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पहाड़ियों और माउंटेनियर के लंग्स क्यों होते हैं मजबूत ?

ऐसा देखा गया है कि मैदानी इलाकों में रहने वालों से हिमालय की वादियों में रहने वाले शेरपाओं के लंग्स ज्यादा मजबूत होते हैं. इन्हें एथलीट जीन के लिए जाना जाता है. ये अधिकतर नेपाल और तिब्बत के इलाकों में रहते हैं, पहाड़ों में ही ये बसते हैं. ये बहुत ऊंची जगहों पर जहां औक्सीजन की कमी होती है, वहां भी पहुंच जाते हैं.

एक अध्ययन में यह पाया गया है कि शेरपाओं के लंग्स की मजबूती नीचे रहने वालों से 30 प्रतिशत अधिक होती है. इस की वजह एक स्क्वायर सैंटीमीटर्स मसल्स में कोशिकाओं की अधिक संख्या का होना है. इस से उन के चैस्ट भी चौड़े होते हैं, जिस से लंग्स की कैपेसिटी और सरफेस एरिया बढ़ जाता है. इस के अलावा वे लंग्स से नियमित काम लेते हैं, जिस से इन की क्षमता बढ़ती जाती है. साथ ही, पहाडि़यों पर रहने वालों में हीमोग्लोबिन की मात्रा अधिक होती है, जिस से वे अधिक मात्रा में औक्सीजन ले सकते हैं. सो, उन के लंग्स मजबूत हो जाते हैं.

मजबूत जैनेटिक जींस

मुंबई के वोकहार्ड हौस्पिटल के चैस्ट फिजिशियन डा. कमलेश पांडे बताते हैं कि सालों से पहाड़ों पर रहने वाले के शरीर में कुछ एडौप्टेशन हो जाते हैं जो उन के जैनेटिक्स पर भी असर डालते हैं. उन के माइटोकौंड्रिया (कोशिकाओं में पाए जाने वाले माइटोकौंड्रिया को कोशिका का ऊर्जाघर या पावरहाऊस कहा जाता है, जो मां से संतान में स्थानांतरित होता है) कम औक्सीजन में भी अधिक काम कर लेते हैं. सैल्स को औक्सीजन की जरूरत कम होती है.

माउंटेन पर औक्सीजन का दबाव कम होता है, ऐसे में नौर्मल जमीन पर रहने वाले अगर पहाड़ पर जाते हैं तो उन्हें कम औक्सीजन लगने लगती है. उन के सैल्स को कम औक्सीजन मिलने की वजह से उन में सांस फूलने लगती है, लंग्स पर प्रैशर या पानी भर जाता है या फिर ब्रेन में भी सूजन होने का रिस्क रहता है. लेकिन सालों से वहां रहने वालों के शरीर की बनावट ऐसी होती है कि उन में  औक्सीजन की मात्रा कम रहती है. उन के ब्लड में आरबीसी की मात्रा अधिक प्रोड्यूस होती है. उन की मसल्स में भी औक्सीजन की मात्रा कम लगती है. अर्थात, कम औक्सीजन में भी वे काम कर सकते हैं, जिसे एरोबिक मैकेनिज्म कहा जाता है. इस में औक्सीजन की खपत कम होती है.

इन लोगों में मसल्स या लंग्स की कोशिकाएं अधिक होती हैं, जिस से लंग्स का सरफेस एरिया बढ़ जाता है. नौर्मल लंग्स को भी स्प्रेड करने पर एक टैनिस कोर्ट जितना बड़ा सरफेस एरिया स्प्रेड होता है, जिस में औक्सीजन का इन्टेक और कार्बन डाइऔक्साइड का बाहर निकलना होता है. शेरपा और माउंटेनियर करने वाले की स्टडी में पता चला है कि उन के लंग्स की कैपिलरी सरफेस एरिया अधिक होता है. उन के आरबीसी का कंसंट्रेशन भी अधिक होता है.

उम्र के साथ घटती है लंग्स कैपेसिटी

डा. कमलेश कहते हैं कि लंग्स की कैपेसिटी उम्र और हाइट पर निर्भर करती है. अगर किसी की हाइट अच्छी है तो उस की लंग्स की कैपेसिटी अधिक होनी चाहिए. एक उम्र के बाद लंग्स की कैपेसिटी घटती जाती है. मसलन, 25 से 26 साल तक, जब तक व्यक्ति ग्रो करता है, लंग्स की कैपेसिटी बढ़ती जाती है, लेकिन एक उम्र के बाद उस की कैपेसिटी घटती जाती है. इसलिए व्यक्ति की उम्र और हाइट को ले कर एक वैल्यू निकाली जाती है, जिस में 30 साल के व्यक्ति की कैपेसिटी को देखने पर अगर वह प्रिडिक्टेड वैल्यू के 80 या 90 प्रतिशत तक निकलता है तो उसे नौर्मल समझ जाता है. इस में एक औसत निकाला जाता है, जो इंडियन और वैस्टर्न लोगों के लिए अलगअलग होता है.

परिंदा : अजनबी से मिलने के बाद इशिता की जिंदगी में क्या बदलाव आया ?

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ई-ग्रुप : रजनी की आंखे कौन सी कहानी कह रही थी ?

‘‘वाह, इसे कहते हैं कि आग लेने गए थे और पैगंबरी मिल गई,’’ रवि और पूनम के लौन में अन्य दोस्तों को बैठा देख कर विकास बोला, ‘‘हम लोग तो तुम्हें दावत देने आए थे, पर अब खुद ही खा कर जाएंगे.’’

‘‘दावत तो शौक से खाइए पर हमें जो दावत देने आए थे वह कहीं हजम मत कर जाइएगा,’’ पूनम की इस बात पर सब ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘नहीं, ऐसी गलती हम कभी नहीं कर सकते. वह दावत तो हम अपनी जिंदगी का सब से अहम दिन मनाने की खुशी में कर रहे हैं यानी वह दिन जिस रोज मैं और रजनी दो से एक हुए थे,’’ विकास बोला.

‘‘ओह, तुम्हारी शादी की सालगिरह है. मुबारक हो,’’ पूनम ने रजनी का हाथ दबा कर कहा.

‘‘मुबारकबाद आज नहीं, शुक्रवार को हमारे घर आ कर देना,’’ रजनी अब अन्य लोगों की ओर मुखातिब हुईं, ‘‘वैसे, निमंत्रण देने हम आप के घर…’’

‘‘अरे, छोडि़ए भी, रजनीजी, इतनी तकलीफ और औपचारिकता की क्या जरूरत है. आप बस इतना बताइए कि कब आना है. हम सब स्वयं ही पहुंच जाएंगे,’’ रतन ने बीच में ही टोका.

‘‘शुक्रवार को शाम में 7 बजे के बाद कभी भी.’’

‘‘शुक्रवार को पार्टी देने की क्या तुक हुई? एक रोज बाद शनिवार को क्यों नहीं रखते?’’ राजन ने पूछा.

‘‘जब शादी की सालगिरह शुक्रवार की है तब दावत भी तो शुक्रवार को ही होगी,’’ विकास बोला.

‘‘सालगिरह शुक्रवार को होने दो, पार्टी शनिवार को करो,’’ रवि ने सुझाव दिया.

‘‘नहीं, यार. यह ईद पीछे टर्र अपने यहां नहीं चलता. जिस रोज सालगिरह है उसी रोज दावत होगी और आप सब को आना पड़ेगा,’’ विकास ने शब्दों पर जोर देते हुए कहा.

‘‘हां, भई, जरूर आएंगे. हम तो वैसे ही कोई पार्टी नहीं छोड़ते, यह तो तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत है. भला कैसे छोड़ सकते हैं,’’ राजन बोला.

‘‘पर तुम यह पार्टी किस खुशी में दे रहे हो, रवि?’’ विकास ने पूछा

‘‘वैसे ही, बहुत रोज से राजन, रतन वगैरा से मुलाकात नहीं हुई थी, सो आज बुला लिया.’’

रजनी और विकास बहुत रोकने के बाद भी ज्यादा देर नहीं ठहरे. उन्हें और भी कई जगह निमंत्रण देने जाना था. पूनम ने बहुत रोका, ‘‘दूसरी जगह कल चले जाना.’’

‘‘नहीं, पूनम, कल, परसों दोनों दिन ही जाना पड़ेगा.’’

‘‘बहुत लोगों को बुला रहे हैं क्या?’’

‘‘हां, शादी की 10वीं सालगिरह है, सो धूमधाम से मनाएंगे,’’ विकास ने जातेजाते बताया.

‘‘जिंदादिल लोग हैं,’’ उन के जाने के बाद राजन बोला.

‘‘जिंदादिल तो हम सभी हैं. ये दोनों इस के साथ नुमाइशी भी हैं,’’ रवि हंसा.

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘शादी की सालगिरह इतने हल्लेगुल्ले के साथ मनाना मेरे खयाल में तो अपने प्यार की नुमाइश करना ही है. दोस्तों को बुलाने के लिए किसी बहाने की जरूरत नहीं होती.’’

‘‘तो आप के विचार में शादी की सालगिरह नहीं मनानी चाहिए?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘जरूर मनानी चाहिए, लेकिन अकेले में, एकदूसरे के साथ,’’ रवि पूनम की ओर आंख मार कर मुसकराया, ‘‘पार्टी के हंगामे में नहीं.’’

‘‘तभी आज तक तुम्हारी शादी की सालगिरह की दावत नहीं मिली. वैसे, तुम्हारी शादी की सालगिरह होती कब है, रवि?’’ रतन ने पूछा.

‘‘यह बिलकुल खुफिया बात है,’’ राजन हंसा, ‘‘रवि ने बता दिया तो तुम उस रोज मियांबीवी को परेशान करने आ पहुंचोगे.’’

‘‘लेकिन, यार, इंसान शादी करता ही बीवी के साथ रहने को है और हमेशा रहता भी उस के साथ ही है. फिर अगर खुशी के ऐसे चंद मौके दोस्तों के साथ मना लिए जाएं तो हर्ज ही क्या है? खुशी में चारचांद ही लग जाते हैं,’’ रतन ने कहा.

‘‘यही तो मैं कहती हूं,’’ अब तक चुप बैठी पूनम बोली.

‘‘तुम तो कहोगी ही, क्योंकि तुम भी उसी ‘ई ग्रुप’ की जो हो,’’ रवि ने व्यंग्य से कहा.

‘‘ई ग्रुप? वह क्या होता है, रवि भाई?’’ शोभा ने पूछा.

‘‘ई ग्रुप यानी एग्जिबिशन ग्रुप, अपने प्यार की नुमाइश करने वालों का जत्था. मियांबीवी को शादी की सालगिरह मना कर अपने लगाव या मुहब्बत का दिखावा करने की क्या जरूरत है? रही बात दोस्तों के साथ जश्न मनाने की, तो इस के लिए साल के तीन सौ चौंसठ दिन और हैं.’’

‘‘इस का मतलब यह है कि शादी की सालगिरह बैडरूम में अपने पलंग पर ही मनानी चाहिए,’’ राजन ने ठहाका लगा कर फब्ती कसी.

‘‘जरूरी नहीं है कि अपने घर का ही बैडरूम हो,’’ रवि ने ठहाकों की परवा किए बगैर कहा.

‘‘किसी हिल स्टेशन के शानदार होटल का बढि़या कमरा हो सकता है, किसी पहाड़ी पर पेड़ों का झुंड हो सकता है या समुद्रतट का एकांत कोना.’’

‘‘केवल हो ही सकता है या कभी हुआ भी है, क्यों, पूनम भाभी?’’ रतन ने पूछा.

‘‘कई बार या कहिए हर साल.’’

‘‘तब तो आप लोग छिपे रुस्तम निकले,’’ राजन ने ठहाका लगाते हुए कहा.

शोभा भी सब के साथ हंसी तो सही, लेकिन रवि का सख्त पड़ता चेहरा और खिसियाई हंसी उस की नजर से न बच सकी. इस से पहले कि वातावरण में तनाव आता, वह जल्दी से बोली, ‘‘भई, जब हर किसी को जीने का अंदाज जुदा होता है तो फिर शादी की सालगिरह मनाने का तरीका भी अलग ही होगा. उस के लिए बहस में क्यों पड़ा जाए. छोडि़ए इस किस्से को. और हां, राजन भैया, विकास और रजनी के आने से पहले जो आप लतीफा सुना रहे थे, वह पूरा करिए न.’’

विषय बदल गया और वातावरण से तनाव भी हट गया, लेकिन पूनम में पहले वाला उत्साह नहीं था.

कोठी के बाहर खड़ी गाडि़यों की कतारें और कोठी की सजधज देख कर यह भ्रम होता था कि वहां पर जैसे शादी की सालगिरह न हो कर असल शादी हो रही हो. उपहारों और फूलों के गुलदस्ते संभालती हुई रजनी लोगों के मुबारकबाद कहने या छेड़खानी करने पर कई बार नईनवेली दुलहन सी शरमा जाती थी.

कहकहों और ठहाकों के इस गुलजार माहौल की तुलना पूनम अपनी सालगिरह के रूमानी मगर खामोश माहौल से कर रही थी. उस रोज रवि अपनी सुहागरात को पलदरपल जीता है, ‘हां, तो ठीक इसी समय मैं ने पहली बार तुम्हें बांहों में भरा था, और तुम…तुम एक अधखिले गुलाब की तरह सिमट गई थीं और… और पूनम, फिर तुम्हारी गुलाबी साड़ी और तुम्हारे गुलाबी रंग में कोई फर्क ही नहीं रह गया था. तुम्हें याद है न, मैं ने क्या कहा था…अगर तुम यों ही गुलाबी हो जाओगी तो तुम्हारी साड़ी उतारने के बाद भी मैं इसी धोखे में…ओह, तुम तो फिर बिलकुल उसी तरह शरमा गईं, बिलकुल वैसी ही छुईमुई की तरह छोटी सी…’ और उस उन्माद में रवि भी उसी रात का मतवाला, मदहोश, उन्मत्त प्रेमी लगने लगता.

‘‘पूनम, सुन, जरा मदद करवा,’’ रजनी उस के पास आ कर बोली, ‘‘मैं अकेली किसेकिसे देखूं.’’

‘‘हां, हां, जरूर.’’ पूनम उठ खड़ी हुई और रजनी के साथ चली गई.

मेहमानों में डाक्टर शंकर को देख कर वह चौंक पड़ी. रवि डाक्टर शंकर के चहेते विद्यार्थियों में से था और इस शहर में आने के बाद वह कई बार डाक्टर शंकर को बुला चुका है, पर हमेशा ही वह उस समय किसी विशेष कार्य में व्यस्त होने का बहाना बना, फिर कभी आने का आश्वासन दे, कर रवि को टाल देते थे. पर आज विकास के यहां कैसे आ गए? विकास से तो उन के संबंध भी औपचारिक ही थे और तभी जैसे उसे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया.

‘‘क्यों, डाक्टर, हम से क्या नाराजगी है? हमारा निमंत्रण तो हमेशा इस बेदर्दी से ठुकराते हो कि दिल टूट कर रह जाता है. यह बताओ, विकास किस जोर पर तुम्हें खींच लाया?’’ एक गंजा आदमी डाक्टर शंकर से पूछ रहा था.

‘‘क्या बताऊं, गणपतिजी, व्यस्त तो आज भी बहुत था, लेकिन इन लोगों की शादी की सालगिरह थी. अब ऐसे खास मौके पर न आना भी तो बुरा लगता है.’’

‘‘यह बात तो है. मेरी पत्नी का भी इन लड़केलड़कियों के जमघट में आने को दिल नहीं था पर रजनी की जिद थी कि शादी की 10वीं सालगिरह पर उसे हमारा आशीर्वाद जरूर चाहिए, सो, आना पड़ा वरना मुझे भी रोटरी मीटिंग में जाना था.’’

पूनम को मेहमानों की आवभगत करते देख कर रवि उस के पास आया, ‘‘पूनम, जरा डाक्टर शंकर को आने के लिए कहो न कभी घर पर.’’

‘‘वे मेरे कहने से नहीं आने वाले.’’ पूनम अवहेलना से मुसकराई.

‘‘फिर कैसे आएंगे?’’

‘‘मेरे साथ आओ, बताती हूं.’’ पूनम ने रवि को अपने पीछेपीछे पैंट्री में आने का इशारा किया और वहां जा कर डाक्टर शंकर और गणपतिजी के बीच हुई बातचीत दोहरा दी.

‘‘तो इस का मतलब है कि वे लोग मजबूरन आए हैं. किसी को जबरदस्ती बुलाना और वह भी अपने प्यार की नुमाइश कर के, हम से नहीं होगा भई, यह सब.’’

‘‘मेरे खयाल में तो बगैर मतलब के पार्टी देने को ही आजकल लोग पैसे की नुमाइश समझते हैं,’’ पूनम कुछ तलखी से बोली.

‘‘तो आज जो कुछ हो रहा है उस में पैसे की नुमाइश नहीं है क्या? तुम्हारे पास पैसा होगा, तभी तो तुम दावत दोगी. लेकिन किसी निहायत व्यक्तिगत बात को सार्वजनिक रूप देना और फिर व्यस्त लोगों को जबरदस्ती खींच कर लाना मेरी नजर में तो ई ग्रुप की ओर से की जाने वाली अपनी प्रतिष्ठा की नुमाइश ही है. जहां तक मेरा खयाल है, विकास और रजनी में प्यार कभी रहा ही नहीं है. वे इकट्ठे महज इसीलिए रह रहे हैं कि हर साल धूमधाम से एकदूसरे की शादी की सालगिरह मना सकें,’’ कह कर रवि बाहर चला गया.

तभी रजनी अंदर आई, ‘‘कर्नल प्रसाद कोई भी तली हुई चीज नहीं खा रहे और अपने पास तकरीबन सब ही तली हुई चीजें हैं.’’

‘‘डबलरोटी है क्या?’’ पूनम ने पूछा, ‘‘अपने पास 3-4 किस्में की चटनियां हैं, पनीर है, उन के लिए 4-5 किस्मों के सैंडविच बना देते हैं.’’

‘‘डबलरोटी तो है लेकिन तेरी साड़ी गंदी हो जाएगी, पूनम. ऐसा कर, मेरा हाउसकोट पहन ले,’’ रजनी बोली, ‘‘उधर बाथरूम में टंगा होगा.’’ कह कर रजनी फिर बाहर चली गई. पूनम ने बाथरूम और बैडरूम दोनों देख लिए पर उसे हाउसकोट कहीं नजर नहीं आया. वह रजनी को ढूंढ़ते हुए बाहर आई.

‘‘भई, यह जश्न तो कुछ भी नहीं है, असली समारोह यानी सुहागरात तो मेहमानों के जाने के बाद शुरू होगी,’’ लोग रजनी और विकास को छेड़ रहे थे.

‘‘वह तो रोज की बात है, साहब,’’ विकास रजनी की कमर में हाथ डालता हुआ बोला, ‘‘अभी तो अपना हर दिन ईद और हर रात शबेरात है.’’

‘‘हमेशा ऐसा ही रहे,’’ हम तो यही चाहते हैं मिर्जा हसन अली बोले.

‘‘रजनी जैसे मिर्जा साहब की शुभकामनाओं से वह भावविह्वल हो उठी हो. पूनम उस से बगैर बोले वापस रसोईघर में लौट आई और सैंडविच बनाने लगी.

‘‘तू ने हाउसकोट नहीं पहना न?’’ रजनी कुछ देर बाद आ कर बोली.

‘‘मिला ही नहीं.’’

‘‘वाह, यह कैसे हो सकता है. मेरे साथ चल, मैं देती हूं.’’

रजनी को अतिथिकक्ष की ओर मुड़ती देख कर पूनम बोली, ‘‘मैं ने तुम लोगों के कमरे में ढूंढ़ा था.’’

‘‘लेकिन मैं आजकल इस कमरे में सोती हूं, तो यही बाथरूम इस्तेमाल करती हूं.’’

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘विकास आजकल आधी रात तक उपन्यास पढ़ता है और मुझे रोशनी में नींद नहीं आती.’’

‘‘लेकिन आज तो तू अपने ही बैडरूम में सोएगी,’’ पूनम शरारत से बोली, ‘‘आज तो विकास उपन्यास नहीं पढ़ने वाला.’’

‘‘न पढ़े, मैं तो इतनी थक गई हूं कि मेहमानों के जाते ही टूट कर गिर पड़ूंगी.’’

‘‘विकास की बांहों में गिरना, सब थकान दूर हो जाएगी.’’

‘‘क्यों मजाक करती है, पूनम.

यह सब 10 साल पहले होता था. अब तो उलझन होती है इन सब चोचलों से.’’

पूनम ने हैरानी से रजनी की ओर देखा, ‘‘क्या बक रही है तू? कहीं तू एकदम ठंडी तो नहीं हो गई?’’

‘‘यही समझ ले. जब से विकास के उस प्रेमप्रसंग के बारे में सुना था…’’

‘‘वह तो एक मामूली बात थी, रजनी. लोगों ने बेकार में बात का बतंगड़ बना दिया था.’’

‘‘कुछ भी हो. उस के बाद विकास के नजदीक जाने की तबीयत ही नहीं होती. और अब, पूनम, करना भी क्या है यह सब खेल खेल कर? 2 बच्चे हो गए, अब इस सब की जरूरत ही क्या है?’’

पूनम रजनी की ओर फटीफटी आंखों से देखती हुई सोच रही थी कि रवि की ई ग्रुप की परिभाषा कितनी सही है.

वह सांवली लड़की : कैसे बनाई चांदनी ने अपनी पहचान ?

रंग पक्का सांवला और नाम हो चांदनी, तो क्या सोचेंगे आप? यही न कि नाम और रूपरंग में कोई तालमेल नहीं. जिस दिन चांदनी ने उस कालेज में बीए प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया, उसी दिन से छात्रों के जेहन में यह बात कौंधने लगी. किसी की आंखों में व्यंग्य होता, किसी की मुसकराहट में, कोई ऐसे हायहैलो करता कि उस में भी व्यंग्य जरूर झलकता था. चांदनी सब समझती थी. मगर वह इन सब से बेखबर केवल एक हलकी सी मुसकान बिखेरती हुई सीधे अपनी क्लास में चली जाती. केवल नाम और रंग ही होता तो कोई बात नहीं थी, वह तो ठेठ एक कसबाई लड़की नजर आती थी. किसी छोटेमोटे कसबे से इंटर पास कर आई हुई. बड़े शहर के उस कालेज के आधुनिक रूपरंग में ढले हुए छात्रछात्राओं को भला उस की शालीनता क्या नजर आती. हां, 5-7 दिन में ही पूरी क्लास ने यह जरूर जान लिया

था कि वह मेधावी भी है. बोर्ड परीक्षा की मैरिट लिस्ट में अपना स्थान बनाने वाली लड़की. इस बात की गवाही हर टीचर का चेहरा देने लगता, जो उस का प्रोजैक्ट देखते. वे कभी प्रोजैक्ट की फाइल देखते, तो कभी चांदनी का चेहरा. रंगनाथ क्लास का मुंहफट छात्र था. एक दिन वह चांदनी से पूछ बैठा, ‘‘मैडम, क्या हमें बताएंगी कि आप कौन सी चक्की का आटा खाती हैं?’’

चांदनी कुछ नहीं बोली. बस, चुपचाप उसे देख भर लिया. तभी नीलम के मुंह से भी निकला, ’’हां, हां, जरूर बताना ताकि हम भी उसे खा कर अपने दिमाग को तरोताजा रख सकें.’’ रंगनाथ और नीलम की ये फबतियां सुन पूरी क्लास ठहाका मार कर हंसने लगी. लेकिन चांदनी के चेहरे का सौम्यभाव इस से जरा भी प्रभावित नहीं हुआ. वह मुसकरा कर केवल इतना बोली, ‘‘हां, हां, क्यों नहीं बताऊंगी, जरूर बताऊंगी,’’ फिर उस का ध्यान अपनी कौपी पर चला गया.

चांदनी गर्ल्स होस्टल में रहती थी. वह छुट्टी का दिन था. लड़कियां होस्टल के मैदान में वौलीबौल खेल रही थीं. कुछ हरी घास पर बैठी गपशप कर रही थीं, तो कुछ मिलने आए अपने परिजनों से बातचीत में व्यस्त थीं. साथ आए बच्चे हरीहरी घास पर लोटपोट हो रहे थे. वहीं कौरीडोर में एक किनारे कुरसी पर बैठी होस्टल वार्डन रीना मैडम सारे दृश्य देख रही थीं. उन के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. इन सारे दृश्यों को देखते हुए भी उन की आंखें जैसे कहीं और खोई हुई थीं. उन का हमेशा प्रसन्न रहने वाला चेहरा, इस वक्त चिंता में डूबा हुआ था. कौरीडोर में लड़कियां इधर से उधर भागदौड़ मचाए हुए थीं. मगर शायद किसी का भी ध्यान रीना मैडम पर नहीं गया. अगर गया भी हो तो किसी ने उन के चेहरे की उदासी के बारे में पूछने की जरूरत नहीं समझी. अचानक रीना मैडम के कंधे पर किसी का हाथ पड़ा. उन्होंने सिर उठा कर देखा, वह चांदनी थी, ‘‘कहां खोई हुई हैं, मैडम? आप की तबीयत तो ठीक है न,’’ चांदनी ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं है. मैं ठीक हूं चांदनी,’’ रीना मैडम बोलीं. ‘‘नहीं मैडम. कुछ तो है. छिपाइए मत, आप का चेहरा बता रहा है कि आप किसी परेशानी में हैं.’’

रीना मैडम की आंखें नम हो आईं. चांदनी के शब्दों में न जाने कैसा अपनापन था कि उन से बताए बिना नहीं रहा गया. वे अपनी आंखों में छलक आए आंसुओं को आंचल से पोंछती हुई भरे गले से बोलीं, ‘‘चांदनी, कुछ देर पहले ही मेरे घर से फोन आया है कि मेरे बेटे की तबीयत ठीक नहीं है. वह मुझे बहुत याद कर रहा है. मैं कुछ समय के लिए उसे यहां लाना चाहती हूं. लेकिन यहां मैं हर समय तो उस के पास रह नहीं सकती. घर से कोई और आ नहीं सकता. ऐसे में कौन रहेगा, उस के पास?’’ ‘‘बस, इतनी सी बात के लिए आप परेशान हैं. मैडम, बस समझ लीजिए कि आप की प्रौब्लम दूर हो गई. उदासी और चिंता को दूर भगाइए. घर जा कर बच्चे को ले आइए.’’

‘‘मगर कैसे?’’ ‘‘मैं हूं न यहां,’’ चांदनी बोली.

रीना मैडम ने उस का हाथ पकड़ लिया. वे चकित हो कर उसे देखती भर रहीं. उन्हें अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्या होस्टल की एक सामान्य छात्रा इतना आत्मीय भाव प्रकट कर सकती है. आज ऐसा पहली बार हुआ था, पर चांदनी की आंखों से झांकती निश्छलता कह रही थी, ‘हां, मैडम, यह सच है. मुझे हर किसी के दर्द और चिंता की पहचान हो जाती है.’ रीना मैडम की आंखों में एक बार फिर आंसू छलक आए. ‘‘न…न…न… मैडम, आप की ये आंखें आंसू बहाने के लिए नहीं हैं. जो मैं ने कहा है उसे कीजिए,’’ चांदनी इस बार स्वयं अपने रूमाल से उन के आंसू पोंछती हुई बोली.

धीरेधीरे साल बीत गया. चांदनी बीए द्वितीय वर्ष में पहुंच गई. वह टैलेंटेड तो थी ही, उस के व्यवहार ने भी अब तक कालेज में उस की अपनी एक अलग पहचान बना दी थी. मगर रंगनाथ जैसे साहबजादों को अभी भी यह सब चांदनी का एक ढोंग मात्र लगता था. अब भी वे मौका मिलने पर उस पर व्यंग्य करने से नहीं चूकते थे.

नया सत्र शुरू होते ही हमेशा की तरह इस बार भी अपनीअपनी कक्षाओं में प्रथम आए छात्रों का सम्मान समारोह आयोजित करने की घोषणा हुई. इस में उन छात्रछात्राओं को अपने अभिभावकों को भी साथ लाने के लिए कहा जाता था. चांदनी अपनी कक्षा में प्रथम आई थी. रंगनाथ के लिए चांदनी पर फबती कसने का यह अच्छा मौका था. उस ने अपने दोस्तों से कहा, ‘‘चलो, अच्छा है. इस बार हमें भी मैडम के मम्मीपापा के दर्शन हो जाएंगे.’’

मम्मीपापा, ‘‘अरे, बेवकूफ, मैडम तो गांव से आई हैं. वहां मम्मीपापा कहां होते हैं,’’ एक दोस्त बोला. ‘‘फिर?’’ रंगनाथ ने पूछा.

‘‘अपनी अम्मां और बापू को ले कर आएंगी मैडम,’’ दोस्त के इस जुमले पर पूरी मित्रमंडली खिलखिला पड़ी. ‘‘चलो, तब तो यह भी देख लेंगे कि मखमल की चादर पर टाट का पैबंद कैसा नजर आता है,’’ रंगनाथ इस पर भी चुटकी लेने से नहीं चूका.

समारोह के दिन प्राचार्य और स्टाफ के साथ शहर के कुछ गण्यमान्य लोग भी स्टेज पर बैठे हुए थे. प्राचार्य ने सब लोगों के स्वागत की औपचारिकता पूरी करने के बाद एकएक कर सभी कक्षाओं के सर्वश्रेष्ठ छात्रों को स्टेज पर बुलाना शुरू किया. चांदनी का नाम लेते ही पूरे कालेज की नजरें उधर उठ गईं. चांदनी एक अधेड़ उम्र की औरत का हाथ पकड़ कर उसे सहारा देती हुई धीरेधीरे स्टेज की ओर बढ़ रही थी. वह एक सामान्य हिंदुस्तानी महिला जैसी थी. वहां उपस्थित दर्जनों सजीसंवरी शहरी महिलाओं से बिलकुल अलग. मगर सलीके से पहनी सफेद साड़ी, खिचड़ी हुए बालों के बीच सिंदूरविहीन मांग, थकी हुई दृष्टि के बावजूद सजग आंखें, चेहरे पर झलकता उस का आत्मविश्वास. लेकिन साधारण होते हुए भी उन के व्यक्तित्व में गजब का आकर्षण था. वह चांदनी की मां थी. वहां उपस्थित अभिभावकों में पहली ऐसी मां थीं, जिन्हें कोई छात्र अपने साथ स्टेज पर ले गया.

उन के स्टेज पर पहुंचते ही प्राचार्य ने खड़े हो कर उन का स्वागत किया. फिर एक कुरसी मंगा कर उन्हें बैठाया. अब आगे चांदनी को बोलना था. उस ने थोड़े से नपेतुले शब्दों में बताया, ‘‘ये मेरी मां हैं. गांव में रहती हैं. पिताजी के देहांत के बाद मुझे कभी उन की कमी महसूस नहीं होने दी. इन्होंने मां और पिता दोनों की जगह ले ली. मुझे पढ़ाने के इन के इरादों में जरा भी कमी नहीं आई. आज मैं जो आप लोगों के बीच हूं वह इन्हीं की बदौलत है. ‘‘काफी समय पहले मेरे कुछ मित्रों ने पूछा था कि मैं कौन सी चक्की का आटा खाती हूं. मैं ने उन से वादा किया था कि समय आने पर आप को जरूर बताऊंगी. आज वह वादा पूरा करने का समय आ गया है. मैं अपने उन प्रिय मित्रों को बताना चाहूंगी कि वह चक्की है, मेरी मां. तमाम मुश्किलों और तकलीफों में पिस कर भी इन्होंने मुझे कभी हताश नहीं होने दिया. इन का प्रोत्साहन पा कर ही मैं आगे बढ़ी हूं. मेरा आज का मुकाम, आप के सामने है. इस से भी बड़े मुकाम को मैं हासिल करना चाहती हूं. उस के लिए मुझे आप की शुभकामनाएं चाहिए.’’

चांदनी के चुप होते ही पूरा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. प्राचार्य ने स्वयं उठ कर उस की मां को स्टेज की सीढि़यों से नीचे उतरने के लिए सहारा दिया. रंगनाथ और उस के दोस्तों को आज पहली बार एहसास हुआ कि उस सांवली लड़की का नाम ही चांदनी नहीं है बल्कि उस के भीतर चांदनी सा उजला एक दिल भी है. बाहर निकलते ही चांदनी को बधाई देने वाला पहला व्यक्ति रंगनाथ ही था, दोनों हाथ जोड़े और आंखों में क्षमायाचना लिए हुए, चांदनी ने गद्गद हो कर उस के जुड़े हुए हाथों को थाम लिया.

अनुमोलू रेवंता रेड्डी : दूसरों को साधना है और खुद भी सधे रहना है

सियासी ड्रामेबाजी में तेलंगाना के नए मुख्यमंत्री ए रेवंता रेड्डी किसी से उन्नीस नहीं हैं जिन्होंने कुरसी संभालते ही मंच से कांग्रेस की 6 गारंटियों की फाइल मंजूर की. घाटघाट का पानी पी चुके 54 वर्षीय रेवंता जन्मना कांग्रेसी नहीं हैं, कर्मणा हैं और यह उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री पहले ही भाषण से साबित कर दिया. अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने जय सोनिया अम्मा के उद्घोष से की जिस से सहज ही उन दिग्गज कांग्रेसियों को मायूसी हुई होगी जो मुख्यमंत्री बनने की दौड़ और होड़ में थे. मुख्यमंत्री आवास का नाम बदल कर ज्योतिबा फुले उन्होंने रखा है और हर शुक्रवार प्रजा दरबार लगाने की भी घोषणा की है जिस में आम लोगों की सुनवाई होगी.

तेलंगाना की जीत में रेवंता के साथसाथ कांग्रेस विधायक दल के नेता विक्रमार्क भट्टी और एक और दिग्गज कुमार रेड्डी के रोल भी अहम थे लेकिन दूध की जली कांग्रेस तेलंगाना में छाछ भी फूंकफूंक कर पी रही है. सोनिया, राहुल और प्रियंका के चहेते इस खेवनहार से कांग्रेस आलाकमान पहले ही वादा कर चुका था, इसलिए मुख्यमंत्री बनने के लिए रेवंता ने राज्यभर में ताबड़तोड़ मेहनत की. उलट इस के, विक्रमार्क भट्टी और कुमार रेड्डी अपनेअपने क्षेत्रों में उलझे रहे जहां उन्हें 95 फीसदी कामयाबी मिली भी.

लेकिन यह मुख्यमंत्री बनने के लये पर्याप्त नहीं था. सोनिया-राहुल की कृपा किसी भी योग्यता या अनुभव से ज्यादा जरूरी थी जिस पर रेवंता पास हो गए. यों उन के पास सियासी हालात को ताड़ने वाली नजर है लेकिन असल इम्तिहान अब शुरू होगा उन का भी और कांग्रेस का भी क्योंकि कांग्रेस के पास बहुमत से सिर्फ 4 सीटें ही ज्यादा हैं. लिहाजा, भाजपाई तोड़फोड़ की आशंका हमेशा सिर पर मंडराती रहेगी. गौरतलब है कि तेलंगाना की 119 सीटों में से कांग्रेस को 64,बीआरएस को 39 और भाजपा को 8 सीटें मिली हैं जबकि एआईएमएआईएम 7 सीट जीती है.

फिल्मी कहानी जैसी जिंदगी 

एक मामूली किसान परिवार में जन्मे रेवंता की जिंदगी की कहानी फिल्मों से कमतर नहीं है जिस में रोमांस, ऐक्शन, जेल, आंदोलन, दलबदल सबकुछ है जो इन दिनों कामयाबी की बड़ी शर्तें और वजहें हो चली हैं. उस्मानिया यूनिवर्सिटी से बीए करने के दौरान ही रेवंता छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे.

आरएसएस की सरपरस्ती में चलने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा लेकिन वह ज्यादा रास नहीं आया तो वे साल 2001 में तेलंगाना राष्ट्र समिति से जुड़ गए जो अब बीआरएस है. पृथक तेलंगाना के नायक रहे केसीआर के साथ उन्होंने 2001 से ले कर 2006 तक काम किया.

न मालूम वजहों से रेवंता की पटरी केसीआर से भी नहीं बैठी और वे जोखिम उठाते साल 2007 में आंध्रप्रदेश विधान परिषद चुनाव में कूद पड़े और निर्दलीय जीते भी. टीडीपी मुखिया चंद्रबाबू नायडू की नजर इस होनहार युवक पर पड़ी तो वे उसे अपनी पार्टी में ले आए जिस से वे विधायक भी चुने गए. यहां से भी रेवंता का मोहभंग हो गया तो वे कांग्रेस में शामिल हो गए.

साल 2018 में वे कांग्रेस से विधानसभा चुनाव कोडंगल सीट से हारे तो नैया डगमगाती दिखी लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव मलकागिरी सीट से जीत कर उन्होंने खुद को साबित कर दिया. 2021 में कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और अब मुख्यमंत्री बनाने से भी गुरेज नहीं किया.

लव स्टोरी और सोनिया अम्मा  

कालेज के दिनों में राजनीति में हाथपांव मारने के ही दौरान रेवंता को गीता रेड्डी नाम की युवती से प्यार हो गया. यह पहली नजर का प्यार था जो नागार्जुन सागर बांध में नाव की सवारी के दौरान हुआ था. तभी उन्होंने तय कर लिया था कि अब जिंदगी की नाव में गीता के साथ ही सफर करेंगे.

लेकिन यह आसान काम नहीं था क्योंकि गीता दिग्गज कांग्रेसी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी की भतीजी थी. जैसे ही रसूखदार रेड्डी परिवार को इस अफेयर की हवा लगी तो उन्होंने इस पर एतराज जताया और फिल्मी तर्ज पर गीता को अपने मंत्री चाचा के घर दिल्ली भेज दिया.

यह उन दिनों की बात है जब रेवंता एबीवीपी में सक्रिय थे और आरएसएस का प्रकाशन संबंधी काम भी देखते थे. कांग्रेस और आरएसएस के बीच छत्तीस का आंकड़ा आज की तरह तब भी किसी सुबूत का मुहताज नहीं था. रेवंता को समझ आ गया था कि बात ऐसे नहीं बनने वाली, लिहाजा, एक दिन वे हिम्मत कर सीधे जयपाल रेड्डी से मिले और हाले दिल बयां कर डाला.

खुलेतौर पर तो रेवंता ने कभी नहीं स्वीकारा लेकिन ज्यादातर संभावना यही है कि उन्होंने गीता को हासिल करने के लिए ही इस हिंदूवादी संगठन का साथ और हाथ छोड़ा होगा. दूसरे, संघ में  गहरी डुबकी लगाने का मतलब था अविवाहित रहना, जो गीता से बढ़ती दोस्ती के चलते उन के लिए मुमकिन नहीं था.

सच जो भी हो लेकिन अपनी इस लव स्टोरी को अंजाम तक पहुंचाने में वे कभी पीछे नहीं हटे जिस में गीता ने हमेशा उन का साथ दिया. जयपाल रेड्डी ने गीता और रेवंता के प्यार की गहराई व गंभीरता को समझा. उन के दखल से दोनों 7 मई,1992 को जिंदगी की नाव में एकसाथ सवार हो गए.

इस के बाद वे यहां से वहां होते रहे.अब तक रेवंता को भी यह समझ आने लगा था कि यों भटकते रहने से कुछ हासिल नहीं होगा. लिहाजा, वे सोनिया गांधी की शरण में चले गए जहां से उन्हें आशीर्वाद और संरक्षण दोनों मिले. अब रेवंता न केवल तेलंगाना बल्कि दक्षिण भारत की राजनीति का भी प्रमुख चेहरा बन चुके हैं. कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार भी उन के रिश्तेदार हैं.

चुनौतिया अभी बाकी हैं 

रेवंता पर 89 छोटेबड़े अदालती मामले दर्ज हैं जिन में से एक कैश फौर वोट के चलते वे जेल की हवा भी खा चुके हैं. बेटी निमिषा की शादी के वक्त वे जेल में ही थे तब बमुश्किल उन के वकीलों ने कुछ घंटों की जमानत का इंतजाम उन के लिए किया था. जाहिर है जमीनी राजनीति का तगड़ा तजरबा उन्हें है जिस के चलते उन्हें तेलंगाना का चाणक्य भी कहा जाने लगा है.

तेलांगना के लोगों खासतौर से आदिवासियों, दलितों और मुसलमानों ने कांग्रेस पर गहरा भरोसा जताया है जिसे कायम रखना किसी चुनौती से कम नहीं. दूसरे उन्हें नाराज दिग्गज कांग्रेसियों को भी साध कर रखना है और खुद भी संभल कर रहना है क्योंकि भाजपाई तोड़फोड़ में माहिर हैं. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और अजीत पवार इस के बेहतर उदाहरण हैं. कर्नाटक का उदाहरण तो उन के बहुत नजदीक है.

लेकिन इन से भी ज्यादा अहम है अगला लोकसभा चुनाव जिस की तैयारिया शुरू हो गई हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा तेलंगाना की 17 में से 4 लोकसभा सीट ले गई थी जबकि बीआरएस 9 पर जीती थी और कांग्रेस 3 पर सिमट कर रह गई थी. एक सीट एआईएमएम के खाते में गई थी.

अब कांग्रेस की उम्मीद और कोशिश तेलंगाना में 10 सीटें जीतने की होगी क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा और बीआरएस दोनों ही पार्टियों को निराशा हुई है. हालांकि अभी बीआरएस को ज्यादा कमजोर कर नहीं आंका जा सकता लेकिन अगले 6 महीने रेवंता सरकार का परफौर्मेंस तय करेगा कि वोटर उसे कितना भाव देगा. भाजपा ज्यादा बड़ा खतरा है जिस की हर मुमकिन कोशिश तेलंगाना में तोड़फोड़ की रहेगी जिस से बचने के लिए रेवंता को होशियार तो रहना ही पड़ेगा.

शहाना सुसाइड केस : दौलत के आगे दम तोड़ती मोहब्बत

दहेज न जाने कितनी लड़कियों की जान लेता रहा है. सदियों बाद भी समाज बदला नहीं है बल्कि दहेज के लिए लालच की सीमा बढ़ गई है. पैसों के आगे भावनाएं दम तोड़ रही हैं. सोचने को विवश कर देने वाली ऐसी ही एक घटना केरल के तिरुवंतपुरम से सामने आई है जहां प्रेमी ने दहेज न मिलने पर शादी से इंकार कर दिया. घटना से आहत 26 साल की डाक्टर लड़की ने पहले तो प्रेमी को मनाने की कोशिश की पर सफल न होने पर आखिर में खुदकुशी कर ली.

शहाना नाम की यह लड़की तिरुवंतपुरम के सरकारी मैडिकल कालेज में पीजी कर रही थी. शहाना अपनी मां और 2 भाईबहनों के साथ रहती थीं. उन के पिता की 2 साल पहले मृत्यु हो गई. वह डा. रुवैस के साथ कई सालों से रिलेशनशिप में थी. प्यार जब परवान चढ़ा तो दोनों ने शादी का फैसला किया. उन्होंने अपने अपने घर में बात की. दोनों के परिवार वाले शादी के लिए तैयार हो गए लेकिन फिर लड़के वालों ने दहेज की भारी मांग रख दी.

शहाना के परिवार वालों के अनुसार डा. रुवैस के घरवालों ने दहेज के रूप में डेढ़ सौ तोले के गहने, बीएमडब्ल्यू कार और 15 एकड़ जमीन की मांग रखी पर वे इन डिमांड को पूरा करने में असमर्थ थे. इस पर रुवैस के परिवार ने शादी करने से मना कर दिया और रुवैस ने भी शाहना से बातचीत बंद करते हुए रिश्ता तोड़ दिया.

अचानक हुए इस घटनाक्रम ने शाहना को अंदर से तोड़ दिया. वह इतनी आहत हो गई कि वह खुद को संभाल नहीं सकी. पहले तो काफी डिप्रैशन में रहने लगी और फिर उस ने मौत को गले लगा लिया. शहाना 5 दिसंबर, मंगलवार सुबह मैडिकल कालेज के पास अपने किराए के अपार्टमैंट में मृत पाई गईं. शहाना ने मरने से पहले अपने सुसाइड नोट में लिखा, ‘हर कोई केवल पैसे से प्यार करता है.’

आरोपी डाक्टर मैडिकल पीजी डाक्टर्स एसोसिएशन का प्रतिनिधि था. डाक्टर पर लगे आरोपों के बाद संगठन की सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर दिया गया. पुलिस ने पीड़ित परिवार वालों के बयान के आधार पर प्रेमी और उस के परिवार के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है. उन पर आत्महत्या के लिए उकसाने और दहेज रोकथाम के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

इस का दोषी कौन ?

सवाल यह उठता है कि क्या दोषी परिवार को सजा मिल पाएगी ? क्या एक लड़की के जज्बातों को दौलत की कसौटी पर मापने वाले समाज का रुख कभी बदलेगा? क्या लड़कियों को नीचा दिखाने और अपमानित करने वाले इस दहेज प्रथा के खिलाफ कभी लोग एकजुट हो पाएंगे या फिर इसी तरह पढ़ीलिखी लड़कियां भी ऐसी कुप्रथाओं के आगे घुटने टेकती रहेंगी?

नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो, 2022 की रिपोर्ट के आकंड़े समाज फैले हुए दहेज रुपी राक्षस का सच उजागर करते हैं. 2022 में दहेज के लिए 6516 बेटियां बलि चढ़ा दी गई. कानून में मामला दहेज़ मृत्यु 304बी का माना जाता है लेकिन इसे हत्या से कम नहीं माना जा सकता.

एनसीआरबी के आकंड़ों के अनुसार साल 2022 में हर रोज 17 बेटियों को दहेज के लिए मौत दी गई जबकि 2022 में ही देश के विभिन्न थानों में दहेज प्रताड़ना के 14 लाख 4 हजार 593 मामले दर्ज हुए.

देश में वर्ष 2017 से 2021 के बीच दहेज की वजह से मौत के लगभग हर दिन करीब 20 मामलों की सूचना मिली और उत्तर प्रदेश में हर दिन दहेज से सर्वाधिक 6 मौत की खबर आई. देश में 2017 से 2021 के बीच दहेज की वजह से मौत के 35,493 मामलों का पता चला है.

वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ मामलों में पढ़ीलिखी लड़कियां खुद भी दहेज चाहती हैं. दहेज में मिली रकम और सामान भविष्य में दंपति के काम आता है. वैसे भी आजकल पढ़ेलिखे परिवारों में दहेज पर नवल जोड़ी का ही हक होता है. घरवाले उन पर अधिकार नहीं जमाते. कई घरों में ऐसा भी है कि लड़कियों को लगता है कि वे जितना ज्यादा दहेज ले कर ससुराल जाएंगी उन्हें वहां उतना ज्यादा भाव मिलेगा. ये सब दहेज के कुछ डिफरेंट पहलू हैं.

मगर मुख्य रूप से दहेज जिस वजह से बदनाम है वह इस के जबरदस्ती वाले स्वरुप के कारण है. यदि लड़की के मांबाप डिमांड की गई रकम नहीं जुटा पा रहे हैं तो कोई लड़की नहीं चाहेगी कि उस के मांबाप पर रकम जुटाने का प्रैशर बनाया जाए.

सोच बदलने की जरूरत

ऐसे में अकसर शादियां टूट जाती हैं और इस का सब से बुरा असर लड़की के मन पर पड़ता है. उसे महसूस होता है कि उस के होने वाले पति या ससुराल वालों की नजर में उस का कोई वजूद नहीं. उसे तो इसलिए ब्याहा जा रहा है ताकि वह ससुराल वालों का घर धनदौलत से भर दे. यही सोच उसे अंदर तक तोड़ देती है और इस तरह के सुसाइड या कन्या भ्रूण हत्या जैसे मामले सामने आते हैं. हमें इसी विकृत सोच से लड़ना है. पढ़ीलिखी या काबिल लड़की खुद में दहेज है. उस के आने से घर में खुद ही खुशियां आएंगी. फिर इस तरह उस के मायके वालों को प्रताड़ित करने का क्या औचित्य ?

अंत में यह कहना भी लाजिमी होगा कि किसी शख्स या एक परिवार की गलत सोच की सजा खुद को या अपने परिवार को देना और अपनी जिंदगी खत्म कर लेना बेवकूफी है. जिंदगी में करने को बहुत कुछ है. एक के पीछे सब कुछ समाप्त कर लेने के बजाए बेहतर है कि आप उस एक को अपनी जिंदगी और अपने दिलोदिमाग से पूरी तरह निकाल कर नार्मल जिंदगी जीएं और अपने लक्ष्य ऊंचे रखें.

बच कर रहिए, अब सुबह की वाक भी हो गई है खतरनाक

स्वस्थ रहने के लिए सुबह स्वच्छ और ठंडी हवा में वाक की सलाह हर डाक्टर देता है. बुजुर्ग लोग अकसर जल्दी उठ कर मौर्निंग वाक के लिए निकल जाते हैं. सेहत के प्रति सजग युवा और सेना और पुलिस में भर्ती की आकांक्षा पाले लोग भी मुंहअंधेरे ही घर से जौगिंग के लिए निकल पड़ते हैं. लेकिन सुबह की वाक आप की जान के लिए कितनी खतरनाक हो गई है, इस बारे में एनसीआरबी के आंकड़ें देख कर आप चौंक जाएंगे.

2021 में देश में 4,12,432 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिस में 1,53,972 लोग मारे गए. अगले वर्ष 2022 में 10 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी के साथ 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुईं जिस में 1,68,491 लोग माए गए. यानी मौतों में 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई. मरने वालों में अधिकांश 18 से 45 साल के युवा थे.

पश्चिम चम्पारण के बेतिया नगर थाना क्षेत्र में 17 नवंबर की सुबह मौर्निंग वाक पर निकले 55 वर्षीय बृजमोहन पटेल की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. किसी अज्ञात वाहन ने उन्हें कलेक्ट्रेट चौक के समीप रौंद दिया. सुबह चूंकि सड़कें सूनी थीं, कोई आवाजाही नहीं थी इसलिए किसी को नहीं पता चला कि पटेल को किस गाड़ी ने मारा.

लखनऊ में जनेश्वर मिश्र पार्क के पास 21 नवंबर की सुबह एडिशनल एसपी श्वेता श्रीवास्तव का 10 साल का इकलौता बेटा नैमिष स्केटिंग प्रैक्टिस करने के बाद घर लौट रहा था, तभी एक तेज रफ्तार कार ने उस को जोरदार टक्कर मारी. टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि नैमिष करीब 15 फुट ऊपर उछल गया और जमीन पर गिरते ही उस की मौत हो गई. उस की मां श्वेता श्रीवास्तव उस के साथ ही थीं. वे भी सुबह उस के साथ मौर्निंग वाक के लिए जाती थीं.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की मदद से 10 घंटे में कार चालक सपा के पूर्व जिला पंचायत सदस्य के बेटे और उस के साथी को गिरफ्तार कर एसयूवी बरामद की, जिस से दुर्घटना हुई थी. पता चला कि जवान लड़के किसी अन्य गाड़ी से सुबह सुबह रेस लगा रहे थे और गाड़ी की स्पीड 150 के करीब थी.

दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में एक होंडा सिटी कार चालक ने 72 साल के बुजुर्ग को न सिर्फ अपनी गाड़ी से टक्कर मारी, बल्कि उन्हें कई मीटर तक घसीटता ले गया. इस भयावह घटना में बुजुर्ग अजीत लाल टंडन की मौत हो गई. बुजुर्ग को होंडा सिटी कार से टक्कर मारने वाला शख्स तरुण अरोरा (50) है, जो कालकाजी इलाके में रहता है.

सबूत मिलने के बाद पुलिस ने तरुण को गिरफ्तार कर लिया लेकिन बाद में प्रक्रिया के तहत जमानत पर रिहा कर दिया गया. तरुण अरोरा का कहना था कि जब वह ग्रेटर कैलाश से कालकाजी की तरफ जा रहा था तो अचानक बुजुर्ग कार के सामने आ गए. पुलिस ने आरोपी के बारे में गहनता से पड़ताल की तो उस की कोई पुराना क्राइम रिकौर्ड या नशे में गाड़ी चलाने का इतिहास नहीं पाया गया.

सितंबर माह में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. दुर्घटना उस वक्त हुई जब मिस्त्री की कार एक ‘डिवाइडर’ से टकरा गई. उस समय मिस्त्री मर्सिडीज कार में अहमदाबाद से मुंबई लौट रहे थे. कार में उन के साथ 4 लोग थे जिन में से दो की औन द स्पोट मौत हो गई. कार साइरस मिस्त्री की महिला मित्र चला रही थीं मगर सड़क ऊबड़ खाबड़ थी जिस के चलते कार बेकाबू हो कर डिवाइडर से जा टकराई.

इतने ज़्यादा सड़क हादसे मुख्यतः 2 वजहों से हो रहे हैं. पहला रैश ड्राइविंग के कारण और दूसरा सड़क की खस्ताहाली की वजह से. देशभर में हालफिलहाल की बनी सड़कें भी जगह जगह टूटी और गड्ढेदार नजर आती हैं. आएदिन सड़कों पर मरम्मत का काम होता है और आयेदिन उन में गड्ढे पैदा हो जाते हैं, जिस के जिम्मेदार पीडब्लयूडी के भ्रष्ट अधिकारी, इंजीनियर और वर्कर हैं.

मजबूत और समतल सड़कों की जगह ऊबड़खाबड़ और गड्ढायुक्त सड़कें लोगों के जीवन को एक झटके में समाप्त कर देती हैं. देश में सड़क हदसों का आंकड़ा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. अब तो सुबह के वक्त भी सड़क पर पैदल निकलना सुरक्षित नहीं लगता, खासतौर से बुजुर्ग लोगों को जो सुबह की सैर के दौरान अपने पुराने दोस्तों यारों से मिल कर ताजगी अनुभव करते थे.

पिछले दिनों सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते मामले में संसद के अंदर भी काफी गरमागरमी रही. एनसीआरबी के आंकड़े जारी होने के बाद केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश में सड़क दुर्घटनाओं और उनमें लोगों की मृत्यु पर गंभीर चिंता जताई. सदन में उन्होंने एक तरह से माफी मांगते हुए यह बात कही कि दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि उन का विभाग सतत प्रयास के बावजूद जानलेवा सड़क हादसों को रोक नहीं पाया है.

गडकरी लोकसभा में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के कोटागिरी श्रीधर के एक पूरक प्रश्न का उत्तर दे रहे थे. उन्होंने यह माना कि देश में सड़क दुर्घटनाओं को सरकार रोक नहीं पा रही है. उन्होंने कहा कि एक्सप्रेसवे पर एक तरफ कुछ लोग गति सीमा बढ़ाने की मांग करते हैं और इस सम्बन्ध में कानून में ढील का अनुरोध करते हैं तो कुछ लोग गति सीम को कम करने का प्रस्ताव देते हैं. इन के अलावा सर्विस लेन को जोड़ने से भी समस्याएं सामने आ रही हैं.

दुर्भाग्यपूर्ण है कि सड़क दुर्घटनाओं से देश की जीडीपी को 3.14 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है. इस से भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सड़क दुर्घटनाओं की वजह से हुई मौत के 67 प्रतिशत मामले 18 से 45 साल के युवाओं के होते हैं. गडकरी ने कहा कि मैं 9 साल से प्रयासरत हूं लेकिन हम सड़क दुर्घटनाओं की संख्या और मौत के मामलों को कम करने की स्थिति में नहीं पहुंच पा रहे हैं.

सड़कों दुर्घटनाओं की विभिन्न वजहें

ड्राइवर : तेज गति से गाड़ी चलाना, लापरवाही से गाड़ी चलाना, नियमों का उल्लंघन, संकेतों को समझने में विफलता, थकान, शराब.
पैदल यात्री : लापरवाही, अशिक्षा, गाड़ी के रास्ते पर गलत स्थानों पर चलना, जयवाकर्स.
यात्री : अपने शरीर को वाहन के बाहर दिखाना, ड्राइवरों से बात करना, गलत साइड से वाहन से उतरना और चढ़ना, फुटबोर्ड पर यात्रा करना, चलती बस को पकड़ना आदि.
वाहन : ब्रेक या स्टीयरिंग की विफलता, टायर फटना, अपर्याप्त हेडलाइट्स, ओवरलोडिंग, लोड प्रोजेक्ट करना.
सड़क की स्थिति : गड्ढे, क्षतिग्रस्त सड़क, ग्रामीण सड़कों का राजमार्गों में विलय, डायवर्जन, अवैध स्पीड ब्रेकर.
मौसम की स्थिति : कोहरा, बर्फ, भारी वर्षा, तूफान, ओलावृष्टि.

अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस : अहम यह है कि भीमराव अंबेडकर को कौन कैसे याद करता है

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भीमराव अंबेडकर के `परिनिर्वाण` दिवसपर पूरा दिन उन के नाम कर दिया और उन की आड़ में परोक्ष रूप से कांग्रेस को कोसते कहा कि जो लोग आज भारतविरोधी गतिविधियों के माध्यम से समाज को विभाजित करते हैं, भारत को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं, वे बाबासाहब भीमराव अंबेडकर का अपमान कर रहे हैं. हम सब को इस बारे में गांवगांव जा कर बताना होगा.

क्या थी योगी की मंशा और कैसे भगवा गैंग ने अंबेडकर के विचारों, सिद्धांतों और दर्शन का भी हिंदूकरण कर दिया है, इसे समझने के लिए पहले परिनिर्वाण शब्द को समझ लेना जरूरी है जिस का मतलब होता है पूर्ण मोक्ष यानी अब अंबेडकर दोबारा मानव योनि में जन्म नहीं लेंगे. वे ईश्वरीय सत्ता में विलीन हो कर उस का हिस्सा बन चुके हैं.

हिंदू धर्म छोड़ कर जिस बौद्ध धर्म को अंबेडकर ने अपनाया था वह मोक्ष और पुनर्जन्म का धुर विरोधी था क्योंकि इन्हीं का डर दिखा कर सनातनी अपनी दुकान चलाते रहे हैं और आबादी के बड़े तबके को गुमराह करते उसे गुलाम व पिछड़ा बनाए रखने की साजिश मठों और मंदिरों में रचते रहे हैं. सनातनियों ने दिया हो या बौद्धों ने, यह परिनिर्वाण शब्द ही अंबेडकर का सब से बड़ा अपमान है. जैसे कालांतर में बुद्ध को विष्णु का 9वां अवतार घोषित कर उन के विचारों को दबा दिया गया, वही अब भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों के साथ किया जा रहा है.

और इस के लिए नया कुछ नहीं करना है बल्कि बौद्धों वअंबेडकरवादियों को पूजापाठी बनाने के लिए उन की जयंतियां धूमधाम से मनाना है. उन की मौत के दिन को पूर्णमोक्ष दिवस कहना है. जगहजगह उन की मूर्तियां लगा कर नए तरीके से पाखंड और कर्मकांड थोपना है. इस शोर व कर्मकांडों के ढोलधमाके में बुद्ध की तरह अंबेडकर की नसीहतें भी हवा हो जानी हैं. ऐसा हो भी रहा है कि अंबेडकर में अगाध श्रद्धा रखने वाले भी उन के मंदिर व मूर्तियों के आगे दीया और अगरबत्ती जलाने लगे हैं, आरतियां और भजनकीर्तन आम हैं.

अंबेडकर की वैचारिक हत्या 

देश को विभाजित कौन कर रहा है जैसा कि डर भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ और भगवा खेमा आएदिन दिखा कर वोट लूटा करता है. इस सवाल का जवाब शायद ही कोई ढूंढ़ पाए क्योंकि यह डर ही गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर भूतप्रेत होने जैसा काल्पनिक है जिस से गांव के पंडितों की रोजीरोटी चलती है. वे इस प्रेत से बचने के लिए टोटके बताया करते हैं, तावीज देते हैं और झाड़फूंक भी करते हैं.

यही वैचारिक रूप से इन दिनों समाज और राजनीति में हो रहा है कि एक काल्पनिक प्रेत पैदा करो और फिर उस से बचाने के नाम पर वोटों की दक्षिणा बटोरो. कोई यह नहीं पूछेगा कि पंडितजी यह भूतप्रेत कुछ होता भी है या आप के दिमाग व आप के धर्मग्रंथों की खुराफाती उपज है.

यह डर फैलाना जरूरी है कि अंबेडकर जैसे गंभीर चिंतक और दूरदृष्टा की वैचारिक हत्या कर दो. यह हत्या धर्म के हथियार से होना ही संभव है, इसलिए की भी जा रही है. नहीं तो,अंबेडकर के सपनों का भारत गढ़ने का दावा करने वाले आदित्यनाथों को उन के इन कथनों वचिंतन पर बोलना चाहिए जो उन के कहे के करोड़वां हिस्सा भी नहीं.

  • “अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा. हिंदू कुछ भी कहें पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक खतरा है. इस आधार पर यह लोकतंत्र के लिए अनुपयुक्त है. हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए.” 1940 में दिए अंबेडकर के इस बयान की व्याख्या बहुत बाद तक होती रही कि कैसे हिंदू राष्ट्र या हिंदुत्व का विचार ही दलितों और महिलाओं के लिए घातक है. अब इस पर कोई नहीं बोलता इसलिए नहीं कि लोग कुछ बोल नहीं सकते बल्कि इसलिए कि मौजूदा माहौल में उन्हें खामोश रहने में ही भलाई नजर आ रही है जो लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों (बशर्ते किसी को कहीं दिखते हों तो) से मेल नहीं खाती.
  • एक और भाषण में अंबेडकर ने कहा था-“26 जनवरी,1950 को हम विरोधाभासों से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं. राजनीतिक जीवन में तो हमारे पास समानता होगी लेकिन सामाजिक व आर्थिक जीवन में असमानता होगी.”

25 नवंबर,1949 को अंबेडकर का यह कहा भी किस तरह सच हो रहा है, यह खुद उन के परिनिर्वाण दिवस,6 दिसंबर,2023, पर योगी आदित्यनाथ के भाषण से साफ हो जाता है कि क्या पहले कभी मुसहर, चेरो, वनटांगिया, थारू, कोल, अहरिया और सहरिया जाति के लोगों के बारे में कोई पूछता था.

80 करोड़ लोग आज भी अन्न के मुहताज हैं, यह बात खुद केंद्र सरकार मानती है जो उन्हें मुफ्त का राशन बांट रही है फिर कैसा ‘सब का साथ कैसा विकास’? यह गरीब को गरीब रखने की तकनीकी साजिश है जिस पर बहस की लंबी गुंजाइश है. पहले कांग्रेस भी यही करती रही और अब भाजपा भी कर रही है तो दोनों में फर्क क्या, सिवा इस के कि कांग्रेस घोषिततौर पर हिंदू राष्ट्र नहीं चाहती थी और भाजपा घोषिततौर पर चाहती है और इसीलिए दलितों को सहमत करने के लिए वह अंबेडकर को जबरिया मोक्ष दिलाने पर उतारू है, ताकि फिर कोई अंबेडकर पैदा न हो.

उन के विचारों के पीछे, लड़खड़ाते ही सही, चलने वालों को रोकने के लिए उन का रास्ता ही बदल दो. जो न माने उन्हें साम, दाम, दंड, भेद से खत्म कर दो. उसे एकलव्य, कर्ण या शम्बूक मानना अधर्म की नहीं बल्कि धर्म की बात है. मायावती, रामदास अठावले, चिराग पासवान जैसे दर्जनों छोटेबड़े दलित  नेता भाजपा के हाथों जीतेजी सियासी मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं.

लाख टके का सवाल यह कि सामाजिक और आर्थिक असमानता कैसे दूर होगी और यह राजनीति का विषय है या उस धर्म का जिस के ग्रंथों को जलाने का आग्रह भी कभी भीमराव अंबेडकर ने किया था.

इसलिए पिछड़ रही कांग्रेस 

अंबेडकर के `परिनिर्वाण` दिवस पर कोई बड़ा कांग्रेसी नेता कुछ नहीं बोला सिर्फ इसलिए नहीं कि वे हताश और सदमे में हैं बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने पढ़नालिखना ही छोड़ दिया है. वे सामाजिक स्थितियों और अपेक्षाओं को समझ ही नहीं पा रहे हैं.

3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने मुंह की इसलिए खाई कि मतदाता की नजर में वह वैचारिक रूप से निरर्थक हो चुकी है. यह सोचना बेमानी है कि मतदाता गहराई से नहीं सोचता, असल में उस के पास किताबी शब्द नहीं होते. रही बात लुभावनी योजनाओं की, तो वे लोगों की जरूरत बना दी गई हैं जिन के चलते लोग खुद से जुड़े असल मुद्दों से भटक रहे हैं.

कांग्रेस अंबेडकर जैसे दलित नेताओं को सही तरीके से पेश करने में मात खा रही है जबकि भाजपा गलत तरीके से पेश कर न केवल मौज कर रही है बल्कि देश को गुमराह भी कर रही है.

एप्लायंसेज जो रखेंगे वार्म और देंगे कंफर्ट

सर्दी के मौसम में ठंड की मार से खुद को सुरक्षित रखना मुश्किल काम होता है. लेकिन अगर इस मौसम में खुद की सुरक्षा नहीं की गई तो यह लापरवाही आप पर भारी पड़ सकती है. इसलिए जरूरी होता है कि इस की तैयारी पहले से ही शुरू कर ली जाए. इस के लिए आप के पास कुछ खास विंटर एप्लायंसेज का होना जरूरी है ताकि सर्दी में सेफ रहने के साथसाथ आप मौसम को भी जीभर कर एंजौय कर पाएं. तो आइए जानते हैं इन के बारे में-

इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड

अभी तक आपने विंटर्स में खुद को वार्म रखने के लिए रबर हौट वाटर बैग तो खूब इस्तेमाल किया होगा. लेकिन इस में पानी गरम करने का झंझट बहुत ज्यादा होता है और साथ ही, ज्यादा टाइम भी लगता है. इस वजह से अकसर आप इसे इस्तेमाल करने से कतराते होंगे लेकिन अब आप की इस परेशानी के समाधान के रूप में एक बैटर औप्शन मिलता है इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड के रूप में, जो आप को वार्म रखने के साथसाथ आप के बिस्तर को भी वार्म रखने का काम करता है.

इस के लिए आप को बस अपने बैड के साथ में लगे स्विच में इसे 10-15 मिनट के लिए चार्ज करना है और फिर इसे अपने बिस्तर में रख कर खुद को विंटर्स में वार्म फील करवाने का मजा उठाना है. यही नहीं, ये बैकपेन से रिलीफ पहुंचाने में भी मदद करता है. यह एक तरह से हीट थेरैपी है और हीट थेरैपी ब्लड सर्कुलेशन को इंप्रूव करने का काम करती है. इस से न्यूट्रिएंट्स और औक्सीजन मसल्स व जौइंट्स तक पहुंच कर डैमेज मसल्स को इंप्रूव कर के जौइंट्स में जकड़न जैसी समस्याओं को ठीक करने में मदद करते हैं.

लेकिन इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड का इस्तेमाल हमेशा लो लैवल सैटिंग मोड से ही करना चाहिए, जिसे आप हीटिंग सैटिंग मोड से सैट कर सकते हैं क्योंकि इस से आप इस का इस्तेमाल लंबे समय तक कर पाएंगे और इस से जलने का डर भी नहीं रहेगा. आप जब भी इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड खरीदें तो देखें कि उस में औटोमेटिक शटऔफ फीचर जरूर हो, जो ओवरहीटिंग और बर्न होने से बचाने में मदद करेगा. ये आप को 300 से ले कर 1,000 रुपए में अच्छे फीचर्स के साथ मिल जाएंगे. तो फिर इस विंटर्स में खुद को वार्म रखें इलैक्ट्रिक हीटिंग पैड से.

रूम हीटर

विंटर्स में हर कोई मौसम का लुत्फ तो उठाना चाहता है, लेकिन बाहर की ठिठुरती ठंड हमें घर से बाहर तो क्या, कंबल से निकलने भी नहीं देती है. बस, मजबूरी के कारण घर से बाहर निकलना पड़ता है. ऐसे में हर कोई चाहता है कि वह भले ही बाहर के टैंपरेचर को कंट्रोल न कर पाए लेकिन अपने रूम को तो वार्म रख सके ताकि जब बाहर से घर आए तो उसे अपना कमरा वार्म व कोजी मिले. ऐसे में रूम हीटर्स आप के बड़े काम आएंगे. ये अपनी हीटिंग टैक्नोलौजी के कारण विंटर्स में रूम को वार्म रखते हैं.

बाजार में आज अलगअलग तकनीक के साथ विभिन्न प्रकार के रूम हीटर उपलब्ध हैं जिन्हें आप अपनी पसंद व जरूरत के हिसाब से खरीद सकते हैं. जैसे, रेडिएंट ट्यूब हीटर, जो सस्ता होने के कारण सब से ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इस में रेडिएशन प्लेट होती है जो सब से पहले आसपास की चीजों को गरम करती है. यह आप को 500 रुपए तक में मिल जाएगा. वहीं, फैन ब्लोअर रूम हीटर काफी पसंद किए जाते हैं क्योंकि ये काफी सेफ माने जाते हैं. असल में इस में एक फैन होता है जो गरम एलिमैंट पर हवा को संचारित करता है जिस के द्वारा हवा गरम हो कर पूरे रूम में फैल कर रूम को वार्म बनाने में मदद करती है. यह आप को 1,500-3,000 के बीच मिल जाएगा.

इसी तरह पीटीसी रूम हीटर, जिसे पौजिटिव टैंपरेचर एफिशिएंट रूम हीटर भी कहा जाता है. इस तरह के हीटर्स में पीटीसी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जो तापमान के हिसाब से कमरे को वार्म रखने में मदद करते हैं. ये कमरे के माहौल को आरामदायक बनाने के साथ तेज हीटिंग की सुविधा भी प्रदान करते हैं और सेफ्टी के मामले में भी इन का कोई जवाब नहीं. हालांकि ये थोड़े महंगे जरूर होते हैं लेकिन कमरे के कंफर्ट को बनाए रखने में इन का अहम रोल होता है.

और अब बात आती है, औयल फिल्ड रूम हीटर की. इस में हीट ट्रांसफर करने के लिए औयल और रेडिएटर का इस्तेमाल किया जाता है. सब से पहले औयल को रेडिएटर में सर्कुलेट किया जाता है, जिस से रेडिएटर के बड़े सतह क्षेत्र के साथ, ताप अच्छे से विसर्जित होता है. कमरे को आरामदायक बनाने के लिए हीटर का टैंपरेचर थर्मोस्टेट के माध्यम से नियंत्रित किया जाता है. औक्सीजन बर्निंग प्रौब्लम इस तरह के हीटर्स में न के बराबर होती है, इसलिए ये महंगे होते हैं.

गीजर

विंटर का मौसम लगभग आ ही गया है. ऐसे में हर घर में सर्दी में गीजर की जरूरत महसूस होती ही है. न सिर्फ बाथरूम में बल्कि किचन में भी, जिस से आप के नहाने से ले कर आप का किचन में काम करना भी सुविधाजनक हो सके. लेकिन घर में गीजर को यों ही खरीद कर न ले आएं, बल्कि जब भी आप इसे खरीदें तो अपनी जरूरत, स्टाइल, कितने लोगों के लिए खरीदना है, वाटर हीटिंग का टाइम, प्राइस सब को ध्यान में रख कर खरीदें, ताकि विंटर में आराम मिलने के साथसाथ आप की जरूरत भी पूरी हो सके.

इस के लिए हम आप को बताते हैं कि आप को मार्केट में कई तरह के गीजर मिल जाएंगे, जिन में शामिल है, इंस्टेंट गीजर. ये गीजर आजकल काफी डिमांड में रहते हैं क्योंकि इन का कौम्पैक्ट डिजाइन छोटे बाथरूम और किचन के लिए बिलकुल उपयुक्त है. इस में इंसुलेटेड वाटर टैंक होता है, साथ ही, ये इंस्टैंट पानी को गरम करते हैं, जिस से ये किचन, बाथरूम में बड़े काम के साबित होते हैं. कोशिश करें इन्हें औफलाइन ही खरीदें ताकि आप को कोई भी छोटीबड़ी दिक्कत आने पर तुरंत समाधान मिल सके.

इसी के साथ गैस गीजर पानी को गरम करने के लिए लिक्विड पैट्रोलियम गैस का इस्तेमाल करते हैं. ये गीजर गरम पानी को लगातार प्रवाह प्रदान करते हैं, जिस से पानी तेजी से गरम होता है. और अगर आप के घर में पावर सप्लाई नहीं है, तब भी इस का असर आप पर नहीं पड़ेगा. ये कम ऊर्जा का उपयोग करते हुए पानी को तेजी से गरम करने में सक्षम होते हैं.

वहीं स्टोरेज गीजर, जो बिजली से चलता है, उस में एकीकृत इंसुलेटेड पानी का टैंक होता है. इस में बड़े पैमाने पर पानी संग्रहीत किया जाता है, जिस से बारबार पानी गरम करने के झंझट से बचा जा सके. ये इंस्टैंट वाटर गीजर की तुलना में थोड़े सस्ते होते हैं. तो इस तरह आप भी अपनी जरूरत के हिसाब से इस विंटर्स गीजर को लगवा कर मिनटों में गरम पानी का लुत्फ उठा सकते हैं.

इलैक्ट्रिक बैड वार्मर

नाम सुन कर हैरान रह गए न आप भी. असल में ये इलैक्ट्रिक बैड वार्मर सर्दी में आप के बड़े काम आने वाला है. जब बिस्तर ठंडे हो जाते हैं, जिस कारण घंटों नींद नहीं आती है, ऐसे में यह वार्मर आप के बैड को सोने से पहले प्रीहीट करने का काम करता है, जिस से आप को सोते समय गरमाहट में नींद आ सके. इस में बहुत कम बिजली लगती है, क्योंकि इस में बहुत पतली कार्बन फाइबर वायर्स का इस्तेमाल किया जाता है. इस में ब्लैंकेट का मैटीरियल ऐसा होता है, जिस से आग लगने का डर नहीं होता है. बस, जरूरत होती है इस ब्लैंकेट को इलैक्ट्रिक सर्किट में प्लगइन करने की और फिर रिमोट की मदद से आप टैंपरेचर को भी आसानी से सैट कर सकते हैं. ये आप को 2,000 से 4,000 रुपए में औनलाइन व औफलाइन मिल जाएंगे.

इलैक्ट्रिक फुट वार्मर

क्या सर्दी में आप के पैर भी ठंडे रहते हैं और आप को उन्हें गरम करने के लिए बारबार बिस्तर में जाना पड़ता है तो अब आप की इस परेशानी का अच्छा सा सौलूशन है, इलैक्ट्रिक फुट वार्मर. बस, इसे आप को प्लगइन करने की जरुरत है और आप अपनी जरूरत के हिसाब से इस में टैंपरेचर को भी सैट कर सकते हैं. इस के पोर्टेबल डिजाइन के कारण आप इसे आसानी से कहीं पर भी ले जा सकते हैं. साथ ही, इस का सुपर सौफ्ट मैटीरियल पैरों को गरम रखने के साथसाथ उन्हें फुल कंफर्ट देने का भी काम करता है. अगर कीमत की बात की जाए तो ये काफी पौकेटफ्रैंडली है. तो फिर तैयार हैं न विंटर्स में खुद को कंफर्ट व वार्म रखने के लिए.

सर्दी में पहाड़ों पर पर्यटन का मजा

बदलते मौसम में पर्यटन के दस्तूर भी बदल रहे हैं. आज पर्यटक सर्दियों में भी पहाड़ों की ठंड का मजा लेना चाहते हैं. पहले लोग गरमी में ही पहाड़ों पर जाना पसंद करते थे. सर्दी में पहाड़ों पर पर्यटन को ‘औफ सीजन’ माना जाता था. उस समय सर्दी  में पहाड़ों में पर्यटन सस्ता माना जाता था. होटल में रहने का खर्च व वहां घूमनाफिरना कम होता था.

अब हालात बदल गए हैं. अब पर्यटक सर्दी में पहाड़ों पर घूमने को प्राथमिकता देने लगे हैं. इस का सब से बड़ा कारण पहाड़ों की बर्फ का आनंद लेना है. सर्दी में पहाड़ों पर घूमने वालों की भीड़ नहीं रहती है. जिस से घूमने में सुकून मिलता है. अब पहाड़ों पर सर्दी में पर्यटन को ‘औफ सीजन’ नहीं माना जाता है.

सर्दी के मौसम में बर्फबारी देखने का अपना अलग ही मजा है. जिन लोगों को इस मौसम में पहाड़ों की बर्फबारी देखना और बर्फ में खेलना पसंद है वह पहाड़ों पर जाना पसंद करते हैं. इस के अलावा कुछ पर्यटक शांति की तलाश में पर्यटन करना चाहते हैं. वे भी इस मौसम को ही पसंद करते हैं.

गरमी में पर्यटन स्थलों पर इतनी भीड़ होने लगी है कि वहां जाना और रुकना महंगा और असुविधाजनक हो गया है. ऐसे में पहाड़ों पर सर्दी में जाने का ही बेहतर विकल्प रह गया है. सर्दी में पहाड़ों पर घूमने जा रहे हैं तो यह तय करना जरूरी है कि कहां जाएं, जहां आप को आनंद मिल सके?

देश में कई ऐसे पर्यटन क्षेत्र हैं जहां आप को चारों तरफ बर्फ ही बर्फ नजर आएगी. बर्फ से ढकी पहाडि़यां और पेड़पौधे मन मोह लेंगे. जो लोग स्कैटिंग जैसी ऐक्टिविटीज के लिए सर्दी में पहाड़ों का मजा लेना चाहते हैं वह भी ऐसी जगहों का चुनाव करें तो अच्छा होगा. पहाड़ी पर्यटन स्थलों में ज्यादातर हिमाचल, उतराखंड और नौर्थ ईस्ट हैं.

हिमाचल प्रदेश में इस सीजन पर्यटन के हिसाब से अच्छा नहीं जाएगा. लैंडस्लाडिंग में तमाम सड़कें खराब हो गईं. ऐसे में पर्यटक इस बार कश्मीर, उत्तराखंड  और नौर्थईस्ट जा सकते हैं. नौर्थईस्ट में बर्फबारी देखने को नहीं मिलती लेकिन पहाड़ दिखते हैं. उत्तराखंड में तमाम ऐसी जगहें हैं जहां पर बर्फबारी का पूरा मजा लिया जा सकता है.

कश्मीर में श्रीनगर, गुलमर्ग, पहलगाम, दूध पथरी और सोनमर्ग प्रमुख हैं. उत्तराखंड में नैनीताल, भीमताल, अल्मोड़ा, रानीखेत, गढ़मुक्तेश्वर, मसूरी, चमोली, औली, और जोशीमठ प्रमुख हैं. इसी तरह से नौर्थईस्ट में मेघालय और सिक्किम जैसी मशहूर जगहें हैं. कुछ शहर ऐसे हैं जो टौप फेवरेट माने जाते हैं. इन के बारे में जानना जरूरी है.

औली में स्कीइंग का मजा

सर्दी में पहाड़ों के सब से ज्यादा पसंद किए जाने वाले पर्यटन स्थलों में औली का नाम सब से प्रमुख है. यह हिमाचल प्रदेश में स्थित बेहद शांत और खूबसूरत हिल स्टेशन है. यहां आप स्कीइंग का आनंद ले सकते हैं. यह सब से फेमस स्कीइंग प्लेस है. बर्फ से ढकी पहाडि़यां घूमने वालों को एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं. नवंबर से मार्च तक औली जा सकते हैं. वहां का मौसम अच्छा होता है.

झील और जंगल देखना है तो हो आइए तवांग

तवांग में पर्यटकों की कम भीड़ देखने को मिलेगी. यहां आप को चारों ओर बर्फ की वादियां दिखाई देंगी. तवांग बेहद खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों, हरेभरे जंगलों और खूबसूरत  झीलों के लिए भी जाना जाता है. तवांग में स्कीइंग का मजा लेने के लिए सब से अच्छी जगह पंगा टेंग त्सो  झील या पीटी  झील है. तवांग जाने का सब से अच्छा समय दिसंबर से फरवरी है.

सब से हौट स्पौट है मनाली

मनाली एक बहुत ही खूबसूरत हिल स्टेशन है. यह हिमाचल प्रदेश में है. पर्यटक सब से अधिक इस को ही पसंद करते हैं. मनाली में आमतौर पर नवंबर के शुरुआत में ही बर्फबारी होने लगती है. यहां आप ट्रेकिंग, स्कीइंग और कई तरह की ऐक्टिविटीज कर सकते हैं.

शिमला के आसपास पर्यटन स्थलों की भरमार

दिसंबर से जनवरी तक शिमला घूमने जा सकते हैं. इस समय यहां अच्छी बर्फबारी देखने को मिलेगी. शिमला के आसपास कुफरी, मनाली, डलहौजी जैसी जगहें हैं जहां सर्दी में घूमने जा सकते हैं.

बर्फबारी के लिए प्रसिद्ध है मुनस्यारी

मुनस्यारी अपनी बर्फबारी के लिए प्रसिद्ध है. पर्यटक यहां स्कीइंग का मजा ले सकते हैं. यह जौहर घाटी के पास है. मुनस्यारी नाम का मतलब होता है ‘बर्फ से ढकी जगह’. मुनस्यारी पर्वतारोहियों का भी पसंदीदा स्थान है. यहां के ग्लेशियर लोगों को पसंद आते हैं. बर्फ से ढकी ढलानें स्कीइंग के रोमांच को बढ़ा देती हैं.

गुलमर्ग से बेहतर कुछ भी नहीं

कश्मीर की बात तबतक अधूरी है जब तक गुलमर्ग की बात न हो. गुलमर्ग में चारों तरफ बर्फ नजर आती है. गुलमर्ग सर्दी में बर्फ से लदी वादियां देखने वाली होती है. कागज से सफेद बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच बर्फबारी खेल का आनंद अद्भुत होता है. गुलमर्ग में कोंगडोरी और अपर्वहाट पीक स्कीइंग के लिए सब से प्रमुख स्थान हैं. कोंगडोरी की 450 मीटर की ढलान पर स्कीइंग का अलग ही मजा होता है.

पहाड़ों पर बढ़ी हैं सुविधाएं

आज के दौर में सर्दी में पहाड़ों पर जाना लोग इसलिए भी पसंद  करते हैं क्योंकि वहां अब सुविधाएं बढ़ गई हैं. अगर बर्फ का मजा लेना है तो बाहर घूमिए. सर्दी से दिक्कत है तो होटल के अंदर रह सकते हैं. सर्दी से बचने के उपाय है वहां पर. होटल के अलावा होम स्टे भी उपलब्ध हैं. ये सस्ते पड़ते हैं. पहाड़ के घर भी इस तरह से बनाए जाते हैं जिन में सर्दी कम असर करती है. अब पहाड़ों पर आनेजाने के साधन बेहतर हो गए हैं. बरसात के दिनों में पहाड़ों पर खतरा रहता है. सर्दी में धूप और ठंड का अलग ही मजा आता है.

महिलाओं और परिवार के लोगों को पर्यटन करने के लिए ले जाने का काम करने वाली सोनिया गुलाटी कहती हैं, ‘‘सर्दी  में कुछ पर्यटन स्थल हौटस्पौट के नाम से मशहूर होते हैं. वहां जाने की जगह पर कम फेमस जगहों पर जाएं. वहां भी पूरा आनंद मिलता है. बस ब्रैंड नेम न होने के कारण भीड़ कम होती है.’’

ऐसे में अगर बजट टूरिज्म करना चाहते हैं तो कम मशहूर जगहों का चुनाव करें. इन की जानकारी पहले से हासिल कर लें. आज सब जगहों की जानकारी और मौसम का मिजाज पहले ही पता चल जाता है. अच्छा प्लान करेंगे तो पहाड़ों का असली आनंद सर्दी में ले सकेंगे. अब अपने बजट में घूम सकते हैं क्योंकि महंगी और सस्ती हर तरह की जगह और साधन मिल सकते हैं.

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