Download App

Best Hindi Story : अपना बेटा

Best Hindi Story :  बरसों से रिश्ता तोड़ चुके मामाजी का अंजलि और मुकेश के घर आना उन की बेचैनी का कारण बन गया. आखिर उन के अतीत का वह कौन सा सच था जिस पर पड़ा परदा मामाजी किसी भी पल उठा सकते थे?

अंजलि ने सुबह उठते ही मुकेश को बताया कि रात जब वह सो चुके थे तो मामाजी का फोन आया था कि वह कल घर आ रहे हैं.

मुकेश यह जान कर हैरान हो गया. सालों पहले जिस मामाजी ने उस से रिश्ता तोड़ लिया था वे अचानक यहां क्यों आ रहे हैं. क्या उन्हें हम से कोई काम है या उन के दिमाग में फिर से टूटे हुए रिश्तों को जोड़ने की बात आ गई है. इसी उधेड़बुन में पड़ा वह अतीत की यादों में खो गया.

मुकेश को याद आया कि जब इंजीनियरिंग का कोर्स करने के लिए उसे दिल्ली जाना पड़ा था तो मम्मीपापा ने होस्टल में रखने के बदले उसे मामा के यहां रखना ज्यादा बेहतर समझा था. उस समय मामाजी की शादी को 2 साल ही बीते थे. उन का एक ही बच्चा था.

मुकेश ने इंजीनियरिंग पास कर ली थी. उस की भी शादी हो गई. अब तक मामाजी के 3 बच्चे हो चुके थे जबकि मुकेश के शादी के 5 साल बाद तक भी कोई बच्चा नहीं हुआ और मामी अगले बच्चे की तैयारी में थीं.

मुकेश एक बच्चे को गोद लेना चाहता था और मामाजी चाहते थे कि उन के आने वाले बच्चे को वह गोद ले ले. मामा के इस प्रस्ताव में मुकेश के मातापिता की भी सहमति थी लेकिन मुकेश व अंजलि इस पक्ष में नहीं थे कि मामा के बच्चों को गोद लिया जाए. इस बात को ले कर मामा और भांजे के बीच का रिश्ता जो टूटा तो आज तक मामा ने अपनी शक्ल उन को नहीं दिखाई.

मुकेश अपने एहसान का बदला चुकाने के लिए या समझो रिश्ता बनाए रखने के बहाने से मामा के बच्चों को उपहार भेजता रहता था. मामा ने उस के भेजे महंगे उपहारों को कभी लौटाया नहीं पर बदले में कभी धन्यवाद भी लिख कर नहीं भेजा.

अतीत की यादों से निकल कर मुकेश तैयार हो कर अपने दफ्तर चला गया. शाम को लौटा तो देखा अंजलि परेशान थी. उस के चेहरे पर अजीब सी मायूसी छाई थी. दोनों बेटों, गगन और रजत को वहां न पा कर वह और भी घबरा सा गया. हालांकि मुकेश समझ रहा था, पर क्या पूछता? जवाब तो वह भी जानता ही था.

अंजलि चाह रही थी कि वह दोनों बेटों को कहीं भेज दे ताकि मामाजी की नीयत का पता चल जाए. उस के बाद बेटों को बुलाए.

मुकेश इस के लिए तैयार नहीं था. उस का मानना था कि बच्चे जवान हो रहे हैं. उन से किसी बात को छिपाया नहीं जाना चाहिए. इसीलिए अंजलि के लाख मना करने के बाद भी मुकेश ने गगन- रजत को बता दिया कि कल यहां मेरे मामाजी आ रहे हैं. दोनों बच्चे पहले तो यह सुन कर हैरान रह गए कि पापा के कोई मामाजी भी हैं क्योंकि उन्होंने तो केवल दादाजी को ही देखा है पर दादी के भाई का तो घर में कभी जिक्र भी नहीं हुआ.

इस के बाद तो गगन और रजत ने अपने पापा के सामने प्रश्नों की झड़ी लगा दी कि मामाजी का घर कहां है, उन के कितने बच्चे हैं, क्याक्या करते हैं, क्या मामाजी के बच्चे भी आ रहे हैं आदिआदि.

मुकेश बेहद संभल कर बच्चों के हर सवाल का जवाब देता रहा. अंजलि परेशान हो बेडरूम में चली गई.

अंजलि और मुकेश दोनों ही रात भर यह सोच कर परेशान रहे कि पता नहीं मामाजी क्या करने आ रहे हैं और कैसा व्यवहार करेंगे.

सुबह अंजलि ने गगन और रजत को यह कह कर स्कूल भेज दिया कि तुम दोनों की परीक्षा नजदीक है, स्कूल जाओ.

इधर मुकेश मामाजी को लेने स्टेशन गया उधर अंजलि दोपहर का खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई. अंजलि ने सारा खाना बना लिया लेकिन मामाजी को ले कर वह अभी तक लौटा नहीं. वह अभी यही सोच रही थी कि दरवाजे की घंटी घनघना उठी और इसी के साथ उस का दिल धक से कर गया.

मुकेश ही था, पीछेपीछे मामाजी अकेले आ रहे थे. अंजलि ने उन के पांव छुए. मामाजी ने हालचाल पूछा फिर आराम से बैठ गए और सामान्य बातें करते रहे. उन्होंने चाय पी. खाना खाया. कोई लड़ाई वाली बात ही नहीं, कोई शक की बात नहीं लग रही थी. ऐसा लगा मानो उन के बीच कभी कोई लड़ाई थी ही नहीं. अंजलि जितना पहले डर रही थी उतना ही वह अब निश्चिंत हो रही थी.

खाना खा कर बिस्तर पर लेटते हुए मामाजी बोले, ‘‘पता नहीं क्यों कुछ दिनों से तुम लोगों की बहुत याद आ रही थी. जब रहा नहीं गया तो बच्चों से मिलने चला आया. सोचा, इसी बहाने यहां अपने राहुल के लिए लड़की देखनी है, वह भी देख आऊंगा,’’ फिर हंसते हुए बोले, ‘‘आधा दर्जन बच्चे हैं, अभी से शादी करना शुरू करूंगा तभी तो रिटायर होने तक सब को निबटा पाऊंगा.’’

अंजलि ने देखा कि मामाजी की बातों में कोई वैरभाव नहीं था. मुकेश भी अंजलि को देख रहा था, मानो कह रहा हो, देखो, हम बेकार ही डर रहे थे.

‘‘अरे, तुम्हारे दोनों बच्चे कहां हैं? क्या नाम हैं उन के?’’

‘‘गगन और रजत,’’ मुकेश बोला, ‘‘स्कूल गए हैं. वे तो जाना ही नहीं चाह रहे थे. कह रहे थे मामाजी से मिलना है. इसीलिए कार से गए हैं ताकि समय से घर आ जाएं.’’

‘‘अच्छा? तुम ने अपने बच्चों को गाड़ी भी सिखा दी. वेरी गुड. मेरे पास तो गाड़ी ही नहीं है, बच्चे सीखेंगे क्या… शादियां कर लूं यही गनीमत है. मैं तो कानवेंट स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ा सका. अगर तुम मेरे एक को भी…पढ़ा…’’ मामाजी इतना कह कर रुक गए पर अंजलि और मुकेश का हंसता चेहरा बुझ सा गया.

अंजलि वहां से उठ कर बेडरूम में चली गई.

‘‘कब आ रहे हैं बच्चे?’’ मामाजी ने बात पलट दी.

‘‘आने वाले होंगे,’’ मुकेश इतना ही बोले थे कि घंटी बज उठी. अंजलि दरवाजे की तरफ लपकी. गगनरजत थे.

‘‘मामाजी आ गए…’’ दोनों ने अंदर कदम रखने से पहले मां से पूछ लिया और कमरे में कदम रखते ही पापा के साथ एक अजनबी को बैठा देख कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि यही हैं मामाजी.

‘‘नमस्ते, मामाजी,’’ दोनों ने उन के पैर छू लिए. मुकेश ने हंस के कहा, ‘‘मामाजी, मेरे बेटे गगन और रजत हैं.’’

‘‘वाह, कितने बड़े लग रहे हैं. दोनों कद में बाप से ऊंचे निकल रहे हैं और शक्लें भी इन की कितनी मिलती हैं,’’  इस के आगे मामाजी नहीं बोले.

‘‘मामाजी, मैं आप के लिए आइसक्रीम लाया हूं. मम्मी, ये लो ब्रिक,’’ गगन ने अंजलि को ब्रिक पकड़ा दी.

‘‘अच्छा, तुम्हें कैसे पता कि मामाजी को आइसक्रीम अच्छी लगती है?’’ मुकेश ने पूछा.

‘‘पापा, आइसक्रीम किसे अच्छी नहीं लगती,’’ गगन बोला.

अंजलि ने सब को प्लेटों में आइसक्रीम पकड़ा दी. उस के बाद मामाजी ने दोनों बच्चों से पूछना शुरू किया कि कौन सी क्लास में पढ़ते हो? क्याक्या पढ़ते हो? किस स्कूल में पढ़ने जाते हो? वहां क्याक्या खाते हो?

‘‘बस, मामाजी, अब आप आराम कर लें,’’ अंजलि ने उठते हुए कहा, ‘‘गगनरजत, तुम दोनों कपड़े बदल लो, मैं तुम्हारे कमरे में ही खाना ले कर आती हूं.’’

‘‘मामाजी, आप अभी रहेंगे न हमारे साथ?’’ गगन ने उठतेउठते पूछा.

‘‘हां, 3-4 दिन तो रहूंगा ही.’’

अंजलि के साथ गगन और रजत अपने बेडरूम की तरफ बढ़े.

अंजलि रसोई में जाने लगी तो मामाजी ने मुकेश से पूछा, ‘‘गगन को ही एडोप्ट किया था न तुम ने…’’ मुकेश सकपका गया.

‘‘दोनों को देखने पर बिलकुल नहीं लगता कि इन में एक गोद लिया है,’’ मामाजी ने फिर बात दोहराई थी.

‘‘मामाजी, यह क्या बोल रहे हैं?’’ मुकेश ने हैरत से मामाजी को देखा, ‘‘आप को ऐसा नहीं बोलना चाहिए. वह भी बच्चों के सामने?’’

बच्चे मामाजी की बात सुन कर रुक गए थे. अंजलि के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. गगन तो सन्न ही रह गया. रजत को जैसे होश सा आया.

‘‘मम्मी, मामाजी किस की बात कर रहे हैं? कौन गोद लिया है?’’

अंजलि तो मानो बुत सी खड़ी रह गई थी. सालों पहले कहे गए मामाजी के शब्द, ‘गैर, गैर होते हैं अपने अपने, मैं ऐसा साबित कर दूंगा,’ उस की समझ में अब आ रहे थे. तो इतने सालों बाद मामाजी इसलिए मेरे घर आए हैं कि मेरा बसाबसाया संसार उजाड़ दें.

गगन अभी तक खामोश मामाजी को ही देख रहा था. अंजलि को जैसे होश आया हो, ‘‘कुछ नहीं, बेटे, किसी और गगन की बात कर रहे हैं. तुम अपने कमरे में जाओ.’’

मुकेश के पांव जड़ हो रहे थे.

‘‘अरे, अंजलि बेटे, तुम ने गगन को बताया नहीं कि इस को तुम अनाथाश्रम से लाई थीं. उस के बाद रजत पैदा हुआ था…’’ मामाजी रहस्यमय मुसकान के साथ बोले.

‘‘यह क्या कह रहे हैं, मामाजी?’’ मुकेश विचलित होते हुए बोला.

‘‘देखो मुकेश, आज नहीं तो कल किसी न किसी तरह गगन को सच का पता चल ही जाएगा तो फिर तुम क्यों छिपा रहे हो इस को.’’

गगन जहां खड़ा था वहीं बुत की तरह खड़ा रहा, पर उस की आंखें भर आईं, क्योंकि मम्मीपापा भी मामाजी को चुप कराने की ही कोशिश कर रहे थे. यानी वह जो कुछ कह रहे हैं वह सच… रजत हैरानपरेशान सब को देख रहा था. गगन पलट कर अपने बेडरूम में चला गया. रजत उस के पीछेपीछे चला आया. पूरे घर का माहौल पल भर में बदल गया था. कपड़े बदल कर गगन सो गया. उस ने खाना भी नहीं खाया.

‘‘मम्मी, गगन रोए जा रहा है, आज वह दोस्तों से मिलने भी नहीं गया. पहले कह रहा था कि मुझे एक पेपर लेने जाना है.’’

अंजलि की हिम्मत नहीं हुई गगन से कुछ भी पूछे. रात के खाने के लिए अंजलि ने ही नहीं चाहा कि गगन व रजत मामाजी के पास बैठ कर खाना खाएं. मामाजी टीवी देखने में मस्त थे. ऐसा लग रहा था कि उन का मतलब हल हो गया. मुकेश भी ज्यादा बात नहीं कर रहा था. उसे ध्यान आ रहा था उस झगड़े का, जो मम्मीपापा, मामामामी ने उस के साथ किया था. दरअसल, वे चाहते थे कि हमारा बच्चा नहीं हुआ तो मामी के छोटे बच्चे को गोद ले लें. पर अंजलि चाहती थी कि हम उस बच्चे को गोद लें जिस के मातापिता का पता न हो, ताकि कोई चांस ही न रहे कि बच्चा बड़ा हो कर अपने असली मातापिता की तरफ झुक जाए. वह यह भी चाहती थी कि जिसे वह गोद ले वह बच्चा उसे ही अपनी मां समझे.

मुकेश यह भी समझ रहा था कि मामाजी की नजर उस के और अंजलि के पैसों पर थी. उन्हें लग रहा था कि उन का एक बच्चा भी अगर मेरे घर आ गया तो बाकी के परिवार का मेरे घर पर अपनेआप हक हो जाएगा. उसे आज भी याद है जब मामाजी की हर चाल नाकाम रही तो खीज कर वह चिल्ला पड़े थे, ‘अपने लोगों को दौलत देते हुए एतराज है पर गैरों में बांट कर खुश हो, तो जाओ आज के बाद हमारा तुम से कोई वास्ता नहीं.’

मामाजी जब अंतिम बार मिले तो बोले थे, ‘कान खोल कर तुम दोनों सुन लो, गैर गैर होते हैं, अपने अपने ही. और मैं यह साबित कर दूंगा.’

‘और आज यही साबित करने आए हैं. लगता है गगन को गैर साबित कर के ही जाएंगे, लेकिन मैं मामाजी की यह इच्छा पूरी नहीं होने दूंगा,’ सोचता हुआ मुकेश करवट बदल रहा था.

इधर अंजलि की आंखों से नींद जैसे गायब थी. जब रहा नहीं गया तो उठ कर वह गगन के कमरे की तरफ चल दी. उस का अंदाजा सही था, गगन जाग रहा था. रजत भी जागा हुआ था.

‘‘तू पागल है, गगन,’’ रजत बोला, ‘‘मामाजी ने कहा और तू ने उसे सच मान लिया. मामाजी हमारे ज्यादा अपने हैं या मम्मीपापा.’’

अंजलि के पीछे मुकेश भी आ गए. दोनों गगन के कमरे में अपराधियों की तरह आ कर बैठ गए. अंजलि ने गगन को देखा. उस की आंखें भरी हुई थीं.

‘‘गगन, तू ने खाना क्यों नहीं खाया?’’

गगन कुछ बोला नहीं. बस, मां की नजरों में देखता रहा.

‘‘ऐसे क्या देख रहा है? मैं क्या गैर हूं?’’ अंजलि रो पड़ी. उस के शब्दों में अपनापन और रोब दोनों थे, ‘‘मम्मी हूं मैं तेरी…कोई भी उठ कर कुछ कह देगा और तू मान लेगा? मेरी बात पर यकीन नहीं है? उस की बात सुन रहा

है जो सालों बाद अचानक उठ कर चला आया.

‘‘बेटे, अगर हम तेरे मातापिता न होते तो क्या तुम्हें इतने प्यार से रखते? क्या तुम्हें कभी महसूस हुआ कि हम ने तुम्हें रजत से कम चाहा है,’’ अंजलि के आंसू रुक ही नहीं रहे थे. फिर मुकेश की तरफ देख कर बोली, ‘‘तुम्हारे मामा को किसी का बसता घर देख खुशी नहीं होती. कहीं भी उलटीसीधी बातें बोलने लगते हैं. मालूम नहीं कब जाएंगे.’’

गगन नजरें झुकाए आंसू टपकाता रहा. उस का चेहरा बनबिगड़ रहा था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये अचानक तूफान कहां से आ गया. कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में इस तरह के किसी तूफान का सामना करना पड़ेगा.

‘‘बेटे, मैं कभी तुम्हें नहीं बताता पर आज स्थिति ऐसी है कि बताना ही पड़ेगा,’’ मुकेश ने कहा, ‘‘अगर हम तुम्हें पराया जानते तो मैं अपनी वसीयत में सारी प्रापर्टी, बैंकबैलेंस सबकुछ, तुम तीनों के नाम न करता.’’

‘‘और मैं ने भी अपनी वसीयत में अपने हिस्से की सारी प्रापर्टी तुम दोनों के नाम ही कर दी है, ताकि कभी भी झगड़ा न हो सके. हमारे किसी बेटे का, अगर कभी दिल बदल भी जाए तो कानूनी फैसला न बदले,’’ अंजलि बोली, ‘‘तुम मामाजी की बातों पर ध्यान मत दो, बेटे.’’

गगन खामोशी से दोनों की बातें सुन रहा था. उसे लगा कि अगर वह कुछ भी बोला तो सिर्फ रुलाई ही बाहर आएगी.

सुबह अंजलि ने रजत को झकझोरा तो उस की नींद खुली.

‘‘गगन कहां है?’’ अंजलि की आवाज में घबराहट थी.

‘‘कहां है, मतलब? वह तो यहीं सो रहा था?’’ रजत बोला.

‘‘बाथरूम में होगा न?’’ रजत ने अधमुंदी आंखों से कहा.

‘‘कहीं नहीं है वह. पूरा घर छान लिया है मैं ने.’’

अंजलि लगभग चीख रही थी, ‘‘तू सोता रहा और तेरी बगल से उठ कर वह चला गया. बदतमीज, तुझे पता ही नहीं चला.’’

‘‘मम्मी, मुझे क्या पता… मम्मी, आप बेकार परेशान हो रही हैं, यहीं होगा, मैं देखता हूं,’’ रजत झटके से बिस्तर से उठ गया पर मन ही मन वह भी डर रहा था कि कहीं मम्मी की बात सच न हो.

‘‘कहीं घूमने निकल गया होगा, आज रविवार जो है? आ जाएगा,’’ मुकेश ने अंजलि को बहलाया. पर वह जानता था कि वह खुद से भी झूठ बोल कर तसल्ली दे रहा है.

अंजलि का देर से मन में रुका गुबार सहसा फूट पड़ा. वह फफक पड़ी. उस का मन किया कि मामाजी को कहे कि हो गई तसल्ली? पड़ गई दिल में ठंडक? साबित कर दिया तुम ने. अब जाओ, यहां से दफा हो जाओ? पर प्रत्यक्ष में कुछ कह नहीं पाई.

‘‘दोपहर हो चुकी है. एक फोन तक नहीं किया उस ने जबकि पहले कभी यों बिना बताए वह कहीं जाता ही नहीं था,’’ मुकेश भी बड़बड़ाए. उन की आंखों से भी अनजानी आशंका से नमी उतर रही थी.

हर फोन पर मुकेश लपकता. अंजलि की आंखों में एक उम्मीद जाग जाती पर फौरन ही बुझ जाती. इस बीच मामाजी अपने घर वालों से फोन पर लंबी बातें कर के हंसते रहे. साफ लग रहा था कि वह इन दोनों को चिढ़ा रहे हैं.

अंधेरा हो गया, रजत लौटा, पर खाली हाथ. उस का चेहरा उतर गया था. वह सोच रहा था कि गगन कितना बेवकूफ है. कोई कुछ कहेगा तो हम उसे सच मान लेंगे?

तभी मामाजी की आवाज सुनाई दी, ‘‘आजा, आजा, मेरे बेटे, आजा…बैठ…’’

अंजलि, मुकेश और रजत बाहर के दरवाजे की तरफ लपके. गगन मामाजी के पास बैठ रहा था.

‘‘कहां रहा सारा दिन? कहां घूम के आया? पानी पीएगा? अंजलि बेटे, इसे पानी दे, थकाहारा आया है,’’ मामा की आवाज में चटखारे लेने वाला स्वर था.

अंजलि तेजी से गगन की तरफ आई और उसे बांह से पकड़ कर मामाजी के पास से हटा दिया.

‘‘कहां गया था?’’ अंजलि चीखी थी, ‘‘बता के क्यों नहीं गया? ऐसे जाते हैं क्या?’’ और गुस्से से भर कर उसे थप्पड़ मारने लगी और फिर फफक- फफक कर रो पड़ी.

‘‘गगन, तेरा गुस्सा मम्मी पर था न, तो मुझे क्यों नहीं बता कर गया,’’ रजत बोला, ‘‘मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘ऐसे भी कोई चुपचाप निकलता है घर से, हम क्या इतने पराए हो गए?’’ मुकेश की आवाज भी भर्राई हुई थी.

सभी की दबी संवेदनाएं फूट पड़ी थीं.

‘‘मामाजी, आप कुछ कह रहे थे. कहिए न…’’ गगन ने अपने आंसू पोंछे… पर अंजलि ने पीछे से गगन को खींच लिया. पागल सी हो गई थी अंजलि, ‘‘कुछ नहीं कह रहे थे. तू जा अपने कमरे में. जो कुछ सुनना है मुझ से सुन. मैं तेरी मां हूं, ये तेरे पिता हैं और ये तेरा भाई.’’

मुकेश अंजलि को पकड़ रहा था.

‘‘मामाजी, आप कह रहे थे मैं इन का गोद लिया बेटा हूं, है न…’’

‘‘नहीं, तुम मेरे बेटे हो,’’ अंजलि ने गगन को जोर से झटक दिया.

गगन अंजलि के कंधे को थाम कर बोला, ‘‘मम्मी, मैं तो मामाजी को यही समझा रहा हूं कि मैं आप का बेटा हूं. मम्मी, अपने पैदा किए बच्चे को तो हर कोई पालता है, पर एक अनाथ बच्चे को इतना ढेर सारा प्यार दे कर तो शायद ही कोई औरत पालती होगी. उस से बड़ी बात तो यह है कि आप ने रजत और मुझ में कोई फर्क नहीं रखा, तो मैं क्यों मानूं मामाजी की बात.

‘‘आप ही मेरी मां हैं,’’ गगन ने अंजलि को अपनी बांहों में समेट लिया और मामाजी से कहा, ‘‘मामाजी, आप ने क्या सोचा था कि मुझे जब पता चलेगा कि मैं अनाथाश्रम से लाया गया हूं तो मैं अपनी असली मां को ढूंढ़ने निकल पड़ूंगा? मामाजी, क्यों ढूंढं़ ू मैं उस औरत को जिस को मेरी जरूरत कभी थी ही नहीं. उस ने मुझे पैदा कर के मुझ पर एहसान नहीं किया बल्कि मम्मीपापा ने मुझे पालापोसा, मुझे नाम दिया, मुझे भाई दिया, मुझे एक घर दिया, समाज में मुझे एक जगह दी. इन का एहसान मान सकता हूं मैं. वरना आज मैं सड़ रहा होता किसी अनाथाश्रम के मैलेकुचैले कमरों में.’’

रजत ने खुशी से गगन का हाथ दबा दिया. मुकेश ने गगन के सिर पर हाथ फिराया. अंजलि, मुकेश और रजत की आंखों में आंसू छलक आए. सब ने तीखी नजरों से मामाजी को देखा.

अंजलि तो नहीं बोली पर मुकेश से रहा नहीं गया. बोले, ‘‘क्यों मामाजी, आप तो गैर को गैर साबित करने आए थे न? और आप, आप तो मेरे अपने थे, तो आप ने गैरों सी दुश्मनी क्यों निभाई?’’

गगन अंजलि के गले से लिपट गया. अंजलि के आंसू फिर निकल आए.

अंजलि जानती थी अब उसे मामा जैसे किसी व्यक्ति से डरने की कोई जरूरत नहीं है. अब सच में उस के दोनों बेटे अपने ही हैं.

Bollywood New Movie : कंगना की ‘इमरजेंसी’, कमजोर पटकथा और कमजोर अभिनय

Bollywood New Movie : ‘‘इमरजेंसी: कथानक के स्तर पर कुछ भी नया नही,मगर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का महिमामंडन’’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः कंगना रनौत, उमेश कुमार बंसल और, रेणु पिट्टी

लेखकः कंगना रनौत, रितेशशाह,तनवी केसरी पसुमर्थी

निर्देशकः कंगना रनौत

कलाकारः कंगना रनौत, अनुपम खेर,श्रेयश तलपड़े, अशोक छाबरा,महेंद्र चौधरी, विशाक नायर,मिलिंद सोमण,सतीश कौशिक,अधीर भट्ट

अवधिः दो घंटे 26 मिनट

लगभग तीन वर्ष पहले जब कंगना रनौत ने ओमी कपूर की किताब ‘इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री’ के अलावा जयंत वसंत सिन्हा की किताब पर आधारित फिल्म ‘इमरजेंसी’ बनाने का ऐलान किया था. तभी से यह फिल्म सुर्खियों में रही है. भाजपा सांसद होते हुए भी उन्हें अपनी इस फिल्म को दर्शकों तक पहुंचाने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े.अदालती लड़ाई भी लड़नी पड़ी.

लोग मानकर चल रहे थे कि देश को 2014 में आजादी मिलने की बात करने वाली व भाजपा सांसद व अभिनेत्री कंगना रनौत अपनी फिल्म ‘इमरजेंसी’ में 26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश में लगाई गई इमरजेंसी के दौरान हुई ज्यादतियों को बढ़ाचढ़ाकर चित्रित करते हुए इंदिरा गांधी व कांग्रेस पार्टी को देश के बहुत बड़े खलनायक के रूप में पेश करेंगी.

ऐसे में भी जब उन्हीं की यानी कि भाजपा शासन के दौरान उनकी फिल्म ‘इमरजेंसी’ रिलीज नही हो पा रही थी,तो लोग आश्चर्यचकित थे. सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म के 21दृश्यों पर कैंची चलाने के लिए आदेश दिया.खैर,काफी लंबे इंतजार एक बड़ी लड़ाई लड़ने के बाद जब 17 जनवरी को ‘इमरजेंसी’ ने सिनेमाघरों में दस्तक दी,और हमने फिल्म देखी तो अहसास हुआ कि भाजपा सरकार इस फिल्म की रिलीज पर क्यों अडंगा डाले हुए थी.क्योंकि यदि आम चुनावों से पहले यह फिल्म रिलीज हो जाती, तो भाजपा को नुकसान और कांग्रेस को फायदा होना तय था.कंगना रनौत ने फिल्म का नाम गलत रखा है.इस फिल्म का नाम ‘इमरजेंसी’ की बजाय कुछ और होना चाहिए था. यह तो पूर्व प्रधानमंत्री की बायोपिक फिल्म है,जिसमें इमरजेंसी की घोषणा करने के लिए उन्हें विलेन नही बताया गया है.

अधिकांश राजनीतिक टिप्पणीकार मानते हैं कि इंदिरा गांधी एक महान नेता थीं, लेकिन आपातकाल सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी.पर कंगना रनौत की यह फिल्म इंदिरा गांधी को खलनायिका की तरह पेश नही करती,बल्कि वह उन हालातों व संजय गांधी को ही कटघरे में खड़ी करती हैं.

फिल्म ‘‘इमरजेंसी’’ के कुछ संवाद भी वर्तमान सरकार को नश्तर की तरह चुभ रहे होंगे.फिलहाल वर्तमान सरकार पिछले कुछ वर्षों से देश की अस्सी करोड़ जनता को मुफ्त में राशन बांट रही है.जबकि इस फिल्म में एक संवाद है-‘‘आधी रोटी खाएंगे,इंदिरा को वापस लाएंगे..’’ तो वहीं एक दूसरा संवाद है-‘जब प्रशंसा दुख देने लगती है, तो यह इस बात का प्रतिबिंब है कि चीजें सही नहीं हैं.’ यह संवाद भी अपने आप बहुत कुछ कह जाता है.कंगना ने फिल्म में पिता जवाहर लाल नेहरू,बुआ विजयलक्ष्मी पंडित,पति फिरोज गांधी के साथ के रिश्तों के उतारचढ़ाव के साथ ही निजी व राजनैतिक जीवन के कई प्रमुख घटनाक्रमों का समावेश किया है.

 

कहानीः 

फिल्म शुरू होती है इलाहाबाद,अब प्रयागराज स्थित आनंद भवन से, जब इंदिरा गांधी उर्फ इंदू महज ग्यारह वर्ष की रही होंगी,घर में कई महिलाएं इकट्ठा हैं और उस वक्त इंदू की बुआ व जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित ने नौकर के माध्यम से टीबी की बीमारी से ग्रसित इंदू की मां को घर के अंदर के कमरे में जाने के लिए कहती हैं.यह बात इंदू को अच्छी नहीं लगती.इंदू अपनी बुआ विजयलक्ष्मी पंडित को ‘चुड़ैल’ कहती हैं.फिर वह अपने पिता जवाहर से कहती हैं कि बुआ को घर से बाहर कर दें.जवाहरलाल कहते हैं कि यह काम तो दादा जी कर सकते है,घर तो उनका है.इंदू अपने दादा मोतीलाल नेहरु के पास जाती है, तब इंदू को अपने दादा मोतीलाल नेहरू से सत्ता और शासक होने का पहला सबक मिलता है.

फिर कहानी सीधे आसाम पहुंच जाती है,जिसे युद्ध के चलते चीन को सौंपकर जवाहरलाल नेहरू चीन को खुश करना चाहते हैं,मगर इंदिरा गांधी आसाम पहुंचकर पूरे विश्व का ध्यान खींचकर चीन को वापस जाने के लिए मजबूर करती हैं. इसके बाद कहानी 1971 का भारतपाक युद्ध, 1971 में बांग्लादेश का स्वतंत्र राष्ट्र बनना, शिमला समझौता, इंदिरा का शासन काल, 1975 से 1977 तक का इमरजेंसी, नसबंदी का दौर, आपरेशन ब्लू स्टार और अंत में अपनी आखिरी रैली के लिए जाती इंदिरा की हत्या तक जाती है.

1971 के भारतपाक युद्ध तक, अनुभवी जय प्रकाश नारायण (अनुपम खेर) और अटल बिहारी वाजपेयी (श्रेयस तलपड़े) जैसे विपक्षी नेताओं द्वारा भी गांधीजी का सम्मान किया जाता था.हालांकि, चार साल बाद, उसने उनमें से अधिकांश को सलाखों के पीछे डाल दिया.मगर इमरजेंसी हटने के बाद जनता पार्टी की सरकार बनने व उसके गिरने के बाद जब इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं तो संजय गांधी का अपनी मां से भी मिलना मुश्किल हो गया था.

 

समीक्षाः

कंगना रनौत के व्यक्तित्व और पिछले 11-12 वर्षों से वह जिस तरह की बयानबाजी करती आई हैं,उसे देखते हुए लगता है कि कंगना फिल्म ‘इमरजेंसी’ को बनाना कुछ चाहती थी,मगर फिल्म बन कुछ और ही गई.इसी वजह से फिल्म के शुरू होते ही अति छोटी उम्र में इंदिरा गांधी को अपनी बुआ के लिए

‘चुड़ैल’ शब्द का प्रयोग करते दिखाया गया है.यह कितना सच है,हमें नही पता.मगर इस कड़ी के सिरे को पकड़कर शायद कंगना रनौत फिल्म में इंदिरा गांधी को जिद्दी,गलत शब्द बोलने वाली प्रधानमंत्री के रूप में पेश करना चाहती थीपर नही कर पाई.फिल्म में उन्होंने ऐसा कुछ भी नही परोसा है,जो कि गूगल सर्च में न मिले या साठ साल और उससे अधिक उम्र के लोग न जानते हो और उससे छोटी उम्र के लोगों ने न सुना हो.

इंदिरा के जीवन के लगभग 60 साल के दौरान घटित सभी महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को दो घंटे 26 मिनट में समेटने के चक्कर में फिल्म की पटकथा काफी कमजोर होने के साथ ही इंटरवल से पहले घटिया डाक्यूमेंट्री फिल्म का अहसास कराती है.इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ठीक होती है.यदि आप पूरी फिल्म की बजाय फिल्म के कुछ हिस्से अलगअलग देखें,तो बहुत अच्छे लग सकते हैं.

कंगना ने इस फिल्म में इंदिरा गांधी के मानवीय पहलुओं पर ज्यादा जोर दिया है.वह इंदिरा के डोमिनेटिंग, लीडरशिप और बेबाक छवि के विपरीत प्रधानमंत्री की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक जटिलताओं पर जोर देती हैं.इंदिरा गांधी अपने समय की एक दबंग महिला ही नहीं बल्कि अतिसाहसी व दबंग राजनेता भी थी,जो कि पहली ही मुलाकात में फ्रांस व अमरीका के राष्ट्रपतियों से वह काम करवाने में सफल होजाती हैं,जिसके लिए वह उनसे मिलने गई थीं.मगर यह फिल्म इंदिरा गांधी के इस व्यक्तित्व को उभारने में असफल रहती है.

फिल्म जनता पार्टी के दिग्गज नेता जयप्रकाश नारायण (अनुपम खेर), अटल बिहारी वाजपेयी (श्रेयस तलपड़े), जगजीवन राम (सतीश कौशिक) उनकी करीबी पुपुल जयकर (महिमा चौधरी) उनके बेटे संजय गांधी (विशाक नायर), पति फिरोज गांधी (अधीर भट्ट) के साथ उनके रिश्तों की पड़ताल करते हुए उनके अंदर चल रहे अंदरूनी द्वंद को आधाअधूरा चित्रित करती हैं.

15 अगस्त 1975 के दिन पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश के राष्ट्पति शेख मुजीबुर्रहमान के संपूर्ण परिवार को मारकर तख्ता पलट कर देने का घटनाक्रम दिखाते हुए इस बात की ओर इशारा जरूर किया,कि ऐसा किन विदेशी ताकतों की शह पर हुआ,पर वह पूरा सच बयां करने से कतरा गई.

इंदिरा गांधी के पिता जवाहरलाल नेहरु का उनके प्रति व्यवहार,आसाम का निदान निकाल कर जवाहरलाल को शर्मिंदगी से बचाने के बावजूद जवाहरलाल का अपनी बेटी इंदिरा से खुश न होना कहीं न कहीं उनके व्यक्तित्व को अलग ढंग से गढ़ता है,इसे भी लेखक व निर्देशक सही परिप्रेक्ष्य में चित्रित नही कर पाए. हां! वह अपनी इस फिल्म में संजय गांधी को ही विलेन के रूप में पेश करने में सफल रही हैं.

यह सच भी था.फिल्म में दिखाया गया है कि किस तरह इंदिरा गांधी की गैर मौजूदगी में इंदिरा गांधी यानी कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बड़ी ढीतता के साथ बैठकर मंत्रियों को आदेश देनेसे लेकर उनका पालन तक करवाते थे.तुर्कमान गेट और ‘जबरन नसबंदी’ के लिए वही असली विलेन हैं.तभी तो फिल्म में एक दृश्य हैजब संजय गांधी की मौत के बाद मायूस इंदिरा गांधी को पुपुल जयकर कार में बैठाकर घुमाने ले जाती हैं.

इंदिरा गांधी ने अपना चेहर छिपा रखा है,रास्ते में कुछ लोग उत्सव मना रहे हैं,ड्राइवर पूछता है कि यह कौन सा उत्सव है,तो एक महिला संजय गांधी को गाली देते हुए कहती है कि संजय गांधी मर गया,उसकी खुशी है. कुल मिलाकर कंगना की यह फिल्म हर जगह इंदिरा गांधी का महिमामंडन करते हुए ही नजर आती हैं.एक वक्त में इंदिरा के अंदर अपने बेटे संजय के प्रति विरक्ति आती है,इसे फिल्म में खूबसूरती से चित्रित किया गया है.

एक बहुत पुरानी कहावत है-‘‘एक साधे सब सधे,सब साधे सब जाय’’यह कहावत इस फिल्म के संदर्भ में कंगना पर पूरी तरह से फिट बैठती है.हर काम को खुद ही कर लेने की जिद के चलते बहुत कुछ गड़बड़ हो गया.कई तथ्य सही ढंग से नही रख पाई.बाला साहेब ठाकरे को वह नजरंदाज ही कर गईं.भिंडरावाला मसले को उन्होंने सिर्फ पांच मिनट के अंदर बहुत ही खराब तरीके से निपटा दिया.

इतना ही नहीं किरदारों के अनुरूप कलाकारों का चयन भी गलत ही किया गया.यहां तक कि इंदिरा गांधी के किरदार के लिए कंगना ने अपना चयन भी गलत ही किया.वह इस किरदार में बिलकुल फिट नही बैंठती हैं,इसलिए भी वह फिल्म में इंदिरा गांधी को बहुत कमजोर दिखाया है.प्रोस्थेटिक मेकअप के बाद भी उनकी नाक इंदिरा गांधी की नाक की तरह नही नजर आती,इसे छिपाने के लिए पूरी फिल्म में वह महज एक खास एंगल में ही खुद को कैमरे के सामने रखती हैं.फिल्म में सैम मानेकशों के किरदार में मिलिंद सोमण को छोड़कर एक भी कलाकार अपने किरदार के उपयुक्त नही है.तभी तो यह कलाकार अपने किरदारों के लोकप्रिय मैनेरिजम को पकड़ने के प्रयास में नौटंकी व मिमिक्री करते हुए नजर आते हैं.कई जगह कैरीकेचर नजर आते हैं.यह सब लेखक व निर्देशक की कमजोरी है.

इमरजेंसी के दौरान किसी नेता को टार्चर करते नही दिखाया गया.बल्कि बताया गया कि ट्रेन सही समय पर चल रही हैं.सब कुछ अनुशासित है.इमरजेंसी के दौरान तुर्कमान गेट व नसबंदी की ही बुराई है,जिन्हें संजय गांधी ने अपनी जिद के चलते अंजाम दिया था.इस फिल्म में व हर इंसान के दिमाग में एक सवाल का उठना लाजमी है कि इंदिरा गांधी पर किसी भी प्रकार का इंटरनेशनल दबाव नही था,भारत में भी उनके खिलाफ विरोध के स्वर उठाने वाले तो जेल में ही थे,फिर भी इंदिरा गांधी ने बिना संजय गांधी व अन्य नेताओं को विश्वास में लिए ‘इमरजेंसी’उठाते हुए चुनाव का ऐलान क्यों किया था? इस पर यह फिल्म कहती है कि इंदिरा गांधी ने ऐसा अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर किया था.यहां भी इंदिरा गांधी का महिमामंडन ही है.

तमाम कमजोरियों के बावजूद यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री के सामाजिक, राजनीतिक और यहां तक कि व्यक्तिगत जीवन पर एक संतुलित दृष्टिकोण पेश करती है.एकमात्र महिला प्रधानमंत्री की बुद्धिमानी उन चुनौतियों पर आपका ध्यान आकर्षित करती हैं जिनका गांधी को उनकी पार्टी और बड़े राजनीतिक स्पेक्ट्रम दोनों के भीतर सामना करना पड़ा. शुरुआत में वह एक नौसिखिया थीं, लेकिन गांधी को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय राजनीति दोनों में अपनी छाप छोड़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. गांधी ने अपनी पहली बैठकों में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और फ्रांसीसी राष्ट्रपति वालेरी गिस्कार्ड पर गहरी छाप छोड़ी.     इस फिल्म में इंदिरा गांधी समेत अटल बिहारी बाजपेयी,जय प्रकाश नारायण जैसे दिग्गज नेताओं पर देशभक्ति से ओतप्रोत गाने का फिल्मांकन अटपटा लगता है.

1971 की जंग के दृश्य दमदार बहुत बेहतरीन तरीके से फिल्माए गए हैं.अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से इंदिरा का टकराव और फ्रांस के राष्ट्रपति के साथ रात्रि भोज करते समय परोसे गए केक के टुकड़े को पैक कराकर ले जाने वाले दृश्य अच्छे बन पड़े हैं.इसके लिए कैमरामैन टेट्सुओ नागाटा की ही प्रशंसा की जानी चाहिए.अन्यथा निर्देशक के तौर पर कंगना रनौत बहुत कमजोर रही.इस बात को तो अब उन्होंने भी स्वीकार कर लिया है.कुछ दिन पहले कंगना ने कहा है कि उन्हें फिल्म ‘इमरजेंसी’ का निर्देशन नही करना चाहिए था.

 

अभिनयः

इंदिरा गांधी के किरदार में खुद कंगना रनौत फिट नही बैठती हैं. वह कई दृष्यों में मिमिक्री आर्टिस्ट बन कर रह गई हैं.उन पर प्रोस्थेटिक मेकअप भी खराब लगता है. इंदिरा गांधी आइरन लेडी थीं,लेकिन कंगना के अभिनय से यह बात कहीं भी उभरकर नहीं आती. फिर भी बेअंत सिंह और सतवंत सिंह की गोलियों का शिकार होने वाले दृश्य में उनका अभिनय काफी स्वाभाविक बन पड़ा है और संजय गांधी के हमलावर होने वाले सीन में तो कंगना ने कमाल कर दिया है.इंदिरा गांधी की करीबी,दोस्त व सलाहकार पुपुल जयकर के किरदार में महिमा चौधरी का अभिनय सराहनीय है.श्रेयश तलपड़े,सतीश कौषिक,अनुपम खेर आदि अभिनेता के तौर पर अच्छे हैं,मगर इनमें से एक भी कलाकार अपने किरदार के साथ न्याय नही कर पाया.

क्योंकि वह उस किरदार के उपयुक्त ही नही है.सेनाध्यक्ष सैम मानेकशो के किरदार में मिलिंद सोमण जरुर ध्यान खींचते हैं.बिगडी हुई औलाद संजय गांधी के किरदार मे विशाक नायर का अभिनय जानदार है.फिल्म में वह तो कंगना को भी ओवरशेडो करते हुए नजर आते हैं. जय प्रकाश नारायण बहुत बड़े कद्दावर नेता थे,मगर अनुपम खेर उनके किरदार को ठीक से परदे पर चित्रित करने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.

 

अंत में:

कंगना रनौत के पास एक सशक्त कथानक और बेहतरीन कलाकारों की फौज थी,पर वह इनका सही उपयोग करने में पूरी तरह से विफल रही हैं.इंदिरा गांधी हमारे देश की एकमात्र महिला और दबंग व सही प्रधानमंत्री ही नही बल्कि अति जटिल प्रधानमंत्री रहीं.उनके रिश्तें अपने पिता जवाहरलाल नेहरू,पति फिरोज गांधी,बेटे संजय गांधी,दूसरी तरफ उन्हीं की कांग्रेस पार्टी के साथ बगावत,एक तरफ अपने देश में गूंगी गुड़िया का टैग,तो दूसरी तरफ विश्व के हर सशक्त नेता को झुकाने वाली इंदिरा,एक तरफ पाकिस्तान व अमरीका की गीदड़ भभकी तो दूसरी तरफ बांग्लादेश का गठन. कथानक के स्तर पर क्या नही था,पर कंगना इन सभी का पटकथा में सही ढंग से उपयोग करने में बुरी तरह से मात खा गई.‘इमरजेंसी’ एक आम दर्शकों को भाने वाली फिल्म नहीं बन पाई इसलिए बाक्स आफिस पर इसका डूबना तय है.

Entertainment : ‘फतेह’ और ‘गेम चेंजर’ का फ्लॉप शो, ग्लोबल स्टारडम का भरम टूटा

Entertainment : आत्म मुग्ध सोनू सूद की ईमेज पर लगा बट्टा,ग्लोबल स्टार राम चरण ‘गेम चेंजर’ से ‘पैन इंडिया स्टार’ बनने का सपना तो छोड़िए, अपनी तेलुगु की जमीन भी न बचा सके.

यूं तो कुछ दशकों से बौलीवुड में जनवरी माह के शुरूआती सप्ताह में रिलीज होने वाली सभी फिल्में बाक्स आफिस पर बुरी तरह से लुढ़कती रही हैं.लेकिन इस वर्ष जनवरी माह के पहले सप्ताह में कोई फिल्म रिलीज नही हुई.मगर जनवरी माह के दूसरे सप्ताह यानी कि दस जनवरी के दिन कोविड काल में लोगों की मदद कर परोपकारी का तमगा लटका चुके सोनू सूद ने बड़े जोशमें अपनी फिल्म ‘फतेह’ रिलीज कीतो वहीं दक्षिण के स्टार और खुद को सिनेमा के परदे पर खुद के नाम से पहले ‘ग्लोबल स्टार’ लिखवाने वाले अभिनेता राम चरण ने बड़े जोश के साथ खुद को सबसे बड़ा पैन इंडिया स्टार होने का दावा करते हुए अपनी तेलुगु फिल्म ‘गेम चेंजर’ को हिंदी में डब करके रिलीज किया.

नौ नवंबर 2024 को लखनउ में अपनी फिल्म ‘गेम चेंजर’ का टीजर लांच करने के बाद से राम चरण इस कदर हवा में उड़ रहे थे कि जब चार जनवरी 2025 को वह मुंबई की मीडिया से मिलने आए तो मुंबई की मीडिया को लगभग पौने दो घंटे इंतजार करवाने के बाद महज 15 मिनट में राम चरण,उनके सहकलाकार एस जे सूर्या व निर्माता दिल राजू ने अपने मन की बात कही और फिर भाग खड़े हुए थे.यहां तक कि मुंबई में मीडिया फोटोग्राफर उनसे फोटो खींचने के लिए दो मिनट रूकने की बात कहते रहे,पर राम चरण के पास वक्त नही था.

कोविड के दौरान कुछ जरूरतमंदों की मदद करने के बाद सोनू सूद खुद को ही भगवान मानने लगे हैं.उन्होंने इस आवेश में बतौर निर्माता,निर्दशक, लेखक व अभिनेता साइबर क्राइम पर अति रंजित हिंसा और खूनखराबा युक्त फिल्म ‘फतेह’ बना डाली.फिल्म के प्रचार के नाम पर उन्होंने जो कुछ किया,उसकी चर्चा न करना ही उचित रहेगा.जब फिल्म की एडवांस बुकिंग शुरू होने पर रिजल्ट जीरो नजर आया तो अति उत्साहित सोनू सूद ने अपने दर्शकों के नाम अपील जारी की कि ‘फतेह’ से उन्हें जो फायदा होगा,उस पूरी रकम को वह चैरिटी व अनाथों में बांट देंगेपर बात नही बनी.तब सोनू सूद ने ऐलान किया कि दस जनवरी को ओपनिंग डे पर टिकट की दर सिर्फ 99 रूपए रहेगी.

हम याद दिला दें कि मल्टीप्लैक्स को बाकी की रकम सोनू सूद को चुकाना था.इसके बावजूद दस जनवरी यानी कि ओपनिंग डे पर ‘फतेह’ ने महज ढाई करोड़ रूपए कमाए.दूसरे दिन शनिवार को छुट्टी का दिन होते हुए भी यह राशि घट गई,तो सोनू सूद ने ऐलान कर दिया कि टिकट की दर 99 रूपए ही रहेगी. इसी के साथ एक टिकट पर एक टिकट मुफ्त में मिलेगी.सोनू सूद मुंबई मेट्रो के अंदर इस बात का प्रचार करने गए और वीडियो भी बनाया.जब सोनू सूद ने यात्रियों से कहा कि जाकर मेरी फिल्म ‘फतेह’ देखो,99 रूपए में अपनी टिकट खरीदना और आपकी प्रेमिका या पत्नी की टिकट हम मुफ्त में दे देंगें.

जब यह बात सोनू सूद ने कई बार दोहराई तब दोतीन लड़कों ने सोनू सूद से कहा-‘सर हमने आपको देख लिया,मतलब कि हमने आपकी फिल्म देख ली.’यह सुनकर सोनू सूद का चेहरा उतर गया था.रविवार छुट्टी के दिन इस फिल्म ने सिर्फ पौने दो करोड़ रूपए ही एकत्र किए.इस में से निर्माता की जेब में एक भी पैसा नहीं आया,बल्कि उन्हें सिनेमाघर मालिकों को देना पड़ा.पूरे सप्ताह भर यानी कि सात दिन में ‘फतेह’ ने बाक्स आफिस पर केवल 11 करोड़ रूपए ही एकत्र किए.

खुद को ग्लोबल स्टार बताने वाले और ‘पुष्पा 2 द रूल’ के अभिनेता अल्लु अर्जुन के कजिन,तेलुगु सुपर स्टार चिरंजीवी के बेटे,तेलुगु स्टार व आंध्र प्रदेश के उप मुख्यमंत्री पवन कल्याण के भतीजे राम चरण की जनवरी माह के दूसरे सप्ताह यानी कि दस जनवरी को तेलुगु फिल्म ‘गेम चेंजर’ तेलुगु के ही साथ तमिल व हिंदी में डब करके रिलीज की गई.राम चरण के पैर आसमान पर थे.वह किसी भी सूरत में अल्लू अर्जुन से खुद को कमतर नही दिखाना चाहते थे,इसी वजह से जब दस जनवरी यानी कि पहले दिन फिल्म ‘‘गेम चेंजर’ ने तीनों भाषाओं में मिलाकर बाक्स आफिस पर महज साढ़े इक्यावन करोड़ रूपए ही एकत्र किए.

इसके बाद खिसियानी बिल्ली खंभा नोचने लगी.और ‘गेम चेंजर’ के निर्माता ने सोशल मीडिया पर एक ही दिन विश्वभर में 186 करोड़ रूपए कमाने का पोस्टर जारी कर दिया.इससे हड़कंप मच गया.हर तरफ से आलोचना होने लगी. उधर दूसरे दिन फिल्म धड़ाम से गिरी और महज इक्कीस करोड़ रूपए ही एकत्र कर सकी.तीसरे दिन साढ़े 17 करोड़ और चौथे दिन 8 करोड़ रूपए एकत्र किए.पूरे सात दिन में फिल्म ‘गेम चेंजर’ ने रो धो कर 110 करोड़ रूपए बाक्स आफिस पर एकत्र कर सकी.इसमें से हिंदी क्षेत्र में सात दिन में27 करोड़ एकत्र किए,जिस में से सवा 6 करोड़ रूपए की कारपोरेट बुकिंग करवा कर लोगों को मुफ्त में टिकट बांटने के आरोप भी लगे.

फिल्मकार राम गोपाल वर्मा सहित कई फिल्मकारों ने फेक बाक्स आफिस आंकड़े जारी कर तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री को बदनाम व बरबाद करने के लिए राम चरण की जमकर आलोचना कर रहे हैं.अब तीसरे सप्ताह में ‘फतेह’ का नाम नही रहा,जबकि ‘गेम चेंजर’ का भी कुछ नही होना है.क्योंकि जनवरी माह के तीसरे सप्ताह यानी कि 17 जनवरी से फिल्म ‘पुष्पा 2 द रूल’ का रीलोड संस्करण रिलीज कर दिया गया है,जिसमें निर्माताओं ने बीस मिनट के नए फुटेज जोड़े हैं.उधर अब तेलुगु इंडस्ट्री में कहा जा रहा है कि राम चरण ने घटिया फिल्म के अलावा निम्न स्तर की हरकत कर ‘पैन इंडिया स्टार’ बनना तो दूर अब तेलुगु स्टार भी नही रहे.

 

Best Hindi Story : राज की बात

Best Hindi Story : रक्ताभ, रुधिर, लालिमा और सिंदूरी चारों कालेज के कैंपस में बैठ कर गपशप कर रहे थे, तभी शिरा ने आ कर सूचना दी.

‘‘फ्रैंड्स, खुश हो जाओ. कालेज हम लोगों का एनुअल टूर अरेंज कर रहा है

अगले महीने.’’

‘‘अरे वाह, किस ने बताया तुझे?’’  लालिमा ने पूछा, ‘‘कहां जा रहा है?’’

‘‘नोटिस बोर्ड पर नोटिस लगा है. नौर्थ इंडिया का टूर है. शिमला, कुल्लूमनाली, डलहौजी, धर्मशाला और भी कई जगहें हैं. पूरे 15 दिनों का टूर है,’’ शिरा ने बताया.

‘‘कितने पैसे लगेंगे?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘40 हजार रुपए पर हैड,’’ शिरा ने बताया और बाय कर के चली गई.

‘‘यार, हमारा तो फाइनल ईयर है. हमें तो जाना ही चाहिए. भविष्य में हमें साथ जाने का मौका शायद न मिले,’’ रक्ताभ खुश होता हुआ बोला.

‘‘मैं तो जाऊंगी,’’ लालिमा चहकते हुए बोली.

‘‘मैं भी,’’ सिंदूरी भी उसी लय में बोली.

‘‘मैं नहीं जा पाऊंगा. मेरा कंजूस बाप फीस के लिए तो बड़ी मुश्किल से पैसे देता है. टूर के लिए तो बिलकुल नहीं देगा,’’ रुधिर कुछ गंभीर किंतु निराश स्वर में बोला.

‘‘ऐसा नहीं है, यार. तेरे पापा का इतना अच्छा बिजनैस है. करोड़ों की फर्म है. कई ट्रस्ट और पार्कों में उन के द्वारा दान में दी गई वस्तुएं लगी हैं. एक बार रिक्वैस्ट कर के तो देख. बेटे की खुशी से बढ़ कर एक पिता के लिए और कुछ नहीं होता,’’ रक्ताभ रुधिर को समझाते हुआ बोला.

‘‘अगर रुधिर नहीं जाएगा तो मैं भी नहीं जाऊंगी,’’ रुधिर की क्लोज फ्रैंड सिंदूरी बोली.

‘‘सिंदूरी नहीं गई तो मेरे घर वाले मुझे भी नहीं जाने देंगे. क्योंकि मेरे घर वाले किसी और पर विश्वास नहीं करते,’’ लालिमा बोली.

‘‘लो, यह लो. यह तो पूरा प्लान ही खत्म हो गया,’’ रक्ताभ निराशाभरे स्वर में बोला.

‘‘क्या रुधिर के लिए चंदा इकट्ठा नहीं कर सकते?’’ सिंदूरी ने प्रश्न किया.

‘‘हम सब साधारण घरों से हैं. 40 हजार रुपए के अलावा 10 हजार रुपए खर्चे के लिए चाहिए. मतलब 50 हजार रुपए. इतना पैसा भी निकालना हमारे घर वालों के लिए मुश्किल होगा,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘हां, यह बात तो सही है,’’ लालिमा ने सहमति व्यक्त की.

‘‘टूर अगले महीने की 25 तारीख को जाएगा. आज तो 3 ही तारीख है. अभी डेढ़ महीने से ज्यादा समय है. कल मिल कर सोचते हैं क्या करना है,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘नहीं, जो सोचना है आज ही सोचना है. बैठो और बैठ कर सोचो,’’ रुधिर बोला, ‘‘मेरे पापा से पैसे कैसे निकलवाए जाएं.’’

‘‘उन्होंने शायद बहुत मुश्किलों से यह पैसा कमाया है और शायद यह चाहते हों कि तुझे पैसों की सही कीमत पता चले. इसलिए तुझे पैसे देने की आनाकानी करते हों,’’ रक्ताभ ने अपने विचार रखे.

‘‘कारण कुछ भी हो, अभी टूर के लिए पैसे कैसे जमा किए जाएं, यह सोचो,’’ रुधिर सामान्य होता हुआ बोला.

‘‘क्या सोचूं? किसी का मर्डर करूं? किसी का किडनैप कर फिरौती मांगूं?’’ रक्ताभ झुंझलाता हुआ बोला.

‘‘किडनैप? वाह, क्या बढि़या आइडिया है. हम किडनैप ही करेंगे,’’ रुधिर खुशी से उछलते हुए बोला.

‘‘किडनैप? अरे बाप रे,’’ लालिमा डर कर आश्चर्य से बोली.

‘‘किस का किडनैप करोगे, रुधिर? देखो, कोई गलत कदम मत उठाना वरना सारी उम्र पछताना पड़ेगा,’’ सिंदूरी भी विरोध करते हुए बोली.

‘‘अरे, किसी दूसरे का नहीं, मेरा किडनैप, तुम सब मिल कर मेरा किडनैप करोगे और मेरे बाप से फिरौती मांगोगे. कम से कम लोकलाज की खातिर वे फिरौती तो देंगे ही,’’ रुधिर अपनी योजना बताते हुए बोला.

‘‘और अगर पुलिस को बता दिया तो हम सब अंदर जाएंगे,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘मेरी मां ऐसा नहीं करने देंगी,’’ रुधिर ने कहा.

‘‘लेकिन पुलिस को सूचना दे दी तो? तब क्या होगा?’’ रक्ताभ ने संशय जाहिर किया.

‘‘चलो, हम सब बैठते हैं और एक फूलप्रूफ प्लान बनाते हैं,’’ रुधिर सभी को बैठाते हुए बोला.

‘‘नहीं रुधिर, यह गलत है,’’ सिंदूरी ने एक बार फिर विरोध किया.

‘‘क्या सही क्या गलत? एक फिल्म के गाने की लाइन है ‘जहां सच न चले वहां झूठ सही, जहां हक न मिले वहां लूट सही… मैं अपना हक ही तो ले रहा हूं,’’ रुधिर बोला.

‘‘चल ठीक है. अपना प्लान बता,’’ रक्ताभ बात को समाप्त करने के दृष्टिकोण से बोला, ‘‘हमारी योजना में सब से बड़ी बाधा पुलिस ही रहेगी.’’

‘‘वह कैसे?’’ रुधिर ने पूछा.

‘‘वह ऐसे कि कालेज में हम चारों का ही ग्रुप है. यदि किसी एक को अचानक कुछ होता है तो बाकी के 3 शक के दायरे में आएंगे ही न,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘इस का समाधान खोज लिया है मैं ने. प्लान शुरू होने के 3-4 दिनों से पहले से मैं घर से कालेज के लिए निकलूंगा जरूर, मगर मैं कालेज में आऊंगा नहीं. कालेज रिकौर्ड से यह साफ हो जाएगा कि मैं कालेज आ ही नहीं रहा हूं, बल्कि यह भी साबित होगा कि मैं किसी तीसरे के साथ हूं,’’ रुधिर ने अपनी योजना बतानी प्रारंभ की.

‘‘तो तू रहेगा कहां? किसी को तो दिखाई देगा न?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं किसी को भी दिखाई नहीं दूंगा क्योंकि मैं घर से निकल कर पास के प्लौट पर बने गैराज में छिप जाऊंगा. जब से पापा ने नई कार ली है तब से गैराज में पुरानी गाड़ी ही खड़ी रहती है. मेरी साइकिल भी वहां पर आसानी से घुस जाएगी. कालेज छूटने के समय मैं वापस घर पहुंच जाऊंगा. मां अकसर घर के अंदर ही रहती हैं, इसलिए उन्हें कुछ मालूम नहीं पड़ेगा और तुम लोग भी शक के दायरे से बाहर ही रहोगे,’’ रुधिर ने अपनी योजना का पहला दृश्य सामने रखा.

‘‘चलो, यहां तक तो ठीक है पर किडनैपिंग होगी कैसे? और किडनैपिंग के बाद तुझे रखेंगे कहां?’’ सिंदूरी ने उत्सुकता से प्रश्न किया.

‘‘जो भी दिन किडनैपिंग के लिए निश्चित किया जाएगा उस दिन मैं कालेज के नाम पर निकल कर शहर के दूसरे छोर पर बने रैस्टोरैंट में पहुंच जाऊंगा. वहां पर मैं अपनी साइकिल रख कर लगभग आधा किलोमीटर पैदल जाऊंगा. इतने बड़े शहर में मुझे कोई पहचानेगा, इस बात की संभावना कम ही है. वहां से रक्ताभ मुझे अपनी बाइक से 20 किलोमीटर दूर मेरे फार्महाउस पर छोड़ आएगा. पुलिस सब जगह ढूंढे़गी मगर मुझे मेरे ही घर में नहीं ढूंढे़गी.’’ रुधिर ने आगे कहा.

‘‘पर वहां तो तुम्हारे बरसों पुराने चौकीदार रामू अंकल हैं न?’’ रक्ताभ ने कहा.

‘‘हां, हैं तो सही. वे बहुत ही सीधे और अनपढ़ हैं. उन्हें तो लैंडलाइन से डायल करना भी नहीं आता. मैं जाते ही फोन को डेड कर दूंगा. मेरा विचार है एक या ज्यादा से ज्यादा 2 दिनों में ही अपना प्लान कंपलीट हो जाएगा,’’ रुधिर ने आशा जताई.

‘‘वह सब तो ठीक है. फिरौती की रकम कब, कहां और कितनी मांगनी है?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘हमारी आवश्यकता तो सिर्फ 40 हजार रुपए ही है,’’ लालिमा बोली.

‘‘अरे, नाक कटवाओगे क्या? इतनी रकम तो लोग कुत्तेबिल्ली का किडनैप करने के भी नहीं मांगते हैं. तुम ऐसा करना 5 लाख रुपए मांग लेना,’’ रुधिर रक्ताभ को निर्देश देता हुआ बोला.

‘‘5 लाख रुपए? यह तो बहुत अधिक हो जाएगा. क्या करेंगे हम इतने रुपयों का?’’ रक्ताभ का मुंह आश्चर्य से खुल गया.

‘‘देखो, जैसी कि रीत है, मांगने वाले को उतने पैसे तो मिलते नहीं हैं जितने वह चाहता है. कुछ मोलभाव अवश्य होता है. ऐसी स्थिति में तुम 2 लाख रुपए पर डील पक्की कर लेना,’’ रुधिर ने समझाया.

‘‘2 लाख रुपए भी ज्यादा हैं. क्या करेंगे हम इतने पैसों का?’’ लालिमा कुछ चिंतित स्वर में बोली.

‘‘तुम लोगों के टूर के पैसे भी मैं दे दूंगा.

बचेंगे 40 हजार रुपए तो तुम लोग भी अपने घर से 40 हजार रुपए जमा करने वाले ही थे. वे पैसे रास्ते के खर्च के लिए रख लेना. सभी के पास बराबर पैसा होगा,’’ रुधिर मुसकराता हुआ बोला.

‘‘और संपर्क करने के लिए फोन कौन सा इस्तेमाल करेंगे?’’ रक्ताभ ने पूछा.

‘‘कोई एक फोन यूज नहीं करेंगे. कल मैं पापा की फर्म का गुमाश्ता और्डर की फोटोकौपी, लैटरपैड, सील और बाकी डौक्युमैंट्स ले कर आ जाऊंगा. इतने डौक्युमैंट्स से कौर्पोरेट के नाम पर जितनी चाहे उतनी सिम ले सकते हैं. मैं 5 पोस्टपेड सिम निकलवा दूंगा. अगर कभी पुलिस कंप्लैंट हुई भी, तो शौपकीपर मेरा ही हुलिया बताएगा. इस से यह स्पष्ट होगा कि पापा की फर्म का ही कोई प्रतिद्वंद्वी यह काम मुझ से दबाव डलवा कर करवा रहा है. तुम लोगों पर कोई शक नहीं जाएगा,’’ रुधिर ने योजना का पूरा खुलासा किया.

‘‘फिरौती की रकम किस जगह ली जाएगी?’’ रक्ताभ ने अगली परेशानी प्रस्तुत की.

‘‘हमारे फार्महाउस के बिलकुल विपरीत शहर के दूसरे छोर पर. रुपए किसी शौपिंग बैग में ही लेना ताकि किसी को शक न हो. रुपए लेने के बाद बताना कि तुम ने मुझे फार्महाउस के नजदीक छोड़ दिया है. यहां पर तो मैं पहले से रहूंगा ही,’’ रुधिर ने स्पष्ट किया.

‘‘हम लोगों का तो कोई काम नहीं रहेगा न? इतना काम तो तुम निबटा ही लोगे?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘अरे मैडम, मेन रोल तो आप लोगों का ही रहेगा. रक्ताभ के धमकीभरे फोन करने के बाद फौलोअप करने का काम बारीबारी से तुम दोनों करोगे. इस से ऐसा लगेगा कि गु्रप बहुत बड़ा व खतरनाक है. यदि वौयस चेंजिंग ऐप से कौल करोगे तो बेहतर रहेगा. कोई तुम्हारी आवाज को ट्रैस नहीं कर सकेगा. दूसरा, पैसे लेने भी तुम लोग ही जाओगे, क्योंकि रक्ताभ अगर अपना मुंह कवर करेगा तो लोगों के शक के घेरे में आ जाएगा और तुम लोग स्टौल से कवर कर के आसानी से जा सकती हो,’’ रुधिर ने दोनों लड़कियों को समझाया.

‘‘तुम्हारी योजना तो बहुत आकर्षक लग रही है. मुझे विश्वास है जरूर सफल होगी.’’ रक्ताभ ने आशा प्रकट की.

‘‘फार्महाउस पर रामू अंकल रहेंगे. वे अनाथ हैं, दादाजी उन्हें किसी अनाथालय से उठा कर लाए थे. इस कारण वे हमेशा हमारे एहसानमंद रहते हैं. मुझे बहुत अधिक चाहते हैं. इस कारण वहां खानेपीने, रहने की कोई समस्या नहीं होगी. हां, तुम लोग अपनी तरफ से कोई गलती मत करना,’’ रुधिर समझाते हुआ बोला.

‘‘बिलकुल ठीक,’’ रक्ताभ ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, तो अपनी योजना पक्की रही. कल मैं घर से निकलूंगा मगर कालेज नहीं आऊंगा. मैं कल ही सिमों का इंतजाम कर के पहुंचा दूंगा. आज से ठीक 6 दिनों बाद मेरा किडनैप कर के मेरे घर पर फोन कर देना. मेरे मम्मी व पापा का नंबर अभी से नोट कर लो,’’ रुधिर नंबर लिख कर देता हुआ बोला.

‘‘ठीक है, औल द बैस्ट,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘औल द बैस्ट,’’ चारों एक स्वर में मगर धीमे से बुदबुदा कर बोले.

अगले 5 दिनों तक सभीकुछ तय योजना के मुताबिक चलता रहा. छठे दिन रुधिर तय समय पर निकल कर निश्चित किए गए रैस्टोरैंट के सामने साइकिल रख कर पैदल चल पड़ा. लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद रक्ताभ अपनी बाइक पर इंतजार करता हुआ मिल गया. वह उसे फार्महाउस पर छोड़ आया.

कालेज समाप्त होने के लगभग आधा घंटा बाद रक्ताभ ने रुधिर के पापा को फोन किया.

‘‘हैलो, शांतिलाल बोल रहे हैं?’’ रक्ताभ ने आवाज बदल कर पूछा.

‘‘हां, मैं शांतिलाल बोल रहा हूं. आप कौन?’’ उधर से आवाज आई.

‘‘मेरी बात ध्यान से सुनो और किसी दूसरे को बताने की कोशिश मत करना. हम ने तुम्हारे लड़के रुधिर का अपहरण कर लिया है. अगर उस की सलामती चाहते हो तो आज शाम 5 लाख रुपयों का इंतजाम कर लो. रुपया कहां लाना हैं, इस के बारे में हम शाम को बताएंगे. पुलिस को बताने पर अपने लड़के की लाश ही पाओगे,’’ रक्ताभ ने भरपूर पेशेवर रवैया अपनाते हुए कहा.

‘‘अपहरण? मेरे लड़के का? बहुत अच्छा किया. मेरी तरफ से जान ले लो उस की. रुपया छोड़ो, मैं एक पैसा भी नहीं देने वाला,’’ उधर से रुधिर के पापा ने कहा.

यह सुन कर रक्ताभ घबरा गया और उस ने फोन काट दिया. साथ में खड़ी हुई लालिमा और सिंदूरी से पूरी बात बताते हुए वह बोला, ‘‘कहीं हमारा दांव उलटा तो नहीं पड़ गया?’’

‘‘अब क्या होगा?’’ लालिमा घबराते हुए बोली.

‘‘अरे, इस समय तक तो रुधिर घर पहुंचता ही नहीं है. हम ने फोन में जल्दबाजी कर दी है. इसी कारण अतिआत्मविश्वास के साथ वे ऐसी बातें कर रहे हैं. 2 घंटे बाद उन्हें जब मालूम पड़ेगा की रुधिर सचमुच घर नहीं पहुंचा, तब वे घबराएंगे और हमारी बात मान लेंगे,’’ सिंदूरी ने अनुमान लगाया.

‘‘हां, हां, शायद ऐसा हो. ऐसा करते हैं हम शाम को 6 बजे पार्क में मिल कर फोन लगाते हैं,’’ रक्ताभ ने सहमति जताई.

‘‘सिंदूरी इस बार तुम फोन लगाओ. अब तो 6 घंटे गुजर चुके हैं. शायद अब तक रुधिर के घर वाले घबरा गए हों,’’ रक्ताभ ने पार्क में मिलते ही कहा.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने समर्थन किया.

‘‘ठीक है, मैं फोन लगाती हूं,’’ सिंदूरी ने कहा और फोन लगाने लगी, ‘‘हैलो, शांतिलालजी…’’

‘‘हां, मैं शांतिलाल ही बोल रहा हूं.’’ वे बीच में ही सिंदूरी की बात काटते हुए बोले, ‘‘तुम किडनैपर्स गैंग से बोल रही हो न? मेरा जवाब अभी भी वही है जो पहले था. आप लोग मेरा व अपना समय बरबाद न करें,’’ कहते हुए शांतिलाल ने गुस्से में फोन काट दिया.

‘‘अब क्या करें? इन पर तो कोई असर नहीं हो रहा,’’ लालिमा बोली.

‘‘अब तो हमें रुधिर से संपर्क करना ही पड़ेगा. वह ही बता सकता है आगे क्या करना है, ‘‘सिंदूरी ने कहा.

‘‘शायद रुधिर लैंडलाइन फोन बंद न कर पाया हो और शांतिलालजी का फोन आने पर रामू अंकल ने रुधिर की उपस्थिति के बारे में बता दिया हो,’’ लालिमा ने आशंका व्यक्त की.

‘‘हां, हो सकता है. अगर ऐसा है तो हमें रुधिर से संपर्क स्थापित करना चाहिए,’’ सिंदूरी बोली.

‘‘ठीक है मैं रुधिर का मोबाइल लगाता हूं,’’ रक्ताभ रुधिर को फोन डायल करते हुए बोला, ‘‘अरे, इस का फोन तो स्विच औफ है.’’

‘‘मतलब, रुधिर को इस बारे में कुछ नहीं मालूम. हमें उसे बताना चाहिए,’’ सिंदूरी बोली.

‘‘मगर बताएं कैसे?’’ रक्ताभ बोला.

‘‘चलो, अभी तुम्हारी बाइक से चलते हैं,’’ सिंदूरी बोली.

‘‘नहीं, अभी नहीं जा सकते क्योंकि वह इलाका सुनसान है और अकसर वहां लूटडकैती की वारदातें होती रहती हैं,’’ रक्ताभ ने बताया.

‘‘फिर क्या करें?’’ सिंदूरी नर्वस होती हुई बोली.

‘‘देखो, कल संडे है. मैं 9 साढ़े 9 बजे जा कर उस से मिल लूंगा. वहीं पर अगली रूपरेखा बना लेंगे,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने समर्थन किया.

‘‘हैलो लालिमा. तुरंत सिंदूरी को कौन्फ्रैंस कौल पर लो,’’ सुबह साढ़े 9 बजे रक्ताभ की घबराई हुई आवाज में फोन आया.

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ लालिमा सिंदूरी को कौन्फ्रैंस कौल पर लेती हुए बोली. ‘‘यह लो रक्ताभ, सिंदूरी भी आ गई.’’

‘‘क्या हुआ रक्ताभ? तुम्हारी आवाज घबराई हुई सी क्यों हैं?’’ सिंदूरी फोन पर जौइन करते हुए बोली.

‘‘अरे, मैं अभी रुधिर के फार्महाउस गया था. वहां पर सीन बहुत चौंकाने वाला था? रुधिर ने सुसाइड कर लिया है,’’ रक्ताभ घबराता हुआ बोला.

‘‘क्या? कैसे??’’ दोनों ने एकसाथ घबराई आवाज में पूछा.

‘‘ उस के एक हाथ में रिवौल्वर है और छाती पर गोली लगी है. शायद रिवौल्वर से खुद को बिस्तर पर लेटेलेटे गोली मार ली है,’’ रक्ताभ की आवाज अभी भी लड़खड़ा रही थी.

रुधिर की मौत की खबर सुन कर लालिमा और सिंदूरी दोनों रोने लगीं. रक्ताभ की आंखें भी भर आईं.

‘‘देखो, संभालो अपनेआप को. रुधिर के पापा को जब यह बात मालूम पड़ेगी तो वे पुलिस में अवश्य जाएंगे. तब आज नहीं तो कल, पुलिस हम तक पहुंचेगी जरूर. हमें अपने बचाव के लिए कुछ करना चाहिए,’’ रक्ताभ ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘क्या करें?’’ लालिमा ने पूछा.

‘‘तुम लोग पार्क में आओ. वहीं बैठ कर सोचते हैं कि हमें आगे क्या करना है. हम पर किडनैप करने का आरोप लगा तो हमारा कैरियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा. हम पर किडनैपर होने का ठप्पा लग जाएगा वह अलग,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘ठीक है, एक घंटे बाद पार्क में मिलते हैं,’’ सिंदूरी रोते हुए बोली.

लगभग एक घंटे बाद तीनों पार्क में इकट्ठे हुए. सिंदूरी बहुत गंभीर व उदास लग रही थी. लालिमा की आंखों में भी रोने के कारण लाल डोरे पड़े हुए थे.

‘‘कैसे हुआ रक्ताभ?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘पता नहीं,’’ रक्ताभ ने जवाब दिया.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि फोन आने पर रामू अंकल ने रुधिर के पापा को रुधिर के वहां होने की खबर दे दी हो और राज खुलने के डर से घरवालों की नजरों में गिरने से बचने के लिए फार्महाउस पर रखी हुई रिवौल्वर से खुद को शूट कर लिया हो,’’ रक्ताभ चिंतित होते हुए बोला.

‘‘एक बार पुलिस के हत्थे चढ़ना मतलब आगे की जिंदगी को परेशानियों में डालना,’’ लालिमा भी उसी तरह चिंतित होते हुए बोली.

‘‘अब क्या करें?’’ सिंदूरी ने पूछा.

‘‘मेरे विचार से हमें आगे हो कर पुलिस को सूचना देनी चाहिए. इस से पुलिस हमारी बात सुनेगी भी और विश्वास करेगी भी. हमारी बातों की सचाई जानने के लिए वह सिम बेचने वाले शौपकीपर के पास भी जा सकती है जो हमारी बा?तों को सच साबित करेगा. बाद में तो हमारी बात कोई ठीक से सुनेगा भी नहीं,’’ रक्ताभ ने कहा.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’ लालिमा ने भी समर्थन किया.

‘‘जैसा तुम को उचित लगे,’’ सिंदूरी घबराए हुए निराश स्वर में बोली.

‘‘रुधिर के पिताजी के जाने के बाद अंदर चलेंगे ताकि हम अपनी बात अच्छे से रख सकें,’’ रक्ताभ ने सुझाया.

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. अभी उन्हें अपने बेटे की मौत का गम और गुस्सा दोनों होगा. पता नहीं हमारे साथ क्या कर बैठें,’’ लालिमा बोली.

‘‘ठीक है, हम उन के जाने के बाद अंदर चलेंगे,’’ रक्ताभ ने समर्थन किया. लगभग 15 मिनट के बाद रुधिर के पिताजी बाहर आ गए.

‘‘सर, हम एक घटना की सूचना देने आए हैं,’’ रक्ताभ, लालिमा और सिंदूरी थाना इंचार्ज के सामने खड़े हो कर कह रहे थे.

‘‘पहले आराम से बैठो. घबराओ मत और बताओ किस घटना की सूचना देना चाहते हो,’’ थाना इंचार्ज ने तीनों को बैठने का इशारा करते हुए कहा.

‘‘सर, हमारे मित्र रुधिर ने आत्महत्या कर ली है,’’ रक्ताभ ने साहस बटोर कर कहा.

‘‘क्या कहा रुधिर? सेठ शांतिलाल का बेटा?’’ थाना इंचार्ज ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, वही,’’ सिंदूरी ने कहा.

‘‘परंतु सेठ शांतिलाल ने तो रिपोर्ट लिखवाई है कि उन का बेटा रुधिर आज सुबह से उन की रिवौल्वर के साथ गायब है,’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

‘‘नहीं सर, आज सुबह से नहीं, रुधिर तो कल से ही गायब है,’’ कहते हुए रक्ताभ ने रुधिर के अपहरण की पूरी कहानी बयान कर दी.

‘‘ओह, तो ऐसा है,’’ थाना इंचार्ज ने कहा. ‘‘तुम्हारे अलावा इस योजना के बारे में और कौनकौन जानता था.’’

‘‘कोई भी नहीं. अगर फार्महाउस जाने के बाद रुधिर ने रामू अंकल को यह बात बताई हो, तो पता नहीं,’’ रक्ताभ बोला.

‘‘एक बात और समझ में नहीं आई. तुम्हारे हिसाब से अपहरण कल सुबह ही हो गया था. और तुम ने इस विषय में शांतिलाल को फोन भी कर दिया था. लेकिन उस ने तुम्हारे फोन को तवज्जुह नहीं दी?’’ पुलिस अफसर ने रक्ताभ से पूछा.

‘‘यस सर,’’ रक्ताभ ने सहमति दी.

‘‘इस का मतलब तो एक ही निकलता है कि जिस समय तुम ने फोन किया उस समय तक रुधिर वापस घर पहुंच चुका था. तुम्हारा प्लान फेल हो चुका था. शायद इसी शर्मिंदगी में रुधिर ने सुबह वापस फार्महाउस जा कर आत्महत्या कर ली,’’ पुलिस अफसर ने अनुमान लगाया.

‘‘हो सकता है. परंतु रुधिर को कम से कम हमें सूचित तो करना चाहिए था,’’ रक्ताभ कुछ सहमते हुए बोला.

‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मुझे पूरा विश्वास है रुधिर के साथ कुछ गलत जरूर हुआ है.’’ सिंदूरी रुधिर पर विश्वास जताते हुए बोली.

‘‘पहले घटनास्थल पर जा कर मौके का मुआयना करते हैं. शायद कुछ निकल कर आए. आप तीनों को भी साथ चलना पड़ेगा,’’ थाना इंचार्ज ने कहा.

तीनों पुलिस वालों के साथ फार्महाउस पहुंच गए.

‘‘आप डेडबौडी की स्टडी कीजिए और अपने थौट्स के बारे में मुझे बताइए,’’ पुलिस अफसर ने फोरैंसिक ऐक्सपर्ट को निर्देश दिए.

‘‘सर, यह सुसाइड का केस है ही नहीं, यह तो सीधेसीधे मर्डर का केस है,’’ अपनी प्रारंभिक जांच के बाद ऐक्सपर्ट ने कहा.

‘‘क्या?’’ सभी आश्चर्य से बोल पड़े.

‘‘आप कैसे कह सकते हैं कि यह मर्डर है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि रिवौल्वर पर जिस प्रैशर से फिंगरप्रिंट बनने चाहिए थे उतने प्रैशर से फिंगरप्रिंट बने नहीं हैं. दूसरा, रिवौल्वर चलने के बाद गन पाउडर का कुछ अंश चलाने वाले की कलाइयों पर आ जाता है जो नहीं है. ऐसा लगता है गहरी नींद में सोते हुए रुधिर पर किसी ने बहुत पास से दिल पर गोली मारी है और आत्महत्या दर्शाने के लिए रिवौल्वर हाथ में पकड़ा दी है. इसी कारण रिवौल्वर पर फिंगर एक्सप्रैशन प्रौपर नहीं आ पाए हैं,’’ एक्सपर्ट ने अपनी राय दी.

‘‘ओह, यह तो केस का डायरैक्शन ही चेंज हो गया. मतलब इस केस के बारे में और किसी को भी मालूम था. और उस ने फिरौती न मिलने की दशा में रुधिर को मार डाला. दूसरा एंगल यह है कि चौकीदार रामू ही रुधिर का कातिल हो सकता है. क्योंकि कायदे से तो सब से पहले सूचना उसी को देनी चाहिए थी मगर वह घटना के बाद से ही फरार है,’’ इंस्पैक्टर ने अपना शक जाहिर करते हुए कहा.

‘‘किंतु सर, रामू अंकल तो अनपढ़ हैं उन्हें तो लैंडलाइन से फोन करना तक नहीं आता. वे गोली इतनी सही नहीं चला सकते,’’ सिंदूरी ने कहा क्योंकि वह 2-3 बार रुधिर के साथ फार्महाउस आ चुकी थी.

‘‘तीसरा एंगल यह बनता है कि तुम तीनों में से ही किसी ने उस की हत्या की हो और पुलिस की जांच को भटकाने के लिए खुद पहले आ कर शिकायत कर दी ताकि तुम पर शक न हो,’’ इंस्पैक्टर तीनों पर पैनी नजर डालता हुआ बोला, ‘‘पुलिस तुम तीनों को अरैस्ट करती है.’’

‘‘सर, हम ने तो कुछ किया ही नहीं. हमें घर जाने दीजिए, प्लीज सर,’’ घबराते हुए लालिमा बोली.

‘‘जांच पूरी होने तक थाने का लौकअप ही तुम्हारा घर रहेगा. कौंस्टेबल, सेठ शांतिलाल को फोन कर के यही बुलवा लो. बता दो उन की रिवौल्वर मिल गई है,’’ इंस्पैक्टर ने आदेश दिया.

‘‘यस सर,’’ कौंस्टेबल बोला.

कुछ ही देर में सेठ शांतिलाल अपनी कार से वहां पहुंच गए.

‘‘कहां है रिवौल्वर और कहां है रुधिर? फार्महाउस में घुसते ही शांतिलाल ने प्रश्न किया.

‘‘बैडरूम में हैं दोनों. आप के लड़के ने उस रिवौल्वर से खुद को गोली मार ली है,’’ पुलिस अफसर ने बताया.

‘‘ओह,’’ शांतिलाल ने अफसोस वाले स्वर में कहा.

‘‘एक बात समझ में नहीं आ रही है शांतिलालजी. इन तीनों बच्चों का कहना है कि इन्होंने रुधिर के साथ मिल कर उस के अपहरण की साजिश रची और जब इन्होंने फिरौती के लिए आप को फोन किया तो आप ने ऐसा कुछ रिस्पौंस नहीं दिया जिस से लगे कि आप को कोई शौक लगा है,’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘क्योंकि मैं इन के अपहरण प्लान के बारे में पहले से ही जानता था,’’ सेठ शांतिलाल ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘इन लोगों की योजना के अनुसार जब रुधिर पहले दिन गैराज में छिपा, उस समय मैं बंगले की छत पर ही था और मैं ने उसे गैराज में जाते हुए देख लिया था. मैं ने सोचा, शायद कुछ सामान लेने के लिए गया है. परंतु जब वह लंबे समय तक बाहर नहीं आया तो मैं ने अपने ड्राइवर को उस की निगरानी के लिए रख दिया. मैं यह भी जानता था कि रुधिर ने मेरे फर्म के नाम पर कुछ सिमें निकलवाई हैं. मुझे यह भी पता था कि रुधिर फार्महाउस पर ही छिपा हुआ है. बच्चे हैं, गलतियां कर रहे हैं, आज नहीं तो कल इन लोगों की समझ में आ जाएगी. यही सोच कर मैं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अगर मैं पुलिस में रिपोर्ट करूंगा तो इन का भविष्य बरबाद हो जाएगा. यही सब सोच कर मैं ने शिकायत नहीं की.’’

‘‘मतलब कल रात को रुधिर घर पर आ गया था?’’ इंस्पैक्टर ने प्रश्न किया.

‘‘जी नहीं, उसे तो पता ही नहीं कि उस का प्लान लीक हो गया था,’’ शांतिलाल ने उसी धारा प्रवाह में उत्तर दिया.

‘‘तो फिर रिवौल्वर आज सुबह बंगले से कैसे गायब हुई? उसे तो कल ही रुधिर के साथ गायब हो जाना चाहिए था,’’ अफसर ने कहा.

‘‘जी, जी वो शायद मैं ने कल ध्यान से कबर्ड देखा नहीं था. शायद वह कल ही अपने साथ ले आया हो,’’ शांतिलाल ने भरपूर आत्मविश्वास के बीच अपनी घबराहट छिपाते हुए कहा.

‘‘आश्चर्य है इतनी बड़ी गलती आप कैसे कर सकते हैं. ऐसी गलती करने पर सरकार आप का लाइसैंस रद्द तक कर सकती है,’’ इंस्पैक्टर ने चेताया.

‘‘मैं ने रिवौल्वर रख कर ही गलती कर दी, साहब. अगर यह रिवौल्वर नहीं होती तो रुधिर आत्महत्या नहीं करता,’’ शांतिलाल अफसोस जाहिर करते हुए बोले.

‘‘सरकार, माईबाप, यह आत्महत्या नहीं हत्या है और सेठजी ने ही रुधिर बाबा की…’’ एक अजनबी घटनास्थल पर प्रवेश करता हुआ बोला.

‘‘तुम कौन हो?’’ इंस्पैक्टर ने कड़क आवाज में पूछा.

‘‘सर, यही हैं यहां के चौकीदार रामू अंकल,’’ रक्ताभ ने बताया.

‘‘कैसे चौकीदार हो तुम? यहां पर इतनी बड़ी घटना हो गई और तुम्हारे पतेठिकाने ही नहीं हैं. जानते हो, इस घटना की सब से पहली सूचना तुम्हें ही पुलिस को देनी चाहिए थी,’’ इंस्पैक्टर रामू को डपटते हुए बोला. ‘‘तुम इतनी आसानी से कैसे कह सकते हो कि खून सेठ शांतिलाल ने ही किया है?’’

‘‘सरकार, मैं ठहरा अनपढ़गंवार. मुझे नहीं पता किसे सूचना देनी चाहिए,’’ रामू मिमियाता हुआ बोला, ‘‘पर आप एक बार मेरी बात ध्यान से सुन लीजिए.’’

‘‘अच्छा, बताओ क्या जानते हो इस घटना के बारे में?’’ इंस्पैक्टर कुछ नरम पड़ कर बोला.

‘‘सरकार, कल सुबह रुधिर बाबा अचानक आ गए. आते ही उन्होंने मुझे चाय बनाने को कहा. मैं किचन में चाय बनाने चला गया. जब मैं वापस लौटा तो उन्होंने मुझे बताया कि वे सेठजी से नाराज हो कर यहां आ गए हैं. लेकिन मैं सेठजी को यह बात किसी कीमत पर न बताऊं कि वे यहां पर हैं. उन्होंने मुझे यह भी बताया कि बाहर से कोई फोन न आ सके, इसलिए उन्होंने फोन खराब कर दिया है. एकदो दिनों में जब सेठजी का गुस्सा शांत होगा तब वे घर वापस चले जाएंगे. शाम को सेठजी का ड्राइवर आया और बोला कि सुबह साढ़े 6 बजे तक आवश्यक सफाई के लिए बंगले पर बुलवाया है. मैं अकसर तीजत्योहार पर बंगले की सफाई करने जाता ही हूं.

‘‘शाम को खाने में रुधिर बाबा ने चिकन बनाने की फरमाइश रखी. इसी कारण खाना बनाने और सफाई करने में काफी देर हो गई. देर से सोने के कारण नींद भी सुबह देर से खुली. जागा, तब तक साढ़े 7 बज चुके थे. रुधिर बाबा अभी सो ही रहे थे. मैं ने सोचा दिशामैदान कर आता हूं, उस के बाद बाबा को चायनाश्ता करवा कर चला जाऊंगा.

‘‘मैं कुछ दूर झाडि़यों में बैठा ही था कि मैं ने देखा सेठजी खुद कार चला कर फार्महाउस आ गए हैं. मैं ने सोचा शायद मुझे लेने आए हैं. लगभग 5 मिनट के बाद मैं ने देखा कि सेठजी वापस जा रहे हैं. मुझे फार्महाउस में न पा कर शायद सेठजी ने सोचा होगा कि मैं सफाई के लिए पहले ही निकल चुका हूं. मैं जल्दी से फार्महाउस पहुंचा तो देखा कि रुधिर बाबा के सीने में गोली लगी है और हाथ में पिस्तौल है.

‘‘मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैं साइकिल उठा कर सेठजी के घर निकल पड़ा. मैं तकरीबन 11 बजे सेठजी के घर पहुंच गया. लेकिन तब तक सेठजी वहां से निकल पड़े थे. मेरे पूछने पर सेठानीजी ने बताया कि उन की पिस्तौल चोरी हो गई

है और वे इस की सूचना देने के लिए थाने गए हैं.

‘‘तब मैं ने सेठानीजी को फार्महाउस की पूरी घटना की जानकारी दे दी. रुधिर बाबा की मौत की खबर सुन कर वे बेहोश हो गईं. पानी के छींटे डालने और होश में आने पर काफी समझाने के बाद वे सामान्य हुईं. उन्होंने ही मुझे पुलिस को सूचित करने को बोला.

‘‘थाने पहुंचने पर पता चला कि आप लोग फार्महाउस पहुंच चुके हैं. साइकिल से लगभग 2 घंटे बाद यहां पहुंच सका हूं,’’ रामू ने अपने बयान में बताया.

‘‘क्यों शांतिलालजी, रामू ठीक कह रहा है?’’ इस के बयानों की तसदीक आप के ड्राइवर से करवाई जाए?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘नहीं, रामू सही कह रहा है. मैं ने ही रुधिर की हत्या की है,’’ सेठ शांतिलाल ने अपने जुर्म का इकबाल किया.

वहां खड़े रक्ताभ, लालिमा और सिंदूरी को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो उन्होंने चुना वह ठीक था या नहीं, वे चुपचाप हैरानी से सब देखते रहे.

‘‘तुम ने अपने बेटे का खून क्यों किया?’’ इंस्पैक्टर ने हैरत से पूछा.

‘‘क्योंकि रुधिर मेरा बेटा है ही नहीं,’’ शांतिलाल ने खुलासा किया.

‘‘आप का बेटा नहीं है रुधिर, तो फिर किस का बेटा है?’’ आप को कैसे पता चला रुधिर आप का अपना बेटा नहीं है?’’ इंस्पैक्टर ने पूछा.

‘‘पता नहीं रुधिर किस का बेटा है. सौभाग्यवती से शादी से पूर्व ही मैं जानता था कि मैं सौभाग्यवती को दुनिया का हर सुख दे सकता हूं सिवा मातृत्व सुख के. मैं ने सोचा था अगर सौभाग्यवती अनुरोध करेगी तो किसी वैज्ञानिक पद्धति से या अनाथालय से बच्चा गोद ले कर वह कमी पूरी कर लेंगे. किंतु सौभाग्यवती ने मुझे बताए बिना यह गलत कदम उठा लिया.

‘‘मैं  ने रुधिर को कभी भी अपना खून नहीं समझा, सिर्फ सौभाग्यवती की खुशी की खातिर उसे मैं अपने साथ रखे हुए था. मुझे उस पर कभी भी विश्वास नहीं था. इसी कारण मैं उसे सिर्फ जरूरत के अनुसार ही आवश्यक सुविधाएं दिया करता था. मेरी धारणा थी कि मेरी दौलत पाने के लिए रुधिर किसी भी स्तर पर गिर सकता है. खुद के अपहरण की इस साजिश ने मेरी इस धारणा को और पक्का कर दिया. इसी कारण अपनेआप को भविष्य में सुरक्षित रखने के दृष्टिकोण से मैं ने यह योजना बनाई. काश, मुझे पता चल पाता कि रुधिर का पिता कौन है,’’ सेठ शांतिलाल स्वीकारोक्ति करते हुए बोला.

‘‘मैं हूं उस का पिता,’’ नजरें झुका आगे आ कर रामू बोला. लगभग 20 साल पहले फार्महाउस पर आप की अनुपस्थिति में मैं सेठानीजी के आग्रह को ठुकरा न सका. वह पहला और आखिरी मिलाप था हमारा. आज जब सेठानीजी को फार्महाउस की घटना बतलाई तो उन्होंने यह राज की बात मुझे बताई. एक तरफ नमक का कर्ज था तो दूसरी तरफ पिता होने का फर्ज. आखिरकार पिता ने अपना आखिरी व एकमात्र कर्तव्य पूरा किया.’’

‘‘चलिए, सेठ शांतिलालजी, गुनाहगार का फैसला अदालत ही करेगी,’’ इंस्पैक्टर असली गुनाहगार को अपने साथ ले जाते हुए बोले.

रक्ताभ, लालिमा, सिंदूरी के होंठ जैसे किसी ने सी दिए हों. मन ही मन तीनों अपनी नादानी पर पछता रहे थे जिस की वजह से उन्होंने अपना प्यारा दोस्त हमेशा के लिए खो दिया था.

Short HIndi Story : कठपुतली बन गई सुखिया

Short HIndi Story : सुरेंद्र सुखिया की जवानी पर फिदा था. उस के भरे उभारों, मांसल जिस्म और तीखे नैननक्श को देख कर दूसरे लोगों की तरह ही कई बार सुरेंद्र की नीयत भी बिगड़ गई थी. पिछले दिनों सुखिया के पति की ट्रक की टक्कर से मौत हो गई थी. जमींदार के बिगड़े बेटे सुरेंद्र के लिए तो यह सोने पे सुहागा हो गया था, इसलिए कई बार वह सुखिया से अपने दिल की बात कह चुका था.

इस बीच सुखिया लोगों के घर बरतन मांज कर कुछ पैसे कमा लेती थी. एक वकील ने उस से मिल कर उस के पति के बीमे के पैसे के लिए उसे तैयार किया और केस लगा दिया था.

एक दिन सुरेंद्र ने सुखिया से कहा, ‘‘तू कोर्टकचहरी के चक्कर में कहां पड़ी है. जितना तुझे बीमा से मिलेगा, उस से दोगुना मैं तुझे देता हूं. बस, तू एक बार राजी हो जा.’’

सुखिया उस की बात को अनसुना कर देती. सुखिया की गरीबी और जवानी का हर कोई फायदा उठाना चाहता था, इसलिए एक दिन वकील ने कहा, ‘‘सुखिया, तेरा केस लड़तेलड़ते मैं थक गया हूं. अब एक दिन घर आ जा, तो थकान मिट जाए.’’

सुखिया एक दिन कचहरी आ रही थी, तभी उस का केस देखने वाला जज सामने टकरा गया और बोला, ‘‘सुखिया, तेरा केस तो एक ही बार में खत्म कर दूंगा और पैसा भी बहुत दिलवा दूंगा. बस, तू मुझ से मिलने आ जा.’’

लेकिन सुखिया किसी की बात पर कोई ध्यान नहीं देती. बस, अपने चेहरे पर दिलफेंक मुसकराहट ला देती. आखिरकार जज साहब ने 2 लाख रुपए के मुआवजे का फैसला ले लिया. जज और वकील की मिलीभगत थी, इसलिए और्डर की कौपी वकील ने ले ली और हिसाब पूरा करने के बाद उसे सुखिया को देने के लिए राजी हो गया.

कचहरी में चैक बनाने वाले बाबू ने जब सुखिया को देखा, तो उस का भी ईमान डोल गया. वह सुखिया को चैक देने के बहाने बुलाने लगा और सामने बैठा कर उस के उभारों पर नजर गड़ाए रखता.

एक दिन बाबू ने कहा, ‘‘तेरी फाइल और चैक के ऊपर सभी के दस्तखत होंगे, तभी मिलेगा.’’ सुखिया ने परेशान हो कर कहा, ‘‘बाबू, कुछ पैसा चाहिए तो ले लो, क्यों रोजरोज परेशान करते हो?’’

इस पर बाबू उसे अपनी बातों में बहला लेता था. एक दिन जब सुखिया आई, तब बाबू ने कहा, ‘‘मैं फाइल और चैक तैयार रखूंगा. तुम आ जाना, फिर वहीं सब के दस्तखत करा कर चैक दे देंगे.’’ सुखिया इस के लिए तैयार हो गई.

यह खबर जब दारोगा को मिली, तो वह भी इस में शामिल हो गया. इस से यह डर भी खत्म हो गया कि अगर सुखिया ने कहीं शिकायत वगैरह की, तो कुछ नहीं होगा. बाबू की पत्नी मायके गई थी, इसलिए सुखिया को उसी के कमरे में बुलाया.

सुखिया ने वहां पहुंच कर परेशान होते हुए कहा, ‘‘अब तो चैक पर दस्तखत कर के दे दो, क्यों इतना परेशान कर रहे हो?’’ कचहरी के बाबू ने कुटिल हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘सुखिया, ऐसी भी क्या जल्दी है, थोड़ा रुको तो.’’

इधर सुखिया कसमसाती रही, उधर फाइलचैक पर दस्तखत होते रहे.

Online Hindi Story : निसंतान मां की जुड़वां बेटियां

Online Hindi Story : बनारस के पक्का महल इलाके के इस घर में टिया और रिया के रोने की आवाजें सुनसुन कर आसपास के लोगों को भी चैन नहीं आ रहा था. यह समय भी तो ऐसा ही था. महामारी ने लोगों को मजबूर कर दिया था. वे चाह कर भी इन 8 साल की जुड़वां बहनों को गले लगा कर चुप नहीं करवा पा रहे थे. कोरोना देखते ही देखते इन बच्चियों का सबकुछ छीन ले गया था. दादादादी रामशरण और सुमन और टिया व रिया के मम्मीपापा सब एकएक कर के कोरोना के शिकार होते गए थे. अब ये बच्चियां हर तरफ से अकेली थीं. कोई नहीं था जो इन के सिर पर हाथ रखता. पड़ोसी सावधानी बरतते हुए किसी तरह खाने के लिए कुछ दे जाते. शाम होतेहोते बच्चियां डर कर ऐसे रोतीं कि सुनने वालों के दिल दहलते.

इन घरों की बनावट किसी बंद किले से कम न थी. घर का मुख्य दरवाजा बंद होते ही बाहर की दुनिया जैसे कट जाती. बस, घर में काम करने वाली दया कोरोना के माहौल की परवा न करते हुए इन बच्चियों के पास ही रुक गई थी. सो, दोनों को घर में एक इंसान तो दिख रहा था. इस गली में सभी घर बाहर से एकदम बंद से दिखते.

यह भी बहुत पुराना बना मकान था. सब से नीचे ग्राउंडफ्लोर पर दया के लिए एक छोटा सा कमरा और वाशरूम था. दया यहां सालों से थीं. पुराने सामान से भरा एक स्टोर था. घर का बड़ा सा दरवाजा बंद ही रहता. उसे खोलने के लिए एक बड़ी सी चेन कुछ इस तरह से बंधी रहती कि उसे खींच कर ऊपर से भी दरवाजा खोला जा सके. पहले ऊपर से देख लिया जाता कि कौन है, फिर दरवाजा खोला जाता. सुरक्षा की दृष्टि से तो घर पूरी तरह सेफ था पर अकेला घर अब अजीब से सन्नाटे में घिरा रहता. बच्चियों को तो क्या कहा जाए, खुद दया का दिल इस सन्नाटे पर हौलता सा रहता.

पहली मंजिल पर रामशरण और सुमन का बड़ा सा बैडरूम था जिस में सब सुविधाएं थीं. दूसरी मंजिल पर एक बैडरूम संजय और मधु का था और एक कमरा बच्चियों का था. किचन पहली मंजिल पर ही था. जहां टिया और रिया सारे दिन ऊपरनीचे दौड़ा करतीं थीं वहां अब पूरा दिन, बस, दया के आगेपीछे रोतींसिसकतींघूमतीं और फिर थक कर अपने कमरे में जा कर चुपचाप लेटी रहतीं.

अपने अंतिम दिनों में जब मधु को एहसास हुआ कि वे भी नहीं बचेंगीं तो उन्होंने लखनऊ में रहने वाले अपने भाई अनिल को फोन कर के कहा था, ‘अनिल, बड़ी मुश्किल से तुम से बात कर रही हूं. सुनो, हमारे बाद टिया और रिया का ध्यान रखोगे न? उन के बारे में सोचसोच कर किसी पल चैन नहीं आ रहा है, मेरी बच्चियां…’ यह कहतेकहते मधु फूटफूट कर रो पड़ी थीं. अनिल ने कहा था, ‘दीदी, आप बस ठीक हो जाओ, सब ठीक होगा, चिंता न करो, मैं हूं न. सब संभाल लूंगा.’

टिया व रिया का परिवार एक बार जो हौस्पिटल गया, लौटा ही नहीं था. कुछ पड़ोसियों ने अनिल को फोन किया. सब परेशान थे कि इन बच्चियों का होगा क्या. सभी उन की दूरदूर से देखभाल कर रहे थे, पर कितने दिन. अनिल कुछ दिन बाद ही बनारस आया. बच्चियों की हालत देख कर हैरान रह गया. एकदम फूल सी खिली रहने वाली बच्चियां मुरझा सी गई थीं. उस से लिपटलिपट कर दोनों खूब रोईं, “मामा, अब मत जाना कहीं, हमारे साथ ही रहना.”

दया ही खाना बना कर दोनों को खिलाती, जो हो सकता, उन के लिए करती. पर उस की भी एक सीमा थी न. अनिल के सामने हाथ जोड़ कर कहने लगी, “भैया जी, बच्चियों का क्या होगा? आप इन्हें अपने साथ ले जाएंगे? मैं भी कब तक यहां रहूंगी?”

“क्यों, क्यों नहीं रह सकती? देखता हूं कि दीदी की अलमारी में कुछ पैसे रखे हों तो कुछ ले लो, और रहो बच्चियों के साथ, तुम्हारा कौन सा घरपरिवार है.”

अनिल ने टिया को पुचकारा, “बेटा, मम्मी की अलमारी की चाबी है न?”

“मामा, दया मौसी के ही पास है.”

अनिल ने दया की तरफ घूर कर देखा तो उस ने कहा, “जिस दिन संजय भैया नहीं रहे, उसी दिन मधु दीदी को शायद अपने जाने की आशंका भी हो गई थी. उन्होंने मुझे चाबी रेखा दीदी के यहां जा कर देने के लिए कहा था पर मैं बच्चियों को छोड़ कर निकल ही नहीं पाई. फिर वे आती भी हैं तो मैं ही भूल जाती हूं चाबी उन्हें देना.”

“कौन रेखा?”

“संजय भैया के साथ उन के औफिस में काम करती हैं. इसी गली में आगे जा कर रहती हैं. इस समय बच्चियों के पास, बस, वही आतीजाती हैं.”

“लाओ, चाबी मुझे दो.”

दया उसे चाबी देना तो नहीं चाह रही थी पर मजबूर थी, दे दी. अनिल ने मधु की अलमारी खोली, उस में रखे रुपयों में से कुछ दया को देते हुए कहा, “ये रख लो, बच्चों की देखभाल तुम्हें करनी है.”

“पर मैं कब तक करूंगी? आप इन्हें अपने साथ ले जाते, तो अच्छा होता.”

“नहीं, मैं नहीं ले जा पाऊंगा.”

टिया और रिया यह सुन कर रोने लगीं. अनिल ने मधु की अलमारी से काफीकुछ निकाल कर अपने बैग में रखते हुए कहा, “मैं जल्दी ही वापस आऊंगा, अभी मुझे जाना होगा.”

बच्चियां रोती रह गईं. उन के मामा को उन से कोई स्नेह न था. झूठे दिलासे दे कर वह चला गया. रेखा एक उदार महिला थीं, संजय के औफिस में ही काम करती थीं. संजय और मधु उन्हें घर का सदस्य ही मानते थे. मधु से उन की अच्छी दोस्ती थी. अगले दिन रेखा टिया और रिया से मिलने आईं, तो उन के लिए काफी चीजें बना कर लाईं थीं. दोनों को उन्होंने अपने सीने से लगा लिया और रोने लगीं. बड़ा नरम दिल था उन का. दोनों के बारे में सोचसोच कर उन्हें चैन न आता, क्या होगा इन का? दया स्थायी रूप से तो इन के साथ नहीं रह पाएगी, यह वे जानती थीं. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. दया ने अनिल के बारे में बताया तो रेखा हैरान रह गईं. अलमारी खोल कर देखा तो नाम की धनराशि छोड़ अनिल सब ले गया था. उन का मन वितृष्णा से भर गया. इस स्थिति में भी जो इंसान बेईमानी से काम ले, लूटपाट कर जाए, वह इंसान है भी क्या? रात को वे टिया और रिया के सोने के बाद ही घर गईं.

दया को इस बार रेखा बहुतकुछ समझा कर गईं. यह समय किसी पर भी विश्वास करने का नहीं था. बच्चियों के भविष्य की चिंता करते हुए उन्होंने उसी महल्ले में रहने वाले वकील जयदेव को अगले दिन ही फोन किया और बहुत देर तक उन से इस बारे में बातें करती रहीं.

2 दिनों बाद ही जौनपुर में रहने वाली, टिया रिया की बूआ, नीना आ कर रोनेकलपने लगीं, “हाय, अभागिन बच्चियां, सब चला गएन, हमार अम्मा, बाबूजी, भैया, भौजी सब चला गएन, इंकर का होये…” सीने पर दोहत्थड़ मारमार कर रोने का ऐसा नाटक किया कि बच्चियां डर कर ही रोने लगीं. दया ने कहा, “दीदी, अपने को संभालो, बच्चियां परेशान हो रही हैं.”

नहाधो कर खूब डट कर खाने के बाद नीना आराम से गहरी नींद सो गई, तो दया ने रेखा को उन के आने के बारे में बता दिया. रेखा ने जो सोचा था, उस की तैयारी करने लगीं. नीना सो कर उठी, तो पहली मंजिल पर स्थित रामशरण और सुमन के कमरे में जाने लगी जो उन की मृत्यु के बाद अकसर बंद ही रहता था. दया उस के पीछेपीछे जाने लगी तो नीना ने रुखाई से कहा, “तू आपन काम करा, हमरे पीछे काहे आवत आहा? अपने अम्माबाबूजी के कमरा मा का हम दुई मिनट बैठियू नाही सकित?”

दया बाहर चली गई पर उस ने खिड़की की झिर्री से देखा, नीना जल्दीजल्दी दिवंगत मातापिता की अलमारी खंगाल रही है. दया ने जल्दी से रेखा को फोन किया. रेखा ने जयदेव को फोन कर के बात की और थोड़ी ही देर में बच्चियों के पास पहुंच गईं. नीना अभी तक अपने मातापिता की एकएक चीज खंगालने में लगी हुई थी. दया ने जा कर उन्हें बताया, “दीदी, रेखा दीदी आईं हैं.”

नीना पहले भी आनेजाने पर रेखा से मिल चुकी थी. आतेजाते उन से जितनी भी बातें हुई थीं, रेखा से मन ही मन थोड़ा दूरी सी ही रखी थी. रेखा को देख कर जोरजोर से रोने लगी, “हाय, हम अनाथ हो गए, सब चला गएन.” रेखा ने मन ही मन इस नाटक की सराहना की और कहा, “जो हो गया, लौटाया नहीं जा सकता. अब तो बच्चियों के भविष्य की चिंता करनी है.”

जयदेव भी आ गए थे. रेखा ने जयदेव की सलाह पर अपने 2 अच्छे पड़ोसियों को पूरी बात बता कर आने के लिए कह दिया था. वे भी समय से पहुंच गए थे. दया सब के लिए चाय बनाने चली गई. रेखा ने कहा, “दीदी, आप बच्चियों को अपने साथ ले जाएंगी? आजकल तो औनलाइन क्लासेस चल रही हैं, कैसे कर पाएंगी टिया और रिया अपनी पढ़ाई. अभी भी सब छूट रहा है दोनों का. मैं ने इन की टीचर से बात तो की है पर इन्हें एक परिवार चाहिए. दया सबकुछ तो नहीं कर पाएगी न.”

“न, न, बड़ी मुश्किल अहै हमरे साथे, हम बहुत बीमार रहित हा, हम इनकर देखभाल न कय पाउब.”

रेखा ने एक नजर उन के हृष्टपुष्ट शरीर पर डाली और पूछ लिया, “दीदी, क्या हुआ आप को? संजय और मधु ने तो मुझे कभी बताया नहीं कि आप की तबीयत खराब रहती है.‘’

कुछ हुआ हो तो नीना बताती, बात बदल दी, “अउर सोचा कुछ, बच्चियन कहां रहिएं, यहां भी दया के साथ ही रह लें तो बुराई का अहै? धीरेधीरे सब सीख ही लैइहें, थोड़ी बड़ी होतीं तो हम अपने साथ ले जाती पर अभी तो इन्हें बहुत देखभाल की जरूरत है जो हम तो न कर पाउब, मधु के मायके वालों से पूछ लो.”

रेखा ने अनिल को फोन मिला लिया और वीडियोकौल पर उस से इस बारे में बात की. उस ने किसी भी तरह की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया जो जयदेव ने रिकौर्ड भी कर लिया. अब नीना थोड़ी उलझी, पूछा, “ई कौन है?”

“जयदेव जी हैं, वकील हैं, संजय के पडोसी भी हैं और इस मामले मैं बच्चियों के लिए क्या बेहतर होगा, यही बात करने हम अभी आए हैं.”

जयदेव ने गंभीर स्वर में कहना शुरू किया, “हमें पहले सारे सामान की सूची बनानी है जिस से बच्चियों का हक कोई मार न ले जाए. जो भी सामान घर में है, बच्चियों का हक है उस पर, आप लोगों में से कोई भी बच्चियों की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है तो मैं इस समय टिया और रिया से ही पूछ लेता हूं कि वे किस के साथ रहना चाहती हैं,” कह कर उन्होंने दया से कहा, “बच्चियों को बुला दो, दया बहन.”

बच्चियां सीधे आते ही आदतन रेखा से सट कर बैठ गईं. जयदेव ने पूछा, “बेटा, आप ही बताओ कि आप किस के साथ रहना चाहती हो? अकेले तो नहीं रह पाओगी न, बेटा.”

टिया और रिया ने एकदूसरे का मुंह देखा, झुक कर एकदूसरे के कान में कुछ कहा और रेखा से चिपट गईं, एक साथ बोलीं, “रेखा आंटी के साथ रहना है.”

रेखा ने भावविभोर हो कर दोनों को सीने से चिपटा लिया, आंसू बह निकले, “मेरी बच्चियां, हां, मेरे साथ रहेंगीं.”

नीना के चेहरे पर बला टलने वाले भाव आए और झेंपती हुई वह मुसकरा दी. पड़ोसी रोहित और सुधा ने भी उठ कर बच्चियों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, ”हां, रेखा आंटी के साथ रहना और हम भी हैं ही, तुम हमारा ही परिवार हो अब, बेटे.”

बच्चियां बहुत दिन बाद मुसकराई थीं. दया ने अपनी आंखें पोंछीं. जयदेव ने कहा, ”कानूनी प्रक्रिया तो मैं संभाल ही लूंगा, अब कोई चिंता नहीं. पहले जरा आज ही हम सारे सामान की एक एक लिस्ट बना लें,’’ फिर नीना की तरफ देखते हुए पूछ लिया, ”अभी आप ने किसी की अलमारी से कुछ लिया तो नहीं है न?”

”न, न, मैं तो अपने मांपिताजी की एकएक चीज उन की याद में देख रही थी. काफी सामान संभाल कर रखा है अम्मा ने. पता नहीं कितना सोनाचांदी रखा है अम्मा ने. कबहूं बताउबै नाही किहिन,’’ लालच से भरा स्वर सब को दुखी कर गया. यह समय ऐसा था कि सिर्फ बच्चियों के बारे में सोचा जाना चाहिए था पर बच्चियों के मामा और बूआ को घर में रखे रुपए पैसे और कीमती सामान में ज्यादा रुचि है. यह बात सब का दिल दुखा गई थी. वहीं, रेखा की निस्वार्थ दोस्ती और स्नेह से भरे दिल पर सब को गर्व हो आया.

जयदेव ने वहीँ बैठेबैठे अपना काम शुरू किया और रोहित व सुधा रेखा और दया के साथ मिल कर अब एकएक सामान एक फाइल में नोट करते जा रहे थे. बच्चियां दया से पूछ रही थीं, ”मौसी, यहां अब आप अकेली रहोगी?”

”नहीं, मैं भी गांव जाऊंगी, वहां मेरा घर है. जब भी तुम कहोगी, वापस आ जाऊंगी और बीचबीच में तुम से मिलने आती भी रहूंगी.”

”मौसी, अब रात को अकेला भी नहीं सोना पड़ेगा न हमें?”

”हां, मेरी बच्चियो, अब कोई डर की बात नहीं. हिम्मत रखना,” कह कर दया ने उन के सिर पर प्यारभरा हाथ रखा और दुखी, मासूम से चेहरे चूम लिए. टिया और रिया रेखा के पीछेपीछे घूम रही थीं. जीवनभर नन्हे हाथों के स्पर्श को तरसा मन जैसे नजरों ही नजरों में उन पर स्नेह लुटा रहा था. रेखा निसंतान थीं. पति की मृत्यु कुछ साल पहले हो गई थी. आज बच्चियों को अपने साथसाथ चलते देख, उन के मुसकराते चेहरे देख दिल को ऐसी ठंडक सी मिली थी जिसे वे किसी को भी समझा नहीं सकती थीं.

Romantic Story : क्या था रवि और सीमा का नायाब तरीका?

Romantic Story : जिस सुंदर, स्मार्ट महिला को मैं रहरह कर देखे जा रहा था, वह अचानक अपनी कुरसी से उठ कर मेरी तरफ मुसकराती हुई बढ़ी तो एअरकंडीशंड बैंकेट हौल में भी मुझे गरमी लगने लगी थी.

मेरे दोस्त विवेक के छोटे भाई की शादी की रिसैप्शन पार्टी में तब तक ज्यादा लोग नहीं पहुंचे थे. उस महिला का यों अचानक उठ कर मेरे पास आना सभी की नजरों में जरूर आया होगा.

‘‘मैं सीमा हूं, मिस्टर रवि,’’ मेरे नजदीक आ कर उस ने मुसकराते हुए अपना परिचय दिया. मैं उस के सम्मान में उठ खड़ा हुआ. फिर कुछ हैरान होते हुए पूछा, ‘‘आप मुझे जानती हैं?’’ ‘‘मेरी एक सहेली के पति आप की फैक्टरी में काम करते हैं. उन्होंने ही एक बार क्लब में आप के बारे में बताया था.’’

‘‘आप बैठिए, प्लीज.’’

‘‘आप की गरदन को अकड़ने से बचाने के लिए यह नेक काम तो मुझे करना ही पड़ेगा,’’ उस ने शिकायती नजरों से मेरी तरफ देखा पर साथ ही बड़े दिलकश अंदाज में मुसकराई भी.

‘‘आई एम सौरी, पर कोई आप को बारबार देखने से खुद को रोक भी तो नहीं सकता है, सीमाजी. मुझे नहीं लगता कि आज रात आप से ज्यादा सुंदर कोई महिला इस पार्टी में आएगी,’’ उस की मुसकराने की अदा ही कुछ ऐसी थी कि उस ने मुझे उस की तारीफ करने का हौसला दे दिया.

‘‘कुछ सैकंड की मुलाकात के बाद ही ऐसी झूठी तारीफ… बहुत कुशल शिकारी जान पड़ते हो, रवि साहब,’’ उस का तिरछी नजर से देखना मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा गया.

‘‘नहीं, मैं ने तो आज तक किसी चिडि़या का भी शिकार नहीं किया है.’’

वह हंसते हुए बोली, ‘‘इतने भोले लगते तो नहीं हो. क्या आप की शादी हो गई है?’’

‘‘हां, कुछ महीने पहले ही हुई है और तुम्हारे पूछने से पहले ही बता देता हूं कि मैं अपनी शादी से पूरी तरह संतुष्ट व खुश हूं.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस, रियली.’’

‘‘जिस को घर का खाना भर पेट मिलता हो, उस की आंखों में फिर भूख क्यों?’’ उस ने मेरी आंखों में गहराई से झांकते हुए पूछा.

‘‘कभीकभी दूसरे की थाली में रखा खाना ज्यादा स्वादिष्ठ प्रतीत हो तो इनसान की लार टपक सकती है,’’ मैं ने भी बिना शरमाए कहा.

‘‘इनसान को खराब आदतें नहीं डालनी चाहिए. कल को अपने घर का खाना अच्छा लगना बंद हो गया तो बहुत परेशानी में फंस जाओगे, रवि साहब.’’

‘‘बंदा संतुलन बना कर चलेगा, तुम फिक्र मत करो. बोलो, इजाजत है?’’

‘‘किस बात की?’’ उस ने माथे पर बल डाल लिए.

‘‘सामने आई थाली में सजे स्वादिष्ठ भोजन को जी भर कर देखने की? मुंह में पानी लाने वाली महक का आनंद लेने की?’’

‘‘जिस हिसाब से तुम्हारा लालच बढ़ रहा है, उस हिसाब से तो तुम जल्द ही खाना चखने की जिद जरूर करने लगोगे,’’ उस ने पहले अजीब सा मुंह बनाया और फिर खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘क्या तुम वैसा करने की इजाजत नहीं दोगी?’’ उस की देखादेखी मैं भी उस के साथ खुल कर फ्लर्ट करने लगा.

‘‘दे सकती हूं पर…’’ वह ठोड़ी पर उंगली रख कर सोचने का अभिनय करने लगी.

‘‘पर क्या?’’

‘‘चिडि़या को जाल में फंसाने का तुम्हारा स्टाइल मुझे जंच नहीं रहा है. मन पर भूख बहुत ज्यादा हावी हो जाए तो इनसान बढि़या भोजन का भी मजा नहीं ले पाता है.’’

‘‘तो मुझे सिखाओ न कि लजीज भोजन का आनंद कैसे लिया जाता है?’’ मैं ने अपनी आवाज को नशीला बनाने के साथसाथ अपना हाथ भी उस के हाथ पर रख दिया.

‘‘मेरे स्टूडैंट बनोगे?’’ उस की आंखों में शरारत भरी चमक उभरी.

‘‘बड़ी खुशी से, टीचर.’’

‘‘तो पहले एक छोटा सा इम्तिहान दो, जनाब. इसी वक्त कुछ ऐसा करो, जो मेरे दिल को गुदगुदा जाए.’’

‘‘आप बहुत आकर्षक और सैक्सी हैं,’’ मैं ने अपनी आवाज को रोमांटिक बना कर उस की तारीफ की.

‘‘कुछ कहना नहीं, बल्कि कुछ करना है, बुद्धू.’’

‘‘तुम्हें चूम लूं?’’ मैं ने शरारती अंदाज में पूछा.

‘‘मुझे बदनाम कराओगे? मेरा तमाशा बनाओगे?’’ वह नाराज हो उठी.

‘‘नहीं, सौरी.’’

‘‘जल्दी से कुछ सोचो, नहीं तो फेल कर दूंगी,’’ वह बड़ी अदा से बोली.

उस के दिल को गुदगुदाने के लिए मुझे एक ही काम सूझा. मैं ने अपना पैन  जेब से निकाल कर गिरा दिया और फिर उसे उठाने के बहाने झुक कर उस का हाथ चूम लिया.

‘‘मैं पास हुआ या फेल, टीचर?’’ सीधा होने के बाद जब मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर पूछा तो शर्म से उस के गोरे गाल गुलाबी हो उठे.

‘‘पास, और अब बोलो क्या इनाम चाहिए?’’ उस ने शोख अदा से पूछा.

‘‘अब इसी वक्त तुम कुछ ऐसा करो जिस से मेरा दिल गुदगुदा जाए.’’

‘‘मेरे लिए यह कोई मुश्किल काम नहीं है,’’ कह वह मेरा हाथ थाम डांस फ्लोर की तरफ चल पड़ी.

उस रूपसी के साथ चलते हुए मेरा मन खुश हो गया. उधर लोग हमें हैरानी भरी नजरों से देख रहे थे.

डांस फ्लोर पर कुछ युवक और बच्चे डीजे के तेज संगीत पर नाच रहे थे. सीमा ने बेहिचक डांस करना शुरू कर दिया. मेरा ध्यान नाचने में कम और उसे नाचते हुए देखने में ज्यादा था. क्या मस्त हो कर नाच रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उस के अंगअंग में बिजली भर गई हो. आंखें यों अधखुली सी थीं मानो कोई सुंदर सपना देखते हुए किसी और दुनिया में पहुंच गई हों.

करीब आधा घंटा नाचने के बाद हम वापस अपनी जगह आ बैठे. मैं खुद जा कर 2 कोल्डड्रिंक ले आया.

‘‘थैंक यू, रवि पर मेरा दिल कुछ और पीने को कह रहा है,’’ उस ने मुसकराते हुए कोल्डड्रिंक लेने से इनकार कर दिया.

‘‘फिर क्या लोगी?’’

‘‘ताजा, ठंडी हवा की मिठास के बारे में क्या खयाल है?’’

‘‘बड़ा नेक खयाल है. मैं ने कुछ दिन पहले ही घर में नया एसी. लगवाया है. वहीं चलें?’’

‘‘बच्चे, इस टीचर की एक सीख तो इसी वक्त गांठ बांध लो. जिस का दिल जीतना चाहते हो, उस के पहले अच्छे दोस्त बनो. उस के शौक, उस की इच्छाओं व खुशियों को जानो और उन्हें पूरा कराने में दिल से दिलचस्पी लो. अपने फायदे व मन की इच्छापूर्ति के लिए किसी करीबी इनसान का वस्तु की तरह से उपयोग करना गलत भी है और मूर्खतापूर्ण भी,’’ सीमा ने सख्त लहजे में मुझे समझाया तो मैं ने अपना चेहरा लटकाने का बड़ा शानदार अभिनय किया.

‘‘अब नौटंकी मत करो,’’ वह एकदम हंस पड़ी और फिर मेरा हाथ पकड़ कर उठती हुई बोली, ‘‘तुम्हारी कार में ठंडी हवा का आनंद लेने हम कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘वाह, तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे लौंग ड्राइव पर जाना बहुत पसंद है?’’ मैं ने बहुत खुश हो कर पूछा.

‘‘अरे, मुझे तो दूल्हादुलहन को सगुन भी देना है. तुम यहीं रुको, मैं अभी आया,’’ कह कर मैं स्टेज की तरफ चलने को हुआ तो उस ने मेरा बाजू थाम कर मुझे रोक लिया. बोली, ‘‘अभी चलो, खाना खाने को तो लौटना ही है. सगुन तब दे देना,’’ और फिर मुझे खींचती सी दरवाजे की तरफ ले चली.

‘‘और अगर नहीं लौट पाए तो?’’ मैं ने उस के हाथ को अर्थपूर्ण अंदाज में कस कर दबाते हुए पूछा तो वह शरमा उठी.

कुछ देर बाद मेरी कार हाईवे पर दौड़ रही थी. सीमा ने मुझे एसी. नहीं चलाने

दिया. कार के शीशे नीचे उतार कर ठंडी हवा के झोंकों को अपने चेहरे व केशों से खेलने दे रही थी. वह आंखें बंद कर न जाने कौन सी आनंद की दुनिया में पहुंच गई थी.

कुछ देर बाद हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई पर उस ने फिर भी खिड़की का शीशा बंद नहीं किया. आंखें बंद किए अचानक गुनगुनाने लगी.

गाते वक्त उस के शांत चेहरे की खूबसूरती को शब्दों में बयां करना असंभव था. उस का मूड न बदले, इसलिए मैं ने बहुत देर तक एक शब्द भी अपने मुंह से नहीं निकाला.

गाना खत्म कर के भी उस ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. अचानक उस का हाथ मेरी तरफ बढ़ा और वह मेरा बाजू पकड़ कर मेरे नजदीक खिसक आई.

‘‘भूख लग रही हो तो लौट चलें?’’

मैं ने बहुत धीमी आवाज में उस की इच्छा जाननी चाही.

‘‘तुम्हें लग रही है भूख?’’ बिना आंखें खोले वह मुसकरा पड़ी.

‘‘अब हम जो करेंगे, वह तुम्हारी मरजी से करेंगे.’’

‘‘तुम तो बड़े काबिल शिष्य साबित हो रहे हो, रवि साहब.’’

‘‘थैंक यू, टीचर. बोलो, कहां चलें?’’

‘‘जहां तुम्हारी मरजी हो,’’ वह मेरे और करीब खिसक आई.

‘‘तब खाना खाने चलते हैं. यह चुनाव तुम करो कि शादी का खाना खाना है या हाईवे के किसी ढाबे का.’’

‘‘अब भीड़ में जाने का मन नहीं है.’’

‘‘तब किसी अच्छे से ढाबे पर रुकते…’’

‘‘बच्चे, एक नया सबक और सीखो. लोहा तेज गरम हो रहा हो, तो उस पर चोट करने का मौका चूकना मूर्खता होती है,’’ उस ने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा तो मेरी रगरग में खून तेज रफ्तार से दौड़ने लगा.

‘‘बिलकुल होगी, टीचर. अरे, गोली मारो ढाबे को,’’ मैं ने मौका मिलते ही कार को वापस जाने के लिए मोड़ लिया.

अपने घर का ताला खोल कर मैं जब तक ड्राइंगरूम में नहीं पहुंच गया, तब तक सीमा ने न मेरा हाथ छोड़ा और न ही एक शब्द मुंह से निकाला. जब भी मैं ने उस की तरफ देखा, हर बार उस की नशीली आंखों व मादक मुसकान को देख कर सांस लेना भी भूल जाता था.

मैं ने ड्राइंगरूम से ले कर शयनकक्ष तक का रास्ता उसे गोद में उठा कर पूरा किया. फिर बोला, ‘‘तुम दुनिया की सब से सुंदर स्त्री हो, सीमा. तुम्हारे गुलाबी होंठ…’’

‘‘अब डायलौग बोलने का नहीं, बल्कि ऐक्शन का समय है, मेरे प्यारे शिष्य,’’ सीमा ने मेरे होंठ अपने होंठों से सील कर मुझे खामोश कर दिया.

फिर जो ऐक्शन हमारे बीच शुरू हुआ, वह घंटों बाद ही रुका होगा, क्योंकि मेरी टीचर ने स्वादिष्ठ खाने को किसी भुक्खड़ की तरह खाने की इजाजत मुझे बिलकुल नहीं दी थी.

अगले दिन रविवार की सुबह जब दूध वाले ने घंटी बजाई, तब मेरी नींद मुश्किल से टूटी.

‘‘आप लेटे रहो. मैं दूध ले लेती हूं,’’ सीमा ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पलंग से नहीं उठने दिया.

‘‘नहीं, तुम यहां से हिलना भी मत, टीचर, क्योंकि यह शिष्य कल रात के सबक को 1 बार फिर से दोहराना चाहता है,’’ मैं ने उस के होंठों पर चुंबन अंकित किया और दूध लेने को उठ खड़ा हुआ.

आजकल मैं अपनी जीवनसंगिनी सीमा की समझदारी की मन ही मन खूब दाद देता हूं. मैं फैक्टरी के कामों में बहुत व्यस्त रहता हूं और वह अपनी जौब की जिम्मेदारियां निभाने में. हमें साथसाथ बिताने को ज्यादा वक्त नहीं मिलता था और इस कारण हम दोनों बहुत टैंशन में व कुंठित हो कर जीने लगे थे.

‘‘हम साथ बिताने के वक्त को बढ़ा नहीं सकते हैं तो उस की क्वालिटी बहुत अच्छी कर लेते हैं,’’ सीमा के इस सुझाव पर खूब सोचविचार करने के बाद हम दोनों ने पिछली रात से यह ‘टीचर’ वाला खेल खेलना शुरू किया है.

कल रात हम रिसैप्शन में पहले अजनबियों की तरह से मिले और फिर फ्लर्ट करना शुरू कर दिया. कल उसे टीचर बनना था और मुझे शिष्य. कल मैं उस के हिसाब से चला और मेरे होंठों पर एकाएक उभरी मुसकराहट इस बात का सुबूत थी कि मैं ने उस शिष्य बन कर बड़ा लुत्फ उठाया, खूब मौजमस्ती की.

अगली छुट्टी वाले दिन या अन्य उचित अवसर पर मैं टीचर बनूंगा और सीमा मेरी शिष्या होगी. उस अवसर को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए मेरे मन ने अभी से योजना बनानी शुरू कर दी है. हमें विश्वास है कि साथसाथ बिताने के लिए कम वक्त मिलने के बावजूद इस खेल के कारण हमारा विवाहित जीवन कभी नीरसता व ऊब का शिकार नहीं बनेगा.

Love Story : इश्क के चक्कर में

Love Story : मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारों की तरह घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं्?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश को आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, क्योंकि छत की चाबी उन के पास रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब 15-20 ब्लौक छत पर लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया है. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. उसी का नतीजा यह कत्ल है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. 9 बजे तक वह घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी. लोहे के वजनी रेंच से वार किया गया था.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस से कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. झगड़ालू मैं ने उसे नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब इस बात की सब को जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा थी या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

हड़बड़ा कर दाऊद ने कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

Emotional Hindi Story : इसी को कहते हैं जीना

Emotional Hindi Story : ‘‘नेहा, क्या तुम ने कभी यह सोचा है कि तुम अकेली क्यों हो? हर इनसान तुम से दूर क्यों भागता है?’’नेहा चुपचाप मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘किसी भी रिश्ते को निभाने में तुम्हारा कितना योगदान होता है, क्या तुम ने कभी महसूस किया है? जहां कहीं भी तुम्हारी दोस्ती होती है वहां तुम्हारा समावेश उतना ही होता है जितना तुम पसंद करती हो. कोई तुम्हारे काम आता है तो उसे तुम अपना अधिकार ही मान कर चलने लगती हो. जिन से तुम दोस्ती करती हो उन्हें अपनी जरूरत के अनुसार इस्तेमाल करती हो और काम हो जाने के बाद धन्यवाद बोलना भी जरूरी नहीं समझती हो…लोग तुम्हारे काम आएं पर तुम किसी के काम आओ यह तुम्हें पसंद नहीं है, क्योंकि तुम्हें लोगों से ज्यादा मिलनाजुलना पसंद नहीं है. जो तुम्हारे काम आते हैं उन से तुम हफ्तों नहीं मिलतीं तो सिर्फ इसलिए कि स्कूल के बाद तुम्हें अपने घर को साफ करवाना जरूरी होता है.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि तुम्हारे घर में कितने लोग हैं जो रोज इतनी साफसफाई करवाती हो. साफ घर हर रोज इस तरह साफ करती हो मानो दीवाली आने वाली हो. आता कौन है तुम्हारे घर पर? न तुम्हारे मांबाप आते हैं न सासससुर…पति न जाने किस के साथ कहां चला गया, तुम खुद भी नहीं जानतीं.’’

आंखें और भी फैल गईं नेहा की.

‘‘जरा सोचो, नेहा, तुम कब किसी के काम आती हो. कब तुम अपने कीमती समय में से समय निकाल कर किसी का सुखदुख पूछती हो…कितना बनावटी आचरण है तुम्हारा. मुंह पर जिस की तारीफ करती हो पीठ पीछे उसी की बुराई करने लगती हो. क्या तुम्हें प्रकृति से डर नहीं लगता? सोने से पहले क्या कभी यह सोचती हो कि आज रात अगर तुम मर जाओ तो क्या तुम कोई कर्ज साथ नहीं ले जाओगी?’’

‘‘किस का कर्ज है मेरे सिर पर? मुझे तो किसी का कोई रुपयापैसा नहीं देना है.’’

‘‘रुपएपैसे के आगे भी कुछ होता है, जो कर्ज की श्रेणी में आता है.

‘‘रुपएपैसे के एहसान को तो इनसान पैसे से चुका सकता है मगर उन लोगोें का बदला कैसे चुकाया जा सकता है जहां  लगाव, हमदर्दी और अपनत्व का कर्ज हो. जिस ने मुसीबत में तुम्हें सहारा दिया उस का कभी हालचाल भी नहीं पूछती हो तुम.’’

‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’

‘‘इस का मतलब तुम पर किस के एहसान का कर्ज है यह भी तुम्हें याद नहीं.’’

मैं नेहा का मित्र हूं और हमारी मित्रता का कोई भी भविष्य मुझे अब नजर नहीं आ रहा. मित्रता तो एक तरह का निवेश है. प्यार दो तो प्यार मिलेगा. आज तुम किसी के काम आओ तो कल कोई तुम्हारे काम आएगा. नेहा तो सूखी रेत है जिस पर चाहो तो मन भर पानी बरसा दो वह फिर भी गीली नहीं हो सकती.

अफसोस हो रहा है मुझे खुद पर और नेहा पर भी. खुद पर इसलिए कि मैं  नेहा का मित्र हूं और नेहा पर इसलिए कि क्या उसे कोई किनारा मिल पाएगा कभी? क्या वह रिश्ता निभाना सीख पाएगी कभी?

नेहा से मेरी जानपहचान शर्माजी के घर हुई थी. शर्माजी हमारे विभाग में वरिष्ठ अधिकारी हैं और बड़े सज्जन पुरुष हैं. शर्माजी की पत्नी ललिताजी भी बड़ी मिलनसार और ममतामयी महिला हैं. मैं कुछ फाइलें उन्हें दिखाने उन के घर गया था, क्योंकि वह कुछ दिन से बीमार चल रहे थे.

हम दोनों के सामने चाय रख कर ललिताजी जल्दी से निकल गई थीं. टिफिन था उन के हाथ में.

‘‘भाभीजी बच्चों को टिफिन देने गई हैं क्या?’’

‘‘अरे, बच्चे कहां हैं यहां हमारे,’’ शर्माजी बोले, ‘‘दोनों बेटे अपनीअपनी नौकरी पर बाहर हैं. यहां तो हम बुड्ढाबुढि़या ही हैं. तुम्हें क्या हमारी उम्र इतनी छोटी लग रही है कि हमारे बच्चे स्कूल जाते होंगे.

‘‘मेरी पत्नी समाज सेवा में भी विश्वास करती है. यहां 2 घर छोड़ कर कोई बीमार है…उसी को खाना देने गई है. अकेली लड़की है. बीमार है, बस, उसी की देखभाल करती रहती है. क्या करे बेचारी? अपने बच्चे तो दूर हैं न. उन की ममता उसी पर लुटा कर खुश हो लेती है.’’

तब पहली बार नेहा के बारे में जाना था. स्कूल में टीचर है और पति कुछ समय पहले कहीं चला गया था. शादी को 2-3 साल हो चुके हैं. कोई बच्चा नहीं है. अकेली रहती है, इसलिए ललिताजी उस से दोस्ती कर के उस की मदद करती रहती हैं और समय का सदुपयोग भी.

अभी हम फाइलें देख ही रहे थे कि ललिताजी वापस चली आईं और अपने साथ नेहा को भी लेती आई थीं.

‘‘बहुत तेज बुखार है इसे. मैं साथ ही ले आई हूं. बारबार उधर भी तो नहीं न जाया जाता.’’

ललिताजी नेहा को दूसरे कमरे में सुला आई थीं और अब शर्माजी को समझा रही थीं,  ‘‘देखिए न, अकेली बच्ची वहां पड़ी रहती तो कौन देखता इसे. बेचारी के मांबाप भी दूर हैं न…’’

‘‘दूर कहां हैं…हम हैं न उस के मांबाप…हर शहर में हमारी कम से कम एक औलाद तो है ही ऐसी जिसे तुम ने गोद ले रखा है. इस शहर में नहीं थी सो वह कमी भी दूर हो गई.’’

‘‘नाराज क्यों हो रहे हैं…जैसे ही बुखार उतर जाएगा वह चली जाएगी. आप भी तो बीमार हैं न…आप का खानापीना भी देखना है. 2-2 जगह मैं कै से देखूं.’’

मैं ने भी उसी पल उन्हें ध्यान से देखा था. बहुत ममतामयी लगी थीं वह मुझे. बहुत प्यारी भी थीं.

लगभग 4 घंटे उस दिन मैं शर्माजी के घर पर रहा था और उन 4 घंटों में शर्मा दंपती का चरित्र पूरी तरह मेरे सामने चला आया था. बहुत प्यारी सी जोड़ी है उन की.  ललिताजी तो ऐसी ममतामयी कि मानो पल भर में किसी की भी मदद करने को तैयार. शर्माजी पत्नी की इस आदत पर ज्यादातर खुश ही रहते.

मेरे साथ भी मां जैसा नाता बांध लिया था ललिताजी ने. सचमुच कुछ लोग इतने सीधेसरल होते हैं कि बरबस प्यार आने लगता है उन पर.

‘‘देखो बेटा, मनुष्य को सदा इस  भावना के साथ जीना चाहिए कि मेरा नाम कहीं लेने वालों की श्रेणी में तो नहीं आ रहा.’’

‘‘मांजी, मैं समझा नहीं.’’

‘‘मतलब यह कि मुझे किसी का कुछ देना तो नहीं है न, कोई ऐसा तो नहीं जिस का कर्ज मेरे सिर पर है, रात को जब बिस्तर पर लेटो तब यह जरूर याद कर लिया करो. किसी से कुछ लेने की आस कभी मत करो. जब भी हाथ उठें देने के लिए उठें.’’

मंत्रमुग्ध सा देखता रहता मैं  ललिताजी को. जब भी उन से मिलता था कुछ नया ही सीखता था. और उस से भी ज्यादा मैं यह सीखने लगा था कि नेहा के करीब कैसे पहुंचा जाए. नेहा अपना कोई न कोई काम लिए ललिताजी के पास आ जाती और मैं उस के लिए कुछ सोचने लगता.

‘‘बहुत अच्छी लड़की है, पढ़ीलिखी है, मेरा जी चाहता है उस का घर पुन: बस जाए.’’

‘‘मांजी, उस का पति वापस आ गया तो. ऐसी कोई तलाक जैसी प्रक्रिया तो नहीं गुजरी न दोनों में. पुन: शादी के बारे में कैसे सोचा जा सकता है.’’

शर्माजी के घर से शुरू हुई हमारी जानपहचान उन के घर के बाहर भी जारी रही और धीरेधीरे हम अच्छे दोस्त बन गए.

ललिताजी से मिलना कम हो गया और हर शाम मैं और नेहा साथसाथ रहने लगे. मार्च का महीना था जिस वजह से आयकर रिटर्न का काम भी नेहा ने मुझे सौंप दिया. कभी नया राशन कार्ड बनाना होता और कभी पैन कार्ड का चक्कर. उस के घर की किस्तें भी हर महीने मेरे जिम्मे पड़ने लगीं. 2-3 महीने में नेहा के सारे काम हो गए. कभीकभी मुझे लगता, मैं तो उस का नौकर ही बन गया हूं.

कुछ दिन और बीते. एक दिन पता चला कि ललिताजी को भारी रक्तस्राव की वजह से आधी रात को अस्पताल में भरती कराना पड़ा. शर्माजी छुट्टी पर चले गए. उन के  बच्चे दूर थे इसलिए उन्हें परेशान न कर वह पतिपत्नी सारी तकलीफ खुद ही झेल रहे थे.

मेरा परिवार भी दूर था सो कार्यालय के बाद मैं भी अस्पताल चला आता था, उन के पास.

नेहा अस्पताल में नहीं दिखी तो सोचा, हो सकता है वह ललिताजी का घर संभाल रही हो. ललिताजी का आपरेशन हो गया. मैं छुट्टी ले कर उन के आसपास ही रहा. नेहा कहीं नजर नहीं आई. एक दिन शर्माजी से पूछा तो वह हंस पड़े और बताने लगे :

‘‘जब से तुम उस के काम कर रहे हो तब से वह मुझ से या ललिता से मिली कब है, हमें तो अपनी सूरत भी दिखाए उसे महीना बीत गया है. बड़ी रूखी सी है वह लड़की.’’

मुझ में काटो तो खून नहीं. क्या सचमुच नेहा अब इन दोनों से मिलती- जुलती नहीं. हैरानी के साथसाथ अफसोस भी होने लगा था मुझे.

ललिताजी अभी बेहोशी में थीं और शर्माजी उन का हाथ पकड़े बैठे थे.

‘‘ललिता का तो स्वभाव ही है. कोई एक कदम इस की तरफ बढ़ाए तो यह 10 कदम आगे बढ़ कर उस का साथ देती है. हम नएनए इस शहर में आए थे. यह लड़की एक शाम फोन करने आई थी. उस का फोन काम नहीं कर रहा था… गलती तो ललिता की ही थी… किसी की भी तरफ बहुत जल्दी झुक जाती है.’’

स्तब्ध था मैं. अगर मुझ से भी नहीं मिलती तो किस से मिलती है आजकल?

4 दिन और बीत गए. मैं आफिस के बाद हर शाम अस्पताल चला जाता. मुझे देखते ही ललिताजी का चेहरा खिल जाता. एक बार तो ठिठोली भी की उन्होंने.

‘‘बेचारा बच्चा फंस गया हम बूढ़ों के चक्कर में.’’

‘‘आप मेरी मां जैसी हैं. घर पर होता और मां बीमार होतीं तो क्या उन के पास नहीं जाता मैं?’’

‘‘नेहा से कब मिलते हो तुम? हर शाम तो यहां चले आते हो?’’

‘‘वह मिलती ही नहीं.’’

‘‘कोई काम नहीं होगा न. काम पड़ेगा तो दौड़ी चली आएगी,’’ ललिताजी ने ही उत्तर दिया.

शर्माजी कुछ समय के लिए घर गए तब ललिताजी ने इशारे से पास बुलाया और कहने लगीं, ‘‘मुझे माफ कर देना बेटा, मेरी वजह से ही तुम नेहा के करीब आए. वह अच्छी लड़की है लेकिन बेहद स्वार्थी है. मोहममता जरा भी नहीं है उस में. हम इनसान हैं बेटा, सामाजिक जीव हैं हम… अकेले नहीं जी सकते. एकदूसरे की मदद करनी पड़ती है हमें. शायद यही वजह है, नेहा अकेली है. किसी की पीड़ा से उसे कोई मतलब नहीं है.’’

‘‘वह आप से मिलने एक बार भी नहीं आई?’’

‘‘उसे पता ही नहीं होगा. पता होता तो शायद आती…और पता वह कभी लेती ही नहीं. जरूरत ही नहीं समझती वह. तुम मिलना चाहो तो जाओ उस के घर, इच्छा होगी तो बात करेगी वरना नहीं करेगी… दोस्ती तक ही रखना तुम अपना रिश्ता, उस से आगे मत जाना. इस तरह के लोग रिश्तों में बंधने लायक नहीं होते, क्योंकि रिश्ते तो बहुत कुछ मांगते हैं न. प्यार भी, स्नेह भी, अपनापन भी और ये सब उस के पास हैं ही नहीं.’’

शर्माजी आए तो ललिताजी चुप हो गईं. शायद उन के सामने वह अपने स्नेह, अपने ममत्व को ठगा जाना स्वीकार नहीं करना चाहती थीं या अपनी पीड़ा दर्शाना नहीं चाहती थीं.

3-4 दिन और बीत गए. ललिताजी घर आ चुकी थीं. नेहा एक बार भी उन से मिलने नहीं आई. लगभग 3 दिन बाद वह लंच में मुझ से मिलने मेरे आफिस चली आई. बड़े प्यार से मिली.

‘‘कहां रहीं तुम इतने दिन? मेरी याद नहीं आई तुम्हें?’’ जरा सा गिला किया था मैं ने.

‘‘जरा व्यस्त थी मैं. घर की सफाई करवा रही थी.’’

‘‘10 दिन से तुम्हारे घर की सफाई ही चल रही है. ऐसी कौन सी सफाई है भई.’’

मन में सोच रहा था कि देखते हैं आज कौन सा काम पड़ गया है इसे, जो जबान में मिठास घुल रही है.

‘‘क्या लोगी खाने में, क्या मंगवाऊं?’’

खाने का आर्डर दिया मैं ने. इस से पहले भी जब हम मिलते थे खाना मैं ही मंगवाता था. अपनी पसंद का खाना मंगवा लिया नेहा ने. खाने के दौरान कभी मेरी कमीज की तारीफ करती तो कभी मेरी.

‘‘शर्माजी और ललिताजी कैसी हैं? शर्माजी छुट्टी पर हैं न, कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

‘‘पता नहीं, मैं ने बहुत दिन से उन्हें देखा नहीं.’’

‘‘अरे भई, तुम इस देश की प्रधानमंत्री हो क्या जो इतना काम रहता है तुम्हें. 2 घर छोड़ कर तो रहते हैं वह…और तुम्हारा इतना खयाल भी रखते हैं. 10 दिन से वह तुम से मिले नहीं.’’

‘‘मेरे पास इतना समय नहीं होता. 2 बजे तो स्कूल से आती हूं. 4 बजे बच्चे ट्यूशन पढ़ने आ जाते हैं. 7 बजे तक उस में व्यस्त रहती हूं. इस बीच काम वाली बाई भी आ जाती है…’’

‘‘किसी का हालचाल पूछने के लिए आखिर कितना समय चाहिए नेहा. एक फोन काल या 4-5 मिनट में जा कर भी इनसान वापस आ जाता है. उन के और तुम्हारे घर में आखिर दूरी ही कितनी है.’’

‘‘मुझे बेकार इधरउधर जाना अच्छा नहीं लगता और फिर ललिताजी तो हर पल खाली रहती हैं. उन के साथ बैठ कर गपशप लगाने का समय नहीं होता मेरे पास.’’

नेहा बड़ी तल्खी में जवाब दे रही थी. खाना समाप्त हुआ और वह अपने मुद्दे पर आ गई. अपने पर्स से राशन कार्ड और पैन कार्ड निकाल उस ने मेरे सामने रख दिए.

‘‘यह देखो, इन दोनों में मेरी जन्मतिथि सही नहीं लिखी है. 7 की जगह पर 1 लिखी गई है. जरा इसे ठीक करवा दो.’’

हंस पड़ा मैं. इतनी हंसी आई मुझे कि स्वयं पर काबू पाना ही मुश्किल सा हो गया. किसी तरह संभला मैं.

‘‘तुम ने क्या सोचा था कि तुम्हारा काम हो गया और अब कभी किसी की जरूरत नहीं पड़ेगी. मत भूलो नेहा कि जब तक इनसान जिंदा है उसे किसी न किसी की जरूरत पड़ती है. जिंदा ही क्यों उसे तो मरने के बाद भी 4 आदमी चाहिए, जो उठा कर श्मशान तक ले जाएं. राशन कार्ड और पैन कार्ड जब तक नहीं बना था तुम्हारा मुझ से मिलना चलता रहा. 10 दिन से तुम मिलीं नहीं, क्योंकि तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी. आज तुम्हें पता चला इन में तुम्हारी जन्मतिथि सही नहीं तो मेरी याद आ गई …फार्म तुम ने भरा था न, जन्मतिथि तुम ने भरी थी…उस में मैं क्या कर सकता हूं.’’

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम?’’ अवाक्  तो रहना ही था नेहा को.

‘‘अंधे को अंधा कैसे कहूं…उसे बुरा लग सकता है न.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब साफ है…’’

उसी शाम ललिताजी से मिलने गया. उन्हें हलका बुखार था. शर्माजी भी थकेथके से लग रहे थे. वह बाजार जाने वाले थे, दवाइयां और फल लाने. जिद कर के मैं ही चला गया बाजार. वापस आया और आतेआते खाना भी लेता आया. ललिताजी के लिए तो रोज उबला खाना बनता था जिसे शर्माजी बनाते भी थे और खाते भी थे. उस दिन मेरे साथ उन्होंने तीखा खाना खाया तो लगा बरसों के भूखे हों.

‘‘मैं कहती थी न अपने लिए अलग बनाया करें. उबला खाना खाया तो जाता नहीं, उस पर भूखे रह कर कमजोर भी हो गए हैं.’’

ललिताजी ने पहली बार भेद खोला. दूसरे दिन से मैं रोज ही अपना और शर्माजी का खाना पैक करा कर ले जाने लगा. नेहा की हिम्मत अब भी नहीं हुई कि वह एक बार हम से आ कर मिल जाती. हिम्मत कर के मैं ने सारी आपबीती उन्हें सुना दी. दोनों मेरी कथा सुनने के बाद चुप थे. कुछ देर बाद शर्माजी कहने लगे, ‘‘सोचा था, प्यारी सी बच्ची का साथ रहेगा तो अच्छा लगेगा. उसे हमारा सहारा रहेगा हमें उस का.’’

‘‘सहारा दिया है न हमें प्रकृति ने. बच्ची का सहारा तो सिर्फ हम ही थे… बदले में सहारा देने वाला मिला है हमें… यह बच्चा मिला है न.’’

ललिताजी की आंखें नम थीं, मेरी बांह थपथपा रही थीं वह. मेरा मन भी परिवार के साथ रहने को होता था पर घर दूर था. मुझे भी तो परिवार मिल गया था परदेस में. कौन किस का सहारा था, मैं समझ नहीं पा रहा था. दोनों मुझे मेरे मातापिता जैसे ही लग रहे थे. वे मुझे सहारा मान रहे थे और मैं उन्हें अपना सहारा मान रहा था, क्योंकि शाम होते ही मन होता भाग कर दोनों के पास चला जाऊं.

क्या कहूं मैं? अपनाअपना तरीका है जीने का. कुदरत ने लाखों, करोड़ों जीव बनाए हैं, जो आपस में कभी मिलते हैं और कभी नहीं भी मिलते. नेहा का जीने का अपना तरीका है जिस में वह भी किसी तरह जी ही लेगी. बस, इतना मान सकते हैं हम तीनों कि हम जैसे लोग नेहा जैसों के लिए नहीं बने, सो कैसा अफसोस? सोच सकते हैं कि हमारा चुनाव ही गलत था. कल फिर समय आएगा…कल फिर से कुछ नया तलाश करेंगे, यही तो जीवन है, इसी को तो कहते हैं जीना.

Delhi Election : ‘प्रियंका गांधी के गाल जैसी दिल्‍ली की सड़क’ वाले बयान पर भड़की अलका लांबा 

Delhi Election : कांग्रेस की राष्‍ट्रीय महिला अध्‍यक्ष अलका लांबा विधानसभा चुनाव में दिल्‍ली की सीएम आतिशी मारलेना के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरी हैं. स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स से देश की राजनीत‍ि में कदम रखने वाली अलका लांबा शुरुआत में कांग्रेस से जुड़ी थी लेकिन अन्‍ना आंदोलन के समय अरविंद केजरीवाल के अभियान के साथ आ खड़ी हुई. आम आदमी पार्टी की प्रत्‍याशी बन कर चांदनी चौक विधान सभा सीट से जीत भी हासिल की लेकिन बाद में उन्‍होंने खुद को पार्टी से अलग कर लिया और दोबारा कांग्रेस में शामिल हुई.
पेश है दिल्‍ली विधानसभा चुनाव, स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स, अरविंद केजरीवाल, महिलाओं को 2.5 हजार रुपए देने,  शिक्षित युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्‍ता और भाजपा के हथकंडों पर अलका लांबा से की गई बातचीत

Q : शीला दीक्षित ने दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार चलाई. काफी विकास भी हुआ, लेकिन फिर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया. अभी वनवास जारी रहेगा या इस बार कुछ बड़ी उम्मीद बनी है?

A : अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित पर  धोखा, झूठ, फरेब और भ्रष्‍टाचार के कई इल्‍जाम लगाए, उनको बदनाम किया. हालांकि अदालत में भ्रष्‍टाचार के आरोप साबित नहीं हो पाए. अब वही केजरीवाल शराब घोटाले में फंस कर जेल जाते हैं, बेल पर बाहर आते हैं यहां तक कि उनकी कुर्सी चली जाती है. अगर नैतिकता हो, तो उनको दिल्‍ली से माफी मांगनी चाहिए. इन पर भ्रष्‍टाचार के गंभीर मामले चल रहे हैं इसलिए चुनाव मैदान से हट जाना चाहिए,  जब तक क्‍लीन चिट नहीं मिले.

Q : देश की राजधानी दिल्ली में महिला सम्मान की बातें हो रही है. महिला सम्मान राशि देने का वादा किया जा रहा है.  पार्टियों में इसकी होड़ लगी है. एक महिला होने के नाते ऐसी योजना पर आपके क्या विचार हैं?

A : कई सालों से महंगाई थी, राहत नहीं थी, दस साल में ‘आप’ की सरकार ने 10 रुपया नहीं दिया. अब चुनाव हार रहे हैं तो सम्‍मान राशि दे रहे हैं. केजरीवाल जी ने पंजाब में भगत सिंह की कसम खाकर महिलाओं को हजार रुपए देने की घोषणा की थी, जो आज तक उन्‍हें नहीं मिला. आम आदमी पार्टी धोखा है यह बात जब राहुल गांधी ने कहीं तो केजरीवाल जी ने कहा कि वे उन्‍हें गाली दे रहे हैं. हमने कर्नाटक में 2 हजार देने का वादा किया था, तो दो हजार दे रहे हैं. दिल्‍ली में ‘प्‍यारी दीदी योजना’ के तहत कांग्रेस की ओर से महिलाओं को 2500 रुपया देने को कह रहे हैं, कर्नाटक की तर्ज पर महंगाई का मुकाबला करने के लिए हर महीने की पहली तारीख को यह राशि दिल्‍ली की महिलाओं को दी जाएगी.

Q: हाल ही में रमेश बिधूड़ी का एक बयान आया जिसमें प्रियंका गांधी को लेकर टिप्पणी की गई. इस तरह के बयानों का क्या प्रभाव देखती हैं आप?

A : रमेश बिधूड़ी की नजर विकास की बातों से ज्‍यादा बहनबेटियों की गालों पर है. तभी उनके मुंह से यह निकल जाता है कि वे सत्‍ता में आएंगे तो कालकाजी की सड़कें प्रियंका गांधी के गालों जैसी बन जाएगी. उनकी बातों से कालकाजी की महिलाओं में गुस्‍सा है वे चाहती हैं कि बीजेपी और रमेश बिधूड़ी माफी मांगे. प्रियंका गांधी भी किसी की मां, बहन और बेटी है और उसके लिए आप जनप्रतिनिधि होकर सड़क पर ऐसी भाषा कैसे बोल सकते हैं. जनप्रतिनिधि के रूप में आपके पास मांबहन बेटियां जाएगी तब क्‍या होगा? हरियाणा के बीजेपी अध्‍यक्ष पर अभी गैंगरेप का आरोप लगा है, एफआईआर हुई है. कुलदीप सिंह सेंगर, प्रज्‍जवल रवन्‍ना, बृजभूषण शरण के उदाहरण सामने हैं. इससे महिलाओं को लेकर बीजेपी के चाल, चरित्र और चेहरे को समझा जा सकता है. 

Q : कालकाजी सीट पर आपकी लड़ाई किससे है.  

A :  मेरी लड़ाई विकास के मुद्दों पर दिल्‍ली की सीएम आतिशी मा‍रलेना से है. मैं चकित हूं केजरीवाल जी बारबार खुद को दिल्‍ली का बेटा बोल रहे हैं, क्‍या उन्‍हें आति‍शी मारलेना दिल्‍ली की बेटी नहीं हैं.

Q : दिल्‍ली के पुरुष भी कह रहे हैं कि महिलाओं की तरह उन्‍हें भी फ्री बस सेवा होनी चाहिए.  

A :  मुझे लगता है कि सबको रोजगार मांगना चाहिए. सरकारी नौकरी के 30 लाख पक्‍के पद खाली पड़े हैं, उसे भरना है.  हम नई नौकरियां पैदा नहीं कर पा रहे हैं, सरकार इसकी दोषी है. दिल्‍ली में कांग्रेस ने ‘युवा उड़ान योजना’ के तहत शिक्षित बेरोजगार युवाओं को एक साल तक हर महीने 8500 रुपया देने का वादा किया है, जो दिल्‍ली में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद दिया जाएगा लेकिन यह स्‍थायी सौल्‍यूशन नहीं है. कांग्रेस चाहती है सबके पास सरकारी पक्‍की नौकरी हो, परीक्षाओं के पेपर लीक न हो, समय पर रिजल्‍ट आए और नियुक्तियां हो.

Q : आप महिला कांग्रेस की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. क्या स्थिति बन रही है आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी को देश में किस स्थिति में देखती हैं?

A :  महिला कांग्रेस के अध्‍यक्ष पर आए मुझे एक साल हुए हैं. इस बीच मैंने देश के 28 राज्‍यों 8 केंद्र शासित राज्‍यों के दौरे किए, इस दौरान लोकसभा चुनाव के साथ ही 5 राज्‍यों में चुनाव भी हुए. राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो न्‍याय यात्रा में भी रही. इस दौरान 4 लाख महिलाएं औनलाइन हमारी सदस्‍य बन चुकी हैं. हमारा लक्ष्‍य इन महिलाओं को राजनीति की मुख्‍यधारा में लेकर आना है इनमें से टौप 50 महिलाओं को  first women leadership training programme के  तहत दिल्‍ली में प्रशिक्षित किया गया. इन्‍हें संगठन में पद और जिम्‍मेदारी देंगे.  कांग्रेस चाहती है कि 33 प्रतिशत आरक्षण के लागू होने के बाद ये महिलाएं आने वाले दिनों में विधायक और सांसद बनें. हमारा लक्ष्‍य 10 लाख महिलाओं को सदस्‍य बनाना है. 

Q : आप छात्र राजनीति में थीं. दिल्ली विश्वविद्यालय में नेता रहीं. आज की तारीख में छात्र राजनीति को किस तरह से देखती हैं और क्या कहना चाहेंगी?

A :  हमारे समय में दिल्‍ली में छात्र राजनीति का जोश होता था, स्‍टूडेंट पौलिटिक्‍स का वह जलवा आज नजर नहीं आता है. राजनीति में आने के इच्‍छुक युवाओं के लिए यह एक फाउंडेशन की तरह होता था. मुझे छात्र राजनीति में काफी कुछ सीखने को मिला. आज सत्‍ता का हस्‍तक्षेप हो चुका है, आज दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में अलग विचारधारा के लोगों की जगह खत्‍म कर दी गई. दिल्‍ली विवि की वोटिंग होती है और रिजल्‍ट रोक दिए जाते हैं और अदालत को बीच में आना पड़ता है.

Q : क्‍या वुमन लीडर को नीचा दिखाने का सबसे अच्‍छा तरीका उसका चरित्र हनन करना है? 

A :  बिलकुल, केवल राजनीति में ही नहीं बाकी क्षेत्रों में भी वुमन लीडर्स के साथ ऐसा होता है. महिलाओं के कैरेक्‍टर, परिवार, चालचरित्र पर सीधे हमले होते हैं. आज डिजिटल साधनों की मदद से झूठ को फैलाना आसान हो गया है. अगर सचाई बताने में देर होती है, तो झूठ फैलने का नुकसान भी होता है.  सत्‍ता में बैठे लोग हमसे ज्‍यादा ताकतवर हैं लेकिन हम हार नहीं मानते हैं.

अलका लांबा इमोशनल है लेकिन भावुक होकर आंसू नहीं दिखाने में विश्‍वास नहीं करती है. मैं भावुक नहीं हो सकती क्‍योंकि महिला कांग्रेस की अध्‍यक्ष होने की वजह से बहुतों के आंसू पोंछने की जिम्‍मेदारी है.

Q : बात आम आदमी पार्टी की हो रही है तो आप भी जुड़ी थीं. अन्‍ना आंदोलन के समय से आप उनके साथ थीं, फिर आपने दोबारा घर वापसी की और कांग्रेस का हाथ थामा  क्या कुछ अनुभव रहे इस दौरान?

A :  अन्‍ना आंदोलन के समय मुझे लगा कि एक मौका इन्‍हें मिलना चाहिए. मैं पांच साल उस पार्टी से विधायक भी रही और तब मुझे अहसास हुआ कि रामलीला मैदान में खड़ा हुआ आंदोलन एक झूठ था. धीरे धीरे मैंने इन्‍हें सत्‍ता के लिए समझौता करते देखा.  उन दिनों कागजों का पुलिंदा लेकर जो भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए गए, उनमें से कितने भ्रष्‍टाचार के आरोप साबित हो पाए. बंगला और गाड़ी नहीं लेने की बात करने वाला और खुद को आम आदमी बताने वाला व्‍यक्ति  टैक्‍स दाताओं के 33 करोड़ रुपए अपने बंगले पर फूंक देता है, शराब नीत‍ि के तहत 2000 हजार करोड़ का सीधा नुकसान सरकारी खजाने को होता है. जिस जनलोकपाल और लोकायुक्‍त के लिए आंदाेलन किया गया था, आज वो कहां है? 

Q : क्‍या ‘आप’ बीजेपी की B टीम है? 

A :  मैं तथ्‍यों पर कह रही हूं कि ‘आप’ बीजेपी की बी टीम है. इसके सबूत है. पंजाब से हमें किसने बाहर किया, ‘आप’ ने.   दिल्‍ली में भाजपा नहीं आ रही थी यहां भी उसने अपनी B टीम को सामने रखा. भाजपा को कहीं भी आम आदमी पार्टी ने नहीं हराया, भाजपा की आड़ में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से सत्‍ता ली. पंजाब में हम अकेले लड़े, तो 13 में से 7 सीटें हमने जीतीं. अडानी पर कभी अरविंद केजरीवाल को बोलते हुए नहीं देखा गया.

Q : क्‍या अब आम आदमी पार्टी भी धर्म की राजनीति करने लगी है? 

 A : आज ये भाजपा की भाषा बोल रहे हैं, धर्म की राजनीति कर रहे हैं, देश की गिरती हुई इकोनौमी को ठीक करने के लिए और गिरते हुए रुपए को ऊपर लाने के लिए नोट में गणेश और लक्ष्‍मी की फोटो लगाने की बात कर रहे हैं, बार बार हनुमान मंदिर जा रहे हैं, इमामों,  पंडितों और पंथियों को खुश करने के लिए तनख्‍वाह रखने की बात की जा रही है. ये सब इसी के उदाहरण हैं.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें