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House : कैसी हो नेमप्लेट की डिजाइन

House : इंटीरियर डिजाइन में नेमप्लेट को ले कर भी तमाम प्रयोग हो रहे हैं. नेमप्लेट छोटी चीज भले हो, इस का प्रभाव बड़ा होता है. ऐसे में इस को सावधानी से तैयार करवाना चाहिए.

मकान हो या फ्लैट, उस पर लगने वाली नेमप्लेट की डिजाइन अब बेहद आकर्षक और कलात्मक होने लगी है. मैटीरियल्स, स्टाइल्स और आकारों का बहुत खूबसूरती से प्रयोग किया जा रहा है. ट्रेडिशनल लोहे और लकड़ी की डिजाइन से ले कर हाथ से पेंट की गईं या बैकलिट डिजाइन तक से नेमप्लेट बनाई जाने लगी हैं. अब इन में घर का नाम, जाति, घर के मालिक और रहने वालों के नाम के साथ ही साथ घर का नंबर और जगह का नाम तक लिखा जा रहा है.

घर के मालिक की कोशिश होती है कि नेमप्लेट की डिजाइन ऐसी हो जो देखने वालों पर गहरा प्रभाव छोड सके. ऐसे में इस का चुनाव बेहद सावधानी से करें. नेमप्लेट केवल नाम और पते के लिए होती है. इस की डिजाइन ऐसी हो कि जिस पर लिखे शब्द आसानी से पढ़े व समझे जा सकें. उस को समझने के लिए पढ़ने वाले को डिडिक्शनरी न देखनी पड़े या गूगल सर्च न करना पड़े. साथ ही, घर के मालिक की प्राइवेसी भी बनी रहे.

तरहतरह की डिजाइनें

घर के दरवाजे पर लगने वाली नेमप्लेट में सब से अधिक प्रयोग मैटल की प्लेट का होता है. इस में परिवार के नाम या घर के नंबर के साथ एक आयताकार मैटल की प्लेट होती है. मैटल की प्लेट को लकड़ी के आधार पर लगाया जाता है. इस को बेहतर बनाने के लिए लोहे, पीतल या स्टेनलेस स्टील की नेमप्लेट पर नाम उकेरे जाते हैं या पेंट से लिखे जाते हैं.

मैटल के बाद दूसरा नंबर ग्रेनाइट नेमप्लेट का आता है. यह नेमप्लेट डिजाइन और सुंदरता के हिसाब से मैटल से अधिक पंसद की जाती है. ग्रेनाइट की प्राकृतिक सुंदरता नेमप्लेट को सुंदर बनाती है. इस में सफेद या काले रंग का ग्रेनाइट सब से अधिक पंसद किया जाता. आज के ट्रैंड में कंटेम्पररी ग्लास नेमप्लेट भी बनने लगी हैं. इस में लेजर तकनीक का प्रयोग कर के कांच की सतह पर नाम को उकेरा जाता है. ग्लास नेमप्लेट को स्टेनलेस स्टील फ्रेम के साथ भी तैयार किया जा सकता है.

नेमप्लेट को तैयार करने में ट्रेडिशनल फौक आर्ट का भी प्रयोग किया जाने लगा है. मिट्टी और मिरर के मिश्रण का उपयोग कर के इसे सुंदर पैटर्न और डिजाइन में तैयार किया जाता है. यह डिजाइन लोकल हेरिटेज और ट्रेडिशनल क्राफ्ट के तालमेल से बनती है, जो दूसरों से अलग दिखती है. हाथ से पेंट की गई नेमप्लेट की डिजाइन एक और स्टाइल है जो बेहद अच्छी लगती है. नेमप्लेट को तैयार करने में वाइब्रैट रंगों का प्रयोग भी किया जा सकता है. हाथ से पेंट की गई नेमप्लेट एक आर्ट पीस होती है.

म्यूरल नेमप्लेट की डिजाइन भी इंटीरियर में काफी पंसद की जा रही है. इस डिजाइन में एक म्यूरल चित्र शामिल होता है. यह प्रकृति, लैंडस्केप और एब्स्ट्रेक्ट आर्ट को दिखाता है. यह घरमालिकों के टैस्ट और स्टाइल को भी प्रदर्शित करता है. यह डिजाइन एंट्रेंस को अधिक मनोरम बना सकती है. बुद्ध थीम की नेमप्लेट भी काफी पंसद की जा रही है. यह बुद्ध की डिविनिटी और शांति को दिखाती है. इस में डैकोरेटिव एलिमैंट्स जैसे बुद्ध की मूर्ति या नक्काशी, कमल के फूल और भी बहुतकुछ दिखाया जा सकता है.

रेजिन नेमप्लेट की डिजाइन सब से आधुनिक मानी जाती है. सुदंर आकार या पैटर्न वाले सांचों में डाल कर इस की डिजाइन को तैयार किया जाता है. यह इसे उन डिजाइनों में से एक बनाती है जिन्हें किसी के विजन के अनुसार कस्टमाइज किया जा सकता है. रेजिन के प्रयोग से नेमप्लेट को बेहद खूबसूरत बनाया जा सकता है. लाइट के साथ नेमप्लेट की डिजाइन भी अब तैयार होने लगी हैं. अंधेरे में यह बहुत अच्छी लगती है और इसे रात में भी पढ़ा जा सकता है. यह इस तरह से डिजाइन की जाती है कि पीछे लिखे को आसानी से पढ़ा जा सके. आजकल एम्बेडेड एलईडी लाइट्स, रिकेस्ड लाइटिंग या सोलर एनर्जी से चलने वाली नेमप्लेट भी तैयार होने लगी हैं.

लकड़ी की नेमप्लेट की डिजाइन नैचुरल लुक प्रदान करती हैं. ये सागौन और ओक जैसी सुदंर व टिकाऊ लकड़ी से तैयार की जाती हैं. इन डिजाइनों में नक्काशीदार लकड़ी की पट्टियां प्रयोग की जाती हैं. ऐक्रेलिक नेमप्लेट की डिजाइन में एक क्रिस्टल ऐक्रेलिक पैनल होता है जो आकर्षक लिखावट में एक नाम के साथ उभरा होता है. मार्बल की नेमप्लेट की डिजाइन भी शानदार लुक देती हैं. इस का चिकना लुक आकर्षण को बढ़ाता है. कांच की नेमप्लेट भी बहुत अच्छी लगती है. फ्रास्टेड कांच, नक्काशीदार डिजाइन या रंगीन लहजे वाले कांच की नेमप्लेट का प्रयोग कर सकते हैं.

घर, विला और फ्लैट के लिए हों अलगअलग डिजाइन

नेमप्लेट तो हर घर की जरूरत होती है. आज घर भी तरहतरह के होने लगे हैं. इन में सामान्य घर, विला और फ्लैट शामिल हैं. हर तरह के घर के लिए उस के हिसाब से मिलतीजुलती नेमप्लेट बनानी चाहिए. विला में नेमप्लेट बड़ी हो और पत्थर के प्रयोग से तैयार हो. उस में लाइट और पानी का प्रयोग हो सकता है. फ्लैटों के लिए नेमप्लेट की डिजाइन छोटी और क्रिएटिव एलिमैंट्स की हों.

नेमप्लेट का चुनाव करते समय कुछ ध्यान देने वाली बातें होती हैं. इन का साइज सही हो. वर्टिकल नेमप्लेट और हौरिजौन्टल कोई भी साइज चुनें जो अच्छा लगता हो. नेमप्लेट पर जो लिखा जाए वह दूर से पढ़ने में आए, इस तरह से लिखा जाए. कई बार मकान नंबर छोटा लिख दिया जाता है, इस का ध्यान रखें. जहां पर नेमप्लेट लगी हो वहां रात में भी रोशनी रहे जिस से पढ़ने वाले को दिखाई दे.

नेमप्लेट पर लिखते समय अपनी प्राइवेसी का ध्यान रखें. कुछ लोग जाति या धर्म का महिमामंडन करते हुए नेमप्लेट पर लिखते हैं. इस से बचना चाहिए. डिजाइन दिखाने के चक्कर में इस तरह से न लिखें जो पढ़ने में ही न आए. कई लोग नाम के अक्षरों में बदलाव करते हैं. स्पेलिंग का मनमाना प्रयोग करने से भी दिक्कत होती है.

नेमप्लेट साफसुथरी और सही तरह से लिखी होनी चाहिए. नाम और पते से अधिक इस पर लिखना ठीक नहीं होता. डिजाइन और एकदूसरे की देखादेखी में बनाई गई नेमप्लेट जगहंसाई का कारण भी बन जाती है. इस के लिखे में गलती एकदम भी नहीं होनी चाहिए. तभी इस का सही प्रभाव पढ़ने वाले पर पड़ता है.

Employment : भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही, लेकिन नौकरियां कहां हैं?

Employment : भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में जहां आर्थिक विकास की दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, वहीं रोजगार की स्थिति अभी भी बदतर है. देश के आर्थिक आंकड़े भले ही सकारात्मक हों लेकिन इस का असर आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी पर नहीं दिखता. बढ़ती अर्थव्यवस्था के बावजूद रोजगार की कमी आज भी एक गंभीर और जटिल समस्या बनी हुई है. देश के अनएंप्लौयड वर्कफोर्स का चौंका देने वाला 83 फीसदी हिस्सा 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच है.

दुनिया की सब से बड़ी युवा आबादी वाला भारत आर्थिक चौराहे पर खड़ा है. भारत रोजगार रिपोर्ट 2024 के आंकड़े परेशान करने वाली तसवीर पेश करते हैं. भारत हर साल लगभग 50 लाख ग्रेजुएट तैयार करता है. उन में से लगभग आधे खुद को बेरोजगार पाते हैं. इस का एक कारण है देश में एडवांस टैकक्नोलौजी और डिजिटलाइजेशन की वजह से काम के तरीके बदलना.

जैसेजैसे आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस और मशीन लर्निंग जैसे नए क्षेत्रों में वर्कफोर्स बढ़ा है, वैसेवैसे पुराने क्षेत्रों में नौकरियां घट रही हैं. युवा पीढ़ी में इन नए कौशलों की कमी ने रोजगार की समस्या को और बढ़ा दिया है.

बढ़ती अर्थव्यवस्था और बढ़ती बेरोजगारी के बीच संतुलन बैठाना चुनौतीपूर्ण काम है. इस के लिए सही दिशा में युवाओं के कौशल में निवेश, उद्योगों में निवेश और आजीवन सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. अगर इस दिशा में सही प्रयास किए गए, तो न केवल विकास दर में वृद्धि होगी बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, जिस से देश की आर्थिक स्थिति और मजबूत हो सकेगी.

Artifical Intelligence : एआई से कितनी आसान हुई लोगों की जिंदगियां

Artifical Intelligence : भारत में रोजमर्रा की जिंदगी के अलगअलग तरीकों से एआई और टैक्नोलौजी का इस्तेमाल तेजी से हो रहा है. स्मार्ट डिवाइसेज तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं. कई कंपनियां एआई पावर्ड डिवाइसेज जैसे एयरकंडीशनर, वाशिंग मशीन व अन्य बहुतकुछ लौंच कर रही हैं.

हैल्थकेयर में एआई का इस्तेमाल पर्सनल ट्रीटमैंट के लिए किया जा रहा है. प्रैक्टो और पोर्टिया मैडिकल जैसे स्टार्टअप एआई संचालित टेलीमैडिसिन और होम हैल्थकेयर सेवाओं के क्षेत्र की शुरुआती कंपनियां हैं.

शिक्षा में भी एआई का इस्तेमाल किया जा रहा है. बायजूज और वेदांतु जैसे एडटैक स्टार्टअप पर्सनलाइजड लर्निंग एक्सपीरियंस और रिमोट एजुकेशन जैसी सर्विस देने के लिए एआई का उपयोग कर रहे हैं.

इस के अलावा, फसल की पैदावार बढ़ाने, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने और खेती के तरीकों को बेहतर बनाने के लिए कृषि में भी एआई को अपनाया जा रहा है. क्रौपइन और आरएमएल एगटैक जैसे स्टार्टअप फसल निगरानी, मिट्टी की एनालिसिस और मौसम पूर्वानुमान के लिए एआई का पूरा इस्तेमाल कर रहे हैं.

एआई का प्रयोग औनलाइन शौपिंग में भी बढ़ रहा है. कस्टमर्स की पसंद और खरीदारी की आदतों को समझ कर वैबसाइट्स और ऐप्स बेहतर शौपिंग अनुभव दे रहे हैं. जैसे, मिंत्रा ऐप में खरीदारी करते समय आप घरबैठे उस आउटफिट का लुक अपनी बौडी पर चैक कर सकते हैं.

कुल मिला कर भारत में एआई और टैक्नोलौजी को अपनाने से रोजमर्रा की जिंदगी में बदलाव आ रहा है. स्मार्ट घरों और हैल्थ सर्विस से ले कर शिक्षा और कृषि तक सब जगह एआई का बोलबाला है.

Blinkit : लोगों की जेबों पर डाका डालतीं फास्ट डिलीवरी ऐप्स

Blinkit : भारत में एक अलग ही ट्रैंड देखने को मिल रहा है मिनटों में डिलीवरी का, जो एक गेमचेंजर माना जा रहा है. युवा दस मिनट की डिलीवरी के आदी हो रहे हैं. ये डिलीवरी ऐप्स उन की साइकोलौजी के साथ खेलती हैं, जिस से जरूरत न होने पर भी वे सामान खरीद रहे हैं. जानें क्या है उन की मार्केटिंग स्ट्रेटजी और कैसे लोग उन के जाल में फंसते जा रहे हैं.

संदीप अपने बौस का सब से फेवरेट एंप्लौई है. एक दिन उस ने अपने बौस को घर पर डिनर के लिए इनवाइट किया, क्योंकि कुछ ही दिनों में बेस्ट एंप्लौई का इन्क्रीमैंट होने वाला था. संदीप ने बौस को पटाने के लिए यह डिनर और्गेनाइज किया था. तय डेट पर बौस डिनर करने पहुंचे. संदीप की पत्नी ने काफी पकवान बनाऐ थे. लेकिन हड़बड़ी में बौस का फेवरेट डेजर्ट जलेबी लाना भूल गए. जब बौस ने फरमाइश की तो दोनों एकदूसरे को घूरने लगे. तभी संदीप की पत्नी ने जेप्टो कैफे, जो मात्र 10 मिनट में खाने की डिलीवरी कर देता है, से जलेबी मंगवा ली. जैसा कि ऐप का दावा है 10 मिनट में डिलीवरी, मात्र 10-11 मिनट में ही जलेबी घर पहुंच गई और संदीप की लाज रह गई.

इसी तरह घर में किसी सामान की जरूरत पड़ती है तो हम झट से ऐप खोल कर और्डर कर देते हैं और कुछ ही मिनटों में फल, सब्जियां, घर का कोई सामान या दवाएं सबकुछ हमारे दरवाजे तक पहुंच भी जाती हैं. कुछ कंपनियां तो 8-10 मिनट के भीतर डिलीवरी का दावा करती हैं, जो सच में एक रिकौर्ड बन गया है. सामान खोजने और और्डर करने में ज्यादा समय लगता है, डिलीवरी तो बस चुटकियों में हो जाती है. सामान घर पहुंचने पर हमें यह अच्छा लगता है कि बिना कहीं जाए घर बैठेबैठे हमारी जरूरत पूरी हो गई और ऊपर से कुछ छूट भी मिल गई. आखिर कौन नहीं चाहता कि घर बैठेबैठे उसे उस की जरूरत का सामान मिलता रहे वह भी मिनटों में.

बीते कुछ सालों में इंडिया में क्विक डिलीवरी का क्रेज तेजी से बढ़ता जा रहा है. क्विक कौमर्स की मदद से डिलीवरी करने का क्रेज इसलिए तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि कंज्यूमर्स जितनी जल्दी हो सके, अपने लिए डिलीवरी चाहते हैं.

लेकिन क्या आप ने कभी अपने पड़ोस के किराना स्टोर वाले अंकल के बारे में सोचा है? क्या आप को नहीं लगता कि औनलाइन शौपिंग कैसे हमारी आदतों को खराब कर रही हैं? सच यह है कि अब गलीमहल्ले के किराना स्टोर का काम प्रभावित होने लगा है.

क्विक कौमर्स को सफल बनाने में बहुत बड़ा रोल जेनजी और मिलेनियल्स का है. युवा पीढ़ी के लोग इस का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. इस का कारण यह है कि युवा पीढ़ी को किसी भी चीज के लिए बहुत ज्यादा इंतजार करना पसंद नहीं है. ऐसे में वह कई बार कुछ एक्स्ट्रा पैसे दे कर भी सामान को जल्दी मंगाने को प्रायोरिटी देते हैं. वहीं लोग इस तरह भी देख रहे हैं कि कोई सामान लेने के लिए मार्केट जाना पड़ेगा, जिस में वक्त लगेगा और अगर गाड़ी से जाते हैं तो उस का पैट्रोल का खर्चा भी होगा. ऐसे में 10 मिनट में सामान घर पहुंच जाए तो इस से अच्छा क्या होगा.

इन ऐप्स की स्ट्रेटजीज मानसिकता को प्रभावित करने, खरीदारी के निर्णय को तेजी से लेने और कस्टमर्स को लगातार जुड़ा रखने के लिए डिजाइन की जाती हैं. ये ऐप्स अलगअलग साइकोलौजिकल टैक्टिस का इस्तेमाल करती हैं, जो ग्राहकों को ऐप्स से मैंटली जोड़ने के साथसाथ उन्हें बिजी रखती हैं. कुछ दिनों में होने वाली डिलीवरी अब ट्रेडिशनल हो चुकी है. भारत में अब फास्ट डिलीवरी का क्रेज बढ़ रहा है.

ये कंपनियां लोगों को प्रोमो कोड्स, एक्स्ट्रा डिस्काउंट, फ्री डिलीवरी, फ्री कैश जैसे ट्रैप में फंसाती हैं. जिस से कस्टमर्स को लगता है की जो सामान वे खरीद रहे हैं वह मार्केट से सस्ता भी है और घर तक डिलीवरी भी हो रही है तो क्यों न मंगवाया जाए. कंपनियों के ये औफर कुछ दिन तक ही सीमित होते हैं. तब तक ये लोगों को अपनी आदत डलवा देते हैं. अब कस्टमर छोटी चीज की जरूरत होने पर भी उस ऐप का इस्तेमाल करेगा ताकि कोई औफर मिल सके.

कंपनियों के डिस्काउंट और प्रोमो कोड्स लोगों में फोमो पैदा करते हैं. कंपनियां अपने औफर्स लिमिटेड समय तक रखती हैं. ऐसे में लोग बारबार ऐप चेक करते रहते हैं ताकि वे औफर मिस न कर दें और औफर मिलते ही जरूरत न होने पर भी और्डर कर देते हैं.

ऐसा ही हुआ रेखा के साथ. रेखा 12वीं क्लास में पढ़ती है. एग्जाम ख़तम हो गए थे तो उस ने अपने घर में स्कूल के दोस्तों का गेटटुगेदर रखा. सभी लोग आए. कुछ देर बात करने के बाद सब ने कार्ड्स खेलने का डिसाइड किया. लेकिन रेखा के पास कार्ड्स नहीं थे. ‘तो क्या हुआ! अभी ब्लिंकिट से मंगवा लेते हैं.’ रेखा के एक दोस्त ने कहा. ब्लिंकिट से कार्डस और्डर किए तो ऐप में नोटिफिकेशन आया कि 199 रुपए तक की शौपिंग करने पर फ्री डिलीवरी होगी. रेखा ने कुछ चिप्स और और्डर कर लिए ताकि डिलीवरी फ्री हो जाए और स्नैकिंग भी हो जाएगी. सबकुछ कार्ट में ऐड करने के बाद एक नोटिफिकेशन फिर से आता है कि 499 रुपए तक की शौपिंग करने पर 10 फीसदी की छूट मिलेगी. डिस्काउंट के लालच में रेखा काफी देर तक 500 रुपए तक का सामान खरीदने में जुट गई. रेखा ने कार्ड्स के साथ सारा गैरजरूरत का सामान खरीद लिया. इन सब में उसे 40 मिनट लग गए.

खुद सोचिए, यह कैसी फास्ट डिलीवरी हुई? एक 50-60 रुपए के सामान की जरूरत होने पर बैठेबैठे 500 रुपए तो ठंडे हुए ही, साथ में, समय की बरबादी भी हुई. यही इन कंपनियों की टैक्टिस है जो कस्टमर्स को अपने जाल में फंसाती जा रही है.

मौजूदा वक्त में भारत में क्विक कौमर्स सेगमैंट में 4 बड़े खिलाड़ी हैं- ब्लिंकइट, जेप्टो, बिग बास्केट और स्विगी का इंस्टामार्ट. इन की ग्रोथ काफी तेज हो रही है. ब्लिंकइट, जेप्टो और स्विगी का इंस्टामार्ट एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं. इसी के चलते वे औफर से ले कर कैशबैक तक दे रहे हैं और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना चाह रहे हैं. बात अगर इन के मार्केट शेयर की करें तो अभी सब से ज्यादा करीब 40 फीसदी मार्केट शेयर ब्लिंकइट के पास है. वहीं इंस्टामार्ट के पास 25 फीसदी और जेप्टो के पास करीब 29 फीसदी मार्केट है. इन के अलावा बिग बास्केट के पास करीब 10 फीसदी मार्केट है.

ब्लिंकइट के पास सब से ज्यादा मार्केट शेयर है, जिस की एक बड़ी वजह यह भी है कि वह सिर्फ ग्रोसरी या सब्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि आईफोन, प्लेस्टेशन, फैन, प्यूरिफायर जैसे तमाम चीजों की डिलीवरी भी 10 मिनट में कर रहा है. लेकिन इस मामले में अब बाकी ऐप्स भी पीछे नहीं. कई मोबाइल फोन ब्रैंड्स ने जेप्टो, स्विगी समेत कई फास्ट डिलीवरी ऐप्स के साथ पार्टनरशिप की है. अब मात्र 10 मिनट में मोबाइल फोन भी आप के दरवाजे पहुंच जाएगा.

लोगों तक पहुंचने की होड़ में कंपनियां यहां तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि अब 15 मिनट में खाना भी और्डर कर सकते हैं. ब्लिंकिट, इंस्टामार्ट और जेप्टो की सफलता ने बाकी ईकौमर्स प्लेयर्स को क्विक कौमर्स स्पेस में एंट्री करने के लिए मजबूर किया है. फ्लिपकार्ट ने ‘मिनट्स’ लौंच किया, मिंत्रा ने ‘एमनाउ’ पेश किया, अमेजन ने ‘तेज’ की टेस्टिंग शुरू कर दी है. अब ये ऐप्स भी फास्ट डिलीवरी रेस में शामिल हो चुकी हैं.

बता दें कि कुछ समय पहले तक जेप्टो कुछ ही इलाकों में अपनी सर्विस देता था. कुछ महीने पहले उस ने लगभग हर इलाके में अपनी सर्विस देना शुरू कर दिया. लोगों तक अपनी रीच बढ़ाने के लिए जेप्टो ने आधे दामों पर सामान बेचना शुरू कर दिया. यही नहीं, अपने कस्टमर्स के लिए 125 रुपए तक की छूट भी दी. लोगों ने इस स्कीम का जम कर फायदा उठाया. इस तरह की स्कीम्स का लौलीपौप दे कर जेप्टो ने कई कस्टमर्स को अपनी ओर खींचा.

इन ऐप्स की मदद से लोगों को घरबैठे सुविधा मिल रही है. मिनटों में आप की जरूरत के हिसाब से आप के दरवाजे तक डिलीवरी हो रही है. धनिया से ले कर घर का हर सामान और यहां तक कि आईफोन भी मिल सकता है. इन सर्विसेज ने न सिर्फ लोगों के समय की बचत की है बल्कि उन के काम को आसान बनाया है. लेकिन ये लोगों के दिमाग के साथ अच्छी तरह खेलना जानते हैं. चंद फीसदी डिस्काउंट का झांसा दे कर ये अपने कस्टमर्स से हिडन फीस वसूलते हैं, जिसे पैकेजिंग फीस, सर्ज फीस, प्लेटफौर्म फीस आदि का नाम दिया जाता है. मैंबरशिप का लौलीपौप दिया जाता है कि इस से आप को फ्री डिलीवरी व अन्य फायदे होंगे. जबकि, असल में ऐसा कुछ नहीं होता.

यह जाल इतना बड़ा है कि कम्युनिकेशन गैप भी आज एक बड़ी समस्या बन चुका है. गलीमहल्ले के किराना स्टोर को किसी समय दोस्तों, पड़ोसियों के गपशप का केंद्र माना जाता था. रोजाना सिर्फ दूध या ब्रेड के लिए ही नहीं, बल्कि दोस्ताना चेहरों और पड़ोसियों की बातचीत के लिए भी लोग रुकते थे. मुश्किल समय में ये किराना वाले उधार भी कर देते थे. घर से बाहर निकल कर जब हम चार लोगों से बातचीत करते हैं तो मन का तनाव भी कम होता है. लेकिन इन प्लेटफौर्म्स के आने के बाद से लोग एंटीह्यूमन सा बन गए हैं.

ये कंपनियां अब डाटा माइनिंग भी करने लगी हैं. इस का मतलब यह होता है कि जब आप गूगल पर किसी आइटम के बारे में सर्च करते हैं, कौल या मैसेज में अपने किसी दोस्त से किसी प्रोडक्ट के बारे में डिस्कस करते हैं तो ये कंपनियां हमारी एक्टिविटीज पर नजर रखती हैं और फिर उन्हीं चीजों का विज्ञापन हमें दिखाती है. ये लोगों को उसे खरीदने के लिए उत्सुक करती हैं. और लोग उसे खरीद भी लेते हैं. यह सभी इन फास्ट डिलीवरी एप्स की मार्केटिंग स्ट्रेटजी है.

Social Media : इन्फ्लुएंसर हर्षा रिछारिया पर आध्यात्म प्रदर्शन पड़ा भारी

Social Media : हर्षा रिछारिया सोशल मीडिया पर अचानक तब वायरल हो गई जब वह कुंभ में वीडियोज बनाने लगी. कई सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने कुंभ को वह ग्राउंड बनाया जहां से वे अपनी रीच बढ़ा सकते थे. इसी में हर्षा का नाम भी जुड़ता है.

4 जनवरी, 2025 को महाकुंभ के लिए निरंजनी अखाड़े की पेशवाई निकली थी. उस वक्त 30 साल की मौडल हर्षा रिछारिया संतों के साथ रथ पर बैठी नजर आई थीं.

पेशवाई के दौरान हर्षा रिछारिया से पत्रकारों ने साध्वी बनने पर जब सवाल किया तो उन का जवाब था, ‘मैं ने सुकून की तलाश में यह जीवन चुना है. मैं ने वह सब छोड़ दिया जो मुझे आकर्षित करता था.’

इस के बाद हर्षा सुर्ख़ियों में आ गईं. वे ट्रोलर्स के भी निशाने पर हैं. मीडिया चैनलों ने उन्हें ‘सुंदर साध्वी’ का नाम दे दिया. हर्षा ने मीडिया के सामने सफाई दी कि वे साध्वी नहीं हैं, केवल शिक्षा ग्रहण कर रही हैं. भक्ति और ग्लैमर में कोई विरोधाभास नहीं है.

वे बोलीं, ‘मैं ने अपनी पुरानी तसवीरों के बारे में स्पष्ट किया है. अगर मैं चाहती तो उन्हें डिलीट कर सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया. यह मेरी यात्रा है. मैं युवाओं को बताना चाहती हूं कि किसी भी मार्ग से आप भगवान की ओर बढ़ सकते हैं.’

जब मीडिया ने उन्हें टारगेट करना शुरू कर दिया और संगम में शाही स्नान को ले कर उन पर विवाद हुआ तो मीडिया के सामने वे रोते हुए अपनी सफाई देती नजर आईं, बोलीं, ‘अब बहुत हो रहा है. मैं ने सोचा था कि 144 साल बाद यह पूर्ण महाकुंभ आया है. मैं बहुत सी उम्मीदें ले कर आई थी. शायद यह जिंदगी का पहला और आखिरी पूर्ण महाकुंभ है. मैं ने सोचा था कि पूज्य गुरुदेव के सान्निध्य में धर्म, संस्कृति और कुंभ के बारे में जानूंगी.

‘युवा होने के नाते मैं ने सोचा था कि ऐसे संतों से मिलूंगी जो आम लाइफ से बहुत दूर रहते हैं. हमारे यहां विदेशी आ रहे हैं, हम वाहवाही कर रहे हैं. लेकिन भारतीय बेटी के लिए तरहतरह की बातें की जा रही हैं. विवादों में घेरा जा रहा है. ऐसे में कष्ट तो होगा ही.’

आजकल मीडिया में छाई हर्षा मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली हैं लेकिन उत्तराखंड में रहती हैं. इन के इंस्टाग्राम पर 10 लाख से अधिक फौलोअर्स हैं. पिछले 2 वर्षों से हर्षा इंस्टा पर धार्मिक और आध्यात्मिक विषयों से जुड़े कंटैंट साझा करने लगी हैं. वे अपने इंस्टा प्रोफाइल पर खुद को ‘कट्टर हिंदू सनातनी शेरनी’ के रूप में प्रस्तुत करती हैं और सनातन धर्म के प्रचारप्रसार में सक्रिय हैं.

दो साल पहले हर्षा ने एंकरिंग व अभिनय में हाथ अजमाया, मगर उन की दाल गल नहीं पाई. हताशा और असफलता के चलते कुछ समय से वे पीले वस्त्र, रुद्राक्ष माला और माथे पर तिलक धारण करती दिखी हैं. वे निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज की शिष्या हैं और मौडलिंग के कैरियर से आध्यात्मिकता की ओर रुख किया ठीक उसी तरह जैसे हाल में कभी खूबसूरत ऐक्ट्रैस रही ममता कुलकर्णी ने किन्नर अखाड़ा से जुड़ कर साध्वी बन गईं.

वैसे हर्षा ने बीबीए की पढ़ाई की और 19 साल की उम्र से मौडलिंग और एंकरिंग शुरू की. हर साल वे केदारनाथ दर्शन के लिए जाती हैं. यहां इन्होंने कई रील्स बनाई हैं. उन्हें पता है, धर्म को कैसे यूज करना है. सोशल मीडिया पर वायरल होने के तुरंत बाद नेटिजेंस ने वैस्टर्न कपड़ों में हर्षा की तसवीरें पोस्ट कर डालीं. उन्हें नकली साध्वी कहा और महाकुंभ में भारी मेकअप पर ट्रोल किया. दरअसल, वे बात तो संन्यासी बनने की कर रही थीं मगर आईब्रो व अपरलिप्स थ्रेडिंग कर, मेकअप कर, चमचमाती साड़ी पहनी ऐसी लग रही थीं जैसे कोई फिल्मी सितारा संगम घूमने आई हो.

सोशल मीडिया के एक यूजर ने कहा, ‘अगर वे 30 साल की उम्र में संन्यासिनी बन गई हैं तो कुंभ में इतना दिखावा और इतना अधिक मेकअप करने की जरूरत क्या है? क्या वे इंद्र के दरबार में जा रही हैं?’

इन सब बातों पर गौर करें तो सवाल यह उठता है कि क्या उन की साध्वी वेशभूषा दिखावा भर है ताकि धर्म के नाम पर उन के फौलोअर्स बढ़ें? क्या यह सोशल मीडिया लोकप्रियता बढ़ाने का साधन था? क्या वे केवल अपनी ब्रैंडिंग और छवि बनाने में लगी हुई थीं?

आजकल कई धार्मिक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अचानक उग आए हैं. ये धर्म की बड़ीबड़ी बातें करते हैं. लोगों को आध्यात्मिक रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं लेकिन इस बहाने ये अपने फौलोअर्स व पैसे ही जुटा रहे होते हैं.

हर्षा के इंस्टाग्राम पर 20 लाख से अधिक फौलोअर्स हैं. वे अब तक 2 हजार से अधिक पोस्ट कर चुकी हैं. फौलोअर्स और पौपुलैरिटी के लिए इन्होंने जो एक स्पैशल इमेज बनाई है वह इन के निजी जीवन से मेल खाती है.

अपने प्रोफाइल में वे खुद को कट्टर सनातनी बताती हैं मगर धार्मिकता और आध्यात्मिकता को प्रचार का साधन बनाना, कट्टरता फैलाना या एकतरफा विचारधारा थोपना खतरनाक हो सकता है. इन के फौलोअर्स को भी यह समझना चाहिए कि सोशल मीडिया पर दिखाई देने वाली हर चीज वास्तविक और प्रभावशाली नहीं होती है.

Emotional Story : ओढ़ी हुई दीवार – अखबार में क्या खबर छपी थी

Emotional Story : नजर बारबार उस फोटो फ्रेम से जा कर उलझ जाती है जिस के आधे हिस्से में कभी एक सुंदर सी तसवीर दिखाई देती थी, मगर अब वह जगह खाली पड़ी है. उस ने कई बार चाहा कि वह उस फोटो फ्रेम में कोई दूसरी तसवीर लगा कर वह रिक्तता दूर कर दे. मगर चाह कर भी वह कभी ऐसा नहीं कर सकी, क्योंकि वह जानती थी कि ऐसा करने से वह खालीपन दूर होने वाला नहीं. वह खालीपन उस नई तसवीर के पीछे से भी झांकेगा, कहकहे लगाएगा और कहेगा, ‘तुम कायर हो, तुम में इतनी हिम्मत नहीं कि इस खालीपन को दूर कर सको.’

आज भी स्टील का वह फोटो फ्रेम ममता की मेज पर उसी तरह पड़ा है. उस में एक तरफ ममता की फोटो लगी हुई है कुछ लजाते हुए, कुछ मुसकराते हुए, आंखें बिछाए जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रही हो. और आज भी वह वैसे ही प्रतीक्षा में आंखें बिछाए बैठी है, ठीक उस फोटो फ्रेम वाली तसवीर की तरह. अभी 3, साढ़े 3 साल ही तो बीते हैं, जब फोटो फ्रेम के उस खाली हिस्से में प्रभात की भी तसवीर दिखाई देती थी. आज तो यह नाम भी जैसे अंदर तक चीर जाता है. यही नाम तो है जो इतने सालों से उसे सालता रहता है. एकाएक कार के हौर्न से उस का ध्यान टूट गया. यह हौर्न बगल वाले कमरे की चंचल और शोख किम्मी के लिए था. इसी तरह होस्टल की हर लड़की का कोई न कोई चाहने वाला था.

कभीकभी ममता को भी लगता, काश, इन में से एक हौर्न उस के लिए भी होता. उसे इस होस्टल में रहते हुए पूरे 2 साल होने को आए थे. आज से 2 साल पहले जब वह इस नए शहर के एक स्कूल में अध्यापिका हो कर आई थी तो उस की अकेली रहने की समस्या इस होस्टल ने पूरी कर दी थी, जहां उस के समान कितनी ही लड़कियां, शायद लड़कियां नहीं, औरतें, रहा करती थीं. यहां किसी का भी भूतकाल पूछने की पद्धति नहीं थी. सभी वर्तमान में जीती थीं. वह भी किसी तरह अपने दिन गुजार रही थी. खैर, दिन तो किसी तरह गुजर जाते थे, मगर रातें, न जाने कहां से ढेर सारा सूनापन किसी भयानक स्वप्न की तरह आ घेरता. ऐसे क्षणों में उसे किसी ऐसे साथी की आवश्यकता महसूस होने लगती जो उस के दिनभर के सुखदुख को बांट सके. ऐसे नाजुक क्षणों में उसे महसूस होता कि नारी सचमुच पुरुष के बिना कितनी अधूरी है. उसे किसी साथी की आवश्यकता है क्योंकि यह उस के मन की, उस के शरीर की आवश्यकता है. सब आवश्यकताओं की पूर्ति तो वह कर सकती है, मगर यह आवश्यकता? और तब उसे प्रभात की आवश्यकता महसूस होने लगती.

उसे लगता जैसे अभी दरवाजे को लात से ठेलता हुआ प्रभात उस कमरे में आ जाएगा और बड़े प्यार से कहेगा, ‘अरे, मुन्मु, तू यहां बैठी है. चल, उठ, देख मैं ने तेरे लिए अपने दोस्त से कह कर लोनावला की चिक्की मंगाई है. चल, अब बहुत हो चुका रूठना, अच्छे बच्चे ज्यादा जिद नहीं किया करते.’ और इतने अवसाद के क्षणों में भी उस के मुंह में चिक्की का स्वाद उभर आता. वह तो ससुराल में भी सारी लाज छोड़ कर घर के सामने से गुजरते हुए चिक्की वाले को रोक लेती थी. कभीकभी उसे लगता जैसे प्रभात उसी के पलंग पर बाजू में लेटा है और उस का हाथ अपने हाथों में ले कर अपने नाखूनों से उस के पौलिश लगे बड़ेबड़े नाखून रगड़ रहा है. यह उस की हमेशा की आदत थी. कभीकभी तो वह नाखून पकड़ कर तोड़ने की कोशिश करने लगता और वह दर्द से चीख उठती. इस पर भी वह हाथ न छोड़ता और अधिक चीखने पर कहता, ‘तुम्हारे पिताजी ने ये हाथ अब मुझे सौंप दिए हैं. अब ये मेरी चीज हैं, मैं जो चाहूं करूं.’

इस पर वह झूठमूठ रूठते हुए हाथों से उस के सीने को पीटने लगती, अंत में सीने से चिपट जाती. अब ये बातें सोचतेसोचते उस की आंखें भर आतीं और उस की उंगलियों में एक कसक उठने लगती है. उस का गला रुंध जाता और मन करता कि वह किसी के सीने से लग कर बहुतबहुत रोए. मगर इस समय उसे सीने से लगाने के लिए केवल तकिया ही मिलता और सचमुच उस का तकिया आंसुओं से भीग जाता. से अभी तक याद है, यह तसवीर फोटो फ्रेम में प्रभात ने स्वयं ही लगाई थी. शादी के कुछ ही दिनों बाद दोनों ने अलगअलग तसवीरें खिंचवाई थीं. न जाने क्यों वह उस के साथ तसवीर उतरवाने को तैयार नहीं हुआ था. वह भी नईनवेली होने के कारण ज्यादा कुछ बोल नहीं पाई थी. यह तो खुद फोटोग्राफर ने ही कहा था कि साहब, तसवीर तो इकट्ठी ही अच्छी लगती है. मगर न जाने क्यों उस ने साफ इनकार कर दिया था. वह उस के इनकार का कारण नहीं समझ सकी थी, न ही उसे कुछ पूछने की हिम्मत ही हुई थी.

मगर यह फोटो फ्रेम वह स्वयं ही खरीद कर लाया था और अपने ही हाथों से वे दोनों तसवीरें लगा कर मेज पर रखते हुए बोला था, ‘लो, अब तो हो गए न दोनों साथसाथ. अरे, लोगों को यह दिखाने की क्या आवश्यकता है कि हम में कितना प्रेम है? प्रेम भी भला कोई बताने की चीज है?’ इस घटना से ममता को प्रभात रूखे स्वभाव का अरसिक व्यक्ति ही लगा था. पर उस ने सोचा था कि वह उस का वह रूखापन कुछ ही दिनों में अपने प्रेम द्वारा दूर कर देगी जो उस में संभवतया अकेलेपन के कारण आ गया हो. मगर ममता ने कभी यह नहीं सोचा था कि उस का यही रूखापन उस के लिए दुख का कारण भी बन सकता है. वह हर शाम उस का बेकरारी से इंतजार करते हुए अपने कमरे की खिड़की पर खड़ी रहती, जो सीधे सामने की सड़क पर खुलती थी. मगर प्रभात उस की ओर ध्यान दिए बिना ही मां को आवाज देता हुआ दवाई, फल आदि देने सीधे उन के कमरे में चला जाता. वहीं से वह रसोईघर में जा कर भाभी के पास बैठ कर चाय पीता और तब कहीं जा कर कपड़े बदलने के लिए अपने कमरे में आता.

ममता दिनभर सोचा करती थी कि आज वह उस से खूब बातें करेगी या फिर कहीं बाहर घूमने के लिए चलने की फरमाइश करेगी. मगर वह केवल दोचार बातें पूछ कर और कपड़े बदल कर दोस्तों की चौकड़ी में बैठने निकल जाता. एकदो बार उस ने हिम्मत कर के कहा भी, मगर वह हमेशा कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाता. रात को भी वह देर से घर आता और खाना खा कर सो जाता. मगर जब कभी मौज में होता तो उसे रात दोदो बजे तक सोने ही न देता. कुल मिला कर वह उस के लिए एक उपेक्षित खिलौना बन कर रह गई थी, जिस से बच्चा कभी दिल बहला लिया करता है. अपने प्रति प्रभात की इस उपेक्षा का कारण ढूंढ़ने पर ममता इस परिणाम पर पहुंची कि यह सब उस के मांबाप और भाभी के कारण ही है, जिन के अत्यधिक लाड़प्यार में वह बचपन से डूबा रहा है और अभी तक उबर नहीं पाया है. उसे प्रभात को अपनी ओर आकृष्ट करने और उस का प्यार पाने का उपाय यही सूझा कि उसे उस के मांबाप से अलग कर दिया जाए.

दिमाग में इन विचारों के घर करते ही उस ने त्रियाचरित्र के सारे फार्मूले आजमाने शुरू कर दिए. कभी वह मां पर बिगड़ पड़ती तो कभी भाभी पर. और उस के इस तांडव ने घर में कलह मचा कर रख दी. मगर प्रभात पर इन सब बातों का विपरीत ही प्रभाव पड़ा. वह ममता से और अधिक दूर रहने लगा. आखिर हार कर उस ने स्त्रियों का आखिरी अस्त्र इस्तेमाल किया और तुनक कर अपने मायके जा बैठी. मायके से लौटने की उस ने यही शर्त रखी कि प्रभात को मांबाप से अलग घर ले कर रहना होगा, जिसे प्रभात ने कभी स्वीकार नहीं किया. इस से ममता को और ठेस लगी. फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ी रही. उस की यही जिद उसे ले डूबी. यहां तक कि वकील के नोटिस का जवाब भी प्रभात ने नहीं दिया और मामला कोर्ट तक जा पहुंचा. वह अपने ही रचे गए चक्रव्यूह में खुद फंस गई. इधर इस मामले को ममता के भाइयों ने अपनी इज्जत का सवाल बना लिया और वे कचहरी की दीवारों से सिर मारने लगे. इस कांड ने उस के जीवन में इतना बड़ा परिवर्तन ला दिया जिस की उसे कल्पना भी नहीं थी. जिंदगी इतनी जटिल है, यह उस ने पहली ही बार जाना. किसी तरह उस के भाइयों ने उसे अध्यापिका की यह नौकरी दिला दी थी. मगर वह अपने घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी. उसे अपने इस निष्कासन का अर्थ तभी मालूम हुआ जब उस के बड़े भाई ने उसे प्यार से समझाते हुए कहा था, ‘ममता, शादी के बाद बेटी के लिए पिता का घर पराया हो जाता है. तुम ने सुना ही होगा कि बेटी की डोली और अरथी में कोई फर्क नहीं होता.’

उस दिन के बाद उसे अपना वह घर, जिस में उस ने सारा बचपन बिताया था, पराया लगने लगा था. उसे अपने भाई के इन उपदेशों में अपने सिर का बोझ उतारने का भाव ही नजर आया था और इसीलिए उस ने यह नौकरी सहर्ष स्वीकार कर ली थी. परिवर्तन का दूसरा झटका उसे तब लगा था जब उसे आवेदनपत्र में अपना नाम लिखना पड़ा था. आखिर वह क्या लिखे : श्रीमती ममता अथवा कुमारी ममता? समाज के कानून बनाने वालों ने विवाहित अथवा अविवाहित और विधवा के लिए तो नियम बनाए थे, मगर इस बीच की स्थिति पर शायद किसी ने भी विचार नहीं किया था. पिछले 2 सालों से उस के कानों में कोर्ट में ऊंचे स्वर में पुकारा जाने वाला नाम ही गूंजता रहा था- ममता देवी विरुद्ध प्रभात कुमार. किसी ने भी उस के नाम के आगेपीछे कुछ नहीं लगाया. वहां तो सारा उपक्रम इन दोनों नामों को अलग करने के लिए ही किया जाता रहा. अखबार में छपने वाली तलाक की खबरें, जिन्हें पढ़ कर वह पहले कभी हंसा करती थी, अब खुद उसे एक बिगड़ती हुई जिंदगी का एहसास दिलाने लगीं. अब किसी भी दशा में वह उन पर हंस नहीं पाती थी. उसे अब महसूस होने लगा था कि अपनेआप को प्रगतिशील कहने वाली, नारी मुक्ति आंदोलन की बड़ीबड़ी बातें बघारने वाली नारियां भी किसी पुरुष की छाया पाने के लिए कितनी लालायित रहती हैं.

उस रोज बसस्टौप वाली घटना से तो उस का यह विश्वास और भी दृढ़ हो गया था. उस रोज वह सीताबड़ी मेन बसस्टौप पर शंकरनगर से आने वाली बस के लिए लाइन में खड़ी थी. बस आने में अभी देर थी और बसस्टौप पर भीड़ ज्यादा थी. वह लाइन में खड़ी बोरियत दूर करने के लिए अपने बैग में रखी पत्रिका के पन्ने पलटने लगी थी कि तभी एक मनचला युवक उसे धक्का देता हुआ आगे बढ़ गया. इस पर बिफरते हुए वह बोली थी, ‘आंखें नहीं हैं या तमीज नहीं है? बिना धक्का दिए चला ही नहीं जाता, शोहदा कहीं का.’ इस पर वह युवक भी उद्दंडता से बोल उठा था, ‘मेमसाहब, यह आप का घर नहीं है, बसस्टैंड है. यहां भीड़ होती ही है, और भीड़ में धक्के भी लगते ही हैं. यदि इतनी ही रईसी है तो टैक्सी में सफर किया कीजिए, बस आम जनता के लिए है, समझीं?’

उसे ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी. इस बात पर आसपास खड़े कुछ युवक हंस पड़े थे. उसे कुछ जवाब देते नहीं बना तो वह लाइन से निकल कर बसस्टैंड छोड़ कर सड़क पर आ गई. उस अपमान को वह बड़ी मुश्किल से पी सकी थी. उस रोज उसे प्रभात की याद हो आई थी जब उस ने एक युवक को उस के पर्स में हाथ डालने के शक में भरी भीड़ में पीट दिया था. उस दिन उसे लगा कि एक अकेली स्त्री किसी पुरुष के बिना उस बेल की तरह है जो बिना सहारे के जमीन पर पड़ी लोगों के पैरों तले कुचल दी जाती है. बेल को यदि पैरों तले रौंदे जाने से बचाना है तो उसे कोई न कोई सहारा चाहिए ही, चाहे उसे गुलाब के कांटेदार पौधे का सहारा ही क्यों न मिले. फिर भले ही उस का बदन छिलता रहे, मगर वह कुचले जाने से तो बची रहेगी. साथ ही, कभीकभी ही सही, गुलाब की खुशबू भी तो मिलेगी.

इन्हीं विचारों की ऊहापोह में उस ने निश्चित कर लिया कि वह प्रभात के बिना नहीं रह सकती. इस तरह तिरस्कृत जिंदगी जीने से तो बेहतर वही जिंदगी थी. कम से कम सिर पर रक्षा का छत्र तो था. भले ही थोड़ी उपेक्षा सहनी पड़े और अब तो शायद थोड़ा अपमान भी, मगर कभीकभी प्यार भी तो मिलेगा. जगहजगह अपमानित हो कर भटकने से तो यही बेहतर है कि थोड़ी उपेक्षा सह ली जाए और उस ने प्रभात के आगे आत्मसमर्पण करने का निर्णय ले लिया. वह उसे पत्र लिखेगी कि वह आ रही है, वह उसे स्टेशन पर लेने आ जाए.

सुबह की व्यस्तता ने उस के पत्र लिखने के निर्णय को शाम पर टाल दिया. दिनभर वह अनमने भाव से ढीलेढीले हाथों से ब्लैकबोर्ड पर चाक चलाती रही. शाम को थक कर चूर हो जब वह होस्टल की सीढि़यां चढ़ रही थी तभी मोबाइल पर आया मैसेज देखा. भाई ने भेजा था, लिखा था :

‘‘प्रिय बहन,

‘‘बधाई हो, हम लोग कोर्ट में केस जीत गए हैं. अब तुम सदासदा के लिए प्रभात से मुक्त हो गई हो. अब तुम्हें कभी उस का अपमान सहने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी. तुम्हारा तलाक मंजूर हो गया है.’’ मोबाइल उस के कांपते हाथों से फिसल कर नीचे गिर गया. उस का सिर चकराने लगा और वह पलंग पर औंधी गिर पड़ी. उस के धक्के से पास ही मेज पर रखा फोटो फ्रेम गिर पड़ा और उस का शीशा चूरचूर हो गया और फोटो फ्रेम में एक ओर लगी उस की तसवीर बाहर निकल आई. वह फफकफफक कर रो पड़ी. उस का जीवन भी तो अब उस खाली फोट फ्रेम के समान ही रह गया था- रिक्त, केवल एक शून्य. वह अपनी ही ओढ़ी हुई दीवार के नीच दब कर रह गई थी.

Love Story : आगाज – क्या ज्योति को उसका प्यार मिला

Love Story : ज्योति ने अपने जीवन में जितना अधिक प्रेम को पाना चाहा उतना ही वह तड़पती रही. प्रेम की डगर पर उठने वाले कदम चार होते थे लेकिन, हमेशा प्यार और पार पाने वाले केवल दो ही क्यों रह जाते थे? कहानी द्य प्रेमलता यादु ‘‘क्यातुम मेरे इस जीवनपथ की हमराही बनना चाहोगी? क्या तुम मुझ से शादी करोगी?’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति आवाक उसे देखती रही. वह समझ ही नहीं पाई क्या कहे? उस ने कभी सोचा नहीं था कि प्रकाश के मन में उस के लिए ऐसी कोई भावना होगी. उस के स्वयं के हृदय में प्रकाश के लिए इस प्रकार का खयाल कभी नहीं आया. कई वर्षों से दोनों एकदूजे को जानते हैं. दोनों ने संग में न जाने कितना ही वक्त बिताया है. जब भी उसे कांधे की जरूरत होती.

प्रकाश का कंधा सदैव मौजूद होता. ज्योति अपनी हर छोटी से छोटी खुशी और बड़े से बड़ा दुख इस अनजान शहर में प्रकाश से ही साझा करती. उन दोनों की दोस्ती गहरी थी. जबजब ज्योति किसी रिलेशनशिप में आती तो प्रकाश को बताती और जब ब्रेकअप होता तब भी वह प्रकाश से ही दुख जाहिर करती. उस का यह पहला ब्रेकअप नहीं था. लेकिन दिल तो इस बार भी टूटा था. हां, दर्द जरूर थोड़ा कम था. यह सब जानते हुए प्रकाश का आज इस तरह शादी के लिए प्रपोज करना उसे उलझन में डाल गया. वह अपनी कौफी खत्म किए बिना और प्रकाश से कुछ कहे बगैर औफिस कैंटीन से अपने चैंबर में लौट आई. प्रकाश ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की. ज्योति विचारों के गिरह में उलझने लगी थी. मरुस्थल के गरम रेत पर चलते हुए ज्योति के पैरों में फफोले आ चुके थे. मृगतृष्णा की तलाश में न जाने वह कब से अकेली भटक रही थी. जिस अमृतरूपी प्रेम का वह रसपान करना चाहती थी, वह प्रेम उसे हर बार एक विष के रूप में मिला. बचपन में मां को खोने के बाद लाड़प्यार को तरसती रही.

सौतेली मां का दुर्व्यवहार और दबाव इतना था कि पिता भी उसे दुलार करने से डरते. ज्योति का सारा बचपन मातापिता के स्नेह से वंचित रहा. फिर जब उसे जिंदगी को अपने ढंग से जीने का अवसर मिला, वह आंखों में रंगीन सपने लिए इस महानगरी मुंबई में आ पहुंची. यहां उसे लगने लगा उस की सच्चे प्यार और जीवनसाथी की तलाश जरूर पूरी होगी. लेकिन जब भी उसे ऐसा लगा कि उस ने अपना सच्चा प्यार पा लिया है, अगले ही पल वह प्रेम, वासना में तबदील हो गया. यों, आज जब प्रकाश उस के सामने एक सच्चे प्यार के रूप में खड़ा है वह क्यों उसे स्वीकार नहीं करना चाह रही? कारण शायद साफ था कि अब वह टूटना नहीं चाहती. मन में चल रही उलझनों को सुलझाने के लिए सिगरेट सुलगा वह धुआं उड़ाने लगी. धीरेधीरे पूरा पैकेट खत्म होने लगा लेकिन इस धुएं में गुत्थियां खुलने के बजाय उलझने लगीं तो वह धुआं उड़ाती हुई अतीत की गलियों में मुड़ गई. जब उस ने अपने छोटे शहर पटना से एमबीए कर असिस्टैंट मैनेजिंग डायरैक्टर के पद पर इस जगमगाती कौर्पोरेट दुनिया में अपना पहला कदम रखा था.

उस दिन से ही वह प्रकाश को जानती है. लेकिन प्रकाश से प्यार… नहीं. नहीं. प्रकाश उस के दिल के बहुत करीब जरूर है लेकिन वह उस से प्यार नहीं करती. प्रकाश उस का सब से अच्छा और सच्चा मित्र है. उस का पहला प्यार तो पीयूष है, जिसे वह दिल की गहराइयों से चाहती थी और वह भी तो उस का दीवाना था. पीयूष के प्यार में वह इस कदर पागल थी कि दुनिया की परवा करना छोड़ चुकी थी. पीयूष जैसे लड़के की ही तमन्ना उसे थी. जब उसे देखती तो उस की आंखों में डूब जाती. हमउम्र थे दोनों. उस की हर बात ज्योति को दीवाना कर देती. इस पागलपन में उस ने कब अपना सबकुछ उसे समर्पित कर दिया, उसे पता ही नहीं चला. जब होश आया तब तक सब लुट चुका था और पीयूष का असली चेहरा सामने था. पीयूष ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था, ‘ज्योति, मैं तुम से प्यार तो करता हूं लेकिन मैं अपने मातापिता के विरुद्ध जा कर तुम्हारा साथ नहीं निभा सकता.’ यह सुनते ही ज्योति के जीवन में सैलाब आ गया था. पीयूष उस का पहला प्यार था जिसे वह अब खो चुकी थी. उस वक्त एक प्रकाश ही था जिस ने उसे इस हलाहल में डूबने से बचाया था. यह सब सोच ज्योति को घुटन महसूस होने लगी.

वह घबरा कर खुली हवा में सांस लेने टैरेस पर जा खड़ी हुई. रात गहरी और काली थी. इस से पहले उसे रात इतनी डरावनी कभी नहीं लगी. रोड पर इक्कादुक्का वाहनों की आवाजाही थी. दिन में कोलाहल से भरा यह शहर यामिनी की गोद में सो रहा था, लेकिन ज्योति के नयनों में निद्रा कहां? उस के मन में तो हलचल मची हुई थी. पीयूष से मिली बेवफाई के बाद उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह कभी किसी से प्यार नहीं करेगी, किसी पर विश्वास नहीं करेगी. अपने इन्हीं विचारों के साथ जब वह आगे बढ़ चली तभी उस के दिल के किवाड़ पर आयुष नाम की दस्तक हुई और एक बार फिर उस ने अपने दिल का दरवाजा खुलेमन से खोल दिया. लेकिन इस बार वह पूर्णरूप से सतर्क थी. धीरेधीरे उसे लगने लगा आयुष का प्रेम जिस्मानी नहीं. लेकिन यह भी भ्रम मात्र था. असल में आयुष का लक्ष्य भी उस के शरीर को ही पाना था. वह मौके की तलाश में था. ज्योति जब उस की असलियत से रूबरू हुई तो दोनों के रास्ते जुदा हो गए और इस बार फिर दिल ज्योति का ही टूटा.

हलकीहलकी ठंड लगने लगी, परंतु ज्योति टैरेस पर ही खड़ी रही. उसे याद है किस तरह आयुष से ब्रेकअप के बाद अवसाद ने उसे अपनी गिरफ्त में इस प्रकार जकड़ा था कि वह सिगरेट और शराब में अपनेआप को डुबोने लगी. इस वजह से औफिस में उस का परफौर्मैंस ग्राफ गिरने लगा. उस वक्त भी प्रकाश ही था जिस ने उसे इस परिस्थिति से उभारा. तब उस के मन में प्रकाश के लिए सम्मान और बढ़ गया. साथ ही साथ, मन के एक कोने में प्रेम का बीज भी अंकुरित होने लगा जिसे वह दफना देना चाहती थी क्योंकि वह प्रकाश को खोना नहीं चाहती और न ही वह अपनेआप को उस के काबिल समझती है. यही कारण है कि उस ने अब तक प्रकाश से कुछ नहीं कहा. आयुष के बाद चिराग पतझड़ में वसंत की बहार बन कर आया, जो उस की सारी सचाई जानते हुए उसे अपनाना चाहता था. लेकिन, उस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि चिराग की यह शर्त थी कि उसे अपने अतीत के साथसाथ प्रकाश को भी हमेशा के लिए भुला उस के संग चलना होगा. ज्योति किसी शर्त के साथ रिश्ते में नहीं बंधना चाहती थी,

और फिर मोहब्बत में कैसी शर्त? वह प्रकाश को किसी भी हाल में खोने को तैयार नहीं थी. फिर आज जब प्रकाश सदा के लिए उस का हो जाना चाहता है तो वह क्यों शादी के लिए हां नहीं कह पाई? बेशक, प्रकाश देखने में साधारण था, लेकिन बोलने में ऐसी कशिश थी कि उस के आगे उस का रंगरूप माने नहीं रखता था. तभी उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. वह घबरा कर मुड़ी, सामने प्रकाश खड़ा था. प्रकाश उस के हाथों से सिगरेट ले कर फेंकते हुए बोला, ‘‘मैं ने तुम्हें इन सब से दूर रहने को कहा था न, और तुम…,’’ प्रकाश अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि ज्योति उस से लिपट फफकफफक कर रोने लगी. फिर खुद को प्रकाश से अलग कर उस की ओर पीठ करती हुई बोली, ‘‘तुम यहां से चले जाओ, प्रकाश. मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. तुम्हारे मुझ पर पहले ही बहुत एहसान हैं.

पर बस… अब और नहीं. वैसे भी तुम जानते हो, मैं तुम्हारे लायक नहीं.’’ ज्योति की बातें सुन प्रकाश उसे अपनी ओर खींचते हुए बोला, ‘‘तुम ने ऐसा कैसे सोच लिया कि तुम मेरे लायक नहीं. तुम तो उन सब के साथ पाक दिल से चली थीं, नापाक तो उन के इरादे थे जिन्होंने तुम्हें मलिन किया. शादी के लिए जब लड़के का वर्जिन होना अनिवार्य नहीं, तो लड़की का होना जरूरी कैसे हो सकता है? शादी के लिए जरूरी होता है अपने जीवनसाथी के प्रति दिल से समर्पित होना, वफादार होना, जो तुम हो.’’ प्रकाश के ऐसा कहते ही ज्योति प्रकाश की बांहों में सिमट गई. काली अंधेरी रात बीत चुकी थी. ऊषा की पहली सुनहरी किरणें दोनों पर पड़ने लगीं जो नई सुबह का आगाज थीं.

Hindi Story : प्रेम की सूरत – क्या वह अपनी खूबसूरती के जाल में खुद फंस गई ?

Hindi Story : उस का कद लंबा था. अभिनेत्रियों जैसे नयन और रंग जैसे दूध और गुलाब का मिश्रण. वह लोगों की अपने इर्दगिर्द घूमती नजरों की परवा किए बिना बाजार में शौपिंग कर रही थी. उस के दोनों हाथ बैगों से भरे थे.

पिछले आधे घंटे में उस के पापा का 4 बार फोन आ चुका था और हर बार वह बस इतना बोलती, ‘‘पापा, बस 10 मिनट और.’’

आखिरकार वह बाजार की गली से बाहर मेन रोड पर खड़ी गाड़ी के पास पहुंची और सामान गाड़ी की डिकी में रखने लगी.

मौल से शौपिंग करने के बाद प्रीति थक गई थी. लंबी, पतली प्रीति देखने में बेहद खूबसूरत थी. उस का गोरा रंग उसे और मोहक बना देता था. उस के लंबे बाल बड़े सलीके से उस के मुंह पर गिर रहे थे.

उसी वक्त एक मोटरसाइकिल उस के करीब आ कर रुकी.

बाइकसवार ने जैसे ही हैल्मैट उतारा, वह चिल्लाई, ‘‘अब क्या लेने आए हो? अब तो मैं शौपिंग कर भी चुकी. 2 घंटे पहले फोन किया था. मैं कपड़े तुम्हारी पसंद के लेना चाहती थी मगर सब सत्यानाश कर दिया.’’

‘‘आ ही तो रहा था, मगर जैसे ही औफिस से निकला, बौस गेट पर आ धमका. उस को पता चल जाता तो डिसमिस कर देता. छिप कर आना पड़ता है, और रही बात पसंद की, वह तो हम दोनों की एकजैसी ही है.’’

‘‘राहुल, कब तक बहकाते रहोगे? प्रेम की बड़ीबड़ी बातें करते हो और जब भी तुम्हारी जरूरत पड़ी, बेवक्त ही मिले,’’ वह आगे बोली, ‘‘सरप्राइज भी तो देना था तुम्हें.’’

‘‘कैसा सरप्राइज?’’

‘‘मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं?’’

सुनते ही राहुल के चेहरे का रंग जैसे उड़ गया. उस ने हाथ में थामा हैल्मैट बाइक के ऊपर रखा और प्रीति के पास जा कर उस का हाथ थाम कर बोला, ‘‘प्रीति, मजाक की भी हद होती है. लेट क्या हो गया, तुम तो जान लेने पर ही आ गईं.’’

‘‘क्या करूं, तुम्हारे बिना किसी काम में दिल जो नहीं लगता? जाने कितने लड़कों में नुक्स निकाल कर अभी तक तुम्हारे इंतजार में बैठी हूं. मगर कब तक?’’

‘‘बस, एक साल और, बहन की शादी हो जाए, फिर ले जाऊंगा तुम को दुलहन बना कर.’’

प्रीति ने गहरी सांस ली. उस ने धीरे से राहुल की पकड़ से अपना हाथ आजाद किया और गाड़ी में बैठ कर चल दी. जिस गति पर गाड़ी दौड़ रही थी उसी गति से पुरानी यादें प्रीति के दिमाग में आजा रही थीं.

राहुल 4 साल पहले अचानक से उस के जीवन में आया था तब, जब उस ने कालेज में दाखिला लिया था. कालेज की रैगिंग प्रथा से उस की जान बचाने वाला राहुल ही था. राहुल की इस दरियादिली ने प्रीति के दिल में राहुल के लिए एक अलग जगह बना दी थी. वे दोनों अकसर एकसाथ रहने लगे. कालेज कैंटीन तो ऐसी जगह थी जहां खाली समय में दोनों रोज घंटों बातें करते रहते. महीनों तक उन में से किसी ने उस प्रेम का इजहार न किया जो पता नहीं कब दोस्ती से प्रेम में बदल गया था. राहुल कुछ था भी ऐसा कि उस की दिलकश अंदाज में की गईं बातें सब को उस का दीवाना बना देती थीं. प्रीति तो उसे पहले दिन ही अपना दिल दे बैठी थी.

एक दिन दोनों कैंटीन में साथ बैठे बातें कर रहे थे कि राहुल ने कहा, ‘‘2 महीने बाद परीक्षा हो जाएगी और मैं चला जाऊंगा.’’

‘‘कहां?’’ प्रीति खोई सी बोली.

‘‘घर और कहां? आखिरी साल है मेरा. परीक्षा के बाद तो जाना ही होगा.’’

‘‘मेरा क्या होगा?’’ पहली बार प्रीति ने राहुल का हाथ थाम कर पूछा. राहुल ने भी दोनों हाथों से उस का हाथ थाम लिया.

प्रीति की नजर झुक गई थी. उस ने अप्रत्यक्ष रूप से प्रेम का इजहार जो कर दिया था. फिर परीक्षा हो गई और साथ जीनेमरने का वादा कर राहुल ने कालेज छोड़ दिया. अब जब भी दोनों को समय मिलता, किसी पार्क या होटल में मिल लेते.

कभीकभी राहुल काम से छुट्टी ले कर उसे सिनेमा दिखाने ले जाता. कालेज आने और जाने तक तो दोनों साथ ही रहते. जिंदगी बड़ी हंसीखुशी गुजर रही थी. इस बीच, एक दिन उस के पापा ने खबर दी कि उस के लिए एक रिश्ता आया है. लड़का सरकारी डाक्टर था. लेकिन प्रीति ने लड़के को बिना देखे ही रिजैक्ट कर दिया था. उस के बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा.

हर महीने रिश्ते वाले आते और प्रीति कोई न कोई बहाना बना कर मना कर देती.

एक दिन पापा ने मम्मी से कह कर पुछवाया कि वह किसी लड़के को पसंद करती हो, तो बता दे. लेकिन, प्रीति ने राहुल का जिक्र नहीं किया क्योंकि वह एक प्राइवेट कंपनी में छोटा सा मुलाजिम जो था.

प्रीति खयालों में इस कदर खोई थी कि उसे पता ही न चला कि कब गाड़ी गलत रास्ते पर चली गई. उस ने आसपास गौर से देखा, बहुत दूर निकल आई थी. खुलाखुला सा रोड संकरी गली में कब तबदील हो गया, उसे तो आभास ही न हुआ. किसी से रास्ता पूछने की गरज में उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो कुछ फासले पर 2 लड़के सिगरेट फूंकते दिखे. उस ने गाड़ी वहीं रोक दी और पैदल उन के पास पहुंची. दिन था इसलिए उसे जरा भी भय महसूस न हुआ, मगर अपनी ओर आते उन लड़कों के बदलते हावभाव देख कर गलती का एहसास हुआ.

‘‘मोहननगर जाना था, रास्ता भटक गई हूं. प्लीज हैल्प,’’ प्रीति ने विनयपूर्ण लहजे में कहा.

प्रीति उन लड़कों की आंखों में बिल्ली के जैसे भाव देख कर सिहर उठी. दोपहर का वक्त था और कालोनी की सड़कें सुनसान पड़ी थीं. तसल्ली यह कि दिन ही तो है.

एक लड़का सिगरेट फेंक कर आगे बढ़ा और अपने शिकार पर झपट पड़ने जैसे भाव छिपाता सहानुभूतिपूर्ण लहजे में बोला, ‘‘आगे से राइट टर्न ले कर फिर लैफ्ट ले कर मेन रोड आ जाएगा, वहां से सीधे मोहननगर चली जाओगी.’’ उन लड़कों का आभार जता कर प्रीति गाड़ी में बैठ कर बताई दिशा में चल दी.

वह सोच रही थी कि कितने सज्जन थे वे लड़के और वह खामखां डर रही थी. आगे मोड़ घूमते ही सड़क इतनी तंग हो गई कि बराबर में साइकिल तक की जगह न थी. शुक्र था कि आवाजाही नहीं थी. पता नहीं कालोनी में कोई रहता भी था या नहीं.

फिर सामने वह मोड़ दिखा जिस के बाद मेन रोड आ जाना था. प्रीति ने राहत की सांस ली. फिर जैसे ही गाड़ी मोड़ पर दाएं मुड़ी, प्रीति का गला खुश्क हो गया और पैडल पर रखे पांव में कंपन होने लगा.

मोड़ घूमते ही सड़क 4 कदम आगे एक मकान के दरवाजे पर बंद थी.

उस ने पलभर कुछ सोच कर गाड़ी को रिवर्स करने के लिए पीछे गरदन घुमाई तो पीछे मोटरसाइकिल खड़ी दिखी. उस ने हौर्न बजाया, लेकिन कोई नहीं था. अचानक बगल से किसी ने दरवाजा खोल कर उस के मुंह पर हाथ रखा और अगले पल चेतना लुप्त हो गई.

आंख खुली तो उस ने खुद को अस्पताल के बैड पर पड़े पाया. उस का सारा शरीर ऐसे दुख रहा था जैसे उस के शरीर के ऊपर से कोई भारी वाहन गुजर गया हो.

धीरेधीरे चेतना लौटी तो उसे याद आने लगा कि वह किसी अनजान जगह किन्हीं अनजान बांहों के शिकंजे में फंस गई थी. आगे जो उस के साथ बीती उस की कल्पना मात्र से वह सिहर उठी.

तभी मां के हाथ का स्पर्श अपने माथे पर महसूस कर आंखें छलछला आईं.

‘‘मत रो, बेटी. जो हुआ वह एक दुर्घटना थी. हम चाहते हैं कि तू इस बात को भुला कर नई जिंदगी की शुरुआत करे,’’ कहतेकहते मां जोर से सिसकने लगी.

प्रीति अब होश में थी. जैसेजैसे उसे अपने साथ बीती घटना याद आती वैसेवैसे उस का दिल बैठता जाता. जीवन की सारी उम्मीदें, सारे सपने छोटी सी घटना की भेंट चढ़ गए थे. बस, बाकी बची थी तो एक शून्यता जिस के सहारे इतना बड़ा जीवन बिताना किसी तप से कम न था.

3 दिनों बाद अस्पताल से घर लौट आई. जो लोग उस के रिश्ते की बात करते थे, उसे देखने तक न आए. संकेत साफ था.

दिनभर प्रीति घर से बाहर न निकलती. अंधेरा घिर आता जब टैरेस पर खड़े हो कर बाहर की दुनिया को नजर भर कर देखती.

एक सुबह वह कमरे में लेटी थी. पापा और मम्मी बाहर बैठे वस्तुस्थिति पर विलाप करते गुमसुम बैठे थे. उस ने सुना, दरवाजे पर दस्तक हुई थी.

पिछले 10 दिनों में पहली बार था कि कोई उस घर में आया था.

पता नहीं किस ने दरवाजा खोला होगा. बाहर कोई वार्त्तालाप भी न हुआ, जिस से प्रीति अनुमान लगाती कि कौन आया था.

फिर कमरे में कोई दाखिल हुआ तो वह सिमट कर उठ बैठी. उस ने डरतेझिझकते सिर उठाया. राहुल उस के करीब खड़ा था हाथ में प्रीति की पसंद के फूल थामे. पीछे दरवाजे पर मम्मीपापा खामोश जड़वत खड़े थे.

राहुल ने फूल प्रीति के करीब बैड पर रख दिए और एक किनारे पर बैठ गया.

‘‘मैं काम के सिलसिले में शहर से बाहर था. कल ही लौटा हूं. काश कि मैं बाहर न गया होता? ऐसा हम अकसर सोचते हैं, हम सोचते हैं कि हम हर जगह रह कर किसी भी अनहोनी को होने से रोक देंगे. यह सोचना अपनेआप को दिलासा देने की कोशिश के सिवा कुछ नहीं. एक घटना जीवन की दशा और दिशा दोनों को बदल देती है लेकिन जिधर भी दिशा मिले, चलते जाना है, यही जीवन है. मैं काफी मुसीबतों के दौर से गुजरा हूं. अब कुछ कमा रहा हूं और इस मुकाम पर हूं कि जीवन को ले कर सपने बुन सकूं. मैं सपने बुनता हूं और उन सपनों में हमेशा तुम रही हो, प्रीति. मैं चाहता हूं कि वे सपने जस के तस रहें, जिन में हंसतीमुसकराती प्रीति हो. ऐसी मायूस और हारी हुई नहीं,’’ कहतेकहते राहुल भावुक हो गया. उस ने प्रीति का हाथ थाम लिया.

एक पल के लिए प्रीति को कुछ समझ न आया कि क्या प्रतिक्रिया दे. लेकिन राहुल के बेइंतहा प्रेम को देख कर उस की आंखें भर आईं. वह राहुल से लिपट कर रो पड़ी. दिल में दबी उम्मीदों के ऊपर पड़ी पश्चात्ताप की बर्फ आंसुओं के रूप में बह रही थी.

लेखक – धीरज राणा भायला

Hindi Kahani : यह जीवन है – लतिका को अम्मा बाबूजी का आना क्यों पसंद नहीं था?

Hindi Kahani : “आज औफिस में फोन आया था बाबूजी का. अगले सोमवार को वे और अम्मां आ रहे हैं,” पति हिमांशु से यह सूचना पा कर लतिका खुश नहीं हुई.

आंखें तरेर कर उस ने पति को देखा. फिर भौं सिकोड़ कर बोली, ‘‘तुम ने क्या कहा?’’

‘‘मैं…मैं क्या कहता भला. भई, वे आ रहे हैं, तो आ रहे हैं. मेरे कुछ कहने का सवाल ही कहां उठता है?’’

‘‘पर हम ने तो उन्हें बुलाया नहीं.’’

‘‘कमाल की बात करती हो तुम भी, लतिका. भला मांबाप को अपने बेटबहू के पास उन के बुलावे पर ही आना चाहिए. अरे, घर है उन का, जब जी चाहे आएं.’’

‘‘और लड़कियों की परीक्षा का क्या होगा, जो सिर पर है. तुम ने यह क्यों नहीं कहा कि अगले हफ्ते से बेटियों के एग्जाम हैं.’’

‘‘मैं नहीं कह सकता. तुम चाहो, तो कह दो,’’ तौलिया उठा कर बाथरूम में घुसता हुआ हिमांशु बोला.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. हर बुरी बात कहने मैं जाऊं और बुरी बनी रहूं. तुम अच्छे बने रहना. अरे, मैं उन्हें वैसे ही कहां पसंद हूं.’’

पर तब तक पत्नी के शोर से बचने के लिए हिमांशु बाथरूम का शौवर चालू कर चुका था.

बीच के 3 दिन बेहद किचकिच में बीते. हिमांशु के सामने उठतेबैठते लतिका का यही रोना रहता कि अम्मांबाबूजी आ रहे हैं, पर रहेंगे कहां. 2 कमरे वाले फ्लैट में उन का बिस्तर लगेगा कहां. फिर सवेरे से अम्मां अपना भजन चालू कर देंगी, ‘हुआ सवेरा, चिडिय़ां जागीं, तुम भी अब जग जाओ.’ भला ऐसे में बच्चियां अपनी पढ़ाई कर पाएंगी, वह भी इंजीनियरिंग के कंपीटिशन की. हिमांशु का कहना था कि वे हमारे घर सालों बाद आ रहे हैं. पूरा घर है. ड्राइंगरूम है, उसी में रात में एक चारपाई डाल दी जाएगी. एक तख्त पड़ा ही है वहां. हम दोनों वहां सो जाएंगे. अम्मांबाबूजी बेडरूम में सो जाएंगे.

हिमांशु के पिता कैलाशनाथ को रिटायर हुए 10 साल हो गए थे. उस के बाद वे अपने शहर सीतापुर के मकान में चले गए थे. थोड़ी सी खेती थी. पहले तो बटिया यानी हिस्से में दे रखी थी पर अब खुद देखते हैं. उन के 2 बेटे हैं. एक दिल्ली में हिमांशु, दूसरा चेन्नई में सुयश. हिमांशु के पास दिल्ली आने की उन की इच्छा बहुत दिनों से थी. सिर्फ एक बार चेन्नई गए थे. रेल का लंबा सफर मुश्किल हो गया था, इसलिए फिर दोबारा नहीं गए. दिल्ली तो फिर भी पास था. सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे, इसलिए पैंशन मिल जाती थी.

लतिका के साथ रहने का मौका उन को कम ही मिला था. शादी के बाद ही वह हिमांशु के पास दिल्ली आ गई थी. दोनों बेटियां भी दिल्ली में हुईं. तब कैलाशनाथ नौकरी में थे. बेटियों के होने पर हिमांशु की मां शांति देवी कुछ दिनों के लिए बहू के पास आ गई थीं पर लतिका की गृहस्थी में वे ज्यादा रचबस न पाईं. लतिका ने अपनी मां को भी बुला लिया था. हर बात में उन्हीं का दखल रहता. मायूस हो कर शांति देवी पति के पास लौट आई थीं. उस के बाद किसी त्योहार पर ही वे लोग मिलते थे. शांति देवी भी नापतौल कर बहू से बोलतीं. उन्हीं के आने के समाचार से लतिका बेचैन हो उठी थी.

सोमवार को हिमांशु स्टेशन जा कर अम्मांबाबूजी को लिवा लाएगा. उस की दोनों बेटियां किम और केतकी अलग मुंह बनाए घूम रही थीं. मां से उन्हें पता चल गया था कि गांव से बाबादादी आ रहे हैं. कितना नुकसान होगा पढ़ाई का. वे यही राग अलापती रहतीं. हिमांशु तंग आ चुका था, इन की बकबक से.

ऊब कर उस ने कह दिया, ‘क्या जिन के घरों में बच्चों के बाबादादी रहते हैं, वे बच्चे जाहिल रहते हैं. अगर हम सब एक घर में एक ही साथ रह रहे होते तो क्या करतीं तुम लोग. अच्छा तमाशा खड़ा कर दिया है. मेरे मातापिता आ रहे हैं. वे तुम सब के भी कुछ लगते हैं. जैसी मां वैसी बेटियां.’

 

हिमांशु का इतना कहना काफी था. लतिका मुंह सुजा बैठी. जिस दिन कैलाशनाथ और शांति देवी आए, उस दिन भी उस का मुंह सूजा ही रहा. हां, उन के पैर छू कर वह चायनाश्ता जरूर रख गई, पास बैठी भी रही. शांति देवी ने दोनों बेटियों को बुला कर प्यार किया. उन से उन की पढ़ाई के बारे में बातें कीं. वे उन दोनों के लिए सूट का कपड़ा लाई थीं. कैलाशनाथ 2 बड़ी चौकलेट लाए थे. तोहफा पा कर तो बच्चियां खुश हो गईं.

दादी के गले में बाहें डाल कर वे झूल गईं तो लतिका ने उन्हें घूर कर देखा. मां के तेवर देख कर लड़कियां पढऩे का बहाना कर वहां से खिसक लीं. खाना भी लतिका ने अच्छा बनाया था. सास को खीर पंसद थी, सो उस ने खीर भी बनाई थी. सोने की बात चली तो कैलाशनाथ और शांति देवी ने बेडरूम में सोने से मना कर दिया. कहने लगे, यहीं बैठक में सो जाएंगे.

दूसरे दिन 4 बजे ही खटपट सुन कर लतिका की नींद खुल गई. साथ वाले बाथरूम से आवाजें आ रही थीं. जरूर अम्मांबाबूजी उठ गए होंगे. लतिका मुंह ढंक कर फिर सो गई. सुबह जब वह बाथरूम में गई तो देख कर दंग रह गई. पूरा बाथरूम साफसुथरा, चमक रहा था. कोनाकोना साफ हो गया था. वैसे तो बाई रोज ही बाथरूम साफ करती थी पर इस तरह से तो कभी साफ नहीं हुआ था. बाहर निकली तो देखा बाबूजी सोफे पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैं और अम्मां माला फेर रही हैं. मन ही मन वे कुछ बुदबुदा रही थीं.

लतिका को देख कर वे मुसकराईं, ‘‘बहू, हम दोनों ने चाय पी ली है. अब तुम हमारे लिए न बनाना.’’

2 दिन में ही लतिका ने महसूस कर लिया कि वह जिस चीज से घबरा रही थी, वैसा कुछ भी नहीं है. सास काफी मदद कर देती हैं. सुबह की सब्जी काटना, दूध वाले से दूध लेना, शाम की सब्जी काटना, दूध वाले से दूध लेना. शाम की सब्जी लाना बाबूजी ने अपने जिम्मे ले लिया था. यही नहीं, सामान लाने का पैसा भी न लेते थे वे. शाम को मांबाबूजी दोनों ही सामने वाले पार्क में चले जाते. लड़कियां भी दादाजी के पास बैठ कर खूब बातें करतीं. हिमांशु खुश था कि परिवार में शांति कायम है.

रात को सोते समय हिमांशु ने लतिका को छेड़ दिया, ‘‘अम्मांबाबूजी को आए काफी दिन हो गए.’’

‘‘तो क्या हुआ,’’ लतिका फौरन बोल पड़ी, ‘‘अच्छा, यह बताओ, बाबूजी अपने मकान का क्या करेंगे, उस में दोनों भाइयों का हिस्सा लगेगा या सिर्फ तुम्हारा?’’

‘‘जाऊं पूछने?’’

लतिका चिढ़ गई, ‘‘तुम तो हर वक्त गुस्से में रहते हो. किसी भी बात का सीधा जवाब नहीं देते.’’

‘‘तुम बात ही ऐसी करती हो. अरे, बाबूजी का पुश्तैनी मकान है. काफी हिस्सा तो बाबूजी ने अपने पैसे से बनवाया है. वे जो चाहे उस का करें.’’

‘‘वाह, भूल गए क्या. जब किम के इंजीनियरिंग दाखिले के लिए हम ने एक लाख रुपया मांगा था, उन्होंने मना कर दिया था. पैसे होते तो आज किम का इंजीनियरिंग का दूसरा साल होता. एक साल ड्रौप करने की वजह से दोनों बहनें एकसाथ इंजीनियरिंग में बैठ रही हैं,’’ लतिका रोंआसी हो उठी.

‘‘वह प्राइवेट कालेज था, लतिका. केतकी इस बार पहली बार कंपीटिशन दे रही है और किम दूसरी बार. अब तुम देखना जब ये बेटियां अपनी मेहनत से सेलैक्ट होंगी तो इन की खुशी का मजा ही कुछ और होगा. फिर इतना पैसा एकसाथ बाबूजी देते कहां से?’’

‘‘मकान बेच कर. बच्चों के लिए इतना तो कर ही सकते थे?’

बहस करना फुजूल समझ हिमांशु करवट बदल कर सो गया.

एक दिन हिमांशु दफ्तर से लौटा तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. पता चला उस ने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया है. दिया क्या, दिलवाया गया है. घर का वातावरण बोझिल हो गया. लतिका तो सिर पकड़ कर बैठ गई. 20-25 हजार रुपए प्रति महीने कमाने वाले परिवार में कई चीजों की किस्तें भरी जा रही थीं. कार और फ्लैट की किस्तें तो अभी काफी देनी थीं. लतिका अपनी सास के पास पहुंच कर रोने लगी. कैलाशनाथ भी परेशान हो गए.

दूसरे दिन तो एक अजीब ही बात हो गई. कहां तो अम्मांबाबूजी अभी होली तक रुकने वाले थे, कहां अचानक ही सुबहसुबह वे चले गए. हिमांशु परेशान सा सिर हाथों में दिए बैठा रहा. कंपनी ने अभी हरजाना भी नहीं दिया था. तब तक कैसे चलेगा सबकुछ.

‘‘लो, चले गए न तुम्हारे मातापिता तुम्हें मुसीबत में छोड़ कर. इसी का दम भरते थे?’’ लतिका को मौका मिल गया था बोलने का.

हिमांशु खुद नहीं समझ पा रहा था अम्मांबाबूजी ने ऐसा क्यों किया. उस की मुसीबत में बजाय उस का हौसला बढ़ाने के वे खुद चले गए. बस, चलतेचलते यही कहा कि गांव जा रहे हैं. लतिका ने कहा भी, घर फोन कर के पता करो पर हिमांशु ने मना कर दिया. अब कैसे भी हो, परेशानी खुद उठाएंगे. अम्मांबाबूजी भी तो सबकुछ जानते हैं. वह उन से कुछ कहने नहीं जाएगा. पूरे घर में कई रोज मातम सा छाया रहा. एक हफ्ता बीत गया, न अम्मांबाबूजी लौटे न उन का कोई फोन आया.

अचानक एक रोज सुबहसुबह अम्मांबाबूजी लौट आए. लतिका हैरानी से उन्हें मुंह बनाए देखती रही. हिमांशु भी गुस्से में भरा उठ कर बाहर आ गया. वह कुछ सुनाने जा ही रहा था कि अम्मां ने एक बैग ला कर उस के हाथ पर रख दिया.

‘‘यह क्या है?’’ उस ने नजरें ऊपर उठा कर पूछा.

‘‘रुपए, तुम्हारे प्लैट की किस्तों के बाकी रुपए,’’ बाबूजी बोले.

‘‘पर बाबूजी, यह सब आप कैसे लाए?’’

‘‘घर बेच कर.’’

‘‘घर बेच कर,’’ हिमाशं आवेश में उठ कर खड़ा हो गया, ‘‘पर वह तो पुश्तैनी मकान था. आप ने उसे बेचने से मना किया था?’’

‘‘उस समय की जरूरत और आज की जरूरत में जमीनआसमान का फर्क है, बेटा. उस समय तुम यह मकान बेच कर बेटी का एडमिशन इंजीनियरिंग कालेज में करवाना चाहते थे. आज अगर मैं मकान न बेचता तो तुम्हारा फ्लैट हाथ से चला जाता.’’

‘‘बाबूजी,’’ हिमांशु की आंखें भर आईं.

‘‘हां, बेटा. हम तुम्हें छोड़ कर कहीं चले नहीं गए थे. पैसे के इंतजाम के लिए ही गए थे. मकान तुम्हारी मां के नाम था, सो उन का भी जाना जरूरी था. बेटेबेटियों का एडमिशन उन की योग्यता पर होने दो. योग्यता के बल पर पाई गई चीज का आनंद ही कुछ और होता है.’’

हिमांशु ने लतिका की तरफ देखा जिस की आंखों में खुशी और पछतावे के आंसू थे.

‘‘एक बात याद रखो, बेटा. आज प्राइवेट नौकरियों का कोई भरोसा नहीं है. ये आज अच्छी हैं, लालच देती हैं, ढेर सारा पैसा देती हैं. पर कल जब इन्हें कोई तुम से लायक मिल जाता है तो तुम्हें मक्खी सा निकाल फेंक देती हैं. अपना खर्च, अपनी हैसियत के मुताबिक करना सीखो. एक पुराना नियम है, कर्ज लेना हो तो सिर्फ 2 मौकों पर लो. एक, बच्चे की पढ़ाई के लिए; दूसरा, बेटी की शादी के लिए. ये हमारे जमाने की बातें हैं. शायद आज के समय में खरी न उतरें.

‘‘मैं तुम्हें नसीहत नहीं दे रहा हूं. तुम्हारे सामने 2 बेटियां हैं. पहले उन की पढ़ाई और शादी के लिए पैसे इकट्ठे करो. घर की विलासिता की चीजें तो बहुत छोटी आवश्यकता होती हैं.’’

दोपहर तक कैलाशनाथ और शांति देवी ने अपना सामान बांध लिया.

लतिका हैरानपरेशान हो कर पूछ बैठी, ‘‘अम्मां, आप कहां जा रही हैं. अब हम सब साथ ही रहेंगे.’’

‘‘नहीं, बहू,’’ अम्मां मधुर स्वर में बोलीं, ‘‘हमारा दूरदूर रहना ही अच्छा है. तुम ने और मैं ने एक लंबा समय अलगअलग बिताया है. मैं ने तुम्हारी सहायता की है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारे साथ तुम्हारी गृहस्थी में रहूं. हम कभी मिलेंगे तो ज्यादा प्यार और अपनापन बना रहेगा. हिमांशु का हौसला बढ़ाती रहना. उसे जल्दी ही नौकरी मिल जाएगी. इतनी सारी डिग्रियां हैं उस के पास. जीवन में उतारचढ़ाव तो आते ही रहते हैं. उन से हिम्मत नहीं हारते. यही तो जीवन है, बहू.’’

‘‘पर, मांजी…’’

‘‘देखो, बेटी,’’ अब की कैलाशनाथ बोल पड़े, ‘‘मन छोटा हो तो बड़े से बड़ा घर भी आदमी को छोटा लगने लगता है. एक अरसे से हम अलगअलग रह रहे हैं. अब एकदूसरे के साथ रह कर एडजस्ट करने में दोनों को परेशानी होगी. खैर, छोड़ो न बातों को. तुम, हिमांशु और बच्चियां खुश रहो, यही कामना है.’’

‘‘पर आप रहेंगे कहां?’’

‘‘वहीं, जहां रहते थे. भई, मकान वह नहीं रहा पर गांव तो अपना ही है अभी. सरकारी मुलाजिम रहा हूं. पैंशन पाता हूं और इतनी पाता हूं कि किराए का मकान ले कर रह सकूं, समझीं.’’

हिमांशु और लतिका निरुत्तर खड़े रह गए.

Romantic Story : पांचवां मौसम – क्या वो अपने पहले प्यार का साथ पा सकी

Romantic Story : ‘‘आज नीरा बेटी ने पूरे डिवीजन में फर्स्ट आ कर अपने स्कूल का ही नहीं, गांव का नाम भी रोशन किया है,’’ मुखिया सत्यम चौधरी चौरसिया, मिडिल स्कूल के ग्राउंड में भाषण दे रहे थे. स्टेज पर मुखियाजी के साथ स्कूल के सभी टीचर, गांव के कुछ खास लोग और कुछ स्टूडेंट भी थे.

आज पहली बार चौरसिया मिडिल स्कूल से कोई लड़की फर्स्ट आई थी जिस कारण यहां के लड़केलड़कियों में खास उत्साह था.

मुखियाजी आगे बोले, ‘‘आजतक हमारे गांव की कोई भी लड़की हाईस्कूल तक नहीं पहुंची है. लेकिन इस बार सूरज सिंह की बेटी नीरा, इस रिकार्ड को तोड़ कर आगे पढ़ाई करेगी.’’ इस बार भी तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट उभरी.

लेकिन यह खुशी हमारे स्कूल के एक लड़के को नहीं भा रही थी. वह था निर्मोही. निर्मोही मेरा चचेरा भाई था. वह स्वभाव से जिद्दी और पढ़ने में औसत था. उसे नीरा का टौप करना चुभ गया था. हालांकि वह उस का दीवाना था. निर्मोही के दिल में जलन थी कि कहीं नीरा हाईस्कूल की हीरोइन बन कर उसे भुला न दे.

आज गांव में हर जगह सूरज बाबू की बेटी नीरा की ही चर्चा चल रही थी. उस ने किसी फिल्म की हीरोइन की तरह किशोरों के दिल पर कब्जा कर लिया था. आज हरेक मां अपनी बेटी को नीरा जैसी बनने के लिए उत्साहित कर रही थी. अगर कहा जाए कि नीरा सब लड़कियों की आदर्श बन चुकी थी, तो शायद गलत न होगा.

वक्त धीरेधीरे मौसम को अपने रंगों में रंगने लगा. चारों तरफ का वातावरण इतना गरम था कि लोग पसीने से तरबतर हो रहे थे. तभी छुट्टी की घंटी बजी. सभी लड़के दौड़तेभागते बाहर आने लगे. कुछ देर बाद लड़कियों की टोली निकली, उस के ठीक बीचोंबीच स्कूल की हीरोइन नीरा बल खा कर चल रही थी. वह ऐसी लग रही थी, जैसे तारों में चांद. नीरा जैसे ही स्कूल से बाहर निकली, निराला चौधरी को देख कर खिल उठी.

नीरा, निराला के पास पहुंची और बोली, ‘‘बिकू भैया, आप यहां?’’

बिकू निराला का उपनाम था. निराला बोला, ‘‘मैं मोटर- साइकिल से घर जा रहा था. सोचा, तुझे भी लेता चलूं.’’

फिर दोनों बाइक पर एकदूसरे से चिपट कर बैठ गए. बाइक दौड़ने लगी. सभी लड़केलड़कियां नीरा के इस स्टाइल पर कमेंट करते हुए अपनेअपने रास्ते हो लिए. मैं और निर्मोही भाई वहीं खड़ेखड़े नीरा की इस बेहयाई को देखते रहे.

नीरा आंखों से ओझल हो गई तो मैं निर्मोही भाई के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘क्या देखते हो भैया, भाभी अपने भाई के साथ कूच कर गई.’’

इस पर निर्मोही भाई गुस्से में बोला, ‘‘बिकूवा उस का भैया नहीं, सैंया है.’’

मैं ने उन को पुचकारा, ‘‘रिलैक्स भैया, देर हो रही है. अब हम लोगों को भी चलना चाहिए.’’

फिर हम दोनों अपनीअपनी साइकिल पर सवार हो कर चल दिए. रास्ते में निर्मोही भाई ने बताया कि बिकूवा अपने ही गांव का रहने वाला है. शहर में उस का अपना घर है, जिस में वह स्टूडियो और टेलीफोन बूथ खोले हुए है. वह धनी बाप का बेटा है. उस के बाप के पास 1 टै्रक्टर और 2 मोटरसाइकिल हैं. बिकूवा अपने बाप का पैसा खूबसूरत लड़कियों को पटाने में पानी की तरह बहाता है.

वक्त के साथसाथ निराला और नीरा का प्यार भी रंग बदलने लगा. कुछ पता ही नहीं चला कि निराला और नीरा कब भाईबहन से दोस्त और दोस्त से प्रेमीप्रेमिका बन गए. इस के बाद दोनों एकदूसरे को पतिपत्नी के रूप में देखने का वादा करने लगे.

धीरेधीरे इन दोनों के प्यार की चर्चा गरम होने लगी. निर्मोही भाई भी इस बात को पूरी तरह फैला रहे थे. कब नीरा हाईस्कूल गई, कब उस पर निराला का जादू चला और कब उस की लवस्टोरी स्कूल से बाजार और बाजार से गांव के घरों तक पहुंची, कुछ पता ही नहीं चला. अब गांव की लड़कियां, जिन के दिल में कभी उस के लिए स्नेह हुआ करता था, अब वही उसे देख कर ताना कसने लगीं कि मिसेज निराला चौधरी आ रही हैं.

कोई कहता कि आज नीरा बिकूवा के स्टूडियो में फोटो खिंचवाने गई थी. कोई कहता, आज वह बिकूवा के साथ रेस्टोरेंट जा रही थी. आज वह बिकूवा के साथ यहां जा रही थी, आज वहां जा रही थी. ऐसी ही अनापशनाप बातें उस के बारे में सुनने को मिलतीं. लेकिन बात इतनी बढ़ जाने के बाद भी उस के घरवालों को जैसे कुछ पता ही नहीं था या फिर उन लोगों को नीरा पर विश्वास था कि नीरा जो कुछ भी करेगी उस से उस के परिवार का नाम रोशन ही होगा.

एक दिन जब निर्मोही भाई से बरदाश्त नहीं हुआ तो जा कर नीरा के मातापिता को उस की लवस्टोरी सुनाने लगे, वे लोग उस पर बरस पड़े. वहां का माहौल मरनेमारने वाला हो गया. लेकिन निर्मोही भाई भी तो हीरो थे. उन में हार मानने वाली कोई बात ही नहीं थी.

गांव में जातिवाद का बोलबाला होने से स्कूल का माहौल भी गरम होता जा रहा था. स्कूल के छात्र 2 गुटों में बंट चुके थे. एक गुट के मुखिया निर्मोही भाई थे तो दूसरे के ब्रजेश. लेकिन उस गुट का असली नेता निराला था. दोनों गुटों में रोजाना कुछ न कुछ झड़प होती ही रहती.

उन्हीं दिनों 2 और नई छात्राएं मीनू, मौसम और एक नए छात्र शशिभूषण ने भी क्लास में दाखिला लिया.

जब मैडम ने हम लोगों से उन का परिचय करवाया तो उन दोनों कमसिन बालाओं को देख कर मेरी नीयत में भी खोट आने लगा. मुझे भी एक गर्लफ्रैंड की कमी खलने लगी. खलती भी क्यों नहीं. वे दोनों लाजवाब और बेमिसाल थीं. लेकिन मुझे क्या पता था कि जिस ने मेरे दिल में आग लगाई है उस का दिल मुझ से भी ज्यादा जल रहा है. मैं मौसम की बात कर रहा हूं. वह अकसर कोई न कोई बहाना बना कर मुझ से कुछ न कुछ पूछ ही लेती. कुछ कह भी देती. उधर मीनू तो निर्मोही भाई की दीवानी बन चुकी थी. पर मीनू का दीवाना शशिभूषण था.

अब एक नजर फिर देखिए, शशिभूषण दीवाना था मीनू का. मीनू दीवानी थी, निर्मोही की. निर्मोही नीरा के पीछे दौड़ता था. नीरा निराला के संग बेहाल थी, इन पांचों की प्रेमलीला देख कर मुझे क्या, आप को भी ताज्जुब होगा. मगर मेरे और मौसम के प्यार में ठहराव था. हम दोनों की एकदूसरे के प्रति अटूट प्रेम की भावना थी. तब ही तो चंद दिनों में ही मैं मौसम का प्यार पा कर इतना बदल गया कि मेरे घरवालों को भी ताज्जुब होने लगा. मैं और मौसम अकसर टाइम से आधा घंटा पहले स्कूल पहुंच जाते और फिर क्लास में बैठ कर ढेर सारी बातें किया करते.

उधर नीरा को मीनू और मौसम से बेहद जलन होने लगी क्योंकि ये दोनों लड़कियां नीरा को हर क्षेत्र में मात दे सकती थीं और दे भी रही थीं. वैसे तो पहले से ही स्कूल में नीरा की छवि धुंधली होने लगी थी लेकिन मीनू और मौसम के आने से नीरा की हालत और भी खराब हो गई. पढ़ाई के क्षेत्र में जो नीरा कभी अपनी सब से अलग पहचान रखती थी, आज वही निराला के साथ पहचान बढ़ा कर अपनी पहचान पूरी तरह भुला चुकी थी. जिन टीचर्स व स्टूडेंट्स का दिल कभी नीरा के लिए प्रेम से लबालब हुआ करता था, आज वही उसे गिरी नजर से देखते.

उन्हीं दिनों मेरे पापा का तबादला हो गया. मैं अपने पूरे परिवार के साथ गांव से शहर में आ गया. उन दिनों हमारा स्कूल भी बंद था, जिस कारण मैं अपने सब से अजीज दोस्त मौसम को कुछ नहीं बता पाया. अब मेरी पढ़ाई यहीं होने लगी. पर मेरे दिलोदिमाग पर हमेशा मौसम की तसवीर छाई रहती. शहर की चमकदमक भी मुझे मौसम के बिना फीकीफीकी लगती.

शुरूशुरू में मेरा यह हाल था कि मुझे यहां चारों तरफ मौसम ही मौसम नजर आती थी. हर खूबसूरत लड़की में मुझे मौसम नजर आती थी.

एक दिन तो मौसम की याद ने मुझे इतना बेकल कर दिया कि मैं ने अपने स्कूल की सीनियर छात्रा सुप्रिया का हाथ पकड़ कर उसे ‘मौसम’ के नाम से पुकारा. बदले में मेरे गाल पर एक जोरदार चांटा लगा, तब कहीं जा कर मुझे होश आया.

इसी तरह चांटा खाता और आंसू बहाता मैं अपनी पढ़ाई करने लगा. वक्त के साथसाथ मौसम की याद भी कम होने लगी. लेकिन जब कभी मैं अकेला होता तो सबकुछ भुला कर अतीत की खाई में गोते लगाने लगता.

धीरेधीरे 2 साल गुजर गए.

आज मैं बहुत खुश हूं. आज पापा ने मुझ से वादा किया है कि परीक्षा खत्म होने के बाद हम लोग 1 महीने के लिए घर चलेंगे. लेकिन परीक्षा में तो अभी पूरे 25 दिन बाकी हैं. फिर कम से कम 10 दिन परीक्षा चलेगी. तब घर जाएंगे. अभी भी बहुत इंतजार करना पड़ेगा.

किसी तरह इंतजार खत्म हुआ और परीक्षा के बाद हम लोग घर के लिए रवाना हो गए. गांव पहुंचने पर मैं सब से पहले दौड़ता हुआ घर पहुंचा. मैं ने सब को प्रणाम किया. फिर निर्मोही भाई को ढूंढ़ने लगा. घर, छत, बगीचा, पान की दुकान, हर जगह खोजा, मगर निर्मोही भाई नहीं मिले. अंत में मैं मायूस हो कर अपने पुराने अड्डे की तरफ चल पड़ा. मेरे घर के सामने एक नदी बहती है, जिस के ठीक बीचोंबीच एक छोटा सा टापू है, यही हम दोनों का पुराना अड्डा रहा है.

हम दोनों रोजाना लगभग 2-3 घंटे यहां बैठ कर बातें किया करते थे. आज फिर इतने दिनों बाद मेरे कदम उसी तरफ बढ़ रहे थे. मैं ने मन ही मन फैसला किया कि भाई से सब से पहले मौसम के बारे में पूछना है. फिर कोई बात होगी. मौसम का खयाल मन में आते ही एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी. तभी दोनाली की आवाज से मैं ठिठक गया.

कुछ ही दूरी पर भाई बैठेबैठे निशाना साध रहे थे. काली जींस, काली टीशर्ट, बड़ीबड़ी दाढ़ी, हाथ में दोनाली. भाई देखने में ऐसा लगते थे मानो कोई खूंखार आतंकवादी हों. भाई का यह रूप देख कर मैं सकपका गया. जो कभी बीड़ी का बंडल तक नहीं छूता था, आज वह गांजा पी रहा था. मुझे देख कर भाई की आंखों में एक चमक जगी. पर पलक झपकते ही उस की जगह वही पहले वाली उदासी छा गई. कुछ पल हम दोनों भाई एकदूसरे को देखते रहे, फिर गले लग कर रो पड़े.

जब हिचकियां थमीं तो पूछा, ‘‘भैया, यह क्या हाल बना रखा है?’’

जवाब में उन्होंने एक जोरदार कहकहा लगाया. मानो बहुत खुश हों. लेकिन उन की हंसी से दर्द का फव्वारा छूट रहा था. जुदाई की बू आ रही थी.

जब हंसी थमी तो वह बोले, ‘‘भाई, तू ने अच्छा किया जो शहर चला गया. तेरे जाने के बाद तो यहां सबकुछ बदलने लगा. नीरा और बिकूवा की प्रेमलीला ने तो समाज का हर बंधन तोड़ दिया. लेकिन अफसोस, बेचारों की लीला ज्यादा दिन तक नहीं चली. आज से कोई 6 महीना पहले उन दोनों का एक्सीडेंट हो गया. नीरा का चेहरा एक्सीडेंट में इस तरह झुलस गया कि अब कोई भी उस की तरफ देखता तक नहीं.’’

थोड़ा रुक कर भाई फिर बोले, ‘‘बिकूवा का तो सिर्फ एक ही हाथ रह गया है. अब वह सारा दिन अपने बूथ में बैठा फोन नंबर दबाता रहता है. शशिभूषण और मीनू की अगले महीने सगाई होने वाली है…’’

‘‘लेकिन मीनू तो आप को…’’ मेरे मुंह से अचानक निकला.

‘‘हां, मीनू मुझे बहुत चाहती थी. लेकिन मैं ने उस के प्यार का हमेशा अपमान किया. अब मैं सोचता हूं कि काश, मैं ने नीरा के बदले मीनू से प्यार किया होता. तब शायद ये दिन देखने को न मिलते.’’

फिर हम दोनों के बीच थोड़ी देर के लिए गहरी चुप्पी छा गई.

इस के बाद भाई को थोड़ा रिलैक्स मूड में देख कर मैं ने मौसम के बारे में पूछा. इस पर एक बार फिर उन की आंखें नम हो गईं. मेरा दिल अनजानी आशंका से कांप उठा.

मेरे दोबारा पूछने पर भाई बोले, ‘‘तुम तो जानते ही हो कि मौसम मारवाड़ी परिवार से थी. तुम्हारे जाने के कुछ ही दिनों बाद मौसम के पापा को बिजनेस में काफी घाटा हुआ. वह यहां की सारी प्रापर्टी बेच कर अपने गांव राजस्थान चले गए.’’

इतना सुनते ही मेरी आंखों के आगे दुनिया घूमने लगी. वर्षों से छिपाया हुआ प्यार, आंसुओं के रूप में बह निकला.

हम दोनों भाई छुट्टी के दिनों में साथसाथ रहे. पता नहीं कब 1 महीना गुजर गया और फिर हम लोग शहर आने के लिए तैयार हो गए. इस बार हमारे साथ निर्मोही भाई भी थे.

शहर आ कर निर्मोही भाई जीतोड़ पढ़ाई करने लगे. वह मैट्रिक की परीक्षा में अपने स्कूल में फर्स्ट आए.

आज 3 साल बाद पापा मुझे इंजीनियरिंग और भाई को मेडिकल की तैयारी के लिए कोटा भेज रहे थे. मैं बहुत खुश था, क्योंकि आज मुझे कोटा यानी राजस्थान जाने का मौका मिल रहा था. मौसम का घर भी राजस्थान में है. इसीलिए इतने दिनों बाद मन में एक नई आशा जगी थी.

मैं भाई के साथ राजस्थान आ गया. यहां मैं हरेक लड़की में अपनी मौसम को तलाशने लगा. लेकिन 1 साल गुजर जाने के बाद भी मुझे मेरी मौसम नहीं मिली. अब हम दोनों भाइयों के सिर पर पढ़ाई का बोझ बढ़ने लगा था. लेकिन जहां भाई पढ़ाई को अपनी महबूबा बना चुके थे, वहीं मैं अपनी महबूबा की तलाश में अपने लक्ष्य से दूर जा रहा था. फिर परीक्षा भी हो गई. रिजल्ट आया तो भाई का सिलेक्शन मेडिकल के लिए हो गया, लेकिन मैं लटक गया.

मुझे फिर से तैयारी करने के लिए 1 साल का मौका मिला है और इस बार मैं भी जीतोड़ मेहनत कर रहा हूं. लेकिन फिर भी कभी अकेले में बैठता हूं तो मौसम की याद तड़पाने लगती है. वर्ष के चारों मौसम आते हैं और चले जाते हैं. पर मेरी आंखों को तो इंतजार है, 5वें मौसम का. पता नहीं कब मेरा 5वां मौसम आएगा, जिस में मैं अपनी मौसम से मिलूंगा.

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