सिंह थे, जिन की आनबानशान ही उन के लिए सबकुछ थी. पिता के कहे अंतिम शब्द आज भी उस के कानों में गूंजते हैं- ‘अपनी मरजी से शादी कर रही हो उस दूसरी जाति के लड़के से जो कभी हमारे यहां 20 हज़ार रुपये माह पर नौकरी करता था. पलट कर इस घर में वापस पांव मत रखना अब. हमारे लिए आज से तुम मर गईं.

कहां राजसी धनी ठाकुर परिवार में पलीबढ़ी चारु और कहां यह निम्न मध्यवर्गीय परिवार. रजत के प्रेम में पड़ कर उस ने विवाह कर के कहीं गलत निर्णय तो नहीं ले लिया? निभा तो पाएगी न? कहीं वह इस परिवार में ऐसे ही बेमेल न लगे जैसे ये राजसी मेजकुरसी इस कमरे में कहीं खप ही नहीं पा रहीं.

अभी थोड़े ही दिन हुए हैं उस के विवाह को, पर उसे इस परिवार में खुद का असंगत लगना शुरू हो चुका था. दरवाजे पर गृहप्रवेश के लिए आरती उतारती सास अपनी बहू के रूप पर रीझ कर बलैया लिए जा रही थीं. वहीं आसपड़ोस की सब पड़ोसिनें और बच्चे उसे कुतूहल से देखे जा रहे थे. अंत में पड़ोस वाली रामा चाची, जो एक हाथ से आंचल मुंह में दबाए आश्चर्य से उस का मुख ताके जा रही थीं, बोल ही पड़ीं, ‘बहू तो परी जैसी ले आए हो लल्ला. पर अब इस के लिए परीमहल खड़ा करना पड़ेगा. तुम्हारी खाट के खटमल देख लेना, इस का अधिक खून न पिएं.’

उन का इतना कहना था कि पास पड़ोस में एक ठहाका गूंज उठा.

‘चलचल रामा, ज़्यादा खींसे न निपोर. अधिक चिंता है तो एक पलंग तू ही उपहार में दे दे. अब बहू अगर परी है तो अपनी जादू की छड़ी भी लाई होगी. ख़ुद ही बना लेगी अपना परीस्तान’, उस की सास ने बात को बनाया और उसे अंदर पैर धरने को कहा. पैर अंदर धरा तो उस ने पाया एक तरफ फर्श का सीमेंट उखड़ा हुआ है. उस का गोरा, चिकना, सुंदर पैर काले, उखड़े, टूटेफूटे फर्श पर रखते ही मैला हो गया. अपने घर में कभी उस ने संगमरमर के अतिरिक्त कोई

अन्य प्रकार का फर्श देखा ही न था. इस के बाद नित नए अनुभव उस के सामने आते गए. हलकी स्टील के सस्ते, कहींकहीं से दबेपिचके बरतनों में खाना खाने से उसे अच्छे से अच्छे भोजन में भी तृप्ति न मिलती थी. खानेपीने की चीज़ों में भी वह क्वालिटी नहीं थी. सुबह चाय के साथ पड़ोस के हलवाई से मंगवाई हुई सस्ती सी दालमोठ और बिस्कुट आ जाते थे, जो उस के गले से नीचे न उतरते थे. बाथरूम सब का एक ही था. वहां एक सस्ता सा साबुन नहाने के लिए रखा रहता था. अपने घर में तो वह विदेशी ब्रैंड के साबुन से नहाती थी.

पर अब जो होना था हो चुका. अब एक नए जीवन की शुरुआत है. उस घर के दरवाजे तो उस के लिए सदा के लिए बंद हो ही चुके हैं. कुछ रास्तों पर बढ़ने के बाद ही पता चलता है कि वे मात्र जाने के लिए बने थे, लौट कर आने के लिए उन में कोई संभावना नहीं होती. जब वह रजत का हाथ थाम कर अपने मायके की गलियां छोड़ आई थी, तब उस ने यह नहीं सोचा था कि वो गलियां अब सदा के लिए पराई हो जाएंगी. अब तो रजत के प्रेम के साथ उसे अपने इसी

छोटे से घर को सजाना है, संवारना है. ससुराल की आर्थिक तंगी में ही उसे संतोष व सुख के धन को जोड़जोड़ कर रखना है. यह उस के पिया का घर है. और वह रानी है इसी घर की.

चारु की आंखों में आंसू झिलमिला उठे. मांपिता, भाईभाभी, बहन सब के चेहरे उस के मन में बारीबारी से झलक रहे थे. क्या अपनी मरजी से विवाह करना इतना बड़ा पाप था कि बस इसी कारण से पिता का स्नेह सिमट कर शून्य हो गया है? मां की आंखों के लाललाल डोरे उसे बरबस याद आने लगे. जब अंतिम घड़ी आ गई थी और वह हवेली के फाटक पर खड़ी अपना सूटकेस लिए, जाने के लिए पैर बढ़ाने वाली थी. पिता ने तो अंतिम बार पैर छूने का मौका तक नहीं दिया. जैसे ही वह और रजत पैर छूने चले उन्होंने पैर पीछे हटा लिए. पर मां…? मां की आंखों से तो अश्रुओं का बांध टूट गया था. रोती हुई मां का विदा में उठा हाथ कितनी देर तक हिलता रहा था, उस ने मोटरसाइकिल के पीछे बैठे बैठे तब तक देखा था जब तक वह दृश्य उस की आंखों से ओझल नहीं हो गया था. पर अब जो डोर टूट चुकी तो टूट गई.

बाहर अंधेरा घिर आया था. चारु अभी भी मेज पर सिर टिकाए थी. अतीत में विचरतेविचरते आप कितने पीछे समय में चले जाते हो, कुछ पता नहीं चलता. चारु की आंखों के नीचे काजल की लकीरें फैल गई थीं. मन का सारा अंधकार जैसे उस की आंखों के नीचे ही जम गया हो. आधे घंटे तक मानो वह एक अंधेरे थिएटर में बैठी रही थी जहां उस का मन एक कुशल निर्देशक की तरह उसे उस के अतीत का चलचित्र दिखाए जा रहा था.

फिर चारु ने मन ही मन कुछ निर्णय किया. उस ने उठ कर कमरे की बत्ती जलाई. पूरे कमरे में प्रकाश जगमगा गया. एक बार फिर वही छोटा कमरा और उस से तनिक भी मेल न खाती हुई कुरसीमेज का जोड़ा मुंह चिढ़ाते हुए दृष्टि के सामने आ कर जम गया,  अब क्या करोगी, चारु?

चारु ने अपने आंसू पोंछ डाले. रजत के आने का समय हो रहा था. सामने रखी कपड़ों की अलमारी को चारु ने खोला. सब से ऊपर के खाने में वह चादर, तकिया के गिलाफ़ रखा करती थी. वहीं से उस ने कुछ पुरानी और थोड़ा कम प्रयोग में आने वाली 2 चादरें निकालीं. एक उस ने कुरसी पर डाल दी और दूसरी को उस ने फैला कर मेज को ढक दिया.

कुरसीमेज के शीशम की ठसक, उस की राजसी चमक, उस का नक्काशीदार अभिमानी सौंदर्य, उस का श्रेष्ठता का भाव, उस का मूल्यवान होने का दर्प सबकुछ उन चादरों के आवरण के नीचे ढक चुका था. अब कुरसीमेज उस के मध्यवर्गीय कमरे से पूरी तरह मेल खा रही थी. अब कोई नहीं कह सकता था कि यह टाट की पट्टी में लाल मखमल का पैबंद है.

तभी रजत लौट आया था. चारु कुरसीमेज की ओर ही मुंह किए खड़ी थी. अभी भी उसी ओर ताक रही थी. कमरे में घुसते ही रजत की सब से पहली दृष्टि किनारे रखी कुरसीमेज पर ठहर गई, फिर उस ने चारु को लक्ष्य कर के कहा, “अरे वाह, लैक्चरर साहिबा, आप ने अपने पढ़नेलिखने के लिए कुरसीमेज का इंतज़ाम भी कर लिया?” यह उस ने चहकते हुए कहा. उसे पता था, चारु बिना कुरसीमेज के कुछ पढ़लिख ही नहीं पाती है. वह कुरसीमेज लाने का मन बना ही रहा था.

उस ने सोचा था कि किसी दिन वह चारु को अचानक से उपहार दे कर अचंभित कर देगा. पर यहां तो चारु ने उसे ही सरप्राइज़ दे दिया. रजत चारु के बिलकुल निकट आ कर खड़ा हो गया और कुरसीमेज को चारु के साथ ही खड़े हो कर देखने लगा.

चारू ने उधर से अपनी दृष्टि उठाई और रजत की आंखों में देखा, फिर बोली, “हां जी पति महोदय, जैसे राजा बिन सिंहासन अधूरा होता है न, वैसे ही एक अध्यापक बिन पढ़नेलिखने वाली एक कुरसीमेज के अधूरा होता है. यही आज से मेरा सिंहासन है.”

“अच्छा जी, मतलब आप नाइट लैंप जला कर यहां देररात पढ़ा करेंगी और मैं वहां पलंग पर करवटें बदलबदल कर आप की प्रतीक्षा करूंगा?” रजत ने अपना बैग एक कोने में फेंका और शरारत के साथ चारु को अपनी बांहों में ले लिया.चारु मुसकराई, “ये सब तो पहले सोचना था न. अब रिसर्च का काम होता ही इतना जटिल है, मैं क्या करूं?

हूं, जानता हूं भई. और इस पर यह चादर क्यों डाल रखी है? हटाओ, ज़रा देखूं तो इस की क्वालिटी.” और रजत ने चादर हटाने के लिए हाथ बढ़ाया. पर चारु ने उस का हाथ रोक लिया.

“क्या हुआ?”  रजत ने पूछा.

“आप को बताया था न, दादी की एक कुरसीमेज थी, जो मुझे बहुत प्रिय थी,” चारु ने कहा.

“हां, जानता हूं. बहुत बार देखा है उसे मैं ने तुम्हारे घर पर. यह भी देखा था कि तुम उस पर बैठी पढ़ती रहती थीं मोटीमोटी किताबें.”  रजत के स्वर में अभी भी विनोद झलक रहा था.

“पिताजी ने भिजवाई है.”  चारु के स्वर में विषाद का भाव उतर आया था.

“ओह, रजत को जैसे ही बात समझ में आई वह गंभीर हो गया, फिर बोला, “तो इस पर चादर क्यों डाल दी? यह तो ऐसे ही बड़ी सुंदर दिखती थी. क्या ठाठ थे इस के तुम्हारे घर में. हटा दो न, चादर.”

“नहीं, इसे ऐसे ही रहने दीजिए,” चारु भावुक हो कर रजत के गले लग गई, “मुझे अब आप के साथ ही अपने जीवन को सुंदर बनाना है. मैं अपने अतीत पर चादर डाल आई हूं.”

ट्विंकल तोमर सिंह

Love Story : यादों के सहारे – क्या नीलू को प्रकाश भूल पाया?

Love Story : वह बीते हुए पलों की यादों को भूल जाना चाहता था. और दिनों के बजाय वह आज  ज्यादा गुमसुम था. वह सविता सिनेमा के सामने वाले मैदान में अकेला बैठा था. उस के दोस्त उसे अकेला छोड़ कर जा चुके थे. उस ने घंटों से कुछ खाया तक नहीं था, ताकि भूख से उस लड़की की यादों को भूल जाए. पर यादें जाती ही नहीं दिल से, क्या करे. कैसे भुलाए, उस की समझ में नहीं आया.

उस ने उठने की कोशिश की, तो कमजोरी से पैर लड़खड़ा रहे थे. अगलबगल वाले लोग आपस में बतिया रहे थे, ‘भले घर का लगता है. जरूर किसी से प्यार का चक्कर होगा. लड़की ने इसे धोखा दिया होगा या लड़की के मांबाप ने उस की शादी कहीं और कर दी होगी…

‘प्यार में अकसर ऐसा हो जाता है, बेचारा…’ फिर एक चुप्पी छा गई थी. लोग फिर आपसी बातों में मशगूल हो गए. वह वहां से उठ कर कहीं दूर जा चुका था. उस ने उस लड़की को अपने मकान के सामने वाली सड़क से गुजरते देखा था. उसे देख कर वह लड़की भी एक हलकी सी मुसकान छोड़ जाती थी. वह यहीं के कालेज में पढ़ती थी. धीरेधीरे उस लड़की की मुसकान ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया था. जब वे आपस में मिले, तो उस ने लड़की से कहा था, ‘‘तुम हर पल आंखों में छाई रहती हो. क्यों न हम हमेशा के लिए एकदूजे के हो जाएं?’’ उस लड़की ने कुछ नहीं कहा था. वह कैमिस्ट से दवा खरीद कर चली गई थी. उस का चेहरा उदासी में डूबा था.

उस लड़की का नाम नीलू था. नीलू के मातापिता उस के उदास चेहरे को देख कर चिंतित हो उठे थे. पिता ने कहा था, ‘‘पहले तो नीलू के चेहरे पर मुसकराहट तैरती थी. लेकिन कई दिनों से उस के चेहरे पर गुलाब के फूल की तरह रंगत नहीं, वह चिडि़यों की तरह फुदकती नहीं, बल्कि किसी बासी फूल की तरह उस के चेहरे पर पीलापन छाया रहता है.’’

नीलू की मां बोली, ‘‘लड़की सयानी हो गई है. कुछ सोचती होगी.’’

नीलू के पिता बोले, ‘‘क्यों नहीं इस के हाथ पीले कर दिए जाएं?’’

मां ने कहा, ‘‘कोई ऊंचनीच न हो जाए, इस से तो यही अच्छा रहेगा.’’ नीलू की यादों को न भूल पाने वाले लड़के का नाम प्रकाश था. वह खुद इस कशिश के बारे में नहीं जानता था. वह अपनेआप को संभाल नहीं सका था. उसे अकेलापन खलने लगा था. उस की आंखों के सामने हर घड़ी नीलू का चेहरा तैरता रहता था. एक दिन प्रकाश नीलू से बोला, ‘‘नीलू, क्यों न हम अपनेअपने मम्मीडैडी से इस बारे में बात करें?’’

‘‘मेरे मम्मीडैडी पुराने विचारों के हैं. वे इस संबंध को कभी नहीं स्वीकारेंगे,’’ नीलू ने कहा.

‘‘क्यों?’’ प्रकाश ने पूछा था.

‘‘क्योंकि जाति आड़े आ सकती है प्रकाश. उन के विचार हम लोगों के विचारों से अलग हैं. उन की सोच को कोई बदल नहीं सकता.’’

‘‘कोई रास्ता निकालो नीलू. मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता.’’ नीलू कुछ जवाब नहीं दे पाई थी. एक खामोशी उस के चेहरे पर घिर गई थी. दोनों निराश मन लिए अलग हो गए. पूरे महल्ले में उन दोनों के प्यार की चर्चा होने लगी थी.

‘‘जानती हो फूलमती, आजकल प्रकाश और नीलू का चक्कर चल रहा है. दोनों आपस में मिल रहे हैं.’’

‘‘हां दीदी, मैं ने भी स्कूल के पास उन्हें मिलते देखा है. आपस में दोनों हौलेहौले बतिया रहे थे. मुझ पर नजर पड़ते ही दोनों वहां से खिसक लिए थे.’’

‘‘हां, मैं ने भी दोनों को बैंक्वेट हाल के पास देखा है.’’

‘‘ऐसा न हो कि बबीता की कहानी दोहरा दी जाए.’’

‘‘यह प्यारव्यार का चक्कर बहुत ही बेहूदा है. प्यार की आंधी में बह कर लोग अपनी जिंदगी खराब कर लेते हैं.’’

‘‘आज का प्यार वासना से भरा है, प्यार में गंभीरता नहीं है.’’

‘‘देखो, इन दोनों की प्रेम कहानी का नतीजा क्या होता है.’’ प्रकाश के पिता उदय बाबू अपने महल्ले के इज्जतदार लोगों में शुमार थे. किसी भी शख्स के साथ कोई समस्या होती, तो वे ही समाधान किया करते थे. धीरेधीरे यह चर्चा उन के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने घर आ कर अपनी पत्नी से कहा था, ‘‘सुनती हो…’’ पत्नी निशा ने रसोईघर से आ कर पूछा, ‘‘क्या है जी?’’

‘‘महल्ले में प्रकाश और नीलू के प्यार की चर्चा फैली हुई है,’’ उदय बाबू ने कहा.

‘‘तभी तो मैं मन ही मन सोचूं कि आजकल वह उखड़ाउखड़ा सा क्यों रहता है? वह खुल कर किसी से बात भी नहीं करता है.’’

‘‘मैं प्रोफैसर साहब के यहां से आ रहा था. गली में 2-4 औरतें उसी के बारे में बातें कर रही थीं.’’

‘‘मैं प्रकाश को समझाऊंगी कि हमें यह रिश्ता कबूल नहीं है,’’ निशा ने कहा. उधर नीलू के मम्मीडैडी ने सोचा कि जितना जल्दी हो सके, इस के हाथ पीले करवा दें और वे इस जुगाड़ में जुट गए.

नीलू को जब इस बारे में मालूम हुआ था, तो उस ने प्रकाश से कहा, ‘‘प्रकाश, अब हम कभी नहीं मिल सकेंगे.’’

‘‘क्यों?’’ उस ने पूछा था.

‘‘डैडी मेरा रिश्ता करने की बात चला रहे हैं. हो सकता है कि कुछ ही दिनों में ऐसा हो जाए,’’ इतना कह कर नीलू की आंखों में आंसू डबडबा गए थे.

‘‘क्या तुम ने…?’’

‘‘नहीं प्रकाश, मैं उन के विचारों का विरोध नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम ने मुझे इतना प्यार क्यों किया था?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘हम एकदूसरे के हो जाएं, क्या इसे प्यार कहते हैं? क्या जिस्मानी संबंध को ही तुम प्यार का नाम देते हो?’’

यह सुन कर प्रकाश चुप था.

‘‘क्या अलग रह कर हम एकदूसरे को प्यार नहीं करते रहेंगे?’’ कुछ देर चुप रह कर नीलू बोली, ‘‘मुझे गलत मत समझना. मेरे मम्मीडैडी मुझे बहुत प्यार करते हैं. मैं उन के प्यार को ठेस नहीं पहुंचा सकती.’’

‘‘क्या तुम उन का विरोध नहीं कर सकती?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘जिस ने हमें यह रूप दिया है, हमें बचपन से ले कर आज तक लाड़प्यार दिया है, क्या उन का विरोध करना ठीक होगा?’’ नीलू ने समझाया.

‘‘तो फिर क्या होगा हमारे प्यार का?’’ प्रकाश ने पूछा.

‘‘अपनी चाहत को पाने के लिए मैं उन के अरमानों को नहीं तोड़ सकती. उन की सोच हम से बेहतर है.’’ इस के बाद वे दोनों अलग हो गए थे, क्योंकि लोगों की नजरें उन्हें घूर रही थीं. नीलू के मम्मीडैडी की आंखों के सामने बरसों पुराना एक मंजर घूम गया था. उसी महल्ले के गिरधारी बाबू की लड़की बबीता को भी पड़ोस के लड़के से प्यार हो गया था. उस लड़के ने बबीता को खूब सब्जबाग दिखाए थे और जब उस का मकसद पूरा हो गया था, तो वह दिल्ली भाग गया था. कुछ दिनों तक बबीता ने इंतजार भी किया था. गिरधारी बाबू की बड़ी बेइज्जती हुई थी. कई दिनों तक तो वे घर से बाहर निकले नहीं थे. इतना बोले थे, ‘यह तुम ने क्या किया बेटी?’

बबीता मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह गई थी. एक दिन चुपके से मुंहअंधेरे घर से निकल पड़ी और हमेशाहमेशा के लिए नदी की गोद में समा गई. गिरधारी बाबू को जब पता चला, तो उन्होंने अपना सिर पीट लिया था. नीलू की शादी उमाकांत बाबू के यहां तय हो गई थी. जब प्रकाश को शादी की जानकारी हुई, तो उस की आंखों में आंसू डबडबा आए थे. वह अपनेआप को संभाल नहीं पा रहा था. प्रकाश का एक मन कहता, ‘महल्ले को छोड़ दूं, खुदकुशी कर लूं…’ दूसरा मन कहता, ‘ऐसा कर के अपने प्यार को बदनाम करना चाहते हो तुम? नीलू के दिल को ठेस पहुंचाना चाहते हो तुम?’

कुछ पल तक यही हालत रही, फिर प्रकाश ने सोचा कि यह बेवकूफी होगी, बुजदिली होगी. उस ने उम्रभर नीलू की यादों के सहारे जीने की कमस खाई. नीलू की शादी हो रही थी. खूब चहलपहल थी. मेहमानों के आनेजाने का सिलसिला शुरू हो गया था. गाजेबाजे के साथ लड़के की बरात निकल चुकी थी. प्रकाश के घर के सामने वाली सड़क से बरात गुजर रही थी. वह अपनी छत पर खड़ा देख रहा था. वह अपनेआप से बोल रहा था, ‘मैं तुम्हें बदनाम नहीं करूंगा नीलू. इस में मेरे प्यार की रुसवाई होगी. तुम खुश रहो. मैं तुम्हारी यादों के सहारे ही अपनी जिंदगी गुजार दूंगा…’

प्रकाश ने देखा कि बरात बहुत दूर जा चुकी थी. प्रकाश छत से नीचे उतर आया था. वह अपने कमरे में आ कर कागज के पन्नों पर दूधिया रोशनी में लिख रहा था:

‘प्यारी नीलू,

‘वे पल कितने मधुर थे, जब बाग में शुरूशुरू में हमतुम मिले थे. तुम्हारा साथ पा कर मैं निहाल हो उठा था. ‘मैं रातभर यही सोचता था कि वे पल, जो हम दोनों ने एकसाथ बिताए थे, वे कभी खत्म न हों, पर मेरी चाहत के टीले को जमीन से उखाड़ कर टुकड़ेटुकड़े कर दिया गया. ‘मैं चाहता तो जमाने से रूबरू हो कर लड़ता, पर ऐसा कर के मैं अपनी मुहब्बत को बदनाम नहीं करना चाहता था. मेरे मन में हमेशा यही बात आती रही कि वे पल हमारी जिंदगी में क्यों आए? ‘तुम मेरी जिंदगी से दूर हो गई हो. मैं बेजान हो गया हूं. एक अजीब सा खालीपन पूरे शरीर में पसर गया है. संभाल कर रखूंगा उन मधुर पलों को, जो हम दोनों ने साथ बिताए थे.

‘तुम्हारा प्रकाश…’

प्रकाश की आंखें आंसुओं से टिमटिमा रही थीं. धीरेधीरे नीलू की यादों में खोया वह सो गया था.

Romantic Story : नया ठिकाना – मेनका को प्रथम पुरस्कार किसने दिया

Romantic Story : साइकिल से स्कूल आते और जाते समय हर रोज 16-17 साल की एक लड़की गुमटी पर आती. गेहुंआ रंग, दुबलीपतली, छरहरी बदन, कजरारी आंखें, चंचल स्वभाव. गुमटी पर जब भी वह आती, 2 ही चींजें खरीदती – लेज का चिप्स और चैकलेट.

गुमटी चलाने वाले दुकानदार रवि की उम्र भी लगभग 20 साल की होगी.वह भी गोरा, लंबा और सुंदर था. उस की सब से बड़ी खूबी थी कि हंसमुख मिजाज का लड़का था. किसी भी ग्राहक से वह मुसकराते हुए बातें करता. उस की दुकान अच्छी चलती. हर उम्र के लोग उस की गुमटी पर दिखते. बच्चे चैकलेट और कुरकुरे के लिए, बुजुर्ग खैनी व चूना के लिए, तो नौजवान पानगुटका के लिए. महिलाएं साबुन और शेंपू के लिए आते.

रवि की गुमटी एक बड़ी बस्ती में थी, जहां 10 गांव के लोग बाजार करने के लिए आते. इस बस्ती में एक उच्च विद्यालय था, जहां कई गांवों के लड़केलड़कियां पढ़ने के लिए आते. इस उच्च विद्यालय में इंटर क्लास तक की पढ़ाई होती. इस बस्ती में जरूरत की लगभग हर चीजें मिल जातीं.

रवि के पिता दमा की बीमारी से परेशान रहते. घर का सारा काम रवि की मां करती. रवि के परिवार का सहारा यही गुमटी था. सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक रवि इसी गुमटी में बैठ कर सामान बेचा करता. इसे खाने और नाश्ता करने तक की फुरसत नहीं मिलती.

रवि खुशमिजाज के साथ साथ दिलदार भी था. किसी के पास अगर पैसे नहीं हैं तो उसे उधार सामान दे दिया करता. 20,000 रुपए दिए गए उधार मिलने की संभावना नहीं के बराबर थी. फिर भी कोई उधार के लिए आता, तो उसे खाली हाथ नहीं जाने देता. वह ग्राहकों को चाचा, भैया, दीदी, चाची से ही संबोधित करता.

उच्च विद्यालय में वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा था. आज भी वह लड़की जींस और टौप पहने रवि की गुमटी पर चिप्स और चैकलेट के लिए आई थी. आज अन्य दिनों की अपेक्षा वह बला की खूबसूरत लग रही थी. रवि ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

लड़की ने हंसते हुए कहा, ‘‘नाम जान कर क्या करेंगे?’’

रवि ने कहा, ‘‘ऐसे ही पूछ दिया. माफ करना.’’

लड़की बोली, ‘‘इस में माफ करने की क्या बात है? मेरा नाम मेनका है.’’

‘‘अच्छा, तुम्हारा चेहरा भी मेनका गांधी से मिलताजुलता है. मांबाप कुछ देख कर ही तुम्हारा नाम मेनका गांधी रखे होंगे.’’

लड़की बोली, ‘‘मुझे मालूम नहीं. लेकिन मेरा नाम हमारे दादाजी ने मेनका रखा है. तुम्हारे दादा मेनका गांधी के बारे में अधिक जानते होंगे.’’

लड़की बात को पलटते हुए बोली, ‘‘आज हमारे स्कूल में वार्षिकोत्सव कार्यक्रम है. आप भी देखने आइएगा. तुम भी कुछ प्रोग्राम दोगी क्या?’’

लड़की बोली, ‘‘हां, मैं भी रेकौर्डिंग गीत पर डांस करूंगी.’’

रवि बोला, ‘‘कितने बजे से कार्यक्रम होगा?’’

‘‘यही लगभग 11 बजे से,’’ लड़की अनुमान से बोली.

रवि बोला, ‘‘कोशिश करूंगा.’’

लड़की मुसकराते हुए बोली, ‘‘कोशिश नहीं, जरूर आइएगा. नाटक, गीतसंगीत और डांस एक से एक बढ़ कर कार्यक्रम होगा. पहली बार इस तरह का बड़ा कार्यक्रम रखा गया है. उद्घाटन करने के लिए विधायकजी आने वाले हैं.’’

‘‘अच्छा ठीक है, जरूर आउंगा,’’ रवि बोला.

रवि स्कूल में 10 बजे ही पहुंच गया. मंच पर परदा लगाने और अन्य कामों में सहयोग करने लगा. रवि भी इसी स्कूल से मैट्रिक पास हुआ था. वह भी पढ़ने में मेधावी था. मजबूरी में वह पान की गुमटी खोल दिया था. इस विद्यालय के 2 शिक्षक नियमित रूप से रवि के पास ही पान खाते थे. रवि उन दोनों शिक्षकों से पढ़ा भी था. दोनों शिक्षकों का बहुत सम्मान और आदर करता था.

विधायकजी मंच पर आए. फूलमाला और बुके दे कर उन्हें सम्मानित किया गया. उन्होंने दीप प्रज्वलित कर मंच का उद्घाटन किया. अपने विधायक फंड से उन्होंने विद्यालय के चारों तरफ बाउंड्री कराने के लिए आश्वासन दिया. तालियों की गड़गड़ाहट से उपस्थित लोगों ने उन का स्वागत किया.

स्वागत गीत, नाटक, सामूहिक लोकगीत एक से एक रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया. सब से अंत में रेकौर्डिंग गीत पर डांस की घोषणा हुई. लहंगाचुनरी पहने जब मेनका ‘‘मैं नाचूं आज छमछम…‘‘ गीत पर डांस करने लगी, तो उपस्थित लोग मंत्रमुग्ध हो गए.

रवि तो भावविभोर हो गया. मेनका को डांस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विधायकजी द्वारा प्रदान किया गया. अन्य छात्रछात्राओं को भी पुरस्कार मिला.

रवि के मनमस्तिष्क पर मेनका का डांस घर बना लिया. आज रातभर उसे नींद नहीं आई. वही डांस दिमाग में घूमता रहा. दूसरे दिन 10 बजे मेनका फिर गुमटी पर चिप्स और चैकलेट लेने आई. रवि तो मन ही मन इंतजार कर रहा था.

मेनका को देखते ही वह बोलने लगा, ‘‘क्या गजब का तुम ने डांस किया. लोग तो तुम्हारी तारीफ करते थक नहीं रहे हैं. जिधर सुनो उधर तुम्हारी ही चर्चा.’’

मेनका बोली, ‘‘आप लोगों का आशीर्वाद है.’’

जब मेनका चिप्स और चैकलेट का पैसा देने लगी, तो रवि बोला, ‘‘मेरी तरफ से गिफ्ट है. हम गरीब आदमी और दे ही क्या सकते हैं?’’

मेनका भी निःशब्द हो गई और चिप्स और चैकलेट इसलिए ले लिया कि रवि के दिल को ठेस न पहुंचे.

मेनका भी रवि के विचारों से प्रभावित हो गई. मेनका रवि से एक दिन मोबाइल नंबर मांगी. रवि तो इस का इंतजार ही कर रहा था, लेकिन खुद मोबाइल नंबर मांगने में संकोच कर रहा था.

आज रवि बेहद खुश था और फोन के आने का इंतजार कर रहा था. जब भी मोबाइल रिंग करता, तो दिल धड़कने लगता. देखता तो दूसरे का फोन. मन खीज उठता. जब रवि रात में खाना खा कर करवटें बदल रहा था. नींद नहीं आ रही थी. ठीक रात 11 बजे रिंग टोन बजा. जल्दी से बटन दबाया, तो उधर से सुरीली आवाज आई, ‘‘सो गए क्या?’’

रवि बोला, ‘‘तुम ने तो हमारी नींद ही गायब कर दी. जिस दिन से डांस का तुम्हारा प्रोग्राम देखा है, उस दिन से हमारे दिमाग में वही घूमता रहता है. रात में नींद ही नहीं आती.’’

मेनका मुसकराते हुए एक गाना गाने लगी, ‘‘मुझे नींद न आए, मुझे चैन न आए, कोई जाए जरा ढूंढ के लाए, न जाने कहां दिल खो गया…’’

‘‘अरे मेनका, तुम तो गजब का गाना गाती हो. हम तो समझे थे कि सिर्फ डांस ही करती हो. कोयल से भी सुरीली आवाज है तुम्हारी. इस तरह की सुरीली आवाज विरले लोगों को ही नसीब होती है.’’

फिर दोनों इधरउधर की बहुत सी बातें करते रहे. मेनका से यह भी जानकारी मिली कि उस के पिता सरकारी अस्पताल में कंपाउंडर हैं और मां सरकारी स्कूल में टीचर. बातें करते पता ही नहीं चला और सुबह के 4 बज गए.

मेनका बोली, ‘‘अब कल रात में बात करेंगे.’’

रवि सुबहसवेरे घूमने के लिए बाहर निकल पड़ा. नहाधो कर चायनाश्ता कर के समय पर वह अपनी गुमटी पर चला गया. उस के दिमाग से अब मेनका का चेहरा उतर ही नहीं रहा था.

एक बुजुर्ग 50 ग्राम खैनी मांगता है. उसे रवि 100 ग्राम देने लगता है, तो वे बोलते हैं, ‘‘तुम्हारा दिमाग कहां है. 50 ग्राम की जगह 100 ग्राम दे रहे हो.’’

‘‘अच्छा, मैं ठीक से सुन नहीं पाया. अभी 50 ग्राम दिए देता हूं.’’

सुबह 10 बजने से पहले ही रवि मेनका का बेसब्री से इंतजार करने लगा. ठीक 10 बजे मेनका आई. मुसकराते हुए उस ने चिप्स और चैकलेट ली. आंखों से इशारा की. पैसे दी और चलती बनी.

रवि पैसा नहीं लेना चाहता था, लेकिन वहां कई लोग खड़े थे, इसलिए वह पैसे लेने से इनकार नहीं कर सका. कई लोग गुमटी पर ही इस के डांस की चर्चा करने लगे. क्या गजब का डांस किया था. रवि भी तारीफ करने लगा.

यह सिलसिला लगातार जारी रहा. मेनका हर रोज रात में फोन करती. छुट्टी का दिन छोड ़कर जब भी वह स्कूल आती. आतेजाते समय गुमटी पर अवश्य आती. चिप्स और चैकलेट के बहाने रवि को नजर भर देखती और चलते बनती.

रवि की शादी के लिए अगुआ आए थे. रवि के पिताजी बोल रहे थे. मेरी तबियत ठीक नहीं रहती. तेरी मां भी काम करतेकरते परेशान हो जाती है. जीतेजी अगर पतोहू देख लेते, तो अहोभाग्य होता.

‘‘पिताजी, इस गुमटी से 3 आदमी का ही पेट पालना मुश्किल होता है. हर चीज खरीद कर ही खानी है. किसी तरह 1-2 कमरा और बन जाते, तब शादीविवाह करते.’’

‘‘अरे बेटा, हमारे जीवन का कोई ठिकाना नहीं है. लड़की वाले भी बढ़िया हैं. तुम्हारे मामा जब शादी के लिए लड़की वाले को ले कर आए हैं, तो उन की बात भी माननी चाहिए.

‘‘बता रहे थे कि लड़की भी सुंदर और सुशील है. उस के मातापिता भी बहुत अच्छे हैं. इस तरह का परिवार हमेशा नहीं मिलेगा. लड़की भी मैट्रिक पास है. शादीविवाह में खर्च भी देने के लिए तैयार हैं. और क्या चाहिए?’’

यह सुन कर रवि उदास हो गया. अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी को क्या जवाब दे. वह असमंजस में पड़ गया. वह चुप रहा. आगे कुछ भी नहीं बोल पाया. रवि के सामने तो संकट का पहाड़ खड़ा हो गया.एक तरफ मातापिता और दूसरी तरफ दिलोजान से चाहने वाली मेनका.

वह रात का इंतजार करने लगा. सोचा कि मेनका ही कुछ उपाय निकाल सकती है.

रात 11 बजे मोबाइल की घंटी बजी. हैलोहाय होने के बाद मेनका ने पूछा, ‘‘आज गुमटी नहीं खोली.क्यों…?’’

रवि उदास लहजे में बोला, ‘‘अरे, बहुत फेरा हो गया.’’

‘‘क्या फेरा हुआ?’’ मेनका ने पूछा.

‘‘कुछ रिश्तेदार आए थे शादी के लिए.

‘‘तुम्हारी शादी के लिए आए थे क्या?’’

‘‘अरे हां, उसी के लिए तो आए थे. तुम्हें कैसे मालूम हुआ?’’

‘‘अरे, मैं तुम्हारी एकएक चीज का पता करती रहती हूं.’’

‘‘अच्छा छोड़ो, मुझे कुछ उपाय बताओ. इस से छुटकारा कैसे मिलेगा? हम तुम्हारे बिना जी नहीं सकते. मांबाबूजी शादी करने के लिए अड़े हुए हैं. रिश्तेदार ले कर मामा आए हुए थे. हमें समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें? तुम्हीं कुछ उपाय निकालो.’’

मेनका बोली, ‘‘एक ही उपाय है. हम लोग यहां से कहीं दूसरी जगह यानी किसी दूसरे शहर में निकल जाएं.’’

‘‘गुमटी का क्या करें?’’

‘‘बेच दो.’’

‘‘बाहर में क्या करेंगे?’’

‘‘वहां जौब ढूंढ लेना. मेरे लायक कुछ काम होगा, तो हम भी कर लेंगे.’’

‘‘लेकिन यहां मांबाबूजी का क्या होगा?’’

‘‘रवि, तुम्हें दो में से एक को छोड़ना ही पड़ेगा. मांबाबूजी को छोड़ो या फिर मुझे. इसलिए कि यहां हमारे मांपिताजी भी तुम से शादी करने के लिए किसी शर्त पर राजी नहीं होंगे.

‘‘इस की दो वजह हैं. पहली तो यही कि हम लोग अलगअलग जाति के हैं. दूसरी, हमारे मांपिताजी नौकरी करने वाले लड़के से शादी करना चाहते हैं.’’

रवि बोलने लगा, ‘‘मेरे सामने तो सांपछछूंदर वाला हाल हो गया है. मांबाबूजी को भी छोड़ना मुश्किल लग रहा है. दूसरी बात यह कि तुम्हारे बिना हम जिंदा नहीं रह सकते.’’

मेनका बोली, ‘‘सभी लड़के तो बाहर जा कर काम कर ही रहे हैं. वे लोग क्या अपने मांबाप को छोड़ दिए हैं. वहां से तुम पैसे मांबाप के पास भेजते रहना. यहां जब गुमटी बेचना, तो कुछ पैसे मांबाबूजी को भी दे देना. मांबाबूजी को पहले ही समझा देना.’’

‘‘अच्छा ठीक है. इस पर जरा विचार करते हैं,’’ रवि बोला.

रवि का दोस्त संजय गुरुग्राम दिल्ली में काम करता था. उस से मोबाइल पर बराबर बातें होती थीं. रवि और संजय दोनों ही पहली क्लास से मैट्रिक क्लास तक साथ में पढ़े थे. संजय मैट्रिक के बाद दिल्ली चला गया था. रवि पान की गुमटी खोल लिया था. दोनों की बातें मोबाइल से बराबर होती रहती थी.

संजय की शादी भी हो गई थी. संजय की पत्नी गांव में ही रहती थी. इसलिए वह साल में एक या दो बार गांव आता था.

अगले दिन रवि ने संजय को फोन किया, ‘‘यार संजय, मेरे लिए भी काम दिल्ली में खोज कर रखना. साथ ही, एक रूम भी खोज कर रखना.’’

संजय बोला, ‘‘मजाक मत कर यार.’’

‘‘नहीं यार, मैं सीरियसली बोल रहा हूं. अब गुमटी भी पहले जैसी नहीं चल रही है. बहुत दिक्कत हो गई है. घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया है. तुम हमारे लंगोटिया यार हो. हम अपना दुखदर्द तुम से नही ंतो किस से कहेंगे?’’

संजय बोला, ‘‘मैं यहां  एक कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता हंू.तुम चाहोगे तो मैं तुझे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा सकता हूं. हर महीने 10,000 रुपए मिलेंगे. ओवरटाइम करोगे, तो 12,000 से 13,000 रुपए तक कमा लोगे.’’

‘‘ठीक है. एक रूम भी खोज लेना,’’ रवि बोला.

‘‘ठीक है, जब मन करे ,तब आ जाना.’’ संजय ने ऐसा बोल कर फोन काट दिया.

रवि यहां से जाने का मन बनाने लगा. मांबाबूजी से वह बोला, ‘‘मुझे बाहर में अच्छा काम मिलने वाला है. एक साल कमा कर आएंगे, तो घर बना लेंगे. उस के बाद शादी करेंगे.’’

रवि के बाबूजी बोलने लगे, ‘‘हम लोग यहां तुम्हारे बिना कैसे रहेंगें?’’

‘‘सब इंतजाम कर के जाएंगे. वहां से पैसा भेजते रहेंगे. संजय बाहर रहता है, तो उस के मांबाबूजी यहां कौन सी दिक्कत में हैं? सब पैसा कराता है. पैसा है तो सबकुछ है. अगर हाथ में पैसा नहीं है, तो कुछ भी नहीं है.’’

‘‘हां बेटा, वह तो है. तुम जिस में भलाई सोचो.’’

रवि ने 70,000 रुपए में सामान सहित गुमटी बेच दी. 30,000 रुपए अपने मांबाबूजी को दे दिया. 40,000 रुपए अपने पास रखा. अब वह यहां से निकलने के लिए प्लानिंग करने लगा.

मेनका के मोबाइल पर काल किया. उस ने बताया कि सारा इंतजाम  कर लिया है. उपाय सोचो कि कैसे निकला जाएगा?

मेनका बोली, ‘‘आज हमारे पापा मामा के यहां जाने वाले हैं. हम स्कूल जाने के बहाने घर से निकलेंगे और ठीक 10 बजे बसस्टैंड रहेंगे.’’

दूसरे दिन दोनों ठीक 10 बजे बसस्टैंड पहुंचे. बस से दोनों गया स्टेशन पहुंचे. वहां से महाबोधि ऐक्सप्रेस पकड़ कर दोनों दिल्ली पहुंच गए. अपने दोस्त संजय को फोन किया.

संजय स्टेशन पर उसे लेने पहुंच गया. एक लड़की के साथ में रवि को देख कर वह हैरानी में पड़ गया. फिर भी कुछ पूछ नहीं सका. दोनों को अपने डेरे पर ले आया और नाश्ता कराया. उस के बाद दोनों को फ्रेश होने के लिए बोला. जब लड़की बाथरूम में नहाने के लिए गई, तो संजय ने पूछा, ‘‘तुम साथ में किस को ले कर आ गए हो? मुझे पहले कुछ बताया भी नहीं.’’

रवि ने सारी बातें बता दीं. संजय जहां पर रहता था, उसी मकान में एक कमरा, जो हाल में ही खाली हुआ था, उसे इन लोगों को दिलवा दिया.

रवि और संजय दोनों बाजार से जा कर बिस्तर, बेड सीट, गैस, चावलदाल वगैरह जरूरत का सामान खरीद कर लाए. रवि और मेनका दोनों साथसाथ रहने लगे.

संजय जब अपने घर फोन किया, तो उस की मां रवि के बारे में बताने लगी कि तुम्हारा दोस्त रवि एक लड़की को कहीं ले कर भाग गया है. यहां पंचायत ने रवि के मातापिता को गांव से निकल जाने का फैसला सुनाया है. दोनों गांव से निकल गए हैं. मालूम हुआ कि रवि के मामा के यहां दोनों चले गए हैं. रवि को ऐसा नहीं करना चाहिए था, लेकिन संजय इस संबंध में कुछ भी नहीं बताया.

संजय ने रवि को सारी बातें बता दीं. रवि जब अपने मामा के यहां फोन किया, तो उस के मामा ने बहुत भलाबुरा कहा. उस के मांपिताजी ने भी कहा कि अब हम लोग गांव में मुंह दिखाने लायक नहीं रहे. हम ने कभी सपने में भी नहीं  सोंचा था कि तुम इस तरह का काम करोगे. लेकिन एक बात बता दे रहे हैं कि कभी भूल कर भी तुम लोग अपने गांव नहीं आना, नहीं तो लड़की के मातापिता तुम लोगों की हत्या तक कर देंगे.

रवि बोलने लगा, ‘‘आप लोग चिंता मत कीजिए. हम आप लोगों को 6,000 रुपए महीना भेजते रहेंगे. किसी तरह वहां का घरजमीन बेच कर मामा के गांव में ही जमीन ले लीजिए. अगर दिक्कत होगी, तो आप दोनो को यहां भी ला सकते हैं.’’

‘‘नहीं बाबू, हम लोग यहीं रहेंगे. शहर में नहीं जाएंगे.’’

रवि 12,000 रुपए महीना पर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.मेनका एक ब्यूटीपार्लर में रिशेप्शन पर 8,000 रुपए महीना पर काम करने लगी थी. दोनों का दिन खुशीखुशी बीत रहा था. प्रत्येक रविवार को संजय के साथ दोनों कभी इंडिया गेट तो कभी लाल किला और लोटस टेंपल घूमने के लिए चले जाते.

इसी बीच कोरोना बीमारी की चर्चा होने लगी. लोगों के बीच भी गरमागरम चर्चा थी. आज प्रधानमंत्रीजी का भाषण टीवी पर होने वाला है. प्रधानमंत्रीजी ने सभी लोगों को एक दिन का जनता कफ्र्यू की घोषणा कर दी. 21 मार्च को शाम 5 बजे 5 मिनट तक अपने बालकोनी से थाली और ताली बजाने की घोषणा की. देशभर के लोगों ने थालीताली, घंटी और शंख के साथसाथ सिंघा तक बजा दिया.

प्रधानमंत्री समझ गए. हम जो बोलेंगे, जनता मानेगी. प्रधानमंत्रीजी फिर से टीवी पर आए. उन्होंने इस बार बड़ा फैसला सुनाया. 21 दिन का संपूर्ण लौकडाउन. जो जहां हैं, वहीं रहेंगे. सभी गाड़ियां, बस, ट्रेन और हवाईजहाज तक बंद रहेंगे. सिर्फ राशन और दवा की दुकानें खुली रहंेगी.

दूसरे दिन से हर जगह पर पुलिस प्रशासन मुस्तैद हो गया. किसी तरह बंद कमरे में 21 दिन बिताए. फिर से 19 दिन का लौकडाउन बढ़ा दिया गया. अब जितने भी काम करने वाले लोग थे. हर हाल में घर जाने का मन बनाने लगे. कंपनी का मालिक ठेकेदार को पैसा देना बंद कर दिया. रवि और मेनका के अगलबगल के सारे लोग अपने घर के लिए निकल पड़े. संजय भी एक पुरानी साइकिल 12,00 रुपए में खरीद कर घर चलने का मन बना लिया.

रवि अपने मामा के यहां जब फोन किया, तो मामा ने कहा कि यहां भूल कर भी नहीं आना. अगर लड़की वाले लोगों को मालूम हो गया, तो तुम लोगों के साथसाथ हम लोग भी मुसीबत में पड़ जाएंगे.

आखिर मेनका और रवि जाएं तो जाएं कहां? मेनका पेट से हो गई थी.संजय दूसरे दिन साइकिल ले कर गांव निकल गया था. अगलबगल के सारे काम करने वाले बिहार और यूपी के भैया लोग निकल पड़े थे. पूरे मकान में सिर्फ रवि और मेनका बच गए थे. आखिर करें तो क्या? समझ में नहीं आ रहा था. अगलबगल के लोग भी बोलने लगे. यहां सुरक्षित नहीं रहोगे. यहां कोरोना के मरीज हर रोज बढ़ रहे हैं. कुछ हो गया, तो कोई साथ नहीं देगा.

रवि भी एक साइकिल खरीद लिया. मेनका से वह बोला कि चलो, हम लोग भी निकल चलें. चाहे जो भी हो, एक दिन तो सब को मरना ही है. सारा सामान मकान मालिक को 15,000 रुपए में बेच कर निकल पड़ा.

रास्ते के लिए रवि ने निमकी, खुरमा, पराठा और भुजिया बना कर रख ली. 4 बजे भोर में रवि मेनका को साइकिल की पीछे वाली सीट पर बिठा कर चल पड़ा. शाम हो गई थी. रवि को जोरो की प्यास लगी थी.

सड़क के किनारे एक आलीशान मकान था. गेट के पास एक चापाकल था. रवि रुक कर दोनों बोतलों में पानी भर रहा था. उस आलीशान मकान में से गेट तक एक बुढ़िया आई और पूछने लगी, ‘‘बेटा, तुम लोग कहां से आ रहे हो?’’

‘‘माताजी, हम लोग दिल्ली से आ रहे हैं. बिहार जाएंगे.’’

‘‘अरे, साइकिल से तुम लोग इतनी दूर जाओगे?’’

‘‘हां माताजी, क्या करें? जिस कंपनी में काम करते थे, अब वह कंपनी बंद हो गई. मकान मालिक किराया मांगने लगा. सभी मजदूर निकल गए. हम लोग क्या करते? बात समझ में नहीं आ रही थी. हम लोग भी निकल पड़े.’’

‘‘अब रात में तुम लोग कहां रुकोगे?’’

‘‘माताजी, कहीं भी रुक जाएंगे.’’

‘‘अरे, तुम दोनो यहीं रुक जाओ. यहां मेरे घर में कोई नहीं रहता. एक हम और एक खाना बनाने वाली दाई रहती है. तुम लोग चिंता मत करो. मेरे भी बेटापतोहू है, जो अमेरिका में रहता है. वहां दोनों डाक्टर हैं. आखिर कहीं तो रुकना ही था. इस से अच्छी जगह और कहां मिलती? दोनों को घर में ले गई. दाई को बोली, ‘‘2 आदमी का और खाना बना देना.’’

रवि बोला, ‘‘माताजी, हम लोगों के पास खाना है. आप रुकने के लिए जगह दे दी, यही बहुत है. कोई बात नहीं. वह खाना तुम लोगों को रास्ते में काम आएगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, माताजी. दोनों फ्रेश हुए. उस के बाद मेनका और बूढ़ी माताजी आपस में बातें करने लगीं. बूढ़ी माताजी कहने लगीं. मेरा भी एक ही बेटा है. अमेरिका में डाक्टर है. वहीं शादी कर लिया. 10 साल बाद वह पिछले साल यहां आया था. जब उस के पिताजी इस दुनिया में नहीं रहे.

हमारे पति आईएएस अफसर थे. बहुत अरमान से बेटे को डाक्टरी पढ़ाए थे.मुझे पैसे की कोई कमी नहीं है. 40,000 रुपए पेंशन मिलती है. जमीनजायदाद से साल में 5 लाख रुपए आमदनी हो जाती है. बेटा भी सिर्फ पैसे के लिए पूछता रहता है.

खाना खा कर बात करतेकरते काफी रात बीत गई. सुबह जब रवि और मेनका उठे, तो दिन के 8 बज गए थे. मुंहहाथ धो कर स्नान करते 9 बज गए थे. जब दोनों निकलने की तैयारी करने लगे, तो बूढ़ी माता ने कहा, ‘‘धूप बहुत हो गई है. अब कल सुबह दोनों निकलना.’’

कुछ सोच कर दोनों आज भी रुक गए थे. दाई के साथ खाना बनाने में मेनका सहयोग करने लगी थी. अहाते में फले हुए कटहल को रवि ने तोड़ा और रात में मेनका ने कटहल की सब्जी और रोटी बनाई. बूढ़ी माता बोलने लगी, ‘‘तुम तो गजब की टेस्टी सब्जी बनाई हो. ऐसी सब्जी तो बहुत दिनों के बाद खाने को मिली.’’

बूढ़ी माता रात में अपना दुखदर्द सुनाते हुए रोने लगीं. वे बोलने लगीं सिर्फ पैसे से ही खुशी नहीं मिलती. बेटे को शादी किए 10 साल से ज्यादा हो गए. आज तक पतोहू को देखा तक नहीं. एक पोता भी हुआ है, लेकिन सिर्फ सुने हैं. आज तक उसे देखने का मौका नहीं मिला.

मेनका को लगा कि मुझे मां मिल गई हैं. वह भी भावना में आ कर सारी बातें बता दी. रात में बूढ़ी माताजी को जबरदस्ती पैर दबाई और तेल लगाई. बूढ़ी माताजी को आज वास्तविक सुख का एहसास होने लगा.

सुबह जब रवि निकलने के लिए बोला, तो बूढ़ी माता जिद पर अड़ गईं और बोलीं कि तुम लोग यहीं रहो. इन लोगों को भी नया ठिकाना मिल गया और दोनों खुशीखुशी यहीं रहने लगे.

Donald Trump : अमेरिका में सनकी नेतृत्व दुनिया के लिए खतरा

Donald Trump : राष्ट्र चाहे छोटा हो, उस की संप्रभुता और सम्मान किसी बड़े राष्ट्र से कमतर नहीं होता. पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह दुनिया का स्वयंभू बाप बनने की कोशिश में यूक्रेन पर अपने तेवर झाड़े और यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की को वाइट हाउस में बुला कर अपमानित किया, उस से दुनियाभर में हलचल मची हुई है.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने पागल समर्थकों, गोरे धर्मभीरुओं को मेक अमेरिका ग्रेट अगेन का नारा दे कर सत्ता में दोबारा आए हैं पर उस ग्रेट मेकिंग में वे अमेरिका को दुनिया से अलगथलग करने में लग गए हैं, साथ ही, अमेरिकी जनता की धुनाई करने में भी लग गए हैं. अपने को चक्रवर्ती सम्राट समझने के चक्कर में वे अपने ही देश के लोगों पर बाहरी देशों के सस्ते सामान पर टैक्स का भारी बोझ थोप रहे हैं.

यही नहीं, सरकारी काम में फालतू खर्च कम करने के चक्कर में वे लाखों को सरकारी नौकरियों से निकाल रहे हैं और दशकों से दूसरे देशों को दी जाने वाली सहायता बंद कर रहे हैं.

वे कहने को तो अमेरिका को बेहतर देश बना रहे हैं पर जिस देश के अपने पड़ोसियों कनाडा और मैक्सिको से संबंध बिगड़ जाएं, दशकों पुराने यूरोप से दुश्मनी सी हो जाए, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका, दक्षिण एशिया के देशों की गरीबी और बीमारी से उसे कोई लेनादेना न रह जाए तो उस देश के बड़प्पन का मतलब क्या रह जाएगा?

अमेरिका ट्रंप के नेतृत्व में एक अलग ईरान, उत्तर कोरिया जैसा देश बन कर रह जाएगा जहां न कोई बिजनैस करने आएगा, न घूमनेफिरने और न पढ़ाई करने. यहां आ कर बसने की बात तो छोड़ ही दें क्योंकि जो बसे हुए हैं उन्हें अमेरिका चेनों में बांध कर अपने मिलिट्री हवाई जहाजों से उन के देशों में भेज रहा है, बिना किसी अदालती आदेश के.

ग्रेटनैस के चक्कर में अमेरिका दुनिया से अलगथलग हो रहा है. यह एक सैटेलाइट सा देश बन रहा है जिस की 30 करोड़ की जनसंख्या का दुनिया की 6 अरब जनता से कोई लेनादेना नहीं है. इस का उद्देश्य सिर्फ इतना ही है कि अमेरिका पर सिर्फ गोरे चर्च जाने वाले प्रोटेस्टैंटों या कैथोलिकों का राज हो जिन की अपनी औरतें कालों, ब्राउनों और पीलों जैसे उन के घरों में रह कर सेवा करें, रसोई संभालें, बच्चे पैदा करें. लेकिन वे राष्ट्रपति बनने के ख्वाब न देखें.

यह ग्रेट, महान, अमेरिका अमीर रह पाएगा, इस में शक है. जिस भी देश ने अपने दरवाजे बाहर वालों के लिए बंद रखे, वह सड़ गया. समाज तभी उन्नति करता है जब उस में हर तरह की सोच आए, हर तरह के विचार आएं और जहां ‘मागा’, ‘मागा’ जैसे नारे नहीं बल्कि खेतखलिहानों, फैक्ट्रियों और रिसर्च सैंटरों में लोग काम कर रहे हों. अब जो सूरत दिख रही है उस में अमेरिका एक विशाल टापू जैसा बनने वाला है जिस के रास्ते बंद हैं और जो अपनी सड़न में खुश रहने वाला है.

अमेरिकी इतिहास में यह पहली बार हुआ जब वाइट हाउस के ओवल औफिस में अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी दूसरे देश के राष्ट्रपति से न सिर्फ तेज आवाज में बात की, बल्कि उन पर हावी होते हुए उन को अपमानित भी किया. उन पर तानाशाही करने का दोष मढ़ा और उन्हें उंगली दिखाई और फिर उन को वहां से चले जाने को कहा.

पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस ढंग से दुनिया का स्वयंभू बाप बनने की कोशिश करते हुए यूक्रेन पर अपने तेवर झाड़े, यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमिर जेलेंस्की को रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्ति पर बात करने के लिए वाइट हाउस में बुला कर हड़काया और जिस तरह उन्हें अपमानित कर के वाइट हाउस से जाने के लिए कहा, वह घटना दुनिया में हलचल मचाने वाली है. ट्रंप इस से पहले भी कई देशों के प्रमुखों से बदतमीजी कर चुके हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ उन की जो बहस हुई उस के भी वीडियो काफी वायरल हुए थे और दुनियाभर में ट्रंप की आलोचना हुई थी.

अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप पर दुनिया का आका बनने का ऐसा भूत सवार है कि उन्होंने कूटनीतिक शालीनता का लबादा उतार फेंका है. वैसे भी जबरदस्ती के ओढ़े गए इस लबादे को ट्रंप संभाल नहीं पा रहे थे. यूक्रेन के बहाने ही सही आखिरकार यह दिखावटी लबादा उतरा और दुनिया ने अमेरिका का असली चेहरा ठीक से देखा.

यूके्रन के समर्थन में आए यूरोपीय देश

जेलेंस्की व ट्रंप विवाद के बाद अमेरिका में दक्षिणपंथी राजनीति का घिनौना चेहरा सामने आया है. इस चेहरे पर सत्तालोलुपता तो पहले भी झलकती थी, मगर अच्छी कूटनीतिक भाषा और शालीनता के परदे में काइयांपन कुछ छिपा हुआ था, लेकिन अब जो असलियत सामने आई है तो दूसरे देशों को यह समझ में आने लगा है कि अमेरिका की कूटनीति दरअसल दूसरे देशों को कूटने की नीति ही ज्यादा है. इस में बड़प्पन वाली कोई बात नहीं है. बस, सब के बाप बन जाओ, सब को हड़काओ, सब की बेइज्जती करो और अपने को श्रेष्ठ बताने का हल्ला करो.

मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (मागा) नारे के जरिए भी ट्रंप यही जताना चाहते हैं कि जब वे सत्ता में नहीं थे तब अमेरिका ग्रेट नहीं था, पिछले सारे राष्ट्रपति निकम्मे थे, उन्होंने अमेरिका की भलाई के लिए कुछ नहीं किया. अब ट्रंप को उस को फिर से वैसे ही ग्रेट बनाना है जैसे अमेरिका ट्रंप के पहले कार्यकाल में था.

यह बिलकुल वैसे ही है जैसे भारत में आरएसएस और उस की जन्मी पार्टी भाजपा के लिए आजादी के बाद से ले कर 2014 तक भारत में कुछ भी नहीं हुआ, जो कुछ हुआ वह मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुआ. आरएसएस के आधार पर खड़ी भाजपा के सत्ता में आने के बाद ही भारत ने तरक्की देखी और मोदी के कठिन श्रम और फैसलों से ही भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर हुआ. कहना गलत नहीं कि जैसे भारत में आरएसएस है वैसे ही अमेरिका में ‘वाइट आरएसएस’ यानी ट्रंप का ‘मागा’ है.

ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका में चीजें बड़ी तेजी से बदल रही हैं. दुनिया पर हावी होने की कोशिश, अनेक राष्ट्रों को नीचा दिखाने का प्रयास, औरतों के शरीर पर अधिकार स्थापित करने और काले लोगों को यह बताने की कोशिश कि वे सिर्फ और सिर्फ गुलाम हैं, ट्रांसजैंडर्स को इंसान की श्रेणी से निकाल बाहर करने का ऐलान, धर्म (चर्च) का प्रचार बढ़ाने और उस की आड़ में अपनी संकीर्ण सोच से सब को प्रभावित करने व दबाने के प्रयास में ट्रंप जीजान से जुटे हैं.

क्रैडिट पाने की लालसा

दरअसल सत्ता जब किसी दक्षिणपंथी व कट्टरपंथी के हाथ में आती है तो उस का पहला शिकार कमजोर जनता और औरतें ही बनती हैं. दक्षिणपंथी मानसिक रूप से संकीर्ण होते हैं. उन में श्रेष्ठता का भाव अहं की हद तक होता है. धर्म का औजार हाथ में ले कर वे दूसरों के जीवन पर आधिपत्य जमाने और उन के मूल अधिकार छीन लेने को आतुर होते हैं. ट्रंप ने भी सत्ता में आते ही कई ऐसे फैसले किए जिन से महिलाएं, ट्रांसजैंडर, छोटे देश और दूसरे देशों से आ कर अमेरिका में काम करने वाले या पढ़ाई करने वाले छात्र बुरी तरह भयभीत हैं.

जेलेंस्की और उन के देश यूक्रेन का मामला बिलकुल ताजा है. लिहाजा, ट्रंप की संकुचित सोच और संकीर्ण मानसिकता पर यहीं से बात शुरू करते हैं. ट्रंप जब राष्ट्रपति पद के लिए प्रचार में जुटे थे तभी से कह रहे थे कि वे सत्ता में आते ही इसराइल-फिलिस्तीन युद्ध और रूस व यूक्रेन युद्ध समाप्त करवा देंगे. उन्होंने पिछले राष्ट्रपति पर आरोप लगाए कि जो बाइडेन ने इस संबंध में कोई कदम नहीं उठाया. खैर, इसराइल व फिलिस्तीन युद्ध में फिलहाल कुछ समय से शांति है और अब ट्रंप किसी भी तरह रूस व यूक्रेन जंग खत्म कराने का श्रेय हासिल करने की कोशिश में हैं.

यह बात अच्छी है कि युद्ध खत्म हो. युद्ध कभी भी मानव जाति का उद्धार नहीं करते. युद्ध में जानें जाती हैं, देश तबाह होते हैं, पीढि़यां बरबाद हो जाती हैं, धरती और पर्यावरण को घातक नुकसान पहुंचता है. युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है मगर दुनिया के किसी न किसी कोने में हर वक्त कोई न कोई युद्ध चलता रहता है.

रूस व यूक्रेन युद्ध को चलते हुए 3 साल बीत चुके हैं और इस में हजारों लोग मारे जा चुके हैं. शहर के शहर तबाह हो चुके हैं. अरबोंखरबों की संपत्ति मिट्टी में मिल चुकी है और दोनों देशों की नागरिक आबादी को लगभग हर रोज हमलों का सामना करना पड़ रहा है. अगर ट्रंप इस युद्ध को खत्म कराने की कोशिश में हैं तो यह एक अच्छी बात है मगर इस के लिए दोनों देशों के प्रमुखों से बातचीत करते वक्त उन का रवैया न सिर्फ ठीक होना चाहिए, बल्कि दोनों देशों के प्रमुखों के साथ एक सा होना चाहिए.

अमेरिका की स्वयंभू बनने की कोशिश

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से ट्रंप की बातचीत के वीडियो देखें. आप पाएंगे कि ट्रंप किस शालीनता से उन से झुकझुक कर मीठी आवाज में बात करते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से भी बात करते वक्त ट्रंप की बौडी लैंग्वेज ऐसी ही होती है. ऐसा क्यों? क्योंकि ये दोनों बड़े देश हैं, ताकतवर हैं, ट्रंप को पलट कर जवाब देने का दम रखते हैं. मगर वहीं छोटे देशों के प्रमुखों से बात करते समय ट्रंप का अंदाज देखिए, लगता है जैसे कोई बाप अपने बच्चों के कान उमेठ रहा हो.

राष्ट्र चाहे छोटा हो, उस की संप्रभुता और सम्मान किसी बड़े राष्ट्र से कमतर नहीं होता. फिर यूक्रेन के राष्ट्रपति से युद्ध समाप्ति की बात करते वक्त राष्ट्रपति ट्रंप और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस जिस तरह जेलेंस्की पर हावी हुए, उस की घोर निंदा होनी चाहिए. वे न सिर्फ जेलेंस्की पर हावी हुए बल्कि उन को अपमानित कर वाइट हाउस से बाहर जाने के लिए भी बोला. उस देश के राष्ट्रपति से ऐसा गंदा बरताव जिस ने अपने देश को बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा रखी है, जो यूक्रेन के अस्तित्व के लिए लंबे समय से लड़ रहा है, बमों, मिसाइलों और गोलियों का सामना कर रहा है, अपने लोगों को मरते देखने के बाद भी पूरी दिलेरी से अपने देश को रूस से बचाने की कोशिश में है.

स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने एक्स पर लिखा कि, जेलेंस्की आप न केवल अपनी बल्कि पूरे यूरोप की आजादी के लिए लड़ रहे हैं. आस्ट्रेलिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, लातविया, लिथुआनिया, नौर्वे, पोलैंड और स्पेन के यूरोपीय अधिकारियों ने भी यूक्रेन को अपना समर्थन देने की पेशकश की. उस जेलेंस्की का वाइट हाउस में इतनी बुरी तरह अपमान हुआ. निसंदेह इस वीडियो को देख कर पुतिन को बड़ा आनंद आया होगा.

मदद की कीमत वसूलता ट्रंप

गौरतलब है कि अभी तक अमेरिका ही यूक्रेन को लड़ाई के लिए हथियार और पैसा मुहैया कराता रहा है. अन्य देशों ने भी मदद की मगर अमेरिका ने सब से ज्यादा की और यूक्रेन को लड़ने के लिए वह उकसाता भी रहा. अमेरिकी मदद के लिए राष्ट्रपति जेलेंस्की आभार भी जता चुके हैं. वे जानते हैं कि अमेरिका की मदद के बिना वे इतने लंबे समय तक रूस का सामना नहीं कर सकते थे. वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर युद्ध रोकने को तैयार भी हैं मगर इस के बदले में वे सुरक्षा की गारंटी चाहते हैं.

जेलेंस्की का कहना है कि हम से ज्यादा शांति और किस को चाहिए? हम युद्धविराम के लिए तैयार हैं मगर रूस हम पर फिर हमला नहीं करेगा, हमें इस बात की गारंटी चाहिए. इस से पहले भी रूस ने कई बार युद्धविराम को धता बता कर धोखे से हमला किया और सैकड़ों लोगों को मार कर हमारे क्षेत्रों पर कब्जा किया. तो अब अगर अमेरिका के कहने पर हम युद्ध खत्म करते हैं तो हमें इस बात की गारंटी भी मिलनी चाहिए कि हम सुरक्षित हैं.

जेलेंस्की की मांग बिलकुल वाजिब है. अगर अमेरिका बाप बना है तो दोनों देशों में शांति और सुरक्षा का जिम्मा भी उसी का है. इस में कोई दोराय नहीं, मगर ट्रंप यूक्रेन को सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं हैं बल्कि इस के बदले में वे यूक्रेन से बहुतकुछ जबरदस्ती हासिल करने की फिराक में हैं. ट्रंप चाहते हैं कि जेलेंस्की अपने बहुमूल्य खनिज की खदानें और पहाड़ अमेरिका को दे दें. जेलेंस्की इस के लिए भी तैयार हो गए हैं, मगर फिर भी ट्रंप इस बात की गारंटी नहीं देना चाहते कि जेलेंस्की और उन का देश भविष्य में सुरक्षित रहेगा. फिर भला काहे का बाप? और ऐसे खोखले व्यक्ति की बातों का भरोसा कर यूक्रेन अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आप किसी की मदद करें, युद्ध में साथ दें, हथियार दें, पैसा दें, लड़वाने के लिए हवा भरते रहें और फिर बाद में उस पर एहसान जताते हुए उस से मदद की भरपाई करने के लिए कहें. यह कहें कि वह अपने बहुमूल्य खनिज की खदानें और पहाड़ उसे दे दे. क्या यह सही है? क्या परेशानी आने पर एक देश दूसरे देश की मदद इस तरीके से करता है?

यह बात जेलेंस्की भी समझ रहे हैं कि बात सम्मान और मदद की नहीं, बल्कि ट्रंप जो ‘डील डील’ की माला जपते रहते हैं, वह सिर्फ एक डील है. ट्रंप में कोई बड़प्पन नहीं है. वे कोई उदार नेता नहीं बल्कि एक बिजनैसमैन हैं जिन्हें सिर्फ डील, बिजनैस और पैसे से मतलब है.

वाइट हाउस में मीटिंग के दौरान ट्रंप ने जेलेंस्की को कौमेडियन कहा, डिक्टेटर कहा, उन के कद पर टिप्पणी की, कपड़ों पर टिप्पणी की. यह सब कहीं से भी कूटनीति की भाषा नहीं है. वाइट हाउस में घेर लिए जाने के बाद जेलेंस्की ने जिस तरह से जवाब दिया, तन कर खड़े हो गए, अमेरिका को आड़े हाथों लिया और न सिर्फ अपना बचाव किया बल्कि अमेरिका से सवाल भी किया, इस के लिए पूरी दुनिया में उन की तारीफ हो रही है. दुनिया के कई नेताओं की जहां ट्रंप के सामने घिग्घी बंध जाती है, वहीं जेलेंस्की ने जवाब देने की हिम्मत की. उन्होंने वाइट हाउस में अपनी और अपने देश के स्वाभिमान की रक्षा की.

ट्रंप एक के बाद एक ग्लोबल लीडरों की बेइज्जती कर रहे हैं. गनीमत है कि ट्रंप ने इस तरह का बरताव प्रधानमंत्री मोदी के साथ नहीं किया, लेकिन उन के सामने भी भारत की नीतियों को भलाबुरा कहने से नहीं चूके.

भारत की बेइज्जती ट्रंप ने इस तरह की कि जब मोदी अमेरिका दौरे पर जाने वाले थे उस से पहले ही ट्रंप ने अवैध भारतीय प्रवासियों को जंजीरों और हथकडि़यों में जकड़ कर सेना के विमान से भारत भेजा. उन के साथ अमानवीय बरताव किया. यह भारत और मोदी सरकार के लिए कोई सम्मानजनक बात नहीं थी.

ट्रंप ने भरी सभा में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री से पूछ लिया कि क्या आप अमेरिका के बिना युद्ध जीत सकते हैं? वहां बैठे लोग इस बात पर हंस दिए और कीर स्टार्मर खिसियानी हंसी हंस कर रह गए. ट्रंप ने यूरोपियन यूनियन के प्रमुख से भी कह दिया कि आप का गठन तो अमेरिका की नकेल कसने के लिए हुआ था, आज आप की हालत यह हो गई है. सोचिए उन को कितना अपमान महसूस हुआ होगा. तो ट्रंप का रवैया एक तानाशाह का रवैया है जो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझता. उन का ऐसा रवैया न सिर्फ वर्ल्ड वार 3 की तरफ दुनिया को धकेलेगा बल्कि अमेरिका के पतन का भी जिम्मेदार होगा.

खैर, वाइट हाउस से अपमानित हो कर बाहर निकले जेलेंस्की के लिए यह राहत की बात रही कि यूरोपीय देश उन के समर्थन में दिखे. लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि सभी यूरोपीय देश यदि एकसाथ भी आ जाएं तो भी फिलहाल इस स्थिति में नहीं हैं कि जेलेंस्की के साथ खड़े हो कर ट्रंप को चुनौती दे सकें या उन की सामने से आलोचना कर सकें. यूरोपीय देशों की आधी ताकत चूंकि अमेरिका ही है, इसलिए कूटनीति यह कहती है कि ट्रंप को किसी ऐसे समझते पर मनाया जाना चाहिए जो जेलेंस्की को तो राहत दे ही, स्वयं यूरोप को भी उस के भविष्य के प्रति आश्वस्त करे.

ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद से खुद को श्रेष्ठ जताने का जो शो चला रखा है उस से नहीं लगता कि वे यूरोप की खातिर अपने किसी भी घोषित कदम से पीछे हटने के बारे में सोचेंगे भी. चाहे वह पेरिस जलवायु समझता हो या अन्य कोई ऐसी अंतर्राष्ट्रीय साझा नीति जिस में अब तक अमेरिका प्रमुखता से सहभागी रहा हो. ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति अगर यूरोप की कीमत पर भी होती है तो इस का खमियाजा यूरोपीय देशों को ही ज्यादा भुगतना पड़ेगा. यूरोपीय देश यह भी जानते हैं कि यूक्रेन भी लंबे समय तक अमेरिका का विरोध नहीं झेल सकता, इसलिए बीच का रास्ता निकालना होगा. कोई ऐसा समझता जिस पर अमेरिका सहमत हो जाए.

जेलेंस्की भी ऐसे समझते के लिए तैयार हैं क्योंकि वे भी जानते हैं कि अमेरिका का विरोध यूक्रेन नहीं झेल सकता. विशेषकर ऐसा विरोध जिस में अमेरिका का रुझान जेलेंस्की के शत्रु पुतिन के पक्ष में दिखता हो. दूसरे, जेलेंस्की यह भी जानते हैं कि अमेरिका के बिना यूरोप भी अपने दम पर उन के साथ ज्यादा दिनों तक खड़ा नहीं रह सकता. जाहिर है जेलेंस्की भी अब किसी ऐसे सम्मानजनक रास्ते की तलाश में हैं जिस से युद्ध भी रुक जाए और उन का सम्मान भी बचा रह सके. इसलिए वे चाहते हैं कि उन्हें सुरक्षा की गारंटी मिले और यह गारंटी अमेरिका की ओर से आए. फिलहाल ट्रंप ने मारे गुस्से के यूक्रेन को दी जाने वाली सारी सैन्य मदद रोक दी है. इस से रूसी राष्ट्रपति पुतिन के चेहरे पर बड़ी मुसकान खिंच आई है.

टैरिफ से वैश्विक बाजार पर असर

ट्रंप का सनकी नेतृत्व और तानाशाही रवैया दुनिया के लिए खतरा बनता जा रहा है. दुनिया के देशों पर आयात शुल्क बढ़ा कर ट्रंप ने दुनियाभर में सनसनी फैला दी है. चीन, कनाडा और मैक्सिको पर जवाबी शुल्क लागू करने से वैश्विक स्तर पर युद्ध की आशंका को बढ़ा दिया है. जवाब में इन देशों ने भी अमेरिका पर शुल्क बढ़ा दिया है. इन फैसलों से भारत समेत पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा. इस से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता बढ़ेगी, जिस का असर भारत पर भी दिखेगा. इस से निर्यात प्रभावित होगा और देश के अंदर वस्तुओं के दाम तेजी से बढ़ेंगे. महंगाई दर बढ़ेगी तो आर्थिक विकास की दर धीमी हो जाएगी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से लगाए गए भारीभरकम टैरिफ की आलोचना की है और इसे बेहद बेवकूफी भरा कदम बताया है. उन्होंने ट्रंप पर पलटवार करते हुए कहा है कि टैरिफ के बहाने ट्रंप कनाडा पर कब्जा करने की कोशिश में हैं. ट्रूडो ने अपने देश की अर्थव्यवस्था की रक्षा के लिए बिना थके लड़ाई जारी रखने की कसम खाई है. ट्रंप ने कनाडा और मैक्सिको से अमेरिका आने वाले उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया है. जवाब में कनाडाई प्रधानमंत्री ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिया है और चेतावनी दी है कि ट्रेड वार दोनों देशों के लिए महंगा साबित होगा.

गौरतलब है कि टैरिफ युद्ध बढ़ने की आशंका से दुनियाभर में लोग सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की खरीदारी शुरू कर चुके हैं. इस से सोने के दाम दुनियाभर में बढ़ गए हैं. दिल्ली में सोने की कीमतें नई रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. भारत में इस का उदाहरण भी सामने आ चुका है. 5 मार्च को कन्नड़ और तमिल फिल्मों की अभिनेत्री रान्या राव को राजस्व खुफिया विभाग ने दुबई से लौटते समय 14.8 किलोग्राम सोने के साथ गिरफ्तार किया है. इस सोने की कीमत लगभग 12 करोड़ रुपए बताई जा रही है. अभिनेत्री रान्या राव कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक के पद पर कार्यरत एक आईपीएस अधिकारी की बेटी हैं.

ट्रंप की नीतियों और फैसलों को ले कर अब चीन ने भी मोरचा खोल दिया है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कह दिया है कि टैरिफ वार हो या युद्ध, हम अंत तक लड़ने को तैयार हैं. ट्रंप सरकार ने कनाडा और मैक्सिको के साथ ही चीन पर भी अतिरिक्त टैरिफ लगाया है. वाशिंगटन के इस कदम से चीन आगबबूला है. चीन भी अब अमेरिका से इंपोर्ट होने वाले प्रोडक्ट्स पर 10 से 15 फीसदी तक का टैरिफ लगाने जा रहा है. इस से अब दुनिया की 2 महाशक्तियों के बीच खुल्लैमखुल्ला ट्रेड वार शुरू हो गया है. इस के साथ ही ड्रैगन ने ट्रंप सरकार को खुलेतौर पर युद्ध की भी धमकी दे डाली है.

चीन का कहना है कि अगर अमेरिका युद्ध चाहता है (चाहे वह टैरिफ युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या कोई और युद्ध) तो हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं. चीन के इस कदम के बाद अब हालात और भी खराब होने के आसार हैं.

दुनिया के टौप अरबपति वारेन बफेट ने डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर गहरी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि उन का यह कदम दुनियाभर में महंगाई बढ़ाने वाला साबित हो सकता है और सीधेतौर पर इस का असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. ऐसा नहीं है कि दुनिया के देशों को परेशान कर के ट्रंप अमेरिका के हित में कोई काम कर रहे हैं. दरअसल वे अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं.

नस्लभेदी मानसिकता अमेरिका को ले डूबेगा

प्रवासियों को अमेरिका से बाहर खदेड़ने के ट्रंप के फैसले से अमेरिका की कंपनियां और बड़े व्यापारी खुश नहीं हैं. अमेरिका में बड़ी संख्या में चीनी, भारतीय और अन्य देशों के लोग काम करते हैं. बड़ीबड़ी कंपनियों के सीईओ भारतीय मूल के हैं, जिन से नस्लभेदी मानसिकता में ग्रस्त श्वेत अमेरिकी जलन रखते हैं. लेकिन इन कंपनियों में श्रेष्ठता के भाव में ग्रस्त श्वेत अमेरिकी से तीनगुनी तादाद काली और सांवली चमड़ी के वर्कर्स की है, जिन की मेहनत पर ये कंपनियां टिकी हुई हैं. इन में बड़ी संख्या उन लोगों की भी है जिन के पास अमेरिका में रहने के लिए जरूरी दस्तावेज नहीं हैं. इन को अमेरिका से बाहर खदेड़ने से ये कंपनियां भारी नुकसान उठाएंगी.

वर्तमान समय में कोई 3 लाख भारतीय छात्र अमेरिका में पढ़ते हैं. वे अपने कमजोर रुपए से मजबूत डौलर खरीद कर अमेरिका का खजाना भरते हैं. वर्ष 2023 में भारतीय छात्रों ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था में करीब 12 अरब डौलर का योगदान दिया. पिछले साल अमेरिका में छात्र वीजा की फीस और पढ़ाई का खर्च भी काफी बढ़ा दिया गया है. बावजूद इस के बच्चे वहां पढ़ने के लिए जा रहे हैं.

एक अनुमान के अनुसार एक छात्र अमेरिका में पढ़ने के लिए औसतन 40 से 60 लाख रुपए खर्च करता है. उस के परिजन उस के लिए एजुकेशन लोन लेते हैं. अनेक मांबाप अपनी जमीनजायदाद बेच कर बच्चों को पढ़ने के लिए अमेरिका भेजते हैं. इन छात्रों से अमेरिका खूब कमाई कर रहा है. ऐसे में यदि ट्रंप के आदेश जमीन पर उतरने लगे तो अमेरिका की यूनिवर्सिटीज खाली हो जाएंगी. उन की मोटी कमाई, जो वे प्रवासी छात्रों से करते हैं, खत्म हो जाएगी. क्या अमेरिका अपनी इतनी बड़ी कमाई हाथ से जाने देगा?

ट्रंप घुसपैठिए का आरोप लगा कर जिस मैक्सिको को दिनरात धमकाते रहते हैं, उसी मैक्सिको से आने वाले खेतिहर मजदूर अमेरिका की जमीनों पर अन्न उगा कर उन का पेट भरते हैं क्योंकि उजले कपड़े पहन कर गिटरपिटर इंग्लिश हांकने वाले अमेरिकियों के बाजुओं में तो इतना दम नहीं है कि वे खेती जैसा मेहनत का काम कर सकें. कई अमेरिकी ऐसे हैं जिन के पास दोदो हजार एकड़ जमीन है. इतनी बड़ी जमीनों पर खेती करना आसान नहीं है. इस के लिए अमेरिका को सस्ते मजदूर चाहिए.

मैक्सिको से अगर खेतिहर मजदूर न आएं तो अमेरिका में खेती बंद हो जाएगा. अमेरिका यह बात अच्छी तरह जानता है. उस के अमीर किसान मैक्सिको के सस्ते मजदूर ही चाहते हैं और वे उन के अवैध रूप से अमेरिका में घुसने के रास्ते तैयार करते हैं.

आज मैक्सिको से आए लोगों को ट्रंप अवैध घुसपैठिया बता रहे हैं मगर दूसरे विश्वयुद्ध के समय जब लेबर की कमी हो गई थी तो अमेरिका को इसी मैक्सिको से बड़ी संख्या में लेबर बुलाने पड़े थे.

वर्ष 1942 से 1964 के बीच लाखों मैक्सिकन किसानों को अस्थायी वीजा दिया गया था ताकि वे अमेरिका आ कर खेती कर सकें. आज भी अमेरिका की खेती मैक्सिको से आने वाले किसानों पर निर्भर करती है. अमेरिका के खेतों में काम करने वाले दोतिहाई किसान और मजदूर मैक्सिको मूल के हैं. क्या अमेरिका के धनी किसान अपने खेतों से मैक्सिको के सस्ते लेबर को निकाल कर अपना बेड़ा गर्क करने को तैयार हैं?

सस्ते मजदूर तो हर देश को चाहिए. सस्ते मजदूर के चक्कर में ही अमेरिका की कितनी ही कंपनियों ने अपनी फैक्ट्रियां भारत, चीन और अन्य देशों में स्थापित कीं. क्या ट्रंप सारी फैक्ट्रियां वापस अमेरिका ला कर उन में काम करने के लिए अमेरिकी वर्कर्स रखने का आदेश भी जारी करेंगे? ट्रंप के शपथ समारोह में नाचने वाले एलन मस्क क्या चीन से अपनी टेस्ला कंपनी बंद कर उसे अमेरिका लाएंगे? क्या आईफोन अपनी फैक्ट्री चीन से निकाल कर कैलिफोर्निया में लगाएगा?

याद रखना चाहिए कि ट्रंप के साथ जितने भी खरबपति अमेरिका में हैं, सब के सब सस्ते श्रम के कारण ही खरबपति बने हैं. वे तो हमेशा से इस जुगाड़ में लगे रहे कि उन्हें ऐसे लेबर मिलें जो कम से कम पैसे में ज्यादा से ज्यादा काम करें ताकि उन के बिजनैस फलतेफूलते रहें.

हर किसी को सस्ते लेबर चाहिए और ऐसे लेबर जिन के पास जरूरी दस्तावेज न हो ताकि उन का शोषण करना आसान हों. इस सिस्टम का लाभ अमेरिका में ब्यूरोक्रेट समर्थक बिजनैसमैनों ने भी खूब उठाया है और रिपब्लिकन समर्थक अमीरों ने भी खूब उठाया है. यही लोग एआई के समर्थक भी हैं ताकि मजदूरों की संख्या कम की जा सके और मजदूरी कम देनी पड़े और ट्रंप जैसे व्यक्ति के हाथ सत्ता की चाबी सौंपने वाले अमेरिकी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वे अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने के बाद अमेरिकी लोगों को काम देंगे. हंसी आती है ऐसी सोच पर.

समाज को तोड़ रहे अमेरिका और भारत

अमेरिका भारत की तरह रस्साकशी में फंसा है. इन 2 बड़े लोकतंत्रों के नेताओं ने अपनेअपने देशों की कुछ ढकीछिपीं, कुछ दिखतीं, कुछ गहरी खाइयों को सब के सामने नंगा कर दिया है और ये खाइयां वैसी ही हैं जैसी 1920 के बाद जरमनी में दिखनी शुरू हुईं और 1933 तक आतेआते ये इतनी चौड़ी हो गईं कि पूरे जरमनी को ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप को लील गईं.

अमेरिका नया देश है, महज 400 साल पुराना. चारपांच सौ साल पहले इतालवी अन्वेषक व नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस के यूरोप से जहाजों के जरिए एटलांटिक पार करने से पहले उत्तर अमेरिका लगभग आदिवासियों की तरह रह रहे वाशिंदों का घर था जिन्हें बाद में रैड इंडियन कहा गया क्योंकि कोलंबस सोच रहा था कि वह मुगल साम्राज्य के आर्थिक समृद्ध भारत, इंडिया, में पहुंच गया.

यूरोप के अलगअलग देशों, अलगअलग संप्रदायों, अलगअलग इतिहासों वाले लोगों ने एक ब्रिटिश कालोनी बनाई और मोटा काम करने के लिए भारी संख्या में अफ्रीका के गुलामों को जबरन बुलाया. चीनियों को लालच दे कर लाया गया. फिर उन्होंने लोकतंत्र, बराबरी की पतली चादर से ढक कर, मेहनत, नईनई खोजों से ब्रिटेन से आजादी पा कर उसे एक अद्भुत देश बनाया. वहां कालेसफेद का भेदभाव था लेकिन बोलने और काम करने की आजादी थी. वहां गोरों का प्रभुत्व था लेकिन इन्हीं गोरों ने दूसरे गोरों से गृहयुद्ध लड़ा कि कालों को गुलाम नहीं रखा जा सकता.

भारत में पहले मुगलों ने, फिर अंगरेजों ने बिखरे हुए छोटेछोटे राजाओं, धर्मों, संप्रदायों, भाषाओं, बोलियों, रीतिरिवाजों वालों को एक चादर से ढक दिया जिस के तीनों भेदभाव छिप गए. एक जगह यूनाइटेड स्टेट्स औफ अमेरिका ने 1945 के बाद बेहद उन्नति की और एक जगह यूनियन औफ स्टेट्स वाले इंडिया ने टुकड़ों में बंटे देश की जगह एक विशाल भारत बना डाला.

इन दोनों देशों में समानताएं और विभिन्नताएं दोनों हैं. एक बेहद गरीब है, जहां प्रति व्यक्ति आय अमेरिकी डौलरों में 250 के आसपास है. दूसरा बेहद अमीर है, जहां प्रति व्यक्ति आय 70,000 डौलर है. एक में हर जगह गंदगी है, बेकारी है, बिखराव है, दूसरे में सफाई है, रोजगार के अपार अवसर हैं, ढंग से चलता जीवन है, बेहद संपन्नता है.

पर दोनों देशों में इस चमकधमक या काले अंधकार के नीचे गहराई तक गया जना का भेद है. अमेरिका में अफ्रीका से आए या ले आए गए कालों के साथ आज भी दुर्व्यवहार आम है, तो भारत में शूद्रों और अछूतों के साथ उसी तरह का भेदभाव आम है. एक में चर्च के माध्यम से जम कर गोरों की श्रेष्ठता का पाठ पढ़ाया जाता है तो दूसरे में धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदूमुसलिम भेद के साथ सवर्ण, शूद्र और दलित भेद भी हर रोज फैलाया जा रहा है. दोनों देशों के कुछ नेता लगातार इन भेदों को पाटने में लगे हैं तो कुछ इन को भुनाने में. आज दोनों देशों में ऐसा नेतृत्व आ गया है जो सत्ता में भेदभाव, घृणा, ऊंचनीच, जन्मजात श्रेष्ठता के अहं को भुना कर एक नई शासन पद्धति स्थापित करना चाहता है, चाहे इस के लिए वर्षों की एकता की चादर को सीने की कोशिशों पर पानी फिर जाए.

अमेरिका और भारत दोनों में नेता, प्रशासनिक अधिकार, पुलिस, मिलिट्री, प्रैस खेमों में बंट गए हैं. एक तरफ वे लोग हैं जो भेदभाव को जीवन का पहला लक्ष्य मानते हैं और उन्हें विश्वास है कि उन्नति केवल श्रेष्ठ, जन्म से श्रेष्ठ लोगों के हाथों से हो सकती है. दोनों में पैसे वालों का बोलबाला हो गया है. दोनों देशों में जन्म से श्रेष्ठ लोग हर उस व्यक्ति को गुलामी के तहखानों में धकेल देना चाहते हैं जो उन से भिन्न दिखता है या नाम, धर्म, मूल देश से अलग है. वहीं दूसरी, एक तरफ वे लोग हैं जो मानव समाज में मोहब्बत, सौहार्द्र बनाए रखने की वकालत करते हैं.

दोनों देशों के संपन्न लोगों ने अपने भेद भुला दिए हैं. अमेरिका में गोरे लोग भूल गए हैं कि वे कहां से आए थे, फ्रांस से, पोलैंड से, इटली से, रूस से, इंग्लैंड से या और कहीं से. भारत में सवर्णों ने अपने भेद भुला दिए हैं. ब्राह्मणों ने अपने ऊंचनीच के भेद खत्म कर ही दिए, उन्होंने क्षत्रिय और वैश्य कही जानी वाली जातियों को मिला कर एक बड़ा संपन्न वर्ग तैयार कर लिया है जो चाहे आबादी का 10 फीसदी हो, लेकिन 90 फीसदी पर वह भारी है. अमेरिका में गोरे चाहे आज 60 फीसदी से भी कम हैं, और अनुमान है कि 2042 तक 50 फीसदी से भी कम हो जाएंगे, डोनाल्ड ट्रंप को जिता कर उन्होंने यह संदेश दिया है कि सत्ता और संपन्नता की चाबी उन्हीं के हाथों में थी, है और रहेगी.

इन दोनों देशों को एक करने, विशाल बनाने, अमेरिका को संपन्नता दिलाने और भारत को मुगलों व अंगरेजों से आजादी दिलाने में दबेकुचलों का मुख्य योगदान है. आज उन के योगदान को लगातार भुलाया जा रहा है. वह न टैक्स्ट बुक्स में प्रकाशित हो रहा है, न ऊंची जातियों या ऊंचे रंग वाले इतिहासकारों, लेखकों, पत्रकारों, शिक्षकों की जबान/कलम से निकल रहा है. अमेरिका और भारत के समाज आज यह साबित करने में लगे हैं कि गोरों और सवर्णों की बदौलत उन की पहचान है जबकि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाएं कालों, निचलों, अछूतों, सत्ता से बाहर रहे अधपढ़ों व अनपढ़ों पर निर्भर हैं.

अमेरिका अब पहले दौर में अवैध इमिग्रैंट्स को निकाल रहा है. फिर वह हर तरह के लैटिनों, चीनियों, भारतीयों, अफ्रीकी अरब लोगों को या तो निकालेगा या उन्हें इस कदर भयभीत रखेगा कि वे गुलामों की तरह गुलामी करते रहें.

यही भारत में हो रहा है. पिछले 50 सालों के दौरान यहां हिंदूहिंदू कर के मुसलिमों को ही नहीं, सिखों और ईसाइयों को भी दूसरे दर्जे का नागरिक होना महसूस कराया गया. इसी दौरान दलितों और पिछड़ों की हैसियत भी छीन ली गई. वहीं, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, चौधरी देवीलाल, चौधरी चरण सिंह, प्रकाश सिंह बादल, रामविलास पासवान जैसे नेताओं को हाशिए पर ला पटक दिया गया. इन की जातियों के बौनों को पुतला बना कर खड़ा कर दिया और इन वर्गों से कहा गया कि इन बौने पुतलों की तरह जूते चाटते रहो.

अमेरिका ने जिस तरह भारतीय नागरिकों को अमेरिका में बिना अनुमति के घुसने पर उन के हाथपैरों में जंजीरें डाल कर उपहार में भारत को भेजा है वह अमेरिकी मानसिकता दर्शाता है. जिस तरह भारत सरकार ने इन लोगों को सहज स्वीकारा वह भारतीय मानसिकता दर्शाता है क्योंकि इन में से अधिकांश निचली जातियों के थे. उन को जन्म के कारण नीचा दर्शाया गया. दोनों देश एक सा बन रहे हैं. भारत अमेरिका जैसा अमीर बनेगा, यह तो नहीं हो सकता लेकिन अमेरिका अगर नहीं सुधरा तो उस का पतन अवश्य हो सकता है. अमेरिका के ‘मागा’ लोग विध्वंसक हैं, निर्माणक नहीं, तो वहीं भारत के कट्टरपंथी भी विध्वंसक हैं, विनाश करना जानते हैं. सरकारी बलबूते पर कुछ दिखावटी निर्माण कर लेना उन्नति नहीं है.

Sanjay Singh : जीएसटी अफसर का सुसाइड और सुशासन का सच

Sanjay Singh : संजय सिंह कर्मठ और ईमानदार अधिकारियों में से एक थे. वे दिनरात काम में लगे रहते थे, बावजूद इस के उन को लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित और बेइज्जत किया जा रहा था. दबाव इस हद तक बढ़ चुका था कि मजबूर हो कर अंततः उन्होंने मौत को गले लगा लिया. अब शासनप्रशासन सिंह की आत्महत्या की वजह कैंसर से उत्पन्न तनाव को बताने में जुटा है.

उन्होंने मन लगा कर पढ़ाई की. सिविल सेवा की तैयारी में जीतोड़ मेहनत की. आईएएस नहीं बन पाए मगर जब पीसीएस चुने गए तो घर परिवार में ही नहीं गांवगिरांव और रिश्तेदारों ने खूब खुशियां मनाईं. उन का पूरा कैरियर बेदाग़ और शानदार रहा. फिर क्या हुआ कि सेवानिवृत्ति के करीब आ कर उन्होंने बिल्डिंग के 15वें माले से कूद कर आत्महत्या कर ली?

अति सौम्य, मिलनसार, अपने काम से काम रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी संजय सिंह गाज़ियाबाद में जीएसटी डिपार्टमैंट में डिप्टी कमिश्नर पद पर कार्यरत थे. संजय सिंह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के रहने वाले थे. पिछले 4 साल से वह गाजियाबाद में तैनात थे. उन का निवास नोएडा के सैक्टर 75 स्थित एक सोसायटी में था. अगले साल वे रिटायर होने वाले थे. रिटायरमैंट के बाद के प्लान उन्होंने बना रखे थे. बड़ा बेटा नौकरी में आ ही चुका था, छोटा अभी पढ़ रहा था. घर में एक प्रेम करने वाली पत्नी, जिस ने 10 साल पहले एक जानलेवा बीमारी होने पर उन की इतनी सेवा की कि उन्हें कैंसर मुक्त करा के ही दम लिया, तो आखिर ऐसी क्या वजह थी कि एक पल में अपने प्यारे परिवार को छोड़ने का फैसला उन्होंने ले लिया? कैंसर से लड़ कर जीतने वाले के सामने आखिर ऐसी कौन सी परेशानी खड़ी हो गई जिस से वह हार गया?

दरअसल देश में प्रशासनिक अधिकारियों की हालत ऐसी है कि वे शासन द्वारा अपने विरुद्ध जारी अत्याचार, प्रताड़ना, तनाव, दबाव, धमकी आदि के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकते हैं. यह नाफरमानी मानी जाती है और फिर उन्हें ट्रांसफर, निलंबन या बर्खास्तगी जैसे दंड झेलने पड़ते हैं. जो अधिकारी भ्रष्ट हैं और भ्रष्टाचार के धन से पूरे सिस्टम को पालते हैं, वे मजे में रहते हैं, उन्हें अच्छी पोस्टिंग भी मिलती है और समय समय पर प्रमोशन भी मिलता है. वे भ्रष्टाचार से कमाए धन से बड़ेबड़े बंगले बना लेते हैं. बड़ीबड़ी गाड़ियां खरीद लेते हैं. बच्चों को विदेशों में पढ़ाते हैं और पूरे कार्यकाल में बस ऐश करते हैं. मगर जो अधिकारी कर्मठ हैं, ईमानदार हैं, काम में लगे रहते हैं, उन्हें शासन से भी गालियां और धमकियां मिलती हैं और अपने सीनियर अधिकारियों से भी. दंडस्वरूप दूरदराज के क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाना तो बहुत आम बात हो गई है. परिवार को छोड़ कर सालों साल ऐसी जगहों पर रहना जहां न खाने का ठिकाना न रहने का. इस से तंग आ कर अनेक अधिकारी समयपूर्व सेवानिवृत्ति ले लेते हैं या लम्बी छुट्टियों पर चले जाते हैं. दूसरी तरफ भ्रष्ट अधिकारी 15 से 20 साल एक ही स्थान पर जमे रहते हैं.

संजय सिंह कर्मठ और ईमानदार अधिकारियों में से एक थे. वे दिन रात काम में लगे रहते थे, बावजूद इस के उन को लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित और बेइज्जत किया जा रहा था. दबाव इस हद तक बढ़ चुका था कि मजबूर हो कर अंततः उन्होंने मौत को गले लगा लिया. अब शासनप्रशासन सिंह की आत्महत्या की वजह कैंसर से उत्पन्न तनाव को बताने में जुटा है, जबकि उन की पत्नी ने मीडिया को वह सर्टिफिकेट दिखाया जिस में संजय सिंह को 10 साल पहले कैंसर मुक्त घोषित किया जा चुका है. वे बिलकुल स्वस्थ थे. तभी तो दिनरात टारगेट पूरा करने में जुटे थे मगर प्रमुख सचिव एम. देवराज की तानाशाही के आगे वे हार गए.

आरोप है कि सरकार की ब्याज बचत योजना, जिस में हर अधिकारी को पांच व्यापारियों को जोड़ने का टारगेट प्रमुख सचिव द्वारा मिला था, संख्या न पूरी कर पाने पर संजय सिंह का नाम सस्पेंड किए जाने वाले अधिकारियों की सूची में शामिल कर लिया गया था. जबकि यह अतिरिक्त कार्य उन्हें कुछ समय पहले ही सौंपा गया था और उन को इतना समय ही नहीं दिया गया कि वे पांच व्यापारियों को समझा बुझा कर इस योजना में शामिल कर पाएं. फिर एक योजना जो कि एक स्वैच्छिक योजना है और जिस में आना, न आना व्यापारियों की मर्जी पर निर्भर करता है, उस को आननफानन में पूरा कर पाना किसी भी अधिकारी के बस में नहीं है. ऐसे में बिना स्पष्टीकरण मांगे सीधे निलंबन की संस्तुति कर देना कितना भयावह था उस अफसर के लिए जिस ने जीवन भर सरकार को कमा कर दिया और जिस का दामन हमेशा बेदाग़ रहा.

जीएसटी के डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह की मौत ने पूरे उत्तर प्रदेश के जीएसटी अधिकारियों में भारी आक्रोश भर दिया है. विभाग के अधिकारी संजय सिंह की मौत का जिम्मेदार प्रमुख सचिव एम. देवराज के तानाशाही रवैए को बता रहे हैं. जिस के कारण विभाग में प्रताड़ना का स्तर इतना बढ़ गया है कि कोई भी स्‍वतंत्र विवेक से काम कर नहीं पा रहा है.

एम. देवराज के खिलाफ इतना अधिक गुस्सा अधिकारियों में है कि उन की तरफ से बनवाए गए व्हाट्सऐप ग्रुप को अधिकांश अधिकारियों ने छोड़ दिया है. जिस ग्रुप में पूरे प्रदेश के 845 से अधिक लोग जुड़े थे उस में से 800 से अधिक यह ग्रुप छोड़ चुके हैं. यानी अब वे प्रमुख सचिव एम. देवराज के किसी उलटे सीधे निर्देश का पालन नहीं करना चाहते हैं. अफसरों का कहना है कि प्रमुख सचिव नियमों के विपरीत मौखिक आदेश देते हैं. आदेश के तुरंत पालन का दबाव बनाते हैं जबकि हर कार्य की एक प्रक्रिया होती है.

टैक्स बार एसोसिएशन के पदाधिकारी अनुराग मिश्रा बताते हैं कि जीएसटी एक्ट में हर कार्य के लिए एक समय निर्धारित है, जिस के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय है, लेकिन विभाग के प्रमुख सचिव ने अपील से ले कर एसआईबी की जांच रिपोर्ट और वार्षिक विवरणी तक में हस्तक्षेप करते हुए काउंसलिंग द्वारा देश भर के लिए तय की गई तारीखों को ही बदल डाला है, जिस से उत्तर प्रदेश में व्यापारी और जीएसटी अधिकारी दोनों परेशान हैं.

मिश्रा बताते हैं, वित्तीय वर्ष 2024-25 की वार्षिक विवरणी दाखिल करने की अंतिम तिथि पूरे देश के लिए 25 सितंबर है. वार्षिक विवरणी में व्यापारी अपने पूरे वर्ष के रिटर्न में हुई भूल चूक को भी सुधरता है. यह एक तरह की बैलेंस शीट होती है. काउंसिल ने यह सुविधा व्यापारियों को उत्पीड़न से बचाने के लिए दी है, लेकिन शासन ने विभाग की विशेष जांच टीम एसआईबी की जांचों में जो मामले पकड़े हैं, उन में भी अपनी फाइनल रिपोर्ट लगा कर कर-निर्धारण साल पूरा होने से पहले ही किए जाने का मौखिक आदेश दिया है.

मिश्रा कहते हैं, एसआईबी की जांच के मामले में एक्ट में साढ़े चार साल और मैनुअल में 90 दिन में रिपोर्ट देने का प्राविधान है, ताकि व्यापारी को भी अपना पक्ष रखने का मौका मिल सके. प्रमुख सचिव द्वारा जल्दबाजी और दबाव के कारण एसआईबी के अधिकारी इस बात को ले कर परेशान हैं कि अगर एक्ट में दी गई व्यवस्था के तहत व्यापारी को अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं मिला तो आगे चल कर जब ये मामले कोर्ट में जाएगा तो कोर्ट रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी को भी दंडित कर सकती है, क्योंकि शासन कोई भी आदेश लिखित रूप में जारी नहीं कर रहा है जिस से ये कहा जा सके कि किस के आदेश पर समय से पहले रिपोर्ट लगा कर कर निर्धारण कर दिया गया.

व्यापारियों की ब्याज माफी योजना में प्रतिदिन 5 व्यापारियों को शामिल करवाने का दबाव प्रमुख सचिव के मौखिक आदेश के बाद जोनल एडिशनल कमिश्नर अपने नीचे के अधिकारियों पर बना रहे हैं. जबकि यह योजना स्वैच्छिक है. व्यापारी एक पक्षीय मामलों में गलत टैक्स को क्यों स्वीकार करें? वहीं जो व्यापारी इसमें आना भी चाहते हैं और उन पर करोड़ों रूपए का टैक्स बकाया है, वह भी 31 मार्च आने का इंतज़ार कर रहे हैं. उन का कहना है कि आज जब बैंक प्रतिदिन के हिसाब से ब्याज दे रही है और सरकार ने भी इस योजना की अंतिम तिथि 31 मार्च तय की है, तो वह पहले से ही इतनी पूंजी सरकारी खजाने में जमा करके नुकसान क्यों सहन करें?

एक जीएसटी अधिकारी कहते हैं, “हमारे ऊपर दबाव बनाया जा रहा है कि व्यापारियों को एमएसटी स्कीम (ब्याज माफी योजना ) लेनी ही होगी. सेंट्रल वालों के लिए भी यही स्कीम है. मगर सेंट्रल जीएसटी वालों के यहां इस तरह का कोई दबाव नहीं है. हमें हर आदेश के बाद बोला जाता है कि करो वरना सस्पेंड कर दूंगा. हर जोन के लिए उक्त योजना लागू करने के लिए लक्ष्य दिया जा रहा है और न करने पर जोन से अधिकारियों के नाम मांगे जा रहे हैं, जिन के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है. हर अधिकारी से कहा जा रहा है कि 5 व्यापारियों को समाधान योजना में लाओ. अब इस योजना में कौन आना चाहता है, कौन नहीं आना चाहता, यह अधिकारी कैसे तय करेगा? व्यापारी के पास योजना में न आने के कई कारण होते हैं. लेकिन अधिकारियों से कहा जाता है कि व्यापारियों को योजना में लाओ वरना सस्पेंड कर देंगे, इसी का शिकार डिप्टी कमिश्नर संजय सिंह भी हुए हैं. वो सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने वाले वकीलों को तथ्य मुहैया कराते थे, उन्हें कुछ समय पहले सेक्टर के टारगेट में झोंक दिया गया. समय दिया नहीं गया और सस्पेंड होने वाले अधिकारियों की सूची में उन का नाम डाल दिया गया. उन्होंने परेशान हो कर जान दे दी.”

एक जीएसटी अफसर नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, 7 मार्च को प्रमुख सचिव ने रोज की तरह औनलाइन मीटिंग ली. जिस में उन्होंने मौखिक आदेश सभी जोनल एडिशनल कमिश्नरों को दिए कि जिन खंड अधिकारियों ने सरकार की ब्याज माफ़ी योजना में 5 से कम व्यापारियों को पंजीकृत करवाया है, उन से स्पष्टीकरण नहीं सीधे उन के निलंबन की संस्तुती मुख्यालय को भेजी जाए. 8 तारीख को हुई बैठक में संजय सिंह से भी योजना में शामिल होने वाले व्यापारियों की संख्या पूछी गई तो उन्होंने बताया की उन को इस पद का अभी अतिरिक्त प्रभार मिला है, इसलिए उन की संख्या कम है. अब चूंकि कोई स्पष्टीकरण लिया ही नहीं जा रहा था, इसलिए जोनल एडिशनल कमिश्नरों ने पांच से कम वाले अधिकारियों के नाम भेजने शुरू कर दिए. इस लिस्ट में 21 जोनों के अधिकारियों के नाम शामिल थे. इस से संजय सिंह ही नहीं, विभाग के करीब एक हजार अधिकारी तनाव में आ गए. कारण यह था की इस आधार पर उन के निलंबन की कार्रवाई हो सकती थी. संजय सिंह इसलिये अधिक तनाव में थे क्योंकि उन की संयुक्त आयुक्त के पद पर पदोन्नति दोतीन माह में होनी तय थी और उन का सेवाकाल भी मात्र एक वर्ष ही बचा था.

भारत में ही नहीं शासनप्रशासन का तानाशाही रवैया पूरी दुनिया में बढ़ा है. अब नौकरियों को ले कर सुरक्षा का कोई एहसास नहीं बचा है. किसी को भी, किसी भी पोस्ट से, कहीं भी फायर कर दिया जाता है. अमेरिका की संघीय सरकार के खर्चों में कटौती के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सरकारी दक्षता विभाग का गठन किया है. इस का जिम्मा अरबपति एलन मस्क को सौंपा है. इस अभियान के तहत हजारों कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा रहा है. नौकरीपेशा व्यक्ति आज सब से अधिक तनाव में जी रहा है. तनाव तमाम गंभीर बीमारियां दे रहा है और कई मामलों में समयपूर्व ही मौत.

उत्तर प्रदेश के जिन अधिकारियों से टैक्स चोरों को खौफ खाना चाहिए, वह खुद ही इन दिनों खौफ के साये में नौकरी कर रहे हैं. हर किसी पर टैक्स कलैक्शन बढ़ाने का दबाव है. यही वजह है कि कई अधिकारियों ने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया है. हर अधिकारी दबाव में जी रहा है और काम के दबाव में कोई भी गलत फैसला होने की संभावना से अधिकारियों में हताशा और निराशा है. छुट्टी के दिन में भी काम और मीटिंग लिया जाना, विभाग में मानवीय और भौतिक संसाधनों की कमी को पूरा न किया जाना, बिना अधिकारी का पक्ष जाने ही अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करना, एमनेस्टी स्कीम का अप्राप्य लक्ष्य निर्धारण कर के अधिकारियों के निलंबन का प्रस्ताव मांगने से जीएसटी अधिकारियों में भारी आक्रोश है. ज्यादातर अधिकारी वर्चुअल मीटिंग से किनारा कर चुके हैं.

जीएसटी अफसरों की यह डिजिटल बगावत प्रदेश की योगी सरकार पर भारी पड़ सकती है. मार्च महीना खत्म हो रहा है. वित्तीय वर्ष समाप्ति पर सब से ज्यादा जीएसटी से ही रेवेन्यू कलैक्शन होता है. अफसरों, कर्मचारियों की बगावत का सीधा असर इस काम पर पड़ेगा. जीएसटी औफिसर्स सर्विस एसोसिएशन के अधिकारियों ने आपातकालीन बैठक बुला कर विरोध को और तेज करने का ऐलान किया है. अधिकारियों ने सामूहिक अवकाश की धमकी भी दी है. फिलहाल अधिकारी घटना के विरोध में काला फीता बांध कर काम कर रहे हैं.

Grihashobha Inspire Awards 2025 में प्रेरणादायक महिलाओं को किया सम्मानित 

Grihashobha Inspire Awards 2025 : नई दिल्ली, 21 मार्च 2025 –गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड्स 2025 का आयोजन 20 मार्च 2025 को त्रावणकोर पैलेस, नई दिल्ली में किया गया. इस कार्यक्रम में उन असाधारण महिलाओं को सम्मानित किया गया जिन्होंने अपने क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस कार्यक्रम में लोक कला, शासन, सार्वजनिक नीति, सामाजिक कार्य, व्यवसाय, विज्ञान, ऑटोमोटिव और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों की प्रभावशाली और उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं को सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया गया जिन्होंने जिन्होनें अपने सामने आने वाली सभी मुश्किलों को पार कर एक नई राह बनाई.

इस इवेंट को लाइव देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें –

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इस समारोह में, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शासन में परिवर्तनकारी नेतृत्व के लिए केरल की पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सुश्री के.के. शैलजा को पुरूस्कृत किया गया. साथ ही प्रसिद्ध अदाकारा सुश्री शबाना आज़मी को सिनेमा में उनके योगदान और मजबूत एवं मुश्किल किरदारों के प्रदर्शन के लिए मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. डॉ. सौम्या स्वामीनाथन को सार्वजनिक स्वास्थ्य और वैज्ञानिक अनुसंधान में उनके अग्रणी नेतृत्व के लिए नेशन बिल्डर – आइकन पुरस्कार मिला. टाइटन वॉचेस की सीईओ सुश्री सुपर्णा मित्रा को कॉर्पोरेट नेतृत्व में नए स्टैंडर्ड स्थापित करने के लिए बिजनेस लीडरशिप – आइकन पुरूस्कार दिया गया.

अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कार विजेताओं में सुश्री मंजरी जरूहर शामिल रहीं, जिन्हें पुलिसिंग में उनके अग्रणी करियर के लिए फियरलेस वारियर – आइकन के रूप में सम्मानित किया गया. ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बनाने वाली जमीनी स्तर की नेता सुश्री रूमा देवी को ग्रासरूट्स चेंजमेकर – आइकन पुरस्कार मिला, जबकि सुश्री अमला रुइया को जल संरक्षण में उनके अग्रणी कार्य के लिए ग्रासरूट्स चेंजमेकर – अचीवर के रूप में सम्मानित किया गया. सुश्री विजी वेंकटेश को कैंसर देखभाल में उनके सरहानीय योगदान के लिए न्यू बिगिनिंग- आइकन से सम्मानित किया गया.

बिजनेस इंडस्ट्री में, भारत की पहली कीवी वाइन मैकर सुश्री तागे रीता ताखे को बिजनेस लीडरशिप-अचीवर से सम्मानित किया गया, जबकि मेंस्ट्रुपीडिया की फाउंडर सुश्री अदिति गुप्ता को होमप्रेन्योर-अचीवर से सम्मानित किया गया. सुश्री कृपा अनंथन को ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में चेंजमेकर के रूप में सम्मानित किया गया, और सुश्री किरुबा मुनुसामी को उनकी कानूनी सक्रियता के लिए सोशल इम्पैक्ट-अचीवर से पुरूस्कृत किया गया. डॉ. मेनका गुरुस्वामी और सुश्री अरुंधति काटजू को लैंगिक समानता और LGBTQ समुदाय के अधिकारों के लिए उनकी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई के लिए संयुक्त रूप से सोशल इम्पैक्ट-चेंजमेकर से सम्मानित किया गया.

लोक कलाओं के संरक्षण में उनके योगदान के लिए, डॉ. रानी झा को फोल्क हेरिटेज-आइकन से सम्मानित किया गया. डॉ. बुशरा अतीक को STEM में उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया.

एंटरनमेंट और डिजिटल इन्फ्लुएंस में, सुश्री तिलोत्तमा शोम और और सुश्री कोंकणा सेन को मनोरंजन के माध्यम से सशक्तिकरण के लिए ऑनस्क्रीन और ऑफस्क्रीन सम्मानित किया गया. सुश्री लीजा मंगलदास को कंटेंट क्रिएटर -एम्पावरमेंट, सुश्री श्रुति सेठ को कंटेंट क्रिएटर – पेरेंटिंग और डॉ. तनया नरेंद्र को कंटेंट क्रिएटर – हेल्थ में उनकी उत्कृष्टता के लिए सम्मानित किया गया.

माननीय अतिथि

सभी पुरस्कार आरटीआई कार्यकर्ता सुश्री अरुणा रॉय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री इंदिरा जयसिंह, प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सुश्री शोवना नारायण और महिला अधिकार कार्यकर्ता एवं राजनीतिज्ञ सुश्री सुभाषिनी अली द्वारा प्रदान किए गए. इन विशिष्ट अतिथियों ने अपने प्रेरणादायक शब्दों के साथ विजेताओं की उपलब्धियों के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया.

जूरी पैनल

पुरस्कारों का निर्णय प्रतिष्ठित और सम्मानित महिलाओं के एक प्रतिष्ठित जूरी पैनल द्वारा किया गया, जिसमें लेखिका और फेमिना की पूर्व संपादक सुश्री सत्या सरन, लोकप्रिय अभिनेत्री सुश्री पद्मप्रिया जानकीरमन, चंपक की संपादक सुश्री ऋचा शाह, लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन की अध्यक्ष सुश्री नूरिया अंसारी, आउटवर्ड बाउंड हिमालय की डायरेक्टर सुश्री दिलशाद मास्टर और कारवां की वेब संपादक सुश्री सुरभि कांगा शामिल थीं.

कार्यक्रम में बोलते हुए, दिल्ली प्रेस के प्रधान संपादक और प्रकाशक श्री परेश नाथ ने कहा: “गृहशोभा इंस्पायर अवार्ड उन लोगों को श्रद्धांजलि है जो आम धारणाओं को चुनौती देते हैं, और बदलाव लाने के लिए और भविष्य को आकार देने के लिए रचनात्मकता और साहस का उपयोग करते हैं. शोर से अभिभूत दुनिया में, ये पुरस्कार विजेता हमें याद दिलाते हैं कि सच्चा नेतृत्व उन लोगों के शांत लेकिन परिवर्तनकारी प्रभाव में निहित है जो सत्ता के सामने सच बोलने और ईमानदारी के साथ नेतृत्व करने का साहस करते हैं.”

गृहशोभा के बारे में:

गृहशोभा, जिसे दिल्ली प्रेस द्वारा प्रकाशित किया जाता है, भारत की सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली हिंदी महिला मैगजीन है, जिस के 10 लाख से अधिक रीडर्स हैं. यह मैगजीन 8 भाषाओं (हिंदी, मराठी, गुजराती, कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगु और बंगाली) में प्रकाशित होती है और इस में घरगृहस्थी, फैशन, सौंदर्य, कुकिंग, स्वास्थ्य और रिश्तों पर रोचक लेख शामिल होते हैं. पिछले 45 सालों से गृहशोभा महिलाओं के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनी हुई है.

दिल्ली प्रेस के बारे में:

दिल्ली प्रेस भारत के सबसे बड़े और विविध पत्रिका प्रकाशनों में से एक है. यह परिवार, राजनीति, सामान्य रुचियों, महिलाओं, बच्चों और ग्रामीण जीवन से जुड़ी 36 पत्रिकाएं 10 भाषाओं में प्रकाशित करता है. इस की पहुंच पूरे देश में फैली हुई है.

मीडिया से संपर्क करें:

अनंथ नाथ/ एला
9811627143/ 8376833833

Best Hindi Story : प्यार कभी मरता नहीं

Best Hindi Story : ‘हितेश तुम यहां…?’

‘यही सवाल तो मैं तुम से करना चाहता हूं शालू. तुम यहां कैसे?’

‘मुझे 2 दिन पहले ही सर ने यहां की ब्रांच में शिफ्ट किया है. लेकिन, तुम…?’

‘मैं यहां का मैनेजर हूं, 3 दिन से टूर पर था, आज ही आया हूं. तो क्या तुम इस कंपनी की सिस्टर कनसर्न दिल्ली में जौब करती हो?’

‘लेकिन, तुम्हारी शादी तो एक अमीर लड़के से हुई थी. फिर तुम और जौब…? कुछ समझ नहीं आया?’

‘खैर छोड़ो, यह बताओ कि तुम्हारा परिवार कैसा है? मेरा मतलब, बीवीबच्चे…?’

‘सब अच्छे हैं. और तुम्हारे बच्चे, पति सब कैसे हैं? क्या करते हैं तुम्हारे पति?’

‘सब मजे में हैं.’

‘बौस ने तुम्हारे रहने के लिए फ्लैट के लिए कहा है, मैं आज ही इंतजाम करवाता हूं, बस यही कहने आया था. देखा, तो तुम निकली. लेकिन,

अब तक तुम कहां रह रही हो?’

‘दरअसल, अभी मैं इस कंपनी की एंप्लाई सिस्टर डिसूजा के साथ रूम शेयर कर रही हूं.’

‘तो क्या मिस डिसूजा ने तुम्हारी फैमिली को साथ रहने के लिए हां कह दिया?’

‘अरे नहीं, मैं यहां अकेली ही आई हूं.’

‘तो अगर तुम ठीक समझो, तो क्या आज शाम को हम मिल सकते हैं? पता नहीं, फिर यह मौका मिले या न मिले. अगर तुम्हें या तुम्हारी फैमिली को कोई एतराज न हो तो…’

‘हां, अगर तुम्हारी फैमिली को एतराज नहीं तो हम मिल सकते हैं.’

औफिस के बाद मिलने को कह कर दोनों अपनेअपने केबिन में चले गए.

लेकिन शालू को चैन कहां? इतने बरसों से जिसे तलाश रही थी, वह आज मिला भी तो किसी और की अमानत बन चुका है.

शालू ने ताउम्र शादी नहीं की. लेकिन, हितेश ने उसे भुला कर कैसे किसी और को उस की जगह दे दी? क्या इतना ही प्यार था उस से, जो पलभर में खत्म हो गया. उसे यह बात बरदाश्त नहीं हो रही थी. पूरे समय शालू बेचैन रही, एक पल के लिए भी काम में उस का मन न लगा.

वह शाम का इंतजार करने लगी.खो गई खयालों में, अपने बीते कालेज के दिनों में, जब एकसाथ पढ़तेपढ़ते दोस्ती से बढ़ कर दोनों का रिश्ता प्यार में बदल गया.

लेकिन, हितेश के पापा कालेज में कैंटीन चलाते थे और शालू के पापा उस कालेज के ट्रस्टी थे. भला ये मेल कहां मिलता है?

लेकिन, बच्चों के प्यार की खातिर हितेश के पापा रिश्ता ले कर शालू के पापा के पास आए, लेकिन जवाब में बड़े ही सख्त लहजे में शालू के पापा ने कहा, ‘मुझ से रिश्ता जोड़ने की औकात है तुम्हारी…?’

शालू को बहुत बुरा लगा, लेकिन पापा के खिलाफ भी नहीं जा सकती थी वह. हितेश अपने मातापिता की बेइज्जती बरदाश्त न कर सका और मातापिता सहित दिल्ली छोड़ कर मुंबई आ गया और सब वहीं सैटल हो गए.

इधर, शालू के पापा एक से एक अमीर लड़के का रिश्ता लाते, लेकिन शालू किसी के लिए भी हां न करती.

आखिर इस तरह कब तक चलता.

‘शालू आखिर तुम चाहती क्या हो? एक से बढ़ कर एक अमीर घराने के रिश्ते खुद से आ रहे हैं, मगर तुम हो कि किसी के लिए भी हां नहीं करती हो. पहले तुम्हारी शादी हो, तभी तो हम तुम्हारी छोटी बहन के लिए भी लड़का ढूंढे़ं. वह भी तो बड़ी हो गई है.’

‘सौरी पापा, मैं हितेश की जगह किसी और को नहीं दे सकती. इसलिए आप मेरे लिए लड़का ढूंढ़ने के बजाय छोटी बहन के लिए कोई अच्छा लड़का देख कर उस की शादी कर दें.’

छोटी बहन ने जब सुना कि उस की शादी के बारे में सोचा जा रहा है, तो अगले ही दिन उस ने अपने बौयफ्रैंड राहुल को फोन लगाया.

‘हैलो राहुल, मेरे पापा मेरी शादी के बारे में सोच रहे हैं और मैं अच्छी तरह जानती हूं कि पापा हमें नहीं मिलने देंगे. क्योंकि पापा ने शालू दी के प्यार को एक्सैप्ट नहीं किया, जो कि लड़का बहुत ही मेहनती था. आगे चल कर वह जरूर कुछ बन कर दिखाता. लेकिन, मैं दीदी नहीं कि घुटघुट कर मर जाऊं. अगर हम पापा से कहेंगे, तो पापा हमें हमेशाहमेशा के लिए जुदा कर देंगे. इस से अच्छा है कि हम भाग कर शादी कर लें.’

राहुल के पापा एक सब्जी की रेहड़ी लगाते थे. वह बहुत ही समझदार और सुलझा हुआ होने के साथसाथ मेहनती लड़का था. लेकिन, छुटकी जानती थी कि पापा नहीं मानेंगे इस रिश्ते के लिए. इसलिए उसे यही रास्ता सही लगा. वह शालू की तरह अपने प्यार की कुरबानी नहीं दे सकती थी.

राहुल के मान जाने पर छुटकी 2 दिन बाद घर से लगभग 8-10 लाख की ज्वैलरी ले कर राहुल के साथ भाग गई.

पैसों की तो खैर उस के पापा को कोई परवाह नहीं थी, लेकिन इज्जत का जो मटियामेट कर गई, उस से शालू के पापा जब तक जिए उबर न पाए.

इस सदमे में उन्होंने बैड पकड़ लिया. मां हार्ट पेशेंट थीं. बेटी के घर से भागने का गम, उस पर बदनामी और पति का सदमे में चले जाना, इन सब से ऐसा हार्ट अटैक आया कि पल में छोड़ कर चली गईं सब को.

शालू पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. छुटकी को बहुत ढूंढ़ा, मगर कुछ सुराग न मिला. उधर मां भी छोड़ गईं. पापा भी सदमे में 15-20 दिन बाद स्वर्ग सिधार गए. लेकिन जातेजाते बेटी से हाथ जोड़ कर माफी मांग कर उसे हितेश को ढूंढ़ कर अपना घर बसाने के लिए इशारों में समझा गए.

शालू ने छुटकी के साथसाथ हितेश को भी बहुत ढूंढ़ा, मगर किसी की कोई खबर नहीं मिली, क्योंकि दोनों ने ही अपने मोबाइल के पुराने नंबर डेड कर दिए थे.

पापा का सारा बिजनैस भी जानकारी न होने के कारण अत्यधिक घाटे में चला गया. सबकुछ खत्म हो गया. शालू पढ़ीलिखी और मेहनती थी. उसे अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई. वह लगभग 18-19 साल से दिल्ली की शाह कंपनी को संभाले हुए थी, लेकिन इस बार शाह साहब बोले, ‘शालू, मेरी एक ब्रांच मुंबई में है, मैं अकसर वहां जाता रहता हूं अपडेट्स लेने, लेकिन अब मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, जिस वजह से सफर करना मुश्किल हो जाता है. तुम्हारी ईमानदारी और काबिलीयत पर मुझे पूरा भरोसा है, इसलिए मैं चाहता हूं कि वहां का सारा काम तुम संभालो.’

और इस तरह से शालू मुंबई आई.

लेकिन, जब शाम को आज मिले, तो शालू पहले की तरह नार्मल हो कर बात करने लगी.

‘हितेश, तुम आज भी उतने ही हैंडसम हो, जितना कालेज के समय में थे.’

‘तुम भी तो गजब ढा रही हो. कालेज के समय में जैसे तुम बिजलियां गिराती थीं, आज भी कम नहीं हुई.’

इस पर शालू खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘देखो हंसा न करो इस कदर, कहीं जमाने की नजर न लग जाए, जरा बंद कर लो लबों को अपने कहीं जमाने को हमारे प्यार की खबर न लग जाए.’

‘ओ माई गौड, ये शेर तुम्हें अभी तक याद है. याद है, मैं जब भी इस तरह खिलखिला कर हंसती तो तुम यही शेर कहते. लगता है, शायद अब अपनी पत्नी के लिए शायरी करते हो? क्या वह बहुत खूबसूरत है?’

‘हां मेरी पत्नी चांद से भी हसीन, परियों से भी सुंदर है. इस जहान में उस की खूबसूरती का कोई मुकाबला नहीं.’

‘वाह क्या बात है… और बच्चे क्या करते हैं?’

‘अभी पढ़ रहे हैं, और तुम्हारे पति और बच्चे क्या करते हैं?’

‘पति नौकरी करते हैं और बच्चे पढ़ रहे हैं.’

इधरउधर की बातें और अपने बीते दिनों की बातें करतेकरते कुछ दिन निकल गए. कुछ दिन बाद हितेश के मुंह से सचाई निकल जाती है कि उस के मातापिता स्वर्ग सिधार चुके हैं, और वो घर पर अकेला ही है.

शालू के बहुत जोर देने पर उस ने बताया कि उस ने शादी नहीं की. जब भी कोई लड़की पास आती, उसे शालू की याद आ जाती. वह अब तक शालू की यादों के सहारे ही जिंदा है.

‘लेकिन, हितेश तुम ने ये कैसे मान लिया कि मैं ने शादी कर ली. क्या तुम्हें मेरे प्यार पर बस इतना ही भरोसा था? पापा ने मना किया था तुम से शादी के लिए मैं ने नहीं,’ शालू बोली.

‘मुझे पापा की बात का बुरा नहीं लगा, बस मेरे पापा को कहा इसलिए यह बुरा लगा. मुझे कुछ भी कह देते. खैर, अब पिछली बातें छोड़ो. अब आगे क्या सोचा है.’

‘मैं क्या सोचूंगी, मेरी सोच तुम से शुरू और तुम पर खत्म होती है.’

शालू ये जान कर कि हितेश भी उसी की तरह उसी के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा है, इसलिए उस ने बिना एक पल गंवाए हितेश से कह दिया, ‘क्या तुम मुझे अपनी जिंदगी में शामिल करोगे?’

हितेश ने झुक कर उस का हाथ चूम लिया.

शालू ने महसूस किया कि आखिर आज उस ने अपना मुकाम पा ही लिया था, वह मुसकरा उठी. लग रहा था कि वर्षों बाद मन की कलियां फिर से खिलने को आतुर हैं. आज शालू जैसे आसमान में उड़ रही है. वह हितेश के आगोश में समाने को बेचैन है. बरसों से दिल के अरमानों को दबाए जी रही थी, पर आज उन अरमानों संग मधुशाला में बैठ माधुर्यपान कर के झूमना चाहती है. आज वह जीना चाहती है, मरना नहीं चाहती है. आज वह इस जहान को चीखचीख कर बताना चाहती है कि प्यार कभी मरता नहीं, प्यार सदा अमर रहता है दिलों में, सांसों में, लहू में.

हितेश ने शालू का हाथ पकड़ा और उसे अपने करीब ला कर अपनी मजबूत बाहों में भर लिया, इसी के साथ ही शालू उस के आगोश में हमेशा के लिए सो गई, कुछ ही पलों में हितेश भी खामोश हो गया.

एकसाथ दो दुख के दिनों की चिताएं जल रही हैं.

Love Story : उसके लिए – एक दिलफेंक आशिक की प्रेम कहानी

Love Story : वह मुंह फेर कर अपूर्वा के सामने खड़ा था. अपूर्वा लाइबे्ररी में सैल्फ से अपनी पसंद की किताबें छांट रही थी. पैरों की आवाज से वह जान गई थी कि प्रणव है. तिरछी नजर से देख कर भी अपूर्वा ने अनदेखा किया. सपने में यह न सोचा था कि दिलफेंक आशिक किसी दिन इस तरह से आ सकता है. दोनों का यह प्यार परवान तो नहीं चढ़ा, पर दिलफेंकों के लिए जलन का सबब रहा. प्रणव तो अपूर्वा की सीरत और अदाओं पर ही क्या काबिलीयत पर भी फिदा था. रिसर्च पूरी होने तक पहुंचतेपहुंचते एक अपूर्वा ही उस के मन चढ़ी. मन चढ़ने के प्रस्ताव को उस के साथ 2 साल गुजारते भी उगल न सका.

अपूर्वा प्रणव की अच्छी सोच की अपनी सहेलियों के सामने कई बार तारीफ कर चुकी थी. मनचले और मसखरे भी प्रणव को छेड़ते, ‘अपूर्वा तो बनी ही आप के लिए है.’ कुछ मनचले ऐसा कहते, ‘यह किसी और की हो भी कैसे सकती है? यह ‘बुक’ है, तो सिर्फ आप के वास्ते.  कुछ कहते, ‘इसे तो कोई दिल वाला ही प्यार कर सकता है.’

अपूर्वा के सामने आने का फैसला भी प्रणव का एकदम निजी फैसला था. यह सब उस ने अपूर्वा के दिल की टोह लेने के लिए किया था कि वह उसे इस रूप में भी पसंद कर सकती है या नहीं. प्रणव ने बदन पर सफेद कपड़ा पहन रखा था और टांगों पर धोतीनुमा पटका बांधा था. पैरों में एक जोड़ी कपड़े के बूट थे. माथे पर टीका नहीं था. अपूर्वा रोज की तरह लाइब्रेरी में किताबें तलाशने में मगन थी. प्रणव दबे पैर उस के बहुत करीब पहुंचा और धीमे से बोला, ‘‘मिस अपूर्वा, मुझे पहचाना क्या?’’

अपूर्वा थोड़ा तुनकते हुए बोली, ‘‘पहचाना क्यों नहीं…’’ फिर वह मन ही मन बुदबुदाई, ‘इस रूप में जो हो.’

प्रणव ने कनैक्शन की गांठ चढ़ाने के मकसद से फिर पूछा, ‘‘मिस अपूर्वा, मैं ने आप के पिताजी को अपनी कुछ कहानियों की किताबें आप के हाथ भिजवाई थीं. क्या आप ने उन्हें दे दी थीं?’’

‘‘जी हां, दे दी थीं,’’ वह बोली.

‘‘आप के पिताजी ने क्या उन्हें पढ़ा भी था?’’

‘‘जी हां, उन्होंने पढ़ी थीं,’’ अपूर्वा ने छोटा सा जवाब दिया.

‘‘तो क्या आप ने भी उन्हें पढ़ा था?’’

‘‘हां, मैं ने भी वे पढ़ी हैं,’’ किताबें पलटते व छांटते हुए अपूर्वा ने जवाब दिया और एक नजर अपने साथ खड़ी सहेली पर दौड़ाई.

सहेली टीना ने बड़ी मुश्किल से अपनेआप को यह कहते हुए रोका, ‘‘रसिक राज, उन्हें तो मैं ने भी चटकारे लेते गटक लिया था. लिखते तो आप अच्छा हो, यह मानना पड़ेगा. किसी लड़की को सस्ते में पटाने में तो आप माहिर हो. चौतरफा जकड़ रखी है मेरी सहेली अपूर्वा को आप ने अपने प्रेमपाश में.’’ प्रणव ने फिर हिम्मत जुटा कर पूछा, ‘‘मिस अपूर्वा, क्या मैं उन किताबों की कहानियों में औरत पात्रों के मनोविज्ञान पर आप की राय ले सकता हूं? क्या मुझे आज थोड़ा वक्त दे सकती हैं?’’ अपूर्वा इस बार जलेकटे अंदाज में बोली, ‘‘आज तो मेरे पास बिलकुल भी समय नहीं है. हां, कल आप से इस मुद्दे पर बात कर सकती हूं.’’

प्रणव टका सा जवाब पा कर उन्हीं पैरों लाइब्रेरी से बाहर आ गया. अगले कल का बिना इंतजार किए लंबा समय गुजर गया, साल गुजर गए. इस बीच बहुतकुछ बदला. अपूर्वा ने शादी रचा ली. सुनने में आया कि कोई एमबीबीएस डाक्टर था. खुद प्रोफैसर हो गई थी. बस… प्रणव ने सिर्फ शादी न की, बाकी बहुतकुछ किया. नौकरीचाकरी 3-4 साल. संतों का समागम बेहिसाब, महंताई पौने 4 साल.

65 साल का होने पर लकवे ने दायां हिस्सा मार दिया. लिखना भी छूट गया. नहीं छूटा तो अपूर्वा का खयाल. लंगड़ातेलंगड़ाते भाई से टेर छेड़ता है अनेक बार. कहता है, ‘‘भाई साहब, वह थी ही अपूर्वा. जैसा काम, वैसा गुण. पढ़नेलिखने में अव्वल. गायन में निपुण, खेलकूद में अव्वल, एनसीसी की बैस्ट कैडेट, खूबसूरत. सब उस के दीवाने थे. ‘‘वह सच में प्रेम करने के काबिल थी. वह मुझ से 9 साल छोटी थी. मैं तो था अनाड़ी, फिर भी उस ने मुझे पसंद किया.’’

प्रणव का मन आज बदली हुई पोशाक में भी अपूर्वा के लिए तड़प रहा है. भटक रहा है. उसे लगता है कि अपूर्वा आज भी लाइब्रेरी की सैल्फ से किताबें तलाश रही है, छांट रही है. एनसीसी की परेड से लौट रही है. वह उसे चाय पिलाने के लिए कैंटीन में ले आया है. पहली बार पीले फूलदार सूट में देखी थी अपने छोटे भाई के साथ. रिसैप्शन पार्टी में उस ने सुरीला गीत गया था. श्रोता भौंचक्क थे.

प्रणव ने कविता का पाठ किया था. इस के बाद पहली नजर में जो होता है, वह हुआ. कविताकहानियों की पोथियां तो आईं, पर रिसर्च पूरी नहीं हुई. वह अभी भी जारी है. 40-45 सालों के बाद भी ये सारे सीन कल की बात लगते हैं. बारबार दिलोदिमाग पर घूमते हैं. वह कल आज में नहीं बदल सकता, प्रणव यह बात अच्छी तरह जानता है. वह आज सिर्फ अपूर्वा की खैर मांगता है. उस की याद में किस्सेकहानियां गढ़ता है. उस की खुशहाली के गीत रचता है.

Hindi Kahani : उस दिन की बात है – ज्ञानेंद्र जी अंधेरे कोने में क्यों खड़े थे?

Hindi Kahani : चाय पर असली चर्चा तो इसी घर में होती है. अखबार का पहला पन्ना तो शायद ही पढ़ा जाता हो लेकिन तीसरे पन्ने का हर पात्र उस घर का पात्र बन जाता है. चाय का तीसरा घूंट अभी अंदर नहीं गया था और मंजुला यानी श्रीमती समझदार के मुंह से चच्च की ध्वनि निकलने लगी, ‘‘अरे यह भी कोई बात हुई, कोई बचाने नहीं आया, कैसेकैसे लोग हैं.’’

‘‘क्या हो गया, कौन बचाने नहीं आया?” उत्सुकता दिखाना मजबूरी है ज्ञानेंद्र यानी श्रीमान महान की.

‘‘अरे, शंकरगढ़ में लडक़ी को सरेआम गुंडा चाकू मार रहा था और लोग चुपचाप देख रहे थे.’’

‘‘हां, आजकल कोई किसी के मामले में नहीं बोलता. वैसे भी, कोई चाकू मार रहा है तो आदमी डरता है, पता चला झगड़ा छुड़ाने गए और उलटा फंस गए,’’ इतना बोल कर ज्ञानेंद्र फंस गए.

‘‘हां, आदमी डरता है, तुम्हारे जैसा आदमी डरता है. जब हम लोग बाजार गए थे, लडक़े लड़ाई कर रहे थे तब भी तुम ने कुछ नहीं किया. तुम्हारे जैसे लोग ही डरते हैं.’’

‘‘यार, कब की बात कर रही हो.’’

‘‘क्यों, अब याद भी नहीं. मुश्किल से 15 दिनों पहले की ही बात है. मैं ने बोला भी कि जा कर छुड़ाओ.’’

‘‘अरे यार, इतने दिनों की बात ले कर बैठी हो. वैसे तो तुम भी मत पड़ा करो इन चक्करों में, आजकल कोई भरोसा नहीं. पता चला आप छुड़ाने चले हैं और लेने के देने पड़ जाएं.’’

यह हिदायत कलह में बदल गई. दरअसल, कुछ दिनों पहले बाजार में बाइक छू जाने पर 2 लडक़ों में लड़ाई हो गई थी. दूसरे वाले ने अपने दोस्त बुला लिए. लोगबाग छुड़ा रहे थे. लेकिन लड़ाई इतनी जमी नहीं थी कि इस दुकान को छोड़ कर वहां जाना पड़े. उस लड़ाई को देख कर लौट रहे लोगों ने ही मुंह बना कर किस्सा बता दिया था. लेकिन मंजुला बोले जा रही थी.

‘‘खुद भी डरपोक बने रहो और दूसरों को भी वैसे ही बना दो, तुम्हारे जैसे ही लोग थे जो उस दिन वहां खड़े रहे और चुपचाप देखते रहे.’’

मंजुला थोड़ी वीरबाला मिजाज की थीं. जान नहीं थी लेकिन लड़ाईझगड़ा छुड़ाने में हमेशा आगे रहती थीं और उन की दिली ख्वाहिश थी कि उन के पति इस के चैंपियन बन जाएं. लेकिन ज्ञानेंद्र को अपनी हड्डीपसली पर तरस आता. वैसे भी, मंजुला के झगड़ों का भी निबटारा उन्हें करना पड़ता था. लेकिन मजाल क्या कि मंजुला हथियार डाल दें. मंजुला के पास पूरी लिस्ट थी- कबकब, किसकिस मौके पर ज्ञानेंद्र डर के मारे चुप रहे. बहस शुरू हुई नहीं कि कितने गड़े मुर्दे उखड़ जाते. वक्त के साथ हर मुरदा डरावना हो जाता था. और फिर तो श्रीमान महान और श्रीमती समझदार की दुनिया खबर से बहस पर और बहस से तूतूमैंमैं पर उतर आती.

श्रीमान महान हार कर दुनियावी सुकून के लिए हर बात पर हामी भर देते. नतीजतन, होता यह कि दुनिया के हर पुरुष द्वारा किए गए अपराध के बदले उसे थोड़ीबहुत सजा मिल ही जाती. वे भी दिल के हाथों मजबूर थे. आखिरकार पुरुष होने की कुछ न कुछ तो सजा बनती ही थी. मंजुला जी उन के उतरे बीपी को चढ़ा देती थीं और उन के बढ़े बीपी को उतार देती हैं.

मजे की बात, बहुत ही गरममिजाज मंजुला को ब्लडप्रैशर लो रहता था और बहुत ही शांतमिजाज ज्ञानेंद्र का ब्लडप्रैशर हाई रहता था. जिंदगी की डोज वो एकदूसरे को ऐसे ही देते थे. पिछले 18 बरसों से चाहे अच्छा लगे या बुरा, अखबार का वह पन्ना एक दिन भी उन से नहीं छूटता था. दुनिया की सभी खबरें उन के लिए उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं थीं जितनी उन के आसपास घटी कोई घटना. श्रीमान महान कितनी भी कोशिश कर लें कि बातचीत को माइक्रो लैवल से मैक्रो लैवल तक ले आएं लेकिन यहां दुनिया विस्तृत से सूक्ष्म तक आती थी और सूक्ष्म तक आतेआते उन तक आ जाती थी. फिर क्या वह सुपरबग मिल जाता जिस के इलाज करने से जहान की बीमारियां व तकलीफें दूर हो सकती थीं. जैसे कि अगर वे चाह लें तो जगत समस्या का समाधान हो जाए.

ज्ञानेंद्र जी अकेले में कभीकभी सोचते थे कि भला हो कि मैडम कोई महान वैज्ञानिक नहीं हुईं वरना लाल रंग का कच्छा पहना के महाशय को हवा में फेंक देतीं और बड़े ही शहीदाना अंदाज में कहतीं- जाओ, दुनिया की मुसीबतें हल करो. लेकिन इस में भी वे रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखतीं ठीक वैसे ही जैसे हौलीवुड की फिल्म का वैज्ञानिक रखता है.

कितनी कम उम्र में वह लडक़ा चला गया. बामुश्किल सत्रहअट्ठारह साल का रहा होगा. पता नहीं उस के परिवार पर क्या बीत रही होगी. आदमी इतनी मुश्किल से बच्चा पालता है. अखबार में एक नौजवान लडक़े की एक ऐक्सिडैंट में मौत हो जाने की खबर छपी थी.

“हां, आजकल लडक़े तेज बाइक चलाते हैं.”

“मांबाप भी तो दिला देते हैं,” मंजुला ने थोड़ा उदास हो कर कहा.

“मांबाप भी क्या करें, कभीकभी बच्चे इतनी जिद करने लग जाते हैं कि उन को दिलाना ही पड़ता है. हाईस्कूल के बाद तो मैं भी स्कूटर चलाता था.” बस, ज्ञानेंद्र  की इसी बात में पेंच था.

“तुम्हारे जैसे लोग ही ऐसा करते हैं. जैसे तुम चलाते थे वैसे ही बच्चों के लिए भी सोचते हो. तुम्हारे जैसे लोग ही अपने बच्चों को बाइकस्कूटर दिलाते हैं,” मंजुला का पारा चढ़ रहा था.

“अरे, इस में क्या खराबी है, स्कूटर से अपनी मां को बाजार तक छोडऩे जाता था.” चूंकि ज्ञानेंद्र जी का ध्यान कहीं और था, इसलिए गलती से यह जवाब दे दिया.

“यही असली बात है. तुम्हारे अंदर कम उम्र के लडक़ों के गाड़ी चलाने को ले कर चिढ़ नहीं है. उलटा, तुम ग्लोरिफाई कर रहे हो. ऐसे ही लोग बाद में रोते हैं. वैसे, बाद में रोने से कुछ भी हासिल नहीं होता,” मंजुला जी का धैर्य अब समाप्त हो चुका था. उन्होंने साथ में धमकी भी दे डाली, “याद रखना अपना यह सोचना अपने पास रखना. बच्चे के आगे कभी मत कहना कि मैं 10वीं में स्कूटर चलाता था. गलती से मेरे बच्चे को यह पता न चले. वैसे भी, 2दो महीने बाद वह 9वीं में आ जाएगा.”

“अरे, इस से क्या होगा. इतना मत घबराया करो. आजकल तो बच्चे स्मार्ट हैं.”

“क्या होगा?” मंजुला की आंख भर आई थी, “पढ़ो यह मैसेज: ‘रोहित, आज तुम को गए हुए 10 साल हो गए. तुम हमें रोज उतना ही याद आते हो.’

जानते हो इस लडक़े की मौत सडक़ दुर्घटना में हुई थी. आज अगर यह परिवार बाइक न देता तो उसे यों रोना न पड़ता.

“अरे, जीनामरना किसी के हाथ में है क्या. वैसे भी तुम्हें क्या पता कि वह बाइक चला रहा था या नहीं. साइकिल को भी तो कोई गाड़ी टक्कर मार देती है.”

बस, अब तो सुबह की चाय ही आखिरी चाय होगी यहां. फिर क्या लड़ाइयों की संख्या पानीपत का युद्ध जितनी बार लड़ा गया उस से भी ज्यादा एकदिन में होनी तय हो गई. 10 वर्षों पहले सडक़ दुर्घटना में दुनिया छोड़ गए रोहित का शोकसंदेश किसी के घर में इतना शोक भर देगा, इतना तो रोहित के लिए विज्ञापन देते समय उस के परिवार के लोगों ने भी न सोचा होगा. सारे तीर, खंजर, तलवार वहां उपस्थित हो गए. खानदान की बखिया उधडऩे लगी.

2 दिनों बाद मामला सुलझा था जब ज्ञानेंद्र जी खुद और अपने बेटे से भी कबूलवाया कि 18 साल की उम्र होने से पहले घर में बाइक की बात नहीं होगी.

लेकिन आज तो कुछ अलग ही माहौल था. खबर थी कि एक लडक़ी शराब के नशे में धुत थी. उसे ले कर एक लडक़ा अपने घर गया क्योंकि लडक़ी का घर दूर था और उस ने कहा कि ऐसी हालत में वह अपने घर नहीं जाना चाहती. सुबह घर वाले जब ढूंढ़़ते हुए आए तो उस ने कह दिया कि लडक़ा उसे जबरदस्ती ले कर आया है. लडक़ी ने यह भी कहा कि लडक़े ने उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाए हैं. घरवालों ने पुलिस बुला ली और लडक़ा जेल में डाल दिया गया. चूकि बात पड़ोस की थी, इसलिए अखबार की गरमी से भी ज्यादा गरम हो कर उन के घर तक आ गई थी.

मंजुला का पारा चढ़ा हुआ था, “तुम्हारी दोस्ती लड़कियों से बहुत है. देख लो, क्या हुआ.”

ज्ञानेंद्र जी को कुछ समझ न आया.

“अरे, मतलब यह है कि तुम उन के साथ पीनेपिलाने का सिस्टम मत रखना.”

“अरे, मैं कौन सा पीता पिलाता हूं.” यहां तक तो जवाब ठीक था लेकिन लंबा जवाब ज्ञानेंद्र जी पर भारी पडऩे वाला था. उन्होंने अपनी महानता का प्रदर्शन करते हुए कहा, “वैसे भी, हर लडक़ी वैसी नहीं होती.”

अब तो बहस ने जोर पकड़ लिया. सारे गड़े मुरदे फिर एक बार आ खड़े हो गए. हर बात इतनी ताजी कि अब जैसे अभीअभी बीती हो. एक सैकंड का चित्रात्मक वर्णन होने लगा.

ज्ञानेंद्र जी भी थोड़ा नाराज से हो गए थे. उन्होंने कहा, “यह बात तो तुम्हारे ऊपर भी लागू होती है. अपने बारे में सोचो.”

“मैं अपने बारे में क्या सोचूं, मैं तुम्हारी तरह नहीं हूं. मुझे आदमी की परख है. हर बार मेरी बात सही निकली है.”

“जा कर भविष्यवाणी की दुकान क्यों नहीं खोल लेती हो, खूब चलेगी,” ज्ञानेंद्र जी ने तल्खी से कहा.

“हां, भविष्वाणी ही कर रही हूं. अगर तुम नहीं संभले तो तुम्हारा भी हश्र वही होगा जो उस लडक़े का हुआ,” फिर कुछ सोचसमझ कर उन को समझाने लगीं, “अरे, कभी ऐसा हो, मान लो, कोई सडक़ पर मिल जाए.

“हां, सडक़ पर लड़कियां पी कर लडख़ड़ाते मिल ही जाती हैं, तुम को जरूर मिलती होंगी,” ज्ञानेंद्र जी आज सुनने को तैयार नहीं थे.

“अरे, मान लो मिल जाए, तो कभी यह मत करना कि छोडऩे चले जाओ. अरे, पुलिस को फोन करो तुरंत. लेकिन तुम्हारे जैसे आदमी बहादुर बनने लगते हैं. वैसे भी, आदमी को क्या चाहिए, मदद करने का बहाना. लेकिन गलती न करना. अब अलग तरह की दुनिया है. पता चला कि तुम मदद करने चले हो और लडक़ी कुछ का कुछ बता दे. वैसे भी, पीनापिलाना कोई अच्छी बात नहीं है.”

“अरे, तुम तो ऐसे बात कर रही हो जैसे कोई मैं महफिल सजा कर बैठता हूं. प्लीज, बेवकूफों की तरह बात न करो.”

“तुम मेरा मुंह मत खुलवाओ. क्या तुम ने अमिता के साथ एक बार ड्रिंक नहीं किया था,” मंजुला ने 5 वर्षों पहले वाली बात पिटारे से निकाली.

“अरे, यह क्या बात हुई. हम लोग इतने पागल नहीं हैं. वैसे भी, वह बहुत मैच्योर है और एक पैग से कुछ नहीं होता.”

यह वाली बात तो आग में घी बन गई. मंजुला जी को वैसे भी औफिस ट्रिप का यह किस्सा शुरू से नापसंद रहा था. आज तो खैर नहीं.

“तुम्हारे जैसे एक पैग और दो पैग की थ्योरी वाले लोग ही मुसीबत की जड़ हैं.”

“अरे, तुम दवा खा कर अपना इलाज करती हो, मैं दारू, क्या दिक्कत है? श्रीमान महान ने मजाक का एक गुब्बारा फेंका, सोचा कि मंजुला बच्ची कि तरह है, थाम कर खुश हो जाएगी.

“मैं ने पहले ही कह दिया कि बेवजह मजाक मत किया करो. तुम्हारे जैसे आदमी ही फंसते हैं. तुम को सैंस नहीं कि किस के साथ बैठो किस के साथ नहीं.”

अब आगे का किस्सा यहीं समाप्त होता है. नहीं आगे कुछ हुआ है सुनिए.

ज्ञानेंद्र जी डर के मारे कुछ नहीं बोले. जी में रोज आ रहा था कि वे पूछें- वैसे. वह पी कर कर बहकने वाली औरत किस जगह पर मिलेगी. देख तो आऊं, पक्का पुलिस को फोन करूंगा, घर ले कर नहीं आऊंगा, न ही छोडऩे जाऊंगा. लेकिन, कभी मंजुला से जिक्र करने की हिम्मत नहीं पड़ी.

शनिवार की बात थी, ज्ञानेंद्र जी ने पक्का इरादा कर लिया था. बार के बाहर अंधेरे वाली जगह पर जा कर खड़े हो गए. दिल भीतर से घबरा रहा था लेकिन बहुत ही रोमांचित महसूस कर रहे थे. लग रहा था कि अभी कोई सुंदरी सुरापान से लडख़ड़ाते हुए निकलेगी और वे उसे बांहों में थाम लेंगे. लेकिन इतना साहस नहीं था कि रैस्तरां कम बार के बाहर खड़े हो जाएं. वे थोड़ा दूर नाली के पास अंधेरे वाले कोने में आ कर खड़े हो गए. उसी समय जादू हुआ, उन का ध्यान नाली के पास उलटी करती एक महिला पर गया.

लग रहा है कि महिला को सुरा हजम नहीं हुई, ज्ञानेंद्र जी यह सोच कर बहुत प्रसन्न हुए. महिला के घुंघराले बाल पीठ पर फैले थे और झुकने के कारण जंपर थोड़ी ऊपर उठ गई थी. कमर का हिस्सा दिख रहा था. उस जगह पर अंधेरा इतना था कि ठीक से पहचाना नहीं जा रहा था. ज्ञानेंद्र जी को थोड़ी राहत भी लग रही थी कि अच्छा है कोई औफिस का आदमी नहीं देख पाएगा.

वे नजदीक जा कर बोले, ‘आप की तबीयत ठीक नहीं लग रही. कोई मदद चाहिए.’ तब तक वह महिला पानी की बोतल निकाल कर अपना मुंह धो रही थी, वह पलटी नहीं. ‘अगर आप को ठीक लगे तो घर छोड़ सकता हूं आप को.’ आज भी ज्ञानेंद्र जी को जब वह मनहूस वाक्य याद आता है तो सारे ग्रहनक्षत्रों को कोसने लगते हैं वे.

महिला ने पर्स गोदी में से उठाया और अपने बाल समेटे व पलट कर बोली, “कैब बुक कर दिया, ज्ञानेंद्र जी?” श्रीमती मंजुला अपने पति की आंखों का एक्सरे करते हुए बोलीं. मजे की बात यह रही कि अगले दिन के अखबार में इस घटना का जिक्र नहीं था.

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