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मैं अपने बौयफ्रैंड से शादी करूं या नहीं, कुछ समझ नहीं आ रहा क्या करूं ?

सवाल

मैं अपने बौयफ्रैंड से डेटिंग ऐप पर मिली थी. इस बात को 4 साल हो चुके हैं. हम दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं. वह अब मुझ से शादी करना चाहता है. वह अब अपनी जौब में सैट हो चुका है. उस के मम्मीपापा को भी हमारी शादी से कोई एतराज नहीं है. वे बहुत खुले विचारों के हैं और मुझे विश्वास है कि वे मुझे खुश रखेंगे. फिर भी कुछ समझ नहीं आ रहा है कि मैं उससे शादी करूं या नहीं ? कृपया कोई सुझाव दीजिए.

जवाब

सब से पहले आप को खुद को भावनात्मक रूप से तैयार करना है. विवाह के लिए आप को अपनी भावनाओं, समय और ऊर्जा का निवेश करने की आवश्यकता होती है और आप इस का लाभ उठाने के लिए तैयार हैं तो आप के लिए शादी करने के लिए यह समय सही है. दूसरा, आप दोनों एकदूसरे को 4 साल से जानते हैं. डेटिंग को एंजौय कर चुके हैं. सिंगल कपल लाइफ का आनंद ले लिया है. अब आप अपने बौयफ्रैंड के साथ जीवन में स्थिरता चाहते हैं तो वह स्थिरता शादी ही ला सकती है.

शादी से पहले आर्थिक रूप से मजबूत होना जरूरी है. आप खुद कह रही हैं कि अब आप का बौयफ्रैंड लाइफ में, अपनी जौब में सैट हो चुका है तो इस का मतलब यही है कि वह अपने साथसाथ आप की जिम्मेदारी भी उठा सकता है. अलबत्ता आज टाइम ऐसा है कि लड़की को भी पैसे के मामले में सक्षम होना चाहिए. ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आत्मनिर्भर हो कर लड़की लड़के पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं रहती. अपने बौयफ्रैंड की भी पसंद जान लें कि वह वर्किंग वाइफ चाहता है या नौन वर्किंग. यह सब आप दोनों की अंडरस्टैंडिंग पर है.

सब से महत्त्वपूर्ण बात, यदि आप को लगता है कि आप को वह व्यक्ति मिल गया है, जिस की आप को चाह थी. जिस के साथ आप अपना पूरा जीवन खुशीखुशी बिता सकती हैं तो शादी का निर्णय ले सकती हैं.

नींद और लंग्स का आपस में कनैक्शन

एक एनर्जेटिक और प्रोडक्टिव दिन को पाने के लिए रात को भरपूर और आरामदायक नींद लेना बहुत जरूरी है. कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण खराब नींद है. फिर भी हम इसे हलके में लेते हैं और नींद की गुणवत्ता के साथ सम?ाता करते हैं. कम नींद की वजह से हमें न सिर्फ मानसिक बीमारियां घेर लेती हैं बल्कि इस से दिल और फेफड़े खराब हो सकते हैं. यदि हम 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद नहीं लेते हैं तो यह हमारे फेफड़ों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.

अच्छी नींद लेने से सेहत और मन दोनों अच्छे रहते हैं. डाक्टर भी अच्छी सेहत के लिए 8 घंटे की नींद लेने की सलाह देते हैं. जो लोग रोजाना 11 घंटे से ज्यादा सोते हैं या 4 घंटे से कम नींद लेते हैं, उन में गंभीर और लाइलाज फेफड़ों की बीमारी पल्मोनरी फाइब्रोसिस होने का खतरा 2 से 3 गुना ज्यादा होता है.

साइंस पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशंस’ की एक रिपोर्ट कहती है कि कम सोने से आरईवी-ईआरबीए नामक जीवाणु फेफड़ों पर असर दिखाने लगते हैं, जिस के कारण फेफड़ों के ऊतकों पर काले धब्बे उभर आते हैं. ऊतक डैमेज हो जाते हैं. यह पल्मोनरी फाइब्रोसिस नामक बीमारी की शुरुआत है.

यह गंभीर बीमारी है जिस में लंग्स मोटे और कठोर हो जाते हैं और व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. फेफड़े के ऊतक क्षतिग्रस्त होने से श्वसन क्रिया पर असर पड़ता है. फेफड़ों के ठीक तरीके से काम न करने से पूरे शरीर और दिमाग को औक्सीजन नहीं मिल पाती, जिस से मल्टीप्ल और्गन फैल्योर का खतरा बढ़ जाता है. फेफड़ों में एक बार खतरनाक इन्फैक्शन हो जाए तो उसे ठीक होने में लंबा टाइम लगता है.

फेफड़ों की कोशिकाओं का अध्ययन बताता है कि जैविक घड़ी के अनुसार सोने से फेफड़ों में होने वाली पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी के घाव धीरेधीरे ठीक होने लगते हैं. यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर और यूनिवर्सिटी औफ औक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं के अनुसार शरीर की जैविक घड़ी शरीर में मौजूद एकएक कोशिका को संचालित करती है.

यह जैविक घड़ी 24 घंटे के चक्र में कई प्रक्रियाएं, जैसे सोना, हार्मोन का स्राव और चयापचय को संचारित करती है. फेफड़ों में यह घड़ी हवा अंदर ले जाने वाली प्रमुख नली यानी वायुमार्ग में स्थित होती है. असामान्य नींद का पैटर्न शरीर की इस प्राकृतिक जैविक घड़ी के कार्य को बाधित करता है. वर्तमान में, फाइब्रोसिस के इलाज के लिए एफडीए द्वारा अनुमोदित केवल 2 दवाएं हैं और वे केवल प्रक्रिया में देरी करती हैं, वे बीमारी का इलाज नहीं करतीं.

नींद से जुड़ी दूसरी बीमारी है स्लीप ऐप्निया. वे लोग जिन्हें दिन में उनींदापन अधिक रहता है और जो खर्राटे लेते हैं उन्हें इन लक्षणों के बारे में अपने डाक्टर से बात करनी चाहिए. वे निश्चित ही कम नींद लेने की वजह से स्लीप ऐप्निया रोग की गिरफ्त में हैं. उन के साथ हांफने या दम घुटने, रुकरुक कर सांस आने और खर्राटे के साथ घबरा कर नींद खुलने की घटनाएं होती हैं.

स्लीप ऐप्निया कुछ चिकित्सकीय विकारों और असमय मृत्यु के जोखिम को बढ़ाती है. इस बीमारी की पुष्टि, बीमारी की गंभीरता और निदान के लिए डाक्टर पौलीसोम्नोग्राफी करवाते हैं. स्लीप ऐप्निया का इलाज करने के लिए लगातार पौजिटिव एयरवे प्रैशर, डैंटिस्ट द्वारा लगाए गए मुंह के उपकरणों का प्रयोग और कभीकभी सर्जरी भी करनी पड़ती है. स्लीप ऐप्निया एक बहुत आम समस्या है. दुनियाभर में एक बिलियन से अधिक लोग इस से प्रभावित हैं. विभिन्न कारणों और जोखिम कारकों के साथ यों तो स्लीप ऐप्निया कई प्रकार की होती है लेकिन औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया और सैंट्रल स्लीप ऐप्निया के मरीज अधिक मिलते हैं.

औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया एक आम स्लीप ऐप्निया है जो नींद के दौरान गले या ऊपरी वायुमार्ग के बारबार बंद होने से पैदा होती है. ऊपरी वायुमार्ग में मुंह और नथुनों से ले कर गले और नीचे स्वरयंत्र तक का रास्ता शामिल होता है और व्यक्ति जब सांस लेता है तो ये संरचनाएं अपनी स्थिति को बदल सकती हैं. इस प्रकार का ऐप्निया 8 से 16 फीसदी वयस्कों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है. औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया मोटे लोगों में अधिक होता है.

अधिक मोटापा, बढ़ती आयु, नींद की कमी और दूसरे कारकों के चलते ऊपरी वायुमार्ग के संकुचित होने से औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया होता है. अल्कोहल और सिडेटिव का अत्यधिक उपयोग औब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया को और बिगाड़ देता है. संकुचित गला, मोटी गरदन और गोल सिर होना स्लीप ऐप्निया के जोखिम को बढ़ा देता है. थायराइड हार्मोन के कम स्तर (हाइपोथाइरौइडिज्म), गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स रोग या रात में एनजाइना पेन या हार्मोन (एक्रोमेगाली) के अतिरिक्त स्राव औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया रोग को बढ़ा सकते हैं. कभीकभी आघात के कारण भी औब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया हो सकती है. औब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया वाले लोगों को अल्कोहल और सिडेटिंग दवाओं से बचना चाहिए.

सैंट्रल स्लीप ऐप्निया

औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया की तुलना में सैंट्रल स्लीप ऐप्निया बहुत कम होती है. यह दिमाग के ब्रेन स्टेम कहलाने वाले भाग में सांस के नियंत्रण की समस्या के कारण पैदा होती है. सामान्यतया ब्रेन स्टेम खून में कार्बन डाइऔक्साइड के स्तर में बदलावों के प्रति बहुत संवेदनशील होता है. जब कार्बन डाइऔक्साइड का स्तर अधिक होता है तो ब्रेन स्टेम श्वसन तंत्र की मांसपेशियों को गहरी और तेज सांसें लेने का संकेत देता है ताकि कार्बन डाइऔक्साइड को सांस के माध्यम से बाहर निकाला जा सके. लेकिन इस के विपरीत सैंट्रल स्लीप ऐप्निया में, ब्रेन स्टेम कार्बन डाइऔक्साइड के स्तरों में बदलाव के प्रति ठीक प्रकार से प्रतिक्रिया नहीं करता.

इस के परिणामस्वरूप, जिन लोगों को सैंट्रल स्लीप ऐप्निया होती है, नींद के दौरान उन की सांसों में रुकावट आ सकती है या वे सामान्य से कम गहरी और अधिक धीमी सांसें ले सकते हैं. सभी प्रकार के स्लीप ऐप्निया में नींद के व्यवधान के परिणामस्वरूप दिन के समय उनींदापन, थकान, चिड़चिड़ापन, सुबह का सिरदर्द, विचारों का धीमापन और एकाग्रता में कठिनाई हो सकती है.

जो लोग रात में अपनी पूरी 8 घंटे की नींद नहीं लेते, वे दिनभर नींद से भरे रहते हैं. ऐसे में उन्हें तब चोट लगने का जोखिम अधिक होता है जब वे मोटरवाहन या भारी मशीन संचालित कर रहे हों या ऐसी गतिविधियां कर रहे हों जिन के दौरान उनींदापन खतरनाक होता है. उन्हें काम पर कठिनाइयां हो सकती हैं और यौन संबंधी विकार भी हो सकता है. चूंकि श्वसन क्रिया ठीक न होने से खून में औक्सीजन का स्तर काफी हद तक कम हो सकता है, इसलिए आर्टिरियल फाइब्रिलेशन विकसित हो सकता है और ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है.

औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया में स्ट्रोक, दिल के दौरे, आर्टिरियल फाइब्रिलेशन (एक असामान्य, अनियमित हृदय गति) और अधिक ब्लडप्रैशर का जोखिम बढ़ जाता है. यदि अधेड़ आयु के पुरुषों के साथ औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया के प्रसंग प्रति घंटे लगभग 30 से अधिक बार होते हैं तो उन की असमय मृत्यु होने का जोखिम बढ़ जाता है.

स्लीप ऐप्निया से कैसे बचें

स्लीप ऐप्निया नींद और श्वसन से जुड़ी एक आम बीमारी है. अकसर इस बीमारी का पता नहीं चल पाता. स्लीप ऐप्निया से बचने के लिए ये तरीके अपनाए जा सकते हैं-

  • औब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया से पीडि़त लोगों को सोने से पहले अल्कोहल और सिडेटिंग दवाओं से बचना चाहिए.
  • स्लीप ऐप्निया के जोखिम कारकों में मोटापा, ऊपरी वायुमार्ग में संरचनात्मक असामान्यताएं, स्लीप ऐप्निया का पारिवारिक इतिहास, हाइपोथायरायडिज्म और पौलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम जैसे हार्मोन विकार, धूम्रपान और शराब का दुरुपयोग शामिल हैं. इस के लिए डाक्टर की सलाह पर व्यायाम और दवाओं का सेवन करें.
  • नींद के दौरान लक्षणों पर आमतौर पर सब से पहले साथ सोने वाले व्यक्ति, कमरे या घर के साथी का ध्यान जाता है. सभी प्रकार के स्लीप ऐप्निया में सांस लेना असामान्य रूप से धीमा और उथला हो सकता है, या सांस अचानक रुक सकती है कभीकभी तो एक मिनट तक के लिए, फिर वापस चालू हो जाती है. इन लक्षणों की पहचान कर जल्दी ट्रीटमैंट शुरू करना चाहिए.
  • वजन कम करना, धूम्रपान छोड़ना और अधिक अल्कोहल का उपयोग न करना मदद कर सकता है. नाक के संक्रमणों और एलर्जी का इलाज किया जाना चाहिए. हाइपोथाइरायडिज्म और एक्रोमेगाली का इलाज किया जाना चाहिए.

संकर्षण : आशीष की पत्नी ने किस के बच्चे को जन्म दिया ?

अपने बचपन के मित्र गगन के यहां से लौटते हुए मेरे पति बारबार एक ही प्रश्न किए जा रहे थे, ‘‘अरे देखो न संकर्षण की शक्लसूरत, व्यवहार सब कुछ गगन से कितना मिलताजुलता है. लगता है जैसे उस का डुप्लिकेट हो. बस नाक तुम्हारी तरह है. मेरा तो जैसे उसे कुछ मिला ही नहीं.’’

‘‘मिला क्यों नहीं है? बुद्धि तुम्हारी तरह ही है. तुम्हारी ही तरह जहीन है.’’

‘‘हां, वह तो है, पर फिर भी शक्लसूरत और आदतें कुछ तो मिलनी चाहिए थीं.’’

‘‘शक्लसूरत और आदतें तो इनसान के अपनेअपने परिवेश के अनुसार बनती हैं और हो सकता है उस के गर्भ में आने के बाद से ही मैं ने उसे गगन भाई साहब को देने का मन बना लिया था. इसी कारण उन जैसी शक्लसूरत हो गई हो.’’

‘‘हां, तुम ठीक कहती हो, पर यार तुम बहुत महान हो. खुशीखुशी अपना बच्चा गगन की झोली में डाल दिया.’’

‘‘क्या करूं? मुझ से उन लोगों की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी. गगन भाई साहब और श्रुति भाभी को हम लोगों ने कोई गैर नहीं समझा. आप के लंदन रहने के दौरान हमारे पिताजी और हमारे बच्चों का कितना ध्यान रखा.’’

‘‘हां, यह बात तो है. गगन और भाभीजी के साथ कभी पराएपन का बोध नहीं हुआ. फिर भी एक मां के लिए अपनी संतान किसी और को दे देना बड़े जीवट का काम है. मेरा तो आज भी मन कर रहा था कि उसे अपने साथ लेते चलूं.’’

‘‘कैसी बात करते हैं आप? देखा नहीं कैसे गगन भाई साहब और श्रुति भाभीजी की पूरी दुनिया उसी के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई है.’’

‘‘सच कह रही हो और संकर्षण भी उन्हीं को अपने मातापिता समझता है. अपने असली मातापिता के बारे में जानता भी नहीं.’’

शुक्र है मेरे पति को किसी प्रकार का शक नहीं हुआ वरना मैं तो डर ही गई थी कि कहीं यह राज उन पर उजागर न हो जाए कि संकर्षण के पिता वास्तव में गगन ही हैं. आज 17 वर्षों के वैवाहिक जीवन में यही एक ऐसा राज है जिसे मैं ने अपने पति से छिपा कर रखा है और शायद अंतिम भी. इस रहस्य को हम परिस्थितिवश हुई गलती की संज्ञा तो दे सकते हैं, पर अपराध की कतई नहीं. फिर भी जानती हूं इस रहस्य से परदा उठने पर 2 परिवार तबाह हो जाएंगे, इसलिए इस रहस्य को सीने में दबाए रखे हूं.

गगन इन के बचपन के मित्र हैं. गगन जहां दुबलेपतले, शांत और कुछकुछ पढ़ने में कमजोर थे वहीं मेरे पति गुस्सैल, कदकाठी के अच्छे और जहीन थे. घर का परिवेश भी दोनों का नितांत भिन्न था. गगन एक गरीब परिवार से संबंध रखते थे और मेरे पति उच्च मध्यवर्गीय परिवार से. इतनी भिन्नताएं होते हुए भी दोनों की दोस्ती मिसाल देने लायक थी. गगन को कोई भूल से भी कुछ कह देता तो उस की खैर नहीं होती. वहीं मेरे पति आशीष की कही हुई हर बात गगन के लिए ब्रह्मवाक्य से कम नहीं होती.

धीरेधीरे समय बीता और मेरे पति का आईएएस में चयन हो गया और गगन ने अपना छोटामोटा बिजनैस शुरू किया, जिस में हमारे ससुर ने भी आर्थिक सहयोग दिया. मेरी सास की मृत्यु मेरे पति के पढ़ते समय ही हो गई थी. उस समय गगन की मां ने ही मेरे पति को मां का प्यार दिया और ससुर भी कभी गगन को अपने परिवार से अलग नहीं समझते थे और कहते थे कि कुदरत ने उन्हें 2 बेटे दिए हैं. एक आशीष और दूसरा गगन.

संयोग देखो कि दोनों के विवाह के बाद जब मैं और श्रुति आईं तो भी उन दोनों के परिवार में किसी प्रकार का भी अलगाव न आया. मेरी और श्रुति की अच्छी बनती थी. हालांकि जब भी लोग हम चारों की मित्रता को देखते तो कहते कि यह मैत्री भी शायद कुदरत का चमत्कार है, जहां 2 भिन्न परिवेश और भिन्न सोच वाले व्यक्ति अभिन्न हो गए थे. मुझे पति के तबादलों के कारण कई शहरों में रहना पड़ा. ऐसे में ससुर अकेले पड़ गए थे. उन्हें अपना शहर छोड़ कर यों शहरशहर भटकना गंवारा न था. ऐसे में गगन और उन की पत्नी ही उन का पूरा खयाल रखते, बेटेबहू की कमी महसूस न होने देते.

समय बीतता रहा. जहां मैं 2 बच्चों की मां बन गई, वहीं गगन की पत्नी को कई बार गर्भ तो ठहरा पर गर्भपात हो गया. डाक्टर का कहना था कि उन की पत्नी की कोख में कुछ ऐसी गड़बड़ी है कि वह गर्भ पनपने ही नहीं देती. हर बार गर्भपात के बाद दोनों पतिपत्नी बहुत मायूस हो जाते. गगन की पत्नी श्रुति का तो और भी बुरा हाल हो जाता. एक तो गर्भपात की कमजोरी और दूसरा मानसिक अवसाद. दिन पर दिन उन का स्वास्थ्य गिरने लगा. डाक्टर ने सलाह दी कि अब खुद के बच्चे के बारे में भूल जाएं. या तो कोई बच्चा गोद ले लें या किराए की कोख का प्रबंध कर लें वरना पत्नी के जीवन पर संकट आ सकता है.

पर उन पतिपत्नी को डाक्टर की बात रास नहीं आई. गगन मुझ से कहते, ‘‘भाभी अब मैडिकल साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है. अगर कुछ कमी है तो क्या वह दवा से दूर हो सकती है. इस शहर के सब डाक्टर पागल हैं. मैं देश के सब से बड़े गाइनोकोलौजिस्ट को दिखाऊंगा, देखिएगा हमारे घर भी अपने बच्चे की किलकारियां गूजेंगी.’’

और सच में उन्होंने देश के सब से मशहूर गाइनोकोलौजिस्ट को दिखाया. उन्होंने आशा बंधाई कि टाइम लगेगा, पर सब कुछ ठीक हो जाएगा. इधर मेरे पति को डैपुटेशन पर 3 सालों के लिए लंदन जाना पड़ा. मैं नहीं जा सकी. बच्चे पढ़ने लायक हो गए थे और ससुर भी अस्वस्थ रहने लगे थे. अब उन्हें केवल गगन के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता था. आखिर हम पतिपत्नी का भी तो कोई उत्तरदायित्व था.

आशीष के लंदन प्रवास के दौरान ही ससुर की मृत्यु हो गई. किसी प्रकार कुछ दिनों की छुट्टी ले कर आशीष आए फिर चले गए. इधर गगन की पत्नी को पुन: गर्भ ठहरा. अब की बार हर प्रकार की सावधानी बरती गई. गगन अपनी पत्नी को जमीन पर पांव ही नहीं धरने देते. वैसे डाक्टर ने भी कंप्लीट बैड रैस्ट के लिए कह रखा था.

डाक्टर ने अल्ट्रासाउंड वगैरह करवाने को भी मन कर दिया था ताकि उस की रेज से भी गर्भ को नुकसान न पहुंचे. धीरेधीरे गर्भ पूरे समय का हो गया. गगन, उन की पत्नी और उन की मां का चेहरा बच्चे के आने की खुशी में पुलकित रहने लगा. प्रसन्नता मुझे भी कम न थी.

नियत समय में श्रुति को प्रसववेदना शुरू हो गई. लगता था सब कुछ सामान्य हो जाएगा. मैं भी अपने बच्चों को मां के पास छोड़ कर गगन के परिवार के साथ थी. आखिरकार इस मुश्किल घड़ी में मैं उन का साथ न देती तो कौन देता. पर 1 हफ्ते तक प्रसववेदना का कोई परिणाम न निकला. डाक्टर भी सामान्य डिलिवरी की प्रतीक्षा करतेकरते थक गई थीं.

अंत में उन्होंने औपरेशन का फैसला लिया और औपरेशन से जिस बच्चे ने जन्म लिया, वह भयानक शक्ल वाला 2 सिर और 3 हाथ का बालक था. जन्म लेते ही उस ने इतने जोर का रुदन किया कि सारी नर्सें उसे वहीं छोड़ कर डर कर भाग गईं.

डाक्टर ने यह खबर गगन को दी. गगन भी बच्चे को देख कर हैरान रह गए. यह तो अच्छा हुआ कि बच्चा आधे घंटे में ही इस दुनिया से चल दिया. गगन की पत्नी बेहोश थीं.

गगन जब बच्चे को दफना कर लौटे तो इतने थकेहारे, बेबस लग रहे थे कि पूछो मत.

गगन की मां ने मुझ से कहा, ‘‘सीमा तुम गगन को ले कर घर जाओ. बहुत परेशान है वह. थोड़ा आराम करेगा तो इस परेशानी से निकलेगा. मैं हौस्पिटल में रुकती हूं.’’

मैं ने विरोध भी किया, ‘‘आंटी, आप और गगन भाई साहब चले जाएं. मैं यहां रुकती हूं.’’

मगर गगन एकदम से उठ कर खड़े हो गए. बोले, ‘‘चलिए भाभी चलते हैं.’’

मैं और गगन कमरे में आ गए. कमरे में आ कर मैं ने गगन के ऊपर सांत्वना भरा हाथ रखा

भर था कि उन का इतनी देर का रोका सब्र का बांध टूट गया.

वे मेरी गोद में सिर रख कर फफकफफक कर रोने लगे, ‘‘मैं क्या करूं भाभी? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. श्रुति जब होश में आएगी तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? इस से अच्छा होता वह गर्भ में आया ही न होता… श्रुति क्या यह सदमा बरदाश्त कर पाएगी? मुझे उस की बड़ी फिक्र हो रही है. उस का सामना करने की हिम्मत मुझ में नहीं है. मैं कहीं चला जाऊंगा. भाभी आप ही उसे संभालिएगा.’’

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि किन शब्दों में उन्हें सांत्वना दूं. केवल उन के बाल सहलाती रही. हम दोनों को ही उस मुद्रा में झपकी सी आ गई और उस दौरान कब प्रकृति और पुरुष का मिलन हो गया हम दोनों ही समझ न पाए. गगन अपराधबोध से भर उठे थे. अपराधबोध मुझे भी कम न था, क्योंकि जो कुछ भी हम दोनों के बीच हुआ था उसे न तो बलात्कार की संज्ञा दी जा सकती थी और न ही बेवफाई की. हम दोनों ही समानरूप से अपराधी थे… परिस्थितियों के षड्यंत्र का शिकार.

गगन अपनी पत्नी को ले कर दूर किसी पर्वतीय स्थल पर चले गए थे. आशीष को कुछ दिन बाद ही लंदन से लौटना था और हम लोगों को ले कर वापस जाना था, क्योंकि आशीष को वहां पर काफी अच्छी जौब मिल गई थी. उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. मुझे देश और इतनी अच्छी नौकरी छोड़ कर विदेश जाना स्वीकार न था, पर आशीष पर तो पैसे और विदेश का भूत सवार था. आशीष आए तभी मुझे पता चला कि मैं फिर से मां बनने वाली हूं. मुझे अच्छी तरह से पता था कि यह बच्चा गगन का है.

आशीष को पता चला तो वे आश्चर्य में पड़ गए. बोले, ‘‘इतनी सावधानियों के बाद ऐसा कैसे हो सकता है?’’

मैं ने कहा, ‘‘अब हो गया है तो क्या करें?’’

आशीष बोले, ‘‘अबौर्शन करवा लो. अभी नए देश में खुद को और बच्चों को ऐडजस्ट करने में समय लगेगा. यह सब झमेला कैसे चल पाएगा?’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं एक बात सोचती हूं. श्रुति भाभी बहुत दुखी हैं, डिप्रैशन में आ गई हैं, शायद अब उन का दूसरा बच्चा हो भी न? तो क्यों न हम इस बच्चे को उन लोगों को दे दें.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है? अपना बच्चा कोई कैसे दूसरे को दे सकता है?’’ आशीष बोले.

‘‘क्यों? वे लोग कोई गैर तो नहीं हैं… फिर तुम अबौर्शन कराने की बात कर रहे थे… कम से कम जीवित तो रहेगा और उन लोगों के जीवन में खुशियां भर देगा.’’

‘‘वह तो ठीक है,’’ आशीष ने हथियार डालते हुए कहा, ‘‘पर क्या गगन और भाभी इस के लिए मान जाएंगे?’’

‘‘चलिए, बात कर के देखते हैं.’’

जब हम लोगों ने गगन भाई साहब और श्रुति भाभी से इस संबंध में बात की तो वे विश्वास न कर सके.

गगन बोले, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है भाभी? आप अपना बच्चा हमें दे देंगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘हमारा और आप का बच्चा अलग थोड़े ही है.’’

मेरी इस बात पर गगन ने चौंक कर मेरी आंखों में देखा. मैं ने भी उन की आंखों में देखते हुए अपनी बात जारी रखी, ‘‘कृष्ण के भाई बलराम की कहानी जानते हैं न? उन्हें संकर्षण विधि द्वारा देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में प्रतिस्थापित कर दिया गया था तो यही समझिए कि यह आप लोगों का ही बच्चा है, केवल गर्भ में मेरे है. अगर बेटा होगा तो आप लोग नाम संकर्षण ही रखिएगा.’’

मगर न श्रुति को और न ही आशीष को इतनी पौराणिक कथाओं का ज्ञान था, केवल मैं और गगन ही इस अंतनिहित भाव को समझ सके. फिर मैं ने कहा, ‘‘मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोग उसे पूरा प्यार देंगे.’’

बच्चे की कल्पना मात्र से गगन की पत्नी की आंखों में चमक आ गई. बोलीं, ‘‘सच भाभी क्या आप ऐसा कर पाएंगी?’’

‘‘क्यों नहीं? आप कोई गैर थोड़ी न हैं.’’

आपसी सहमति बनी कि मैं अभी आशीष के साथ नहीं जाऊंगी. बच्चे को जन्म देने पर उसे श्रुति को सौंप लंदन जाऊंगी. मैं ने ऐसा किया भी. बच्चे को हौस्पिटल से निकलते ही श्रुति की गोद में डाल दिया और आशीष के पास बच्चों के साथ लंदन चली गई.

तब से कई बार भारत आना हुआ पर मायके से ही हो कर लौट गई. डरती थी कहीं मेरा मातृत्व न जाग जाए. कभीकभी इस बात पर क्षोभ भी होता कि मैं ने बेकार ही अपने बच्चे को पराई गोद में डाल दिया. फिर लगता शायद मैं ने ठीक ही किया, नहीं तो उसे देख कर एक अपराधभाव मन में हमेशा बना रहता.

आशीष सारे तथ्यों से अनजान थे. तभी तो उन का पितृत्व जबतब अपने बच्चे से मिलने को बेचैन हो उठता. उन्हीं की जिद थी कि अब की बार गगनजी के यहां जाने का कार्यक्रम बना. संकर्षण से मिल कर आशीष की प्रतिक्रिया से मुझे तो डर ही लग गया था कि कहीं इस रहस्य से परदा न उठ जाए और 2 परिवारों की सुखशांति भंग हो जाए.

मगर आशीष के मुझ पर और गगन पर अटूट विश्वास ने उन की सोच की दिशा इस ओर नहीं मोड़ी वरना मैं फंस जाती, क्योंकि आज तक न तो मैं ने कभी उन से झूठ बोला है और न ही कोई बात छिपाई है, विश्वासघात तो दूर की बात है और इतना तो मैं आज भी मन से कह सकती हूं कि मैं ने और गगन ने न तो कोई विश्वासघात किया है और न ही कोई बेवफाई. गलती जरूर हुई है. पर हां यह बात छिपाने को विवश जरूर हूं, क्योंकि इस गलती का पता लगने पर

2 परिवार व्यर्थ में विघटन की कगार पर पहुंच जाएंगे. इसीलिए मैं इस विषय पर एकदम चुप हूं.

माहौल : सुलझ गई आत्महत्या की गुत्थी

सुमन ने फांसी लगा ली, यह सुन कर मैं अवाक रह गया. अभी उस की उम्र ही क्या थी, महज 20 साल. यह उम्र तो पढ़नेलिखने और सुनहरे भविष्य के सपने बुनने की होती है. ऐसी कौन सी समस्या आ गई जिस के चलते सुमन ने इतना कठोर फैसला ले लिया. घर के सभी सदस्य जहां इस को ले कर तरहतरह की अटकलें लगाने लगे, वहीं मैं कुछ पल के लिए अतीत के पन्नों में उलझ गया. सुमन मेरी चचेरी बहन थी. सुमन के पिता यानी मेरे चाचा कलराज कचहरी में पेशकार थे. जाहिर है रुपएपैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी. ललिता चाची, चाचा की दूसरी पत्नी थीं. उन की पहली पत्नी उच्चकुलीन थीं लेकिन ललिता चाची अतिनिम्न परिवार से आई थीं. एकदम अनपढ़, गंवार. दिनभर महल्ले की मजदूर छाप औरतों के साथ मजमा लगा कर गपें हांकती रहती थीं. उन का रहनसहन भी उसी स्तर का था. बच्चे भी उन्हीं पर गए थे.

मां के संस्कारों का बच्चों पर गहरा असर पड़ता है. कहते हैं न कि पिता लाख व्यभिचारी, लंपट हो लेकिन अगर मां के संस्कार अच्छे हों तो बच्चे लायक बन जाते हैं. चाचा और चाची बच्चों से बेखबर सिर्फ रुपए कमाने में लगे रहते. चाचा शाम को कचहरी से घर आते तो उन के हाथ में विदेशी शराब की बोतल होती. आते ही घर पर मुरगा व शराब का दौर शुरू हो जाता. एक आदमी रखा था जो भोजन पकाने का काम करता था. खापी कर वे बेसुध बिस्तर पर पड़ जाते.

ललिता चाची को उन की हरकतों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि चाचा पैसों से सब का मुंह बंद रखते थे. अगले दिन फिर वही चर्चा. हालत यह थी कि दिन चाची और बच्चों का, तो शाम चाचा की. उन को 6 संतानों में 3 बेटे व 3 बेटियों थीं, जिन में सुमन बड़ी थी.

फैजाबाद में मेरे एक चाचा विश्वभान का भी घर था. उन के 2 टीनएजर लड़के दीपक और संदीप थे, जो अकसर ललिता चाची के घर पर ही जमे रहते. वहां चाची की संतानें दीपक व संदीप और कुछ महल्ले के लड़के आ जाते, जो दिनभर खूब मस्ती करते.

मेरे पिता की सरकारी नौकरी थी, संयोग से 3 साल फैजाबाद में हमें भी रहने का मौका मिला. सो कभीकभार मैं भी चाचा के घर चला जाता. हालांकि इस के लिए सख्त निर्देश था पापा का कि कोई भी पढ़ाईलिखाई छोड़ कर वहां नहीं जाएगा, लेकिन मैं चोरीछिपे वहां चला जाता.

निरंकुश जिंदगी किसे अच्छी नहीं लगती? मेरा भी यही हाल था. वहां न कोई रोकटोक, न ही पढ़ाईलिखाई की चर्चा. बस, दिन भर ताश, लूडो, कैरम या फिर पतंगबाजी करना. यह सिलसिला कई साल चला. फिर एकाएक क्या हुआ जो सुमन ने खुदकुशी कर ली? मैं तो खैर पापा के तबादले के कारण लखनऊ आ गया. इसलिए कुछ अनुमान लगाना मेरे लिए संभव नहीं था.

मैं पापा के साथ फैजाबाद आया. मेरा मन उदास था. मुझे सुमन से ऐसी अपेक्षा नहीं थी. वह एक चंचल और हंसमुख लड़की थी. उस का यों चले जाना मुझे अखर गया. सुमन एक ऐसा अनबुझा सवाल छोड़ गई, जो मेरे मन को बेचैन किए हुए था कि आखिर ऐसी कौन सी विपदा आ गई थी, जिस के कारण सुमन ने इतना बड़ा फैसला ले लिया.

जान देना कोई आसान काम नहीं होता? सुमन का चेहरा देखना मुझे नसीब नहीं हुआ, सिर्फ लाश को कफन में लिपटा देखा. मेरी आंखें भर आईं. शवयात्रा में मैं भी पापा के साथ गया. लाश श्मशान घाट पर जलाने के लिए रखी गई. तभी विश्वभान चाचा आए. उन्हें देखते ही कलराज चाचा आपे से बाहर हो गए, ‘‘खबरदार जो दोबारा यहां आने की हिम्मत की. हमारातुम्हारा रिश्ता खत्म.’’

कुछ लोगों ने चाचा को संभाला वरना लगा जैसे वे विश्वभान चाचा को खा जाएंगे.

ऐसा उन्होंने क्यों किया? वहां उपस्थित लोगों को समझ नहीं आया. हो सकता है पट्टेदारी का झगड़ा हो? जमीनजायदाद को ले कर भाईभतीजों में खुन्नस आम बात है. मगर ऐसे दुख के वक्त लोग गुस्सा भूल जाते हैं.

यहां भी चाचा ने गुस्सा निकाला तो मुझे उन की हरकतें नागवार गुजरीं. कम से कम इस वक्त तो वे अपनी जबान बंद रखते. गम के मौके पर विश्वभान चाचा खानदान का खयाल कर के मातमपुरसी के लिए आए थे.

पापा को भी कलराज चाचा की हरकतें अनुचित लगीं. चूंकि वे उम्र में बड़े थे इसलिए पापा भी खुल कर कुछ कह न सके. विश्वभान चाचा उलटेपांव लौट गए. पापा ने उन्हें रोकना चाहा मगर वे रुके नहीं.

दाहसंस्कार के बाद घर में जब कुछ शांति हुई तो पापा ने सुमन का जिक्र किया. सुन कर कलराज चाचा कुछ देर के लिए कहीं खो गए. जब बाहर निकले तो उन की आंखों के दोनों कोर भीगे हुए थे. बेटी का गम हर बाप को होता है. एकाएक वे उबरे तो बमक पड़े, ‘‘सब इस कलमुंही का दोष है,’’ चाची की तरफ इशारा करते हुए बोले. यह सुन कर चाची का सुबकना और तेज हो गया.

‘‘इसे कुछ नहीं आता. न घर संभाल सकती है न ही बच्चे,’’ कलराज चाचा ने कहा. फिर किसी तरह पापा ने चाचा को शांत किया. मैं सोचने लगा, ’चाचा को घर और बच्चों की कब से इतनी चिंता होने लगी. अगर इतना ही था तो शुरू से ही नकेल कसी होती. जरूर कोई और बात है जो चाचा छिपा रहे थे, उन्होंने सफाई दी, ‘‘पढ़ाई के लिए डांटा था. अब क्या बाप हो कर इतना भी हक नहीं?’’

क्या इसी से नाराज हो कर सुमन ने आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाया? मेरा मन नहीं मान रहा था. चाचा ने बच्चों की पढ़ाई की कभी फिक्र नहीं की, क्योंकि उन के घर में पढ़ाई का माहौल ही नहीं था. स्कूल जाना सिर्फ नाम का था.

बहरहाल, इस घटना के 10 साल गुजर गए. इस बीच मैं ने मैडिकल की पढ़ाई पूरी की और संयोग से फैजाबाद के सरकारी अस्पताल में बतौर मैडिकल औफिसर नियुक्त हुआ. वहीं मेरी मुलाकात डाक्टर नलिनी से हुई. उन का नर्सिंगहोम था. उन्हें देखते ही मैं पहचान गया. एक बार ललिता चाची के साथ उन के यहां गया था. चाची की तबीयत ठीक नहीं थी. एक तरह से वे ललिता चाची की फैमिली डाक्टर थीं. चाची ने ही बताया कि तुम्हारे चाचा ने इन के कचहरी से जुड़े कई मामले निबटाने में मदद की थी. तभी से परिचय हुआ. मैं ने उन्हें अपना परिचय दिया. भले ही उन्हें मेरा चेहरा याद न आया हो मगर जब चाचा और चाची का जिक्र किया तो बोलीं, ‘‘कहीं तुम सुमन की मां की तो बात नहीं कर रहे?’’

‘‘हांहां, उन्हीं की बात कर रहा हूं,’’ मैं खुश हो कर बोला.

‘‘उन के साथ बहुत बुरा हुआ,’’ उन का चेहरा लटक गया.

‘‘कहीं आप सुमन की तो बात नहीं कर रहीं?’’

‘‘हां, उसी की बात कर रही हूं. सुमन को ले कर दोनों मेरे पास आए थे,’’

डा. नलिनी को कुछ नहीं भूला था. नहीं भूला तो निश्चय ही कुछ खास होगा?

‘‘क्यों आए थे?’’ जैसे ही मैं ने पूछा तो उन्होंने सजग हो कर बातों का रुख दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘‘मैडम, बताइए आप के पास वे सुमन को क्यों ले कर आए,’’ मैं ने मनुहार की.

‘‘आप से उन का रिश्ता क्या है?’’

‘‘वे मेरे चाचाचाची हैं. सुमन मेरी चचेरी बहन थी,’’ कुछ सोच कर डा. नलिनी बोलीं, ‘‘आप उन के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘यही कि सुमन ने पापा से डांट खा कर खुदकुशी कर ली.’’

‘‘खबर तो मुझे भी अखबार से यही लगी,’’ उन्होंने उसांस ली. कुछ क्षण की चुप्पी के बाद बोलीं, ‘‘कुछ अच्छा नहीं हुआ.’’

‘‘क्या अच्छा नहीं हुआ?’’ मेरी उत्कंठा बढ़ती गई.

‘‘अब छोडि़ए भी गड़े मुरदे उखाड़ने से क्या फायदा?’’ उन्होंने टाला.

‘‘मैडम, बात तो सही है. फिर भी मेरे लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर सुमन ने खुदकुशी क्यों की?’’

‘‘जान कर क्या करोगे?’’

‘‘मैं उन हालातों को जानना चाहूंगा जिन की वजह से सुमन ने खुदकुशी की. मैं कोई खुफिया विभाग का अधिकारी नहीं फिर भी रिश्तों की गहराई के कारण मेरा मन हमेशा सुमन को ले कर उद्विग्न रहा.’’

‘‘आप को क्या बताया गया है?’’

‘‘यही कि पढ़ाई के लिए चाचा ने डांटा इसलिए उस ने खुदकुशी कर ली.’’

इस कथन पर मैं ने देखा कि डा. नलिनी के अधरों पर एक कुटिल मुसकान तैर गई. अब तो मेरा विश्वास पक्का हो गया कि हो न हो बात कुछ और है जिसे डा. नलिनी के अलावा कोई नहीं जानता. मैं उन का मुंह जोहता रहा कि अब वे राज से परदा हटाएंगी. मेरा प्रयास रंग लाया.

वे कहने लगीं, ‘‘मेरा पेशा मुझे इस की इजाजत नहीं देता मगर सुमन आप की बहन थी इसलिए आप की जिज्ञासा शांत करने के लिए बता रही हूं. आप को मुझे भरोसा देना होगा कि यह बात यहीं तक सीमित रहेगी.’’

‘‘विश्वास रखिए मैडम, मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से आप को रुसवा होना पड़े.’’

‘‘सुमन गर्भवती थी.’’  सुन कर सहसा मुझे विश्वास नहीं हुआ. मैं सन्न रह गया.

‘‘सुमन के गार्जियन गर्भ गिरवाने के लिए मेरे पास आए थे. गर्भ 5 माह का था. इसलिए मैं ने कोई रिस्क नहीं लिया.’’

मैं भरे मन से वापस आ गया. यह मेरे लिए एक आघात से कम नहीं था. 20 वर्षीय सुमन गर्भवती हो गई? कितनी लज्जा की बात थी मेरे लिए. जो भी हो वह मेरी बहन थी. क्या बीती होगी चाचाचाची पर, जब उन्हें पता चला होगा कि सुमन पेट से है? चाचा ने पहले चाची को डांटा होगा फिर सुमन को. बच निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखा तो सुमन ने खुदकुशी कर ली.

मेरे सवाल का जवाब अब भी अधूरा रहा. मैं ने सोचा डा. नलिनी से खुदकुशी का कारण पता चल जाएगा तो मेरी जिज्ञासा खत्म हो जाएगी मगर नहीं, यहां तो एक पेंच और जुड़ गया. किस ने सुमन को गर्भवती बनाया? मैं ने दिमाग दौड़ाना शुरू किया. चाचा ने श्मशान घाट पर विश्वभान चाचा को देख कर क्यों आपा खोया? उन्होंने तो मर्यादा की सारी सीमा तोड़ डाली थी. वे उन्हें मारने तक दौड़ पड़े थे. मेरी विचार प्रक्रिया आगे बढ़ी. उस रोज वहां विश्वभान चाचा के परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखा. यहां तक कि दिन भर डेरा डालने वाले उन के दोनों बेटे दीपक और संदीप भी नहीं दिखे. क्या रिश्तों में सेंध लगाने वाले विश्वभान चाचा के दोनों लड़कों में से कोई एक था? मेरी जिज्ञासा का समाधान मिल चुका था.

हत्या-आत्महत्या : ससुराल पहुंचने से पहले क्या हुआ था अनु के साथ ?

अनु के विवाह समारोह से उस की विदाई होने के बाद रात को लगभग 2 बजे घर लौटी थी. थकान से सुबह 6 बजे गहरी नींद में थी कि अचानक अनु के घर से, जो मेरे घर के सामने ही था, जोरजोर से विलाप करने की आवाजों से मैं चौंक कर उठ गई. घबराई हुई बालकनी की ओर भागी. उस के घर के बाहर लोगों की भीड़ देख कर किसी अनहोनी की कल्पना कर के मैं स्तब्ध रह गई. रात के कपड़ों में ही मैं बदहवास उस के घर की ओर दौड़ी. ‘अनु… अनु…’ के नाम से मां को विलाप करते देख कर मैं सकते में आ गई.

किसी से कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन मुझे वहां की स्थिति देख कर समझने में देर नहीं लगी. तो क्या अनु ने वही किया, जिस का मुझे डर था? लेकिन इतनी जल्दी ऐसा करेगी, इस का मुझे अंदेशा नहीं था. कैसे और कहां, यह प्रश्न अनुत्तरित था, लेकिन वास्तविकता तो यह कि अब वह इस दुनिया में नहीं रही. यह बहुत बड़ी त्रासदी थी. अभी उम्र ही क्या थी उस की…? मैं अवाक अपने मुंह पर हाथ रख कर गहन सोच में पड़ गई.

मेरा दिमाग जैसे फटने को हो रहा था. कल दुलहन के वेश में और आज… पलक झपकते ही क्या से क्या हो गया. मैं मन ही मन बुदबुदाई. मेरी रूह अंदर तक कांप गई. वहां रुकने की हिम्मत नहीं हुई और क्यों कर रुकूं… यह घर मेरे लिए उस के बिना बेगाना है. एक वही तो थी, जिस के कारण मेरा इस घर में आनाजाना था, बाकी लोग तो मेरी सूरत भी देखना नहीं चाहते.

मैं घर आ कर तकिए में मुंह छिपा कर खूब रोई. मां ने आ कर मुझे बहुत सांत्वना देने की कोशिश की तो मैं उन से लिपट कर बिलखते हुए बोली, ‘‘मां, सब की माएं आप जैसे क्यों नहीं होतीं? क्यों लोग अपने बच्चों से अधिक समाज को महत्त्व देते हैं? क्यों अपने बच्चों की खुशी से बढ़ कर रिश्तेदारों की प्रतिक्रिया का ध्यान रखते हैं? शादी जैसे व्यक्तिगत मामले में भी क्यों समाज की दखलंदाजी होती है? मांबाप का अपने बच्चों के प्रति यह कैसा प्यार है जो सदियों से चली आ रही मान्यताओं को ढोते रहने के लिए उन के जीवन को भी दांव पर लगाने से नहीं चूकते? कितना प्यार करती थी वह जैकब से? सिर्फ वह क्रिश्चियन है…? प्यार क्या धर्म और जाति देख कर होता है? फिर लड़की एक बार मन से जिस के साथ जुड़ जाती है, कैसे किसी दूसरे को पति के रूप में स्वीकार करे?’’ रोतेरोते मन का सारा आक्रोश अपनी मां के सामने उगल कर मैं थक कर उन के कंधे पर सिर रख कर थोड़ी देर के लिए मौन हो गई.

पड़ोसी फर्ज निभाने के लिए मैं अपनी मां के साथ अनु के घर गई. वहां लोगों की खुसरफुसर से ज्ञात हुआ कि विदा होने के बाद गाड़ी में बैठते ही अनु ने जहर खा लिया और एक ओर लुढ़क गई तो दूल्हे ने सोचा कि वह थक कर सो गई होगी. संकोचवश उस ने उसे उठाया नहीं और जब कार दूल्हे के घर के दरवाजे पर पहुंची तो सास तथा अन्य महिलाएं उस की आगवानी के लिए आगे बढ़ीं. जैसे ही सास ने उसे गाड़ी से उतारने के लिए उस का कंधा पकड़ा उन की चीख निकल गई. वहां दुलहन की जगह उस की अकड़ी हुई लाश थी. मुंह से झाग निकल रहा था.

चीख सुन कर सभी लोग दौड़े आए और दुलहन को देख कर सन्न रह गए.

दहेज से लदा ट्रक भी साथसाथ पहुंचा. लेकिन वर पक्ष वाले भले मानस थे, उन्होंने सोचा कि जब बहू ही नहीं रही तो उस सामान का वे क्या करेंगे? इसलिए उसी समय ट्रक को अनु के घर वापस भेज दिया. उन के घर में खुशी की जगह मातम फैल गया. अनु के घर दुखद खबर भिजवा कर उस का अंतिम संस्कार अपने घर पर ही किया. अनु के मातापिता ने अपना सिर पीट लिया, लेकन अब पछताए होत क्या, जब चिडि़यां चुग गई खेत.

एक बेटी समाज की आधारहीन परंपराओं के तहत तथा उन का अंधा अनुकरण करने वाले मातापिता की सोच के लिए बली चढ़ गई. जीवन हार गया, परंपराएं जीत गईं.

अनु मेरे बचपन की सहेली थी. एक साथ स्कूल और कालेज में पढ़ी, लेकिन जैसे ही उस के मातापिता को ज्ञात हुआ कि मैं किसी विजातीय लड़के से प्रेम विवाह करने वाली हूं, उन्होंने सख्ती से उस पर मेरे से मिलने पर पाबंदी लगाने की कोशिश की, लेकिनउस ने मुझ से मिलनेजुलने पर मांबाप की पाबंदी को दृढ़ता से नकार दिया. उन्हें क्या पता था कि उन की बटी भी अपने सहपाठी, ईसाई लड़के जैकब को दिल दे बैठी है. उन के सच्चे प्यार की साक्षी मुझ से अधिक और कौन होगा? उसे अपने मातापिता की मानसिकता अच्छी तरह पता थी. अकसर कहती थी, ‘‘प्रांजलि, काश मेरी मां की सोच तुम्हारी मां जैसे होती. मुझे एक बात समझ में नहीं आती कि मातापिता हमें अपनी सोच की जंजीरों में क्यों बांधना चाहते हैं. तो फिर हमें खुले आसमान में विचरने ही क्यों देते हैं? क्यों हमें ईसाई स्कूल में पढ़ाते हैं? क्यों नहीं पहले के जमाने के अनुसार हमारे पंख कतर कर घर में कैद कर लेते हैं? समय के अनुसार इन की सोच क्यों नहीं बदलती? ’’

मैं उस के तर्क सुन कर शब्दहीन हो जाती और सोचती काश मैं उस के मातापिता को समझा पाती कि उन की बेटी किसी अन्य पुरुष को वर के रूप में स्वीकार कर ही नहीं पाएगी, उन्हें बेटी चाहिए या सामाजिक प्रतिष्ठा, लेकिन उन्होंने मुझे इस अधिकार से वंचित कर दिया था.

अनु एक बहुत ही संवेदनशील और हठी लड़की थी. जैकब भी पढ़ालिखा और उदार विचारों वाला युवक था. उस के मातापिता भी समझदार और धर्म के पाखंडों से दूर थे. वे अपने इकलौते बेटे को बहुत प्यार करते थे और उस की खुशी उन के लिए सर्वोपरि थी. मैं ने अनु को कई बार समझाया कि बालिग होने के बाद वह अपने मातापिता के विरुद्ध कोर्ट में जा कर भी रजिस्टर्ड विवाह कर सकती है, लेकिन उस का हमेशा एक ही उत्तर होता कि नहीं रे, तुझे पता नहीं हमारी बिरादरी का, मैं अपने लिए जैकब का जीवन खतरे में नहीं डाल सकती… इतना कह कर वह गहरी उदासी में डूब जाती.

मैं उस की कुछ भी मदद न करने में अपने को असहाय पा कर बहुत व्यथित होती. लेकिन मैं ने जैकब और उस के परिवार वालों से कहा कि उस के मातापिता से मिल कर उन्हें समझाएं, शायद उन्हें समझ में आ जाए,

लेकिन इस में भी अनु के घर वालों को मेरे द्वारा रची गई साजिश की बू आई, इसलिए उन्होंने उन्हें बहुत अपमानित किया और उन के जाने के बाद अनु को मेरा नाम ले कर खूब प्रताडि़त किया. इस के बावजूद जैकब बारबार उस के घर गया और अपने प्यार की दुहाई दी. यहां तक कि उन के पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाया भी, लेकिन उन का पत्थर दिल नहीं पिघला और उस की परिणति आज इतनी भयानक… एक कली खिलने से पहले ही मुरझा गई. मातापिता को तो उन के किए का दंड मिला, लेकिन मुझे अपनी प्यारी सखी को खोने का दंश बिना किसी गलती के जीवनभर झेलना पड़ेगा.

लोग अपने स्वार्थवश कि उन की समाज में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, बुढ़ापे का सहारा बनेगा और दैहिक सुख के परिणामस्वरूप बच्चा पैदा करते हैं और पैदा होने के बाद उसे स्वअर्जित संपत्ति मान कर उस के जीवन के हर क्षेत्र के निर्णय की डोर अपने हाथ में रखना चाहते हैं, जैसे कि वह हाड़मांस का न बना हो कर बेजान पुतली है. यह कैसी मानसिकता है उन की?

कैसी खोखली सोच है कि वे जो भी करते हैं, अपने बच्चों की भलाई के लिए करते हैं? ऐसी भलाई किस काम की, जो बच्चों के जीवन से खुशी ही छीन ले. वे उन की इस सोच से तालमेल नहीं बैठा पाते और बिना पतवार की नाव के समान अवसाद के भंवर में डूब कर जीवन ही नष्ट कर लेते हैं, जिसे हम आत्महत्या कहते हैं, लेकिन इसे हत्या कहें तो अधिक सार्थक होगा. अनु की हत्या की थी, मातापिता और उन के खोखले समाज ने.

पति विवाद में पहली हिंसा में ही पत्नी करे विरोध

लखनऊ ठाकुरगंज थाना क्षेत्र में आनंदेश्वर अग्रहरी उर्फ आनंद और जान्हवीं अग्रहरि उर्फ संध्या पतिपत्नी के रूप में रह रहे थे. 2008 में दोनों ने प्रेम विवाह किया था. दोनों के 2 बेटे तनिष्क और शोर्य थे. तनिष्क मूक बधिर था. आनंद फिजियोथेरैपिस्ट के रूप में काम करता था. पतिपत्नी दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे.

2019 में झगड़े को ले कर मसला पुलिस तक गया था. हर बार समझौता हो जाता था. 4 दिसंबर को पहला झगड़ा हुआ. आनंद जुआ खेलने और नशे का आदी था. कुछ माह से वह आपना काम भी नहीं कर रहा था. ऐेसे में पैसों को ले कर पतिपत्नी में झगड़ा बढ़ गया था.

आनंद के बड़े बेटे तनिष्क ने पुलिस को लिख कर और साइन लैग्वेंज (इशारो से अपनी बात बताना) के जरीए पुलिस को बताना चाहा तो पुलिस उस बात को समझ नहीं पाई थी. ऐसे में एडीसीपी चिरंजीवी नाथ सिन्हा ने साइन लैग्वेंज की जानने वाली प्रिंसिपल को बुलवाया. उन के साथ बातचीत कर के तनिष्क ने घर का नक्षा बनाते हुए लिख कर समझाया कि ‘डैड ने पहले पैकेट खोल कर नशीला पदार्थ बच्चों और पत्नी को धोखे से पिला दिया.’

जब बच्चे बेहोश हो गए तो आनंद ने बेहोश पत्नी संध्या पर चाकू से 22 वार कर के मार दिया.’ इस के कुछ देर बाद शौर्य उठा तो उस ने अपनी नानी को फोन पर सारी जानकारी दी. आनंद फरार हो चुका था. इस तरह से आनंद और संध्या की प्रेम कहानी का अंत हो गया. अगर संध्या ने पहली हिंसा पर ही विरोध कर के अलग रहने का फैसला किया होता तो शायद वह जिंदा होती.

इसी तरह की दूसरी घटना लखनऊ के 80 किलोमीटर दूर रायबरेली जिले की है. मीरजापुर जिले के फरदहा घाटमपुर निवासी डाक्टर अरूण सिंह लालगंज रायबरेली स्थित रेल डिब्बा कारखाना के अस्पताल में 6 साल से नौकरी कर रहा था. उस के साथ पत्नी अर्चना, बेटी अदीवा और आरव रहता था. रहने के लिए टाइप-4 आवास उन को मिला था. वह दिन से डयूटी पर नहीं गया तो अस्पताल के कर्मचारी उस को देखने घर गए. घर के दरवाजे पर ताला लगा था. दूसरे दरवाजे अंदर से बंद थे. खिड़की से झांक कर देखने पर पता चला कि घर में सब मरे पड़े थे.

पुलिस के अनुसार डाक्टर अरूण ने मिठाई में जहर खिला कर पत्नी और बच्चों को बेहोश कर दिया. इस के बाद चेहरों पर हथौड़ी मार कर पहले पत्नी और बच्चों की हत्या कर दी. इस के बाद ग्राइडर मशी से अपनी नस काटनी चाही, असफल होने पर फंसी लगा कर जान दे दी. डाक्टर अरूण भी नशा करता था. आईजी पुलिस तरूण गाबा और एसपी आलोक प्रियदर्शी ने कहा कि घटना दुखद है. पुलिस इस की जांच कर रही है. इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. हर शहर में कभी न कभी सामने आती है. ऐसे में महिलाएं किस तरह से अपना बचाव कर सकती हैं यह समझना जरूरी है.

नशा, जुआ और मैंटल हैल्थ बन रहा कारण

पतिपत्नी विवाद में झगड़े की शुरूआत धीरेधीरे होती है. शुरूआत में पत्नी को यह लगता है कि हर पतिपत्नी के बीच ऐसा होता है. धीरेधीरे सब ठीक हो जाता है. लेकिन धीरेधीरे सब ठीक नहीं होता बल्कि और बिगड़ जाता है. पत्नी दो कारणों से पति का विरोध नहीं कर पाती है. पहला उस के बच्चे हो जाते हैं. उसे लगता है इन को ले कर कहां जाएगी. दूसरे शादी के बाद लड़कियों को अपने मायके में भी साथ और सहयोग नहीं मिलता.

धर्म ग्रंथों में लड़कियों को यही समझाया जाता है कि शादी के बाद उन का घर ससुराल होता है. मायके से डोली में वह जाती है और ससुराल से उन की अर्थी ही निकलती है. समाज में उन महिलाओं को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता जो सुसराल छोड़ कर अलग रहती है. अधिकतर महिलाएं आर्थिक रूप से कमजोर होती हैं. वह अलग रह कर अपना जीवन यापन नहीं कर सकती. सिंगल रहने वाली महिलाओं के प्रति समाज अच्छी नजर नहीं रखता है.

इस वजह से वह अपने फैसले खुद नहीं ले पाती है और हिंसा सह कर पति के साथ उस के घर में रहने को मजबूर होती है. मनोचिकित्सक डाक्टर मधु पाठक कहती है ‘जुआ खेलने के आदी ज्यादातर लोग नशे के भी आदी हो जाते हैं. नशा करने वाले की सहनशीलता और सोचनेसमझने की ताकत खत्म हो जाती है. वह अचानक गुस्से में आ जाता है. कई बार वह क्रोध में कई बार डिप्रेशन में घातक कदम उठा लेता है.

जल्दी नहीं मिलता तलाक

इस तरह की घटनाओं की शिकार पूजा वाजपेई कहती है, “हिंसा का विरोध करने पर जब लड़की मायके वालों को अपनी बात बताती है तो वह सलाह देते हैं थोड़ा सहन करो हर रिश्ते में ऐसा होता है. जब लड़की तलाक लेने के लिए जाती है तो सालोंसाल उस को भटकना पड़ता है. जब तलाक मिल जाता है तो उस के लिए मायके में भी जगह बहुत बार नहीं मिलती है. जब वह किराए के मकान में रहती है तो मध्यम वर्गीय शहरों में किराए पर घर नहीं मिलता.

सिंगल महिला के कैरेक्टर को ले कर सवाल उठते हैं. कई बार उस के आसपास के पुरूष गलत फायदा भी उठाने का प्रयास करते हैं. इन हालातों से बचने के लिए महिलाएं पतियों की प्रताड़ना सहती रहती है.’

पूजा खुद सिंगल पैरेंट है. वह अपनी बेटी के साथ अलग रहती है. पति के साथ विवाद के बाद उस ने पति से तलाक लेने का काम किया. 6 साल में उसे तलाक मिला. पूजा की शादी कम उम्र में हो गई थी. 26 साल में उस का तलाक हो गया. उस के पास काम करने का मौका था. उस ने जौब करना शुरू किया. अपनी बेटी को अपने पास रखा. अब वह सोशल मीडिया पर मुहिम चला कर सिंगल रहने वाली महिलाओं की मुश्किलों को हल करने में मदद भी कर रही है.

आत्मनिर्भरता जरूरी

समाज में यह बदलाव आने लगा है कि लड़कियां अब नौकरी करने लगी हैं. ज्यादातर की प्राइवेट जौब है. जिस में 10-12 हजार ही वेतन मिलता है. बड़े शहरों में यह 20-25 हजार हो जाता है. ऐसे में शादी के बाद वह जौब करना वह छोड़ देती है. शादी में अगर सब ठीक नहीं चला तो उन के पास जीवन यापन का कोई साधन नहीं होता.

ज्यादातर पति अपने घर परिवार के साथ घर में रह रहे होते हैं. ऐसे में पत्नी को घर में झगड़े के बाद रहने को मिल भी जाए तो शांति से रहना मुश्किल रहता है.

इस के उलट सरकारी नौकरी करने वाली लड़कियों को शादी के बाद नौकरी छोड़ने के लिए नहीं दबाव डाला जाता है. जिस से पति के साथ झगड़ा होने पर भी वह अपना जीवन गुजारने की हालत में होती है.

वह सिंगल रह भी लेती है और समाज भी उन के साथ खड़ा हो जाता है. पतिपत्नी विवादों में पुलिस और कचहरी के तमाम चक्कर लगाने पड़ते हैं. प्राइवेट संस्थान छुट्टियां नहीं देते. ऐसे में लड़कियों के सामने दिक्कतें होती हैं.

पूजा कहती है, ‘पति का घर छोड़ते ही हालात बदल जाते हैं. संयुक्त परिवार में पति के घर रहना नामुमकिन होता है. उन की बहू के साथ कोई लगाव नहीं रहता. वह खराब से खराब हालत में अपने बेटे का ही सपोर्ट करते हैं. लड़की के मांबाप उस को मायके नहीं ला पाते. उन को लगता है कि मायके में बैठी बेटी को देख कर उस के दूसरे लड़के लड़की के लिए अच्छे रिश्ते नहीं आएंगे.’

इन कारणो से ही लड़की हिंसा सहती है. अगर घर परिवार समाज और कानून उस की मदद करे तो वह मरने के लिए कभी पति के साथ नहीं रहेगी. लड़की को बेचारी समझने की जगह पर अगर उस की मदद की जाए तो समाज में बेहतर हालात बन सकते हैं. आत्मनिर्भर लड़कियां खुद के फैसले ले सकती हैं. शादी के बाद भी उनको जौब नहीं छोड़नी चाहिए. उन के पास एक ठिकाना जरूर होना चाहिए जहां वह जरूरत पड़ने पर बिना किसी दबाव के रह सके.

फिर सवालों के घेरे में ईवीएम मशीन, भाजपा पक्ष में खड़ी

5 राज्यों में हुए चुनाव में देश के 3 महत्वपूर्ण राज्य राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की विजय से एक बार फिर सवाल उठ खड़े हुए हैं कि ईवीएम मशीन को हैक कर के कुछ भी किया जा सकता है.

पहले पहल बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती और फिर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े किए हैं. जिस से देश में एक बार फिर ईवीएम मशीन पर चर्चा का दौर शुरू हो गया है.

मजे की बात यह है कि इस से भारतीय जनता पार्टी बौखला गई है और खुल कर ईवीएम का पक्ष ले रही है. भाजपा के एक बड़े नेता ईवीएम के पक्षधर बन गए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह बयान दे रहे हैं अगर उस का विश्लेषण करें तो पाते हैं कि वह विपक्ष को गुस्सा भूल कर के सकारात्मक दृष्टि से आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी करने की सलाह दे रहे हैं.

इस का सीधा सा मतलब यह है कि ईवीएम पर सवाल खड़ा नहीं किया जाए. लाख टके का सवाल यह है कि ईवीएम के आप इतने बड़े पक्षधर क्यों बन गए हैं? अगर बैलेट पेपर से चुनाव होते हैं तो भारतीय जनता पार्टी को क्या नुकसान है? सांच को आंच क्या?

होना तो यह चाहिए था कि भारतीय जनता पार्टी उस के बड़े नेताओं को ईवीएम का खुल कर पक्ष नहीं लेना चाहिए. यह मामला चुनाव आयोग का है और या फिर देश की उच्चतम न्यायालय का. वह इस पर संज्ञान ले कर के आपत्तियों पर अपना फैसला दे सकते हैं.

मगर जिस तरह भारतीय जनता पार्टी और उस के नेता ईवीएम का समर्थन कर रहे हैं वह संदेह पैदा करता है और उचित नहीं कहा जा सकता. दरअसल, निष्पक्ष चुनाव देश की प्राथमिकता होनी चाहिए अगर ईवीएम के कारण सवाल उठ रहे हैं तो उस का जवाब तो देना ही होगा.

विधानसभा चुनाव के नतीजों से अडानी के शेयर आसमान क्यों छूने लगे ?

छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों में भाजपा को मिली जीत का असर से शेयर बाजार पर जबरदस्त पड़ा है. भाजपा की जीत से सेंसेक्स में 1000 अंकों से ज्यादा उछाल आया. उद्योगपति गौतम अडानी की सभी कंपनियों के शेयर में तीव्रता देखी जा रही है. अडानी एंटरप्राइजेज का शेयर 10 प्रतिशत , तो अडानी ग्रीन एनर्जी के स्टौक ने 15 फीसदी तक उछाल मारी.

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. चुनाव नतीजों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की स्थिरता का संकेत दिया है और इस का बड़ा फायदा उन के खास मित्र अडानी की कंपनियों और उन के निवेशकों को हुआ है. गौतम अडानी की कंपनियों के शेयरों में 15 फीसदी तक उछाल आया है.

भाजपा की जीत का असर एसबीआई, एनटीपीसी पर भी दिखाई दे रहा है. मगर फोकस में अडानी की कंपनियों के शेयर ही रहे. ये इसलिए भी फोकस में रहे क्योंकि विपक्ष लगातार गौतम अडानी को मुद्दा बना कर मोदी सरकार को घेरती रही है. भाजपा की जीत ने निवेशकों की भावनाओं को ऐसा प्रभावित किया कि शेयर बाजार में तूफानी तेजी दिखी.

अडानी ग्रुप की प्रमुख कंपनी अडानी इंटरप्राइजेज ने बीएसई पर 2,584.05 रूपए पर 10 फीसदी के ऊपरी सर्किट को छुआ तो वहीं अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के शेयर ने 14.75 फीसदी चढ़ कर 1,178 रूपए के हाई लेवल को टच किया. शेयर मार्किट का कारोबार शुरू होने के कुछ ही मिनटों में अडानी पावर लिमिटेड के शेयर 6.13 फीसदी बढ़ कर 467.40 रूपए के लेवल पर पहुंच गए.

निवेशक हुए मालामाल

गौतम अडानी के नेतृत्व वाली कंपनियों के शेयरों में आए उछाल से निवेशक गदगद हैं. अडानी पोर्ट्स 5.71 फीसदी उछल कर 875.05 रूपए के लेवल पर, अडानी टोटल गैस लिमिटेड का स्टौक 5.05 फीसदी की तेजी के साथ 736.90 रूपए पर ट्रेड करने लगा. अडानी एनर्जी सौल्यूशंस का शेयर 6.24 फीसदी चढ़ कर 908.00 रूपए और एनडीडटीवी के स्टौक ने 4.08 फीसदी की उछाल के साथ 228.05 रूपए पर कारोबार किया.

स्टौक मार्केट में लिस्टेड अडानी ग्रुप की 10 कंपनियों में शामिल सीमेंट सेक्टर की दिग्गज अंबुजा सीमेंट और एसीसी के शेयर भी तेजी से भाग रहे हैं. एसीसी लिमिटेड के शेयर 3.74 की उछाल ले कर 1,971.35 रूपए पर ट्रेड कर रहे हैं तो वहीं अंबुजा सीमेंट का शेयर 5 फीसदी की तेजी के साथ 464.10 रूपए पर कारोबार कर रहा है.

वहीं निफ्टी ने 20,600 के नए लेवल को छुआ. अडानी के शेयरों में आई इस जोरदार तेजी के चलते कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशकों की संपत्ति में भी उछाल आया और एक झटके में ही उन की दौलत 1.14 लाख करोड़ रूपए बढ़ गई.

गौतम अडानी के लिए दूसरी बड़ी खुशखबरी यह है कि 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का उन्हें न्योता मिला है. जहां वे मोदी के सब से निकट दिखेंगे. प्राण प्रतिष्ठा में देश की अनेक जानीमानी हस्तियों को बुलाया गया है जिस में अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, आशा भोंसले, रतन टाटा, मुकेश अंबानी के नाम प्रमुख हैं.

आमंत्रित लोगों में अहम नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत और रामदेव बाबा का भी है. खेलों की दुनिया से सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली के नाम भी लिस्ट में हैं. लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और उमा भारती को भी निमंत्रण भेजा गया है.

जैन धर्म के महागुरु आचार्य लोकेश मुनि को भी न्योता मिला है. देश के प्रसिद्ध फुटबौलर बाईचुंग भूटिया, ओलंपियन मैरी कौम, बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु, पी गोपीचंद, क्रिकेटर रोहित शर्मा, सुनील गावस्कर, कपिल देव, अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़ के नाम निमंत्रण भेजने की तैयारी है.

कार्यक्रम की प्राण प्रतिष्ठा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रमुख मेहमान होंगे और प्राण प्रतिष्ठा उन के ही हाथों से होगी. उन के दाएंबाएं अमित शाह और गौतम अडानी ही विराजेंगे और ये दृश्य भी शेयर मार्केट को अवश्य प्रभावित करेगा.

विपक्ष की ताकत क्यों है ‘इंडिया’ गठबंधन

विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन का पहला उद्देश्य मोदी सरकार के निरकुंश होते शासन पर लगाम लगाने का था. आम आदमी पार्टी के मुद्दे को ले कर विपक्ष एकजुट रहा. सुप्रीम कोर्ट तक ईडी और सीबीआई के निरकुंश होते कामों की बात पहुंचाई गई. ममता बनर्जी का मसला हो या महुआ मोइत्रा का, विपक्ष ने एकजुटता दिखाने का काम किया. बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस ने हर मुद्दे पर अगुवाई भी की.

मोदी-अडानी के मसले पर लोकसभा में खुल कर सवाल पूछे. राहुल गांधी को लोकसभा की सदस्यता तक गंवानी पड़ी पर वह झुके नहीं. उस समय इंडिया गठबंधन पूरी ताकत से सत्ता के सामने खड़ा था. दोतीन मीटिंगों में ही लगने लगा था कि इंडिया गठबंधन मोदी के बढ़ते रथ की लगाम थाम लेगा. अचानक 3 राज्यों में कांग्रेस के चुनाव हारते ही इंडिया गठबंधन के तमाम दल कांग्रेस पर ही हमलावर हो गए. ऐसा लग रहा है जैसे इंडिया गठबंधन का उद्देश्य विधानसभा चुनाव लड़ना और जीतना था.

सत्ता से अधिक मत है विपक्ष के पास

लोकतंत्र में चुनावी जीत और हार राजनीति का एक हिस्सा है. इसी तरह से सत्ता और विपक्ष भी सरकार का एक हिस्सा है. इन चुनावों में भाजपा को 4 करोड़ 81 लाख 29 हजार 325 वोट और कांग्रेस को 4 करोड़ 90 लाख 69 हजार 462 वोट मिले हैं. क्या सत्ता पक्ष केवल अपने वोटर के लिए काम करेगा? ऐसा नहीं होता. सरकार सब की होती है. जिन लोगों ने वोट दे कर सरकार बनाई उन को घमंड नहीं होना चाहिए. जिन लोगों ने वोट नहीं दिया उन को भी घबराना नहीं चाहिए.

यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जो ज्यादा वोट पाता है वह सरकार चलाता है. जो कम वोट पाता है उस की जिम्मेदारी खत्म नहीं होती. उसे विपक्ष के रूप में पूरी ताकत से काम करना होता है. यही वजह है कि लोकसभा हो या विधानसभा दोनों में एक नेता सदन होता है जिस को लोकसभा में प्रधानमंत्री विधानसभा में मुख्यमंत्री कहा जाता है. दूसरा नेता विपक्ष होता है. जो विपक्ष के सब से बड़े दल का नेता होता है. संविधान ने सदन में दोनों को ही बराबर का अधिकार दे रखा है. दोनों ही पद संविधान द्वारा दिए गए हैं.

संविधान ने दिया है बराबर का हक

संविधान नेता सदन और नेता विपक्ष दोनों को समान अधिकार इसलिए दिए हैं ताकि सत्ता सदन में निरंकुश न हो सके. सदन में मनमाने फैसले न कर सके. यहां तक की बजट बिना नेता विपक्ष के सामने रखे पास नहीं किया जा सकता. संविधान ने सदन के अंदर विपक्ष का पूरा अधिकार दिया है. सदन के बाहर यानि जनता के बीच अलग अलग दल हो जाते हैं. यह दल मजबूती से अपनी बात नहीं रख पाते. ऐसे में विपक्ष का एकजुट होना जरूरी हो जाता है. इसलिए ही विपक्ष का गठबंधन जरूरी होता है.

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 37.36 फीसदी वोट मिले. उस के एनडीए गठबंधन को 45 फीसदी वोट मिले थे. इस का साफ मतलब यह है कि 55 फीसदी लोगों के मत भाजपा और उस के गठबंधन को नहीं मिले. अब अगर इंडिया गठबंधन एकजुट नहीं होगा तो इन 55 फीसदी लोगों के भरोसे का क्या होगा? इन लोगों ने जिन को वोट दिया वह सरकार नहीं बना पाए तो क्या इन के वोट का महत्व खत्म हो गया. इन की बात करना विपक्ष का अधिकार है.वोटर का मौलिक हक है कि विपक्ष उस की बात को सम्मान दे.

इसीलिए संविधान ने विपक्ष को चुनाव के बाद दरकिनार नहीं किया. उसे नेता सदन के बराबर महत्व देते हुए नेता विपक्ष का सम्मान और अधिकार दिया. जिन लोगों को कम वोट मिलते हैं वह अलगअलग दलों में बंटे होते हैं. संख्या में कम होने के कारण उन की आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज जैसे हो जाती है. यह आवाज दमदार दिख इस के लिए विपक्ष के गठबंधन की जरूरत है. आज अगर सारा विपक्ष बिखरा होगा तो सत्ता द्वारा उस का दमन सरल होगा.

इमरजेंसी में दिखी एकता

भारत के इतिहास में इस का भी रहा है. 1975 में इंदिरा गांधी ने विपक्षी नेताओं की आवाज को बंद करने के लिए देश में इमरजेंसी लगा दी. नेताओं को जेल में डाल दिया. सभी दलों के छोटेबड़े नेता जेल चले गए. इस के बाद भी विपक्षी एकता बनी रही. इस का प्रभाव यह हुआ कि 1977 में विपक्षी दलों ने एकजुट हो कर ताकतवर इंदिरा गांधी को चुनाव में करारी मात देने में सफलता पाई.

अगर यह लोग सीट और टिकट के बंटवारे को ले कर लड़ रहे होते तो इंदिरा सरकार को हटाने में सफल नहीं होते. जिस तरह का जुल्म इंदिरा सरकार में विपक्ष के साथ हुआ ईडी सीबीआई के बीच मोदी सरकार उतना जुल्म नहीं कर रही है. अगर 55 फीसदी लोगों को विपक्ष अपने साथ एकजुट कर लेगा तो मोदी सरकार को घेरा जा सकता है. 55 फीसदी अपने वोटरों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए विपक्ष की एकजुटता जरूरी है.

वोटर के अधिकार की रक्षा जरुरी

विपक्षी दल चुनाव चुनाव जैसे भी लड़े अपने वोटरों के प्रति जवाबदेही से दूर होंगे तो वोटरों से दूर होंगे और आने वाले चुनाव में वोटर उन से दूर हो जाएगा. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को मुसलमानों से शत प्रतिशत वोट दिए पर सपा उन की समस्याओं को ले कर लड़ती नहीं दिख रही है. ऐसे में आने वाले चुनाव में मुसलमान वोट को यह हक है कि वह अपना अलग ठिकाना देख सकता है.

जैसे बसपा के साथ हुआ. बसपा के साथ जब तक दलित वोटर के हक में खड़ी थी वोटर उस के साथ था. जैसे ही बसपा में ब्राहमणवाद बढ़ा ‘हाथी नहीं गणेश है ब्रम्हा विष्णु महेश है’ का नारा लगा दलित बसपा से दूर हो गया और बसपा सत्ता से बाहर हो गई. समाजवादी पार्टी भी इस का खामियाजा भुगत चुकी है. मुलायम सिंह यादव जब तक किसानों के नेता था उन का कद बढ़ता गया. मंडल आयोग का लाभ ले कर जैसे ही वह केवल यादवों तक सीमित हुए उन का राजनीतिक कद छोटा होने लगा.

जैसे 2012 में सत्ता बेटे अखिलेश को दी यादव छोड़ दूसरे पिछड़े वर्ग के नेताओं से समाजवादी पार्टी का दामन छोड़ दिया. इस का परिणाम यह हुआ कि पिछड़ा वर्ग सपा का साथ छोड़ भाजपा के साथ चला गया. इस के फलस्वरूप 2014 के बाद सपा उत्तर प्रदेश में एक भी चुनाव नहीं जीत पाई. अगर अपने वोटर का ध्यान नहीं रखा और सीट और सत्ता के मोह में एकजुट नहीं हुए तो मोदी सरकार का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. 55 फीसदी वोटर की जिम्मेदारी भी नहीं उठा पाएंगे. ऐसे में वोटर आप को भूल जाएगा. दल को बचाना है तो एकजुटता जरूरी है.

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