Download App

भारत भूमि युगे युगे: इंसाफ का नया तराजू

ऊपर वाले और नीचे वालों की बेरहमी का कहर   झेल रहे भगवा गैंग के मुसलिम नेता सैयद शाहनवाज हुसैन के खूबसूरत चेहरे की रंगत उड़ी हुई है. पहले तो बिहार में नीतीश की पलटी से उन का मंत्री पद गया, फिर मोदी-शाह ने पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति से भी चलता कर उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया. तीसरा बखेड़ा दिल्ली की एक महिला ने उन पर बलात्कार का आरोप मढ़ खड़ा कर दिया. अब शाहनवाज गुनगुना सकते हैं कि गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाऊंगा.

यह कथित बलात्कार अप्रैल 2018 में दिल्ली के छतरपुर स्थित एक फार्महाउस में नशीले पदार्थ के सेवन के पश्चात संपन्न हुआ था. पुलिस ने पूरी कोशिश की कि वे बच जाएं लेकिन हाईकोर्ट को दाल में कुछ काला लगा तो मामला आगे बढ़ रहा है.

बलात्कारी और डिस्काउंट

बलात्कार की विशेषताओं पर अगर कुछ पौइंट्स लिखे जाएं तो एक ही काफी होगा कि 80 फीसदी मामलों में बलात्कारी ऊंची जाति वाला और पीडि़ता नीची जाति की होती है. पौराणिक काल से यह रिवाज लोकतंत्र तक कायम है जिस का पाक मकसद पतिता के उद्धार का होता है. मामला गुजरात के चर्चित बिलकीस बेगम के साथ 21 जनवरी, 2008 को हुए बलात्कार का है जिस में 11 ब्राह्मण आरोपियों को सजा हुई थी.

अच्छे चालचलन के चलते ये बलात्कारी 15 अगस्त को छोड़ दिए गए तो गोधरा विधायक सी के राउल के भीतर बैठा मनु फनफना कर बोला, ‘बलात्कारी अगर ब्राह्मण समाज से हैं तो संस्कारी होंगे.’ वैसे भी हिंदुओं के संविधान मनु स्मृति में बहुत साफ निर्देश है कि-

अगुप्ते क्षत्रियावैशये शूद्रा वा

ब्राह्मणों व्रजन

शतानि पच्च दण्डय

स्यास्तहस्त्रम त्वन्जयस्त्रियम

(मनु स्मृति, अध्याय 8, श्लोक 385)

अर्थात, यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य किसी शूद्र वर्ण की किसी स्त्री के

साथ बलात्कार करता है तो उसे केवल 500 पर्ण का आर्थिक दंड देना होगा.

फटकार योग

आम और खास लोगों को अपनी दुकानदारी के लिए भड़का कर नीमहकीमी से अरबों बनाने वाले बाबा रामदेव से दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस जयराम भम्भानी नाराज हो कर जो बोले उस का सार यह है कि आप खूब चेले और भक्त बना लें, लेकिन   झूठ बोल कर लोगों को गुमराह न करें. इस फटकार से बाबा की मोटी चमड़ी पर सिलवट भी पड़ी होगी, ऐसा लगता नहीं जिस ने कोरोनाकाल में एलोपैथी के खिलाफ जम कर जहर उगला था और अपनी फर्जी दवा कोरोनिल बेच कर लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ भी किया था. इस बाबा ने वैक्सीन को भी खूब कोसा था.

लगता है बाबा के योग और आयुर्वेद सहित पतंजलि के विभिन्न प्रोडक्ट्स की भी पोल खुलने लगी है. उस का गाय का घी और शहद भी उत्तराखंड में मिलावटी पाया गया है. इस के बाद भी लोग हिंदुत्व, योग और धर्म के नाम पर वेबकूफ बन रहे हैं.

क्रिकेट के सुदामा

लोग अमीर होने के लिए मेहनत के अलावा क्या नहीं करते. यूट्यूब पर वीडियो देखते हैं, व्रत व पूजापाठ करते हैं. वे तांत्रिकोंमांत्रिकों और ज्योतिषियों के   झांसे में आ कर मेहनत से कमाया पैसा चढ़ा कर उन्हें अमीर बनाते रहते हैं और खुद और गरीब होते चले जाते हैं. लेकिन क्रिकेटर विनोद कांबली ने गरीब होने के लिए इतने जतन किए कि अब उन के फाके करने की नौबत आ गई है. आचरेकर के अखाड़े में सचिन तेंदुलकर के सखा रहे विनोद इन दिनों मुंबई में बीसीसीआई से मिलने वाली 30 हजार रुपए महीने की पैंशन से गुजारा कर रहे हैं.

जिन लोगों को गरीब नहीं होना है उन्हें इस महत्त्वाकांक्षी और प्रतिभाशाली बल्लेबाज से सबक लेना चाहिए कि आमदनी से ज्यादा खर्च, फुजूलखर्ची, दिखावे की जिंदगी और नशेपत्ते की लत कुबेर को भी फुटपाथ पर ले आती है.

त्यौहार 2022: ऐसे बनाएं आलू पोहे

सामग्री

– पोहा (250 ग्राम)

– प्याज (4)

– आलू (4)

– तेल ( 100 ग्राम)

– जीरा (1/4 बड़े चम्मच)

– राई (1/4 बड़े चम्मच)

–  बारीक कटा हरा धनिया

– हरी मिर्च (2)

– आलू को उबालकर और छोटे टुकड़े कर लें, प्याज बारीक काट लें.

– हरी मिर्च के भी बारीक टुकड़े कर लें.

– पोहा थोड़े से पानी में 2से 3 मिनट तक भिगो दें और निकाल कर चलनी में रखें ताकि अतिरिक्त पानी   सूख जाए.

– कढ़ाई में तेल डालें  और गरम होने पर राई, जीरा और हरी मिर्च डालें, बारीक कटे प्याज डालकर सुनहरी    रंग तक भून लें.

– इसमें कटे हुए आलू डाल कर थोड़ी देर चलाते रहें, पोहे कढ़ाई में डाल कर अच्छी तरह सब मिला लें.

Anupamaa: छोटी अनु को किडनैप करेगा तोषु, आएगा ये ट्विस्ट

टीवी सीरियल अनुपमा में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो की कहानी के ट्रैक को दर्शक खूब पसंद कर रहे हैं. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि तोषु अनुज के घर जाकर खूब तमाशा करता है.  और किंजल से अपनी बेटी को छिनने की कोशिश करता है लेकिन नाकामयाब हो जाता है.  ऐसे में वह अनुपमा की बेटी छोटी अनु को मोहरा बनाएगा. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो  में दिखाया जा रहा है  कि कपाड़िया और शाह परिवार के बीच अनुपमा जिम्मेदारियों में उलझती सी नजर आ रही है. पहले जहां एक्स हसबैंड वनराज शाह ने अनुपमा की जिंदगी मुश्किल कर रखी थी वहीं अब उसका सगा बेटा पारितोष भी उसकी जान का दुश्मन बन बैठा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anupama_star_plus1)

 

अनुपमा का एक लेटेस्ट प्रोमो सामने आया है. जिसमें दिखाया गया था कि अनुपमा-अनुज और छोटी की फोटो दीपक पर गिर जाती है और उसमें छोटी  की फोटो जल जाती है. अनुपमा इसे अपशगुन मानती है और यह सब देखकर बहुत परेशान हो जाती है. तभी वहां तोषू की एंट्री होती है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Anupama (@anupama_star_plus1)

 

तोषू अनुपमा को धमकी देता है और कहता है, दर्द हुआ ना ? ऐसा ही दर्द मुझे हो रहा है मिसेज अनुपमा कपाड़िया. आपने मुझे मेरी बेटी से दूर करके मेरा घर जला दिया. अब उसी आग में जलने की बारी आपकी है. माना जा रहा है कि अनुपमा से बदला लेने के लिए तोषू छोटी को किडनैप करने वाला है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sophia ?? (@maan__admirer)

 

माना जा रहा है कि  तोषू अनुपमा से बदला लेने के लिए उसकी बेटी को किडनैप करेगा. वह समझ सके कि बेटी से दूर होने का दुख क्या होता है. शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि अनुपमा कैसे तोषु का अक्ल ठिकाने लगाती है?

न्याय पर मीडिया दबाव

मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि उन्हें ठीक से न्यायसंगत निर्णय लेने में मीडिया ट्रायलों से तकलीफ होने लगी है क्योंकि मीडिया पहले से ही फैसले सुना देती है कि कौन कितना अपराधी है. सनसनी फैलाने में इलैक्ट्रौनिक टीवी चैनल और सोशल मीडिया आगे हैं जबकि प्रिंट मीडिया व समाचारपत्र काफी संयत हैं. आमतौर पर जज चाहते हैं कि जब फैसला उन के हाथों में हो, तो उन को समाचारपत्रों, टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर प्रचारित की जा रही बातों को सुनना न पड़े ताकि वे उस तरह के तर्कों से प्रभावित न हों.

मीडिया से ज्यादा न्यायपूर्ण निर्णय देने में जो बात आज आड़े रही है और जिस का जिक्र मुख्य न्यायाशीश ने नहीं किया वह है सरकार व सत्ताधारी पार्टी के बयान जो पहले तो मतलब के मामले उछालते हैं और फिर उन्हें बुरी तरह ले उड़ते हैं. 2012-13 के दौरान भाजपाई सोच वाले कंपट्रोलर जनरल औफ इंडिया (लेखा विभाग के महानिरीक्षक) विनोद राय ने मीडिया की बात व निराधार तथ्यों के आधार पर कोयला खानों के ठेकों और टैलीकौम स्कैमों पर लाखोंकरोड़ों के घपलों की रिपोर्टें जारी कर दी थीं.

उन के तर्क लचर थे. कांग्रेस सरकार को दबाव में झुकना पड़ा. जजों ने सरकारी मोहर लगे झूठ के कारण कितनों को जेलों में भेज दिया. आज 15 साल बाद विनोद राय अपनी गलती मान रहे हैं क्योंकि उन आरोपों में किसी को सजा नहीं पर उन आरोपों के लिए कितने ही जेलों में महीनों, सालों बंद रहे और कांग्रेस सरकार ने राज खो डाला.

आज कोई विनोद राय पनपता है तो उस पर विनोद राय जैसे ही आरोप लगा कर उसे बंद कर दिया जाता है. सो, डर के मारे सब ने मुंह सी लिया है.

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने टीवी चैनलों और सोशल मीडिया को फटकारा, यह बहुत अच्छा है पर फटकार से काम नहीं चलता. सुप्रीम कोर्ट चाहे तो ट्रायल कोर्टों को आदेश दे सकती है कि निराधार आरोप लगाने वालों के खिलाफ दायर किए गए मुकदमों में महीनों में नहीं बल्कि सप्ताहों में सजा दे दी जाए मुजरिम चैनलों व सोशल मीडिया पर भारी जुर्माना लगाया जाए. ऐसा हो जाए तो काफी हद तक सुधार हो सकता है. सोशल मीडिया चैनल को बंद करने या चलाने वाले को गिरफ्तार करने का आदेश फिर भी गलत होगा. लेकिन कोरा कथन काफी नहीं है.

समाज को आलोचना करने का हक यथावत रहना चाहिए. आलोचना करने वाले को ही पकड़ कर बंद कर देने की जो पौराणिक परंपरा आज फिर से पिछले दरवाजे से लाई जा रही है, बंद होनी चाहिए. टीवी चैनल और सोशल मीडिया असल में पौराणिक सोच को थोपने के षड्यंत्र के हिस्से हैं. इन के निशाने पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, ममता बनर्जी, स्टालिन या निर्भीक पत्रकार नहीं हैं, इन के निशाने पर सवर्णों की औरतें, पिछड़ों के नेता, दलितों के मुखर होते विचारक, मुसलमानों के हक मांगने वाले लोग हैं. इन का उद्देश्य यह है कि धर्म का व्यापार न केवल चले, पौराणिक गाथाओं की तरह फलेफूले और राजा को सुरक्षा भी मिले. ये चाहते हैं कि देश उन के कहने पर चले जैसे विश्वामित्र के कहने पर राजा दशरथ ने रामायण की कथा में राम और लक्ष्मण को बालावस्था में ही आश्रम की सुरक्षा के लिए भेज दिया था.

आज न्यायपालिका में पौराणिक सोच वाले कम नहीं हैं. अमेरिका जैसे उन्नत व स्वतंत्र देश में डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के मनोनीत वकील घोषित रूप में चर्च की सोच के गुलाम नजर आते हैं.

भारत का लोकतंत्र आज फिर जंगखाई पुरानी पटरियों पर उतर चुका है. परिणाम चाहे घातक व भयंकर बढ़ती बेरोजगारी, मंहगाई, अभावों, अराजकता, सर्विलैंस स्टेट के रूप में सामने आ रहा हो लेकिन मंदिर व्यवसाय तो चमक रहा है न. और जब बढ़ते मंदिर, बढ़ती वर्णव्यवस्था व महिलाओं की अपमानजनक स्थिति का लक्ष्य पूरा हो रहा हो तो किसे न्यायसंगत निर्णयों की आवश्यकता है. भगवा सरकार तो यही चाहती है न.

52 वर्ष की उम्र में मुझे Pimples निकल रहा है, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 52 वर्ष है. अमूमन किशोरावस्था में लड़कियों को पिंपल्स की शिकायत होती है लेकिन तब मेरे चेहरे पर कोई पिंपल नहीं निकला. चेहरा एकदम साफसुधरा और ग्लो करता था. कभी निकलता भी था तो एकाध, वह भी अपनेआप ठीक हो जाता था. कोई निशान भी नहीं पड़ता था चेहरे पर. 50 की उम्र तक ऐसा ही चलता रहा लेकिन अब मेरे चेहरे पर पिंपल्स की भरमार है. एक्ने के निशान जाने का नाम नहीं लेते. चेहरा देखने में भद्दा लगता है. मुझे बहुत बुरा लगता है, अपनेआप को इस तरह देखने की आदत जो नहीं रही कभी. कई क्रीमें लगा चुकी हूं लेकिन एक के बाद एक पिंपल्स निकलते आ रहे हैं. मेकअप करना भी अच्छा नहीं लगता है. आप ही कोई राय दें.

जवाब

आप की परेशानी हम सम  झ रहे हैं. चेहरे पर दागधब्बे हो जाएं तो खूबसूरती कम हो जाती है. टीनएज में तो ऐसा होता है लेकिन आप की उम्र में पिंपल्स का होना दर्शा रहा है कि आप डाइट अच्छी नहीं ले रही हैं. आप के शरीर में जरूरी विटामिंस की कमी हो गई है.

विटामिन ए एक एंटी औक्सीडैंट है जो मुफ्त कणों (फ्री रैडिकल्स) से लड़ता है. यह शरीर में होने वाली सूजन को कम करता है. इस की कमी को पूरा करने के लिए टमाटर, हरीमिर्च और गाजर खानी चाहिए.

विटामिन बी 3 की कमी से भी त्वचा पर दागधब्बे और दाने होते हैं. इस के एंटीइंफ्लेमेटरी गुण एक्ने का इलाज करने में मदद करते हैं. यह त्वचा की चमक भी बढ़ाने का काम करता है. साथ ही, कीलमुंहासों को रोकने का काम भी करता है. यह चेहरे पर जमा होने वाले औयल को कम भी करता है.

विटामिन डी इम्यूनिटी बढ़ाने में भरपूर सहयोग करता है. यह भी चेहरे पर होने वाली सूजन को कम करता है. यह एक्ने को कंट्रोल करने में मदद करता है. साथ ही, यह विटामिन हड्डियों को मजबूत करने का भी काम करता है.

विटामिन ई इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है जो एंटी औक्सीडैंट का काम करता है. यह विटामिन त्वचा की नमी को कम करता है और कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिस से चेहरे पर चमक आती है.

आप अपनी बौडी टैस्ट करवाइए जिस से पता चले कि आप की बौड़ी में किन विटामिंस की कमी है. डाक्टरी परामर्श लीजिए, जल्दी ही इस समस्या से नजात मिल जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर ‘आदर्श ग्राम योजना’ की कहानी

डा. राजाराम त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजक, अखिल भारतीय किसान महासंघ आईफा

साल 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस नई योजना ‘आदर्श ग्राम’ की घोषणा की, तो तमाम गाजेबाजे और विज्ञापनों के जरीए भले ही यह स्थापित करने का प्रयास किया गया, पर दरअसल ऐसा नहीं है. यह कोई नई विलक्षण सोच या नई योजना नहीं है.

योजना के लागू होने के

8 साल बीत जाने के बाद भी आज इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना, जांचपड़ताल करना और सही जवाब न मिलने पर सरकार से इन सवालों के जवाब लेना इस देश के हर वोटर का, हर नागरिक का फर्ज भी है और हक भी.

1 अक्तूबर, 2014 को ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ की घोषणा अन्य बहुसंख्य सरकारी योजनाओं की तरह ही पूरे तामझाम, ढोलनगाड़े के साथ की गई थी. प्रधानमंत्री के मनमोहक डिजाइनर रंगीन फोटो के साथ समाचारपत्रों में फुलपेजिया विज्ञापन छपे थे. टीवी चैनलों पर कई दिनों तक भाट चारणों ने समवेत स्वर में इस महान युगांतरकारी कार्ययोजना का गुणगान किया था. इस योजना को ‘समावेशी विकास का ब्लूप्रिंट’ कहा गया. 8 अप्रैल, 2015 को यह योजना शुरू हुई.

* सरकारी वैबसाइट के अनुसार, ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ (एसएजीवाई)  संसद के दोनों सदनों के सांसदों को प्रोत्साहित करती है कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्र के कम से कम एक गांव की पहचान करें और साल 2016 तक एक आदर्श गांव का विकास करें.

इस योजना के उद्देश्यों को अगर आप ठीक से पढ़ेंगे, तो सम्मोहित हो जाएंगे. इस के उद्देश्यों की बानगी पेश है :

* ग्राम पंचायतों के समग्र विकास के लिए नेतृत्व की प्रक्रियाओं को गति प्रदान करना.

* सभी वर्गों के जीवनयापन और जीवन की गुणवत्ता व स्तर में पर्याप्त रूप से सुधार करना.

* पंचायत और गांव का ऐसा सर्वविध समग्र विकास करना कि अन्य गांव और पंचायती प्रेरणा लें.

* चुने गए आदर्श ग्रामों को स्थानीय विकास के ऐसे केंद्रों के रूप में विकसित करना, जो अन्य ग्राम पंचायतों को प्रशिक्षित कर सकें. और अन्य भी हैं…

बुनियादी सुविधाओं में सुधार करना. उच्च उत्पादकता. मानव विकास में वृद्धि करना. आजीविका के बेहतर अवसर. असमानताओं को कम करना. हक की प्राप्ति. व्यापक सामाजिक गतिशीलता. समृद्ध सामाजिक पूंजी में वृद्धि करना वगैरह यानी इतना सबकुछ कि विकसित से विकसित शहर भी इन गांवों से रश्क करें. लिखने, पढ़ने व सुनने में बड़ा अच्छा लगता है सबकुछ.

चाहे देश में हो या विदेश में भारत को हमेशा गांवों का, किसानों का देश कहा जाता है. नई उपलब्ध सरकारी जानकारी के अनुसार, हमारे देश में 6 लाख, 49 हजार, 481 गांव यानी साढ़े 6 लाख गांव हैं.

आजादी के बहुत पहले साल 1909 में महात्मा गांधी ने अपनी किताब ‘हिंद स्वराज’ में ‘आदर्श ग्राम’ की संकल्पना की थी. लेकिन गांधी के आदर्शों की बातें तो बहुत की गईं, लेकिन गांधी के सपनों के गांव हम आज तक नहीं बना सके.

ऐसे ही साल 2009-10 में भी गांवों के समग्र विकास की एक योजना लाई गई थी, ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ (पीएमएजीवाई). इस योजना में ऐसे गांवों का चयन करना था, जहां अनुसूचित जातियों की तादाद 50 फीसदी से अधिक हो.

चूंकि संविधान में देश के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता का अधिकार दिया गया है, इसलिए इन तबकों को समाज में बराबरी के स्तर पर लाना इस का प्रमुख उद्देश्य था.

18 राज्यों के तकरीबन 16,000 गांवों को चुना गया, हर गांव के लिए 21 लाख रुपए की राशि भी प्रावधानित की गई थी. इस योजना के उद्देश्य और लक्ष्यों की अगर हम बात करें, तो इस योजना में कुल 13 बिंदुओं में ग्रामीण विकास की इतनी अच्छीअच्छी योजनाओं का उल्लेख किया गया है कि अगर सारी योजनाओं का शतप्रतिशत क्रियान्वयन हो जाता, तो गांव  बेहतर हो जाते.

इसी तरह समयसमय पर ऐसी कई लुभावनी योजनाएं बनाई गईं, जैसे कि लोहिया ग्राम योजना, अंबेडकर ग्राम योजना और गांधी ग्राम योजना, अटल आदर्श ग्राम योजना, उत्तराखंड वगैरह, जिन्होंने देश के गांवों को ‘आदर्श ग्राम’ बनाने का दावा किया, वादे किए, सपने दिखाए, वोट बटोरा, अपनीअपनी सरकारें बनाईं, पर न तो गांवों का हाल बदला और न ही उन की तसवीर.

तत्कालीन सरकारों से आज यह सवाल क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि क्या इस योजना के एक दशक बाद भी इन तबकों को हम समानता के स्तर पर ला सके हैं? अगर ऐसा नहीं कर पाए हैं, तो इस के लिए दोषी कौन हैं?

ऐसा नहीं है कि गांवों में बदलाव नहीं आया है. गांवों में ढेरों बदलाव दिखाई दे रहे हैं. गांव में साइकिलों के बजाय मोटरसाइकिलें आ गई हैं. पंच और सरपंचों के घर पक्के हो गए हैं. इन के घरों में चारपहिया वाहन भी देखे जा सकते हैं. और कुछ चाहे मिले या ना मिले, किंतु मोबाइल और टीवी हर घर की अनिवार्य जरूरतों में शुमार हैं.

असीमित कमीशनखोरी के साथ ही साथ पंचायत, अस्पताल, स्कूलों के पक्के भवन भी बनते जा रहे हैं, पर इन गुणवत्ताविहीन भवनों में न तो सुयोग्य शिक्षक हैं, न ही नियमित डाक्टर और न समुचित दवा.

जहांजहां सड़कें बनी भी, उन्हें भी अनियंत्रित कमीशनखोरी के अजगर ने आधापौना लील लिया है. कहींकहीं तो विकास के नाम पर गांवों में पहले से ही चल रहे अस्पतालों के नाम बदल कर उन्हें ‘वैलनैस सैंटर’ जैसा फैंसी नाम दे दिया गया, पर हमारे इन अस्पताल कम वैलनैस सैंटर्स की जमीनी हकीकत को कोरोना ने उधेड़ कर दुनिया को दिखा दिया था.

पर, बहुतकुछ ऐसा भी है, जो आज भी नहीं बदला है. जैसे कि गांवों में अव्वल तो नालियां हैं ही हीं, और जहां कच्चीपक्की कुछेक हैं भी, वहां आज भी पहले की तरह ही नालियां बदस्तूर बजबजा रही हैं. पहले की तरह गंदगी व मच्छरों, बीमारियों का साम्राज्य आज भी है. इंचइंच जमीनों के लिए लड़ाईझगड़ों के मामले आज भी जारी हैं.

कुछ अपवादों को छोड़ ज्यादातर जींसपैंट पहनने वाली ग्रामीण युवा पीढ़ी को भी पढ़ेलिखे सभ्य लोगों की तरह ही मिट्टी, कीचड़, गोबर, गायगोरू, खेतखलिहान की जहमत से सख्त परहेज है. किसान का युवा बेटा बाप की

4 एकड़ जमीन पर खेती करने के बजाय उस की 2 एकड़ जमीन बिकवा कर उस रकम की रिश्वत दे कर शहर में चपरासी की नौकरी करने की जुगाड़ में लगा हुआ है. गांव अब बिना देर किए किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द शहर बनना चाहते हैं.

बड़े शहरों में रहने वाले कौंवैंट के बच्चे कभीकभार भूलेभटके अपने चाचाताऊ के यहां गांवों में आने पर अकसर यह सवाल पूछ ही लेते हैं कि जब अमूल और मदर डेरी इतना अच्छा दूध दे रहे हैं, तो आप लोग गांवों में दूध के लिए ये गायभैंस, गोबर, गौमूत्र की गंदगी क्यों बना कर रखे हैं? और इस बदबू और मच्छरों के बीच आप लोग भला रह कैसे पाते हैं?

इसी योजना के तहत स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भी वाराणसी से 25 किलोमीटर दूर स्थित महज 2974 आबादी वाले गांव जयापुर को गोद लिया गया था. इस ग्राम के चयन के भी कई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कारण रहे होंगे. विजय को प्रेरित करता हुआ इस का जयापुर नाम भी एक कारण हो सकता है.

वैसे, कहा जाता है कि यह गांव शुरू से ही संघ का गढ़ रहा है. इस पर अंतिम मोहर लगने का यह भी एक स्वाभाविक व नैसर्गिक कारण हो सकता है.

समाचारों में ही हम ने सुना है कि इस गांव के तकरीबन 300 वर्ष पुराने महुआ के पेड़ को संरक्षित करने की कवायद हो रही है, तो वहीं दूसरी ओर देश के हजारोंहजार साल पुराने जैविक विविधता से भरपूर जंगलों के लाखों पेड़ों को पूरी निर्ममता के साथ केवल इसलिए काटा जा रहा है, ताकि इन राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को मोटा चुनावी चंदा देने वाली बड़ी कंपनियों द्वारा लीज पर ली गई खदानों से अवैध रूप से अनमोल खनिज संपदा को जल्द से जल्द निकाल कर बेचा जा सके.

नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री सांसद आदर्श ग्राम योजना पार्ट वन- 2014 एवं पार्ट टू -2021 की अगर बात करें, तो सांसद आदर्श ग्राम योजना 2021 की वैबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत 2314 ग्राम पंचायतों का चयन किया गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गए इस गांव में भी इतने सालों बाद भी एकचौथाई परियोजनाओं पर काम ही शुरू नहीं हुआ (9 अक्तूबर, 2021 की स्थिति में). और अगर काम हो गया हो, तो गांव वालों को बधाई.

ऐसा नहीं है कि इस योजना के पूरे न होने के पीछे फंड या पैसों की कमी की कोई समस्या है. देश में यही एक ऐसी योजना है, जिसे पूरा करने के लिए फंड की कोई समस्या ही नहीं है. आदर्श सांसद ग्राम योजना के तहत विकास कार्य पूरा करने के लिए कई तरह से फंड मिलते हैं. इन में इंदिरा आवास, पीएम ग्रामीण सड़क योजना और मनरेगा भी शामिल है. इस के अलावा सांसदों को मिलने वाला स्थानीय क्षेत्र विकास फंड भी कार्यक्रम पूरा करने में मददगार है.

अप्रैल में सरकार ने संसद की एक समिति को यह जानकारी दी है कि पूर्व सांसदों के द्वारा स्थानीय क्षेत्र विकास निधि की 1,723 करोड़ रुपए की राशि खर्च नहीं की जा सकी है. इसे कुएं में भांग पड़ना नहीं कहिएगा तो और क्या कहिएगा?

जरा सोचिए… जो सांसद हाथ जोड़ कर वोट मांगते वक्त आप की सेवा करने का वादा करते हैं, जीतने के बाद… आप की सेवा के लिए मिली हुई रकम को 5 सालों में भी समुचित तरीके से खर्च करने का वक्त भी उन के पास नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से गांवों की किस्मत बदलने के तमाम सपने दिखाए, सांसदों ने भी गांवों को गोद ले कर बड़ेबड़े वादे भी किए, लेकिन 8 साल बीत जाने के बाद भी ऐसे कई गोद लिए गांवों में ‘समग्र समावेशी विकास’ की तो छोडि़ए, समुचित शिक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार और बुनियादी जरूरतों को तरसते इन गांवों में अभी तक सामान्य योजनाएं तक भलीभांति नहीं पहुंच पाई हैं.

सोचने वाली बात यह है कि जब देश के प्रधानमंत्री और सांसदों द्वारा गोद लिए गए गांवों का यह हाल है, तो बाकी देश के साढ़े 6 लाख गांवों के समावेशी समग्र विकास के बारे में बात करना और सवाल पूछना ही बेमानी और फुजूल है.

कहने को हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन कुलमिला कर इन 75 सालों में ‘ग्राम-निवासिनी भारत माता’ का चेहरा चमकाने के नाम पर नाना नामधारी योजनाओं के जरीए जो सतही रंगरोगन की कवायद की गई, उन में पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के चलते शक्ल को चमकाने के बजाय और भी ज्यादा बिगाड़ दिया है.

यह कहना गलत ना होगा कि प्रधानमंत्री की इस ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ में न तो सांसद पर्याप्त रुचि ले रहे हैं और न ही इन योजनाओं में दूरदूर तक आदर्श नामक कोई चिडि़या दिखाई दे रही है. यही वजह है कि इस से न तो भारत के गांवों की दशा बदल रही है और न ही भारत की तसवीर.

त्यौहार 2022: चुटकियों में बनाएं स्वादिष्ट समोसे

त्यौहार के समय अगर आपके दोस्त आ रहे हैं और आप कुछ खास बनाने की सोच रहे हैं तो समोसा उनके लिए सबसे बेहतर ऑप्शन होगा, तो इसे बनाने के लिए नीचे दिए गए रेसिपी को फॉलो करें.

सामग्री:

  1. पैपरिका- 1 टीस्पून,
  2. गर्म मसाला- 1/4 टीस्पून,
  3. आमचूर- 1/4 टीस्पून,
  4. नमक- 1 टीस्पून,
  5. अदरक- 1 टेबलस्पून,
  6. धनिया- 2 टेबलस्पून
  7. मैदा- 30 ग्राम,
  8. गेहूं का आटा – 180 ग्राम,
  9. मैदा- 180 ग्राम,
  10. चीनी पाउडर- 1/4 टीस्पून,
  11. नमक- 1 टीस्पून,
  12. तेल- 2 टेबलस्पून,
  13. पानी- 220 मि.ली.
  14. प्याज- 150 ग्राम
  15. चिड़वा- 80 ग्राम,
  16. पानी- 60 मि.ली.,
  17. तेल- तलने के लिए

विधि:

  • एक कटोरी में सभी चीजों को डाल कर अच्छी तरह से मिक्स करें. अब इसे नरम मुलायम आटे की तरह गूंथ लें.
  • एक कटोरे में सारी सामग्रियों को डालकर अच्छी तरह से मिक्स कर दें.
  • एक कटोरी में 30 ग्राम मैदा लेकर उसमें 60 मिली लीटर पानी डाल कर अच्छे से मिक्स करें.
  • अब गुंथे आटे का थोड़ा हिस्सा लेकर उसकी लोई बनाकर बेलें.
  • इसे काटकर 2 से 3 मिनट तक तवे पर सेंकें. अब इसे समोसे के आकार में रोल करके इसमें तैयार किया हुआ मिश्रण डालकर किनारों पर तैयार किया गया मैदे का पेस्ट लगाकर बंद कर दें.
  • अब कढ़ाई में तेल गर्म करके समोसों को गोल्डन ब्राउन होने तक फ्राई करें. अब इसे टिशु पेपर पर निकालें. जिससे अतिरिक्त तेल निकल जाये. फिर इसे टोमाटो सौस के साथ सर्व करें.

Film Review: ‘‘अतिथि भूतो भवः”

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः हार्दिक गुज्जर फिल्मस और  पेन आडियो

निर्देशकः हार्दिक गज्जर

कलाकारःजैकी श्राफ,प्रतीक गांधी ,शर्मिन सहगल,प्रतिमा कानन,दिवीना ठाकुर  अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मजी 5

‘‘सिर्फ प्यार करना ही नही बल्कि प्यार जताना भी आना चाहिए’’ तथा ‘हर रिश्ते में खामियों को नजरंदाज करना चाहिए’ की बात करने वाली हार्दिक गुज्जर की रोमांटिक कौमेडी फिल्म ‘‘अतिथि भूतो भवा’’ हल्की फुल्की हास्य फिल्म है. पर सशक्त फिल्म नहीं है.

कहानी:

वर्तमान समय की इस कहानी का जुड़ाव 75 वर्ष से भी है. इसका जुड़ाव कहानी के केंद्र में स्टैंड अप कौमेडियन श्रीकांत शिरोड़कर (प्रतीक गांधी) हैं, जिन्हें खाना बनाने का शौक है.वह अपनी गर्लफ्रेंड व एअर होस्टेस नेत्रा (शर्मिन सेहगल ) के साथ चार वर्ष से लिव इन रिलेषनषिप में रह रहे हैं. श्रीकांत को प्यार जताना जरूरी नहीं लगता है,जबकि नेत्रा के लिए इमोशन्स और भावनाएं ही सबसे ज्यादा महत्व रखती हैं.इसी वजह से हर दिन छोटी छोटी बात पर श्रीकांत और नेत्रा के बीच तू तू मैं मैं होती रहती है. नेत्रा अब ‘लिव इन रिलेषनषिप’ को शादी में बदलना चाहती है.मगर श्रीकांत को अपने रिश्ते को नाम देने में कोई दिलचस्पी नहीं है. एक दिन जब अचानक एक दिन रात में अपने स्टैंडअप कौमेडी शो से वापस लौटते हुए श्रीकांत शिरोड़कर बीच रास्ते पर कुछ ऐसा करता है कि एक भूत (जैकी श्राफ ) उसके साथ अतिथि  बनकर श्रीकांत के घर आ जाता है.भूत का दावा है कि वह माखन सिंह है. और श्रीकांत शिरोड़कर तो उनके दारजी यानी कि दादा जी हैं,जिनका पुर्नजन्म हुआ है.1975 में माखन सिंह 16 सत्रह वर्ष के दारजी ने वादा किया था कि वह उनकी प्रेमिका मंजू यादव से मिलवाकर रहेंगें.जब माखन अपनी प्रेमिका को होली के दिन दारजी की इच्छानुसार अपनी प्रेमिका मंजू को प्रेम पत्र देने जाता है,तो जैसे ही वह मंजू को प्रेम पत्र व गुलाब का फूल देने वाला होता है, तभी उन्हें दारजी को हार्ट अटैक होने की खबर मिलती है.माखन सिंह के घर पहुंचने पर दारजी स्वर्ग सिधार चुके ेहोते हैं.इधर माखन को अपना प्यार नसीब नही होता.लगभग पैंतालिस वर्ष बीत चुके हैं.माखन की मौत हो चुकी है.पर श्रीकांत से मिलने तक वह एक पेड़ पर उल्टा टंगे रहते हैं.और दारजी ने मंुबई के महाराष्ट्यिन परिवार में श्रीकांत शिरोड़कर के नाम से पुर्नजन्म ले लिया है.अब माखन सिंह का भूत अपने दारजी यानी कि श्रीकांत शिरोड़कर के माध्यम से अपनी जिंदगी का प्यार पाना चाहता है.मजबूरन श्रीकांत शिरोड़कर अपनी महिला मित्र व स्टैडअप कौमेडियन सुचारिता सेन की गाड़ी में सुचारित ,अपनी प्रेमिका नेत्रा व माखन के भूत के साथ मथुरा पहुंचता है.कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.अंततः श्रीकांत शिरोड़कर,नेत्रा व सुचित्रा को प्यार व रिश्तों की अहमियत समझ में आती है.

लेखन  निर्देशनः

गत वर्ष बतौर लेखक व निर्देशक रोमंाटिक फिल्म ‘‘भवाई’’ लेकर आने वाले फिल्मकार हार्दिक गुज्जर रोमांटिक कौमेडी की भूत वाली फिल्म ‘अतिथि भूतो भव’ लेकर आए हैं.जिसमें उन्होने जहां रिश्तों व प्यार की अहमियत व रिश्ते को कैसे मजबूत किया जाए, इस पर रोशनी डाली है. तो वहीं बेवजह अंधविश्वास फैलाने के साथ ही धर्म को भी बेचने का प्रयास किया है.साठ प्रतिशत फिल्म मथुरा में है, तो वहां मंदिर वगैरह का नजर आना स्वाभाविक है.मगर मुंबई से मथुरा जाते हुए जब ग्वालियर में सुचारिता के घर पर रूकते हैं,उस वक्त बेवजह दुर्गा जी की विशालमूर्ति व दुर्गा पूजा, आरती  आदि के दृष्य रखे गए हैं.मजेदार बात यह है कि यह भूत डराने की बजाय खुद दुर्गा माता की मूर्ति के आगे फूल चढ़ता है और कृष्ण मंदिर में भी जाता है.इन धार्मिक दृश्यों का कहानी से कोई संबंध नही है.बल्कि इससे कहानी में व्यवधान आता है.कहानी के स्तर पर 55 वर्षीय भूत का अपने युवा दादाजी से अपने प्यार को दिलाने की गुहार लगाना,अजीब सा लगता है.कई दृष्य ऐसे हैं,जिनमें हंसी नही आती,बल्कि बोरियत होती है.रोड ट्पि पर कई फिल्में बन चुकी हैं.उनके मुकाबले यह फिल्म काफी सतही है.फिर भी इसकी कहानी व पटकथा चुस्त है.संवाद काफी सहज हैं.भूत व पुर्नजन्म के माध्यम से कहानी को कए नया अंदाज देने का प्रयास किया गया है.फिल्म कहीं न कहीं महिला प्रधान होने का दावा करती है.क्योंकि  फिल्म के एक दृश्य में ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ का विषाल विज्ञापन भी नजर आता है.फिल्म कुछ जगहों पर काफी धीमी है,जिसे एडीटिंग टेबल पर कसा जाना चाहिए था. निर्देशक ने इस फिल्म के माध्यम से प्यार के अमर होने की बात भी की है.सुचारिता के किरदार को ठीक से लिखा ही नही गया.

अभिनयः

श्रीकांत शिरोड़कर के किरदार में प्रतीक गांधी के अभिनय को देखकर निराषा होती है.गुजराती रंगमंच पर अपने अभिनय कार जलवा दिखाने के बाद गुजराती फिल्मों से फिल्मी दुनिया में पदार्पण करने वाले  प्रतीक गांधी ने हिंदी वेब सीरीज ‘स्कैम 92’ से अपनी अभिनय प्रतिभा की जो छाप छोड़ी थी,उस पर श्रीकांत षिरोड़कर के किरदार में वह धूल छाड़ते हुए ही नजर आते हैं. भूत के किरदार में जैकी श्राफ ने ठीक ठाक अभिनय किया है.छोटे से किरदार में प्रतिमा कानन अपना असर छोड़ जाती हैं. मशहूर फिल्मसर्जक संजय लीला भंसाली की भांजी और 2019 में प्रदर्शित फिल्म ‘मलाल’ में अभिनय कर चुकी शर्मिन सेहगल ने नेत्रा का किरदार निभाया है, जो कि उनके कैरियर की दूसरी फिल्म है. पर वह सिर्फ खूबसूरत नजर आयी हैं. किशोर वय के माखन सिंह के किरदार में प्रभज्येात सिंह ने काफी अच्छी परफार्मेस दी है.

एक रात ने बचा लिया चारू असोपा और राजीव सेन का घर!

टीवी एक्ट्रेस चारू असोपा  और राजीव सेन अपने रिश्ते को लेकर सुर्खियों में छाये रहते हैं. कुछ दिन पहले दोनों का रिश्ता टूटने की कगार पर पहुंच गया था. यहां तक कि दोनों एक-दूसरे से तलाक भी लेने वाले थे. लेकिन अब वो दोनों साथ हैं. इस बात का खुलासा खुद चारू असोपा ने अपने व्लॉग में किया है. आइए जानते हैं, पूरी खबर.

एक रात ने चारू असोपा और राजीव सेन की जिंदगी को पूरी तरह से बदल दिया. रिपोर्ट के अनुसार चारू असोपा ने बताया  कि 29 अगस्त की रात को उनके और राजीव सेन के बीच क्या हुआ था. चारू असोपा ने इस बारे में  कहा, मैं 29 अगस्त 2022 को मुंबई पहुंच गई थी और 30 तारीख को हम मुंबई फैमिली कोर्ट में जाने वाले थे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Charu Asopa Sen (@asopacharu)

 

लेकिन तलाक से एक रात पहले मैं और राजीव साथ बैठे थे और हम अपने बारे में ही बात करने लगे. इन बातों के बीच हमारी कई मिसअंडरस्टैंडिंग दूर हो गईं, साथ ही हमने अपनी परेशानियां भी सुलझाई.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Charu Asopa Sen (@asopacharu)

 

एक्ट्रेस ने  आगे कहा कि शायद बप्पा चाहते थे कि हम दोनों को एक मौका और मिले और हम अपनी बेटी जियाना के लिए रिश्ते क दोबारा संवार सकें.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Charu Asopa Sen (@asopacharu)

 

चारू असोपा और राजीव सेन ने सोशल मीडिया के जरिए तलाक न लेने की जानकारी दी थी. उन्होंने एक फोटो शेयर की थी, जिसमें एक्ट्रेस, राजीव सेन और उनकी बेटी जियाना नजर आ रहे थे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Charu Asopa Sen (@asopacharu)

 

Neha Kakkar पर फूटा फाल्गुनी पाठक का गुस्सा, पढ़ें खबर

बॉलीवुड की सिंगर फाल्गुनी पाठक (Falguni Pathak) और नेहा कक्कड़ (Neha Kakkar) को बीच इन दिनों सोशल मीडिया पर विवाद चल रहा है.  दोनों ही सिंगर एक-दूसरे के लिए  काफी कुछ लिख रही है. दरअसल फाल्गुनी पाठक  के ‘मैंने पायल है छनकाई’ को नेहा ने रिक्रिएट किया है. इसी गाने को लेकर दोनों के बीच बहस चल रहा है.

नेहा कक्कड़ ने इस गाने का रीमिक्स गाया है, जिसके बाद ये विवाद शुरू हो गया. अब फाल्गुनी पाठक ने नेहा को लेकर काफी कुछ बोला. इन सब के बाद अब फाल्गुनी पाठक ने एक इंटरव्यू में इसको लेकर अपनी राय रखी है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Falguni.J.Pathak (@falgunipathak12)

 

उन्होंने कहा, अगर मुझे इन सब से बारे में पहले पता होता तो मैं एक्शन लेतीं. इसके आगे उन्होंने बोला ‘जब अपने पर गुजरती है तब ही पता चलता है, इस बात का दुख है कि मुझे इस बारे में कुछ पता नहीं था.’ उनके इस इंटरव्यू ने बहस को एक नया मोड़ दिया है. जिसकी वजह से इसको लेकर काफी चर्चा हो रही है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Falguni.J.Pathak (@falgunipathak12)

 

हाल ही में नेहा कक्कड़ ने सोशल मीडिया पर तस्वीरें शेयर की थीं. इन तस्वीरों में नेहा कक्कड़ ब्लैक कलर की ड्रेस में नजर आ रही थीं. इन तस्वीरों को शेयर करते हुए नेहा ने कैप्शन लिखा ‘मैंने पायल है छनकाई.’ जिसके बाद इसको लेकर नेहा को सोशल मीडिया पर काफी ट्रोल किया गया.

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें